विकङ्क देवीभागवत ९.२२(शङ्खचूड - सेनानी, वरुण से युद्ध), वायु ३९.३९(विकङ्क पर्वत पर गरुड - पुत्र सुग्रीव का वास ) vikanka


      विकङ्कत नारद १.५६.२०७(विकङ्कत वृक्ष की विशाखा नक्षत्र से उत्पत्ति ) vikankata


      विकच ब्रह्माण्ड २.३.७.१४९(विकचा : राक्षसी, नीला - पुत्री ), वायु ६९.१०५, vikacha


      विकट अग्नि १०५.१३(वास्तु के अन्तर्गत स्कन्दविकट देवता का उल्लेख), गणेश १.९२.२१(श्वापदों द्वारा विकट नाम से गणेश की पूजा), २.८५.३३(विकट गणेश से गौ की रक्षा की प्रार्थना), २.११४.१६(सिन्धु व गणेश के युद्ध में विकट का धूर्तराज से युद्ध), पद्म ६.२०४.६८(विकट राक्षस का शरभ ब्राह्मण से संवाद, इन्द्रप्रस्थ तीर्थ के जल से जाति ज्ञान), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३७.१८(विकटास्या काली से उत्तर दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड ३.४.२४.९(विकटानन : भण्डासुर - सेनानी, कुक्कुट वाहन, तिरस्करिणी देवी द्वारा वध), भविष्य ३.४.२२(विकटावती - पति विकट वानर द्वारा राम से राज्य की प्राप्ति का वर, विक्टोरिया राज्ञी आदि के रूप में शासन ), स्कन्द ७.४.१७.३७(द्वारका के ईशान दिशा के क्षेत्रपालों में से एक), वा.रामायण ७.५,४०(सुमाली व केतुमती की सन्तानों में से एक), कथासरित् ९.२.२४६(विकटवदन : विन्ध्यवासिनी द्वारा जीवदत्त को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन : पूर्व जन्म में देवी के ४ गणों में से एक, विकटवदन नाम, कन्या से बलात्कार पर मनुष्य योनि प्राप्ति), १०.४.१६८(विकट व संकट नामक हंसों द्वारा कूर्म को दूसरे सरोवर पर ले जाने के उद्योग का आख्यान), vikata


      विकटा स्कन्द ४.२.७२.६१(विकटा देवी द्वारा कटि प्रदेश की रक्षा), ४.२.८३.२६(विकटा मातृका की पञ्चमुद्रा पीठ में स्थिति, मलयगन्धिनी द्वारा देवी को पुत्र समर्पण, विकटा द्वारा वीरेश्वर बालक का पालन), ५.२.४६.४५, वा.रामायण ५.२३.१४(विकटा राक्षसी द्वारा सीता को रावण का वरण करने का परामर्श ), ५.२४, vikataa


      विकटाक्ष स्कन्द ५.३.१५९.२२, कथासरित् ८.२.२२४(असुराधिपों में से एक), ८.२.३८३(हयग्रीव व विकटाक्ष : स्थिरबुद्धि व महाबुद्धि रूप में अवतरण), ८.५.२६(सूर्यप्रभ - सेनानी विकटाक्ष का श्रुतशर्मा - सेनानी धुरन्धर से युद्ध ) vikataaksha/ vikataksha


      विकद्रु हरिवंश २.३७(विकद्रु द्वारा हर्यश्व चरित्र व यादव उत्पत्ति का वर्णन), २.५८.८०(द्वारका में कृष्ण द्वारा नियुक्त प्रधान मन्त्री ) vikadru


      विकर्ण नारद १.६६.१३२(वीर गणेश की शक्ति विकर्णा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२४.९(भण्डासुर - सेनानी, भेरुण्ड वाहन, तिरस्करिणी देवी द्वारा वध ) vikarna


      विकर्तन ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२५(विकर्तन सूर्य से तारकाओं की रक्षा की प्रार्थना),


      विकला लक्ष्मीनारायण ३.५२.३९,


      विकलाङ्ग स्कन्द ३.१.२३.५४(चक्र तीर्थ में विकलांगता से मुक्ति)


      विकार वायु १.६.५६/६.६०(तृतीय वैकारिक ऐन्द्रिय सर्ग का उल्लेख )


      विकीर्ण पद्म ६.१३७(विकीर्ण तीर्थ का माहात्म्य, पिण्ड दान की क्रिया),


      विकुक्षि गरुड ३.२८.२४(विकुक्षि की निरुक्ति), ३.२८.५५(सुमति-पति), देवीभागवत ७.८, ब्रह्माण्ड २.३.६३.१४(श्राद्ध निमित्त शश के भक्षण से पिता द्वारा विकुक्षि का निष्कासन, विकुक्षि द्वारा शशाद नाम प्राप्ति, वंश वर्णन), भागवत ९.६(इक्ष्वाकु - पुत्र विकुक्षि द्वारा शश भक्षण के कारण शशाद नाम की प्राप्ति), मत्स्य १२.२६(इक्ष्वाकु - पुत्र, वंश वर्णन), वायु ८८.९(इक्ष्वाकु - पुत्र विकुक्षि द्वारा शश भक्षण की कथा, वंश वर्णन ) vikukshi


      विकुण्ठा ब्रह्माण्ड १.२.३६.५८(वसिष्ठ के विकुण्ठा नामक पुत्रगण के वृष, भेत्ता आदि नाम), २.३.४.३२(जय देवों का पंचम मन्वन्तर में विकुण्ठा से जन्म लेकर वैकुण्ठ गण बनने का कथन), भागवत ८.५.४(शुभ्र - पत्नी, वैकुण्ठ अवतार की माता), वायु २.१.४५(चरिष्णु वसिष्ठ के पुत्रों में एक), २.१.५०(विकुण्ठ के पुत्रों वृषभेत्ता आदि के नाम), लक्ष्मीनारायण १.१२९.४७(इन्द्रियों की वृत्तियों के कुण्ठित हो जाने पर वैकुण्ठ बनने का उल्लेख), १.३१७(राधा की मानसी पुत्री विकुण्ठा की निरुक्ति, विकुण्ठा का दशधा रूपों में वैकुण्ठ आदि लोकों में वास ), १.३८५.५३(विकुण्ठा का कार्य), २.१६६.४(गोलोक में राधा व कृष्ण से उत्पन्न विकुण्ठा पुत्री व सप्त सागरों का उल्लेख), द्र. मन्वन्तर vikunthaa


      विकुण्डल पद्म ३.३०(हेमकुण्डल - पुत्र, पूर्व जन्म का वृत्तान्त, श्रीकुण्डल भ्राता की नरक से मुक्ति हेतु पुण्य दान ) vikundala


      विकूट मत्स्य १३


      विकृत नारद १.६६.१०९(भौतिक की शक्ति विकृतास्या का उल्लेख), कथासरित् ८..४.६९(सूर्यप्रभ - सेनानी विकृतदंष्ट} का श्रुतशर्मा - सेनानी हर्ष द्वारा वध ) vikrita


      विकेशी ब्रह्माण्ड १.२.१०.७८(शर्व - पत्नी, अङ्गारक - माता), लिङ्ग २.१३.४(शिव - भार्या, अङ्गारक - माता), वायु २७.५०,


      विक्रम पद्म ६.१८८(गीता के १४वें अध्याय के माहात्म्य के संदर्भ में विक्रम वेताल राजा द्वारा मृगयार्थ शश के पीछे शुनी दौडाने का वृत्तान्त), ७.५, भविष्य ३.२.२३, वामन ५७, योगवासिष्ठ ३.७७.१७, लक्ष्मीनारायण १.३९३, कथासरित् ४.३.३१(वाराणसी के महीपति विक्रमचूड के भृत्य वल्लभ का वृत्तान्त ), द्र. चण्डविक्रम, त्रिविक्रम, नागविक्रम vikrama


      विक्रमकेसरी कथासरित् १२.२.१८(मृगाङ्कदत्त के १० सचिवों में से एक), १२.८.४(विक्रमकेसरी द्वारा वेताल मन्त्र प्राप्ति का वर्णन), १२.१०.५(राजा विक्रमकेसरी व उसकी भार्या चन्द्रप्रभा के आधीन रहने वाले शुक व सारिका के पुरुष - स्त्री दोषों के सम्बन्ध में वार्तालाप का वर्णन), १२.२५.१०८?, १२.३६.५९(मन्त्री विक्रमकेसरी द्वारा शशाङ्कवती को मृगाङ्कदत्त से परिचित कराना ) vikramakesaree/ vikramakesari


      विक्रमतुङ्ग कथासरित् ७.१.५३(राजा विक्रमतुङ्ग द्वारा ब्राह्मण के बिल्वहोम तथा द्विज के कनक निर्माण को सत्य बनाने का वृत्तान्त), ९.३.८६(राजा विक्रमतुङ्ग के प्रहरी वीरवर द्वारा राजा के प्राणों की रक्षा हेतु अपने परिवार का बलिदान करने का वृत्तान्त ) vikramatunga


      विक्रमपुर कथासरित् ९.३.८६(विक्रमपुर के राजा विक्रमतुङ्ग व उसके प्रहरी वीरवर का वृत्तान्त),


      विक्रमशक्ति कथासरित् २.२.१७(वल्लभशक्ति - पुत्र विक्रमशक्ति को सखा रूप में श्रीदत्त की प्राप्ति), २.२.१९८(श्रीदत्त द्वारा पितृघाती विक्रमशक्ति का वध), ८.३.१५५(श्रुतशर्मा विद्याधर के सहायक शूरों में से एक), ८.३.१६७(विक्रमशक्ति का दूत को संक्षिप्त संदेश), ८.५.७२(प्रभास से युद्ध करने वाले ४ विद्याधरों में से एक), ८.६.६९(गुणशर्मा द्वारा युक्तिपूर्वक राजा विक्रमशक्ति का वध कराने का वृत्तान्त), १८.१.६९(विक्रमादित्य द्वारा प्रेषित दूत अनङ्गदेव द्वारा राजा विक्रमशक्ति के बल, विक्रम आदि का वर्णन ) vikramashakti


      विक्रमशील मार्कण्डेय ७५,


      विक्रमसिंह कथासरित् ६.१.१३८(मन्त्री के समझाने पर राजा विक्रमसिंह का मृगया के लिए प्रस्थान, दो युवकों को शरण देने का वृत्तान्त), १०.२.१(शत्रुओं से पराजित होने पर राजा विक्रमसिंह द्वारा कुमुदिका वेश्या के धन की सहायता से शत्रुओं पर पुन: विजय प्राप्त करने का वृत्तान्त ) vikramasimha/ vikramasinha


      विक्रमसेन कथासरित् ६.४.७२(राजा विक्रमसेन की पुत्री तेजस्वती द्वारा पति वरण का वृत्तान्त), १२.८.२३(विक्रमसेन के पुत्र त्रिविक्रमसेन का भिक्षु से मिलन व वेताल को स्कन्ध पर आरोपित करके लाने का वृत्तान्त ) vikramasena


      विक्रमादित्य भविष्य ३.१.७.१६(विक्रमादित्य के वेताल से संवाद का आरम्भ), ३.२.२३(विक्रमादित्य का अश्वमेध यज्ञ द्वारा चन्द्रलोक गमन, चन्द्र से प्राप्त सुधा का इन्द्र को दान), कथासरित् ७.४.३(राजा नरसिंह से हारने पर विक्रमादित्य का नरसिंह के राज्य में वेश्या मदनमाला के गृह में वास, कुबेर से वर प्राप्ति का वृत्तान्त, वेश्या को पांच अक्षय स्वर्ण पुरुष देकर अदृश्य होना, पुन: मदनमाला से मिलन, शत्रु राजा नरसिंह से मैत्री करना), १८.१.३९(शिवगण माल्यवान् का महेन्द्रादित्य के पुत्र विक्रमादित्य के रूप में जन्म, दूत अनङ्गदेव का आगमन व दक्षिण दिशा के राजाओं आदि के वैभव का वर्णन ), १८.२.२१२/२०६(विक्रमादित्य द्वारा चित्र का गला काटने से वास्तविक गला कटने का कथन), १८.२.२३४(देव द्वारा चन्द्रावदाताङ्गी व प्रियङ्गुश्यामला कन्या - द्वय के पति रूप में विक्रमादित्य का निर्धारण करने का कथन ) vikramaaditya/ vikramaditya


      विक्रय भविष्य १.१८४.१(वेद विक्रय की परिभाषा ), स्कन्द ५.३.१५९.२२ vikraya


      विक्रान्त मार्कण्डेय २५(मदालसा द्वारा विक्रान्त पुत्र का पालन), ७६(विक्रान्त के पुत्र का मार्जारी द्वारा अपहरण), वायु ६९.१५(यज्ञों व गन्धर्व गणों का जनक), स्कन्द ५.२.६६.४, लक्ष्मीनारायण १.३९३(मदालसा द्वारा स्वपुत्र विक्रान्त को निवृत्ति मार्ग का उपदेश, विक्रान्त शब्द की निरुक्तियां ) vikraanta/ vikranta


      विक्रुष्ट नारद १.५०.४४, कथासरित् ८.५.५०(विक्रोशन : श्रुतशर्मा विद्याधर के ८ महारथियों में से एक, प्रभास से युद्ध )


      विखण्डल लक्ष्मीनारायण ३.२३४


      विगोष्ठिका लक्ष्मीनारायण २.२१५


      विघट गणेश २.१३.२३(महोत्कट गणेश द्वारा काशी में विघट राक्षस का वध),


      विघस वराह ९३(महिषासुर - मन्त्री विघस द्वारा वैष्णवी देवी के संदर्भ में सम्मति), लक्ष्मीनारायण २.१८०.६३


      विघात गणेश २.१०.१०(महोत्कट गणेश द्वारा अक्षतों में छिपे विघात आदि ५ राक्षसों का वध),


      विघ्न गणेश १.९२.२२(पर्वत, द्रुम आदि द्वारा विघ्ननाशन नाम से गणेश की पूजा), २.८५.२३(विघ्ननाशन गणेश से स्तनों की रक्षा की प्रार्थना), २.८५.२४(विघ्नहर गणेश से पृष्ठ की रक्षा की प्रार्थना), २.८५.२९(विघ्नहर्त्ता गणेश से प्रतीची दिशा में रक्षा की प्रार्थना), नारद १.६६.१२४(विघ्नेश की शक्ति ह्री का उल्लेख), १.६६.१२५(विघ्नहर्त्ता की शक्ति सरस्वती का उल्लेख), १.६६.१२५(विघ्नकृत् की शक्ति स्वस्ति का उल्लेख), १.६६.१२९(महानन्द की शक्ति विघ्नेशी का उल्लेख), ब्रह्म २.४४.१(अविघ्न तीर्थ : गणेश पूजा से देवों के सत्र की निर्विघ्न समाप्ति), ब्रह्माण्ड २.३.५९.१०(कलि - पुत्र, शिर हीन, अयोमुखी - पति), ३.४.२७.८२(विघ्ननायक), भविष्य १.५७.२०(विघ्नपति हेतु गुग्गुल बलि का उल्लेख), वराह ५९(अविघ्न व्रत ), वायु ८३.११ vighna


      विघ्नराज नारद १.६६.१२४(विघ्नराज की शक्ति श्री का उल्लेख), वराह १५४, वामन ७०, स्कन्द ४.२.५७.८५(विघ्नराज गणपति का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.३४१,


      विचक्र हरिवंश ३.१२१+ (हंस व डिम्भक - सेनानी, कृष्ण से युद्ध व मृत्यु), ३.१२३,


      विचार लिङ्ग १.३९.६८(विचार से वैराग्य, वैराग्य से दोष दर्शन, दोष दर्शन से ज्ञान की उत्पत्ति का कथन), योगवासिष्ठ २.१४(विचार प्रशंसा), ३.४१(विचार भ्रान्ति), ५.७३(आत्मविचार ), द्र. सुविचार vichaara/ vichara


      विचित्र स्कन्द ७.१.१४३(यम - लेखक विचित्र द्वारा स्थापित विचित्रेश्वर का माहात्म्य), ७.१.२४४(यम - लेखक विचित्र द्वारा स्थापित विचित्रेश्वर का माहात्म्य ), द्र. मन्वन्तर vichitra


      विचित्रकथ कथासरित् १२.२.२०(मृगाङ्कदत्त के १० सचिवों में से एक), १२.६.७(स्वामी के वियोग में विचित्रकथ का प्राण त्यागने को उद्धत होना, यक्ष द्वारा रक्षा )


      विचित्रवीर्य देवीभागवत १.२०?, ८.२०?, स्कन्द १.१.३३.९१(चित्राङ्गद - पुत्र, शिवभक्ति से वीरभद्र बनना),


      विजय गर्ग ३.१०(विजय ब्राह्मण द्वारा गोवर्धन शिला से राक्षस का ताडन करने पर राक्षस के उद्धार की कथा), ४.२०(हू हू गन्धर्व - पुत्र, कुबेर के वन में पुष्प तोडने से प्रलम्ब असुर बनना), नारद १.११९.२०(आश्विन् शुक्ल दशमी को विजय दशमी व्रत की विधि), पद्म ६.१६५, ७.९, भविष्य ४.४३(विजया सप्तमी व्रत), ४.७६(विजय श्रवण द्वादशी को वामन अवतार, बलि की पराजय, देवों की विजय), मत्स्य ४६.१७, ११४.४५(प्रविजय : प्राच्य जनपदों में से एक), वायु ४५.१२३(प्रविजय : प्राच्य जनपदों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१, स्कन्द १.२.६१(विजय ब्राह्मण द्वारा सुह्रदय राक्षस की सहायता से महाविद्या की साधना), २.४.२८, ४.२.६६.३०(विजय भैरवी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.३१.१०, ५.२.६६.४, महाभारत कर्ण ६४.४६, लक्ष्मीनारायण २.१४०.६२(विजय प्रासाद के लक्षण ), ३.१२.९२, ३.३३, कथासरित् १०.६.३२(विजय नामक शश द्वारा चन्द्रमा का दूत बनकर गज को स्वनिवास से दूर हटाने की कथा), १०.१०.५(कश्मीर में विजय नामक शाम्भव क्षेत्र के निवासी प्रव्राजक द्वारा धार्मिक को शिक्षा), द्र. जय vijaya


      विजयदत्त स्कन्द ३.१.८(गोविन्दस्वामी - पुत्र, सुदर्शन विद्याधर का रूप, कपालस्फोट वेतालत्व प्राप्ति), कथासरित् ५.२.७५(गोविन्दस्वामी के कनिष्ठ पुत्र विजयदत्त द्वारा वेतालत्व प्राप्ति का वृत्तान्त), ५.२.२५४(विजयदत्त के कपालस्फोट नाम का कारण, भ्राता अशोकदत्त से मिलन ) vijayadatta



      विजयदशमी नारद १.११९.२०(आश्विन् शुक्ल दशमी को राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न की पूजा विधि), स्कन्द ५.१.६३.५३ (आश्विन् शुक्ल दशमी में अष्टसिद्धिशमी देश में गणेश्वर पूजा का माहात्म्य), vijayadashamee/ vijayadashami

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      विजयमाली कथासरित् १२.५.२८४(विजयमाली वणिक् के पुत्र मलयमाली द्वारा ध्यानपारमिता से चित्रपट में प्रेमिका की अनुभूति करना, ज्ञान प्राप्ति से मुक्ति ) vijayamaalee/ vijayamali


      विजयवती कथासरित् १२.५.३४(गन्धमाली - कन्या विजयवती द्वारा पिता को दासत्व से मुक्त कराने का उद्योग )


      विजयवर्मा कथासरित् ९.२.३३९(रूपवती अनङ्गप्रभा द्वारा पहले जार को त्याग कर रूपवान् विजयवर्मा के साथ जाना, फिर विजयवर्मा को त्याग राजा के पास जाना, विजयवर्मा द्वारा युद्ध करते हुए प्राण त्यागना), १८.३.४(विजयवर्मा के लाट देश का राजा होने का उल्लेख )vijayavarmaa


      विजयवेग कथासरित् ५.२.२९२(गोविन्दस्वामी के २ पुत्रों में से एक विजयदत्त का श्मशान में वसा सेवन से निशाचर बनना, मुक्त होने पर विजयवेग विद्याधर बनना )


      विजयसेन कथासरित् १३.१.२५(विजयसेन की भगिनी मदिरावती द्वारा अपने प्रिय को प्राप्त करने का वृत्तान्त )


      विजया अग्नि १८४, गरुड १.१३२(वीर व रम्भा - पुत्र, बुध अष्टमी व्रत से यम पति की प्राप्ति), नारद १.६६.९२(शूली विष्णु की शक्ति विजया का उल्लेख), १.८८.१८४(राधा की १३वीं कला नित्या विजया का स्वरूप), १.१२१.१०७(विजया द्वादशी तिथि का अर्थ व महत्त्व), ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९८(ललिता - सहचरी विजया द्वारा जृम्भण का वध), भविष्य ३.४.१६, वामन ४, ६९, विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१(भुजाओं में विजया की स्थिति का उल्लेख), शिव २.२.२८(, २.३.२६, स्कन्द ४.१.२९.१२७(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.७२.५७(विजया देवी से अधरोष्ठ की रक्षा की प्रार्थना), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१३(अच्युत की शक्ति विजया का उल्लेख ), १.३८५.३८(विजया का कार्य), ३.३३.३७, vijayaa


      विजरा नारद १.६६.१०६(अनन्त की शक्ति विजरा का उल्लेख),


      विजिताश्व भागवत ४.१९.२२(पृथु व अर्चि - पुत्र, अश्वमेध के अश्व की प्राप्ति का उद्योग), ४.२२.१, ४.२४(अन्तर्धान उपनाम, शिखण्डिनी - पति, नभस्वती - पति, हविर्धान आदि पुत्र ) vijitaashva/ vijitashva


      विजितासु कथासरित् १२.२.१०१(मुनि विजिताश्व/विजितासु द्वारा दिव्य कन्या विनयवती का पालन करने तथा उसे पुष्कराक्ष को देने का वृत्तान्त )


      विजृम्भक अग्नि २१४.१३(विजृम्भका में देवदत्त वायु के हेतु होने का उल्लेख), २१४.१६(विजृम्भका के संवत्सर में अधिमास का रूप होने का उल्लेख ), स्कन्द ७.४.१७.२३ vijrimbhaka


      विज्ञप्ति वायु २१.५७, स्कन्द ३.१.९(विद्याधर - पति विज्ञप्तिकौतकु के दर्शन से अशोकदत्त की मुक्ति),


      विज्ञान गर्ग ९.१+ (गर्ग संहिता के विज्ञान खण्ड का आरम्भ), स्कन्द ४.२.५८.११२(विज्ञानकौमुदी नामक पुराङ्गना द्वारा बौद्ध धर्म के अनुकूल देह सौख्य का प्रतिपादन), योगवासिष्ठ ३.२२(विज्ञान का अभ्यास), ४.२१.६४(विज्ञानवाद नामक सर्ग में विमनन का निर्देश), ५.२९ (बलि को विज्ञान की प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण २.२५१.५६, ३.९१.११९(विज्ञान से विप्र बनने का उल्लेख ), चाणक्यनीति १२.१५(आचारे शुचिता गुणे रसिकता शास्त्रेषु विज्ञानता), vijnaana/ vigyan / vijnana


      विज्वल पद्म २.९३(कुञ्जल - पुत्र, आश्चर्य दर्शन के संदर्भ में सिद्ध द्वारा विज्वल को शव भक्षण के वृत्तान्त का कथन ), २.९७, लक्ष्मीनारायण ३.५१.३६ vijwala


      विज्ञविहङ्गम लक्ष्मीनारायण २.११०.६८


      विज्ञेय वायु ६८.३९/२.७.३९(प्रवाही से उत्पन्न १० देवगन्धर्वों के नाम ) vijneya


      विट् लक्ष्मीनारायण १.३७०.५१(नरक में विट् कुण्ड प्रापक कर्म का उल्लेख ) vit


      विटङ्क स्कन्द ४.२.६१.१९७(विटङ्क नृसिंह का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.४९१, कथासरित् ५.२.३५, १२.१५.१६ vitanka


      विडाल देवीभागवत ५.४


      वितथ अग्नि ९३.१२(वास्तुमण्डल में देवता), ब्रह्म १.११.६३, वायु ९९.१५८(भरत - पुत्र, भरद्वाज नाम, वंश वर्णन ), विष्णु ४.१९.१९, द्र. भरद्वाज, वास्तु (मण्डल ) vitatha


      वितल वामन ९०.३६(वितल में विष्णु का पङ्कजानन नाम),


      वितस्ता पद्म ३.२५.१(वितस्ता तीर्थ का माहात्म्य), वामन ५७.७७(वितस्ता द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), ८१.३०(वितस्ता का उद्भव), ९०.७(वितस्ता में विष्णु का कुमारिल नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर १.१६४.११, १.१६४.२४, १.२१५(वितस्ता के मत्स्य वाहन का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०६वितस्त्या, कथासरित् ६.१.१०(तक्षक्षिला पुरी के वणिक् वितस्तादत्त की श्रमण भक्ति की पुत्र द्वारा निन्दा, राजा द्वारा पुत्र को अनुशासित करना), ७.३.५४(निश्चयदत्त द्वारा ४ महाव्रतियों सहित वितस्ता पार करने का उल्लेख), ७.५.३७(गङ्गा रूपी वितस्ता के परित: पवित्र तीर्थों के नाम), १२.६.८३(वितस्ता के पार्श्व में भूनन्दन नृप द्वारा दिव्य दैत्य कन्या का दर्शन तथा उसकी प्राप्ति हेतु तप), १२.६.९७(विष्णुपद से विषुवती वितस्ता के प्राकट्य का उल्लेख ) vitastaa


      वितान भागवत ८.१३.३५(विताना : सत्रायण - पत्नी, बृहद्भानु अवतार की माता), विष्णुधर्मोत्तर २.९५.१(स्मार्त कर्म वैवाहिक अग्नि पर तथा पिता मरण आदि काल में श्रौत कर्म वैतानिक अग्नियों में करने का निर्देश )


      वितृष्णा मत्स्य १२२, द्र. भूगोल


      वित्त वराह ४८.२१(वित्त हेतु जमदग्नि - पुत्र परशुराम की आराधना का निर्देश), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.२( अन्तर्वेद्यां च यजनं बहुवित्तस्य कीर्तितम्।। स्वल्पवित्तस्य धर्मज्ञ बहिर्वेदि प्रकीर्तितम् ।। ), स्कन्द ६.३६.१४(वित्त प्राप्ति हेतु श्रीसूक्त जप का निर्देश ) vitta


      विदग्धचूडामणि कथासरित् १२.१०.६


      विदर्भ गरुड १.५५.१२(पूर्व दक्षिण में देश), गर्ग ७.१२.८(विदर्भ देश के भीष्मक राजा व कुण्डिन पुर राजधानी का उल्लेख), पद्म २.४८, ६.२४७, ब्रह्माण्ड २.३.३९.७(परशुराम द्वारा मुष्टि से विदर्भ का वध), भागवत ५.४(ऋषभ व जयन्ती - पुत्र), ९.२३(ज्यामघ - पुत्र, भोज्या - पति, वंश वर्णन ), मत्स्य ४४, स्कन्द ३.३.६, ३.३.९, हरिवंश १.३६.१९(ज्यामघ - पुत्र, उपदानवी - पति, क्रथ आदि पुत्र), वा.रामायण ७.७८, vidarbha


      विदल - उत्पल शिव २.५.५९(गौरी द्वारा विदल - उत्पल का वध), स्कन्द ४.२.६५.२९(विदलोत्पल संज्ञक राक्षसों का कन्दुक क्रीडा में रत पार्वती के पास आगमन, पार्वती द्वारा कन्दुक से विदलोत्पल का नाश ) vidala - utpala


      विदल्ल देवीभागवत ३.१५(ध्रुवसन्धि राजा का मन्त्री, राजा की मृत्यु के पश्चात् रानी मनोरमा व राजकुमार सुदर्शन की सहायता ) vidalla


      विदारी अग्नि ९३.२७(वास्तु मण्डल में देवता), १०५, नारद १.६६.११८ (श्वेतोरस्क की शक्ति विदारी का उल्लेख ), द्र. वास्तुमण्डल vidaaree/ vidari


      विदारुण पद्म ६.१३४(दुष्ट राजा विदारुण द्वारा वेत्रवती में स्नान से मुक्ति )


      विदिशा विष्णु २.४.१७, स्कन्द ६.१८.१२, वा.रामायण ७.१०८.१०(विदिशा पर शत्रुघाती का आधिपत्य ), कथासरित् ६.७.१०६, १२.४.७२ vidishaa


      विदुर अग्नि १६५, गर्ग ७.२०.३४(विदुर का प्रद्युम्न - सेनानी गद से युद्ध), १०.५०.३९(विदुर द्वारा कृष्ण की स्तुति), देवीभागवत २.७(देह त्याग पर विदुर के तेज का युधिष्ठिर में लीन होना), पद्म २.९१.१८( विदुर क्षत्रिय द्वारा ब्रह्महत्या की प्राप्ति, तीर्थों में स्नान से मुक्ति), भागवत १.१३(विदुर द्वारा मैत्रेय से आत्म ज्ञान की प्राप्ति, धृतराष्ट व गान्धारी को वैराग्य का उपदेश), ३.१(विदुर की उद्धव से भेंट), ३.५(विदुर का मैत्रेय से प्रलय व सृष्टि विषयक प्रश्न), स्कन्द ३.३.२२(जार कर्म में आसक्त व बिन्दुला - पति विदुर द्वारा पिशाच योनि की प्राप्ति, तुम्बुरु से शिव कथा श्रवण द्वारा मुक्ति), ६.५९(विदुरेश्वर का माहात्म्य, विदुर द्वारा पुत्र के अभाव में अश्वत्थ वृक्ष की पुत्र रूप में स्थापना, देव प्रासाद का निर्माण), ६.१३८(पाराशर - पुत्र, माण्डव्य के शाप से धर्मराज का अवतार), ७.१.२६९(विदुराश्रम का माहात्म्य, विदुर लिङ्ग की स्थापना ) vidura


      विदूरथ भागवत १०.७८(दन्तवक्त्र - भ्राता, कृष्ण द्वारा चक्र से वध), मत्स्य ५०, मार्कण्डेय ११०, ११६, स्कन्द ५.२.५३, ५.२.६३(कुजम्भ दैत्य द्वारा कन्या के हरण पर विदूरथ द्वारा धनु:सहस्र लिङ्ग की पूजा से धनुष प्राप्ति, दैत्य का वध), ६.१०७(विदूरथ का तीन प्रेतों से संवाद, श्राद्ध से प्रेतों की मुक्ति), ६.७८(रुद्रशीर्ष स्थान का भञ्जन करने के दोष से पत्नी द्वारा विदूरथ का वध), हरिवंश १.३८.१(भजमान - पुत्र), योगवासिष्ठ ३.४१.२२(नभोरथ व सुमिता - पुत्र राजा पद्म का दूसरा नाम, वर्णन), ३.४६, ३.४८(विदूरथ का सिन्धुराज से युद्ध), ३.५०.५०(सिन्धुराज से युद्ध में विदूरथ की मृत्यु ) vidooratha/ viduuratha/ viduratha


      विदेह कूर्म १.२२.५१(जयध्वज द्वारा हरि कृपा से विदेह दानव का वध), गरुड २.६.२८(विदेह नगर में धर्मवत्स ब्राह्मण का वृत्तान्त), देवीभागवत ६.१४.४३(निमि व वसिष्ठ द्वारा परस्पर शापदान की कथा), वामन ९०.३०(विदेह में विष्णु का कुशप्रिय नाम), स्कन्द १.१.२२.१०४(देह के अविद्या तथा विदेह के अविद्या से परे होने का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३१९ (विदेह जनक द्वारा पञ्चशिख से जरा-मृत्यु को लांघने के उपाय की पृच्छा), ३२६.१०(शुकदेव का विदेहराज जनक से प्रवृत्ति – निवृत्ति धर्म के विषय में प्रश्न), अनुशासन ४८.१०(वैदेहक सन्तान की परिभाषा ), लक्ष्मीनारायण २.४६.९७(विदेह के ६ लक्षण), २.८२ videha


      विदैवत पद्म ५.९८(धनशर्मा द्वारा विदैवत प्रेत का उद्धार), स्कन्द ६.१८(देव अर्चना बिना अन्न भक्षण के दोष से विदैवत प्रेत बनना),


      विद्धा लक्ष्मीनारायण १.२९२


      विद्या अग्नि १३३.२७(शब्द द्वारा शत्रु को दूर से भङ्ग करने की विद्या), १३४(त्रैलोक्य विजय विद्या), १३५(सङ्ग्राम विजय विद्या), ३१२(त्वरिता विद्या के अन्तर्गत मन्त्रों में प्रस्ताव के भेदन से सिद्धि का कथन), गणेश १.१.२९(विद्याधीश : राजा सोमकान्त के ५ मन्त्रियों में से एक), २.१.४९(नारद द्वारा नरान्तक व देवान्तक को पञ्चाक्षरी विद्या का उपदेश), गरुड १.२.५५(गारुडी विद्या का माहात्म्य), १.२१.६(तत्पुरुष शिव की निवृत्ति आदि ५ कलाओं में से एक), नारद १.५०.२२१(विद्या ग्रहण न करने वाले चंडादि ५ का उल्लेख, विद्या प्राप्ति विधि), १.६६.११०(महासेन की शक्ति विद्या का उल्लेख), १.९१.६८(तत्पुरुष विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् मन्त्र में शान्ति, विद्या आदि कलाओं का समावेश), पद्म २३४, ब्रह्म १.१२९.७(कर्म अथवा विद्या के मार्ग के अनुसरण का प्रश्न तथा उत्तर), ११३६, ब्रह्माण्ड २.३.३०.५३(मृत सञ्जीवनी विद्या द्वारा जमदग्नि का जीवित होना), ३.४.४१(श्रीविद्या), ३.४.४३.१५(देवी को सहस्राक्षर विद्या द्वारा पुष्पाञ्जलि देने का निर्देश), भविष्य ३.२.१७(आतिथ्य हेतु यक्षिणीकर्षिणी विद्या प्राप्ति में असफलता की कथा), ३.२.२१(विष्णुस्वामी द्विज के ४पुत्रों द्वारा सञ्जीवनी विद्या से व्याघ्र को जीवित करने की कथा), ३.३.२४.६३(आह्लाद द्वारा गोरख से एक वर्ष के लिए सञ्जीवनी विद्या प्राप्ति की कथा), ३.४.८.८८(अव्यक्त में बुद्धि के विद्या और व्यक्त में अविद्या होने का कथन), ४.१७४(विद्या दान विधि व माहात्म्य), भागवत ३.१२.४४(आन्वीक्षिकी आदि विद्याओं की ब्रह्मा के चार मुखों से सृष्टि), ६.४.४६(विद्या के भगवान् का तनु होने का उल्लेख), ११.११(मुक्तिदायक विद्या व बन्धनकारक अविद्या रूपी सुपर्णद्वय का वर्णन), ११.१७.१२(हृदय के प्राण से त्रयीविद्या के प्रादुर्भाव का उल्लेख), ११.१९.४०(विद्यात्मनि भिदाबाधो), मार्कण्डेय ६४(पद्मिनी विद्या), ६८(पद्मिनी विद्या के आश्रित निधियां), लिङ्ग १.८६.५१(परा व अपरा विद्या का निरूपण), विष्णु १.२२.७३(विद्या के असि तथा अविद्या के कोश होने का उल्लेख), ३.६, विष्णुधर्मोत्तर १.४१.२५(गान्धारी के विद्याओं में श्रेष्ठ होने का उल्लेख), २.४२(गोमती विद्या), २.१६५(अङ्ग विद्या), ३.११९.३(विद्यारम्भ में अश्वशिरा की पूजा), ३.२०७(विद्या प्राप्ति व्रत), ३.३०३(विद्या दान का महत्त्व), ३.३४६(भूविवर में स्थित उपरिचर वसु राजा द्वारा वैष्णवी विद्या द्वारा असुरों से स्वयं की रक्षा, विद्या का वर्णन), शिव ५.५०(दश महाविद्याएं), ७.१.१.२५(१८ विद्याओं का कथन), स्कन्द १.२.४.७८(उत्तम प्रकार के दानों में से एक), १.२.४२.१५३(अविद्यादुर्ग व विद्या वन का वर्णन), १.२.६२.४०(वट यक्षिणी विद्या, अपराजिता विद्या), १.२.६३, ४.२.५३.४३(महामोहन विद्या का दिवोदास - पालित काशी में विघ्न हेतु गमन), ५.२.२५.४०(विद्या की मानापमान से रक्षा का निर्देश), ५.३.१८२.२४(देवी के शाप से विद्या के त्रिपौरुषा हो जाने का उल्लेख), ६.३५(विशोषणी विद्या, अगस्त्य द्वारा विशोषणी विद्या से समुद्र का शोषण), हरिवंश २.९४.३६(प्रभावती द्वारा दुर्वासा से मनोवाञ्छित पति को प्राप्त करने वाली विद्या प्राप्त करने का कथन), २.११९.१९(चित्रलेखा को नारद से प्राप्त तामसी विद्या), योगवासिष्ठ ३.७८.४१+ (राजविद्या के सम्बन्ध में कर्कटी द्वारा राजा विक्रम व मन्त्री से ७२ प्रश्न), ५.३४.८३(विभिन्न विद्याओं /शक्तियों के नाम), ६.१.९(विद्या का निराकरण), ६.१.६५, महाभारत शान्ति ३०७(विद्या-अविद्या प्रतिपादक संवाद में पंचविंशक विद्या-अविद्या के आपेक्षिक भाव का कथन), लक्ष्मीनारायण १.२२(पराविद्याओं की कुमारी रूप में हरि से उत्पत्ति), १.५४३.७४(, २.३६.७(कृष्ण द्वारा गुरु से प्राप्त विद्याओं के नाम), २.१५४.१३पराविद्या, २.१७५.६४(विद्याभ्यास में बुध के बलशाली होने का उल्लेख), ३.३५.५१(सुविद्या), ३.१७३ सद्विद्यायन , कथासरित् ८.३.११८(याज्ञवल्क्य द्वारा मोहिनी व परिवर्तिनी विद्याद्वय देने का कथन), ९.१.४५(प्रज्ञप्ति विद्या द्वारा अलंकारवती को पति प्राप्ति हेतु आवश्यक निर्देश), १२.१.६५(कालसंकर्षिणी विद्या से खड्ग प्राप्त होने का उल्लेख), १२.७.१३३(गङ्गा द्वारा भीमभट को प्रदत्त प्रतिलोम - अनुलोम विद्या की प्रकृति का कथन), १४.३.१३२(नरवाहनदत्त द्वारा गौरीविद्या आदि पर प्रभुत्व प्राप्त करने का कथन), १५.१.२२(नरवाहनदत्त द्वारा विध्वंसिनी संज्ञक विद्यारत्न सिद्ध करने का उल्लेख), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद २.२.१७(आद्या विद्या गदा होने का उल्लेख ), द्र. श्रीविद्या vidyaa


      विद्याधर अग्नि ४४.४८(प्रतिमा की प्रभा में विद्याधर की स्थिति), ५१.१७(विद्याधर की मूर्ति का रूप), गर्ग १०.७.२८, देवीभागवत ६.२०, नारद २.२०, पद्म १.१२२(विद्याधर ब्राह्मण के वसुशर्मा, नामशर्मा व धर्मशर्मा नामक तीन पुत्र), २.४६.१६, २.१२२, ६.१२५(विद्याधर का भृगु से संवाद, माघ स्नान से व्याघ्रमुखत्व से मुक्ति), ७.६.१२८(त्रिविक्रमदेव - पुत्र, सुलोचना का भावी पति), भागवत ४.७.४४, ६.१७, ७.८, ११.१६.२९, मार्कण्डेय ६१, वराह ७७, ८१, १४५, वामन ११, २२, वायु ३८, विष्णुधर्मोत्तर १.५६.२३(विद्याधरों में चित्राङ्गद की श्रेष्ठता का उल्लेख), ३.४२.९(विद्याधरों के रूप का कथन : रुद्रप्रमाण आदि), स्कन्द १.३.२.२२(विद्याधर का दुर्वासा के शाप से अश्व व हस्ती बनना, शाप से मुक्ति), ३.१.८, ३.१.९विज्ञप्तिकौतुक, ३.१.४९.८०(विद्याधरों द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ४.१.८.३२(विद्याधर लोक की प्राप्ति के लिए अपेक्षित पुण्य कर्म, विद्याधरों द्वारा विद्यार्थियों को सौख्य प्रदान का कथन), ४.१.३३(विद्याधर द्वारा सुशीला कन्या का अपहरण, विद्युन्माली से युद्ध में मरण, जन्मान्तर में माल्यकेतु रूप में जन्म), ४.२.८२, ५.१.११(विद्याधर द्वारा मेनका के नृत्य में विघ्न से शक्र द्वारा विद्याधर को शाप), योगवासिष्ठ ६.२.५, ६.२.६४+, लक्ष्मीनारायण १.४३५.१६(गालव मुनि के शाप से सुदर्शन विद्याधर के वेताल बनने तथा मुक्ति होने का वृत्तान्त), १.४७२.६१(पारावत का मृत्यु - पश्चात् परिमलालय विद्याधर बनने व पूर्व जन्म का वृत्तान्त), २.१५७.२३(देवायतन मूर्ति के न्यास के संदर्भ में विद्याधरों का पादों में तथा ग्रहों का पादतलों में न्यास ), ४.७६, कथासरित् २.१.६९, २.५.३५, ३.४.२१५, ४.२.१४, ५.१.११, ५.२.२५९, ५.३.१६९, ६.१.६२, ६.७.१६७, ७.८.२०१, ८.१.६, ८.२.८, ८.५.६३, ९.१.१५, ९.२.१७०, ९.६.८०, १०.३.१०, १०.५.३१९, १०.९.२२१, द्र. मन्दारविद्याधर, रङ्गविद्याधर vidyaadhara/ vidyadhara


      विद्यानन्द स्कन्द ५३.२२५.२


      विद्यापति स्कन्द २.२.७(विद्यापति द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र का अन्वेषण, शबर से वार्तालाप, नीलमाधव के दर्शन), २.२.९(विद्यापति द्वारा इन्द्रद्युम्न नृप से नीलमाधनव यात्रा के वृत्तान्त का वर्णन ) vidyaapati/ vidyapati


      विद्याराज वामन ७०


      विद्युज्जिह्व वामन ८७.८५(कुटिला द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण का नाम), वायु ६९.१५९(७०.५०(वाका - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर १.२२३(शूर्पणखा - पति, रावण द्वारा वध), स्कन्द ४.२.७२.९७(काशी में ६४ वेतालों में से एक), वा.रामायण ६.३१.३९(रावण - सहायक, सीता के समक्ष राम का माया जनित काट सिर प्रस्तुत करना), ७.१२.२(कालका - पुत्र, शूर्पणखा - पति), ७.२३(शूर्पणखा - पति, रावण द्वारा वध), लक्ष्मीनारायण १.४४०.७६(विद्युज्जिह्व द्वारा धर्मारण्य में उपद्रव, देवियों द्वारा प्रतिरोध, विष्णु द्वारा चक्र से वध), २.८६.४२(विश्रवा व वाक के पुत्रों में से एक ), कथासरित् १२.५.४१ vidyujjihva


      विद्युत कूर्म १.१३.१५(पावक अग्नि का रूप), नारद १.६६.९८(नृसिंह की शक्ति विद्युता का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१९.४५(कङ्क पर्वत के वैद्युत वर्ष का उल्लेख), २.३.७.२४(विद्युत से रुचि नामक अप्सरा गण की उत्पत्ति), मार्कण्डेय २.४(कैलास पर विद्युतरूप राक्षस द्वारा कङ्क का वध, कङ्क - अनुज कन्धर द्वारा विद्युतरूप का वध), वराह १०(दुर्जय द्वारा विद्युत - सुविद्युत असुरों को लोकपाल पद पर नियुक्त करना), १६, वायु ६९.१२९( यातुधान, सूर्य अनुचर, रुमन - पिता), विष्णु १.१५.१३५, शिव ३.५, ७.१.१७.३८, स्कन्द ६.२५२.३३(चातुर्मास में विद्युत की अशोक में स्थिति का उल्लेख), हरिवंश १.३.६४, योगवासिष्ठ १.३१.३(तडित : दुष्ट आशा का रूप), ६.१.१२८.८(त्वचा के विद्युत में न्यास का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८७(श्रीहरि के दर्शन हेतु विद्युत का अशोक वृक्ष बनना), १.५३२.१०, १.५३२.९८, ३.३६.२६(विद्युत्स्राव राक्षस के वध हेतु श्रीहरि का विद्युन्नारायण रूप में अवतार), ४.८३.५४(ताम्रास्त्र से विद्युदस्त्र के शमन का उल्लेख), ४.१०१.१२०(कृष्ण - पत्नी नलिनी के पुत्र षडङ्ग वैद्युत का उल्लेख ), द्र. भूगोल, रथ सूर्य, सुविद्युत vidyuta


      विद्युत्केश वामन ११, १५, स्कन्द ३.१.९(विद्युत्केशा राक्षसी द्वारा अशोकदत्त को नूपुर, स्वपुत्री व सुवर्णकमल प्रदान करना), वा.रामायण ७.४(हेति व भया - पुत्र, सालकटङ्कटा - पति, सुकेश - पिता ) vidyutkesha


      विद्युत्पताक मत्स्य २(प्रलयकारक मेघ )


      विद्युत्पुञ्जा कथासरित् १४.४.१७८


      विद्युत्प्रभा वराह १०(सुप्रतीक - पत्नी, दुर्जय - माता), ९२.१७, ९५(विद्युत्प्रभ : वैष्णवी देवी से महिष के जन्म की कथा में महिषासुर - सेनानी ), शिव ५.२.१०विद्युत्प्रभ, स्कन्द ३.१.९, ४.१.४५.४१(६४ योगिनियों में से एक), कथासरित् २.२.३९(बलि – पौत्री विद्युत्प्रभा दवारा श्रीदत्त को सिंह को पराजित करने के लिए प्रेरित करना), ५.२.१९५, ५.२.२०८(विद्युत्शिखा व त्रिघण्ट-पुत्री, अशोकदत्त की भार्या बनने की कथा), ५.३.२०७( तरुमूल में विद्युत्प्रभा की अर्चना का निर्देश), ५.३.२१५(विद्युत्प्रभा द्वारा देवदत्त से गर्भ धारण करने और अन्त में गर्भ के उत्पाटन पर विद्याधरी बनने की कथा), ८.५.४२(कालञ्जर गिरि के स्वामी विद्युत्प्रभ की प्रभास से युद्ध में मृत्यु), १७.२.३(विद्युत्प्रभ के पुत्र विद्युद्ध्वज द्वारा ब्रह्मा से अस्त्र प्राप्ति, इन्द्र द्वारा युद्ध में विद्युत्प्रभ का वध), vidyutprabhaa



      विद्युत्शिखा कथासरित् ५.२.१९६(लम्बजिह्व राक्षस की पत्नी, पुत्री विद्युत्प्रभा को अशोकदत्त को प्रदान करने की कथा),


      विद्युत्स्राव लक्ष्मीनारायण ३.३६.२(रुद्र कुक्षि से उत्पन्न विद्युत्स्राव राक्षस का श्रीहरि द्वारा विद्युन्नारायण रूप में अवतार लेकर वध )


      विद्युत्स्फूर्ज ब्रह्माण्ड १.२.२३.१९(विद्युत्स्फूर्ज यातुधान की सूर्य रथ में स्थिति), २.३.७.८९(यातुधान, जन्तुधना व राक्षस - पुत्र )


      विद्युद्द्योता कथासरित् ६.७.५५


      विद्युद्ध्वज कथासरित् १७.२.१


      विद्युन्नारायण लक्ष्मीनारायण ३.३६.२६(अर्चिमार्ग नामक वत्सर में विद्युत्स्राव राक्षस का सुदर्शन चक्र से वध करने के पश्चात् विष्णु का भूलोक में विद्युन्नारायण नाम से अवतीर्ण होना )


      विद्युन्मार्ग लक्ष्मीनारायण २.२३२


      विद्युन्माला भविष्य ३.३.३१.१३७(राजा पूर्णामल - कन्या, भीम - पत्नी, म्लेच्छपति सहोद की आसक्ति की कथा), ३.३.३२.२३९(पृथ्वीराज - कन्या, बलि के सेनानियों द्वारा हरण ), कथासरित् ८.१.४६, ८.६.१६५, ८.६.१७०, vidyunmaalaa/ vidyunmala


      विद्युन्माली पद्म ५.३३(विद्युन्माली द्वारा राम के अश्व का हरण, शत्रुघ्न द्वारा विद्युन्माली का वध), ब्रह्माण्ड ३.४.१२.१२, मत्स्य १२९.३६(त्रिपुर के रजतमय भाग का रक्षण), १३५, १३८, १४०(त्रिपुर ध्वंस प्रकरण में नन्दी द्वारा विद्युन्माली का वध), लिङ्ग १.७१, वामन ६८.५८(विद्युन्माली का एकादश रुद्रों से युद्ध), शिव २.५.१, स्कन्द ४.१.३३.७८(विद्युन्माली का विद्याधर से युद्ध व मृत्यु), वा. रामायण ६.४३.१४(रावण - सेनानी, सुषेण से युद्ध ), लक्ष्मीनारायण २.२३२.१९, vidyunmaalee/ vidyunmali


      विद्युल्लेखा लक्ष्मीनारायण १.३११.४६


      विद्योत भविष्य ३.३.५.१३(राजा अनङ्गपाल - पुत्र, जयचन्द्र - सेनानी, पृथ्वीराज - पुत्र?, प्रद्योत - अनुज, भीष्मसिंह - पिता), ३.३.६.५०(पृथ्वीराज - सेनानी, कृष्ण कुमार/उदयसिंह द्वारा विद्योत का वध), भागवत ६.६, लक्ष्मीनारायण ४.४६.१२(द्योतिका नामक पात्र मज्जनकारिणी द्वारा स्वकर्तव्य पालन से विष्णुलोक की प्राप्ति), ४.१०१.११४(विद्योतिनी : कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, स्वर्गपतङ्ग व कृतिनी - माता ) vidyota


      विद्रुम गणेश २.२२.३५(विद्रुमा : शुक्ल द्विज की पत्नी), गरुड १.८०(विद्रुम रत्न की बल असुर की आन्त्र से उत्पत्ति, रत्न परीक्षा), ब्रह्माण्ड १.२.१९.५४(विद्रुम पर्वत के उद्भिद वर्ष का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.८(अधरों की विद्रुम से उपमा), शिव ७.२.२९.२५(शिव के उत्तर मुख के विद्रुम सदृश होने का उल्लेख), हरिवंश २.८०.२२, लक्ष्मीनारायण ३.१९५.३(अनपत्या विद्रुमवल्ली द्वारा सपत्ना के पुत्र का नाश, भगवान् द्वारा विद्रुमवल्ली के पाप का नाश), ४.३४.७५(दिति कुल की नारी विद्रुमिणी की कृष्ण भक्ति का वृत्तान्त ), द्र. भूगोल vidruma


      विद्वर पद्म २.१०९.२३(विद्वर किन्नर का स्वरूप, अशोकसुन्दरी को नहुष के जीवित होने का आश्वासन )


      विधम ब्रह्माण्ड २.३.५९.१०(कलि - पुत्र, एकपाद, रेवती - पति, नैर्ऋत राक्षस - पिता),


      विधवा पद्म १.५२, स्कन्द २.४.२.५५टीका, ३.२.७.५०(विधवा के नियम व धर्म, विधवा दर्शन के दोष आदि), ३.२.७.६७(विधवा के नियम व धर्म), ४.१.४.७३(विधवा के कर्तव्य), हरिवंश २.८१.८(उमा - अरुन्धती संवाद में विधवा स्त्री द्वारा करणीय कृत्य), लक्ष्मीनारायण १.१४८.५८(अवैधव्य व्रत की विधि, रेवती पूजा ) vidhavaa


      विधाता गणेश २.९६.३६(ब्रह्मा द्वारा प्रयुक्त गणेश का नाम ), स्कन्द ५.३.३९.२८ vidhaataa/ vidhata


