विकङ्क देवीभागवत ९.२२(शङ्खचूड - सेनानी, वरुण से युद्ध), वायु ३९.३९(विकङ्क पर्वत पर गरुड - पुत्र सुग्रीव का वास ) vikanka
विकङ्कत नारद १.५६.२०७(विकङ्कत वृक्ष की विशाखा नक्षत्र से उत्पत्ति ) vikankata
विकच ब्रह्माण्ड २.३.७.१४९(विकचा : राक्षसी, नीला - पुत्री ), वायु ६९.१०५, vikacha
विकट अग्नि १०५.१३(वास्तु के अन्तर्गत स्कन्दविकट देवता का उल्लेख), गणेश १.९२.२१(श्वापदों द्वारा विकट नाम से गणेश की पूजा), २.८५.३३(विकट गणेश से गौ की रक्षा की प्रार्थना), २.११४.१६(सिन्धु व गणेश के युद्ध में विकट का धूर्तराज से युद्ध), पद्म ६.२०४.६८(विकट राक्षस का शरभ ब्राह्मण से संवाद, इन्द्रप्रस्थ तीर्थ के जल से जाति ज्ञान), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३७.१८(विकटास्या काली से उत्तर दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड ३.४.२४.९(विकटानन : भण्डासुर - सेनानी, कुक्कुट वाहन, तिरस्करिणी देवी द्वारा वध), भविष्य ३.४.२२(विकटावती - पति विकट वानर द्वारा राम से राज्य की प्राप्ति का वर, विक्टोरिया राज्ञी आदि के रूप में शासन ), स्कन्द ७.४.१७.३७(द्वारका के ईशान दिशा के क्षेत्रपालों में से एक), वा.रामायण ७.५,४०(सुमाली व केतुमती की सन्तानों में से एक), कथासरित् ९.२.२४६(विकटवदन : विन्ध्यवासिनी द्वारा जीवदत्त को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन : पूर्व जन्म में देवी के ४ गणों में से एक, विकटवदन नाम, कन्या से बलात्कार पर मनुष्य योनि प्राप्ति), १०.४.१६८(विकट व संकट नामक हंसों द्वारा कूर्म को दूसरे सरोवर पर ले जाने के उद्योग का आख्यान), vikata
विकटा स्कन्द ४.२.७२.६१(विकटा देवी द्वारा कटि प्रदेश की रक्षा), ४.२.८३.२६(विकटा मातृका की पञ्चमुद्रा पीठ में स्थिति, मलयगन्धिनी द्वारा देवी को पुत्र समर्पण, विकटा द्वारा वीरेश्वर बालक का पालन), ५.२.४६.४५, वा.रामायण ५.२३.१४(विकटा राक्षसी द्वारा सीता को रावण का वरण करने का परामर्श ), ५.२४, vikataa
विकटाक्ष स्कन्द ५.३.१५९.२२, कथासरित् ८.२.२२४(असुराधिपों में से एक), ८.२.३८३(हयग्रीव व विकटाक्ष : स्थिरबुद्धि व महाबुद्धि रूप में अवतरण), ८.५.२६(सूर्यप्रभ - सेनानी विकटाक्ष का श्रुतशर्मा - सेनानी धुरन्धर से युद्ध ) vikataaksha/ vikataksha
विकद्रु हरिवंश २.३७(विकद्रु द्वारा हर्यश्व चरित्र व यादव उत्पत्ति का वर्णन), २.५८.८०(द्वारका में कृष्ण द्वारा नियुक्त प्रधान मन्त्री ) vikadru
विकर्ण नारद १.६६.१३२(वीर गणेश की शक्ति विकर्णा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२४.९(भण्डासुर - सेनानी, भेरुण्ड वाहन, तिरस्करिणी देवी द्वारा वध ) vikarna
विकर्तन ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२५(विकर्तन सूर्य से तारकाओं की रक्षा की प्रार्थना),
विकला लक्ष्मीनारायण ३.५२.३९,
विकलाङ्ग स्कन्द ३.१.२३.५४(चक्र तीर्थ में विकलांगता से मुक्ति)
विकार वायु १.६.५६/६.६०(तृतीय वैकारिक ऐन्द्रिय सर्ग का उल्लेख )
विकीर्ण पद्म ६.१३७(विकीर्ण तीर्थ का माहात्म्य, पिण्ड दान की क्रिया),
विकुक्षि गरुड ३.२८.२४(विकुक्षि की निरुक्ति), ३.२८.५५(सुमति-पति), देवीभागवत ७.८, ब्रह्माण्ड २.३.६३.१४(श्राद्ध निमित्त शश के भक्षण से पिता द्वारा विकुक्षि का निष्कासन, विकुक्षि द्वारा शशाद नाम प्राप्ति, वंश वर्णन), भागवत ९.६(इक्ष्वाकु - पुत्र विकुक्षि द्वारा शश भक्षण के कारण शशाद नाम की प्राप्ति), मत्स्य १२.२६(इक्ष्वाकु - पुत्र, वंश वर्णन), वायु ८८.९(इक्ष्वाकु - पुत्र विकुक्षि द्वारा शश भक्षण की कथा, वंश वर्णन ) vikukshi
विकुण्ठा ब्रह्माण्ड १.२.३६.५८(वसिष्ठ के विकुण्ठा नामक पुत्रगण के वृष, भेत्ता आदि नाम), २.३.४.३२(जय देवों का पंचम मन्वन्तर में विकुण्ठा से जन्म लेकर वैकुण्ठ गण बनने का कथन), भागवत ८.५.४(शुभ्र - पत्नी, वैकुण्ठ अवतार की माता), वायु २.१.४५(चरिष्णु वसिष्ठ के पुत्रों में एक), २.१.५०(विकुण्ठ के पुत्रों वृषभेत्ता आदि के नाम), लक्ष्मीनारायण १.१२९.४७(इन्द्रियों की वृत्तियों के कुण्ठित हो जाने पर वैकुण्ठ बनने का उल्लेख), १.३१७(राधा की मानसी पुत्री विकुण्ठा की निरुक्ति, विकुण्ठा का दशधा रूपों में वैकुण्ठ आदि लोकों में वास ), १.३८५.५३(विकुण्ठा का कार्य), २.१६६.४(गोलोक में राधा व कृष्ण से उत्पन्न विकुण्ठा पुत्री व सप्त सागरों का उल्लेख), द्र. मन्वन्तर vikunthaa
विकुण्डल पद्म ३.३०(हेमकुण्डल - पुत्र, पूर्व जन्म का वृत्तान्त, श्रीकुण्डल भ्राता की नरक से मुक्ति हेतु पुण्य दान ) vikundala
विकूट मत्स्य १३
विकृत नारद १.६६.१०९(भौतिक की शक्ति विकृतास्या का उल्लेख), कथासरित् ८..४.६९(सूर्यप्रभ - सेनानी विकृतदंष्ट} का श्रुतशर्मा - सेनानी हर्ष द्वारा वध ) vikrita
विकेशी ब्रह्माण्ड १.२.१०.७८(शर्व - पत्नी, अङ्गारक - माता), लिङ्ग २.१३.४(शिव - भार्या, अङ्गारक - माता), वायु २७.५०,
विक्रम पद्म ६.१८८(गीता के १४वें अध्याय के माहात्म्य के संदर्भ में विक्रम वेताल राजा द्वारा मृगयार्थ शश के पीछे शुनी दौडाने का वृत्तान्त), ७.५, भविष्य ३.२.२३, वामन ५७, योगवासिष्ठ ३.७७.१७, लक्ष्मीनारायण १.३९३, कथासरित् ४.३.३१(वाराणसी के महीपति विक्रमचूड के भृत्य वल्लभ का वृत्तान्त ), द्र. चण्डविक्रम, त्रिविक्रम, नागविक्रम vikrama
विक्रमकेसरी कथासरित् १२.२.१८(मृगाङ्कदत्त के १० सचिवों में से एक), १२.८.४(विक्रमकेसरी द्वारा वेताल मन्त्र प्राप्ति का वर्णन), १२.१०.५(राजा विक्रमकेसरी व उसकी भार्या चन्द्रप्रभा के आधीन रहने वाले शुक व सारिका के पुरुष - स्त्री दोषों के सम्बन्ध में वार्तालाप का वर्णन), १२.२५.१०८?, १२.३६.५९(मन्त्री विक्रमकेसरी द्वारा शशाङ्कवती को मृगाङ्कदत्त से परिचित कराना ) vikramakesaree/ vikramakesari
विक्रमतुङ्ग कथासरित् ७.१.५३(राजा विक्रमतुङ्ग द्वारा ब्राह्मण के बिल्वहोम तथा द्विज के कनक निर्माण को सत्य बनाने का वृत्तान्त), ९.३.८६(राजा विक्रमतुङ्ग के प्रहरी वीरवर द्वारा राजा के प्राणों की रक्षा हेतु अपने परिवार का बलिदान करने का वृत्तान्त ) vikramatunga
विक्रमपुर कथासरित् ९.३.८६(विक्रमपुर के राजा विक्रमतुङ्ग व उसके प्रहरी वीरवर का वृत्तान्त),
विक्रमशक्ति कथासरित् २.२.१७(वल्लभशक्ति - पुत्र विक्रमशक्ति को सखा रूप में श्रीदत्त की प्राप्ति), २.२.१९८(श्रीदत्त द्वारा पितृघाती विक्रमशक्ति का वध), ८.३.१५५(श्रुतशर्मा विद्याधर के सहायक शूरों में से एक), ८.३.१६७(विक्रमशक्ति का दूत को संक्षिप्त संदेश), ८.५.७२(प्रभास से युद्ध करने वाले ४ विद्याधरों में से एक), ८.६.६९(गुणशर्मा द्वारा युक्तिपूर्वक राजा विक्रमशक्ति का वध कराने का वृत्तान्त), १८.१.६९(विक्रमादित्य द्वारा प्रेषित दूत अनङ्गदेव द्वारा राजा विक्रमशक्ति के बल, विक्रम आदि का वर्णन ) vikramashakti
विक्रमशील मार्कण्डेय ७५,
विक्रमसिंह कथासरित् ६.१.१३८(मन्त्री के समझाने पर राजा विक्रमसिंह का मृगया के लिए प्रस्थान, दो युवकों को शरण देने का वृत्तान्त), १०.२.१(शत्रुओं से पराजित होने पर राजा विक्रमसिंह द्वारा कुमुदिका वेश्या के धन की सहायता से शत्रुओं पर पुन: विजय प्राप्त करने का वृत्तान्त ) vikramasimha/ vikramasinha
विक्रमसेन कथासरित् ६.४.७२(राजा विक्रमसेन की पुत्री तेजस्वती द्वारा पति वरण का वृत्तान्त), १२.८.२३(विक्रमसेन के पुत्र त्रिविक्रमसेन का भिक्षु से मिलन व वेताल को स्कन्ध पर आरोपित करके लाने का वृत्तान्त ) vikramasena
विक्रमादित्य भविष्य ३.१.७.१६(विक्रमादित्य के वेताल से संवाद का आरम्भ), ३.२.२३(विक्रमादित्य का अश्वमेध यज्ञ द्वारा चन्द्रलोक गमन, चन्द्र से प्राप्त सुधा का इन्द्र को दान), कथासरित् ७.४.३(राजा नरसिंह से हारने पर विक्रमादित्य का नरसिंह के राज्य में वेश्या मदनमाला के गृह में वास, कुबेर से वर प्राप्ति का वृत्तान्त, वेश्या को पांच अक्षय स्वर्ण पुरुष देकर अदृश्य होना, पुन: मदनमाला से मिलन, शत्रु राजा नरसिंह से मैत्री करना), १८.१.३९(शिवगण माल्यवान् का महेन्द्रादित्य के पुत्र विक्रमादित्य के रूप में जन्म, दूत अनङ्गदेव का आगमन व दक्षिण दिशा के राजाओं आदि के वैभव का वर्णन ), १८.२.२१२/२०६(विक्रमादित्य द्वारा चित्र का गला काटने से वास्तविक गला कटने का कथन), १८.२.२३४(देव द्वारा चन्द्रावदाताङ्गी व प्रियङ्गुश्यामला कन्या - द्वय के पति रूप में विक्रमादित्य का निर्धारण करने का कथन ) vikramaaditya/ vikramaditya
विक्रय भविष्य १.१८४.१(वेद विक्रय की परिभाषा ), स्कन्द ५.३.१५९.२२ vikraya
विक्रान्त मार्कण्डेय २५(मदालसा द्वारा विक्रान्त पुत्र का पालन), ७६(विक्रान्त के पुत्र का मार्जारी द्वारा अपहरण), वायु ६९.१५(यज्ञों व गन्धर्व गणों का जनक), स्कन्द ५.२.६६.४, लक्ष्मीनारायण १.३९३(मदालसा द्वारा स्वपुत्र विक्रान्त को निवृत्ति मार्ग का उपदेश, विक्रान्त शब्द की निरुक्तियां ) vikraanta/ vikranta
विक्रुष्ट नारद १.५०.४४, कथासरित् ८.५.५०(विक्रोशन : श्रुतशर्मा विद्याधर के ८ महारथियों में से एक, प्रभास से युद्ध )
विखण्डल लक्ष्मीनारायण ३.२३४
विगोष्ठिका लक्ष्मीनारायण २.२१५
विघट गणेश २.१३.२३(महोत्कट गणेश द्वारा काशी में विघट राक्षस का वध),
विघस वराह ९३(महिषासुर - मन्त्री विघस द्वारा वैष्णवी देवी के संदर्भ में सम्मति), लक्ष्मीनारायण २.१८०.६३
विघात गणेश २.१०.१०(महोत्कट गणेश द्वारा अक्षतों में छिपे विघात आदि ५ राक्षसों का वध),
विघ्न गणेश १.९२.२२(पर्वत, द्रुम आदि द्वारा विघ्ननाशन नाम से गणेश की पूजा), २.८५.२३(विघ्ननाशन गणेश से स्तनों की रक्षा की प्रार्थना), २.८५.२४(विघ्नहर गणेश से पृष्ठ की रक्षा की प्रार्थना), २.८५.२९(विघ्नहर्त्ता गणेश से प्रतीची दिशा में रक्षा की प्रार्थना), नारद १.६६.१२४(विघ्नेश की शक्ति ह्री का उल्लेख), १.६६.१२५(विघ्नहर्त्ता की शक्ति सरस्वती का उल्लेख), १.६६.१२५(विघ्नकृत् की शक्ति स्वस्ति का उल्लेख), १.६६.१२९(महानन्द की शक्ति विघ्नेशी का उल्लेख), ब्रह्म २.४४.१(अविघ्न तीर्थ : गणेश पूजा से देवों के सत्र की निर्विघ्न समाप्ति), ब्रह्माण्ड २.३.५९.१०(कलि - पुत्र, शिर हीन, अयोमुखी - पति), ३.४.२७.८२(विघ्ननायक), भविष्य १.५७.२०(विघ्नपति हेतु गुग्गुल बलि का उल्लेख), वराह ५९(अविघ्न व्रत ), वायु ८३.११ vighna
विघ्नराज नारद १.६६.१२४(विघ्नराज की शक्ति श्री का उल्लेख), वराह १५४, वामन ७०, स्कन्द ४.२.५७.८५(विघ्नराज गणपति का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.३४१,
विचक्र हरिवंश ३.१२१+ (हंस व डिम्भक - सेनानी, कृष्ण से युद्ध व मृत्यु), ३.१२३,
विचार लिङ्ग १.३९.६८(विचार से वैराग्य, वैराग्य से दोष दर्शन, दोष दर्शन से ज्ञान की उत्पत्ति का कथन), योगवासिष्ठ २.१४(विचार प्रशंसा), ३.४१(विचार भ्रान्ति), ५.७३(आत्मविचार ), द्र. सुविचार vichaara/ vichara
विचित्र स्कन्द ७.१.१४३(यम - लेखक विचित्र द्वारा स्थापित विचित्रेश्वर का माहात्म्य), ७.१.२४४(यम - लेखक विचित्र द्वारा स्थापित विचित्रेश्वर का माहात्म्य ), द्र. मन्वन्तर vichitra
विचित्रकथ कथासरित् १२.२.२०(मृगाङ्कदत्त के १० सचिवों में से एक), १२.६.७(स्वामी के वियोग में विचित्रकथ का प्राण त्यागने को उद्धत होना, यक्ष द्वारा रक्षा )
विचित्रवीर्य देवीभागवत १.२०?, ८.२०?, स्कन्द १.१.३३.९१(चित्राङ्गद - पुत्र, शिवभक्ति से वीरभद्र बनना),
विजय गर्ग ३.१०(विजय ब्राह्मण द्वारा गोवर्धन शिला से राक्षस का ताडन करने पर राक्षस के उद्धार की कथा), ४.२०(हू हू गन्धर्व - पुत्र, कुबेर के वन में पुष्प तोडने से प्रलम्ब असुर बनना), नारद १.११९.२०(आश्विन् शुक्ल दशमी को विजय दशमी व्रत की विधि), पद्म ६.१६५, ७.९, भविष्य ४.४३(विजया सप्तमी व्रत), ४.७६(विजय श्रवण द्वादशी को वामन अवतार, बलि की पराजय, देवों की विजय), मत्स्य ४६.१७, ११४.४५(प्रविजय : प्राच्य जनपदों में से एक), वायु ४५.१२३(प्रविजय : प्राच्य जनपदों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१, स्कन्द १.२.६१(विजय ब्राह्मण द्वारा सुह्रदय राक्षस की सहायता से महाविद्या की साधना), २.४.२८, ४.२.६६.३०(विजय भैरवी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.३१.१०, ५.२.६६.४, महाभारत कर्ण ६४.४६, लक्ष्मीनारायण २.१४०.६२(विजय प्रासाद के लक्षण ), ३.१२.९२, ३.३३, कथासरित् १०.६.३२(विजय नामक शश द्वारा चन्द्रमा का दूत बनकर गज को स्वनिवास से दूर हटाने की कथा), १०.१०.५(कश्मीर में विजय नामक शाम्भव क्षेत्र के निवासी प्रव्राजक द्वारा धार्मिक को शिक्षा), द्र. जय vijaya
विजयदत्त स्कन्द ३.१.८(गोविन्दस्वामी - पुत्र, सुदर्शन विद्याधर का रूप, कपालस्फोट वेतालत्व प्राप्ति), कथासरित् ५.२.७५(गोविन्दस्वामी के कनिष्ठ पुत्र विजयदत्त द्वारा वेतालत्व प्राप्ति का वृत्तान्त), ५.२.२५४(विजयदत्त के कपालस्फोट नाम का कारण, भ्राता अशोकदत्त से मिलन ) vijayadatta
विजयदशमी नारद १.११९.२०(आश्विन् शुक्ल दशमी को राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न की पूजा विधि), स्कन्द ५.१.६३.५३ (आश्विन् शुक्ल दशमी में अष्टसिद्धिशमी देश में गणेश्वर पूजा का माहात्म्य), vijayadashamee/ vijayadashami
Comments on Vijayadashami
विजयमाली कथासरित् १२.५.२८४(विजयमाली वणिक् के पुत्र मलयमाली द्वारा ध्यानपारमिता से चित्रपट में प्रेमिका की अनुभूति करना, ज्ञान प्राप्ति से मुक्ति ) vijayamaalee/ vijayamali
विजयवती कथासरित् १२.५.३४(गन्धमाली - कन्या विजयवती द्वारा पिता को दासत्व से मुक्त कराने का उद्योग )
विजयवर्मा कथासरित् ९.२.३३९(रूपवती अनङ्गप्रभा द्वारा पहले जार को त्याग कर रूपवान् विजयवर्मा के साथ जाना, फिर विजयवर्मा को त्याग राजा के पास जाना, विजयवर्मा द्वारा युद्ध करते हुए प्राण त्यागना), १८.३.४(विजयवर्मा के लाट देश का राजा होने का उल्लेख )vijayavarmaa
विजयवेग कथासरित् ५.२.२९२(गोविन्दस्वामी के २ पुत्रों में से एक विजयदत्त का श्मशान में वसा सेवन से निशाचर बनना, मुक्त होने पर विजयवेग विद्याधर बनना )
विजयसेन कथासरित् १३.१.२५(विजयसेन की भगिनी मदिरावती द्वारा अपने प्रिय को प्राप्त करने का वृत्तान्त )
विजया अग्नि १८४, गरुड १.१३२(वीर व रम्भा - पुत्र, बुध अष्टमी व्रत से यम पति की प्राप्ति), नारद १.६६.९२(शूली विष्णु की शक्ति विजया का उल्लेख), १.८८.१८४(राधा की १३वीं कला नित्या विजया का स्वरूप), १.१२१.१०७(विजया द्वादशी तिथि का अर्थ व महत्त्व), ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९८(ललिता - सहचरी विजया द्वारा जृम्भण का वध), भविष्य ३.४.१६, वामन ४, ६९, विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१(भुजाओं में विजया की स्थिति का उल्लेख), शिव २.२.२८(, २.३.२६, स्कन्द ४.१.२९.१२७(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.७२.५७(विजया देवी से अधरोष्ठ की रक्षा की प्रार्थना), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१३(अच्युत की शक्ति विजया का उल्लेख ), १.३८५.३८(विजया का कार्य), ३.३३.३७, vijayaa
विजरा नारद १.६६.१०६(अनन्त की शक्ति विजरा का उल्लेख),
विजिताश्व भागवत ४.१९.२२(पृथु व अर्चि - पुत्र, अश्वमेध के अश्व की प्राप्ति का उद्योग), ४.२२.१, ४.२४(अन्तर्धान उपनाम, शिखण्डिनी - पति, नभस्वती - पति, हविर्धान आदि पुत्र ) vijitaashva/ vijitashva
विजितासु कथासरित् १२.२.१०१(मुनि विजिताश्व/विजितासु द्वारा दिव्य कन्या विनयवती का पालन करने तथा उसे पुष्कराक्ष को देने का वृत्तान्त )
विजृम्भक अग्नि २१४.१३(विजृम्भका में देवदत्त वायु के हेतु होने का उल्लेख), २१४.१६(विजृम्भका के संवत्सर में अधिमास का रूप होने का उल्लेख ), स्कन्द ७.४.१७.२३ vijrimbhaka
विज्ञप्ति वायु २१.५७, स्कन्द ३.१.९(विद्याधर - पति विज्ञप्तिकौतकु के दर्शन से अशोकदत्त की मुक्ति),
विज्ञान गर्ग ९.१+ (गर्ग संहिता के विज्ञान खण्ड का आरम्भ), स्कन्द ४.२.५८.११२(विज्ञानकौमुदी नामक पुराङ्गना द्वारा बौद्ध धर्म के अनुकूल देह सौख्य का प्रतिपादन), योगवासिष्ठ ३.२२(विज्ञान का अभ्यास), ४.२१.६४(विज्ञानवाद नामक सर्ग में विमनन का निर्देश), ५.२९ (बलि को विज्ञान की प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण २.२५१.५६, ३.९१.११९(विज्ञान से विप्र बनने का उल्लेख ), चाणक्यनीति १२.१५(आचारे शुचिता गुणे रसिकता शास्त्रेषु विज्ञानता), vijnaana/ vigyan / vijnana
विज्वल पद्म २.९३(कुञ्जल - पुत्र, आश्चर्य दर्शन के संदर्भ में सिद्ध द्वारा विज्वल को शव भक्षण के वृत्तान्त का कथन ), २.९७, लक्ष्मीनारायण ३.५१.३६ vijwala
विज्ञविहङ्गम लक्ष्मीनारायण २.११०.६८
विज्ञेय वायु ६८.३९/२.७.३९(प्रवाही से उत्पन्न १० देवगन्धर्वों के नाम ) vijneya
विट् लक्ष्मीनारायण १.३७०.५१(नरक में विट् कुण्ड प्रापक कर्म का उल्लेख ) vit
विटङ्क स्कन्द ४.२.६१.१९७(विटङ्क नृसिंह का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.४९१, कथासरित् ५.२.३५, १२.१५.१६ vitanka
विडाल देवीभागवत ५.४
वितथ अग्नि ९३.१२(वास्तुमण्डल में देवता), ब्रह्म १.११.६३, वायु ९९.१५८(भरत - पुत्र, भरद्वाज नाम, वंश वर्णन ), विष्णु ४.१९.१९, द्र. भरद्वाज, वास्तु (मण्डल ) vitatha
वितल वामन ९०.३६(वितल में विष्णु का पङ्कजानन नाम),
वितस्ता पद्म ३.२५.१(वितस्ता तीर्थ का माहात्म्य), वामन ५७.७७(वितस्ता द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), ८१.३०(वितस्ता का उद्भव), ९०.७(वितस्ता में विष्णु का कुमारिल नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर १.१६४.११, १.१६४.२४, १.२१५(वितस्ता के मत्स्य वाहन का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०६वितस्त्या, कथासरित् ६.१.१०(तक्षक्षिला पुरी के वणिक् वितस्तादत्त की श्रमण भक्ति की पुत्र द्वारा निन्दा, राजा द्वारा पुत्र को अनुशासित करना), ७.३.५४(निश्चयदत्त द्वारा ४ महाव्रतियों सहित वितस्ता पार करने का उल्लेख), ७.५.३७(गङ्गा रूपी वितस्ता के परित: पवित्र तीर्थों के नाम), १२.६.८३(वितस्ता के पार्श्व में भूनन्दन नृप द्वारा दिव्य दैत्य कन्या का दर्शन तथा उसकी प्राप्ति हेतु तप), १२.६.९७(विष्णुपद से विषुवती वितस्ता के प्राकट्य का उल्लेख ) vitastaa
