३ द्र. त्रयी
६ द्र. कृत्तिका, षडानन, षड्गर्भ
७ गरुड २.३८.६(मोक्षदायिका ७ पुरियों के नाम), नारद १.१४.७५( विवाह में सप्तम पद में नारी के स्वगोत्र से भ्रष्ट होने के कारण नारी की पिण्डोदक क्रिया स्वामी के गोत्र में करने का निर्देश ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१९५( सात प्रकृतियों द्वारा परस्पर धारण का कथन ; ७ संख्या का विस्तार ), भागवत १.१३.५१(गङ्गा के सप्तस्रोता होने का श्लोक), १२.४.५( प्राकृतिक प्रलय में प्रलय काल में ७ प्रकृतियों के लय का उल्लेख ), वराह ६७.२(पावक रूप पुरुष के सप्तधा विभाजित होने का प्रश्न व उत्तर), वायु ४९.१८५( सात प्रकृतियों द्वारा परस्पर धारण का कथन ; ७ संख्या का विस्तार ), स्कन्द १.२.२२.२७(तारकासुर की मृत्यु ७ दिन के बालक से होने का कथन)
८ गरुड २.४.९(छत्र आदि ८ पदों के नाम), महाभारत वन २.१८(अष्टाङ्ग बुद्धि का कथन), २.७५(अष्टविध धर्म का कथन)
१० गरुड २.४.४(दस दानों के नाम), ३.२.५.२०(१० यमों तथा १० नियमों के नाम)
११ गरुड २.४०.२९(११ पिण्डों हेतु मन्त्र), द्र. एकादश
१२ भविष्य ३.४.८.८८(अव्यक्त स्थिति में बुद्धि के १२ अंगों वाली होने का उल्लेख), भागवत ६.३.२१( भागवत धर्म को जानने वाले १२ व्यक्तियों के नाम )
१३ गरुड २.५.१४६(यम के श्रवण नामक १३ प्रतीहारों का गण), २.१८.१५(प्रेत हेतु १३ पदों का कथन)
१४ गरुड २.२२.५२(१४ लोकों का शरीर में न्यास), स्कन्द ७.१.५१.१४(५ लिङ्गों व ९ ग्रहों समेत १४ का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.३.३७ (१४ स्तरों वाले मेरु के अतिभार से रसातल में धंसने पर मेरु के उद्धार हेतु मेरुनारायण अवतार का कथन),
१६ महाभारत शान्ति २६८.२६/२६०.२६(पशु, मनुष्य आदि यज्ञ के १६ अंगों के नाम, यजमान १६वां, अग्नि गृहपति के १७वां होने का कथन), ३०४( अज्ञानी के प्रकृति की १६ कलाओं में जन्म लेने तथा १६वीं कला के सूक्ष्म व सोम होने का कथन ), स्कन्द ७.१.११८.१० (हंस की १६ कलाओं के नाम) द्र. षोडश
१७ महाभारत शान्ति २६८.२६/२६०.२६(अग्नि गृहपति के १७वां होने का कथन)
१८ भविष्य ३.४.८.९०(अहंकार रूपी वृष के १८ अंगों का कथन)
२० गरुड २.१९.२(चित्रगुप्त पुर के २० योजन होने का उल्लेख)
२१ गरुड २.१८.३०(नरकों में २१ मुख्य नरकों के नाम), ब्रह्माण्ड २.३.३०.७३( रेणुका द्वारा २१(त्रि: सप्त) बार हृदय का ताडन करने से परशुराम द्वारा २१ बार क्षत्रियों का संहार करने की प्रतिज्ञा), द्र. एकविंशति
२४ गरुड २.१९.३(वैवस्वत पुर २४ योजन होने का उल्लेख), स्कन्द ७.१.९.५३(ब्रह्मा के २४ तत्त्वात्मक होने का उल्लेख)।
२५ शिव ६.९.९( परा प्रकृति के २३ तत्त्वात्मक होने का उल्लेख, पुरुष के २५ होने का उल्लेख ), महाभारत शान्ति ३१८.६८( अबुध्यमाना प्रकृति द्वारा २५ को न जानने तथा २५ द्वारा प्रकृति को जानने का कथन), स्कन्द ७.१.९.५३(विष्णु के २५ तत्त्वात्मक होने का उल्लेख)।
२६ महाभारत शान्ति ३१८.५५(केवली भूत द्वारा २६वें तत्त्व का दर्शन करने का कथन), स्कन्द ७.१.९.५३( शिव के २६तत्त्वात्मक होने का उल्लेख)।
३२ लक्ष्मीनारायण १.४५९.५८(बालक वैश्वानर के आपादतलमस्तक ३२ लक्षणों का कथन)
४० स्कन्द ३.२.४.५०(यम – पठित शिव के ४० नाम)
४९ लक्ष्मीनारायण १.३१४.१८(सन्ध्या को देखने से ४९ भावों की उत्पत्ति का उल्लेख)
५५ भागवत ९.२०.२५( भरत द्वारा गङ्गा तट पर ५५ अश्वमेध करने का उल्लेख ), मत्स्य २४.३१( भरत मुनि द्वारा उर्वशी को ५५ वर्षों तक सूक्ष्म लता होने का शाप )
६० ब्रह्माण्ड २.३.६३.१४७(सगर के षष्टि सहस्र पुत्रों का कपिल के तेज से भस्म होना, चार अवशिष्ट पुत्रों के नाम), शिव ७.१.१७.२९(क्रतु व सन्नति के ऊर्ध्वरेतस ६० हजार वालखिल्य पुत्रों का कथन),
६४ देवीभागवत १२.११.९२(६४ आगमों का उल्लेख), भागवत १०.४५.३६ (बलराम व कृष्ण द्वारा अहोरात्र में ६४ कलाओं को सीखने का उल्लेख), मत्स्य २७०.६( ६४ स्तम्भों वाले मण्डप के पुष्पक नाम का उल्लेख ), शिव ७.२.३८.३९(६४ गुणों वाले ब्राह्म ऐश्वर्य का कथन)
७८ भागवत ९.२०.२६( भरत द्वारा यमुना तट पर ७८ अश्वमेधों का अनुष्ठान )
८४ स्कन्द ५.२.१+ (अवन्ती में ८४ लिङ्ग व उनका माहात्म्य),
९६ अग्नि २४२.१४( पुरुष का उत्सेध ९६ अंगुल होने का उल्लेख), गरुड ३.२२.५( विष्णु के एक लक्षणों में ९६ अंगुल अंग का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२.१२३(धनुष का प्रमाण ९६ अंगुल होने का उल्लेख), भागवत ५.२४.१६(बल असुर की ९६ मायाओं का उल्लेख), मत्स्य १४५.७(आठों देवयोनियों का उत्सेध ९६ अंगुल होने का उल्लेख), २२७.१४(छद्म रूप में दोषवती कन्या देने पर ९६ पण दण्ड का उल्लेख), वायु १०१.१२४ /२.३९.१२४(धनुष का प्रमाण ९६ अंगुल होने का उल्लेख), ६.२७१.३३०(कूर्म द्वारा स्वयं की आयु ९६ कल्प बताना),
१०० भागवत ४.१९(महाराज पृथु के १००वें अश्वमेध यज्ञानुष्ठान में इन्द्र द्वारा पुन: पुन: व्यवधान का वर्णन),
अ अग्नि ३४८.१( अ का विष्णु व प्रतिषेध के अर्थों में उपयोग ), स्कन्द ४.१.२१.३४( अकार की अक्षरों में श्रेष्ठता का उल्लेख ), ५.१.४.२८( ब्रह्मा से उत्पन्न अकार अग्नि का ब्रह्मा से भोजन पाकर संतुष्ट होना, ब्रह्मा द्वारा अकार अग्नि को तेज में स्थान देना), ५.१.४.४१(अकार अग्नि के वाक् में स्थान, अचाक्षुष), ७.१.४.२८(अकार अग्नि की उत्पत्ति व देह में कार्य का कथन), द्र उकार, ओंकार
अंश अग्नि ३२५.१( अंशक : मन्त्रों के ब्रह्म, वैष्णव, रुद्र, यक्ष आदि अंशकों का वर्णन ), गरुड ३.१२.५०(सरस्वती व विष्णु का अंशावतरण न होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३६.११( तुषित देवताओं में से एक ), विष्णु १.१५.१३१( द्वादश आदित्यों में से एक ), हरिवंश ३.५३.१४( अंश का कुजम्भ से युद्ध ), योगवासिष्ठ ६.२.१३.२९( इन्द्र के कुल के एक राजा अंशक का उल्लेख ), amsha, ansha
Remarks on Amsha
अंशु भविष्य ३.४.१८.१७( संज्ञा व सूर्य के विवाह के अवसर पर प्रांशु आदित्य के शकटासुर से युद्ध का उल्लेख ), मार्कण्डेय ११७.१/११४.१( प्रांशु : वत्सप्री व सुनन्दा के १२ पुत्रों में से एक ), वायु १००.८९/२.३८.८९( हरित गण के १० देवों में से एक ), विष्णु ४.१२.४३( पुरुमित्र - पुत्र, सत्वत - पिता, क्रोष्टु/यदु वंश ), लक्ष्मीनारायण ३.२९( अंशुक्रमथ राजर्षि की भक्ति से साधु नारायण व साध्वी नारायणी का प्राकट्य )amshu, anshu
Remarks on Amshu
अंशुमती स्कन्द ३.३.७.१२०( द्रविक गन्धर्व की कन्या अंशुमती का धर्मगुप्त राजकुमार से विवाह ), ४.१.२९.३९( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ७.१.३४४.३( अंशुमती नदी की जरद्गव तीर्थ में स्थिति - जरद्गवेश्वरंनाम जरद्गवप्रतिष्ठितम् ॥ ….तत्रैव संस्थिता देवि देवी अंशुमती नदी ॥ )amshumatee/anshumati
Remarks on Amshumati
अंशुमान् नारद १.८.११८( असमञ्जा - पुत्र, सगर - पौत्र, कपिल को प्रसन्न करके वर प्राप्ति ), ब्रह्म १.२८.३७(दशमी तस्य या मूर्तिरंशुमानिति विश्रुता। वायौ प्रतिष्ठिता सा तु प्रह्लादयति वै प्रजाः॥), ब्रह्माण्ड २.३.५४.२३( असमञ्जा - पुत्र, सगर - पौत्र, कपिल को प्रसन्न करके वर प्राप्ति ), भागवत ९.८.२०( असमञ्ज - पुत्र, सगर - पौत्र अंशुमान् द्वारा कपिल की स्तुति - अंशुमांश्चोदितो राज्ञा तुरगान्वेषणे ययौ । पितृव्यखातानुपथं भस्मान्ति ददृशे हयम् ॥), मत्स्य २०.१८( जन्मान्तर में चक्रवाक बने कौशिक के सात पुत्रों में से एक का नाम - सुमनाः कुमुदः शुद्धश्छिद्रदर्शी सुनेत्रकः। सुनेत्रश्चांशुमांश्चैव सप्तैते योगपारगाः।। ), वामन ५६.७०( अंशुमान् द्वारा स्कन्द को ५ प्रमथगण प्रदान करना ), स्कन्द ५.३.१९१.१५( अंशुमान् आदित्य द्वारा विष्णु मुख से निकल कर जगत का दहन करते हुए इधर - उधर भ्रमण करने का उल्लेख - ऊर्ध्वतश्चैव सविता ह्यधः पूषा विशोषयन् । अंशुमांस्तु तथा विष्णुर्मुखतो निर्गतं जगत् ॥ प्रदहन्वै नरश्रेष्ठ बभ्रमुश्च इतस्ततः । ), हरिवंश १.१५.१३( पञ्चजन - पुत्र, दिलीप - पिता ), वा.रामायण १.३८, १.४१( असमञ्जस - पुत्र, रसातल से यज्ञीय अश्व को लाना, गङ्गा अवतरण हेतु तप ), amshumaan/anshuman
अंशुमाला नारद १.९१.६६( अंशुमालिनी : ईशान शिव की पञ्चम कला का नाम ), स्कन्द ४.१.२९.३९( गङ्गा सहस्रनामों में से एक )amshumaalaa/anshumala
अकबर भविष्य ३.४.२२( अकबर शब्द की निरुक्ति, पूर्व जन्म में मुकुन्द ब्राह्मण ), द्र. ऋग्वेद में अकवा अकवारि सरस्वती Akbar
अकम्पन ब्रह्माण्ड २.३.७.१३६( खशा - पुत्र ), वायु ६९.१६७( खशा - पुत्र, राक्षस ), वा.रामायण ३.३१( रावण को खर - दूषण की मृत्यु का समाचार देना, सीता हरण का परामर्श ), ६.५५( रावण - सेनानी, हनुमान द्वारा वध ), ६.५९.१४( रावण - सेनानी, स्वरूप ), ७.५.४०( सुमाली व केतुमाली - पुत्र ), स्कन्द ३.१.४४.३४(कुमुद वानर द्वारा अकम्पन के वध का उल्लेख), कथासरित् १५.२.१९( राजर्षि अकम्पन द्वारा स्व कन्या मन्दर देवी का नरवाहनदत्त से विवाह आदि )akampana द्र. कम्पन
अकूपार भागवत ५.१८.३०( कच्छप अवतार की अकूपार संज्ञा), महाभारत वन १९९.८(चिरजीवियों में अकूपार कच्छप द्वारा राजा इन्द्रद्युम्न का प्रत्यभिज्ञान करना), akupar/akuupaara
Comments on Akuupaara
अकृतव्रण ब्रह्माण्ड २.३.२५.७४( परशुराम द्वारा व्याघ्र से मोचित द्विज पुत्र का नाम ), २.३.३४+ ( परशुराम - शिष्य ),भागवत १०.७४.९( युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों में से एक ), १२.७.५( पुराणों के ६ आचार्यों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.४५( परशुराम द्वारा साल्व को प्रेषित दूत )akritavrana
अक्रम कथासरित् ८.७.२४( सूर्यप्रभ व श्रुतशर्मा विद्याधर के युद्ध में प्रियंकर द्वारा अक्रम का वध )akram
अक्रूर गर्ग १.५.२४( दक्ष प्रजापति का अंश ), ५.३( कंस की आज्ञा से नन्द ग्राम गमन ), ५.४( कृष्ण से भावी वियोग पर गोपियों द्वारा अक्रूर व उनके रथ का ताडन ), ५.५( यमुना जल में स्नान पर कृष्ण के परब्रह्म स्वरूप का दर्शन व स्तुति ), ५.९.३७( कृष्ण की आज्ञा से हस्तिनापुर से पाण्डवों का समाचार लाना ), ७.२.२०( प्रद्युम्न को विजय नामक शंख भेंट ), ७.८.१२( शिशुपाल - मित्र द्युमान् से युद्ध ), ७.२०.३४( प्रद्युम्न - सेनानी, यज्ञकेतु से युद्ध ), १०.४९.१७( कर्ण से युद्ध ), नारद १.६६.११०( अक्रूर की शक्ति आस्या का उल्लेख ), पद्म ६.८९( पूर्व जन्म में चन्द्रशर्मा नामक देवशर्मा - शिष्य ), ब्रह्म १.१५( स्यमन्तक मणि हरण की कथा ), १.८३( कृष्ण दर्शन की लालसा, गोकुल गमन, यमुना जल में कृष्ण दर्शन आदि ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६५( कृष्ण को लाने की आज्ञा से हर्ष ), ४.७०( कृष्ण के समीप गमन ), ४.१०४.९३( उग्रसेन के राज्याभिषेक के समय अक्रूर द्वारा छत्र धारण करने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.५०( लिपि न्यास प्रसंग में एक व्यञ्जन के देवता का नाम ), भागवत १०.३६( कंस द्वारा कृष्ण को लाने के लिए प्रेषण ), १०.३८( व्रज यात्रा, कृष्ण दर्शन की उत्कण्ठा ), १०.३९( स्नान करते समय कृष्ण व बलराम के दर्शन, कृष्ण की स्तुति ), १०.४८( कृष्ण का अक्रूर के गृह में आगमन, अक्रूर द्वारा स्तुति ), १०.४९( हस्तिनापुर गमन, धृतराष्ट्र को परामर्श ), १०.५७( स्यमन्तक मणि हरण के लिए शतधन्वा को प्रेरणा, द्वारका से पलायन, अनावृष्टि निवारण हेतु पुन: आगमन, कृष्ण को मणि देना ), ११.३०( भोज से युद्ध ), मत्स्य ४५.२६( वृषभ व जयन्ती - पुत्र ), वराह १५५( अक्रूर तीर्थ का माहात्म्य : सुधना वैश्य के ब्रह्मराक्षस द्वारा धर्षण की कथा ), विष्णु ४.१३.१०८( स्यमन्तक मणि प्राप्ति के पश्चात् यज्ञ में प्रवृत्ति, द्वारका त्याग व अनावृष्टि निवारण हेतु पुन: आगमन ), ५.१५+ ( कंस की आज्ञा से कृष्ण व बलराम को मथुरा लाने का उद्योग ), ५.१८( यमुना जल में स्नान के समय कृष्ण व बलराम के दर्शन, मोह ), स्कन्द २.४.१३( पूर्व जन्म में चन्द्र नामक देवशर्मा - शिष्य ), ५.१.२६.३५( अक्रूरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ५.२.३९.२५( अक्रूरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, भृङ्गिरिटि द्वारा क्रूर बुद्धि विनाश हेतु स्थापना ), हरिवंश १.३४.११( श्वफल्क व गान्दिनी - पुत्र ), १.३९( स्यमन्तक मणि प्राप्ति, कृष्ण को दान व प्रतिदान ), १.३९.३१( अक्रूर की अनुपस्थिति से अनावृष्टि ), २.२२.८५( कंस द्वारा कृष्ण को मथुरा लाने की आज्ञा ), २.२५( कृष्ण का दर्शन ), २.२६( यमुना में अनन्त और विष्णु के दर्शन का प्रसंग ), २.३६.२( कैशिक से युद्ध ) कृष्णोपनिषद १६( सत्य का रूप )akrur
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अक्ष नारद १.७१.७२( शत्रु के विरुद्ध अभिचार कर्म के अन्तर्गत शत्रु की प्रतिमा को अक्ष काष्ठों द्वारा प्रज्वलित अग्नि में फेंकने का उल्लेख ), ब्रह्म २.५३.२४( देवों की ओर से असुरों से युद्ध करते हुए राजा दशरथ के रथ के अक्ष के छिन्न होने और कैकेयी द्वारा स्वहस्त को अक्ष बनाने का वृत्तान्त ),ब्रह्माण्ड २.३.६.११( दनु - पुत्र ), भविष्य १.५२.१५( सूर्य के एक चक्र रथ में क्षणों के अक्ष दण्ड होने का उल्लेख ; चक्र के अक्ष में निबद्ध होने व अक्ष के ध्रुव में समर्पित होने आदि का कथन ), ४.६४.३( नल के अक्ष/द्यूत क्रीडा में पुष्कर से हारने का उल्लेख ), भागवत २.१.१८( मन व बुद्धि की सहायता से अक्षों को विषयों से हटाने का निर्देश ), ७.१५.४२( शरीर रूपी रथ में अक्ष रूपी १० प्राणों व धर्म- अधर्म रूपी चक्र-द्वय का कथन), १०.६१.२८( अनिरुद्ध के विवाह के पश्चात् रुक्मी व बलराम में अक्ष क्रीडा का वर्णन : रुक्मी द्वारा बलराम को अक्ष क्रीडा में अभिज्ञ कहना ), मत्स्य १३३.१७( त्रिपुर वधार्थ निर्मित शिव के रथ में मन्दर पर्वत के अक्ष व सूर्य – चन्द्र के चक्रद्वय होने का उल्लेख ), लिङ्ग १.५५.७( सूर्य के तीन नाभियों वाले एक चक्र रथ में चक्र के अक्ष में व अक्ष के ध्रुव में निबद्ध होने आदि का कथन ), वायु ९६.२३८( कृष्ण - पुत्र ), विष्णु २.८.६( सूर्य के रथ के दो अक्षों के युग प्रमाण का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर २.८.४१( षोडशाक्ष पुरुष के लक्षण ), शिव ५.३४.४८( अक्षत्वान् : दशम मन्वन्तर में मनु के १० पुत्रों में से एक ), ५.३७.४१( अक्षाश्व : संहताश्व के २ पुत्रों में से एक ), ७.२.१४.३६( माला के अक्षों की संख्या अनुसार फल प्राप्ति का वर्णन ), स्कन्द १.२.३८.५( सूर्य के रथ के दो अक्षों के योजन प्रमाणों का कथन ; तु. विष्णु पुराण ), ४.२.५५.१२( पञ्चाक्षेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.५५.१५( त्र्यक्ष लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.५७.९१( कूणिताक्ष विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.२८.११( बाण के त्रिपुर नाश हेतु शिव के रथ में इन्द्र/सुरेश्वर के अक्ष बनने का उल्लेख ), महाभारत द्रोण १९०.१९, १५१.१०( युद्ध में बाणों की द्यूत में अक्षों से साम्यता का उल्लेख ), अनुशासन ४२.२५, ४३.५( विपुल ब्राह्मण द्वारा स्वर्ण - रजत अक्षों से द्यूतक्रीडा करते हुए ६ पुरुषों के दर्शन, पुरुषों का ऋतुओं के रूप में परिचय पाना ), योगवासिष्ठ १.१८.३५( देह में अक्षों की ऋक्षों से उपमा ), लक्ष्मीनारायण २.२३५.२६( कृष्ण द्वारा तामसाक्षि भक्त चाण्डाल के जलमहन परिवार की रक्षा ), २.२४५.४९( जीव रथ में विचार रूपी अक्ष ), ३.१३२.५९( ऋग्वेद की अक्षसूत्र सहित पूजा का उल्लेख ), कथासरित् १२.७.१४८( अक्षक्षपणक कितव की कर्कशा माता का वृत्तान्त ) द्र. अभयाक्ष, अमोघाक्ष, कमलाक्ष, काञ्चनाक्षी, कामाक्षा, कुटिलाक्ष, कोटराक्ष, ताम्राक्ष, तारकाक्ष, धूम्राक्ष, पिङ्गाक्ष, पुष्कराक्ष, बिडालाक्ष, मकराक्ष, यूपाक्ष, रत्नाक्ष, रुद्राक्ष, लम्बाक्ष, लोहिताक्ष, विरूपाक्ष, विशालाक्षी, शकटचक्राक्ष, शक्त्यक्षि, शताक्षी, शोणिताक्ष, षोडशाक्ष, सहस्राक्ष, सुचक्राक्ष, सुधूम्राक्ष, सुपर्णाक्ष, सुवर्णवर्माक्ष, सूर्पाक्षी, स्थूलाक्ष, हर्यक्ष, हिरण्याक्ष, द्यूत aksha,
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अक्षकुमार पद्म ५.३६.३१( मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी को हनुमान व अक्षकुमार के युद्ध होने का उल्लेख ), वा.रामायण ५.४७( रावण - पुत्र, रथ का वर्णन, प्रमदावन में हनुमान से युद्ध व मृत्यु )
अक्षत गणेश २.१०.१०( महोत्कट द्वारा अक्षतों में छिपे पिङ्गल आदि ५ राक्षसों का वध ), नारद १.६७.६०( अक्षत को विष्णु को अर्पण का निषेध ), ब्रह्म १.११०.४९( यज्ञ वराह द्वारा पितृ तर्पण में अक्षतों द्वारा देवताओं की रक्षा करने का उल्लेख ; अक्षतों के अक्षत नाम के कारण का कथन ), भविष्य १.५७.१९( मातृकाओं हेतु अक्षत बलि का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१२७.४३( शान्ति, पुष्टिकर होमद्रव्यों में से एक ), ३.२२१.२४( वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षतों द्वारा विष्णु की पूजा, अक्षतों द्वारा स्नान आदि के कारण तिथि का अक्षता नाम होना ), स्कन्द १.२.४०.१६९(देवों को अक्षतसहित दान का कारण), लक्ष्मीनारायण १.४५१.७५( पूजा में करणों का प्रतीक ) akshata
Remarks on Akshata
अक्षपाद लिङ्ग १.२४.१२३( २७वें द्वापर में सोमशर्मा नामक शिव अवतार के शिष्यों में से एक ), शिव ३.५.४२( २७वें द्वापर में सोमशर्मा - शिष्य ), स्कन्द १.२.५५.५( अहल्या - पति गौतम ऋषि का नाम ), ४.२.९७.६९( अक्षपाद मुनि द्वारा वरुणा तट पर सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख ) akshapaada
अक्षमाला भागवत ८.१८.१६( वामन अवतार के उपनयन संस्कार में सरस्वती द्वारा अक्षमाला प्रदान करने का उल्लेख ), १२.१०.१२( शिव के स्वरूप के ध्यान में शिव द्वारा धारित आयुधाx में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.५६.६( अग्नि रूप के वर्णन के अन्तर्गत अग्नि द्वारा अक्षमाला धारण का उल्लेख ), ३.६६.८( जयन्ती देवी के अक्षमाला धारी रूप का उल्लेख ), ३.७१.९( भद्रकाली देवी के आयुधों में से एक ), ३.७७.३( धर्म की मूर्ति के स्वरूप वर्णन में धर्म के दक्षिण कर में अक्षमाला होने का उल्लेख ; अक्षमाला काल का प्रतीक ),स्कन्द १.१.११.१०( गणेश द्वारा दस भुजाओं में धारित आयुधों में से एक ), ३.२.१८.६२( मातङ्गी देवी द्वारा भुजाओं में धारित आयुधों में से एक ), ६.१४३.२९( रम्भा अप्सरा के दर्शन से जाबालि ऋषि के हाथ से अक्षमाला का छूट कर पृथिवी पर गिरने का उल्लेख ), ७.१.१२९( अन्त्यज कन्या, दुर्भिक्ष में वसिष्ठ ऋषि से विवाह, अरुन्धती बनना, अक्षमाला लिङ्ग की पूजा ) akshamaalaa, akshamala
अक्षय नारद १.११८.२३( अक्षय नवमी को अश्वत्थ मूल में तर्पण, कार्तिक शुक्ल तृतीया ), पद्म १.३६.४४( अक्षयराज नतप : प्रजा के रक्षणार्थ देवों के तेज से उत्पत्ति का वर्णन ), ब्रह्म २.९१.६७(यूप से अक्षय वट की उत्पत्ति का कथन), भविष्य ४.३०( अक्षय तृतीया व्रत के अन्तर्गत धर्म वणिक् का दृष्टान्त ), मत्स्य ६५( अक्षय तृतीया व्रत विधि, वैशाख शुक्ल तृतीया, विष्णु पूजा ), वायु १०५.४५/२.४३.४२( गया में अक्षय वट पर श्राद्ध की महिमा ), स्कन्द २.७.२३( वैशाख में अक्षय तृतीया, माहात्म्य ), ५.१.५९.२९( गया तीर्थ में अक्षय न्यग्रोध की स्थिति का उल्लेख ) akshaya
अक्षर देवीभागवत ७.३६.५( उपनिषद धनुष, उपासना शर व अक्षर लक्ष्य - लक्ष्यं तदेवाक्षरं सौम्य विद्धि ॥ ), ब्रह्म १.१३३.३६( कराल जनक - वसिष्ठ संवाद में २४-२५ तत्त्वों के माध्यम से क्षर - अक्षर जगत का निरूपण - कृत्स्नमेतावतस्तात क्षरते व्यक्तसंज्ञकः। अहन्यहनि भूतात्मा यच्चाक्षर इति स्मृतम्।।.. ), ब्रह्माण्ड २.३.७०.२३( सुयज्ञ - पिता ), भविष्य १.१४४.१५( सूर्य के क्षर व अक्षर रूपों का निरूपण - क्षराक्षरस्तु विज्ञेयो महासूर्यस्तथैव च । निष्कलः सकलश्चापि द्वौ च तस्य प्रकल्पितौ ।।.. ), लक्ष्मीनारायण १.७.३१( बदरिकाश्रम में अक्षर प्रदेश द्वारा नारायण सेवा हेतु नर रूप धारण का कथन ), १.११३( कृष्ण के अक्षर बदरी धाम में कृष्ण - पत्नियों का नर स्वरूप होना ), १.२६३.९( अक्षरा : पुरुषोत्तम की पत्नी, एकादशी व्रत प्रसंग ), २.८५.६१+ ( कृष्ण द्वारा पुलस्त्य - पत्नी ऐलविला से अक्षर क्षेत्र के माहात्म्य का वर्णन - स्थानानामुत्तमं स्थानं क्षेत्रं मेऽक्षरसंज्ञितम् ।। भूतले नैव संलग्नं चिदाकाशस्थितं हि तत् । ), २.९२.७४( अक्षर परम ब्रह्म का निरूपण - प्रद्युम्न! त्वयि यच्चास्ते पोषणैश्वर्यमित्यपि ।। अक्षरस्यैव तद् बोध्यं ब्रह्मणः कोटिभागजम् । ), २.१६८.१( अक्षर नामक कृष्ण - पार्षद द्वारा यज्ञ में आमन्त्रण पत्र का वितरण ), २.१७३.२०( अक्षर धाम का निरूपण - तस्माच्च परधामाद्वै तेजो यन्निर्गतं पुरः । तदक्षरं बृहद्धाम भण्यते सर्वबुद्धिषु ।। ), २.२५५.७५( क्षर - अक्षर जगत का निरूपण - किं तद्धामाऽक्षरं विद्वन् यस्मान्नावर्तते पुनः । किं च क्षरं ततो भिन्नं यस्मादावर्तते पुनः ।। ), २.२५६.२( जीव को क्षर से अक्षर प्राप्त न होने का कारण - मुहुः पतति चाऽज्ञात्मा मुहुर्मोदं च वाञ्छति ।। नाऽस्यैवं वर्तमानस्य क्षरान्मुक्तिः क्वचिद् भवेत् । ), ४.११५.८७( कृष्ण के अक्षर बदरी धाम की शोभा व माहात्म्य - अक्षरः पुरुषः सोऽपि निजालये परेश्वरम् । अनन्तमुक्तसहितः सेवते स्वामिनं हरिम् ।। ) द्र. एकाक्षर, वर्णमातृका, स्वर akshara
Remarks on Akshara
अक्षसूत्रा ब्रह्म २.६०.२( आपस्तम्ब - भार्या, कर्कि - माता ) akshasuutraa/akshasootraa
अक्षोट स्कन्द ६.२५२.२५( चातुर्मास में धनद की अक्षोट वृक्ष में स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८६( अक्षोट वृक्ष : धनद देवता का रूप )
अक्षोभ्य नारद १.८५.३७( अक्षोभ्य मुनि द्वारा तारा की आराधना) akshobhya
अक्षोभ्या देवीभागवत १२.११.१३( ६४ कलाओं में से एक ), स्कन्द ४.१.२९.१८( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) akshobhyaa
अखण्ड नारद १.१२१.६१( अखण्ड द्वादशी व्रत की विधि ), भविष्य ४.११०( सम्पूर्ण व्रत की विधि ), स्कन्द २.५.१२.१९( अखण्ड एकादशी व्रत की विधि व माहात्म्य ), ५.१.६८.३०( महाकालवन में अखण्ड सरोवर में स्नान का माहात्म्य )द्र. खण्ड akhanda
अगम्यागमन नारद १.१५.९४( अयोनि में वीर्य त्याग पर नरक यातना का वर्णन ), १.३०.५७( अगम्यागमन के प्रायश्चित्त की विधि ), पद्म ४.१८( अगम्यागमन के प्रायश्चित्त की विधि ), ब्रह्माण्ड ३.४.८( अगगम्यागमन दोष का वर्णन ), द्र. मैथुन, सम्भोग, सुरत
अगस्ति वराह १८०( विरूपकनिधि दासी द्वारा ध्रुव तीर्थ में श्राद्ध से अगस्ति नामक पितरों की मुक्ति ), विष्णु ३.११.९५( अन्न पाचक अग्नि का नाम ), स्कन्द ४.२.६१.१७७( अगस्ति तीर्थ का माहात्म्य ) agasti
अगस्त्य अग्नि २०६( अगस्त्य हेतु अर्घ्य दान व अगस्त्य पूजा का कथन ), कूर्म १.१३.१०( जन्मान्तर में पुलस्त्य व प्रीति - पुत्र दम्भोजि ), गरुड १.११९( अगस्त्य अर्घ्य व्रत ), देवीभागवत ६.९.५२( नहुष द्वारा शिबिका वाहक अगस्त्य का कशा से ताडन, शाप से सर्प बनना ), १०.६+ ( विन्ध्य का नमन करने के लिए अगस्त्य का काशी से दक्षिण में आना ), नारद २.२८.४५( अगस्त्य के मृतकादाता होने का उल्लेख ), पद्म १.१९.१३१( कालकेय दैत्यों के वधार्थ अगस्त्य द्वारा समुद्र पान ), १.२२.१८( इन्द्र द्वारा शापित अग्नि का रूप, मित्रावरुण व उर्वशी से उत्पत्ति की कथा, अगस्त्य को अर्घ्य दान की विधि ), १.३६( राम को राजा श्वेत द्वारा शव भक्षण की कथा सुनाना ), १.३७.५( दण्डक वन प्रसंग में राम को राजा दण्ड व उसकी कन्या अरजा के प्रसंग का कथन ), ५.६+ ( राम से मिलन के लिए आगमन, रावण के जन्म के वृत्तान्त का कथन, ब्रह्महत्या के निवारण हेतु राम को अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान का सुझाव, अश्वमेध हेतु राम की अश्वशाला से अश्व का चुनाव ), ब्रह्म २.१४.६( अगस्त्य द्वारा अञ्जना व अद्रिका को पुत्र प्राप्ति का वरदान ), २.४८( अगस्त्य द्वारा विन्ध्य के नमन की कथा ), २.५४.५१( इन्द्र द्वारा दिति के गर्भ के छेदन पर अगस्त्य द्वारा इन्द्र को शाप ), २.६०( आपस्तम्ब मुनि को त्रिदेवों में शिव भक्ति का आदेश ), २.८८( आङ्गिरस गणों को गङ्गा तट पर तप करने का आदेश ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.२१( कुम्भसम्भव द्वारा आयुर्वेद में द्वैधनिर्णय तन्त्र की रचना का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.११.२६( पुलस्त्य व प्रीति - पुत्र, दानाग्नि का रूप ), २.३.३६( अगस्त्य द्वारा परशुराम को कृष्ण प्रेमामृत स्तोत्र का कथन ), ३.४.५( अगस्त्य द्वारा काञ्ची में हयग्रीव से मुक्ति के उपाय की पृच्छा ), भविष्य ४.११८( अगस्त्य को अर्घ्य दान, अगस्त्य चरित्र वर्णन में इल्वल - वातापि प्रसंग, समुद्र शोषण, कालकूट विष का हिमालय में वितरण, श्वेत राजा की सहायता आदि ), भागवत ४.१.३६( पुलस्त्य व हविर्भू - पुत्र, जठराग्नि उपनाम ), ४.२८.३२( अगस्त्य द्वारा मलयध्वज - पुत्री से दृढच्युत नामक पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख ), ८.४( अगस्त्य द्वारा राजा इन्द्रद्युम्न को गज बनने का शाप ), मत्स्य ६१( इन्द्र द्वारा शापित वायु व अग्नि का संयुक्त रूप ), ६१.४२( अगस्त्य को अर्घ्य दान की विधि ), ९६.९ ( अगस्ति : ताम्रमय १६ फलों में से एक ), १४५.९२( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक ), २०२( अगस्त्य वंश व गोत्र ), महाभारत अनुशासन ११५(अगस्त्य द्वारा सभी आरण्यक मृगों को मृगया हेतु प्रोक्षित करने का उल्लेख), वराह ४९( अगस्त्य द्वारा भद्राश्व को उसके पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन ), ५१+( अगस्त्य गीता ), ६९( अगस्त्य द्वारा इलावृत्त में घटित आश्चर्य का वर्णन ), वामन १८.२१( अगस्त्य द्वारा विन्ध्य को नीचा करना ), ९०.३९( मह लोक में विष्णु का अगस्त्य नाम ), वायु २८.२२( जन्मान्तर में पुलस्त्य - पुत्र दत्तोलि/दत्तालि ), विष्णु १.१०.९( पुलस्त्य व प्रीति - पुत्र दत्तोलि का जन्मान्तर में रूप ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४.८( इन्द्र पद पर आसीन नहुष द्वारा शिबिका वाहक अगस्त्य पर पदाघात, शाप प्राप्ति की कथा ), १.६६.११ (परशुराम द्वारा कार्यसिद्धि के पश्चात् तूण अगस्त्य को व चाप श्रीराम को देने का शिव का निर्देश), १.११८( गोत्रकार ), १.२१३( विन्ध्य को ह्रस्व करने पर अगस्त्य द्वारा वैश्वानरपथ से बाहर दिव्य देह प्राप्ति ), ३.७३.७( अगस्त्य की मूर्ति का रूप ), शिव ७.१.३२.१५( पाशुपत योग के ४ आचार्यों में से एक ), स्कन्द १.१.१८.७७( अगस्त्य द्वारा बलि से दान में ऐरावत की प्राप्ति ), १.२.१३.१७७( शतरुद्रिय प्रसंग में अगस्त्य द्वारा व्रीहिज लिङ्ग की सुशांत नाम से पूजा ), २.१.२६.६७( अगस्त्य द्वारा तुम्बुरु - पत्नी का मण्डूक योनि से उद्धार, पतिव्रता धर्म का कथन ), २.१.३१.२०(शिव-पार्वती विवाह में अगस्त्य के दक्षिण दिशा में गमन से पृथ्वी का समतल होना, सुवर्णमुखरी नदी को उत्पन्न करना ), २.१.३७.२४+( अगस्त्य द्वारा वेंकाटचल पर शंख के साथ तप, विष्णु के दर्शन, सुवर्णमुखरी नदी की उत्पत्ति ), ३.१.१३( अगस्त्य - अनुज एकान्तरामनाथ द्वारा तप व मोक्ष की कथा ), ३.१.१६( अगस्त्य तीर्थ का माहात्म्य, कक्षीवान - विवाह का प्रसंग ), ३.१.१६.५८(कक्षीवान द्वारा अगस्त्य तीर्थ में चतुर्दन्त हस्ती की प्राप्ति का कथन), ३.१.२३.३०( यज्ञ में प्रतिहर्ता ऋत्विज होने का उल्लेख ), ३.१.४९.६१( अगस्त्य द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ४.१.३+ ( अगस्त्य आश्रम की शोभा का वर्णन, काशी से दक्षिण गमन, विन्ध्य का नमन, महालक्ष्मी की स्तुति ), ५.१.३५( अगस्त्येश लिङ्ग का माहात्म्य ), ५.१.५५( रेवा जल से भूमि के उद्धार के लिए अगस्त्य द्वारा विन्ध्यवासिनी की स्तुति ), ५.१.६३.१०३( विष्णु सहस्रनामों में से एक ), ५.२.१.२०( अगस्त्येश लिङ्ग : अगस्त्य की ब्रह्महत्या से मुक्ति ), ५.३.६४( अगस्त्य तीर्थ का माहात्म्य ), ६.३३( विन्ध्य का नमन, हाटक लिङ्ग की स्थापना ), ६.३५( कालेय दैत्यों के वधार्थ अगस्त्य द्वारा विशोषिणी विद्या द्वारा समुद्र का शोषण, चित्रेश्वर पीठ की स्थापना ), ७.१.१७.११७( अगस्त्य पुष्प की महिमा – आनुकूल्य प्राप्ति ), ७.१.७८( अगस्त्य व लोपामुद्रा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, पूर्व जन्म में शुक, वैश्वानर लिङ्ग की पूजा ), ७.१.२८५ ( अगस्त्य आश्रम का माहात्म्य, वातापि - इल्वल की कथा, क्षुधा शान्ति ), ७.१.३४७( कालकेय दैत्यों के वधार्थ अगस्त्य द्वारा समुद्र का शोषण, देवों से हाटक लिङ्ग की पूज्यता वर की प्राप्ति ), ७.४.१७.२२( द्वारका के दक्षिण द्वार पर अगस्त्य की सनातन ऋषि के साथ स्थिति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ १.१.४( अगस्त्य द्वारा सुतीक्ष्ण को कर्म या ज्ञान से मोक्ष प्राप्ति के उपाय का कथन ), ६.१.११८.१३( जगत जाल तरङ्गों से पूरित काल समुद्र का पान करने वाले अगस्त्य ), वा.रामायण १.२५.९( यक्षी ताटका व ताटका - पुत्र मारीच को शाप से राक्षस बनाना, ताटका - पति सुन्द को मारना ), ३.११( राम द्वारा अगस्त्य - भ्राता व अगस्त्य के आश्रम का दर्शन व वर्णन ), ३.४३.४३( राम द्वारा मारीच राक्षस की तुलना वातापि से करना ), ६.१०५( राम-रावण युद्ध में अगस्त्य द्वारा राम को आदित्य हृदय स्तोत्र देना ), ७.७६.२०( अगस्त्य द्वारा राम का सत्कार व आभूषण भेंट ), ७.७७+ ( राम को राजा श्वेत की कथा सुनाना ), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८०( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ), १.३२१( अगस्त्य द्वारा चित्रबाहु नृप के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन ), १.४५५+ ( विन्ध्याचल निग्रह के पश्चात् अगस्त्य द्वारा महालक्ष्मी का दर्शन व स्तुति, काशी की देवियों द्वारा अगस्त्य व लोपामुद्रा को पुन: काशी में लाना ), १.५४५( अगस्त्य द्वारा आतापी, वातापि व इल्वल के नाश की कथा ), १.५४६+ ( अगस्त्य द्वारा भद्राश्व राजा को आत्मज्ञान का उपदेश ), १.५५०( अगस्त्य द्वारा समुद्र पान की कथा ), १.५५२( अगस्त्य द्वारा कृष्ण - भक्ति से दिव्यता, चिरञ्जीविता प्राप्ति ), २.९५( अगस्त्य का उष्णालय खण्ड में गमन, मुनियों को विज्ञान दान ), २.१०६.४८( दक्षजवंगर राजा के वैष्णव होम के ब्रह्मा नामक ऋत्विज ), ३.१३७( अगस्त्य उदय दिवस पर घट लक्ष्मी व्रत ) agastya
Remarks on Agastya
अगुण शिव ५.३९.२४( यक्ष - पुत्र, विधृति - पिता, इक्ष्वाकु वंश )
अगुरु स्कन्द २.२.१५.८( पुरुषोत्तम क्षेत्र में अगुरु वृक्ष के नीचे नृसिंह की स्थिति का उल्लेख ), ६.२५२.२१( चातुर्मास में अगुरु वृक्ष में गणनायक की स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८३( अगुरु वृक्ष : गणेश का रूप ), १.४५१.७५( इन्द्रिय पुष्प, धूप अगुरु वपु ), कथासरित् १०.५.३( अगुरु दाही वैश्य की कथा : अगुरु काष्ठ का अङ्गार/कोयला बनाना ) aguru