      विधि ब्रह्माण्ड १.२.३३.५२(विधि की परिभाषा ), स्कन्द ४.१.१३.१९(विधि के दक्षिणाङ्ग होने का उल्लेख), ५.१.२३.२६ vidhi


      विधुल गणेश २.१३.२९(महोत्कट गणेश द्वारा काशी में विधुल दैत्य का वध),


      विधुर पद्म ५.९४(मुनिशर्मा द्वारा विधुर वैश्य का उद्धार )


      विधूतरजस ब्रह्माण्ड २.३.३.११७


      विधूम स्कन्द ३.१.५(अलम्बुषा पर आसक्ति के कारण ब्रह्मा द्वारा विधूम वसु को शाप, मनुष्य लोक में सहस्रानीक रूप में जन्म की कथा), ५.१.६९, लक्ष्मीनारायण १.४३४(विधूम वसु की अलम्बुषा अप्सरा पर आसक्ति के कारण पृथिवी पर सहस्रानीक व मृगावती रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त ), कथासरित् २.१.२३(विधूम वसु का शापवश भूतल पर राजा सहस्रानीक के रूप में जन्म), vidhooma/vidhuuma/ vidhuma


      विधृत पद्म ५.१११(अग्निमुख गण द्वारा दुष्ट राजा विधृत की यमदूतों से रक्षा), भागवत ८.१.२९(विधृति की निरुक्ति), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(शेष की सहना शक्ति धृति, व्यापिनी शक्ति विधृति। सौख्यम इति)


      विनत वा.रामायण ४.४०(विनत वानर द्वारा सुग्रीव की आज्ञा से पूर्व दिशा में सीता का अन्वेषण), ६.२६.४२(सारण द्वारा रावण को विनत वानर का परिचय ) vinata


      विनता गणेश २.९७.३९(स्वपुत्रों सम्पाति व जटायु का सर्पों द्वारा बन्धन होने पर विनता द्वारा सर्पनाशक पुत्र मयूर को जनने की कथा), देवीभागवत २.११, १२.६.१४१(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.९३(मुकुन्द नामक विष्णु की शक्ति विनता का उल्लेख), पद्म १.४७, ब्रह्म २.८९, ब्रह्माण्ड २.३.७.४६८(विनता की वाहशीला प्रकृति का उल्लेख), भविष्य १.५७.१६(विनता हेतु आमिष बलि का उल्लेख), ४.३६, मत्स्य ६.३३(विनता के वंश का वर्णन), वायु ६९.९३(विनता की वैहायस गतिप्रिया प्रकृति का उल्लेख - विनता तु पुनर्द्देवी वैहायसगतिप्रिया ॥ ), स्कन्द ३.१.३८, ४.१.५०(कद्रू के दासीत्व से मुक्ति के पश्चात् विनता द्वारा काशी में खखोल्कादित्य की स्थापना), ५.३.७२, ५.३.१३१, वा.रामायण ३.१४.२०, ५.२४.२०(विनता राक्षसी द्वारा सीता को रावण का वरण करने का परामर्श), लक्ष्मीनारायण १.४६३.१२(विनता द्वारा अपक्व अण्ड का प्रस्फोटन करने से पुत्र अनूरु से शाप प्राप्ति), १.४६४(गरुड द्वारा स्वर्ग से अमृत लाकर विनता को दासीत्व से मुक्त कराने का वृत्तान्त), २.३२.१८(विनता के कृत्तिकाओं के मध्य स्थित होने के कारण कृत्तिकाओं के सप्तशीर्षा बनने का कथन), २.३२.३०(विनता के शकुनि ग्रह नाम से प्रथित होने का उल्लेख - विनता तु महारौद्रा कथ्यते शकुनिग्रहः । ), कथासरित् २.४.१३८(विनता-पुत्र गरुड द्वारा गज-कच्छप के भक्षण की कथा), ४.२.१८१(कद्रू द्वारा विनका को दासी बनाने तथा गरुड द्वारा मुक्त कराने की कथा), १२.२३.९७(कद्रू द्वारा विनता को दासी बनाए जाने के कारण तार्क्ष्य द्वारा नागों के भक्षण का कथन), vinataa


      विनताश्व वायु ८४.१९


      विनय पद्म ५.९९.१८(विनय की रत्न मुकुट से उपमा), मार्कण्डेय ५०.२७(लज्जा - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१(विनया का विष्णु की भुजाओं में वास), vinaya


      विनयकीर्ति स्कन्द ४.२.५८.८१(काशी से दिवोदास का उच्चाटन करने के लिए गरुड का पुण्यकीर्ति नामक बौद्ध वेशधारी विष्णु का शिष्य विनयकीर्ति बनना ) vinayakeerti/ vinayakirti


      विनयज्योति कथासरित् १२.५.३०१(राजकुमारी के चित्र में भावासक्त वणिक् - पुत्र पर कृपा हेतु मुनि विनयज्योति द्वारा मायामय सर्प का निर्माण ) vinayajyoti


      विनयवती कथासरित् १२.२.१०४(विद्याधर युगल रङ्कुमाली व तारावली से विनयवती के जन्म, मुनि द्वारा पालन तथा विनयवती से बलात्कार करने वाले विद्याधर को करभ योनि प्राप्ति का वृत्तान्त), १२.२.१६८(विनयवती के राजा पुष्कराक्ष की भार्या बनने तथा दोनों के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त ) vinayavatee/ vinayavati


      विनयस्वामिनी कथासरित् ५.१.१५५(धूर्त शिव द्वारा तापस वेश धारण कर पुरोहित - कन्या विनयस्वामिनी को भार्या रूप में प्राप्त करने और पुरोहित के धन का हरण करने का वृत्तान्त )


      विनायक अग्नि ५०.२३(विनायक की प्रतिमा का लक्षण), २६६, गणेश १.९२.२७(सचेतन द्वारा विनायक नाम से गणेश की पूजा), २.१.१८(कृतयुग में गणेश का नाम, सिंह वाहन), २.५.३२(विनायक द्वारा तपोरत अदिति को वर, अदिति - पुत्र रूप में उत्पन्न होना), २.१६.३८(भ्रूशुण्डि मुनि द्वारा विनायक नामक गणेश के निमन्त्रण को अस्वीकार करना), २.७२.४०(अदिति व कश्यप द्वारा पुत्र गणेश के अदृश्य होने पर विनायक नाम से गणेश मूर्ति की पूजा), २.७८.४१(कृतयुग में दशभुज सिंहारूढ गणेश का नाम), २.८५.१९(विनायक गणेश से शिखा की रक्षा की प्रार्थना), २.८५.२१(विनायक गणेश से वाक् की रक्षा की प्रार्थना), २.१५४(विश्वेश परिवार के विभिन्न आवरणों के विनायकों के नाम), देवीभागवत ७.३०(विनायक क्षेत्र में उमा देवी का वास), नारद १.६६.१२५ (विनायक की शक्ति पुष्टि का उल्लेख), पद्म १.२०(विनायक व्रत का माहात्म्य), भविष्य १.२२, १.२३, १.३०, १.१२४.२९, ४.३२(विनायक स्नपन व्रत), ४.१४४(कर्मों की अविघ्न सिद्धि हेतु विनायक शान्ति), मत्स्य १३, १०१.६१(विनायक व्रत), २६०.५२(विनायक की प्रतिमा का रूप), वराह २३, विष्णुधर्मोत्तर २.१०५(विनायक स्नान), स्कन्द १.२.१३.१६५(शतरुद्रिय प्रसंग में विनायक द्वारा पिष्ट लिङ्ग की कपर्दी नाम से पूजा का उल्लेख), १.२.३६.३१सिद्धि विनायक, ४.२.५७(काशी में विनायक के विभिन्न नाम), ४.२.५७.५९(काशी में आवरणों में स्थित विनायकों का वर्णन), ५.१.२८(विनायक की लड्डू प्रियता, माहात्म्य), ५.१.७०.३९(विनायक के छह नाम), ५.३.१९८.७८, ७.१.३०९(चतुर्मुख विनायक का माहात्म्य), ७.३.३२(महाविनायक का पार्वती के उद्वर्तन/उबटन से जन्म, गज शिर की प्राप्ति, विनायक शान्ति कर्म), कथासरित् १२.६.३२५(श्रीदर्शन युवराज की भक्ति से प्रसन्न होकर रत्नविनायक द्वारा श्रीदर्शन को अनङ्गमञ्जरी भार्या प्रदान करने का वृत्तान्त ) vinaayaka/ vinayaka


      विनिपार लक्ष्मीनारायण २.२००


      विनीतमति कथासरित् १२.५.२४(राजपुत्र विनीतमति द्वारा अश्व व खङ्ग की सहायता से कालजिह्व यक्ष को पराजित करना तथा उससे दिव्य अङ्गुलीयक प्राप्त करना), १२.५.६६(विनीतमति द्वारा वाद में पराजित करके राजकुमारी उदयवती को प्राप्त करना), १२.५.९४(भिक्षु द्वारा शास्त्रार्थ में विनीतमति को पराजित करना, विनीतमति द्वारा स्वप्न दर्शन का वृत्तान्त), १२.५.१५९(विनीतमति द्वारा याचकों को दिव्य अङ्गुलीयक, अश्व, खङ्ग, राज्य आदि देना, वन गमन), १२.५.१९१(विनीतमति द्वारा चोर सोमशूर को दान पारमिता, शीलपारमिता, धैर्यपारमिता आदि के दृष्टान्त सुनाना), १२.५.३७३(विनीतमति द्वारा मृग रूप धारण करके स्वमांस को कनककलश नृप हेतु प्रस्तुत करना ), १२.२६.११७, द्र. दुर्विनीत vineetamati/ vinitamati


      विनीताश्व वराह ९९.८०(विनीताश्व द्वारा अन्नदान के अभाव में मृत्यु के पश्चात् स्व - शव का भक्षण करना, तिल दान से मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.५६३ vinitashva


      विनोदिनी लक्ष्मीनारायण ३.८१.७७(शतानन्द - पत्नी विनोदिनी द्वारा वैराग्यवान् पुत्रों को जन्म देने का वृत्तान्त ; तुलनीय : मदालसा), ४.१६.१०, ४.४६.६४(स्वर्णकार स्त्री विनोदिनी द्वारा एकादशी जागरण व कीर्तन से मोक्ष प्राप्ति ) vinodinee/ vinodini


      विन्द गर्ग १०.२२(विन्द - अनुविन्द : अवन्ती - अधिपति, उग्रसेन के अश्वमेधीय हय के बन्धन व मोचन की कथा), १०.२२.४(विन्द का बिन्दु से साम्य), वा.रामायण ३.६८.१२(रावण द्वारा विन्द मुहूर्त में सीता के अपहरण का कथन ), द्र. मित्रविन्दा vinda

      विन्ध्य गर्ग ४.१०, ७.१८.१६(विन्ध्य देश के अधिपति दीर्घबाहु द्वारा प्रद्युम्न से संधि), ८.३, देवीभागवत ०.२, ७.३०(विन्ध्य पर्वत पर नितम्बा देवी के वास का उल्लेख), १०.२(सुमेरु की महिमा सुनकर विन्ध्य द्वारा सूर्य के मार्ग का अवरोधन, अगस्त्य कृपा से अवरोध के दूर होने का वृत्तान्त), पद्म १.१९, १.४४, ब्रह्म २.४८, ब्रह्माण्ड १.२.३३.३९(सामवेद के सप्तविन्ध्य व पञ्चविन्ध्य सामों की भक्तियों के नाम), भविष्य १.७९.७५, २.१.१७.१४(सूर्य अग्नि के विन्ध्य नाम का उल्लेख), मत्स्य १३, ११४.२८(विन्ध्य पर्वत से उद्भूत नदियां), १५७, मार्कण्डेय ३, वराह ८५, वामन १८(विन्ध्य की सूर्य से स्पर्द्धा, अगस्त्य द्वारा नीचा करना), ५७.६७(विन्ध्य द्वारा स्कन्द को अतिशृङ्ग पार्षद प्रदान करना), ९०.१२(विन्ध्य पाद में विष्णु का सदाशिव नाम से वास), ९०.२८(विन्ध्य शृङ्ग में विष्णु का महागौर नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.२१३, शिव ४.१८(मेरु से स्पर्द्धा करके विन्ध्य द्वारा तप, ओङ्कार लिङ्ग की प्राप्ति),स्कन्द १.१.७.३३(विन्ध्य में सर्वेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), ५.३.२, ५.३.५६.४,५.३.९९.८, ५.३.१९८.७७, ५.३.१९८.७९, ६.३३, ६.१०९(विन्ध्य तीर्थ में वाराह लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), ६.१२१, हरिवंश ३.३५.२५, वा.रामायण ७.७९, ७.१०८, लक्ष्मीनारायण १.४५५, कथासरित् १.१.५९(विन्ध्य अटवी में कुबेर से शापित सुप्रतीक यक्ष के काणभूति नाम से निवास का कथन), १.३.३८, १.७.२५(विन्ध्यवासिनी देवी द्वारा गुणाढ्य को विन्ध्याटवी में जाकर काणभूति से मिलने का निर्देश), ५.२.६(शक्तिदेव द्वारा विन्ध्य अटवी में सूर्यतपा मुनि से कनकपुरी के विषय में पृच्छा), ७.३.२२(विन्ध्यपर विद्याधर की कन्या अनुरागपरा का वृत्तान्त), ९.१.१६१, ९.५.२०२, १२.३.५८(विन्ध्य अटवी में शिंशपा तरु के नीचे पारावत नाग का वृत्तान्त), १२.५.१२१(विन्ध्य पर्वत की गुफा में वराह द्वारा क्षुधाविष्ट सिंह अतिथि की सेवा का वृत्तान्त), १२.५.२३७(विन्ध्य पर्वत पर शुकों के राजा हेमप्रभ द्वारा स्व प्रतिहार चारुमति को शीलपारमिता की शिक्षा देना), १८.३.४(विन्ध्यबल : राजा विक्रमादित्य को प्रणाम करने वाले भिल्ल ), द्र. भूगोल vindhya


      विन्ध्यकेतु कथासरित् १२.२४.२८४(पुलिन्दराज विन्ध्यकेतु द्वारा राजकुमार सुन्दरसेन का बलि पशु हेतु बन्धन, संज्ञान होने पर मोचन का वृत्तान्त )


      विन्ध्यवासिनी मत्स्य १५७(रात्रिदेवी/एकानंशा का रूप, पार्वती के शरीर से उत्पत्ति), वामन ५४,स्कन्द ४.२.७१.६१(विन्ध्यवासिनी देवी द्वारा दुर्ग असुर के वध का वर्णन), ५.१.५५(रेवा जल से भूमि के उद्धार के लिए अगस्त्य द्वारा विन्ध्यवासिनी देवी की स्तुति, विन्ध्यवासिनी के नाम), हरिवंश २.२२.४८(नारद द्वारा कंस को विन्ध्यवासिनी देवी की महिमा का वर्णन), कथासरित् १.३.३८(पुरुषों द्वारा विन्ध्यवासिनी देवी के समक्ष राजा पुत्रक के वध का प्रयास), ४.३.३८(विन्ध्यवासिनी की कृपा से सिंहपराक्रम भृत्य द्वारा स्वपत्नी के कलह का कारण जानना), ७.८.१०३(परित्यागसेन के पुत्र - द्वय द्वारा विपदा में विन्ध्यवासिनी देवी को प्रसन्न करना, देवी द्वारा दिव्य खङ्ग प्रदान करना), ९.५.२१३(राजा कनकवर्ष द्वारा भार्या की पुन: प्राप्ति हेतु विन्ध्यवासिनी के दर्शन हेतु जाना, मार्ग में शबरों द्वारा राजा का बन्धन व मोचन आदि ) vindhyavaasini/ vindhyavasini


      विन्ध्याचल स्कन्द ४.१.१, ५.१.५४,


      विन्ध्यावली भागवत ८.२२.१९(बलि - पत्नी), मत्स्य १८७, वामन ८८.३१(बलि - पत्नी), स्कन्द १.१.१९, ३.१.५०,


      विन्ध्याश्व मत्स्य ५०.७(इन्द्रसेन - पुत्र, मेनका से दिवोदास व अहल्या की उत्पत्ति),


      विपण भागवत ४.२५.४९


      विपर्यय ब्रह्माण्ड १.१.५.६१(स्थावरों में ब्रह्मा के विपर्यय द्वारा स्थित होने का उल्लेख ), वायु ६५.९३/२.४.९३(रौद्र व वैष्णव चरु विपर्यय तथा वैष्णव अग्नि के जमन से ऋचीक व सत्यवती - पुत्र जमदग्नि के जन्म का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.३२ (चरु विपर्यास से जमदग्नि की उत्पत्ति का प्रसंग), १.३३(चरु विपर्यास से पुत्रों के गुणों में विपर्यय का आख्यान), स्कन्द १.२.१८(सूर्य द्वारा शम्बर अस्त्र का प्रयोग करके देव - दानव रूपों का विपर्यय करना), कथासरित् ३.६.७९(अग्नि द्वारा शुक और गज की जिह्वाओं का विपर्यास करने की कथा), viparyaya


      विपश्चित् गरुड १.८७.८(स्वारोचिष मन्वन्तर में इन्द्र), २.६.५०(विपश्चित् द्वारा राजा के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन), २.६.११९(विपश्चित् द्वारा राजा वीरसेन के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.४९(विपश्चितों द्वारा वर की अपेक्षा दास्य की कामना का उल्लेख), मार्कण्डेय १४(विपश्चित् द्वारा नरक दर्शन), विष्णुधर्मोत्तर १.१७७(दूसरा इन्द्र ), योगवासिष्ठ ६.२.१०८, ६.२.१०९, द्र. मन्वन्तर vipashchit


      विपाक गरुड २.२.५९(कर्मविपाक का वर्णन), द्र. प्राङ्विपाक


      विपापा स्कन्द ५.३.६.३९


      विपाशा मत्स्य १३, वामन ५७.७६(विपाशा द्वारा स्कन्द को गण प्रदान करना), ९०.४(विपाशा तीर्थ में विष्णु का द्विजप्रिय नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर १.२०७(वसिष्ठ के कारण विपाशा नदी की उत्पत्ति की कथा), १.२१५(विपाशा नदी के तुरग वाहन का उल्लेख), स्कन्द ४.१.२९.११८(गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ५.३.६.४०, ५.३.१९८.७३, महाभारत अनुशासन ३.१२, कथासरित् १२.७.१९०, द्र. भूगोल vipaashaa/ vipasha


      विपीत भविष्य ४.८२(विपीत मुनि द्वारा सीरभद्र प्रेत को सुकृत द्वादशी का उपदेश)


      विपुल भविष्य ४.१९५(विपुल पर्वत की महिमा), मत्स्य ८(विपुल पर्वत पर ब्रह्मा व हंस की पूर्वाभिमुखी प्रतिष्ठा), १३, ८३(विपुल पर्वत निर्माण व पूजा विधि), वराह ७७, स्कन्द ५.३.१९८.७४, लक्ष्मीनारायण ३.९३.११(गुरु की अनुपस्थिति में शिष्य विपुल द्वारा गुरुपत्नी रुचि की इन्द्र तथा लोममर्षण, कपर्दक आदि राक्षसों से रक्षा का वृत्तान्त ) vipula


      विपुलस्वान मार्कण्डेय २


      विपुला वायु ४१.५(कैलास पर कुबेर की सभा का नाम), स्कन्द ४.२.७२.६२(विपुला देवी द्वारा ऊरु द्वय की रक्षा),



      विपृथु वामन ६९, हरिवंश २.१२१.१९


      विप्र स्कन्द ५.१.२६.१००(कामुक रूप धारी शिव पर ब्राह्मणों द्वारा प्रहार, शिव द्वारा विप्रों को शाप व वरदान), ५.३.३८.६३(विप्र की प्रशंसा), लक्ष्मीनारायण ३.९१.११९(विज्ञान से विप्र बनने का उल्लेख ), द्र. वंश ध्रुव vipra


      विप्रचित्ति गरुड ३.१२.८५(जरासन्ध का विप्रचित्ति से तादात्म्य), गर्ग ७.४३, देवीभागवत ४.२२.४२(विप्रचित्ति के जरासन्ध रूप में अवतरण का उल्लेख), ९.२२(शङ्खचूड - सेनानी, भास्कर से युद्ध), पद्म १.६.४८(दनु व कश्यप - पुत्र), ब्रह्मवैवर्त्त २.१८, ब्रह्माण्ड २.३.६.१८, भागवत ६.१८, मत्स्य ६, ४७.५२(विप्रचित्ति का ध्वज में छिपना, इन्द्र द्वारा वध), वराह ९५, वायु ७०.७(दानवों का अधिपति), विष्णु १.१५.१४१, शिव २.५.१३, २.५.३६.७(शङ्खचूड - सेनानी, भास्कर से युद्ध), हरिवंश २.६९.१५, ३.५१.५८(बलि - सेनानी विप्रचित्ति के रथ का वर्णन), ३.५३.२४(विप्रचित्ति का वरुण से युद्ध), ३.६१, लक्ष्मीनारायण १.३३७.३९(शङ्खचूड - सेनानी, भास्कर से युद्ध ), द्र. वंश दनु viprachitti


      विबाहु लिङ्ग १.१२.१०


      विभाकर ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२८(विभाकर सूर्य से सर्वाङ्ग की रक्षा की प्रार्थना),


      विभाग हरिवंश २.१२२.३३(वषट्कार के आश्रित २ अग्नियों में से एक )


      विभाण्डक नारद १.२०(विभाण्डक मुनि द्वारा राजा सुमति से ध्वजारोपण के महत्त्व की पृच्छा), ब्रह्म १.११वैभाण्डकि, ब्रह्मवैवर्त्त २.४.५५(विभाण्डक द्वारा ऋष्यशृङ्ग को सरस्वती मन्त्र प्रदान का उल्लेख), २.५१.६९(विभाण्डक द्वारा सुयज्ञ नृप से शूद्र के श्राद्ध में ब्राह्मण द्वारा भक्षण दोष का कथन), मत्स्य ४८.९९(विभाण्डक द्वारा हर्यङ्ग के यज्ञ में वारण/हस्ती का अवतारण), वा.रामायण ०.३(विभाण्डक मुनि को सुमति राजा से रामायण का महत्त्व ज्ञात होना), १.१०(मुनि, ऋष्यशृङ्ग - पिता ), लक्ष्मीनारायण १.२८२ vibhaandaka/ vibhandaka


      विभाव वायु ३१.९


      विभावरी पद्म १.४६.७९, मत्स्य १२२, १५४.५८(ब्रह्मा के आदेश से रात्रि देवी द्वारा पार्वती के शरीर का रञ्जन, एकानंशा रूप में जन्म), मार्कण्डेय ६४(विभावरी का स्वरोचिष से विवाह), वराह ८७(द्रोण पर्वत की नदियों में से एक), विष्णु १.८.३१(दिवस - पत्नी), २.८.९(, स्कन्द ४.१.२९.११७(गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.१६७, ३.२१३.१०५, ४.२९, vibhaavaree/ vibhavari


      विभावसु पद्म ५.११७.२३१(विभावसु वैश्य का घण्टामुख गण बनना), ब्रह्म २.३७, भागवत ८.१०.३२(विभावसु का महिष से युद्ध), वराह १९०(शाण्डिल्य मुनि - पुत्र, श्राद्ध में भाग ग्रहण), वायु ६९.२३१, स्कन्द ३.१.३८(विभावसु द्वारा भ्राता सुप्रतीक को शाप - प्रतिशाप, गज व कच्छप बनना), कथासरित् ८.५.६४(श्रुतशर्मा विद्याधर द्वारा प्रभास से युद्ध हेतु प्रेषित ५ महारथियों में से एक ) vibhaavasu/ vibhavasu


      विभास वायु ३१.६


      विभीषण गर्ग ७.१३.१८(लङ्का - अधिपति, प्रद्युम्न की आधीनता स्वीकार करना), पद्म १.३८(विभीषण के अनुशासन हेतु राम आदि का पुष्पक पर आरूढ होकर लंकागमन), ५.७.२(विभीषण, कुम्भकर्ण आदि के तप का उल्लेख), ५.६७.४०(महामूर्ति - पति), ५.१०४.३४(शिवलिङ्ग को देखकर विभीषण के शृङ्खलाबद्ध होने का प्रश्न), ६.२४३(विभीषण द्वारा राम को दर्पण भेंट), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.३६(हरिभावना से शुद्ध हुए चिरजीवियों में से एक), भविष्य ३.४.२५.२९(ब्रह्माण्ड तम से विभीषण तथा विभीषण से त्रिलोक की उत्पत्ति का उल्लेख), मत्स्य ६.११(बलि के १०० पुत्रों में से एक), स्कन्द १.२.१३.१६८(शतरुद्रिय प्रसङ्ग में विभीषण द्वारा पांसूत्थ लिङ्ग की सुहृत्तम नाम से पूजा का उल्लेख), २.८.८.७७(विभीषण सर का संक्षिप्त माहात्म्य), ३.१.३०.७३(विभीषण द्वारा सेतुभेदन की प्रार्थना), ३.१.४९.४३(विभीषण द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ३.१.५१.२६(विभीषण का मध्य में स्मरण), वा.रामायण ५.३७, ५.५२(विभीषण द्वारा रावण को दूत हनुमान के वध से रोकना), ६.९+ (विभीषण द्वारा रावण को सीता लौटाने का सत्परामर्श), ६.१६+ (रावण द्वारा विभीषण का तिरस्कार, विभीषण का राम की शरण में आना), ६.३७.३२(लङ्का के मध्य में विभीषण का विरूपाक्ष से युद्ध), ७.५, ७.१२.२४(सरमा - पति), कथासरित् २.४.११७(धूर्त लोहजङ्घ द्वारा लङ्का में विभीषण से धन प्राप्ति का वृत्तान्त), १८.२.२४२(विभीषण द्वारा हेममृग को यक्षिणी को देने का कथन ) vibheeshana/ vibhishana


      विभु अग्नि १०७.१५(प्रस्तार - पुत्र, पृथु - पिता, भरत वंश), गरुड १.८७.२०(रैवत मन्वन्तर में इन्द्र), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.२२(विभु कृष्ण से सर्वदा रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९५(शाक्त देवगण), भविष्य २.१.१७.१३(शिखा में अग्नि का नाम), भागवत ५.१५.६(प्रस्ताव व नियुत्सा - पुत्र, रति - पति, पृथुषेण - पिता, भरत वंश), ८.१.२१(वेदशिरा व तुषिता - पुत्र), ८.५.३(रैवत मन्वन्तर में इन्द्र), मत्स्य ५.२७(प्रत्यूष वसु – पुत्र देवल का अपर नाम), वायु २९.१८(विभु का ऋतु से साम्य), २९.२६(विभु का क्रतु से साम्य), ३१.११(स्वायम्भुव मन्वन्तर में विश्वभुक् इन्द्र की प्रथम विभु संज्ञा?), विष्णुधर्मोत्तर १.१८०(पञ्चम इन्द्र), १.१८४(नवम मन्वन्तर में इन्द्र), लक्ष्मीनारायण ३.३७.४६(५१वें वत्सर में ब्रह्मा की आयु के स्वर्ण जयन्ती महोत्सव पर कृष्ण के विभु नारायण अवतार का वर्णन ) vibhu


      विभूति कूर्म २.७(विभूति योग का वर्णन - रुद्राणां शंकरश्चाहं गरुडः पततामहम् ।
      ऐरावतो गजेन्द्राणां रामः शस्त्रप्रभृतामहम् ॥), गरुड १.२.३७(विभूति योग का वर्णन - अहं हि देवो देवानां सर्वलोकेश्वरेश्वरः ।। अहं ध्येयश्च पूज्यश्च स्तुत्योहं स्ततिभिः सुरैः ।।), पद्म १.२०.३७(विभूति द्वादशी व्रत का माहात्म्य, पुष्पवाहन राजा का वृत्तान्त), ६.२२७.५८(प्रकृति के त्रिपाद् विभूति रूप का कथन), भविष्य ४.८५(विभूति द्वादशी के संदर्भ में राजा पुष्पवाहन के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, पुष्पवाहन का वाल्मीकि से संवाद, कमल अर्पण से विभूति प्राप्ति), भागवत ११.१६.९(कृष्ण की विभिन्न प्राणियों में विभूतियां, अधिपतियों के नाम- ब्रह्मर्षीणां भृगुरहं राजर्षीणामहं मनुः।
      देवर्षीणां नारदोऽहं हविर्धान्यस्मि धेनुषु ), मत्स्य ९९+ (विभूति द्वादशी व्रत, विष्णु का न्यास, पुष्पवाहन राजा व लावण्यवती रानी का प्रसंग), विष्णुधर्मोत्तर १.५६(विष्णु की विभूतियां - अहिर्बुध्न्यश्च रुद्राणां नादैवाश्विनयोस्तथा ।। नारायणश्च साध्यानां भृगूणाञ्च तथा क्रतुः ।।), शिव ५.२०.२३, स्कन्द ५.३.१७७(भूतीश्वर तीर्थ का माहात्म्य, शिव द्वारा गात्र का उद्धूलन, स्नान के प्रकारों का वर्णन), ७.१.७(सप्तम कल्प में पार्वती का नाम), योगवासिष्ठ ६.१.६०(विभूति योग - पयस्तया च पयसि वायौ वायुतया स्थितम् । तेजस्तया तेजसि च बुद्धौ बुद्धितया गतम् ।।), लक्ष्मीनारायण १.५२१.७६(भगवद् विभूति का वर्णन - तेजस्विनां च वै सूर्यः पवित्राणां तथाऽनलः । द्रवाणां स हरिर्वारि चेन्द्रियाणां मनः स च ।।), १.५४३.७८(विश्वदेवेभ्यश्च दक्षो ददावष्टौ हि कन्यकाः । योगनिद्रा विभूतिश्च शिंशपा शरमा गुहा ।।), २.९३(विभूति योग), २.१६३.२१(विभूति योग - वृक्षाणां रससम्पत्तिर्वल्लीनां फलपुष्पिता । दासानां सेविकावृत्तिर्बालकृष्णः स एव सः ।। ), ३.७१.१(ईश्वर के त्रिपाद् विभूति विस्तार का वर्णन ) vibhuuti/ vibhooti/ vibhuti


      विभ्राज मत्स्य २०.२३(गर्गशिष्य पितृवर्ती की विभ्राज के वैभव में आसक्ति से राजा ब्रह्मदत्त के रूप में जन्म का कथन), २१.११(अनघ वैभ्राज द्वारा तप से सर्वसत्वरुतज्ञ पुत्र प्राप्त करना), ४९.५६(सुकृत – पुत्र, अणुह – पिता), ४९.५८(सुकृत - पुत्र, विष्वक्सेन रूप में जन्म), १२२.१७(शाकद्वीप के पर्वतों में से एक, नाम का कारण- विभ्राजस्तु समाख्यातः स्फाटिकस्तु महान् गिरिः।। यस्माद्विभ्राजते वह्निर्विभ्राजस्तेन स स्मृतः।), हरिवंश १.२०.२६(सुकृत-पुत्र, अणुह – पिता), १.२१.४३( स्वतन्त्र नामक हंस का विभ्राज राजा के वैभव पर आकृष्ट होना, ब्रह्मदत्त राजा बनना ), १.२४.१(राजा विभ्राज के ब्रह्मदत्त के पुत्र विश्वक्सेन रूप में जन्म का उल्लेख), vibhraaja/ vibhraja


      विमति वराह १६६(सुमति - पुत्र, मथुरा यात्रा, असि से शिर छेदन, असि कुण्ड का निर्माण), वामन ९०, लक्ष्मीनारायण १.३४८,


      विमत्त नारद १.६६.१३४(विमत्त गणेश की शक्ति लोलनेत्रा का उल्लेख),


      विमर्दन मार्कण्डेय ७४(मन्त्री विमर्दन द्वारा स्वराष्ट्र राजा को राज्य से च्युत करना), स्कन्द ३.३.४(कुमुद्वती - पति विमर्दन की शिव भक्ति के कारण का कथन, पूर्व जन्म में सारमेय द्वारा शिव मन्दिर की प्रदक्षिणा, रानी के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन ) vimardana


      विमल अग्नि १४३.९(अनादिविमल, सर्वज्ञविमल, प्रसिद्धविमल, संयोगविमल व समयविमल पञ्चकों का उल्लेख), गर्ग ४.५(चम्प नगरी के राजा विमल द्वारा याज्ञवल्क्य के सुझाव से स्वपुत्रियों को कृष्ण को भेंट करना, कृष्ण से सारूप्य प्राप्त करना), ७.१०.३०(महाराष्ट्र - राजा विमल द्वारा प्रद्युम्न की पूजा), देवीभागवत ७.३०(विमला : पुरुषोत्तम पीठ में देवी का नाम), नारद १.६६.९८(विमल विष्णु की शक्ति धारा का उल्लेख), पद्म ३.२१.३८(विमलेश्वर के माहात्म्य का कथन), ३.२४.३२(रेणुकातीर्थ में स्नान से चन्द्रमा की भांति विमल होने का उल्लेख), ३.२४.३७(विमल तीर्थ में सौवर्ण-राजत मत्स्यों की स्थिति, स्नान से वाजपेयफल प्राप्ति का उल्लेख), ५.१७(वाजीपुर - राजा, शत्रुघ्न से मिलन), ५.६७.३८(राज्ञी - पति), ६.२०७+ (विमल विप्र द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु तीर्थ यात्रा, विमल - मित्र द्वारा राक्षसियों का उद्धार, इन्द्रप्रस्थ तीर्थ माहात्म्य का प्रसंग), भविष्य ३.४.२२(जन्मान्तर में सन्त दिवाकर), मत्स्य १३, ४४, विष्णुधर्मोत्तर २.८.३४(९ विमल छिद्रों वाले पुरुष की नवामल संज्ञा), स्कन्द ४.२.५१.८३(विमल द्वारा कुष्ठ से मुक्ति के लिए सूर्य की उपासना, विमलादित्य का माहात्म्य), ४.२.५४.३(विमलोदक कुण्ड का माहात्म्य : वाल्मीकि द्वारा विमलोदक कुण्ड में स्नान, विमलोदक में स्नान से प्रेत की मुक्ति), ४.२.६९.२४(विमलेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.७३(विमलेश कुण्ड पर त्र्यम्बक मुनि द्वारा सिद्धि प्राप्ति), ५.३.४३(विमल तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.२२६(विमलेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, भानु की भानुमती के प्रति कामुकता, कुष्ठ प्राप्ति, तीर्थ प्रभाव से विमलता आदि), ५.३.२३१.१८(तीन विमलेश्वर तीर्थ होने का उल्लेख), ७.१.१०.१०(विमल तीर्थ का वर्गीकरण – वायु), ७.१.५५(गन्धर्वसेना द्वारा स्थापित विमलेश्वर का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.१४०.७६(विमल प्रासाद के लक्षण), कथासरित् ९.६.८१(राजा विमल के नपुंसक पुत्र से रूपवती विद्याधरी का विवाह, विमल द्वारा यक्ष से पुंस्त्व प्राप्ति का वृत्तान्त), १२.४.६७(कोशला नगरी के राजा विमलाकर के पुत्र कमलाकर के हंसावली से विवाह का वृत्तान्त), १५.२.२(नरवाहनदत्त का मन्दरदेव राजा के विमल नामक पुर में आगमन ) vimala


      विमलबुद्धि कथासरित् १२.२.१९(मृगाङ्कदत्त के १० सचिवों में से एक), १२.२.४१, १२.३६.४४(विमलबुद्धि द्वारा मृगाङ्कदत्त का ध्यान आत्महत्या को उन्मुख कन्या की ओर खींचना )


      विमला वामन ५७.८२(विमला द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), स्कन्द ५.३.६.४१(नर्मदा नदी के विमला नाम का कारण), ५.३.१९८.७२, लक्ष्मीनारायण १.२०६.४६(मृगशृङ्ग मुनि की ४ पत्नियों में से एक ) vimalaa


      विमान गणेश १.५६.१५(पापी की कुदृष्टि से इन्द्र के विमान का भूमि पर पतन), गर्ग ७.२५.३१(कुबेर द्वारा प्रद्युम्न को प्रदत्त विष्णुदत्त नामक विमान का वर्णन), पद्म ५.१५, ब्रह्माण्ड ३.४.२४.७५(तमोलिप्त विमान), भागवत ३.२३(कर्दम व देवहूति के विहार के लिए विमान), ४.१२, १०.७६.७(मय द्वारा सौभ विमान का निर्माण कर शाल्व को देना, शाल्व द्वारा विमान की सहायता से यादवों से युद्ध), मत्स्य १५.२(विभ्राज लोक में बर्हिण/मयूर युक्त विमानों के अस्तित्व का उल्लेख), लिङ्ग १.४८, महाभारत आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३२६, वा.रामायण ५.७(हनुमान द्वारा लङ्का में पुष्पक विमान की शोभा का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.५६९, २.१०७.३१(राक्षसों द्वारा पापास्त्रों से पितृकन्याओं के पुण्यतत्त्व से निर्मित विमान का निरोध), २.१४०.९२, ४.२.७(राजा बदर के दिव्य विमानों के नाम तथा प्रकृति का कथन), कथासरित् ७.९.२३(विमान निर्माताओं प्राणधर व राज्यधर भ्राता- द्वय का वृत्तान्त), ७.९.२२७(प्राणधर तक्षा द्वारा नरवाहनदत्त हेतु विशाल विमान का निर्माण), ८.१.३६(सूर्यप्रभ द्वारा मय से विमान साधन विद्या सीखने का कथन), ८.३.१२३(सूर्यप्रभ द्वारा परिवर्तिनी विद्या से दिव्य विमान प्राप्ति का कथन), ८.५.१०३(सूर्यप्रभ द्वारा भूतासन विमान की सहायता से रथी विद्याधरों से युद्ध), १४.३.१३३(नरवाहनदत्त द्वारा शिव से महापद्म विमान की प्राप्ति ), द्र. पुष्पक vimaana/ vimana


      विमोचनी द्र. भूगोल


      वियद्राजपुर स्कन्द २.१.५, लक्ष्मीनारायण १.३९८


      वियोग पद्म १.३३.६८(पुष्कर में अवियोग कूप : राम द्वारा दशरथ का चिन्तन व मिलन), भविष्य ४.२२(अवियोग तृतीया व्रत), ४.६८(अवियोग व्रत), कथासरित् ९.२.२७८(राजा के भय से अनङ्गप्रभा का नाट्याचार्य के साथ वियोगपुर में गमन), ९.२.२९१(वियोगपुर में अनङ्गप्रभा द्वारा नाट्याचार्य को त्याग द्यूतकार सुदर्शन को अपनाना ) viyoga


      विरक्त स्कन्द ३.१.४९.६३(सुतीक्ष्ण द्वारा विरक्ति की कामना)


      विरज अग्नि १०७, ब्रह्म १.४०(विरज क्षेत्र का माहात्म्य, विरज के अन्तर्गत तीर्थ ), भागवत ४.१.१४, ५.१५.१५, लिङ्ग १.१२.१०, वायु ७३.२३/२.११.६७(विरज लोकों में अग्निष्वात्त पितरों की स्थिति?), द्र. वंश भरत viraja


      विरजा गणेश २.७.१३(विरजा राक्षसी द्वारा महोत्कट गणेश का भक्षण, महोत्कट द्वारा जठर का विदारण), २.१२६.२०(चक्रपाणि द्वारा दक्षिण दिशा में विरजा देवी की स्थापना), गरुड ३.९.१७(७ आवरणों के पश्चात् विरजा नदी का उल्लेख), ३.१०.१७(विरजा नदी का अष्टम आवरण के रूप में कथन), ३.२७.१४(विरजा नदी का माहात्म्य व परिचय : अन्तर्गङ्गा), गर्ग १.३.३७(विरजा नदी का कालिन्दी रूप में अवतरण), २.२०(विरजा द्वारा राधा को चन्द्रहार भेंट), २.२६(विरजा का कृष्ण के साथ विहार, राधा के भय से नदी बनना), २.२६(विरजा द्वारा ७ पुत्रों को सागर बनने का शाप), ५.१७.१४(विरजा यूथ की गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), देवीभागवत ९.१३.४६(विरजा के नदी बनने तथा सात समुद्र रूप सात पुत्र प्राप्त करने का कथन), १२.६.१४०(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.९२(पाशी नामक विष्णु की शक्ति विरजा का उल्लेख), पद्म १.९.५१(सुस्वधा/आज्यप पितरों की कन्या, नहुष - पत्नी, ययाति - माता, कालान्तर में एकाष्टका बनना), ६.२२७.५५(विरजा नदी की प्रकृति व परम व्योम के बीच स्थिति), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२+ (विरजा का राधा के भय से नदी बनना, ७ पुत्रों को लवण समुद्र आदि बनने का शाप), ब्रह्माण्ड २.३.१०.९५, मत्स्य १५(सुस्वधा/आज्यप पितर गण की कन्या, नहुष - पत्नी, ययाति - माता), वामन २२.१९(विरजा स्थान के दक्षिण दिशा की वेदी होने का उल्लेख), वायु ७२.८८, ७३.४६(आज्यप पितर - कन्या, नहुष - पत्नी, ययाति - माता), शिव ३.१.१५(रक्तवर्ण ब्रह्मा के ४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ४.१.२९.११७(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.७२.६०(विरजा देवी द्वारा नखों की रक्षा), ४.२.७५.४(विरजा पीठ में त्रिविष्टप लिङ्ग की स्थिति), ४.२.७९.९८(विरजा पीठ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.१०९.१५(विरजा तीर्थ में त्रिलोचनेश्वर लिङ्ग), हरिवंश १.१८.६६(सुस्वधा पितरों की कन्या, ययाति - माता, नहुष - भार्या), लक्ष्मीनारायण १.३३५.९०(राधा भय से विरजा के नदी होने का कथन ), २.२९७.८७, ४.१०१.९४, virajaa


      विरञ्चि स्कन्द ७.१.७(प्रथम कल्प में ब्रह्मा का नाम), द्र. विरिञ्च


      विरण लक्ष्मीनारायण ३.३०.१८


      विरथ हरिवंश ३.३७.२१(कश्यप - पुत्र, पूर्व दिशा के अधिपति),


      विरह गर्ग ५.१७(गोपियों के विभिन्न यूथों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), भागवत १०.३०(कृष्ण विरह में गोपियों की दशा), १०.९०(कृष्ण की पटरानियों द्वारा विरह का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.२५५(अयोध्या में स्त्रियों का विरह ) viraha


      विराज गरुड ३.१३.२७(ब्रह्मा द्वारा मध्यमांगुलि पर्व से विराज भार्या की सृष्टि का उल्लेख), पद्म १.४०(मरुतों में से एक का नाम )viदष्ष्ञ्ष्, मत्स्य ४६.२७, लक्ष्मीनारायण १.२९७, १.३०८


      विराट् अग्नि १०७, गणेश २.४२.२७(वक्रतुण्ड गणेश द्वारा विराट् रूप धारण कर दुरासद दैत्य को वश में करना), गरुड १.२.१२(रुद्र द्वारा विराट् की अर्चना), २.२२, गर्ग १.१६.२६(विराट् की शक्ति धारणा का उल्लेख), देवीभागवत ४.२२.३६(राजा विराट : मरुद्गण का अंश), ७.३३(परमेश्वरी द्वारा हिमालय को विराट रूप का दर्शन कराना), ९.३(महाविराट का राधा से प्राकट्य, महाविष्णु नाम, महिमा), ९.३.१(डिम्भ के विराट् बनने का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त २.३(महा विराट की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१६.१७(अन्तरिक्ष की विराट् संज्ञा), भविष्य १.१३३(सूर्य की देह में देवों की स्थिति), १.१६०(सूर्य का रूप), ३.३.३२.५०(विराट का राजा मयूरध्वज के रूप में अवतरण), भागवत २.१(विराट स्वरूप की धारणा), २.५(विराट की ब्रह्माण्ड रूपी अण्ड से उत्पत्ति, वर्णन आदि), २.१०.१५(विराट पुरुष से सृष्टि), ३.६(विराट शरीर की उत्पत्ति), ३.१३?, ३.२६(विराट पुरुष की सृष्टि), ८.७, ८.२०, १०.४०.१३(अक्रूर को कृष्ण के विराट रूप के दर्शन), १२.११(विराट की विभूतियों का वर्णन), मार्कण्डेय ८२, ८८, लिङ्ग १.४५, वामन १८, ३१, ९१, विष्णुधर्मोत्तर १.२३९.३(रावण द्वारा द्रष्ट विराट पुरुष के अङ्गों में विभिन्न देवों की स्थिति का कथन), शिव ५.४६?, स्कन्द १.२.२२(विराट रूप विष्णु), २.२.३, २.७.१९, ५.३.३.९२, हरिवंश ३.७१+ (वामन का विराट रूप, दैत्यों का विराट पर आक्रमण), महाभारत उद्योग १३१, आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३०९, योगवासिष्ठ ६.२.१९(विराट आत्म), ६.३.७३(आत्म विराट), लक्ष्मीनारायण १.३०१, २.६०.३२(उदय राजा द्वारा कृष्ण के विराट रूप के दर्शन ), २.६८.७५, द्र. पुरुष viraata / virat

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      विराध गरुड २.६.५(विराध नगर में राजा वीरवाहन का वसिष्ठ से संवाद), २.६.५०(विराध नगर में विश्वम्भर वैश्य का लोमश ऋषि से संवाद), ३.९.३(१५ अजान देवों में से एक - विराधश्चारुदेष्णश्च तथा चित्ररथस्तथा । धृतराष्ट्रः किशोरश्च हूहूर्हाहास्तथैव च ॥ ), ब्रह्मवैवर्त्त २.६२.१०४(कलिङ्ग देश के राजा के रूप में विराध का उल्लेख), शिव ४.२०.१३(कर्कटी - पति), स्कन्द ४.२.५३.१२(शिव द्वारा विराध गण का दिवोदास - पालित काशी में विघ्न हेतु प्रेषण), ४.२.५५.२२(विराधेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), वा.रामायण ३.२(जव व शतह्रदा - पुत्र, राक्षस, तुम्बुरु गन्धर्व का शापित रूप, राम व लक्ष्मण द्वारा विराध का निग्रह), ६.९६.२६/६.१०७.६०(विराध वध क्रौञ्च वन में होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.२१०.१(विराध खेटक में यज्ञराध पुष्कस भक्त के ब्रह्मायन साधु से मिलन का वृत्तान्त), viraadha/ viradha


      विराम लक्ष्मीनारायण १.३२३.५१(तितिक्षा व धर्म - पुत्र), ३.१११.३८(विरामण ग्राम के दीर्घशील नामक आस्तिक व नास्तिक विप्र - द्वय का वृत्तान्त), ३.१९४.२(विराम नगर के राजा चक्रधर व अमात्य देवविश्राम द्वारा अभिचारिक नारी के वध का वृत्तान्त ), ४.१०१.९३, ४.१०१.११५, viraama/ virama


      विराल लक्ष्मीनारायण ३.१८१.१(विराल नामक भक्त वैश्य के पूर्व जन्म का वृत्तान्त )


      विरिञ्च गरुड ३.१६.१७(ब्रह्मा के ४ रूपों में से एक, अनिरुद्ध व शान्ता-पुत्र), ३.१६.८२(सावित्री-पति), महाभारत शान्ति ३४२.९४(लोक को चेतना प्रदान करने वाला), द्र. विरञ्चि (रिचि – विस्तारे)


      विरिंफ अन्त्येष्टिदीपिका पृ.२१(क्रव्य का विरिंफ से साम्य?)