वितान भागवत ८.१३.३५(विताना : सत्रायण - पत्नी, बृहद्भानु अवतार की माता), विष्णुधर्मोत्तर २.९५.१(स्मार्त कर्म वैवाहिक अग्नि पर तथा पिता मरण आदि काल में श्रौत कर्म वैतानिक अग्नियों में करने का निर्देश )
वितृष्णा मत्स्य १२२, द्र. भूगोल
वित्त वराह ४८.२१(वित्त हेतु जमदग्नि - पुत्र परशुराम की आराधना का निर्देश), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.२( अन्तर्वेद्यां च यजनं बहुवित्तस्य कीर्तितम्।। स्वल्पवित्तस्य धर्मज्ञ बहिर्वेदि प्रकीर्तितम् ।। ), स्कन्द ६.३६.१४(वित्त प्राप्ति हेतु श्रीसूक्त जप का निर्देश ) vitta
विदग्धचूडामणि कथासरित् १२.१०.६
विदर्भ गरुड १.५५.१२(पूर्व दक्षिण में देश), गर्ग ७.१२.८(विदर्भ देश के भीष्मक राजा व कुण्डिन पुर राजधानी का उल्लेख), पद्म २.४८, ६.२४७, ब्रह्माण्ड २.३.३९.७(परशुराम द्वारा मुष्टि से विदर्भ का वध), भागवत ५.४(ऋषभ व जयन्ती - पुत्र), ९.२३(ज्यामघ - पुत्र, भोज्या - पति, वंश वर्णन ), मत्स्य ४४, स्कन्द ३.३.६, ३.३.९, हरिवंश १.३६.१९(ज्यामघ - पुत्र, उपदानवी - पति, क्रथ आदि पुत्र), वा.रामायण ७.७८, vidarbha
विदल - उत्पल शिव २.५.५९(गौरी द्वारा विदल - उत्पल का वध), स्कन्द ४.२.६५.२९(विदलोत्पल संज्ञक राक्षसों का कन्दुक क्रीडा में रत पार्वती के पास आगमन, पार्वती द्वारा कन्दुक से विदलोत्पल का नाश ) vidala - utpala
विदल्ल देवीभागवत ३.१५(ध्रुवसन्धि राजा का मन्त्री, राजा की मृत्यु के पश्चात् रानी मनोरमा व राजकुमार सुदर्शन की सहायता ) vidalla
विदारी अग्नि ९३.२७(वास्तु मण्डल में देवता), १०५, नारद १.६६.११८ (श्वेतोरस्क की शक्ति विदारी का उल्लेख ), द्र. वास्तुमण्डल vidaaree/ vidari
विदारुण पद्म ६.१३४(दुष्ट राजा विदारुण द्वारा वेत्रवती में स्नान से मुक्ति )
विदिशा विष्णु २.४.१७, स्कन्द ६.१८.१२, वा.रामायण ७.१०८.१०(विदिशा पर शत्रुघाती का आधिपत्य ), कथासरित् ६.७.१०६, १२.४.७२ vidishaa
विदुर अग्नि १६५, गर्ग ७.२०.३४(विदुर का प्रद्युम्न - सेनानी गद से युद्ध), १०.५०.३९(विदुर द्वारा कृष्ण की स्तुति), देवीभागवत २.७(देह त्याग पर विदुर के तेज का युधिष्ठिर में लीन होना), पद्म २.९१.१८( विदुर क्षत्रिय द्वारा ब्रह्महत्या की प्राप्ति, तीर्थों में स्नान से मुक्ति), भागवत १.१३(विदुर द्वारा मैत्रेय से आत्म ज्ञान की प्राप्ति, धृतराष्ट व गान्धारी को वैराग्य का उपदेश), ३.१(विदुर की उद्धव से भेंट), ३.५(विदुर का मैत्रेय से प्रलय व सृष्टि विषयक प्रश्न), स्कन्द ३.३.२२(जार कर्म में आसक्त व बिन्दुला - पति विदुर द्वारा पिशाच योनि की प्राप्ति, तुम्बुरु से शिव कथा श्रवण द्वारा मुक्ति), ६.५९(विदुरेश्वर का माहात्म्य, विदुर द्वारा पुत्र के अभाव में अश्वत्थ वृक्ष की पुत्र रूप में स्थापना, देव प्रासाद का निर्माण), ६.१३८(पाराशर - पुत्र, माण्डव्य के शाप से धर्मराज का अवतार), ७.१.२६९(विदुराश्रम का माहात्म्य, विदुर लिङ्ग की स्थापना ) vidura
विदूरथ भागवत १०.७८(दन्तवक्त्र - भ्राता, कृष्ण द्वारा चक्र से वध), मत्स्य ५०, मार्कण्डेय ११०, ११६, स्कन्द ५.२.५३, ५.२.६३(कुजम्भ दैत्य द्वारा कन्या के हरण पर विदूरथ द्वारा धनु:सहस्र लिङ्ग की पूजा से धनुष प्राप्ति, दैत्य का वध), ६.१०७(विदूरथ का तीन प्रेतों से संवाद, श्राद्ध से प्रेतों की मुक्ति), ६.७८(रुद्रशीर्ष स्थान का भञ्जन करने के दोष से पत्नी द्वारा विदूरथ का वध), हरिवंश १.३८.१(भजमान - पुत्र), योगवासिष्ठ ३.४१.२२(नभोरथ व सुमिता - पुत्र राजा पद्म का दूसरा नाम, वर्णन), ३.४६, ३.४८(विदूरथ का सिन्धुराज से युद्ध), ३.५०.५०(सिन्धुराज से युद्ध में विदूरथ की मृत्यु ) vidooratha/ viduuratha/ viduratha
विदेह कूर्म १.२२.५१(जयध्वज द्वारा हरि कृपा से विदेह दानव का वध), गरुड २.६.२८(विदेह नगर में धर्मवत्स ब्राह्मण का वृत्तान्त), देवीभागवत ६.१४.४३(निमि व वसिष्ठ द्वारा परस्पर शापदान की कथा), वामन ९०.३०(विदेह में विष्णु का कुशप्रिय नाम), स्कन्द १.१.२२.१०४(देह के अविद्या तथा विदेह के अविद्या से परे होने का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३१९ (विदेह जनक द्वारा पञ्चशिख से जरा-मृत्यु को लांघने के उपाय की पृच्छा), ३२६.१०(शुकदेव का विदेहराज जनक से प्रवृत्ति – निवृत्ति धर्म के विषय में प्रश्न), अनुशासन ४८.१०(वैदेहक सन्तान की परिभाषा ), लक्ष्मीनारायण २.४६.९७(विदेह के ६ लक्षण), २.८२ videha
विदैवत पद्म ५.९८(धनशर्मा द्वारा विदैवत प्रेत का उद्धार), स्कन्द ६.१८(देव अर्चना बिना अन्न भक्षण के दोष से विदैवत प्रेत बनना),
विद्धा लक्ष्मीनारायण १.२९२
विद्या अग्नि १३३.२७(शब्द द्वारा शत्रु को दूर से भङ्ग करने की विद्या), १३४(त्रैलोक्य विजय विद्या), १३५(सङ्ग्राम विजय विद्या), ३१२(त्वरिता विद्या के अन्तर्गत मन्त्रों में प्रस्ताव के भेदन से सिद्धि का कथन), गणेश १.१.२९(विद्याधीश : राजा सोमकान्त के ५ मन्त्रियों में से एक), २.१.४९(नारद द्वारा नरान्तक व देवान्तक को पञ्चाक्षरी विद्या का उपदेश), गरुड १.२.५५(गारुडी विद्या का माहात्म्य), १.२१.६(तत्पुरुष शिव की निवृत्ति आदि ५ कलाओं में से एक), नारद १.५०.२२१(विद्या ग्रहण न करने वाले चंडादि ५ का उल्लेख, विद्या प्राप्ति विधि), १.६६.११०(महासेन की शक्ति विद्या का उल्लेख), १.९१.६८(तत्पुरुष विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् मन्त्र में शान्ति, विद्या आदि कलाओं का समावेश), पद्म २३४, ब्रह्म १.१२९.७(कर्म अथवा विद्या के मार्ग के अनुसरण का प्रश्न तथा उत्तर), ११३६, ब्रह्माण्ड २.३.३०.५३(मृत सञ्जीवनी विद्या द्वारा जमदग्नि का जीवित होना), ३.४.४१(श्रीविद्या), ३.४.४३.१५(देवी को सहस्राक्षर विद्या द्वारा पुष्पाञ्जलि देने का निर्देश), भविष्य ३.२.१७(आतिथ्य हेतु यक्षिणीकर्षिणी विद्या प्राप्ति में असफलता की कथा), ३.२.२१(विष्णुस्वामी द्विज के ४पुत्रों द्वारा सञ्जीवनी विद्या से व्याघ्र को जीवित करने की कथा), ३.३.२४.६३(आह्लाद द्वारा गोरख से एक वर्ष के लिए सञ्जीवनी विद्या प्राप्ति की कथा), ३.४.८.८८(अव्यक्त में बुद्धि के विद्या और व्यक्त में अविद्या होने का कथन), ४.१७४(विद्या दान विधि व माहात्म्य), भागवत ३.१२.४४(आन्वीक्षिकी आदि विद्याओं की ब्रह्मा के चार मुखों से सृष्टि), ६.४.४६(विद्या के भगवान् का तनु होने का उल्लेख), ११.११(मुक्तिदायक विद्या व बन्धनकारक अविद्या रूपी सुपर्णद्वय का वर्णन), ११.१७.१२(हृदय के प्राण से त्रयीविद्या के प्रादुर्भाव का उल्लेख), ११.१९.४०(विद्यात्मनि भिदाबाधो), मार्कण्डेय ६४(पद्मिनी विद्या), ६८(पद्मिनी विद्या के आश्रित निधियां), लिङ्ग १.८६.५१(परा व अपरा विद्या का निरूपण), विष्णु १.२२.७३(विद्या के असि तथा अविद्या के कोश होने का उल्लेख), ३.६, विष्णुधर्मोत्तर १.४१.२५(गान्धारी के विद्याओं में श्रेष्ठ होने का उल्लेख), २.४२(गोमती विद्या), २.१६५(अङ्ग विद्या), ३.११९.३(विद्यारम्भ में अश्वशिरा की पूजा), ३.२०७(विद्या प्राप्ति व्रत), ३.३०३(विद्या दान का महत्त्व), ३.३४६(भूविवर में स्थित उपरिचर वसु राजा द्वारा वैष्णवी विद्या द्वारा असुरों से स्वयं की रक्षा, विद्या का वर्णन), शिव ५.५०(दश महाविद्याएं), ७.१.१.२५(१८ विद्याओं का कथन), स्कन्द १.२.४.७८(उत्तम प्रकार के दानों में से एक), १.२.४२.१५३(अविद्यादुर्ग व विद्या वन का वर्णन), १.२.६२.४०(वट यक्षिणी विद्या, अपराजिता विद्या), १.२.६३, ४.२.५३.४३(महामोहन विद्या का दिवोदास - पालित काशी में विघ्न हेतु गमन), ५.२.२५.४०(विद्या की मानापमान से रक्षा का निर्देश), ५.३.१८२.२४(देवी के शाप से विद्या के त्रिपौरुषा हो जाने का उल्लेख), ६.३५(विशोषणी विद्या, अगस्त्य द्वारा विशोषणी विद्या से समुद्र का शोषण), हरिवंश २.९४.३६(प्रभावती द्वारा दुर्वासा से मनोवाञ्छित पति को प्राप्त करने वाली विद्या प्राप्त करने का कथन), २.११९.१९(चित्रलेखा को नारद से प्राप्त तामसी विद्या), योगवासिष्ठ ३.७८.४१+ (राजविद्या के सम्बन्ध में कर्कटी द्वारा राजा विक्रम व मन्त्री से ७२ प्रश्न), ५.३४.८३(विभिन्न विद्याओं /शक्तियों के नाम), ६.१.९(विद्या का निराकरण), ६.१.६५, महाभारत शान्ति ३०७(विद्या-अविद्या प्रतिपादक संवाद में पंचविंशक विद्या-अविद्या के आपेक्षिक भाव का कथन), लक्ष्मीनारायण १.२२(पराविद्याओं की कुमारी रूप में हरि से उत्पत्ति), १.५४३.७४(, २.३६.७(कृष्ण द्वारा गुरु से प्राप्त विद्याओं के नाम), २.१५४.१३पराविद्या, २.१७५.६४(विद्याभ्यास में बुध के बलशाली होने का उल्लेख), ३.३५.५१(सुविद्या), ३.१७३ सद्विद्यायन , कथासरित् ८.३.११८(याज्ञवल्क्य द्वारा मोहिनी व परिवर्तिनी विद्याद्वय देने का कथन), ९.१.४५(प्रज्ञप्ति विद्या द्वारा अलंकारवती को पति प्राप्ति हेतु आवश्यक निर्देश), १२.१.६५(कालसंकर्षिणी विद्या से खड्ग प्राप्त होने का उल्लेख), १२.७.१३३(गङ्गा द्वारा भीमभट को प्रदत्त प्रतिलोम - अनुलोम विद्या की प्रकृति का कथन), १४.३.१३२(नरवाहनदत्त द्वारा गौरीविद्या आदि पर प्रभुत्व प्राप्त करने का कथन), १५.१.२२(नरवाहनदत्त द्वारा विध्वंसिनी संज्ञक विद्यारत्न सिद्ध करने का उल्लेख), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद २.२.१७(आद्या विद्या गदा होने का उल्लेख ), द्र. श्रीविद्या vidyaa
विद्याधर अग्नि ४४.४८(प्रतिमा की प्रभा में विद्याधर की स्थिति), ५१.१७(विद्याधर की मूर्ति का रूप), गर्ग १०.७.२८, देवीभागवत ६.२०, नारद २.२०, पद्म १.१२२(विद्याधर ब्राह्मण के वसुशर्मा, नामशर्मा व धर्मशर्मा नामक तीन पुत्र), २.४६.१६, २.१२२, ६.१२५(विद्याधर का भृगु से संवाद, माघ स्नान से व्याघ्रमुखत्व से मुक्ति), ७.६.१२८(त्रिविक्रमदेव - पुत्र, सुलोचना का भावी पति), भागवत ४.७.४४, ६.१७, ७.८, ११.१६.२९, मार्कण्डेय ६१, वराह ७७, ८१, १४५, वामन ११, २२, वायु ३८, विष्णुधर्मोत्तर १.५६.२३(विद्याधरों में चित्राङ्गद की श्रेष्ठता का उल्लेख), ३.४२.९(विद्याधरों के रूप का कथन : रुद्रप्रमाण आदि), स्कन्द १.३.२.२२(विद्याधर का दुर्वासा के शाप से अश्व व हस्ती बनना, शाप से मुक्ति), ३.१.८, ३.१.९विज्ञप्तिकौतुक, ३.१.४९.८०(विद्याधरों द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ४.१.८.३२(विद्याधर लोक की प्राप्ति के लिए अपेक्षित पुण्य कर्म, विद्याधरों द्वारा विद्यार्थियों को सौख्य प्रदान का कथन), ४.१.३३(विद्याधर द्वारा सुशीला कन्या का अपहरण, विद्युन्माली से युद्ध में मरण, जन्मान्तर में माल्यकेतु रूप में जन्म), ४.२.८२, ५.१.११(विद्याधर द्वारा मेनका के नृत्य में विघ्न से शक्र द्वारा विद्याधर को शाप), योगवासिष्ठ ६.२.५, ६.२.६४+, लक्ष्मीनारायण १.४३५.१६(गालव मुनि के शाप से सुदर्शन विद्याधर के वेताल बनने तथा मुक्ति होने का वृत्तान्त), १.४७२.६१(पारावत का मृत्यु - पश्चात् परिमलालय विद्याधर बनने व पूर्व जन्म का वृत्तान्त), २.१५७.२३(देवायतन मूर्ति के न्यास के संदर्भ में विद्याधरों का पादों में तथा ग्रहों का पादतलों में न्यास ), ४.७६, कथासरित् २.१.६९, २.५.३५, ३.४.२१५, ४.२.१४, ५.१.११, ५.२.२५९, ५.३.१६९, ६.१.६२, ६.७.१६७, ७.८.२०१, ८.१.६, ८.२.८, ८.५.६३, ९.१.१५, ९.२.१७०, ९.६.८०, १०.३.१०, १०.५.३१९, १०.९.२२१, द्र. मन्दारविद्याधर, रङ्गविद्याधर vidyaadhara/ vidyadhara
विद्यानन्द स्कन्द ५३.२२५.२
विद्यापति स्कन्द २.२.७(विद्यापति द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र का अन्वेषण, शबर से वार्तालाप, नीलमाधव के दर्शन), २.२.९(विद्यापति द्वारा इन्द्रद्युम्न नृप से नीलमाधनव यात्रा के वृत्तान्त का वर्णन ) vidyaapati/ vidyapati
विद्याराज वामन ७०
विद्युज्जिह्व वामन ८७.८५(कुटिला द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण का नाम), वायु ६९.१५९(७०.५०(वाका - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर १.२२३(शूर्पणखा - पति, रावण द्वारा वध), स्कन्द ४.२.७२.९७(काशी में ६४ वेतालों में से एक), वा.रामायण ६.३१.३९(रावण - सहायक, सीता के समक्ष राम का माया जनित काट सिर प्रस्तुत करना), ७.१२.२(कालका - पुत्र, शूर्पणखा - पति), ७.२३(शूर्पणखा - पति, रावण द्वारा वध), लक्ष्मीनारायण १.४४०.७६(विद्युज्जिह्व द्वारा धर्मारण्य में उपद्रव, देवियों द्वारा प्रतिरोध, विष्णु द्वारा चक्र से वध), २.८६.४२(विश्रवा व वाक के पुत्रों में से एक ), कथासरित् १२.५.४१ vidyujjihva
विद्युत कूर्म १.१३.१५(पावक अग्नि का रूप), नारद १.६६.९८(नृसिंह की शक्ति विद्युता का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१९.४५(कङ्क पर्वत के वैद्युत वर्ष का उल्लेख), २.३.७.२४(विद्युत से रुचि नामक अप्सरा गण की उत्पत्ति), मार्कण्डेय २.४(कैलास पर विद्युतरूप राक्षस द्वारा कङ्क का वध, कङ्क - अनुज कन्धर द्वारा विद्युतरूप का वध), वराह १०(दुर्जय द्वारा विद्युत - सुविद्युत असुरों को लोकपाल पद पर नियुक्त करना), १६, वायु ६९.१२९( यातुधान, सूर्य अनुचर, रुमन - पिता), विष्णु १.१५.१३५, शिव ३.५, ७.१.१७.३८, स्कन्द ६.२५२.३३(चातुर्मास में विद्युत की अशोक में स्थिति का उल्लेख), हरिवंश १.३.६४, योगवासिष्ठ १.३१.३(तडित : दुष्ट आशा का रूप), ६.१.१२८.८(त्वचा के विद्युत में न्यास का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८७(श्रीहरि के दर्शन हेतु विद्युत का अशोक वृक्ष बनना), १.५३२.१०, १.५३२.९८, ३.३६.२६(विद्युत्स्राव राक्षस के वध हेतु श्रीहरि का विद्युन्नारायण रूप में अवतार), ४.८३.५४(ताम्रास्त्र से विद्युदस्त्र के शमन का उल्लेख), ४.१०१.१२०(कृष्ण - पत्नी नलिनी के पुत्र षडङ्ग वैद्युत का उल्लेख ), द्र. भूगोल, रथ सूर्य, सुविद्युत vidyuta
विद्युत्केश वामन ११, १५, स्कन्द ३.१.९(विद्युत्केशा राक्षसी द्वारा अशोकदत्त को नूपुर, स्वपुत्री व सुवर्णकमल प्रदान करना), वा.रामायण ७.४(हेति व भया - पुत्र, सालकटङ्कटा - पति, सुकेश - पिता ) vidyutkesha
विद्युत्पताक मत्स्य २(प्रलयकारक मेघ )
विद्युत्पुञ्जा कथासरित् १४.४.१७८
विद्युत्प्रभा वराह १०(सुप्रतीक - पत्नी, दुर्जय - माता), ९२.१७, ९५(विद्युत्प्रभ : वैष्णवी देवी से महिष के जन्म की कथा में महिषासुर - सेनानी ), शिव ५.२.१०विद्युत्प्रभ, स्कन्द ३.१.९, ४.१.४५.४१(६४ योगिनियों में से एक), कथासरित् २.२.३९(बलि – पौत्री विद्युत्प्रभा दवारा श्रीदत्त को सिंह को पराजित करने के लिए प्रेरित करना), ५.२.१९५, ५.२.२०८(विद्युत्शिखा व त्रिघण्ट-पुत्री, अशोकदत्त की भार्या बनने की कथा), ५.३.२०७( तरुमूल में विद्युत्प्रभा की अर्चना का निर्देश), ५.३.२१५(विद्युत्प्रभा द्वारा देवदत्त से गर्भ धारण करने और अन्त में गर्भ के उत्पाटन पर विद्याधरी बनने की कथा), ८.५.४२(कालञ्जर गिरि के स्वामी विद्युत्प्रभ की प्रभास से युद्ध में मृत्यु), १७.२.३(विद्युत्प्रभ के पुत्र विद्युद्ध्वज द्वारा ब्रह्मा से अस्त्र प्राप्ति, इन्द्र द्वारा युद्ध में विद्युत्प्रभ का वध), vidyutprabhaa
विद्युत्शिखा कथासरित् ५.२.१९६(लम्बजिह्व राक्षस की पत्नी, पुत्री विद्युत्प्रभा को अशोकदत्त को प्रदान करने की कथा),
विद्युत्स्राव लक्ष्मीनारायण ३.३६.२(रुद्र कुक्षि से उत्पन्न विद्युत्स्राव राक्षस का श्रीहरि द्वारा विद्युन्नारायण रूप में अवतार लेकर वध )
विद्युत्स्फूर्ज ब्रह्माण्ड १.२.२३.१९(विद्युत्स्फूर्ज यातुधान की सूर्य रथ में स्थिति), २.३.७.८९(यातुधान, जन्तुधना व राक्षस - पुत्र )
विद्युद्द्योता कथासरित् ६.७.५५
विद्युद्ध्वज कथासरित् १७.२.१
विद्युन्नारायण लक्ष्मीनारायण ३.३६.२६(अर्चिमार्ग नामक वत्सर में विद्युत्स्राव राक्षस का सुदर्शन चक्र से वध करने के पश्चात् विष्णु का भूलोक में विद्युन्नारायण नाम से अवतीर्ण होना )
विद्युन्मार्ग लक्ष्मीनारायण २.२३२
विद्युन्माला भविष्य ३.३.३१.१३७(राजा पूर्णामल - कन्या, भीम - पत्नी, म्लेच्छपति सहोद की आसक्ति की कथा), ३.३.३२.२३९(पृथ्वीराज - कन्या, बलि के सेनानियों द्वारा हरण ), कथासरित् ८.१.४६, ८.६.१६५, ८.६.१७०, vidyunmaalaa/ vidyunmala
विद्युन्माली पद्म ५.३३(विद्युन्माली द्वारा राम के अश्व का हरण, शत्रुघ्न द्वारा विद्युन्माली का वध), ब्रह्माण्ड ३.४.१२.१२, मत्स्य १२९.३६(त्रिपुर के रजतमय भाग का रक्षण), १३५, १३८, १४०(त्रिपुर ध्वंस प्रकरण में नन्दी द्वारा विद्युन्माली का वध), लिङ्ग १.७१, वामन ६८.५८(विद्युन्माली का एकादश रुद्रों से युद्ध), शिव २.५.१, स्कन्द ४.१.३३.७८(विद्युन्माली का विद्याधर से युद्ध व मृत्यु), वा. रामायण ६.४३.१४(रावण - सेनानी, सुषेण से युद्ध ), लक्ष्मीनारायण २.२३२.१९, vidyunmaalee/ vidyunmali
विद्युल्लेखा लक्ष्मीनारायण १.३११.४६
विद्योत भविष्य ३.३.५.१३(राजा अनङ्गपाल - पुत्र, जयचन्द्र - सेनानी, पृथ्वीराज - पुत्र?, प्रद्योत - अनुज, भीष्मसिंह - पिता), ३.३.६.५०(पृथ्वीराज - सेनानी, कृष्ण कुमार/उदयसिंह द्वारा विद्योत का वध), भागवत ६.६, लक्ष्मीनारायण ४.४६.१२(द्योतिका नामक पात्र मज्जनकारिणी द्वारा स्वकर्तव्य पालन से विष्णुलोक की प्राप्ति), ४.१०१.११४(विद्योतिनी : कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, स्वर्गपतङ्ग व कृतिनी - माता ) vidyota