अग्नि अग्नि २४( कुण्ड निर्माण आदि अग्नि कार्य का वर्णन ), ८१.४५( अग्नि की सात जिह्वाओं के नाम व बीज मन्त्र ), २५५.३८( अग्नि द्वारा सत्यानृत/दिव्यता परीक्षा ), कूर्म २.३४.११२( रावण द्वारा हरण पर सीता द्वारा आवसथ्य अग्नि की स्तुति ), गरुड ३.७.३८(अग्नि द्वारा हरि-स्तुति), गर्ग १.५.२९( अग्नि का द्रोणाचार्य के रूप में अवतरण ), ७.२.२४( तनूनपात् द्वारा प्रद्युम्न को परिघ प्रदान करने का उल्लेख ), देवीभागवत ३.१२.४८( गार्हपत्य आदि ५ अग्नियों का प्राण, अपान आदि से तादात्म्य ), ५.२.२८( रम्भ दानव द्वारा पञ्चाग्नि तप, पावक द्वारा रम्भ दानव को त्रैलोक्य विजयी महिषासुर पुत्र प्राप्ति का वरदान ), ८.४.५( प्रियव्रत व बर्हिष्मती के आग्नीध्र आदि १० पुत्रों की वह्नि संज्ञा ), ९.२२.४( हुताशन का शंखचूड - सेनानी गोकर्ण से युद्ध ), ११.२२.२६(अरणि मन्थन में हृत्पुण्डरीक अरणि आदि), ११.२२.३४( प्राण, अपान आदि मन्त्रों के क्षुधाग्नि आदि ऋषि ), १२.८.२४( तृण को जलाने में अग्नि की असमर्थता, गर्व का खण्डन ), नारद १.५१.४८( अग्नि के स्वरूप का कथन ), १.६५.२५( अग्नि की १० कलाओं के नाम ), पद्म १.२०.११०( वैश्वानर व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य ), १.२२.१८( अग्नि द्वारा समुद्र शोषण की इन्द्र की आज्ञा की अवहेलना, अगस्त्य रूप में जन्म ), १.४०.९६( मरुत्वती के मरुत्वान् संज्ञक देवों में से एक ), २.२२.२४( दुःख अनल का कथन ), ५.१४.३४ ( अग्नि को दमन राक्षस से भय प्राप्ति, भृगु द्वारा सर्वभक्षी होने का शाप ), ६.१२८.३४( अग्निप : वेदनिधि - पुत्र, अप्सराओं पर आसक्ति, शाप - प्रतिशाप से पिशाच बनना, माघ - स्नान से मुक्ति, विवाह ), ६.१३९( अग्निपालेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, कहोड द्वारा कुकर्दम राजा के प्रेत की मुक्ति, मातृका तीर्थ ), ६.१६८.४५( अग्नि द्वारा इन्द्र से ब्रह्महत्या के अंश की प्राप्ति ), ब्रह्म २.२८( अग्नि तीर्थ का वर्णन, मधु दैत्य द्वारा भ्राता जातवेदा की हत्या पर अग्नि का अदृश्य होना, देवों के अनुरोध पर पुन: प्राकट्य ), २.२८.१८( अग्नि के जल, शमी व यज्ञ गर्भों का उल्लेख), २.५५( उलूक द्वारा अग्नि की उपासना से बल प्राप्ति, कपोतों से युद्ध, कपोती द्वारा अग्नि की स्तुति ), २.५६( अग्नि और आप: में ज्येष्ठता निर्णय के लिए ऋषियों का तप, सरस्वती वाक् द्वारा आप: की ज्येष्ठता का कथन ), २.५८( शिव से प्राप्त वीर्य के अंश को स्व - पत्नी स्वाहा में स्थापित करना, सुवर्ण व सुवर्णा कन्या का जन्म, सुवर्णा कन्या का धर्म से विवाह आदि ), २.९०.८( अग्नि का अहि से युद्ध ), ब्रह्मवैवर्त्त १.४.१४( ब्रह्मा के रेतः से अग्नि की उत्पत्ति ), ४.१८.७७( अग्नि का सप्तर्षि - पत्नियों पर मोहित होना, अङ्गिरा द्वारा सर्वभक्षी होने का शाप ), ४.४९( शिशु रूपी विष्णु द्वारा त्रिलोकी को भस्म करने को उद्धत अग्नि की दाहक शक्ति को समाप्त करना ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१४( आहवनीय अग्नि से १६ धिष्ण्य अग्नियों की उत्पत्ति ), १.२.१२.२१( अग्नि के स्थान, नाम ), १.२.२४( अग्नि के शुचि, अब्ज आदि ३ प्रकार ), १.२.२४.६( त्रिविध अग्नि ), २.३.७.२१( अग्नि से ऊर्जा नामक अप्सरा गण की उत्पत्ति का उल्लेख), २.३.११.९७( होम में अग्नि के स्वरूप से सिद्धि का ज्ञान ), ३.४.१५.२१( अग्नि द्वारा ललिता देवी को किरीट भेंट का उल्लेख ), भविष्य १.१२४.१९( अग्नि का सूर्य - अनुचर पिङ्गल के रूप में कथन, दक्षिण पार्श्व में स्थिति, वाम पार्श्व में स्कन्द ), १.१२५.३०( पवमान, पावक व शुचि अग्नियों के निर्मन्थ्य, वैद्युत व सूर्य नाम ), २.१.१५.१३( अग्नि की विभिन्न ज्वालाएं/जिह्वाएं, होम ), २.१.१७( विभिन्न कर्मों में अग्नि के नाम, होम द्रव्य ), २.२.१४( स्व गृह्याग्नि कर्म विधान का कथन ), २.२.१५( विभिन्न होमों में अग्नि की जिह्वाओं का विनियोग ), २.२.१५( अग्नि कर्म में कुशकण्डिका, स्थालीपाक विधान ), ३.४.२०.१८( वह्नि : अपरा प्रकृति के देवों में से एक ), ४.९३.५०( अङ्गिरा द्वारा अग्नि के कार्य का प्रतिस्थापन, अग्नि का अङ्गिरा - पुत्र बनना ), ४.१४२.३८( शान्ति होम में घृतार्चि नामक अग्नि का आह्वान, स्वरूप, पांच मुखों में चार वेदों के अनुसार आहुतियां ), ४.१७३( अङ्गीठी/अग्नीष्टिका दान की विधि ), भागवत ४.२४.४( पवमान, पावक व शुचि अग्नियों का अन्तर्धान - पुत्र बनना ), ५.१.२५( अग्नि की प्रियव्रत व बर्हिष्मती के १० पुत्रों के रूप में उत्पत्ति ), ६.९.१२( अन्वाहार्यपचन नामक अग्नि, वृत्र की उत्पत्ति ), ६.१८.४( अग्नि द्वारा यमुना तट पर गोपों को व्यथा, कृष्ण द्वारा शान्ति ? ), १०.१७.२१( पुरीष्य नामक अग्नि : विधाता व क्रिया - पुत्र ), १०.१७.२१( कृष्ण द्वारा दावाग्नि से गायों व गोपों की रक्षा ), १०.१९.७(कृष्ण द्वारा दावाग्नि से गायों व गोपों की रक्षा), १०.६६.३०( सुदक्षिण द्वारा दक्षिणाग्नि से कृत्या रूप अग्नि उत्पन्न करना, कृष्ण के सुदर्शन चक्र से नष्ट होना ), ११.७.४५( दत्तात्रेय के गुरुओं में से एक ), मत्स्य ५१( पवमान, पावक आदि अग्नियों के पुत्रों आदि के नाम ), ५१.२४( विहरणीय अग्नि के ८ धिष्ण्यसंज्ञक पुत्रों के नाम व कर्म ), ६१( समुद्र शोषण के आदेश की अवज्ञा करने पर इन्द्र द्वारा अग्नि को शाप, अगस्त्य रूप में जन्म ), १५८.२४( अग्नि द्वारा शुक रूप धारण कर शिव वीर्य को ग्रहण करने की कथा ), २६१.९( अग्नि की प्रतिमा का रूप ), मार्कण्डेय ९९.१३/९७.१३( गुरु भूति द्वारा शिष्य शान्ति को अग्नि की रक्षा का कार्य सौंपना, अग्नि के अदृश्य होने पर शान्ति द्वारा अग्नि की स्तुति ), वराह १८( महाभूतों में क्षोभ व ब्रह्मा के कोप से अग्नि की उत्पत्ति, अग्नि के पर्यायवाची शब्दों की निरुक्ति ), ५६.२( मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को अग्नि रूपी जनार्दन की पूजा विधि ), १२६.६६( कुब्जाम्रक क्षेत्र में अग्नि तीर्थ का माहात्म्य ), १४१.७( बदरी क्षेत्र में अग्निसत्यपद क्षेत्र की महिमा ), १४५.५६( अग्निप्रभ तीर्थ का माहात्म्य ), वामन ९.४७( अन्धक - सेनानी मय से युद्ध ), ५४.४१( अग्नि का हंस रूप धारण कर शिव के गृह में प्रवेश, शिव का वीर्य ग्रहण करना ), ५७.६५( अग्नि द्वारा स्कन्द को २ गण प्रदान करना ), ७४.१३( ह्लाद असुर का अग्नि पद पर आसीन होना ), वायु ५.१६( अग्नि के तमोमय, ब्रह्मा के रजोमय व विष्णु के सत्त्वमय होने का कथन ), २९( अग्नियों के पुत्रों-प्रपौत्रों का वर्णन ), २९.१०( गार्हपत्य अग्नि : पवमान/निर्मथ्य अग्नि का रूप ), ५३.५( अग्नि के शुचि, वैद्युत आदि प्रकारों का वर्णन ), ५६.२०( अग्नि संवत्सर का रूप, सूर्य परिवत्सर आदि ), १०४.८५/२.४२.८५(आवसथ्य की अधरोष्ठ, दक्षिणाग्नि की ऊर्ध्व ओष्ठ आदि में स्थिति का कथन), विष्णु ३.२.३१( अग्नितेजा : ११वें मन्वन्तर में ऋषि ), विष्णुधर्मोत्तर १.१२२.६( देवों द्वारा अग्नि से दैत्यों को जीतने की प्रार्थना ), १.१३६.३१( पुरूरवा प्रसंग में गार्हपत्य आदि अग्नियों का चतुर्व्यूह से तादात्म्य ), १.१९९.८( अग्नि द्वारा भृगु - पत्नी पुलोमा की पुलोमा दानव से रक्षा, भृगु से शाप प्राप्ति ), १.२२८( अग्नि द्वारा शिव व पार्वती की रति को भङ्ग करने की कथा ), २.२०( अग्नि ज्वालाओं के लक्षण से नृप की जय - पराजय का अभिज्ञान ), २.१२०.२४( अग्नि हरण से भेक योनि प्राप्ति का उल्लेख ), २.१३२.१०( आग्नेयी शान्ति के स्वर्ण वर्ण का उल्लेख ), २.१३६( औत्पातिक अग्नि के लक्षण ), ३.५६( अग्नि की मूर्ति का स्वरूप ), ३.१४३( फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी को अग्नि हेतु चतुर्मूर्ति व्रत, चतुर्मूर्ति का वासुदेवादि से साम्य ), शिव २.५.३६.८( अग्नि का शङ्खचूड - सेनानी गोकर्ण से युद्ध ), ३.१५( गृहपति द्वारा तप से अग्नि पद की प्राप्ति ), ५.१४.१०( अग्नि और स्वर्ण में तादात्म्य का उल्लेख ), ७.२.२७( अग्नि कार्य हेतु कुण्ड निर्माण, स्वनाभि से अग्नि के प्राकट्य की कल्पना, यज्ञ से उत्पन्न होने वाली अग्नि हेतु गर्भाधान संस्कार आदि का कथन, जात अग्नि के स्वरूप का कथन ), ७.२.२७.२३(अग्नि की जिह्वाओं के बीजों व वर्णों का कथन), स्कन्द १.१.१७.१३९( इन्द्र व वृत्र के युद्ध में अग्नि का वृत्र - सेनानी तीक्ष्णकोपन से युद्ध ), १.१.१८.४( अग्नि द्वारा कपोतक रूप ग्रहण ), १.१.२७( कुमार के जन्म के प्रसंग में अग्नि द्वारा शिव वीर्य का धारण, देवों का गर्भयुक्त होना, कृत्तिकाओं द्वारा वीर्य ग्रहण ), १.२.४२.१७५( घ्राण, जिह्वा, चक्षु, त्वक् आदि ७ पावकों का उल्लेख ), १.२.४४.५०( अग्नि द्वारा पुरुष की सत्यता की परीक्षा ), २.३.२.२२+ ( बदरी क्षेत्र में अग्नि तीर्थ की महिमा, अग्नि का सर्वभक्षी दोष से मुक्त होना), २.३.३.१९(अग्नितीर्थ में पंच शिलाओं का महत्त्व), २.७.१९.२०( देवों में अग्नि की आपेक्षिक महिमा का कथन : सप्तर्षियों से श्रेष्ठ व सूर्यादि से अवर ), ३.१.२२( अग्नि तीर्थ का माहात्म्य, सीता की अग्नि परीक्षा की कथा, दुष्पण्य पिशाच की मुक्ति ), ३.१.४९.५६( अग्नि द्वारा रामेश्वर सेतु की स्तुति ), ४.१.१०.२८( अग्नि की अर्चिष्मती पुरी प्राप्ति के उपाय ), ४.१.११( वैश्वानर/गृहपति बालक द्वारा तप से अग्नि पद की प्राप्ति ), ४.१.२१.३५( अग्नि की प्रतापियों में श्रेष्ठता का उल्लेख ), ४.२.६८.७३( अग्निजिह्व वेताल का माहात्म्य ), ४.२.८४.७३( अग्नि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.८९.४६( दक्ष यज्ञ में अग्नि की जिह्वा का छेदन ), ४.२.९७.११९( अग्नीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : अग्नि लोक प्रापक ), ५.१.४.११( ब्रह्मा के तपो काल में व्याहृति से उत्पन्न अग्नि का क्षुधा से रोदन, ब्रह्मा द्वारा अग्नि का अकार, इकार व उकार आदि में विभाजन करके भोजन व स्थान की व्यवस्था करना ), ५.१.४.१४( ब्रह्मा के तप से उत्पन्न अग्नि के अधोमुख पतन तथा ब्रह्मा द्वारा उसको उत्तान करने का कथन, अग्नि के अकारादि तीन रूप ), ५.१.४.९२( अग्नि के भृगु व अङ्गिरा पुत्रों द्वारा अग्नि को द्वैधा विभाजित करना, शमी गर्भ से उत्पन्न अश्वत्थ में अग्नि त्रय का संयोग होना, अग्नि की भार्गव व अङ्गिरस संज्ञा होना ), ५.२.२०( अग्नि द्वारा हंस रूप में शिव - पार्वती की रति में विघ्न ), ५.२.६६.४( जल्प राजा के सुबाहु आदि ५ पुत्रों की ५ अग्नियों से उपमा ), ५.३.१३.४३( १४ कल्पों में से एक अग्निकल्प का उल्लेख ), ५.३.२२( ब्रह्मा के मानस - पुत्र तथा स्वाहा - पति अग्नि द्वारा नर्मदा तथा १६ नदियों की पत्नी रूप में प्राप्ति, नदियों का धिष्णि नाम, नर्मदा-पुत्र की धिष्णीन्द्र संज्ञा आदि ), ५.३.३३( अग्नि द्वारा दुर्योधन - कन्या सुदर्शना की भार्या रूप में प्राप्ति, अग्नि तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.३९.२८( कपिला गौ के मुख में अग्नि की स्थिति का उल्लेख ), ५.३.१२७( अग्नि तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.१५९.२६( अग्नि को पद से स्पर्श करने पर मार्जार योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ६.९०.२०( विश्वामित्र द्वारा शुन: मांस पकाने पर अग्नि का अदृश्य होना, देवों द्वारा अग्नि का अन्वेषण, अग्नि का गज, शुक, मण्डूक को शाप ), ६.९०.६५( अग्निसूक्त? का महत्त्व, अग्नि की तृप्ति हेतु वसुधारा का महत्त्व), ६.११३.६६( अग्नि कुण्ड का माहात्म्य, अग्नि के स्वेद से कुण्ड की उत्पत्ति की कथा, अब्राह्मण का कुण्ड में स्नान से विस्फोटयुक्त होना ), ६.१९२.७१( ब्रह्मा के यज्ञ के प्रसंग में सावित्री द्वारा अग्नि को सर्वभक्षी होने का शाप ), ७.१.२९( अग्नि तीर्थ का माहात्म्य ), ७.१.१०५.४९( १८वें कल्प का अग्नि नाम ), ७.३.२.४७( श्वेत अश्व रूप अग्नि का उत्तंक द्वारा कुण्डल प्राप्ति में सहायक होना ), ७.३.३०( अग्नि तीर्थ का माहात्म्य, विश्वामित्र द्वारा शुन: मांस पकाने पर अग्नि का अदृश्य होना, शुक, गज व मण्डूक द्वारा देवों को अग्नि के निवास स्थान का कथन ), हरिवंश १.२६.४१( पुरूरवा द्वारा गन्धर्वों से अग्नि की प्राप्ति, त्रेताग्नि बनने का वृत्तान्त ), १.३३.३८( चित्रभानु अग्नि द्वारा कार्तवीर्य अर्जुन से भिक्षा ), २.१२२.३०( जातवेदस अग्नि गण, स्वधाकार अग्नि गण, वषट्कार अग्नि गण का शोणितपुर में कृष्ण से युद्ध ), २.१२२.१८( शोणितपुर में गरुड द्वारा आहवनीय अग्नि की शान्ति ), ३.९( प्रलय में अग्नि कारण, नारायण का रूप ), ३.२९.५( मन्त्रों से पुष्ट होने पर अग्नि की ब्रह्मदण्ड संज्ञा ), ३.६२(शाण्डिल्या- पुत्र हव्यवाहन अग्नि की महिमा का वर्णन, बलि सेना की पराजय, बृहस्पति द्वारा स्तुति ), महाभारत वन ३१३.६६( अग्नि के सर्वभूतों में अतिथि होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), शान्ति २६८.२६/२६०.२६(अग्नि गृहपति के १७वां होने का कथन), आश्वमेधिक ४२.११( त्वक्, घ्राण, श्रोत्र, चक्षु, रसना, वाक्, मन, बुद्धि नामक ८ अग्नियों का कथन ), योगवासिष्ठ १.१६.१४( चिन्ता ज्वाला, चित्त अग्नि ), ६.२.७५( महाकल्पान्त अग्निसंज्ञक सर्ग ), वा.रामायण १.१७.१३( पावक – सुत रूप में नील वानर का उल्लेख ), ६.४३.११( अग्निकेतु : रावण - सेनानी, राम से युद्ध ), लक्ष्मीनारायण १.३३.४२( श्रीहरि द्वारा पांच कामाग्नियों की सृष्टि ), १.२०६.५( अग्नि के सर्वभक्षित्व दोष का परिहारक अग्नि तीर्थ ), १.२११( अग्नि वंश का वर्णन ), १.३०१.४( सृष्टि के आरम्भ में प्रजा द्वारा अग्नि का स्वागत न होना, अग्नि द्वारा क्षुधा पीडित होकर लोकालोक पर्वत का भक्षण करना व हिरण्य को पुत्र रूप में उत्पन्न करना, कृष्ण - पूजा से मुख में प्रतिष्ठित होना ), १.४६९( सप्तर्षि - पत्नियों का अदृश्य रूप में भोग करने पर अङ्गिरा द्वारा नपुंसक आदि होने का शाप ), १.४८१( शिव वीर्य से लिप्त अग्नि के स्पर्श से सप्तर्षि - पत्नियों का गर्भवती होना ), १.४९५( विश्वामित्र द्वारा शुन: मांस पकाने पर अग्नि के अदृश्य होने की कथा ), १.५३७( समुद्र में वडवा अग्नि क्षेप तीर्थ की महिमा, अग्नि के समुद्र की योनि होने का उल्लेख ), २.१५७.३६( आहवनीय आदि अग्नियों के अङ्गन्यास में स्थान ), २.२१२.२९( अग्नि का स्वरूप व स्तुति ), ३.३२.२( अनल भक्षक असुर अनलाद का वर्णन : अग्नि के वंश का वर्णन ), ३.४१.८( चन्द्रमा पिता, रवि पितामह व अग्नि के प्रपितामह पद का उल्लेख ), ३.४५.१३( तैर्थिकों द्वारा अग्निलोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.९१.१२७( कृशाङ्ग चाण्डाल द्वारा द्विज बनने के लिए तप करना व कृशानु पद प्राप्त करना ), ४.८२( अग्निरात द्वारा शिष्य नन्दिभिल्ल को नागविक्रम राजा से युद्ध न करने का परामर्श ), कथासरित् ३.३.९७( ब्राह्मण रूपी अग्नि द्वारा गुहचन्द्र को स्त्री वशीकरण हेतु अग्नि उपासना मन्त्र दान की कथा ), ८.५.१२५( अग्निक नामक सेनापति की कन्या के हरण का प्रसंग ), ८.७.३४( अग्नि का प्रकम्पन दानव से युद्ध ), ९.६.३५१( कर्कोटक नाग द्वारा राजा नल को अग्निशौच नामक वस्त्र प्रदान करना, अग्निशौच के महत्त्व का कथन ), १०.५.९( जल कुम्भ में अग्नि धारण का प्रयास ), १२.९.६( अग्निस्वामी : ब्राह्मण, मन्दारवती - पिता, तीन तरुण ब्राह्मणों की कथा ) द्र. कालाग्नि, जमदग्नि, दक्षिणाग्नि, अनल, वह्नि, अन्वाहार्यपचन, पञ्चाग्नि, पवमान, पावक, यज्ञ, शुचि, होम agni
Remarks on Agni
अग्निदत्त वराह १५५.६३( अग्निदत्त ब्राह्मण का इष्टकाओं की चोरी करने के कारण ब्रह्मराक्षस बनना, सुधना वणिक् द्वारा पुण्यदान से मुक्ति ), कथासरित् १.७.४२( गोविन्ददत्त ब्राह्मण की पत्नी अग्निदत्ता : पांच मूर्ख पुत्रों की माता ), ८.६.२००( अग्निदत्त द्वारा स्वकन्या सुन्दरी का गुणशर्मा से विवाह करना ) agnidatta
अग्निध्र वायु २९.१८( धिष्ण्य अग्नि का एक नाम, अग्नि व नदी - पुत्र ), ३.१.१७( स्वायम्भुव मनु - पुत्र ), ३३.९( अग्नीध्र : प्रियव्रत - पुत्र, जम्बू द्वीप का अधिपति ) द्र. आग्नीध्र agnidhra
अग्निबाहु मत्स्य ९.४( स्वायम्भnव मनु - पुत्र ), वायु १००.११६/२.३८.११६( १४वें मन्वन्तर में भौत्य मनु - पुत्र ), विष्णु २.१.७( प्रियव्रत - पुत्र, योग साधना में रत )
अग्निबिन्दु स्कन्द ४.२.६०( अग्निबिन्दु मुनि द्वारा पञ्चनद तीर्थ में विष्णु की स्तुति ), ४.२.६१( अग्निबिन्दु द्वारा विष्णु से काशी के तीर्थों के माहात्म्य का श्रवण, सुदर्शन चक्र के स्पर्श से ज्योति रूप में कौस्तुभ मणि से एकाकार होना ), लक्ष्मीनारायण १.४४६.५४( अग्निबिन्दु द्वारा बिन्दु तीर्थ में तप से श्रीहरि का बिन्दु तीर्थ में वास ) agnibindu
अग्निमन्थ भविष्य १.५७.१७( वरुण हेतु अग्निमन्थ बलि का उल्लेख )
अग्निमरुत हरिवंश १.४६.३२( पावक व मरुत द्वारा मय द्वारा सृष्ट पार्वती माया का शमन )
अग्नीमीड भविष्य ४.४६( नहुष - पुरोहित, मानमानिका - पति ) agnimeeda
अग्निमुख पद्म ५.१११( शिव/वीरभद्र - गण, दुष्ट विधृत राजा की मृत्यु से रक्षा, मृत्यु को शूली पर आरोपित करना ), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२६( अग्निमुख दैत्य का तृतीय तल में वास ) agnimukha
अग्निवर्ण शिव ५.३९.२७( ध्रुव - पुत्र, शीघ्र| - पिता )
अग्निवेश्य भागवत ९.२.२१( देवदत्त - पुत्र, अग्नि का अवतार, जातूकर्ण्य व कानीन उपनाम ), वामन ९०, वायु २३.२०७( २४वें द्वापर में शूली - पुत्र ), शिव ३.५, स्कन्द १.२.९.४०( स्वकन्या के अपहरण पर कुशध्वज को गृध्र बनने का शाप देना ), योगवासिष्ठ १.१.९( कारुण्य - पिता, पुत्र को कर्म से मोक्ष प्राप्ति के उपाय का कथन ) agniveshya
अग्निशर्मा मत्स्य १९९.७( कश्यप कुल के गोत्र प्रवर्तक ऋषि अग्निशर्मायण ), वायु १०६.३३( गया में श्राद्ध हेतु ब्रह्मा के मानस से सृष्ट ऋत्विज अग्निशर्मा द्वारा मुख से गार्हपत्य आदि ५ अग्नियों की सृष्टि ), स्कन्द ५.१.२४( सुमति व कौशिकी - पुत्र, दुष्ट चरित्र, सप्तर्षियों में से अत्रि द्वारा बोध, वाल्मीकि बनना ), लक्ष्मीनारायण १.४.७९( सुमति व कौशिकी - पुत्र, दुष्ट चरित्र, सप्तर्षियों में से अत्रि द्वारा बोध, वाल्मीकि बनना ), कथासरित् १८.५.१०४( सोमशर्मा - पुत्र, मूर्ख, शकुन देवता द्वारा मृत्यु दण्ड से रक्षा की कथा ) agnisharmaa
अग्निशिख पद्म ५.११०( राजा द्वारा शिव पूजा से वीरभद्र का अग्निशिख नामक गण बनना ), कथासरित् १.२.३०( सोमदत्त ब्राह्मण का उपनाम, वसुदत्ता - पति, वररुचि - पिता ), ७.५.६०( बक रूप धारी राक्षस अग्निशिख द्वारा स्वकन्या रूपशिखा का राजकुमार शृङ्गभुज से विवाह करना ), १८.२.२३( राजा विक्रमादित्य के अनुचर अग्निशिख वेताल द्वारा दुराचारी कापालिक का वध तथा अन्य वेताल यमशिख से विक्रमादित्य के प्रभाव का वर्णन करना ), १८.२.५४( अग्निशिख द्वारा कितव से रूप व प्रभाव के बदले महामांस का क्रय करना ), १८.२.६४( कितव द्वारा अग्निशिख को कूप में धकेलना, अग्निशिख द्वारा ब्रह्मराक्षसों से युद्ध व मैत्री करना, ठिण्ठाकराल नामक कितव का वृत्तान्त सुनना ), १८.२.२०५( अग्निशिख का कूप से निकल कर ब्राह्मण के भक्षण को उद्धत होना, विक्रमादित्य द्वारा ब्राह्मण की रक्षा ) agnishikha
अग्निष्टोम कूर्म १.१४.९( अग्निष्टुत् : मनु के १० पुत्रों में से एक ), पद्म १.३.१११( ब्रह्मा के पूर्व दिशा के मुख से अग्निष्टोम की उत्पत्ति ), १.३०.१११( बलि द्वारा पुरन्दर के दर्शन को अग्निष्टोम आदि यज्ञों के फल के तुल्य कहना ), ३.११.१९( तीर्थयात्रा के फल की अग्निष्टोम आदि के फल से श्रेष्ठता ), ३.१२.५( अगस्त्य आश्रम में आकर पितृ व देव अर्चना करने पर अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.१२.१३( नर्मदा नदी में पितरों व देवों के तर्पण से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२४.३( दक्षिण सिन्धु में आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२४.४( चर्मण्वती नदी में आने से रन्तिदेव द्वारा अनुज्ञात अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२४.७( प्रभास तीर्थ में अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२५.८( मणिमान् में आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२५.१९( चमसोद्भेद में स्नान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति, शिवोद्भेद में स्नान से गो सहस्र फल का उल्लेख ), ३.२६.१०( पारिप्लव तीर्थ में आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२६.४६( सूर्य तीर्थ में आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२६.४९( लवर्णक द्वारपाल के तीर्थ में सरस्वती में स्नान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२६.६७( आपगा नदी में स्नान आदि से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२६.७१( सर्वक तीर्थ में समन्तक ह्रद आदि में स्नान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२७.४२( सरस्वती - अरुणा सङ्गम पर स्नान आदि से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२७.६५( अस्थिपुर में पावन तीर्थ में तर्पण से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२८.४( कलापावन तीर्थ में स्नान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३२.१६( कार्तिक माघ तीर्थ में आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३२.४४( गोमती - गङ्गा सङ्गम पर आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३८.३४( विशाला नदी पर आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३९.८( शोण व ज्योतिरथ्या के सङ्गम पर तर्पण से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३९.३५( कन्याश्रम में गमन मात्र से शत अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३९.५३( मेधावन में आकर तर्पण करने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ६.४३.५४( जया एकादशी से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ६.१२३.८( मास उपवास के फल की अग्निष्टोम के फल से श्रेष्ठता का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.१५.११( अतिथि को पायस दान से अग्निष्टोम फल प्राप्ति ), भविष्य १.१३५.४४( सूर्यदेव को वारि, पय: पायस, घृत, मधु व इक्षु रस से स्नान कराने पर क्रमश: अग्निष्टोम, गोमेध, ज्योतिष्टोम, वाजपेय, राजसूय व अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ४.५७.१८( कार्तिक कृष्ण अष्टमी को शिव की रुद्र नाम से अर्चना करने पर अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), भागवत ४.१३.१५( चक्षु व नड्वला - पुत्र ), मत्स्य ५३.३२( भविष्य पुराण दान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), वराह १४०.१९( कोकामुख/बदरी क्षेत्र में विष्णुधारा में स्नान से सहस्र अग्निष्टोमों के फल की प्राप्ति ), २१५.६८( पञ्चनद तीर्थ में स्नान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), वायु ९.४९( ब्रह्मा के पूर्व दिशा के मुख से अग्निष्टोम यज्ञ की उत्पत्ति ), विष्णु १.५.५३( ब्रह्मा के पूर्व दिशा के मुख से अग्निष्टोम यज्ञ की उत्पत्ति ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०७.३६( अग्निष्टोम की ब्रह्मा के पूर्व दिशा के मुख से तथा अन्य मुखों से अन्य यज्ञों की उत्पत्ति ), १.१६६.३५( कार्तिक मास में द्विज गृह में दीप दान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), १.१८१.२( षष्ठम चाक्षुष मन्वन्तर वर्णन के संदर्भ में चाक्षुष मनु के १० पुत्रों में से एक ), २.९५.१५( सोम संस्था वाले ७ यज्ञों में से एक ), ३.१८.१( २० मध्यम ग्रामिकों में से एक ), ३.२१८.९( कार्तिक में दशाह व्रत से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२६७.१४( सङ्ग्राम में शूरता का अग्निष्टोम आदि यज्ञों के फल से अधिक महत्त्व होने का उल्लेख ), ३.२९६.१३( वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर, वसन्त व ग्रीष्म ऋतुओं में तडाग में जल उपलब्ध कराने पर क्रमश: अग्निष्टोम, द्वादशाह, गोसव, पौण्डरीक, वाजपेय व अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ३.३१३.७( विभिन्न प्रकटर के वस्त्रों के दान के संदर्भ में मृग लोम से निर्मित वस्त्र दान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३४१.७८( आरण्य मतगों व पक्षियों के दान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३४१.१६६( बकुल निर्यास से जनार्दन का अनुलेप करने पर अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३४१.१८२( दुकूलक दान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), शिव ५.१३.२१( शिव कथा श्रवण मात्र से १०० अग्निष्टोमों के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३०.१५( चाक्षुष मनु व नड्वला के १० पुत्रों में से एक ), ७.१.१२.५९( अग्निष्टोम की ब्रह्मा के पूर्व दिशा के मुख से तथा अन्य मुखों से अन्य यज्ञों की उत्पत्ति ), स्कन्द १.२.३४.६७( शिव लिङ्ग का क्षीर व पञ्चामृत से स्नान कराने पर अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), २.१.३४.१९( मकर सङ्क्रान्ति को अग्निस्त्येश लिङ्ग के दर्शन से सहस्र अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.१.३६.९१, ३.१.३६.१७३( एकादशी को महालय श्राद्ध करने से अग्निष्टोम आदि यज्ञों के फल की प्राप्ति, न करने से किए हुए अग्निष्टोम यज्ञ का निष्फल होना ), ३.१.४२.४२( नल तीर्थ में स्नान से अग्निष्टोम आदि फल की प्राप्ति ), ५.२.२८.१२( अच्छिद्र वाक् से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.४०.४१( कुण्डेश्वर लिङ्ग पूजा से अग्निष्टोम फल प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.३८.७२( नर्मदेश्वर तीर्थ में सुवर्ण या रजत आदि दान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.४०.१९( करञ्जेश्वर तीर्थ में स्नान आदि से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१२०.२४( कम्बु तीर्थ में स्नान आदि से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१२२.३५( कोहनस्व तीर्थ में स्नान आदि से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ५.३.१२७.३( अग्नि तीर्थ में कन्या दान से अग्निष्टोम व अतिरात्रों से भी सौ गुने फल की प्राप्ति ), ५.३.१२८.४( भृकुटेश्वर तीर्थ में शिव की पूजा से अग्निष्टोम से ८ गुने फल की प्राप्ति ), ५.३.१४५.२( शिव तीर्थ में स्नान आदि से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ५.३.१४६.५९( अमावास्या को ब्रह्मशिला पर श्राद्ध करने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ६.९०.६७( अग्नि तीर्थ में अग्नि सूक्त का जप करने के पश्चात् ब्रह्मा के दर्शन करने पर अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ६.१७९.६६+ ( पुष्कर - त्रय की स्थिरता हेतु ब्रह्मा द्वारा अग्निष्टोम - त्रय के यजन का वर्णन : दीक्षा कर्म हेतु ब्रह्मा की पत्नी सावित्री के यज्ञ में न आने पर इन्द्र द्वारा गोपकन्या का गौ शरीर से पारण कर शुद्ध करके ब्रह्मा की पत्नी गायत्री बनाना ; यज्ञ के प्रथम दिन एकादशी को कपाली रुद्र का उपद्रव व शान्ति, दूसरे दिन सर्प द्वारा होता का वेष्टन आदि, तीसरे दिन नागर अतिथि का आगमन और अतिथि द्वारा सिद्धि प्राप्ति के हेतुभूत पिङ्गला, कुरर, सर्प, भ्रमर, इषुकार व कन्या रूपी ६ गुरुओं से शिक्षा प्राप्ति का वर्णन, यज्ञ के चतुर्थ दिन राक्षस द्वारा होम हेतु सुरक्षित पशु के अङ्गों में से गुद के भक्षण का वृत्तान्त, यज्ञ के पांचवें दिन पर्वत - कन्या औदुम्बरी द्वारा उद्गाता को शङ्कु प्रचार कर्म के सम्बन्ध में प्रबोधना और स्वर्ग गमन, सावित्री का यज्ञान्त में यज्ञ में आगमन और गायत्री को ब्रह्मा - पत्नी बनाने पर देवों को शाप, गायत्री द्वारा देवों को वरदान आदि ), महाभारत वन २२२.६( अग्निष्टोम में भरत/नियत अग्नि के निवास का उल्लेख ), अनुशासन १०६.३६( उपवास द्वारा अग्निष्टोम फल प्राप्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.२६१.३१( अग्निष्टोम शब्द की व्याख्या ) agnishtoma
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अग्निष्वात्त गरुड १.८९.४१( पितर, प्राची दिशा के रक्षक ), देवीभागवत ८.२१( अग्निष्वात्त पितरों की अतल लोक से ऊपर स्थिति, वंशजों के कल्याणकामी ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.६( यज्ञ न करने वाले गृहस्थ पितर ), १.२.१३.३३(अग्निष्वात्त पितरों द्वारा मेना कन्या हिमवान् को पत्नी रूप में देने का उल्लेख), २.३.१०.७७(अग्निष्वात्त पितरों की कन्या पीवरी द्वारा शुक से ५ पुत्रों व १ कन्या को जन्म देने का कथन), वायु ५२.६८( आर्त्तव रूप पितर ), शिव ७.१.१७.४७( २ प्रकार के पितरों में से एक, मेना - पिता ), स्कन्द ५.१.५८( अग्निष्वात्त पितरगण का क्रौञ्च पर्वत में निवास ), हरिवंश १.१८.२६( पितरों का गण, वंश वर्णन ) agnishvaatta
अग्निहोत्र कूर्म २.२४.९( अग्निहोत्र कर्म का महत्त्व ), देवीभागवत ११.२२.२३( प्राणाग्निहोत्र विधि का वर्णन ), ७.२०.३१( वाक्य अनृत होने पर अग्निहोत्र आदि क्रियाओं के विफल होने का उल्लेख ), नारद १.५५.७९( फलित ज्योतिष के संदर्भ में अग्निहोत्र गृह में जीव/बृहस्पति द्वारा जन्म लेने का उल्लेख ), पद्म १.१४.८३( अग्निहोत्र की प्रशंसा ), २.१२.६२( नियम व दान का तपोरत दुर्वासा के समक्ष अग्निहोत्री के रूप में प्रकट होने का उल्लेख ), ३.३१.१२३( शालग्राम शिला के चक्र में श्रीहरि की अर्चना करने से अग्निहोत्र फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३७.९( आरण्यक मुनि का राम के दर्शन को अग्निहोत्र के फल की प्राप्ति कह कर हर्षित होना ), ब्रह्माण्ड १.२.२१.१६०( अग्निहोत्र कर्म से पितृयान मार्ग में गति ), भविष्य १.१८२.३९( अग्निहोत्र और दारकर्म में मैथुन की समानता के कारण विवाह का दाराग्निहोत्र नाम ), भागवत ६.१८.१( सविता व पृश्नि की सन्तानों में से एक ), ३.१३.३६( यज्ञ वराह के चर्वणों में अग्निहोत्र का न्यास ), ७.१५.४८( अशान्ति उत्पन्न करने वाले प्रवृत्तिपरक कर्मों में से एक ), ९.११.१८( राम द्वारा परलोक गमन से पूर्व १३ सहस्र वर्षों तक अखण्ड अग्निहोत्र करने का उल्लेख ), ९.१५.२५( सहस्रबाहु अर्जुन द्वारा जमदग्नि ऋषि की अग्निहोत्री गौ के हरण व परशुराम द्वारा गौ की पुन: प्राप्ति का वर्णन ), मत्स्य १०७.१६( ऊर्ध्वपाद - अध:शिर होकर ज्वाला पान से अग्निहोत्री रूप में जन्म लेने का उल्लेख ),१२४.९८( पितृयान मार्ग पर प्रजाकामी अग्निहोत्री ऋषियों की स्थिति ), १८३.८१( अविमुक्त क्षेत्र में सुवर्ण पुष्प दान से अग्निहोत्र फल की प्राप्ति ), वायु १०४.८३( अग्निहोत्र का आनन में न्यास ), विष्णु २.८.५३( वर्षपर्यन्त सूर्य की स्थिति में परिवर्तन का वर्णन, अग्निहोत्र में मन्देहा राक्षसों के नाश का कथन ), ६.८.३०( विष्णु पुराण श्रवण से अग्निहोत्र फल की प्राप्ति ), विष्णुधर्मोत्तर १.५८.१७( अग्निहोत्र से केशव की तुष्टि का उल्लेख ), १.१३६.३४( काम रहित अग्निहोत्र से गन्धर्वत्व आदि प्राप्ति का उल्लेख ), १.१३६.३५( अग्निहोत्र से पुरूरवा को गन्धर्वत्व प्राप्ति, अग्निहोत्र की अग्नियों का चतुर्व्यूह में वर्गीकरण), शिव १.२४.७( अग्निहोत्र की भस्म के त्रिपुण्ड्र धारण में उपयोग का उल्लेख ), ५.१२.१२( वर्षा ऋतु में तालाब में जल एकत्र करने से अग्निहोत्र फल प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द २.१.५.२१( रावण द्वारा सीताहरण के प्रसंग में अग्निहोत्रगत अग्नि द्वारा वास्तविक सीता के स्थान पर कृत्रिम सीता के प्रतिस्थापन का उल्लेख ), २.८.६.२०१( गोविन्द को धूप समर्पित करने से अग्निहोत्र फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.३.५७( वर्तुलाकार गार्हपत्य अग्नि में ब्रह्मा, अर्धचन्द्राकार दक्षिणाग्नि में विष्णु तथा चतुष्कोणीय आहवनीय अग्नि में हर की पूजा का कथन ), ५.३.१३९.८( सोम तीर्थ में वैदिक ब्राह्मण को भोजन देने से अग्निहोत्र फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.२०८.५( देव ऋणों में से एक अग्निहोत्र का उल्लेख ), ६.२१५.१९( अग्निहोत्र के फल के रूप में वेदों का श्लोक ), ७.१.४.५९( श्री सोमेश्वर की यात्रा से अग्निहोत्र आदि के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ७.१.१२९.१५( शूद्रान्न से निवृत्ति न होने पर अग्निहोत्री की आत्मा, ब्रह्मा और तीनों अग्नियों के नाश का उल्लेख ), ७.१.१२९.१७( शूद्रान्न से अग्निहोत्र आहुति देने पर द्विज के चाण्डाल होने का उल्लेख ), ७.१.२०७.५०( अग्रज के होते हुए दाराग्निहोत्र संयोग करने पर परिवेत्ता संज्ञा होने का उल्लेख ), महाभारत आदि ११.२( अग्निहोत्र में रत खगम ब्राह्मण द्वारा सहस्रपाद ऋषि को सर्प होने के शाप का वृत्तान्त ), १.२१३.८( अग्निहोत्र कर्म के लिए उद्धत अर्जुन का नागकन्या उलूपी द्वारा नागलोक में कर्षण, अर्जुन द्वारा नागलोक में अग्निकर्म सम्पन्न करना व उलूपी से इरावान~ पुत्र उत्पन्न करना ), सभा ५.११३( नारद - युधिष्ठिर संवाद के अन्तर्गत वेदों के फल अग्निहोत्र इत्यादि श्लोक का उल्लेख ), वन ८२.३६( कार्तिक पूर्णिमा को पुष्कर में वास से १०० अग्निहोत्र फल की प्राप्ति का उल्लेख ), १३६.१७( ऋषि द्वारा उत्पन्न राक्षस से भयभीत होकर यवक्रीत मुनि का पिता भरद्वाज के अग्निहोत्र गृह में पलायन करना तथा वहां शूद्र द्वारा पकडे जाने पर राक्षस द्वारा यवक्रीत का वध आदि ), १८६.१७( अग्निहोत्र से प्रकट सरस्वती देवी द्वारा तार्क्ष्य मुनि को अग्निहोत्र क्रिया की सफलता के लिए याजक के अपेक्षित गुणों का वर्णन करना ), २२०.१८( अग्निहोत्र होने पर तप/पाञ्चजन्य के पुत्र बृहदुक्थ की प्रतिष्ठा का उल्लेख ), २२१.२३( अग्निहोत्र कर्म में दुष्टता/त्रुटि पर विभिन्न अग्नियों के लिए इष्टि विधान का वर्णन ), २२२.४, २२४.२८+ ( सह अग्नि व मुदिता के पुत्र अद्भुत अग्नि की गृहपति नाम से प्रतिष्ठा, अद्भुत द्वारा आहवनीय अग्नि में हुत आहुति को देवताओं तक पहुंचाना, अद्भुत अग्नि की सप्तर्षि - पत्नियों पर आसक्ति, समागम से स्कन्द कार्तिकेय के जन्म का विस्तृत वर्णन ), २९३.११( अग्निहोत्र से प्रकट सावित्री द्वारा राजा अश्वपति को कन्या प्राप्ति का वरदान, सावित्री – सत्यवान् का प्रसंग ), ३११.१०+ ( मृग रूप धारी यक्ष द्वारा ब्राह्मण के अग्निहोत्र के उपकरणों अरणि व मन्थ का हरण, पांचों पाण्डवों द्वारा मृग का पीछा करना, तृषित होने पर सरोवर से जल पान की चेष्टा करने पर यक्ष द्वारा प्राणरहित करना, युधिष्ठिर का बक रूप धारी यक्ष से वार्तालाप, युधिष्ठिर द्वारा प्रश्नों के उत्तर देने पर यक्ष का यम/धर्म के रूप में प्रकट होना, अरणि व मन्थ की प्राप्ति आदि ), विराट ४.२( राजा विराट के नगर में अज्ञातवास से पूर्व पाण्डवों द्वारा अग्निहोत्र की रक्षा का कार्य पुरोहित धौम्य को सौंपना ), शान्ति ११०.९( अग्निहोत्र परायण होकर अपनी दारा से समागम करने पर दुर्गुणों से पार होने का उल्लेख ), १६५.२१( अग्निहोत्र के अनधिकारी गण ), २९२.२१( विप्र को वेद - त्रयी रूपी आहिताग्नि की प्राप्ति होने पर अग्निहोत्र क्रिया की अनिवार्यता का उल्लेख ), आश्रम १५.३( युद्ध के अन्त में राजा धृतराष्ट्र द्वारा अग्निहोत्र को आगे करके वन गमन का उल्लेख ),लक्ष्मीनारायण ३.३४.१०७( कल्याणिका - पति व कल्याणी लक्ष्मी - पिता अग्निहोत्री द्विज का उल्लेख ) द्र. यज्ञ agnihotra
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अग्नीषोम गरुड १.६७.९(वामा सोमात्मिका प्रोक्ता दक्षिणा रविसन्निभा । मध्यमा च भवेदग्निः फलन्ती कालपूरिणी), ३.२०.२२ (मित्रविन्दा द्वारा अग्नीषोम की अभीप्सा का उल्लेख - यान्पूर्वसर्गेप्यवृणोन्निकामतो ह्यग्नीषोमान्नामिका मित्रविन्दा ।), नारद १.४२.२१( अग्नि व सोम : चन्द्र व सूर्य के रूप में विराट विष्णु के नयन ), १.८०.२८६( कृष्ण के अग्नीषोमात्मक रूप का ध्यान - अग्रीषोमात्मकं कृष्णं द्रुतचामीकरप्रभम् ।। अर्काग्निद्योतितास्यांघ्रिपंकजं दिव्यभूषणम् ।। ), ब्रह्माण्ड २.३.७२.१८८( अग्नीषोम विधिज्ञ : शिव का विशेषण/नाम ), शिव ७.१.२७.१३( शिव व पार्वती के अग्नीषोमात्मक होने का कथन - अहमग्निशिरोनिष्ठस्त्वं सोमशिरसि स्थिता ॥ अग्नीषोमात्मकं विश्वमावाभ्यां समधिष्ठितम् ॥ ), ७.१.२८( विश्व की अग्नीषोमात्मक स्थिति : शिव व शक्ति का रूप - अग्निरित्युच्यते रौद्री घोरा या तैजसी तनुः ॥ सोमः शाक्तो ऽमृतमयः शक्तेः शान्तिकरी तनुः ॥ ), हरिवंश १.४०.५४( स्थूल देह के स्तर पर शुक्र व शोणित तथा कफ व पित्त के उदाहरणों से जगत को अग्नीषोमात्मक कहना - मनः प्रजापतिर्ज्ञेयः कफः सोमो विभाव्यते । पित्तमग्निः स्मृतं ह्येतदग्नीषोमात्मकं जगत् ।। ), १.४९.२०( अग्नीषोममय लोक में अग्नि व सोम के सनातन विष्णु होने का उल्लेख ), २.२५.११( अक्रूर की व्रज यात्रा के प्रसंग में अक्रूर का सायंकाल अग्नीषोमात्मक संधि में व्रज में प्रवेश करने का उल्लेख ), महाभारत सभा ७.२१( अग्नीषोम - द्वय का इन्द्र सभा में उपस्थित रहने का उल्लेख ), वन २२१.१५( मनु/भानु व निशा के पुत्रों में से दो ), शान्ति १८२.१८( अग्नीषोम/चन्द्रार्क का उल्लेख - ऊर्ध्वं गतेरधस्तात्तु चन्द्रादित्यौ न दृश्यतः। तत्र देवाः स्वयं दीप्ताः सूर्यभासोऽग्निवर्चसः।। ), २८८.३३( इस जगत को अग्नीषोमात्मक जान लेने पर अद्भुत भावों/माया से मुक्ति का उल्लेख - अग्नीषोमाविदं सर्वमिति यश्चानुपश्यति। न च संस्पृश्यते भावैरद्भुतैर्मुक्त एव सः।। ), ३४१.५०( अग्नीषोम - द्वय के एक योनि होने का उल्लेख ), ३४२.१( अग्नीषोम के एक योनि होने के कारण की विस्तृत व्याख्या : सृष्टि के आदि में पुरुष से ब्रह्म/ब्राह्मण/सोम तथा क्षत्र/क्षत्रिय अग्नि का प्राकट्य, वेद मन्त्रों में अग्नि का ब्राह्मणत्व सिद्ध होना, वडवामुख द्वारा समुद्र के लवण जल को पीकर शुद्ध करना, इन्द्र - त्वष्टा विश्वरूप व इन्द्र - नहुष आख्यान आदि - यः सोमस्तद्ब्रह्म यद्ब्रह्म ते ब्राह्मणाः। योऽग्निस्तत्क्षत्रं क्षत्राद्ब्रह्म बलवत्तरम्॥), ३४२.६७/३५२.२(अग्नीषोम के कारण हृषीकेश नाम की निरुक्ति - .. अग्नीषोमकृतैरेभिः कर्मभिः पाण्डुनन्दन। हृषीकेशोऽहमीशानो वरदो लोकभावनः।।), अनुशासन ६३.४०( अग्नीषोम - द्वय द्वारा प्राणियों को उत्पन्न करने वाले शुक्र का सृजन व पुष्टि करने का उल्लेख - सम्भवन्ति ततः शुक्रात्प्राणिनः पृथिवीपते। अग्नीषोमौ हि तच्छुक्रं सृजतः पुष्यतश्च ह।। ), ८५.८६( स्वर्ण की उत्पत्ति के संदर्भ में स्वर्ण के अग्नीषोमात्मक/अग्निष्टोमात्मक होने का उल्लेख - पवित्राणां पवित्रं हि कनकं द्विजसत्तमाः। अग्नीषोमात्मकं चैव जातरूपमुदाहृतम्।। ), ९७.१०( बलि वैश्वदेव कर्म में सर्वप्रथम अग्नीषोम को आहुति देने का निर्देश - आग्नीषोमं वैश्वदेवं धान्वन्तर्यमनन्तरम्। ), आश्वमेधिक २०.१०( आत्मा? में अग्नीषोम की स्थिति का उल्लेख - यत्र तद्ब्रह्म निर्द्वन्द्वं यत्र सोमः सहाग्निना। व्यवायं कुरुते नित्यं धीरो भूतानि धारयन्।। ), योगवासिष्ठ ६.१.८१.८०( जगत की कार्य-कारण अग्नीषोमात्मकता की व्याख्या के रूप में सूर्य द्वारा सोम का पान करने पर सोम का सूर्य की किरणों में परिवर्तित होना, शुक्ल पक्ष में सोम का पुन: आप्यायन होना, वडवामुख अग्नि द्वारा समुद्र का पान करके धूम उद्गार के रूप में पुन: जल को प्रकट करना आदि ; बाह्य व आन्तरिक संक्रान्तियों को जानने का निर्देश - अग्नीषोमौ मिथः कार्यकारणे च व्यवस्थिते । पर्यायेण समं चैतौ प्रजीषेते परस्परम् ।। ) agneeshoma