      विरूप भागवत ९.६.१, वराह १८०.३७विरूपनिधि , वामन ६९.५४(विरूपधृक : अन्धक - सेनानी, मित्र से युद्ध), कथासरित् ७.६.२६(रूप प्राप्ति हेतु तपोरत विरूपशर्मा को इन्द्र द्वारा शिक्षा), ८.३.६८(विरूपशक्ति विद्याधर द्वारा अजगर को पकडने में असफलता का उल्लेख ) viroopa/ viruupa/ virupa


      विरूपाक्ष गणेश २.१०.२७(शङ्कर द्वारा महोत्कट गणेश का विरूपाक्ष नामकरण), देवीभागवत ५.११(महिषासुर - मन्त्री विरूपाक्ष द्वारा देवी के सम्बन्ध में महिषासुर को परामर्श), पद्म १.१४, १.२४(अङ्गारक - पूजा के दर्शन से विरूपाक्ष को रूप प्राप्ति, भार्गव द्वारा कथन), मत्स्य ४२(अङ्गारक व्रत से मङ्गल को रूप प्राप्ति), वामन ८२, विष्णुधर्मोत्तर १.४१.५(विरूपाक्ष पुरुष, निर्ऋति प्रकृति), १.५६.१३, ३.५७(विरूपाक्ष की मूर्ति का रूप), ३.१८६(विरूपाक्ष व्रत), शिव ३.१८, स्कन्द १.२.६२.२५(क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक), ३.१.४४.१९(विरूपाक्ष के सुग्रीव से युद्ध का उल्लेख), ४.२.६९.१३०(विरूपाक्ष लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७०.३६(विरूपाक्षी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.१०९(हेमकूट तीर्थ में विरूपाक्ष लिङ्ग ), ७.४.१७.३२, हरिवंश २.६३, वा.रामायण १.४०, ५.४६.२९(रावण - सेनानी, प्रमदावन में हनुमान द्वारा वध), ६.३६.२०(विरूपाक्ष द्वारा लङ्का के मध्य की रक्षा), ६.४३.१०( विरूपाक्ष का लक्ष्मण से युद्ध), ६.९६(युद्ध में सुग्रीव द्वारा विरूपाक्ष का वध), ७.६, कथासरित् ६.८.६७(ब्रह्महत्या से विरूपाक्ष यक्ष को मनुष्य योनि प्राप्ति व मुक्ति का वृत्तान्त), viruupaaksha/ viroopaaksha/ virupaksha



      विरोचन कूर्म १.१७.१(सनत्कुमार द्वारा विरोचन को ज्ञान दान), गणेश १.६५.४४(विरोचना द्वारा श्रद्धापूर्वक दिए गए एक दूर्वाङ्कुर से ही गणेश की तृप्ति), २.२९.३०(विरोचन द्वारा सूर्य से मुकुट प्राप्ति, परस्त्री द्वारा मूर्द्धा स्पर्श से मृत्यु की कथा), गरुड ३.१६.६६(१४ चन्द्रों में द्वितीय, वायु का रूप, गुण, हनुमान व भीम रूप में अवतार), देवीभागवत ८.१५.४४(सूर्य की विरोचन संज्ञा), नारद १.६६.१२९(विरोचन गणेश की शक्ति तेजोवती का उल्लेख), १.८५.१३७(वैरोचन , २.३२(प्रह्लाद - पुत्र, विशालाक्षी - पति, विष्णु को स्व आयु दान करना), भागवत ५.१५.१५, ८.१०.२९(विरोचन का सविता से युद्ध), मत्स्य ६.१०(प्रह्लाद के ४ पुत्रों में से एक, बलि-पिता), १०, ४८.२३(सुतपा : सेन-पुत्र, बलि-पिता), ४८.५८(विरोचन-पुत्र बलि का संदर्भ, सुतपा का विरोचन से साम्य), ७२(विरोचन के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : शूद्र द्वारा किए गए अङ्गारक व्रत के दर्शन से जन्मान्तर में रूपवान् होने का कथन), वामन ९(विरोचन का गज वाहन), ६९, स्कन्द १.१.१८(विरोचन द्वारा इन्द्र को शिर दान, मरण), ७.१.११, हरिवंश १.६.३(पृथ्वी दोहन में विरोचन के वत्स बनने का उल्लेख), ३.५१.८(बलि - पिता व बलि - सेनानी विरोचन के रथ का वर्णन), ३.५३.१३(विरोचन का विश्वक्सेन साध्य देव से युद्ध), ३.५६, योगवासिष्ठ ५.२२.४३+(बलि द्वारा पिता विरोचन से सीमान्त के विषय में पृच्छा, विरोचन द्वारा सीमान्त के रूप में मोक्ष देश के राजा आत्मा व उसके मन्त्री मन का वर्णन), वा.रामायण १.२५, कथासरित् ८.७.३०(दम द्वारा विरोचन के वध का उल्लेख ) virochana


      विरोह कथासरित् ८.५.११२(सुरोह - विरोह द्वारा प्रवहण का तथा सिंहबल द्वारा सुरोह - विरोह के वध का उल्लेख )


      विल वास्तुसूत्रोपनिषद ६.८(विल के कर्म होने का उल्लेख)


      विलक्ष कथासरित् ८.१.५९


      विलम्ब स्कन्द ३.१.३८, कथासरित् ८.४.८३(कालकम्पन दवारा हत चार योद्धाओं में से एक)


      विलापध्वज भविष्य ३.२.१४


      विलास नारद १.६६.९२(विलासिनी : मुसली विष्णु की शक्ति विलासिनी का उल्लेख), योगवासिष्ठ ५.६५+ (विलास का भास से संवाद), लक्ष्मीनारायण १.३१९.१११(विलासा , ४.६२, कथासरित् ७.६.४२(विलासपुर के राजा विनयशील द्वारा यौवन प्राप्ति के प्रयत्न तथा धूर्त वैद्य द्वारा अन्य को राजा बनाने का वृत्तान्त), ८.१.५७(सूर्यप्रभ द्वारा ताम्रलिप्ति की राजकन्या विलासिनी की प्राप्ति), ८.३.१९४(सुमेरु - अनुज की पुत्री विलासिनी द्वारा सूर्यप्रभ के दर्शन का उल्लेख ) vilaasa/ vilasa


      विलोभना पद्म ६.१८८(केशव ब्राह्मण - पत्नी, पति द्वारा हत्या, जन्मान्तर में शुनी व शश बनना, गीता के १४वें अध्याय के माहात्म्य का प्रसंग )


      विवस्वत भागवत ८.२४


      विवस्वान् कूर्म १.४३.२१(श्रावण मास के विवस्वान् सूर्य की रश्मि संख्या), नारद १.११६.२८, भविष्य १.५७.१(विवस्वान् हेतु मधु, मांस, मद्य बलि का उल्लेख), ३.४.८(देवयाजी - पुत्र, सुशीला - पति, कुष्ठ प्राप्ति, सूर्य उपासना से आरोग्य प्राप्ति), ३.४.१८(संज्ञा विवाह प्रसंग में विवस्वान् का बलि से युद्ध, विवस्वान् द्वारा संज्ञा की प्राप्ति ), स्कन्द ५.३.१९१.१४ vivasvaan/ vivasvan


      विवाद स्कन्द ६.३६.३१(विवाद हेतु संसृष्टम् इति जप का निर्देश),


      विवाह अग्नि १२१.२(विवाह हेतु राशि, ग्रह व नक्षत्र विचार), १५४(विवाह के प्रकार व शुभ काल का निर्णय), गणेश २.७०.५(गणेश द्वारा विघ्नों के नाश के पश्चात् काशीनरेश द्वारा मगधराज - सुता से सुत का विवाह करना), २.१०९.१०(गणेश के सिद्धि - बुद्धि से विवाह का वृत्तान्त), गरुड १.६२(विवाह हेतु प्रशस्त व अप्रशस्त राशियां), १.९५(विवाह के प्रकार), २.२६.२१(ब्राह्म विवाह-संस्कृत वधू की पिण्डोदक क्रिया भर्तृगोत्र में तथा अन्यों की पितृगोत्र में करने का निर्देश), ३.२८.१३४(विवाह काल में पिष्टदेवी, चण्डाल देवी आदि की पूजा की व्यर्थता), गर्ग १.१६.१८(भाण्डीर वन में राधा - कृष्ण का विवाह), नारद १.२६(विवाह हेतु कन्या के लक्षण, विवाह के ८ भेदों का कथन), १.५६.३९४(विवाह हेतु प्रश्न लग्न, कन्या लक्षण व काल विचार ; मण्डप व वेदी के लक्षण, कुण्डली लक्षण आदि), २.२८.६१(विवाह विधि के कथनानुसार गुरु - शिष्य के वधू - वर होने का कथन), पद्म १.४३, १.५२, ४.१०, ६.३२, ६.११८.५(कन्या के विवाह के उचित समय का कथन ; विभिन्न कालों में कन्या के सोम, गन्धर्व, आदित्यों द्वारा भोग का कथन), ६.१८५(सुनन्द के प्रसंग में विवाह मण्डप ग्राम), ब्रह्म १.९०, १.९५, २.३, २.९५, ब्रह्मवैवर्त्त ४.१५(राधा व कृष्ण का विवाह), ४.३८+ (गौरी व शंकर का विवाह), ४.४४(शिव - पार्वती का विवाह), ४.१०७(रुक्मिणी व कृष्ण का विवाह), ब्रह्माण्ड २.३.६६(पुरूरवा व उर्वशी का विवाह), ३.४.१५.४(ललिता विवाह), भविष्य १.७(विवाह के प्रकार व फल), १.१८२(विवाह के प्रकार, कन्या भेद), ३.४.७.८(विवाह के लिए तुम्बुरु की आराधना?), मत्स्य २३(चन्द्रमा का दक्ष - कन्याओं से विवाह), मार्कण्डेय ७१(विवाह के संदर्भ में ग्रहों की दृष्टि), ७५.५४/७२.५४(रेवती कन्या द्वारा रेवती नक्षत्र के योग में विवाह का आग्रह),११३.२३/११०.२३(नाभाग द्वारा वैश्य कन्या से राक्षस विवाह का कथन), वराह २२(गौरी विवाह), वामन ५३(शिव व उमा का विवाह), विष्णु ३.१०.१६(विवाह हेतु स्त्री के लक्षण), ५.३५(साम्ब का विवाह), विष्णुधर्मोत्तर २.८७, ३.११९.४(विवाह काल में प्रद्युम्न की पूजा), ३.३२९(धर्म), शिव २.१.१६(शिव व सती का विवाह), २.२.१६+ (शिव व सती का विवाह), २.३.३७+ (शिव व पार्वती का विवाह), २.३.४८, ३.१, स्कन्द १.१.२४.६२, १.२.२४+ (शिव विवाह), १.२.२५, १.२.६०.७(घटोत्कच द्वारा कामकटङ्कटा से विवाह के पूर्व उसकी शतों को पूरा करने का वृत्तान्त), २.१.८(श्रीनिवास व लक्ष्मी का विवाह), २.१.३१(शङ्कर का विवाह), २.२.५९.६१?(नीलवृषभ के विवाह के माहात्म्य का कथन), २.४.३१.२२(तुलसी का विवाह), ३.१.१७(कक्षीवान् का विवाह), ३.२.६.३२(विवाह के ८ प्रकार, वर्ण अनुसार शर, प्रतोद, वस्त्र आदि धारण का नियम), ३.२.१०.४८, ४.१.३७(विवाह योग्य कन्या के लक्षण), ४.१.३६.८२(विवाह हेतु उत्तम पत्नी के लक्षण), ४.१.३८.१(विवाह के प्रकार), ५.३.१९४.४२(श्री व श्रीपति के विवाह यज्ञ में ऋत्विज आदि के नाम), ५.३.१९४.७१(नारायण व श्री के विवाह में नारायण के पाद पङ्कजों से उत्पन्न जल में अवभृथ स्नान होने का कथन), हरिवंश २.१२७.२१, महाभारत अनुशासन ४४, योगवासिष्ठ ३.१०६(चण्डाली का विवाह), ६.१.१०६(लीला विवाह), लक्ष्मीनारायण १.३५(विवाह विधि,पत्नीव्रत ब्राह्मण का पतिव्रता कन्या से विवाह), १.१५५.५६(विवाह की दृष्टि से अलक्ष्मी के क्षार भूमि सदृश होने का उल्लेख), १.२०५, १.२१०.२६(नारद के सृंजय - पुत्री मालावती से विवाह विधि का वर्णन), १.२६७.२(चैत्र शुक्ल द्वितीया को ब्रह्मा के विवाह का उल्लेख), १.३३९, १.३८२, १.३८५.३०(विवाह में विभिन्न देवियों द्वारा प्रदत्त वस्तुएं), १.३९९, १.४१३.१०८(वेश्याओं के क्षणगान्धर्व विवाह का कथन), १.५७५(कन्या दान हेतु भागवती दीक्षा का वर्णन ; कन्या का आचार्य रूपी वर को दान?), २.१७२(अग्नि कार्य से रहित विवाह विधि), २.१७५.६३(विवाह में गुरु के बलशाली होने का उल्लेख), २.२७९, २.२९६, ३.१०५, ३.१६८, ४.२२, कथासरित् १२.३६.१९०(मृगाङ्कदत्त व शशांकवती के विवाह की संक्षिप्त विधि ) vivaaha/ vivaha


      विविंशति महाभारत उद्योग १६०.१२१


      विवित्सु भविष्य ३.३.३२


      विविधि लक्ष्मीनारायण ३.३२.२२(अद्भुत अग्नि - पुत्र, अर्क - पिता),


      विवेक पद्म २.८.६७(शान्ति व क्षमा - पति, धारणा, धी व योग का पिता, आत्मा को बोध देना), भविष्य १.४१+, मार्कण्डेय ३७(अलर्क द्वारा आत्मविवेक), योगवासिष्ठ २.११.५८(विवेक वृक्ष के भोग और मोक्ष फल), ३.५३.३२(अविवेक रूप ज्वर की उष्णता रहने तक विवेक चन्द्रमा के उदित न होने का उल्लेख), ३.९९.६(विवेक द्वारा संसार अटवी में भ्रमण करते हुए मन रूपी महाकाय पुरुषों को देखने का आख्यान), ६.२.४८(विवेक का माहात्म्य), ६.२.९७(विवेक का विरलत्व), लक्ष्मीनारायण १.२८३.३८(विवेक के भ्राताओं में अनन्यतम होने का उल्लेख ), २.५२, ३.१८६.७८, ४.१०१.११२ viveka


      विश वायु ३१.६


      विशल्या पद्म ३.१३, ब्रह्म २.१००(विभीषण द्वारा मणिकुण्डल वैश्य के सञ्जीवन हेतु विशल्यकरणी का प्रयोग), ब्रह्माण्ड २.३.१३.१२(विशल्यकरणी), स्कन्द ५.३.२२.३४(शल्य - भेदित नर्मदा - पुत्र को विशल्य करने के कारण कपिला नदी का नाम ), लक्ष्मीनारायण १.५६४, कथासरित् ७.५.९०, vishalyaa


      विशाख अग्नि ३०५(विशाखयूप तीर्थ में विष्णु का अजित नाम), मत्स्य १५९.२(स्कन्द के विशाख नाम का कारण), लिङ्ग १.४९.६७(विशाख वन में किन्नर आदि का वास), १.५०.१०(विशाख पर्वत पर गुह का वास), वामन ६८, ६९, ९०.६(विशाखयूप तीर्थ में विष्णु का अजित नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर ३.७१, कथासरित् १.६.३३(विशाखिल वणिक् की शिक्षा से मृत मूषक से धन प्राप्ति की कथा ), ८.७.१८२, द्र. वंश वसुगण vishaakha/ vishakha


      विशाखा गर्ग ३.९.२३(राधा - सखी विशाखा का राधा की भुजाओं से प्राकट्य), ४.१९.४२(यमुना सहस्रनामों में से एक), ५.१७.१६(विशाखा यूथ की गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), देवीभागवत ७.३०.६५(विशाखा/विपाशा पीठ में अमोघाक्षी देवी का वास), पद्म ५.७०.६(कृष्ण - पत्नी, पूर्व दिशा में स्थिति), वामन ९२.२७(वामन विराट् रूप में भ्रूमध्य में विशाखा की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ७.४.१२.२९(विशाखा गोपी की कृष्ण से विरह पर प्रतिक्रिया ), वा.रामायण ६.१०२.३५(राम-रावण युद्ध के समय विशाखा नक्षत्र पर मंगल ग्रह की स्थिति का कथन), vishaakhaa/ vishakha

      Comments on Vishaakhaa


      विशाल अग्नि ११५, गणेश २.१०.१०(महोत्कट गणेश द्वारा अक्षतों में छिपे विशाल आदि पांच राक्षसों का वध), गरुड १.८४.३४(विशाल द्वारा गया में पिण्डदान से पुत्र प्राप्ति), नारद २.४४.२६(विशाल राजा द्वारा गया में पिण्ड दान करते समय सित, असित आदि पितरों का प्राकट्य), भागवत ९.२.३३(तृणबिन्दु व अलम्बुषा - पुत्र, वैशाली नगरी की स्थापना), मार्कण्डेय ६९, ११९, १२६, वराह ७ (विशाल नगर के राजा विशाल द्वारा पुत्रार्थ गया में श्राद्ध), ४८.६(विशाल द्वारा तप, नर - नारायण से संवाद, द्वादशी व्रत), ७७, स्कन्द ४.२.८३.१०२(विशाल तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), वा.रामायण १.४७(इक्ष्वाकु व अलम्बुषा - पुत्र, विशाला पुरी की स्थापना), लक्ष्मीनारायण १.५२७, १.५४६, २.१४०.१३, ९२(वैशाल प्रासाद के लक्षण), २.१४१.६७, २.२५०.६४विशालिक, ४.६५विशालरेख, कथासरित् ८.४.७५(चक्रवाल विद्याधर द्वारा हत ४ राजाओं में से एक), १२.२८.३(विशालापुरी में अनङ्गमञ्जरी कन्या द्वारा पति को त्याग अन्य का वरण करने का वृत्तान्त ) vishaala/ vishala


      विशाला नारद १.५०.३५, पद्म २.७७(अश्रुबिन्दुमती - सखी, ययाति से संवाद), वामन ५७.८३(विशाला द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), ७२.१५, ८१, स्कन्द २.३.५-८, ५.१.४७(विशाला पुरी के नाम का हेतु, शिव द्वारा पार्वती के लिए विशाला पुरी का निर्माण ), लक्ष्मीनारायण १.२०९.४७, vishaalaa/ vishalaa


      विशालाक्ष गर्ग ७.१०.२०(तैलङ्ग - राजा व मन्दारमालिनी - पति विशालाक्ष द्वारा प्रद्युम्न को भेंट),


      विशालाक्षी देवीभागवत ७.३८(अविमुक्त क्षेत्र में विशालाक्षी देवी की स्थिति), नारद २.३२(विरोचन - पत्नी विशालाक्षी द्वारा ब्राह्मण वेश धारी विष्णु का सत्कार, स्व आयु दान), भविष्य ३.२.२, स्कन्द ४.१.४१.१७२(षडङ्ग योग के अधिपतियों में द्वितीय), ४.२.७०.४(विशालाक्षी देवी का माहात्म्य), ४.२.७४.५६ (विशालाक्ष गण द्वारा काशी में पश्चिम द्वार की रक्षा), ७.१.६१(वैष्णवी देवी का रूप, माहात्म्य, ललिता व उमा उपनाम), लक्ष्मीनारायण १.२५२.३६(हेममाली यक्ष की पत्नी ) vishaalaakshee/ vishalakshi


      विशिष्ट अद्वैत लक्ष्मीनारायण ४.२५.७७


      विशुक्र ब्रह्माण्ड ३.४.१०.८०(विशुक्र की भण्डासुर के दक्षिण पार्श्व से उत्पत्ति), ३.४.२७(भण्डासुर - भ्राता व सेनानी, ललिता देवी की सेना के आगे जय यन्त्र का निर्माण, पलायन, गणपति से युद्ध), ३.४.२८.३७(विशुक्र का श्यामा से युद्ध व मृत्यु ), लक्ष्मीनारायण ३.११५.२८ vishukra


      विशुद्ध द्र. मन्वन्तर


      विशेष विष्णु १.२.४५(तन्मात्राओं की अविशेष संज्ञा का उल्लेख), १.२.५१(पांच इन्द्रियों की विशेष संज्ञा का कारण ), महाभारत शान्ति २१७.७(विशेष की परिभाषा ), आश्वमेधिक ४७.१३(महाभूतविशाखश्च विशेषप्रतिशाखवान्), vishesha


      विशोक पद्म १.२१(विशोक द्वादशी व्रत में देह में गोविन्द का न्यास), भविष्य ४.३८(विशोक षष्ठी व्रत में आदित्य पूजा), ४.८४(विशोक द्वादशी व्रत, लक्ष्मी नाम व पूजा), मत्स्य ७५(विशोक सप्तमी व्रत), ८१(आश्विन् द्वादशी नामक विशोक द्वादशी व्रत में विष्णु का न्यास व लक्ष्मी पूजा), १२१.१३(विशोक वन में मणिधर यक्ष का निवास), लिङ्ग १.१२.१०, वामन ५८.६७(विशोक द्वारा मुसल से असुर संहार), शिव ३.१.१५(२०वें रक्त नामक कल्प में ब्रह्मा के ४ पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.५७३, vishoka


      विशोका वामन ५७.९२(इन्द्र तीर्थ द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण का नाम), लक्ष्मीनारायण ३.७.७९,


      विश्रवा भविष्य ३.४.१३, ३.४.१५, भागवत ४.१.३६, ७.१.४३, मत्स्य १४५.९२(तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक), वायु ७०.३२, शिव २.१.१७, स्कन्द ३.१.४७, ४.१.१३,५.३.४१, ५.३.१६८.९, ७.१.२०, वा.रामायण ७.२.३१(पुलस्त्य - पुत्र, निरुक्ति ), ७.९, लक्ष्मीनारायण १.५६२, vishravaa


      विश्रामगुप्त लक्ष्मीनारायण ३.८९.६२


      विश्रान्ति पद्म ६.२१३(विश्रान्ति तीर्थ का माहात्म्य, कुशल विप्र की दुराचारा पत्नी का वृत्तान्त), वराह १५२, १६३.१९, १६३.६८(विश्रान्ति संज्ञक विष्णु की मूर्ति में उदय काल में वराह तेज की व्याप्ति), १६७(विश्रान्ति तीर्थ में ब्रह्मराक्षस की मुक्ति की कथा ) vishraanti/ vishranti


      विश्राम द्र. देवविश्राम, द्युविश्राम


      विश्लेषण अग्नि ३४८.११


      विश्व पद्म १.२०.१३५(विश्व व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), भविष्य ४.१९०(विश्वचक्र दान विधि), भागवत ७१५?, मत्स्य १०१.८३(विश्व व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), २८५(विश्वचक्र दान विधि), वामन ९०.२५(प्लक्षावतरण में विष्णु का विश्व नाम), वायु ६८.४/२.७.४(महाविश्व : दनु व कश्यप के १०० मुख्य पुत्रों में से एक), शिव २.५.३६.१३(शङ्खचूड - सेनानी, आदित्यों से युद्ध), स्कन्द ४.२.६१.११३(विश्व तीर्थ का माहात्म्य ), ५.२.५३(विश्वेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य के संदर्भ में विदूरथ राजा के विभिन्न योनियों में जन्म लेने और अन्त में लिङ्ग के दर्शन से मुक्त होने, लिङ्ग में ब्रह्माण्ड के दर्शन का वर्णन), ५.३.१९८.६५(अपर? तीर्थ में देवी की विश्वकाया नाम से स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.८१.१०६(विश्वायन), ४.१०१.११७वैश्वी vishva


      विश्वकर्मा अग्नि ५१, कूर्म १.४३.६(बुध ग्रह पोषक सूर्य रश्मि), गणेश २.९५.२(विश्वकर्मा का गणेश के दर्शन हेतु आगमन, पार्वती व गणेश की स्तुति, गणेश को सूर्य तेज से निर्मित परशु आदि भेंट करना), देवीभागवत ५.८.१८(विश्वकर्मा द्वारा देवी को परशु भेंट करना), ब्रह्म १.४७, १.६७, ब्रह्मवैवर्त्त १.१०(विश्वकर्मा का घृताची से नीति - धर्म विषयक संवाद, परस्पर शाप), ४.१७, ब्रह्माण्ड ३.४.१५.२०(विश्वकर्मा द्वारा ललिता को अङ्कुश भेंट), ३.४.३१(विश्वकर्मा द्वारा ललिता के भवन का निर्माण), भविष्य १.७९, १.१२१, ३.४.१९.५५(गन्ध तन्मात्रा के अधिपति के रूप में विश्वकर्मा का उल्लेख), ३.४.२०.१७(परा प्रकृति के देवों में से एक), ३.४.२५.३३(ब्रह्माण्ड के श्रवण से विश्वकर्मा की उत्पत्ति, विश्वकर्मा द्वारा रैवत मन्वन्तर की रचना), भागवत ८.१०.२९(विश्वकर्मा का मय से युद्ध), मत्स्य ५, लिङ्ग १.६०.२३(विश्वकर्मा नामक सूर्य रश्मि द्वारा बुध ग्रह का पालन), वामन ५४(विश्वकर्मा द्वारा शिव व पार्वती के लिए गृह का निर्माण), ६३.७५(विश्वकर्मा को ऋषि से वानरत्व शाप की प्राप्ति), ६४, विष्णुधर्मोत्तर ३.७१(विश्वकर्मा की मूर्ति का रूप), शिव २.५.३६.९(विश्वकर्मा का शङ्खचूड - सेनानी मय से युद्ध), स्कन्द १.१.२४, ३.२.१५, ४.२.८६(त्वष्टा - पुत्र, गुरु दक्षिणा प्राप्ति के लिए शिव की आराधना, शिल्प कला की प्राप्ति), ४.२.९७.६९(विश्वकर्मेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.११, ७.१.५८.३२(रावण द्वारा विश्वकर्मा की अंग संस्कार हेतु नियुक्ति का उल्लेख), ७.१.१९२(विश्वकर्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), वा.रामायण १.१७.१२(विश्वकर्मा का नल वानर रूप में अवतरण), ६२०, लक्ष्मीनारायण १.२००.७(ब्रह्मा की नाभि से विश्वकर्मा की उत्पत्ति का उल्लेख ), १.२९९, १.४७७(त्वष्टा - पुत्र, गुरु दक्षिणा प्राप्ति के लिए शिव की आराधना, शिल्प कला की प्राप्ति), १.४८६, २.५०, २.१४२.१०, २.१५७.२०, २.१६७, ३.१००.१३४, द्र. वंश वसुगण, vishvakarmaa


      विश्वकेतु भविष्य ३.४.२०


      विश्वक्सेन गरुड २.७.१०२(संतप्तक ब्राह्मण के विष्वक्सेन गण बनने का वृत्तान्त), ३.५.२८(घ्राणाभिमानी देवों में से एक), ३.८.१३(वायु-पुत्र विश्वक्सेन द्वारा हरि-स्तुति), नारद १.६७.१००(हरि के उच्छिष्ट भोजी के रूप में विश्वक्सेन का नामोल्लेख), भागवत ८.१३.२३(विश्वक्सेन अवतार : विश्वसृज व विषूची - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर ३.३५४(द्विज, शिव लिङ्ग से नृसिंह रूप के प्राकट्य का प्रसंग), हरिवंश १.२०.२८(ब्रह्मदत्त - पुत्र, पूर्व जन्म में विभ्राज ), द्र. विष्वक्सेन vishvaksena


      विश्वग भागवत ४.१.१४


      विश्वजित् भागवत ८.१५.५(विश्वजित् यज्ञ में बलि राजा के लिए रथ आदि का प्रकट होना - ततो रथः काञ्चनपट्टनद्धो हयाश्च हर्यश्वतुरङ्गवर्णाः। ध्वजश्च सिंहेन विराजमानो हुताशनादास हविर्भिरिष्टात्॥), महाभारत अनुशासन १०६.५०(प्रति मास एक बार जल पीकर रहने से विश्वजित् यज्ञ के फल की प्राप्ति का उल्लेख -संवत्सरमिहैकं तु मासिमासि पिबेदपः। फलं विश्वजितस्तात प्राप्नोति स नरो नृप।। ) vishvajit


      विश्वज्योति अग्नि १०७


      विश्व, तैजस, प्राज्ञ पद्म २.३९.२१(विश्व, तैजस आदि की परिभाषा )


      विश्वदत्त कथासरित् २.२.१५८(विश्वदत्त द्वारा श्रीदत्त - पत्नी मृगाङ्कवती की रक्षा करने का कथन), ६.७.३७(कनिष्ठ विश्वदत्त द्वारा भ्राताओं की आज्ञा का पालन कर विपत्तियों से पार होने की कथा, छिन्न पाद - पाणि की पुन: प्राप्ति आदि ) vishvadatta



      विश्वदेव गणेश २.१०५.७(विश्वदेव असुर का विप्र रूप धारण कर आगमन, गणेश द्वारा विश्वेश नारायण का रूप धारण कर दर्शन देना), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९५(शाक्त देवगण ) vishvadeva


      विश्वधर ब्रह्म २.१८(विश्वधर वैश्य के पुत्र के मरण पर शोक से मय का द्रवित होना), वामन ९०.५(गोकर्ण तीर्थ में विष्णु का विश्वधारण नाम ) vishvadhara


      विश्वनन्दी शिव ३.१


      विश्वनाथ स्कन्द ३.१.३४


      विश्वप्रिया लक्ष्मीनारायण १.३११.३६


      विश्वभावन शिव ३.१


      विश्वभुक् गरुड १.८७(स्वायम्भुव मन्वन्तर में इन्द्र), ब्रह्माण्ड १.२.३०(विश्वभुक् इन्द्र द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान, उपरिचर वसु के पतन की कथा), वायु ५७.९१(विश्वभुक् इन्द्र द्वारा त्रेतायुग में हिंसायुक्त यज्ञ का अनुष्ठान, उपरिचर वसु के पतन की कथा), विष्णुधर्मोत्तर १.१७६(प्रथम मन्वन्तर के इन्द्र ) vishvabhuk


      विश्वभुजा स्कन्द ४.२.७०.२३(विश्वभुजा देवी की महिमा), ४.२.७८+ (धर्मपीठ में पार्वती की विश्वभुजा नाम से स्थिति व पूजा विधि), ४.२.८०.६ (धर्मपीठ में विश्वभुजा देवी की स्थिति, तृतीया तिथियों में विश्वभुजा देवी की पूजा व व्रत की विधि ) vishvabhujaa


      विश्वम्भर गरुड २.६.५०(विश्वम्भर वैश्य का लोमश ऋषि से संवाद), नारद १.३६.३८(दुष्ट वैश्य विश्वम्भर द्वारा विष्णु मन्दिर में सेवा कार्य से यज्ञमाली ब्राह्मण बनना), स्कन्द ४.१.२०.११(विश्वम्भर शब्द की निरुक्ति ), लक्ष्मीनारायण २.१०५.२८ vishvambhara


      विश्वमुखी स्कन्द ५.३.१९८.८४


      विश्वमूर्ति नारद १.६६.९५(विश्वमूर्ति विष्णु की शक्ति क्लिन्ना का उल्लेख),


      विश्वरथ ब्रह्म १.८.५६(विश्वामित्र के पुत्रों में से एक?), हरिवंश १.२७.४४(विश्वामित्र का उपनाम ) vishvaratha


      विश्वरन्धि देवीभागवत ७.८


      विश्वरूप गरुड ३.२२.८१(अन्तर में विश्वरूप की स्थिति का उल्लेख), देवीभागवत ६.१(त्वष्टा - पुत्र, विशीर्ष, इन्द्र द्वारा वध, तीन मुखों से पक्षियों का निष्क्रमण), पद्म ६.२४३, ब्रह्म २.९५(विष्टि - पति, गण्ड, हर्षण आदि पुत्र, हर्षण द्वारा परिवार के लिए भद्रता प्राप्ति), २.९८(त्वष्टा - पुत्र, अभिष्टुत राजा के हयमेध में विघ्नकारी असुरों के हनन का उद्योग), २.१०३(विश्वरूप का महाभीम आकार ; भीम तनु का ध्यान करके अग्नि में आहुति से वृत्र का जन्म), ब्रह्मवैवर्त्त ४.४७, ब्रह्माण्ड १.२.१३.९४(अजित देवगण में से एक), ३.४.९.१२ (विश्वरूप के देवों के पुरोहित बनने पर इन्द्र द्वारा वध), भागवत ६.६, ६.७(त्वष्टा - पुत्र, देवों द्वारा गुरु रूप में वरण), ६.९(त्रिशीर्ष विश्वरूप का वर्णन, इन्द्र द्वारा वध), वामन ८२.४०(विश्वरूपाक्ष : चक्र द्वारा कर्तित शिव के ३ भागों में से एक), ९०.१२(कशेरु देश में विष्णु का विश्वरूप नाम से वास), वायु २३.३६(विश्वरूप कल्प नाम व वर्णन), १.२३.८५/ २३.७८(अजा के विश्वरूप होने का उल्लेख), ३१.७, ६५.८५(त्वष्टा व यशोधरा - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर ३.८३(विश्वरूप की मूर्ति का रूप), ३.११९.१०(विश्वरूप की शिल्पारम्भ काल में पूजा), ३.३४९, ३.३५१ (वासुदेव द्वारा विश्वरूप को स्व - विभूति का वर्णन), शिव २.४.२०, स्कन्द १.१.१५, ५.१.२७.१८, ५.१.२८.४४(विश्वरूप की करीकुण्ड पर आराधना), ५.२.३४.२(विश्वरूप का कुशध्वज से साम्य ?), योगवासिष्ठ ६.२.८३, लक्ष्मीनारायण १.४८.५(त्वष्टा व रचना - पुत्र, इन्द्र द्वारा वध की कथा ), १.१०८, १.५७४, vishvaroopa/ vishvaruupa/ vishvarupa


      विश्वविजय कथासरित् १२.३६.१९६


      विश्ववेदा मत्स्य ५१.२५ (विश्ववेदा अग्नि का ब्राह्मणाच्छंसी उपनाम),


      विश्ववेद्य मार्कण्डेय ११७(खनित्र का मन्त्री )


      विश्वव्यचा लिङ्ग १.६०.२३(सूर्य की विश्वव्यचा रश्मि द्वारा शुक्र ग्रह का पोषण ) vishvavyachaa


      विश्वशर्मा वायु ७२.८३


      विश्वसेन स्कन्द ५.१.४१.१८


      विश्वश्रवा कूर्म १.४३.६(सूर्य की विश्वश्रवा रश्मि द्वारा शुक्र ग्रह का पोषण )


      विश्वस्फूर्ज भविष्य ३.४.२३.८४(पुरञ्जय व पुरञ्जनी - पुत्र, विष्णु का अंश )


      विश्वा नारद १.६६.९२(कुशी विष्णु की शक्ति विश्वा का उल्लेख), पद्म १.४०.९२(धर्म व विश्वा से १० विश्वेदेवों की उत्पत्ति), भविष्य ३.४.२०.२३(विश्वेदेवों को जन्म देने वाली शक्ति विश्वा का कथन), भागवत ६.६.७(धर्म की १० पत्नियों में से एक, दक्ष-कन्या, विश्वेदेवों की माता), मत्स्य ५.१७(धर्म व विश्वा के पुत्रों के रूप में विश्वेदेवों का उल्लेख), ६.४६(विश्वा व कश्यप से यक्षों-राक्षसों की उत्पत्ति का उल्लेख), १३.२९(विश्वेश्वर में देवी के विश्वा नाम का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१९८.६७(विश्वेश्वर में देवी के विश्वा नाम का उल्लेख), ७.१.१०८.६(दक्ष की ६० कन्याओं में से एक तथा धर्म-पत्नी विश्वा द्वारा ८ वसुओं को जन्म देने का कथन), हरिवंश ३.१४.५०(विश्वेदेवों की धर्म व विश्वा से उत्पत्ति), महाभारत शान्ति ३१८.३७(विश्वा के गुणों में व्यक्त होने वाली त्रिगुणमयी अव्यक्त प्रकृति तथा अविश्व के निष्कल पुरुष होने का कथन), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०५(कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, अश्ववाहन व श्रुति – माता)


      विश्वाची गरुड १.१६६.४२(वायु प्रकोप का नाम), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१३(विश्वाची अप्सरा की सूर्य रथ में स्थिति ), हरिवंश १.३०.९१, योगवासिष्ठ ४.१०.५४, द्र. रथ सूर्य vishvaachee/ vishvachi


      विश्वानर भविष्य ३.४.१६ शिव ३.८,स्कन्द ४.१.१०.४४(शुचिष्मती - पति विश्वानर मुनि की गृहस्थ धर्म में आस्था, विश्वेश्वर/वीरेश्वर शिव की कृपा से वैश्वानर पुत्र प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण १.४५९, vishvaanara/ vishvanara


      विश्वान्तर कथासरित् १६.३.८(विश्वान्तर चक्रवर्ती के इन्दीवर नामक पुत्र के शोक से मरण का कथन)


      विश्वामित्र कूर्म १.२०.३९(विश्वामित्र द्वारा वसुमना राजा को मुक्ति के उपाय का कथन), १.२२.६८(विश्वामित्र द्वारा जयध्वज राजा को नारायण माहात्म्य का कथन), गणेश १.१९.२६, ३.७.७१(विश्वामित्र द्वारा हरि-स्तुति), गरुड ३.७.७१(विश्वामित्र द्वारा हरि-स्तुति), देवीभागवत ३.१७.६(विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ की गौ के हरण की चेष्टा), ६.१०, ६.१३.३५(विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ के यजमान हरिश्चन्द्र को यातनाएं देने पर वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र को बक होने का शाप, विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ को प्रतिशाप), ७.१३+ (विश्वामित्र का स्वपत्नी से वार्तालाप, विश्वामित्र द्वारा उपकारी त्रिशङ्कु को सशरीर स्वर्ग भेजने की कथा), पद्म १.१९.२५९(हेमपूर्ण उदुम्बर की प्राप्ति व मृणाल चोरी पर विश्वामित्र की प्रतिक्रिया), १.४०.८७(साध्यगण में से एक), ब्रह्म १६, १.८.५८(विश्वामित्र के पुत्रों के नाम), २.२३(विश्वामित्र तीर्थ का माहात्म्य, दुर्भिक्ष में विश्वामित्र द्वारा श्व मांस भक्षण की चेष्टा, श्येन रूपी इन्द्र द्वारा मांस का हरण, इन्द्र द्वारा वृष्टि करना), २.७७(विश्वामित्र द्वारा तप में विघ्नकर्त्री गम्भीरातिगम्भीर अप्सरा-द्वय को शाप), २.१०२, २.१०३.३(दाक्षिणेयी गङ्गा के वासिष्ठी व उत्तरी गंगा के वैश्वामित्री होने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१६८(जार / उपपति के निन्दित, अवैदिक एवं विश्वामित्र द्वारा निर्मित होने का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.४७.४८(परशुराम के अश्वमेध यज्ञ में होता), २.३.६३.८८(विश्वामित्र की त्रिशङ्कु पर कृपा), २.३.६६.५८(चरु विपर्यास से विश्वामित्र के जन्म का वृत्तान्त, विश्वरथ अपर नाम वाले विश्वामित्र के पुत्रों के नाम), भविष्य १.१६.५६(प्रतिपदा व्रत से विश्वामित्र द्वारा ब्राह्मणत्व प्राप्ति का कथन), ३.४.२१.१३(गोत्रकार ऋषियों में एक, पाठकी? - पति), ४.१३०.९(त्रिशङ्कु के लिए नई सृष्टि के प्राणियों के नाम, दीप दान से कल्याण), भागवत ९.१६.२९(विश्वामित्र द्वारा १०० पुत्रों में से ५० को शाप व ५० को वरदान, शुन:शेप की देवरात नाम से पुत्र रूप में स्वीकृति), मत्स्य १९८(विश्वामित्र का वंश, गोत्र/प्रवर), मार्कण्डेय ७(दक्षिणा के विषय में विश्वामित्र - हरिश्चन्द्र संवाद), ८.२४१/८.२३४(विश्वामित्र की निरुक्ति – विश्वत्रय जिससे मैत्री करने में सक्षम न हो), ९(आडि - बक युद्ध), वामन ३९, ४०(सरस्वती द्वारा वसिष्ठ का अपवहन), ९०.३३(घटित? में विष्णु का विश्वामित्र नाम), वायु ९१.९४( शुनःशेप की संक्षिप्त कथा, विश्वामित्र के पुत्रों/गोत्रों के नाम), विष्णु ४.७(गाधि से विश्वामित्र की उत्पत्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर १.३४(च्यवन की कृपा से विश्वामित्र का भावी ब्राह्मणत्व), १.११४(गोत्रकार विश्वामित्र), स्कन्द १.१.१८.७८(बलि द्वारा विश्वामित्र को दान में उच्चैःश्रवा अश्व व वसिष्ठ को कामधेनु आदि देने का कथन), १.२.२९.१२३( विश्वामित्र द्वारा कुमार की स्तुति), १.३.१.६.८१(विश्वामित्र की शोणाद्रि के दक्षिण में स्थिति का उल्लेख), २.४.१२.४७(व्याध द्वारा विश्वामित्र से कार्तिक माहात्म्य श्रवण, मुक्ति), २.८.५(कौत्स द्वारा गुरु विश्वामित्र को दक्षिणा देने की कथा), ३.१.२३.२७(यज्ञ में प्रतिप्रस्थाता, वसिष्ठ ब्राह्मणाच्छंसी आदि), ३.१.३९(विश्वामित्र द्वारा कपि तीर्थ में तप, रम्भा को शाप से शिला बनाना), ३.१.४९.६४(विश्वामित्र इत्यादि द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ६.४+ (विश्वामित्र द्वारा त्रिशङ्कु के साथ तीर्थयात्रा, त्रिशङ्कु के स्वर्ग प्रापक यज्ञ का अनुष्ठान, नूतन सृष्टि रचना), ६.३२.५१(हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर विश्वामित्र की प्रतिक्रिया), ६.४२+ (विश्वामित्र कुण्ड की उत्पत्ति, विश्वामित्र द्वारा मेनका के प्रणय अनुरोध को अस्वीकार करने पर जरा प्राप्ति का शाप - प्रतिशाप, कुण्ड में स्नान से मुक्ति), ६.४५(तपोरत विश्वामित्र द्वारा त्रिपुष्कर के दर्शन, तीन पुष्करों के लक्षण, बृहद्बल राजा से भेंट), ६.९०.५४(विश्वामित्र द्वारा दुर्भिक्ष में शुन: मांस भक्षण की चेष्टा, अग्नि का अदृश्य होना), ६.१६५, ६.१६७(विश्वामित्र की उत्पत्ति का वर्णन, वसिष्ठ की गौ की याचना, वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र की पराजय, तप के लिए वन गमन), ६.१६८(विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ वधार्थ कृत्या उत्पन्न करना, कृत्या का नष्ट होना), ६.२१२(विश्वामित्र तीर्थ का माहात्म्य, रत्नाक्ष नृप की कुष्ठ से मुक्ति), ६.२१४.१९(विश्वामित्र द्वारा ब्राह्मणत्व प्राप्ति हेतु गणपति पूजा), ६.२६९.१२१(विश्वामित्र ह्रद में स्नान से इन्द्र के हाथ से वृत्र कपाल का मोचन, ब्रह्महत्या से मुक्ति), ७.१.२५५(हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर विश्वामित्र की प्रतिक्रिया), ७.१.२८९(विश्वामित्र द्वारा स्थापित पातालगङ्गेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश १.१२, १.२७.४४(उपनाम विश्वरथ, पत्नियों व पुत्रों के नाम), महाभारत शल्य ४२.४(वसिष्ठ आश्रम पूर्व में तथा विश्वामित्र आश्रम पार्श्व/पश्चिम में होने का कथन, सरस्वती द्वारा वसिष्ठ को बहाकर लाने की कथा), योगवासिष्ठ १.६+ (राक्षस विनाश हेतु दशरथ से राम की प्राप्ति की कथा), वा.रामायण १.१८.३९+ (विश्वामित्र द्वारा दशरथ से राम की मांग), १.२०, १.५१, १.५२(राजा विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ की कामधेनु प्राप्ति की लालसा का प्रसंग), १.५५+ (कामधेनु द्वारा सृष्ट सेना से विश्वामित्र की पराजय, तप, वसिष्ठ पर अस्त्र प्रयोग, ब्रह्मदण्ड से पराजय), १.५७(विश्वामित्र द्वारा दक्षिण दिशा में तप, त्रिशङ्कु का यज्ञ कराना), १.६०(त्रिशङ्कु हेतु नई सृष्टि की रचना), १.६१(विश्वामित्र द्वारा पश्चिम दिशा में पुष्कर में तप, यज्ञ - पशु शुन:शेप की रक्षा, मेनका द्वारा तपोभङ्ग), १.६३.२६(विश्वामित्र द्वारा उत्तर दिशा में तप, रम्भा द्वारा विघ्न व शाप प्राप्ति), १.६५(विश्वामित्र द्वारा पूर्व दिशा में तप, ब्राह्मणत्व प्राप्ति), १.६५(वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र के ब्राह्मणत्व की स्वीकृति), लक्ष्मीनारायण १.२५६, १.४१०, १.४९५, १.५०६, २.८२, ३.९४, कथासरित् ६.६.९८(विश्वामित्र - निर्मित इक्षुमती पुरी वा नदी का उल्लेख ) vishvaamitra/ vishvamitra/vishwamitra

      विश्वामित्र के याग का रहस्य


      विश्वायु पद्म १.४०(मरुतों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.१३६.२२(पुरूरवा व उर्वशी - पुत्र ) vishvaayu/ vishvayu


      विश्वार्चि लक्ष्मीनारायण १.३११.४४


      विश्वावसु गरुड १.४१.१(विश्वावसु गन्धर्व का कन्याओं पर आधिपत्य), ३.९.४(अजानज देवों में से एक), देवीभागवत २.८+ (विश्वावसु गन्धर्व व मुनि, विश्वावसु व मेनका से प्रमद्वरा कन्या का जन्म), पद्म १.४०.९०(वसु व धर्म के ८ पुत्रों में से एक), ब्रह्म २.६२ (पिप्पला - भ्राता, शापित भगिनी की मुक्ति का उद्योग), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१०(विश्वावसु गन्धर्व की सूर्य रथ में स्थिति), भविष्य ३.२.१५.२६ (विश्वावसु राजपुत्र का उल्लेख), भागवत ४.१८.१७(गन्धर्वों द्वारा पृथिवी दोहन में विश्वावसु के वत्स बनने का उल्लेख), ११.१६.३३, मत्स्य १७१.४६, महाभारत वन २७९.४२(कबन्ध के पूर्वजन्म में विश्वावसु गन्धर्व होने का उल्लेख), वामन ५९, ६९, स्कन्द २.२.७(विश्वावसु शबर द्वारा विद्यापति को नीलमाधव का दर्शन कराना), ३.१.४, ३.२.१०(विश्वावसु गन्धर्व की कन्याओं का वणिजों द्वारा ग्रहण), ५.१.३१(सुनेत्र - पुत्र, यवक्रीत शाप से पिता की हत्या, किम्पुन: तीर्थ में स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्ति), ६.१८७(पुलस्त्य - पुत्र, ब्रह्मा के यज्ञ में पशु मांस भक्षण से राक्षसत्व की प्राप्ति, भोजन की व्यवस्था), ६.१९७, ७.३.१४, ७.४.१७.१३(द्वारका के पूर्व में विश्वावसु गन्धर्व की स्थिति का उल्लेख), हरिवंश ३.५.२५(इन्द्र के कृत्य से कुपित जनमेजय की विश्वावसु द्वारा शान्ति), वा.रामायण ७.५, ७.६१.१७ (विश्वावसु व अनला से उत्पन्न कन्या कुम्भीनसी के मधु असुर की भार्या बनने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४०८.१२(विश्वावसु गन्धर्व द्वारा तप करके नारद को उपबर्हण पुत्र रूप में प्राप्त करना), १.५११, ४.१०१.११७, कथासरित् ४.२.४७(विश्वावसु की कन्या के जीमूतवाहन की भार्या बनने का वृत्तान्त), ८.५.६९(विश्वावसु के क्षेत्र में बुध से उत्पन्न भद्रङ्कर का उल्लेख), १२.२३.३९(विश्वावसु की सुता मलयवती के जीमूतवाहन की भार्या बनने का वृत्तान्त ), ऋ. १.१७६.३, ६.४५.८, ९.१८.४, ९.९०.१, vishvaavasu/ vishvavasu


      विश्वास अग्नि २१४.१६(संवत्सर? में विश्वास के धन होने का उल्लेख), शिव ३.१३(विश्वासनर की शुचिष्मती पत्नी व गृहपति पुत्र का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३१९.९, १.४०२.२८(विश्वासघात के संदर्भ में धर्मगुप्त, ऋक्ष व सिंह का आख्यान), ३.१९८.३३(विश्वास न करने योग्य पात्रों का वर्णन ) vishvaasa/ vishvasa


      विश्वेदेव/विश्वेदेवाः गरुड १.२१९.३(श्राद्ध में वसु सत्य संज्ञक विश्वेदेवों का आह्वान ), ३.५.३८(रैवन्तेय आदि दस रुद्रों व पुरूरवा आदि १० विश्वेदेवों के नाम), देवीभागवत ४.२२.४०(विश्वेदेवों के द्रौपदी - पुत्रों के रूप में अवतरण का उल्लेख), नारद १.११९.५०(पौष शुक्ल विश्वेदेव दशमी पूजा, विश्वेदेवों के क्रतु, दक्ष आदि नाम), पद्म १.६.१७(विश्वा – पुत्र), १.९.१३६ (पितृश्राद्ध में विश्वेदेवों की पूजा की विधि), १.४०.९२(विश्वेदेवों की धर्म व विश्वा से उत्पत्ति, दक्ष, पुष्कर आदि १० नाम), ६.६.९२(विश्वेदेवों का जालन्धर - सेनानी जम्भ से युद्ध), ६.४०, ६.४१.४४(विश्वेदेवों द्वारा सुकेतुमान को पुत्रदा एकादशी व्रत का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.१२.२९(धिष्ण्य अग्नियों में वैश्वदेव अग्नि की ब्राह्मणाच्छंसी संज्ञा - ततोऽग्निर्वैश्वदेवस्तु ब्राह्मणाच्छंसिरुच्यते ), २.३.३.३०(१० विश्वेदेवों के नाम), २.३.१२.३ (विश्वेदेवों की उत्पत्ति, श्राद्ध में स्थान), भविष्य १.५७.२०(विश्वेदेवों हेतु ओदन बलि का उल्लेख), ३.४.२०.२३(विश्वेदेवों को जन्म देने वाली शक्ति विश्वा का कथन), भागवत २.३(राज्य प्राप्ति की कामना हेतु विश्वेदेवों की उपासना), ६.६.७(विश्वा व धर्म-पुत्र विश्वेदेवों के अप्रजा होने का उल्लेख), ८.१०.३४(विश्वेदेवों के पौलोमों से युद्ध का उल्लेख - विश्वेदेवास्तु पौलोमै रुद्राः क्रोधवशैः सह ।), मत्स्य ५.१७(धर्म व विश्वा के पुत्रों के रूप में विश्वेदेवों का उल्लेख), १७.१४(श्राद्ध में विश्वेदेवों की यव व पुष्पों द्वारा अर्चना का निर्देश, अर्चन मन्त्र - विश्वान्‌ देवान्‌ यवैः पुष्पैरभ्यर्च्यासनपूर्वकम्।। पूरयेत्पात्रयुग्मन्तु स्थाप्य दर्भ पवित्रकम्।), १८?(विश्वेदेवों का सपिण्डीकरण श्राद्ध में स्थान), २३.२२(चन्द्रमा के राजसूय में चमसाध्वर्यु), १७१.४८(विश्वेदेवों की विश्वा व धर्म से उत्पत्ति, दक्ष, पुष्कर आदि नाम), २०३.१२(विश्वेदेवों के क्रतु, दक्ष आदि नाम), मार्कण्डेय ७.६२(५ विश्वेदेवों द्वारा हरिश्चन्द्र के प्रति करुणा प्रकट करना, विश्वामित्र द्वारा विश्वेदेवों को मनुष्य योनि प्राप्त करने का शाप, विश्वेदेवों का द्रौपदी-पुत्रों के रूप में अवतरण), लिङ्ग १.७४.३(विश्वेदेवों द्वारा रौप्य लिङ्ग की पूजा), वामन ६६.३१, ६९.५७(विश्वेदेवों का विष्वक्सेन के नेतृत्व में कालनेमि से युद्ध), वायु ३१.८( ), ६६.३१(१० विश्वेदेवों के क्रतु, दक्ष आदि नाम), १०१.३०/२.३९.३०(विश्वेदेव आदि की भुव: लोक में स्थिति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.१२(विश्वेदेवों में रोचमान की श्रेष्ठता का उल्लेख), १.८२(खण्डयुगेश्वर), १.२३९.४(रावण द्वारा द्रष्ट विश्वरूप पुरुष के कटिभाग में विश्वेदेवों के स्थित होने का उल्लेख), २.९२.१(स्मार्त अग्नि पर वैश्वदेव कर्म की विधि), ३.१७६(विश्वेदेव दशमी पूजा कथन तथा दस विश्वेदेवों के नाम), ३.३२१.१४(स्वाचार से वैश्वदेव लोक की प्राप्ति), शिव २.१.१२.३२(विश्वेदेवों द्वारा रौप्य लिङ्ग की पूजा), ३.२९, स्कन्द १.२.१३.१५१(शतरुद्रिय प्रसंग में विश्वेदेवों द्वारा रौप्यज लिङ्ग की जगतांपतिं नाम से पूजा), ३.१.४९(विश्वेदेवेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ३.१.४९.८२(विश्वेदेवों द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ६.२०६.५४ (इन्द्र के प्रेत श्राद्ध में न आने पर इन्द्र द्वारा विश्वेदेवों को शाप, विश्वेदेवों के अश्रुओं से कूष्माण्ड की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा विश्वेदेवों को उत्शाप), ६.२५२.३५(चातुर्मास में विश्वेदेवों की मधूक वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), हरिवंश ३.१४.५०(विश्वेदेवों की धर्म व विश्वा से उत्पत्ति, नाम), ३.५३.१०(विश्वेदेवों का वृषपर्वा से युद्ध), ३.५९, महाभारत शान्ति १५.१७(लोक में विश्वेदेव इत्यादि हन्ता प्रवृत्ति के देवों की अर्चना होने का उल्लेख), २९.२२(आविक्षित/मरुत्त के सत्रयाग में विश्वेदेवों के सभासद होने का उल्लेख), ३१७.५(मुख से प्राणों के उत्क्रमण पर विश्वेदेवों के लोक की प्राप्ति का उल्लेख), अनुशासन ६०.१७(तृतीय सवन के वैश्वदेव होने का उल्लेख), ९३.९२(१४२.३५)(विश्वामित्र द्वारा स्वयं के नाम की निरुक्ति : विश्वे-देवा मेरे मित्र इत्यादि), १५०.१८(लोक में कर्म के साक्षी देवों में एक), आश्वमेधिक १०.३०(विश्वेदेवों के लिए बहुरूप बलि का निर्देश), ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३४८(गौ के दोनों पार्श्वों में विश्वेदेवों की स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२७५.३५(पौष शुक्ल दशमी के संदर्भ में १० विश्वेदेवों के नाम), १.४४१.८९(वृक्ष रूपी श्रीहरि के दर्शन हेतु विश्वेदेवों के मधूक वृक्ष बनने का उल्लेख), १.५४३.७८(दक्ष द्वारा विश्वेदेवों को अर्पित ८ कन्याओं के नाम ), २.१५७.२१(विश्वेदेवों का ऊरुओं में तथा पितरों का जानुमध्य में न्यास), ३.१०१.६९(पीत धेनु दान से पितृलोक तथा कर्बुरा दान से विश्वेदेव लोक प्राप्ति का उल्लेख), ४.९५.१३(१० विश्वेदेवों के नाम), vishvedeva


      विश्वेश्वर पद्म १.४०(सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.५१(विश्वेश्वर शिव से सर्वाङ्ग की रक्षा की प्रार्थना), शिव ४.२२(काशी में शिव लिङ्ग), स्कन्द ४.१.३३.१६९(शिव देह के दक्षिण कर का रूप), ४.१.४१.१७२ (षडङ्ग योग के देवताओं में प्रथम), ४.२.९६.३०(विश्वेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ४.२.९८+ (विश्वेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ५.२.५३.२३ (विश्वेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, विदूरथ राजा के १२ दुष्ट जन्मों का वृत्तान्त, विश्वेश द्वारा लिङ्ग की स्थापना ) vishveshwara/ vishveshvara