विद्रुम गणेश २.२२.३५(विद्रुमा : शुक्ल द्विज की पत्नी), गरुड १.८०(विद्रुम रत्न की बल असुर की आन्त्र से उत्पत्ति, रत्न परीक्षा), ब्रह्माण्ड १.२.१९.५४(विद्रुम पर्वत के उद्भिद वर्ष का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.८(अधरों की विद्रुम से उपमा), शिव ७.२.२९.२५(शिव के उत्तर मुख के विद्रुम सदृश होने का उल्लेख), हरिवंश २.८०.२२, लक्ष्मीनारायण ३.१९५.३(अनपत्या विद्रुमवल्ली द्वारा सपत्ना के पुत्र का नाश, भगवान् द्वारा विद्रुमवल्ली के पाप का नाश), ४.३४.७५(दिति कुल की नारी विद्रुमिणी की कृष्ण भक्ति का वृत्तान्त ), द्र. भूगोल vidruma
विद्वर पद्म २.१०९.२३(विद्वर किन्नर का स्वरूप, अशोकसुन्दरी को नहुष के जीवित होने का आश्वासन )
विधम ब्रह्माण्ड २.३.५९.१०(कलि - पुत्र, एकपाद, रेवती - पति, नैर्ऋत राक्षस - पिता),
विधवा पद्म १.५२, स्कन्द २.४.२.५५टीका, ३.२.७.५०(विधवा के नियम व धर्म, विधवा दर्शन के दोष आदि), ३.२.७.६७(विधवा के नियम व धर्म), ४.१.४.७३(विधवा के कर्तव्य), हरिवंश २.८१.८(उमा - अरुन्धती संवाद में विधवा स्त्री द्वारा करणीय कृत्य), लक्ष्मीनारायण १.१४८.५८(अवैधव्य व्रत की विधि, रेवती पूजा ) vidhavaa
विधाता गणेश २.९६.३६(ब्रह्मा द्वारा प्रयुक्त गणेश का नाम ), स्कन्द ५.३.३९.२८ vidhaataa/ vidhata
विधि ब्रह्माण्ड १.२.३३.५२(विधि की परिभाषा ), स्कन्द ४.१.१३.१९(विधि के दक्षिणाङ्ग होने का उल्लेख), ५.१.२३.२६ vidhi
विधुल गणेश २.१३.२९(महोत्कट गणेश द्वारा काशी में विधुल दैत्य का वध),
विधुर पद्म ५.९४(मुनिशर्मा द्वारा विधुर वैश्य का उद्धार )
विधूतरजस ब्रह्माण्ड २.३.३.११७
विधूम स्कन्द ३.१.५(अलम्बुषा पर आसक्ति के कारण ब्रह्मा द्वारा विधूम वसु को शाप, मनुष्य लोक में सहस्रानीक रूप में जन्म की कथा), ५.१.६९, लक्ष्मीनारायण १.४३४(विधूम वसु की अलम्बुषा अप्सरा पर आसक्ति के कारण पृथिवी पर सहस्रानीक व मृगावती रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त ), कथासरित् २.१.२३(विधूम वसु का शापवश भूतल पर राजा सहस्रानीक के रूप में जन्म), vidhooma/vidhuuma/ vidhuma
विधृत पद्म ५.१११(अग्निमुख गण द्वारा दुष्ट राजा विधृत की यमदूतों से रक्षा), भागवत ८.१.२९(विधृति की निरुक्ति), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(शेष की सहना शक्ति धृति, व्यापिनी शक्ति विधृति। सौख्यम इति)
विनत वा.रामायण ४.४०(विनत वानर द्वारा सुग्रीव की आज्ञा से पूर्व दिशा में सीता का अन्वेषण), ६.२६.४२(सारण द्वारा रावण को विनत वानर का परिचय ) vinata
विनता गणेश २.९७.३९(स्वपुत्रों सम्पाति व जटायु का सर्पों द्वारा बन्धन होने पर विनता द्वारा सर्पनाशक पुत्र मयूर को जनने की कथा), देवीभागवत २.११, १२.६.१४१(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.९३(मुकुन्द नामक विष्णु की शक्ति विनता का उल्लेख), पद्म १.४७, ब्रह्म २.८९, ब्रह्माण्ड २.३.७.४६८(विनता की वाहशीला प्रकृति का उल्लेख), भविष्य १.५७.१६(विनता हेतु आमिष बलि का उल्लेख), ४.३६, मत्स्य ६.३३(विनता के वंश का वर्णन), वायु ६९.९३(विनता की वैहायस गतिप्रिया प्रकृति का उल्लेख - विनता तु पुनर्द्देवी वैहायसगतिप्रिया ॥ ), स्कन्द ३.१.३८, ४.१.५०(कद्रू के दासीत्व से मुक्ति के पश्चात् विनता द्वारा काशी में खखोल्कादित्य की स्थापना), ५.३.७२, ५.३.१३१, वा.रामायण ३.१४.२०, ५.२४.२०(विनता राक्षसी द्वारा सीता को रावण का वरण करने का परामर्श), लक्ष्मीनारायण १.४६३.१२(विनता द्वारा अपक्व अण्ड का प्रस्फोटन करने से पुत्र अनूरु से शाप प्राप्ति), १.४६४(गरुड द्वारा स्वर्ग से अमृत लाकर विनता को दासीत्व से मुक्त कराने का वृत्तान्त), २.३२.१८(विनता के कृत्तिकाओं के मध्य स्थित होने के कारण कृत्तिकाओं के सप्तशीर्षा बनने का कथन), २.३२.३०(विनता के शकुनि ग्रह नाम से प्रथित होने का उल्लेख - विनता तु महारौद्रा कथ्यते शकुनिग्रहः । ), कथासरित् २.४.१३८(विनता-पुत्र गरुड द्वारा गज-कच्छप के भक्षण की कथा), ४.२.१८१(कद्रू द्वारा विनका को दासी बनाने तथा गरुड द्वारा मुक्त कराने की कथा), १२.२३.९७(कद्रू द्वारा विनता को दासी बनाए जाने के कारण तार्क्ष्य द्वारा नागों के भक्षण का कथन), vinataa
विनताश्व वायु ८४.१९
विनय पद्म ५.९९.१८(विनय की रत्न मुकुट से उपमा), मार्कण्डेय ५०.२७(लज्जा - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१(विनया का विष्णु की भुजाओं में वास), vinaya
विनयकीर्ति स्कन्द ४.२.५८.८१(काशी से दिवोदास का उच्चाटन करने के लिए गरुड का पुण्यकीर्ति नामक बौद्ध वेशधारी विष्णु का शिष्य विनयकीर्ति बनना ) vinayakeerti/ vinayakirti
विनयज्योति कथासरित् १२.५.३०१(राजकुमारी के चित्र में भावासक्त वणिक् - पुत्र पर कृपा हेतु मुनि विनयज्योति द्वारा मायामय सर्प का निर्माण ) vinayajyoti
विनयवती कथासरित् १२.२.१०४(विद्याधर युगल रङ्कुमाली व तारावली से विनयवती के जन्म, मुनि द्वारा पालन तथा विनयवती से बलात्कार करने वाले विद्याधर को करभ योनि प्राप्ति का वृत्तान्त), १२.२.१६८(विनयवती के राजा पुष्कराक्ष की भार्या बनने तथा दोनों के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त ) vinayavatee/ vinayavati
विनयस्वामिनी कथासरित् ५.१.१५५(धूर्त शिव द्वारा तापस वेश धारण कर पुरोहित - कन्या विनयस्वामिनी को भार्या रूप में प्राप्त करने और पुरोहित के धन का हरण करने का वृत्तान्त )
विनायक अग्नि ५०.२३(विनायक की प्रतिमा का लक्षण), २६६, गणेश १.९२.२७(सचेतन द्वारा विनायक नाम से गणेश की पूजा), २.१.१८(कृतयुग में गणेश का नाम, सिंह वाहन), २.५.३२(विनायक द्वारा तपोरत अदिति को वर, अदिति - पुत्र रूप में उत्पन्न होना), २.१६.३८(भ्रूशुण्डि मुनि द्वारा विनायक नामक गणेश के निमन्त्रण को अस्वीकार करना), २.७२.४०(अदिति व कश्यप द्वारा पुत्र गणेश के अदृश्य होने पर विनायक नाम से गणेश मूर्ति की पूजा), २.७८.४१(कृतयुग में दशभुज सिंहारूढ गणेश का नाम), २.८५.१९(विनायक गणेश से शिखा की रक्षा की प्रार्थना), २.८५.२१(विनायक गणेश से वाक् की रक्षा की प्रार्थना), २.१५४(विश्वेश परिवार के विभिन्न आवरणों के विनायकों के नाम), देवीभागवत ७.३०(विनायक क्षेत्र में उमा देवी का वास), नारद १.६६.१२५ (विनायक की शक्ति पुष्टि का उल्लेख), पद्म १.२०(विनायक व्रत का माहात्म्य), भविष्य १.२२, १.२३, १.३०, १.१२४.२९, ४.३२(विनायक स्नपन व्रत), ४.१४४(कर्मों की अविघ्न सिद्धि हेतु विनायक शान्ति), मत्स्य १३, १०१.६१(विनायक व्रत), २६०.५२(विनायक की प्रतिमा का रूप), वराह २३, विष्णुधर्मोत्तर २.१०५(विनायक स्नान), स्कन्द १.२.१३.१६५(शतरुद्रिय प्रसंग में विनायक द्वारा पिष्ट लिङ्ग की कपर्दी नाम से पूजा का उल्लेख), १.२.३६.३१सिद्धि विनायक, ४.२.५७(काशी में विनायक के विभिन्न नाम), ४.२.५७.५९(काशी में आवरणों में स्थित विनायकों का वर्णन), ५.१.२८(विनायक की लड्डू प्रियता, माहात्म्य), ५.१.७०.३९(विनायक के छह नाम), ५.३.१९८.७८, ७.१.३०९(चतुर्मुख विनायक का माहात्म्य), ७.३.३२(महाविनायक का पार्वती के उद्वर्तन/उबटन से जन्म, गज शिर की प्राप्ति, विनायक शान्ति कर्म), कथासरित् १२.६.३२५(श्रीदर्शन युवराज की भक्ति से प्रसन्न होकर रत्नविनायक द्वारा श्रीदर्शन को अनङ्गमञ्जरी भार्या प्रदान करने का वृत्तान्त ) vinaayaka/ vinayaka
विनिपार लक्ष्मीनारायण २.२००
विनीतमति कथासरित् १२.५.२४(राजपुत्र विनीतमति द्वारा अश्व व खङ्ग की सहायता से कालजिह्व यक्ष को पराजित करना तथा उससे दिव्य अङ्गुलीयक प्राप्त करना), १२.५.६६(विनीतमति द्वारा वाद में पराजित करके राजकुमारी उदयवती को प्राप्त करना), १२.५.९४(भिक्षु द्वारा शास्त्रार्थ में विनीतमति को पराजित करना, विनीतमति द्वारा स्वप्न दर्शन का वृत्तान्त), १२.५.१५९(विनीतमति द्वारा याचकों को दिव्य अङ्गुलीयक, अश्व, खङ्ग, राज्य आदि देना, वन गमन), १२.५.१९१(विनीतमति द्वारा चोर सोमशूर को दान पारमिता, शीलपारमिता, धैर्यपारमिता आदि के दृष्टान्त सुनाना), १२.५.३७३(विनीतमति द्वारा मृग रूप धारण करके स्वमांस को कनककलश नृप हेतु प्रस्तुत करना ), १२.२६.११७, द्र. दुर्विनीत vineetamati/ vinitamati
विनीताश्व वराह ९९.८०(विनीताश्व द्वारा अन्नदान के अभाव में मृत्यु के पश्चात् स्व - शव का भक्षण करना, तिल दान से मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.५६३ vinitashva
विनोदिनी लक्ष्मीनारायण ३.८१.७७(शतानन्द - पत्नी विनोदिनी द्वारा वैराग्यवान् पुत्रों को जन्म देने का वृत्तान्त ; तुलनीय : मदालसा), ४.१६.१०, ४.४६.६४(स्वर्णकार स्त्री विनोदिनी द्वारा एकादशी जागरण व कीर्तन से मोक्ष प्राप्ति ) vinodinee/ vinodini
विन्द गर्ग १०.२२(विन्द - अनुविन्द : अवन्ती - अधिपति, उग्रसेन के अश्वमेधीय हय के बन्धन व मोचन की कथा), १०.२२.४(विन्द का बिन्दु से साम्य), वा.रामायण ३.६८.१२(रावण द्वारा विन्द मुहूर्त में सीता के अपहरण का कथन ), द्र. मित्रविन्दा vinda
विन्ध्य गर्ग ४.१०, ७.१८.१६(विन्ध्य देश के अधिपति दीर्घबाहु द्वारा प्रद्युम्न से संधि), ८.३, देवीभागवत ०.२, ७.३०(विन्ध्य पर्वत पर नितम्बा देवी के वास का उल्लेख), १०.२(सुमेरु की महिमा सुनकर विन्ध्य द्वारा सूर्य के मार्ग का अवरोधन, अगस्त्य कृपा से अवरोध के दूर होने का वृत्तान्त), पद्म १.१९, १.४४, ब्रह्म २.४८, ब्रह्माण्ड १.२.३३.३९(सामवेद के सप्तविन्ध्य व पञ्चविन्ध्य सामों की भक्तियों के नाम), भविष्य १.७९.७५, २.१.१७.१४(सूर्य अग्नि के विन्ध्य नाम का उल्लेख), मत्स्य १३, ११४.२८(विन्ध्य पर्वत से उद्भूत नदियां), १५७, मार्कण्डेय ३, वराह ८५, वामन १८(विन्ध्य की सूर्य से स्पर्द्धा, अगस्त्य द्वारा नीचा करना), ५७.६७(विन्ध्य द्वारा स्कन्द को अतिशृङ्ग पार्षद प्रदान करना), ९०.१२(विन्ध्य पाद में विष्णु का सदाशिव नाम से वास), ९०.२८(विन्ध्य शृङ्ग में विष्णु का महागौर नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.२१३, शिव ४.१८(मेरु से स्पर्द्धा करके विन्ध्य द्वारा तप, ओङ्कार लिङ्ग की प्राप्ति),स्कन्द १.१.७.३३(विन्ध्य में सर्वेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), ५.३.२, ५.३.५६.४,५.३.९९.८, ५.३.१९८.७७, ५.३.१९८.७९, ६.३३, ६.१०९(विन्ध्य तीर्थ में वाराह लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), ६.१२१, हरिवंश ३.३५.२५, वा.रामायण ७.७९, ७.१०८, लक्ष्मीनारायण १.४५५, कथासरित् १.१.५९(विन्ध्य अटवी में कुबेर से शापित सुप्रतीक यक्ष के काणभूति नाम से निवास का कथन), १.३.३८, १.७.२५(विन्ध्यवासिनी देवी द्वारा गुणाढ्य को विन्ध्याटवी में जाकर काणभूति से मिलने का निर्देश), ५.२.६(शक्तिदेव द्वारा विन्ध्य अटवी में सूर्यतपा मुनि से कनकपुरी के विषय में पृच्छा), ७.३.२२(विन्ध्यपर विद्याधर की कन्या अनुरागपरा का वृत्तान्त), ९.१.१६१, ९.५.२०२, १२.३.५८(विन्ध्य अटवी में शिंशपा तरु के नीचे पारावत नाग का वृत्तान्त), १२.५.१२१(विन्ध्य पर्वत की गुफा में वराह द्वारा क्षुधाविष्ट सिंह अतिथि की सेवा का वृत्तान्त), १२.५.२३७(विन्ध्य पर्वत पर शुकों के राजा हेमप्रभ द्वारा स्व प्रतिहार चारुमति को शीलपारमिता की शिक्षा देना), १८.३.४(विन्ध्यबल : राजा विक्रमादित्य को प्रणाम करने वाले भिल्ल ), द्र. भूगोल vindhya
विन्ध्यकेतु कथासरित् १२.२४.२८४(पुलिन्दराज विन्ध्यकेतु द्वारा राजकुमार सुन्दरसेन का बलि पशु हेतु बन्धन, संज्ञान होने पर मोचन का वृत्तान्त )
विन्ध्यवासिनी मत्स्य १५७(रात्रिदेवी/एकानंशा का रूप, पार्वती के शरीर से उत्पत्ति), वामन ५४,स्कन्द ४.२.७१.६१(विन्ध्यवासिनी देवी द्वारा दुर्ग असुर के वध का वर्णन), ५.१.५५(रेवा जल से भूमि के उद्धार के लिए अगस्त्य द्वारा विन्ध्यवासिनी देवी की स्तुति, विन्ध्यवासिनी के नाम), हरिवंश २.२२.४८(नारद द्वारा कंस को विन्ध्यवासिनी देवी की महिमा का वर्णन), कथासरित् १.३.३८(पुरुषों द्वारा विन्ध्यवासिनी देवी के समक्ष राजा पुत्रक के वध का प्रयास), ४.३.३८(विन्ध्यवासिनी की कृपा से सिंहपराक्रम भृत्य द्वारा स्वपत्नी के कलह का कारण जानना), ७.८.१०३(परित्यागसेन के पुत्र - द्वय द्वारा विपदा में विन्ध्यवासिनी देवी को प्रसन्न करना, देवी द्वारा दिव्य खङ्ग प्रदान करना), ९.५.२१३(राजा कनकवर्ष द्वारा भार्या की पुन: प्राप्ति हेतु विन्ध्यवासिनी के दर्शन हेतु जाना, मार्ग में शबरों द्वारा राजा का बन्धन व मोचन आदि ) vindhyavaasini/ vindhyavasini
विन्ध्याचल स्कन्द ४.१.१, ५.१.५४,
विन्ध्यावली भागवत ८.२२.१९(बलि - पत्नी), मत्स्य १८७, वामन ८८.३१(बलि - पत्नी), स्कन्द १.१.१९, ३.१.५०,
विन्ध्याश्व मत्स्य ५०.७(इन्द्रसेन - पुत्र, मेनका से दिवोदास व अहल्या की उत्पत्ति),
विपण भागवत ४.२५.४९
विपर्यय ब्रह्माण्ड १.१.५.६१(स्थावरों में ब्रह्मा के विपर्यय द्वारा स्थित होने का उल्लेख ), वायु ६५.९३/२.४.९३(रौद्र व वैष्णव चरु विपर्यय तथा वैष्णव अग्नि के जमन से ऋचीक व सत्यवती - पुत्र जमदग्नि के जन्म का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.३२ (चरु विपर्यास से जमदग्नि की उत्पत्ति का प्रसंग), १.३३(चरु विपर्यास से पुत्रों के गुणों में विपर्यय का आख्यान), स्कन्द १.२.१८(सूर्य द्वारा शम्बर अस्त्र का प्रयोग करके देव - दानव रूपों का विपर्यय करना), कथासरित् ३.६.७९(अग्नि द्वारा शुक और गज की जिह्वाओं का विपर्यास करने की कथा), viparyaya
विपश्चित् गरुड १.८७.८(स्वारोचिष मन्वन्तर में इन्द्र), २.६.५०(विपश्चित् द्वारा राजा के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन), २.६.११९(विपश्चित् द्वारा राजा वीरसेन के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.४९(विपश्चितों द्वारा वर की अपेक्षा दास्य की कामना का उल्लेख), मार्कण्डेय १४(विपश्चित् द्वारा नरक दर्शन), विष्णुधर्मोत्तर १.१७७(दूसरा इन्द्र ), योगवासिष्ठ ६.२.१०८, ६.२.१०९, द्र. मन्वन्तर vipashchit
विपाक गरुड २.२.५९(कर्मविपाक का वर्णन), द्र. प्राङ्विपाक
विपापा स्कन्द ५.३.६.३९
विपाशा मत्स्य १३, वामन ५७.७६(विपाशा द्वारा स्कन्द को गण प्रदान करना), ९०.४(विपाशा तीर्थ में विष्णु का द्विजप्रिय नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर १.२०७(वसिष्ठ के कारण विपाशा नदी की उत्पत्ति की कथा), १.२१५(विपाशा नदी के तुरग वाहन का उल्लेख), स्कन्द ४.१.२९.११८(गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ५.३.६.४०, ५.३.१९८.७३, महाभारत अनुशासन ३.१२, कथासरित् १२.७.१९०, द्र. भूगोल vipaashaa/ vipasha
विपीत भविष्य ४.८२(विपीत मुनि द्वारा सीरभद्र प्रेत को सुकृत द्वादशी का उपदेश)
विपुल भविष्य ४.१९५(विपुल पर्वत की महिमा), मत्स्य ८(विपुल पर्वत पर ब्रह्मा व हंस की पूर्वाभिमुखी प्रतिष्ठा), १३, ८३(विपुल पर्वत निर्माण व पूजा विधि), वराह ७७, स्कन्द ५.३.१९८.७४, लक्ष्मीनारायण ३.९३.११(गुरु की अनुपस्थिति में शिष्य विपुल द्वारा गुरुपत्नी रुचि की इन्द्र तथा लोममर्षण, कपर्दक आदि राक्षसों से रक्षा का वृत्तान्त ) vipula
विपुलस्वान मार्कण्डेय २
विपुला वायु ४१.५(कैलास पर कुबेर की सभा का नाम), स्कन्द ४.२.७२.६२(विपुला देवी द्वारा ऊरु द्वय की रक्षा),
विपृथु वामन ६९, हरिवंश २.१२१.१९
विप्र स्कन्द ५.१.२६.१००(कामुक रूप धारी शिव पर ब्राह्मणों द्वारा प्रहार, शिव द्वारा विप्रों को शाप व वरदान), ५.३.३८.६३(विप्र की प्रशंसा), लक्ष्मीनारायण ३.९१.११९(विज्ञान से विप्र बनने का उल्लेख ), द्र. वंश ध्रुव vipra
विप्रचित्ति गरुड ३.१२.८५(जरासन्ध का विप्रचित्ति से तादात्म्य), गर्ग ७.४३, देवीभागवत ४.२२.४२(विप्रचित्ति के जरासन्ध रूप में अवतरण का उल्लेख), ९.२२(शङ्खचूड - सेनानी, भास्कर से युद्ध), पद्म १.६.४८(दनु व कश्यप - पुत्र), ब्रह्मवैवर्त्त २.१८, ब्रह्माण्ड २.३.६.१८, भागवत ६.१८, मत्स्य ६, ४७.५२(विप्रचित्ति का ध्वज में छिपना, इन्द्र द्वारा वध), वराह ९५, वायु ७०.७(दानवों का अधिपति), विष्णु १.१५.१४१, शिव २.५.१३, २.५.३६.७(शङ्खचूड - सेनानी, भास्कर से युद्ध), हरिवंश २.६९.१५, ३.५१.५८(बलि - सेनानी विप्रचित्ति के रथ का वर्णन), ३.५३.२४(विप्रचित्ति का वरुण से युद्ध), ३.६१, लक्ष्मीनारायण १.३३७.३९(शङ्खचूड - सेनानी, भास्कर से युद्ध ), द्र. वंश दनु viprachitti
विबाहु लिङ्ग १.१२.१०
विभाकर ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२८(विभाकर सूर्य से सर्वाङ्ग की रक्षा की प्रार्थना),
विभाग हरिवंश २.१२२.३३(वषट्कार के आश्रित २ अग्नियों में से एक )
विभाण्डक नारद १.२०(विभाण्डक मुनि द्वारा राजा सुमति से ध्वजारोपण के महत्त्व की पृच्छा), ब्रह्म १.११वैभाण्डकि, ब्रह्मवैवर्त्त २.४.५५(विभाण्डक द्वारा ऋष्यशृङ्ग को सरस्वती मन्त्र प्रदान का उल्लेख), २.५१.६९(विभाण्डक द्वारा सुयज्ञ नृप से शूद्र के श्राद्ध में ब्राह्मण द्वारा भक्षण दोष का कथन), मत्स्य ४८.९९(विभाण्डक द्वारा हर्यङ्ग के यज्ञ में वारण/हस्ती का अवतारण), वा.रामायण ०.३(विभाण्डक मुनि को सुमति राजा से रामायण का महत्त्व ज्ञात होना), १.१०(मुनि, ऋष्यशृङ्ग - पिता ), लक्ष्मीनारायण १.२८२ vibhaandaka/ vibhandaka
विभाव वायु ३१.९
विभावरी पद्म १.४६.७९, मत्स्य १२२, १५४.५८(ब्रह्मा के आदेश से रात्रि देवी द्वारा पार्वती के शरीर का रञ्जन, एकानंशा रूप में जन्म), मार्कण्डेय ६४(विभावरी का स्वरोचिष से विवाह), वराह ८७(द्रोण पर्वत की नदियों में से एक), विष्णु १.८.३१(दिवस - पत्नी), २.८.९(, स्कन्द ४.१.२९.११७(गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.१६७, ३.२१३.१०५, ४.२९, vibhaavaree/ vibhavari
विभावसु पद्म ५.११७.२३१(विभावसु वैश्य का घण्टामुख गण बनना), ब्रह्म २.३७, भागवत ८.१०.३२(विभावसु का महिष से युद्ध), वराह १९०(शाण्डिल्य मुनि - पुत्र, श्राद्ध में भाग ग्रहण), वायु ६९.२३१, स्कन्द ३.१.३८(विभावसु द्वारा भ्राता सुप्रतीक को शाप - प्रतिशाप, गज व कच्छप बनना), कथासरित् ८.५.६४(श्रुतशर्मा विद्याधर द्वारा प्रभास से युद्ध हेतु प्रेषित ५ महारथियों में से एक ) vibhaavasu/ vibhavasu