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अग्न्याधेय महाभारत शान्ति १६५.२३( अग्न्याधेय की प्राजापत्य अश्व दक्षिणा का उल्लेख )
अग्र भविष्य ३.४.२२.३१( अग्रभुक् : सन्त, पूर्व जन्म में वरेण्य ), कथासरित् १२.१०.४८( अग्रदत्त वणिक् द्वारा स्व - कन्या वसुदत्ता का समुद्रदत्त से विवाह, वसुदत्ता के जार कर्म की कथा ) द्र. प्रत्यग्र agra
अघ गर्ग २.६( अघासुर : शङ्खासुर - पुत्र, अष्टावक्र के शाप से सर्प बनना, कृष्ण द्वारा उद्धार ), भविष्य ३.४.१८( संज्ञा विवाह प्रसंग में अघासुर का अर्यमा से युद्ध ), भागवत १०.१२( कृष्ण द्वारा अघासुर का उद्धार ), लक्ष्मीनारायण ३.१६७.४६( अघ नाश हेतु विभिन्न देवों का आह्वान ), कृष्णोपनिषद १५( महाव्याधि का रूप )द्र. अनघ, पाप, मघा, माघ agha
Remarks on Agha
अघमर्षण अग्नि ७२.३६( अघमर्षण कर्म विधि ), २१५.४१( अघमर्षण सूक्त ऋतं च इति के ऋषि, देवता व छन्द का कथन ), कूर्म २.१८.७२( अघमर्षण स्नान की महिमा ), नारद १.६६.६१( अघमर्षण विधि ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.११७( विश्वामित्र गोत्र/प्रवर के एक ऋषि ), भागवत ६.४.२१( अघमर्षण तीर्थ में दक्ष का तप ), मत्स्य १४५.११२( विश्वामित्र गोत्र/प्रवर के एक ऋषि ), १९८.१२( विश्वामित्र गोत्र/प्रवर के एक ऋषि ), स्कन्द ४.१.३५.१४७( अघमर्षण मन्त्र का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण ३.९.६४( अघमर्षण खण्ड में तुङ्गभद्रा तापसी द्वारा राक्षसों के वध हेतु लक्ष्मी की पुत्री रूप में प्राप्ति ) aghamarshana
Remarks on Aghamarshana
अघासुर गर्ग २.६(शङ्खासुर-पुत्र, अष्टावक्र के शाप से सर्प बनना, कृष्ण द्वारा उद्धार), भविष्य ३.४.१८(अर्यमा से युद्ध : संज्ञा विवाह प्रसंग), भागवत १०.१२(कृष्ण द्वारा उद्धार)
Remarks on Aghaasura
Remarks on Aghora
अङ्क पद्म ६.२२४.७४( वैष्णव द्वारा बाहुमूल आदि पर चक्रादि चिह्नों के अङ्कन का कथन ), भविष्य २.१.८.३७( देवताओं के लिए अङ्कों का निर्धारण )द्र. मृगाङ्क, शशांक anka
Remarks on Anka
अङ्कपाद स्कन्द ५.१.२७( उज्जयिनी में कृष्ण के चरण चिह्नों का स्थान, कृष्ण द्वारा सान्दीपनि - पुत्र की यम से प्राप्ति की कथा ), ५.२.३९.२६( अङ्कपाद के आगे स्थित लिङ्ग से अक्रूरत्व प्राप्ति का उल्लेख ) ankapaada
अङ्कुर गणेश १.५७.२७(मुद्गल द्वारा कैवर्त्त को यष्टि के अङ्कुरित होने तक गणेश नाम जप का निर्देश), योगवासिष्ठ ४.३३.३६( अहंकार अङ्कुर, मन हल, आत्मा क्षेत्र ), लक्ष्मीनारायण १.५२.९६( अङ्कुर उत्पन्न न करने वाले धान्य की अज संज्ञा का उल्लेख ), कथासरित् ८.४.७५( चक्रवाल राजा द्वारा अङ्कुरी राजा का वध ) ankuura/ ankoora/ ankur
अङ्कुश गणेश २.९५.५९(गणेश द्वारा अङ्कुश से वृक दैत्य का वध), ब्रह्माण्ड ३.४.१५.२०( विश्वकर्मा द्वारा ललिता को अङ्कुश भेंट ), ३.४.४२.११( महाङ्कुशा मुद्रा का स्वरूप ), योगवासिष्ठ १.२१.१०( मनुष्य रूपी हाथी को अज्ञान रूपी निद्रा से जगाने के लिए शम रूपी अङ्कुश ) द्र आयुध amkusha/ankusha
Remarks on Ankusha
अङ्कूर स्कन्द ५.३.१६८.१८( अङ्कूरेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, अङ्कूर नामक कुम्भ - पुत्र व कुम्भकर्ण - पौत्र द्वारा तप करके अमरता वर की प्राप्ति ) amkuura/ankuura
अङ्कोल स्कन्द ५.३.१५०.४५( अङ्कोल मूल में पिण्ड दान से १२ वर्षों तक पितरों की तृप्ति होने का कथन ) ankola
अङ्ग गरुड १.२१.७( अङ्गना : ईशान की कलाओं में से एक ), गर्ग ७.१५.१( अङ्ग देश पर प्रद्युम्न की विजय ), देवीभागवत १०.९.१( चाक्षुष मनु - पिता ), नारद १.५६.७४४( अङ्ग देश के कूर्म का पाणिमण्डल होने का उल्लेख ), पद्म २.३०( अत्रि - पुत्र, सुनीथा से परिणय, वेन पुत्र ), ५.६७.३९( अङ्गसेना : रिपुताप - पत्नी ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१०८( ऊरु व आग्नेयी - पुत्र ), भागवत ४.१३.१७( उल्मुक व पुष्करिणी - पुत्र, सुनीथा - पति, पुत्रेष्टि द्वारा वेन पुत्र की प्राप्ति ), ६.४.४६( अङ्गों के क्रतु होने का उल्लेख ), मत्स्य ४.४४( ऊरु व आग्नेयी - पुत्र ), १०.३( स्वायम्भnव मनु - वंशज ), ४८.७७( सुदेष्णा व बलि का क्षेत्रज पुत्र ), वराह ३६.५, वायु ४८.१५( अङ्ग द्वीप का वर्णन ), ६२.९२/२.१.९१( ऊरु व आग्नेयी - पुत्र ), विष्णु १.१३.६( कुरु व आग्नेयी - पुत्र, सुनीथा - पति ), विष्णुधर्मोत्तर २.१६५( अङ्ग विद्या ), ३.२४( अभिनय में अङ्गों की स्थिति ), ३.१२१.९( अङ्ग देशों में गजेद्रमोक्षण देव की पूजा का निर्देश ),स्कन्द ४.२.८८.६३( सती के रथ में शिक्षा, कल्प आदि अङ्गों द्वारा रक्षकों का कार्य ), महाभारत कर्ण ४५.४०( अङ्ग देश के निवासियों के दोष ), वा.रामायण १.९( राजा रोमपाद द्वारा शासित अङ्गदेश में ऋष्यशृङ्ग मुनि के आगमन से वृष्टि ), लक्ष्मीनारायण २.१०९.९९( शिव द्वारा अङ्ग - शिक्षाङ्ग देश के राजा शृङ्गशेक का वध ), २.११०.७३( शिव का अङ्ग - शिक्षाङ्ग देश का राजा बनना ), २.१६७.४२( अङ्ग राजा द्वारा विषय ऋषि के साथ यज्ञ में आने का उल्लेख ), २.१९१.८३( अनङ्ग/कर्दम - पुत्र, सुनीथा - पति, वेन प्रसंग ), २.१९२( अङ्गराज : रङ्गरजा - पति अङ्गराजा द्वारा कृष्ण का स्वागत करना ), कथासरित् १२.४.१०९( कमलाकर द्वारा अङ्गराज को परास्त करना ), १२.१५.३, १२.१९.४( अङ्ग देश के राजा यश:केतु की कथा ), १२.१९.१४०, वास्तुसूत्रोपनिषद १.१०(शैल से अंगराग प्रसरण का उल्लेख), ६.१०(४ रूपाङ्गों का कथन), द्र. वंश ध्रुव, अनङ्ग, कामाङ्गी, चक्रांका, चित्राङ्ग, न्यास वज्राङ्ग, वराङ्गी, वाराङ्गना, शरीर, शुभाङ्गी, शुभ्राङ्ग, समङ्ग, हर्यङ्ग, हेमाङ्ग anga
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अङ्गद पद्म ५.५०( अङ्गद द्वारा अश्वमेध - अनुगामी शत्रुघ्नÀ का दूत बनकर सुरथ राजा के पास जाना ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२१९( वालि व तारा - पुत्र, ध्रुव - पिता ), ३.४.३५.९२( अङ्गदा : चन्द्रमा की १६ कलाओं में से एक ), भविष्य ३.३.३२.६८( महीराज - सेनानी, रुद्रवर्मा से युद्ध ), भागवत ९.१०.४४( राम के वन से अयोध्या आगमन पर अङ्गद द्वारा राम की खड्ग का वन ), ९.११.१२( लक्ष्मण - पुत्र ), वायु ९६.२४७/२.३४.२४७( बृहती व सुनय के पुत्रों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४१.१९५( अङ्गद दान से पृथिवी पर राजा होने का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.४९.२८( अङ्गद द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ३.१.५१.२६(अङ्गद का मध्य में स्मरण), वा.रामायण ४.६५( अङ्गद की गमन शक्ति का कथन ), ६.१७.३८( अङ्गद द्वारा विभीषण - शरणागति विषयक विचार व्यक्त करना ), ६.२४.१४( अङ्गद की नील के साथ वानर सेना के उरोदेश में स्थिति ), ६.२६.१७( सारण द्वारा रावण को अङ्गद का परिचय ), ६.३७.२७( अङ्गद का लङ्का के दक्षिण द्वार पर महापार्श्व व महोदर से युद्ध ), ६.६९.८१( अङ्गद द्वारा नरान्तक का वध ), ६.७६( अङ्गद द्वारा कम्पन व प्रजङ्घ का वध ), ६.९८( अङ्गद द्वारा महापार्श्व का वध ), ७.१०२( लक्ष्मण - पुत्र, अङ्गदीया पुरी का राजा ) द्र. कनकाङ्गदा, चन्द्राङ्गद, चित्राङ्गद, धर्माङ्गद, बर्हिषाङ्गद, वज्राङ्गद, रुक्माङ्गद, स्वर्णाङ्गद, हेमाङ्गद angada
Remarks on Angada
अङ्गार पद्म ६.६.९०( अङ्गारपर्ण : जालन्धर - सेनानी, अश्विनौ से युद्ध ), ब्रह्माण्ड ४.३३.६१( अङ्गार पातन : एक नरक का नाम ), मत्स्य २२.३५( अङ्गार वाहिका : नदी, श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थ ), वायु ४३.२६( अङ्गारवाहिनी : भद्राश्व वर्ष की एक नदी ), स्कन्द ४.२.८४.७४( अङ्गार तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.२३१.१६( रेवा - सागर सङ्गम पर ४ अङ्गारेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश १.३२.८७( अङ्गारसेतु : सेतु - पुत्र, गान्धार - पिता, ययाति के वंशज, मान्धाता से युद्ध व मृत्यु ), कथासरित् ८.१.१७( अङ्गारप्रभ : चन्द्रप्रभ - पिता ) द्र. लोहाङ्गार, शिलाङ्गारखानि angaara
Remarks on Angaara
अङ्गारक नारद १.६९.७२( अङ्गारक पूजा विधि, अङ्गारक न्यास व व्यूह ), पद्म १.२४( अङ्गारक ग्रह : वीरभद्र का प्रतिष्ठित रूप, अङ्गारक पूजा व दर्शन से विरोचन को रूप प्राप्ति ), १.८१( अङ्गारक की शिव से उत्पत्ति, शुक्र का रूप, पूजा विधि ), ब्रह्माण्ड १.२.१०.७८( शर्व व विकेशी - पुत्र ), १.२.२४.९१( विकेशी व अग्नि - पुत्र ), २.३.३.७०( सुरभि व कश्यप - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक ), भविष्य ४.३१( अङ्गारक की शिव से उत्पत्ति, निरुक्ति, अङ्गारक व्रत, अङ्ग न्यास ), मत्स्य ७२( अङ्गारक व्रत की विधि, विरोचन द्वारा रूप प्राप्ति, वीरभद्र की उत्पत्ति, अङ्गारक बनना ), वायु २७.५१, स्कन्द ४.२.९७.६७( अङ्गारक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.३७.४०( अङ्गारक की शिव के ललाट के स्वेद से उत्पत्ति, अङ्गारकेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ५.२.४३( अङ्गारकेश्वर का माहात्म्य, शिव गात्र से अङ्गारक की उत्पत्ति, अङ्गारक द्वारा महाकालवन में लिङ्ग की पूजा ), ५.३.११५( अङ्गारक तीर्थ का माहात्म्य, अङ्गारक द्वारा तप से ग्रह पद प्राप्ति ), ५.३.१४८.१( नर्मदा तट पर अङ्गारक तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ), ७.१.४५( अङ्गारकेश्वर का माहात्म्य, भूमि पर पतित शिव के क्रोध से अङ्गारक की उत्पत्ति, ग्रहत्व प्राप्ति ), वा.रामायण ६.१०२.३५( राम - रावण युद्ध के समय अङ्गारक ग्रह की स्थिति का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.५७२, कथासरित् २.३.३७( असुर, अङ्गारकावती - पिता ), १६.२.२७( अङ्गारका - पिता, शूकर रूप, राजा चण्डमहासेन द्वारा वध ) angaaraka द्र. कुज, मङ्गल, रक्षाङ्गारक
Remarks on Angaaraka
अङ्गारका स्कन्द ३.१.३९.५५( अङ्गारका राक्षसी द्वारा श्वेत मुनि के तप में विघ्न, मुक्त होकर घृताची बनना ), वा.रामायण ४.४१.२६( अङ्गारका का दक्षिण समुद्र में वास, छाया द्वारा प्राणियों को ग्रहण करके खाना - अङ्गारकेति विख्याता छायामाक्षिप्य भोजिनी।। ), कथासरित् १६.२.२८( अङ्गारक राक्षस - पुत्री, राजा चण्डमहासेन द्वारा प्राप्ति ) angaarakaa
Remarks on Angaarakaa
अङ्गिरस नारद १.११९.५५( अङ्गिरस दशमी पूजा : १० अङ्गिरस देवों के नाम ), ब्रह्म २.७४( अङ्गिरा व आत्रेयी - पुत्र, अङ्गिरा द्वारा पत्नी को परुष वचन भाषण, पत्नी का परुष्णी नदी बनना ), २.८५( आदित्यों से प्राप्त भूमि के दोष देखकर आदित्यों से कपिला गौ के बदले भूमि का विनिमय करना ), २.८८( ब्रह्मा से उत्पन्न १० अङ्गिरस गण : माता के शाप से तप में सिद्धि न मिलने पर अगस्त्य के परामर्श से गङ्गा पर तप ), ब्रह्माण्ड १.२.९.५५( स्मृति - पति ), भागवत १०.३४.१३( सुदर्शन विद्याधर द्वारा उपहास पर सर्प होने का शाप ), मत्स्य १३३.६२( अङ्गिरा - पुत्र बृहस्पति का नाम : दण्ड हाथ में लेकर रुद्र के रथ चक्र की रक्षा ), वायु १०.१०१( अङ्गिरस की ब्रह्मा के शिर से उत्पत्ति ), ६५.९७( अग्नि - पुत्र, अथर्वण उपनाम, सुरूपा, स्वराट~ व पथ्या भार्याओं से वंश का वर्णन ), ६५.१०४/२.४.१०४( अङ्गिरस देवों के बृहस्पति से निम्न होने का कथन, १० अङ्गिरसों के नाम ), १०१.३०/२.३९.३०( अङ्गिरस आदि की भुव: लोक में स्थिति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.१२( अङ्गिरसों में आयु नामक अङ्गिरस की श्रेष्ठता ), १.११२( अङ्गिरा व सुरूपा - पुत्र, १० नाम, वंश वर्णन ), ३.१७७( १० अङ्गिरसों के नाम, अङ्गिरस व्रत ), स्कन्द १.२.२९.१००( अङ्गिरस - भार्या शिवा के अग्नि के साथ रमण की कथा ), ४.१.१७.३४( अङ्गिरा - पुत्र अङ्गिरस द्वारा शिव स्तुति से जीव संज्ञा धारण करना ), ५.३.११२( अङ्गिरस तीर्थ : अङ्गिरा द्वारा तप से पुत्र प्राप्ति का स्थान ), ५.३.१९४.५४( नारायण व श्री के विवाह यज्ञ में अङ्गिरस व मरीचि ऋषि - द्वय के उद्गाता बनने का उल्लेख ), ७.४.१४.४८(अङ्गिरस के लिए चन्द्रभागा नदी), महाभारत अनुशासन ३४.१७( भृगवस्तालजङ्घांश्च नीपानाङ्गिरसोऽजयन्। भरद्वाजो वैतहव्यानैलांश्च भरतर्षभ।। ), १०६.७१( अङ्गिरस ऋषि द्वारा प्रवर्तित उपवास विधि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२७५.३८( अङ्गिरस दशमी पूजा : १० अङ्गिरस देवों के नाम ) द्र. आङ्गिरस angirasa
Comments on Angirasa
अङ्गिरा कूर्म २.११.१२८( अङ्गिरा द्वारा भारद्वाज को ज्ञान दान ), गरुड ३.७.५५(अङ्गिरा द्वारा हरि-स्तुति), पद्म १.३४( ब्रह्मा के यज्ञ में उद्गाता ), ६.५७( अङ्गिरा द्वारा मान्धाता को पद्मा एकादशी व्रत का कथन ), ब्रह्म २.७४( अङ्गिरा की अग्नि से उत्पत्ति, आत्रेयी - पति, अङ्गिरस गण - पिता, पत्नी को परुष वचन बोलने के कारण पत्नी का परुष्णी नदी बनना ), ब्रह्मवैवर्त्त १.२२.८( अङ्गिरा की निरुक्ति ), २.५१.१६( सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि द्विज के तिरस्कार पर अङ्गिरा की प्रतिक्रिया ), ४.१८( सप्तर्षि - पत्नियों पर आसक्ति के कारण अग्नि को सर्वभक्षी होने का शाप, सप्तर्षि - पत्नियों को द्वापर में याज्ञिक द्विजों की पत्नियां बनने का शाप, पुन: वरदान ), ब्रह्माण्ड १.१.५.७५( अङ्गिरा का ब्रह्मा के शिर से प्राकट्य ), २.३.१.४०( ब्रह्मा द्वारा अङ्गारों पर शुक्र होम से अङ्गिरा की उत्पत्ति, अग्नि - पुत्र बनना ), भविष्य ३.४.२१.१४( अङ्गिरा का कलियुग में कण्व - पौत्रों के रूप में जन्म ), ४.९३( शुभा - पति, उतथ्य से श्रेष्ठता विषयक विवाद, सूर्य व अग्नि के कार्यों का प्रतिस्थापन, अग्नि का बृहस्पति रूप में पुत्र बनना ), भागवत ३.१२.२४( ब्रह्मा के मुख से अङ्गिरा की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.२४.२२( कर्दम - पुत्री श्रद्धा से परिणय ), ४.१.३४( अङ्गिरा द्वारा श्रद्धा से बृहस्पति, उतथ्य पुत्री व सिनीवाली, कुहू, राका व अनुमति कन्याओं की प्राप्ति ), ६.६.१९( अङ्गिरा का दक्ष - पुत्रियों स्वधा व सती से विवाह, स्वधा से पितरों की व सती से अथर्वाङ्गिरस वेद की पुत्रों के रूप में उत्पत्ति ), ६.१४+ ( राजा चित्रकेतु को पुत्रवान् होने का आशीर्वाद, पुत्र की मृत्यु पर राजा को वैराग्य का उपदेश ), ९.२.२६( संवर्त ऋषि - पिता ), ९.६.२( अङ्गिरा द्वारा रथीतर की भार्या से पुत्रों की उत्पत्ति ), मत्स्य ३.६( अङ्गिरा सहित सप्तर्षियों की ब्रह्मा से उत्पत्ति का क्रम ), १५.१६( हविष्मान् नामक पितरों के पिता ), १२६.१०( श्रावण - भाद्रपद मास में अङ्गिरा की सूर्य रथ पर स्थिति ), १४५.१०५( अङ्गिरा गोत्रीय मन्त्रकर्ता ३३ ऋषियों के नाम ), १६७.४३( मार्कण्डेय - पिता ), १९६( ब्रह्म के वीर्य के अग्नि में होम से अङ्गिरा की उत्पत्ति, वंश व गोत्र का वर्णन ), लिङ्ग १.२४.२३( चतुर्थ द्वापर में व्यास ), वराह २१.१५( दक्ष यज्ञ में अङ्गिरा के आग्नीध्र बनने का उल्लेख ), वामन २.१०( चन्द्रा - पति, दक्ष द्वारा यज्ञ में आमन्त्रण ), ५२.३१( अङ्गिरा द्वारा सप्तर्षियों की ओर से हिमालय को शिव - पार्वती विवाह का प्रस्ताव ), ८९.४६( अङ्गिरा द्वारा वामन को कौश चीर देने का उल्लेख ), वायु ६५.७८/२.४.७८( बृहदङ्गिरा : वरूत्री के ब्रह्मिष्ठ पुत्रों में से एक ), ६५.९७( अङ्गिरा वंश का वर्णन ), विष्णु १.११.४५( अङ्गिरा द्वारा ध्रुव को परमपद प्राप्ति के उपाय का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.११२( सुरूपा - पति, १० अङ्गिरसों के पिता ), शिव २.२.३.५७( अङ्गिरा ऋषि से हविष्मन्त पितरों की उत्पत्ति का कथन ), ३.४.१७( चतुर्थ द्वापर में व्यास ), ५.३४.४७( दशम मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक ), ५.३४.५१( ११वें मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक ), ७.२.४.५०( गङ्गाधर शिव का रूप ), स्कन्द ३.१.४९.६८( अङ्गिरा द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ४.१.१८.२०( अङ्गिरा द्वारा हरिकेश वन में स्थापित अङ्गिरेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.१.१९.१११( अङ्गिरा द्वारा ध्रुव को परम पद प्राप्ति हेतु कमलकान्त की आराधना करने का निर्देश ), ५.३.११२.२( अङ्गिरा द्वारा नर्मदा तट पर तप करके बृहस्पति/अङ्गिरस पुत्र प्राप्त करने का संक्षिप्त वर्णन ), ६.१८०( ब्रह्मा के यज्ञ में सुब्रह्मण्य ), ७.१.२१.५( अङ्गिरा द्वारा दक्ष से २ कन्याओं की प्राप्ति ), ७.१.२३( चन्द्रमा के यज्ञ में उन्नेता ), ७.३.४१.१८(अङ्गिरा को मार्कण्डेय बालक की अल्पायु का ज्ञान होना), हरिवंश २.१२२.३५( अङ्गिरा का कृष्ण से युद्ध, पराजय ), लक्ष्मीनारायण १.२५७.८५( अङ्गिरा द्वारा मान्धाता राजा को राज्य में वृष्टि हेतु एकादशी व्रत का परामर्श ), १.५४०.८१( अङ्गिरा द्वारा अन्य ऋषियों को राजा वृषादर्भि से प्रतिग्रह रूप में स्वर्ण - पूरित उदुम्बर स्वीकार न करने के लिए प्रेरित करना ), ३.३२.१०( अथर्वा अग्नि - पुत्र ),कथासरित् १४.१.२२( अश्रुता - पति अङ्गिरा मुनि की सावित्री पर आसक्ति के कारण पत्नी द्वारा आत्महत्या की चेष्टा ) angiraa
Remarks on Angiraa
अङ्गुल अग्नि २४.१( अग्नि कुण्ड निर्माण में खात, मेखला आदि के अङ्गुल मानों का वर्णन ), ४४( प्रतिमा के अवयवों का अङ्गुलि मान ), पद्म २.८.१४( गर्भ का २५ अङ्गुल विकास होने पर माता को प्रसव पीडा होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.७.९६( अङ्गुल मान ), १.२.३२( प्रजा उत्सेध/ऊंचाई का अङ्गुल मान ), भविष्य १.१३२.७( आदित्य की ८४ अङ्गुल मान की मूर्ति में विभिन्न अङ्गों के अङ्गुल मान ), १.१४९.२( काल चक्र के ६४ अङ्गुल प्रमाण व ८ अङ्गुल नेमि आदि का उल्लेख ), २.१.१२.५( ८४ अङ्गुल प्रतिमा के विभिन्न अङ्गों के अङ्गुल मान ), २.१.१९.७( यज्ञ के स्रुवा आदि यज्ञ पात्रों के अङ्गुल मान ), २.१.२१.६८( अनन्त, वासुकि, तौलिक आदि नागों के अङ्गुल परिमाण का कथन ), मत्स्य १४५( विभिन्न युगों में अङ्गुल अनुसार शरीर परिमाण ), वायु ८.१०२( अङ्गुल मान ), ५९.६( शरीर का अङ्गुल परिमाण ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३६.१( शरीर के अङ्गों के अङ्गुल परिमाण का वर्णन ) angula
Remarks on Angula
Remarks on Anguli
अङ्गुष्ठ
अग्नि
२५.२२(ऋग्वेदं
व्यापकं हस्ते अङ्गुलीषु
यजुर्न्यसेत्।
तलद्वयेथर्वरूपं
शिरोहृच्चरणान्तकः ।।),
२५.२५(
अङ्गुष्ठ
व अङ्गुलियों में श्रोत्र,
त्वक्,
चक्षु
आदि के न्यास का उल्लेख ),
२५.२७(
अङ्गुष्ठ
व अङ्गुलियों में भुव:,
स्व:
आदि
लोकों का न्यास ),
२५.३२(
दोनों
कराङ्गुष्ठों में जीव का तथा
बुद्धि,
अहंकार,
मन
आदि ८ तत्त्वों का ८ अङ्गुलियों
में न्यास
-
तर्जन्यादिक्रमाच्छेषं
यावद्वामप्रदेशिनीम् ।। देहे
शिरोललाटास्यहृन्नाभिगुह्यजानुषु।
),
२५.३६(
अङ्गुष्ठ
-
द्वय
में श्रोत्र तथा ८ अङ्गुलियों
में त्वक्,
चक्षु,
जिह्वा
आदि का न्यास
-
उपस्थं
मानसो व्यापी श्रोत्रमङ्गुष्ठकद्वये।
तर्जन्यादिक्रमादष्टौ
अतिरिक्तं तलद्वये ।।
),
२५.४०(
अङ्गुष्ठ
तथा अङ्गुलियों में मधुसूदन,
त्रिविक्रम,
वामन
आदि का न्यास ),
२५.४३(
अङ्गुष्ठ
व अङ्गुलियों में बुद्धि,
अहंकार,
मन,
चित्त
आदि का न्यास -
उपस्थो
भूर्जलन्तेजो वायुराकाशमेव
च।पुरुषं व्यापकं न्यस्य
अङ्गुष्ठादौ दश न्यसेत् ।।
),
२९५.१५(
सर्प
दंश की चिकित्सा के संदर्भ
में अङ्गुष्ठ व अङ्गुलियों
में क्रमश:
पृथिवी
आदि तत्त्वों का न्यास,
तार्क्ष्य
रूपी मुष्टि के निर्माण से
अङ्गुष्ठ के विष का नाश होने
का उल्लेख,
तार्क्ष्य
हस्त की अङ्गुलियों के चालन
से विष का स्तम्भन
आदि -
मुष्टिस्तार्क्षकरस्यान्तः
स्थिताङ्गुष्ठविषापहा ।
तार्क्षं
हस्तं समुद्यम्य तत्पञ्चाङ्गुलिचालनात्
।।),
३१०.३२(
विभिन्न
मुद्राओं में अङ्गुष्ठ व
अङ्गुलियों के विन्यास का
वर्णन
-
ग्रथितौ
तु करौ कृत्वा मध्येऽङ्गुष्ठौ
निपातयेत् ।।..
),
गरुड
२.१०.७४(मृत्यु
पश्चात् अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष
के निष्क्रमण और पिण्डदान से
अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष के एकता
को प्राप्त होने का कथन -
अधूमकज्योतिरिवाङ्गुष्ठमात्रः
पुमांस्ततः ॥
देहमेकं
सद्य एव वायवीयं प्रपद्यते
।),
देवीभागवत
११.१५.८२(
ऊर्ध्वपुण्ड्र/तिलक
बनाने के संदर्भ में अङ्गुष्ठ
व तीन अङ्गुलियों की क्रमश:
विशेषता
:
पुष्टिकर,
मुक्तिदायक,
आयुष्य,
अन्नदायक
-
अङ्गुष्ठः
पुष्टिदः प्रोक्तो मध्यमायुष्करी
भवेत् । अनामिकान्नदा नित्यं
मुक्तिदा च प्रदेशिनी ॥
),
११.१६.७९(
अङ्गुष्ठ
व अङ्गुलियों में गायत्री
मन्त्राक्षरों के न्यास का
कथन
-
अङ्गुष्ठाभ्यां
तत्सवितुस्तर्जनीभ्यां
वरेण्यकम् ।
भर्गो
देवस्य मध्याभ्यां धीमहीत्येव
कीर्तयेत् ॥..
),
११.२२.२७(
प्राणाग्निहोत्र
के संदर्भ में अङ्गुष्ठ व
अङ्गुलियों के संयोग से प्राण,
उदान
आदि की आहुतियों का कथन -
मध्यमानामिकाङ्गुष्ठैरपानस्याहुतिं
क्षिपेत् । कनिष्ठानामिकाङ्गुष्ठैर्व्यानस्य
तदनन्तरम् ॥),
नारद
१.२७.२०(
शौच
के पश्चात्
आचमन
के संदर्भ में अङ्गुष्ठ व
अङ्गुलियों के परस्पर स्पर्श
से स्वरों,
मात्राओं,
छन्दों
आदि का कल्पन
-
तर्जन्यंगुष्ठयोगेन
नासारंध्रद्वयं स्पृशेत्
।।
अगुंष्ठानामिकाभ्यां
च चक्षुः श्रोत्रे यथाक्रमम्
।।
),
१.९१.५२(
अङ्गुष्ठ
व अङ्गुलियों में ईशान,
तत्पुरुष,
अघोर
आदि का न्यास -
ईशानाख्यं
तत्पुरुषमघोरं तदनंतरम् ।।
वामदेवाह्वयं सद्योजातबीजं
क्रमाद्विदुः ।।
),
२.४५.२(
गया
में प्रेतशिला के अङ्गुष्ठ
में स्थित ईश का प्रभासेश नाम,
तत्स्थान
पर पिण्ड दान के महत्त्व का
कथन -
प्रभासो
मुनिभिस्तुष्टः शिलांगुष्ठानिर्गतः
॥ अंगुष्ठस्थित ईशोऽपि प्रभासेशः
प्रकीर्तितः ॥
),
पद्म
१.३०.१७५(
विराट
रूप धारी वामन के पादाङ्गुष्ठ
से बलि के ब्रह्मरन्ध|/ब्रह्माण्ड
के स्फोट व परिणामस्वरूप गङ्गा
के उद्भव का वृत्तान्त -
अंगुष्ठाग्रेण
भिन्नेंडे जलं भूरि
विनिःसृतम्।प्लावयित्वा
ब्रह्मलोकान्सर्वान्लोकाननुक्रमात्
),
५.८०.१४(
कृष्ण
के चरणों में अङ्गुष्ठ मूल
में चक्र,
मध्यमाङ्गुलि
मूल में कमल,
कनिष्ठा
मूल में वज्र,
अङ्गुष्ठ
पर्व में यव आदि चिह्नों का
कथन -
दक्षिणस्य
पदोंगुष्ठमूले चक्रं बिभर्ति
यः।..मध्यमांगुलिमूले
तु धत्ते कमलमच्युतः ।
),
५.८१.४६(
कृष्ण
स्वरूप के ध्यान के संदर्भ
में राधिका द्वारा अङ्गुष्ठ
व तर्जनी से कृष्ण के मुखकमल
में पूगफल आदि समर्पित करने
का उल्लेख -
अंगुष्ठतर्जनीभ्यां
च निजकांतमुखांबुजे ।अर्पयंतीं
पूगफलं पर्णचूर्णसमन्वितम्
),
६.२४०.१६(
विप्र
को अङ्गुष्ठ मात्र भूमि के
दान मात्र से पृथिवीपति होने
का उल्लेख -
यो
ददाति महीं राजा विप्रायाकिंचनाय
वै ।अंगुष्ठमात्रामपि वा स
भवेत्पृथिवीपतिः ।
),
ब्रह्म
१.१.१०९(
ब्रह्मा
के अङ्गुष्ठ से दक्ष व वाम
अङ्गुष्ठ से दक्ष -
पत्नी
की उत्पत्ति का उल्लेख -
अङ्गुष्ठाद्ब्रह्मणो
जज्ञे दक्षः किल शुभव्रतः।
वामाङ्गुष्ठात्तथा चैवं तस्य
पत्नी व्यजायत॥
),
१.३८.९०(
सब
देहधारियों में अङ्गुष्ठ
मात्र पुरुष की स्थिति का
उल्लेख -
अङ्गुष्ठमात्राः
पुरुषा देहस्थाः सर्वदेहिनाम्।
रक्षन्तु
ते च मां नित्यं नित्यं
चाऽऽप्ययन्तु माम्॥),
१.११३.९५(
दक्षिण
पाणि में अङ्गुष्ठोत्तर रेखा
के ब्राह्म तीर्थ होने का
उल्लेख ;
तर्जनी
व अङ्गुष्ठ के बीच पितृ तीर्थ
होने का उल्लेख आदि ),
ब्रह्मवैवर्त्त
२.३६.१५४(
मृत्यु
पर यम किङ्कर द्वारा अङ्गुष्ठ
मात्र पुरुष को ग्रहण करना
-
अंगुष्ठमात्रं
पुरुषं गृहीत्वा यमकिङ्करः।।विन्यस्य
भोगदेहे च स्वस्थानं प्रापयेद्
द्रुतम् ।।
),
ब्रह्माण्ड
१.२.७.९७(
शरीर
के अङ्गों के अङ्गुल मान के
संदर्भ में हाथ व पैरों के
अङ्गुष्ठ व अङ्गुलियों का
अङ्गुल मान ),
भविष्य
१.२४.२२(
सामुद्रिक
लक्षणों के संदर्भ में अङ्गुष्ठ
व अङ्गुलियों की विकृत आकृतियों
का वर्णन
-
यस्य
प्रदेशिनी दीर्घा अङ्गुष्ठं
या अतिक्रमेत् ।
स्त्रीभोगं
लभते नित्यं पुरुषो नात्र
संशयः । ।
),
१.३०.१(
विभिन्न
द्रव्यों के अङ्गुष्ठ पर्व
मात्र गणपतियों के निर्माण
का कथन -
निम्बमयमङ्गुष्ठपर्वमात्रं
गणपतिं कृत्वा नित्यधूपगन्धादिभिरर्चयित्वा
प्रच्छन्नं शिरसि बद्ध्वा
गच्छेत् । सर्वजनप्रियो भवति
।
…),
२.२.२१.१०३(
वरुण
की अङ्गुष्ठ मात्र प्रतिमा
की स्थापना का उल्लेख ),
३.४.१७.१२(
मरुतों
की उत्पत्ति के संदर्भ में
अङ्गुष्ठ मात्र इन्द्र द्वारा
वज्र से दिति के गर्भ का छेदन
-
अंगुष्ठमात्रो
भगवान्महेन्द्रो वज्रसंयुतः
।।
कुक्षिमध्ये
समागम्य चक्रे गर्भं स सप्तधा
।।
),
४.८९.६(
मृत्यु
पर यमदूतों द्वारा अङ्गुष्ठ
मात्र पुरुष का बन्धन करके
ले जाने का उल्लेख -
अंगुष्ठमात्रः
पुरुषो बलदाकृष्य रोषितः
।।बद्धो यमभटैर्गाढं नीयते
वेदवादिभिः ।।
),
भागवत
१.१२.८(
उत्तरा
के गर्भ में स्थित परीक्षित
के अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र
से जलने पर अङ्गुष्ठ मात्र
पुरुष द्वारा गर्भ की रक्षा
का वर्णन -
अङ्गुष्ठमात्रममलं
स्फुरत् पुरट मौलिनम्
।अपीच्यदर्शनं
श्यामं तडिद् वाससमच्युतम्
॥
),
३.१२.२३(
ब्रह्मा
के अङ्गुष्ठ से दक्ष के जन्म
का उल्लेख
-
उत्सङ्गान्नारदो
जज्ञे दक्षोऽङ्गुष्ठात्स्वयम्भुवः
।
),
३.१३.१८(
ब्रह्मा
के नासाछिद्र से अङ्गुष्ठ
परिमाण वराह का उत्पन्न होना
व विराट रूप होकर यज्ञ वराह
बनना -
इत्यभिध्यायतो
नासा विवरात्सहसानघ ।वराहतोको
निरगाद् अङ्गुष्ठपरिमाणकः
॥
),
मत्स्य
६१.४६(
अगस्त्य
को अर्घ प्रदान के संदर्भ में
कुम्भ में सुवर्ण निर्मित,
चतुर्मुख
अङ्गुष्ठ पुरुष को रखने का
उल्लेख -
अङ्गुष्ठमात्रं
पुरुषं तथैव सौवर्णमेवायतबाहुदण्डम्।
चतुर्मुखं कुम्भमुखे निधाय
धान्यानि सप्ताम्बरसंयुतानि।।
),
७२.३४(
अङ्गारक/मङ्गल
की अर्चना के संदर्भ में पात्र
में सुवर्ण निर्मित,
चतुर्भुज
अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष रखने
का निर्देश
-
अङ्गुष्ठमात्रं
पुरुषं तथैव सौवर्णमत्यायतबाहुदण्डम्।
चतुर्भुजं
हेममये निविष्टं पात्रे
गुडस्योपरि सर्पियुक्तम्।।
),
२५८.४७(
शरीर
के अङ्गों के अङ्गुल मान के
संदर्भ में हाथ व पैरों में
अङ्गुष्ठ व अङ्गुलियों के
अङ्गुल मान का वर्णन
-
चतुर्दशांगुलौ
पादावङ्गुष्ठौ तु त्रियंगुलौ।
पञ्चांगुलपरीणाहमङ्गुष्ठाग्रं
तथोन्नतम् ।।
),
मार्कण्डेय
३४.१०७(
आचमन
के संदर्भ में दक्षिण पाणि
में अङ्गुष्ठोत्तर रेखा के
ब्राह्म तीर्थ,
अङ्गुष्ठ
व तर्जनी मध्य में पितृ तीर्थ
आदि होने का कथन
-
अङ्गुष्ठोत्तरतो
रेखा पाणेर्या दक्षिणस्य तु
।
एतद्
ब्राह्ममिति ख्यातं तीर्थमाचमनाय
वै॥
),
वराह
६२.१०(राजा
अनरण्य द्वारा पद्म में
अङ्गुष्ठमात्र पुरुष के दर्शन,
पद्म
तोडने के प्रयास पर कुष्ठ
प्राप्ति की कथा -
तत्र
चाङ्गुष्ठमात्रं तु स्थितं
पुरुषसत्तमम् ।
रक्तवासोभिराछन्नं
द्विभुजं तिग्मतेजसम् ।।),
वायु
८.९८(
अङ्गुष्ठ
से अङ्गुलियों तक के आयामों
के प्रादेश,
ताल,
गोकर्ण
आदि नामों का कथन
-
अंगुष्ठस्य
प्रदेशिन्या व्यासः प्रादेश
उच्यते।
तालः
स्मृतो मध्यमया गोकर्णश्चाप्यनामया
।।
),
१०८.१४(
गयासुर
पर स्थित शाला का प्रभास अद्रि
द्वारा आच्छादन,
शिलाङ्गुष्ठ
का प्रभास का भेदन करके प्रकट
होना,
अङ्गुष्ठ
प्रदेश में पिण्ड दानादि का
महत्त्व
-
प्रभासं
हि विनिर्भिद्य शिलाङ्गुष्ठो
विनिर्गतः।
अङ्गुष्ठोत्थित
ईशोऽपि प्रभासेशः प्रकीर्त्तितः
।।
),
विष्णु
१.१५.८०(
ब्रह्मा
के दक्षिण हस्त के अङ्गुष्ठ
से दक्ष प्रजापति की उत्पत्ति
का उल्लेख -
अङ्गुष्ठाद्दक्षिणाद्दक्षः
पूर्वं जातो मया श्रुतः ।
कथं
प्राचेतसो भूयः समुत्पन्नो
महामुने ॥ ),
विष्णुधर्मोत्तर
१.२१.२३(
विराट
रूप धारी वामन के अङ्गुष्ठ
द्वारा ब्रह्माण्ड का भेदन
होने पर ब्रह्माण्ड के बाहर
स्थित जल का अन्दर प्रवेश करना
-
अंगुष्ठाग्रक्षतादण्डाद्यत्प्रविष्टं
जलं शुचि ।।प्राप्ता देवनदीत्वं
तु सा तु विष्णुपदी नदी ।।
),
१.६५.२३(
चन्द्रमण्डल,
सूर्यमण्डल
व आत्मा में ध्यानयोग द्वारा
अङ्गुष्ठ पुरुषों के दर्शन
का निर्देश
-
ऊर्ध्वलक्षं
बुधः कृत्वा चन्द्रमण्डलमध्यगे
॥अङ्गुष्ठमात्रे पुरुषे
लक्षबन्धं तु कारयेत् ॥
),
१.९२.३३(
हस्त
प्रमाण स्रुवा
के होम स्थान को अङ्गुष्ठ मध्य
समान बनाने का उल्लेख
-
अङ्गुष्ठमध्यप्रतिमं
होमस्थानं स्रुवस्य तु।।
),
१.१६५.५(
रवि
मध्य में स्थित सोम,
उसके
मध्य में स्थित अच्युत के
अङ्गुष्ठ पुरुष होने का उल्लेख
-
तेजोमध्ये
स्थितं सत्त्वं सत्त्वमध्ये
स्थितोऽच्युतः ।।अंगुष्ठमात्रः
पुरुषः पूर्वमेव मयेरितः ।।
),
२.३७.४२(
सावित्री
-
सत्यवान्
आख्यान में यम द्वारा सुप्त
सत्यवान् के अङ्गुष्ठ मात्रपुरुष
को पाशबद्ध करके ले जाने का
उल्लेख
-
अङ्गुष्ठमात्रं
पुरुषं पाशबद्धं वशङ्गतम्
।। आकृष्य दक्षिणामाशां प्रययौ
सत्वरं तदा ।।
),
२.१६५.१३(
शरीर
में अङ्गों के पुरुष,
स्त्री
व नपुंसक लिङ्गों में विभाजन
के संदर्भ में अङ्गुष्ठ के
पुरुष होने का उल्लेख -
अङ्गुष्ठनखपादोरुगुल्फमुष्कमुरस्तनाः
।।..पुन्नामान्येवमादीनि
स्पृशतः पृच्छतः शुभम् ।।
),
३.२६.१३(
अभिनय
कर्म में अङ्गुष्ठ व अङ्गुलियों
की विभिन्न मुद्राओं का वर्णन
-
प्रसारिताग्रा
सहिता यस्याङ्गुल्यो भवन्ति
हि ।। कुञ्चितश्च तथाङ्गुष्ठः
स पताक इति स्मृतः ।।),
३.३२.१+
( अङ्गुष्ठ
मूल में ब्राह्म तीर्थ,
अङ्गुलि
अग्र में दैव,
तर्जनी
मूल में पितृ व कनिष्ठा में
मानुष तीर्थों का उल्लेख -
वासस्य
प्रसारिताङ्गुष्ठस्योपरि
यदा कुब्जतर्जनी भवति तदोङ्कारः
।।
),
शिव
२.३.१५.२४(
तारकासुर
द्वारा अङ्गुष्ठ से भुव/भूमि
का स्पर्श करके तप करने का
उल्लेख ),
२.५.२४.४५(
शिव
द्वारा पादाङ्गुष्ठ से निर्मित
सुदर्शन चक्र द्वारा जलन्धर
वध का उल्लेख ),
५.४०.३५(
मार्कण्डेय
द्वारा विमान में स्थित अङ्गुष्ठ
मात्रपुरुष रूप में सनत्कुमार
के दर्शन -
अपश्यं
चैव तत्राहं शयानं दीप्ततेजसम्
।। अंगुष्ठमात्रं
पुरुषमग्नावग्निमिवाहितम्
।।
),
७.२.१४.३९(
माला
जप के संदर्भ में अङ्गुष्ठ व
अङ्गुलियों की क्रमश:
मोक्षप्रद,
शत्रुनाशिनी,
धनाप्रदा
आदि संज्ञाएं
-
अंगुष्ठं
मोक्षदं विद्यात्तर्जनीं
शत्रुनाशिनीम् ॥ मध्यमां
धनदां शांतिं करोत्येषा
ह्यनामिका ॥
),
७.२.३८.७१(
भ्रूमध्य
में शिव व शिवा के अङ्गुष्ठ
मात्र रूप के ध्यान का उल्लेख
-
तत्रैव
देवं देवीं च चिंतयेद्धीरया
धिया ॥
अंगुष्ठमात्रममलं
दीप्यमानं समंततः ॥
),
स्कन्द
५.१.५०.१३(
सर्प
द्वारा राजा दमन के अङ्गुष्ठ
में काटने का उल्लेख
-
किमिदं
कुत आश्चर्यं कृत्वा हस्तेन
वारितः ।।
तेन
वारयिता राजा दष्टोंऽगुष्ठे
तदाऽहिना ।
),
५.२.२.२१(
मङ्कणक
के अङ्गुष्ठ ताडन से भस्म
निर्गमन का कथन -
अंगुष्ठस्ताडितः
स्वीयोंगुल्यग्रेण च पार्वति
।।
ततो
विनिर्गतं भस्म तत्क्षणाद्धिमपांडुरम्
।।),
५.२.६०.२३(
मतङ्ग
द्वारा १०० वर्ष तक अङ्गुष्ठ
से बैठकर तप करने का उल्लेख
-
अतिष्ठत
गयां गत्वा सोंगुष्ठेन शतं
समाः ।।
सुदुष्करं
वहन्योगं प्राणायामपरायणः
।।
),
५.३.६७.५१(
विष्णु
को जगाने के लिए उनके पादाङ्गुष्ठ
का मर्दन करने का उल्लेख
-
नारदस्य
वचः श्रुत्वा पदाङ्गुष्ठं
व्यमर्दयत् ।
नारदस्तिष्ठते
द्वारि उत्तिष्ठ मधुसूदन ॥
),
५.३.१९२.६(
नारायण
के दक्षिण अङ्गुष्ठ से दक्ष
की उत्पत्ति का उल्लेख
-
नारायणस्य
नाभ्यब्जाज्जातो देवश्चतुर्मुखः
।
तस्य
दक्षोऽङ्गजो राजन्
दक्षिणाङ्गुष्ठसम्भवः ॥
),
महाभारत
आदि ३१.८(
कश्यप
के यज्ञ के संदर्भ में इन्द्र
द्वारा अङ्गुष्ठोदर पर्व
मात्र शरीर वाले वालखिल्य
ऋषियों का दर्शन
-
अथापश्यदृषीन्ह्रस्वानङ्गुष्ठोदरवर्ष्मणः।
),
११४.२०(
गान्धारी
से उत्पन्न मांस पिण्ड का
सिंचन होने पर उसका एक सौ
अङ्गुष्ठ पर्वमात्र गर्भों
में विभाजित होने का उल्लेख
-
सा
सिच्यमाना ह्यष्ठीला ह्यभवच्छतधा
तदा।
अङ्गुष्ठपर्वमात्राणां
गर्भाणां तत्क्षणं तथा।।
),
वन
२९७.१७(
यम
द्वारा सत्यवान् के अङ्गुष्ठ
मात्रपुरुष का कर्षण
-
ततः
सत्यवतः कायात्पाशबद्धं
वशंगतम्।
अङ्गुष्ठमात्रं
पुरुषं निश्चकर्ष यमो बलात्
।।
),
उद्योग
४६.२७(
अङ्गुष्ठ
मात्र पुरुष के सबके हृदय में
स्थित होने पर भी न दिखाई देने
का उल्लेख -
अङ्गुष्ठमात्रः
पुरुषो महात्मा;
न
दृश्यतेऽसौ हृदये निविष्टः
),
१३१.५(
दुर्योधन
द्वारा कृष्ण के बन्धन की
चेष्टा पर कृष्ण के शरीर में
स्थित अङ्गुष्ठ मात्र देवों
द्वारा आग की लपटें छोडना -
अङ्गुष्ठमात्रास्त्रिदशा
बभूवुः पावकार्चिषः । तस्य
ब्रह्मा ललाटस्थो रुद्रो
वक्षसि चाभवत् ।।
),
द्रोण
१७५.६३(
कर्ण
से युद्ध में घटोत्कच का
अङ्गुष्ठ मात्र रूप धारण करना
-
अङ्गुष्ठमात्रो
भूत्वा च पुनरेव स राक्षसः।
सागरोर्मिरिवोद्वूतस्तिर्यगूर्ध्वमवर्तत।।
),
१८१.१९(
एकलव्य
के साङ्गुष्ठ होने पर देवों,
दानवों
आदि से अविजित होने का उल्लेख
-
एकलव्यं
हि साङ्गुष्ठमशक्ता देवदानवाः।
सराक्षसोरगाः पार्थ विजेतुं
युधि कर्हिचित्।।),
अनुशासन
१०४.१००(
भोजन
के पश्चात्
दक्षिण
चरण के अङ्गुष्ठ के अवसेचन
का उल्लेख
-
अङ्गुष्ठं
चरणस्याथ दक्षिणस्यावसेचयेत्।।
),
१०४.१०३(
अङ्गुष्ठ
मूल में ब्राह्म तीर्थ,
अङ्गुष्ठ
व तर्जनी के बीच पितृ तीर्थ
होने का उल्लेख ),
१४१.१०१(
वालखिल्य
ऋषियों के अङ्गुष्ठ पर्व मात्र
होकर तपोरत होने का उल्लेख
),
लक्ष्मीनारायण
१.४३४.४९(
विष्णुमती
द्वारा पादाङ्गुष्ठ से वह्नि
का उत्पादन कर पति सहित भस्म
होना
-
सती
पतिव्रता भार्या विष्णुमती
सतीत्वतः ।पादाङ्गुष्ठात्
समुत्पाद्य वह्निं नत्वा
महाजनान् ।।
),
१.४३८.१०८(
पुण्यनिधि
-
पत्नी
विन्ध्यावली द्वारा पादाङ्गुष्ठ
से वह्नि प्रज्वलित करने का
उल्लेख
-
पतिव्रता
पतिप्राणा लक्ष्मीकृष्णपरायणा
। समुत्पाद्य सती वह्निं
पादाङ्गुष्ठाच्चितोपरि ।।
)
angushtha
Remarks on Angushtha
अचल नारद १.११६.६०( अचला व्रत : माघ शुक्ल सप्तमी ), ब्रह्माण्ड १.२.७.११( पर्वत/अचल की उत्पत्ति व शब्दार्थ ), ३.४.२०.८२( दण्डनाथा देवी के रथ के रक्षक १० भैरवों में से एक ), वायु ६१.८४( प्रत्यूष ऋषि - पुत्र ), स्कन्द ६.१३( चमत्कार नृप द्वारा स्थापित अचलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ७.३.४( वसिष्ठ द्वारा अर्बुदाचल पर स्थापित अचलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण ३.७.१९( चलवर्मा राजा द्वारा चल संसार में अचला भक्ति प्राप्त करना ) achala