      विष अग्नि २५५.४५(विष द्वारा दिव्यता/सत्यानृत परीक्षा), २९५ (विषहर मन्त्रन्यास आदि), २९७(विष हरण मन्त्र व ओषधि), गणेश २.८८.३२(दुन्दुभि दैत्य द्वारा गणेश को विषयुक्त फल देना), २.९१.२(कूट दैत्य द्वारा जल को विषयुक्त करना), गरुड १.२७(विष नाशन मन्त्र), पद्म ६.२०६.५५, भविष्य १.३५(सर्प विष का शरीर में विस्तार व चिकित्सा), मत्स्य २१९(विष युक्त पदार्थों से राजा की रक्षा का उपाय), २१९.१७(सविष अन्न के धूम से विभिन्न पक्षियों की दशा का कथन), विष्णुधर्मोत्तर २.२७(विष निवारक ओषधियां), ३.३२८.६३(विष द्वारा सत्य परीक्षा), स्कन्द १.२.४४.४४(विष द्वारा पुरुष की दिव्यता परीक्षा), १.२.६२.१३(बाल रूप धारी रुद्र द्वारा कालिका के क्रोध रूपी दुग्ध का पान, क्रोध का रुद्र के कंठ का विष बनने का कथन), २.२.१६, ४.१.४१.११०(नित्य सोम कला से शरीर के पूर्ण होने पर तक्षक के विष का भी प्रभाव न होने का उल्लेख), ४.२.६८.८१(विष व व्याधिहारक, सुख सौभाग्य दायक मणिकुण्ड का उल्लेख), ६.४०.२७(विष विद्या विचक्षण मङ्कणक ऋषि के हाथ से शाकरस स्रवण व दर्प भङ्ग की कथा), हरिवंश १.२६, महाभारत आदि १२७.५७(१३८.२७)(जङ्गम विष द्वारा स्थावर विष के नाश का कथन - ततोऽस्य दश्यमानस्य तद्विषं कालकूटकम्।
      हतं सर्पविषेणैव स्थावरं जङ्गमेन तु।।), उद्योग १६.२६(नहुष की दृष्टि में तेजोहर विष होने का कथन - तेजोहरं दृष्टिविषं सुघोरं मा त्वं पश्येर्नहुषं वै कदाचित्।देवाश्च सर्वे नहुषं भृशार्ता न पश्यन्ते गूढरूपाश्चरन्तः ।।), योगवासिष्ठ १.२९.१३(विषय रूपी विष का निरूपण), लक्ष्मीनारायण १.३७०.८२(नरक में विष कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), २.७७.४८(हीरक दान से विष जन्य पाप के नष्ट होने का कथन - हीरकस्य प्रदानेन विषजन्यमघं तु यत् ।।), २.१७६.६६(ज्योतिष में योग ), २.२०९.३१विषतुरीय, ३.२१३(मङ्गलदेव चर्मकार की भक्ति से प्रसन्न भगवान् द्वारा स्वयं आकर विष नाश करने की कथा), ३.१६६, ४.३०विषलाणी visha


      विषकन्या स्कन्द ६.६१+ (वृक राजा की कन्या, पूर्व जन्म में गौ हत्या से विषकन्या, तप से पार्वती - सखी बनना ), ७.३.१४, लक्ष्मीनारायण १.४९० vishakanyaa


      विषय पद्म २.८६.७०(, भविष्य ३.२.२१विषयी, भागवत ११.१३(प्राणियों द्वारा विषय भोग का कारण), ११.२१.१९, वायु १०२.३६/२.४०.३६(विषय – अविषय का क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ, ब्रह्मा – क्षेत्र आदि से तादात्म्य), स्कन्द ३.१.४९.४१(विषय की व्याल रूप में कल्पना), ३.१.४९.४४(विषय की क्रूर पर्वत से उपमा), लक्ष्मीनारायण २.७८.३९(विषयों का दास रूप में उल्लेख ), २.२५५.४७, ४.४४.६५, vishaya


      विषाङ्ग ब्रह्माण्ड ३.४.१०.८१(विषाङ्ग दैत्य के भण्डासुर के वाम अंश से उत्पत्ति), ३.४.२१.४९(भण्डासुर - अनुज, ललिता के सम्बन्ध में अग्रज को परामर्श), ३.४.२५, ३.४.२८.३७(विषाङ्ग का दण्डनाथा से युद्ध व मृत्यु ), लक्ष्मीनारायण ३.११५.२९ vishaanga/ vishanga


      विषाण भविष्य १.२२.४०(गणेश के विषाण भूत – भवितव्य के प्रतीक), १.२२.४३, द्र. शृङ्ग


      विषुव ब्रह्माण्ड १.२.२१.६८(सूर्य की उत्तर, दक्षिण व विषुव गतियों का वर्णन), १.२.२१.१४७(शृङ्गवान् पर्वत के संदर्भ में विषुव काल की महिमा का वर्णन), मत्स्य ५३.५१(विषुव काल में मत्स्य पुराण आदि दान का निर्देश), विष्णु २.८.६५(१५ मुहूर्त के दिन का वैषुवत नाम), २.८.६७(शरद व वसन्त के मध्य विषुव होने का उल्लेख), २.८.७४(मेषादि व तुलादि में विषुव होने का उल्लेख), स्कन्द ७.१.२०१.४टीका(महाश्मशान में विषुव स्नान की परिभाषा : जहां श्वास - नि:श्वास समान रहे), लक्ष्मीनारायण ३.१२५.२०(विषुव अयन पर तुला पुरुष दान विधि का वर्णन ) vishuva


      विषुवत वायु ५०.१९९(शृङ्गवान् पर्वत के संदर्भ में सूर्य की विषुवान् स्थिति का वर्णन व महत्त्व), विष्णु २.८.७४(शृङ्गवान् पर्वत के संदर्भ में कार्तिक व वैशाख के विषुवत कालों में दान का निर्देश आदि), लक्ष्मीनारायण २.१५७.८(विषुवत् का अङ्गुलियों में न्यास ), कथासरित् १२.६.९७(विष्णुपद से विषुवती वितस्ता के प्राकट्य का उल्लेख ) vishuvata


      विषूची भागवत ५.१५.१५(विरज - भार्या, १०० पुत्र), ८.१३.२३(विश्वसृज - पत्नी, विश्वक्सेन अवतार की माता), योगवासिष्ठ १.१७.४२(तृष्णा की विषूचिका से उपमा), २.१२.१(विषूचिका की संसार विष से उत्पत्ति, वर्णन), ३.६९.१४(विषूचिका बीज मन्त्र का कथन), ६.१.७८.११(संसृति नामक विषूचिका का उल्लेख ) vishuuchee/ vishoochee/ vishuchi


      विषूचीन भागवत ४.२५.५५




      विष्कम्भ मत्स्य १२८.५७(सूर्य आदि ग्रहों के विष्कम्भ मान )


      विष्टप भविष्य ३.४.२४.७७(भूत विष्टप की कलियुग के तृतीय चरण में नरों द्वारा पूर्ति ), ३.४.२४.८०, द्र. त्रिविष्टप vishtapa


      विष्टर ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.२६(विष्टर श्रव से वायव्य दिशा की रक्षा की प्रार्थना )


      विष्टि नारद १.५६.२०८(विष्टि वृक्ष की ज्येष्ठा नक्षत्र से उत्पत्ति), ब्रह्म २.९५(सूर्य - पुत्री, विश्वरूप - पत्नी, गण्ड, हर्षण आदि की माता, हर्षण द्वारा तप से माता - पिता के लिए भद्रता प्राप्ति), भविष्य ४.११७(विष्टि व्रत : विष्टि को भद्रा करने का उपाय), मत्स्य ११, लक्ष्मीनारायण २.१६२.२(विष्टि जातीय शिबिका वाहक भक्त शतोढु का वृत्तान्त), ४.३४(विष्टि जातीया नारियों की कृष्ण भक्ति तथा विद्रुमा स्त्री की भक्ति की पराकाष्ठा का वर्णन ) vishti


      विष्णु अग्नि १, २१.२०(विष्णु पूजा विधि), २३(विष्णु पूजा विधि), ३६(विष्णु हेतु पवित्रारोपण विधि), ४८(विष्णु के २४ विग्रहों के शंख, चक्र, गदा, पद्म अनुसार लक्षण), ४९(विष्णु के मत्स्यादि अवतारों की प्रतिमाओं के लक्षण), ६३.१(विष्णु प्रतिष्ठा विधि), १८९(विष्णु का देह में न्यास), १९६(विष्णु का देह में न्यास), २१४.३१ (ब्रह्मणो हृदये स्थानं कण्ठे विष्णुः समाश्रितः । तालुमध्ये स्थितो रुद्रो ललाटे तु महेश्वरः ॥), २७०(विष्णु पञ्जर स्तोत्र का कथन), ३०५(तीर्थ अनुसार विष्णु के ५५ नाम, विष्णु का देह में न्यास), ३०७(विष्णु के त्रैलोक्य मोहन मन्त्र का वर्णन), ३७४.२८(अष्टदलकमल में विष्णु का स्वरूप), कूर्म १.४३.२२(पौष मास में सूर्य का नाम व रश्मि संख्या), २.३८.९(विष्णु द्वारा शिव - भार्या का रूप धारण कर शिव के साथ विचरण, विप्रों का कुपित होना), गणेश २.४७.३(विष्णु द्वारा बौद्ध रूप धारण कर दिवोदास - पालित काशी के जनों को मोह में डालना, दिवोदास को चतुर्भुज रूप दिखाना), गरुड १.८(विष्णुपूजोपयोगि वज्रनाभमण्डल निरूपण ), १.१३ (विष्णु पञ्जर स्तोत्र), १.१५(विष्णु सहस्रनाम), १.१६.१(विष्णु का ध्यान), १.३०(विष्णु परिवार सहित श्रीधर पूजा मन्त्र), १.३१(विष्णु परिवार सहित विष्णु की पूजा, स्तोत्र), १.४३(विष्णु हेतु पवित्र आरोपण विधि), १.१९४(वैष्णव कवच- विष्णुर्मामग्रतः पातु कृष्णो रक्षतु पृष्ठतः ।इति), १.२१३.६६(आहवनीय अग्नि का रूप - ब्रह्मा वै गार्हपत्याग्निर्दक्षिणाग्निस्त्रिलोचनः । विष्णुराहवनीयाग्निः कुमारः सत्य उच्यते ॥), १.२२७+ (विष्णु पूजा के महत्त्व का कथन), १.२३२( शिव द्वारा नारद को कुलामृत विष्णु स्तोत्र का कथन), १.२३४.५०(ब्रह्मा - प्रोक्त चक्रधार विष्णु स्तोत्र), २.३०.३९(आतुर हेतु विष्णु पूजा), ३.११.१९(विष्णु की नाभि से उत्पन्न पद्म की महिमा का कथन - तस्य नाभेरभूत्पद्मं सौवर्णं भुवनाश्रयम् । तत्प्राकृतं च विज्ञेयं भूदेवी त्वभिमानिनी ॥), ३.२२.५(विष्णु के ३२ लक्षण, ४ वर्णों में विष्णु की स्थिति, वाहन), ३.२२.७९(गोष्ठ में विष्णु की स्थिति का उल्लेख - गोष्ठे च नित्यं विष्णुरूपी हरिस्तु अश्वे सदा तिष्ठति वामनाख्यः ।), देवीभागवत १.४.४८+(विष्णु द्वारा ब्रह्मा से शक्ति के महत्त्व का निरूपण), १.५(महालक्ष्मी के शाप से विष्णु का शिरहीन होना, हयग्रीव बनना, हयग्रीव दैत्य का वध), १.९(विष्णु से युद्ध में अम्लान रहने पर देवी द्वारा मधु-कैटभ को सम्लान करना, मधु-कैटभ द्वारा विष्णु को वरदान से मृत्यु), ५.८.७०(विष्णु के तेज से देवी की बाहुओं की उत्पत्ति- अष्टादशभुजाकारा बाहवो विष्णुतेजसा । वसूनां तेजसाङ्गुल्यो रक्तवर्णास्तथाभवन् ॥), ६.१८?,९.३(महाविष्णु का महाविराट् रूप में राधा से प्राकट्य), नारद १.२.२१(नारद –सनत्कुमार संवाद में विष्णु की महिमा का कथन), १.१३(विष्णु पूजा का महत्त्व), १.३४(विष्णु अर्चना का माहात्म्य), १.३५(वेदमालि द्वारा जानन्ति से विष्णुअर्चना विषयक ज्ञान प्राप्ति), १.३८(उत्तङ्क द्वारा विष्णु की स्तुति), १.३९(विष्णु अर्चन की महिमा – वीतिहोत्र – जयध्वज संवाद), १.४२.२२(अनन्त विष्णु की उत्पत्ति का निरूपण), १.४७.५५ (विष्णु की धारणा हेतु विष्णु के स्वरूप का कथन – केशिध्वज-खाण्डिक्य संवाद), १.६६.८६(विष्णु के नामों से सम्बद्ध शक्तियों के नाम), १.७०.४८(विष्णु के चक्र, शङ्ख आदि आयुधों के वर्ण/रंग), १.७०.८६(विष्णु के ४ भेद- त्रैलोक्यमोहनस्तेषां प्रथमः परिकीर्तितः ।। श्रीकरश्च हृषीकेशः कृष्णश्चात्र चतुर्थकः ।।), १.७१.११४(विष्णु रक्षा कवच का वर्णन - माधवो मे कटिं पातु गोविन्दो गुह्यमेव च।
      नाभिं विष्णुश्च मे पातु जठरं मधुसूदनः ।।), १.१२०(विभिन्न नामों से एकादशी तिथियों में विष्णु की पूजा), २.५३.१०+ (इन्द्रद्युम्न द्वारा पुरुषोत्तम की स्तुति), पद्म १.१४(शिव द्वारा विष्णु की भुजा के रक्त को ब्रह्मकपाल में ग्रहण करना, नर की उत्पत्ति ), १.२०.८३(विष्णु व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), १.३०.३(विष्णु का स्व: लोक/वैकुण्ठ में वास, बाष्कलि के यज्ञ में वामन के आगमन की कथा), १.७२(माधव द्वारा हर रूप धारी मधु दैत्य का वध, मधुसूदन नाम प्राप्ति), १.७५.८४(विष्णु के वराह रूप द्वारा हिरण्याक्ष का वध, देवों द्वारा विजयनामक स्तोत्र द्वारा विष्णु की स्तुति), १.८३, १.९९, २.३९.१६(विष्णु की निरुक्ति - एतत्सर्वं जगद्व्याप्तं मया त्वव्यक्तमूर्तिना। अतो मां मुनयः प्राहुर्विष्णुं विष्णुपरायणाः), २.८६.८२(विष्णु के रूप का कथन), २.८७.५(विष्णु का सुपुत्रशत नामक स्तोत्र), ४.६.५(विष्णुरूपी ब्राह्मण को गृहदान का फल - विष्णवे सौधगेहं यो दद्याद्वै ब्राह्मणाय च। हरेर्न्निकेतनं प्राप्य स्वर्गवासी भवेद्ध्रुवम् ), ४.८.१६(विष्णु द्वारा देवों को समुद्रमन्थन का निर्देश), ४.१७.२५(विष्णु पादोदक का माहात्म्य, सुदर्शन विप्र द्वारा दुष्कर्म से काक योनि की प्राप्ति, विष्णु पादोदक से उद्धार), ४.२३(विष्णु पञ्चक का माहात्म्य, कार्तिक के अन्तिम पांच दिनों का माहात्म्य, दण्डकर शूद्र का उद्धार), ५.७०.६०(चार दिशाओं में द्वारपाल रूप विष्णु के स्वरूप), ५.१०३.२१(माधव विष्णु के स्वरूप का ध्यान), ६.६, ६.७१.११८(विष्णु सहस्रनाम), ६.९८, ६.१११(सावित्री शाप से विष्णु का कृष्णा नदी बनना), ६.१२०.५९(विष्णु से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन), ६.१३२, ६.१७५, ६.२१९, ६.२२४(विष्णु पूजा में स्वशरीर पर सुदर्शनादि चिह्न अङ्कन), ६.२२७(विष्णु का स्वरूप व महिमा), ६.२२७.५८(त्रिपाद्विभूति रूप का विवेचन), ६.२५३(विष्णु पूजा विधि व वैष्णवाचार का वर्णन), ६.२५५.४४(भृगु द्वारा शेषशायी विष्णु वक्ष पर सव्यपाद का प्रहार), ७.१०(विष्णु पूजा के संदर्भ में माघमास व चम्पक पुष्प का माहात्म्य, पूजा विधान, सुवर्ण भूप का चरित्र), ७.११(विष्णु पूजा विधि), ७.१७(दान्त - प्रोक्त १०८ विष्णु नाम, भद्रतनु द्वारा विष्णु की स्तुति), ब्रह्म १.६५(विष्णु लोक का वर्णन), १.११०(विष्णु द्वारा सूकर रूप में कोका नदी में स्थित पितरों का उद्धार), २.६६(विष्णु द्वारा मौद्गल्य को भोग प्रदान), २.९१.५७(आहवनीय आदि ३ अग्नियों पर विष्णु के शुक्ल आदि वर्णों का उल्लेख - शुक्लरूपधरो विष्णुर्भवेदाहवनीयके। श्यामो विष्णुर्दक्षिणाग्नेः पीतो गृहपतेः कवेः।।), ब्रह्मवैवर्त्त १.१७.१६(निरुक्ति - विषिश्च व्याप्तिवचनो नुश्च सर्वत्रवाचकः ।। सर्वव्यापी च सर्वात्मा तेन विष्णुः प्रकीर्त्तितः ।। ), २.२७.१२५(विष्णु याग का माहात्म्य), २.५४.७(गोलोक में महाविष्णु के आधार का कथन), ३.८.१९(विष्णु द्वारा विप्र वेश में शिव - पार्वती की रति को भङ्ग करना), ४.१२.२१(विष्णु से मेहन की रक्षा की प्रार्थना - वक्षः पातु मुकुन्दश्च जठरं पातु दैत्यहा । जनार्दनः पातु नाभिं पातु विष्णुश्च मेहनम् ।। ), ४.४७.८६(विष्णु का शिशु रूप में इन्द्र के पास जाना, इन्द्र व शिशु का संवाद), ४.९४.१०६ (विष्णु के प्राण रूप होने का उल्लेख - प्राणो विष्णुश्च विषयी मनो ब्रह्मा च चेतना ।।), ब्रह्माण्ड २.३.७२.१४१(भृगु - पत्नी का शिर काटने से विष्णु द्वारा सात बार जन्म लेने के शाप की प्राप्ति), ३.४.१५.२३(ललिता को छत्र भेंट- साम्राज्यसूचकं छत्रं ददौ लक्ष्मीपतिः स्वयम् ।), भविष्य १.२०१(विष्णु द्वारा ब्रह्मा से भास्करआराधनविधि की पृच्छा), २.१.१७.२(विष्णु : घृत प्रदीपन में अग्नि का नाम - घृतप्रदीपके विष्णुस्तिलयागे वनस्पतिः ।।), ३.४.२५.२०(अज के याम्य मुख से उत्पत्ति का उल्लेख - अजस्य याम्याज्जनितोऽहमादौ विष्णुर्महाकल्पकरोऽधिकारी।), भागवत ३.२६.६७(विष्णुर्गत्यैव चरणौ नोदतिष्ठत् तदा विराट् ।), ८.२१(विष्णु के अनुचर), १०.६.२२(विष्णु से भुजाओं की रक्षा की प्रार्थना - हृत्केशवस्त्वदुर ईश इनस्तु कण्ठं विष्णुर्भुजं मुखमुरुक्रम ईश्वरः कम् ॥), १०.८९.८(भृगु द्वारा विष्णु के वक्ष पर पदाघात, विष्णु की त्रिदेवों में श्रेष्ठता), मत्स्य ६९(विष्णु का देह में न्यास), ८१(विष्णु का देह में न्यास), ९९(विष्णु का देह में न्यास), १०१.३७(विष्णु व्रत), १०१.६४(विष्णु व्रत), लिङ्ग १.१८(विष्णु द्वारा शिव की स्तुति), १.७४.२(विष्णु द्वारा इन्द्रनीलमय लिङ्ग की पूजा - इन्द्रनीलमयं लिंगं विष्णुना पूजितं सदा।। पद्मरागमयं शक्रो हैमं विश्रवसः सुतः।।), १.९८ (विष्णु द्वारा सहस्रकमलों से सहस्रनाम द्वारा शिव की पूजा की कथा, सुदर्शन चक्र की प्राप्ति), वराह ४, ३१, ५५, ६२, ६७, ७२.५(विष्णु की निरुक्ति - विशप्रवेशने धातुस्तत्र ष्णु प्रत्ययादनु । विष्णुर्यः सर्वदेवेषु परमात्मा सनातनः ।।), १४०, वामन ४.४१(वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस, विष्णु से युद्ध), ५७.६३(विष्णु द्वारा स्कन्द को गणों की भेंट - स्थाणुं ब्रह्मा गणं प्रादाद् विष्णुः प्रादाद् गणत्रयम्। संक्रमं विक्रमं चैव तृतीयं च पराक्रमम् ), ६२.२१(विष्णु के हृदयकमल में शिव का वास), ७३(विष्णु द्वारा कालनेमि से युद्ध व वध), ८५.३१(गजेन्द्रकृत विष्णु स्तोत्र), ९०.८(ओषध पर्वत पर विष्णु का विष्णु नाम से वास, अन्य स्थलों पर अन्य नाम), ९०.३९(स्व: लोक में विष्णु की अव्यय विष्णु नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), ९४(विष्णु के विभिन्न नामों की अर्चना के फल), वायु ९७.१४०(विष्णु द्वारा भृगु - भार्या के वध पर भृगु द्वारा ७ बार अवतार का शाप), ९८.६९(विष्णु के क्रमिक अवतारों का वर्णन- जज्ञे पुनः पुनर्विष्णुर्यज्ञे च शिथिले प्रभुः।), १०४.८२(विष्णु की वैष्णव पीठ की ह्रदय कमल में स्थिति-शाक्तं जिह्वाग्र धिषणं वैष्णवं हृदयाम्बुजे।), १०९.५/ २.४७.५ (हेति असुर के वध हेतु विष्णु द्वारा देवों से गदा की प्राप्ति, गदाधर नाम), विष्णु १.२२.१६(विष्णु की विभूतियों के रूप में राजाओं की अधिपति पदों पर नियुक्ति), १.२२.६७(विष्णु के आयुधों के प्रतीकार्थ), २.८.१००(विष्णु के परम पद का निरूपण - अपुण्यपुण्योपरमे क्षीणाशेषाप्तिहेतवः। यत्र गत्वा न शोचन्ति तद्विष्णोः परमं पदम्), ३.८(विष्णु आराधना की विधि : सगर - और्व संवाद), ५.१.३४(पृथ्वी का भार हरण हेतु ब्रह्मा द्वारा विष्णु/अज की स्तुति, श्याम व सित केश रूप में अवतार), विष्णुधर्मोत्तर १.३(विष्णु का यज्ञ वराह रूप), १.१५.१२(हयशीर्ष धारण कर रसातल से वेदों की प्राप्ति, जिष्णु-विष्णु द्वारा मधु-कैटभ का वध), १.५३(विष्णु द्वारा नृवराह रूप में हिरण्याक्ष का वध), १.६७(विष्णु की शिव से श्रेष्ठता की स्पर्द्धा, एक-दूसरे के धनुष पर आरोपण की चेष्टा, असफलता, विष्णु के चाप का परशुराम आदि को स्थांतरण), १.१२५.१६(विष्णु द्वारा चक्र से कालनेमि का वध), १.१९०(विष्णु के अनेक रूप), ३.४७.३(विष्णु की मूर्ति के रूप का निर्माण - प्रतीकार्थ), ३.६०(विष्णु के गदा आदि आयुधों के प्रतीकार्थ), ३.८१(पद्मनाभ की प्रतिमा का रूप), ३.१०६.८३(विष्णु के अवतारों के आवाहन मन्त्र), ३.१५१(चतुर्मूर्ति व्रत – नर नारायण हय हंस अथवा नर नारायण हरि कृष्ण ), ३.३४४(कश्यप-निर्मित विष्णुस्तोत्र), शिव १.६+ (ईश्वरत्व प्राप्ति के लिए विष्णु की ब्रह्मा से स्पर्द्धा, शिव स्तम्भ के अन्त का अन्वेषण), २.१.४, २.१.६.४३(विष्णु की शिव व शक्ति से उत्पत्ति - विष्ण्वितिव्यापकत्वात्ते नाम ख्यातं भविष्यति।।), २.१.७(विष्णु की ब्रह्म से स्पर्द्धा, वराह रूप में लिङ्ग के अधोभाग का अन्वेषण), २.१.१०(विष्णु का शिव आज्ञा से अनेक रूप धारण), २.२.३९(क्षुव राजा के निमित्त विष्णु की दधीचि से कलह, पराजय, शाप प्राप्ति), २.५.३६.८(विष्णु का शङ्खचूड - सेनानी दम्भ से युद्ध), ३.२२.४५(विष्णु की समुद्र - संजात नारियों पर आसक्ति, शिव द्वारा वृषभ रूप में बोध), स्कन्द १.१.६.३३(ब्रह्मा व विष्णु द्वारा लिङ्ग - अन्त की खोज में असफलता), १.३.१.१.३१(वह्नि - स्तम्भ के अन्त का अन्वेषण करने में विष्णु की ब्रह्मा से स्पर्द्धा, विष्णु द्वारा वराह रूप धारण), १.३.२.८(विष्णु की शिव के वामाङ्ग से उत्पत्ति, ब्रह्मा से श्रेष्ठता की स्पर्द्धा), १.३.२.१०(ज्योतिस्तम्भ के अन्त का अन्वेषण करने का प्रसंग), २.१.३५.२७(विष्णु का माहात्म्य), २.२.१९.२१(विष्णु, बलराम आदि की दारुमूर्तियों में क्रमशः चिह्नों का प्रकट होना), २.४.१६.१(जलंधर के भय से देवों द्वारा विष्णु की संकष्टनाशनस्तोत्र द्वारा स्तुति), २.४.२१(विष्णु का जालन्धर से युद्ध, वृन्दा को माया का प्रदर्शन, परस्पर शाप), २.४.२६(विष्णुदास विप्र व राजा चोल की विष्णुभक्ति में स्पर्द्धा), ३.१.१४.२५(विष्णु की ब्रह्मा से श्रेष्ठता की स्पर्द्धा, लिङ्ग अन्त का अन्वेषण), ३.१.३७.१०(विष्णु द्वारा मुद्गल के लिए क्षीर सर का निर्माण), ३.१.५०(विष्णु द्वारा विप्र वेश में लक्ष्मी कन्या का ग्रहण, पुण्यनिधि राजा द्वारा विष्णु का बन्धन), ३.२.१५.४१(विष्णु द्वारा ब्रह्मा से अश्वशीर्ष पतन शाप की प्राप्ति), ३.२.१५.२३(विष्णु द्वारा धनुष धारण करके तप, वम्रि द्वारा ज्या छेदन से शिर कर्तन, हय शीर्ष से योजन), ४.१.८.९९(यम द्वारा शिवशर्मा को विष्णु के १०८ नामों का कथन), ४.१.२०.८(विष्णु शब्द की निरुक्ति - विष्लृव्याप्तावयंधातुर्यत्रसार्थकतां गतः।। ते विष्णुनाम स्वरूपे हि सर्वव्यापनशीलिनि ।।), ४.१.२३.४३(शिव द्वारा विष्णु का अभिषेक), ४.१.२६.४८(शिव के अङ्ग से विष्णु का प्राकट्य, काशी की उत्पत्ति), ४.२.५८.१७(विष्णु पादोदक तीर्थ का माहात्म्य), ४.२.५८.८०(काशी से दिवोदास के उच्चाटन के लिए विष्णु का पुण्यकीर्ति ब्राह्मण रूप में आना), ४.२.६१.२०७ (विष्णु के १०० जलशायी रूपों, २० कमठ, २० मत्स्य, १०८ गोपाल, ३० परशुराम, १०१ राम रूपों का उल्लेख), ४.२.६१.२१४(विष्णु के विभिन्न रूपों की मूर्तियों में भेद, आयुध अनुसार मूर्तियों के लक्षण - केशवादींश्चतुर्विंशद्भेदानाह प्रजापतिः ।।), ४.२.६१.२४४(विष्णु तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९५.१८(एको धर्मप्रदो विष्णुस्त्वेको बह्वर्थदो हरिः । एकः कामप्रदश्चक्री त्वेको मोक्षप्रदोच्युतः ।। ), ४.२.९५.४६(काशी में विष्णुकीर्तन से व्यास का भुजस्तम्भन), ५.१.३(विष्णु द्वारा शिव को भिक्षा रूप में भुजा के रक्त का दान, रक्त नर की उत्पत्ति), ५.१.६३.७५(विष्णु सहस्रनाम), ५.१.७०.३५(विष्णु के दस नाम), ५.३.१३.४३ (माहेन्द्रमग्निकल्पं च जयन्तं मारुतं तथा । वैष्णवं बहुरूपं च ज्यौतिषं च चतुर्दशम् ॥ एते कल्पा मया ख्याता न मृता येषु नर्मदा ।, ५.३.१४.२१(भगरूपो भवेद्विष्णुर्लिङ्गरूपो महेश्वरः ॥ भाति सर्वेषु लोकेषु गीयते भूर्भुवादिषु । प्रविष्टः सर्वभूतेषु तेन विष्णुर्भगः स्मृतः ॥ विशनाद्विष्णुरित्युक्तः सर्वदेवमयो महान् । भासनाद्गमनाच्चैव भगसंज्ञा प्रकीर्तिता ॥), ५.३.५५.२२(विष्णुस्तु पितृरूपेण ब्रह्मरूपी पितामहः । प्रपितामहो रुद्रोऽभूदेवं त्रिपुरुषाः स्थिताः ॥), ५.३.१०३.६२(हेमन्तश्च भवेद्विष्णुर्विश्वरूपं चराचरम् । पालनाय जगत्सर्वं विष्णोर्माहात्म्यमुत्तमम् ॥प्रावृट् ब्रह्मा, ग्रीष्म रुद्र), ५.३.१४६.४३(पितरः पितामहाश्चैव तथैव प्रपितामहाः । त्रयो देवाः स्मृतास्तात ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः ॥), ५.३.१४९.९(पौषे नारायणं देवं माघमासे तु माधवम् । गोविन्दं फाल्गुने मासि विष्णुं चैत्रे समर्चयेत् ॥), ५.३.१५७.१३(पूजायां प्रीयते रुद्रो जपहोमैर्दिवाकरः । शङ्खचक्रगदापाणिः प्रणिपातेन तुष्यति ॥), ५.३.१९१.१४(प्रलयकाल में विष्णु द्वारा सौम्य दिशा के तापन का उल्लेख), ५.३.२३१.२९(२८ वैष्णव तीर्थों की गणना), ६.१८०.२२(विष्णु द्वारा अग्निष्टोम यज्ञ में कृत्य - अकृत्य के परीक्षण का कथन), ६.२३९(विष्णु की षोडशोपचार पूजा), ६.२४७(विष्णु का शिव से एक्य, चातुर्मास में विष्णु का अश्वत्थ में वास, अश्वत्थ की महिमा), ६.२६२.५४(शिव पार्वती संवाद प्रसंग में विष्णु का विराट् रूप), ७.१.१६५, ७.३.३४(विष्णु की ब्रह्मा से स्पर्द्धा, लिङ्गान्त देखने की कथा, शंकर से वर प्राप्ति), ७.४.११(विष्णुपद तीर्थ का माहात्म्य), हरिवंश १.४२.१(विष्णु के वैभव का कथन - विश्वत्वं शृणु मे विष्णोर्हरित्वं च कृते युगे । वैकुण्ठत्वं च देवेषु कृष्णत्वं मानुषेषु च ।।), २.१२५(मार्कण्डेय - प्रोक्त हर-हरि एक्य), ३.१०.४९(विष्णु द्वारा एकार्णव में स्वमहिमा का वर्णन), ३.६८+ (कश्यप द्वारा विष्णु की स्तुति, विष्णु द्वारा कश्यप आदि को वर, अदिति गर्भ से वामन रूप में प्राकट्य), ३.७१( वामन के विराट् रूप का वर्णन), महाभारत शान्ति ३४१.३५(नारायण, वासुदेव आदि नामों की निरुक्तियां), अनुशासन १०९.३(विभिन्न मासों की द्वादशी तिथियों में विष्णु की विभिन्न नामों से अर्चना), योगवासिष्ठ १.१.६०(विष्णु द्वारा विभिन्न स्रोतों से शाप प्राप्ति का कथन), ६.१.१२८.१०(पादों में विष्णु का न्यास - विष्णौ तथात्मनः पादौ पायुं मित्रे तथैव च ।), लक्ष्मीनारायण १.९.१(विष्णु की देह के अङ्गों का स्वरूप), १.८७(शिव के निर्देश पर दिवोदास के उच्चाटन हेतु विष्णु का काशी गमन, विष्णुपादोदकी गंगा की प्रशंसा, विष्णु द्वारा छद्म वेश धारण आदि), १.२०२.४०(विष्णु की निरुक्ति : विषिश्च व्याप्तिवचनो नुश्च सर्वत्रवाचकः ।। सर्वव्यापी स वै विष्णुर्जीवदानं करोतु वै ।), १.२६५.८(विष्णु के नाम व उनकी पत्नियां), १.३३७(विप्ररूपधारी विष्णु द्वारा शंखचूड दानव से भिक्षा में कवच की प्राप्ति, शंखचूड रूप धारण कर तुलसी में वीर्याधान, तुलसी द्वारा विष्णु को शालग्राम पाषाणशिला होने का शाप आदि), १.४०७.२४(ख्याति द्वारा इन्द्र के बन्धन पर विष्णु द्वारा इन्द्र का स्वरूप में आकर्षण करके ले जाना व चक्र से ख्याति का वध, भृगु द्वारा विष्णु को शाप), १.४४१.९२(वृक्षरूपी कृष्ण के दर्शन हेतु विष्णु के शालवृक्ष बनने का उल्लेख), १.४६३.५८(गरुड द्वारा विष्णु की बाहु पर बैठकर गज-कच्छप के भक्षण की कथा), १.४८३.५३(त्रिदेवों में विष्णु के हेमन्त होने का उल्लेख - विष्णुरुवाच हेमन्तश्चाहं पुष्णामि सर्वथा ।। पालनीयं जगत् सर्वं ममाऽस्ति कार्यमुत्तमम् ।), १.५६२.३५(राजा विश्रवा द्वारा ओंकारेश्वर क्षेत्र में कल्पवृक्ष में विष्णु के दर्शन आदि), २.१२६, २.१४२.११(सुदर्शनकरा सव्ये पद्महस्ता तु वामतः । एतद् विष्णुनामकस्य रूपं सूर्यस्य कीर्तितम् ।। ), २.२६१.२८(विष्णु की निरुक्ति - वेवेष्टि व्याप्नोति चैषो व्यापको विष्णुरुच्यते ।), २.२७०.६४(अमरकन्या द्वारा तप से महाविष्णु का दर्शन व विवाह), ३.२१.६३(विष्णुनदीतट पर भक्ति या तप में श्रेष्ठता का विवाद), ३.२५.२९(प्रसविष्णु असुर द्वारा भक्तों से लक्ष्मी की भिक्षायाचना), ३.६०.२८(विष्णु भक्ति की अपेक्षा हरि भक्ति की श्रेष्ठता का उल्लेख - अन्यभक्तसहस्रेभ्यो विष्णुभक्तो विशिष्यते । विष्णुभक्तसहस्रेभ्यो हरेर्भक्तो विशिष्यते ।।), ३.१६४.७ (बाष्कलि दैत्य वध हेतु विष्णु के प्रथम अवतार का कथन), ४.२६.५१(विष्णु के विभिन्न नाम, शक्तियां व उनके कर्म ), ४.१०१.९०(कामदुघा व कृष्ण के पुत्र विष्णु का उल्लेख), शौ.अ. ५.२६.७( विष्णुर्युनक्तु बहुधा तपांसि), द्र. बृहद्विष्णु Vishnu

      विष्णु-(१) ये वसुदेवजी के द्वारा देवकी के गर्भ से श्रीकृष्णरूप से अवतीर्ण हए ( आदि० ६३ । ९९-१०४) । बारह आदित्यों में सबसे कनिष्ठ, किंतु गुणों में सबसे श्रेष्ठ (आदि. ६५। १६)। इन्होंने वरदानतीर्थ में दुर्वासा को दर्शन दिया (वन० ८२ । ६५)। देवताओं द्वारा इनका स्तवन (वन० १०२ । २०-२६) । इनका समुद्र सोखने के लिये अगस्त्य के पास देवताओं को भेजना ( वन० १०३। ११)। ये कृतयुग में श्वेत, त्रेता में लाल, द्वापर में पीत तथा कलियुग में कृष्ण वर्ण के हो जाते हैं ( वन० १४९ । १७-३४)। उत्तङ्क द्वारा इनकी स्तुति (वन० २०१ । १४-२४)। इन्होंने पृथ्वी के उद्धार के लिये जो यज्ञवाराह रूप धारण किया था, वह सौ योजन लम्बा और दस योजन चौड़ा था ( वन० २७२ । ५१-५५)। इनके नृसिंह-अवतार का वर्णन (वन० २७२ । ५६-६१)। इनके वामन अवतार का कथन (वन० २७२ । ६२--७० )। ये ही यदुकुल में श्रीकृष्णरूप से अवतीर्ण हुए, इनकी महिमा का वर्णन ( वन० २७२ । ७१-- ७७)। वृत्र से भयभीत देवताओं द्वारा इनकी स्तुति ( उद्योग० १० । ६-८) । सुमुख नाग की रक्षा के लिये गरुड का गर्व नाश करना ( उद्योग० १०५ । १९--३२)। क्षीरसागर के उत्तर तट पर इनके निवास-स्थान, स्वरूप और महिमा आदि का कथन – क्षीरोदस्य समुद्रस्य तथैवोत्तरतः प्रभुः । हरिर्वसति वैकुण्ठः शकटे कनकोञ्ज्वले ।। अष्टचक्रं हि तद्यानं भूतयुक्तं मनोजवम् । (भीष्म० ८।१५-१८) ।  ब्रह्मा द्वारा इनका स्तवन (भीष्म० ६५ । ४७--७५)। त्रिपुरदाह के समय भगवान् शिव ने इन्हें अपना बाण बनाया - विष्णुं शरोत्तमं कृत्वा शल्यमग्निं तथैव च। वायुं कृत्वाऽथ वाजाभ्यां पुङ्खे वैवस्वतं यमम्।। (द्रोण० २०२ । ७७;  दृष्टा तु तं रथं दिव्यं कवची स शरासनी। आददे स शरं दिव्यं सोमविष्ण्वग्निवायुजम्।।-कर्ण० ३४ । ४९ ) । इनके द्वारा स्कन्द को चक्र, विक्रम और संक्रम नामक तीन पार्षदों का दान (शल्य० ४५ । ३७) । इनके द्वारा स्कन्द को वैजयन्ती माला और दो निर्मल वस्त्र का दान (शल्य० ४६ । ४९)। इनका पृथ्वी को आश्वासन - धृतराष्ट्रस्य पुत्राणां यस्तु ज्येष्ठः शतस्य वै। दुर्योधन इति ख्यातः स ते कार्यं करिष्यति।। (स्त्री० ८ । २५--२९)। इन्होंने एक मानस पुत्र उत्पन्न किया, जिसका नाम विरजा था (शान्ति० ५९ । ८७-८८)। इन्द्ररूपधारी विष्णु और मान्धाता का संवाद (शान्ति० ६५ अध्याय)। भगवान् शिव ने इन्हें दण्ड नामक अस्त्र समर्पित किया और इन्होंने उसे अङ्गिरा को दिया (शान्ति० १२२ । ३६-३७/१२२.६४)। भगवान् रुद्र द्वारा इन्हें खड्ग की प्राप्ति हुई और इन्होंने उसे मरीचि को प्रदान किया ( शान्ति० १६६ । ६६ ) । इनका वाराह अवतार धारण करके देवताओं के दुःख का नाश करना ( शान्ति. २०९ । १६-३०) । नारद को आश्वासन देना (शान्ति० २०९।३६ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ४९५७ ) । वामनरूप से इन्होंने तीन पगों में ही पृथ्वी को नाप लिया था (शान्ति. २२७ । ७-८)। प्रत्येक मास की द्वादशी तिथि को भगवान् विष्णु की पूजा का विशेष माहात्म्य - अहोरात्रेण द्वादश्यां चैत्रे विष्णुरिति स्मरन्। पौण्डरीकमवाप्नोति देवलोकं च गच्छति।। ( अनु० १०९.७ अध्याय)। इन्द्र को धर्मोपदेश ( अनु० १२६ । ११-१६) । इनके द्वारा धर्म के माहात्म्य का वर्णन ( अनु० १३४ । ८--१४ )। इनके सहस्र नामों का वर्णन (अनु० १४९ अध्याय)। ( विशेष देखिये नारायण ) (२) भानु ( मनु ) अग्नि के तीसरे पुत्र । इनका दूसरा नाम 'धृतिमान्' है । ये अङ्गिरागोत्रिय माने गये हैं । दर्शपौर्णमास नामक यज्ञों में इन्हीं में हविष्य का समर्पण होता है (वन० २२१ । १२)।



      विष्णुक्रान्ता विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१, शिव ५.५१.४८,


      विष्णुगुप्त कथासरित् ८.६.१७६(आदित्यशर्मा द्वारा विष्णुगुप्त से सुलोचना मन्त्र विधि सीखने का कथन),


      विष्णुदत्त गर्ग ७.२५, कथासरित् ५.२.६४(विष्णुदत्त द्वारा स्वमातुल - पुत्र शक्तिदेव से मिलन का वृत्तान्त), ५.३.१३५(उत्स्थल द्वीप में विष्णुदत्त के मठ का उल्लेख), ६.६.४२(जाग्रत विष्णुदत्त द्वारा ७ मूर्ख विप्र सुतों के जीवन की रक्षा का वृत्तान्त ) vishnudatta



      विष्णुदास पद्म ६.१०८(विष्णु - भक्त विप्र विष्णुदास की चोल नृप से विष्णु भक्ति के सम्बन्ध में स्पर्द्धा, विष्णुदास का विष्णु - पार्षद पुण्यशील बनना), स्कन्द २.४.८.६(विष्णुदासः पुरा भक्त्या तुलसीपूजनेन च ।। विष्णुलोकं गतः शीघ्रं चोलो गौणत्वमागतः ।।), २.४.२६(विष्णुदास ब्राह्मण की चोल नृप से विष्णु दर्शन की स्पर्द्धा, विष्णु पार्षद पुण्यशील बनना ), लक्ष्मीनारायण १.४२५, ३.५४.३ vishnudaasa/ vishnudasa


      विष्णुपद पद्म ३.२६, वराह १४०, १४५, स्कन्द ६.२४(विष्णुपद तीर्थ का माहात्म्य, बलि निग्रह के समय विष्णु के पदाग्र से ब्रह्माण्ड के छिन्न होने पर गङ्गा जल की उत्पत्ति), ६.२५(विष्णुपदी गङ्गा का माहात्म्य, चण्डशर्मा द्विज की सुरापान पाप से मुक्ति ), ७.१.११४, vishnupada

      विष्णुपदतीर्थ-एक तीर्थ, जिसमें स्नान करके वामन भगवान् की पूजा करनेवाला मनुष्य विष्णुलोक में जाता है (वन०-८३ । १०३-१०४)। यह प्रभासतीर्थ के बाद पड़ता है और विपाशा नदी के तट पर स्थित है ( वन० १३० । ८-९) । स्वप्न में शिवजी के पास श्रीकृष्णसहित जाते हुए अर्जुन को विष्णुपदतीर्थ मिला था ( द्रोण. ८० । ३५-३६)।



      विष्णुयशा ब्रह्मवैवर्त्त २.७, भविष्य ३.२.३०, ३.४.२५(विष्णुकीर्ति - पति, कल्कि अवतार - पिता, कश्यप का अंश), स्कन्द २.४.२.५२टीका (विष्णुयशा ब्राह्मण का जन्मान्तर में स्त्री व धर्माचार वैश्य बनना ) vishnuyashaa

      विष्णुयशा-युगान्त के समय काल की प्रेरणा से सम्भल नामक ग्राम में किसी ब्राह्मण के यहाँ एक महान् शक्तिशाली बालक प्रकट होगा, जिसका नाम होगा 'विष्णुयशा' कल्की । वह महान् बुद्धि एवं पराक्रम से सम्पन्न, महात्मा, सदाचारी तथा प्रजावर्ग का हितैषी होगा ( वह बालक ही भगवान् का कल्की अवतार कहलायेगा ) । मन के द्वारा चिन्तन करते ही उसके पास इच्छानुसार वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जायेंगे । वह धर्मविजयी चक्रवर्ती राजा होगा । वह उदारबुद्धि, तेजस्वी ब्राह्मण दुःख से व्याप्त हुए इस जगत् को आनन्द प्रदान करेगा। कलियुग का अन्त करने के लिये ही उसका प्रादुर्भाव होगा । वही सम्पूर्ण कलियुग का संहार करके नूतन सत्ययुग का प्रवर्तक होगा। वह ब्राह्मणों से घिरा हुआ सर्वत्र विचरेगा और भूमण्डल में सर्वत्र फैले हुए नीच स्वभाववाले सम्पूर्ण म्लेच्छों का संहार कर डालेगा (वन० १९० । ९३-९७ ) । उस समय चोर, डाकुओं एवं म्लेच्छों का विनाश करके भगवान् कल्की अश्वमेध नामक महायज्ञ का अनुष्ठान करेंगे और उसमें यह सारी पृथ्वी विधिपूर्वक ब्राह्मणों को दे डालेंगे । उनका यश तथा कर्म सभी परम पावन है। ये ब्रह्माजी की चलायी हुई मङ्गलमयी मर्यादाओं की स्थापना करके ( तपस्या के लिये) रमणीय वन में प्रवेश करेंगे । फिर इस जगत् के निवासी मनुष्य उनके शील-स्वभाव का अनुकरण करेंगे। द्विजश्रेष्ठ कल्की सदा दस्युवध में तत्पर रहकर समस्त भूतल पर विचरते रहेंगे और अपने द्वारा जीते हुए देशों में काले मृगचर्म,  शक्ति, त्रिशूल तथा अन्य अस्त्रशस्त्रों की स्थापना करते हुए श्रेष्ठ ब्राह्मणों द्वारा अपनी स्तुति सुनेंगे और स्वयं भी उन ब्राह्मण-शिरोमणियों को यथोचित सम्मान देंगे। दस्युओं के नष्ट हो जानेपर अधर्म का भी नाश हो जायगा और धर्म की वृद्धि होने लगेगी। इस प्रकार सत्ययुग आ जाने पर सब मनुष्य सत्यधर्मपरायण होंगे (वन० १९१ । १-७)।



      विष्णुरात स्कन्द २.६.१.१६, २.६.३.५२(परीक्षित का उपनाम )


      विष्णुशक्ति कथासरित् १.६.१२५(विष्णुशक्ति - दुहिता राज्ञी द्वारा राजा को पाण्डित्य में नीचा दिखाने का कथन )


      विष्णुशर्मा पद्म २.१, २.२(शिवशर्मा - पुत्र, पिता द्वारा पितृभक्ति की परीक्षा, स्वर्ग से अमृत प्राप्ति), ६.१८९(विष्णुशर्मा ब्राह्मण द्वारा राजा कृपाण नरसिंह को गीता के १५वें अध्याय के माहात्म्य का कथन), ६.२००.३१(शिवशर्मा - पुत्र, पूर्व जन्म में इन्द्र), भविष्य ३.४.९, ३.४.१०(विष्णुशर्मा द्वारा पत्नी द्वारा प्राप्त पारस मणि का तिरस्कार करना, सूर्य से सायुज्य), स्कन्द २.८.१(विष्णुशर्मा द्वारा विष्णु की स्तुति), ५.३.२०९(शिव का बटु रूप में विद्यार्थी रूप धारण कर गुरु विष्णुशर्मा के पास आना ) vishnusharmaa


      विष्णुसंक्रमण वराह १४९


      विष्णुसेन स्कन्द ६.३१(इन्द्रसेन - पुत्र, पिता की प्रेत योनि से मुक्ति हेतु श्राद्ध का उद्योग),


      विष्णुस्तोत्र वामन ८५


      विष्णुस्वामी भविष्य ३.२.२१, ३.४.८(शिवदत्त - पुत्र, पूर्व जन्म में प्रांशुशर्मा), कथासरित् ३.६.११५(विष्णुस्वामी उपाध्याय की पत्नी कालरात्रि का वृत्तान्त, कालरात्रि की शिष्य सुन्दरक पर आसक्ति), १२.१५.३(विष्णुस्वामी द्विज के भोजनचङ्ग आदि पुत्रों का वृत्तान्त), १२.२६.३२(विष्णुस्वामी के शिष्य मन:स्वामी का वृत्तान्त ), १२.२९.४(विष्णुस्वामी विप्र के चार पुत्रों द्वारा विज्ञान से सिंह को उत्पन्न करने की कथा) vishnuswaamee/ vishnuswami


      विष्वक्सेन गर्ग ६.२१, नारद १.६२, भविष्य ३.३.२२, ३.३.२५.२५, मत्स्य २१, ४९, वामन ६९, स्कन्द २.७.१०, हरिवंश १.२०.२८, ३.५३.१३(साध्य गण में से एक, विरोचन से युद्ध ), ३.५६, द्र. विश्वक्सेन vishvaksena


      विस्फूर्ज वायु ६९.१५९


      विस्फोट द्र. कपालविस्फोट


      विहङ्गम द्र. मन्वन्तर


      विहरणीय वायु २९.१७(शंस्य अग्नि व नदियों से उत्पन्न ८ विहरणीय अग्नियों के नाम ) viharaneeya/ viharaniya


      विहितसेन कथासरित् ३.३.३४(विहितसेन नृप की भार्या तेजोवती में आसक्ति का वृत्तान्त ) ‹


      विहुण्ड पद्म २.११८+ (हुण्ड - पुत्र, मोहिनी रूप धारी विष्णु पर आसक्ति, शिव पूजा हेतु कामोदा पुष्प की प्राप्ति का उद्योग, मृत्यु),


      विह्वल लक्ष्मीनारायण २.५.८०


      वीटा वामन ६०(शङ्कर द्वारा मुख में वीटा धारण, कपाल विदारण, केदार का निर्माण ), महाभारत आदि १३०.१७(पाण्डवों की कूप में गिरी वीटा का द्रोण द्वारा उद्धार), आश्रमवासिक ३७.१२(धृतराष्ट्र द्वारा वीटा मुख में रखकर तप करने का उल्लेख); vita/veetaa

      टिप्पणी : पुराणों की वीटा वैदिक साहित्य की विष्टुति प्रतीत होती है। काष्ठ से बनी विष्टुतियों का प्रयोग सामगान में स्तोमों का निर्माण करते समय होता है। उदाहरण के लिए, हमें साम की तृच से पञ्चदश स्तोम का निर्माण करना है। उसके लिए प्रथम चरण में ऋचा की ३ आवृत्ति, द्वितीय ऋचा की एक व तृतीय ऋचा की एक आवृत्ति की जाती है। दूसरे चरण में प्रथम ऋचा की एक, दूसरी की ३ व तीसरी की एक आवृत्ति की जाती है। तीसरे चरण में प्रथम ऋचा की एक, दूसरी की एक व तीसरी की तीन आवृत्तियां की जाती हैं। यह कुल मिलाकर १५ आवृत्तियां हो जाती हैं। इसी प्रकार त्रिवृत् स्तोम, सप्तदश स्तोम आदि की रचना भी कर सकते हैं। प्रत्येक आवृत्ति के पश्चात् काष्ठ से बनी विष्टुतियों को क्रम से रखते जाते हैं। महाभारत में द्रोण द्वारा इषु/इषीकास्त्र से कूप में गिरी वीटा के उद्धार की कथा यह संकेत करती है कि एक विष्टुति दूसरी विष्टुति से किसी प्रकार जुडी हुई होनी चाहिए।