विभास वायु ३१.६
विभीषण गर्ग ७.१३.१८(लङ्का - अधिपति, प्रद्युम्न की आधीनता स्वीकार करना), पद्म १.३८(विभीषण के अनुशासन हेतु राम आदि का पुष्पक पर आरूढ होकर लंकागमन), ५.७.२(विभीषण, कुम्भकर्ण आदि के तप का उल्लेख), ५.६७.४०(महामूर्ति - पति), ५.१०४.३४(शिवलिङ्ग को देखकर विभीषण के शृङ्खलाबद्ध होने का प्रश्न), ६.२४३(विभीषण द्वारा राम को दर्पण भेंट), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.३६(हरिभावना से शुद्ध हुए चिरजीवियों में से एक), भविष्य ३.४.२५.२९(ब्रह्माण्ड तम से विभीषण तथा विभीषण से त्रिलोक की उत्पत्ति का उल्लेख), मत्स्य ६.११(बलि के १०० पुत्रों में से एक), स्कन्द १.२.१३.१६८(शतरुद्रिय प्रसङ्ग में विभीषण द्वारा पांसूत्थ लिङ्ग की सुहृत्तम नाम से पूजा का उल्लेख), २.८.८.७७(विभीषण सर का संक्षिप्त माहात्म्य), ३.१.३०.७३(विभीषण द्वारा सेतुभेदन की प्रार्थना), ३.१.४९.४३(विभीषण द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ३.१.५१.२६(विभीषण का मध्य में स्मरण), वा.रामायण ५.३७, ५.५२(विभीषण द्वारा रावण को दूत हनुमान के वध से रोकना), ६.९+ (विभीषण द्वारा रावण को सीता लौटाने का सत्परामर्श), ६.१६+ (रावण द्वारा विभीषण का तिरस्कार, विभीषण का राम की शरण में आना), ६.३७.३२(लङ्का के मध्य में विभीषण का विरूपाक्ष से युद्ध), ७.५, ७.१२.२४(सरमा - पति), कथासरित् २.४.११७(धूर्त लोहजङ्घ द्वारा लङ्का में विभीषण से धन प्राप्ति का वृत्तान्त), १८.२.२४२(विभीषण द्वारा हेममृग को यक्षिणी को देने का कथन ) vibheeshana/ vibhishana
विभु अग्नि १०७.१५(प्रस्तार - पुत्र, पृथु - पिता, भरत वंश), गरुड १.८७.२०(रैवत मन्वन्तर में इन्द्र), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.२२(विभु कृष्ण से सर्वदा रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९५(शाक्त देवगण), भविष्य २.१.१७.१३(शिखा में अग्नि का नाम), भागवत ५.१५.६(प्रस्ताव व नियुत्सा - पुत्र, रति - पति, पृथुषेण - पिता, भरत वंश), ८.१.२१(वेदशिरा व तुषिता - पुत्र), ८.५.३(रैवत मन्वन्तर में इन्द्र), मत्स्य ५.२७(प्रत्यूष वसु – पुत्र देवल का अपर नाम), वायु २९.१८(विभु का ऋतु से साम्य), २९.२६(विभु का क्रतु से साम्य), ३१.११(स्वायम्भुव मन्वन्तर में विश्वभुक् इन्द्र की प्रथम विभु संज्ञा?), विष्णुधर्मोत्तर १.१८०(पञ्चम इन्द्र), १.१८४(नवम मन्वन्तर में इन्द्र), लक्ष्मीनारायण ३.३७.४६(५१वें वत्सर में ब्रह्मा की आयु के स्वर्ण जयन्ती महोत्सव पर कृष्ण के विभु नारायण अवतार का वर्णन ) vibhu
विभूति
कूर्म
२.७(विभूति
योग
का
वर्णन
-
रुद्राणां
शंकरश्चाहं
गरुडः
पततामहम्
।
ऐरावतो
गजेन्द्राणां
रामः
शस्त्रप्रभृतामहम्
॥),
गरुड
१.२.३७(विभूति
योग
का
वर्णन
-
अहं
हि
देवो
देवानां
सर्वलोकेश्वरेश्वरः
।।
अहं
ध्येयश्च
पूज्यश्च
स्तुत्योहं
स्ततिभिः
सुरैः
।।),
पद्म
१.२०.३७(विभूति
द्वादशी
व्रत
का
माहात्म्य,
पुष्पवाहन
राजा
का
वृत्तान्त),
६.२२७.५८(प्रकृति
के
त्रिपाद्
विभूति
रूप
का
कथन),
भविष्य
४.८५(विभूति
द्वादशी
के
संदर्भ
में
राजा
पुष्पवाहन
के
पूर्व
जन्म
का
वृत्तान्त,
पुष्पवाहन
का
वाल्मीकि
से
संवाद,
कमल
अर्पण
से
विभूति
प्राप्ति),
भागवत
११.१६.९(कृष्ण
की
विभिन्न
प्राणियों
में
विभूतियां,
अधिपतियों
के
नाम-
ब्रह्मर्षीणां
भृगुरहं
राजर्षीणामहं
मनुः।
देवर्षीणां
नारदोऽहं
हविर्धान्यस्मि
धेनुषु ),
मत्स्य
९९+
(विभूति
द्वादशी
व्रत,
विष्णु
का
न्यास,
पुष्पवाहन
राजा
व
लावण्यवती
रानी
का
प्रसंग),
विष्णुधर्मोत्तर
१.५६(विष्णु
की
विभूतियां
-
अहिर्बुध्न्यश्च
रुद्राणां
नादैवाश्विनयोस्तथा
।।
नारायणश्च
साध्यानां
भृगूणाञ्च
तथा
क्रतुः
।।),
शिव
५.२०.२३,
स्कन्द
५.३.१७७(भूतीश्वर
तीर्थ
का
माहात्म्य,
शिव
द्वारा
गात्र
का
उद्धूलन,
स्नान
के
प्रकारों
का
वर्णन),
७.१.७(सप्तम
कल्प
में
पार्वती
का
नाम),
योगवासिष्ठ
६.१.६०(विभूति
योग
-
पयस्तया
च
पयसि
वायौ
वायुतया
स्थितम्
।
तेजस्तया
तेजसि
च
बुद्धौ
बुद्धितया
गतम्
।।),
लक्ष्मीनारायण
१.५२१.७६(भगवद्
विभूति
का
वर्णन
-
तेजस्विनां
च
वै
सूर्यः
पवित्राणां
तथाऽनलः
।
द्रवाणां
स
हरिर्वारि
चेन्द्रियाणां
मनः
स
च
।।),
१.५४३.७८(विश्वदेवेभ्यश्च
दक्षो
ददावष्टौ
हि
कन्यकाः
।
योगनिद्रा
विभूतिश्च
शिंशपा
शरमा
गुहा
।।),
२.९३(विभूति
योग),
२.१६३.२१(विभूति
योग
-
वृक्षाणां
रससम्पत्तिर्वल्लीनां
फलपुष्पिता
।
दासानां
सेविकावृत्तिर्बालकृष्णः
स
एव
सः
।।
),
३.७१.१(ईश्वर
के
त्रिपाद्
विभूति
विस्तार
का
वर्णन
)
vibhuuti/ vibhooti/
vibhuti
विभ्राज मत्स्य २०.२३(गर्गशिष्य पितृवर्ती की विभ्राज के वैभव में आसक्ति से राजा ब्रह्मदत्त के रूप में जन्म का कथन), २१.११(अनघ वैभ्राज द्वारा तप से सर्वसत्वरुतज्ञ पुत्र प्राप्त करना), ४९.५६(सुकृत – पुत्र, अणुह – पिता), ४९.५८(सुकृत - पुत्र, विष्वक्सेन रूप में जन्म), १२२.१७(शाकद्वीप के पर्वतों में से एक, नाम का कारण- विभ्राजस्तु समाख्यातः स्फाटिकस्तु महान् गिरिः।। यस्माद्विभ्राजते वह्निर्विभ्राजस्तेन स स्मृतः।), हरिवंश १.२०.२६(सुकृत-पुत्र, अणुह – पिता), १.२१.४३( स्वतन्त्र नामक हंस का विभ्राज राजा के वैभव पर आकृष्ट होना, ब्रह्मदत्त राजा बनना ), १.२४.१(राजा विभ्राज के ब्रह्मदत्त के पुत्र विश्वक्सेन रूप में जन्म का उल्लेख), vibhraaja/ vibhraja
विमति वराह १६६(सुमति - पुत्र, मथुरा यात्रा, असि से शिर छेदन, असि कुण्ड का निर्माण), वामन ९०, लक्ष्मीनारायण १.३४८,
विमत्त नारद १.६६.१३४(विमत्त गणेश की शक्ति लोलनेत्रा का उल्लेख),
विमर्दन मार्कण्डेय ७४(मन्त्री विमर्दन द्वारा स्वराष्ट्र राजा को राज्य से च्युत करना), स्कन्द ३.३.४(कुमुद्वती - पति विमर्दन की शिव भक्ति के कारण का कथन, पूर्व जन्म में सारमेय द्वारा शिव मन्दिर की प्रदक्षिणा, रानी के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन ) vimardana
विमल अग्नि १४३.९(अनादिविमल, सर्वज्ञविमल, प्रसिद्धविमल, संयोगविमल व समयविमल पञ्चकों का उल्लेख), गर्ग ४.५(चम्प नगरी के राजा विमल द्वारा याज्ञवल्क्य के सुझाव से स्वपुत्रियों को कृष्ण को भेंट करना, कृष्ण से सारूप्य प्राप्त करना), ७.१०.३०(महाराष्ट्र - राजा विमल द्वारा प्रद्युम्न की पूजा), देवीभागवत ७.३०(विमला : पुरुषोत्तम पीठ में देवी का नाम), नारद १.६६.९८(विमल विष्णु की शक्ति धारा का उल्लेख), पद्म ३.२१.३८(विमलेश्वर के माहात्म्य का कथन), ३.२४.३२(रेणुकातीर्थ में स्नान से चन्द्रमा की भांति विमल होने का उल्लेख), ३.२४.३७(विमल तीर्थ में सौवर्ण-राजत मत्स्यों की स्थिति, स्नान से वाजपेयफल प्राप्ति का उल्लेख), ५.१७(वाजीपुर - राजा, शत्रुघ्न से मिलन), ५.६७.३८(राज्ञी - पति), ६.२०७+ (विमल विप्र द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु तीर्थ यात्रा, विमल - मित्र द्वारा राक्षसियों का उद्धार, इन्द्रप्रस्थ तीर्थ माहात्म्य का प्रसंग), भविष्य ३.४.२२(जन्मान्तर में सन्त दिवाकर), मत्स्य १३, ४४, विष्णुधर्मोत्तर २.८.३४(९ विमल छिद्रों वाले पुरुष की नवामल संज्ञा), स्कन्द ४.२.५१.८३(विमल द्वारा कुष्ठ से मुक्ति के लिए सूर्य की उपासना, विमलादित्य का माहात्म्य), ४.२.५४.३(विमलोदक कुण्ड का माहात्म्य : वाल्मीकि द्वारा विमलोदक कुण्ड में स्नान, विमलोदक में स्नान से प्रेत की मुक्ति), ४.२.६९.२४(विमलेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.७३(विमलेश कुण्ड पर त्र्यम्बक मुनि द्वारा सिद्धि प्राप्ति), ५.३.४३(विमल तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.२२६(विमलेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, भानु की भानुमती के प्रति कामुकता, कुष्ठ प्राप्ति, तीर्थ प्रभाव से विमलता आदि), ५.३.२३१.१८(तीन विमलेश्वर तीर्थ होने का उल्लेख), ७.१.१०.१०(विमल तीर्थ का वर्गीकरण – वायु), ७.१.५५(गन्धर्वसेना द्वारा स्थापित विमलेश्वर का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.१४०.७६(विमल प्रासाद के लक्षण), कथासरित् ९.६.८१(राजा विमल के नपुंसक पुत्र से रूपवती विद्याधरी का विवाह, विमल द्वारा यक्ष से पुंस्त्व प्राप्ति का वृत्तान्त), १२.४.६७(कोशला नगरी के राजा विमलाकर के पुत्र कमलाकर के हंसावली से विवाह का वृत्तान्त), १५.२.२(नरवाहनदत्त का मन्दरदेव राजा के विमल नामक पुर में आगमन ) vimala
विमलबुद्धि कथासरित् १२.२.१९(मृगाङ्कदत्त के १० सचिवों में से एक), १२.२.४१, १२.३६.४४(विमलबुद्धि द्वारा मृगाङ्कदत्त का ध्यान आत्महत्या को उन्मुख कन्या की ओर खींचना )
विमला वामन ५७.८२(विमला द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), स्कन्द ५.३.६.४१(नर्मदा नदी के विमला नाम का कारण), ५.३.१९८.७२, लक्ष्मीनारायण १.२०६.४६(मृगशृङ्ग मुनि की ४ पत्नियों में से एक ) vimalaa
विमान गणेश १.५६.१५(पापी की कुदृष्टि से इन्द्र के विमान का भूमि पर पतन), गर्ग ७.२५.३१(कुबेर द्वारा प्रद्युम्न को प्रदत्त विष्णुदत्त नामक विमान का वर्णन), पद्म ५.१५, ब्रह्माण्ड ३.४.२४.७५(तमोलिप्त विमान), भागवत ३.२३(कर्दम व देवहूति के विहार के लिए विमान), ४.१२, १०.७६.७(मय द्वारा सौभ विमान का निर्माण कर शाल्व को देना, शाल्व द्वारा विमान की सहायता से यादवों से युद्ध), मत्स्य १५.२(विभ्राज लोक में बर्हिण/मयूर युक्त विमानों के अस्तित्व का उल्लेख), लिङ्ग १.४८, महाभारत आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३२६, वा.रामायण ५.७(हनुमान द्वारा लङ्का में पुष्पक विमान की शोभा का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.५६९, २.१०७.३१(राक्षसों द्वारा पापास्त्रों से पितृकन्याओं के पुण्यतत्त्व से निर्मित विमान का निरोध), २.१४०.९२, ४.२.७(राजा बदर के दिव्य विमानों के नाम तथा प्रकृति का कथन), कथासरित् ७.९.२३(विमान निर्माताओं प्राणधर व राज्यधर भ्राता- द्वय का वृत्तान्त), ७.९.२२७(प्राणधर तक्षा द्वारा नरवाहनदत्त हेतु विशाल विमान का निर्माण), ८.१.३६(सूर्यप्रभ द्वारा मय से विमान साधन विद्या सीखने का कथन), ८.३.१२३(सूर्यप्रभ द्वारा परिवर्तिनी विद्या से दिव्य विमान प्राप्ति का कथन), ८.५.१०३(सूर्यप्रभ द्वारा भूतासन विमान की सहायता से रथी विद्याधरों से युद्ध), १४.३.१३३(नरवाहनदत्त द्वारा शिव से महापद्म विमान की प्राप्ति ), द्र. पुष्पक vimaana/ vimana
विमोचनी द्र. भूगोल
वियद्राजपुर स्कन्द २.१.५, लक्ष्मीनारायण १.३९८
वियोग पद्म १.३३.६८(पुष्कर में अवियोग कूप : राम द्वारा दशरथ का चिन्तन व मिलन), भविष्य ४.२२(अवियोग तृतीया व्रत), ४.६८(अवियोग व्रत), कथासरित् ९.२.२७८(राजा के भय से अनङ्गप्रभा का नाट्याचार्य के साथ वियोगपुर में गमन), ९.२.२९१(वियोगपुर में अनङ्गप्रभा द्वारा नाट्याचार्य को त्याग द्यूतकार सुदर्शन को अपनाना ) viyoga
विरक्त स्कन्द ३.१.४९.६३(सुतीक्ष्ण द्वारा विरक्ति की कामना)
विरज अग्नि १०७, ब्रह्म १.४०(विरज क्षेत्र का माहात्म्य, विरज के अन्तर्गत तीर्थ ), भागवत ४.१.१४, ५.१५.१५, लिङ्ग १.१२.१०, वायु ७३.२३/२.११.६७(विरज लोकों में अग्निष्वात्त पितरों की स्थिति?), द्र. वंश भरत viraja
विरजा गणेश २.७.१३(विरजा राक्षसी द्वारा महोत्कट गणेश का भक्षण, महोत्कट द्वारा जठर का विदारण), २.१२६.२०(चक्रपाणि द्वारा दक्षिण दिशा में विरजा देवी की स्थापना), गरुड ३.९.१७(७ आवरणों के पश्चात् विरजा नदी का उल्लेख), ३.१०.१७(विरजा नदी का अष्टम आवरण के रूप में कथन), ३.२७.१४(विरजा नदी का माहात्म्य व परिचय : अन्तर्गङ्गा), गर्ग १.३.३७(विरजा नदी का कालिन्दी रूप में अवतरण), २.२०(विरजा द्वारा राधा को चन्द्रहार भेंट), २.२६(विरजा का कृष्ण के साथ विहार, राधा के भय से नदी बनना), २.२६(विरजा द्वारा ७ पुत्रों को सागर बनने का शाप), ५.१७.१४(विरजा यूथ की गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), देवीभागवत ९.१३.४६(विरजा के नदी बनने तथा सात समुद्र रूप सात पुत्र प्राप्त करने का कथन), १२.६.१४०(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.९२(पाशी नामक विष्णु की शक्ति विरजा का उल्लेख), पद्म १.९.५१(सुस्वधा/आज्यप पितरों की कन्या, नहुष - पत्नी, ययाति - माता, कालान्तर में एकाष्टका बनना), ६.२२७.५५(विरजा नदी की प्रकृति व परम व्योम के बीच स्थिति), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२+ (विरजा का राधा के भय से नदी बनना, ७ पुत्रों को लवण समुद्र आदि बनने का शाप), ब्रह्माण्ड २.३.१०.९५, मत्स्य १५(सुस्वधा/आज्यप पितर गण की कन्या, नहुष - पत्नी, ययाति - माता), वामन २२.१९(विरजा स्थान के दक्षिण दिशा की वेदी होने का उल्लेख), वायु ७२.८८, ७३.४६(आज्यप पितर - कन्या, नहुष - पत्नी, ययाति - माता), शिव ३.१.१५(रक्तवर्ण ब्रह्मा के ४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ४.१.२९.११७(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.७२.६०(विरजा देवी द्वारा नखों की रक्षा), ४.२.७५.४(विरजा पीठ में त्रिविष्टप लिङ्ग की स्थिति), ४.२.७९.९८(विरजा पीठ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.१०९.१५(विरजा तीर्थ में त्रिलोचनेश्वर लिङ्ग), हरिवंश १.१८.६६(सुस्वधा पितरों की कन्या, ययाति - माता, नहुष - भार्या), लक्ष्मीनारायण १.३३५.९०(राधा भय से विरजा के नदी होने का कथन ), २.२९७.८७, ४.१०१.९४, virajaa
विरञ्चि स्कन्द ७.१.७(प्रथम कल्प में ब्रह्मा का नाम), द्र. विरिञ्च
विरण लक्ष्मीनारायण ३.३०.१८
विरथ हरिवंश ३.३७.२१(कश्यप - पुत्र, पूर्व दिशा के अधिपति),
विरह गर्ग ५.१७(गोपियों के विभिन्न यूथों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), भागवत १०.३०(कृष्ण विरह में गोपियों की दशा), १०.९०(कृष्ण की पटरानियों द्वारा विरह का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.२५५(अयोध्या में स्त्रियों का विरह ) viraha
विराज गरुड ३.१३.२७(ब्रह्मा द्वारा मध्यमांगुलि पर्व से विराज भार्या की सृष्टि का उल्लेख), पद्म १.४०(मरुतों में से एक का नाम )viदष्ष्ञ्ष्, मत्स्य ४६.२७, लक्ष्मीनारायण १.२९७, १.३०८
विराट् अग्नि १०७, गणेश २.४२.२७(वक्रतुण्ड गणेश द्वारा विराट् रूप धारण कर दुरासद दैत्य को वश में करना), गरुड १.२.१२(रुद्र द्वारा विराट् की अर्चना), २.२२, गर्ग १.१६.२६(विराट् की शक्ति धारणा का उल्लेख), देवीभागवत ४.२२.३६(राजा विराट : मरुद्गण का अंश), ७.३३(परमेश्वरी द्वारा हिमालय को विराट रूप का दर्शन कराना), ९.३(महाविराट का राधा से प्राकट्य, महाविष्णु नाम, महिमा), ९.३.१(डिम्भ के विराट् बनने का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त २.३(महा विराट की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१६.१७(अन्तरिक्ष की विराट् संज्ञा), भविष्य १.१३३(सूर्य की देह में देवों की स्थिति), १.१६०(सूर्य का रूप), ३.३.३२.५०(विराट का राजा मयूरध्वज के रूप में अवतरण), भागवत २.१(विराट स्वरूप की धारणा), २.५(विराट की ब्रह्माण्ड रूपी अण्ड से उत्पत्ति, वर्णन आदि), २.१०.१५(विराट पुरुष से सृष्टि), ३.६(विराट शरीर की उत्पत्ति), ३.१३?, ३.२६(विराट पुरुष की सृष्टि), ८.७, ८.२०, १०.४०.१३(अक्रूर को कृष्ण के विराट रूप के दर्शन), १२.११(विराट की विभूतियों का वर्णन), मार्कण्डेय ८२, ८८, लिङ्ग १.४५, वामन १८, ३१, ९१, विष्णुधर्मोत्तर १.२३९.३(रावण द्वारा द्रष्ट विराट पुरुष के अङ्गों में विभिन्न देवों की स्थिति का कथन), शिव ५.४६?, स्कन्द १.२.२२(विराट रूप विष्णु), २.२.३, २.७.१९, ५.३.३.९२, हरिवंश ३.७१+ (वामन का विराट रूप, दैत्यों का विराट पर आक्रमण), महाभारत उद्योग १३१, आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३०९, योगवासिष्ठ ६.२.१९(विराट आत्म), ६.३.७३(आत्म विराट), लक्ष्मीनारायण १.३०१, २.६०.३२(उदय राजा द्वारा कृष्ण के विराट रूप के दर्शन ), २.६८.७५, द्र. पुरुष viraata / virat
Comments on Viraata
विराध गरुड २.६.५(विराध नगर में राजा वीरवाहन का वसिष्ठ से संवाद), २.६.५०(विराध नगर में विश्वम्भर वैश्य का लोमश ऋषि से संवाद), ३.९.३(१५ अजान देवों में से एक - विराधश्चारुदेष्णश्च तथा चित्ररथस्तथा । धृतराष्ट्रः किशोरश्च हूहूर्हाहास्तथैव च ॥ ), ब्रह्मवैवर्त्त २.६२.१०४(कलिङ्ग देश के राजा के रूप में विराध का उल्लेख), शिव ४.२०.१३(कर्कटी - पति), स्कन्द ४.२.५३.१२(शिव द्वारा विराध गण का दिवोदास - पालित काशी में विघ्न हेतु प्रेषण), ४.२.५५.२२(विराधेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), वा.रामायण ३.२(जव व शतह्रदा - पुत्र, राक्षस, तुम्बुरु गन्धर्व का शापित रूप, राम व लक्ष्मण द्वारा विराध का निग्रह), ६.९६.२६/६.१०७.६०(विराध वध क्रौञ्च वन में होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.२१०.१(विराध खेटक में यज्ञराध पुष्कस भक्त के ब्रह्मायन साधु से मिलन का वृत्तान्त), viraadha/ viradha
विराम लक्ष्मीनारायण १.३२३.५१(तितिक्षा व धर्म - पुत्र), ३.१११.३८(विरामण ग्राम के दीर्घशील नामक आस्तिक व नास्तिक विप्र - द्वय का वृत्तान्त), ३.१९४.२(विराम नगर के राजा चक्रधर व अमात्य देवविश्राम द्वारा अभिचारिक नारी के वध का वृत्तान्त ), ४.१०१.९३, ४.१०१.११५, viraama/ virama
विराल लक्ष्मीनारायण ३.१८१.१(विराल नामक भक्त वैश्य के पूर्व जन्म का वृत्तान्त )
विरिञ्च गरुड ३.१६.१७(ब्रह्मा के ४ रूपों में से एक, अनिरुद्ध व शान्ता-पुत्र), ३.१६.८२(सावित्री-पति), महाभारत शान्ति ३४२.९४(लोक को चेतना प्रदान करने वाला), द्र. विरञ्चि (रिचि – विस्तारे)
विरिंफ अन्त्येष्टिदीपिका पृ.२१(क्रव्य का विरिंफ से साम्य?)