अच्छावाक् वायु २९.२८( भुव स्थान की अग्नि ), स्कन्द ३.१.२३.२५(यज्ञ में अष्टम वसु के अच्छावाक् ऋत्विज बनने का उल्लेख), ६.५.८( त्रिशङ्कु के यज्ञ में भृगु के अच्छावाक् ऋत्विज होने का उल्लेख ), ६.१८०.३३( ब्रह्मा के अग्निष्टोम यज्ञ में मरीचि ऋषि के अच्छावाक् होने का उल्लेख ), ७.१.२३.९८( प्रभास क्षेत्र में सोम/चन्द्रमा के यज्ञ में शाकल्य के अच्छावाक् होने का उल्लेख ), हरिवंश ३.१०.८( श्रीहरि के मन और ऊरु से अच्छावाक् व नेष्टा की उत्पत्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.३५.११६(राजसूय में अच्छावाक् ऋत्विज को यवपूर्ण शकट की दक्षिणा का निर्देश ), द्र. ऋत्विज(१), ऋत्विज(२) achchhaavaak
Remarks on Achchhaavaak
अच्छोदा देवीभागवत ७.३०( अच्छोद तीर्थ में शिवधारिणी देवी का वास ), नारद १.१.२५( अच्छोदा तट पर रोमहर्षण मुनि का वास, रोमहर्षण द्वारा मुनियों को नारद पुराण का वाचन ), पद्म १.९( अग्निष्वात्त पितरों की कन्या अच्छोदा द्वारा तप, अमावसु पितर पर आसक्ति, अमावास्या बनना, द्वापर में वसु - कन्या सत्यवती बनना ), ३.२२( अच्छोदा सरोवर तट पर अप्सराओं द्वारा ब्रह्मचारी को लुभाने व शाप - प्रतिशाप की कथा ), ६.१२८( अच्छोदा सरोवर तट पर अग्निप नामक मुनि - पुत्र का अप्सराओं को पिशाची होने का शाप - प्रतिशाप ), ६.१३३.२९( अच्छोदा में विष्णुकाम नामक तीर्थ ), ब्रह्माण्ड २.३.१०.५३(बर्हिषद पितरों की मानसी कन्या), २.३.१०.५६( अच्छोदा की अमावसु पर आसक्ति की कथा ), २.३.१३.७८( अच्छोदा सर ), मत्स्य १४( अमावसु पर आसक्ति से अच्छोदा का भ्रष्ट होना, सत्यवती व अष्टका रूप में जन्म ), वराह ८८.१(क्रौञ्च द्वीप में अच्छोदक पर्वत का अपर नाम अन्धकार), वायु ४७.५( अच्छोदा सरोवर की चन्द्रप्रभ गिरि के पाद में स्थिति, अच्छोदा नदी तट पर चैत्ररथ वन की स्थिति ), ७३.२/xx अग्निष्वात्त पितर - कन्या अच्छोदा की अमावसु पितर पर आसक्ति से अच्छोदा के पतन की कथा ), स्कन्द १.५९.६( गया क्षेत्र में अच्छोदा नदी की स्थिति ), ४.१.१२.६४( अच्छोदा तट पर शुचिष्मान् मुनि के पुत्र का शिशुमार द्वारा हरण का कथन ), ५.३.१९८.८६( अच्छोदा तीर्थ में उमा की शक्तिदायिनी नाम से स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश १.१८( अच्छोदा के मनुष्य योनि में सत्यवती बनने का प्रसंग ), १.१८.२९( अग्निष्वात्त पितरों की कन्या अच्छोदा द्वारा अमावसु को पिता मानना ) achchhodaa
Comments on Achchhodaa
अच्युत अग्नि ३.५( माहेन्द्र तीर्थ में विष्णु का अच्युत नाम ), ४८.१०( अच्युति की मूर्ति के आयुधों का कथन ), गरुड ३.२९.५६(एकैकभक्ष्य ग्रहण काल में अच्युत के स्मरण का निर्देश), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.३४( अच्युत कृष्ण से ईशान दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.७५( लेखा नामक देवगणों में से एक ), भागवत १०.६.२२( अच्युत से कटि की रक्षा की प्रार्थना ), मत्स्य २४५.४९( बलि द्वारा अच्युत पर आक्षेप लगाने के कारण प्रह्लाद द्वारा राज्य से च्युत होने का शाप ), विष्णु १.१९.६३( समुद्र में पतन पर प्रह्लाद द्वारा अच्युत की स्तुति ), स्कन्द ४.१.१३.१९(अच्युत के वामाङ्ग होने का उल्लेख), ४.१.१९.१०९( मरीचि ऋषि द्वारा ध्रुव को अच्युत की आराधना का निर्देश ), ४.१.२०.१०( अच्युत शब्द की निरुक्ति ), ४.२.६१.२२९( अच्युत की मूर्ति के लक्षण ), लक्ष्मीनारायण १.२५४.७( श्रावण कृष्ण एकादशी को अच्युत की पूजा ), १.२६५.१३( अच्युत की शक्ति विजया का उल्लेख ), ३.१०६.१६( साधुओं के अच्युत गोत्र होने का उल्लेख ) achyuta
Remarks on Achyuta
अज गरुड ३.९.१(अज देवों का कथन - अजानजस्वरूपं च ब्रूहि कृष्ण महामते ।), नारद १.५०.६१( अज, अवि द्वारा गान्धार स्वर के वादन का उल्लेख - षङ्जं मयूरो वदति गावो रंभंति चर्षभम् । अजाविके तु गांधारं क्रौंचो वदति मध्यमम् ।। ), १.६६.११२( अजेश की शक्ति द्राविणी का उल्लेख - कूर्मेशः कमठीयुक्तो भूतमात्रैकनेत्रकः। लम्बोदर्या चतुर्वक्त्रो ह्यजेशो द्राविणीयुतः ॥), १.९०.७१( लकुच से अज सिद्धि का उल्लेख - जंबीरैर्महिषावाप्त्यै लकुचैरजसिद्धये । दाडिमैर्निधिसंसिद्ध्यै मधुकैर्गानसिद्धये ।।), ब्रह्माण्ड २.३.७.८५( अज पिशाच द्वारा स्वकन्या जन्तुधना का राक्षस से विवाह - आससाद पिशाचौ वै त्वजः शण्ढश्च तावुभौ । कपिपुत्रौ महावीर्यौं कूष्माण्डौ पूर्वजावुभौ ॥ ), २.३.१०.४८( ब्रह्मा द्वारा स्कन्द को अज भेंट करना - अजः स्वयंभुवा दत्तो मेषो दत्तश्च शंभुना । मायाविहरणे विप्र गिरौ क्रौञ्चे निपातिते ॥ ), ३.४.१.६०( सुधर्मा देवगण में से एक - वर्णस्तथाथगर्विश्च भुरण्यो व्रजनोऽमितः । अमितो द्रवकेतुश्च जंभोऽथाजस्तु शक्रकः ॥ ), भविष्य ३.४.२५.१९( अज/ब्रह्माण्ड के विभिन्न अङ्गों से विभिन्न देवों की सृष्टि का कथन - अजस्य याम्याज्जनितोऽहमादौ विष्णुर्महाकल्पकरोऽधिकारी ।), भागवत ५.१५.५( प्रतिहर्त्ता व स्तुति – पुत्र - प्रतिहर्तुः स्तुत्यामजभूमानावजनिषाताम्। ), ६.६.१७( एकादश रुद्रों में से एक ), ९.१०.१( रघु - पुत्र, दशरथ – पिता - खट्वांगात् दीर्घबाहुश्च रघुस्तस्मात् पृथुश्रवाः । अजस्ततो महाराजः तस्मात् दशरथोऽभवत् ॥ ), ९.१३.२२( ऊर्ध्वकेतु - पुत्र, पुरुजित् - पिता ), १०.६.२२( अज विष्णु से पादों की रक्षा की प्रार्थना - अव्यादजोऽङ्घ्रि मणिमांस्तव जान्वथोरू यज्ञोऽच्युतः कटितटं जठरं हयास्यः । ), मत्स्य १२.४८( अजक : दिलीप - पुत्र, दीर्घबाहु – पिता - रघोरभूद् दिलीपस्तु दिलीपादजकस्तथा।। दीर्घबाहुरजाज्जातश्चाजपालस्ततो नृपः।), १२६.५२( चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक ), वायु २०.२८( अज रूपी पुरुष की अजारूपी विश्वरूपा प्रकृति में आसक्ति - विरक्ति का मन्त्र : अजामेतां लोहितशुक्लकृष्णां बह्वीः प्रजाः सृजमानां स्वरूपाम्। अजो ह्येको जुषमाणोऽनुशेते जहात्येनां भुक्तभोगामजोऽन्यः। अष्टाक्षरां षोडशपाणिपादां चतुर्मुखीं त्रिशिखामेकश्रृङ्गाम्। आद्यामजां विश्वसृजां स्वरूपां ज्ञात्वा बुधास्त्वमृतत्वं व्रजन्ति। ), ६२.९/२.१.९( तुषिता व क्रतु के देवगण पुत्रों में से एक - धैवस्यशोऽथ वामान्यो गोपा देवायतस्तथा ।अजश्च भगवान् देवो दुरोणश्च महाबलः ॥ ), ६२.३४/२.१.३४( उत्तम मनु के पुत्रों में से एक - अजश्च परशुश्चैव दिव्यो दिव्यौषधिर्न्नयः । देवानुजश्चाप्रतिमो महोत्साहौशिजस्तथा ॥ ), ६६.४३/२.५.४३( रात्रि के १५ मुहूर्तों में से एक - अजास्तथाहिर्बुध्न्यश्च पूषा हि यमदेवताः। आग्नेयश्चापि विज्ञेयः प्राजापत्यस्तथैव च ।। ), ६८.११/२.७.११( दनु के १०० पुत्रों में से एक - असुरश्च विरुपाक्षः सुपथोऽथ महासुरः। अजो हिरण्मयश्चैव शतमायुश्च शम्बरः ।। ), ९२.१०/२.३०.१०( समुद्र मन्थन से प्रकट धन्वन्तरि का नाम - सर्व्वसंसिद्धकायं तं दृष्ट्वा विष्टम्भितः स्थितः। अजस्त्वमिति होवाच तस्मादजस्तु सः स्मृतः ।। ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९८( कपिशा - पुत्र अज पिशाच द्वारा स्वकन्या ब्रह्मधना का राक्षस से विवाह - अजः षण्डः पिशाचौ द्वौ भूपाल कपिशासुतौ ।। पिशाची ब्रह्मधानाख्या तत्राजस्य सुता मता ।। ), २.७९.१४(अश्व, अज के मुख शुद्ध होने तथा गौ के मुख से अशुद्ध होने का कथन - शुद्धं प्रसारितं पण्यं शुद्धे चाश्वाजयोर्मुखे ।।मुखवर्जं च गौः शुद्धा मार्जारः श्वा च नो शुचिः ।।), २.१२०.२५( पशुओं के हरण से अज योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१८.१( अजक्रान्त : २० मध्यमग्रामिकों में से एक ), शिव २.४.६.५( नारद विप्र के अजमेध के अज का लुप्त होना, स्कन्द की सहायता से अज की पुन: प्राप्ति, अज का अवध्य होना - अजमेधाध्वरं कर्तुमारंभं कृतवानहम् ।। सोऽजो गतो गृहान्मे हि त्रोटयित्वा स्वबंधनम् ।। ), स्कन्द ७.१.५९( रुद्र के छठे शीर्ष का नाम, ब्रह्मा को अज शीर्ष का दान, अन्धकासुर से युद्ध में अज शीर्ष से अजा देवी का प्राकट्य - सद्योजातादिपंचैव षष्ठं स्मृतमजेति च ॥ सप्तमं पिचुनामेति सप्तैवं वदनानि मे ॥), महाभारत शान्ति १४२.२६(अज, अश्व व क्षत्र में सादृश्य होने का उल्लेख - अजोऽश्वः क्षत्रमित्येतत्सदृशं ब्रह्मणा कृतम्।), ३४२.७४/३५२.९( अज की निरुक्ति - न हि जातो न जायेयं न जनिष्ये कदाचन। क्षेत्रज्ञः सर्वभूतानां तस्मादहमजं स्मृतः।। ), योगवासिष्ठ ३.३.८( अज में कारण का अभाव होने का कथन - सर्वासां भूतजातीनामेकोऽजः कारणं परम् । अजस्य कारणं नास्ति तेनासावेकदेहवान् ।।), लक्ष्मीनारायण १.५२.९६( अङ्कुर से रहित धान्य की अज संज्ञा का उल्लेख - 'अजेन तु यजेते'ति अजस्त्रैवार्षिको ब्रिहिः । न जायतेंऽकुरो यस्य तद्धान्यमज उच्यते ।। ), १.१३३.१०४( श्री हरि द्वारा वैकुण्ठ में जय - विजय द्वारपालों के स्थान पर अज - अजय को नियुक्त करना - वैकुंठे च तयोः स्थाने अजं अजयमेव च । नियुयोज हरिर्द्वारपालौ यावत्तदागमः ।। ), २.१५७.१०( अङ्गन्यास में अज व अवि का हस्त में न्यास - सन्धिषु लोमजेभ्यश्च गोभ्यो नमो मुखे तथा ।। अजाविकाभ्यो हस्तयोश्च सर्वत्र पशुभ्यो नमः । ), ३.१०२.६६( अज की अग्नि से पूर्व उत्पत्ति ?- अजोऽग्निर्वरुणो मेषः सूर्योऽश्वः प्राग् व्यजायत । तत्तद्दानानि वै प्रेतमुक्तयेऽपि भवन्ति हि ।। ), ४.८०.१३( अजायन : नागविक्रम राजा के सर्वमेध यज्ञ में आहर्त्ता ऋत्विज ), द्र. अजा aja
Remarks on Aja/Ajaa
Comments on Basta/he-goat
अजक ब्रह्माण्ड २.३.६६.३०( सुनह - पुत्र, बलाकाश्व - पिता, अमावसु/पुरूरवा वंश ), २.३.७४.१२६( विशाखयूप - पुत्र, नन्दिवर्धन - पिता, प्रद्योत वंश ), भागवत ९.१५.३( बलाक - पुत्र, कुश - पिता, पुरूरवा वंश ), मत्स्य १२.४८( दिलीप - पुत्र, दीर्घबाहु - पिता ), वायु ९१.६०/२.२९.५७( सुहोत्र - पुत्र, बलाकाश्व - पिता, अमावसु वंश ), ९९.३१३/२.३७.३०७( विशाखयूप - पुत्र, वर्तिवर्धन - पिता, प्रद्योत वंश ), विष्णु ४.७.८( सुमन्तु - पुत्र, बलाक - पिता, आयु/पुरूरवा वंश ) ajaka
अजगन्ध पद्म १.३१.१०७( शिव के अजगन्ध नाम का कारण : दक्ष के मृग रूप यज्ञ का वेधना तथा रुधिर से प्रसेचन), १.३३.१४९( राम द्वारा पुष्कर में मर्यादा पर्वत के निकट अजगन्ध शिव की स्तुति ), ब्रह्माण्ड २.३.७.८( अजगन्धा : २४ मौनेया अप्सराओं में से एक ), स्कन्द ५.१.२८.४५( अजागन्ध कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य : पाप का नाश ), द्र. अजोगन्ध ajagandha
अजगर गर्ग ४.२३( अजगर द्वारा नन्द के पाद का ग्रहण, कृष्ण के पदाघात से दिव्य रूप की प्राप्ति, पूर्व जन्म में सुदर्शन विद्याधर ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६०.४३( नहुष का दुर्वासा के शाप से इन्द्रपद से पतन व अजगर बनना ), भविष्य ३.२.१८.२०( संसार की अजगर से उपमा ), भागवत १०.३४( नन्द का अजगर द्वारा बन्धन, कृष्ण द्वारा मुक्ति, जन्मान्तर में सुदर्शन विद्याधर ), ११.७.३३( दत्तात्रेय द्वारा अजगर से शिक्षा प्राप्ति का कथन ), हरिवंश ४.४.२९( अविधिपूर्वक कथा श्रवण पर अजगर योनि की प्राप्ति ), कथासरित् २.१.५७, ८.३.६३( विद्याधरी की अजगर पकडने में असफलता, सूर्यप्रभ मनुष्य द्वारा बन्धन पर अजगर का तूणीर - रत्न/तरकस बनना ), ९.५.५९, १०.५.३१०( अजगर द्वारा यज्ञसोम का निगरण, यज्ञसोम की पत्नी को दिव्य भिक्षा पात्र देना, यज्ञसोम का जीवित होना, अजगर का शापमुक्त हो काञ्चनवेग विद्याधरराज बनना ), १८.४.३२( विक्रमादित्य के कार्पटिक देवसेन का ककडी भक्षण से अजगर बनना, पुन: मनुष्य स्वरूप प्राप्ति का उद्योग ) ajagara
Remarks on Ajagara
अजतुङ्ग ब्रह्माण्ड २.३.१३.४८( अमरकण्टक के अन्तर्वर्ती तीर्थ अजतुङ्ग की पितरों के तर्पण हेतु प्रशस्तता ), वायु ७७.४८/२.१५.४८( अजतुङ्ग पर पर्व कालों में देवों की छाया का दर्शन, पाण्डवों द्वारा नीरोगता प्राप्ति ) ajatunga
अजनाभ भागवत ५.४( ऋषभ द्वारा शासित देश ), लक्ष्मीनारायण २.१११.५९( अजनाभ देश में गङ्गा की स्थिति ), २.२९७.८९( अजनाभीय नारियों के गृह में कृष्ण द्वारा ऐतिहासिक वार्ता, कला कौशल्य आदि की वार्ता का उल्लेख ) ajanaabha
अजपार्श्व ब्रह्म १.११.१३२( श्वेतकर्ण व मालिनी - पुत्र, अजपार्श्व नाम प्राप्ति का कारण, रोमक - पुत्र बनना ), हरिवंश ३.१( श्वेतकर्ण व मालिनी के पुत्र अजपार्श्व के जन्म की कथा ) ajapaarshva
अजपाल भविष्य ४.७१( अजपाल द्वारा रावण की आधीनता अस्वीकार करना, ज्वर प्रेषण, नीराजन द्वादशी व्रत ), मत्स्य १२.४९( दीर्घबाहु - पुत्र, दशरथ - पिता ), स्कन्द ६.९५( अजपाल द्वारा चण्डी देवी से प्राप्त अस्त्र मन्त्रों से व्याधियों को अजा रूप में रूपान्तरित करना, व्याघ्र रूपी शिव द्वारा अजाओं का भक्षण, राजा की मुक्ति ), ६.१३३( अजपाल द्वारा व्याधियों को अजा रूप में रूपान्तरित कर रक्षा करना, विप्र का रात्रि में कुष्ठ ग्रस्त होना, व्याधि से मुक्ति हेतु अजापाल का तप ), ७.३.९( पूर्व जन्म में शूद्र, कमलों से केदारेश्वर लिङ्ग की पूजा से राजा ), लक्ष्मीनारायण १.४९६( अजपाल द्वारा व्याधियों को अजा रूप में नियन्त्रित करने की कथा ), २.२६५( दुष्ट प्रकृति के पार्ष्णिरद नामक अजापाल की कृष्ण नाम जप से मुक्ति ), ४.६८( परमीर अजापालक का मृत्यु के पश्चात् श्येन बनना ) ajapaala
अजमीढ ब्रह्म १.११.१०५( धूमिनी - पति, ऋक्ष - पिता ), भागवत ९.२१.२१( हस्ती - पुत्र, बृहदिषु - पिता, वंश वर्णन ), ९.२२.३( ऋक्ष - पिता, वंश वर्णन ), मत्स्य ४९.४५( अजमीढ द्वारा केशिनी, नीलिनी व धूमिनी पत्नियों से पुत्रों की उत्पत्ति ), ५०.१६( अजमीढ का सुदास - पुत्र सोमक के रूप में पुन: जन्म लेना, धूमिनी - पति, जन्तु व अन्य १०० पुत्र ), १४५.१०३( अङ्गिरा गोत्रीय ३३ ऋषियों में से एक ), वायु ९१.११६/२.२९.११२( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले राजर्षियों में से एक ), ९९.११४/२.३७.१८९( नीलिनी - पति, नील - पिता, वंश का वर्णन ), हरिवंश १.३२.४२( अजमीढ वंश का वर्णन ) ajameedha
Remarks on Ajmeedha
अजमेध भविष्य ३.२.२२( क्षत्रसिंह के अजमेध यज्ञ में अज/छाग की हिंसा के प्रश्न पर विवाद ) ajamedha
अजमेर भविष्य ३.१.७.३( राजपुत्र देश के चपहानि नृप का अजमेर में सुखपूर्वक निवास ), भविष्य ३.४.२.१( अजमेर पुर की निरुक्ति, शासकों के नाम - अजस्य ब्रह्मणो मा च लक्ष्मीस्तत्र रमा गता ।। तया च नगरं रम्यमजमेरमजं स्मृतम् ।। ) ajamera
अजहारित लक्ष्मीनारायण ३.३१( अजहारित ऋषि द्वारा राजा को शाप देकर अश्व बनाना )
अजा कूर्म १.७.५५( अजा का ब्रह्मा के मुख से प्राकट्य- मुखतोऽजान् ससर्जान्यान् उदराद्गाश्चनिर्ममे ।। पद्भ्यांचाश्वान् समातङ्गान् रासभान् गवयान् मृगान् । ), गरुड ३.९.१( अजानज/अज्ञानज स्वरूप वाले गन्धवों, अप्सराओं, ऋषियों, पितरों आदि के नाम ), ३.११.६(निद्रासीन विष्णु के संदर्भ में अजा के परा-अपरा प्रकृति होने का उल्लेख - अजां जहि महाभाग योग्यानां मुक्तिमावह । अजा तु प्रकृतिः प्रोक्ता चापरा प्रकृतिः परा ॥ ), ३.१६.१०(नारायण-पत्नी- नारायणस्य भार्या तु लक्ष्मीरूपा त्वजा स्मृता ॥), नारद १.९०.७१( लकुच द्वारा देवी पूजा से अज सिद्धि का उल्लेख - जंबीरैर्महिषावाप्त्यै लकुचैरजसिद्धये । ), पद्म १.३.१०५( अजा की ब्रह्मा के मुख से सृष्टि - अवयो वक्षसश्चक्रे मुखतोजांश्च सृष्टवान्। सृष्टवानुदराद्गाश्च महिषांश्च प्रजापतिः ), ६.५६( अजा एकादशी व्रत का माहात्म्य : हरिश्चन्द्र की कष्टों से मुक्ति - पूजयित्वा हृषीकेशं व्रतमस्यां करोति यः। पापानि तस्य नश्यंति व्रतस्य श्रवणादपि॥ ), ६.१७६( गीता के द्वितीय अध्याय के पाठ से शुद्ध स्थान में व्याघ्र की अजा भक्षण में अरुचि, अजा का निर्भय होना, अजा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), ६.१८३( माधव ब्राह्मण द्वारा यज्ञ में अजा बलि की चेष्टा, छाग द्वारा अपना पूर्व योनियों में जन्म वृत्तान्त का कथन, गीता के नवम अध्याय के माहात्म्य का कथन ), भविष्य ३.४.८.८९ ( व्यक्त स्थिति में अहंकार उत्पन्न होने पर बुद्धि का नाम, अन्य नाम अविद्या - व्यक्तेऽहंकारभूते च बुद्धिर्ज्ञेया बुधैरजा ।। अविद्या नाम विख्याता षोडशांगस्वरूपिणी ।।), ४.१०३.९( दिलीप - पत्नी कलिङ्गभद्रा की सर्पदंष्ट से मृत्यु होने पर अजा योनि प्राप्त होने व कार्तिकव्रत से मुक्तिप्राप्ति आदि की कथा ), भागवत ९.१९( विषयों से अतृप्त बस्त व कूप - पतित अजा का प्रसंग ), १०.१३.५२( विभूति का नाम ),मत्स्य ६.३३( धर्म व सुग्रीवी - पुत्र ), वायु २०.२८( अज रूपी पुरुष की अजा रूपी विश्वरूपा प्रकृति में आसक्ति - विरक्ति का मन्त्र : अजामेकां इति ), २३.९२/१.२३.८५( ब्रह्मा द्वारा पार्वती का अजा रूप में दर्शन, अजा का विश्वरूप होना, अजा के मुख में अग्नि का स्थित होना - अजश्चैव महातेजा विश्वरूपो भविष्यति। अमोघरेताः सर्वत्र मुखे चास्य हुताशनः। ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३०१.३१( अजा प्रतिग्रह की संविधि - कर्णेऽजाः पशवश्चान्ये ग्राह्याः पुच्छे विचक्षणैः ।। ), स्कन्द ४.२.७२.६१( अजा देवी द्वारा पृष्ठ देश की रक्षा - अव्यात्सदा दरदरीं जगदीश्वरी नो नाभिं नभोगतिरजात्वथ पृष्ठदेशम् ।। ), लक्ष्मीनारायण १.४९६( अजापाल राजा द्वारा व्याधियों का अजा रूपों में रूपान्तरण करके नियन्त्रण - स च वै सकलान् व्याधीन् मन्त्रैः संयम्य यत्नतः ।। अजारूपान् स्वयं पश्चाद् यष्टिमादाय रक्षति ।), २.४५.७( मां अजा : तलाजा राक्षसी की किंकरी, झांझीवर दैत्य से उत्पन्न दुष्ट पुत्र द्वारा समुद्र में क्षेपण पर कृष्ण द्वारा रक्षा ) ajaa
Remarks on Ajaa
Comments on Basta
अजापाल स्कन्द ७.१.५८( रघु - पुत्र, व्याधि मुक्ति हेतु क्रिया शक्ति रूपा भैरवी देवी की पूजा, अजापालेश्वरी देवी नामकरण, रावण द्वारा कर मांगने पर ज्वर का प्रेषण ), ७.१.२८७( अजापाल राजा द्वारा अजापालेश्वरी देवी की आराधना, देवी द्वारा व्याधियों पर नियन्त्रण ), लक्ष्मीनारायण २.२६५.३( पार्ष्णिरद नामक अजपालक द्वारा नर अजा शावकों की हत्या व मादा शावकों का पालन, कष्ट प्राप्ति, कृष्ण भक्त बनना ) द्र. अजपाल ajaapaala
अजामिल भागवत ६.१+ ( नारायण - पिता अजामिल ब्राह्मण की वेश्या में आसक्ति, परधाम गमन का वृत्तान्त ) ajaamila/ajamil
Comments on Ajamil
Vedic contexts on Ajaamila
अजामुखी वा.रामायण ५.२४.४३९ अजामुखी राक्षसी द्वारा अशोकवाटिका में सीता को भय दिखाना ) द्र. बर्करी ajaamukhee
अजित अग्नि ३.५( विशाखयूप तीर्थ में विष्णु का अजित नाम ), गर्ग ५.१७.२९( कृष्ण विरह पर अजित पदाश्रिता गोपियों के उद्गार ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९३( अजित देवगण के अन्तर्गत १२ देवों के नाम ), २.३.३.११४( अजित अवतार का मन्वन्तरों में प्राकट्य ), भागवत ८.५.९( वैराज व सम्भूति - पुत्र, अवतार ), वामन ९०.६( विशाखयूप तीर्थ में विष्णु का अजित नाम से वास ), वायु ३१.४( ब्रह्मा - पुत्र ), ६७.३३( जय संज्ञक ब्रह्मा के १२ पुत्रों का शापित होकर स्वायम्भुव मन्वन्तर में रुचि व अजिता - पुत्र अजित गण बनना, अजित गण के १२ देवों के नाम ), शिव ५.३४.६५( १४वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.६५( अजित प्रासाद के लक्षण ) ajita
अजिन ब्रह्माण्ड १.२.३७.२४( हविर्धान व आग्नेयी - पुत्र ), कथासरित् १४.२.३८( अजिनावती : देवसिंह व धनावती - पुत्री, विद्याधरी, नरवाहनदत्त की भार्या बनना ), १४.३.३२, द्र. वंश पृथु ajina
Remarks on Ajina
अजिर वायु ३१.९( त्विषिमान् संज्ञक १२ देवों में से एक )
अजीगर्त/अजीगृद ब्रह्म २.८०( सुयव - पुत्र, शुन:शेप पुत्र के विक्रय के पाप से पिशाच बनना, पुत्र द्वारा गङ्गा पर दान से मुक्ति ), स्कन्द ७.१.१९१( अजीगर्तेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ) द्र. ऋचीक ajeegarta/ajeegarda
Remarks on Ajeegarta
अजैकपाद अग्नि १८.४२( सुरभि व कश्यप - पुत्र, ११ रुद्रों में से एक ), ब्रह्माण्ड २.३.३.७१(कश्यप व सुरभि के ११ रुद्रपुत्रों में से एक), भविष्य ३.४.११.५५( वसुशर्मा ब्राह्मण - पुत्र, मृत्यु पर विजय, रुद्र से सायुज्य, पुरीशर्मा रूप में अवतरण - अजस्येव पदश्चैको द्वितीयो नरवत्ततः । अजैकपाद इति स प्रसिद्धोऽभून्महीतले । ।), भागवत ६.६.१८( भूत व सरूपा - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक ), मत्स्य ५१.२२( अग्नि का नाम, अन्य नाम शालामुख - अजैकपादुपस्थेयः स वै शालामुखो यतः ॥ अनिर्देश्यो ह्यहिर्बुध्न्यो बहिरन्ते तु दक्षिणौ। ), महाभारत उद्योग ११४.४ (हिरण्य के रक्षक - अजैकपादहिर्बुध्न्यौ रक्ष्येते धनदेन च। एवं न शक्यते लब्धुमलब्धव्यं द्विजर्षभ ।), वायु २९.२४( उपस्थेय - शालामुखीय अग्नि - अजैकपादुपस्थेयः स वै शालामुखीयकः। अनुद्देश्योप्यहिर्बुध्न्यः सोऽग्निर्गृहपतिः स्मृतः ।। ), स्कन्द ४.१.१४.४( ११ रुद्रों में से एक ), हरिवंश १.३.५०( सुरभि – पुत्र - सुरभी कश्यपाद् रुद्रानेकादश विनिर्ममे ।....अजैकपादहिर्बुध्न्यस्त्वष्टा रुद्राश्च भारत । ), ३.५३.१९( अजैकपाद का राहु से युद्ध - राहुस्तु विकृताकारः शतशीर्षा महोदरः । अजैकपादेन रणे सहायुध्यत दंशितः ।।), ३.५८.५३( राहु से युद्ध - तत्रैव युध्यते रुद्रो द्वितीयो राहुणा सह । विश्रुतस्त्रिषु लोकेषु क्रोधात्मा ह्यज एकपात् ।। ) ajaikapaada
अजोगन्ध स्कन्द ७.१.२९४( ऋतध्वज राजा द्वारा स्थापित अजोगन्धेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ) द्र. अजगन्ध ajogandha
अज्ञान गरुड ३.९.१( अजानज/अज्ञानज स्वरूप वाले १५ गन्धवों, अप्सराओं, ऋषियों, पितरों आदि के नाम ), वराह ३१.१५(अज्ञान छेदन हेतु खङ्ग का उल्लेख), वायु १०२.६२/२.४०.६२( अज्ञान का निरूपण ), योगवासिष्ठ ३.११७( अज्ञान की जाग्रत, स्वरूट आदि ७ भूमिकाओं का निरूपण ), ६.१.७( अज्ञान द्वारा निर्मित संसार की स्थिति का वर्णन ), ६.१.२९.७६( अज्ञान गज को सिंह का भक्षक बनाने का निर्देश ), ६.१.९१.३( अज्ञान की हस्ती के महावत/हस्तिप से उपमा ), ६.१.९५.३( अज्ञान के सब दुःखों का मूल कारण होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.१४( ब्रह्मा से अज्ञान की सृष्टि का कथन ), २.२४६.८८( अज्ञान मूलक वृक्ष का स्वरूप ) ajnaana
अञ्ज लक्ष्मीनारायण ३.२०७( नाञ्ज नामक कृष्ण - भक्त द्वारा कृषकों की लुटेरों से रक्षा, कृष्ण द्वारा नाञ्ज की रक्षा ) anja
अञ्जन अग्नि ३००.१( ग्रहापहा अञ्जन? ), गर्ग ४.१.१४( अज्ञान तिमिरान्ध हेतु ज्ञान अञ्जन शलाका - अज्ञानतिमिरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया । चक्षुरुमीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ), पद्म १.६.५९( विप्रचित्ति व सिंहिका के ९ पुत्रों में एक - इल्वलो नमुचिश्चैव खसृमश्चांजनस्तथा ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.३०.१०१( असित - पुत्र देवल का रम्भा अप्सरा के शाप से अञ्जनवर्ण व वक्र देह होना - हे वक्रचित्त ते विप्र सर्वावयववक्रिमम् । शरीरमञ्जनाकारं रूपयौवनवर्जितम् ।। ), ४.८५.११८( अञ्जन चोर के शुक बनने का उल्लेख - शुकोऽप्यञ्जनचोरश्च मिष्टचोरः कृमिर्भवेत् ।।), ब्रह्माण्ड २.३.७.२९२( अण्डकपाल की शक्ति से इरावती के गर्भ से जन्मे ४ हस्तियों में से एक), २.३.७.३३०( हस्ती, यम का वाहन, अन्य नाम संकीर्ण - संकीर्णो ह्यञ्जनो योऽसावौपवाह्यो यमस्य सः ॥ ), भविष्य ४.१८०( दिग्गज का नाम ), वायु ४७.१३( त्रैककुद अञ्जन गिरि की वृत्र की काया से उत्पत्ति - कैलासाद्दक्षिणे पार्श्वे क्रूरसत्वौषधं गिरिम्। वृत्रकायात् किलोत्पन्नमञ्जनं त्रिककुत्प्रति ।। ), ६९.२०९/२.८.२०६( भद्र हस्ती का पुत्र, दिग्गज ), ६९.--/२.८.२२१( अञ्जन साम से उत्पन्न गजों के नाम ), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.२९( आङ्गिरसी शान्ति के लिए अञ्जनमणि के उपयोग का उल्लेख - नैर्ऋत्यामायसं चैव आङ्गिरस्यास्तथाञ्जनम् ।), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८५( रक्ताञ्जन : वह्नि का रूप - यष्टिमधुद्रुः कन्दर्पो वह्निः रक्तांजनद्रुमः । ), कथासरित् ८.२.३५१( अञ्जनिका : काल - कन्या, महल्लिका - सखी, सूर्यप्रभ की पत्नी बनना - नवम्यञ्जनिका नाम कालस्य दुहिता विभोः ।। ), ८.५.५३( अञ्जनगिरि का राजा धूर्तवाहन - षष्ठश्च धूर्तवहनो नाम्नाञ्जनगिरीश्वरः ।। ), १८.२.२७६( जयवर्धन द्वारा अञ्जनगिरि हस्ती की प्राप्ति का उल्लेख - सत्कुञ्जरोऽञ्जनगिरिर्जयवर्धनस्य मत्तद्विपो रणभटस्य च कालमेघः । ) द्र. वृषभाञ्जन, व्यञ्जन, स्वर्णाञ्जन anjana
Remarks on Anjana
अञ्जना ब्रह्म २.१४( वानरी, केसरी - पत्नी, हनुमान - माता, अद्रि पिशाच द्वारा गौतमी में स्नान कराना ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२२४( केसरी - पत्नी अञ्जना द्वारा वायु से हनुमान को उत्पन्न करने का उल्लेख, केसरी के अन्य पुत्रों के नाम ), भविष्य ३.४.१३.३२( गौतम - पुत्री, केसरी वानर - भार्या, हनुमान के जन्म की कथा ), शिव ३.२०( शिव वीर्य से अञ्जना को हनुमान पुत्र की प्राप्ति की कथा ), स्कन्द २.१.३९( अञ्जना का मतङ्ग से वार्तालाप, पुत्रार्थ आकाशगङ्गा तीर्थ में तप, वायु द्वारा वरदान ), ५.३.५.८( युधिष्ठिर द्वारा मार्कण्डेय मुनि से अञ्जना नदी का शब्दार्थ पूछना - अञ्जनेति किमर्थं वा किमर्थं सुरसेति च । ), वा.रामायण ४.६६.८( पुञ्जिकस्थला अप्सरा का अवतार, कुञ्जर वानर - पुत्री, केसरी - पत्नी, हनुमान के जन्म की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.१८४.१६८( शिव के वीर्य से अञ्जना द्वारा हनुमान को जन्म देने की कथा ), १.४०६( केसरी - पत्नी अञ्जना द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु तप, वायु/शङ्कर के अंश से हनुमान पुत्र की प्राप्ति ), २.१४.२६( कृष्ण - पत्नी अञ्जना द्वारा शुक्रजीवनी राक्षसी द्वारा मोचित धूम्र का पान ) anjanaa
Remarks on Anjanaa
अञ्जलि अग्नि ३४१.१७( संयुत कर के १३ प्रकारों में से एक ), महाभारत कर्ण ९१.४०( अर्जुन द्वारा अञ्जलिक नामक बाण से कर्ण का वध ), लक्ष्मीनारायण ३.१७८( अयाचिताञ्जलि : भिक्षायन मुनि - भार्या, कामना त्याग से मुक्ति ), ४.३६.३०( हिताञ्जलि मुनि द्वारा कारेलिका मार्जयित्री को कृष्ण नाम की दीक्षा ) anjali
अट स्कन्द ६.१२८( अटेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, बृहद~बल राजा की भार्याओं को अट पुत्र की प्राप्ति, अट की निरुक्ति ) ata
अटवी पद्म ३.२१.३१( नर्मदा तटवर्ती अटवी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य )द्र. महाटवी atavee
अट्टशूल स्कन्द १.२.४०.२३५( कलियुग में जनपदों के अट्टशूल होने का उल्लेख, द्र. टीका ) attashoola
अट्टहास देवीभागवत ७.३८( अट्टहास क्षेत्र में महानन्दा देवी का वास ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३७.१८( अट्टहासिनी काली से ईशान दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), लिङ्ग १.२४.९५( २०वें द्वापर में मुनि ), वायु २३.१९०( २०वें द्वापर में शिव अवतार ), शिव ३.५.२५( २०वें द्वापर में अट्टहास गिरि पर अट्टहास नामक शिव अवतार ), स्कन्द ४.१.४५.४१( अट्टाट्टहास : ६४ योगिनियों में से एक ), ४.२.९७.३०( अट्टहासेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.२.४.१२( देवों द्वारा तेज से सृष्ट कृत्या के अट्टहास से रौद्र कन्याओं की सृष्टि का कथन ), ५.३.१६.४( शिव के अट्टहास की भीषणता का कथन ), ७.१.१०.१०(अट्टहास तीर्थ का वर्गीकरण -- वायु), कथासरित् ८.४.५६( विद्याधर - राजा, सूर्यप्रभ की सेना से युद्ध, हर्ष द्वारा वध ), १२.६.३३( यक्षकुमार, नलकूबर के शाप से पृथिवी पर पवित्रधर ब्राह्मण के रूप में जन्म, शाप से मुक्ति ), १२.६.४२१( यक्ष, प्रदीप्ताक्ष - पुत्र, दीप्तशिख - अग्रज, मनुष्य योनि में जन्मे स्व अनुज को जाति - बोध कराना ) attahaasa
अट्टाल स्कन्द १.२.६५.१११( राक्षसी व उसका वध स्थान, देवी का नाम वत्सेश्वरी ), ५.३.१८२.१३( श्री द्वारा कुञ्चिका अट्टाल नामक स्वगृह को भृगु को सौंपकर देवलोक जाने और पुनरागमन पर अट्टाल के स्वामित्व पर भृगु से विवाद का वर्णन ), ७.१.२६९( विदुर अट्टालक : विदुर के तप का स्थान ) attaala
अणिमा देवीभागवत १२.६.११( अणिमादि गुणाधारा : गायत्री सहस्रनामों में से एक ), पद्म ६.१६६.५( साभ्रमती नदी में स्नान करके पाण्डुरार्या देवी को नमस्कार करने पर अणिमादि अष्ट सिद्धियों के प्राप्त होने का उल्लेख ),ब्रह्म १.१३३.१५( ईश्वर के विराट रूप/पुरुष सूक्त के संदर्भ में अणिमा आदि का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.६.१८( १८ सिद्धियों के अन्तर्गत अणिमादि ८ सिद्धियों का उल्लेख ), ४.४.६३( विष्णु का अणिमादि सिद्धियों के कारण के रूप में उल्लेख ), ४.७८.३३( अणिमादि सिद्धियां प्रदान करने वाले ॐ सर्वेश्वरेश्वर - - - - - मधुसूदनाय स्वाहा मन्त्र का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.२७.१२४( दक्षिण मार्ग से साधना करने पर अणिमादि सिद्धियां प्राप्त होने का उल्लेख ), ३.४.१९.३( ललिता देवी के चक्रराज रथ के नवम् पर्व में स्थित अणिमादि १० सिद्धि देवियों के नाम तथा स्वरूप का कथन ), ३.४.४४.१०८( श्रीचक्र न्यास के अन्तर्गत अणिमादि १० सिद्धियों के अंस, दो:, पृष्ठ आदि में न्यास का उल्लेख ), भागवत ११.१५.४( धारणा योग से प्राप्त होने वाली १८ सिद्धियों के अन्तर्गत अणिमादि ८ सिद्धियों तथा उनकी प्राप्ति के साधनों का वर्णन ), लिङ्ग १.९.२३( पैशाच/पार्थिव, आप्य/राक्षस, याक्ष/तैजस, गान्धर्व/वायु, ऐन्द्र/व्योम, सौम्य/मानस, प्राजापत्य/अहंकार, ब्राह्म/बोध नामक ८ सिद्धियों के लक्षणों का वर्णन ), १.८८.९( अणिमा आदि ८ ऐश्वर्यों के सावद्य, निरवद्य व सूक्ष्म नामक तीन भेदों का वर्णन, ८ ऐश्वर्यों का शिव की ८ मूर्तियों से तादात्म्य?, ८ ऐश्वर्यों की प्रकृति का वर्णन ), २.२७.१०१( अणिमा, लघिमा आदि व्यूह का वर्णन, शिव अभिषेक का प्रसंग ), वायु १३.२( अणिमा आदि ८ ऐश्वर्यों की प्रकृति का वर्णन : योग में अणिमा के लम्बन व प्लवन रूप का उल्लेख ), १०२.९७/२.४०.९७( अणिमादि ८ ऐश्वर्यों का ब्रह्मा से लेकर पिशाचान्त ८ स्थानिक देवों से तादात्म्य का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१२९.१२( पुरुष सूक्त के जप से अणिमादि सिद्धियां प्राप्त होने का उल्लेख ), शिव ७.२.३८.१८( योग में पार्थिव/पैशाच, आप्य, आनल, मारुत, ऐन्द्र/आम्बर, चान्द्रमस, प्राजापत्य, ब्राह्म व वैष्णव ऐश्वर्यों के लक्षणों का वर्णन ), स्कन्द १.२.५५.११७( अणिमा, लघिमा आदि ८ सिद्धियों के नाम व प्रकृति का उल्लेख ; अणिमा का सूक्ष्मात्सूक्ष्म होना ), २.९.२७.५०( वासुदेव पूजा विधान वर्णन के अन्तर्गत कमल के ८ दलों के मध्य अन्तरालों में सुवर्ण वर्ण वाली, मङ्गलवाद्यों के वादन में निपुण, आभरणों आदि से शोभित अणिमादि ८ सिद्धियों का न्यास ), ३.१.३६.१९४( महालय श्राद्ध करने से अत्रि आदि ऋषियों का अणिमादि सिद्धियां प्राप्त करने का उल्लेख ), ५.१.१८.२( एकानंशा देवी के तुष्ट होने पर अणिमादि सिद्धियों के प्राप्त होने का उल्लेख ), ७.१.५२.२( सिद्धेश्वर लिङ्ग के दर्शन से अणिमादि सिद्धियां प्राप्त होने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.१.८२( अणिमा आदि सिद्धि में कुण्डलिनी जागरण का महत्त्व ), वा.रामायण ५.१.१( हनुमान द्वारा लङ्का गमन हेतु समुद्र पार करते समय अणिमा, लघिमा आदि सिद्धियों का उपयोग करना ) animaa
Remarks on Animaa
अणु ब्रह्माण्ड ३.४.२.११७( परमाणु से आरम्भ करके स्थूलता के परिमाणों का वर्णन ), भागवत ३.११.५( परमाणु, अणु, त्रसरेणु के आपेक्षिक परिमाणों का कथन ), लिङ्ग १.८८.२७( अणु से आगे सूक्ष्मतर स्थितियों के नाम ), स्कन्द १.१.६.४( पुराणों के सार्वत्रिक श्लोक अणोरणीयान् महतोमहीयान् इत्यादि का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ३.७.९.२( चिदणु के सम्बन्ध में कर्कटी का राजा से प्रश्न ), ६.२.१४+ ( अहंकार समाप्त होने पर जगत का परमाणुवत् भासित होना ) anu
Remarks on Anu
अणुह देवीभागवत १.१९.४२( अणुह का शुक - पुत्री कीर्ति से विवाह ), भागवत ९.२१.२४( नीप नाम, कृत्वी - पति ), मत्स्य २१.११( अणुह द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु तप, ब्रह्मदत्त पुत्र की प्राप्ति ), ४९.५७( विभ्राज - पुत्र, कृत्वी - पति, ब्रह्मदत्त - पिता ), हरिवंश १.१८.५३( अणुह का शुक - पुत्री कीर्ति से विवाह ) anuha
अण्ड अग्नि १७.७(आपः में वीर्य के सृजन से हिरण्यवर्ण अण्ड की उत्पत्ति का कथन), १४५.२८(ब व भ अक्षरों के रुद्रों के रूप में गलण्ड व द्विरण्ड का उल्लेख), २९३.४५(ब तथा भ वर्णों के रुद्रों के रूप में छगलण्ड व द्विरण्ड का उल्लेख), कूर्म १.४.३९( हिरण्यगर्भ रूपी अण्ड ), १.५०.२६( पर अव्यक्त महेश्वर से अव्यक्त अण्ड की तथा अण्ड से ब्रह्मा की उत्पत्ति का कथन ), नारद १.६६.१०६(ब तथा भ अक्षरों के रुद्रों के रूप में छलगण्ड व द्विरण्ड का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.२.५०+ ( कृष्ण वीर्य से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति ), ब्रह्माण्ड १.२.२१.२०( द्यावापृथिवी रूप अण्डकपाल के अन्दर लोकों की स्थिति का कथन ), १.२.२२.४६( अण्डकपाल : मेघों का रूप ), २.३.७.२९०( इरावती द्वारा अण्डकपाल धारण से ४ दिग्गजों की उत्पत्ति ), ३.४.२.२२४( परम अण्ड की व्योम में स्थिति ), भविष्य १.२.२१( ध्यान में अण्ड के द्वैधा विभाजन से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति ), १.४७.२( सूर्य/मार्तण्ड का संज्ञा से विवाह, यम - यमी आदि सन्तान उत्पत्ति से लेकर तक्षा द्वारा तेज कर्तन तक सारे कार्य अण्डस्थ स्थिति में ), ४.२.१६( अण्ड के छिन्न होने पर अण्ड – अवयवों से ब्रह्माण्ड के विभिन्न अवयवों की उत्पत्ति ), भागवत ३.२०( अण्ड की उत्पत्ति, भगवान् का अण्ड में प्रवेश, सृष्टि का आरम्भ ), ३.२६.५२( विशेष नामक अण्ड की महिमा का वर्णन : अण्ड के ६ आवरण तथा विराट द्वारा अण्ड में छिद्र करना आदि ), ११.२४.९( सात्विक आदि अहंकार के उत्पन्न होने के पश्चात् प्रकट हुए इन्द्रियों व उनके अधिष्ठातृ देवों के मिलन/संहतिकरण से अण्ड के उत्पन्न होने तथा उसमें नारायण के प्रवेश का कथन ), मत्स्य २.२९( बीज रूप अण्ड से ब्रह्माण्ड का प्राकट्य ), २४८.१८( वही), लिङ्ग १.२०.८०( अण्डकपाल : द्यौ व पृथिवी की उत्पत्ति ), वायु ४.८०( हिरण्यगर्भ रूपी अण्ड ), विष्णु १.२.५४( भूतों के संघात से अण्ड की उत्पत्ति, विष्णु का अण्ड में विराजमान होना ), शिव २.१.१५( चतुर्विंशात्मक अण्ड की चैतन्यता हेतु ब्रह्मा द्वारा तप, विराट विष्णु का अण्ड में प्रवेश ), स्कन्द १.२.५.८३(विसर्ग की अण्डज संज्ञा), ५.१.२.६( महाकाल द्वारा हस्त मन्थन से अण्ड की उत्पत्ति ), हरिवंश ३.३४.१( प्रभु द्वारा जगत रूपी अण्ड में आठ छिद्र करने पर आठ दिशाओं के प्रकट होने तथा अण्ड रस से सुवर्ण के प्रकट होने का वर्णन ), महाभारत वन ३१३.६२( अण्ड के उत्पन्न होने पर भी चेष्टारहित होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), लक्ष्मीनारायण २.१२.२४( दमन असुर के प्रचण्ड, कूष्माण्ड आदि अण्ड प्रत्यय वाले सेनानी ), २.१४०( अण्डों की संख्याओं के अनुसार प्रासादों के नाम ), २.२२०( आण्डजरा राजा द्वारा अन्त:प्राक् नगरी में कृष्ण का स्वागत ), ३.३१.१( अण्डज वत्सर में अजहारित ऋषि द्वारा राजा को शाप से अश्व बनाना, अश्वमेध से राजा की अश्व योनि से मुक्ति का वृत्तान्त ), कथासरित् १.२.१५( शिव द्वारा ऊरु में रक्त बिन्दु निपात से अण्ड की उत्पत्ति, अण्ड से पुरुष व सृष्टि की उत्पत्ति, रोदसी का रूप ) द्र. कूष्माण्ड, ब्रह्माण्ड, मुद्राण्ड, विभाण्डक, वैभाण्डकि anda