      वीणा शिव ५.२६.४०(शब्द के घोष, कांस्य आदि ९ प्रकारों में से एक - घोषं १ कांस्यं २ तथा शृंगं ३ घण्टां ४ वीणा ५ दिवंशजान् ६ ।। दुन्दुभिं ७ शंखशब्दं ८ तु नवमं मेघगर्जितम् ९ ।।), ५.२६.४९(नाद के ९ प्रकारों में से पंचम, दूरदर्शन की सामर्थ्य प्रदायक - वीणा तु पंचमो नादः श्रूयते योगिभिस्सदा।। तस्मादुत्पद्यते देवि दूरादर्शनमेव हि ।। ), हरिवंश २.११०.३४(वीणा की आकृति की कूर्म से तुलना - मम वीणाकृतिं कूर्मं गजचर्मचयोपमम् ॥ ), महाभारत शल्य ५४.१९(नारद द्वारा कच्छपी वीणा ग्रहण करने का उल्लेख - महतीं सुखशब्दां तां गृह्य वीणां मनोरमाम्।), योगवासिष्ठ १.१७.१९(जर्जर वीणा की तृष्णा से उपमा - तन्द्रीतन्त्रीगणैः कोशं दधाना परिवेष्टितम् । नानन्दे राजते ब्रह्मंस्तृष्णा जर्जरवल्लकी ।।), कथासरित् २.१.८२(वसुनेमि नाग द्वारा उदयन को दिव्य वीणा प्रदान करना - इमां वीणां गृहाण त्वं मत्तः संरक्षितात्त्वया ।। तन्त्रीनिर्घोषरम्यां च श्रुतिभागविभाजिताम् ।), ५.३.१७०(वीणा में दांतों द्वारा तन्त्री को योजित करने से विद्याधरी के दाश - पुत्री बनने का उल्लेख - विद्याधरत्वे च यदा छित्त्वा दन्तैरयोजयम् । वीणासु तन्त्रीस्तेनेह जाताहं दाशवेश्मनि ।।), ८.६.२१(अप्रशस्त वीणा के अन्दर से शुन: बाल निकलने का कथन - अस्यास्तन्त्र्यां यदेतस्यां श्ववालो विद्यतेऽन्तरे ।। अहं ह्येतद्विजानामि तन्त्रीझांकारलक्षणैः ।), १४.२.१(नरवाहनदत्त का वीणादत्त गन्धर्व से मिलन, नरवाहनदत्त द्वारा वीणा में वालदोष निकालना - राजपुत्रि न ते वीणा सुस्वरा प्रतिभाति मे । जाने बालः स्थितस्तन्त्र्यामिति सोऽत्र जगाद च ।। ) veenaa/ vina

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      वीत द्र. महावीत


      वीतभीति कथासरित् ८.२.३७८(काल असुर के वीतभीति नाम से अवतरित होने का उल्लेख), ८.६.१(सचिव वीतभीति द्वारा सूर्यप्रभ को गुणशर्मा विप्र - महासेन नृप की कथा सुनाना ), द्र. देववीति veetabheeti/ vitabhiti


      वीतमन्यु वामन ८२


      वीतराग पद्म २.८.६५(वीतराग द्वारा आत्मा को बोध का वर्णन )


      वीतहव्य महाभारत अनुशासन ३४.१७( भृगवस्तालजङ्घांश्च नीपानाङ्गिरसोऽजयन्। भरद्वाजो वैतहव्यानैलांश्च भरतर्षभ।। ), योगवासिष्ठ ५.८२.४(वीतहव्य मुनि द्वारा निर्विकल्प समाधि में स्थित होने के लिए मन को स्थिर करने के उपाय का चिन्तन), ५.८४, लक्ष्मीनारायण ३.९२.६( प्रतर्दन के भय से भृगु के आश्रम में शरण लिए हुए हैहय राजा वीतहव्य का भय से ब्रह्मर्षि बनने का उल्लेख, गृत्समद – पिता),


      वीतिहोत्र गर्ग ७.४३.२५(अग्नि, लीलावती पुरी का स्वामी, कृष्ण को भेंट), देवीभागवत ८.४.५(प्रियव्रत व बर्हिष्मती- पुत्र), ८.४.२६(पुष्कर द्वीप का स्वामी), १२.६.१४१(वीतिहोत्रा : गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म २.५६.२०(काम द्वारा वीतिहोत्र नामक सहायकों द्वारा सत्य के गृह को नष्ट करने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.४७.७०(तालजङ्घ – पुत्र, और्व आश्रम में शरण आदि), भविष्य २.१.१७.१२(उपनयन में अग्नि का नाम - षडाननश्च चूडायां व्रतादेशे समुद्भवः ।। वीतिहोत्रश्चोपनये समावर्ते धनंजयः ।।), भागवत ५.१.२५(प्रियव्रत व बर्हिष्मती - पुत्र), ५.२०.३१(पुष्कर द्वीप का स्वामी, रमणक व धातकि – पिता), स्कन्द ४.१.१०.२८(वीतिहोत्र अग्नि की पुरी अर्चिष्मती का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.२४०(योगी वीतिहोत्र द्वारा समाधि में ऋषभ गुरु रूप धारी कृष्ण के दर्शन, स्तुति), द्र. देववीति, veetihotra


      वीथि अग्नि १०५.२१(प्रासाद में द्वार - वीथि आदि लक्षण), देवीभागवत ८.१५(वीथियों में नक्षत्र विभाजन), ब्रह्माण्ड १.२.२१.७६(वीथियों का वर्णन), २.३.३.४७(देव व जामि - पुत्र, वीथियों में नक्षत्र विभाजन), भागवत ११.१६.३५, मत्स्य १२४.५३(नागवीथि, अजवीथि आदि सूर्य के मार्ग तथा उनके अन्तर्गत नक्षत्र), वायु ६६.४६(नक्षत्र वीथियों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण ३.५.९६देववीथि, द्र. नागवीथि, स्वर्वीथि veethi


      वीर गणेश २.११४.१४(सिन्धु व गणेश के युद्ध में वीरराज का नन्दी से युद्ध), नारद १.६६.१३२(वीर गणेश की शक्ति विकर्णा का उल्लेख), पद्म १.२०.७४(वीर व्रत का माहात्म्य), भागवत ११.१६.३५(वीरों में अर्जुन की श्रेष्ठता का उल्लेख), मत्स्य ५१.३६(अद्भुत् अग्नि - पुत्र, देवांश , विविधाग्नि - पिता), १०१.२८(वीर व्रत), मार्कण्डेय ११९, वराह १५७, वामन ९०.१८(कुवलयारूढ स्थिति में विष्णु का वीर नाम?), विष्णु २.१५.६(वीर नगर में निदाघ का वास, ऋभु से संवाद), शिव ५.३३.१७(वीर की अरिष्टपुरुष संज्ञा?), स्कन्द २.१.९.११(वसु व चित्रवती - पुत्र, पिता द्वारा पुत्र हनन का उद्योग), ४.१.१०.११३(वीरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : विश्वानर द्वारा वीरेश्वर लिङ्ग की अर्चना से पुत्र प्राप्ति), ४.१.३३.१७१(वीरेश्वर : लिङ्गों से निर्मित शिव देह में आत्मा का रूप), ४.२.८२(वीरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : अमित्रजित् व मलयगन्धिनी की कथा), ४.२.८३.५४(वीरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : मित्रजित् - पुत्र द्वारा स्थापना), ४.२.८३.१११(वीर तीर्थ व वीरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ४.२.८४.७७(वीर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.६४, ५.२.४६(वीरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, अमित्रजित् राजा की कथा), ५.२.४६.१६७, लक्ष्मीनारायण २.१४०.८७(वीर प्रासाद के लक्षण), कथासरित् ९.४.२२०(राजा चमरवाल के प्रतीहार वीर द्वारा राजा समरजित् का बन्धन ), १२.६.२६३(कितव के वीर होने का कारण), द्र. एकवीर, करवीर, सौवीर veera


      वीरक पद्म १.४३.४७६(पार्वती द्वारा वीरक का पुत्र रूप में स्वीकरण, आडि दैत्य को प्रवेश देने पर पार्वती द्वारा वीरक को शाप, वीरक द्वारा पार्वती की स्तुति), १.४४(शिव - द्वारपाल, आडि दैत्य को प्रवेश देने पर पार्वती का शाप, वीरक द्वारा स्तुति पर पार्वती का पश्चात्ताप), मत्स्य १५४.३८३, १५४.५४५(शिव - गण, पार्वती - पुत्र बनना, क्रीडा), १५७(आडि दैत्य के शिव भवन में प्रवेश पर पार्वती द्वारा वीरक को शाप, शिला से उत्पन्न होना), १५८.८(वीरक द्वारा पार्वती की स्तुति), स्कन्द १.२.२८(पार्वती द्वारा वीरक को दत्तक पुत्र रूप में स्वीकार करना, द्वारपाल रूप में नियुक्ति), १.२.२९(शिव का द्वारपाल, पार्वती का शाप), १.२.२९(पार्वती के वरदान से वीरक का शिलाद - पुत्र नन्दी बनना), ५.२.२८, ५.२.३८(कुसुम - भूषित वीरक का पार्वती - पुत्र बनना, कुसुमेश्वर लिङ्ग में रूपान्तरण ), ५.२.७७.३४, veeraka


      वीरकेतु स्कन्द ५.२.७३(अयोध्या के राजा वीरकेतु द्वारा करभ/उष्ट} का पीछा, करभ के पूर्व जन्म का वृत्तान्त जानकर वीरकेतु द्वारा महाकालवन में करभेश्वर लिङ्ग की पूजा), कथासरित् १२.२१.४(अयोध्या के राजा वीरकेतु द्वारा चोर का शूलारोपण करने तथा तत्पश्चात् चोर के पुन: जीवित होने पर उसे सेनापति बनाने की कथा ) veeraketu


      वीरजार लक्ष्मीनारायण २.१२३.२२, २.१२८+


      वीरण ब्रह्म १.१, भविष्य ३.२.३६, ३.३.१(भीम का अवतार ), ३.३.४, मत्स्य ४, विष्णु १.१५.९०, विष्णुधर्मोत्तर १.११०, शिव २.२.१३, लक्ष्मीनारायण १.५७२, veerana


      वीरदत्त ब्रह्माण्ड २.३.४.७(वीरदत्त किरात द्वारा चोरी से अर्जित द्रव्य का पुण्य कार्यों में नियोजन, स्वर्ग प्राप्ति, द्विजवर्मा नाम प्राप्ति),


      वीरदेव कथासरित् १२.१६.७(राजा वीरदेव द्वारा स्वकन्या के वर हेतु ४ विज्ञानियों में से एक को चुनने का प्रश्न )


      वीरधन्वा गर्ग ७.१५.७(वङ्ग देश - अधिपति, प्रद्युम्न - सेनानी चन्द्रभानु द्वारा विजय), ७.२८, पद्म ६.४६, वराह ४१(प्रतिष्ठानपुर के राजा वीरधन्वा द्वारा मृगरूपी ब्राह्मणों का वध, देवरात मुनि - प्रोक्त वराह द्वादशी व्रत से मुक्ति), स्कन्द ५.२.२८(वीरधन्वा राजा द्वारा वन में मृग रूप धारी पांच संवर्त - पुत्रों का वध, पुन: देवरात व गौ का वध, जटाभूत पापों की जटेश्वर लिङ्ग द्वारा निवृत्ति ), लक्ष्मीनारायण १.५४४.५, veeradhanvaa



      वीरपुर कथासरित् ९.२.१६९(वीरपुर के विद्याधर राजा समर की सुता अनङ्गप्रभा द्वारा अनेक पतियों के वरण की कथा )


      वीरबाहु स्कन्द २.५.११(भारद्वाज द्वारा राजा वीरबाहु के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४२८, कथासरित् ९.२.३१६(राजा वीरबाहु द्वारा धर्म मर्यादा से सुन्दरी का हरण न करने का उल्लेख), १०.२.५(राजा विक्रमसिंह को घेरने वाले ५ राजाओं में से एक ), १०.५.२२३(भृत्य धवलमुख के २ मित्रों में से मित्र वीरबाहु की श्रेष्ठता का प्रमाण), १२.१७.३(अनङ्गपुर के राजा वीरबाहु की नगरी में मदनसेना कन्या के पति व २ जारों में श्रेष्ठता का प्रश्न), १६.२.१४७(अयोध्या के राजा वीरबाहु द्वारा दण्डित चोर पर वणिक् - सुता के आकृष्ट होने की कथा ) veerabaahu


      वीरभट कथासरित् ८.१.४२(ताम्रलिप्ति के नृप वीरभट की सुता मदनसेना द्वारा सूर्यप्रभ के वरण का उल्लेख ) ‹

      वीरभद्र अग्नि ५०.४०(वीरभद्र की प्रतिमा के लक्षण), ५२, कूर्म १.१५(वीरभद्र की दक्ष यज्ञ विध्वंस हेतु उत्पत्ति), गणेश १.४३.१(त्रिपुर व शिव के युद्ध में वीरभद्र का वज्रदंष्ट} से युद्ध), २.११४.१४(गणेश व सिन्धु के युद्ध में वीरभद्र का मदनकान्त से युद्ध), गर्ग ७.२४.३७(कुबेर - सेनानी वीरभद्र का गद से युद्ध व पराजय), १०.३७, नारद १.१२.६१(गौड देश के राजा व चम्पकमञ्जरी - पति वीरभद्र द्वारा तडाग निर्माण के पुण्य से स्वर्ग गमन), १.७९.३१३, पद्म १.२४(शिव के ललाट के स्वेद से वीरभद्र की उत्पत्ति, दक्ष यज्ञ विध्वंस के पश्चात् ग्रह रूप में प्रतिष्ठा), ५.४३(राम के यज्ञीय अश्व के बन्धन के प्रसंग में राजा वीरभद्र का पुष्कल से युद्ध व वध, शत्रुघ्न की पराजय), ५.१०७(वीरभद्र द्वारा पञ्चमेढ्र राक्षस का वध), ५.११०, ७.३.३३(मनोभद्र राजा का पुत्र, पूर्व जन्म में गर), ब्रह्म १.३७, भविष्य ३.४.१०, भागवत ४.५(वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस, दक्ष का वध), मत्स्य ७२(वीरभद्र की शिव के स्वेद से उत्पत्ति, अङ्गारक ग्रह रूप में परिणति), लिङ्ग १.९६(नृसिंह के घोर रूप के निग्रह हेतु वीरभद्र द्वारा शरभ रूप धारण), १.१००(वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस), वामन ४(वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस, विष्णु से युद्ध), ९०.३२(त्रिविष्टप में विष्णु का वीरभद्र नाम), वायु ३०.१२३(वीरभद्र की उत्पत्ति व स्वरूप, दक्ष यज्ञ का विध्वंस), विष्णुधर्मोत्तर १.१९७(यक्ष), १.२३५(वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस, वर प्राप्ति), शिव २.२.३२(दक्ष यज्ञ में वीरभद्र की उत्पत्ति), २.४.४, ३.११(भीषण ज्वाला की शान्ति के लिए वीरभद्र द्वारा नृसिंह की स्तुति), ७.१.१९(दक्ष यज्ञ में वीरभद्र की उत्पत्ति, यज्ञ का विध्वंस), स्कन्द १.१.३(वीरभद्र की शंकर की जटा से उत्पत्ति, दक्ष यज्ञ का विध्वंस), १.१.२८, १.१.२९(वीरभद्र का तारक से युद्ध), १.१.३३, २.४.१९, ३.३.२१, ४.२.५५.४(भद्रकाली - पति, वीरभद्रेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७४.५५(वीरभद्र की काशी में असि पार स्थिति), ४.२.८९(वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का नाश, विष्णु से युद्ध), ५.१.२०, ५.२.८२.२३, ७.१.१९९, लक्ष्मीनारायण १.१७७, १.३२८, कथासरित् ८.७.७२(वीरभद्र गण द्वारा शिव का संदेश देवों को देना, श्रुतशर्मा - सूर्यप्रभ युद्ध का संदर्भ ) veerabhadra


      वीरभुज कथासरित् ७.५.३(वर्धमानपुर के राजा वीरभुज द्वारा १०० पत्नियों से पुत्र प्राप्त करने व पत्नियों में से गुणवरा को प्रतिष्ठित करने की कथा), ७.८.१३७(वीरभुज नृप की भार्या? मदनदंष्ट्रा को राक्षस यमदंष्ट्र द्वारा खाने का उल्लेख?)


      वीरभूषा पद्म ५.६७.३८(सत्यवान् - पत्नी )


      वीरमणि पद्म ५.३८.५५, ५.४२(वीरमणि द्वारा राम के यज्ञीय अश्व का बन्धन, शत्रुघ्न सेना से युद्ध, पुष्कल से पराजय ), ५.६७.३९(श्रुतवती - पति ) veeramani


      वीरमाधव स्कन्द ४.२.६१.१८५(वीरमाधव विष्णु का संक्षिप्त माहात्म्य),


      वीरवती भविष्य ३.३.५.८(गङ्गासिंह - पुत्री, रत्नभानु – महिषी, लक्षण - माता), ३.३.६.३(वीरवती द्वारा तिलका नाम की प्राप्ति ), कथासरित् ९.३.९०(वीरवर व धर्मवती- कन्या, सत्त्ववर - भगिनी, वीरवर द्वारा पुत्रादि के बलिदान का वृत्तान्त ) veeravatee/ veeravati


      वीरवर पद्म ७.५(सुलोचना द्वारा वीरवर नामक पुरुष के वेष का धारण, गण्डक का हनन, जयन्ती से विवाह, तप, पुरुष वेश त्याग कर माधव से विवाह), भविष्य ३.२.३(राजा रूपसेन के सेवक वीरवर द्वारा चण्डिका के समक्ष प्राण उत्सर्ग रूप में राज्यभक्ति का प्रदर्शन ), लक्ष्मीनारायण १.४७४, कथासरित् ९.३.९०(वीरवर की राजसेवा भक्ति का वृत्तान्त), १२.११.८(वीरवर की राजसेवा भक्ति का वृत्तान्त), veeravara


      वीरवर्मा देवीभागवत ६.२८, पद्म ६.२२०(हेमाङ्गी - पति, प्रयाग में उद्धार, हरि- हर की स्तुति), स्कन्द १.२.२, कथासरित् ३.५.३२(वीरवर्मा द्वारा गृह के आंगन में धन गाडने का कथन )


      वीरवाहन गरुड २.६.४(राजा वीरवाहन का वसिष्ठ से वृषोत्सर्ग विषयक संवाद), २.६.१४०(राजा वीरवाहन द्वारा वृषोत्सर्ग के पुण्य से स्वर्ग गमन, धर्मराज से संवाद), पद्म ५.९४(ब्रह्मघाती वीरवाहन का मुनिशर्मा से संवाद )


      वीरविक्रम पद्म ४.२६.१५, लक्ष्मीनारायण ३.९८.९३


      वीरव्रत भागवत ५.१५.१५


      वीरशरभ लक्ष्मीनारायण ३.८.८५,


      वीरशर्मा स्कन्द ६.१३५, कथासरित् ९.२.४५(वीरशर्मा द्वारा अशोकमाला की हठशर्मा से रक्षा का उल्लेख )


      वीरसेन गरुड २.६.१२२(वीरसेन राजा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), गर्ग ७.१८, देवीभागवत ३.१४(कलिंग का राजा, मनोरमा - पिता, युधाजित् से युद्ध में मृत्यु), ५.१६, ५.१७(मन्दोदरी कन्या द्वारा पति हेतु वीरसेन राजा की उपेक्षा), पद्म ६.१२८, भविष्य ३.३.२२.२९(बलीराढ ग्राम का राजा, पुत्रों के नाम, कृष्णांश उदयसिंह के बन्धन का उद्योग, ब्रह्मानन्द द्वारा मोचन), ३.३.३२.५१(राजा उग्रसेन का अंश), ३.३.३२.११८(परिमल - सेनापति, पृथ्वीराज - सेनापति नागवर्मा से युद्ध में मृत्यु), वराह ४४(वीरसेन द्वारा द्वादशी व्रत से नल पुत्र की प्राप्ति), शिव ४.३०(वीरसेन द्वारा नागेश्वर लिङ्ग की पूजा ), स्कन्द ५.३.५६.१५, कथासरित् ८.५.१०७(वीरसेन द्वारा धूम्रलोचन का वध, अभिमन्यु द्वारा वीरसेन का वध, हिरण्याक्ष का अंश?), १८.१.९५(सिंहलेश्वर वीरसेन द्वारा स्वदुहिता मदनलेखा को विक्रमादित्य हेतु प्रदान करना), veerasena


      वीरस्थल वराह १५७


      वीरा लक्ष्मीनारायण १.४०९


      वीराकजन लक्ष्मीनारायण २.२१४.९०


      वीरिणी देवीभागवत ७.१(दक्ष - पत्नी, ब्रह्मा के वाम हस्त के अङ्गुष्ठ से प्राकट्य, असिक्नी उपनाम), मत्स्य ४, ५(दक्ष - पत्नी, शबलों व ६० कन्याओं की माता ), विष्णुधर्मोत्तर १.११०, शिव २.२.१४ veerinee/ veerini


      वीरुध वायु ६९.३३३/२.८.३३१(इरा की तीन पुत्रियों में से एक), महाभारत शान्ति १२२.३२/१२२.५८(अंशुमान् / वसुमान् को वीरुधों का स्वामी बनाने का उल्लेख), शौ.अ. ५.२४.७(सोमो वीरुधां अधिपतिः), veerudha


      वीरेश्वर स्कन्द ४.२.८३(अमित्रजित् व मलयगन्धिनी - पुत्र, माता - पिता द्वारा वीरेश्वर का त्याग, मातृकाओं व विकटा देवी द्वारा वीरेश्वर का पालन, तप से वीरेश्वर लिङ्ग का प्रादुर्भाव),


      वीर्य पद्म ६.६.२७, ब्रह्माण्ड ३.४.१०.७४(शिव के पतित वीर्य से महाशास्ता गण के जन्म का कथन तथा भूमि के रजत स्वर्ण वर्णा होने का कथन), हरिवंश २.१२७.२१(अनिरुद्ध व उषा के वीर्य विवाह का उल्लेख), महाभारत शान्ति २१४.२३, लक्ष्मीनारायण ३.१६३.८८(बलासुर के वीर्य से उत्पन्न भीष्ममणि की महिमा का कथन ), द्र. कृतवीर्य, कार्तवीर्य, महावीर्य, विचित्रवीर्य, सिद्धवीर्य veerya


      वृक गणेश २.९५.५९(गणेश द्वारा अङ्कुश से वृक दैत्य का वध), गरुड २.४६.२२(अयोनिग के वृक बनने का उल्लेख), गर्ग ७.२०.३१(प्रद्युम्न - सेनानी, अश्वत्थामा से युद्ध), ७.३२.३१(मित्रविन्दा व कृष्ण के १० पुत्रों में से एक, प्रद्युम्न - सेनानी, हृष्ट असुर का वध), ७.३४.२२(हिरण्याक्ष - पुत्र, खर - वाहन, अनिरुद्ध को निगलना, अर्जुन द्वारा पाद कर्तन, अनिरुद्ध द्वारा वध), ७.४२.१८(पूर्व जन्म में पुरावसु गन्धर्व के ९ पुत्रों में एक, शाप से वृक असुर बनना), १०.११.४५(अनिरुद्ध का वृकदैत्यहा विशेषण), १०.३१.१(अनिरुद्ध - सेनानी, सिंह का वध), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.१०(वेश्यागामी के वृक बनने का उल्लेख), ४.३६.२५(वृक दैत्य द्वारा शिव से वर प्राप्ति, सिर पर हाथ रखने से मृत्यु), ब्रह्माण्ड १.२.३६.९८(सृष्टि व छाया के ५ पुत्रों में से एक), भविष्य १.२.३६( हरि से वृक की उत्पत्ति), भागवत ४.२२.५४(पृथु व अर्चि के ५ पुत्रों में से एक), ४.२४.२(पश्चिम् दिशा के राजा), १०.८८.१३(शकुनि - पुत्र, तप, कर स्पर्श से मृत्यु का वरदान, वृक द्वारा पार्वती की प्राप्ति का यत्न, स्वशिर स्पर्श से मृत्यु), १३.४.१६(वृक प्रकार के कथाश्रोता के लक्षण), मत्स्य १२.३८( रोहित-पुत्र, बाहु-पिता), ६९.१३(जठर में वृक अग्नि के कारण भीम का वृकोदर नाम), १४८.९५(यम के ध्वज का चिह्न), स्कन्द १.२.१६.२० (शुम्भ के महावृक केतु होने का उल्लेख),५.३.१५९.२२(अयोनिग के वृक बनने का उल्लेख), ६.६१.२(विषकन्या - पिता, कन्या के जन्म पर मरण), ६.२३०+ (अन्धक - पुत्र, तप, सांकृति मुनि द्वारा वृक को पङ्गु बनाना, देवों को त्रास, जलशायि विष्णु का चातुर्मास में वृक के ऊपर शयन), हरिवंश २.८.३१(वृक की कृष्ण की देह से उत्पत्ति, गोपों का भय, व्रज का स्थान्तरण ), महाभारत भीष्म ५१.२५(वृकोदर द्वारा युद्ध में पौण्ड्र शंख बजाने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४९० (वृक राजा की कन्या शर्मवती द्वारा मोक्षप्राप्ति की कथा), १.५१६.१(वृक दैत्य द्वारा शिव से मूर्द्धा स्पर्श से नष्ट करने का वर प्राप्त करना), १.५१८.७८(सांकृति द्वारा वृकासुर को शाप का कथन), ३.१८४, vrika

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      वृकतेजा द्र. वंश ध्रुव


      वृकदेवी मत्स्य ४६(आनकदुन्दुभि - भार्या, अवगाह व नन्दन - माता )


      वृकल ब्रह्माण्ड १.२.३६.९८, द्र. वंश ध्रुव


      वृकायन लक्ष्मीनारायण २.१६४.८


      वृकोदर देवीभागवत १२.११.१०वृकोदरी, स्कन्द ४.२.७२.९८(६४ वेतालों में से एक ) vrikodara


      वृक्ण लक्ष्मीनारायण ३.१८४.१


      वृक्ष अग्नि ७०(वृक्ष प्रतिष्ठा विधि), २४७.२३(वृक्ष सिंचन हेतु उपयुक्त जल), २८२(वृक्ष आयुर्वेद का वर्णन), गणेश २.३४.२८(मन्दार व शमीका का शाप से वृक्ष बनना), देवीभागवत ८.५.१८(मेरु के परितः चार गिरियों पर चूत, जम्बू, कदंब, न्यग्रोध की स्थिति का कथन), ९.१५.१०(वृक्षध्वज व वृषध्वज पाठभेद), ९.१५.४७, नारद १.५६.२०४(वृक्षों की उत्पत्ति - नक्षत्रों के नाम), २.५४.३३(पुरुषोत्तम प्रतिमा निर्माण हेतु इन्द्रद्युम्न द्वारा काटे गए वृक्ष का स्वरूप), २.५६, पद्म १.२३.३१(न्यग्रोध अथवा खादिर दन्तकाष्ठ का उल्लेख), १.२८(पादप आरोपण विधि, विभिन्न वृक्षों के रोपण के फल), १.४०.१३९(माया विटप का कथन- महाभूत प्ररोह आदि), १.५८( अश्वत्थ आदि वृक्ष आरोपण का फल), २.११.१६(पाप वृक्ष का वर्णन), २.२२.२३(संसार रूपी वृक्ष का कथन), २.११८.३१(विहुंड दैत्य द्वारा कामोद द्रुम की पृच्छा की कथा), ६.२७.१५(वृक्षों द्वारा पुष्पों से देवों, पत्रों से पितरों तथा छाया से अतिथियों की पूजा का उल्लेख), ६.४५(आमलकी वृक्ष की उत्पत्ति, वृक्ष के विभिन्न अंगों पर देवों की स्थिति), ६.१६८.५१(वृक्षों द्वारा इन्द्र से ब्रह्महत्या के अंश की प्राप्ति), ब्रह्म १.४८(राजा इन्द्युम्न के समक्ष महाद्रुम का प्राकट्य, राजा द्वारा प्रतिमानिर्माण हेतु छेदन इत्यादि), २.३३.५(विष्णु, भानु, शिव व सोम का क्रमशः अश्वत्थ, अर्क, वट व पलाश में प्रवेश), २.४४, ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.३१(सफल वृक्ष दान का माहात्म्य), ४.१४(कृष्ण द्वारा अर्जुन वृक्षों का उद्धार), ब्रह्माण्ड १.१.५.१००(ब्रह्म वृक्ष का स्वरूप, ब्रह्मवृक्ष के अङ्गों की कल्पना : अव्यक्त बीज, बुद्धि स्कन्ध आदि), १.२.७.८१(गृह का रूप, वृक्षशाखा का शाला से तादाम्य, वृक्षों के नष्ट होने पर ग्राम्य-आरण्यक ओषधियों की सृष्टि), १.२.१५.७२(कुरु वर्ष के वृक्षों की विशेषताएं), २.३.११.११३(श्राद्ध योग्य व अयोग्य वृक्ष), भविष्य १.१९३(दन्तकाष्ठ योग्य वृक्ष), २.१.१०.४०(विभिन्न वृक्षों के आरोपण के हानि व लाभ), २.३.६+(वृक्षों की प्रतिष्ठा), २.३.१५+ (प्रतिष्ठा के योग्य व अयोग्य वृक्षों के नाम), ४.२५.३३(तृतीया व्रत में प्रतिमास प्रदेय वृक्षों के नाम), ४.६९.२०(गोमय से बिल्ववृक्ष की उत्पत्ति का कथन), ४.१२८(वृक्षारोपण व उद्यापन विधि), भागवत ४.३०, ५.१६, ६.४(दस प्रचेताओं द्वारा वृक्षों को दग्ध करने की कथा), ६.९.९(वृक्षों द्वारा इन्द्र से ब्रह्महत्या का ग्रहण), ११.१२.२१(संसार रूपी वृक्ष), मत्स्य ४.५०(प्रचेता व मारिषा से वृक्षों की उत्पत्ति), ५९(पादपोद्यापन विधि), १४८.९३(कुबेर की ध्वजा पर पद्मराग रत्नविटप चिह्न), २३२(वृक्ष जन्य उत्पात लक्षण, शान्ति के उपाय), वामन १७(वृक्षों की उत्पत्ति, विभिन्न देवों को प्रिय वृक्षों के नाम), वायु ९.११६(ब्रह्म वृक्ष का स्वरूप), ६३.३०(प्रचेता गणों द्वारा वृक्षों का दग्ध होना, वृक्षों द्वारा स्वकन्या मारिषा का प्रचेतागणों से विवाह करना), ७५.७१(यज्ञिय व अयज्ञिय वृक्षों के नाम), विष्णु १.१५.१(प्रचेता गणों द्वारा वृक्षों के नाश पर वृक्षों द्वारा स्वकन्या मारिषा का प्रचेतागणों से विवाह), विष्णुधर्मोत्तर ३.२९७(विभिन्न वृक्ष आरोपण फल वर्णन), शिव १.१८.४५(वृक्ष के पौरुष और गुल्म के प्राकृत होने का उल्लेख), ५.१२.१६, ५.१२.१९(वृक्षों द्वारा पुष्पों से देवों, फलों से पितरों तथा छाया से अतिथि को तुष्ट करने का कथन), ५.१६.१८, ७.१.१२.७३(ब्रह्म वन के वृक्ष का स्वरूप), ७.२.४.६४(वृषध्वज शिव का रूप), स्कन्द २.२.१८(वृक्षों की विष्णु के रोम से उत्पत्ति, चतुर्भुज रूप, जगन्नाथ मूर्ति का निर्माण), २.४.३.३८टीका (पार्वती के शाप से देवों का वृक्ष रूप होना), ५.१.५(बदरी वन में वृक्षों द्वारा शिव से वर प्राप्ति), ५.३.१३३.२७(राजा वृक्ष, ब्राह्मण मूल आदि उपमा), ६.२४७.४१(अश्वत्थ -- मूले विष्णुः स्थितो नित्यं स्कंधे केशव एव च ॥ नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान्हरिः ॥), ७.१.२२.८२(राजा, प्रजा आदि की वृक्ष से उपमा), ७.१.२३.१०८(दिशा अनुसार न्यग्रोध आदि स्थापना), ७.१.३३.८१(गिरियों पर विभिन्न वृक्षों के प्रतीक), हरिवंश १.२.३५(प्रचेताओं के तपःकाल में पृथिवी का वृक्षों से आवृत होना, प्रचेताओं द्वारा वृक्षों का नाश आदि), १.६.४२(वृक्षों द्वारा वसुधा के दोहन का कथन), योगवासिष्ठ १.१८.५(वृक्ष के अवयवों की शरीर के अङ्गों से उपमा), १.२३.२७(काल रूपी वृक्ष पर ब्रह्माण्ड रूपी उदुम्बर फल), ६.२.७+ (संसार रूपी वृक्ष का वर्णन), वा.रामायण ३.१४.३१(अनला से पुण्यफल वृक्षों की उत्पत्ति का उल्लेख), ३.६०(वृक्षों के नाम, राम द्वारा वृक्षों से रावण द्वारा अपहृत सीता का पता पूछना), ६.१००.४(रावण-कथित रामवृक्ष का स्वरूप), ६.१०९.९(रावण रूपी वृक्ष का राम द्वारा मर्दन), महाभारत उद्योग २९.५२(सुयोधन रूपी मन्युमय तथा युधिष्ठिर रूपी धर्ममय वृक्ष का कथन), भीष्म ३९(ऊर्ध्वमूल एवं अधःमूल अश्वत्थ का वर्णन, गीता अध्याय १५), कर्ण ४४.८(वाहीक देश में गोवर्धन नामक वट की स्थिति का उल्लेख), शान्ति २५४(हृदय में स्थित कामद्रुम का वर्णन), ३२१.४४(मृत्यु से पूर्व हिरण्मय नग दृष्टिगोचर होने का उल्लेख), अनुशासन ५.६?, ५८.२४(स्थावरों की वृक्षादि ६ जातियों के नाम), ९६दाक्षिणात्य पृ. ५७८५, १४५दाक्षिणात्य पृ. ६०१२, आश्वमेधिक २७.१५(प्रज्ञा वृक्ष पर मोक्ष फल लगने का कथन), ३५.२०(अव्यक्तबीज से उत्पन्न होने वाले महाहंकार विटप का कथन), ४७.१(अव्यक्त से उत्पन्न होने वाले ब्रह्ममयवृक्ष आदि का कथन), ४७.१३(महाभूतविशाखश्च विशेषप्रतिशाखवान्), लक्ष्मीनारायण १.४१.३०(समिदर्थ प्रशस्त वृक्षों के नाम), १.१५७.१००(समुद्रमन्थन से आमलकी की उत्पत्ति आदि), १.२१७.६७(स्थानविशेष पर भद्र-अभद्र वृक्षों के नाम), १.३०१, १.३०६.३०(वृक्ष-पुत्री श्री द्वारा कृष्ण को अर्पित वृक्षफलों के नाम), १.३१८.८८(वृक्ष, स्तम्ब, शाक आदि वृक्षों के १० प्रकारों का शाखा, पुष्प, फल, पत्र आदि के अनुसार वर्गीकरण, वृक्षों की कन्या वम्री का प्रचेताओं की पत्नी बनने का प्रसंग), १.३३०, १.३३३, १.३४०, १.३८५.५४(वार्क्षी का कार्य – धूप व सुगन्ध देना), १.४४१, १.४५०.२६(तपस्वियों में वृक्ष की श्रेष्ठता का उल्लेख), १.४७६, १.५४७, २.२६.६०(सदाचार वृक्ष के अंगों का कथन), २.२७, २.२४६.८८(अज्ञान वृक्ष के अंग), ३.११४, कथासरित् १२.३.२५, २९(श्रुतधि के शुष्कवृक्ष बनने व मुक्त होने की कथा), १२.३.३४, १२.३.६८(शिंशपातरु से दिव्य स्त्री के प्रकट होने का कथन) द्र. श्रीवृक्ष vriksha


      वृक्षघट कथासरित् १२.१५.३(वृक्षघट नामक अग्रहार में भोजन - चङ्ग, नारीचङ्ग व तूलिकाचङ्ग भ्राता - त्रय का वृत्तान्त )


      वृज द्र. वंश पृथु


      वृजिन ब्रह्म २.१०३.३१(वृत्र का वृजिन नामकरण ); द्र. ऋग्वेद में °°विद्यामेषं वृजनं जीरदानुं°°


      वृत द्र. त्रिवृत


      वृत्त अग्नि ३३२, वायु ६९.२९३/२.८.२८५(वृत्ता, परिवृत्ता, अनुवृत्ता की सन्तानों का कथन), स्कन्द ४.१.४१.११६(भ्रूमध्य में वृत्त में वायु तत्त्व की धारणा का उल्लेख), वास्तुसूत्रोपनिषद २.११(प्राजापत्य गुण वाले वृत्त के आपःभास से चतुरस्र होने का उल्लेख), द्र. परिवृत्ता


      वृत्ति अग्नि ३४०.५(नाटक के अन्तर्गत वाक्य रचना वृत्ति का निरूपण), कूर्म २.२५(द्विज आदि की आजीविका का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.२३९.८३(वृत्ति हरण की निन्दा के संदर्भ में चाण्डाली द्वारा शुन:मांस को चर्म से ढंकने की कथा ) vritti


      वृत्र देवीभागवत ६.२+ (त्वष्टा द्वारा वृत्र की उत्पत्ति, इन्द्र की वृत्र से पराजय, वृत्र द्वारा तप, ब्रह्मा से अवध्यता वर की प्राप्ति), ६.३, ६.६(इन्द्र द्वारा सन्ध्या समय में फेन से वृत्र का वध), ६.१२.५७, पद्म १.१९, १.७३(इन्द्र द्वारा वृत्र का वध), २.२४+ (कश्यप द्वारा जटा होम से वृत्र की उत्पत्ति, रम्भा से समागम, मधुपान करने पर इन्द्र द्वारा वध), ६.१६८, ब्रह्म २.१०३, भागवत ६.९(त्वष्टा के होम से वृत्र की उत्पत्ति), ६.११(वृत्र का इन्द्र से युद्ध, मुक्ति), ६.१७(पार्वती के शाप से चित्रकेतु का वृत्र रूप में अवतरण), ६.१७.३८(त्वष्टा की दक्षिणाग्नि से वृत्र के जन्म का उल्लेख), वामन ९, ६९, विष्णुधर्मोत्तर १.२१३, शिव ३.२१, स्कन्द १.१.१६(त्वष्टा - पुत्र, उत्पत्ति का प्रसंग), १.१.१७(इन्द्र द्वारा वृत्र का वध), ४.२.८१, ५.२.३५(त्वष्टा द्वारा जटा के होम से वृत्र की उत्पत्ति, इन्द्र द्वारा वध), ६.८.४५(त्वष्टा व रमा - पुत्र, इन्द्र द्वारा वज्र से वध), ६.२६९, हरिवंश ३.५१.२६(बलि - सेनानी, प्रकृति, रथ), ३.५७, महाभारत शान्ति ३४२.४१(विश्वरूप की देह का मन्थन करने से वृत्रासुर की उत्पत्ति का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४८, १.४९(इन्द्र द्वारा वृत्र का वध ), १.४८६, ३.२३२.२वृत्रप्रस्थ, द्र. वार्त्रघ्नी vritra


      वृथा महाभारत आश्रमवासिक ३८.११(खाण्डव वन में अर्जुन द्वारा वृथा अग्नि को तृप्त करने का कथन), ३९.१(धृतराष्ट्र के वृथा अग्नि में न जलने का कथन)


      वृद्ध भविष्य ४.४(वृद्धावस्था के दुःख), भागवत ३.३०, विष्णु ६.५.३६, स्कन्द ४.२.५१, लक्ष्मीनारायण १.४९२.११४(लक्ष्मी द्वारा माधवी को वृद्धमुखी होने का शाप, विष्णु द्वारा ज्ञान से वृद्ध होने का वरदान ), २.२४६.३२, द्र. क्षत्रवृद्ध, प्रवृद्ध vriddha


      वृद्धकाल स्कन्द ४.१.२४.४६(नन्दिवर्धन नगरी का राजा, अनङ्गलेखा - पति, पूर्व जन्म में शिवशर्मा, स्वनाम ख्यात लिङ्ग की स्थापना),


      वृद्धदेव लक्ष्मीनारायण २.२१५.४७


      वृद्धवासुदेव स्कन्द १.२.४२


      वृद्धशर्मा गर्ग ७.१०.३२(करूष - अधिपति, श्रुतदेवा - पति, दन्तवक्र - पिता, प्रद्युम्न सेना से पराजय),


      वृद्धसेना भागवत ५.१५.२


      वृद्धहारीत स्कन्द ४.२.५१


      वृद्धा पद्म २.८.५८(शरीर से वृद्ध होने पर भी ज्ञान में वृद्धि होने पर युवती संज्ञा), ब्रह्म २.८.५७, २.३७(ऋतध्वज व सुश्यामा अप्सरा की पुत्री, गौतम से विवाह, सरस्वती से रूप प्राप्ति, अगस्त्य के परामर्श से गौतमी स्नान से यौवन प्राप्ति, वृद्धा नदी की उत्पत्ति), स्कन्द ६.८८(चमत्कार नृप - कन्या, काशिराज - पत्नी, पति की मृत्यु पर शत्रु वधार्थ देवी की आराधना, पिता द्वारा प्रासाद का निर्माण, अम्बा - वृद्धा का माहात्म्य ) vriddhaa



      वृद्धि स्कन्द ७.१.३९, द्र. जिनवृद्धि


      वृन्ताक गरुड २.३०.५४/२.४०.५४(मृतक के वृषण में वृन्ताक देने का उल्लेख), भविष्य ४.११२(वृन्ताक त्याग विधि),


      वृन्दा गर्ग २.२०.१४(वृन्दा गोपी द्वारा राधा को चन्द्र व सूर्य आभूषण भेंट), देवीभागवत १२.६.१११(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म ६.४.४२(स्वर्णा व क्रौञ्च - पुत्री, जालन्धर - भार्या), ६.१०३(वृन्दा व जालन्धर की कथा), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७.१९८(केदार - पुत्री, कमलांश, तप स्थान का नाम वृन्दावन), ४.८६(केदार - कन्या, धर्म को शाप), ४.८६.३५(वृन्दा का वृषभानु - सुता व रायाण - भार्या रूप में राधा की छाया बनना), शिव २.५.१४+ (जालन्धर आख्यान), स्कन्द २.४.१४.३०, २.४.२१, लक्ष्मीनारायण १.३३०.७८(भस्म होने के पश्चात् वृन्दा का गौरी अंश में धात्री, लक्ष्मी अंश में मालती व रमा अंश में तुलसी होने का कथन), १.३३०.८५(केदार - सुता होकर वृन्दा द्वारा विष्णु को प्राप्त करने का कथन), १.३३१.३७(विष्णु को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वृन्दा द्वारा तप, राजा केदार के यज्ञकुण्ड से प्रकट होकर केदार की पुत्री बनना), १.३२४, १.३२९.६२(गोलोक में वृन्दा के स्वर्णा अप्सरा - सुता होने का उल्लेख), २.१४.२८(वृन्दा द्वारा मेघास्त्र रोधक शालग्राम अस्त्र का मोचन ) vrindaa

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      वृन्दारक वामन ९०, स्कन्द २.४.२१.२, लक्ष्मीनारायण १.१२०.५७(गोलोक के अन्तर्गत वृन्दारक स्थान का वर्णन), २.२३२.६४वृन्दारुक


      वृन्दावन गर्ग ३.९(वृन्दावन का कृष्ण की जानु से प्राकट्य), ५.१७.७, १०.४२.१२(वृन्दावन के स्वरूप का कथन), नारद १.८०.४०(वृन्दावन व कृष्ण के स्वरूप का चिन्तन), २.८०(वृन्दावन क्षेत्र के तीर्थों का माहात्म्य), पद्म ५.६९.३६(सहस्रदल कमल में अष्ट दल कमल का रूप ?), ५.७५.७(वृन्दावन में ३२ वन होने का उल्लेख), ५.८२+ (वृन्दावन का माहात्म्य, शिव द्वारा कृष्ण के रूप का दर्शन), ६.१५, ६.१९३, ब्रह्मवैवर्त्त ३.३१.४३(वृन्दावन विहारी कृष्ण से ऐशान दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ४.१७(यक्षों द्वारा वृन्दावन का निर्माण), ४.९२.३०(वृन्दावन के अन्तर्गत वनों की शोभा का वर्णन, उद्धव यात्रा का प्रसंग), भविष्य ३.४.२५.१६०(राधा व कृष्ण के तेज से वृन्दावन की उत्पत्ति, वन का नाम), भागवत १०.११(गोपों का गोकुल से वृन्दावन में स्थान्तरण), वराह १५३, १५७(वृन्दावन के अन्तर्गत वनों व तीर्थों का माहात्म्य ), स्कन्द ५.३.१९८.७६, लक्ष्मीनारायण १.१२०, १.३३९, vrindaavana/ vrindavana


      वृश्चिक गरुड १.२१७.२३(कृतघ्नता से वृश्चिक योनि प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.७३(नरक में वृश्चिक कुण्ड प्रापक दुष्कर्मों का कथन), मार्कण्डेय १५.१७(कृतघ्न द्वारा वृश्चिक योनि प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१५९.२५(वृषलीपति के वृश्चिक बनने का उल्लेख), महाभारत कर्ण ४०.३३(वृश्चिक विष उतारने के लिए मद्र देश के आचार की निन्दा वाले श्लोक), लक्ष्मीनारायण १.३७०.९५(नरक में वृश्चिक कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), २.१४.३१(विखाता राक्षसी द्वारा वृश्चिकास्त्रमोचन का उल्लेख), २.१२१.९९(वृश्चिक ऋषि द्वारा न य वर्णद्वय प्राप्ति का उल्लेख), ४.६२.१२ vrishchika


      वृष गणेश १.६२.१३(सुलभ क्षत्रिय का विप्र शाप से हलकर्षक वृष होना), गरुड २.३.४/२.१३.४+ (प्रेतत्व से मुक्ति हेतु वृष उत्सर्ग), २.६.४(वृषोत्सर्ग के सम्बन्ध में वीरवाहन-वसिष्ठ संवाद), २.६.११६(वृषोत्सर्ग के सम्बन्ध में लोमश का वैश्य को उपदेश), २.१४(वृषोत्सर्ग विधि), २.४१(वृषोत्सर्ग निरूपण अध्याय), नारद १.६६.९७(वृष विष्णु की शक्ति संध्यायुक् प्रज्ञा का उल्लेख), १.६६.९७(वृषघ्न विष्णु की शक्ति बालसूक्ष्मा का उल्लेख), १.६६.१३५(वृषकेतन गणेश की शक्ति भगा का उल्लेख), पद्म ६.३२(वृष दान की महिमा), ६.१४४(वृष तीर्थ का माहात्म्य, खण्ड तीर्थ उपनाम), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.५०(वृषवाहन से स्कन्धों की रक्षा की प्रार्थना), २.५१.५८(वृष को भारवाहक बनाने के दोषों का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.७४.५७(दीर्घतमा द्वारा वृष को पकडने और वृष धर्म ग्रहण करने का वृत्तान्त), भविष्य १.१३८.३७(ईश्वर की वृष ध्वज का उल्लेख), २.१.१७.८(वृष उत्सर्ग में अग्नि का सूर्य नाम), ३.४.८.९०(शिव का वाहन नन्दी १८ अङ्गों वाले अहंकार का प्रतीक ; स्वरूप, द्र. त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति), ४.१३१(वृष उत्सर्ग), ४.१४१(मङ्गल ग्रह के लिए रक्त वृष का दान), ४.१५०(वृष दान विधि), ४.१६०(वृष दान विधि), मत्स्य १०१.६५(वार्ष व्रत), १५४.४४०, १५५.२२, २०७(वृष की श्रेष्ठता के लक्षण, उत्सर्ग विधि, महत्त्व), लिङ्ग २.४१(सुवर्ण वृष दान की विधि), विष्णुधर्मोत्तर १.१४६.४१(कृष्ण - प्रोक्त धर्म रूपी वृष के लक्षण), १.१४७(वृष उत्सर्ग), १.१८६(११वें इन्द्र का नाम), शिव ३.२३(शिव रूपी वृष द्वारा विष्णु को बोध), स्कन्द ४.१.४५.३९(वृषानना : ६४ योगिनियों में से एक), ४.२.६८.७८(वृष रुद्र का संक्षिप्त माहात्म्य, त्रिधा बद्ध रुद्र की पूजा से विघ्न से मुक्ति, द्र. त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति), ५.२.१८.२८(शिव के वृष होने के कारण दुर्बोधत्व के अभाव का उल्लेख), ५.२.४०.६, ५.३.५०.२६, ५.३.५६.१२०, ५.३.७४.१६(वृषोत्सर्ग की संक्षिप्त विधि व काल), ५.३.९७.१६९(व्यास तीर्थ में वृषोत्सर्ग का माहात्म्य, नील वृष के लक्षण), ५.३.१४६.७६(अस्माहक तीर्थ में वृषोत्सर्ग का महत्त्व, नील, बभ्रु आदि वृषों के लक्षण), ५.३.१७२.८८(माण्डव्य तीर्थ में वृषोत्सर्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१८१.२ वृषखात, ५.३.१८१.१९(वृषखात तीर्थ का माहात्म्य, वृष रूप धारी ब्रह्मा द्वारा भृगु के क्रोध की परीक्षा), ५.३.२०९.१६९(भारभूति तीर्थ का माहात्म्य, भारवाहक मित्रघाती वृष की मुक्ति), ६.२५९(नील वृष की सुरभि के गर्भ से शिव तेज से उत्पत्ति, धर्म का रूप, ऋषियों द्वारा स्तुति), ७.१.९०(वृष वाहनेश्वर का माहात्म्य, कल्पों में नाम, ब्रह्मेश्वर व रैवतेश्वर से तादात्म्य), हरिवंश १.३३.५४(वृष्णि वंश प्रवर्तक), महाभारत द्रोण १८०.२४(कर्ण की वृष संज्ञा का कारण- ब्रह्मण्य, सत्यवादी आदि), शान्ति ३४२.८८(वृषाकपि के संदर्भ में वृष का धर्म रूप में कथन), वा.रामायण ६.१०९.१२(वृष रूपी रावण का राम रूपी व्याघ्र द्वारा वध का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३५६, १.४३९.२९(नारी द्वारा चरणीय वृषों/नियमों का कथन, धर्म - वर्धिनि संवाद), २.७७.३६ वृषदान, २.१४०.१५(वृष प्रासाद के लक्षण ), ३.२२.१अ वृष, ३.८५.८६, ३.११४.६ वृषङ्गम, कथासरित् ९.६.२९४(दान्त नामक वृष की प्राप्ति हेतु नल द्वारा पुष्कर से द्यूत क्रीडा), १२.३.८९, १०८(धर्म - अधर्म रूपी वृष - गर्दभ का कथन), द्र. नील वृष, वृषभ vrisha


      वृषण गरुड २.३०.५४/२.४०.५४(मृतक के वृषणों में वृन्ताक देने का उल्लेख), मार्कण्डेय १५.३४, हरिवंश ३.७१.५० लक्ष्मीनारायण १.१७७.६७(दक्ष यज्ञ में वायु के वृषण छेदन का उल्लेख), ३.२२.३५(नृमेध में श्रीहरि के वृषणों का शालग्राम होने का कथन ), ३.२२.१०५, vrishana