विरूप भागवत ९.६.१, वराह १८०.३७विरूपनिधि , वामन ६९.५४(विरूपधृक : अन्धक - सेनानी, मित्र से युद्ध), कथासरित् ७.६.२६(रूप प्राप्ति हेतु तपोरत विरूपशर्मा को इन्द्र द्वारा शिक्षा), ८.३.६८(विरूपशक्ति विद्याधर द्वारा अजगर को पकडने में असफलता का उल्लेख ) viroopa/ viruupa/ virupa
विरूपाक्ष गणेश २.१०.२७(शङ्कर द्वारा महोत्कट गणेश का विरूपाक्ष नामकरण), देवीभागवत ५.११(महिषासुर - मन्त्री विरूपाक्ष द्वारा देवी के सम्बन्ध में महिषासुर को परामर्श), पद्म १.१४, १.२४(अङ्गारक - पूजा के दर्शन से विरूपाक्ष को रूप प्राप्ति, भार्गव द्वारा कथन), मत्स्य ४२(अङ्गारक व्रत से मङ्गल को रूप प्राप्ति), वामन ८२, विष्णुधर्मोत्तर १.४१.५(विरूपाक्ष पुरुष, निर्ऋति प्रकृति), १.५६.१३, ३.५७(विरूपाक्ष की मूर्ति का रूप), ३.१८६(विरूपाक्ष व्रत), शिव ३.१८, स्कन्द १.२.६२.२५(क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक), ३.१.४४.१९(विरूपाक्ष के सुग्रीव से युद्ध का उल्लेख), ४.२.६९.१३०(विरूपाक्ष लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७०.३६(विरूपाक्षी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.१०९(हेमकूट तीर्थ में विरूपाक्ष लिङ्ग ), ७.४.१७.३२, हरिवंश २.६३, वा.रामायण १.४०, ५.४६.२९(रावण - सेनानी, प्रमदावन में हनुमान द्वारा वध), ६.३६.२०(विरूपाक्ष द्वारा लङ्का के मध्य की रक्षा), ६.४३.१०( विरूपाक्ष का लक्ष्मण से युद्ध), ६.९६(युद्ध में सुग्रीव द्वारा विरूपाक्ष का वध), ७.६, कथासरित् ६.८.६७(ब्रह्महत्या से विरूपाक्ष यक्ष को मनुष्य योनि प्राप्ति व मुक्ति का वृत्तान्त), viruupaaksha/ viroopaaksha/ virupaksha
विरोचन कूर्म १.१७.१(सनत्कुमार द्वारा विरोचन को ज्ञान दान), गणेश १.६५.४४(विरोचना द्वारा श्रद्धापूर्वक दिए गए एक दूर्वाङ्कुर से ही गणेश की तृप्ति), २.२९.३०(विरोचन द्वारा सूर्य से मुकुट प्राप्ति, परस्त्री द्वारा मूर्द्धा स्पर्श से मृत्यु की कथा), गरुड ३.१६.६६(१४ चन्द्रों में द्वितीय, वायु का रूप, गुण, हनुमान व भीम रूप में अवतार), देवीभागवत ८.१५.४४(सूर्य की विरोचन संज्ञा), नारद १.६६.१२९(विरोचन गणेश की शक्ति तेजोवती का उल्लेख), १.८५.१३७(वैरोचन , २.३२(प्रह्लाद - पुत्र, विशालाक्षी - पति, विष्णु को स्व आयु दान करना), भागवत ५.१५.१५, ८.१०.२९(विरोचन का सविता से युद्ध), मत्स्य ६.१०(प्रह्लाद के ४ पुत्रों में से एक, बलि-पिता), १०, ४८.२३(सुतपा : सेन-पुत्र, बलि-पिता), ४८.५८(विरोचन-पुत्र बलि का संदर्भ, सुतपा का विरोचन से साम्य), ७२(विरोचन के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : शूद्र द्वारा किए गए अङ्गारक व्रत के दर्शन से जन्मान्तर में रूपवान् होने का कथन), वामन ९(विरोचन का गज वाहन), ६९, स्कन्द १.१.१८(विरोचन द्वारा इन्द्र को शिर दान, मरण), ७.१.११, हरिवंश १.६.३(पृथ्वी दोहन में विरोचन के वत्स बनने का उल्लेख), ३.५१.८(बलि - पिता व बलि - सेनानी विरोचन के रथ का वर्णन), ३.५३.१३(विरोचन का विश्वक्सेन साध्य देव से युद्ध), ३.५६, योगवासिष्ठ ५.२२.४३+(बलि द्वारा पिता विरोचन से सीमान्त के विषय में पृच्छा, विरोचन द्वारा सीमान्त के रूप में मोक्ष देश के राजा आत्मा व उसके मन्त्री मन का वर्णन), वा.रामायण १.२५, कथासरित् ८.७.३०(दम द्वारा विरोचन के वध का उल्लेख ) virochana
विरोह कथासरित् ८.५.११२(सुरोह - विरोह द्वारा प्रवहण का तथा सिंहबल द्वारा सुरोह - विरोह के वध का उल्लेख )
विल वास्तुसूत्रोपनिषद ६.८(विल के कर्म होने का उल्लेख)
विलक्ष कथासरित् ८.१.५९
विलम्ब स्कन्द ३.१.३८, कथासरित् ८.४.८३(कालकम्पन दवारा हत चार योद्धाओं में से एक)
विलापध्वज भविष्य ३.२.१४
विलास नारद १.६६.९२(विलासिनी : मुसली विष्णु की शक्ति विलासिनी का उल्लेख), योगवासिष्ठ ५.६५+ (विलास का भास से संवाद), लक्ष्मीनारायण १.३१९.१११(विलासा , ४.६२, कथासरित् ७.६.४२(विलासपुर के राजा विनयशील द्वारा यौवन प्राप्ति के प्रयत्न तथा धूर्त वैद्य द्वारा अन्य को राजा बनाने का वृत्तान्त), ८.१.५७(सूर्यप्रभ द्वारा ताम्रलिप्ति की राजकन्या विलासिनी की प्राप्ति), ८.३.१९४(सुमेरु - अनुज की पुत्री विलासिनी द्वारा सूर्यप्रभ के दर्शन का उल्लेख ) vilaasa/ vilasa
विलोभना पद्म ६.१८८(केशव ब्राह्मण - पत्नी, पति द्वारा हत्या, जन्मान्तर में शुनी व शश बनना, गीता के १४वें अध्याय के माहात्म्य का प्रसंग )
विवस्वत भागवत ८.२४
विवस्वान् कूर्म १.४३.२१(श्रावण मास के विवस्वान् सूर्य की रश्मि संख्या), नारद १.११६.२८, भविष्य १.५७.१(विवस्वान् हेतु मधु, मांस, मद्य बलि का उल्लेख), ३.४.८(देवयाजी - पुत्र, सुशीला - पति, कुष्ठ प्राप्ति, सूर्य उपासना से आरोग्य प्राप्ति), ३.४.१८(संज्ञा विवाह प्रसंग में विवस्वान् का बलि से युद्ध, विवस्वान् द्वारा संज्ञा की प्राप्ति ), स्कन्द ५.३.१९१.१४ vivasvaan/ vivasvan
विवाद स्कन्द ६.३६.३१(विवाद हेतु संसृष्टम् इति जप का निर्देश),
विवाह अग्नि १२१.२(विवाह हेतु राशि, ग्रह व नक्षत्र विचार), १५४(विवाह के प्रकार व शुभ काल का निर्णय), गणेश २.७०.५(गणेश द्वारा विघ्नों के नाश के पश्चात् काशीनरेश द्वारा मगधराज - सुता से सुत का विवाह करना), २.१०९.१०(गणेश के सिद्धि - बुद्धि से विवाह का वृत्तान्त), गरुड १.६२(विवाह हेतु प्रशस्त व अप्रशस्त राशियां), १.९५(विवाह के प्रकार), २.२६.२१(ब्राह्म विवाह-संस्कृत वधू की पिण्डोदक क्रिया भर्तृगोत्र में तथा अन्यों की पितृगोत्र में करने का निर्देश), ३.२८.१३४(विवाह काल में पिष्टदेवी, चण्डाल देवी आदि की पूजा की व्यर्थता), गर्ग १.१६.१८(भाण्डीर वन में राधा - कृष्ण का विवाह), नारद १.२६(विवाह हेतु कन्या के लक्षण, विवाह के ८ भेदों का कथन), १.५६.३९४(विवाह हेतु प्रश्न लग्न, कन्या लक्षण व काल विचार ; मण्डप व वेदी के लक्षण, कुण्डली लक्षण आदि), २.२८.६१(विवाह विधि के कथनानुसार गुरु - शिष्य के वधू - वर होने का कथन), पद्म १.४३, १.५२, ४.१०, ६.३२, ६.११८.५(कन्या के विवाह के उचित समय का कथन ; विभिन्न कालों में कन्या के सोम, गन्धर्व, आदित्यों द्वारा भोग का कथन), ६.१८५(सुनन्द के प्रसंग में विवाह मण्डप ग्राम), ब्रह्म १.९०, १.९५, २.३, २.९५, ब्रह्मवैवर्त्त ४.१५(राधा व कृष्ण का विवाह), ४.३८+ (गौरी व शंकर का विवाह), ४.४४(शिव - पार्वती का विवाह), ४.१०७(रुक्मिणी व कृष्ण का विवाह), ब्रह्माण्ड २.३.६६(पुरूरवा व उर्वशी का विवाह), ३.४.१५.४(ललिता विवाह), भविष्य १.७(विवाह के प्रकार व फल), १.१८२(विवाह के प्रकार, कन्या भेद), ३.४.७.८(विवाह के लिए तुम्बुरु की आराधना?), मत्स्य २३(चन्द्रमा का दक्ष - कन्याओं से विवाह), मार्कण्डेय ७१(विवाह के संदर्भ में ग्रहों की दृष्टि), ७५.५४/७२.५४(रेवती कन्या द्वारा रेवती नक्षत्र के योग में विवाह का आग्रह),११३.२३/११०.२३(नाभाग द्वारा वैश्य कन्या से राक्षस विवाह का कथन), वराह २२(गौरी विवाह), वामन ५३(शिव व उमा का विवाह), विष्णु ३.१०.१६(विवाह हेतु स्त्री के लक्षण), ५.३५(साम्ब का विवाह), विष्णुधर्मोत्तर २.८७, ३.११९.४(विवाह काल में प्रद्युम्न की पूजा), ३.३२९(धर्म), शिव २.१.१६(शिव व सती का विवाह), २.२.१६+ (शिव व सती का विवाह), २.३.३७+ (शिव व पार्वती का विवाह), २.३.४८, ३.१, स्कन्द १.१.२४.६२, १.२.२४+ (शिव विवाह), १.२.२५, १.२.६०.७(घटोत्कच द्वारा कामकटङ्कटा से विवाह के पूर्व उसकी शतों को पूरा करने का वृत्तान्त), २.१.८(श्रीनिवास व लक्ष्मी का विवाह), २.१.३१(शङ्कर का विवाह), २.२.५९.६१?(नीलवृषभ के विवाह के माहात्म्य का कथन), २.४.३१.२२(तुलसी का विवाह), ३.१.१७(कक्षीवान् का विवाह), ३.२.६.३२(विवाह के ८ प्रकार, वर्ण अनुसार शर, प्रतोद, वस्त्र आदि धारण का नियम), ३.२.१०.४८, ४.१.३७(विवाह योग्य कन्या के लक्षण), ४.१.३६.८२(विवाह हेतु उत्तम पत्नी के लक्षण), ४.१.३८.१(विवाह के प्रकार), ५.३.१९४.४२(श्री व श्रीपति के विवाह यज्ञ में ऋत्विज आदि के नाम), ५.३.१९४.७१(नारायण व श्री के विवाह में नारायण के पाद पङ्कजों से उत्पन्न जल में अवभृथ स्नान होने का कथन), हरिवंश २.१२७.२१, महाभारत अनुशासन ४४, योगवासिष्ठ ३.१०६(चण्डाली का विवाह), ६.१.१०६(लीला विवाह), लक्ष्मीनारायण १.३५(विवाह विधि,पत्नीव्रत ब्राह्मण का पतिव्रता कन्या से विवाह), १.१५५.५६(विवाह की दृष्टि से अलक्ष्मी के क्षार भूमि सदृश होने का उल्लेख), १.२०५, १.२१०.२६(नारद के सृंजय - पुत्री मालावती से विवाह विधि का वर्णन), १.२६७.२(चैत्र शुक्ल द्वितीया को ब्रह्मा के विवाह का उल्लेख), १.३३९, १.३८२, १.३८५.३०(विवाह में विभिन्न देवियों द्वारा प्रदत्त वस्तुएं), १.३९९, १.४१३.१०८(वेश्याओं के क्षणगान्धर्व विवाह का कथन), १.५७५(कन्या दान हेतु भागवती दीक्षा का वर्णन ; कन्या का आचार्य रूपी वर को दान?), २.१७२(अग्नि कार्य से रहित विवाह विधि), २.१७५.६३(विवाह में गुरु के बलशाली होने का उल्लेख), २.२७९, २.२९६, ३.१०५, ३.१६८, ४.२२, कथासरित् १२.३६.१९०(मृगाङ्कदत्त व शशांकवती के विवाह की संक्षिप्त विधि ) vivaaha/ vivaha
विविंशति महाभारत उद्योग १६०.१२१
विवित्सु भविष्य ३.३.३२
विविधि लक्ष्मीनारायण ३.३२.२२(अद्भुत अग्नि - पुत्र, अर्क - पिता),
विवेक पद्म २.८.६७(शान्ति व क्षमा - पति, धारणा, धी व योग का पिता, आत्मा को बोध देना), भविष्य १.४१+, मार्कण्डेय ३७(अलर्क द्वारा आत्मविवेक), योगवासिष्ठ २.११.५८(विवेक वृक्ष के भोग और मोक्ष फल), ३.५३.३२(अविवेक रूप ज्वर की उष्णता रहने तक विवेक चन्द्रमा के उदित न होने का उल्लेख), ३.९९.६(विवेक द्वारा संसार अटवी में भ्रमण करते हुए मन रूपी महाकाय पुरुषों को देखने का आख्यान), ६.२.४८(विवेक का माहात्म्य), ६.२.९७(विवेक का विरलत्व), लक्ष्मीनारायण १.२८३.३८(विवेक के भ्राताओं में अनन्यतम होने का उल्लेख ), २.५२, ३.१८६.७८, ४.१०१.११२ viveka
विश वायु ३१.६
विशल्या पद्म ३.१३, ब्रह्म २.१००(विभीषण द्वारा मणिकुण्डल वैश्य के सञ्जीवन हेतु विशल्यकरणी का प्रयोग), ब्रह्माण्ड २.३.१३.१२(विशल्यकरणी), स्कन्द ५.३.२२.३४(शल्य - भेदित नर्मदा - पुत्र को विशल्य करने के कारण कपिला नदी का नाम ), लक्ष्मीनारायण १.५६४, कथासरित् ७.५.९०, vishalyaa
विशाख अग्नि ३०५(विशाखयूप तीर्थ में विष्णु का अजित नाम), मत्स्य १५९.२(स्कन्द के विशाख नाम का कारण), लिङ्ग १.४९.६७(विशाख वन में किन्नर आदि का वास), १.५०.१०(विशाख पर्वत पर गुह का वास), वामन ६८, ६९, ९०.६(विशाखयूप तीर्थ में विष्णु का अजित नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर ३.७१, कथासरित् १.६.३३(विशाखिल वणिक् की शिक्षा से मृत मूषक से धन प्राप्ति की कथा ), ८.७.१८२, द्र. वंश वसुगण vishaakha/ vishakha
विशाखा गर्ग ३.९.२३(राधा - सखी विशाखा का राधा की भुजाओं से प्राकट्य), ४.१९.४२(यमुना सहस्रनामों में से एक), ५.१७.१६(विशाखा यूथ की गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), देवीभागवत ७.३०.६५(विशाखा/विपाशा पीठ में अमोघाक्षी देवी का वास), पद्म ५.७०.६(कृष्ण - पत्नी, पूर्व दिशा में स्थिति), वामन ९२.२७(वामन विराट् रूप में भ्रूमध्य में विशाखा की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ७.४.१२.२९(विशाखा गोपी की कृष्ण से विरह पर प्रतिक्रिया ), वा.रामायण ६.१०२.३५(राम-रावण युद्ध के समय विशाखा नक्षत्र पर मंगल ग्रह की स्थिति का कथन), vishaakhaa/ vishakha
Comments on Vishaakhaa
विशाल अग्नि ११५, गणेश २.१०.१०(महोत्कट गणेश द्वारा अक्षतों में छिपे विशाल आदि पांच राक्षसों का वध), गरुड १.८४.३४(विशाल द्वारा गया में पिण्डदान से पुत्र प्राप्ति), नारद २.४४.२६(विशाल राजा द्वारा गया में पिण्ड दान करते समय सित, असित आदि पितरों का प्राकट्य), भागवत ९.२.३३(तृणबिन्दु व अलम्बुषा - पुत्र, वैशाली नगरी की स्थापना), मार्कण्डेय ६९, ११९, १२६, वराह ७ (विशाल नगर के राजा विशाल द्वारा पुत्रार्थ गया में श्राद्ध), ४८.६(विशाल द्वारा तप, नर - नारायण से संवाद, द्वादशी व्रत), ७७, स्कन्द ४.२.८३.१०२(विशाल तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), वा.रामायण १.४७(इक्ष्वाकु व अलम्बुषा - पुत्र, विशाला पुरी की स्थापना), लक्ष्मीनारायण १.५२७, १.५४६, २.१४०.१३, ९२(वैशाल प्रासाद के लक्षण), २.१४१.६७, २.२५०.६४विशालिक, ४.६५विशालरेख, कथासरित् ८.४.७५(चक्रवाल विद्याधर द्वारा हत ४ राजाओं में से एक), १२.२८.३(विशालापुरी में अनङ्गमञ्जरी कन्या द्वारा पति को त्याग अन्य का वरण करने का वृत्तान्त ) vishaala/ vishala
विशाला नारद १.५०.३५, पद्म २.७७(अश्रुबिन्दुमती - सखी, ययाति से संवाद), वामन ५७.८३(विशाला द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), ७२.१५, ८१, स्कन्द २.३.५-८, ५.१.४७(विशाला पुरी के नाम का हेतु, शिव द्वारा पार्वती के लिए विशाला पुरी का निर्माण ), लक्ष्मीनारायण १.२०९.४७, vishaalaa/ vishalaa
विशालाक्ष गर्ग ७.१०.२०(तैलङ्ग - राजा व मन्दारमालिनी - पति विशालाक्ष द्वारा प्रद्युम्न को भेंट),
विशालाक्षी देवीभागवत ७.३८(अविमुक्त क्षेत्र में विशालाक्षी देवी की स्थिति), नारद २.३२(विरोचन - पत्नी विशालाक्षी द्वारा ब्राह्मण वेश धारी विष्णु का सत्कार, स्व आयु दान), भविष्य ३.२.२, स्कन्द ४.१.४१.१७२(षडङ्ग योग के अधिपतियों में द्वितीय), ४.२.७०.४(विशालाक्षी देवी का माहात्म्य), ४.२.७४.५६ (विशालाक्ष गण द्वारा काशी में पश्चिम द्वार की रक्षा), ७.१.६१(वैष्णवी देवी का रूप, माहात्म्य, ललिता व उमा उपनाम), लक्ष्मीनारायण १.२५२.३६(हेममाली यक्ष की पत्नी ) vishaalaakshee/ vishalakshi
विशिष्ट अद्वैत लक्ष्मीनारायण ४.२५.७७
विशुक्र ब्रह्माण्ड ३.४.१०.८०(विशुक्र की भण्डासुर के दक्षिण पार्श्व से उत्पत्ति), ३.४.२७(भण्डासुर - भ्राता व सेनानी, ललिता देवी की सेना के आगे जय यन्त्र का निर्माण, पलायन, गणपति से युद्ध), ३.४.२८.३७(विशुक्र का श्यामा से युद्ध व मृत्यु ), लक्ष्मीनारायण ३.११५.२८ vishukra
विशुद्ध द्र. मन्वन्तर
विशेष विष्णु १.२.४५(तन्मात्राओं की अविशेष संज्ञा का उल्लेख), १.२.५१(पांच इन्द्रियों की विशेष संज्ञा का कारण ), महाभारत शान्ति २१७.७(विशेष की परिभाषा ), आश्वमेधिक ४७.१३(महाभूतविशाखश्च विशेषप्रतिशाखवान्), vishesha
विशोक पद्म १.२१(विशोक द्वादशी व्रत में देह में गोविन्द का न्यास), भविष्य ४.३८(विशोक षष्ठी व्रत में आदित्य पूजा), ४.८४(विशोक द्वादशी व्रत, लक्ष्मी नाम व पूजा), मत्स्य ७५(विशोक सप्तमी व्रत), ८१(आश्विन् द्वादशी नामक विशोक द्वादशी व्रत में विष्णु का न्यास व लक्ष्मी पूजा), १२१.१३(विशोक वन में मणिधर यक्ष का निवास), लिङ्ग १.१२.१०, वामन ५८.६७(विशोक द्वारा मुसल से असुर संहार), शिव ३.१.१५(२०वें रक्त नामक कल्प में ब्रह्मा के ४ पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.५७३, vishoka
विशोका वामन ५७.९२(इन्द्र तीर्थ द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण का नाम), लक्ष्मीनारायण ३.७.७९,
विश्रवा भविष्य ३.४.१३, ३.४.१५, भागवत ४.१.३६, ७.१.४३, मत्स्य १४५.९२(तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक), वायु ७०.३२, शिव २.१.१७, स्कन्द ३.१.४७, ४.१.१३,५.३.४१, ५.३.१६८.९, ७.१.२०, वा.रामायण ७.२.३१(पुलस्त्य - पुत्र, निरुक्ति ), ७.९, लक्ष्मीनारायण १.५६२, vishravaa
विश्रामगुप्त लक्ष्मीनारायण ३.८९.६२
विश्रान्ति पद्म ६.२१३(विश्रान्ति तीर्थ का माहात्म्य, कुशल विप्र की दुराचारा पत्नी का वृत्तान्त), वराह १५२, १६३.१९, १६३.६८(विश्रान्ति संज्ञक विष्णु की मूर्ति में उदय काल में वराह तेज की व्याप्ति), १६७(विश्रान्ति तीर्थ में ब्रह्मराक्षस की मुक्ति की कथा ) vishraanti/ vishranti
विश्राम द्र. देवविश्राम, द्युविश्राम
विश्लेषण अग्नि ३४८.११
विश्व पद्म १.२०.१३५(विश्व व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), भविष्य ४.१९०(विश्वचक्र दान विधि), भागवत ७१५?, मत्स्य १०१.८३(विश्व व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), २८५(विश्वचक्र दान विधि), वामन ९०.२५(प्लक्षावतरण में विष्णु का विश्व नाम), वायु ६८.४/२.७.४(महाविश्व : दनु व कश्यप के १०० मुख्य पुत्रों में से एक), शिव २.५.३६.१३(शङ्खचूड - सेनानी, आदित्यों से युद्ध), स्कन्द ४.२.६१.११३(विश्व तीर्थ का माहात्म्य ), ५.२.५३(विश्वेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य के संदर्भ में विदूरथ राजा के विभिन्न योनियों में जन्म लेने और अन्त में लिङ्ग के दर्शन से मुक्त होने, लिङ्ग में ब्रह्माण्ड के दर्शन का वर्णन), ५.३.१९८.६५(अपर? तीर्थ में देवी की विश्वकाया नाम से स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.८१.१०६(विश्वायन), ४.१०१.११७वैश्वी vishva