Remarks on Anda
अति- शिव ५.३०.१५( अतिमन्यु : चाक्षुष मनु व नड्वला के १० पुत्रों में से एक? ), ५.३४.६४( अतिवाह्य : १४वें मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक ), ५.३४.६८( अतिमानी : १४वें मन्वन्तर में मनु के पुत्रों में से एक ), स्कन्द ३.३.११.२६(वर्जनीय व ग्रहणीय अतियों का कथन)
अतिकाय वा.रामायण ६.५९.१६( रावण - सेनानी अतिकाय का स्वरूप ), ६.७१( रावण व धन्यमालिनी - पुत्र, राहु चिह्न से युक्त ध्वज, लक्ष्मण द्वारा वध ) atikaaya
अतिथि पद्म ७.२५( अतिथि सेवा का माहात्म्य : लोमश द्वारा अनपत्य पति व पवित्र नामक ब्राह्मणों को ज्ञानभद्र योगी की अतिथि सेवा के दृष्टान्त का कथन, पवित्र द्वारा मूषक की हत्या ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.६९( षष्ठम चाक्षुष मन्वन्तर में आद्य नामक देवगण के अन्तर्गत एक देव ), २.३.१५.८( श्राद्ध में अतिथि सेवा की महिमा ), भविष्य १.११८( अतिथि का माहात्म्य ), १.१८४.८( वैश्वदेव कर्म के संदर्भ में अतिथि की परिभाषा ), भागवत ६.७.३०( अतिथि धर्म की व अभ्यागत अग्नि की मूर्ति होने का उल्लेख ), ९.१२.१( कुश - पुत्र, निषध - पिता ), ९.२१( रन्तिदेव के आतिथ्य की पराकाष्ठा ), लिङ्ग १.२९( अतिथि सेवा का महत्त्व, सुदर्शन विप्र द्वारा अतिथि को भार्या का समर्पण ), वायु ७९.१३( अतिथि की महिमा ), विष्णु ३.११.५८( अतिथि की महिमा ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२८९( हंस - प्रोक्त अतिथि पूजा की महिमा ), शिव ५.१२.१९( वृक्षों द्वारा अपनी छाया से अतिथि पूजा करने का उल्लेख ), ५.३९.१९( कुश - पुत्र, राम - पौत्र, निषध - पिता ), स्कन्द २.४.३२.५४( अयोध्या में अतिथि नामक नृप द्वारा भीष्मपञ्चक व्रत का पालन ), ३.२.६.२२(अनित्य होने के कारण अतिथि संज्ञा), ४.१.३८.३२( अतिथि आगमन काल व अतिथि की महिमा ), ५.३.२११.१५( अतिथि की कुरूपता पर ध्यान न देने का निर्देश ), ६.१८४( बौद्ध - पुत्र अतिथि का ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन, पिङ्गला आदि गुरुओं से शिक्षा का कथन ; तुलनीय : भागवत में अवधूत व यदु का संवाद ), ६.१८५( ब्रह्मा के यज्ञ में आए अतिथि द्वारा स्थापित अतिथि तीर्थ की उत्पत्ति व माहात्म्य ), ६.१८६( अतिथि का माहात्म्य, अतिथि के तीन प्रकार ), महाभारत वन ३१३.६५( अग्नि के सब भूतों में अतिथि होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), शान्ति २२१.१४( अतिथि को भोजन देने का माहात्म्य ), २९२.६( अतिथि सेवा का माहात्म्य ), २५३+ ( अतिथि द्वारा ब्राह्मण को स्वर्ग के विभिन्न मार्गों का कथन, अतिथि द्वारा नागराज पद्मनाभ के सदाचार व सद्गुणों का वर्णन और ब्राह्मण को उसके पास जाने की प्रेरणा देना ), अनुशासन २.४२( अग्नि - पुत्र सुदर्शन द्वारा अतिथि सत्कार रूपी धर्म के पालन से मृत्यु पर विजय पाने का वृत्तान्त, सुदर्शन-पत्नी ओघवती व मृत्यु का आख्यान), आश्वमेधिक ९२ दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३२९( अतिथि सेवा का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.४४२.२९( सुयज्ञ राजा द्वारा अतिथि सुतपा ऋषि का अनादर, शाप प्राप्ति, अतिथि की महिमा का कथन ), १.५१०.४२( कृष्ण नारायण रूपी अतिथि द्वारा कुररी आदि से शिक्षा ग्रहण की कथा ; तुलनीय : अवधूत - यदु संवाद ), २.२४६.२९( अतिथि : इन्द्रलोक का स्वामी ), ३.४१.९०( अतिथि : आग्नेय पितरों का रूप ) atithi
Remarks on Atithi
अतिनामा मत्स्य ९.२३( षष्ठम चाक्षुष मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक )
अतिबल कथासरित् ८.७.२५( सूर्यप्रभ व श्रुतशर्मा विद्याधरी के युद्ध के प्रसंग में सर्वदमन द्वारा अतिबल का वध )
अतिबला मत्स्य १७९.१२( अन्धकासुर के रक्त के पान के लिए शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), वा.रामायण १.२२.१३( विश्वामित्र द्वारा राम को भूख - प्यास का शमन करने वाली अतिबला विद्या प्रदान करना ) atibalaa
अतिरात्र पद्म ३.२४.९( प्रभास तीर्थ में स्नान से अतिरात्र फल की प्राप्ति ), ३.२६.१०( पारिप्लव तीर्थ में गमन से अतिरात्र फल की प्राप्ति ), ३.२७.४२( सरस्वती - अरुणा सङ्गम में स्नान से अतिरात्र फल की प्राप्ति ), ३.३२.१५( कार्तिक - माघ तीर्थ में आगमन से अतिरात्र फल की प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.५.४( कश्यप के अश्वमेध में अतिरात्र में सौत्य अह में हिरण्यकशिपु का जन्म ), भागवत ४.१३.१५( चाक्षुष मनु व नड्वला - पुत्र ), ६.८.२२(रात्रि के विभिन्न प्रहरों में रक्षक विष्णु के नाम), मत्स्य ४.४२( चाक्षुष मनु व नड्वला - पुत्र, ध्रुव वंश ), ४४.६५( दर दुन्दुभि के पुत्रेष्टि/अश्वमेध यज्ञ में अतिरात्र में पुनर्वसु पुत्र का प्राकट्य ), मार्कण्डेय ७०.४( बलाक राक्षस द्वारा अपहृत ब्राह्मणी के पिता का नाम ), वायु ९.५१( ब्रह्मा के पश्चिम दिशा के मुख से सृष्ट यज्ञ ), ६७.५०( कश्यप के अश्वमेध में अतिरात्र में सौत्य अह में हिरण्यकशिपु का जन्म ), विष्णुधर्मोत्तर १.१५९.६( फाल्गुन मास में गोविन्द की पूजा से अतिरात्र फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३४१.२८७( श्रीहरि को धूप निवेदन से अतिरात्र फल की प्राप्ति का उल्लेख ), शिव ५.१२.१५( वसन्त व ग्रीष्म ऋतु में तडाग में जल एकत्र करने पर अतिरात्र व अश्वमेध फल प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१२७.३( अग्नि तीर्थ में कन्या दान से अतिरात्र से अधिक फल प्राप्ति का कथन ), ७.१.२०( कश्यप के अश्वमेध में अतिरात्र में सौत्य अह में हिरण्यकशिपु का जन्म ), महाभारत उद्योग १४१.४३( समर रूपी यज्ञ में घटोत्कच द्वारा रात्रि में युद्ध की अतिरात्र में शामित्र कर्म से तुलना ), अनुशासन १०६.४०( एक वर्ष तक एकाहार व्रत करने से अतिरात्र फल की प्राप्ति का उल्लेख ), १०७.१७( एक वर्ष तक तीसरे दिन एक समय भोजन व नित्य अग्नि कार्य करने पर अतिरात्र यज्ञ के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१५७.३२( अङ्गन्यास में अतिरात्र का अण्डों/वृषणों में न्यास ) atiraatra /atiratra
Comments on Atiratra
अत्रि कूर्म १.२०.४१( अत्रि द्वारा राजा वसुमना को मुक्ति के उपाय का कथन ), गरुड ३.७.५१(अत्रि द्वारा हरि-स्तुति), ३.१५.१३(अत्रि द्वारा अलर्क को आन्वीक्षिकी विद्या देने का कथन), देवीभागवत १.३.३१( १९वें द्वापर में व्यास ), नारद १.६६.११५( अत्रीश की शक्ति योगिनी का उल्लेख ), ब्रह्म २.७४( अत्रि - पुत्री आत्रेयी की कथा ), पद्म १.१९.२३७( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर अत्रि की प्रतिक्रिया ), १.३४.१५( ब्रह्मा के यज्ञ में सुब्रह्मण्य ), ५.१०.३८( राम के अश्वमेध में दक्षिण द्वार पर स्थिति ), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२४( अत्रि की ब्रह्मा के दक्षिण नेत्र से उत्पत्ति ), १.२२.१५( अत्रि शब्द की निरुक्ति ), ब्रह्माण्ड १.१.५.७५( अत्रि का ब्रह्मा के श्रोत्र से प्राकट्य ), २.३.८.७३( अत्रि वंश का वर्णन ), २.३.६५.१( तपोरत अत्रि के नेत्रों से सोम का स्रवण, सोम की जगत में प्रतिष्ठा का वर्णन), ३.४.४४.५३( लिपि न्यास प्रसंग में एक व्यञ्जन के देवता ), भविष्य ३.४.१७.६७( अत्रि द्वारा त्रिदेवों की पुत्र रूप में प्राप्ति की कथा, सोम, रुद्र व विष्णु का षष्ठम, सप्तम व अष्टम वसु बनना), ३.४.२१.१४( कलियुग में कण्व - पौत्रों के रूप में १६ गोत्रों में एक), भागवत ३.१२.२४( ब्रह्मा की अक्षियों से अत्रि की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.१.१५( अत्रि द्वारा ऋक्ष पर्वत पर तप, त्रिदेवों से तीन पुत्रों की प्राप्ति ), ४.१९.१२( पृथु के अश्वमेध यज्ञ में आचार्य, अश्व प्राप्ति का उद्योग, पृथु को इन्द्रहनन के लिए प्रेरित करना ), मत्स्य २३.२( अत्रि द्वारा तप, तेज से चन्द्रमा की उत्पत्ति ), २३.२०( चन्द्रमा के राजसूय में होता ), ११८+ ( अत्रि के आश्रम का वर्णन, पुरूरवा का आगमन व तप ), १९७( अत्रि वंश व गोत्र का वर्णन ), मार्कण्डेय १७( अत्रि द्वारा सोम आदि ३ पुत्रों का जनन ), लिङ्ग १.२४.५६( १२वें द्वापर में मुनि ), १.६३.६८( अत्रि की १० पत्नियों के नाम, प्रभाकर उपनाम प्राप्ति का कारण ), वायु ३४.६२( अत्रि द्वारा कमल की मेरु कर्णिका को शताश्रि रूप मानना ), ६५.४५/२.४.४५( ब्रह्मा के शुक्र की आहुति से अत्रि की उत्पत्ति, अत्रि नाम के कारण का कथन ), ७०.६७/२.९.६७( अत्रि की भद्रा आदि १० पत्नियों के नाम, वंश का वर्णन ), ९०/२.२८( अत्रि के तपोद्भूत तेज के नेत्रों से स्रवण से सोम की उत्पत्ति की कथा ), विष्णु १.११.४४( अत्रि द्वारा ध्रुव को परमपद प्राप्ति के उपाय का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.२५( अत्रि के दुर्वासा व दत्तात्रेय पुत्र - द्वय ), १.११३( गोत्रकार अत्रि ), १.१५१( पुरूरवा द्वारा अत्रि के आश्रम के दर्शन ), १.१५४( अत्रि द्वारा पुरूरवा को दर्शन ), शिव ३.५.६( १२वें द्वापर में शिव का अत्रि रूप में जन्म ), ३.१९( अत्रि द्वारा दुर्वासा आदि तीन पुत्रों की प्राप्ति ), ४.३( अत्रि द्वारा अनावृष्टि में तप ), ७.१.१७.३०( अत्रि व अनसूया के सत्यनेत्र आदि ५ पुत्रों व श्रुति कन्या के नाम ), ७.२.४.५२( त्रिनेत्र शिव का रूप ), स्कन्द १.२.५२.१७( कोटि तीर्थ में अत्रि द्वारा अत्रीश्वर लिङ्ग की स्थापना ), ३.१.४९.६७( अत्रि द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ३.२.२३.१०( ब्रह्मा के सत्र में होता ), ४.१.१८.१६( अत्रि द्वारा स्थापित अत्रीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.१.१९.११०( अत्रि द्वारा ध्रुव को परमपदप्राप्ति हेतु गोविन्द की आराधना का निर्देश ), ४.२.९७.१२( मधु-कैटभ द्वारा पूजित अत्रीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.२४( अत्रि द्वारा बोध से दुष्ट चरित्र वाले अग्निशर्मा का वाल्मीकि बनना ), ५.१.२८.५२( अत्रि के तपोजनित तेज से सोम की उत्पत्ति का वर्णन ), ५.१.२८.७७( चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ में होता ), ५.१.६३.२४१( बलि के अश्वमेध में अत्रि के अध्वर्यु बनने का उल्लेख ), ५.३.१०३( एरण्डी सङ्गम का माहात्म्य : अत्रि व अनसूया द्वारा त्रिदेवों की पुत्र रूप में प्राप्ति ), ६.५.८( त्रिशङ्कु के यज्ञ में नेष्टा ), ६.३२.३४, ७६( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर अत्रि की प्रतिक्रिया ), ६.१८०.३३( ब्रह्मा के यज्ञ में प्रस्थाता ), ७.१.२०.३८( अत्रि की १० भार्याओं व पुत्रों के नाम, भद्रा पत्नी से सोम का जन्म, स्व तप से उत्पन्न तेज से सोम का जन्म ), ७.१.२५५.२०, ५७( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर अत्रि की प्रतिक्रिया ), ७.४.१४.४७(अत्रि के लिए लक्ष्मणा नदी), हरिवंश १.२५( अत्रि द्वारा तप, तेज से सोम की उत्पत्ति का प्रसंग ), लक्ष्मीनारायण १.७९( अत्रि के तप से उत्पन्न तेज से सोम की उत्पत्ति ), १.४८३( अत्रि द्वारा त्रिदेवों की पुत्र रूप में प्राप्ति की कथा ) atri
Remarks on Atri
अथर्व मार्कण्डेय ६३.३९/६०.३९(आयुर्वेदाचार्य ब्रह्ममित्र द्वारा अथर्ववेद के १३वें काण्ड पर अधिकार रखने का उल्लेख), स्कन्द ४.१.३१.२७( अथर्व द्वारा शिव स्तुति का कथन ), ४.२.९२( सरस्वती के अथर्ववेद का रूप होने का उल्लेख ), ६.२०२(भर्तृयज्ञ - प्रोक्त अथर्ववेद की महिमा), हरिवंश ३.१७.४७(अव्यक्त की मूर्द्धा से अथर्ववेद की उत्पत्ति का उल्लेख), atharva
अथर्वा ब्रह्माण्ड १.२.१२.९( लौकिक अग्नि अथर्वा द्वारा दध्यङ्ग अथर्वण नाम प्राप्ति के कारण का कथन ), भागवत ३.२४.२४( अथर्वा ऋषि का कर्दम - पुत्री शान्ति से विवाह ), ४.१.४१( चित्ति - पति, दध्यङ्ग/अश्वशिरा पुत्र की प्राप्ति ), वायु २९.८( लौकिक अग्नि अथर्वा द्वारा दध्यङ्ग अथर्वण नाम प्राप्ति का कारण ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.१०( अमतृ, दध्यङ्ग आदि चार अथर्वा - पुत्रों के नाम ) atharvaa
अदिति अग्नि ३४८.३( अदिति हेतु ऋ एकाक्षर का प्रयोग - ऋ शब्दे चादितौ ऋस्यात् लृ लॄ ते वै दितौ गुहे । ), गर्ग १.५.२३( अदिति के देवकी रूप में अवतरण का उल्लेख - कश्यपो वसुदेवश्च देवकी चादितिः परा । ), देवीभागवत ४.२.४२( कश्यप - पत्नी अदिति का दिति के शाप से वसुदेव - पत्नी देवकी बनना, वरुण के शाप से मृतवत्सा होना ), नारद १.१०.३३+ ( अदिति द्वारा पुत्रों के कल्याण हेतु तप, विष्णु की स्तुति, वामन पुत्र की प्राप्ति ), पद्म २.५.७०( अदिति द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु तप, सुव्रत विप्र का वसुदत्त इन्द्र रूप में जन्म ), ब्रह्म १.३०( सूर्य - संज्ञा - छाया आख्यान में अदिति से मार्तण्ड पुत्र की उत्पत्ति ), १.९३+ ( अदिति द्वारा पृथिवी/नरक से कुण्डलों की प्राप्ति, कृष्ण - स्तुति ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९.४० ( अदिति व कद्रू द्वारा एक दूसरे को शाप, अदिति का देवकी रूप में अवतरण - अदितिर्देवकी चैव सर्पमाता च रोहिणी ।। ), ४.४५.३१( शिव विवाह में अदिति द्वारा हास्योक्ति - भोजनांते शचि शंभोः शौचार्थं जलमर्पय । देहि शीघ्रं मम प्रीत्या दंपत्योः प्रीतिपूर्वकम् ।। ), ब्रह्माण्ड २.३.७.४६५( अदिति की धर्मशीला प्रकृति का उल्लेख - अदितिर्धर्मशीला तु बलशीला दितिस्तथा ॥ ), भागवत २.३.४( अन्नाद्य प्राप्ति की कामना पूर्ति हेतु अदिति की उपासना का निर्देश - अन्नाद्यकामस्तु अदितिं स्वर्गकामोऽदितेः सुतान् ।), ८.१६.२५( कश्यप द्वारा अदिति को पयोव्रत का उपदेश ), मार्कण्डेय १०४+/१०१+ ( सूर्य को पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए अदिति द्वारा सूर्य की स्तुति, सूर्य का मार्तण्ड रूप में जन्म ), वामन २८+ ( कश्यप - पत्नी, पुत्र निमित्त तप, वामन पुत्र की प्राप्ति ), ७६( सूर्य पुत्र प्राप्ति हेतु अदिति द्वारा तप ), विष्णु ४.१.६( दक्ष - पुत्री, विवस्वान् - माता ), ५.३०.६( कुण्डलों की प्राप्ति पर अदिति द्वारा कृष्ण की स्तुति ), विष्णुधर्मोत्तर ३.७३.४( मूर्ति निर्माण के संदर्भ में अदिति के स्वरूप का कथन - दृष्टिरासां तु कर्तव्या सौम्या यादवनन्दन ।। ), स्कन्द ४.२.८९.४५( दक्ष यज्ञ में अदिति के ओष्ठ पुट का छेदन - अदितेरोष्ठपुटकौ छिन्नावन्येन कोपिना ।। ), हरिवंश २.६४.५६( नरकासुर द्वारा हरण किए गए कुण्डलों की अदिति द्वारा पुन: प्राप्ति - ततस्ते कुण्डले दिव्ये प्रादाददितिनन्दनः । ववन्दे तां शचीभर्ता मातरं स्वां पुरंदरः ।। ), लक्ष्मीनारायण २.३२.३२( रेवती गृह का नाम? - अदितिं रेवतीं प्राहुर्ग्रहस्तस्यास्तु रैवतः ।। ... दैत्यानां या दितिर्माता तामाहुर्मुखमण्डिकाम् ।। ), ३.९५.७९( प्रणद्ब्रह्म साधु द्वारा अदिति की सेवा से संतुष्ट होकर देवमाता बनने का वर ), कथासरित् ८.२.४११( अदिति द्वारा इन्द्र को मय को प्रसन्न करने का निर्देश ), कृष्णोपनिषद २१( अदिति रज्जु, कश्यप उलूखल - कश्यपोलूखलः ख्यातो रज्जुर्माताऽदितिस्तथा । चक्रं शंखं च संसिद्धिं बिन्दुं च सर्वमूर्धनि ॥ ) द्र. वास्तु ( मण्डल ) aditi
अदृश्य स्कन्द ५.२.११.२३( अनूरु/अरुण द्वारा सिद्धेश्वर लिङ्ग के प्रभाव से अदृश्यकरण प्राप्ति का उल्लेख ) adrishya
अदृश्यन्ती लिङ्ग १.६४.१०( रुधिर/कल्माषपाद राक्षस द्वारा शक्ति के भक्षण पर अदृश्यन्ती का विलाप व पराशर को जन्म देना ), वायु १.२.११( अदृश्यन्ती द्वारा नैमिष क्षेत्र में पराशर को जन्म देना, नैमिष क्षेत्र की महिमा प्रसंग ), ७०.८३( शक्ति मुनि की पत्नी, पराशर - माता ), लक्ष्मीनारायण १.३८७( कल्माषपाद द्वारा सुश्रुता - पति वेदश्रवा के भक्षण का वृत्तान्त ), १.४१०( कल्माषपाद राक्षस द्वारा शक्ति के भक्षण पर अदृश्यन्ती द्वारा काल, रुद्र, यम व विश्वामित्र को शाप देकर राक्षस व शिला बनाना, शक्ति आदि के सूक्ष्म रूप में जीवित होने पर अदृश्यन्ती द्वारा विश्वामित्र आदि को भी सूक्ष्म रूप में जीवित करना ) adrishyantee
अद्भुत ब्रह्माण्ड ३.४.१.६१( इन्द्र का नाम ), भागवत ८.१३.१९( नवें मन्वन्तर के इन्द्र का नाम ), मत्स्य ५१.३६( दहन अग्नि - पुत्र, देवलोक में हव्य का भक्षण, वीर - पिता ), २२८( अद्भुत या उत्पात शान्ति ), महाभारत वन २२४.२८+ ( सह अग्नि व मुदिता - पुत्र अद्भुत नामक अग्नि की गृहपति नाम से प्रतिष्ठा, अद्भुत द्वारा आहवनीय अग्नि में हुत आहुति को देवताओं तक पहुंचाना, अद्भुत अग्नि की सप्तर्षि - पत्नियों पर आसक्ति, समागम से स्कन्द कार्तिकेय के जन्म का विस्तृत वर्णन ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.२१( सवन - पुत्र, विविधि - पिता ), ३.१६४.५६( नवें मन्वन्तर में इन्द्र ) द्र. उत्पात, अपशकुन आदि adbhuta
अद्रि गर्ग ६.२.१३(श्यामलाद्रि पर मुचुकुन्द के शयन व कालयवन को भस्म करने की कथा), ब्रह्म २.१४( अद्रिका व निर्ऋति - पुत्र अद्रि को गौतमी में स्नान से पिशाचत्व से मुक्ति ), मार्कण्डेय ६९( बलाक राक्षस का पिता ), लक्ष्मीनारायण २.५७.७४( अद्रिमालय नामक यमदूत द्वारा इलाक दैत्य का वध ) द्र. आर्द्र adri
अद्रिका देवीभागवत २.१( अद्रिका अप्सरा का ब्राह्मण के शाप से मीन बनना, उपरिचर वसु के वीर्य से सत्यवती के जन्म की कथा ), ब्रह्म २.१४( हनुमान द्वारा निर्ऋति - भार्या अद्रिका मार्जारी को गौतमी में स्नान कराना, अद्रिका के पिशाच पुत्र का वृत्तान्त ), वायु ७३.२२/२.११.६४( अप्सरा, ब्राह्मण शाप से मीन बनना, उपरिचर वसु के वीर्य से सत्यवती के जन्म की कथा ), हरिवंश १.१८.३०( अद्रिका अप्सरा के संग बैठे अमावसु पर अच्छोदा की आसक्ति, अमावसु के शाप से अद्रिका मत्स्य से सत्यवती रूप में जन्म ) adrikaa
अद्रोहक पद्म १.५०.९७( अद्रोहक गृहस्थ द्वारा राजकुमार की सुन्दर स्त्री की रक्षा )
अद्वैत भागवत ७.१५.६२( अद्वैत के तीन प्रकार ), ११.२८( द्वैत से अद्वैत प्राप्ति ), लिङ्ग १.७५( शिव अद्वैत का वर्णन ), विष्णु २.१५( ऋभु द्वारा निदाघ को अद्वैत की शिक्षा ), योगवासिष्ठ ६.१.९५.१२( कार्य - कारण के अभाव का नाम अद्वैत ), ६.२.५४( अद्वैत एक्य प्रतिपादन नामक सर्ग ), स्कन्द ३.१.३०.११९(अद्वैत विज्ञान के बिना भी सायुज्य प्राप्ति के उपाय का कथन), ३.१.४९.५८(बृहस्पति द्वारा अद्वैत रूप में रामेश्वर की स्तुति), ३.१.४९.५९( शुक्र द्वारा द्वैतहीन रूप में रामेश्वर की स्तुति), लक्ष्मीनारायण २.९२( विशिष्ट अद्वैत का निरूपण ), ४.२५.७५( विशिष्ट अद्वैत का निरूपण ) advaita
अधर्म अग्नि २०.१८( हिंसा - पति, निकृति व अनृत - पिता ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.११६( मिथ्या - पति ), ब्रह्माण्ड ३.४.१३.१३( ललिता देवी के आयुधों का रूप ), भागवत ४.८.२( अधर्म की ब्रह्मा से उत्पत्ति, मृषा - पति, दम्भ व माया - पिता ), ६.१.४३( ब्रह्माण्ड के साक्षियों सूर्य, अग्नि द्वारा देहधारियों के अधर्म का ज्ञान होने का कथन ), ७.१५.१२( अधर्म की पांच शाखाएं ), मत्स्य १६५( चार युगों में धर्म व अधर्म की पाद संख्याओं का कथन ), मार्कण्डेय ५०.२९( हिंसा - पति, अनृत व निर्ऋति - पिता, अधर्म के वंश का वर्णन ), वराह ३१.१६(अधर्मगज घातार्थ गदा का उल्लेख), वायु १०.३९( हिंसा - पति, निकृति व अनृत - पिता ), शिव १.१७.८४( अधर्म रूप महिष का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१४( ब्रह्मा से अधर्म की सृष्टि का कथन ), १.४१२( ब्रह्मा - पुत्र, दुःखह - पिता, अधर्म के परिवार का वर्णन ), २.८७( अधर्मजीव : खर राक्षस - पुत्र, दुष्ट प्रकृति, विभीषण द्वारा प्रबोधना की चेष्टा, भैरव द्वारा वध आदि ), ३.१५२.२२( अधर्म के परिवार का वर्णन ) adharma
अधिकसङ्गमा कथासरित् ७.८.५५( परित्यागसेन - भार्या, इन्दीवरसेन व अनिच्छासेन पुत्रों का वृत्तान्त )
अधिपति अग्नि १९.२३, २०९.४०( विभिन्न द्रव्यों के अधिपति/देवता ), पद्म १.७, २.२७, ब्रह्म १.६६, ब्रह्मवैवर्त्त ४.७३, ब्रह्माण्ड ३.८.१, भागवत ११.१६( प्राणियों में अधिपति ), मत्स्य ८( सर्गों के अधिपति ), लिङ्ग १.५८, वायु ६५.८७/२.४.८७( भृगु के १२ पुत्रों में से एक ), ७०.१/२.९.१, विष्णु १.२२.१, विष्णुधर्मोत्तर १.५६( जगत विभूतियां ), १.२४९, हरिवंश १.४( ब्रह्मा द्वारा अधिपतियों की प्रतिष्ठा ), ३.३७( विभिन्न वर्गों के अधिपति ) adhipati
अधिभूत लक्ष्मीनारायण ३.१७७( आकाश, वायु आदि भूतों के अधिभूत, अधिदैव व अध्यात्म का कथन ),
अधिमास अग्नि २१४.१६( अधिमास के विजृम्भिका का रूप होने का उल्लेख ), द्र. पुरुषोत्तम, सङ्क्रान्ति
अधिरथ ब्रह्मवैवर्त्त २.६१.१०१( चैत्र - पुत्र ), भागवत ९.२३.१२( सत्कर्मा - पुत्र, कर्ण - पिता, अङ्ग वंश ), मत्स्य ४८.१०८( सत्यकर्मा - पुत्र, बृहद्रथ - पौत्र, कर्ण - पिता ) adhiratha
अधिरम्या पद्म ५.६७.४०( नीलरत्न - पत्नी )
अधिवासन अग्नि ५७( कुम्भ - अधिवासन/प्रतिष्ठा विधि ), ५९( श्रीहरि के अधिवासन/साद्रिटध्यकरण की विधि : हरिन्यास ), ९६( प्रतिमा अधिवासन विधि ), भविष्य १.१३६( सूर्य प्रतिमा का अधिवासन ), २.२.१७( देव प्रतिष्ठा से पूर्व अधिवासन कर्म ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१.१( प्रतिमा अधिवासन विधि ), स्कन्द ५.३.१५९.८०( वैतरणी रूपी गौ के अधिवासन मन्त्र का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१५८.६१( अधिवासन कर्म में प्रासाद के अवयवों/अङ्गों की शरीर के रूप में कल्पना ) adhivaasana
अधिष्ठान योगवासिष्ठ ४.३२.११( काश्मीर मण्डल में नगर का नाम )
अधोक्षज अग्नि ४८.९( अधोक्षज की मूर्ति के आयुधों का कथन ), भागवत ९.११.५४( राम का एक नाम ), स्कन्द २.२.१२.६५( अधोक्षज विष्णु का शिव के समक्ष प्राकट्य, सुदर्शन चक्र द्वारा काशिराज के वध का प्रसंग ), महाभारत शान्ति ३४२.८३( प्राहवंश में अधोक्षज नाम से पुकारे जाने के कारण अधोक्षज नाम की सार्थकता का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२५०.७( ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी के अधिपति अधोक्षज की पूजा ), १.२६५.१३( अधोक्षज की शक्ति त्रयी? का उल्लेख ), २.२६९.३३( अभयाक्ष राजा का उपनाम व अधोक्षज तीर्थ : अधोक्षज तीर्थ में स्नान की महिमा ), ४.२६.५२( अधोक्षज द्वारा मृत्यु से रक्षा ) adhokshaja
अध्ययन कूर्म २.१४.६४( अनध्याय काल/स्थिति ), गरुड १.९६.५१( अनध्याय हेतु स्थितियां ), नारद १.२५.४६( वेद के अनाध्याय काल का कथन ), १.६०( वायु प्रवाह होने पर वेद के अनध्याय का कारण ), भविष्य २.१.८( पुराणादि के अनध्याय काल की स्थितियां ), विष्णुधर्मोत्तर १.६४( अनध्याय काल ), ३.२५७( स्वाध्याय की प्रशंसा ) adhyayana
अध्यात्म नारद १.४४.२१( अध्यात्म विषयक चिन्तना : भरद्वाज द्वारा भृगु से पृच्छा ), १.४६( केशिध्वज द्वारा साण्डिक्य को अध्यात्म ज्ञान का कथन ), भागवत २.१०.८( आध्यात्मिक, आधिभौतिक आदि त्रैत की अनिवार्यता का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.१७७( आकाश, वायु आदि भूतों के अधिभूत, अधिदैव व अध्यात्म का कथन ) द्र. मोक्ष adhyaatma
अध्वर शिव ३.२९.३५( नभग द्वारा यज्ञभाग प्राप्त करने के संदर्भ में अध्वर से शिष्ट वस्तु के रुद्रभाग होने की कथा ), लक्ष्मीनारायण ३.३३.३०( अध्वर नामक कल्प में सत्ययुग धर्म की स्थापना के लिए सत्य नारायण का प्राकट्य ) द्र. यज्ञ adhvara
अध्वर्यु पद्म ५.१०.३५ ( राम के अश्वमेध यज्ञ में वाल्मीकि के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.४७.४८( परशुराम के अश्वमेध यज्ञ में काश्यप के अध्वर्यु होने का उल्लेख ; परशुराम द्वारा सम्पूर्ण पृथिवी काश्यप को दक्षिणा में देना ), भागवत ४.४.३३( दक्ष यज्ञ विध्वंस के संदर्भ में यज्ञ के अध्वर्यु भृगु द्वारा दक्षिणाग्नि में आहुति द्वारा ऋभुगण को उत्पन्न करना ), ४.५.१९( वीरभद्र द्वारा भृगु की श्मश्रु नोचे जाने का उल्लेख ), ४.७.५( अध्वर्यु भृगु का बस्त/बकरे की श्मश्रु से युक्त होना ), ९.११.२( राम द्वारा अध्वर्यु को दक्षिणा में प्रतीची दिशा दान का उल्लेख ), ९.१६.२१( परशुराम द्वारा अध्वर्यु को प्रतीची दिशा दक्षिणा में देने का उल्लेख ), मत्स्य १४३.११( त्रेतायुग में विश्वभुक् इन्द्र के अश्वमेध यज्ञ में अध्वर्यु द्वारा प्रैषकाल में पशु की हिंसा का प्रश्न : ऋषियों द्वारा अहिंसा का और उपरिचर वसु द्वारा हिंसा का समर्थन ), स्कन्द ३.२.२३.१०( ब्रह्मा के सत्र के ऋत्विजों में जमदग्नि व गौतम के अध्वर्यु - द्वय बनने का उल्लेख ), ५.१.२८.७७ ( सोम के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों में भृगु के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), ५.१.६३.२४१( बलि के अश्वमेध यज्ञ में अत्रि के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), ६.५.५( त्रिशङ्कु के यज्ञ में विश्वामित्र का अध्वर्यु बनना ), ६.१८०.३३( ब्रह्मा के अग्निष्टोम यज्ञ में पुलस्त्य के अध्वर्यु तथा अत्रि के प्रतिप्रस्थाता बनने का उल्लेख ), ६.१८७.११( यज्ञ के चतुर्थ दिन पुलस्त्य - पुत्र विश्वावसु राक्षस द्वारा पशु की गुदा का भक्षण करने का वृत्तान्त, प्रतिप्रस्थाता द्वारा शाप), ७.१.२३.९३( प्रभास क्षेत्र में सोम/चन्द्रमा के यज्ञ में वसिष्ठ के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), हरिवंश १.२५.२४( चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों में भृगु का अध्वर्यु होना ), ३.१०.५( श्रीहरि की बाहुओं से होता व अध्वर्यु की उत्पत्ति का उल्लेख ), महाभारत आदि ५३.६( जनमेजय के सर्प सत्र में पिङ्गल के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक २८.६( यज्ञ में छाग पशु की हिंसा के संदर्भ में अध्वर्यु व यति के संवाद का वर्णन ) adhvaryu
अध्वा
अग्नि २७.६१(
दीक्षा
क्रम में शिष्य की देह में
सृष्टि व संहार क्रम से दैविक,
भौतिक
व आध्यात्मिक अध्वों की कल्पना
व उनका शोधन
-
अध्वानं
निखिलं दैवं भौतं वाध्यात्मिकीकृतम्।
सृष्टिक्रमेण
शिष्यस्य देहे ध्यात्वा तु
देशिकः ।।
),
ब्रह्म
१.१०५.१००(
यमलोक
में कष्टदायक नरक के मार्ग
की अध्वा संज्ञा
-
अध्वानं
नीयते देही कृष्यमाणः सुनिष्ठुरैः।
यदैव
क्रन्दते जन्तुर्दुःखार्तः
पतितः क्वचित्।।
),
भागवत
५.१३.१९(
रहूगण
व जड भरत संवाद के अन्तर्गत
जीव का अध्वा में भटकना और
ज्ञान की असि लेकर अध्वा को
पार करने का निर्देश
-
रहूगण
त्वमपि ह्यध्वनोऽस्य
सन्न्यस्तदण्डः कृतभूतमैत्रः।
असज्जितात्मा
हरिसेवया शितं ज्ञानासिमादाय
तरातिपारम्॥
),
५.१४.२७(
शुकदेव
द्वारा परीक्षित् को अध्वा
में फंसे जीव द्वारा प्राप्त
उपसर्गों/कष्टों
का वर्णन करना
-
अध्वन्यमुष्मिन्निम
उपसर्गास्तथा
सुखदुःखरागद्वेषभयाभिमानप्रमादोन्माद
शोक मोह लोभ मात्सर्येर्ष्यावमान
क्षुत्पिपासाधिव्याधिजन्मजरामरणादयः
),
विष्णुधर्मोत्तर
२.७३.२००(
अध्वा
में ऊसर प्रदेश में पक्वान्न
लिए हुए मूत्र त्याग करने पर
प्रायश्चित्त विधान का कथन
-
अध्वानं
प्रस्थितो विप्रः कान्तारे
यद्यनूदके ।।
पक्वान्नेन
गृहीतेन मूत्रोच्चारं करोति
वै ।।),
२.१२४.४८(
अध्वा
में प्रशस्त या अप्रशस्त शकुन
देखने पर,
नदी
पार करने पर,
रथ
द्वारा यात्रा आदि करने पर
जपनीय मन्त्रों का उल्लेख
-
अध्वनि
प्रस्थितो यस्तु पश्येच्छकुनमुत्थितम्
।।
अप्रशस्ते
प्रशस्ते वा कनिक्रदमिदं
जपेत् ।।
),
३.२७३.२(
तीर्थयात्रा
प्रसंग में अध्वा के क्लेश -
दुःख
उठाने पर ही तीर्थयात्रा का
फल प्राप्त होने का वर्णन
-
तीर्थानुसरणं
पुण्यं चाध्वना प्राप्नुयान्नरः
।।
अध्वना
क्षीणपापस्तु त्रिदिवं
प्रतिपद्यते ।।
),
शिव
७.१.२९(
पराशक्ति
के षड~
अध्वा
रूप में ६ विभाग ),
७.२.१७(
षड~
अध्वा
:
शिष्य
की योग्यता की परीक्षा ),
स्कन्द
४.२.९७.९९(
अध्वकेश
लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य
:
मोह
विनाशक ),
५.३.१०३.१००(
अमावास्या
को अध्वा में जाने पर पितरों
के रेणुभोजक होने आदि का कथन
),
महाभारत
उद्योग ३४.४७(
यान
द्वारा अध्वा पर विजय पा लेने
का उल्लेख ),
३९.७७(
देहधारियों
के लिए अध्वा के जरा होने का
उल्लेख ),
शान्ति
३२५.१६(
शुकदेव
द्वारा खेचर की भांति अध्वा
को पार करने का उल्लेख ),
आश्वमेधिक
३९.१३(
सूर्य
के उदित होने पर अध्वगों को
उष्णता से कष्ट प्राप्ति का
कारण :
रजोगुण
की प्रधानता होना ),
४६.२७(
सूर्य
द्वारा निर्दिष्ट अध्वा पर
कीटवत् चलने का निर्देश )
adhvaa
अनंशा गर्ग १.११.५८( कंस द्वारा योगमाया की अवतार अनंशा का वध )
अनघ नारद १.११७.८२( अनघ अष्टमी व्रत की विधि ), भविष्य ४.५८( अनघ अष्टमी व्रत : दत्तात्रेय का अनघ उपनाम, अनघ - पत्नी के हरण पर दत्तात्रेय द्वारा असुर का वध, कार्तवीर्य महिमा का कथन ), वामन ९०.१७( ओजस तीर्थ में विष्णु का शम्भु व अनघ नाम से वास ), वायु ६९.१/२.८.१( एक मौनेय गन्धर्व ), ९९.१३३/२.३७.१२९( त्रसु - पुत्र, रन्तिनार - पौत्र ), विष्णु १.१०.१३( वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्र ), ३.२.३१( ११वें मन्वन्तर में एक ऋषि ), स्कन्द ४.१.२९.२०( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) anagha
अनङ्ग अग्नि १९१( अनङ्ग त्रयोदशी व्रत की विधि ), गरुड १.११७( अनङ्ग त्रयोदशी व्रत : मासानुसार अनङ्ग के नाम व पूजा द्रव्य ), देवीभागवत १२.११.१२( अनङ्गमेखला : ६४ कलाओं में से एक ), १२.११.७९( अनङ्गकुसुमा : ६४ कलाओं में से एक ), भविष्य ४.९०१( अनङ्ग त्रयोदशी व्रत ), स्कन्द ७.१.१५८( अनङ्गेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण अनङ्गपुर के राजा बृहद~वर्चा द्वारा तापी तट पर दान, प्रतिग्रह के पाप से विप्रों का कृष्ण वर्ण होना ), २.१९१.८२( अङ्ग के पिता कर्दम का उपनाम ), ३.२१.५९( अनङ्ग नामक २६वें वत्सर में प्लक्ष नारायण के प्राकट्य का वृत्तान्त ), कथासरित् १२.१७.४( अनङ्गपुर वासी मदनसेना नामक कन्या पर धर्मदत्त वणिक् की आसक्ति व मदनसेना द्वारा समुद्रदत्त से विवाह के पश्चात् धर्मदत्त के पास जाने का वृत्तान्त ), १८.१.७०( विक्रमादित्य के अनङ्गदेव नामक दूत द्वारा सिंह देश के राजा की कन्या को स्वामी विक्रमादित्य के लिए स्वीकार करना ), १८.१.१०४, १८.२.२१७( दुन्दुभि यक्ष की कन्या मदनमञ्जरी द्वारा अनङ्गदेव को अपना वृत्तान्त सुनाना व राजा विक्रमादित्य द्वारा किए गए उपकार के प्रत्युत्तर में दो स्वर्गीय कन्याएं व मृगशावक भेंट करना ) द्र. काम ananga
अनङ्गप्रभा कथासरित् ९.२.१७०( समर विद्याधर व अनङ्गवती की पुत्री, शाप के कारण खड्गधर पति की प्राप्ति, मनुष्य जीवन में अनेक पति प्राप्ति के पश्चात् मदनप्रभ पति की प्राप्ति )
अनङ्गमञ्जरी भविष्य ३.२.२०( अर्थदत्त वैश्य की पुत्री, सुवर्ण - भार्या, विप्र को रति दान, मरण ), कथासरित् १२.६.३३०( अनङ्गोदय राजा की पुत्री, श्रीदर्शन से विवाह की कथा, पूर्व जन्मों का वृत्तान्त ), १२.२८.६( अर्थदत्त वैश्य की कन्या, मणिवर्मा - पत्नी, कमलाकर पर आसक्ति, प्रेम, वियोग, मरण व पुनर्जीवन ) anangamanjaree
अनङ्गरति कथासरित् ९.२.९४( महावराह राजा व पद्मरति की कन्या, चार वीरों द्वारा प्राप्ति की चेष्टा, अनङ्गरति का शरीर त्याग विद्याधरी बनना ), १२.१६.१३( वीरदेव व पद्मरति की कन्या, चार वीरों द्वारा प्राप्ति की चेष्टा की कथा ),
अनङ्गलीला कथासरित् १२.२.४८( राजा धर्मगोप की कन्या, भद्रबाहु राजा द्वारा युक्ति से अनङ्गलीला को प्राप्त करने की कथा )
अनङ्गलेखा ब्रह्माण्ड ४.१९.२५( ललिता के चक्रराज रथ पर स्थित एक देवी ), स्कन्द ४.१.२४.६१( पाण्ड्य नरेश - पुत्री, वृद्धकाल - पत्नी, पूर्व जन्म में तुर्वसु - पुत्री, नैध्रुव - पत्नी ), ४.२.६७.४१( गन्धर्व - कन्या रत्नावली की सखी ), ४.२.६७.८९( अनङ्गलेखा द्वारा पृथिवी वासियों के चित्रों का लेखन ) anangalekhaa
अनङ्गवती भविष्य ४.८५( विभूति द्वादशी व्रत के प्रभाव से अनङ्गवती का काम - पत्नी प्रीति बनना ), मत्स्य १००( विभूति द्वादशी व्रत के प्रभाव से अनङ्गवती का काम - पत्नी प्रीति बनना ), स्कन्द ७.१.३९( वेश्या, शूद्र दम्पत्ति से केदारेश्वर लिङ्ग के समक्ष जागरण के माहात्म्य का कथन ), कथासरित् ९.२.१७०( समर विद्याधर राज - पत्नी, अनङ्गप्रभा कन्या को शाप ) anangavatee
अनङ्गवल्ली लक्ष्मीनारायण ४.५६.३( गर्भ भ्रूण घातिनी अनङ्गवल्ली की कथा श्रवण से मुक्ति )
अनङ्गोदय कथासरित् १२.६.३३०( हंस द्वीप का राजा, स्वकन्या अनङ्गमञ्जरी का श्रीदर्शन राजकुमार से विवाह )
अनड्वान् द्र. बलीवर्द, वृषभ
अनन्त
अग्नि ४६.१०(
शिलाओं
में अनन्त मूर्ति के परिज्ञान
हेतु चिह्नों का कथन -
अनन्तो
नागभोगाङ्गो नैकाभो
नैकमूर्त्तिमान्।),
५६.३१(
दस
दिशाओं के अधिपतियों के संदर्भ
में अनन्त से अधोदिशा की रक्षा
की प्रार्थना -
अनन्तागच्छ
चक्राढ्य कूर्म्मस्थाहिगणेश्वर।
अधोदिशं
रक्ष रक्ष अनन्तेश नमोस्तु
ते ।।),
१२०.१५(
अन्तहीन
संख्याओं वाली अनन्त प्रकृति
के परा नाम का उल्लेख
-
अनन्तस्य
न तस्यान्तः सङ्ख्यानं नापि
विद्यते।
हेतुभूतमशेषस्य
प्रकृतिः सा परा मुने ॥
..),
१९२.७(
कार्तिक
शुक्ल चर्तुदशी को अनन्त पूजा
की विधि -
अनन्तसंसारमहासमुद्रे
मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव
॥
अनन्तरूपे
विनियोजयस्व अनन्तरूपाय नमो
नमस्ते ।),
१९६.१८(
अनन्त
व्रत की महिमा
-
मार्गशीर्षे
मृगशिरे गोमूत्राशो यजेद्धरिं
।
अनन्तं
सर्वकामानामनन्तो भगवान्
फलं ॥),
३०४.२३(
दीक्षा
के संदर्भ में अनन्त योग पीठ
पर शिव का आवाहन
-
अनन्तयोगपीठाय
आवाह्याथ हृदब्जतः ।
स्फटिकाभं
चतुर्बाहुं फलशूलधरं शिवम्
॥
),
३०५.१०(
सैन्धवारण्य
में विष्णु का अनन्त नाम -
अनन्तं
सैन्धवारण्ये दण्डके
शार्ङ्गधारिणम् ।।),
गरुड
३.२.३५(अनन्त
गुण पूर्णता से श्रीहरि की
ब्रह्म संज्ञा -
अनन्तगुणपूर्णत्वाद्ब्रह्मेति
हरिरुच्यते ॥),
देवीभागवत
८.२०.१८+
( अनन्त
का पाताल लोक के नीचे वास,
महिमा
-
सङ्कर्षणं
सात्वतीयाः कर्षणं द्रष्ट्टदृश्ययोः
॥
),
९.१.१०२(तुष्टि
– पति
-
यया
विना परिक्षीणाः पुमांसो
योषितोऽपि च ।
अनन्तपत्नी
तुष्टिश्च पूजिता वन्दिता
भवेत् ॥
),
नारद
१.१७.९७(
के
अनन्तशायी नारायण
की अर्चनविधि
-
अनन्तशायिनं
देवं नारायणमनामयम् ।
पञ्चामृतेन
प्रथमं स्नापयेद्भक्तिसंयुतः
।।..