      वृषदर्भ वायु ९९.२३/२.३७.२३, द्र. वृषादर्भि


      वृषध्वज देवीभागवत ९.१५(इन्द्रसावर्णि - पुत्र, नारायण पूजा त्याग, सूर्य द्वारा शाप, शिव का सूर्य पर कोप), नारद १.६६.१२८(वृषध्वज की शक्ति नन्दा का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.१३(सूर्य द्वारा वृषध्वज को शाप, शंकर द्वारा सूर्य का ताडन), भविष्य १.१३८.३७(ईश्वर की वृष ध्वज का उल्लेख), वराह ८१, स्कन्द ३.३.१२.१९(वृषध्वज से दिन के अन्तिम याम में रक्षा की प्रार्थना), ४.२.६२.८५(शिव की कपिला तीर्थ में वृषध्वज नाम से स्थिति का उल्लेख), ४.२.७९.१००(वृषध्वज पीठ का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.३३४ vrishadhwaja


      वृषपर्वा देवीभागवत ९.२२(शङ्खचूड - सेनानी, महेन्द्र से युद्ध), नारद १.७९.६३, भागवत ८.१०.३०(वृषपर्वा का अश्विनौ से युद्ध), मत्स्य ६, २९, मार्कण्डेय १२३.५, १३३.५/१३०.५(वृषपर्वा से धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्ति का उल्लेख), शिव २.५.३६.७(शङ्खचूड - सेनानी, महेन्द्र से युद्ध), स्कन्द १.१.१२(वृषपर्वा द्वारा धन्वन्तरि से अमृत कलश छीनना), हरिवंश ३.५१, ३.५३.२१(वृषपर्वा का विश्वेदेव से युद्ध ), ३.५९, लक्ष्मीनारायण २.४१.८०, ३.२२१, कथासरित् ८.२.३७९(वृषपर्वा नामक दैत्य का सचिव भास रूप में अवतरण का उल्लेख), द्र. वंश दनु vrishaparvaa


      वृषभ अग्नि २११.७(हल पंक्ति सहित वृषभ दान का महत्त्व, ज्येष्ठ पुष्कर में वृषभ दान का महत्त्व), २११.१०(वृषभ दान का मन्त्र), गरुड ३.१६.१२(जयन्ती-पति), देवीभागवत ७.८.२६(राजा ककुत्स्थ द्वारा वृषभ रूप इन्द्र पर आरूढ होकर असुरों से युद्ध की कथा), पद्म ६.३२.२२(नील वृषभ के लक्षण), ६.७७.२१(बलीवर्द द्वारा शुनी से अपने दुःख का कारण कहना, ऋषि पञ्चमी संदर्भ), ब्रह्म १.८१.४४(अरिष्टासुर का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६, ब्रह्माण्ड १.२.१९.१६(वृषभ पर्वत के वर्ष के क्षेमक नाम का उल्लेख), १.२.३६.९८(सृष्टि व छाया के ५ पुत्रों में से एक), २.३.१९.१६(वृषभ दान से पितरों की तृप्ति का कथन), भविष्य ३.४.८.९१(व्याकरण में १८ अंगों वाले वृषभ का स्वरूप), ४.९४.६३(अनन्त की कथा में वृषभ के हर्ष/लोभ रूप होने का कथन), ४.१३१.२(वृष उत्सर्ग विधि व महत्त्व), ४.१६०.३(लाङ्गूल सहित वृषभ दान विधि व महत्त्व), भागवत १०.५८.३३(सत्या से विवाह के लिए सात वृषभों के बन्धन की शर्त), १३.४, विष्णु ५.१४(अरिष्टासुर द्वारा धारित रूप, कृष्ण द्वारा वध), विष्णुधर्मोत्तर १.१४६.४१(श्रेष्ठ वृषभ के लक्षण), १.१४६.५१(लाङ्गूल से भूमिकर्षण करने वाले वृषभ की श्रेष्ठता का उल्लेख), १.१४७(वृषोत्सर्ग विधि), शिव १.१७.८५(धर्म का रूप, वृषभ से अङ्गों के रूपक का वर्णन), १.१७.८५(महिषारूढ कालचक्र को तरने पर वृषभ धर्म को प्राप्त करने का कथन, कारणों में वृषभ के क्रिया रूप होने का उल्लेख), १.१७.१११(तप रूपी वृषभ/ नन्दी का उल्लेख), ३.२२.४५ - ३.२३(विष्णु की समुद्र - संजात नारियों पर आसक्ति, शिव द्वारा वृषभ रूप में बोध), स्कन्द १.२.२.४३(वृषो हि भगवान्धर्मो वृषभो यस्य वाहनम् गाथा का उल्लेख), २.१.३५.२(वृषभाचल से कल्या नदी का उद्भव), ३.१.३.६३(धर्म का तप से शिव का वाहन वृषभ बनना), ३.२.६.९८(वृषभ दान से लक्ष्मीवान् होने का उल्लेख), ४.२.६६.१९(वृषभेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.६७.२२(शिव-वाहन वृषभ का कालपृष्ठ दानव से युद्ध), ५.३.१८१.१९ (वृष रूप धारी ब्रह्मा द्वारा भृगु को क्रुद्ध करने की कथा), ५.३.२०९.१७, ६४ (मित्रघाती के अन्त में वृषभ योनि प्राप्त करने तथा मुक्त होने का वृत्तान्त), ६.२५८.४४(विप्र शाप से लिङ्ग पतन के पश्चात् शिव का सुरभि गर्भ में स्थित होना), ६.२५९.४०(ऋषियों द्वारा सुरभि-पुत्र रूप में उत्पन्न नील वृषभ रूप धारी शिव को पहचानना, स्तुति, नील वृष उत्सर्ग का माहात्म्य), ७.१.९०(वृषभेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, चार कल्पों में नाम), महाभारत द्रोण १०५.१४(कृपाचार्य के रथध्वज पर गोवृष चिह्न होने का उल्लेख), कर्ण ३४.१०४(शिव द्वारा नन्दी वृषभ के खुरों को द्विधा करने का उल्लेख), अनुशासन १४.२४०(उपमन्यु के समक्ष ऐरावत का वृषभ में रूपान्तरण, वृषभ के स्वरूप का कथन), ७७.२८(शिव द्वारा वृषभ प्राप्ति का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.१८४, २.१२१.९६(वृष राशि द्वारा प्राप्त वर्णों का उल्लेख), २.१४०.४१(वृषभ प्रासाद के लक्षण ), २.२५३.४(शकट में जुडे क्षुधातृषा वृषभद्वय का कथन), ३.१९८.११, कथासरित् ९.४.१६(नारिकेल द्वीप के चार पर्वतों में से एक, प्रमाणसिद्धि? का वास स्थान), १०.४.१२(पिङ्गलक नामक सिंह द्वारा अपने विश्वस्त वृषभ संजीवक को खाने की कथा), १०.९.१८३(भौत द्वारा दिव्य वृषभ की पुच्छ ग्रहण करके स्वर्ग पहुंचना, पुच्छ छोड देने पर पतन का वृत्तान्त), १०.१०.१०२(दान्त वृषभों के विक्रय से विप्र द्वारा धन प्राप्त करने का कथन), vrishabha

      Procedure for release of Bull


      वृषभध्वज वामन ९०.३३(कैलास पर विष्णु का वृषभध्वज नाम), ९०.४३(शाल्मलि द्वीप में विष्णु का वृषभध्वज नाम), स्कन्द ७.१.२२० (वृषभध्वज लिङ्ग का माहात्म्य )


      वृषभाञ्जन वराह १५७


      वृषभानु गर्ग १.३(सुचन्द्र का अवतरित रूप), १.४(गोपालक की उपाधि व लक्षण), १.८.२५(सुचन्द्र का अंश, कीर्ति - पति), १.१८(६ वृषभानुओं के नाम, पूर्व जन्म में निकुञ्ज में द्वार प्रहरी), ३.९.२०(वृषभानुओं की कृष्ण के बाहुमूलों से उत्पत्ति), ४.११.२(व्रज में ६ वृषभानुओं के नाम, वृषभानु - कन्याओं द्वारा कृष्ण प्राप्ति की कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त २.४९.५५(वसुदामा का रूप?), ४.१७, शिव २.३.२, लक्ष्मीनारायण १.१७९, १.४६७, vrishabhaanu/ vrishabhanu


      वृषली वामन ९०.३६(वृषलेश्वर : महातल? में विष्णु का नाम), स्कन्द ५.३.८३.९९, ५.३.१५९.२५, ७.१.२०५.७९(वृषली की परिभाषा व प्रकारों का कथन ), महाभारत आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ.६३४३, कथासरित् ५.१.४०(वृषली कन्या की परिभाषा ) vrishalee/ vrishali


      वृषाकपि ब्रह्म २.५९.९९(शिव व विष्णु के सम्मिलित अंशों से उत्पन्न पुरुष वृषाकपि द्वारा महाशनि का हनन, इन्द्र का मित्र बनना, शची की चिन्ता), भागवत ८.१०.३२(वृषाकपि का जम्भ से युद्ध), वामन ९०/९१.६२(निशाकर के पूर्व जन्म में वृषाकपि व माला - पुत्र होने पर पिता द्वारा निशाकर को विद्या प्रदान की चेष्टा का कथन), स्कन्द ४.१.९.८१(सूर्य का एक नाम), हरिवंश ३.३३.१५(प्रलयकाल में अग्नि का एक रूप), ३.३४.४८(धरा का उद्धार करने वाले वराह का नाम), महाभारत शान्ति ३४२.१२/३५२.२४(वृषाकपि की निरुक्ति – वृषा धर्म, कपि वराह, श्रेष्ठ), ३४५.१८ (वृषाकपि/वराह द्वारा पितरों के पिण्डदान की विधि का निरूपण ), अनुशासन १५०.१२(११ रुद्रों में से एक), vrishaakapi/ vrishakapi

      References on Vrishakapi


      वृषादर्भि स्कन्द ६.३२, ७.१.२५५(राजा वृषादर्भि द्वारा अनावृष्टि में सप्तर्षियों को अन्न दान, हेमपूर्ण उदुम्बर देने की चेष्टा ), लक्ष्मीनारायण १.५४०, ३.१०३.५४, द्र. वृषदर्भ vrishaadarbhi/ vrishadarbhi


      वृषायन लक्ष्मीनारायण ३.८५,


      वृष्टि मत्स्य २३३(वृष्टि जन्य उत्पात लक्षण व शान्ति), लिङ्ग १.३९(धर्ममेघ समाधि का रूप), स्कन्द ६.३६.२९(अनावृष्टि निवारण हेतु पञ्चेन्द्रं जपने का निर्देश - अनावृष्टिहते लोके पंचेंद्रं तत्र यो जपेत् ॥ तस्य हस्तकृते होमे तन्मंत्रैः स्याज्जलागमः ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.३७५, १.३८२.१८२(मरीचि की ४ कन्याओं में से एक), vrishti


      वृष्णि मत्स्य ४५.१(सात्त्वत - पुत्र, गान्धारी व माद्री – पति, वंश वर्णन - गान्धारी चैव माद्री च वृष्णिभार्ये बभूवतुः। गान्धारी जनयामास सुमित्रं मित्रनन्दनम्।।), वायु ९६/२.३४.१७(गान्धारी व माद्री – पति, वृष्णि वंश का वर्णन - गान्धारी चैव माद्री च वृष्णेर्भार्य्ये बभूवतुः ।।), हरिवंश १.३४.३(श्वफल्क व चित्रक – पिता),


      वेगवती कथासरित् १४.१.४२(वेगवती विद्याधरी द्वारा मदनमञ्चुका का रूप धारण कर नरवाहनदत्त के सेवन का वृत्तान्त), द्र. चण्डवेग, मदनवेग, विजयवेग, शक्तिवेग


      वेगसरी कथासरित् १८.४.२६३(कुसुमायुध विप्र पुत्र का वाहन?)


      वेगिल कथासरित् ८.४.८५(विद्याधर कालकम्पन द्वारा हत ६ रथियों में से एक )


      वेङ्कट गरुड ३.२३.४७(जाम्बवती द्वारा जैगीषव्य से वेङ्कटगिरि की प्रशंसा का श्रवण), ३.२५.२२,३६(श्रीनिवास द्वारा प्रदत्त वेङ्कट मन्त्र व अर्थ), ३.२५.३६(वेङ्कट शब्द की निरुक्ति), ३.२९.५९(तैल, सर्पि आदि में पक्व भक्ष भोजन के समय वेंकटेश के ध्यान का निर्देश), स्कन्द २.१.१६


      वेङ्कटाचल स्कन्द २.१.१+ (वेङ्कटाचल का माहात्म्य), २.१.२७(तीर्थों का आधार), लक्ष्मीनारायण १.४०२


      वेङ्कटेश्वर स्कन्द २.१.१७(वेङ्कटेश्वर का माहात्म्य, भक्ति के प्रकार )


      वेणा देवीभागवत ७.३०(वेणा नदी के तट पर अमृता देवी का वास), पद्म ६.१११(नदी, शापग्रस्त महेश का रूप), वामन ५७.८०(वेणा द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), स्कन्द २.१.३४(वेणा नदी का सुवर्णमुखरी नदी से सङ्गम ), ४.१.७.६५, ५.३.१९८.८७, कथासरित् ८.६.१७५(वेणा तट पर सुलोचना मन्त्र वेत्ता विष्णुगुप्त का निवास), १८.४.२०४(वेणा तीरस्थ कंदर्प द्विज का वृत्तान्त), venaa


      वेणी नारद २.४०.३८(राज्य, सरयू व गङ्गा के सङ्गम का स्थान), द्र. कृष्णवेणी, त्रिवेणी


      वेणु गरुड ३.२९.६५(गान काल में वेणुगीत हरि के ध्यान का निर्देश), नारद १.५०.५९(वेणु के स्वरों का साम गान के स्वरों से साम्य व वैषम्य), १.५०.७९(साम गान हेतु गात्र वेणु का वर्णन), पद्म ५.७२.३९(कृष्ण की वंशी का सम्मोहन नाम), ५.७३.३७( अश्रद्धा के कारण राजा हरिदास का दारुण वेणु बनना, प्रसाद ग्रहण करने के कारण कृष्ण की वेणु बनना), ब्रह्माण्ड १.२.१९.५४(हेम पर्वत के वेणुमण्डल वर्ष का उल्लेख), २.३.११.४०(वेणु काष्ठ पात्र : पर्जन्य वर्षाकारक), भागवत ६.८.२० (वेणुधारी गोविन्द से आसंगव काल में रक्षा की प्रार्थना), १०.२१(कृष्ण के वेणु गीत की मधुरता), १०.३५(कृष्ण द्वारा युगल गीत का वैभव), लिङ्ग १.५०.४(वेणु पर्वत : विद्याधरों का निवास स्थान), वराह ८१.२, वामन ५७.८३(सुवेणु द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), वायु ७५.५(बलि हेतु वेणु काष्ठ पात्र का महत्त्व), शिव ५.१८.५५, ५.२६.४०(वंशज : ९ प्रकार के शब्दों में से एक), ५.२६.५०(वंश नाद का फल : सर्वतत्त्व प्रजनन), स्कन्द २.६.२(राधा - कृष्ण के प्रेम का रूप), ३.१.५(घोषवती वेणु, उदयन को ललिता से घोषवती वेणु की प्राप्ति), ६.८३(दुराचारी नृप वेणु द्वारा कुष्ठ प्राप्ति, सुपर्णेश्वर आराधना से मुक्ति), ६.९०.२७(गज द्वारा वंशस्तम्ब में अग्नि के छिपने का रहस्य बताने का कथन),७.३.७(नृप, पूर्व जन्म में शुक, अचलेश्वर की प्रदक्षिणा ), लक्ष्मीनारायण १.५५१, १.५५६, कथासरित् ८.३.९८, १०९(कीचकवेणु वन में कीचकों के धनुष बनने का वृत्तान्त), द्र. भूगोल venu


      वेणुमान कूर्म १.४०.२२(ज्योतिष्मान - पुत्र), वराह ८१.२, वायु ३९.३७(वेणुमान् पर्वत पर विद्याधरों का वास),


      वेण्या पद्म ६.१११.२६


      वेतस स्कन्द ६.२५२.२१(चातुर्मास में समुद्रों की वेतस वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), कथासरित् १.२.४१(वेतस पुर में इन्द्रदत्त व व्याडि का वृत्तान्त), १८.२.१६२(धूर्त द्वारा वेतसी तल में रत्नपूर्ण कलश होने की भविष्यवाणी )


      वेताल अग्नि ९१, ९३.३९(चिता हेतु वास्तुमण्डल का नाम - पञ्चविंशतिपदो वास्तुर्वेतालाख्यश्चितौ स्मृतः।), पद्म २.२७(यक्ष, राक्षस, भूत, पिशाचों के अधिपति), ब्रह्माण्ड ३.४.२४.५५(करटक असुर का वाहन - अन्यः करटको नाम दैत्यसेनाशिखामणिः । मर्दयामास शक्तीनां सैन्यं वेतालवाहनः ॥), भविष्य २.२.२०.५७(वेतालों के कुछ नाम), ३.१.७+ (वेताल के विक्रमादित्य से संवाद का आरम्भ), ३.२.१+, ३.२.२२(क्षत्रसिंह राजा द्वारा तामसी देवी की स्तुति, वेतालत्व प्राप्ति - इत्यष्टकप्रभावेण क्षत्रसिंहो महीपतिः ।।
      शिवलोकं गतः साधु र्वैतालत्वमवाप्तवान् ।।), भागवत ७.८.५४(वेतालों द्वारा नृसिंह की स्तुति - सभासु सत्रेषु तवामलं यशो गीत्वा सपर्यां महतीं लभामहे।
      यस्तामनैषीद्वशमेष दुर्जनो द्विष्ट्या हतस्ते भगवन्यथाऽऽमयः॥), शिव ३.२१(गिरिजा के शाप से भैरव का वेताल रूप में जन्म), स्कन्द २.१.२५(दुराचार द्विज का पाप से वेताल से पीडित होना, मुक्ति), ३.१.८(वेताल तीर्थ : सुदर्शन विद्याधर का शाप से वेताल बनना), ३.१.९, ३.१.३६.१६(दुराचार ब्राह्मण की धनुष्कोटि तीर्थ में स्नान से वेताल ग्रहण से मुक्ति), ४.२.६८.७४(वेताल कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७२.९४(काशी में ६४ वेतालों का स्वरूप - रुंडमुंडस्रजः सर्वे कर्त्रीखर्परपाणयः ।। श्ववाहना रक्तमुखा महादंष्ट्रा महाभुजाः ।।), योगवासिष्ठ १.१६.२०(वेताल की दुष्ट चित्त से उपमा - मिथ्यैव स्फाररूपेण विचाराद्विशरारुणा । बालो वेतालकेनेव गृहीतोऽस्मि कुचेतसा ।।), ३.४९.३५(सिन्धु राजा द्वारा विदूरथ राजा पर प्रयुक्त वेताल अस्त्र), ५.८०.२६(चित्त की वेताल से उपमा - सह तृष्णापिशाचीभिः सह कोपादिगुह्यकैः । निर्गच्छ चित्तवेताल शरीरसदनान्मम ।। ), ६.१.२९.३९( अहंकार व चित्त की वेताल संज्ञा - कुतोऽप्यागत्य निःसारः सर्वसज्जनवर्जितः । अहंकारः कुवेतालः प्रविष्टश्चित्तनामकः ।। ), ६.१.७०( वेताल द्वारा राजा से प्रश्नपृच्छा - हे रात्रिचर निर्न्याय्यं मां चेदत्सि बलादिह । तत्ते सहस्रधा मूर्धा स्फुटिष्यति न संशयः ।। ), लक्ष्मीनारायण १.४३५, २.१८९, कथासरित् ३.४.१५६(शव में अधिष्ठित वेताल को सर्षप आदि के द्वारा क्रियाशील बनाने का वृत्तान्त), ५.३.२३७(देवदत्त द्वारा वेताल सिद्धि का उद्योग), ९.५.१३५(राजा द्वारा वेताल द्वारा एकावली से विच्छेद करने तथा जल में फेंकने का स्वप्न देखना), ९.५.२०८(वीर वेताल साधन से विद्याधरत्व प्राप्ति का उल्लेख), १२.२.२७(पराजित सिंह का वेताल में रूपान्तरण), १२.६.२९२(श्रीदर्शन द्वारा वेताल - अधिष्ठित शव की प्राप्ति, वेताल की क्षुधा तुष्टि हेतु स्वमांस अर्पण, वेताल द्वारा श्रीदर्शन को दिव्य सर्षप प्रदान), १२.८.१(वेताल पञ्चविंशति का आरम्भ, विक्रमकेसरी द्वारा वेताल सिद्धि प्राप्ति), १२.३५.१८ (वेताल के स्वरूप का कथन, वेताल का शिव की नगरी उज्जयिनी में प्रवेश में असफल होना), १८.२.२४(विक्रमादित्य के आदेश से अग्निशिख नामक वेताल द्वारा दुष्ट कापालिक का वध), vetaala


      वेत्र गर्ग २.२०.२६(वेत्र गङ्गा का माहात्म्य : कृष्ण द्वारा भूमि पर वेत्र ताडन से वेत्र गङ्गा की उत्पत्ति), पद्म ६.१३४(वेत्रवती नदी की वृत्र - कूप से उत्पत्ति, विदारुण राजा की कुष्ठ से मुक्ति), भविष्य ४.३वेत्रवती, वराह २८(वेत्रवती का सिन्धुद्वीप से विवाह, वेत्रासुर पुत्र), महाभारत शान्ति ११३, लक्ष्मीनारायण २.१८.२६(इन्द्र - कन्याओं द्वारा कृष्ण को अर्पित वेत्र के स्वरूप का कथन ), कथासरित् ८.५.९६(श्रुतशर्मा के ४ महारथियों में से एक, पूषा? का अंश ) vetra


      वेत्रासुर वराह २८(सिन्धुद्वीप व वेत्रवती - पुत्र, दुर्गा द्वारा संहार),


      वेद अग्नि २५.२२(चतुर्व्यूह रूपी चार वेदों का न्यास), १६२(वेद उपाकर्म/अध्ययन काल का निर्धारण), २६०, २७१.१(वेदों की मन्त्र संख्या व शाखाएं, वेदों की महिमा), कूर्म २.३१.१३(चारों वेदों द्वारा शिव का गुणगान), गरुड ३.४०.४२(ऋग्वेदी, यजुर्वेदी, सामवेदी हेतु दक्षिणाएं), गर्ग १.४३.२७(वेद नगर की शोभा का वर्णन, रागों के वर्ण/रंग), १.४५(वेदाङ्गों से हरि के शरीर की रचना), ५.२१(वेद नगर में नारद द्वारा रागों के अङ्ग - भङ्ग देखकर सरस्वती कृपा प्राप्ति हेतु तप), नारद १.५०.२२(तीन वेदों में ७ स्वरों की स्थिति), पद्म ६.९०(शङ्ख असुर द्वारा वेदों का हरण, मत्स्य रूपी विष्णु द्वारा शङ्ख वध के पश्चात् ऋषियों द्वारा वेदों का समुद्र से उद्धार), ब्रह्म २.९९(सिन्धुद्वीप मुनि के भ्राता वेद द्वारा आदिकेश शिव की पूजा, शिव का वेदी की पूजा की अपेक्षा व्याध की भक्ति पर प्रसन्न होना), ब्रह्माण्ड १.२.८.५०(वेदों की ब्रह्मा के मुखों से सृष्टि), १.२.३३.३६(ऋग~, यजु, साम मन्त्रों के लक्षण), १.२.३५(वेदों के आचार्यों व शिष्यों के नाम), भविष्य १.४(वेदाध्ययन विधि), ३.२.३०(चतुर्वेदों के पितृशर्मा के पुत्र रूप होने का कथन, पौत्रों के नाम), ३.३.२८.४९(चार वेदों से सम्बन्धित शब्दों के लक्षण), भागवत ११.२१.३५(वेदों के काण्ड, वर्ण, छन्द), १२.६(वेदों के शाखा भेद), १२.७(अथर्ववेद की शाखाएं व आचार्य), मत्स्य १४४.१०(द्वापर में वेदों की दुर्दशा का कथन), २८९.८(वेदों की प्रतिमा का स्वरूप), मार्कण्डेय ६३.३९/६०.३९(आयुर्वेदाचार्य ब्रह्ममित्र द्वारा अथर्ववेद के १३वें काण्ड पर अधिकार रखने का उल्लेख), १०२/९९(ऋग~, यजु, साम, अथर्व के विभिन्न भेदों का विवेचन), १३३.७/१३०.७(शक्ति से वेद - वेदाङ्गों की शिक्षा ग्रहण का उल्लेख), लिङ्ग १.७४.११(वेदों द्वारा दधिमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), वराह २(वेदों की सावित्री की देह में स्थिति), १४५.११(सालंकायन मुनि द्वारा ३ दिशाओं में तीन वेदों द्वारा स्तुति), वायु ५९.९१(वेदों के मन्त्रकर्त्ता ऋषियों के विभाग व नाम), ६०.१२(वेदों के वक्ता ऋषिगण के नाम), ६१(वेद शाखा प्रवर्तक ऋषि व शिष्यगण), ६१.७(यजुर्वेद के दिशा/देश अनुसार ३ भेद), १०४.५७(तपोरत व्यास के समक्ष अक्षरवेद का प्राकट्य), विष्णु ३.४(ऋग्वेद के आचार्य व शिष्य गण), ३.५(याज्ञवल्क्य द्वारा शुक्ल यजुर्वेद प्राप्ति की कथा), ३.६(सामवेद की शाखाएं, आचार्य व शिष्य), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४९(वेदस्मृति नदी के मयूर वाहन का उल्लेख), ३.७३(वेदों के अधिदेवता व मूर्तियों का स्वरूप), शिव २.५.९, ३.८, ३.४२, ५.२७.२५(वेदाहमेतं पुरुषं महान्तं), ७.२.३५.३३(४ वेदों के जाग्रत, स्वप्न आदि स्वरूपों का कथन), स्कन्द २.२.२८.४४(चतुर्वेद : बलभद्र, नृसिंह, सुभद्रा व सुदर्शन चक्र से सारूप्य), २.३.६(ब्रह्मा को वेदों की प्राप्ति), २.४.१३(शङ्ख असुर द्वारा वेदों का हरण, वेदों का समुद्र में बिखरना, ऋषियों द्वारा एकत्र करना), ४.१.३१.२२, ४.१.३१.२४(शिव व विष्णु के श्रेष्ठता विषयक विवाद में वेदों द्वारा शिव की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), ४.२.९२.६(वेदों का चार नदियों गङ्गा, यमुना, नर्मदा व सरस्वती का रूप होने का कथन), ५.२.५८.१४(सावित्री कन्या के शरीर में ३ वेदों की स्थिति का कथन), ५.२.८३.१७(कपिल - बिल्व विवाद में कपिल द्वारा वेदों की व बिल्व द्वारा दान की प्रशंसा का कथन), ५.३.९(मधु व कैटभ द्वारा ब्रह्मा से वेदों का हरण, वेदों का समुद्र में विलीन होना, ब्रह्मा की स्तुति पर मत्स्य अवतार द्वारा वेदों का उद्धार), ५.३.८३.१०५(गौ की हुङ्कार में ४ वेदों की स्थिति का उल्लेख), ५.३.१८४.१९(विधूतपाप तीर्थ में वेद पठन के माहात्म्य का कथन), ५.३.१९८.८१(सरस्वती क्षेत्र में पार्वती की वेदमाता नाम से स्थिति का उल्लेख), ६.२०२(भर्तृयज्ञ - प्रोक्त अथर्ववेद की महिमा), ७.१.६.३८(चार वेदों की दिवस काल अनुसार स्थिति), ७.१.२०७.२५(वेद विक्रय के ६ प्रकार), हरिवंश ३.१७.४७(अव्यक्त के नेत्रों, जिह्वा व मूर्द्धा से ४ वेदों के प्राकट्य का उल्लेख), ३.१७.५०(देह में ४ वेदों का विभाजन, वेदों के दिव्य पुरुष के शीर्ष, ग्रीवा आदि होने का कथन), ३.७१.५५, महाभारत उद्योग ४३.३(वेदों द्वारा पाप से रक्षा न करने का कथन, वेदों की वास्तविक आवश्यकता), ४३.५२, शान्ति ३१८, आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३३९, ६३७६, लक्ष्मीनारायण १.३६४.३६(नारद द्वारा सावित्री के शरीर में तीन पुरुषों के रूप में तीन वेदों का दर्शन),१.५२२.३४(वेद त्रयी की महिमा), २.१४२.६, २.१५७.११(वेदों व वेदाङ्गों का न्यास ), ३.१८.१, ३.३३.१६, ३.१३२.५९, कथासरित् १.७.५६(देवदत्त द्वारा विद्याप्राप्ति हेतु उपाध्याय वेदकुम्भ की सेवा ) veda


      वेदधार वराह १४१,


      वेदनाथ स्कन्द ३.१.३४(वेदनाथ ब्राह्मण द्वारा शाक हरण से वानर योनि की प्राप्ति),


      वेदनिधि पद्म ६.१२८, ३.२२


      वेदपाद नारद २.७३,


      वेदबाहु गर्ग ७.२०.३२(प्रद्युम्न - सेनानी, शकुनि से युद्ध), द्र. मन्वन्तर


      वेदमालि नारद १.३५(यज्ञमाली व सुमाली - पिता वेदमालि ब्राह्मण द्वारा धनेपार्जन के पश्चात् धन का सुकर्मों में उपयोvग, जानन्ति मुनि से विष्णु भक्ति विषयक उपदेश प्राप्ति ) vedamaali/ vedamali


      वेदमित्र वामन ५७.९७(केदार तीर्थ द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण),


      वेदरथ स्कन्द ३.३.१८


      वेदवक्ता ब्रह्माण्ड २.३४?,


      वेदवती देवीभागवत ९.१६(कुशध्वज व मालावती - पुत्री, तप, रावण की कुचेष्टा का प्रसंग), ब्रह्मवैवर्त्त २.१४(कुशध्वज - कन्या, रावण - सीता आख्यान), ४.२७.१४६(वेदवती द्वारा गौरी व्रत से पति की प्राप्ति), वामन ३७, ६३+ (पर्जन्य - पुत्री, चित्राङ्गदा से भेंट), ६५.३०(घृताची व पर्जन्य - पुत्री, इन्द्रद्युम्न से विवाह), विष्णुधर्मोत्तर १.२२१(बृहस्पति - पौत्री, कुशध्वज - पुत्री, रावण द्वारा त्रास, वेदवती द्वारा रावण को शाप), स्कन्द २.१.७, ४.१.२९.१२१(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), वा.रामायण ७.१७(कुशध्वज - पुत्री, पिता की मृत्यु पर तप, रावण द्वारा बलात्कार की चेष्टा ) vedavatee/ vedavati


      वेदव्यास ब्रह्माण्ड २.३४?,


      वेदशर्मा पद्म २.१(शिवशर्मा - पुत्र, पिता द्वारा पितृभक्ति की परीक्षा), २.९१(अगम्यागमन पाप की तीर्थों में स्नान से निवृत्ति), ५.९४(सुरापायी, मुनिशर्मा द्वारा उद्धार ), भविष्य ३.४.८, vedasharmaa


      वेदशिरा अग्नि २०, कूर्म १.१३, गर्ग २.१३(वेदशिरा मुनि का अश्वशिरा मुनि के शाप से कालिय नाग बनना), पद्म १.३४(ब्रह्मा के यज्ञ में चमसाध्वर्यु), ५.७३.५५(वेदशिराओं के रहस्य के रूप में मथुरा के रहस्यों का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.११.७(वेदशिरा व धूम्र पत्नी के पुत्र मृकण्ड का उल्लेख), भागवत ४.१.४५(प्राण - पुत्र), ८.१, लिङ्ग १.२४.६८(१५वें द्वापर में मुनि), वायु २३.१६७(१५वें द्वापर में शिव - अवतार), विष्णु १.१०.४, शिव ३.५, स्कन्द ४.२.५९(शुचि अप्सरा द्वारा तप में विघ्न से वेदशिरा के वीर्य का स्खलन, धूतपापा नामक कन्या की उत्पत्ति ), लक्ष्मीनारायण १.२५९, द्र. वंश भृगु vedashiraa


      वेदश्रवा लक्ष्मीनारायण १.३८७(सुश्रुता – पति, राक्षस रूप धारी सौदास नृप द्वारा वध)


      वेदश्री द्र. मन्वन्तर


      वेदश्रुति वा.रामायण २.४९


      वेदसूरि लक्ष्मीनारायण १.३८०.७४(सत्रायण - पुत्र, ब्रह्मा की पुत्री से विवाह तथा विभिन्न रूपों में काम विहार, मृत्यु - पश्चात् मृग बनना, परशुराम के दर्शन से जाति ज्ञान आदि का वृत्तान्त )


      वेदाङ्ग महाभारत आश्वमेधिक दाक्षिणात्य पृ. ६३६५


      वेदान्त देवीभागवत १.१.१४(वेदान्त के सात्त्विक होने का उल्लेख), शिव २.३.१३(शिव - पार्वती का वेदान्त विषयक संवाद), ७.२.८(शिव तत्त्व ज्ञान ) vedaanta/ vedanta


      वेदायन पद्म ६.२०९(मुकुन्द ब्राह्मण की मृत्यु पर वेदायन द्वारा सांत्वना, आत्मस्वरूप का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.४४.१ vedaayana


      वेदी अग्नि १११, पद्म ३.२६, भविष्य २.१.९, २.१.२१(वेदी का प्रमाण), वामन २२.१८(मध्यमा, पूर्वा आदि ब्रह्मा की पांच वेदियां), वायु १.३४.३४, विष्णुधर्मोत्तर ३.२९६.१, स्कन्द २.२.३३(महावेदी महोत्सव, देवपूजा), हरिवंश ३.३५.६, ३.३५.९, महाभारत सभा ३८ दाक्षिणात्य पृष्ठ७८४(यज्ञवराह के वेदि स्कन्ध होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.९९.६(पार्वती के वेदी रूप व शिव के लिङ्ग रूप होने का कथन ; लिङ्ग व वेदी के योग से अर्धनारीश्वर का प्रादुर्भाव), २.२४६.५, २.३०.८०(५ दिशाओं में गया आदि तीर्थ रूपी वेदियों के नाम), २.२७३.१९, ४.१०१.१२७, कथासरित् ६.६.४२(अन्तर्वेदी में वसुदत्त विप्र के पुत्र विष्णुदत्त का वृत्तान्त), १४.३.६५(हिमालय पर विद्याधरों की उत्तर और दक्षिण वेदियों का वृत्तान्त ), द्र. अन्तर्वेदी, विश्ववेदी vedee/ vedi


      वेन पद्म १.२०, २.२८, २.३०, २.३७(अङ्ग व सुनीथा - पुत्र, सुशङ्ख के शाप से दुष्टता), २.३९(पाप के निष्क्रमण पर वेन का तप, विष्णु की स्तुति), २.८४+ (हृषीकेश द्वारा वेन को मातृ, पितृ, गुरु आदि तीर्थों का उपदेश), २.१००, २.१२३.५६(वेन द्वारा सदेह स्वर्ग जाने की इच्छा, स्वर्ग हेतु अश्वमेध का अनुष्ठान आदि), २.१२५(यज्ञ आदि द्वारा वेन को विष्णु लोक की प्राप्ति), ब्रह्म १.२(वेन की दुष्टता, ऋषियों का शाप, बाहु मन्थन से पृथु का जन्म), ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२२, १.२.३६, भागवत ४.१४(अङ्ग व सुनीथा - पुत्र, दुष्ट चरित्र, ऋषियों द्वारा हनन, शरीर मन्थन, पृथु व निषाद की उत्पत्ति), ६.१, वामन ४(भया - पुत्र, पृथु के जन्म का प्रसंग, म्लेच्छ योनि में जन्म, स्थाणु तीर्थ के जल से मुक्ति), ४७, वायु ६२.९९, ६२.१०७(वेन से पृथु की उत्पत्ति की कथा), विष्णु १.१३(वेन चरित्र), विष्णुधर्मोत्तर १.१०८(वेन की दुष्टता, पृथु के जन्म का आख्यान), हरिवंश १.२.२०(वेन के जन्म का प्रसंग ), हरिवंश १.५, लक्ष्मीनारायण १.५४९, द्र. वंश ध्रुव vena

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      वेमक हरिवंश ३.१(वेमक द्वारा अजपार्श्व के पालन की कथा )


      वेर द्र. बेर, शृङ्गवेरपुर


      वेला पद्म १.३८.१३२(वेला वन में राम द्वारा रामेश्वर की पूजा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१३.३७(मेरु व धारणी - कन्या, सागर - पत्नी, सवर्णा - माता), भविष्य ३.२.३६, ३.३.१(वेला के द्रौपदी का अवतार होने का उल्लेख), ३.३.१७.१०(पृथ्वीराज - पुत्री, इला व द्रौपदी का अंशावतार, जन्म पर अशकुन), ३.३.३२.१९८(ब्रह्मानन्द - भार्या वेला द्वारा ब्रह्मानन्द का वेश धारण करके युद्ध हेतु गमन, तारक का वध, पति व सम्बन्धियों के साथ चिता में भस्म होना), वायु ३०.३४(मेरु व धारणी - कन्या, सागर - पत्नी, सवर्णा - माता? ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.१९(वेला का विष्णु की जघन में वास), शिव ७.१.१७.५३, ७.१.१७.५५, कथासरित् ११.१.८३(शिखर वणिक् की कन्या का समुद्र में खोया जाना, मतङ्ग मुनि द्वारा प्राप्ति, वेला नामकरण आदि ) velaa


      वेश्या देवीभागवत ९.३५(वेश्याओं के प्रकार), पद्म १.२३.१००(देवासुर सङ्ग्राम में मृत राक्षस - पत्नियों को मन्दिर में वेश्याएं बनने का निर्देश, वेश्या धर्म का प्रतिपादन, दाल्भ्य द्वारा दस्युओं द्वारा हृत कृष्ण - पत्नियों को वेश्या कल्याण के लिए कामपूजा/ न्यास का कथन), ४.७, ५.११०, ६.२२०, ७.१०, ७.१७, ७.२०, ७.२३, ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.४(वेश्या के कुलटा, पुंश्चली आदि प्रकारों का कथन), २.३१.२७(वेश्यादि द्वारा प्राप्त नरकों का कथन), ४.२३.२७(तिलोत्तमा - कथित वेश्याओं का चरित्र), भविष्य ३.३.२८, ४.५३, मत्स्य ७०(वेश्या हेतु पण्यस्त्री व्रत विधि, कृष्ण - पत्नियों का दस्युओं द्वारा हरण, दाल्भ्य द्वारा पण्यस्त्री व्रत का उपदेश, व्रत में कामदेव का न्यास), १००, शिव ३.२६(महानन्दा नामक वेश्या की भक्ति से वेश्यानाथ शिव के अवतार की कथा), स्कन्द २.७.१७, ३.३.१०+, ३.३.२०(महानन्दा नामक शिव - भक्त वेश्या की शिव द्वारा वैश्य रूप में परीक्षा), ३.३.२२, ५.२.८१.७२, हरिवंश २.८८.८, योगवासिष्ठ १.१४.२०(वृद्धा वेश्या की वृद्धावस्था से उपमा ), लक्ष्मीनारायण ३.८२, कथासरित् १.६.५३(द्विज का लोकयात्रा शिक्षा प्राप्ति हेतु चतुरिका वेश्या के पास गमन), २.४.७८(रूपणिका वेश्या का वृत्तान्त, रूपणिका का लोहजङ्घ विप्र पर आसक्त होना), ९.३.५९(कार्पटिक द्वारा वेश्या को रत्नगर्भित बीजपूर देने तथा वेश्या द्वारा राजा को देने का कथन), १०.१.५८(रत्नवर्मा वणिक् द्वारा स्वपुत्र को वेश्या सम्बन्धी शिक्षा हेतु कुट्टनी के पास भेजना), १०.२.१(कुमुदिका वेश्या का वृत्तान्त), veshyaa


      वैकर्तन पद्म ६.१३५(दुष्ट राजा वैकर्तन द्वारा साभ्रमती में स्नान से दिव्य रूप की प्राप्ति ) vaikartana


      वैकुण्ठ गर्ग ५.१७.२५(कृष्ण विरह पर वैकुण्ठवासिनी रमा की प्रतिक्रिया), ५.१७.२७(कृष्ण विरह पर ऊर्द्ध्व वैकुण्ठ निवासी गोपियों की प्रतिक्रिया), नारद १.६२.४२(शुकदेव द्वारा वैकुण्ठ के दर्शन, वैकुण्ठ का वर्णन), १.६६.९६(वैकुण्ठ विष्णु की शक्ति वसुधा का उल्लेख, पुरुषोत्तम की वसुदा), पद्म १.२१.३०(कण्ठ में वैकुण्ठ का न्यास), ४.३.१६(वैकुण्ठ विप्र के संदर्भ में मूषक द्वारा दीपक के प्रबोधन की कथा), ६.३४.६७(त्रिस्पृशा एकादशी व्रत में कण्ठ में वैकुण्ठगामी के न्यास का उल्लेख), ६.२२८.१०(वैकुण्ठ का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.२, २.४९.५७(वैकुण्ठ में कृष्ण के चतुर्भुज तथा गोलोक में द्विभुज होने का कथन), ४.१२.२५(वैकुण्ठ कृष्ण से निर्ऋति दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.३६.५७(वृष, भेत्ता आदि -- स्वारोचिष मन्वन्तर में विकुण्ठ देवगण का नाम), २.३.३.९(शाप के कारण जित देवगण का तामस में हरि, रैवत मन्वन्तर में वैकुण्ठ, चाक्षुष में साध्य गण बनना), २.३.३.५८(वैकुण्ठ गण का चाक्षुष मन्वन्तर में साध्य गण व वैवस्वत में आदित्य गण बनना), २.३.३.११७?, भविष्य १.२२.१९(हर द्वारा अपराजित वैकुण्ठ में नारायण से भुजा का रक्त ग्रहण करना), ३.३.१.३३ (वैकुण्ठधाम? का आह्लाद रूप में अवतरण), ४.२५.२ (सौभाग्य का वैकुण्ठ में विष्णु के वक्षःस्थल पर एकत्र होना, पुनः पृथिवी पर वितरण), ४.१९०.२३(वैकुण्ठलोक में प्रजा के चतुर्भुज होने का उल्लेख), भागवत ३.१५.१२(सनकादि का वैकुण्ठ लोक गमन, जय-विजय द्वारा बाधा, जय – विजय का पतन आदि), ८.५.४(शुभ्र व विकुण्ठा - पुत्र, अवतार), १०.६.२६(वैकुण्ठ विष्णु से व्रजन/चलते समय रक्षा की प्रार्थना), १२.११.१९(विष्णु के छत्र का रूप), मत्स्य १७२.१(देवों में विष्णु के वैकुण्ठत्व, मनुष्यों में कृष्णत्व का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३४२.८०/३५२.१५(भूमि का पांच महाभूतों से संश्लेषण आदि करने से वैकुण्ठ नाम कथन), वराह १४३.२४(वैकुण्ठकारण – मन्दार पर स्थलविशेष) , १६३.१(वैकुण्ठ तीर्थ का माहात्म्य : ब्रह्महत्या से मुक्ति), वामन ९०.११(सह्याद्रि पर विष्णु का वैकुण्ठ नाम से वास), वायु ६६.९(जय देवगण का तामस मन्वन्तर में हरयः व रैवत मन्वन्तर में वैकुण्ठ नाम), शिव १.१७.६०(वैकुण्ठ का क्षमा लोक नाम?), ५.१९.३४(विधि के लोक से परे वैकुण्ठ लोक व उससे ऊपर कौमार लोक होने का कथन), स्कन्द २.४.३५(वैकुण्ठ चतुर्दशी का माहात्म्य, सहस्र कमलों द्वारा पूजा की कथा), ४.२.६१.१८४(वैकुण्ठ माधव का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.१०५.५०(२२वें कल्प का नाम), लक्ष्मीनारायण १.१२३.४०(सरयू तट के वृक्षों के वैकुण्ठयोगी होने का कथन), १.१२४ (महावैकुण्ठ की शोभा का वर्णन, अन्तर्वर्ती व्यूह आदि), १.१२५.२५(महावैकुण्ठ के अन्तर्मण्डल में चारों द्वारों पर स्थित चण्ड आदि द्वारपालों के नाम), १.१२७(जलावरण के ऊपर स्थित द्वितीय वैकुण्ठ का वर्णन), १.१२८(श्वेतद्वीप नामक तृतीय वैकुण्ठ का वर्णऩ), १.१२९(क्षीरसागर में स्थित चतुर्थ वैकुण्ठ का वर्णन – शेषशायी विष्णु आदि), १.३१७.४८(विकुण्ठा शब्द की निरुक्ति : वृत्तियों का कुण्ठित हो जाना), १.३१७.८२(वैकुण्ठ के भेद), २.१४०.८(वैकुण्ठ प्रासाद के लक्षण, गोलोक से भेद), ३.४५.१४(विष्णुभक्तों के अपुनर्भव वैकुण्ठलोक जाने का उल्लेख), ३.४५.२५(त्यागियों के जलावृत्त्यूर्ध्वसंस्थित वैकुण्ठ लोक जाने का उल्लेख), ३.५३.१००(वैकुण्ठ आदि देवगण का जय देवगण में वर्गीकरण), vaikuntha


      वैखानस पद्म ६.३९.१४(वैखानस राजा का पर्वत मुनि से संवाद, एकादशी व्रत द्वारा पितरों का उद्धार), ६.१३३.२८(सिद्ध क्षेत्र में तीर्थ का नाम), ब्रह्माण्ड १.२.३२.२५ (अरण्य में तप साधन से वैखानस नाम प्राप्ति का उल्लेख ), भागवत ३.१२.४३(ब्रह्मा से उत्पन्न संन्यासियों में से एक, द्र. टीका), वा.रामायण ४.४३.३३(वैखानससर वाले प्रदेश में सार्वभौम गज की स्थिति), vaikhaanasa/ vaikhanasa


      वैजयन्त वा.रामायण २.९.१२(वैजयन्त नगरी में शम्बर का वास), ७.५५.६(राजा निमि की नगरी ) vaijayanta


      वैजवाक् भविष्य ३.४.२२(वैजवाक्/बैजूबावरा के पूर्व जन्म में माधव होने का उल्लेख )


      वैतण्ड द्र. वंश वसुगण


      वैतरणी गरुड २.३५(वैतरणी को तरने का उपाय), २.४७(वैतरणी तरण विधि), नारद २.२८.७०(तृष्णा के वैतरणी नदी व धर्म के कामदुघा धेनु होने का कथन), पद्म ६.६६(कृष्ण पक्ष की द्वादशी को वैतरणी व्रत में विष्णु का न्यास, यम की आराधना, मुद्गल की यमदूतों से मुक्ति), वराह २००, स्कन्द ४.२.९७.९४(वैतरणी नामक दीर्घिका का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१५५.७३(वैतरणी के अमृतोपम शीतल जल का पापियों के लिए शोणित में बदल जाने का उल्लेख), ५.३.१५९.५४(नरक की वैतरणी नदी का वर्णन ), ५.३.१५९.७५(वैतरणी पार करने के लिए धेनु दान विधि), vaitaranee/ vaitarani


      वैतस लक्ष्मीनारायण १.४४१.८३(वैतस वृक्ष : समुद्र का रूप),


      वैतानिक द्र. वितान


      वैदर्भी देवीभागवत ९.११, ब्रह्मवैवर्त्त २.१०, भागवत ४.२८(मलयध्वज - पत्नी, जन्मान्तर में राजा पुरञ्जन), स्कन्द ३.३.४.४१


      वैदूर्य गरुड १.७३(वैदूर्य रत्न की बल के नाद से उत्पत्ति, महिमा), गर्ग ७.३०, देवीभागवत १२.११.५३(वैदूर्य शाला का वर्णन), पद्म ६.६.२८(बल असुर के नाद से वैदूर्य की उत्पत्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१४०.३४(वैदूर्य प्रासाद के लक्षण ), कथासरित् १०.९.५७(वैदूर्यशृङ्गपुर में पद्मवेग विद्याधर के पुत्र का वृत्तान्त) vaiduurya/ vaidoorya/ vaidurya


      वैद्य ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.२५, वायु ८३.६, स्कन्द ४.२.९७.१३८(वैद्येश्वर कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य ) vaidya


      वैद्यनाथ पद्म ६.१६५(वैद्यनाथ तीर्थ का माहात्म्य), मत्स्य १३, शिव ४.२८(रावण द्वारा स्वशिर छेदन से वैद्यनाथ लिङ्ग की प्राप्ति, लिङ्ग को भूमि पर रखने से लिङ्ग की अचलता), ४.२९, स्कन्द ४.२.९७.२३६(वैद्यनाथ लिङ्ग का तारेश उपनाम ), ५.३.१९८.७९, ५.३.२३१.१५ vaidyanaatha/ vaidyanatha


      वैद्युत द्र. भूगोल


      वैधृता भागवत ८.१३.२६(आर्यक - पत्नी, धर्मसेतु अवतार की माता )


      वैभाण्डकि ब्रह्म १.११


      वैभ्राज ब्रह्माण्ड १.२.१९.१४(वैभ्राज शब्द की निरुक्ति), १.२.१९.१६(वैभ्राज पर्वत के ध्रुव वर्ष का उल्लेख), मत्स्य १२१.१८(वैभ्राज वन में ब्रह्मधाता राक्षस का निवास ), वामन २१, vaibhraaja/ vaibhraja


      वैर लक्ष्मीनारायण ४.४४.६६


      वैरथ द्र. भूगोल


      वैराग्य देवीभागवत ९.१.१२३(श्रद्धा व भक्ति - पति), पद्म २.८.३०(संसार के दुःखों से त्रस्त आत्मा द्वारा वैराग्य/वीतराग का दर्शन, वीतराग द्वारा आत्मा को बोध), ६.१९३, ६.१९४(नारद द्वारा भक्ति - पुत्र वैराग्य को बोध की चेष्टा, भागवत से बल प्राप्ति), भागवत ०.१(कलियुग में भक्ति - पुत्र वैराग्य की दुर्दशा, नारद द्वारा उद्धार), ११.२६(पुरूरवा द्वारा उर्वशी से भोग उपरान्त वैराग्य का कथन), लिङ्ग १.३९.६८(विचार से वैराग्य, वैराग्य से दोष दर्शन, दोष दर्शन से ज्ञान की उत्पत्ति का कथन), वायु १०२.८२(वैराग्य का निरूपण), महाभारत शान्ति २१४, २७३, ३२९, लक्ष्मीनारायण १.२०४.६५(वैराग्य से अविबन्धन का उल्लेख), २.२४५.४९, ३.३०.४८(वैराग्य के तीन साधनों दुःख, विवेक व अवमान का उल्लेख), , योगवासिष्ठ १.०, १.१६, ५.७४, ६.१.९१.२(वैराग्य व विवेक की हस्ती के २ दन्तों से उपमा ), ६.२.६, vairaagya/ vairagya


      वैराज अग्नि १०४.११(वैराज प्रासाद का एक प्रकार), पद्म १.१५.९(ब्रह्मा के वैराज प्रासाद का स्वरूप, कांतिमती नामक सभा आदि), भागवत ८.५.९(देवसम्भूति व वैराज से भगवान् अजित के उत्पन्न होने का उल्लेख), मत्स्य १३.३(वैराज प्रजापति के अमूर्त पितरों का उल्लेख), वराह ७३.४६(११ प्राकृत पुरुषों व १२वें विष्णु के अंश मिलने पर भूमि पर वैराज आदित्य संज्ञा का कथन) , वायु २१.४०(१९वें वैराज कल्प में वैराज मनु के पुत्र दधीचि का कथन), शिव ५.१९.१४(तपोलोक में दाहवर्जित वैराज देवों की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ७.१.१०५.५१( २६वें कल्प का नाम), हरिवंश १.१८.८(पितरों के वैराज गण के वंश का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.१७२.१४६(वालखिल्यों की वैराज लोक में स्थिति का उल्लेख), १.३०४.१०१, २.१४०.११(वैराज प्रासाद के लक्षण), २.१४०.८९(वैराज प्रासाद के लक्षण ), २.२९३.९८(वैराज द्वारा कृष्ण को स्वर्णकुण्डल प्रदान का उल्लेख),, ३.४५.२०(ब्रह्मव्रती साधकों द्वारा वैराज लोकों की प्राप्ति का उल्लेख), ३.१७०.१३(गोलोक के तृतीय, वैकुण्ठ के चतुर्थ, वैराज के एकादश धाम होने आदि का कथन), ३.२१५.६८(सुषुम्ना द्वारा मूर्धान्त में जाकर कारणों के कारण के दर्शन करने का कथन), vairaaja/ vairaja