विश्वकर्मा अग्नि ५१, कूर्म १.४३.६(बुध ग्रह पोषक सूर्य रश्मि), गणेश २.९५.२(विश्वकर्मा का गणेश के दर्शन हेतु आगमन, पार्वती व गणेश की स्तुति, गणेश को सूर्य तेज से निर्मित परशु आदि भेंट करना), देवीभागवत ५.८.१८(विश्वकर्मा द्वारा देवी को परशु भेंट करना), ब्रह्म १.४७, १.६७, ब्रह्मवैवर्त्त १.१०(विश्वकर्मा का घृताची से नीति - धर्म विषयक संवाद, परस्पर शाप), ४.१७, ब्रह्माण्ड ३.४.१५.२०(विश्वकर्मा द्वारा ललिता को अङ्कुश भेंट), ३.४.३१(विश्वकर्मा द्वारा ललिता के भवन का निर्माण), भविष्य १.७९, १.१२१, ३.४.१९.५५(गन्ध तन्मात्रा के अधिपति के रूप में विश्वकर्मा का उल्लेख), ३.४.२०.१७(परा प्रकृति के देवों में से एक), ३.४.२५.३३(ब्रह्माण्ड के श्रवण से विश्वकर्मा की उत्पत्ति, विश्वकर्मा द्वारा रैवत मन्वन्तर की रचना), भागवत ८.१०.२९(विश्वकर्मा का मय से युद्ध), मत्स्य ५, लिङ्ग १.६०.२३(विश्वकर्मा नामक सूर्य रश्मि द्वारा बुध ग्रह का पालन), वामन ५४(विश्वकर्मा द्वारा शिव व पार्वती के लिए गृह का निर्माण), ६३.७५(विश्वकर्मा को ऋषि से वानरत्व शाप की प्राप्ति), ६४, विष्णुधर्मोत्तर ३.७१(विश्वकर्मा की मूर्ति का रूप), शिव २.५.३६.९(विश्वकर्मा का शङ्खचूड - सेनानी मय से युद्ध), स्कन्द १.१.२४, ३.२.१५, ४.२.८६(त्वष्टा - पुत्र, गुरु दक्षिणा प्राप्ति के लिए शिव की आराधना, शिल्प कला की प्राप्ति), ४.२.९७.६९(विश्वकर्मेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.११, ७.१.५८.३२(रावण द्वारा विश्वकर्मा की अंग संस्कार हेतु नियुक्ति का उल्लेख), ७.१.१९२(विश्वकर्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), वा.रामायण १.१७.१२(विश्वकर्मा का नल वानर रूप में अवतरण), ६२०, लक्ष्मीनारायण १.२००.७(ब्रह्मा की नाभि से विश्वकर्मा की उत्पत्ति का उल्लेख ), १.२९९, १.४७७(त्वष्टा - पुत्र, गुरु दक्षिणा प्राप्ति के लिए शिव की आराधना, शिल्प कला की प्राप्ति), १.४८६, २.५०, २.१४२.१०, २.१५७.२०, २.१६७, ३.१००.१३४, द्र. वंश वसुगण, vishvakarmaa
विश्वकेतु भविष्य ३.४.२०
विश्वक्सेन गरुड २.७.१०२(संतप्तक ब्राह्मण के विष्वक्सेन गण बनने का वृत्तान्त), ३.५.२८(घ्राणाभिमानी देवों में से एक), ३.८.१३(वायु-पुत्र विश्वक्सेन द्वारा हरि-स्तुति), नारद १.६७.१००(हरि के उच्छिष्ट भोजी के रूप में विश्वक्सेन का नामोल्लेख), भागवत ८.१३.२३(विश्वक्सेन अवतार : विश्वसृज व विषूची - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर ३.३५४(द्विज, शिव लिङ्ग से नृसिंह रूप के प्राकट्य का प्रसंग), हरिवंश १.२०.२८(ब्रह्मदत्त - पुत्र, पूर्व जन्म में विभ्राज ), द्र. विष्वक्सेन vishvaksena
विश्वग भागवत ४.१.१४
विश्वजित् भागवत ८.१५.५(विश्वजित् यज्ञ में बलि राजा के लिए रथ आदि का प्रकट होना - ततो रथः काञ्चनपट्टनद्धो हयाश्च हर्यश्वतुरङ्गवर्णाः। ध्वजश्च सिंहेन विराजमानो हुताशनादास हविर्भिरिष्टात्॥), महाभारत अनुशासन १०६.५०(प्रति मास एक बार जल पीकर रहने से विश्वजित् यज्ञ के फल की प्राप्ति का उल्लेख -संवत्सरमिहैकं तु मासिमासि पिबेदपः। फलं विश्वजितस्तात प्राप्नोति स नरो नृप।। ) vishvajit
विश्वज्योति अग्नि १०७
विश्व, तैजस, प्राज्ञ पद्म २.३९.२१(विश्व, तैजस आदि की परिभाषा )
विश्वदत्त कथासरित् २.२.१५८(विश्वदत्त द्वारा श्रीदत्त - पत्नी मृगाङ्कवती की रक्षा करने का कथन), ६.७.३७(कनिष्ठ विश्वदत्त द्वारा भ्राताओं की आज्ञा का पालन कर विपत्तियों से पार होने की कथा, छिन्न पाद - पाणि की पुन: प्राप्ति आदि ) vishvadatta
विश्वदेव गणेश २.१०५.७(विश्वदेव असुर का विप्र रूप धारण कर आगमन, गणेश द्वारा विश्वेश नारायण का रूप धारण कर दर्शन देना), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९५(शाक्त देवगण ) vishvadeva
विश्वधर ब्रह्म २.१८(विश्वधर वैश्य के पुत्र के मरण पर शोक से मय का द्रवित होना), वामन ९०.५(गोकर्ण तीर्थ में विष्णु का विश्वधारण नाम ) vishvadhara
विश्वनन्दी शिव ३.१
विश्वनाथ स्कन्द ३.१.३४
विश्वप्रिया लक्ष्मीनारायण १.३११.३६
विश्वभावन शिव ३.१
विश्वभुक् गरुड १.८७(स्वायम्भुव मन्वन्तर में इन्द्र), ब्रह्माण्ड १.२.३०(विश्वभुक् इन्द्र द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान, उपरिचर वसु के पतन की कथा), वायु ५७.९१(विश्वभुक् इन्द्र द्वारा त्रेतायुग में हिंसायुक्त यज्ञ का अनुष्ठान, उपरिचर वसु के पतन की कथा), विष्णुधर्मोत्तर १.१७६(प्रथम मन्वन्तर के इन्द्र ) vishvabhuk
विश्वभुजा स्कन्द ४.२.७०.२३(विश्वभुजा देवी की महिमा), ४.२.७८+ (धर्मपीठ में पार्वती की विश्वभुजा नाम से स्थिति व पूजा विधि), ४.२.८०.६ (धर्मपीठ में विश्वभुजा देवी की स्थिति, तृतीया तिथियों में विश्वभुजा देवी की पूजा व व्रत की विधि ) vishvabhujaa
विश्वम्भर गरुड २.६.५०(विश्वम्भर वैश्य का लोमश ऋषि से संवाद), नारद १.३६.३८(दुष्ट वैश्य विश्वम्भर द्वारा विष्णु मन्दिर में सेवा कार्य से यज्ञमाली ब्राह्मण बनना), स्कन्द ४.१.२०.११(विश्वम्भर शब्द की निरुक्ति ), लक्ष्मीनारायण २.१०५.२८ vishvambhara
विश्वमुखी स्कन्द ५.३.१९८.८४
विश्वमूर्ति नारद १.६६.९५(विश्वमूर्ति विष्णु की शक्ति क्लिन्ना का उल्लेख),
विश्वरथ ब्रह्म १.८.५६(विश्वामित्र के पुत्रों में से एक?), हरिवंश १.२७.४४(विश्वामित्र का उपनाम ) vishvaratha
विश्वरन्धि देवीभागवत ७.८
विश्वरूप गरुड ३.२२.८१(अन्तर में विश्वरूप की स्थिति का उल्लेख), देवीभागवत ६.१(त्वष्टा - पुत्र, विशीर्ष, इन्द्र द्वारा वध, तीन मुखों से पक्षियों का निष्क्रमण), पद्म ६.२४३, ब्रह्म २.९५(विष्टि - पति, गण्ड, हर्षण आदि पुत्र, हर्षण द्वारा परिवार के लिए भद्रता प्राप्ति), २.९८(त्वष्टा - पुत्र, अभिष्टुत राजा के हयमेध में विघ्नकारी असुरों के हनन का उद्योग), २.१०३(विश्वरूप का महाभीम आकार ; भीम तनु का ध्यान करके अग्नि में आहुति से वृत्र का जन्म), ब्रह्मवैवर्त्त ४.४७, ब्रह्माण्ड १.२.१३.९४(अजित देवगण में से एक), ३.४.९.१२ (विश्वरूप के देवों के पुरोहित बनने पर इन्द्र द्वारा वध), भागवत ६.६, ६.७(त्वष्टा - पुत्र, देवों द्वारा गुरु रूप में वरण), ६.९(त्रिशीर्ष विश्वरूप का वर्णन, इन्द्र द्वारा वध), वामन ८२.४०(विश्वरूपाक्ष : चक्र द्वारा कर्तित शिव के ३ भागों में से एक), ९०.१२(कशेरु देश में विष्णु का विश्वरूप नाम से वास), वायु २३.३६(विश्वरूप कल्प नाम व वर्णन), १.२३.८५/ २३.७८(अजा के विश्वरूप होने का उल्लेख), ३१.७, ६५.८५(त्वष्टा व यशोधरा - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर ३.८३(विश्वरूप की मूर्ति का रूप), ३.११९.१०(विश्वरूप की शिल्पारम्भ काल में पूजा), ३.३४९, ३.३५१ (वासुदेव द्वारा विश्वरूप को स्व - विभूति का वर्णन), शिव २.४.२०, स्कन्द १.१.१५, ५.१.२७.१८, ५.१.२८.४४(विश्वरूप की करीकुण्ड पर आराधना), ५.२.३४.२(विश्वरूप का कुशध्वज से साम्य ?), योगवासिष्ठ ६.२.८३, लक्ष्मीनारायण १.४८.५(त्वष्टा व रचना - पुत्र, इन्द्र द्वारा वध की कथा ), १.१०८, १.५७४, vishvaroopa/ vishvaruupa/ vishvarupa
विश्वविजय कथासरित् १२.३६.१९६
विश्ववेदा मत्स्य ५१.२५ (विश्ववेदा अग्नि का ब्राह्मणाच्छंसी उपनाम),
विश्ववेद्य मार्कण्डेय ११७(खनित्र का मन्त्री )
विश्वव्यचा लिङ्ग १.६०.२३(सूर्य की विश्वव्यचा रश्मि द्वारा शुक्र ग्रह का पोषण ) vishvavyachaa
विश्वशर्मा वायु ७२.८३
विश्वसेन स्कन्द ५.१.४१.१८
विश्वश्रवा कूर्म १.४३.६(सूर्य की विश्वश्रवा रश्मि द्वारा शुक्र ग्रह का पोषण )
विश्वस्फूर्ज भविष्य ३.४.२३.८४(पुरञ्जय व पुरञ्जनी - पुत्र, विष्णु का अंश )
विश्वा नारद १.६६.९२(कुशी विष्णु की शक्ति विश्वा का उल्लेख), पद्म १.४०.९२(धर्म व विश्वा से १० विश्वेदेवों की उत्पत्ति), भविष्य ३.४.२०.२३(विश्वेदेवों को जन्म देने वाली शक्ति विश्वा का कथन), भागवत ६.६.७(धर्म की १० पत्नियों में से एक, दक्ष-कन्या, विश्वेदेवों की माता), मत्स्य ५.१७(धर्म व विश्वा के पुत्रों के रूप में विश्वेदेवों का उल्लेख), ६.४६(विश्वा व कश्यप से यक्षों-राक्षसों की उत्पत्ति का उल्लेख), १३.२९(विश्वेश्वर में देवी के विश्वा नाम का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१९८.६७(विश्वेश्वर में देवी के विश्वा नाम का उल्लेख), ७.१.१०८.६(दक्ष की ६० कन्याओं में से एक तथा धर्म-पत्नी विश्वा द्वारा ८ वसुओं को जन्म देने का कथन), हरिवंश ३.१४.५०(विश्वेदेवों की धर्म व विश्वा से उत्पत्ति), महाभारत शान्ति ३१८.३७(विश्वा के गुणों में व्यक्त होने वाली त्रिगुणमयी अव्यक्त प्रकृति तथा अविश्व के निष्कल पुरुष होने का कथन), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०५(कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, अश्ववाहन व श्रुति – माता)
विश्वाची गरुड १.१६६.४२(वायु प्रकोप का नाम), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१३(विश्वाची अप्सरा की सूर्य रथ में स्थिति ), हरिवंश १.३०.९१, योगवासिष्ठ ४.१०.५४, द्र. रथ सूर्य vishvaachee/ vishvachi
विश्वानर भविष्य ३.४.१६ शिव ३.८,स्कन्द ४.१.१०.४४(शुचिष्मती - पति विश्वानर मुनि की गृहस्थ धर्म में आस्था, विश्वेश्वर/वीरेश्वर शिव की कृपा से वैश्वानर पुत्र प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण १.४५९, vishvaanara/ vishvanara
विश्वान्तर कथासरित् १६.३.८(विश्वान्तर चक्रवर्ती के इन्दीवर नामक पुत्र के शोक से मरण का कथन)
विश्वामित्र कूर्म १.२०.३९(विश्वामित्र द्वारा वसुमना राजा को मुक्ति के उपाय का कथन), १.२२.६८(विश्वामित्र द्वारा जयध्वज राजा को नारायण माहात्म्य का कथन), गणेश १.१९.२६, ३.७.७१(विश्वामित्र द्वारा हरि-स्तुति), गरुड ३.७.७१(विश्वामित्र द्वारा हरि-स्तुति), देवीभागवत ३.१७.६(विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ की गौ के हरण की चेष्टा), ६.१०, ६.१३.३५(विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ के यजमान हरिश्चन्द्र को यातनाएं देने पर वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र को बक होने का शाप, विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ को प्रतिशाप), ७.१३+ (विश्वामित्र का स्वपत्नी से वार्तालाप, विश्वामित्र द्वारा उपकारी त्रिशङ्कु को सशरीर स्वर्ग भेजने की कथा), पद्म १.१९.२५९(हेमपूर्ण उदुम्बर की प्राप्ति व मृणाल चोरी पर विश्वामित्र की प्रतिक्रिया), १.४०.८७(साध्यगण में से एक), ब्रह्म १६, १.८.५८(विश्वामित्र के पुत्रों के नाम), २.२३(विश्वामित्र तीर्थ का माहात्म्य, दुर्भिक्ष में विश्वामित्र द्वारा श्व मांस भक्षण की चेष्टा, श्येन रूपी इन्द्र द्वारा मांस का हरण, इन्द्र द्वारा वृष्टि करना), २.७७(विश्वामित्र द्वारा तप में विघ्नकर्त्री गम्भीरातिगम्भीर अप्सरा-द्वय को शाप), २.१०२, २.१०३.३(दाक्षिणेयी गङ्गा के वासिष्ठी व उत्तरी गंगा के वैश्वामित्री होने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१६८(जार / उपपति के निन्दित, अवैदिक एवं विश्वामित्र द्वारा निर्मित होने का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.४७.४८(परशुराम के अश्वमेध यज्ञ में होता), २.३.६३.८८(विश्वामित्र की त्रिशङ्कु पर कृपा), २.३.६६.५८(चरु विपर्यास से विश्वामित्र के जन्म का वृत्तान्त, विश्वरथ अपर नाम वाले विश्वामित्र के पुत्रों के नाम), भविष्य १.१६.५६(प्रतिपदा व्रत से विश्वामित्र द्वारा ब्राह्मणत्व प्राप्ति का कथन), ३.४.२१.१३(गोत्रकार ऋषियों में एक, पाठकी? - पति), ४.१३०.९(त्रिशङ्कु के लिए नई सृष्टि के प्राणियों के नाम, दीप दान से कल्याण), भागवत ९.१६.२९(विश्वामित्र द्वारा १०० पुत्रों में से ५० को शाप व ५० को वरदान, शुन:शेप की देवरात नाम से पुत्र रूप में स्वीकृति), मत्स्य १९८(विश्वामित्र का वंश, गोत्र/प्रवर), मार्कण्डेय ७(दक्षिणा के विषय में विश्वामित्र - हरिश्चन्द्र संवाद), ८.२४१/८.२३४(विश्वामित्र की निरुक्ति – विश्वत्रय जिससे मैत्री करने में सक्षम न हो), ९(आडि - बक युद्ध), वामन ३९, ४०(सरस्वती द्वारा वसिष्ठ का अपवहन), ९०.३३(घटित? में विष्णु का विश्वामित्र नाम), वायु ९१.९४( शुनःशेप की संक्षिप्त कथा, विश्वामित्र के पुत्रों/गोत्रों के नाम), विष्णु ४.७(गाधि से विश्वामित्र की उत्पत्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर १.३४(च्यवन की कृपा से विश्वामित्र का भावी ब्राह्मणत्व), १.११४(गोत्रकार विश्वामित्र), स्कन्द १.१.१८.७८(बलि द्वारा विश्वामित्र को दान में उच्चैःश्रवा अश्व व वसिष्ठ को कामधेनु आदि देने का कथन), १.२.२९.१२३( विश्वामित्र द्वारा कुमार की स्तुति), १.३.१.६.८१(विश्वामित्र की शोणाद्रि के दक्षिण में स्थिति का उल्लेख), २.४.१२.४७(व्याध द्वारा विश्वामित्र से कार्तिक माहात्म्य श्रवण, मुक्ति), २.८.५(कौत्स द्वारा गुरु विश्वामित्र को दक्षिणा देने की कथा), ३.१.२३.२७(यज्ञ में प्रतिप्रस्थाता, वसिष्ठ ब्राह्मणाच्छंसी आदि), ३.१.३९(विश्वामित्र द्वारा कपि तीर्थ में तप, रम्भा को शाप से शिला बनाना), ३.१.४९.६४(विश्वामित्र इत्यादि द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ६.४+ (विश्वामित्र द्वारा त्रिशङ्कु के साथ तीर्थयात्रा, त्रिशङ्कु के स्वर्ग प्रापक यज्ञ का अनुष्ठान, नूतन सृष्टि रचना), ६.३२.५१(हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर विश्वामित्र की प्रतिक्रिया), ६.४२+ (विश्वामित्र कुण्ड की उत्पत्ति, विश्वामित्र द्वारा मेनका के प्रणय अनुरोध को अस्वीकार करने पर जरा प्राप्ति का शाप - प्रतिशाप, कुण्ड में स्नान से मुक्ति), ६.४५(तपोरत विश्वामित्र द्वारा त्रिपुष्कर के दर्शन, तीन पुष्करों के लक्षण, बृहद्बल राजा से भेंट), ६.९०.५४(विश्वामित्र द्वारा दुर्भिक्ष में शुन: मांस भक्षण की चेष्टा, अग्नि का अदृश्य होना), ६.१६५, ६.१६७(विश्वामित्र की उत्पत्ति का वर्णन, वसिष्ठ की गौ की याचना, वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र की पराजय, तप के लिए वन गमन), ६.१६८(विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ वधार्थ कृत्या उत्पन्न करना, कृत्या का नष्ट होना), ६.२१२(विश्वामित्र तीर्थ का माहात्म्य, रत्नाक्ष नृप की कुष्ठ से मुक्ति), ६.२१४.१९(विश्वामित्र द्वारा ब्राह्मणत्व प्राप्ति हेतु गणपति पूजा), ६.२६९.१२१(विश्वामित्र ह्रद में स्नान से इन्द्र के हाथ से वृत्र कपाल का मोचन, ब्रह्महत्या से मुक्ति), ७.१.२५५(हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर विश्वामित्र की प्रतिक्रिया), ७.१.२८९(विश्वामित्र द्वारा स्थापित पातालगङ्गेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश १.१२, १.२७.४४(उपनाम विश्वरथ, पत्नियों व पुत्रों के नाम), महाभारत शल्य ४२.४(वसिष्ठ आश्रम पूर्व में तथा विश्वामित्र आश्रम पार्श्व/पश्चिम में होने का कथन, सरस्वती द्वारा वसिष्ठ को बहाकर लाने की कथा), योगवासिष्ठ १.६+ (राक्षस विनाश हेतु दशरथ से राम की प्राप्ति की कथा), वा.रामायण १.१८.३९+ (विश्वामित्र द्वारा दशरथ से राम की मांग), १.२०, १.५१, १.५२(राजा विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ की कामधेनु प्राप्ति की लालसा का प्रसंग), १.५५+ (कामधेनु द्वारा सृष्ट सेना से विश्वामित्र की पराजय, तप, वसिष्ठ पर अस्त्र प्रयोग, ब्रह्मदण्ड से पराजय), १.५७(विश्वामित्र द्वारा दक्षिण दिशा में तप, त्रिशङ्कु का यज्ञ कराना), १.६०(त्रिशङ्कु हेतु नई सृष्टि की रचना), १.६१(विश्वामित्र द्वारा पश्चिम दिशा में पुष्कर में तप, यज्ञ - पशु शुन:शेप की रक्षा, मेनका द्वारा तपोभङ्ग), १.६३.२६(विश्वामित्र द्वारा उत्तर दिशा में तप, रम्भा द्वारा विघ्न व शाप प्राप्ति), १.६५(विश्वामित्र द्वारा पूर्व दिशा में तप, ब्राह्मणत्व प्राप्ति), १.६५(वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र के ब्राह्मणत्व की स्वीकृति), लक्ष्मीनारायण १.२५६, १.४१०, १.४९५, १.५०६, २.८२, ३.९४, कथासरित् ६.६.९८(विश्वामित्र - निर्मित इक्षुमती पुरी वा नदी का उल्लेख ) vishvaamitra/ vishvamitra/vishwamitra
विश्वायु पद्म १.४०(मरुतों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.१३६.२२(पुरूरवा व उर्वशी - पुत्र ) vishvaayu/ vishvayu
विश्वार्चि लक्ष्मीनारायण १.३११.४४