),
१.४२.२५(
पृथिवी,
जल,
अग्नि
आदि की अन्तता व आकाश की अनन्तता
का वर्णन -
अनंतमेतदाकाशं
सिद्धदैवतसेवितम् । रम्यं
नानाश्रयाकीर्णं यस्यांतो
नाधिगम्यते ।।
),
१.६६.१०६(
अनन्त
की शक्ति विजरा का उल्लेख -
पूर्णोदर्या
तु श्रीकण्ठो ह्यनन्तो
विजरान्वितः
),
१.१२३.२३(
अनन्त
चतुर्दशी व्रत व उद्यापन विधि
),
ब्रह्म
१.२१.२६(
ब्रह्माण्ड
की सीमा के वर्णन के अन्तर्गत
पृथिवी,
जल,
अग्नि,
वायु,
आकाश
की सीमाओं तथा प्रधान के अनन्त
होने का कथन,
अनन्त
का परा प्रकृति नाम -
तदनन्तमसंख्यातं
प्रमाणेनापि वै यतः॥ हेतुभूतमशेषस्य
प्रकृतिः सा परा द्विजाः।),
१.३१.४२(
सूर्य
के १०८ नामों में से एक ),
१.६७(
अनन्त
वासुदेव का माहात्म्य,
वासुदेव
प्रतिमा का इन्द्र,
रावण,
राम,
कृष्ण
आदि में हस्तान्तरण,
पुरुषोत्तमक्षेत्र
में प्रतिष्ठा
-
तस्मिन्क्षेत्रवरे
पुण्ये दुर्लभे पुरुषोत्तमे।
उज्जहार
स्वयं तोयात्समुद्रः सरितां
पतिः।। ),
२.४.४४(
बलि
व वामन की कथा में वामन का अनन्त
बनना
-
अनन्तश्चाच्युतो
देवो विक्रान्तो विक्रमाकृतिः।।
),
ब्रह्मवैवर्त्त
२.१.१०६(
तुष्टि
-
पति
-
अनन्तपत्नी
तुष्टिश्च पूजिता वन्दिता
सदा ।।
यया
विना न सन्तुष्टाः सर्वे
लोकाश्च सर्वतः ।। ),
२.५.२१(वसुन्धरा
द्वारा अनन्त से एक ज्ञान की
पृच्छा का उल्लेख -
यदाऽप्यनन्तं
पप्रच्छ ज्ञानमेकं वसुन्धरा
।।
बभूव
मूकवत्सोऽपि सिद्धान्तं
कर्तुमक्षमः ।।),
४.९.४२(
अनन्त
बलराम के जन्म का वर्णन :
देवकी
गर्भ का रोहिणी में स्थान्तरण
-
देवक्याः
सप्तमं गर्भं माया कृष्णाज्ञया
तदा ।।
रोहिण्या
जठरे तत्र स्थापयामास गोकुले
।।
),
भविष्य
१.३४.२२(
अनन्त
नाग का सूर्य ग्रह से साम्य
-
अनन्तं
भास्करं विद्यात्सोमं विद्यात्तु
वासुकिम् ।
तक्षकं
भूमिपुत्रं तु कर्कोटं च बुधं
विदुः ।।
),
४.२६(
अनन्त
तृतीया व्रत :
ललिताराधना
-
वरदायै
नमः पादौ तथा गुल्फौ श्रिये
नमः ।।
अशोकायै
नमो जंघे भवान्यै जानुनी तथा
।।
),
४.९४(
अनन्त
चर्तुदशी व्रत,
कौण्डिन्य
व शीला की कथा -
मां
विद्ध्यनंतं पार्थ त्वं
विष्णुं जिष्णुं हरं शिवम्।।),
४.९४.३(
अनन्त
के शेष,
तक्षक
पर्याय
-
कृष्ण
कोऽयं त्वयाख्यातो ह्यनंत
इति विश्रुतः ।
किं
शेषनाग आहोस्विदनंतस्तक्षकः
स्मृतः ।।
),
४.१०६(
अनन्त
व्रत,
शीलधना
व मैत्रेयी का संवाद,
अनन्त
व्रत से कार्तवीर्य पुत्र की
प्राप्ति ),
भागवत
१०.६७.१(
अनन्त
बलराम की लीलाओं का वर्णन :
द्विविद
वानर का वध ),
१०.६८.४१(
अनन्त
बलराम द्वारा हस्तिनापुर का
हल की नोक से कर्षण करके गङ्गा
में डुबाने का उद्योग
-
लाङ्गलाग्रेण
नगरं उद्विदार्य गजाह्वयम्
।
विचकर्ष
स गङ्गायां प्रहरिष्यन्नमर्षितः
॥
),
१०.८९.५३(
कृष्ण
द्वारा अर्जुन के साथ पश्चिम
दिशा में अनन्त से मिलन,
ब्राह्मण
बालक की प्राण रक्षा –
तस्मिन्महाभोगमनन्तमद्भुतं
सहस्रमूर्धन्यफणामणिद्युभिः।
विभ्राजमानं
द्विगुणेक्षणोल्बणं सिताचलाभं
शितिकण्ठजिह्वम्),
मत्स्य
६२(
अनन्त
तृतीया व्रत की विधि,
ललिता
-
न्यास,
मास
अनुसार पुष्प पूजा
-
वरदायै
नमः पादौ तथा गुल्फौ नमः
श्रियै।
अशोकायै
नमो जङ्घे पार्वत्यै जानुनी
तथा॥
),
वराह
२४.५(
सर्प
का नाम,
कश्यप
व कद्रू-
पुत्र
),
वामन
५७.७३(
यक्षों
द्वारा कुमार को प्रदत्त गण
का नाम ),
विष्णु
२.५.१३(
अनन्त/शेष
की महिमा का कथन
-
योनन्तः
पठ्यते सिद्धैर्दैवो
देवर्षिपूजितः।
स
सहस्रशिरा व्यक्तस्वस्तिकामलभूषणः
),
विष्णुधर्मोत्तर
१.५६.१५
(अनन्तः
सर्वनागानां सूर्यस्तेजस्विनां
तथा ।।),
१.१७३(
अनन्त
व्रत -
मार्गशीर्षादथारभ्य
व्रतमेतत्समारभेत् ।।
देवस्य
मार्गशीर्षे तु वामं जानुं
समर्चयेत्।।
),
३.६५(
शेष
अनन्त
की मूर्ति का रूप ),
३.१०६.२५(
अनन्त
आवाहन मन्त्र -
लांगलालिङ्गतकरं
मुसलासक्तविग्रहम् ।।
महोच्छ्रितेन
तालेन तथा चिह्नेन राजितम्।।
),
३.१५०(
चतुर्मूर्ति
व्रत के संदर्भ में अनन्त व्रत
-
विष्णोः
स्थाने त्वनन्तस्य पूजा कार्या
विजानता ।
),
३.२१९(
अनन्त
द्वादशी व्रत -
मासि
प्रोष्ठपपदे शुक्ले द्वादश्यां
जलशायिनम् ।। प्रणम्यानन्तमभ्यर्च्य
पुष्पधूपादिभिः शुचिः ।।),
शिव
५.१५.११(
अनन्त
नाग के स्वरूप व महिमा का वर्णन
-
शिरःसाहस्रयुक्तस्स
सर्वा विद्योतयन्दिशः ।
फणामणिसहस्रेण स्वस्तिकामलभूषणः
।।
),
स्कन्द
३.१.१४.३१(
आदि
व अन्त से रहित शिवलिङ्ग के
आदि व अन्त का अन्वेषण करने
के लिए हंस रूप धारी ब्रह्मा
का ऊर्ध्व दिशा में तथा वराह
रूप धारी विष्णु का अधोदिशा
में गमन,
आदि
-
अन्त
को पाने में असफलता ),
३.१.३६.१२२(
अमावास्या
को महालय श्राद्ध करने से
पितरों की अनन्त तृप्ति होने
का कथन -
सुधामास्वाद्य
या तृप्तिर्देवानां दिवि वै
भवेत् ।। अनंता तादृशी
तृप्तिरमावास्यां महालयात्
।।
),
३.३.७.३९(
अनन्ता
:
शिव
के परित:
९
शक्तियों में से एक ),
४.२.६०.१२५(
अनन्त
माधव :
माधव
का त्रेता युग में नाम -
अनंतमाधवो
ज्ञेयस्त्रेतायां सर्वसिद्धिदः
।
श्रीदमाधवसंज्ञोहं
द्वापरे परमार्थकृत्।।),
४.२.६१.१९८(
अनन्त
वामन का संक्षिप्त माहात्म्य
-
अनंतवामनश्चाहमनंतेश्वरसन्निधौ
।।
अनंतान्यपि
भक्तस्य कलुषाणि हरेऽर्चितः
।।),
६.२३२.३(
चातुर्मास
के संदर्भ में विष्णु के शयन
पर व्रत,
दान
आदि करने पर अनन्त फल होने का
कथन
-
यः
कश्चिन्नियमो विप्राः प्रसुप्ते
गरुडध्वजे ॥
अनंतफलदः
स स्यादित्युवाच पितामहः ॥
),
७.१.१६१(
अनन्तेश
लिङ्ग का माहात्म्य -
ईशाने
लक्ष्मणेशाच्च धनुषां षोडशे
प्रिये ॥१॥
अनन्तेश्वरनामानमनन्तेन
प्रतिष्ठितम् ॥),
७.१.३३६.११(
प्रभास
क्षेत्र में गोष्पद तीर्थ के
निकट अनन्त नाग की स्थिति का
कथन-
गोष्पदस्य
समीपे तु नातिदूरे व्यवस्थितः
॥ अनन्तो नाम नागेन्द्रः
स्वयंभूतो धरातले ॥
),
हरिवंश
२.२६.४३(
यमुना
में अक्रूर द्वारा अनन्त के
दर्शन का प्रसंग
-
श्रीमत्स्वस्तिकमूर्द्धानं
प्रणमिष्यामि भोगिनम् ।
सहस्रशिरसं
देवमनन्तं नीलवाससम् ।।
),
महाभारत
भीष्म २५.१६
(युधिष्ठिर
के शङ्ख का अनन्तविजय नाम
-अनन्तविजयं
राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः
।
नकुलः
सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ
।।
)
वा.रामायण
४.४०.५१(
पूर्व
दिशा की सीमा के रूप में अनन्त
की स्थिति का कथन ;
सीमा
के पश्चात् उदय पर्वत की स्थिति
-
आसीनम्
पर्वतस्य अग्रे सर्व भूत
नमस्कृतम् । सहस्रशिरसम्
देवम् अनंतम् नील वाससम् ॥
),
लक्ष्मीनारायण
२.१४०.७७(
अनन्तमाया
नामक प्रासाद के लक्षण -
विंशतितलभागश्च
त्रिपंचाशच्चतुःशतम् ।।
अण्डानां
यस्य सोऽनन्तमाया प्रासाद
उच्यते ।),
कथासरित्
९.५.५७(
अनन्तशक्ति
:
राजा
देवशक्ति की पत्नी,
मदनसुन्दरी
-
माता
),
९.६.४२(
अनन्तस्वामी
:
राजा
ताराधर्म का मन्त्री,
चन्द्रस्वामी
ब्राह्मण के पुत्र महीपाल का
पालन करना ),
९.६.१२१(
अनन्त
ह्रद में चन्द्रस्वामी ब्राह्मण
का स्नान ),
१०.२.१०(
अनन्तगुण
:
राजा
विक्रमसिंह का मन्त्री,
वेश्या
पर आसक्त राजा को वेश्या के
प्रेम की परीक्षा का परामर्श
)
द्र.
बलराम,
शेष
ananta
Comments on Ananta
अनन्ती मत्स्य ४.३३( स्वायम्भुव मनु - पत्नी, प्रियव्रत व उत्तानपाद - माता )
अनपत्य पद्म ७.२५( अनपत्यपति द्विज द्वारा पवित्र ब्राह्मण सहित लोमश ऋषि से अतिथि महिमा का श्रवण ) स्कन्द ५.३.१५९.१८(anapatya
अनमित्र ब्रह्माण्ड २.३.७१.१९( धृष्ट व माद्री - पुत्र?, निघ्न - पिता, स्यमन्तक मणि की कथा ), भागवत ९.२४.१२( युधाजित् - पुत्र, शिनि - भ्राता, निम्न व शिनि - पिता, वंश वर्णन ), मत्स्य १२.४७( निघ्न - पुत्र, कृतयुग में राजा बनने हेतु तप ), ४५.२( वृष्णि व माद्री - पुत्र, निघ्न - पिता ), ४५.२२( शिनि - पिता ), ४५.२५( पृथ्वी - पति, युधाजित् - पिता, वंश वर्णन ), मार्कण्डेय ७६.३/७३.३( भद्रा - पति, जातिस्मर पुत्र के जातहारिणी द्वारा अपहरण आदि की कथा ), विष्णुधर्मोत्तर ४.१४.१( शिनि - पिता, यादव वंश का वर्णन ), स्कन्द ५.२.३३( भद्रा - पति, जातिस्मर पुत्र के जातहारिणी द्वारा अपहरण आदि की कथा ) anamitra
अनरक वामन ४१( अनरक तीर्थ का वर्णन ), स्कन्द ५.२.२७.१( अनरकेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : नरक यातनाओं का वर्णन ), ५.३.१५९( पापों के कारण प्राप्त होने वाली नरक यातनाओं से मुक्ति हेतु अनरक तीर्थ का वर्णन ) द्र. नरक anaraka
अनरण्य ब्रह्मवैवर्त्त ४.४१.१२२( अनारण्य - पुत्री पद्मा का पिप्पलाद से परिणय ), ब्रह्माण्ड २.३.६३.७४( सम्भूत - पुत्र, हर्यश्व - पिता, वंश वर्णन ), भागवत ९.७.४( त्रसद्दस्यु - पुत्र, हर्यश्व - पिता ), मत्स्य १२.४७( सर्वकर्मा - पुत्र, निघ्न - पिता ), वराह ६२( अनरण्य द्वारा पद्म प्राप्ति का उद्योग, कुष्ठ प्राप्ति व कुष्ठ से मुक्ति ), वायु ८८.७५( सम्भूत - पुत्र, हर्यश्व - पिता, वंश वर्णन ), विष्णु ४.३.१७( त्रसद्दस्यु - पुत्र, पृषदश्व - पिता, वंश वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२१.४( अनरण्य द्वारा रावण को शाप ), शिव २.३.३४( अनरण्य - पुत्री पद्मा का पिप्पलाद से परिणय ), ३.२५( वही), वा.रामायण ७.१९( अनरण्य की रावण से पराजय व मृत्यु, रावण को शाप ), लक्ष्मीनारायण १.३७२( अनरण्य द्वारा स्वकन्या पद्मा का पिप्पलाद से विवाह ), २.२६८.८३( आत्मा रूपी अरण्य में वास के पश्चात् परमात्मा रूपी अनरण्य में वास का उल्लेख ) anaranya
अनर्थ भागवत ११.२३.१८( स्तेय, हिंसा, अनृत आदि १५ अनर्थों के अर्थमूल होने का कथन )
अनल गरुड ३.२२.२६(अनल के १७ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.३.२१( अष्ट वसु गणों में एक, स्वाहा - पति, कुमार, शाख, विशाख, नैगमेय पुत्र ), २.३.७.२३५( वानर सेनानी ), भविष्य २.१.१७.५( नित्य होम में अग्नि का नाम ), ३.४.१६( नल ब्राह्मण की नल - पत्नी दमयन्ती पर आसक्ति, अनल नाम प्राप्ति, तप ), ३.४.१६( वैश्वानर का पूर्व जन्म में नाम ), मत्स्य ५.२१( अष्ट वसु गणों में एक, स्वाहा - पति, कुमार, शाख, विशाख, नैगमेय पुत्र ), विष्णु ४.४.१०६( निषध - पुत्र, नभ - पिता ), विष्णुधर्मोत्तर १.१५.११०( वानर सेनानी ), १.२४८.२८( गरुड के पुत्रों में से एक ), स्कन्द ३.१.४७.५३(अनल की आग्नेयी दिशा में स्थिति), ४.२.६९.१६५( अनलेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.६०.५८( चूर्णक से अनल के प्रसन्न होने का उल्लेख ), वा.रामायण ६.३७.७( विभीषण - मन्त्री, लङ्का की रक्षा व्यवस्था का दर्शन ), ७.५.४५( माली व वसुदा - पुत्र, विभीषण - मन्त्री ), ७.२५.२४( अनला : माल्यवान् - पुत्री, कुम्भीनसी - माता ), लक्ष्मीनारायण २.१८३.५७( अनल संज्ञक पक्षियों द्वारा राक्षसों द्वारा उत्पन्न श्येनों का भक्षण ), ३.२३.१( अनल वत्सर में सूर्यवर्चा नृप द्वारा शिंशपा नारायण के प्राकट्य का उद्योग ), ३.२२( अनलाद : अग्नि भक्षक असुर, कृष्ण द्वारा वध की कथा )द्र. अग्नि, दावानल, बडवानल, व्याघ्रानल आदि anala
अनशन अग्नि ३८२.१४(अनशन के परम तप होने का उल्लेख), मत्स्य १०८.२( प्रयाग में अनाशक फल का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.७५.४६( अनशन द्वारा प्राण त्याग का महत्त्व ), १.२८३.३६( अनशन के तपों में अनन्यतम होने का उल्लेख ), १.३१९.५( अनशना : जोष्ट्री - पुत्री, माता द्वारा ऋषियों को प्रदान, अशना देवों को प्रदान ) anashana
अनसूया ब्रह्माण्ड १.२.११.२२( पांच आत्रेयों व श्रुति नामक कन्या की माता ), भविष्य ३.४.१७.६७( अनसूया द्वारा त्रिदेवों को शाप देकर स्व पुत्र रूप में परिणत करना, तीन वसुओं की तीन पुत्रों के रूप में उल्लेख), भागवत ३.२४.२२( कर्दम - कन्या, अत्रि - पत्नी ), ४.१.१५( अनसूया द्वारा त्रिदेवों को पुत्र रूप में प्राप्त करने की कथा ), मार्कण्डेय १६.५४( अनसूया द्वारा कौशिक ब्राह्मण की पतिव्रता पत्नी को वर ), वराह २७.३२( असूया -- अष्ट मातृकाओं में अष्टम मातृका, अन्धकासुर के रक्त पान हेतु वराह/विष्णु द्वारा सृष्टि ), वामन ६.६२( आत्रेय – पत्नियों में केवल अनसूया की शिव रूप से अप्रभाविता ), वायु २८.१८( पांच आत्रेयों व श्रुति नामक कन्या की माता ), शिव ४.४( अनसूया के तप से संतुष्ट गङ्गा का अत्रि आश्रम में वास ), स्कन्द ५.३.१०३( अनसूया द्वारा त्रिदेवों से तीन पुत्र प्राप्ति की कथा, त्रिदेवों का तीन ऋतुओं से तादात्म्य ), वा.रामायण २.११७.११+( राम वनवास प्रसंग में अनसूया का सीता से वार्तालाप ), लक्ष्मीनारायण १.४८३( अनसूया द्वारा त्रिदेवों को तीन पुत्रों के रूप में प्राप्त करना ) द्र. असूया anasooyaa/ anasuuyaa/ anasuya
Comments on Anasooyaa
अनागत शिव ५.३४.३३( पञ्चम मन्वन्तर में ऋषियों व देवों के गण? ), कथासरित् १०.४.१७९( अनागतविधाता : भाग्य पर ही निर्भर न रहने वाले मत्स्य का नाम ) anaagata
अनादिकल्प स्कन्द ५.२.५( अनादिकल्पेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : ब्रह्मा द्वारा लिङ्गान्त दर्शन में असफलता )
अनाधृष्टि ब्रह्माण्ड २.३.७१.१८९( अश्मकी - पुत्र ), वायु ९६.१४८( अनादृष्टि : शूर व भोजा - पुत्र, आनकदुन्दुभि - भ्राता ), ९६.१८६( अस्मकी - पुत्र ), ९९.१२७( रिवेयु - पिता ), हरिवंश २.८४.२६( ब्रह्मदत्त के यज्ञ में निकुम्भ असुर द्वारा यादववीर अनाधृष्टि का बन्धन ), २.१२१.४०( द्वारका में अनिरुद्ध का अपहरण होने पर अनाधृष्टि द्वारा कृष्ण के समक्ष स्व विचार प्रकट करना ) anaadhrishti
अनामय स्कन्द ७.१.७( चतुर्थ कल्प में शिव का नाम ), लक्ष्मीनारायण २.११०.८७( अनामय का पन्ना नामक देश के निवासियों का गुरु बनना ) anaamaya
अनामिका ब्रह्माण्ड ३.४.२४.१२६( नरकासुर वध हेतु विष्णु के देवी की अनामिका से प्राकट्य का कथन ) anaamikaa
अनायुषा ब्रह्माण्ड २.३.६.३०( अररु, बल, वृत्र आदि पांच पुत्रों की माता ), २.३.७.४६८( अनायुषा की भक्षणशीला प्रकृति ), मत्स्य १७१.५९( दक्ष - कन्या, कश्यप - भार्या, व्याधियों की माता ), शिव ५.३२.४९( अनायुषा के ५० पुत्रों तथा बल, वृक्ष व विक्षर का उल्लेख ) anaayushaa
अनिच्छासेन कथासरित् ७.८.७३( परित्यागसेन व अधिकसङ्गमा - पुत्र, इन्दीवरसेन - अनुज, विमाता के कारण राज्य से पलायन, पूर्व जन्म का वृत्तान्त )
अनिरुद्ध अग्नि ५९.८( अनिरुद्ध के रसात्मक व ब्रह्मा के गन्धात्मक होने का उल्लेख ), गरुड ३.५.५१(अनिरुद्ध का यम से तादात्म्य?), ३.७.२१(अनिरुद्ध द्वारा हरि स्तुति), ३.१६.७(शान्ता – पति), ३.१६.१७(अनिरुद्ध व शान्ता से महान् विरिञ्च ब्रह्मा के जन्म का उल्लेख), ३.२२.७८(शालक में अनिरुद्ध की स्थिति का उल्लेख), ३.२८.३९(शत्रुघ्न का अनिरुद्ध से तादात्म्य), ३.२९.५१(प्राणादि पंच होम में अनिरुद्ध के स्मरण का निर्देश), गर्ग ७.२०.२८( प्रद्युम्न - सेनानी, भीष्म से युद्ध ), ७.२१.१०( भीष्म से युद्ध ), ७.२५.५( गणेश को युद्ध से विमुख करने के लिए मार्जार रूप धारण ), ७.३४( हिरण्याक्ष - पुत्र वृक द्वारा अनिरुद्ध का भक्षण, पुन: अनिरुद्ध द्वारा वृक का वध ), १०.१०.११( अनिरुद्ध के शरीर में ब्रह्मा व चन्द्रमा का लय ), १०.२९.३९( अनिरुद्ध द्वारा बल्वल - सेनानी ऊर्ध्वकेश से युद्ध ), १०.३७.४२( अनिरुद्ध द्वारा भैरव को जृम्भणास्त्र से पीडित करना ), नारद १.६६.९०( अनिरुद्ध की शक्ति रति का उल्लेख ), पद्म ६.१२०.५५( अनिरुद्ध से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन ), ६.१५९( बाणासुर के पाशों से मुक्ति हेतु अनिरुद्ध द्वारा कोटराक्षी देवी की स्तुति ), ६.२५०( अनिरुद्ध व उषा के विवाह की कथा ), ब्रह्म १.९२( अनिरुद्ध का रुक्मी - पौत्री से विवाह ), १.९६( अनिरुद्ध व उषा के विवाह का प्रसंग ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.११४( उषा - अनिरुद्ध उपाख्यान ), भविष्य ३.४.९.४०(दारुब्रह्ममय अनिरुद्ध द्वारा ब्राह्मण को कन्या को जयदेव को अर्पित करने का आदेश), ३.४.२०.४८( जयदेव - यज्ञांश संवाद में अनिरुद्ध की निरुक्ति ), ३.४.२०.५२(रति व काम से अनिरुद्ध व उषा की एक साथ उत्पत्ति का उल्लेख), ३.४.२०.५८(सूक्ष्म सृष्टि हेतु अनिरुद्ध के उद्भव का कथन), भागवत ३.१.३४( अनिरुद्ध के शब्द - योनि, मनोमय, सत्वतुरीय तत्त्व विशेषण ), १०.६१.२५( अनिरुद्ध का रुक्मी - पौत्री रोचना से विवाह ), १०.६२( अनिरुद्ध व उषा के मिलन की कथा ), ११.३०( अनिरुद्ध का सात्यकि से युद्ध ), विष्णुधर्मोत्तर १.६३.३९( अनिरुद्ध के शेष तत्त्व होने का उल्लेख ), १.२३७.५( अनिरुद्ध से मुख की रक्षा की प्रार्थना ), ३.१०६.२१( अनिरुद्ध आवाहन मन्त्र ), ३.१०६.१४३( अनिरुद्ध के प्रतीहारों आमोद व प्रमोद के आवाहन मन्त्र ), ३.१२१.६( प्राग्ज्योतिष पुर में अनिरुद्ध की पूजा का निर्देश ), शिव २.५.५१+( उषा - बाणासुर - अनिरुद्ध आख्यान ), स्कन्द ४.२.६१.२२४( अनिरुद्ध की मूर्ति के लक्षण ), हरिवंश २.६१( रुक्मी - पौत्री रुक्मवती से विवाह ), २.१०३.२८( अनिरुद्ध के वंश का कथन ), २.११९( अनिरुद्ध का उषा के साथ गान्धर्व विवाह, बाणासुर के सैनिकों से युद्ध व बन्धनग्रस्त होना ), २.१२०( बाणासुर के बन्धन से मुक्ति हेतु अनिरुद्ध द्वारा कोटवती/आर्या देवी की स्तुति ), २.१२१+ ( अनिरुद्ध की मुक्ति हेतु कृष्ण आदि का द्वारका से शोणितपुर आगमन, बाणासुर से युद्ध ), २.१२७( अनिरुद्ध की नागपाश से मुक्ति ), महाभारत शान्ति ३४०.३०( अव्यक्त से उत्पन्न व्यक्त का नाम, अन्य नाम महानात्मा, अनिरुद्ध से पितामह की उत्पत्ति ), ३४०.७१( क्रियापरक व्यक्तीभूत के सनातन पन्थ की अनिरुद्ध संज्ञा ), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१२( अनिरुद्ध की शक्ति सुशीला का उल्लेख ), ३.७१.४४( ब्रह्माओं के अनिरुद्ध का अंश होने का कथन ), ४.१०१.९१( कृष्ण व मूर्ति - पुत्र ) द्र. चतुर्व्यूह aniruddha
अनिल अग्नि १८३८(८ वसुओं में से एक, पुरोजव – पिता), ब्रह्माण्ड २.३.३.२१( अष्ट वसुगण में से एक, शिवा - पति, अविज्ञातगति व मनोजव - पिता ), भविष्य ३.४.१७.३२( इल द्विज द्वारा प्राप्त नाम, मरुत बनना ), भागवत १०.६१.१६( कृष्ण व मित्रविन्दा - पुत्र ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.२८( गरुड के पुत्रों में से एक ), शिव ७.२.९.१६( शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक महाअनिल का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.१०९( अनिल वसु द्वारा स्थापित अनिलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), वा.रामायण ७.५.४५( माली व वसुदा - पुत्र, विभीषण - मन्त्री ) anila
अनिवर्त्यक्रम स्कन्द ७.४.१७.१७( द्वारका के दक्षिण द्वार पर स्थित द्वारपालों में से एक )
अनीक लक्ष्मीनारायण ३.३२.२२( अनीकवान् : अर्क अग्नि - पुत्र ), द्र. देवानीक, शतानीक, सहस्रानीक
अनु ब्रह्माण्ड २.३.७४.१२( अनु के वंश का वर्णन ), भागवत ९.२३.१( अनु के वंश का वर्णन ), ९.२४.५( कुरुवश - पुत्र, पुरुहोत्र - पिता ), ९.२४.२०( कपोतरोमा - पुत्र, अन्धक - पिता ), मत्स्य ३३.२१( ययाति व शर्मिष्ठा - पुत्र, पिता से जरा ग्रहण की अस्वीकृति, शाप प्राप्ति, पश्चिम - उत्तर का राजा बनना ), वायु ९३.५२( ययाति से शाप प्राप्ति ), विष्णु ४.१४.१३( विलोमा - पुत्र, आनकदुन्दुभि - पिता, तुम्बुरु - मित्र ), ४.१८( अनु वंश का वर्णन ), हरिवंश १.३२.८९( ययाति - पुत्र, धर्म - पिता ), महाभारत आदि ८५.२४(अनु द्वारा ययाति से जराग्रहण की अस्वीकृति, प्रजा मरण व अग्निप्रस्कन्दन शाप की प्राप्ति), द्र. बृहदनु anu
अनुग्रह नारद १.६६.१०९( अनुग्रह की शक्ति उल्कामुखी का उल्लेख ), वायु १.६.५३/६.५७( पञ्चम अनुग्रह सर्ग के चतुर्धा व्यवस्थित होने का उल्लेख )
अनुतप्ता ब्रह्माण्ड १.२.१९.१९( प्लक्ष द्वीप की एक नदी ), वायु ४९.९९( शाक द्वीप की नदी सुकुमारी का अन्य नाम ),
अनुमति देवीभागवत ८.१२.२४( शाल्मलि द्वीप की नदी ), ब्रह्माण्ड १.२.११.१८( स्मृति व अङ्गिरस - कन्या ), भागवत ४.१.३४( श्रद्धा व अङ्गिरा की ४ कन्याओं में से एक ), ६.१८.३( धाता - पत्नी, पूर्णमास - माता ), मत्स्य १३३.३६( प्रतिपदा युक्त पूर्णिमा का नाम, शिव के रथ में योक्त्र/रस्सी बनना ) anumati
अनुम्लोचा ब्रह्माण्ड १.२.२३.१०( अनुम्लोचा अप्सरा की सूर्य के रथ में स्थिति ), द्र. रथ सूर्य
अनुयाज ब्रह्माण्ड ३.४.१.१००( देवों के गणों में से एक ) anuyaaja/anuyaja
अनुराग कथासरित् ७.३.२३( अनुरागपरा विद्याधरी : विन्ध्यपर - पुत्री, निश्चयदत्त मानव पर आसक्ति, विद्याधर कुमार की प्राप्ति पर निश्चयदत्त का त्याग ), १८.४.३१७( अनुरागवती : रूपवती - सखी, सखी के साथ केसट को पति रूप में प्राप्त करना ) anuraaga/anuraga
अनुविन्द गर्ग १०.२२( अनुविन्द द्वारा स्व भ्राता विन्द को उग्रसेन के अश्वमेधीय हय के मोचन का सुझाव ), भविष्य ३.३.३२.१७( अनुविन्द का कलियुग में लहर राजा के पुत्र रूप में जन्म का उल्लेख ), भागवत १०.५८.३०( अवन्ती - राजा, दुर्योधन - मित्र, मित्रविन्दा - भ्राता ), वायु ९६.१५६/२.३४.१५७( श्रुतकीर्ति - पुत्र, विन्द - भ्राता ), विष्णुधर्मोत्तर ४.१४.४३( राजाधिदेवी - पुत्र ) anuvinda
अनुशाल्व गर्ग १०.२४( शाल्व - भ्राता, अनिरुद्ध सेना से घोर युद्ध ), १०.३५.६( अनिरुद्ध - सेनानी, दुर्मुख आदि का वध ) anushaalva/anushalva
अनुसूर्या स्कन्द ५.१.५६.१४( सावित्री के उपनाम अनुसूर्या का उल्लेख ; त्वष्टा - पुत्री ) anusooryaa/anusurya
अनुह्राद देवीभागवत ४.२२.४४( अनुह्राद के धृष्टकेतु रूप में अवतरित होने का उल्लेख ), ब्रह्म २.५५( कपोत, मृत्यु - पौत्र, हेति - पति, यम उपासक, उलूक से युद्ध में अग्नि की शरण लेने पर शान्ति ), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२६( अनुह्राद का तीसरे पाताल में निवास ), २.३.७.११९( अनुह्राद की भद्रा मणिवरा पुत्री का रजतनाभ यक्ष से विवाह ), भागवत ६.१८.१३( हिरण्यकशिपु व कयाधू - पुत्र, सूर्म्या - पति, बाष्कल व महिषासुर - पिता ), विष्णुधर्मोत्तर १.४३.१( अनुह्राद की महाग्राह से उपमा ), हरिवंश ३.५१.१( हिरण्यकशिपु- पुत्र, बलि - सेनानी, रथ का वर्णन ), ३.५३.२३( अनुह्राद का कुबेर से युद्ध ), ३.६०( अनुह्राद का कुबेर से युद्ध ) anuhraada
अनूचान नारद १.५०.८( छह वेदाङ्गों सहित वेदों के ज्ञाता की उपाधि ), स्कन्द १.२.५.१०९( ब्राह्मणों के ८ भेदों में से एक, लक्षण ) anoochaana /anuuchaana/ anuchana
अनूप हरिवंश १.५.४२ (तयोः स्तवैस्तैः सुप्रीतः पृथुः प्रादात् प्रजेश्वरः। अनूपदेशं सूताय मगधान् मागधाय च ।। )
अनृत ब्रह्माण्ड १.२.९.६३( अधर्म व हिंसा - पुत्र, निकृति - पति, भय व नरक - पिता ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२५१( हंस गीता के अन्तर्गत अनृत दोष का वर्णन ) anrita
अनेना देवीभागवत ७.८.३१( ककुत्स्थ - पुत्र, पृथु - पिता ), ब्रह्म १.९( आयु व प्रभा - पुत्र, वंश वर्णन ), हरिवंश १.२९( अनेना वंश का वर्णन ) anenaa
अनौपम्या पद्म ३.१४( बाण - भार्या, नारद से दान, व्रत, नियम विषयक पृच्छा ), मत्स्य १८७( बाण - पत्नी, नारद से दान विषयक पृच्छा ) anaupamyaa
अन्त: स्कन्द ३.३.१२.२१( अन्त: - बहि स्थितियों में स्थाणु व पशुपति से रक्षा की प्रार्थना )
अन्त:प्राक् लक्ष्मीनारायण २.२२०( श्रीहरि का आण्डजरा नृप की नगरी अन्त:प्राक् में आगमन व उपदेश )
अन्त नारद १.४२.२९( पृथिवी के अन्त में समुद्र, समुद्र के अन्त में तम आदि अन्तों का कथन - पृथिव्यंते समुद्रास्तु समुद्रांते तमः स्मृतम् ।। तमसोंऽते जलं प्राहुर्जलस्यांतेऽग्निरेव च ।। ) anta
अन्तक स्कन्द ४.२.६८.६९( अन्तकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - अंतकेश्वर संज्ञं च लिंगं तद्रुद्रदिक्स्थितम् । अतिपापोपि निष्पापो जायते तद्विलोकनात् ।। ), ४.२.९७.१३२ (अंतकेश्वरमालोक्य तद्याम्यां नांतकस्य भीः ।।) antaka
अन्तरात्मा गर्ग १.१६.२६( अन्तरात्मा की शक्ति लक्षण रूप वृत्ति का उल्लेख )
अन्तरिक्ष गरुड ३.२२.८२(अन्तरिक्ष में त्रिविक्रम की स्थिति का उल्लेख - त्रिविक्रमो हरिरूप्यन्तरिक्षे सर्वजातावनन्तरूपी हरिश्च । हरेर्न वर्णोस्ति न गोत्रमस्ति न जातिरीशे सर्वरूपे विचित्रे ॥), देवीभागवत १.३.२९( १३वें द्वापर में व्यास ), ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२०( १३वें द्वापर में व्यास ), १.२.३६.६९( आद्य नामक देवगण के अन्तर्गत एक देव नाम, आद्या – पुत्र - अंतरिक्षो वसुर्हव्यो ह्यतिथिश्च प्रियव्रतः ।। श्रोता मंतानुमंता च त्वाद्या ह्येते प्रकीर्त्तिताः ।। ), भागवत ९.१२.१२( इक्ष्वाकु वंश में पुष्कर - पुत्र, सुतपा – पिता - भविता मरुदेवोऽथ सुनक्षत्रोऽथ पुष्करः । तस्यान्तरिक्षः तत्पुत्रः सुतपास्तद् अमित्रजित् ॥ ), १०.५९.१२( मुर असुर - पुत्र, कृष्ण द्वारा मुर के वध पर कृष्ण से युद्ध व नष्ट होना - ताम्रोऽन्तरिक्षः श्रवणो विभावसुः वसुर्नभस्वानरुणश्च सप्तमः । ), ११.३.३( ऋषभ - पुत्र, निमि को माया से पार होने का उपदेश ), मत्स्य २७१.९( इक्ष्वाकु वंश में किन्नराश्व - पुत्र, सुषेण - पिता ), ३५.४( ययाति का स्वर्ग से पतित होकर अन्तरिक्ष में स्थित होना व अष्टक आदि से वार्तालाप-विवशः प्रच्युतः स्वर्गादप्राप्तो मेदिनी तलम्। स्थितश्चासीदन्तरीक्षे स तदेति श्रुतं मया।। ), २६८.१२( वास्तुमण्डल में एक देवता जिसके लिए शष्कुली/पूडी की बलि का विधान है ), वायु १०१.२९/२.३९.२९( अन्तरिक्ष में स्थिति रखने वाले गणों के नाम - मरुतो मातरिश्वानो रुद्रा देवास्तथाश्विनौ। अनिकेतान्तरिक्षास्ते भुवर्लौक्या दिवौकसः ।। ), शिव २.५.८.९( शिव रथ में पुष्कर का अन्तरिक्ष बनना - ऋतवो नेमयः षट् च तयोर्वै विप्रपुंगव ।। पुष्करं चांतरिक्षं वै रथनीडश्च मंदरः ।। ), ५.३९.३७( पुष्कर - पुत्र, सुतपा - पिता - मरुदेवस्सुतस्तस्य सुनक्षत्रो भविष्यति ।। तत्सुतः पुष्करस्तस्यांतरिक्षस्तत्सुतो द्विजाः ।।), द्र. आकाश, व्योम antariksha
अन्तर्द्धान अग्नि १८.१९( शिखण्डिनी व अन्तर्धान से हविर्द्धान के जन्म का उल्लेख ), नारद २.६५.६३(वृद्ध केदार में अन्तर्द्धान प्राप्ति का कथन), भविष्य ३.३.३०.८७( पद्मिनी द्वारा पद्माकर व कामपाल को अन्तर्द्धान पत्र देने का कथन ), भागवत ३.२०.४४( ब्रह्मा के शरीर का नाम ), ४.२४.३( पृथु - पुत्र, द्रविण उपनाम, शिखण्डिनी व नभस्वती - पति, चरित्र की महिमा ), मत्स्य ४.४४( पृथु - पुत्र, शिखण्डिनी - पति, मारीच - पिता ), द्र. वंश पृथु antardhaana
अन्तर्वेदी गरुड २.६.२४(अन्तर्वेदी तृण का उल्लेख - धर्मस्त्वं वृषरूपेण जगदानन्ददायकः ॥ ….गङ्गायमुनयोः पेयमन्तर्वेदि तृणं चर ॥), नारद १.५६.७४०( कूर्म के अङ्गों में देश विन्यास के संदर्भ में पाञ्चाल के अन्तर्वेदी/नाभि होने का उल्लेख ), भविष्य २.१.९.२( अन्तर्वेदी व बहिर्वेदी में अन्तर का कथन , ज्ञानसाध्य कर्म की अन्तर्वेदी संज्ञा का उल्लेख - ज्ञानसाध्यं तु यत्कर्म अंतर्वेदीति कथ्यते ।। देवतास्थापनं पूजा बहिवेंदिरुदाहृता ।।), ३.३.२.१२( अन्तर्वेदी का उल्लेख मात्र? ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.२( अन्तर्वेदी व बहिर्वेदी में करणीय पूजा आदि कृत्य - अन्तर्वेद्यां च यजनं बहुवित्तस्य कीर्तितम्।। स्वल्पवित्तस्य धर्मज्ञ बहिर्वेदि प्रकीर्तितम् ।। ), स्कन्द १.१.१७.२७४( वृत्र के शरीर के अन्तर्वेदी रूपी गङ्गा - यमुना के मध्य क्षेत्र में पतन का उल्लेख - तत्रैव ब्रह्महत्या च पापिष्ठा पतिता भुवि॥ गंगायमुनयोर्मध्ये अंतर्वेदीति कथ्यते॥), २.२.४.१५( अन्तर्वेदी का माहात्म्य, पुरुषोत्तम क्षेत्र में सिन्धुराज के जल से वट मूल तक अन्तर्वेदी होने का उल्लेख - अन्तर्वेदी त्वियं पुण्या वांछ्यते त्रिदशैरपि ।। यत्र स्थितां हि पश्यंति सर्वांश्चक्राब्जधारिणः ।। ), २.२.४.३९( अन्तर्वेदी के रक्षार्थ ८ देवियों का कथन - अन्तर्वेदी रक्ष मम परितस्त्वं स्वमूर्तिभिः ।। सा तु तिष्ठति मत्प्रीत्या अष्टधा दिक्षु संस्थिता ।। ), २.२.१२.१०४( पुरुषोत्तम क्षेत्र में विष्णु के हृदय सदृश अन्तर्वेदी होने का उल्लेख - अंतर्वेदी महापुण्या विष्णोर्हृदयसंनिभा ।। तस्याः संरक्षणायाहं स्थापितो विष्णुनाष्टधा ।।),लक्ष्मीनारायण १.५८२.७२(पुरुषोत्तम क्षेत्र में शंख की नाभि में वट आदि की स्थिति, वट और अब्धि के बीच के क्षेत्र की अन्तर्वेदी संज्ञा आदि - वटाब्धिमध्यमं क्षेत्रं कीटादेरपि मुक्तिदम् । अन्तर्वेदी भागवतः क्षेत्रं मध्यगतं हि सा ।।), कथासरित् ६.६.४२ (अन्तर्वेदी में उत्पन्न वसुदत्त द्विज के विद्याकामी पुत्र विष्णुदत्त का वृत्तान्त - अन्तर्वेद्यामभूत्पूर्वं वसुदत्त इति द्विजः । विष्णुदत्ताभिधानश्च पुत्रस्तस्योदपद्यत ।।), antarvedee/ antarvedi
अन्तस्थ अग्नि ३१८.१कल्याणअंक(अन्तःस्थ मन्त्र के रूप में र् ह् क्ष् मों का निरूपण), भागवत ३.११.४७( ऊष्माणमिन्द्रियाण्याहु: अन्तस्था बलमात्मन: )
अन्तःकरण स्कन्द ३.१.४९.३८(अन्तःकरण की आत्मा रूप में कल्पना) Antahkarana
अन्त्यज गरुड २.१२.६(७ अन्त्यज जातियों के नाम), भागवत ११.१७.२०( अन्त्यजों के स्वभाव अशौच, स्तेय, काम, क्रोध आदि का कथन )
अन्त्येष्टि गरुड २.१.५(अन्त्येष्टि क्रिया विधि), द्र. मृत्यु
अन्त्र वायु ६.१९( वराह अन्त्र का उद्गाता से साम्य ), द्र. आन्त्र antra
अन्ध स्कन्द ५.३.१.१५( श्रुति व स्मृति से हीन विप्रों की अन्ध संज्ञा ), ५.३.१५९.१७( मात्सर्य से जाति अन्ध व पुस्तक हरण से जन्मान्ध होने का उल्लेख ), द्र. मदान्ध andha
अन्धक१ कूर्म १.१६( कालाग्नि रुद्र द्वारा अन्धक के निषूदन की कथा, अन्धक द्वारा शिव की स्तुति ), देवीभागवत ७.१८.३३( महिषासुर - सेनानी, चण्डिका देवी के सिंह पर प्रहार, सिंह द्वारा अन्धक का वध ), पद्म १.४६.२( अन्धक की पार्वती को प्राप्त करने की आसक्ति, शिव पर प्रहार, शिव द्वारा गण बनाना ), १.८१( विष्णु के वरदान व अमृत भक्षण के कारण अन्धक की अमरता, असुरत्व हरण के लिए ब्रह्मा द्वारा विचिकित्सा माया का प्रेषण, अन्धकासुर द्वारा मोहित होकर पार्वती को प्राप्त करने का यत्न ), भविष्य ३.४.२२.४७( कलियुग में मूर्तिभञ्जक नवरङ्ग (औरंगजेब) राजा के रूप में जन्म ), मत्स्य १५६.११( आडि व बक दैत्यों का पिता, अन्धक वध के पश्चात् आडि द्वारा पार्वती रूप धारण करके शिव से छल करने की चेष्टा ), १७९( अन्धक का शिव से युद्ध, मातृकाओं की सृष्टि, मृत्यु, गणेशत्व प्राप्ति ), लिङ्ग १.९३( शिव का गण बनना ), वराह २७( अन्धक द्वारा देवों को त्रास, मातृकाओं द्वारा अन्धक का प्रतिकार ), ९०( अन्धक से देवों को त्रास प्राप्त होने पर त्रिदेवों से त्रिकला नामक कुमार की उत्पत्ति ), वामन ९.२६+ ( अन्धक के रथ की विशिष्टता, राज्याभिषेक के पश्चात् देवों से युद्ध व विजय प्राप्ति ), ४८.३( राजा वेन का जन्मान्तर में हिरण्याक्ष - पुत्र अन्धक व शिवगण भृङ्गिरिटि बनना ), ५९.१६( अन्धक द्वारा पार्वती को प्राप्त करने की चेष्टा ), ६३( हिरण्याक्ष - पुत्र, प्रह्लाद द्वारा अन्धक को पार्वती सम्बन्धी उपदेश ), ६६( प्रह्लाद का अन्धक को शिव महत्त्व विषयक उपदेश ), ६९.७८( अन्धक द्वारा शिव रूप धारण करना ), ७०( शिव शूल से अन्धक का भेदन, अन्धक द्वारा शिव की स्तुति, गणत्व प्राप्ति ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२६( अन्धक द्वारा पार्वती हरण की चेष्टा, मातृकाओं की सृष्टि ), शिव २.५.४२+ ( अन्धक का पार्वती के स्वेद से जन्म, हिरण्याक्ष द्वारा अन्धक का पालन, शिव द्वारा शूल से वेधना ), ४.१३.२( अन्धक का देवों और शिव से युद्ध, अन्धकेश लिङ्ग की स्थापना ), स्कन्द ४.१.१६( अन्धक द्वारा शुक्राचार्य को देवों से युद्ध में मरे दैत्यों को जीवित करने की प्रेरणा ), ५.१.३६.२४( अन्धक का शिव से युद्ध, अदृश्य होने पर नरादित्य द्वारा उत्पन्न प्रकाश में दृष्टिगोचर होना ), ५.१.३८( चामुण्डा द्वारा रक्त पान करके अन्धक को कृश करना, अन्धक द्वारा शिव की स्तुति, गणत्व प्राप्ति ), ५.२.३९.२५( अक्रूरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, भृङ्गिरिटि द्वारा क्रूर बुद्धि विनाश हेतु स्थापना ), ५.२.५१( ), ५.३.४५+ ( अन्धक द्वारा देवों को त्रास, विष्णु से बाहु युद्ध, शिव से युद्ध, शिव द्वारा शूल से भेदन, अन्धक द्वारा शिव की स्तुति और भृङ्गीश गण बनना ), ६.१४९+ ( हिरण्यकशिपु- पुत्र, देवों से युद्ध में केलीश्वरी देवी से पराजय, स्तुति, शिव से युद्ध, पराजय, भृङ्गिरिटि गण बनना ), ६.२२८+ ( शिव से युद्ध करके भृङ्गिरिटि गण बनना ), ६.२२८.२३( प्रह्लाद द्वारा राज्यपद को अस्वीकार करने पर दानवों द्वारा अन्धक का राज्याभिषेक ), हरिवंश २.८६+ ( कश्यप व दिति - पुत्र, स्वरूप, नारद द्वारा मन्दराचल पर सन्तान पुष्प प्राप्ति का प्रलोभन, मन्दराचल पर शिव से युद्ध में भस्म होना ), लक्ष्मीनारायण २.५८.६७( शंकर के अन्धक से युद्ध में धुन्धु द्वारा अन्धक की सहायता, इन्द्र के वज्र का अन्धक से टकराकर चूर्ण होना, देवों द्वारा प्रदत्त शक्तियों से निर्मित रथ द्वारा शंकर द्वारा अन्धक का वध ) कथासरित् १७.१.८०(गिरिजापति द्वारा गिरिजा के मानसपुत्र अन्धक के वध का उल्लेख), andhaka