      वैराटी पद्म ४.१३.३१


      वैरोचन नारद १.८५.१३७


      वैवर्त्त लक्ष्मीनारायण ३.११३.४३


      वैवस्वत भविष्य ३.४.२५.३५(ब्रह्माण्ड नेत्र से उत्पन्न सोम द्वारा वैवस्वत मन्वन्तर की सृष्टि का कथन), मार्कण्डेय ७७, वराह १३७(वैवस्वत तीर्थ का वर्णन), १९५(यमपुरी में वैवस्वती नदी का वर्णन), १९६.२४वैवस्वती, स्कन्द ७.१.१६९(वैवस्वत मनु द्वारा स्थापित वैवस्वतेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.२४१.५६(वैवस्वत मनु द्वारा मन्दिर का निर्माण कर उसमें पतञ्जलि, शेष, ईशान आदि को स्थापित करना ), ३.१५५.८६, vaivasvata


      वैवस्वत-मनु गरुड ३.७.६६(वैवस्वत मनु द्वारा हरि-स्तुति), ३.२२.२७(वैवस्वत के १६ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), देवीभागवत १०.१०(वैवस्वत मनु का श्राद्धदेव नाम), वायु ८५(वैवस्वत मनु के वंश का वर्णन, वैवस्वत मनु द्वारा मित्रावरुण इष्टि से इडा के जन्म की कथा ), विष्णु ४.१, स्कन्द ७.१.१६९, लक्ष्मीनारायण २.२४१.५६ vaivasvata manu


      वैशम्पायन ब्रह्माण्ड १.२.३५(वैशम्पायन के ब्रह्महत्या दोष का शिष्यों द्वारा चारण, याज्ञवल्क्य से यजुर्वेद वापस लेना), मत्स्य ५०.५८(वाजसनेय संहिता को यज्ञ में स्थान देने पर वैशम्पायन द्वारा जनमेजय को शाप), वराह १९३(वैशम्पायन द्वारा जनमेजय को नरक प्रापक - अप्रापक कर्मों का उपदेश, नचिकेता का वृत्तान्त), वायु ६१, स्कन्द ५.३.२.३(द्वैपायन - शिष्य वैशम्पायन का उल्लेख ) vaishampaayana/ vaishampayana


      वैशाख पद्म ५.८४+ (नारद - अम्बरीष संवाद में वैशाख मास का माहात्म्य), ५.८६(वैशाख मास व्रत), ५.९८(अवैशाख प्रेत का धनशर्मा द्वारा उद्धार), भविष्य २.२.८.१२५(गङ्गाद्वार में महावैशाखी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख), ३.४.७.५१(वैशाख मास के सूर्य का माहात्म्य – मित्रशर्मा द्वारा चित्रिणी भार्या की प्राप्ति, रामानन्द रूप में जन्म), वराह ४४.१५(वैशाख शुक्ल द्वादशी के प्रभाव से वीरसेन को नल पुत्र की प्राप्ति का कथन), वामन ३५.५४?(वैशाख मास व मेष का शिखा में न्यास), स्कन्द २.७.१+ (वैशाख मास का माहात्म्य), २.७.६(वैशाख मास में जलदान न करने से राजा हेमांग का गृहगोधा आदि योनियों में जन्म, श्रुतदेव ऋषि द्वारा प्रोक्षण आदि से मुक्ति), २.७.९.१९(भस्म पति काम की पुनः प्राप्ति के लिए देवों द्वारा रति को मन्दाकिनी में वैशाख स्नान व अशून्यशयन व्रत का निर्देश), २.७.१०(वैशाख में त्रित मुनि को छत्र दान आदि से राजा हेमकान्त की ब्रह्महत्या से मुक्ति का वृत्तान्त), २.७.१३.४७(वैशाख के अन्तिम दिन यम हेतु स्नान, उदककुम्भ, दधि अन्न आदि देने का निर्देश), २.७.१३.६४(राजा वेन द्वारा वैशाख धर्म का लोप करने का कथन), २.७.१४(सत्यनिष्ठ व तपोनिष्ठ की कथा, कथा श्रवण न करने से तपोनिष्ठ का छिन्नकर्ण पिशाच बनना, वैशाख मास माहात्म्य श्रवण से मुक्ति), २.७.१५(राजा पुरुयशा द्वारा याज – उपयाज से अपनी श्री हानि के कारण की पृच्छा, पूर्व जन्म का वृत्तान्त, कर्षण मुनि को जीवन दान से राजा बनना, वैशाखमास धर्म के पालन, अक्षय तृतीया कृत्य से श्री की प्राप्ति), २.७.१६.३३( वैशाख मास में अक्षय तृतीया के कृत्य), २.७.१७(शंख – व्याध संवाद में वैशाख माहात्म्य का श्रवण करने से सिंह व व्याघ्र बने दन्तिल व कोहल की मुक्ति), २.७.१८.३७(शाकल नगर में स्तम्ब द्विज का वेश्या संगति में पडना, रोगग्रस्त होने पर पतिव्रता स्त्री द्वारा वैशाख मास में मुनि के पादशौच अवशिष्ट जल को शिर पर धारण कराने से सुगति आदि), २.७.२०.७१(वैशाख मास में देय-अदेय द्रव्य), २.७.२१.५६(शंख मुनि से वैशाख मास माहात्म्य श्रवण के पश्चात् व्याध का कृणु/वल्मीक मुनि के पुत्र के रूप में जन्म लेना, रामायण की रचना करना), २.७.२४.१०२(वैशाख मास द्वादशी पुण्य प्रभाव से शुनी का उर्वशी बनना), २.७.२५.५(वैशाख एकादशी से पूर्णिमान्त तिथियों का महत्त्व), ५.१.४८.५१, ५.१.७१.१५, ६.४७(वैशाखी तिथि को महाकाल की कमलों से पूजा), ६.१७९.५८(कार्तिक में पूर्व पुष्कर में तथा वैशाख में द्वितीय पुष्कर में यज्ञ करने का उल्लेख), ७.१.२७८(शमीमुख - पुत्र, तस्कर, सप्तर्षियों के प्रभाव से वाल्मीकि बनना, मूल स्थान का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण २.६५, कथासरित् ११.१.५ (वैशाखपुर में राजा के दो पुत्रों में विवाद) vaishaakha/ vaishakha


      वैशाख पूर्णिमा गर्ग ६.१४.२( वैशाख/माधव पूर्णिमा : द्वारका में समुद्र की पूजा, रत्नदान आदि का फल, मेधावी के श्रीशैल-पुत्र बनने का वृत्तांत ), नारद २.४३.२९( वैशाख पूर्णिमा : शिव पूजा विधि ), पद्म १.१८.२१२( कार्तिक तथा वैशाख पूर्णिमा ? को मध्यम व कनिष्ठ पुष्कर में स्नान आदि के महत्त्व का कथन ), ५.९.४( वैशाख पूर्णिमा को राम के हयमेध अश्व के मोचन का कथन ), ६.८५.१( वैशाख पूर्णिमा से जलशायी विष्णु महोत्सव का आरम्भ ), भविष्य ४.१००( वैशाख, कार्तिक, माघ पूर्णिमाओं को स्नान, तर्पण, दान का कथन, भरत द्वारा निर्दोषता की शपथ ), ४.१०४( पूर्णमनोरथ व्रत के अन्तर्गत विभिन्न मासों की पूर्णिमाओं को विष्णु रूपी चन्द्रमा की विभिन्न नामों से अर्चना का निर्देश ; प्रतिमास कायशुद्धि हेतु प्राशन द्रव्य का उल्लेख ), मत्स्य ५३.१३( वैशाख पूर्णिमा को ब्रह्मपुराण दान का निर्देश ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२१६.६( सुगति पौर्णमासी कल्प के अन्तर्गत विभिन्न मासों की पूर्णिमा व्रत की विधि व प्राशन/भोजन विधान ), ३.३१९( पूर्णिमा को दान द्रव्य ), स्कन्द २.७.२५.१(वैशाख की पूर्णिमान्त तीन तिथियों में स्नानादि का माहात्म्य ), ५.१.४८.५१( वैशाख पूर्णिमा को शिव को शिप्रा में स्नान कराने के सत्फल का कथन ), ६.४७.६(वैशाखी तिथि को महाकाल की कमलों से पूजा),


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      वैश्य अग्नि ३६६.३४(व्यापार सम्बन्धी वैश्य शब्द का निरूपण), गणेश १.७.८(चिद्रूप नामक वैश्य के दुष्ट बुद्धि पुत्र कामन्द का वृत्तान्त), गरुड ३.२२.७९(वैश्य में प्रद्युम्न की स्थिति का उल्लेख), देवीभागवत ३.२७, पद्म १.४८, २.४१, ४.१५, ६.२०४, ७.४, ७.१५, ब्रह्म २.१८, २.१००, ब्रह्माण्ड १.२.७.१६६(वैश्यों की मरुत लोक में स्थिति का उल्लेख), भविष्य ३.४.२३.९९(वैश्य वर्ण द्वारा यक्षों व राक्षसों की तृप्ति), ४.३(सीरभद्र वैश्य के संदर्भ में विष्णु व नारद का आगमन, कृषि कार्य में दोष), भागवत ११.१७.१८, मार्कण्डेय ८१(समाधि नामक वैश्य का वृत्तान्त), ११५(नाभाग वैश्य की कथा), वराह १२८.१४, शिव ५.२१.१, ५.२१.११, स्कन्द १.१.५, २.४.१२, ३.२.१०.२(कामधेनु से ३६ सहस्र वैश्यों की उत्पत्ति), ३.२.३३, ३.२.३६, ३.२.३८, ३.३.१०, ३.३.२०(शिवभक्त महानन्दा की परीक्षा के लिए शिव द्वारा वैश्य रूप धारण करने की कथा), ५.१.१८.२७(वैश्यों के लिए कमला देवी मुख्य होने का कथन), ५.३.१४६.८३, महाभारत आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३४३ कथासरित् ४.१.५६(वैश्य की श्री कुलस्त्री की भांति स्थिर होने का कथन ), १२.१६.२६(भाषाज्ञ नामक वैश्य द्वारा राजसुता प्राप्ति का प्रयत्न), vaishya


      वैश्रवण मत्स्य १४५.९५(वैश्रवण द्वारा सत्य प्रभाव से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख ), शिव २.१.१७, स्कन्द ५.३.१९८.८८ , वा.रामायण ७.३, vaishravana


      वैश्वदेव पद्म १.१५.३१५(ज्ञातियों के वैश्वदेव लोक के स्वामी होने का उल्लेख), भविष्य १.१८४.५(वैश्वदेव कर्म की महिमा का कथन), २.१.१७.८(वैश्वदेव में अग्नि का पावक नाम ), लक्ष्मीनारायण २.२४६.३०, vaishvadeva





      वैश्रवण मत्स्य १४५.९५(वैश्रवण द्वारा सत्य प्रभाव से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख ), शिव २.१.१७स्कन्द ५.३.१९८.८८ , वा.रामायण ७.३, vaishravana


      वैश्वदेव पद्म १.१५.३१५(ज्ञातियों के वैश्वदेव लोक के स्वामी होने का उल्लेख), भविष्य १.१८४.५(वैश्वदेव कर्म की महिमा का कथन), २.१.१७.८(वैश्वदेव में अग्नि का पावक नाम ), लक्ष्मीनारायण २.२४६.३०, vaishvadeva


      वैश्वसृज शिव ७.१:४.२?


      वैश्वानर अग्नि १९.१३(वैश्वानर की सुता-द्वय पुलोमा व कालका का उल्लेख - पुलोमा कालका चैव वैश्वानरसुते उभे। कश्यपस्प तु भार्ये द्वे तयोः पुत्राश्च कोटयः ।।), गरुड १.८६.२२( वैश्वानर अर्चना से उत्तम दीप्ति प्राप्ति का उल्लेख - द्वादशादित्यमभ्यर्च्य सर्वरोगैः प्रमुच्यते ॥ वैश्वानरं समभ्यर्च्य उत्तमां दीप्तिमाप्नुयात् ॥), १.११६.३(प्रतिपदा तिथि को पूजनीय देवों में से एक - वैश्वानरः प्रतिपदि कुबेरः पूजितोऽर्थदः ।उपोष्य ब्रह्मा प्रतिपद्यर्चितः श्रीस्तथाश्विनी ॥), देवीभागवत ८.१५.३(ग्रहों के स्थान का नाम), पद्म १.२०.१०९(वैश्वानर व्रत का माहात्म्य - इंधनं यो ददेद्विप्रे वर्षादींश्चतुरस्त्वृतून्। घृतधेनुप्रदोंते च स परं ब्रह्म गच्छति॥ वैश्वानरव्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्), ६.५.९०(वैश्वानर का जालन्धर - सेनानी केतु से युद्ध - केतुं वैश्वानरो देवो ययौ शुक्रं बृहस्पतिः।), भविष्य ३.४.१६.७२(विश्वानर ब्राह्मण - पुत्र, वसु - पति, पुरा कल्प में अनल ब्राह्मण, रङ्कण रूप में अवतरण - वैश्वानर इति ख्यातोऽभवत्स्वाहापतिः प्रभुः । स तु पूर्वभवे देवः पुरा कल्पेऽनलोभवत् ।।), भागवत ६.६.३३(वैश्वानर की सुता – चतुष्टय उपदानवी, हयशिरा, पुलोमा व कालका का कथन - वैश्वानरसुतायाश्च चतस्रश्चारुदर्शनाः। उपदानवी हयशिरा पुलोमा कालका तथा ॥ उपदानवीं हिरण्याक्षः क्रतुर्हयशिरां नृप।....), मत्स्य ६.२२(पुलोमा कालका चैव वैश्वानरसुते हि ते।। बह्वपत्ये महासत्वे मारीचस्य परिग्रहे।...), १०१.५७(वैश्वानर व्रत - विप्रायेन्धनदो यस्तु वर्षादिचतुरो ऋतून्। घृतधेनुप्रदोऽन्ते च स परं ब्रह्म गच्छति।।वैश्वानरव्रतं नाम सर्वपापविनाशनम्।। ), ९३.१०२(महावैश्वानर साम का उल्लेख - श्रावयेत् सूक्तमाग्नेयं वैष्णवं रौद्रमैन्दवम्। महावैश्वानरं साम ज्येष्ठसाम च वाचयेत्।। ), १२४.५९(दक्षिण मार्ग की तीन वीथियों में से एक - ज्येष्ठा विशाखा मैत्रञ्च मृगवीथी तथोच्यते। मूलं पूर्वोत्तराषाढ़े वीथी वैश्वानरी भवेत्।।), १२४.९७( वैश्वानर पथ से बाहर पितृयान मार्ग होने का उल्लेख - उत्तरं यदगस्त्यस्य श्रृङ्गं देवर्षिसेवितम्। पितृयानः स्मृतः पन्था वैश्वानरपथाद्‌बहिः।।), २४६.५९(अवामन के विराट रूप में मुख के वैश्वानर होने का उल्लेख), वराह १८.२२(अग्नि के वैश्वानर नाम की निरुक्ति – विश्वान् नरान् हुतो येन नयसे सद्गतिं प्रभो । अतो वैश्वानरो नाम तव वाक्यं भविष्यति ।।), १५१.५९(वैश्वानर कुण्ड का माहात्म्य), वायु ६६.४७/२.५.४७(ग्रहों के तीन स्थानों उत्तर, मध्य व दक्षिण में से दक्षिण स्थान का नाम - स्थानं जारद्गवं मध्ये तथैरावतमुत्तरम्। वैश्वानरं दक्षिणतो निर्द्दिष्टमिह तत्त्वतः ।।), ६६.५२/२.५.५२(श्रवण से लेकर रेवती नक्षत्र तक वैश्वानर वीथि होने का उल्लेख - श्रवणञ्च धनिष्ठा च गार्गी शतभिषक्तथा ।। वैश्वानरी भाद्रपदे रेवती चैव कीर्तिता।), ६८.७/२.७.७(दनु के पुत्रों में से एक), ६८.२५/२.७.२५(वैश्वानर दानव की कन्या-द्वय पुलोमा व कालका के दानव पुत्रों का कथन), १०१.२९४/२.३९.२९४(सिंह रूपी महाभूतों के वैश्वानरमय पाशों से बद्ध होने का उल्लेख - सिंहाः केनापराधेन भूतानां प्रभविष्णुना। वैश्वानरमयैः पाशैः संरुद्धास्तु पृथक्पृथक् ।।), १०१.३३३/२.३९.३३३ ( भूतों की वैश्वानर संज्ञा - आदित्याः पारिपार्श्वेयाः सिंहा वै क्रोधविक्रमाः। वैश्वानरा भूतगणा व्याघ्राश्चैवानुगामिनः ।। ), वा.रामायण १.५९.३०(त्रिशंकु का वैश्वानरपथ से बाहर के नक्षत्रों में स्थित होना - गगने तानि अनेकानि वैश्वानर पथात् बहिः । नक्षत्राणि मुनिश्रेष्ठ तेषु ज्योतिःषु जाज्वलन् ॥ अवाग् शिराः त्रिशंकुः च तिष्ठतु अमर संनिभः ।), विष्णु १.२१.८(वैश्वानरसुते चोभे पुलोमा कालका तथा। उभे सुते महाभागे मारीचेस्तु परिग्रहः ॥ ताभ्यां पुत्रसहस्राणि षष्टिर्दानवसत्तमाः।) शिव २.५.३६.१२(वैश्वानर का शङ्खचूड - सेनानी शोभाकर से युद्ध - शोभाकरेण वैश्वानः पिपिटेन च मन्मथः।।), स्कन्द ४.१.११(नारद द्वारा विश्वानर व शुचिष्मती - पुत्र वैश्वानर के शरीर के लक्षणों का कथन, वैश्वानर द्वारा आयु वृद्धि हेतु तप, शंकर से वरदान रूप में अग्निपद की प्राप्ति), ४.१.२९.१५४(वैश्वानरी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ७.१.७८(वैश्वानर लिङ्ग का माहात्म्य, शुक दम्पत्ति द्वारा वैश्वानर लिङ्ग की प्रदक्षिणा से अगस्त्य व लोपामुद्रा बनना), ५.१.४.६७ (वैश्वानरोत्पत्तिनामक अध्याय - वैश्वानरानलोदग्र ऊर्ध्वपावक सर्वग?? विभावसो महाभाग कृष्णवर्त्मन्नमोनमः ।। हरिवंश १.३.९२(वैश्वानर दानव की पुलोमा व कालिका पुत्रियां), ३.७१.६(अश्वमेध के वाजी के वैश्वानर होने का उल्लेख - आहुश्च यं वेदविदो द्विजेन्द्रा वैश्वानरं वाजिनमश्वमेधम् ।। ), ३.७१.५०(वामन के विराट् रूप में मुख के वैश्वानर होने का उल्लेख - मुखं वैश्वानरश्चास्य वृषणौ तु प्रजापतिः ।। हदयं भगवान्ब्रह्मा पुंस्त्वं वै विश्वतोमुनिः ), महाभारत आदि ३.१४९( इन्द्र के वैश्वानर अश्व रूपी वाहन का कथन - यो वाजिनं गर्भमपां पुराणं वैश्वानरं वाहनमभ्युपैति। नमोऽस्तु तस्मै जगदीश्वराय लोकत्रयेशाय पुरंदराय।।), आश्वमेधिक २०.१९(घ्राण, जिह्वा, चक्षु आदि वैश्वानर अग्नि की ७ जिह्वाएं होने का कथन; घ्रेय, दृश्य, पेय आदि सात समित् - घ्राणं जिह्वा च चक्षुश्च त्वक्च श्रोत्रं च पञ्चमम्। मनो बुद्धिश्च सप्तैता जिह्वा वैश्वानरार्चिषः।।), लक्ष्मीनारायण १.२३९(पितृ उद्धार हेतु वैश्वानर राजा द्वारा मार्गशीर्षशुक्लपक्षीय मोक्षदैकादशीव्रतविधान), १.४५९(बालक वैश्वानर के आपादतलमस्तक लक्षणों का कथन), कथासरित् १.७.४४(गोविन्ददत्त के पुत्रों द्वारा वैश्वानर अतिथि की अवमानना का वृत्तान्त - अथ गोविन्ददत्तस्य गृहानतिथिराययौ ।विप्रो वैश्वानरो नाम वैश्वानर इवापरः ।।), ३.६.८(वैश्वानरदत्त : अग्निदत्त विप्र के २ पुत्रों में से एक, मूर्ख भ्राता सोमदत्त का वृत्तान्त), ६.८.११६(पिङ्गलिका के २ पुत्रों में से एक, पौरोहित्य पद पर आसीन होने का उल्लेख - पौरोहित्ये च पूर्वोक्तावुभौ पिङ्गलिकासुतौ । वैश्वानरं शान्तिसोमं भ्रातुः पुत्रौ पुरोधसः ।। ), vaishvaanara/ vaishvanara

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      वैष्णव गरुड ३.२२.७८(वैष्णव में गोविन्द की स्थिति का उल्लेख), पद्म १.२३, २.७५, ४.१(वैष्णवों के लक्षण), ५.७८(वैष्णव धर्म व शुद्धि प्रकारों का वर्णन), ६.६८(वैष्णव के लक्षण), ६.८२(वैष्णव के लक्षण, वैष्णव द्वारा विष्णु प्रतिमा का सृजन व अर्चना), ६.२५३, ७.२.७९(विष्णु - प्रोक्त वैष्णव के लक्षण), ब्रह्मवैवर्त्त २.६०.३७(वैष्णव के सम्बन्ध में शिव का बृहस्पति को अनुशासन), वामन ९०.४१(वैष्णव लोक में विष्णु का नाम परं ब्रह्म ), स्कन्द २.२.१०.१११, ५.१.४९.२८, ७.१.२२३, लक्ष्मीनारायण २.१०६.४७वैष्णव याग, २.१४०.१२(वैष्णव प्रासाद के लक्षण), ३.३३.८६, ३.३७.१, vaishnava


      वैष्णवी अग्नि १४६.२२(वैष्णवी देवी की आठ शक्तियों के नाम), १४७, देवीभागवत ३.१९.३८(वैष्णवी देवी से विवाह में रक्षा की प्रार्थना), ५.२८, मत्स्य २६१.२८(वैष्णवी मातृका की प्रतिमा का रूप), वराह २७(वैष्णवी मातृका : लोभ रूप), ९२(ब्रह्मा द्वारा वैष्णवी देवी की स्तुति, तप, कुमारियों की उत्पत्ति, नारद द्वारा वैष्णवी का दर्शन), ९५, ९९(वैष्णवी का गायत्री रूप, नन्दा उपनाम), वामन ५६, विष्णु २.११(वैष्णवी शक्ति ), स्कन्द ५.३.१९८.९०, ७.१.६१(वैष्णवी देवी का माहात्म्य, विशालाक्षी व ललिता उपनाम, उमा - रूप), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२९, vaishnavee/ vaishnavi


      वैहायस भागवत ८.१०.१६(मय द्वारा बलि के वाहन वैहायस विमान का निर्माण ) vaihaayasa/ vaihayasa


      वोढु ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२६(वोढु ऋषि की ब्रह्मा के कण्ठ से उत्पत्ति), १.१२, १.२२, ४.९६.३३, लक्ष्मीनारायण २.१६२.३९, द्र. दुर्वोढक vodhu


      व्यंश द्र. वंश दनु


      व्यक्त नारद १.५०.४४, महाभारत भीष्म ६८.७(अव्यक्त के शरीरोत्थ तथा व्यक्त के मन में स्थित होने का उल्लेख), शान्ति २३६.३०(२५ तत्त्वों के संदर्भ में व्यक्त व अव्यक्त की परिभाषा का कथन), ३३९.३९(अनिरुद्ध के व्यक्त अहंकार होने का कथन ) vyakta


      व्यजन पद्म ५.७१.११३


      व्यञ्जन अग्नि २९३


      व्यति - संवत्सर गर्ग ७.३१


      व्यतीपात मत्स्य ५३.५६(व्यतीपात काल में ब्रह्माण्ड पुराण आदि के दान का निर्देश), १४१.३४,


      व्यवसाय भागवत ११.१६.३१, मार्कण्डेय ५०.२७(वपु पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर १.२४९.११(कर्मों के अधिपति के रूप में व्यवसाय का उल्लेख), ३.२८५(व्यवसाय की प्रशंसा, व्यवसाय के बिना अर्थ प्राप्त न होने का कथन), महाभारत शान्ति २५२.११(बुद्धि के व्यवसायात्मिका व मन के व्याकरणात्मक होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३१९.७(जोष्ट्री देवी द्वारा मानवों में व्यवसाया पुत्री को रखने का उल्लेख), १.३१९.१०९, vyavasaaya/ vyavasaya


      व्यवहार अग्नि २५३(व्यवहार शास्त्र का वर्ण), योगवासिष्ठ ४.५९(कमलज व्यवहार),


      व्यष्टि शिव ७.२.५.१२(समष्टि व व्यष्टि में अव्यक्त - व्यक्त सम्बन्ध का कथन )vyashti


      व्यसन अग्नि २४१.१४


      व्याकरण अग्नि ३४९+ (कार्तिकेय द्वारा कात्यायन को व्याकरण का उपदेश, व्याकरण का वर्णन), ३५०(सन्धि के सिद्ध रूप), ३५१(सुबन्त सिद्ध रूप), ३५२(स्त्रीलिङ्ग शब्दों के रूप), ३५३(नपुंसक लिङ्ग शब्दों के सिद्ध रूप), ३५४(कारक प्रकरण), ३५५(समास निरूपण), ३५६(त्रिविध तद्धित प्रत्यय), ३५७(उणादि सिद्ध शब्द रूपों का परिचय), ३५८(तिङ्ग विभक्त्यन्त सिद्ध रूपों का परिचय), ३५९(कृदन्त शब्दों के सिद्ध रूप), ३६०(शब्द निघण्टु का कथन), गरुड १.२०३+, नारद १.५०.१३०(उदात्त, अनुदात्त, स्वरित अक्षiरों का नियम), १.५२(व्याकरण शास्त्र का वर्णन), भविष्य ३.४.१२.७१(प्रकृति के ५ मुखों से व्याकरण की उत्पत्ति का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.७३.४४(व्याकरण की सरस्वती अधिदेवता), महाभारत उद्योग ४३.६१(व्याकरण की परिभाषा), शान्ति २५२.११(बुद्धि के व्यवसायात्मिका व मन के व्याकरणात्मक होने का उल्लेख), कथासरित् १.६.१४४(व्याकरण को अल्पतम समय में सीखने का प्रश्न), १.७.१३(शर्ववर्मा द्वारा कातन्त्र व्याकरण सिद्ध करने का वृत्तान्त ) vyaakarana/ vyakarana

      Remarks on vedic vyaakarana by Dr. Madhusudan Mishra


      व्याघ्र गणेश २.१०८.८, २.१०९.२४(हेम दैत्य का व्याघ्र रूप धारण कर आगमन, गणेश द्वारा व्याघ्र के मुख को परशु से विकृत करना), गरुड २.४६.१५(अपरीक्षित भोक्ता के व्याघ्र बनने का उल्लेख), नारद १.४७, पद्म १.१८.२६०(प्रभञ्जन राजा का मृगी के शाप से व्याघ्र बनना, नन्दा गौ से संवाद से मुक्ति), ६.१७६(अजा व व्याघ्र की मैत्री का कारण, गीता के द्वितीय अध्याय का माहात्म्य), ६.१८७(व्याघ्र द्वारा दुराचारा से अपने पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, पूर्व जन्म में प्रतिग्रह प्राप्ति से व्याघ्र), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.४७(विश्वासघाती के व्याघ्र बनने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.२०५(ऊर्ध्वदृष्टि – पुत्र, शरभ – पिता), भविष्य २.२.२.३१(व्याघ्र के त्रिपुरसुन्दरी व कृष्णव्याघ्र के कालिका का रूप होने का उल्लेख), २.२.२.७१(शाक्त ग्रन्थों पर व्याघ्र लेखन का निर्देश), ३.२.२१(विष्णुस्वामी के ४ पुत्रों द्यूतकर्मा आदि द्वारा व्याघ्र के पुन: सञ्जीवन का वृत्तान्त), ४.६९.४५(शिव द्वारा व्याघ्र रूप धारण कर गौ रूपा पार्वती को भयभीत करना), मत्स्य १४८.४९(ग्रसन के रथ के १०० व्याघ्रों से युक्त होने का उल्लेख), वराह ३७.१८(व्याध द्वारा आरुणि की व्याघ्र से रक्षा, व्याघ्र के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), वामन ५४.१४(व्याघ्र की काली - भक्ति व वर प्राप्ति), ९१.६८(वृषाकपि व माला के पुत्र का जन्मान्तर में व्याघ्र रूप), वायु ६९.१३१/२.८.१२६(१०यातुधान-पुत्रों में से एक, सूर्य - अनुचर, निरानन्द - पिता), १०१.३३३/२.३९.३३३ (प्रलय काल में आदित्यों के सिंह व वैश्वानरों के व्याघ्र रूप भूतगण होने का कथन), १०१.३४५/२.३९.३४५(प्रलय के पश्चात् सृष्टि काल में सिंह - व्याघ्र रूपी भूत-भव्य व ५ महाभूतों आदि के विष्णु के साथ संयोग होने का कथन), शिव २.५.५८(व्याघ्र रूपी शिव द्वारा दुन्दुभिनिर्ह्राद का वध), ३.२७.९(शिव – पार्वती द्वारा मायामय व्याघ्र का सृजन कर राजा भद्रायु की परीक्षा), ७.१.२५.१०(तपोरत पार्वती के दर्शन से व्याघ्र के दोषों का नष्ट होना), ७.१.२६.२(पार्वती का व्याघ्र पर अनुग्रह), ७.१.२७.२८(शिव-पार्वती द्वारा व्याघ्र को गणेश बनाना), स्कन्द २.४.४.८४टीका (व्याघ्ररूपधारी प्रभञ्जन की नन्दा गौ के साथ वार्तालाप से मुक्ति), ३.१.४९.४३(जन्म की व्याघ्र रूप में कल्पना), ३.१.४९.७६(व्याधि की व्याघ्र रूप में कल्पना), ३.३.१४(शिव – पार्वती द्वारा व्याघ्र का सृजन कर भद्रायु की परीक्षा), ४.२.६५.६५(व्याघ्रेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शिव द्वारा व्याघ्र रूप धारी दुन्दुभिनिर्ह्राद दैत्य का वध), ४.२.९७.१६५(व्याघ्रेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.१९२(व्याघ्र पादेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.२५.१८(मुक्ति ब्राह्मण से नारायण मन्त्र श्रवण से व्याघ्र की मुक्ति, व्याघ्र के पूर्व जन्म का कथन), ६.४९+ (दुर्वासा को दूषित भोजन प्रस्तुत करने पर कलश नृप का व्याघ्र बनना, व्याघ्र का नन्दिनी गौ से संवाद, लिङ्ग पूजा से मुक्ति), ६.९५.७१(शिव द्वारा व्याघ्र रूप में अजापाल राजा की व्याधि रूपी अजाओं का भक्षण), ७.३.२.१९(कुण्डल प्राप्ति के संदर्भ में उत्तंक की व्याघ्ररूपधारी सौदास से भेंट, सौदास द्वारा प्रत्यभिज्ञान देना), ७.३.२९(व्याघ्र रूपी सुप्रभ का कपिला गौ से संवाद व मुक्ति ), महाभारत शान्ति १११(गोमायु – व्याघ्र संवाद), लक्ष्मीनारायण १.१९५, १.४८९, १.५१३, १.५६३, २.६, २.३३, ३.१८०, कथासरित् २.२.२१, द्र. रथ सूर्य vyaaghra/ vyaghra

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      व्याघ्रचर्म विष्णुधर्मोत्तर ३.४८.१८(शिव की विशाला चित्रा तृष्णा का नाम)


      व्याघ्रपाद शिव ३.३२, स्कन्द २.१.३४.३७(व्याघ्रपदा नदी का सुवर्णमुखरी नदी से सङ्गम ) vyaaghrapaada/ vyaghrapada


      व्याघ्रभट कथासरित् २.२.२१(श्रीदत्त के मित्रों में से एक), ८.५.१११(प्रवहण विद्याधर द्वारा हत तीन में से एक)


      व्याघ्रमुख गणेश २.१५.१५(व्याघ्रमुख का काशी में उपद्रव, महोत्कट गणेश द्वारा काशी में व्याघ्रमुख दैत्य का वध), पद्म ६.१२५,


      व्याघ्रसेन कथासरित् १२.२.१९, १२.२४.१, १२.२४.३८५,


      व्याघ्रानल लक्ष्मीनारायण ३.१६.७,


      व्याडि भविष्य ३.२.३०(ऋक् - पुत्र, ब्रह्मचर्य व्रत के सम्बन्ध में चन्द्रगुप्त से संवाद ), कथासरित् १.२.४०, १.४.१०० vyaadi/ vyadi


      व्याध अग्नि ११७.५२(श्राद्ध कर्त्ता सात व्याधों का प्रसिद्ध मन्त्र), गणेश २.२६.३(भीम व्याध द्वारा वामन गणेश की अनायास पूजा का वृत्तान्त), २.२७.१(व्याध के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त : दुष्ट राजा साम्ब द्वारा गणेश पूजा का फल प्राप्त करना),देवीभागवत ३.१०, नारद १.३७, पद्म २.३०, २.८९, ब्रह्म २.९९(आदिकेश शिव का वेद ब्राह्मण की पूजा की अपेक्षा व्याध की भक्ति पर प्रसन्न होना), ब्रह्माण्ड ३.२३शिव, ३.२४शिव, भविष्य ३.२.३३(व्याधकर्मा : कामिनी - पुत्र, व्यसनी, दुर्गा सप्तशती श्रवण से उद्धार), ३.४.१०, वराह ५(निष्ठुरक नामक व्याध के अग्नि से संवाद व अग्नि द्वारा जाल पारण की कथा), ६(राजा वसु के शरीर से निर्गत व्याध द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, धर्मव्याध नाम प्राप्ति), ३७(आरुणि द्वारा व्याध का वशीकरण, व्याध द्वारा आरुणि की व्याघ्र से रक्षा), ३८ (व्याध द्वारा दुर्वासा की तुष्टि करना, व्याध द्वारा देविका की स्तुति, दुर्वासा द्वारा व्याध को वेदादि प्रदान, सत्यतपा नाम प्राप्ति), ९८(इन्द्र रूपी व्याध द्वारा विष्णु रूपी शूकर का पीछा), विष्णु ५.३७.६९, शिव ४.४०(व्याध का मृगी से संवाद, शिवरात्रि पूजा से व्याध की मुक्ति, राम - मित्र निषादराज गुह में रूपान्तर), ५.४१(७ कौशिक पुत्रों का जन्मान्तरों में चक्रवाक आदि बनना, राजा ब्रह्मदत्त की कथा), स्कन्द २.४.२टीका (धर्मव्याध), २.७.१७(शङ्ख द्वारा व्याध के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, पूर्व जन्म में स्तम्भ ब्राह्मण), ५.२.२५(मुक्ति लिङ्ग के समक्ष व्याध की मुक्ति की कथा), ५.३.१४१.१, हरिवंश १.२१.२०(ब्रह्मदत्त राजा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), महाभारत कर्ण ६९.३८, शल्य ३०, शान्ति १४३.१०, अनुशासन १, योगवासिष्ठ ६.१.१२४(मृगव्याध ), ६.२.१३६, वा.रामायण ०.४, लक्ष्मीनारायण १.५२५, १.५२६, १.५३०, १.५४२, २.२११.६०, कथासरित् ९.६.१८१, १०.५.१०१, द्र. धर्मव्याध, मृगव्याध vyaadha/ vyadha


      व्याधि अग्नि १२१.७१(नक्षत्र अनुसार व्याधि बल का विचार), गरुड २.३३.२९(चित्रगुप्त के आलय के परितः व्याधियों की स्थिति), नारद १.९१.७३(अघोर शिव की पञ्चम कला), ब्रह्माण्ड ४.३४.१४(निर्व्याधि : षोडशावरण चक्र के षष्ठ आवरण के रुद्रों में से एक), मत्स्य १७१, शिव ५.११.२२, स्कन्द ३.१.४९.४२(व्याधि की नक्र से उपमा), ३.१.४९.४३(व्याधि की चोर रूप में कल्पना), ३.१.४९.७६(व्याधि की व्याघ्र रूप में कल्पना), ६.१३९(यम को मारण दोष से मुक्त करने के लिए ब्रह्मा द्वारा व्याधियों की सृष्टि), महाभारत वन ३१३.९१, लक्ष्मीनारायण १.६४.१३(चित्रगुप्त के गृह के परित: व्याधियों के भवन ), १.२०२, vyaadhi/ vyadhi


      व्यान अग्नि ८६.८(सुषुप्ति/विद्या कला के २ प्राणों में से एक), २१४.१२, नारद १.४२.१०४(व्यान के संधियों में व्याप्त होने का उल्लेख), महाभारत आश्वमेधिक २४.८(समान व व्यान से शुक्र - शोणित की उत्पत्ति का कथन), २४.९(प्राण - अपान के द्वन्द्व की भांति समान - व्यान के तिर्यक् द्वन्द्व का कथन), २४.१२(हवि के सात्त्विक भाग से समान - व्यान की उत्पत्ति का कथन ) vyaana/ vyana

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      व्याप्ति नारद १.६६.१३६(व्यापी गणेश की शक्ति कालरात्रि का उल्लेख )


      व्याल ब्रह्माण्ड १.२.८.३६(व्याल की निरुक्ति ), योगवासिष्ठ ४.२५, vyaala/ vyala


      व्यास कूर्म १.२९+ (कृष्ण द्वैपायन व्यास द्वारा अर्जुन को चतुर्युगों में धर्म की स्थिति व शिव भक्ति का उपदेश), १.३१(व्यास द्वारा जैमिनि को वाराणसी के माहात्म्य का कथन), १.३५(वाराणसी में भिक्षा की अप्राप्ति पर व्यास द्वारा वाराणसी को शाप, पार्वती द्वारा व्यास का वाराणसी से निष्कासन), १.५२(२८ द्वापरों में व्यासों के नाम), २.१२+ (व्यास गीता का वर्णन), गरुड ३.२९.६४(कथाकाल में व्यास के स्मरण का निर्देश), गर्ग ९.१(व्यास द्वारा उग्रसेन को कर्म व भक्ति विषयक उपदेश), देवीभागवत १.२, १.३(द्वापरों में २८ व्यासों के नाम), १.१०.१९(व्यास की वासवी - पुत्र संज्ञा), १.१४(व्यास की पुत्र प्राप्ति की इच्छा, घृताची से शुक पुत्र की उत्पत्ति), १.१४+ (व्यास द्वारा शुक से गृहस्थाश्रम स्वीकार करने का आग्रह, शुक द्वारा वैराग्य का प्रतिपादन, व्यास द्वारा शुक को देवीभागवत पुराण का वाचन), नारद १.८१.१३६(व्यास मन्त्र व ध्यान का स्वरूप), पद्म २.१, ३.१८.३८(व्यास तीर्थ का माहात्म्य), ७.१, ब्रह्म २.८८(दस आङ्गिरसों का गङ्गा तट पर तप करके भावी व्यास बनना), ब्रह्मवैवर्त २.५.२३(व्यास द्वारा वाल्मीकि से पुराण सूत्र की पृच्छा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३५.११६(द्वापर में व्यास), भविष्य १.१, १.१९८(व्यास द्वारा भीष्म को सूर्य के प्रभाव का वर्णन), भागवत १.४(इतिहास व पुराण रचनाओं से व्यास की असन्तुष्टि), १२.६(व्यास द्वारा वेद का शाखाकरण), मत्स्य ४७.२४८(पराशर - पुत्र, कल्कि अवतार के समय में यज्ञ के पुरोहित), १८५.२१(काशी में भिक्षा प्राप्त न होने पर व्यास द्वारा काशी को शाप, पार्वती से भिक्षा - प्राप्ति, व्यास का काशी से निष्कासन), लिङ्ग १.७.११(२८ द्वापरों में व्यासों के नाम), १.२४(२८ द्वापरों में व्यास आदि का वर्णन), वायु १.१.२३, १.१.४२, २३.११६(द्वापरों में व्यासों के नाम), १०४.५७(तपोरत व्यास के समक्ष अक्षरवेद का प्राकट्य, शरीर में तीर्थों आदि के दर्शन), विष्णु ३.३(२८ द्वापरों में व्यासों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर ३.११९.५(काव्यारम्भ में व्यास की पूजा), शिव ३.४+ (२८ द्वापरों में व्यासों के शिष्यों के नाम), ३.३३, ५.५(सनत्कुमार प्रोक्त, महापातक), ५.४३+ (पराशर व सत्यवती से व्यास के जन्म की कथा, व्यास पूजा), ७.२.८(व्यासों के नाम), स्कन्द १.२.४१, १.२.४६.१२०, ३.१.२०, ३.२.१(व्यास द्वारा धर्मारण्य की कथा का वर्णन, ब्रह्मसभा में यम द्वारा कथा का श्रवण, पृथिवी पर युधिष्ठिर द्वारा श्रवण), ४.२.९५(व्यास द्वारा काशी में हरिपूजा के कारण नन्दी द्वारा व्यास की भुजा व वाक् का स्तम्भन, विष्णु के उपदेश से व्यास द्वारा शिव की स्तुति), ४.२.९५.५६(स्तुति रूप व्यासाष्टक स्तोत्र पठन), ४.२.९६.८२(शिव द्वारा व्यास की परीक्षा, काशी में भिक्षा की अप्राप्ति पर व्यास द्वारा काशी को शाप, शिव द्वारा व्यास का काशी से निष्कासन), ४.२.९७.१४३(व्यासेश कूप का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.१, ५.३.९७.१०१, ५.३.९७.११४, ५.३.९७(व्यास तीर्थ का माहात्म्य, पराशर व मत्स्यगन्धा से व्यास की उत्पत्ति की कथा, व्यास का तप, नर्मदा की स्तुति, शिव लिङ्ग की स्थापना), ५.३.१५९.२७, ५.३.२३१.२२, ६.१४७, ६.१८०(ब्रह्मा के यज्ञ में होता ?), ७.३.४६(व्यासेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), हरिवंश ३.२, लक्ष्मीनारायण १.५७, १.४०५, १.४७८, १.४८२, १.५०४, ३.१७०.१८, द्र. मन्वन्तर vyaasa/ vyasa