विश्वावसु गरुड १.४१.१(विश्वावसु गन्धर्व का कन्याओं पर आधिपत्य), ३.९.४(अजानज देवों में से एक), देवीभागवत २.८+ (विश्वावसु गन्धर्व व मुनि, विश्वावसु व मेनका से प्रमद्वरा कन्या का जन्म), पद्म १.४०.९०(वसु व धर्म के ८ पुत्रों में से एक), ब्रह्म २.६२ (पिप्पला - भ्राता, शापित भगिनी की मुक्ति का उद्योग), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१०(विश्वावसु गन्धर्व की सूर्य रथ में स्थिति), भविष्य ३.२.१५.२६ (विश्वावसु राजपुत्र का उल्लेख), भागवत ४.१८.१७(गन्धर्वों द्वारा पृथिवी दोहन में विश्वावसु के वत्स बनने का उल्लेख), ११.१६.३३, मत्स्य १७१.४६, महाभारत वन २७९.४२(कबन्ध के पूर्वजन्म में विश्वावसु गन्धर्व होने का उल्लेख), वामन ५९, ६९, स्कन्द २.२.७(विश्वावसु शबर द्वारा विद्यापति को नीलमाधव का दर्शन कराना), ३.१.४, ३.२.१०(विश्वावसु गन्धर्व की कन्याओं का वणिजों द्वारा ग्रहण), ५.१.३१(सुनेत्र - पुत्र, यवक्रीत शाप से पिता की हत्या, किम्पुन: तीर्थ में स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्ति), ६.१८७(पुलस्त्य - पुत्र, ब्रह्मा के यज्ञ में पशु मांस भक्षण से राक्षसत्व की प्राप्ति, भोजन की व्यवस्था), ६.१९७, ७.३.१४, ७.४.१७.१३(द्वारका के पूर्व में विश्वावसु गन्धर्व की स्थिति का उल्लेख), हरिवंश ३.५.२५(इन्द्र के कृत्य से कुपित जनमेजय की विश्वावसु द्वारा शान्ति), वा.रामायण ७.५, ७.६१.१७ (विश्वावसु व अनला से उत्पन्न कन्या कुम्भीनसी के मधु असुर की भार्या बनने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४०८.१२(विश्वावसु गन्धर्व द्वारा तप करके नारद को उपबर्हण पुत्र रूप में प्राप्त करना), १.५११, ४.१०१.११७, कथासरित् ४.२.४७(विश्वावसु की कन्या के जीमूतवाहन की भार्या बनने का वृत्तान्त), ८.५.६९(विश्वावसु के क्षेत्र में बुध से उत्पन्न भद्रङ्कर का उल्लेख), १२.२३.३९(विश्वावसु की सुता मलयवती के जीमूतवाहन की भार्या बनने का वृत्तान्त ), ऋ. १.१७६.३, ६.४५.८, ९.१८.४, ९.९०.१, vishvaavasu/ vishvavasu
विश्वास अग्नि २१४.१६(संवत्सर? में विश्वास के धन होने का उल्लेख), शिव ३.१३(विश्वासनर की शुचिष्मती पत्नी व गृहपति पुत्र का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३१९.९, १.४०२.२८(विश्वासघात के संदर्भ में धर्मगुप्त, ऋक्ष व सिंह का आख्यान), ३.१९८.३३(विश्वास न करने योग्य पात्रों का वर्णन ) vishvaasa/ vishvasa
विश्वेदेव/विश्वेदेवाः गरुड १.२१९.३(श्राद्ध में वसु सत्य संज्ञक विश्वेदेवों का आह्वान ), ३.५.३८(रैवन्तेय आदि दस रुद्रों व पुरूरवा आदि १० विश्वेदेवों के नाम), देवीभागवत ४.२२.४०(विश्वेदेवों के द्रौपदी - पुत्रों के रूप में अवतरण का उल्लेख), नारद १.११९.५०(पौष शुक्ल विश्वेदेव दशमी पूजा, विश्वेदेवों के क्रतु, दक्ष आदि नाम), पद्म १.६.१७(विश्वा – पुत्र), १.९.१३६ (पितृश्राद्ध में विश्वेदेवों की पूजा की विधि), १.४०.९२(विश्वेदेवों की धर्म व विश्वा से उत्पत्ति, दक्ष, पुष्कर आदि १० नाम), ६.६.९२(विश्वेदेवों का जालन्धर - सेनानी जम्भ से युद्ध), ६.४०, ६.४१.४४(विश्वेदेवों द्वारा सुकेतुमान को पुत्रदा एकादशी व्रत का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.१२.२९(धिष्ण्य अग्नियों में वैश्वदेव अग्नि की ब्राह्मणाच्छंसी संज्ञा - ततोऽग्निर्वैश्वदेवस्तु ब्राह्मणाच्छंसिरुच्यते ), २.३.३.३०(१० विश्वेदेवों के नाम), २.३.१२.३ (विश्वेदेवों की उत्पत्ति, श्राद्ध में स्थान), भविष्य १.५७.२०(विश्वेदेवों हेतु ओदन बलि का उल्लेख), ३.४.२०.२३(विश्वेदेवों को जन्म देने वाली शक्ति विश्वा का कथन), भागवत २.३(राज्य प्राप्ति की कामना हेतु विश्वेदेवों की उपासना), ६.६.७(विश्वा व धर्म-पुत्र विश्वेदेवों के अप्रजा होने का उल्लेख), ८.१०.३४(विश्वेदेवों के पौलोमों से युद्ध का उल्लेख - विश्वेदेवास्तु पौलोमै रुद्राः क्रोधवशैः सह ।), मत्स्य ५.१७(धर्म व विश्वा के पुत्रों के रूप में विश्वेदेवों का उल्लेख), १७.१४(श्राद्ध में विश्वेदेवों की यव व पुष्पों द्वारा अर्चना का निर्देश, अर्चन मन्त्र - विश्वान् देवान् यवैः पुष्पैरभ्यर्च्यासनपूर्वकम्।। पूरयेत्पात्रयुग्मन्तु स्थाप्य दर्भ पवित्रकम्।), १८?(विश्वेदेवों का सपिण्डीकरण श्राद्ध में स्थान), २३.२२(चन्द्रमा के राजसूय में चमसाध्वर्यु), १७१.४८(विश्वेदेवों की विश्वा व धर्म से उत्पत्ति, दक्ष, पुष्कर आदि नाम), २०३.१२(विश्वेदेवों के क्रतु, दक्ष आदि नाम), मार्कण्डेय ७.६२(५ विश्वेदेवों द्वारा हरिश्चन्द्र के प्रति करुणा प्रकट करना, विश्वामित्र द्वारा विश्वेदेवों को मनुष्य योनि प्राप्त करने का शाप, विश्वेदेवों का द्रौपदी-पुत्रों के रूप में अवतरण), लिङ्ग १.७४.३(विश्वेदेवों द्वारा रौप्य लिङ्ग की पूजा), वामन ६६.३१, ६९.५७(विश्वेदेवों का विष्वक्सेन के नेतृत्व में कालनेमि से युद्ध), वायु ३१.८( ), ६६.३१(१० विश्वेदेवों के क्रतु, दक्ष आदि नाम), १०१.३०/२.३९.३०(विश्वेदेव आदि की भुव: लोक में स्थिति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.१२(विश्वेदेवों में रोचमान की श्रेष्ठता का उल्लेख), १.८२(खण्डयुगेश्वर), १.२३९.४(रावण द्वारा द्रष्ट विश्वरूप पुरुष के कटिभाग में विश्वेदेवों के स्थित होने का उल्लेख), २.९२.१(स्मार्त अग्नि पर वैश्वदेव कर्म की विधि), ३.१७६(विश्वेदेव दशमी पूजा कथन तथा दस विश्वेदेवों के नाम), ३.३२१.१४(स्वाचार से वैश्वदेव लोक की प्राप्ति), शिव २.१.१२.३२(विश्वेदेवों द्वारा रौप्य लिङ्ग की पूजा), ३.२९, स्कन्द १.२.१३.१५१(शतरुद्रिय प्रसंग में विश्वेदेवों द्वारा रौप्यज लिङ्ग की जगतांपतिं नाम से पूजा), ३.१.४९(विश्वेदेवेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ३.१.४९.८२(विश्वेदेवों द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ६.२०६.५४ (इन्द्र के प्रेत श्राद्ध में न आने पर इन्द्र द्वारा विश्वेदेवों को शाप, विश्वेदेवों के अश्रुओं से कूष्माण्ड की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा विश्वेदेवों को उत्शाप), ६.२५२.३५(चातुर्मास में विश्वेदेवों की मधूक वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), हरिवंश ३.१४.५०(विश्वेदेवों की धर्म व विश्वा से उत्पत्ति, नाम), ३.५३.१०(विश्वेदेवों का वृषपर्वा से युद्ध), ३.५९, महाभारत शान्ति १५.१७(लोक में विश्वेदेव इत्यादि हन्ता प्रवृत्ति के देवों की अर्चना होने का उल्लेख), २९.२२(आविक्षित/मरुत्त के सत्रयाग में विश्वेदेवों के सभासद होने का उल्लेख), ३१७.५(मुख से प्राणों के उत्क्रमण पर विश्वेदेवों के लोक की प्राप्ति का उल्लेख), अनुशासन ६०.१७(तृतीय सवन के वैश्वदेव होने का उल्लेख), ९३.९२(१४२.३५)(विश्वामित्र द्वारा स्वयं के नाम की निरुक्ति : विश्वे-देवा मेरे मित्र इत्यादि), १५०.१८(लोक में कर्म के साक्षी देवों में एक), आश्वमेधिक १०.३०(विश्वेदेवों के लिए बहुरूप बलि का निर्देश), ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३४८(गौ के दोनों पार्श्वों में विश्वेदेवों की स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२७५.३५(पौष शुक्ल दशमी के संदर्भ में १० विश्वेदेवों के नाम), १.४४१.८९(वृक्ष रूपी श्रीहरि के दर्शन हेतु विश्वेदेवों के मधूक वृक्ष बनने का उल्लेख), १.५४३.७८(दक्ष द्वारा विश्वेदेवों को अर्पित ८ कन्याओं के नाम ), २.१५७.२१(विश्वेदेवों का ऊरुओं में तथा पितरों का जानुमध्य में न्यास), ३.१०१.६९(पीत धेनु दान से पितृलोक तथा कर्बुरा दान से विश्वेदेव लोक प्राप्ति का उल्लेख), ४.९५.१३(१० विश्वेदेवों के नाम), vishvedeva
विश्वेश्वर पद्म १.४०(सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.५१(विश्वेश्वर शिव से सर्वाङ्ग की रक्षा की प्रार्थना), शिव ४.२२(काशी में शिव लिङ्ग), स्कन्द ४.१.३३.१६९(शिव देह के दक्षिण कर का रूप), ४.१.४१.१७२ (षडङ्ग योग के देवताओं में प्रथम), ४.२.९६.३०(विश्वेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ४.२.९८+ (विश्वेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ५.२.५३.२३ (विश्वेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, विदूरथ राजा के १२ दुष्ट जन्मों का वृत्तान्त, विश्वेश द्वारा लिङ्ग की स्थापना ) vishveshwara/ vishveshvara
विष
अग्नि
२५५.४५(विष
द्वारा
दिव्यता/सत्यानृत
परीक्षा),
२९५
(विषहर
मन्त्रन्यास
आदि),
२९७(विष
हरण
मन्त्र
व
ओषधि),
गणेश
२.८८.३२(दुन्दुभि
दैत्य
द्वारा
गणेश
को
विषयुक्त
फल
देना),
२.९१.२(कूट
दैत्य
द्वारा
जल
को
विषयुक्त
करना),
गरुड
१.२७(विष
नाशन
मन्त्र),
पद्म
६.२०६.५५,
भविष्य
१.३५(सर्प
विष
का
शरीर
में
विस्तार
व
चिकित्सा),
मत्स्य
२१९(विष
युक्त
पदार्थों
से
राजा
की
रक्षा
का
उपाय),
२१९.१७(सविष
अन्न
के
धूम
से
विभिन्न
पक्षियों
की
दशा
का
कथन),
विष्णुधर्मोत्तर
२.२७(विष
निवारक
ओषधियां),
३.३२८.६३(विष
द्वारा
सत्य
परीक्षा),
स्कन्द
१.२.४४.४४(विष
द्वारा
पुरुष
की
दिव्यता
परीक्षा),
१.२.६२.१३(बाल
रूप
धारी
रुद्र
द्वारा
कालिका
के
क्रोध
रूपी
दुग्ध
का
पान,
क्रोध
का
रुद्र
के
कंठ
का
विष
बनने
का
कथन),
२.२.१६,
४.१.४१.११०(नित्य
सोम
कला
से
शरीर
के
पूर्ण
होने
पर
तक्षक
के
विष
का
भी
प्रभाव
न
होने
का
उल्लेख),
४.२.६८.८१(विष
व
व्याधिहारक,
सुख
सौभाग्य
दायक
मणिकुण्ड
का
उल्लेख),
६.४०.२७(विष
विद्या
विचक्षण
मङ्कणक
ऋषि
के
हाथ
से
शाकरस
स्रवण
व
दर्प
भङ्ग
की
कथा),
हरिवंश
१.२६,
महाभारत
आदि
१२७.५७(१३८.२७)(जङ्गम
विष
द्वारा
स्थावर
विष
के
नाश
का
कथन
-
ततोऽस्य
दश्यमानस्य
तद्विषं
कालकूटकम्।
हतं
सर्पविषेणैव
स्थावरं
जङ्गमेन
तु।।),
उद्योग
१६.२६(नहुष
की
दृष्टि
में
तेजोहर
विष
होने
का
कथन
-
तेजोहरं
दृष्टिविषं
सुघोरं
मा
त्वं
पश्येर्नहुषं
वै
कदाचित्।देवाश्च
सर्वे
नहुषं
भृशार्ता
न
पश्यन्ते
गूढरूपाश्चरन्तः
।।),
योगवासिष्ठ
१.२९.१३(विषय
रूपी
विष
का
निरूपण),
लक्ष्मीनारायण
१.३७०.८२(नरक
में
विष
कुण्ड
प्रापक
कर्मों
का
उल्लेख),
२.७७.४८(हीरक
दान
से
विष
जन्य
पाप
के
नष्ट
होने
का
कथन
-
हीरकस्य
प्रदानेन
विषजन्यमघं
तु
यत्
।।),
२.१७६.६६(ज्योतिष
में
योग
),
२.२०९.३१विषतुरीय,
३.२१३(मङ्गलदेव
चर्मकार
की
भक्ति
से
प्रसन्न
भगवान्
द्वारा
स्वयं
आकर
विष
नाश
करने
की
कथा),
३.१६६,
४.३०विषलाणी
visha
विषकन्या स्कन्द ६.६१+ (वृक राजा की कन्या, पूर्व जन्म में गौ हत्या से विषकन्या, तप से पार्वती - सखी बनना ), ७.३.१४, लक्ष्मीनारायण १.४९० vishakanyaa
विषय पद्म २.८६.७०(, भविष्य ३.२.२१विषयी, भागवत ११.१३(प्राणियों द्वारा विषय भोग का कारण), ११.२१.१९, वायु १०२.३६/२.४०.३६(विषय – अविषय का क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ, ब्रह्मा – क्षेत्र आदि से तादात्म्य), स्कन्द ३.१.४९.४१(विषय की व्याल रूप में कल्पना), ३.१.४९.४४(विषय की क्रूर पर्वत से उपमा), लक्ष्मीनारायण २.७८.३९(विषयों का दास रूप में उल्लेख ), २.२५५.४७, ४.४४.६५, vishaya
विषाङ्ग ब्रह्माण्ड ३.४.१०.८१(विषाङ्ग दैत्य के भण्डासुर के वाम अंश से उत्पत्ति), ३.४.२१.४९(भण्डासुर - अनुज, ललिता के सम्बन्ध में अग्रज को परामर्श), ३.४.२५, ३.४.२८.३७(विषाङ्ग का दण्डनाथा से युद्ध व मृत्यु ), लक्ष्मीनारायण ३.११५.२९ vishaanga/ vishanga
विषाण भविष्य १.२२.४०(गणेश के विषाण भूत – भवितव्य के प्रतीक), १.२२.४३, द्र. शृङ्ग
विषुव ब्रह्माण्ड १.२.२१.६८(सूर्य की उत्तर, दक्षिण व विषुव गतियों का वर्णन), १.२.२१.१४७(शृङ्गवान् पर्वत के संदर्भ में विषुव काल की महिमा का वर्णन), मत्स्य ५३.५१(विषुव काल में मत्स्य पुराण आदि दान का निर्देश), विष्णु २.८.६५(१५ मुहूर्त के दिन का वैषुवत नाम), २.८.६७(शरद व वसन्त के मध्य विषुव होने का उल्लेख), २.८.७४(मेषादि व तुलादि में विषुव होने का उल्लेख), स्कन्द ७.१.२०१.४टीका(महाश्मशान में विषुव स्नान की परिभाषा : जहां श्वास - नि:श्वास समान रहे), लक्ष्मीनारायण ३.१२५.२०(विषुव अयन पर तुला पुरुष दान विधि का वर्णन ) vishuva
विषुवत वायु ५०.१९९(शृङ्गवान् पर्वत के संदर्भ में सूर्य की विषुवान् स्थिति का वर्णन व महत्त्व), विष्णु २.८.७४(शृङ्गवान् पर्वत के संदर्भ में कार्तिक व वैशाख के विषुवत कालों में दान का निर्देश आदि), लक्ष्मीनारायण २.१५७.८(विषुवत् का अङ्गुलियों में न्यास ), कथासरित् १२.६.९७(विष्णुपद से विषुवती वितस्ता के प्राकट्य का उल्लेख ) vishuvata
विषूची भागवत ५.१५.१५(विरज - भार्या, १०० पुत्र), ८.१३.२३(विश्वसृज - पत्नी, विश्वक्सेन अवतार की माता), योगवासिष्ठ १.१७.४२(तृष्णा की विषूचिका से उपमा), २.१२.१(विषूचिका की संसार विष से उत्पत्ति, वर्णन), ३.६९.१४(विषूचिका बीज मन्त्र का कथन), ६.१.७८.११(संसृति नामक विषूचिका का उल्लेख ) vishuuchee/ vishoochee/ vishuchi
विषूचीन भागवत ४.२५.५५
विष्कम्भ मत्स्य १२८.५७(सूर्य आदि ग्रहों के विष्कम्भ मान )
विष्टप भविष्य ३.४.२४.७७(भूत विष्टप की कलियुग के तृतीय चरण में नरों द्वारा पूर्ति ), ३.४.२४.८०, द्र. त्रिविष्टप vishtapa
विष्टर ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.२६(विष्टर श्रव से वायव्य दिशा की रक्षा की प्रार्थना )
विष्टि नारद १.५६.२०८(विष्टि वृक्ष की ज्येष्ठा नक्षत्र से उत्पत्ति), ब्रह्म २.९५(सूर्य - पुत्री, विश्वरूप - पत्नी, गण्ड, हर्षण आदि की माता, हर्षण द्वारा तप से माता - पिता के लिए भद्रता प्राप्ति), भविष्य ४.११७(विष्टि व्रत : विष्टि को भद्रा करने का उपाय), मत्स्य ११, लक्ष्मीनारायण २.१६२.२(विष्टि जातीय शिबिका वाहक भक्त शतोढु का वृत्तान्त), ४.३४(विष्टि जातीया नारियों की कृष्ण भक्ति तथा विद्रुमा स्त्री की भक्ति की पराकाष्ठा का वर्णन ) vishti
विष्णु
अग्नि १,
२१.२०(विष्णु
पूजा विधि),
२३(विष्णु
पूजा विधि),
३६(विष्णु
हेतु पवित्रारोपण विधि),
४८(विष्णु
के २४ विग्रहों के शंख,
चक्र,
गदा,
पद्म
अनुसार
लक्षण),
४९(विष्णु
के मत्स्यादि
अवतारों की प्रतिमाओं के
लक्षण),
६३.१(विष्णु
प्रतिष्ठा विधि),
१८९(विष्णु
का देह में न्यास),
१९६(विष्णु
का देह में न्यास),
२१४.३१
(ब्रह्मणो
हृदये स्थानं कण्ठे विष्णुः
समाश्रितः । तालुमध्ये स्थितो
रुद्रो ललाटे तु महेश्वरः
॥),
२७०(विष्णु
पञ्जर स्तोत्र का कथन),
३०५(तीर्थ
अनुसार विष्णु के ५५ नाम,
विष्णु
का देह में न्यास),
३०७(विष्णु
के त्रैलोक्य मोहन मन्त्र का
वर्णन),
३७४.२८(अष्टदलकमल
में विष्णु
का स्वरूप),
कूर्म
१.४३.२२(पौष
मास में सूर्य का नाम व रश्मि
संख्या),
२.३८.९(विष्णु
द्वारा शिव -
भार्या
का रूप धारण कर शिव के साथ
विचरण,
विप्रों
का कुपित होना),
गणेश
२.४७.३(विष्णु
द्वारा बौद्ध रूप धारण कर
दिवोदास -
पालित
काशी के जनों को मोह में डालना,
दिवोदास
को चतुर्भुज रूप दिखाना),
गरुड
१.८(विष्णुपूजोपयोगि
वज्रनाभमण्डल
निरूपण ),
१.१३
(विष्णु
पञ्जर स्तोत्र),
१.१५(विष्णु
सहस्रनाम),
१.१६.१(विष्णु
का ध्यान),
१.३०(विष्णु
परिवार सहित श्रीधर पूजा
मन्त्र),
१.३१(विष्णु
परिवार सहित विष्णु की पूजा,
स्तोत्र),
१.४३(विष्णु
हेतु पवित्र आरोपण विधि),
१.१९४(वैष्णव
कवच-
विष्णुर्मामग्रतः
पातु कृष्णो रक्षतु पृष्ठतः
।इति),
१.२१३.६६(आहवनीय
अग्नि का रूप
-
ब्रह्मा
वै गार्हपत्याग्निर्दक्षिणाग्निस्त्रिलोचनः
।
विष्णुराहवनीयाग्निः
कुमारः सत्य उच्यते ॥),
१.२२७+
(विष्णु
पूजा के महत्त्व का कथन),
१.२३२(
शिव
द्वारा नारद को कुलामृत
विष्णु
स्तोत्र का कथन),
१.२३४.५०(ब्रह्मा
-
प्रोक्त
चक्रधार
विष्णु
स्तोत्र),
२.३०.३९(आतुर
हेतु विष्णु पूजा),
३.११.१९(विष्णु
की नाभि से उत्पन्न पद्म की
महिमा का कथन -
तस्य
नाभेरभूत्पद्मं सौवर्णं
भुवनाश्रयम् ।
तत्प्राकृतं
च विज्ञेयं भूदेवी त्वभिमानिनी
॥),
३.२२.५(विष्णु
के ३२ लक्षण,
४
वर्णों में विष्णु की स्थिति,
वाहन),
३.२२.७९(गोष्ठ
में विष्णु की स्थिति का उल्लेख
-
गोष्ठे
च नित्यं विष्णुरूपी हरिस्तु
अश्वे सदा तिष्ठति वामनाख्यः
।),
देवीभागवत
१.४.४८+(विष्णु
द्वारा ब्रह्मा से शक्ति के
महत्त्व का निरूपण),
१.५(महालक्ष्मी
के शाप से विष्णु का शिरहीन
होना,
हयग्रीव
बनना,
हयग्रीव
दैत्य का वध),
१.९(विष्णु
से युद्ध में अम्लान रहने पर
देवी द्वारा मधु-कैटभ
को सम्लान करना,
मधु-कैटभ
द्वारा विष्णु को वरदान से
मृत्यु),
५.८.७०(विष्णु
के तेज से देवी की बाहुओं की
उत्पत्ति-
अष्टादशभुजाकारा
बाहवो विष्णुतेजसा ।
वसूनां
तेजसाङ्गुल्यो रक्तवर्णास्तथाभवन्
॥),
६.१८?,९.३(महाविष्णु
का महाविराट् रूप में राधा
से प्राकट्य),
नारद
१.२.२१(नारद
–सनत्कुमार
संवाद में
विष्णु की महिमा
का कथन),
१.१३(विष्णु
पूजा का महत्त्व),
१.३४(विष्णु
अर्चना का माहात्म्य),
१.३५(वेदमालि
द्वारा जानन्ति से विष्णुअर्चना
विषयक ज्ञान प्राप्ति),
१.३८(उत्तङ्क
द्वारा विष्णु की स्तुति),
१.३९(विष्णु
अर्चन की महिमा
– वीतिहोत्र – जयध्वज संवाद),