अन्धक२ ब्रह्माण्ड २.३.७१.११८( विलोमा - पुत्र, वृष्णि - प्रपौत्र, अभिजित् - पिता, चन्दनोदक दुन्दुभि उपनाम ), मत्स्य ४४.४८( सात्वत व कौसल्या के पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१३.११४( वृद्ध यादव, द्वारका में अनावृष्टि प्रकोप होने पर कृष्ण से अक्रूर व अक्रूर के माता - पिता के दिव्य प्रभाव का वर्णन, अक्रूर को पुन: द्वारका में लाने का परामर्श ), ४.१४.१२( कुकुर आदि ४ अन्धक - पुत्रों के वंश का वर्णन ), स्कन्द ७.१.१०५.५१( २८वें कल्प का नाम, अन्य नाम माहेश्वर, इस कल्प में त्रिपुर वध का उल्लेख ), ७.१.२३७( ऋषियों के शाप से वृष्णि - अन्धक कुलों के मुसल युद्ध में नष्ट होने की कथा ), हरिवंश २.२३( कंस द्वारा वसुदेव की निन्दा किए जाने पर अन्धक द्वारा कंस की निन्दा, मथुरा नगरी व कंस के भावी विनाश के सूचक अपशकुनों का कथन ) andhaka
अन्धकार मत्स्य १२२.८१( अन्धकारक : क्रौञ्च द्वीप के एक पर्वत का नाम ), वराह ८८.१(क्रौञ्च द्वीप के पर्वतों में से एक, अपर नाम अच्छोदक), स्कन्द २.४.९.५५( दीप दान से रहित गृह में लक्ष्मी - सन्तान अन्धकार के निवास का कथन ), महाभारत शान्ति ३२१.४४( अन्धकार के दर्शन से पूर्व ही हिरण्मय नगों को देखने का निर्देश ) andhakaara
अन्न गरुड २.१०.५(विभिन्न योनियों के अन्न), २.२५.४०(औरस पुत्र के अतिरिक्त अन्य पुत्रों द्वारा श्राद्ध में अन्न दान का निषेध), ३.२.४४(मुरारि के अन्नाभिमानी होने का उल्लेख), ३.२९.५१(अन्न आदि अर्पण काल में वासुदेव के स्मरण का निर्देश), ३.२९.५७(परान्न भक्षण काल में पाण्डुरङ्ग के स्मरण का निर्देश), नारद १.११४.१६( श्रावण कृष्ण पञ्चमी को अन्न समृद्धि व्रत विधि ), पद्म १.३.१४५( १७ ग्राम्य व १४ ग्राम्यारण्यक ओषधियों की ब्रह्मा से सृष्टि ), १.१६.८७( ब्रह्मा के यज्ञ में दक्ष द्वारा अन्न देना व वरुण आदि द्वारा पकाना ), १.३६.९३( अन्न दान का माहात्म्य : राजा श्वेत द्वारा स्व शव भक्षण की कथा, कङ्कण दान से मुक्ति ), ६.२६( अन्न दान का माहात्म्य ), ७.२०( अन्न दान का माहात्म्य, हरिशर्मा ब्राह्मण का वैकुण्ठ में क्षुधाग्रस्त होना, अन्न दान से मुक्ति ), ब्रह्म १.१०९( अन्न दान का माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड ३.४.८.४१( निषिद्ध अन्न ), भविष्य ४.१६९( अन्न दान का माहात्म्य, राजा श्वेत की क्षुधा शान्ति, धनेश्वर वैश्य की सर्प भय से मुक्ति ), ४.१९९ ( तिलाचल दान विधि ), मत्स्य १९.८( श्राद्धान्न के सर्पों, यक्षों, राक्षसों आदि में रूपों का कथन ), मार्कण्डेय १५.२०( अन्न हरण पर मार्जार योनि आदि की प्राप्ति ), वराह १३०( राजा का अन्न भक्षण करने पर प्रायश्चित्त विधान ), विष्णु ३.११.९५( भुक्त अन्न का अगस्ति व बडवानल अग्नियों द्वारा पाक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३१५( अन्न दान की प्रशंसा, भुक्त अन्न की विशिष्टता ), शिव १.१५.२८( दशाङ्ग अन्न का उल्लेख ), १.१५.३६( विभिन्न पात्रों को अन्न दान के समय बुद्धि के अपेक्षित स्वरूप का कथन ), १.१८.४६( शालि, गोधूम आदि के पौरुष तथा षाष्टिक धान्य के प्राकृत होने का उल्लेख ), २.१.१४.३७( तण्डुल आदि धान्यों से शिव पूजा के फल ), ५.११.२४( अन्न दान की महिमा का वर्णन ), ५.२२.३( अन्न के पाक से उत्पन्न १२ स्थितियों का वर्णन ; अन्न पाक व गर्भ पाक में समानता ), स्कन्द १.२.४.७९( अन्न दान का मध्यम श्रेणी के दानों में वर्गीकरण ), २.७.७.२५( अन्न दान का माहात्म्य, मैत्र पिशाच का दृष्टान्त ), ४.१.३५.२३१( भोजन विधि का कथन, अन्नग्रहण मन्त्र ), ४.१.४०.९( भक्ष्याभक्ष्य विचार ), ५.३.११.३०( ब्राह्मण अन्न अमृत, क्षत्रिय पय:, वैश्य अन्न तथा शूद्र रुधिर होने आदि का कथन ), ५.३.१५९.१६( विप्र को पर्युषित अन्न दान से क्लीबता प्राप्ति का उल्लेख ), ६.१४१( मिष्टान्न दायक लिङ्ग का माहात्म्य, वसुसेन का अन्न दानाभाव में स्वर्ग में भूख से पीडित होना, पुत्र सत्यसेन द्वारा किए गए दान से मुक्ति ), ७.१.१२९.१९(राजा, स्वर्णकार, शूद्र, चर्मकार आदि के अन्न के दोष, अक्षमाला- वसिष्ठ संदर्भ), महाभारत वन ३१३.८५( गौ के अन्न होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), शान्ति ३६.२१( अभक्ष्य अन्न का विचार ), २२१.१( भक्ष्य अन्न का विचार ), अनुशासन ६३.५( अन्न दान के विशेष माहात्म्य का कथन ), ६६.५५+ ( अन्न दान का माहात्म्य ), ११२.१०( अन्न दान का माहात्म्य ), १३५.१( भोज्य - अभोज्य अन्न विचार ), आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३२८( अन्न दान का माहात्म्य ), दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३५२( अन्न दान हेतु अयोग्य दाताओं का विचार ), लक्ष्मीनारायण २.११.४२( कृष्ण के अन्न प्राशन संस्कार का वर्णन ), २.२१३.९५( रसान्न, मधुपर्कान्न आदि अनेकों प्रकार के अन्नों के नाम ), २.१६०.६९( विभिन्न देवों के लिए देय अन्न के प्रकार ), २.२१३.९५( अन्न के स्थूल व सूक्ष्म प्रकार ), २.२३८( कृष्ण - कृत अन्नकूट उत्सव का वर्णन ), ३.७५.८८( अन्न दान से पितर लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.११०.७६( अन्न दान की महिमा )द्र. धान्य, भोजन anna
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अन्नकूट वराह १६४( गोवर्धन का उपनाम, परिक्रमा का विधान ), लक्ष्मीनारायण १.३४८.५( अन्नकूट या गोवर्धन की परिक्रमा का माहात्म्य ), २.२३८( कृष्ण - कृत अन्नकूटोत्सव का वर्णन ), ४.९३.६९( कृष्ण के स्वागत - सत्कार हेतु ब्रह्मा द्वारा अन्नकूट के आयोजन का वर्णन ) annakoota/ annakuuta
अन्नपूर्णा नारद १.८६.६५( लक्ष्मी - अवतार, अन्नपूर्णा मन्त्र विधान का कथन ), ब्रह्माण्ड ३.४.३६.२३( चिन्तामणि गृह की एक देवी ), लक्ष्मीनारायण १.५०९.११७( ब्रह्म के यज्ञ में रुद्र द्वारा क्षिप्त भिक्षा कपाल का अन्नपूर्णा देवी रूप में परिवर्तित होना ) annapoornaa/annapuurnaa /annapurna
अन्वाहार्यपचन गरुड १.२१३.६६( ब्रह्मा गार्हपत्य, त्रिलोचन दक्षिणाग्नि व विष्णु के आहवनीय अग्नि होने का उल्लेख - ब्रह्मा वै गार्हपत्याग्निर्दक्षिणाग्निस्त्रिलोचनः । विष्णुराहवनीयाग्निः कुमारः सत्य उच्यते ॥ ), १.२१३.१५३( उदर में गार्हपत्य, पृष्ठ देश में दक्षिणाग्नि आदि होने का उल्लेख - उदरे गार्हपत्याग्निः पृष्ठदेशे तु दक्षिणः ॥ आस्ये चाहवनीयोऽग्निः सत्यः पर्व च मूर्धनि । ), देवीभागवत ३.१२.४९( गार्हपत्य अग्नि प्राण, आहवनीय अपान तथा दक्षिणाग्नि व्यान आदि होने का उल्लेख - गार्हपत्यस्तदा प्राणोऽपानश्चाहवनीयकः । दक्षिणाग्निस्तथा व्यानः समानश्चावसथ्यकः ॥ सभ्योदानः स्मृता ह्येते पावकाः परमोत्कटाः । ), नारद २.४५.८४( दक्षिणाग्नि से फल्गु तीर्थ की उत्पत्ति - दक्षिणाग्रौ कृतं नूनं तद्भवं फल्गुतीर्थकम् ॥ यस्मिन्फलति फल्ग्वां गौः कामधेनुर्जलं मही ॥ ), २.४६.२२( दक्षिणाग्नि पदमें श्राद्ध करने से वाजपेय फल प्राप्त होने का उल्लेख, अन्य अग्नियों में श्राद्ध से अन्य फलों की प्राप्ति - दक्षिणाग्निपदे श्राद्धी वाजपेयफलं लभेत् ।।गार्हपत्यपदे श्राद्धी राजसूयफलं लभेत् ।। श्राद्धँ कृत्वा चंद्रपदे वाजिमेधफलं लभेत् ।। श्राद्धं कृत्वा सत्यपदे ज्योतिष्टोमफलं लभेत् ।। आवसथ्यपदे श्राद्धी सोमलोकपवाप्नुयात् ।। ), पद्म १.९.९९( पितर श्राद्ध कर्म को दक्षिणाग्नि पर करने का निर्देश - दक्षिणाग्नौ प्रणीतेन स एवाग्निर्द्विजोत्तमः ), भागवत ४.४.३२( दक्ष के यज्ञ में शिव गणों के नाश के लिए भृगु द्वारा दक्षिणाग्नि से ऋभुओं को उत्पन्न करना - यज्ञघ्नघ्नेन यजुषा दक्षिणाग्नौ जुहाव ह ॥ अध्वर्युणा हूयमाने देवा उत्पेतुरोजसा ।ऋभवो नाम तपसा सोमं प्राप्ताः सहस्रशः ॥ ), ४.५.२६( वीरभद्र द्वारा दक्ष के सिर की दक्षिणाग्नि में आहुति देने का उल्लेख - जुहावैतच्छिरस्तस्मिन् दक्षिणाग्नावमर्षितः । ), ६.९.१२( अन्वाहार्य पचन अग्नि से त्वष्टा द्वारा वृत्र की सृष्टि - इन्द्रशत्रो विवर्धस्व मा चिरं जहि विद्विषम् । अथान्वाहार्यपचनादुत्थितो घोरदर्शनः ॥ ), १०.६६.३०( काशिराज - पुत्र सुदक्षिण द्वारा कृष्ण वध हेतु दक्षिणाग्नि से कृत्या उत्पन्न करने का वृत्तान्त - दक्षिणाग्निं परिचर ब्राह्मणैः सममृत्विजम्। अभिचारविधानेन स चाग्निः प्रमथैर्वृतः ), मत्स्य १६.२१( अन्वाहार्यक श्राद्ध की विस्तृत विधि - पितृयज्ञं विनिर्वर्त्य तर्पणाख्यन्तु योऽग्निमान्। पिण्डान्वाहार्यकं कुर्य्याच्छ्राद्धमिन्दुक्षये मुदा।। ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३६.३२( पुरूरवा द्वारा अग्नि को त्रेधा विभाजित करके यजन करने का उल्लेख ; आहवनीय वासुदेव, दक्षिणाग्नि संकर्षण व गार्हपत्य प्रद्युम्न होने का उल्लेख - अग्निराहवनीयस्तु वासुदेवो नराधिप ।। दक्षिणाग्निस्तथा ज्ञेयो नित्यं संकर्षणो बुधैः ।। तथा च गार्हपत्योऽग्निः प्रद्युम्नः परिपठ्यते ।। तथैवौपसदो राजन्ननिरुद्धः प्रकीर्तितः ।। ), स्कन्द ६.१८८.१०( ब्रह्मा के अग्निष्टोम यज्ञ में औदुम्बरी कन्या द्वारा शङ्कु प्रचार कर्म में रत उद्गाता ऋत्विज को दक्षिणाग्नि में होम करने का निर्देश - दक्षिणाग्नौ द्रुतं गत्वा कुरु होमं यथोदितम् ॥ येन त्वं मुच्यसे पापान्न चेद्व्यर्थो भविष्यति ॥ ), ७.१.१०५.६४( दक्षिणाग्नि शिव, गार्हपत्य हरि व आहवनीय ब्रह्मा होने का उल्लेख - दक्षिणाग्निरहं ज्ञेयो गार्हपत्यो हरिः स्मृतः ॥ ब्रह्मा चाहवनीयस्तु एवं सर्वं त्रिदैवतम् ॥ ), महाभारत वन २२१.२५( दक्षिणाग्नि का अन्य दो अग्नियों से संयोग हो जाने पर वीति अग्नि के लिए अष्टाकपाल इष्टि करने का निर्देश - दक्षिणाग्निर्यदा द्वाभ्यां संसृजेत तदा किल। इष्टिरष्टाकपालेन कार्या वै वीतयेऽग्नये ।। ), अनुशासन ८७.६( पितरों के श्राद्ध का अन्वाहार्य नाम - पिण्डान्वाहार्यकं श्राद्धं कुर्यान्मासानुमासिकम्। ), द्र. आहवनीय anvaahaaryapachana / anvaharyapachana
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अपचिति लक्ष्मीनारायण १.३८२.१८२(मरीचि की ४ कन्याओं तुष्टि, वृष्टि आदि में से एक)
अपमान स्कन्द ५.१.४.३२( हुंकार अग्नि के भोजन का रूप ), ५.२.२५.४०( विद्या की मानापमान से रक्षा करने का निर्देश ) apamaana
अपरा स्कन्द ७.१.३०७.१( अपर नारायण द्वारा अपर नाम प्राप्ति का कारण ), लक्ष्मीनारायण १.२५०( अपरा एकादशी व्रत की विधि व माहात्म्य ), २.२००( अपरानाविका पुरी में कृष्ण का आगमन ), कथासरित् ८.१.४३( अपरान्त देश का सुभट राजा ) aparaa
अपराजित ब्रह्माण्ड ३.४.२२.९४( कुरण्ड दैत्य से युद्ध करने वाली अश्वारूढा देवी के अश्व का नाम ), भागवत ५.२०.३९( लोकालोक पर्वत पर ४ दिशाओं में स्थित गजराजों में से एक ), ८.१०.३०( देवासुर सङ्ग्राम में अपराजित का नमुचि से युद्ध ), १०.६१.१५( कृष्ण व माद्री लक्ष्मणा के पुत्रों में से एक ), वामन ९०.११( पारियात्र पर्वत पर विष्णु का अपराजित नाम से वास - वैकुण्ठमपि सह्याद्रौ पारियात्रऽपराजितम्।), कथासरित् १७.२.१४३( शिव द्वारा मुक्ताफलकेतु को प्रदत्त खड्ग का नाम ) aparaajita/ aparajita
अपराजिता अग्नि १४२.१८( अपराजिता ओषधि की महिमा व मन्त्र ), देवीभागवत ८.१३.२२( शाक द्वीप की नदी ), नारद १.११७.५( वैशाख शुक्ल अष्टमी को अपराजिता देवी की पूजा ), १.१२१.११२( अपराजिता द्वादशी को नारायण की अर्चना ), मत्स्य १७९.१३( अन्धक का रुधिर पान करने के लिए शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), स्कन्द १.२.६२.५४( अपराजिता विद्या मन्त्र व माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१०( हृषीकेश की पत्नी अपराजिता का उल्लेख - श्रीधरः कान्तिमत्या च हृषीकेशाऽपराजिते ।।), कथासरित् १५.१.७०( शिव द्वारा गुफा के उत्तर द्वार की रक्षा के लिए नियुक्त तीन देवियों में से एक अथवा चण्डिका का विशेषण ) aparaajitaa
अपराध अग्नि २२७( अपराध अनुसार दण्ड का वर्णन ), २५८.२६( साहस शब्दार्थ व दण्ड, विक्रय में अपराध पर दण्ड आदि ), भविष्य ४.१४६( अपराध शमन व्रत, विभिन्न अपराधों के प्रकार, जनार्दन पूजा ), भागवत ६.८( अपराध से रक्षा करने वाले देवों के नाम ), वराह ११७( उपासना में ३२ अपराध ), द्र. दण्ड, पाप, प्रायश्चित्त aparaadha
अपर्णा ब्रह्माण्ड २.३.१०.८( एकपर्णा, एकपाटला व अपर्णा के तप का वर्णन ), वायु ७२.७/२.११.७( मेना - पुत्री, उमा नाम प्राप्ति ), ७२.७( एकपर्णा, एकपाटला व अपर्णा के तप का वर्णन ), स्कन्द १.१.२१.१४२( पार्वती द्वारा निराहार तप से अपर्णा नाम प्राप्ति का वर्णन ), हरिवंश १.१८( एकपर्णा, एकपाटला व अपर्णा के तप का वर्णन ) aparnaa
अपशकुन पद्म ५.५८( राम द्वारा परित्याग के समय सीता को अपशकुन ), ब्रह्माण्ड २.३.३८.३०( कार्तवीर्य अर्जुन द्वारा परशुराम से युद्ध के समय अपशकुन ), भागवत १.१४( धृतराष्ट्र की मृत्यु पर युधिष्ठिर को अपशकुन ), स्कन्द २.२.१४( नीलमाधव यात्रा में इन्द्रद्युम्न को अपशकुन, नारद द्वारा निवारण ), महाभारत सभा २१.२२( ब्राह्मणों द्वारा अपशकुनों से रक्षा हेतु जरासन्ध का उपचार ), वा.रामायण ३.२३( खर राक्षस द्वारा सेना सहित प्रस्थान के समय द्रष्ट अपशकुन ), ३.५७( सीता हरण पर राम द्वारा द्रष्ट अपशकुन ), लक्ष्मीनारायण १.८५( दिवोदास - शासित काशी में गणेश द्वारा सृष्ट अपशकुन ), १.३२९( वृन्दा द्वारा सच्छिद्र सूर्य दर्शन का अपशकुन ), १.५४०( कृष्ण कुल नाश स्थल पर द्रष्ट अपशकुन का वर्णन ), २.१२.६६( दमनक दैत्य द्वारा लोमश ऋषि के आश्रम में स्थित कन्याओं के हरण हेतु प्रस्थान पर अपशकुन ), ४.८१.४४( नागविक्रम राजा से युद्ध को उद्धत नन्दिभिल्ल राजा के समक्ष अपशकुन ), कथासरित् ८.६.१२८( गुणशर्मा द्वारा राजसभा में गमन पर द्रष्ट अपशकुन ) apashakuna
अपस्यति देवीभागवत ८.४.८( अपास्या : प्रियव्रत - भार्या, उत्तम आदि ३ पुत्रों की माता ), मत्स्य ४.३५( उत्तानपाद व अपस्यति/सूनृता - पुत्र ), तुलनीय : अयस्पति
अपान अग्नि २१४.१९( प्राण आदि १० वायुओं के वर्णन के अन्तर्गत अपान के कार्य : आहार को नीचे ले जाना, मूत्र व शुक्र का वहन करना ; प्राण अह, अपान रात्रि ), कूर्म १.७.३८( ब्रह्मा द्वारा अपान से क्रतु ऋषि को प्रकट करना, अन्य वायुओं से अन्य ऋषियों का प्राकट्य ), देवीभागवत ३.१२.४९( अपान का आहवनीय अग्नि से तादात्म्य, प्राण का गार्हपत्य से इत्यादि ), ११.२२.३६( प्राणाग्नि होत्र के संदर्भ में अपान मन्त्र के ऋषि, देवता व छन्द का उल्लेख : श्रद्धाग्नि ऋषि, सोम देवता, उष्णिक् छन्द ), नारद १.४२.१०६( अपान और प्राण के मध्य पाचन अग्नि के अधिष्ठान का उल्लेख, अपानादि के कार्य), १.६०.१५( व्यान - पुत्र, प्राण - पिता, साध्य देवगण वंश ), पद्म २.१५.२१( पापियों के प्राण अपान मार्ग से निकलने का उल्लेख ), ब्रह्म १.७०.५८( गर्भ देह के पश्चिम में अपान की स्थिति ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२.४५( निःश्वासवायु के पांच पुत्रों के रूप में प्राण, अपान आदि का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.१.५.७५( ब्रह्मा द्वारा प्राण आदि से ऋषियों की सृष्टि : अपान से क्रतु का जन्म ), भागवत २.१०.२८( विराट पुरुष द्वारा अपान द्वारा एक शरीर से दूसरे शरीर में जाने की इच्छा पर नाभि का प्रकट होना तथा नाभि से अपान के प्रकट होने का उल्लेख? ), लिङ्ग १.७०.१८८( ब्रह्मा द्वारा अपान से क्रतु ऋषि को प्रकट करना, अन्य वायुओं से अन्य ऋषियों का प्राकट्य ), वराह २०६.३१( गौ के अपान में सर्व तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), वायु २१.४७/१.२१.४३( २१वें कल्प में प्राण, अपान आदि ५ द्विजों का उल्लेख, पञ्चम स्वर बनना), ६६.१९/२.५.१९( प्राण, अपान आदि तुषित देवों में से एक ), ९७.५३/२.३५.५३( प्राणादि वायुओं का गर्भ देह में प्रवेश करना : अपान का पश्चिम काया में प्रवेश ), ९९.७९/२.३७.७९( बलि - भार्या सुदेष्णा द्वारा दीर्घतमा ऋषि के अपान से जुगुप्सा करने पर अपान रहित पुत्र को जन्म देना ), स्कन्द १.२.५०.१८( प्राण, अपान आदि के कार्यों के कथन ), १.२.५५.२९( प्राणापान निरोध की प्राणायाम संज्ञा का उल्लेख ), ४.१.४१.१५१( अपान का ऊर्ध्व दिशा में कर्षण करके प्राण से एक्य स्थापित करने पर यौवन प्राप्ति का उल्लेख ), हरिवंश १.४०.५८( अपान की काया के पश्चिम/अधोभाग में स्थिति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.१.२५.३२( कुम्भक प्रक्रिया वर्णन के अन्तर्गत प्राण के हृदयाकाश से अग्निशिखा की भांति बाहर की ओर फैलने तथा अपान के चन्द्रमा/जल की भांति हृदयाकाश की ओर उन्मुख होने आदि का वर्णन ), ६.१.८१.१११( प्राण के अग्नि तथा अपान के शीतल शशि होने का उल्लेख ), ६.१.८१.५( कुण्डलिनी शक्ति का अपानता प्राप्त कर अधोदिशा में प्रवाहित होने का उल्लेख ), महाभारत वन २१३.३( देह में प्राण, अपान आदि के कार्यों का वर्णन ), उद्योग ४६.१३( प्राण द्वारा अपान का, चन्द्रमा द्वारा प्राण का, आदित्य द्वारा चन्द्रमा के भक्षण आदि का उल्लेख ), भीष्म २८.२९( योगियों द्वारा अपान में प्राण की और प्राण में अपान आदि की आहुतियों का उल्लेख ), शान्ति २३६.९( योग रूपी रथ में अपान के अक्ष और प्राण के युग/जूआ होने का उल्लेख ), ३२८.३३( व्यान - पुत्र, प्राण - पिता, साध्य देवगण वंश ), आश्वमेधिक २०.१६( अपान व प्राण के मध्य उदान की स्थिति होने का कथन ), २१.१२( अपान पति द्वारा मति रूपी पत्नी का कर्षण करने का उल्लेख ), २३.४( प्राण, अपान आदि ५ होताओं द्वारा स्व - स्व प्रधानता का वर्णन ), २४.६( जन्तु की उत्पत्ति के संदर्भ में प्राण द्वारा शुक्र के विकृत होने पर अपान की प्रवृत्ति होने का उल्लेख ), २४.१२( प्राण व अपान के आज्यभाग होने का उल्लेख ), ३९.२०( प्राण, अपान आदि के त्रिगुणात्मक होने का उल्लेख ), ५८.४२( तक्षक द्वारा उत्तंक ऋषि के कुण्डल हरण प्रसंग में नागलोक में उत्तंक द्वारा अश्व रूप धारी अग्नि के अपान का धमन करने से धूम उत्पन्न होने का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.१५.२९( गौ के अपान में सर्व तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), द्र. प्राण - अपान आदि apaana
अपान्तरतमा गर्ग ६.१४.८( अपान्तरतमा द्वारा गौतम - पुत्र मेधावी को पर्वत बनने का शाप ), ७.४०.३५( अपान्तरतमा ऋषि द्वारा हरिण उपद्वीप में तप, अपान्तरतमा आश्रम में गरुड के पक्ष का पतन ), ७.४२.२३( अपान्तरतमा शकुनि द्वारा शम्बर आदि दैत्यों को मोक्ष उपाय रूप में भक्ति के प्रकारों का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२७( अपान्तरतमा ऋषि का ब्रह्मा के गले से प्रादुर्भाव ), १.१२.४( ब्रह्मा - पुत्र ), १.२२.१७( अपान्तरतमा नाम की निरुक्ति ), तैत्तिरीय आरण्यक ८.९टीका( अपान्तरतमा का जन्मान्तर में कृष्ण द्वैपायन व्यास बनना ) apaantaratamaa/ apantartama
अपांनपात् द्र. आपोनप्त्रीयम्
अपामार्ग गरुड १.१६९.७( ज्वर नाश हेतु प्रयुक्त ओषधियों में से एक ), नारद १.७६.३४( विभिन्न ओषधियों के होम फल के संदर्भ में अपामार्ग आदि के होम के लक्ष्मीप्रद व अघनाशक होने का उल्लेख ), पद्म ६.१२२.९( नरक चर्तुदशी/कार्तिक कृष्ण चर्तुदशी को स्नान के मध्य में शिर के परित: अपामार्ग आदि को घुमाने से नरक के क्षय होने का उल्लेख ), भविष्य १.२९.२४( शत्रु नाश हेतु अपामार्ग की समिधाओं से प्रज्वलित अग्नि में आहुतियां देने का उल्लेख ), ४.१४०.९( नरक चर्तुदशी को अपामार्ग का भ्रामण कराने से बाधाओं के नाश का उल्लेख ), ४.१४३.१९( महाशान्ति हेतु कुम्भ में निक्षेप की जाने वाली ओषधियों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९६.३०( रोगों के शमन हेतु विष्णु अपामार्जन शस्त्र का वर्णन ), २.४३.९( मुख रोग हर तथा ज्वरदाह विनाशक ओषधि के रूप में अपामार्ग योग का कथन ), २.५२.७२( सर्वग्रह बाधा विनाश हेतु अपामार्ग बीज योग का कथन ), २.१२५.५( विभिन्न कामनाओं हेतु होम समिधाओं के संदर्भ में कनक प्राप्ति के लिए अपामार्ग समिधा का उल्लेख ), २.१२५.७६( गो अथवा अश्व की कामना की पूर्ति के लिए अपामार्ग, यव आदि की आहुति का उल्लेख ), स्कन्द ६.२५२.३६( चातुर्मास में अपामार्ग तृण का बुध द्वारा वरण ), ७.१.२४( अपामार्ग पुष्प की आपेक्षिक महिमा ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९०(अपामार्ग का बुध द्वारा वरण), १.४४१.९२( अपामार्ग का गरुड द्वारा वरण) apaamaarga/ apamarga
अपामार्जन अग्नि ३१( अपामार्जन विधान व स्तोत्र ), पद्म ६.७८.१( अपामार्जन स्तोत्र : पुलस्त्य द्वारा दाल्भ्य को कथन ) apaamaarjana/ apamarjana
अपाला द्र. अबला
अपीतकुच स्कन्द १.३.१.९.७६( कार्तिक पूर्णिमा को अपीतकुच देवी द्वारा अरुणाद्रि लिङ्ग की प्रदक्षिणा ), १.३.२.२१( स्कन्द को स्तन पान न कराने से पार्वती का नाम ) apeetakucha
अपूप अग्नि १९२.८( प्रति मास शुक्ल चर्तुदशी को भोज्य द्रव्य ), स्कन्द ७.१.१६६.१०६( सावित्री पूजा में पांच पूपिकाओं द्वारा पूजा का विधान ), लक्ष्मीनारायण १.३२२.५३( ब्रह्माण्ड दान के संदर्भ में कांस्य संपुटों में अपूप दान का उल्लेख व माहात्म्य ), कथासरित् १०.६.२०४( अपूप मुग्ध/मूर्ख की कथा ) apoopa/apuupa /apupa
अपोशन गरुड ३.२९.५२(अपोशन काल में वायु के अन्तर्गत हरि के स्मरण का निर्देश)
अपः गरुड २.४.७३(मृतक कर्म में अप नः शोशुचदघम् का विनियोग), द्र. आपः
अप्तोर्याम विष्णुधर्मोत्तर १.१०९.१४( पृथु के अप्तोर्याम यज्ञ में सूत की उत्पत्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१५७.३२( आप्तोर्याम यज्ञ का ऊरु में न्यास ) aptoryaama
अप्रतिमौजा विष्णु ३.२.२७( दशम मन्वन्तर में ऋषि ), द्र. मन्वन्तर
अप्रतिरथ अग्नि २७८.५ (प्रतिरथ : मतिनार के ३ पुत्रों में से एक, कण्व – पिता), गरुड १.१४०.३ (प्रतिरथ : रतिनार-पुत्र, मेधातिथि – पिता), ब्रह्म १.११.५२(प्रतिरथ : मतिनार के ३ पुत्रों में एक) भागवत ९.२०.६( रन्तिभार-पुत्र, कण्व-पिता) वायु ९९.१२९/२.३७.१२५(प्रतिरथ : रन्तिनार व सरस्वती - पुत्र, धुर्य – पिता, कण्ठ - पितामह ), हरिवंश १.३२.३ (प्रतिरथ : मतिनार- पुत्र), २.१०३.२९ (प्रतिरथ : वज्र-पुत्र, सुचारु – पिता) apratiratha
अप्रवान ब्रह्माण्ड २.३.१.९३( च्यवन व सुकन्या के २ पुत्रों में से एक, ऋची - पति, और्व - पिता )
अप्रस्तुत स्कन्द ७.३.४८( इन्दुमती - पति दुष्ट राजा अप्रस्तुत द्वारा पितरों के उद्धार हेतु सन्तारण तीर्थ में स्नान )
अप्सरा अग्नि २१९.३७( प्रधान अप्सराओं के नाम ), गर्ग ५.१८.५( अप्सरा रूपी गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया ), देवीभागवत ४.६( तप में विघ्न पर नारायण द्वारा उर्वशी की सृष्टि ), ४.१६( नारायण के तप में विघ्न करने वाली अप्सराओं को २८वें द्वापर में नारायण - पत्नियां बनने का वर ), पद्म ६.४६( मेधावी मुनि के तप में मञ्जुघोषा अप्सरा द्वारा विघ्न की कथा ), ६.१२७.६१( काञ्चनमालिनी अप्सरा द्वारा राक्षसों को प्रयाग स्नान के माहात्म्य का वर्णन, राक्षस का उद्धार ), ६.१६८.५८( अप्सराओं द्वारा इन्द्र से ब्रह्महत्या के अंश की प्राप्ति ), ब्रह्म २.७७( अप्सरा युग सङ्गम तीर्थ, गम्भीरातिगम्भीर अप्सराओं द्वारा विश्वामित्र के तप में विघ्न, शाप से नदी बनना, गङ्गा सङ्गम से मुक्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१४९( अप्सराओं के प्रकृति के तामस अंश से उत्पन्न होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.५( २४ मौनेया अप्सराओं के नाम ), २.३.७.१०( लौकिक अप्सराओं के नाम ), २.३.७.१४( पञ्चचूडा अप्सराओं के नाम ), २.३.७.१५( मेनका, सहजन्या आदि सूर्य रथ पर स्थित रहने वाली १० अप्सराओं के नाम ), २.३.७.१८( शोभवती, वेगवती, युवती आदि १४ अप्सरा गण के नाम ), ३.४.३३.२१( गोमेदक महाशाला में स्थित अप्सराओं द्वारा ललिता देवी का ध्यान, अप्सराओं के १४ जन्म स्थान ), भविष्य १.५७.१६( अप्सरा हेतु मालती पुष्प बलि का उल्लेख ), भागवत ११.१६.३३( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के अप्सराओं में पूर्वचित्ति अप्सरा होने का उल्लेख ), मत्स्य ७०.२१( हुताशन/अग्नि - कन्याओं द्वारा शय्या दान से कृष्ण - पत्नियां बनना ), २४६.५४( वामन के विराट रूप में अप्सराओं का रेखाएं बनना ), महाभारत वन ४३.२९(इन्द्रसभा में अर्जुन का स्वागत करने वाली घृताची – प्रमुख अप्सराओं के नाम), मार्कण्डेय १+ ( वपु अप्सरा द्वारा दुर्वासा के तप में विघ्न का साहस करना, दुर्वासा के शाप से पक्षिणी बनकर चार पुत्रों को जन्म देना, शस्त्रपूत होकर स्व रूप प्राप्त करना ), वराह ५४( काम त्रयोदशी व्रत से अप्सराओं का कृष्ण - पत्नियां बनना, अष्टावक्र मुनि के उपहास के कारण दस्युओं द्वारा हरण ), वामन ७२.२७( क्रतुध्वज ऋषि - पुत्रों के तप में पूतना अप्सरा द्वारा विघ्न, मरुतों की उत्पत्ति ), ७२.७१( मङ्कि ऋषि के तप में वपु अप्सरा द्वारा विघ्न, शाप प्राप्ति ), वायु ६९.४/२.८.४( ३४ मौनेया अप्सराओं के नाम ), ६९.५३/२.८.५३ विभिन्न अप्सरा गणों की उत्पत्ति का वर्णन ), विष्णु १.२१.२५( कश्यप - पत्नी मुनि से अप्सराओं का जन्म ), ५.३८.७१( अष्टावक्र द्वारा अप्सराओं को कृष्ण - पत्नियां बनने का वरदान, रुष्ट होने पर शाप ), विष्णुधर्मोत्तर १.१२८( विभिन्न अप्सरा गणों की उत्पत्ति का कथन ), स्कन्द १.२.१( पञ्चअप्सरस तीर्थ : अर्जुन द्वारा पांच अप्सराओं का ग्राह योनि से उद्धार ), १.२.१३.१७४( शतरुद्रिय प्रसंग में अप्सराओं द्वारा शिव के कुङ्कुम लिङ्ग की पूजा ), ३.२.३.६८( तपोरत यम?धर्म के तप में वर्धनी अप्सरा द्वारा विघ्न ), ४.१.९( अप्सरा लोक प्रापक कर्म ), ४.२.५९.१९( वेदशिरा मुनि के तप में शुचि अप्सरा द्वारा विघ्न, धूतपापा कन्या के जन्म की कथा ), ४.२.६६.२( अप्सरा कूप व लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : सौभाग्य प्राप्ति ), ५.१.८( अप्सरा कुण्ड पर स्नान, दान का माहात्म्य : उर्वशी को पुरूरवा की प्राप्ति ), ५.२.१७( अप्सरेश लिङ्ग का माहात्म्य : शक्र शाप से निवृत्ति हेतु रम्भा - प्रमुख अप्सराओं द्वारा स्थापित ), ५.३.८३.११०( गौ के खुराग्रों में अप्सराओं आदि के वास का उल्लेख ), ५.३.१९२( नर - नारायण के तप में अप्सराओं द्वारा विघ्न, उर्वशी की उत्पत्ति ), ५.३.१९२.१७( इन्द्र द्वारा नर - नारायण की तपस्या भङ्ग करने हेतु अप्सराओं के प्रेषण का वर्णन ), ५.३.१९२.४६( वसन्तकामा अप्सराओं द्वारा नर - नारायण की स्तुति का वर्णन ), ५.३.१९३.२( वसन्तकामा अप्सराओं द्वारा नारायण शरीर में ब्रह्माण्ड के दर्शन व स्तुति ), ५.३.२३१.२३( रेवा - सागर सङ्गम पर २ अप्सरेश तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.१५३( ब्रह्मा द्वारा तिलोत्तमा की सृष्टि, शंकर का तिलोत्तमा के दर्शन से चतुर्मुख होना, पार्वती का तिलोत्तमा को शाप आदि ), ७.१.५८.३१(रावण द्वारा अप्सराओं की प्रेक्षण हेतु नियुक्ति का उल्लेख), हरिवंश १.३५.१४( गार्ग्य शैशिरायण का गोपाली अप्सरा से कालयवन पुत्र उत्पन्न करना ), वा.रामायण ३.११.११( पञ्चाप्सर तटाक : माण्डकर्णि मुनि के तप में विघ्न उत्पन्न करती हुई पांच अप्सराओं का वास ), लक्ष्मीनारायण १.४५६( अप्सरा लोक की महिमा, अप्सराओं के नाम, अप्सरा लोक प्राप्ति का उपाय ), १.४६६( वेदशिरा मुनि व शुचि अप्सरा से धूतपापा कन्या का जन्म ), १.४८६( मेनका द्वारा विश्वामित्र को अप्सराओं द्वारा जीव को प्रदत्त सुखों का वर्णन ), १.५५७.२८( ऋक्ष पर्वत पर अप्सरस तीर्थ : शापग्रस्त अप्सराओं द्वारा नर्मदा स्नान से पुन: स्वर्ग लोक की प्राप्ति ), २.२४६.३०( जामि के अप्सरा लोकेश होने का उल्लेख ), ३.३५.१( अप्सरा वत्सर में अप्सराओं की तृप्ति हेतु बृहद~ ब्रह्म नारायण का प्राकट्य ), ३.७५.८७( कन्या दान से अप्सरा लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), कथासरित् ६.७.२९( पञ्चाप्सरस तीर्थ की महिमा : अग्निशर्मा ब्राह्मण द्वारा श्रुतसेन राजा को दो आश्चर्यों का वर्णन ), तैत्तिरीय संहिता ४.३.१२ सायण भाष्य( अप्स : प्साति भक्षयति विनाशयतीति प्स: प्सातीत्यप्स: ), द्र. पञ्चाप्सर Apsaraa
अबला मत्स्य १७९.२७( अबाला : अन्धकासुर युद्ध में अन्धकों का रक्त पान करने के लिए शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), वायु ७०.७६/२.९.७६( अत्रि - पुत्री, दत्तात्रेय आदि की भगिनी, वेद की अपाला? ), कथासरित् १२.६.४१७( कमलगर्भ ब्राह्मण - पत्नी, जन्मान्तर में यक्ष - कन्या धूमलेखा व श्रीदर्शन - पत्नी अनङ्गमञ्जरी ), Abalaa
अब्ज वामन ९०.१४( अब्जगन्ध : पुष्कर में विष्णु का अब्जगन्ध नाम से वास ), हरिवंश १.२९.१४(अब्जः प्रोवाच विष्णुं वै तव पुत्रोऽस्मि वै प्रभो ।। विधत्स्व भागं स्थानं च मम लोके सुरेश्वर ।)
अब्द विष्णुधर्मोत्तर १.८२( शब्दार्थ संवत्सर, खण्ड युगानुसार ६० अब्दों के नाम व शुभाशुभ फल ), द्र. पञ्चौद
अब्धि लक्ष्मीनारायण ४.७४( सप्ताब्धिसिंह : पञ्चनादिनी नगरी का राजा, सर्पदंश से मृत्यु पर सूत द्वारा सञ्जीवन का उद्योग )
अब्रिक्त लक्ष्मीनारायण २.५०+ ( अब्रिक्त देश के म्लेच्छ राजा जुमासेम्ला की दिव्य कन्याओं पर आसक्ति, राजा की सेनाओं का नष्ट होना ), २.१११.५९( अब्रिक्त देश में नारायणी नदी की स्थिति का उल्लेख ), २.२९७.१०१( अब्रिक्त - पुत्रियों के साथ कृष्ण का विवाह, आब्रिक्ती पत्नियों के गृह में कृष्ण द्वारा गायन आदि कृत्य का उल्लेख )
अभय नारद १.११६.५२( अभय सप्तमी : पौष शुक्ल सप्तमी ), भविष्य ३.३.१०.१७( महीपति - पुत्र, कृष्णांश उदयसिंह से मल्ल युद्ध में पराजय ), ३.३.२६.८३( कृतवर्मा का अंश, नृहरि द्वारा परिघ से वध ), भागवत ४.१.५०( धर्म व दया - पुत्र ), ५.२०.३( प्लक्ष द्वीप में एक देश ), मत्स्य १९८.३( विश्वामित्र वंश के एक ऋषि ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३०२( अभय दान का फल ), स्कन्द ५.१.३७.३१( अभयेश्वर लिङ्ग की उत्पत्ति व माहात्म्य : शक्र को अन्धकासुर से अभय ), ५.२.४८( अभयेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : ब्रह्मा व विष्णु को हारक - कालकेलि दानवों से अभय ), ५.३.५६.१२०( अभय दान से ऐश्वर्य प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२६९( अभयाक्ष : पाञ्चाल राजा, विष्णुभक्त, अधोक्षज नाम ग्रहण ), ३.१८.१५( अभयदान की सर्व दानों में श्रेष्ठता का उल्लेख ) Abhaya
अभया देवीभागवत ७.३०( अभया देवी का उष्ण तीर्थ में वास ), भागवत ५.२०.२१( क्रौञ्च द्वीप की एक नदी ), मत्स्य १३.४२( अभया देवी का उष्ण तीर्थ में वास ), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.५( अभया नामक शान्ति के शशिप्रभ वर्ण व अधिदेवता का कथन ), स्कन्द ४.१.२९.१७( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ५.३.१९८.७९( उष्ण तीर्थ में उमा की अभया नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२३८.४९( मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी का नाम ) Abhayaa
अभिचार अग्नि १२५.४७( अभिचार कर्म हेतु उपयुक्त स्थान ), १३८( शत्रु के विरुद्ध ६ प्रकार के अभिचार कर्म व उनके सम्प्रदाय ), ३०२( अभिचार हेतु बीज मन्त्र ), ३०६( अभिचार कर्म से मुक्ति हेतु शत्रुनाशक मन्त्र ), ३१५( शत्रुनाशक अभिचार कर्म का वर्णन ), गरुड १.१७७+ ( शत्रु के विरुद्ध अभिचार ), नारद १.५१.५४( होम में अभिचार हेतु सूकरी मुद्रा का कथन ), लिङ्ग २.५२( अभिचार कर्म की विधि ), शिव ७.२.३२.४१( अभिचार कर्मों में होम द्रव्यों का वर्णन ) Abhichaara