      व्यास-एक महर्षि, जिनको नमस्कार कर लेने के पश्चात् जय ( महाभारत एवं इतिहास-पुराण आदि ) के पाठ का विधान है। इन्हें कृष्णद्वैपायन कहते हैं (आदि० १। मङ्गलाचरण ) । राजर्षि जनमेजय के सर्पसत्र में वैशम्पायन द्वारा श्रीकृष्णद्वैपायनकथित महाभारत की विचित्र विविध एवं पुण्यमयी कथाएँ सुनायी गयी थीं ( आदि० १।९-११)। इनकी बनायी हुई महाभारतसंहिता सब शास्त्रों के अभिप्राय के अनुकूल वेदार्थों से भूषित तथा चारों वेदों के भावों से संयुक्त है (आदि० १ । १७-२१)। हिमालय की पवित्र तलहटी में पर्वतीय गुफा के भीतर स्नान आदि से पवित्र हो कुशासन पर बैठकर ध्यानयोग में स्थित हो इन्होंने धर्मपूर्वक महाभारत इतिहास के स्वरूप का विचार करते हुए ज्ञानदृष्टि द्वारा आदि से अन्त तक सब कुछ प्रत्यक्ष की भाँति देखा (आदि० १। २८ के बाद दा० पाठ; २९-४९)। इन्होंने तपस्या एवं ब्रह्मचर्य की शक्ति से सनातन वेद का विस्तार करके लोकपावन पवित्र इतिहास की रचना की ( आदि० १ । ५४)। ये पराशरमुनि के पुत्र और द्वैपायन नाम से प्रसिद्ध हैं। उत्तम व्रतधारी, निग्रहानुग्रहसमर्थ एवं सर्वज्ञ हैं। इन्होंने महाभारत की रचना करके यह विचार किया कि अब मैं शिष्यों को इस ग्रन्थ का अध्ययन कैसे कराऊँ। इनके इस विचार को जानकर लोकगुरु भगवान् ब्रह्मा लोककल्याण की कामना से स्वयं इनके आश्रम पर पधारे । इन्होंने ब्रह्माजी को प्रणाम करके उन्हें श्रेष्ठ आसन पर बैठाया। उनकी परिक्रमा की और उनके आसन के पास ही ये हाथ जोड़कर खड़े हो गये; फिर ब्रह्माजी की आज्ञा से बैठकर प्रसन्नतापूर्वक बोले---भगवन् ! मैंने एक महाकाव्य की रचना की है । इसमें सम्पूर्ण वेदों का गुप्ततम रहस्य तथा अन्य सब शास्त्रों का सार संकलित हुआ है। परंतु इसके लिये कोई लेखक नहीं मिलता।' ब्रह्माजी ने इनके काव्य की प्रशंसा करके इन्हें गणेश-स्मरण की आज्ञा दी और स्वयं अपने धाम को चले गये ( आदि० ।। ५५-७४ )। इन्होंने गणेशजी का स्मरण किया और वे आ गये । व्यासजी ने उनसे लेखक बनने की प्रार्थना की। उन्होंने कहा, 'यदि लिखते समय मेरी लेखनी क्षणभर भी न रुके तो मैं लेखक हो सकता हूँ।' व्यासजी ने कहा ऐसा ही होगा; किंतु आप भी बिना समझे एक अक्षर भी न लिखें ।' कहते हैं, इन्होंने महाभारत में आठ हजार आठ सौ श्लोक ऐसे रचे हैं, जिनका अर्थ ये तथा शुकदेवजी ही ठीक-ठीक समझते हैं । गणेशजी सर्वज्ञ होने पर भी जब क्षणभर ऐसे श्लोकों पर विचार करने लगते तब तक व्यासजी और भी बहुत-से श्लोकों की रचना कर डालते थे (आदि० १ । ७५-८३)। इन्होंने माता सत्यवती तथा परम ज्ञानी गङ्गापुत्र भीष्म की आज्ञा से विचित्रवीर्य की पत्नियों के गर्भ से तीन अग्नियों के समान तीन तेजस्वी पुत्र उत्पन्न किये, जिनके नाम थे-धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर । इन सबके परलोकवासी हो जाने के बाद व्यासजी ने मनुष्यलोक में महाभारत का प्रवचन किया। जनमेजय तथा सहस्रों ब्राह्मणों के प्रश्न करने पर उन्होंने अपने शिष्य वैशम्पायन को आज्ञा दी थी कि तुम इन्हें महाभारत की कथा सुनाओ (आदि०१ । ८४-९९)। इन्होंने उपाख्यानों सहित जो आद्यभारत या महाभारत बनाया था, वह एक लाख श्लोकों का है। फिर इन्होंने उपाख्यान भाग को छोड़कर चौबीस हजार श्लोकों की एक संहिता बनायी, जिसे विद्वान् पुरुष 'भारत' कहते हैं। इन्होंने सबसे पहले अपने पुत्र शुकदेव को महाभारत ग्रन्थ का अध्ययन कराया । फिर दूसरे-दूसरे सुयोग्य शिष्यों को इसका उपदेश दिया । तत्पश्चात् भगवान् व्यास ने साठ लाख श्लोकों की दूसरी संहिता बनायी । उसके तीस लाख श्लोक देवलोक में समादृत हो रहे हैं । पितृलोक में पंद्रह लाख तथा गन्धर्वलोक में चौदह लाख श्लोकों का पाठ होता है। शेष रहे एक लाख श्लोक | उन्हीं को आद्य भारत या महाभारत कहते हैं। मनुष्यलोक में ये ही प्रतिष्ठित हैं। देवताओं को देवर्षि नारद ने, पितरों को असित देवल ने, गन्धर्वों को शुकदेवजी ने और मनुष्यों को वैशम्पायनजी ने महाभारत संहिता सुनायी थी ( आदि०१।१०१-१०९) । पुत्र और शिष्यों सहित भगवान् वेदव्यास जनमेजय के सर्पयज्ञ में सदस्य बने थे ( आदि० ५३ । ७-१०)। आस्तीक ने जनमेजय के यज्ञ को सत्यवतीनन्दन व्यास के यज्ञ के समान बताया (आदि० ५५ । ७ ) । यज्ञकर्म से अवकाश मिलने पर व्यासदेव जी अति विचित्र महाभारत की कथा सुनाया करते थे ( आदि० २९ । ५)। इन्हें 'सत्यवती' अथवा 'काली' ने कन्यावस्था में ही पराशर मुनि से यमुनाजी के द्वीप में उत्पन्न किया था। ये पाण्डवों के पितामह थे । इन्होंने जन्म लेते ही अपनी इच्छा से शरीर को बढ़ा लिया था। इनको स्वतः ही अङ्गों और इतिहासों सहित सम्पूर्ण वेदों का तथा परमात्मतत्त्व का ज्ञान प्राप्त हो गया था। ये वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ हैं । इन्होंने एक ही वेद को चार भागों में विभक्त किया है । ब्रह्मर्षि व्यासजी परब्रह्म और अपरब्रह्मके ज्ञाता, कवि ( त्रिकालदर्शी), सत्यव्रतपरायण तथा परम पवित्र हैं। इन्होंने ही शान्तनु की संतानपरम्परा का विस्तार करने के लिये धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर को जन्म दिया था। ये जनमेजय के यज्ञमण्डप में पधारे। राजा जनमेजय ने सेवकों सहित उठकर इनकी अगवानी की। इन्हें सोने के सिंहासन पर बिठाकर इनका पूजन किया और कुशलप्रश्न के पश्चात् इनसे महाभारत-युद्ध का वृत्तान्त पूछा । तब इन्होंने अपने पास बैठे हुए शिष्य वैशम्पायन को वह सारा प्रसंग सुनाने की आज्ञा दी (आदि० ६० । १-२२)। वैशम्पायन ने गुरुदेव व्यास को नमस्कार करके कथा प्रारम्भ की ( आदि० ६१ । १-२ ) । व्यासजी के कहे हुए इस पञ्चम वेदरूप महाभारत को ‘कार्ष्णवेद' कहते हैं । जो इसका श्रवण कराता है, उसे अभीष्ट अर्थ की प्राप्ति होती है । यह जय नामक इतिहास है । इसकी महिमा का विस्तृत वर्णन ( आदि० ६२। १८-४१ )। मुनिवर व्यास प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर स्नान-संध्या आदि से शुद्ध हो महाभारत की रचना करते थे । इन्होंने तपस्या और नियम का आश्रय ले तीन वर्षों में इस ग्रन्थ को पूरा किया था ( आदि० ६२ । ४१-४२)। माता सत्यवती ने पराशर जी के संयोग से तत्काल ही यमुना के द्वीपमें इनको जन्म दिया था, इसीलिये ये पाराशर्य और द्वैपायन कहलाये । इन्होंने माता से आज्ञा लेकर तपस्या में ही मन लगाया और माता से कहा, आवश्यकता पड़ने पर तुम मेरा स्मरण करना, मैं अवश्य दर्शन दूंगा ( आदि० ६३ । ८४-८५.)। वेदों का व्यास ( विस्तार ) करने के कारण ये वेदव्यास नाम से विख्यात हुए ( आदि० ६३ । ८८ )। इन्होंने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और पञ्चम वेद महाभारत का अध्ययन सुमन्तु, जैमिनि, पैल, शुकदेव तथा वैशम्पायन को कराया ( आदि० ६३ । ८९-९०)। इनके द्वारा अम्बिका और अम्बालिका के गर्भ से राजा धृतराष्ट्र और महाबली पाण्डु का जन्म हुआ और इन्हीं से ही शूद्रजातीय स्त्री के गर्भ से विदुरजी उत्पन्न हुए जो धर्म-अर्थ के ज्ञान में निपुण, बुद्धिमान्, मेधावी और निष्पाप थे ( आदि० ६३ । ११३-११४ )। सत्यवती द्वारा व्यास का आवाहन और व्यासजी का माता की आज्ञा ले विचित्रवीर्य की पत्नियों के गर्भ से संतानोत्पादन करने की स्वीकृति देना (आदि० १०४ । २४-४९)। इनके द्वारा विचित्रवीर्य के क्षेत्र से धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर की उत्पत्ति तथा माता के पूछने पर इनका उन पुत्रों के भावी गुणों और लक्षणों का वर्णन ( आदि० १०५ अध्याय)। इनका गान्धारी को सौ पुत्र होने का वरदान देना ( आदि. ११४।८)। इनके द्वारा गान्धारी के लिये उसके गर्भ से गिरे हुए मांसपिण्ड से सौ पुत्र होने की व्यवस्था ( आदि० ११४ । १७-२४ ) । इनका मांसपिण्ड के एक सौ एकवें भाग से गान्धारी के लिये एक पुत्री होने का आश्वासन देना और उसे भी घृतपूर्ण घट में स्थापित करना ( आदि० ११५ । १६-१८)। वन में व्यासजी का कुन्तीसहित पाण्डवों को दर्शन और आश्वासन देना (आदि० १५५ । ५---१९)। इनका पाण्डवों को पुनः दर्शन देकर द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तान्त सुनाना और उसके इन सबकी पत्नी होने की बात बताकर इन्हें पाञ्चाल की राजधानी में जाने के लिये आदेश देना (आदि. १६८ अध्याय)। जिसे देवलोक में अलकनन्दा कहते हैं, वही इस लोक में आकर गङ्गा नाम धारण करती है--यह कृष्णद्वैपायन का मत है ( आदि० १६९ । २२)। द्रुपद की राजधानी की ओर जाते हुए पाण्डवों से मार्ग में इनकी भेंट और परस्पर स्वागतसत्कार के बाद वार्तालाप ( आदि. १८४ । २-३)। व्यासजी के समक्ष द्रौपदी का पाँच पुरुषों से विवाह होने के विषय में द्रुपद, धृष्टद्युम्न और युधिष्ठिर का अपने-अपने विचार व्यक्त करना तथा असत्य से डरी हुई कुन्ती को इनका आश्वासन देना (आदि० १९५ अध्याय)। इनका द्रुपद को पाण्डवों तथा द्रौपदी के पूर्वजन्म की कथा सुनाकर उन्हें दिव्य दृष्टि देना (आदि० १९६ । १-३८)। द्रौपदी स्वर्ग की लक्ष्मी है और पाँचों पाण्डवों की पत्नी नियत की गयी है---इस बात का द्रुपद को निश्चय कराना ( आदि० १९६ । ५१-५३)। श्रीकृष्णद्वैपायन व्यास युधिष्ठिर की सभा में विराजमान होते थे (सभा० ४ । ११)। इनका अर्जुन को उत्तर, भीमसेन को पूर्व, सहदेव को दक्षिण और नकुल को पश्चिम दिशा में दिग्विजय के लिये जाने का आदेश ( सभा० २५ । १ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७४२)। इनका युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में ब्रह्मा का कार्य सँभालना (सभा०३३ । ३४ )। राजसूय यज्ञ के अन्त में युधिष्ठिर के प्रति भविष्यवाणी सुनाना (सभा० ४६ । १-१७ )। इन्होंने राजसूय यज्ञ के अन्त में युधिष्ठिर का अभिषेक किया (सभा० ५३ । १०)। इनका धृतराष्ट्र से दुर्योधन के अन्याय को रोकने के लिये अनुरोध ( वन० ७ । २३ से वन० ८ अध्याय तक) । इनके द्वारा सुरभि और इन्द्र के उपाख्यान का वर्णन तथा पाण्डवों के प्रति दया दिखाना ( वन० ९ अध्याय )। धृतराष्ट्र को मैत्रेय के आगमन की सूचना देकर इनका प्रस्थान (वन० १०। ४-६ )। इनका द्वैतवन में पाण्डवोंके पास जाना और युधिष्ठिर को प्रतिस्मृति विद्या का दान करना ( वन० ३६ । २४-३८ )। कुरुक्षेत्र की सीमा के अन्तर्गत एक मिश्रकतीर्थ है, जहाँ महात्मा व्यास ने द्विजोंके लिये सभी तीर्थों का सम्मिश्रण किया है। आगे चलकर व्यासवन है और इससे भी आगे व्यासस्थली नामक एक स्थान है, जहाँ बुद्धिमान् व्यास ने पुत्रशोक से संतप्त हो शरीर त्याग देने का विचार किया था ( वन० ८३ । ९१-९७)। पाण्डवों से दान-धर्म के प्रतिपादन के प्रसंग में मुद्गल ऋषि की कथा सुनाना ( वन० अध्याय २६० से २६१ तक)। धृतराष्ट्र से श्रीकृष्ण और अर्जुन की महिमा बताने के लिये संजय को आदेश (उद्योग० ६७ । १०)। इनका धृतराष्ट्र को समझाना(उद्योग० ६९।११-१५)। इनके द्वारा संजय को दिव्य-दृष्टि-दान (भीष्म० २०।१०)। धृतराष्ट्र से भयंकर उत्पातों का वर्णन करना (भीष्म० २।१६ से भीष्म० ३ । ४५ तक) । विजयसूचक लक्षणों का वर्णन करना (भीष्म०३ । ६५-८५)। इनका युधिष्ठिर को मृत्यु की अनिवार्यता बताना (द्रोण० ५२ । ११)। युधिष्ठिर को नारद-अकम्पन-संवाद सुनाना (द्रोण० ५२ । ३० से ५४ अध्याय तक)। षोडशराजकीयोपाख्यान प्रारम्भ करना (द्रोण. अध्याय ५५ से द्रोण० ७१ । २२ तक)। युधिष्ठिर का शोक-निवारण करके अन्तर्धान होना (द्रोण. ७१ । २३) । घटोत्कच-वध से दुखी युधिष्ठिर को समझाना (द्रोण. १८३ । ५८-६७)। अश्वत्थामा से शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना (द्रोण० २०१ । ५६---- ९६ ) । अर्जुन से भगवान् शिव की महिमा बताना (द्रोण. २०२ अध्याय)। वध के लिये उद्यत सात्यकि के हाथ से संजय को मुक्त कराना (शल्य. २९ । ३९)। इनके द्वारा धृतराष्ट्र को सान्त्वना (शल्व० ६३ । ७७)। अर्जुन और अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र को शान्त करने के लिये इनका प्रकट होना (सौप्तिक० १४ । ११) । अश्वस्थामा से अपनी मणि देकर शान्त हो जाने के लिये कहना ( सौप्तिक ० १५। १९-२७) । श्रीकृष्ण द्वारा अश्वत्थामा को दिये गये शाप का समर्थन करना ( सौप्तिक० १६ । १७-१८)। शोक से मूर्छित धृतराष्ट्र को समझाना (स्त्री० ८।१३-४९)। पाण्डवों को शाप देने के लिये उद्यत गान्धारी को समझाना (स्त्री० १४ । ७-१३)। युद्धके पश्चात् युधिष्ठिर के पास आना (शान्ति० १ । ४) । युधिष्ठिर से शङ्ख और लिखित का चरित्र सुनाते हुए सुद्युम्न के राजदण्ड की महत्ता का प्रतिपादन करना (शान्तिः २३ अध्याय)। राजा हयग्रीव का चरित्र सुनाते हुए युधिष्ठिर को राजोचित कर्तव्य-पालन के लिये समझाना (शान्ति० २४ अध्याय)। राजा सेनजित् के उद्गारों का उल्लेख करते हुए युधिष्ठिर को आश्वासन देना (शान्ति० २५ अध्याय)। शरीर त्यागने के लिये उद्यत युधिष्ठिर को रोककर समझाना (शान्ति० २७ । २८-- ३३)। अश्मा मुनि और जनक के संवादरूप में प्रारब्ध की प्रबलता बतलाकर युधिष्ठिर को समझाना-बुझाना (शान्ति० २८ अध्याय)। अनेक युक्तियों द्वारा युधिष्ठिर को समझाना (शान्ति० ३२ अध्याय)। काल की प्रबलता बताकर देवासुर-संग्राम के उदाहरण से युधिष्ठिर को प्रायश्चित्त करने की आवश्यकता बताना ( शान्ति० ३३ । १४-४८) । युधिष्ठिर से प्रायश्चित्त का वर्णन करना ( शान्ति० अध्याय ३४ से ३५ तक)। स्वायम्भुव मनु द्वारा कथित धर्म का उपदेश करना (शान्ति० ३६ अध्याय ) । युधिष्ठिर को भीष्मके पास चलने के लिये कहना ( शान्ति० ३७ । ६-१६) । शरशय्या पर पड़े हुए भीष्मजी को देखने के लिये इनका पदार्पण करना (शान्ति० ४५ । ५)। व्यासजी का अपने पुत्र शुकदेव को काल का स्वरूप बताना (शान्ति० २३१ । ११-३२)। शुकदेव को सृष्टिक्रम तथा युगधर्म का उपदेश देना ( शान्ति. २३२ अध्याय)। इनका ब्राह्मप्रलय और महाप्रलय का वर्णन करना (शान्ति० २३३ अध्याय )। ब्राह्मणों के कर्तव्य और दान की प्रशंसा करना (शान्ति० २३४ अध्याय)। सर्ग, काल, धारणा, वेद, कर्ता, कार्य और क्रियाफल के विषय में इनका शुकदेव को उपदेश करना (शान्ति० अध्याय २३५ से ३३९ तक)। शुकदेव को मोक्ष-धर्मविषयक विभिन्न प्रश्नों का उत्तर देना (शान्ति० अध्याय २४० से २५५ तक)। अपने पुत्र शुकदेव को वैराग्य और धर्मपूर्ण उपदेश देते हुए चेतावनी देना (शान्ति० ३२१ । ४-~९३)। इनकी पुत्र प्राप्ति के लिये तपस्या और शङ्करजी से वर-प्राप्ति (शान्ति० ३२३ । १२-२९) । घृताची अप्सरा के दर्शन से मोहित होने के कारण अरणी-काष्ठ पर इनके वीर्य का पतन और उससे शुकदेवजी की उत्पत्ति (शान्ति० ३२४।४-१०)। शुकदेव को जनक के पास भेजना ( शान्ति० ३२५ । ६-११ )। शिष्यों को वरदान देना (शान्ति० ३२७ । ३७-५२)। नारदजी के पूछने पर अपनी उदासी का कारण बताना (शान्ति. ३२८ । १६-१९)। शुकदेव को अनध्याय का कारण बताते हुए प्रवह आदि सात वायुओं का परिचय देना (शान्ति० ३२८।२८-५७)। पुत्र-मोहवश शुकदेवजी को जाने से रोकना (शान्ति० ३३१ । ६३)। पुत्रविरहजनित शोक से व्यासजी की व्याकुलता ( शान्ति. ३३३ । १९---३१ )। व्यासजी का अपने शिष्यों को ब्रह्मादि देवताओं को दिये गये नारायण के उपदेश को सुनाना (शान्ति० ३४० । ९०-११०)। नारद के मुख से इन्हें सात्वतधर्म की उपलब्धि और इनके द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को इस धर्म का उपदेश (शान्ति० ३४८ । ६४६५) । सरस्वतीपुत्र अपान्तरतमा के रूप में इनकी उत्पत्ति और महिमा ( शान्ति० ३४९ । ३९--५८ )। युधिष्ठिर से शिवमहिमा के विषय में इनका अपना अनुभव बताना ( अनु० १८ । १-३)। भीष्मजी के समक्ष इनके द्वारा ब्रह्महत्या के समान पापों का निरूपण (अनु० २४ । ५--१२)। व्यासजी का शुकदेव से गौओं की, गोलोक की और गोदान की महिमाका वर्णन ( अनु० ८१ । १२४६)। एक कीट को क्रमशः ब्राह्मणत्व प्राप्त कराकर उसका उद्धार करना (अनु० अध्याय ११७ से ११९ तक)। मैत्रेय के प्रश्नों के उत्तर में उनके साथ व्यासजी का संवाद (अनु० अध्याय १२० से १२२ तक)। भीष्म से युधिष्ठिर को हस्तिनापुर जाने की आज्ञा देने को कहना (अनु० १६६ । ६-७)। इनका शोकाकुल युधिष्ठिर को समझाना (आश्व० २। १५-२०)। युधिष्ठिर को अश्वमेधयज्ञ करने की सलाह देना (आश्व० ३। ८-१०)। व्यासजी का युधिष्ठिर को धन-प्राप्ति का उपाय बताना (आश्व० ३ । २०-२१)। युधिष्ठिर को मरुत्त का वृत्तान्त सुनाना ( आश्व. अध्याय ४ से १० तक)। पतिशोक से दुखी उत्तरा को आश्वासन देना ( आश्व० ६२ । ११-१२) । पुत्रशोक से दुखी अर्जुन को समझाना ( आश्व० ६२ । १४-१७)। युधिष्ठिर को अश्वमेध यज्ञ की आज्ञा देकर अन्तर्धान होना (आश्व० ६२। २०) । इनका अर्जुन को अश्वमेधीय अश्व की रक्षा के लिये, भीमसेन और नकुल को राज्य-पालन के लिये तथा सहदेव को कुटुम्बसम्बन्धी कार्यों की देखरेख के लिये नियुक्त करना (आश्व० ७२ । १४-२०)। इनके द्वारा शास्त्रीय विधि के अनुसार अश्वमेधीय अश्व का उत्सर्ग ( आश्व० ७३ । ३) । युधिष्ठिर द्वारा इनको समस्त पृथ्वी का दान तथा इनके द्वारा पृथ्वी को उन्हें लौटाकर उसके निष्क्रयरूप से ब्राह्मणों के लिये सुवर्ण देने का आदेश (आश्व०८९ । ८-१८)। इनके समझाने से युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र को वन में जाने के लिये अनुमति देना (आश्रम० ४ अध्याय)। इनका वन में धृतराष्ट्र के पास आना और उनका कुशल समाचार पूछते हुए विदुर और युधिष्ठिर की धर्मरूपता का प्रतिपादन करके उनसे अभीष्ट वस्तु मांगने के लिये कहना (आश्रम० २८ अध्याय)। इनका अपना तपोबल दिखाने के लिये कहकर धृतराष्ट्र को मनोवाञ्छित वर माँगने के लिये आज्ञा देना तथा गान्धारी और कुन्तीका इनसे अपने मरे हुए पुत्रों एवं सम्बन्धियों के दर्शन कराने का अनुरोध करना (आश्रम०२९ अध्याय)। कुन्ती का इन्हें कर्ण के जन्म का गुप्त रहस्य बताना और व्यासजी का उन्हें सान्त्वना देना (आश्रम०३८ अध्याय)। इनके द्वारा धृतराष्ट्र आदि के पूर्वजन्म का परिचय तथा इनकी आज्ञा से सबका गङ्गातट पर जाना (आश्रम० ३१ अध्याय)। इनके प्रभाव से कुरुक्षेत्र में मारे गये कौरवपाण्डव वीरों का गङ्गा के जल से प्रकट होना ( आश्रम० ३२ अध्याय)। इनकी आज्ञा से विधवा क्षत्राणियों का गङ्गाजी में गोता लगाकर अपने-अपने पति के लोक को प्राप्त करना (आश्रम० ३३ । १८-२२)। इनकी कृपा से जनमेजय को अपने पिता का दर्शन प्राप्त होना ( आश्रम० ३५ । ४-११)। इनका धृतराष्ट्र को पाण्डवों को विदा करनेके लिये आदेश देना (आश्रम० ३६ । ५-१२ )। यदुकुल-संहारके पश्चात् अर्जुन का इनके आश्रम पर आना और उनके साथ इनका वार्तालाप ( मौसल. ८ अध्याय)। व्यासनिर्मित महाभारत के श्रवण एवं पठन की महिमा ( स्वर्गा० ५ । ३५-६८)।

      महाभारत में आये हुए व्यासजी के नाम-कृष्ण, कृष्णद्वैपायन, द्वैपायन, सत्यवतीसुत, सत्यवत्यात्मज, पाराशर्य, पराशरात्मज, बादरायण, वेदव्यास आदि ।

      व्यासवन-कुरुक्षेत्र की सीमा में स्थित एक वन, जहाँ मनोजव तीर्थ में स्नान करके मनुध्य सहस्र गोदान का फल पाता है (वन० ८३ । ९३)।

      व्यासस्थली-कुरुक्षेत्र की सीमा के अन्तर्गत एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ व्यास ने पुत्रशोक से संतप्त हो शरीर त्याग देने का विचार कर लिया था। उस समय उन्हें देवताओं ने पुनः उठाया था । इस स्थल में जाने से सहस्र गोदान का फल मिलता है (वन० ८३ । ९६-९८)।



      व्यासदास भविष्य ३.४.२२(भक्त, पूर्व जन्म में सोम),


      व्याहृति नारद १.५१.४६(अग्नि के शरीर में कटि के व्याहृतियों से निर्मित होने का उल्लेख), पद्म १.४०(कपिल के अनुरोध पर ब्रह्मा द्वारा व्याहृतियों की सृष्टि), भागवत ३.१२.४४(ब्रह्मा के मुखों से व्याहृतियों की सृष्टि), ६.१८(सविता व पृश्नि - पुत्री), वायु २५.५०(ब्रह्मा द्वारा मोहिनी माया को महाव्याहृति नाम प्रदान), ६४.१०(भू, भुव, भव्य व्याहृतियों का निरूपण), विष्णुधर्मोत्तर ३.१६२(व्याहृति व्रत), हरिवंश ३.१४(भू, भुव:, स्व: व्याहृतियों की ब्रह्मा से उत्पत्ति, कपिल व नारायण द्वारा उपदेश ) vyaahriti/ vyahriti


      व्युत्थान योगवासिष्ठ ३.९१, ३.९३+, ३.११६, ४.४२+, ६.१.१२२, द्र. महाभूत


      व्युषिताश्व हरिवंश १.१५.३२


      व्युष्ट भागवत ४.१३.१४(पुष्पार्ण व दोषा - पुत्र, पुष्करिणी - पति, सर्वतेजा - पिता )


      व्यूह अग्नि २५.१८(१ से लेकर २६ व्यूह तक व्यूह न्यास), २०१(नव व्यूहार्चन विधि, बीज मन्त्रों सहित आराधना), २३६, २४२(सेना के ६ व्यूह भेदों व ५ अङ्गों का वर्णन), गणेश २.६३.२५(देवान्तक - सेनापतियों द्वारा रथ व्यूह, चक्र व्यूह आदि व्यूहों का निर्माण), गरुड १.११(नव व्यूहार्चन विधि), १.३२(पञ्च व्यूहार्चन विधि), गर्ग १०.४९.६(कौरवों व यादवों के युद्ध में कौरव सेना के क्रौञ्च व्यूह का कथन), पद्म ५.२५(सुबाहु की सेना द्वारा शत्रुघ्न की सेना के विरुद्ध क्रौञ्च व्यूह का निर्माण, लक्ष्मीनिधि द्वारा व्यूह का भेदन), ६.२२९.८०(विष्णु व्यूह का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.२१(आदित्य व्यूह कीर्तन नामक अध्याय), लिङ्ग २.२७.५२(शिव अभिषेक में महाव्यूह अष्टक, अणिमा, लघिमा आदि व्यूहों का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर २.१७७.१७(व्यूहों के नाम), हरिवंश २.८४.८, ३.६१.४(वज्र व्यूह का कथन), महाभारत उद्योग ५७.११(धृष्टद्युम्न का दैव, मानुष, गान्धर्व व आसुर व्यूह जानने वाले के रूप में उल्लेख), द्रोण ३४, ७४.२७(द्रोण द्वारा जयद्रथ आदि को अर्जुन द्वारा न तरने वाले व्यूह निर्माण का आश्वासन), भीष्म ६०, ८७, कर्ण ११, ४६, शल्य ८.२०(शल्य द्वारा सर्वतोभद्र व्यूह निर्माण का उल्लेख), वा.रामायण ६.२४(लङ्का पर आक्रमण हेतु राम द्वारा सेना के व्यूह का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण ३.११७.९५, कथासरित् ८.४.४२, ८.७.३, द्र. क्रौञ्चव्यूह, चतुर्व्यूह, प्रतिव्यूह vyuuha/vyooha/ vyuha


      व्योम गणेश २.८६.१४(गणेश द्वारा सिन्धु - प्रेषित व्योमासुर का वध), गर्ग ४.२४(कृष्ण द्वारा मय - पुत्र व्योम असुर का उद्धार, पूर्व जन्म में राजा भीमरथ), पद्म ६.२२७(परम व्योम का वर्णन), ६.२२८, ब्रह्माण्ड १.२.२३.५७(चन्द्रमा के रथ में एक अश्व का नाम), भविष्य १.१२५(सूर्य के आयुध व्योम का वर्णन, ब्रह्माण्ड व लोक में स्थिति), १.१५५+ (सूर्य के रूप व्योम का शिव के त्रिशूल रूप में अवतरण, विष्णु के चक्र रूप में अवतरण, अर्चन प्रकार), १.२०३.१(सूर्य के अष्टशृङ्ग व्योम की पूजा विधि), भागवत १०.३७(मय - पुत्र व्योमासुर द्वारा बाल रूप में गोपों की चोरी, कृष्ण द्वारा उद्धार), विष्णुधर्मोत्तर ३.७५(व्योम की मूर्ति का रूप), स्कन्द १.१.१७.१३९(वृत्र - इन्द्र सङ्ग्राम में व्योम के यम के साथ युद्ध का उल्लेख), ४.१.४५.४०(व्योमा : ६४ योगिनियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.७१.८०, २.१५७.१६, २.२४६.३२, द्र. प्रतिव्योम vyoma


      व्रज गर्ग २.१(व्रज मण्डल की प्रयाग तीर्थ से श्रेष्ठता), भागवत १३.१, स्कन्द २.६.१.१९(शाण्डिल्य - प्रोक्त व्रज की निरुक्ति), ७.१.८१.१८(व्रजाङ्ग : तृतीय कल्प में विष्णु अवतार का नाम), हरिवंश २.९(वृकों के भय से व्रज का वृन्दावन में स्थान्तरण ), द्र. गिरिव्रजपुर vraja


      व्रण ब्रह्मवैवर्त्त १.९व्रणदाता, वामन ६९.८६(पार्वती द्वारा छद्म शिव के व्रणों के उपचार हेतु प्रयुक्त ओषधि ), कथासरित् ६.२.१७०, द्र. नाडीव्रण vrana


      व्रत अग्नि १६७ (चान्द्रायण व्रत), १७०(सान्तपन व्रत), १७०(ब्रह्मकूर्च व्रत), १७०(चान्द्रायण व्रत), १७४(अखण्ड द्वादशी व्रत), १७५(व्रत निरूपण : पालनीय नियम व विधि), १७५.२३(चान्द्रायण व्रत की विधि), १७५(प्रतिपदा व्रत), १७५(शिखि व्रत), १७६(विष्णु व्रत), १७६(तिथि अनुसार व्रतों का वर्णन), १७६(द्वितीया व्रत), १७६(अशून्य शयन व्रत), १७६(कान्ति व्रत), १७७(तृतीया व्रत), १७७(सौभाग्य व्रत), १७७(मूलगौरी व्रत), १७८(चतुर्थी व्रत), १७८(अङ्गारक चतुर्थी व्रत), १७८(विनायक व्रत), १७९(पञ्चमी व्रत), १८०(कृष्ण षष्ठी व्रत), १८०(षष्ठी व्रत), १८०(स्कन्द षष्ठी व्रत), १८२(सप्तमी व्रत), १८३(अष्टमी व्रत), १८३+ (कृष्ण अष्टमी व्रत), १८४(त्रि व्रत), १८४(शम्भु व्रत), १८४ (बुधाष्टमी व्रत), १८५(नवमी व्रत), १८६(दशमी व्रत), १८७(एकादशी व्रत), १८८(मनोरथ द्वादशी व्रत), १८८(मन्मथ द्वादशी व्रत), १८८(तिल द्वादशी व्रत), १८८(नाम द्वादशी व्रत), १८८(अनन्त द्वादशी व्रत), १८८(वृकोदर द्वादशी व्रत), १८८(सम्प्राप्ति द्वादशी व्रत), १८८(द्वादशी व्रत), १८८(विशोक द्वादशी व्रत), १८८(गोवत्स द्वादशी व्रत), १८८(गोविन्द द्वादशी व्रत), १८९(श्रवण द्वादशी व्रत), १८९(वामन द्वादशी व्रत), १९०(अखण्ड द्वादशी व्रत), १९१(अनङ्ग त्रयोदशी व्रत), १९१(त्रयोदशी व्रत), १९२(चतुर्दशी व्रत), १९२(अनन्त चतुर्दशी व्रत), १९३(शिवरात्रि व्रत), १९४(सावित्री व्रत), १९४(वृष व्रत), १९४(अशोक पूर्णिमा व्रत), १९५(वार व्रत), १९६(अनन्त व्रत), १९६(नक्षत्र व्रत), १९७(शिखिवाहन व्रत), १९७(त्रिरात्र व्रत), १९७(दिवस व्रत), १९७(धेनु पय: व कल्पवृक्ष व्रत), १९८(नक्त व्रत), १९८(कौमुद व्रत), १९८(मास व्रत), १९९(संक्रान्ति व्रत), १९९( मौन व्रत), १९९(इन्धन व्रत), १९९(उमा व्रत), २००(दीपदान व्रत), २०४(मासोपवास व्रत), २०५(भीष्मपञ्चक व्रत), २०७(कौमुद व्रत), गणेश १.५१.१९(नभ शुक्ल चतुर्थी से आरम्भ होने वाले गणेश व्रत की विधि), २.७३.३९(शौनक द्वारा राजा चक्रपाणि को पुत्र प्राप्ति हेतु सौर व्रत का उपदेश), गरुड १.१२८(व्रत हेतु पालनीय नियम), गर्ग २.१६(राधा द्वारा तुलसी सेवा व्रत का चीर्णन ; पूर्णिमा व्रत), देवीभागवत ७.३८, ११.९(शिरोव्रत का माहात्म्य), ११.२३(चान्द्रायण व्रत की विधि), ११.२३(प्राजापत्य व्रत की विधि), ११.२३(सान्तपन व्रत की विधि), नारद १.१७(शुक्ल द्वादशी व्रत), १.१८(पूर्णिमा व्रत), १.१८(लक्ष्मी - नारायण व्रत), १.१९(कार्तिक शुक्ल एकादशी को ध्वजारोपण व्रत की विधि), १.२१(हरिपञ्चरात्र व्रत), १.२२(मासोपवास व्रत), १.२९, १.११०(प्रतिपदा व्रत), १.१११(द्वितीया व्रत), १.११२(तृतीया व्रत), १.११३.१७(दूर्वा गणपति व्रत), १.११३.४३(करक चतुर्थी व्रत विधि), १.११३(चतुर्थी व्रत), १.११४(पञ्चमी व्रत), १.११५(षष्ठी व्रत), १.११६(सप्तमी व्रत), १.११७(अष्टमी व्रत), १.११८(नवमी व्रत), १.११९(दशमी व्रत), १.१२०(एकादशी व्रत), १.१२१(द्वादशी व्रत), १.१२२(त्रयोदशी व्रत), १.१२३(चतुर्दशी व्रत), १.१२४(पूर्णिमा व्रत), २.४३.१०(नक्त व्रत का माहात्म्य व विधि), पद्म १.१४(कापालिक व्रत), १.१७(ब्रह्म व्रत), १.२०(६० व्रतों के नाम व माहात्म्य), १.२०(महापातक नाशन व्रत), १.२०(सारस्वत व्रत), १.२०(काम व्रत), १.२०.६९(कीर्ति व्रत), १.२०.७४(वीर व्रत), १.२०.८०(अहिंसा व्रत), १.२०.७६(आनन्द व्रत), १.२०.८३(विष्णु व्रत), १.२०.८५(शील व्रत), १.२०.८८(पितृ व्रत), १.२०.९०(दीप्ति व्रत), १.२०.९२(रुद्र व्रत), १.२०.९३(दृढ व्रत), १.२०.९५(शान्ति व्रत), १.२०.९८(ब्रह्म व्रत), १.२०.९९(सुव्रत व्रत), १.२०.१०१(भीम व्रत), १.२०.१०५(महाव्रत), १.२०.१०७(प्राप्ति व्रत), १.२०.१०८(सुगति व्रत), १.२०.११०(वैश्वानर व्रत), १.२०.१११(कृष्ण व्रत), १.२०.११२(देवी व्रत), १.२०.११३(भानु व्रत), १.२०.११४(विनायक व्रत), १.२०.११६(सौर व्रत), १.२०.११७(विष्णु व्रत), १.२०.११८(त्र्यम्बक व्रत), १.२०.११९(वर व्रत), १.२०.१२०(व्रत मन्त्र), १.२०.१२१(वरुण व्रत), १.२०.१२४(भवानी व्रत), १.२०.१२५(पवन व्रत), १.२०.१२६(धाम व्रत), १.२०.१२७(मोक्ष व्रत), १.२०.१३०(सोम व्रत), १.२०.१३५(विश्व व्रत), १.२०.१४०(षष्ठि व्रत), १.२०.१२२(सारस्वत व्रत), १.२१.२१(उपोषण व्रत), १.२३(कल्याणिनी वेश्या व्रत), १.२४(अशून्य शयन व्रत), १.२५(आदित्य शयन व्रत), १.२६(रोहिणी चन्द्र शयन व्रत), १.२९(सौभाग्य शयन व्रत), १.७७, २.८७(अशून्य शयन व्रत), ३.१४, ३.३१, ३.३४, ४.३(कार्तिक व्रत), ४.४(जयन्ती व्रत), ४.११(गुरुवार व्रत), ४.२१(कार्तिक व्रत), ५.८६(वैशाख व्रत), ५.९०(वैशाख व्रत), ५.११२(सोमवार व्रत का वर्णन), ६.२५(तुलसी त्रिरात्र व्रत), ६.३०(दीप व्रत), ६.६४(चातुर्मास व्रत), ६.६६(वैतरणी व्रत), ६.७०(नदी त्रिरात्र व्रत), ६.७७(ऋषि पञ्चमी व्रत), ६.९२(कार्तिक व्रत), ६.१०८(विष्णु व्रत), ६.११३(कार्तिक व्रत), ६.११८(कार्तिक व्रत), ६.११९(मासोपवास व्रत), ६.१२३(मासोपवास व्रत), ६.१२४(भीष्म पञ्चक व्रत), ६.१७४(नृसिंह व्रत), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३(अधिपतित्व व पुत्र प्राप्ति के लिए पुण्यक व्रत का माहात्म्य), ३.३+ (पार्वती द्वारा कृष्ण व्रत), ४.८(जन्माष्टमी व्रत),४.१६(त्रैमासिक व्रत में राधा व कृष्ण की पूजा), भविष्य १.१६(तिथि व्रत), १.२०(अशून्य शयन व्रत), १.२१(पतिव्रता व्रत), १.२१(गौरी तृतीया व्रत), १.२२(चतुर्थी व्रत, कार्तिकेय के शास्त्र निर्माण में गणेश द्वारा विघ्न), १.३२(नाग पञ्चमी व्रत), १.३७+ (नाग पञ्चमी व्रत), १.४६(कार्तिकेय षष्ठी व्रत), १.४७(शाक सप्तमी व्रत), १.५१(महा सप्तमी व्रत), १.६५(रहस्य सप्तमी व्रत), १.६९(सप्तमी व्रत), १.८०(सप्तमी व्रत), १.८१(विजय सप्तमी व्रत), १.८२+ (आदित्य वार व्रत), १.८२(नन्दा आदित्यवार व्रत), १.८३(भद्रादित्य वार व्रत), १.८४(सौम्यादित्य वार व्रत), १.८५(कामादित्य वार व्रत), १.८६(जय आदित्यवार व्रत), १.८६(पुत्रदादित्य वार व्रत), १.८७(जयन्त वार व्रत), १.८८(विजय वार व्रत), १.८९ (आदित्याभिमुख वार व्रत), १.९०(ह्रदय वार व्रत), १.९१(रोगहर वार व्रत), १.९२(महाश्वेत वार व्रत), १.९६(जय सप्तमी व्रत), १.९७(जयन्त सप्तमी व्रत), १.९९(महाजय सप्तमी व्रत), १.१००(नन्दा सप्तमी व्रत), १.१०१(भद्रा सप्तमी व्रत), १.१०४(त्रिवर्ग सप्तमी व्रत), १.१०५(कामदा सप्तमी व्रत), १.१०६(पाप नाशनी सप्तमी व्रत), १.१०७(भानुपद द्वय व्रत), १.१०८(सर्वार्थावाप्ति सप्तमी व्रत), १.१०९(मार्तण्ड सप्तमी व्रत), १.११०(अनन्त सप्तमी व्रत), १.१११(अभ्यङ्ग सप्तमी व्रत), १.११२(तृतीयपदव्रत), १.१६४(सूर्य षष्ठी व्रत), १.१६५(उभय पक्ष सप्तमी व्रत), १.१६७(निक्षुभार्क व्रत), १.१६८(कामप्रद व्रत), १.१६८+ (सूर्य व्रत), १.१९६(सप्तमी व्रत), १.२०८(सप्त सप्तमी व्रत), १.२०९(द्वादश मास सप्तमी व्रत), १.२११(अर्क सम्पुटिका व्रत), १.२१३(मरीचि सप्तमी व्रत), १.२१५(सप्तमी व्रत), २.१.१७.१२(व्रतादेश में अग्नि के समुद्भव नाम का उल्लेख), ३.२.२४(सत्यनारायण व्रत), ४.१.८(नक्षत्र पुरुष व्रत), ४.७(शकट व्रत), ४.८(तिलक व्रत), ४.९(अशोक व्रत), ४.१०(करवीर व्रत), ४.११(कोकिला व्रत), ४.१२(बृहत्तपो व्रत), ४.१३(भद्रोपवास व्रत), ४.१४(यम द्वितीया व्रत), ४.१५(अशून्य शयन व्रत), ४.१६(मधूक तृतीया व्रत), ४.१७(मेघपाली तृतीया व्रत), ४.१८(रम्भा तृतीया व्रत), ४.१९(गोष्पद तृतीया व्रत), ४.२०(हरिताली तृतीया व्रत), ४.२१(ललिता तृतीया व्रत), ४.२२(अवियोग तृतीया व्रत), ४.२३(उमा महेश्वर व्रत), ४.२४(रम्भा व्रत), ४.२५(सौभाग्याष्टक तृतीया व्रत),४.२६(रसकल्याणिनी व्रत), ४.२७(आर्द्रानन्दकरी तृतीया व्रत), ४.२८(चैत्र, भाद्रपद, माघ तृतीया व्रत), ४.२९(अनन्तर तृतीया व्रत), ४.३०(अक्षय तृतीया व्रत), ४.३१(अङ्गारक चतुर्थी व्रत), ४.३२(विनायक स्नपन चतुर्थी व्रत), ४.३३(विनायक चतुर्थी व्रत), ४.३४(शान्ति पञ्चमी व्रत), ४.३५(सारस्वत पञ्चमी व्रत), ४.३६(नाग पञ्चमी व्रत), ४.३७(श्री पञ्चमी व्रत), ४.३८(विशोक षष्ठी व्रत), ४.३९(कमल षष्ठी व्रत), ४.४०(मन्दार षष्ठी व्रत), ४.४१(ललिता षष्ठी व्रत), ४.४२(कार्तिकेय पूजा षष्ठी व्रत), ४.४३(विजय सप्तमी व्रत), ४.४५(त्रयोदश वर्ज्य सप्तमी व्रत), ४.४६(कुक्कुट मर्कटी व्रत), ४.४७(उभय सप्तमी व्रत), ४.४८(कल्याण सप्तमी व्रत), ४.४९(शर्करा सप्तमी व्रत), ४.५०(कमला सप्तमी व्रत), ४.५१(शुभ सप्तमी व्रत), ४.५२(स्नपन सप्तमी व्रत), ४.५३(अचला सप्तमी व्रत), ४.५४(बुधाष्टमी व्रत), ४.५५(जन्माष्टमी व्रत), ४.५६(दूर्वाष्टमी व्रत), ४.५७(कृष्णाष्टमी व्रत), ४.५८(अनघाष्टमी व्रत), ४.५९(सोमाष्टमी व्रत), ४.६०(श्री वृक्ष नवमी व्रत), ४.६१(ध्वज नवमी व्रत), ४.६२(उल्का नवमी व्रत), ४.६३(दशावतार चरित्र व्रत), ४.६४( आशा दशमी व्रत), ४.६५(तारक द्वादशी व्रत), ४.६६(अरण्य द्वादशी व्रत), ४.६७(रोहिणी - चन्द्र व्रत), ४.६८(हरिहर हिरण्यगर्भ प्रभाकराणां व्रत, अवियोग व्रत), ४.६९(गोवत्स द्वादशी व्रत), ४.७०(गोविन्द शयनोत्थापन व्रत), ४.७१(नीराजन द्वादशी व्रत), ४.७२(भीष्म पञ्चक व्रत), ४.७३(मल्ल द्वादशी व्रत), ४.७४(भीम द्वादशी व्रत), ४.७५(श्रवण द्वादशी व्रत), ४.७६(विजय श्रवण द्वादशी व्रत), ४.७७(सम्प्राप्ति द्वादशी व्रत), ४.७८(गोविन्द द्वादशी व्रत),४.७९(अखण्ड द्वादशी व्रत), ४.८०(मनोरथ द्वादशी व्रत), ४.८१(उल्का द्वादशी व्रत), ४.८२(सुकृत द्वादशी व्रत), ४.८३(धरणी द्वादशी व्रत), ४.८४(विशोक द्वादशी व्रत), ४.८५(विभूति द्वादशी व्रत), ४.८६(मदन द्वादशी व्रत), ४.८७(अबाधक व्रत), ४.८९(यमदर्शन त्रयोदशी व्रत), ४.९०(अनङ्ग त्रयोदशी व्रत), ४.९१(पाली व्रत), ४.९२(रम्भा व्रत), ४.९३(आग्नेयी चतुर्दशी व्रत ), ४.९४(अनन्त चतुर्दशी व्रत), ४.९५(श्रवणिका व्रत), ४.९७(शिव चतुर्दशी व्रत), ४.९८(फलत्याग चतुर्दशी व्रत), ४.९९(विजय पौर्णमासी व्रत), ४.१००(पौर्णमासी व्रत), ४.१०१(युगादि तिथि व्रत), ४.१०२(वट सावित्री व्रत), ४.१०३(कृत्तिका व्रत), ४.१०४(पूर्ण मनोरथ व्रत), ४.१०५(विशोक पूर्णिमा व्रत), ४.१०६(अनन्त व्रत), ४.१०७(साम्भरायणी व्रत), ४.१०९(शिव नक्षत्र पुरुष व्रत), ४.११०(सम्पूर्ण व्रत), ४.१११(कामदान वेश्या व्रत), ४.११२(वृन्ताक व्रत), ४.११३(ग्रह नक्षत्र व्रत), ४.११४(शनैश्चर व्रत), ४.११७(विष्टि व्रत), ४.११८(अगस्त्य अर्घ्य व्रत), ४.११९(अभिनव चन्द्रार्घ्य व्रत), ४.१२१(पञ्चाशीति व्रत), ४.१२६(अपरसाम्भरायणि व्रत), ४.१२९(देवपूजा फल व्रत), ४.१३८(महानवमी व्रत), ४.१४६(अपराध शत व्रत), ४.१४७(काञ्चन पुरी व्रत), ४.२०६(रोहिणी चन्द्र शयन व्रत), भागवत ६.१९(पुंसवन व्रत), ८.१६(अदिति द्वारा चीर्णित पयोव्रत), मत्स्य ७(मदन द्वादशी व्रत), ५४(नक्षत्र पुरुष व्रत), ५५(आदित्य शयन व्रत), ५६(कृष्णाष्टमी व्रत), ५७(रोहिणी चन्द्र शयन व्रत), ६०(सौभाग्यशयन व्रत), ६२(अनन्त तृतीया व्रत), ६३(रसकल्याणिनी व्रत), ६४(आर्द्रानन्दकरी तृतीया व्रत), ६५(अक्षय तृतीया व्रत), ६६(सारस्वत व्रत), ६८(सप्तमी स्नपन व्रत), ६९(भीम द्वादशी व्रत), ७०(पण्यस्त्री व्रत), ७१(अशून्य शयन द्वितीया व्रत), ७२(अङ्गारक व्रत), ७४(कल्याण सप्तमी व्रत), ७५(विशोक सप्तमी व्रत), ७६(फल सप्तमी व्रत), ७७(शर्करा सप्तमी व्रत), ७८(कमल सप्तमी व्रत), ७९(मन्दार सप्तमी व्रत), ८०(शुभ सप्तमी व्रत), ८१(विशोक द्वादशी व्रत), ९५(माहेश्वर व्रत), ९६(सर्वफलत्याग व्रत), ९८(संक्रान्ति व्रत), ९९(विभूति द्वादशी व्रत), १०१(६० व्रतों के नाम), १०८(अनशन व्रत), लिङ्ग १.८३(मासानुसार शिव व्रत की विधि), १.८४(मासानुसार उमा - महेश्वर व्रत की विधि), २.१८(पाशुपत व्रत की विधि), वराह २८(नवमी व्रत), २९(दशमी व्रत), ३०(एकादशी व्रत), ३१(द्वादशी व्रत), ३२(त्रयोदशी व्रत), ३९(मत्स्य द्वादशी व्रत), ४०(कूर्म द्वादशी व्रत), ४१(वराह द्वादशी व्रत), ४३(वामन द्वादशी व्रत), ४४(जमदग्नि द्वादशी व्रत), ४५(राम द्वादशी व्रत), ४६(कृष्ण द्वादशी व्रत), ४७(बुद्ध द्वादशी व्रत), ४८(कल्कि द्वादशी व्रत), ४८(नृसिंह द्वादशी व्रत), ४९(पद्मनाभ द्वादशी व्रत), ५०(धरणी व्रत), ५४(वसन्त शुक्ल द्वादशी व्रत), ५५(शुभ व्रत), ५६(धन्य व्रत), ५७(कान्ति व्रत), ५८(सौभाग्य व्रत), ५९(विघ्नहर व्रत), ६०(शान्ति व्रत), ६१(काम व्रत), ६२(आरोग्य व्रत), ६३(पुत्र प्राप्ति व्रत), ६४(शौर्य व्रत), ६५(सार्वभौम व्रत), ९६(रौद्री व्रत), वामन १६(अशून्य शयन व्रत), ६२.१६(तप्त कृच्छ्र व्रत), ८० (नक्षत्र पुरुष व्रत), विष्णुधर्मोत्तर १.६०(श्रवण द्वादशी व्रत), १.१५७(राज्यप्रद द्वादशी व्रत), १.१७३(अनन्त व्रत, प्रतिमास शरीर में न्यास), २.५४(पुत्रीया सप्तमी व्रत), २.५५(पुत्रीया अष्टमी व्रत), २.५८(आरोग्य द्वितीया व्रत), २.५९(आरोग्य प्रतिपदा व्रत), २.६०(आरोग्य व्रत), ३.१२७(त्रिमूर्ति व्रत), ३.१३१(बालेन्दु द्वितीया व्रत), ३.१३२(अशून्य शयन द्वितीया व्रत), ३.१३३+ (त्रिविक्रम व्रत), ३.१३६(विष्णु त्रिमूर्ति व्रत), ३.१३७+ (चतुर्मूर्ति व्रत), ३.१४२(आश्रम व्रत), ३.१४३(अग्नि व्रत), ३.१४४(चतुर्युग व्रत), ३.१४५(सागर व्रत), ३.१४६(ध्वज व्रत), ३.१४७(देवमूर्ति व्रत), ३.१४८(आयुध व्रत), ३.१४९(फलाहार हरिप्रिय व्रत), ३.१५०(अनन्त व्रत), ३.१५१(विष्णु व्रत), ३.१५२(पञ्च मूर्ति व्रत), ३.१५२(पञ्च महाभूत व्रत), ३.१५४(लक्ष्मी व्रत), ३.१५५(आयुधादि व्रत), ३.१५६(षण्मूर्ति व्रत), ३.१५७(पितृ व्रत), ३.१५८(पाताल व्रत), ३.१५९(द्वीप व्रत), ३.१६०(सप्त समुद्र व्रत), ३.१६१(सप्त शैल व्रत), ३.१६२(सप्त लोक व्रत), ३.१६२(सप्त व्याहृति व्रत), ३.१६३(नदी व्रत), ३.१६४(सारस्वत व्रत), ३.१६५(सप्तर्षि व्रत), ३.१६६(मरुत व्रत), ३.१६७(सूर्य व्रत), ३.१७०(रक्त सप्तमी व्रत), ३.१७२(सुव्रत अष्टमी), ३.१७३(महेश्वराष्टमी व्रत), ३.१७४(पर्वताष्टमी व्रत), ३.१७७(अङ्गिरा व्रत), ३.१७८(धर्म व्रत), ३.१७९(रुद्र व्रत), ३.१८०(भृगु व्रत), ३.१८१(साध्य व्रत), ३.१८२(आदित्य व्रत), ३.१८३(काम त्रयोदशी व्रत), ३.१८४(धन व्रत), ३.१८५(वायु व्रत), ३.१८६(विरूपाक्ष व्रत), ३.१८७(यम व्रत), ३.१८८(महेश्वर व्रत), ३.१८९(पितृ व्रत), ३.१९०(वह्नि व्रत), ३.१९१(चन्द्र व्रत), ३.१९२(पूर्णिमा व्रत), ३.१९५(वरुण व्रत), ३.१९६(शक्र व्रत), ३.१९८(महा व्रत), ३.१९९(सुदेश जन्म व्रत), ३.२००(इष्टजाति प्राप्ति व्रत), ३.२०१(सत्कुल प्राप्ति व्रत), ३.२०२(रूप प्राप्ति व्रत), ३.२०३(लावण्य व्रत), ३.२०४(सौभाग्य प्राप्ति व्रत), ३.२०५(आरोग्य व्रत), ३.२०६(बुद्धि प्राप्ति व्रत), ३.२०७(विद्या प्राप्ति व्रत), ३.२०८(शील प्राप्ति व्रत), ३.२०९(धर्म प्राप्ति व्रत), ३.२१०(धन प्राप्ति व्रत), ३.२११(श्री लब्धि व्रत), ३.२१२(भोग प्राप्ति व्रत), ३.२१३(जय प्राप्ति व्रत), ३.२१४(मास नक्षत्र व्रत), ३.२१५(सुगति द्वादशी व्रत), ३.२१७(सन्तान अष्टमी व्रत), ३.२१८(असिधारा व्रत), ३.२१८(दशाह, कार्तिक व्रत), ३.२१९(अनन्त द्वादशी व्रत), ३.२२०(ब्रह्म द्वादशी व्रत), ३.२२५(हंस व्रत), ३.२२८(ब्रह्मचारी व्रत), शिव २.२.१५(ब्रह्मा व नारद द्वारा शिवार्चन व्रत), २.२.१७(दक्ष - कन्या द्वारा नन्दा व्रत), ४.३८(शिवरात्रि व्रत), ५.५१(नवरात्र व्रत), ७.१.३३(पाशुपत व्रत), स्कन्द १.१.५(शिव व्रत), १.१.१७(शनि प्रदोष व्रत), १.१.३३(शिव रात्रि व्रत), २.२.३२(ज्येष्ठ पञ्चक व्रत), २.२.३६(शयोनत्सव व्रत), २.२.३९(शयनोत्सव व्रत), २.२.४०(प्रावरणोत्सव व्रत), २.२.४४(संवत्सर व्रत), २.४.३(कार्तिक व्रत), २.४.९(वत्स द्वादशी व्रत), २.४.९(सुखरात्रि व्रत), २.४.११(यमद्वितीया व्रत), २.४.३०(मास व्रत), २.४.३२(भीष्म पञ्चक व्रत), २.७.४(वैशाख व्रत), २.७.१०(अशून्य व्रत), २.७.१६(अक्षय तृतीया व्रत), २.८.३(चन्द्रहरि, चन्द्रसहस्र व्रत), ३.३.८(सोम प्रदोष व्रत), ३.३.१८(उमा - महेश्वर व्रत), ४.२.८०(तृतीया गौरी विनायक दैवत मनोरथ व्रत), ४.२.८२(अभीष्ट तृतीया व्रत), ५.१.३७(अङ्गारक चतुर्थी व्रत), ५.१.५९(ऋषि पञ्चमी व्रत), ५.३.२६(मधूक तृतीया व्रत), ७.१.२४(सोमवार व्रत), ७.१.१६६(वट सावित्री व्रत), ७.१.२०८(एकादशी व्रत), स्कन्द १.१.५(शिव व्रत की विधि), १.१.१८(श्रवण द्वादशी व्रत), २.२.३३(महावेदी व्रत, कृष्ण आदि के दर्शन), ३.३.८(सोम प्रदोष व्रत, सीमन्तिनी का आख्यान), ३.३.१८(उमा - महेश्वर व्रत, शारदा चरित्र), ४.२.८०(मनोरथ तृतीया व्रत, पुलोमा शची द्वारा इन्द्र पति की प्राप्ति), ४.२.८३(अभीष्ट तृतीया व्रत, मलयगन्धिनी द्वारा अभीष्ट तृतीया व्रत के अनुष्ठान से वीरेश्वर पुत्र की प्राप्ति), ४.२.९६.५१(कृच्छ्र व्रतों का वर्णन), ५.१.५९(ऋषि पञ्चमी व्रत, सप्तर्षियों की भार्याओं द्वारा अनुष्ठान), ५.३.२६(मधूक तृतीया व्रत, नारद द्वारा बाणासुर की पत्नियों को कथन), ६.९२(भीष्म पञ्चक व्रत का माहात्म्य, शूद्र का जन्मान्तर में ब्राह्मण बनना), ६.२६५(भीष्म पञ्चक व्रत), ७.१.२४(सोमवार व्रत , घनवाहन - पुत्री गन्धर्वसेना की कुष्ठ से मुक्ति), ७.१.६६(वट सावित्री व्रत का माहात्म्य, सावित्री - सत्यवान् की कथा), ७.१.३४३(कपिला षष्ठी व्रत, सूर्य की पूजा), हरिवंश २.७५+ (सत्यभामा द्वारा पुण्यक व्रत), २.८०(स्त्रियों के लिए नाना प्रकार के व्रत), महाभारत उद्योग ४३.२०(ब्राह्मण के धर्म, सत्य आदि १२ व्रतों के नाम), शान्ति २२१, योगवासिष्ठ ६.१.११५(त्रय व्रत), लक्ष्मीनारायण १.१४८.२(पुत्र प्राप्ति हेतु पयोव्रत की विधि), १.१४८.५८(अवैधव्य व्रत की विधि), १.१५२.५३(चान्द्रायण व्रत की विधि), १.१५२.५८(कृच्छ्र व्रत की विधि), १.२६१+, १.२६२, १.२८३.३९(पाराक? के व्रतों में अनन्यतम होने का उल्लेख), १.४८१, १.५०८, २.२७, २.२२३.८३(राजा पराङ् व्रत), ३.४५.१३, ३.४९(लक्ष्मीनारायण व्रत), ३.६३.८०, ३.१०२(गौ आराधन व्रत), ३.१२२.६६(पुत्री व्रत), ३.१२३.९(साधु व्रत ), द्र. तिथिव्रत, त्रिव्रत, देवव्रत, नारायणव्रत, पत्नीव्रत, पुत्रव्रत, पराङ्व्रत, प्रियव्रत, वीरव्रत, सत्यव्रत, सुव्रत vrata


      व्रतपा भविष्य ३.३.४.२२

      व्रतर्दि लक्ष्मीनारायण ३.२०२


      व्रती देवीभागवत १.३.३०(१८वें द्वापर में व्यास )


      व्राझील लक्ष्मीनारायण २.२२४


      व्रात द्र. पुण्यव्रात


      व्रात्य गरुड १.९४.२४(सावित्री पतित की व्रात्य संज्ञा), महाभारत उद्योग ३५.४८टीका(३ प्रकार के व्रात्यों का कथन)