१.४२.२२(अनन्त
विष्णु की उत्पत्ति का निरूपण),
१.४७.५५
(विष्णु
की धारणा हेतु विष्णु के स्वरूप
का कथन
– केशिध्वज-खाण्डिक्य
संवाद),
१.६६.८६(विष्णु
के नामों से सम्बद्ध शक्तियों
के
नाम),
१.७०.४८(विष्णु
के चक्र,
शङ्ख
आदि आयुधों के वर्ण/रंग),
१.७०.८६(विष्णु
के ४ भेद-
त्रैलोक्यमोहनस्तेषां
प्रथमः परिकीर्तितः ।।
श्रीकरश्च
हृषीकेशः कृष्णश्चात्र
चतुर्थकः ।।),
१.७१.११४(विष्णु
रक्षा कवच का वर्णन -
माधवो
मे कटिं पातु गोविन्दो गुह्यमेव
च।
नाभिं
विष्णुश्च मे पातु जठरं
मधुसूदनः ।।),
१.१२०(विभिन्न
नामों से एकादशी तिथियों
में
विष्णु की पूजा),
२.५३.१०+
(इन्द्रद्युम्न
द्वारा पुरुषोत्तम
की स्तुति),
पद्म
१.१४(शिव
द्वारा विष्णु की भुजा के रक्त
को ब्रह्मकपाल में ग्रहण करना,
नर
की उत्पत्ति ),
१.२०.८३(विष्णु
व्रत की
संक्षिप्त विधि व
माहात्म्य),
१.३०.३(विष्णु
का स्व:
लोक/वैकुण्ठ
में वास,
बाष्कलि
के यज्ञ में वामन के आगमन की
कथा),
१.७२(माधव
द्वारा हर रूप धारी मधु दैत्य
का वध,
मधुसूदन
नाम प्राप्ति),
१.७५.८४(विष्णु
के वराह रूप द्वारा हिरण्याक्ष
का वध,
देवों
द्वारा विजयनामक स्तोत्र
द्वारा विष्णु की स्तुति),
१.८३,
१.९९,
२.३९.१६(विष्णु
की निरुक्ति
-
एतत्सर्वं
जगद्व्याप्तं मया त्वव्यक्तमूर्तिना।
अतो
मां मुनयः प्राहुर्विष्णुं
विष्णुपरायणाः),
२.८६.८२(विष्णु
के रूप का कथन),
२.८७.५(विष्णु
का
सुपुत्रशत
नामक
स्तोत्र),
४.६.५(विष्णुरूपी
ब्राह्मण को गृहदान का फल -
विष्णवे
सौधगेहं यो दद्याद्वै ब्राह्मणाय
च।
हरेर्न्निकेतनं
प्राप्य स्वर्गवासी भवेद्ध्रुवम् ),
४.८.१६(विष्णु
द्वारा देवों को समुद्रमन्थन
का निर्देश),
४.१७.२५(विष्णु
पादोदक का माहात्म्य,
सुदर्शन
विप्र द्वारा दुष्कर्म से
काक योनि की प्राप्ति,
विष्णु
पादोदक से उद्धार),
४.२३(विष्णु
पञ्चक का माहात्म्य,
कार्तिक
के अन्तिम पांच दिनों का
माहात्म्य,
दण्डकर
शूद्र का उद्धार),
५.७०.६०(चार
दिशाओं में द्वारपाल रूप
विष्णु के स्वरूप),
५.१०३.२१(माधव
विष्णु
के
स्वरूप
का ध्यान),
६.६,
६.७१.११८(विष्णु
सहस्रनाम),
६.९८,
६.१११(सावित्री
शाप से विष्णु का कृष्णा नदी
बनना),
६.१२०.५९(विष्णु
से सम्बन्धित शालग्राम शिला
के लक्षणों का कथन),
६.१३२,
६.१७५,
६.२१९,
६.२२४(विष्णु
पूजा में स्वशरीर पर सुदर्शनादि
चिह्न अङ्कन),
६.२२७(विष्णु
का स्वरूप व महिमा),
६.२२७.५८(त्रिपाद्विभूति
रूप का विवेचन),
६.२५३(विष्णु
पूजा विधि
व वैष्णवाचार का वर्णन),
६.२५५.४४(भृगु
द्वारा शेषशायी विष्णु वक्ष
पर सव्यपाद का प्रहार),
७.१०(विष्णु
पूजा
के संदर्भ में माघमास व चम्पक
पुष्प
का माहात्म्य,
पूजा
विधान,
सुवर्ण
भूप का चरित्र),
७.११(विष्णु
पूजा विधि),
७.१७(दान्त
-
प्रोक्त
१०८ विष्णु नाम,
भद्रतनु
द्वारा विष्णु की स्तुति),
ब्रह्म
१.६५(विष्णु
लोक
का
वर्णन),
१.११०(विष्णु
द्वारा सूकर रूप में कोका नदी
में स्थित पितरों का उद्धार),
२.६६(विष्णु
द्वारा मौद्गल्य को भोग प्रदान),
२.९१.५७(आहवनीय
आदि ३ अग्नियों पर विष्णु के
शुक्ल आदि वर्णों का उल्लेख
-
शुक्लरूपधरो
विष्णुर्भवेदाहवनीयके।
श्यामो
विष्णुर्दक्षिणाग्नेः पीतो
गृहपतेः कवेः।।),
ब्रह्मवैवर्त्त
१.१७.१६(निरुक्ति
-
विषिश्च
व्याप्तिवचनो नुश्च सर्वत्रवाचकः
।।
सर्वव्यापी
च सर्वात्मा तेन विष्णुः
प्रकीर्त्तितः ।। ),
२.२७.१२५(विष्णु
याग का माहात्म्य),
२.५४.७(गोलोक
में महाविष्णु के आधार का
कथन),
३.८.१९(विष्णु
द्वारा विप्र वेश में शिव -
पार्वती
की रति को भङ्ग करना),
४.१२.२१(विष्णु
से मेहन
की रक्षा की प्रार्थना
-
वक्षः
पातु मुकुन्दश्च जठरं पातु
दैत्यहा ।
जनार्दनः
पातु नाभिं पातु विष्णुश्च
मेहनम् ।। ),
४.४७.८६(विष्णु
का शिशु रूप में इन्द्र के पास
जाना,
इन्द्र
व शिशु का संवाद),
४.९४.१०६
(विष्णु
के प्राण रूप होने का उल्लेख
-
प्राणो
विष्णुश्च विषयी मनो ब्रह्मा
च चेतना ।।),
ब्रह्माण्ड
२.३.७२.१४१(भृगु
-
पत्नी
का शिर काटने से विष्णु द्वारा
सात बार जन्म लेने के शाप की
प्राप्ति),
३.४.१५.२३(ललिता
को छत्र भेंट-
साम्राज्यसूचकं
छत्रं ददौ लक्ष्मीपतिः स्वयम्
।),
भविष्य
१.२०१(विष्णु
द्वारा ब्रह्मा से भास्करआराधनविधि
की पृच्छा),
२.१.१७.२(विष्णु
:
घृत
प्रदीपन में अग्नि का नाम -
घृतप्रदीपके
विष्णुस्तिलयागे वनस्पतिः
।।),
३.४.२५.२०(अज
के याम्य मुख से उत्पत्ति का
उल्लेख
-
अजस्य
याम्याज्जनितोऽहमादौ
विष्णुर्महाकल्पकरोऽधिकारी।),
भागवत
३.२६.६७(विष्णुर्गत्यैव
चरणौ नोदतिष्ठत् तदा विराट्
।),
८.२१(विष्णु
के अनुचर),
१०.६.२२(विष्णु
से भुजाओं की रक्षा की प्रार्थना
-
हृत्केशवस्त्वदुर
ईश इनस्तु कण्ठं विष्णुर्भुजं
मुखमुरुक्रम ईश्वरः कम् ॥),
१०.८९.८(भृगु
द्वारा विष्णु के वक्ष पर
पदाघात,
विष्णु
की त्रिदेवों में श्रेष्ठता),
मत्स्य
६९(विष्णु
का देह में न्यास),
८१(विष्णु
का देह में न्यास),
९९(विष्णु
का देह में न्यास),
१०१.३७(विष्णु
व्रत),
१०१.६४(विष्णु
व्रत),
लिङ्ग
१.१८(विष्णु
द्वारा शिव की स्तुति),
१.७४.२(विष्णु
द्वारा इन्द्रनीलमय लिङ्ग
की पूजा
-
इन्द्रनीलमयं
लिंगं विष्णुना पूजितं सदा।।
पद्मरागमयं
शक्रो हैमं विश्रवसः सुतः।।),
१.९८
(विष्णु
द्वारा सहस्रकमलों से सहस्रनाम
द्वारा शिव की पूजा की कथा,
सुदर्शन
चक्र की प्राप्ति),
वराह
४,
३१,
५५,
६२,
६७,
७२.५(विष्णु
की निरुक्ति -
विशप्रवेशने
धातुस्तत्र ष्णु प्रत्ययादनु
। विष्णुर्यः सर्वदेवेषु
परमात्मा सनातनः ।।),
१४०,
वामन
४.४१(वीरभद्र
द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस,
विष्णु
से युद्ध),
५७.६३(विष्णु
द्वारा स्कन्द को गणों की भेंट
-
स्थाणुं
ब्रह्मा गणं प्रादाद् विष्णुः
प्रादाद् गणत्रयम्।
संक्रमं
विक्रमं चैव तृतीयं च पराक्रमम् ),
६२.२१(विष्णु
के
हृदयकमल में
शिव का
वास),
७३(विष्णु
द्वारा कालनेमि से युद्ध व
वध),
८५.३१(गजेन्द्रकृत
विष्णु
स्तोत्र),
९०.८(ओषध
पर्वत पर विष्णु का विष्णु
नाम से वास,
अन्य
स्थलों पर अन्य नाम),
९०.३९(स्व:
लोक
में विष्णु की अव्यय विष्णु
नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख),
९४(विष्णु
के
विभिन्न नामों
की
अर्चना के फल),
वायु
९७.१४०(विष्णु
द्वारा भृगु -
भार्या
के वध पर भृगु द्वारा ७ बार
अवतार का शाप),
९८.६९(विष्णु
के क्रमिक अवतारों का वर्णन-
जज्ञे
पुनः पुनर्विष्णुर्यज्ञे च
शिथिले प्रभुः।),
१०४.८२(विष्णु
की वैष्णव पीठ की ह्रदय कमल
में स्थिति-शाक्तं
जिह्वाग्र धिषणं वैष्णवं
हृदयाम्बुजे।),
१०९.५/
२.४७.५
(हेति
असुर के वध हेतु विष्णु द्वारा
देवों से गदा की प्राप्ति,
गदाधर
नाम),
विष्णु
१.२२.१६(विष्णु
की विभूतियों
के रूप में राजाओं की अधिपति
पदों पर नियुक्ति),
१.२२.६७(विष्णु
के आयुधों के प्रतीकार्थ),
२.८.१००(विष्णु
के परम पद का निरूपण
-
अपुण्यपुण्योपरमे
क्षीणाशेषाप्तिहेतवः।
यत्र
गत्वा न शोचन्ति तद्विष्णोः
परमं पदम्),
३.८(विष्णु
आराधना की विधि :
सगर
-
और्व
संवाद),
५.१.३४(पृथ्वी
का भार हरण हेतु ब्रह्मा द्वारा
विष्णु/अज
की स्तुति,
श्याम
व सित केश रूप में अवतार),
विष्णुधर्मोत्तर
१.३(विष्णु
का यज्ञ वराह रूप),
१.१५.१२(हयशीर्ष
धारण कर रसातल से वेदों की
प्राप्ति,
जिष्णु-विष्णु
द्वारा मधु-कैटभ
का वध),
१.५३(विष्णु
द्वारा नृवराह
रूप में हिरण्याक्ष का वध),
१.६७(विष्णु
की शिव से श्रेष्ठता की स्पर्द्धा,
एक-दूसरे
के धनुष पर आरोपण की चेष्टा,
असफलता,
विष्णु
के चाप का परशुराम आदि को
स्थांतरण),
१.१२५.१६(विष्णु
द्वारा
चक्र से
कालनेमि का वध),
१.१९०(विष्णु
के अनेक रूप),
३.४७.३(विष्णु
की मूर्ति के रूप का निर्माण
-
प्रतीकार्थ),
३.६०(विष्णु
के
गदा आदि आयुधों के प्रतीकार्थ),
३.८१(पद्मनाभ
की प्रतिमा का रूप),
३.१०६.८३(विष्णु
के अवतारों के आवाहन मन्त्र),
३.१५१(चतुर्मूर्ति
व्रत – नर नारायण हय हंस अथवा
नर नारायण हरि कृष्ण ),
३.३४४(कश्यप-निर्मित
विष्णुस्तोत्र),
शिव
१.६+
(ईश्वरत्व
प्राप्ति के लिए विष्णु की
ब्रह्मा से स्पर्द्धा,
शिव
स्तम्भ के अन्त का अन्वेषण),
२.१.४,
२.१.६.४३(विष्णु
की शिव व शक्ति से उत्पत्ति
-
विष्ण्वितिव्यापकत्वात्ते
नाम ख्यातं भविष्यति।।),
२.१.७(विष्णु
की ब्रह्म से स्पर्द्धा,
वराह
रूप में लिङ्ग के अधोभाग का
अन्वेषण),
२.१.१०(विष्णु
का शिव आज्ञा से अनेक रूप धारण),
२.२.३९(क्षुव
राजा के निमित्त
विष्णु की दधीचि से कलह,
पराजय,
शाप
प्राप्ति),
२.५.३६.८(विष्णु
का शङ्खचूड -
सेनानी
दम्भ से युद्ध),
३.२२.४५(विष्णु
की समुद्र -
संजात
नारियों पर आसक्ति,
शिव
द्वारा वृषभ रूप में बोध),
स्कन्द
१.१.६.३३(ब्रह्मा
व विष्णु
द्वारा लिङ्ग -
अन्त
की खोज
में असफलता),
१.३.१.१.३१(वह्नि
-
स्तम्भ
के अन्त का अन्वेषण करने में
विष्णु की ब्रह्मा से स्पर्द्धा,
विष्णु
द्वारा वराह रूप धारण),
१.३.२.८(विष्णु
की शिव के वामाङ्ग से उत्पत्ति,
ब्रह्मा
से श्रेष्ठता की स्पर्द्धा),
१.३.२.१०(ज्योतिस्तम्भ
के अन्त का अन्वेषण करने का
प्रसंग),
२.१.३५.२७(विष्णु
का माहात्म्य),
२.२.१९.२१(विष्णु,
बलराम
आदि की दारुमूर्तियों में
क्रमशः चिह्नों का प्रकट
होना),
२.४.१६.१(जलंधर
के भय से देवों द्वारा विष्णु
की संकष्टनाशनस्तोत्र द्वारा
स्तुति),
२.४.२१(विष्णु
का जालन्धर से युद्ध,
वृन्दा
को माया का प्रदर्शन,
परस्पर
शाप),
२.४.२६(विष्णुदास
विप्र व राजा चोल की विष्णुभक्ति
में स्पर्द्धा),
३.१.१४.२५(विष्णु
की ब्रह्मा से श्रेष्ठता की
स्पर्द्धा,
लिङ्ग
अन्त का अन्वेषण),
३.१.३७.१०(विष्णु
द्वारा मुद्गल के लिए क्षीर
सर का निर्माण),
३.१.५०(विष्णु
द्वारा विप्र वेश में लक्ष्मी
कन्या का ग्रहण,
पुण्यनिधि
राजा द्वारा विष्णु का बन्धन),
३.२.१५.४१(विष्णु
द्वारा ब्रह्मा से अश्वशीर्ष
पतन शाप की प्राप्ति),
३.२.१५.२३(विष्णु
द्वारा धनुष धारण करके तप,
वम्रि
द्वारा ज्या छेदन से शिर कर्तन,
हय
शीर्ष से योजन),
४.१.८.९९(यम
द्वारा शिवशर्मा को विष्णु
के १०८ नामों का कथन),
४.१.२०.८(विष्णु
शब्द की निरुक्ति -
विष्लृव्याप्तावयंधातुर्यत्रसार्थकतां
गतः।।
ते
विष्णुनाम स्वरूपे हि
सर्वव्यापनशीलिनि ।।),
४.१.२३.४३(शिव
द्वारा विष्णु का अभिषेक),
४.१.२६.४८(शिव
के अङ्ग से विष्णु का प्राकट्य,
काशी
की उत्पत्ति),
४.२.५८.१७(विष्णु
पादोदक तीर्थ का माहात्म्य),
४.२.५८.८०(काशी
से दिवोदास के उच्चाटन के लिए
विष्णु का पुण्यकीर्ति ब्राह्मण
रूप में आना),
४.२.६१.२०७
(विष्णु
के १०० जलशायी रूपों,
२०
कमठ,
२०
मत्स्य,
१०८
गोपाल,
३०
परशुराम,
१०१
राम रूपों का उल्लेख),
४.२.६१.२१४(विष्णु
के विभिन्न रूपों की मूर्तियों
में भेद,
आयुध
अनुसार मूर्तियों के लक्षण
-
केशवादींश्चतुर्विंशद्भेदानाह
प्रजापतिः
।।),
४.२.६१.२४४(विष्णु
तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य),
४.२.९५.१८(एको
धर्मप्रदो विष्णुस्त्वेको
बह्वर्थदो हरिः ।
एकः
कामप्रदश्चक्री त्वेको
मोक्षप्रदोच्युतः ।। ),
४.२.९५.४६(काशी
में विष्णुकीर्तन से व्यास
का भुजस्तम्भन),
५.१.३(विष्णु
द्वारा शिव को भिक्षा रूप में
भुजा के रक्त का दान,
रक्त
नर की उत्पत्ति),
५.१.६३.७५(विष्णु
सहस्रनाम),
५.१.७०.३५(विष्णु
के दस नाम),
५.३.१३.४३
(माहेन्द्रमग्निकल्पं
च जयन्तं मारुतं तथा ।
वैष्णवं
बहुरूपं च ज्यौतिषं च चतुर्दशम्
॥
एते
कल्पा मया ख्याता न मृता येषु
नर्मदा ।,
५.३.१४.२१(भगरूपो
भवेद्विष्णुर्लिङ्गरूपो
महेश्वरः ॥ भाति सर्वेषु
लोकेषु गीयते भूर्भुवादिषु
।
प्रविष्टः
सर्वभूतेषु तेन विष्णुर्भगः
स्मृतः ॥
विशनाद्विष्णुरित्युक्तः
सर्वदेवमयो महान् ।
भासनाद्गमनाच्चैव
भगसंज्ञा प्रकीर्तिता ॥),
५.३.५५.२२(विष्णुस्तु
पितृरूपेण ब्रह्मरूपी पितामहः
।
प्रपितामहो
रुद्रोऽभूदेवं त्रिपुरुषाः
स्थिताः ॥),
५.३.१०३.६२(हेमन्तश्च
भवेद्विष्णुर्विश्वरूपं
चराचरम् ।
पालनाय
जगत्सर्वं विष्णोर्माहात्म्यमुत्तमम्
॥प्रावृट्
ब्रह्मा,
ग्रीष्म
रुद्र),
५.३.१४६.४३(पितरः
पितामहाश्चैव तथैव प्रपितामहाः
।
त्रयो
देवाः स्मृतास्तात
ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः ॥),
५.३.१४९.९(पौषे
नारायणं देवं माघमासे तु
माधवम् ।
गोविन्दं
फाल्गुने मासि विष्णुं चैत्रे
समर्चयेत् ॥),
५.३.१५७.१३(पूजायां
प्रीयते रुद्रो जपहोमैर्दिवाकरः
।
शङ्खचक्रगदापाणिः
प्रणिपातेन तुष्यति ॥),
५.३.१९१.१४(प्रलयकाल
में विष्णु द्वारा सौम्य दिशा
के तापन का उल्लेख),
५.३.२३१.२९(२८
वैष्णव तीर्थों की गणना),
६.१८०.२२(विष्णु
द्वारा अग्निष्टोम यज्ञ में
कृत्य -
अकृत्य
के परीक्षण का कथन),
६.२३९(विष्णु
की षोडशोपचार पूजा),
६.२४७(विष्णु
का शिव से एक्य,
चातुर्मास
में विष्णु का अश्वत्थ में
वास,
अश्वत्थ
की महिमा),
६.२६२.५४(शिव
पार्वती संवाद प्रसंग में
विष्णु का विराट् रूप),
७.१.१६५,
७.३.३४(विष्णु
की ब्रह्मा से स्पर्द्धा,
लिङ्गान्त
देखने की कथा,
शंकर
से वर प्राप्ति),
७.४.११(विष्णुपद
तीर्थ का माहात्म्य),
हरिवंश
१.४२.१(विष्णु
के वैभव का कथन
-
विश्वत्वं
शृणु मे विष्णोर्हरित्वं च
कृते युगे ।
वैकुण्ठत्वं
च देवेषु कृष्णत्वं
मानुषेषु च ।।),
२.१२५(मार्कण्डेय
-
प्रोक्त
हर-हरि
एक्य),
३.१०.४९(विष्णु
द्वारा एकार्णव में स्वमहिमा
का वर्णन),
३.६८+
(कश्यप
द्वारा विष्णु की स्तुति,
विष्णु
द्वारा कश्यप आदि को वर,
अदिति
गर्भ से वामन
रूप में प्राकट्य),
३.७१(
वामन
के विराट् रूप का वर्णन),
महाभारत
शान्ति ३४१.३५(नारायण,
वासुदेव
आदि नामों की निरुक्तियां),
अनुशासन
१०९.३(विभिन्न
मासों की द्वादशी तिथियों
में विष्णु की विभिन्न नामों
से अर्चना),
योगवासिष्ठ
१.१.६०(विष्णु
द्वारा विभिन्न स्रोतों से
शाप प्राप्ति का कथन),
६.१.१२८.१०(पादों
में
विष्णु का
न्यास
-
विष्णौ
तथात्मनः पादौ पायुं मित्रे
तथैव च ।),
लक्ष्मीनारायण
१.९.१(विष्णु
की
देह के अङ्गों का
स्वरूप),
१.८७(शिव
के निर्देश पर दिवोदास के
उच्चाटन हेतु विष्णु का काशी
गमन,
विष्णुपादोदकी
गंगा की प्रशंसा,
विष्णु
द्वारा छद्म वेश धारण आदि),
१.२०२.४०(विष्णु
की निरुक्ति :
विषिश्च
व्याप्तिवचनो नुश्च सर्वत्रवाचकः
।।
सर्वव्यापी
स वै विष्णुर्जीवदानं करोतु
वै ।),
१.२६५.८(विष्णु
के नाम व उनकी पत्नियां),
१.३३७(विप्ररूपधारी
विष्णु द्वारा शंखचूड दानव
से भिक्षा में कवच की प्राप्ति,
शंखचूड
रूप धारण कर तुलसी में वीर्याधान,
तुलसी
द्वारा विष्णु को शालग्राम
पाषाणशिला होने का शाप आदि),
१.४०७.२४(ख्याति
द्वारा इन्द्र के बन्धन पर
विष्णु द्वारा इन्द्र का
स्वरूप में आकर्षण करके ले
जाना व चक्र से ख्याति का वध,
भृगु
द्वारा विष्णु को शाप),
१.४४१.९२(वृक्षरूपी
कृष्ण के दर्शन हेतु विष्णु
के शालवृक्ष बनने का उल्लेख),
१.४६३.५८(गरुड
द्वारा विष्णु की बाहु पर
बैठकर गज-कच्छप
के भक्षण की कथा),
१.४८३.५३(त्रिदेवों
में विष्णु के हेमन्त होने
का उल्लेख -
विष्णुरुवाच
हेमन्तश्चाहं पुष्णामि सर्वथा
।।
पालनीयं
जगत् सर्वं ममाऽस्ति कार्यमुत्तमम्
।),
१.५६२.३५(राजा
विश्रवा द्वारा ओंकारेश्वर
क्षेत्र में कल्पवृक्ष में
विष्णु के दर्शन आदि),
२.१२६,
२.१४२.११(सुदर्शनकरा
सव्ये पद्महस्ता तु वामतः ।
एतद्
विष्णुनामकस्य रूपं सूर्यस्य
कीर्तितम् ।। ),
२.२६१.२८(विष्णु
की निरुक्ति
-
वेवेष्टि
व्याप्नोति चैषो व्यापको
विष्णुरुच्यते ।),
२.२७०.६४(अमरकन्या
द्वारा तप से महाविष्णु का
दर्शन व विवाह),
३.२१.६३(विष्णुनदीतट
पर भक्ति या तप में श्रेष्ठता
का विवाद),
३.२५.२९(प्रसविष्णु
असुर द्वारा भक्तों से लक्ष्मी
की भिक्षायाचना),
३.६०.२८(विष्णु
भक्ति की अपेक्षा हरि भक्ति
की श्रेष्ठता का उल्लेख
-
अन्यभक्तसहस्रेभ्यो
विष्णुभक्तो विशिष्यते ।
विष्णुभक्तसहस्रेभ्यो
हरेर्भक्तो विशिष्यते ।।),
३.१६४.७
(बाष्कलि
दैत्य वध हेतु विष्णु के प्रथम
अवतार का कथन),
४.२६.५१(विष्णु
के विभिन्न नाम,
शक्तियां
व उनके कर्म ),
४.१०१.९०(कामदुघा
व कृष्ण के पुत्र विष्णु का
उल्लेख),
शौ.अ.
५.२६.७(
विष्णुर्युनक्तु
बहुधा तपांसि),
द्र.
बृहद्विष्णु
Vishnu
विष्णु-(१) ये वसुदेवजी के द्वारा देवकी के गर्भ से श्रीकृष्णरूप से अवतीर्ण हए ( आदि० ६३ । ९९-१०४) । बारह आदित्यों में सबसे कनिष्ठ, किंतु गुणों में सबसे श्रेष्ठ (आदि. ६५। १६)। इन्होंने वरदानतीर्थ में दुर्वासा को दर्शन दिया (वन० ८२ । ६५)। देवताओं द्वारा इनका स्तवन (वन० १०२ । २०-२६) । इनका समुद्र सोखने के लिये अगस्त्य के पास देवताओं को भेजना ( वन० १०३। ११)। ये कृतयुग में श्वेत, त्रेता में लाल, द्वापर में पीत तथा कलियुग में कृष्ण वर्ण के हो जाते हैं ( वन० १४९ । १७-३४)। उत्तङ्क द्वारा इनकी स्तुति (वन० २०१ । १४-२४)। इन्होंने पृथ्वी के उद्धार के लिये जो यज्ञवाराह रूप धारण किया था, वह सौ योजन लम्बा और दस योजन चौड़ा था ( वन० २७२ । ५१-५५)