अभिजित् देवीभागवत ८.१७.१८( शिशुमार चक्र में नक्षत्र न्यास के संदर्भ में अभिजित् व उत्तरषाढा का दक्षिण व वाम नासिका में न्यास ), नारद १.५६.६५१( यात्रारम्भ के संदर्भ में अभिजित् मुहूर्त के पञ्चाङ्ग शुद्धि रहित दिवस में भी अभीष्ट फल सिद्धि दायक होने का उल्लेख - अभिजित्क्षणयोगोऽयमभीष्टफलसिद्धिदः। पञ्चाङ्गशुद्धिरहिते दिवसेऽपि फलप्रदः ।। ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.७५( श्रवण नक्षत्र द्वारा स्व छाया से अभिजित् नक्षत्र को उत्पन्न करने का कथन - रेमे दिवानिशं नित्यं श्रवणा च चुकोप सा । छायां च दत्त्वा चन्द्राय ययौ तातान्तिकं भिया ।। ), भविष्य १.१७९.७( पश्चिम् दिशा में स्थित रह कर सूर्य की अर्चना करने वाले नक्षत्रों में से एक - अभिजिन्नाम नक्षत्रं श्रवणं च बहुश्रुतम् ।। एताः पश्चिमतो दीप्ता राजंते चानु मूर्तयः ।।), भागवत ३.१८.२७( वराह अवतार द्वारा अभिजित् मुहूर्त के योग में हिरण्याक्ष के वध का उल्लेख ), ५.२३.६( शिशुमार चक्र की दक्षिण व वाम नासिका में अभिजित् व उत्तराषाढा नक्षत्रों की स्थिति का उल्लेख ), ७.१०.६७( शिव द्वारा अभिजित् मुहूर्त में त्रिपुर दहन का उल्लेख - शरं धनुषि सन्धाय मुहूर्तेऽभिजितीश्वरः । ददाह तेन दुर्भेद्या हरोऽथ त्रिपुरो नृप।। ; तु. मत्स्य पुराण १३९.३ में पुष्य नक्षत्र के योग में त्रिपुर दहन ), ८.१८.५( वामन अवतार का जन्म भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को श्रवण नक्षत्र व अभिजित् मुहूर्त में होने का उल्लेख - श्रोणायां श्रवणद्वादश्यां मुहूर्तेऽभिजिति प्रभुः। सर्वे नक्षत्रताराद्याश्चक्रुस्तज्जन्म दक्षिणम् ।।), १०.८३.२६( कृष्ण द्वारा लक्ष्मणा के स्वयंवर में अभिजित् मुहूर्त में मत्स्य का वेधना - तस्मिन्सन्धाय विशिखं मत्स्यं वीक्ष्य सकृज्जले। छित्त्वेषुणापातयत्तं सूर्ये चाभिजिति स्थिते।), मत्स्य २२.२( अपराह्न में अभिजित् मुहूर्त व रोहिणी के उदय होने पर श्राद्ध करने से अक्षय फल प्राप्ति का उल्लेख - अपराह्णे तु संप्राप्ते अभिजिद्रौहिणोदये।। यत्किञ्चिद्दीयते तत्र तदक्षयमुदाहृतम्। ), १९६.६( अङ्गिरस गोत्र के एक गोत्रकार ऋषि ), मार्कण्डेय ३३.१५/३०.१५( अभिजित् नक्षत्र में श्राद्ध से वेदविद् होने का उल्लेख ), वायु ८२.१२/२.२०.१२( अभिजित् नक्षत्र में श्राद्ध से अङ्गों सहित वेद प्राप्ति का उल्लेख ), ९६.११६/२.३४.११८( चन्दनोदक दुन्दुभि - पुत्र, अश्वमेध द्वारा पुनर्वसु पुत्र प्राप्ति का उल्लेख ), ९६.२०१/२.३४.२०१ (वसुदेव - पुत्र कृष्ण के अभिजित् नक्षत्र, जयन्ती शर्वरी व विजय मुहूर्त में प्रकट होने का उल्लेख ), विष्णु ४.१४.१४( आनकदुन्दुभि - पुत्र, पुनर्वसु - पिता, अन्धक वंश ), विष्णुधर्मोत्तर १.८७.१३( नक्षत्रों की जाति वर्णन प्रसंग में अभिजित् के शूद्र होने का उल्लेख ), १.९५.८८( नक्षत्र आवाहन प्रसंग में अभिजित् का धिष्ण्य वरिष्ठ, क्षिप्र कर्म प्रसाधक विशेषण ), १.९७.१२( ब्रह्मा देवता वाले अभिजित् नक्षत्र के लिए जाती पुष्प प्रदान करने का उल्लेख ), १.९८.९( अभिजित् नक्षत्र हेतु घृत चन्दन की धूप का उल्लेख ), १.९९.२०( भूति की इच्छा वाले के लिए अभिजित् नक्षत्र हेतु गुड सहित पायस देने का उल्लेख ), १.१००.८( नक्षत्रों को पान प्रदान करने के संदर्भ में अभिजित् हेतु सलिल देने का उल्लेख ), १.१०१.१०( नक्षत्रों के लिए उपयुक्त होम द्रव्य के संदर्भ में अभिजित् हेतु पायस से होम का निर्देश ), १.१०२.१९( अभिजित् हेतु ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं इत्यादि मन्त्र का उल्लेख ), २.२२.२३( चन्द्रमा की नक्षत्र रूपी २८ पत्नियों में से एक ), २.७३.७२( ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति के उपायों में से एक अभिजित् याग का उल्लेख ), ३.३१८.२४( नक्षत्र सत्र व्रत के संदर्भ में अभिजित् के लिए मधु व घृत से युक्त दुग्ध दान का निर्देश ), शिव २.५.१.४८( मध्याह्न में अभिजित् काल में तथा चन्द्रमा के पुष्य नक्षत्र पर होने पर त्रिपुर दहन का उल्लेख - पुरेष्वेतेषु भो ब्रह्मन्नेकस्थानस्थितेषु च ।। मध्याह्नाभिजिते काले शीतांशौ पुष्प संस्थिते ।। ), स्कन्द ७.१.१९.९०( जनार्दन के अभिजित् नक्षत्र, जयन्ती रात्रि व विजय मुहूर्त में उत्पन्न होने का उल्लेख - अभिजिन्नाम नक्षत्रं जयंतीनाम शर्वरी॥ मुहूर्तो विजयो नाम यत्र जातो जनार्द्दनः ॥ ), महाभारत वन २३०.८( रोहिणी नक्षत्र की अनुजा स्वसा अभिजित् द्वारा ज्येष्ठता प्राप्ति के लिए तप करने को जाने पर धनिष्ठा के युगादि नक्षत्र बनने का कथन - अभिजित्स्पर्धमाना तु रोहिण्या कन्यसी स्वसा। इच्छन्ती ज्येष्ठतां देवी तपस्तप्तुं वनं गता ।। ), लक्ष्मीनारायण १.३११.९८( देवयुती नामक दासी के अभिजित् नक्षत्र होने का कथन - दासी देवयुतीनाम्नी जाताऽभिजित्समाह्वया । मध्याह्नेऽस्याः कृतो वासः सर्वकार्यजयप्रदः ॥), ३.१०.७७( अभिजित् मुहूर्त के क्षण में सूर्य का स्थिर होना - एक एव क्षणः सोऽयमभिजिन्नामनामकः ।। वर्तते तत्र वै लक्ष्मि विनाऽर्कस्य गतिं तदा ।), Abhijit
अभिज्ञान कथासरित् १०.५.२७८( समुद्र आवर्तों से स्थल का अभिज्ञान करने वाले मूर्ख का दृष्टान्त ), द्र. दुष्यन्त - शकुन्तला कथा में मुद्रिका द्वारा अभिज्ञान
अभिधानकोश विष्णुधर्मोत्तर ३.९, ३.११+ ( शब्दों के तात्पर्य )
अभिनय अग्नि ३४२( अभिनय का निरूपण ), भरत नाट्यशास्त्र ८.५(अभिनय की निरुक्ति)
अभिनन्दन भविष्य ३.३.२३.३३( उदयसिंह आदि द्वारा चित्ररेखा - पिता राजा अभिनन्दन को प्रसन्न करके चित्ररेखा द्वारा अपहृत इन्दुल को प्राप्त करने का उद्योग ), ३.३.३२.२१( कौरवों का अभिनन्दन के पुत्रों के रूप में जन्म ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.६७( अभिनन्दन नामक प्रासाद के लक्षण ),
अभिमति भागवत ६.६.११(द्रोण वसु – भार्या, हर्ष, शोक, भय आदि की माता)
अभिमन्यु गरुड ३.२९.३१( कृष्ण, चन्द्र, यम, अश्विनौ, हर का अंश), ३.२९.३१(चन्द्र-पुत्र बुध का रूप), देवीभागवत ४.२२.३८( अभिमन्यु का सुवर्चा, सोमप्ररु उपनाम? ), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१७८( अर्जुन व सुभद्रा - पुत्र, उत्तरा - पति, परीक्षित् - पिता ), भागवत ९.२२.३३( अर्जुन व सुभद्रा - पुत्र, उत्तरा - पति, परीक्षित् - पिता ), मत्स्य ४.४२( चाक्षुष मनु व नड्वला - पुत्र ), वायु ३१.७( ग्रावाजिन नामक? देवगण में से एक ), विष्णु ४.२०.५१( अर्जुन व सुभद्रा - पुत्र, उत्तरा - पति, परीक्षित् - पिता ), कथासरित् ८.५.१०८( सूर्यप्रभ - सेनानी, हिरण्याक्ष विद्याधर का वध, सुनेत्र द्वारा अभिमन्यु का वध )
अभिमन्यु-अर्जुन के द्वारा सुभद्रा के गर्भ से उत्पन्न एक वीर राजकुमार ( आदि० ६३ । १२१(६३.७७); २२० । ६५) । ये चन्द्रमा के पुत्र वर्चा के अवतार थे ( आदि० ६७ । ११३) । सोलह वर्ष तक ही इनका इस भूतल पर रहने का कारण ( आदि० ६७ । ११३- १२५) । इनका अभिमन्यु नाम होने का कारण ( आदि० २२० । ६७) । अर्जुन से इनका समस्त अस्त्रविद्याओं का अध्ययन ( आदि० २२० । ७२) । मातासहित अभिमन्यु का मामा श्रीकृष्ण के साथ वन से द्वारका को जाना ( वन० २२ । ४७) । प्रद्युम्न द्वारा अभिमन्यु की अस्त्रशिक्षा ( वन० १८३ । २८) । अभिमन्यु द्वारा द्रौपदीकुमारों का गदा और ढालतलवार के दाँवपेंच सिखाना ( वन० १८३ । २९) । मातासहित अभिमन्यु का उपप्लव्य नगर में आगमन ( विराट० ७२ । २२(७७.१५)) । उत्तरा के साथ अभिमन्यु का विवाह ( विराट० ७२ । ३५) । अभिमन्यु के कृष्णवीर्य व युधिष्ठिरदम तुल्य होने का उल्लेख ( उद्योग० ५० । ४३) । प्रथम दिन के युद्ध में कोसलराज बृहद्बल के साथ द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म० ४५ । १४-१७) । भीष्म के साथ भयंकर संग्राम करके उनके ध्वज को काट देना ( भीष्म० ४७ । ९-२५) । भीष्म के साथ जूझते हुए श्वेत की सहायता मे इनका आना ( भीष्म० ४८ । १०१) । धृष्टद्युम्न द्वारा निर्मित क्रौञ्च- व्यूह में स्थान ग्रहण ( भीष्म० ५० । ५०) । भीष्म पर चढाई करते हुए अर्जुन की सहायता करना ( भीष्म० ५२ । ३०; ६० । २३-२५) । दूसरे दिन के संग्राम में लक्ष्मण के साथ युद्ध ( भीष्म० ५५ । ८-१३) । अर्जुन द्वारा निर्मित अर्धचन्द्रव्यूह र्मे स्थानग्रहण ( भीष्म० ५६ । १६) । गान्धारौ के साथ युद्ध करना ( भीष्म० ५८ । ७) । इनका अद्भुत पराक्रम ( भीष्म० ६१ । १-११) । शल्य पर आक्रमण तथा हाथीसहित मगधराज ( जयत्सेन) का वध (भीष्म० ६२ । १३-४८) तथा( कर्ण० ७३ ।२४-२५) । भीमसेन की सहायता ( भीष्म० ६३, ६४,६९ तथा ९४ अध्याय) । लक्ष्मण के साथ युद्ध और उसे पराजित करना ( भीष्म० ७३ । ३१-३७) । कैकयराजकुमारों का अभिमन्यु को आगे करके शत्रुसेना पर आक्रमण ( भीष्म० ७७ । ५८-६१) । विकर्ण पर विजय (भीष्म० ७८ । २१) । विकर्ण पर विजय ( भीष्म० ७९ । ३०-३५) । इनके द्वारा चित्रसेन, विकर्णं और दुर्मर्षण की पराजय ( भीष्म० ८४ । ४०-४२) । धृष्टद्युम्न के शृङ्गाटकव्यूह में स्थानग्रहण ( भीष्म० ८७ । २१) । भगदत्त के साथ युद्ध ( भीष्म० ९५ । ४०) । अम्बष्ठ की पराजय ( भीष्म० ९६ । ३९-४०) । अलम्बुष के साथ घोर युद्ध ( भीष्म० १०० अध्याय में) । इनके द्वारा अलम्बुष की पराजय ( भीष्म० १०१ । २८-२९) । चित्रसेन की पराजय ( भीष्म० १०४ । २२) । सुदक्षिण के साथ द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म० ११० । १५) । सुदक्षिण के साथ द्वन्द्वयुद्ध ( १११ । १८-२१) । दुर्योधन के साथ युद्ध ( भीष्म० ११६ । १-८) । बृहद्बल के साथ युद्ध ( भीष्म० ११६ । ३०-३६) । भीष्म पर धावा ( भीष्म० ११८ । ४०) । अर्जुन की रक्षा के लिये युद्ध करना ( भीष्म० ११९ । २१) । धृतराष्ट्र द्वारा इनकी वीरता का वर्णन ( द्रोण० १० । ४७-५२) । पौरव के साथ युद्ध करके उनकी चुटिया पकडकर पटकना ( द्रोण० १४ । ५०-६०) । जयद्रथ के साथ युद्ध ( द्रोण० १४ । ६४-७४) । शल्य के साथ युद्ध ( द्रोण० १४ । ७८-८२) । इनके घोडों का वर्णन ( द्रोण० २३ । ३३) । इनके वध का संक्षिप्त वर्णन ( द्रोण० ३३ । १९-२८) । पद्मव्यूह से बाहर निकलने की असमर्थता प्रकट करना ( द्रोण० ३५ । १८-१९) । व्यूहभेदन की प्रतिज्ञा ( द्रोण० ३५ । २४-२८) । पद्मव्यूह में प्रवेश और कौरवों की चतुरङ्गिणी सेना का संहार ( द्रोण० ३६ । १५-४६) । इनके द्वारा अश्मकपुत्र का वध ( द्रोण० ३७ । २२-२३) । राजा शल्य को मूर्च्छित करना ( द्रोण० ३७ । ३४) । इनके द्वारा शल्य के भाई का वध ( द्रोण० ३८ । ५-७) । इनके भय से कौरवसेना का पलायन ( द्रोण० ३८ । २३-२४) । द्रोणाचार्य द्वारा अभिमन्यु के पराक्रम की प्रशंसा (द्रोण० ३९ अध्याय) । दुःशासन को फटकारते हुए उसे मूर्च्छित कर देना ( द्रोण० ४० । २-१४) । इनके द्वारा कर्ण की पराजय (द्रोण० ४० । ३५-३६) । अभिमन्यु द्वारा कर्ण के भाई का वध, कौरवसेना का संहार तथा भगाया जाना ( द्रोण० ४१ अध्याय) । वृषसेन की पराजय( द्रोण० ४४ । ५) । वसातीय का वध ( द्रोण० ४४ । १०) । सत्यश्रवा का वध ( द्रोण० ४५ । ३) । शल्यपुत्र रुक्मरथ का वध ( द्रोण० ४५ । १३) । इनके प्रहार से पीडित दुर्योधन का पलायन ( द्रोण० ४५ । ३०) । इनके द्वारा दुर्योधन कुमार लक्ष्मण का वध ( द्रोण० ४६ । १२-१७) । इनके द्वारा क्राथपुत्र का वध ( द्रोण० ४६ । २५-२७) । अभिमन्यु का घोर युद्ध, उनके द्वारा वृन्दारक का वध तथा अश्वत्थामा, कर्ण और बृहद्बल आदि के साथ युद्ध ( द्रोण० ४७ । १-२१) । इनके द्वारा कोसलनरेश बृहद्बल का वध ( द्रोण० ४७ । २२) । इनका कर्ण के साथ युद्ध और उसके छः मन्त्रियों का वध ( द्रोण० ४८ । १-६) । इनके द्वारा मगधराज के पुत्र अश्वकेतु का वध ( द्रोण० ४८ । ७) । इनके द्वारा मार्तिकावतकनरेश भोज का वध ( द्रोण० ४८ । ८) । इनके द्वारा शल्य की पराजय (द्रोण० ४८ । १४-१५) । इनके द्वारा शत्रुञ्जय, चन्द्रकेतु, मेघवेग, सुवर्चा और सूर्यभास का वध ( द्रोण० ४८ । १५-१६)। अभिमन्यु का शकुनि को घायल करना ( द्रोण० ४८ । १६-१७) । सुबलपुत्र कालकेय को मारना ( द्रोण० ४९ । ७) । दुःशासनकुमार की गदा के प्रहार से अभिमन्यु का प्राणत्याग ( द्रोण० ४९ । १३-१४) । इन्हें योगी, तपस्वी, मुनियों के अक्षयलोक की प्राप्ति ( द्रोण० ७१ । १२-१६) । अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित् का जन्म ( आश्व० ६९ अध्याय) । अभिमन्युवध का वृत्तान्त वसुदेव ने श्रीकृष्ण के मुख से सुना (आश्व० ६१ । १५-४२) । अभिमन्यु का सोमपुत्र वर्चारूप से सोम में प्रवेश ( स्वर्गा० ५ । १८-२०) । महाभारत में आये हुए अभिमन्यु के नाम-आर्जुनि, सौभद्र, कार्ष्णि, अर्जुनात्मज, अर्जुनावर, फाल्गुनि तथा शक्रात्मजात्मज ।
अभिमन्युवधपर्व-द्रोणपर्व का एक अवान्तरपर्व ( अध्याय ३३ से ७१ तक)
Abhimanyu
अभिमान अग्नि ३३९.३( सहजानन्द में अहंकार उत्पन्न होने के पश्चात् अभिमान और तब रति उत्पन्न होने का उल्लेख ), ब्रह्म १.१२९.६३( अभिमान की राजस गुणों के अन्तर्गत परिगणना ), ब्रह्माण्ड १.२.९.२३( ब्रह्मा के अभिमान से नीललोहित रुद्र की उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत ७.१.२३( कृष्ण द्वारा शिशुपाल वध के संदर्भ में अहंकार व अभिमान से बृद्ध प्राणी के वध पर हिंसा की आशंका ; कैवल्यपदप्राप्ति पर अभिमान का विलडन होना? ), विष्णुधर्मोत्तर १.१८१.३( चाक्षुष मनु के अग्निष्टुद् आदि पुत्रों में से एक ), १.१८९.२( अभिमानी : १४वें भौत्य मनु के पुत्रों में से एक ), शिव २.२.२.३४( कामदेव द्वारा उत्पन्न होने के पश्चात् ब्रह्मा से अभिमान आदि की मांग करना ), स्कन्द ५.१.४.३२( अभिमान में हुंकार अग्नि की स्थिति का उल्लेख ), महाभारत शान्ति २४७.२४( अभिमान के राजसिक गुणों में से एक होने का उल्लेख ), ३१३.१२( अहंकार अध्यात्म, अभिमान अधिभूत और रुद्र अधिदैव होने का उल्लेख ), Abhimaana
अभिरुचि कथासरित् ९.२.६४( विद्याधर राजा, अशोकमाला से विवाह )
अभिलाषा शिव ३.१३.५८( विश्वानर द्विज द्वारा शिव हेतु अभिलाषा अष्टक स्तोत्र का पाठ ), ५.४४.९९( व्यास द्वारा अभिलाषा अष्टक स्तोत्र द्वारा शिव की स्तुति तथा स्तोत्र का माहात्म्य ), स्कन्द ४.१.१०.१२६( वही) Abhilaashaa
अभिषेक अग्नि २८( आचार्य अभिषेक विधान ), ६४( वरुण अभिषेक की विधि ), ६९( अभिषेक स्नपन उत्सव ), ९०( शिष्य के अभिषेक की विधि ), १२१.३६( राज्य अभिषेक हेतु नक्षत्र विचार ), १६७( होम में यजमान का अभिषेक ), २१८+ ( राज्याभिषेक विधि ), गरुड १.१००( अभिषेक विधि ), ३.२९.९( अभिषेचनी – महाभिषक् – भार्या, भागीरथी का अँश), गर्ग ३.४( कृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण के पश्चात् सुरभि व ऐरावत द्वारा कृष्ण का अभिषेक ), नारद १.७६.११५( शिव के अभिषेकप्रिय होने का उल्लेख ), २.६०+ ( जगन्नटथ क्षेत्र में कृष्ण, बलराम व सुभद्रा के अभिषेक उत्सव का वर्णन ), पद्म २.५.१००( देवों द्वारा वसुदत्त नामक अदिति व कश्यप - पुत्र का इन्द्रपदपर अभिषेक ), ५.४.४७( राम के राज्याभिषेक का संक्षिप्त कथन ), ६.४( जालन्धर के अभिषेक का वर्णन ), ६.२४३( राम का राज्याभिषेक ), ब्रह्म २.२६( ब्रह्महत्या के पश्चात् इन्द्र के अभिषेक पर गौतम व माण्डव्य की आपत्ति, अभिषेक जल से मालव देश की उत्पत्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१७( स्कन्द का अभिषेक ), ४.१०४( उग्रसेन का अभिषेक ), ब्रह्माण्ड ३.४.४३( शिष्य का अभिषेक ), भविष्य १.१७५+ ( अरुण द्वारा गरुड का अभिषेक ), ३.११९.५( राज्याभिषेक में मृत्यु व वैन्य पृथु की पूजा ), ४.१४१( यजमान के अभिषेक की विधि ), भागवत ४.१५+ ( पृथु का अभिषेक, देवों द्वारा भेंट, सूतों द्वारा स्तुति, पृथ्वी दोहन की कथा ), ८.१५( बलि का अभिषेक ), १०.२७( सुरभि व देवों द्वारा कृष्ण का अभिषेक ), मत्स्य ६८( मृत वत्सा स्त्री हेतु अभिषेक ), लिङ्ग १.४३( शिव द्वारा नन्दी का अभिषेक ), २.२७( शिव के अभिषेक की विधि ), वराह १८६( प्रतिमा का अभिषेक ), वामन ५७.५४( कार्तिकेय के अभिषेक का वर्णन ), विष्णु ५.२१( राज्याभिषेक ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०९( पृथु का राज्याभिषेक ), १.२५०( शक्र का अभिषेक ), २.१८+ ( अभिषेक काल व विधि ), २२१+ ( राज्याभिषेक विधि ), २.१६२( राजा का संवत्सर अभिषेक ), ३.११९.५( राज्याभिषेक में मृत्यु व वैन्य पृथु की पूजा ), शिव १.१६.१६( पूजा में अभिषेक से आत्मशुद्धि का कथन ), २.४.५( कार्तिकेय के अभिषेक का वर्णन ), ७.२.२०( शिष्य द्वारा आचार्य का अभिषेक ), ७.२.२०.८( ५ कलाओं के प्रतीक ५ घटों द्वारा शिष्य का अभिषेक ), स्कन्द १.२.३०( कुमार का अभिषेक, देवों द्वारा भेंट ), ३.१.१२( पराशर द्वारा मनोजव राजा का अभिषेक ), ४.१.२३( शिव द्वारा विष्णु का अभिषेक ), ६.१२९( याज्ञवल्क्य द्वारा मन्दिर स्तम्भ के अभिषेक की कथा ), योगवासिष्ठ ५.४१( प्रह्लाद का अभिषेक ), वा.रामायण ४.२६( सुग्रीव के राज्याभिषेक का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.९८( कार्तिकेय का सेनापति पद पर अभिषेक ), ४.१११( मुकुन्दविक्रम के राज्याभिषेक का वर्णन ), द्र. राज्याभिषेक, सोमाभिषेक ), Abhisheka
अभिष्टुत ब्रह्म २.९८( राजा अभिष्टुत के हयमेध में असुरों द्वारा विघ्न, त्वष्टा व विश्वरूप द्वारा रक्षा )
अभ्र ब्रह्माण्ड १.२.२२.२९( अभ्र की निरुक्ति - न भ्रश्यंति यतश्चापस्तदभ्रं कवयो विदुः । ), ३.४.४४.५४( लिपि न्यास के संदर्भ में एक व्यञ्जन के देवता का नाम ), भागवत २.६.५(केश, नख, अभ्र आदि की विद्युत जाति का उल्लेख), लिङ्ग १.५४.३९( अभ्र की प्रकृति के धूम की प्रकृति पर निर्भर होने का कथन - अतो धूमाग्निवातानां संयोगस्त्वभ्रमुच्यते॥ वारीणि वर्षतीत्यभ्रमभ्रस्येशः सहस्रदृक्॥ ), वायु ५१.२७( अभ्र की निरुक्ति : न भ्रश्यन्ति आप:, अभ्रों के प्रकार ), विष्णु २.९.१०( अनभ्र आकाशगंगा से वृष्टि की प्रशंसा ) Abhra
अभ्रम ब्रह्माण्ड २.३.७.३२९, २.३.७.३५५( गजों का राजा ), शिव २.५.८.१३( अभ्रमु : ऐरावत - पत्नी, त्रिपुर वधार्थ शिव के रथ पर युगान्त कोटि पर स्थिति )
अमर पद्म १.४०.९६( मरुतों में से एक ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.४९( अमरेश्वर : लिपि न्यास प्रसंग में एक व्यञ्जन के देवता ), भविष्य ४.१९५( अमर पर्वत की महिमा, मेरु पर्वत का नाम ), मत्स्य ८३.२७( अमर पर्वत पूजा विधि ), १७१.५२( मरुत्वती व कश्यप - पुत्र, मरुतों में एक का नाम ), वामन ९०.१३( निषध देश में विष्णु का अमरेश्वर नाम से वास ), स्कन्द ४.२.६९.११८( अमरेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : अमरत्व प्राप्ति ), ५.३.१९८.६६( अमल पर्वत पर उमा की रम्भा नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.१४५( अदिति द्वारा स्थापित अमरेश लिङ्ग का माहात्म्य : देवों का अमर होना ), ७.१.१०.८(अमरेश तीर्थ का वर्गीकरण – तेज), ७.१.१९४( देवों द्वारा स्थापित अमरेश लिङ्ग का माहात्म्य ), योगवासिष्ठ ६.२.९६( अमरत्व का प्रतिपादन ), लक्ष्मीनारायण २.२७०.६५( अमरा : देवमूल भक्त - कन्या, तप, श्रीहरि से विवाह ), ४.१०१.१३०( अमर्या : कृष्ण - पत्नी, अमृत व ध्रुव शेमुषी की माता ), कथासरित् ६.१.१४०( अमरगुप्त : राजा विक्रमसिंह का मन्त्री, राजा को वन में युद्ध विद्या के अभ्यास का परामर्श ), ८.३.१०१( अमृतबल नामक धनुषों की महिमा ), १२.३.८( अमरदत्त : मृगाङ्कदत्त का पिता ), १२.२.१५( अमरदत्त : अयोध्या का राजा, सुरतप्रभा - पति, मृगाङ्कदत्त - पिता ), १२.३६.१२५( अमरदत्त द्वारा स्वपुत्र मृगाङ्कदत्त के विवाह में सम्मिलित होने के लिए यात्रा ), १०.९.२२६( अमरनाथ मन्दिर स्थल पर हिरण्याक्ष राजकुमार द्वारा योगिनी की प्रतीक्षा ), Amara
अमरकण्टक कूर्म २.४०.९( अमरकण्टक पर्वत : नर्मदा नदी का स्थान ), देवीभागवत ७.३८.१९( अमरेश : चण्डिका देवी का वास स्थान ), पद्म २.२०.१४( सोमशर्मा द्विज द्वारा अमरकण्टक पर्वत पर दान - पुण्य करने से सुव्रत नामक दिव्य पुत्र प्राप्ति की कथा ), ३.१३+ ( अमरकण्टक पर्वत पर नर्मदा नामक गङ्गा का माहात्म्य, अन्य तीर्थ व नदियां, जलते हुए त्रिपुर के अंश के पतन का स्थान ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.४( पिण्डदान में अमरकण्टक का महत्त्व ), मत्स्य १८६.१२( अमरकण्टक पर्वत की महिमा ), १८८.७९( अमरकण्टक पर्वत पर बाण के त्रिपुर के ज्वाला प्रदीप्त अंश का पतन, महिमा ), वायु ७७.४/२.१५.४( अमरकण्टक पर्वत की महिमा ), स्कन्द ४.२.७४( अमरकण्टक पर्वत पर ओंकार क्षेत्र की महिमा : दमन व गर्ग का संवाद ), ५.३.१५.१५( अमरका शब्द की निरुक्ति : अमर देवता तथा का शरीर ), ५.३.२१( अमरकण्टक पर्वत का माहात्म्य ), ५.३.२८( त्रिपुर का ज्वलित भाग अमरकण्टक पर गिरने से जालेश्वर की उत्पत्ति ), ५.३.१९८.८०( अमरकण्टक तीर्थ में उमा की चण्डिका नाम से स्थिति का उल्लेख ) Amarakantaka
अमरावती ब्रह्मवैवर्त्त ४.४७.७१( विश्वकर्मा द्वारा इन्द्र की नगरी अमरावती का निर्माण ), ब्रह्माण्ड १.२.२१.३७( अमरावती पुरी में सूर्य के उदय व अस्त का वर्णन ), भागवत ८.१५.११( अमरावती पुरी की शोभा का वर्णन, बलि का अमरावती पर आक्रमण व अधिकार ), मत्स्य १२४.२७( अमरावती पुरी में सूर्य के उदय व अस्त का वर्णन ), स्कन्द ४.१.१०.१७( अमरावती पुरी प्राप्ति के उपायों का वर्णन ), ५.१.३६( उज्ययिनी का नाम ), ५.१.४६( अमरावती पुरी के नाम का हेतु : कश्यप व अदिति के पुत्रों/देवों का अमरत्व ) Amaraavatee/ amaravati
अमरी लक्ष्मीनारायण २.२९७.९८( अमरी पत्नियों के गृह में कृष्ण द्वारा नृत्य के कृत्य का उल्लेख )
अमर्क ब्रह्माण्ड २.३.७३.६४( शुक्राचार्य - पुत्र, शण्ड - भ्राता, असुरों का पुरोहित, देवों द्वारा यज्ञ में भाग दिए जाने पर असुरों का त्याग ), द्र. मर्क, शण्ड - अमर्क, Amarka
अमर्षण शिव ५.३९.३०( सन्धि - पुत्र, मरुत्वान् - पिता, इक्ष्वाकु वंश ),
अमल स्कन्द ५.३.१९८.६६( अमल पर्वत पर उमा की रम्भा नाम से स्थिति का उल्लेख )
अमा विष्णु २.१२.८(सूर्य की अमा नामक रश्मि में सोम के वास के कारण अमावास्या नाम ), स्कन्द ७.१.५७.५( सोम की कला अमा का उमा से तादात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.५०८.७(मद्रराज - सुता, जयसेन - पत्नी, गौरी पूजा से वैभव प्राप्ति, पूर्व जन्म का वृत्तान्त ) Amaa
अमावसु पद्म १.९( अच्छोदा कन्या की कथा ), ब्रह्माण्ड २.३.१०.५६( ऐल - पुत्र, अच्छोदा की आसक्ति की कथा ), २.३.१०.६८( अमावसु का उपरिचर वसु से साम्य? ), २.३.६६.२२( पुरूरवा व उर्वशी - पुत्र, भीम - पिता ), भविष्य ३.२.२२.१३( अमावसु पितर द्वारा यज्ञ में छागमेध का निर्देश, उपरिचर वसु से साम्य ), मत्स्य १४( अमावसु पितर द्वारा अच्छोदा कन्या की आसक्ति का तिरस्कार ), हरिवंश १.१८.३०( अमावसु पितर पर अच्छोदा कन्या की आसक्ति की कथा, उपरिचर वसु से साम्य ), १.२७.१( पुरूरवा - पुत्र, वंश वर्णन ), Amaavasu
अमावास्या कूर्म २.४१.१०४( भाद्रपद अमावास्या को दशाश्वमेधिक तीर्थ में स्नान ), गरुड १.११६.८( अमावास्या को भास्कर आदि वारों, नक्षत्रों, योगों की पूजा ), नारद १.२९.२७( सिनीवाली व कुहू अमावास्या में करणीय कृत्य ), १.१२४.८२( अमावास्या तिथि व्रतों का कथन ), पद्म १.९.१८( पितरों की कन्या अच्छोदा का रूप ), २.९२.४( अमा - सोम योग में गङ्गा में स्नान से पाप प्रक्षालन का कथन ), ३.२०.२१( भाद्रपद अमावास्या को दशाश्वमेध तीर्थ में स्नान ), ब्रह्माण्ड १.२.१०.६५( अमावास्या की महिमा, अमावास्या को ओषधि में सूर्य व चन्द्र के एक साथ आने का उल्लेख ), १.२.२८.४९( कुहू अमावास्या का काल ), भविष्य ४.९९.५६( अमावास्या को श्राद्ध, तर्पण की महिमा ), मत्स्य १४( अमावसु पितर की अच्छोदा कन्या से समागम की अनिच्छा से अमावास्या की उत्पत्ति ), १४१(अमावास्याकाल में पुरूरवा का सूर्य-चन्द्र दर्शन हेतु गमन, कुहू व सिनीवाली अमावास्या का काल ), वराह ३४( तन्मात्रात्मक रूप पितरों की तृप्ति के लिए ब्रह्मा द्वारा निर्दिष्ट तिथि ), वायु ५६.४२( अमावास्या काल का निरूपण ), ५६.५४( सिनीवाली अमावास्या काल का निरूपण ), विष्णु २.१२.८(सूर्य की अमा नामक रश्मि में सोम के वास के कारण अमावास्या नाम ), ३.१४.७( नक्षत्रों से योग के अनुसार अमावास्या तिथि की प्रशस्तता ), स्कन्द ५.१.२८.६०( सोमवती अमावास्या के माहात्म्य का वर्णन ), ५.१.३८.३९( श्रावण अमावास्या को अवन्ति मातृकाओं के दर्शन के फल का कथन ), ५.१.५६.२( क्षाता - क्षिप्रा सङ्गम? पर शनिवारी अमावास्या को श्राद्ध का फल : शनि पीडा से मुक्ति ), ५.२.४३.३७( मङ्गल व अमावास्या के संयोग पर खगर्ता - शिप्रा सङ्गम का माहात्म्य ), ५.३.५१.६( फाल्गुन अमावास्या के मन्वन्तरादि तिथि होने का उल्लेख ), ५.३.५८.५( चैत्र अमावास्या को भानुमती कन्या द्वारा शूलभेद तीर्थ में नगशृङ्ग से पात आदि का वर्णन ), ५.३.१०३.९६( अमावास्या को करणीय व अकरणीय कृत्यों का कथन ), ५.३.१४६.५५( वैशाख अमावास्या को गया में ब्रह्मशिला पर श्राद्ध के माहात्म्य का कथन ), ७.१.१०५.५२( ३०वां पितर कल्प : ब्रह्मा की कुहू का रूप ), ७.१.१३१( श्रावण अमावास्या को ध्रुवेश्वर लिङ्ग की पूजा ), ७.१.२७६.१४( पौष अमावास्या को उमापति की पूजा ), ७.१.२९६( आषाढ अमावास्या को ऋषितोया नदी में स्नान ), ७.३.४५( आश्विन् अमावास्या को देवखात तीर्थ में श्राद्ध ), योगवासिष्ठ ६.१.८१.११५टीका, लक्ष्मीनारायण १.२८०( विभिन्न मासों में अमावास्या का संक्षिप्त निरूपण ), ३.१०३.१०( अमावास्या को स्वर्ण गौ दान से सर्वकामों की प्राप्ति का उल्लेख ) Amaavaasyaa/ amavasya
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अमित नारद १.४६.३७( अमितध्वज : धर्मध्वज - पुत्र, खाण्डिक्य - पिता, केशिध्वज व खाण्डिक्य के संवाद का प्रसंग ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.६०( सुधर्मा गण देवों में से एक ), भागवत ९.१५.२( जय - पुत्र, पुरूरवा वंश ), कथासरित् १४.३.५६( अमितगति : चण्डसिंह - बन्धु, कैलास के उत्तर भाग पर आधिपत्य प्राप्ति के लिए तप ) Amita
अमिताभ नारद १.८५.११७( दिग्दलों में पूजनीय ४ देवताओं में से एक ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.५४( स्वारोचिष मन्वन्तर में १४ देव गण, नाम ), ३.४.१.१८( अमिताभ देवगण के अन्तर्गत २० नाम ), वायु १००.१६/२.३८.१६( अमिताभ देवगण के अन्तर्गत २० नाम ), विष्णु ३.१.२०( पांचवें रैवत मन्वन्तर में देवों का एक गण ), Amitaabha
अमित्रजित् भागवत ९.१२.१२( सुतपा - पुत्र, बृहद्राज - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), वायु ९९.२८६(सुपर्ण - पुत्र, भरद्वाज - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), स्कन्द ४.२.८२( कृष्ण भक्त अमित्रजित् का नारद से मिलन, मलयगन्धिनी कन्या की रक्षा व परिणय ), ५.२.४६.३( राजा अमित्रजित् द्वारा मलयगन्धिनी कन्या की कालकेतु दानव से रक्षा का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.४७४( वही), Amitrajit
अमील कथासरित् ८.२.१९२( हिरण्याक्ष - पुत्र, द्वितीय पाताल में वास, स्वकन्या कलावती का चक्रवर्ती सूर्यप्रभ से विवाह करना )
अमृत पद्म १.४७.१४०( गरुड द्वारा माता हेतु स्वर्ग से अमृत हरण की कथा ), २.४( अमृत कुम्भ की रक्षा के रूप में सोमशर्मा की परीक्षा की कथा ), ब्रह्म २.३६( राहु द्वारा अमृत भक्षण पर विष्णु द्वारा शिरच्छेदन, ईश्वरी नामक शक्ति द्वारा राहु की देह से अमृत का पृथक्करण, अमृत से प्रवरा/अमृता नदी का प्राकट्य ), ब्रह्माण्ड ३.४.१०.१( अमृत वितरण हेतु विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण की कथा ), भागवत ८.८+ ( समुद्र मन्थन से अमृत की उत्पत्ति व मोहिनी द्वारा वितरण की कथा ), मत्स्य २५१( समुद्र मन्थन से अमृत का प्राकट्य, देवों द्वारा पान ), वायु ३१.८( अमृतवान् : त्विषिमान् नामक १२ देवगण में से एक ), स्कन्द ३.१.१३.६( अमृतवापी का माहात्म्य : अगस्त्य - अनुज द्वारा अमृतत्व प्राप्ति के कारण नामकरण ), ३.१.२८( साध्यामृत तीर्थ का माहात्म्य : पुरूरवा द्वारा तीर्थ में स्नान से उर्वशी की पुन: प्राप्ति की कथा ), ४.१.४१.१०६( योग में अमृत पान की विधि ), ४.१.५०( गरुड द्वारा अमृत हरण की कथा ), ४.२.७०.५४( अमृतेश्वरी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य : अमृतत्व प्राप्ति ), ४.२.९४( अमृतेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : सनारु - पुत्र उपजङ्घनि का पुनर्जीवन ), ५.१.५१( सर्पों से भिक्षा प्राप्त न होने पर रुद्र द्वारा अमृतकुम्भों से अमृत का पान, सर्पों द्वारा शिप्रा नदी जल से कुम्भों का पूरण करने पर कुम्भों का पुन: अमृत से पूर्ण होना ), ५.३.१९८.८७( वेणा तीर्थ में उमा की अमृता नाम से स्थिति का उल्लेख ), महाभारत वन ३१३.६५( गौ दुग्ध के अमृत होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), लक्ष्मीनारायण २.२८.२४( आमृतिक जाति के नागों का गीतकार होना ), २.१४०.९( अमृत प्रासाद के लक्षण ),२.१४०.२५( अमृतोद्भव प्रासाद के लक्षण ), ३.३२.१०( अथर्वा अग्नि - पुत्र ), कथासरित् ७.२.३१( रत्नाधिपति राजा की पत्नी अमृतलता की पातिव्रत्य परीक्षा में असफलता ), १०.९.२४२( अमृततेज : वज्रकूट नगर के राजा अमृततेज का मुनि के शाप से हिरण्याक्ष बनना, शाप से मुक्ति पर मृगाङ्कलेखा से विवाह ), द्र. समुद्र मन्थन Amrita
अमृतप्रभ भागवत ८.१३.१२( आठवें सावर्णि मन्वन्तर में देवों का एक गण ), कथासरित् ८.२.३४७( अमृतप्रभा : पर्वत मुनि की कन्या, महल्लिका - सखी, सूर्यप्रभ द्वारा प्राप्ति ), १४.३.१२१( विद्याधरराज, वह्नि पर्वत पर क्षिप्यमाण नरवाहनदत्त की रक्षा )
अमृता ब्रह्माण्ड १.२.१९.१९( प्लक्ष द्वीप की एक नदी ), १.२.२४.२७( वर्षा करने वाली सूर्य की नाडियों/रश्मियों का समूह ), २.३.७.१९( मेन व मेनका - पुत्री, १४ अप्सराओं में से एक ), ३.४.१९.२०( अमृताकर्षिणी : भण्डासुर वध हेतु १६ चन्द्र कला रूपी देवियों में से एक ), ३.४.३५.२९( अमृतेश्वरी : बुद्धि शाला में आनन्दवापी में नौका में विहार करती हुई वारुणी देवी का नाम ), ३.४.३६.७१( अमृताकर्षिणी : भण्डासुर वध हेतु १६ चन्द्र कला रूपी देवियों में से एक ), ३.४.४४.१२०( अमृताकर्षिणी : भण्डासुर वध हेतु १६ चन्द्र कला रूपी देवियों में से एक ), मत्स्य १३.४२( विन्ध्य में देवी का अमृता नाम ), १३.४९( वेणा तीर्थ में सती देवी का नाम ), १२२.३३(शाक द्वीप में गङ्गा के सात प्रकारों में से एक, वेणु का उपनाम ), वायु ४९.१७( प्लक्ष द्वीप की एक नदी ), ६९.५६( जल/अमृत से उत्पन्न कन्या ), विष्णु २.४.११( प्लक्ष द्वीप की एक नदी ), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.५( अमृता नामक शान्ति के चित्र वर्ण व अधिदेवता का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३८५.३८(अमृता का कार्य), Amritaa
अमोघा पद्म १.५५( शन्तनु - पत्नी, पति द्वारा ब्रह्मा से समागम की अनुमति, लौहित्य तीर्थ की उत्पत्ति ),
अमोघाक्ष मत्स्य १३.३५( अमोघाक्षी : विपाशा तीर्थ में सती का नाम ), स्कन्द ५.३.१९८.७३(विपाशा तीर्थ में उमा की अमोघाक्षी नाम से स्थिति का उल्लेख )
अमोहक पद्म ३.१८.१०१( तापस तीर्थ में पितरों का नाम ), मत्स्य १९१.१०५( ब्रह्म तीर्थ का दूसरा नाम, अमोहक तीर्थ में गज शिला पर पिण्ड दान का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण २.२६८(अमोहाक्ष : राजा, प्रबोध - शिष्य, गुरु द्वारा चतुर्भुज रूप में दर्शन, गुरु - सेवा, बन्धन से मुक्ति हेतु गुरु का अरण्य गमन ), Amohaka
अम्बर ब्रह्म २.७९.१०( गौतम के उत्तर तट पर नृसिंह द्वारा अम्बर्य दैत्य का वध ), भागवत ६.१०.१९( वृत्रासुर - सेनानी, इन्द्र से युद्ध ), मत्स्य १३.२७( अम्बर तीर्थ में सती का विश्वकाया नाम से वास ), वायु ४२.४५( मेरु कूट से नि:सृत एक नदी, तटवर्ती स्थान व माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण २.७७.५८( कृष्णाम्बर दान से वस्त्र निर्माण के पाप का क्षालन ), २.२९३.१०५( बालकृष्ण व लक्ष्मी के विवाह में काल द्वारा युगल को अम्बर भेंट ), २.२९३.१०९(भूतप्रेत गण द्वारा बालकृष्ण व लक्ष्मी के विवाह में अम्बर भूषा भेंट करना ), कथासरित् १५.२.३५(पोत्रराज विद्याधर - पुत्री, मन्दरदेवी - सखी, नरवाहनदत्त से विवाह ); द्र. अन्तरिक्ष, आकाश, चिदम्बर, चिदाकाश Ambara
अम्बरीष गर्ग १.५.२६( अम्बरीष का युयुधान रूप में अवतरण ), पद्म ५.८४( अम्बरीष का नारद से हरि भक्ति विषयक प्रश्न, वैष्णव धर्म का कथन ), ५.९५( नारद द्वारा अम्बरीष को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, देवदास हेमकार द्वारा स्वर्ण मूर्ति निर्माण ), ब्रह्म १.१०६.१२३( स्वर्णहारक के अम्बरीष नामक नरक में यातना भोगने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२५( एकादशी व्रत के काल में दुर्वासा के आगमन का आख्यान ), ४.५०( अम्बरीष द्वारा दुर्वासा को केशयुक्त भोजन प्रस्तुत करने पर दुर्वासा का कोप ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०८( ३३ मन्त्रकर्ता आङ्गिरसों में से एक ), २.३.७.३६( कद्रू के पुत्रों में एक प्रधान नाग ), २.३.३४.३९( अम्बरीष की उत्तमा प्रकार की भक्ति ), २.३.६३.६( नाभाग - पुत्र, विरूप - पिता, आङ्गिरस उपनाम ), २.३.६३.७२( मान्धाता व बिन्दुमती - पुत्र, नर्मदा - पति, युवनाश्व - पिता ), २.३.६३.१७२( नाभाग - पुत्र, सिन्धुद्वीप - पिता ), भागवत ९.४( दुर्वासा द्वारा कृत्या की उत्पत्ति का प्रसंग ), लिङ्ग २.५( त्रिशङ्कु व पद्मावती - पुत्र, अम्बरीष की कन्या श्रीमती के स्वयंवर में नारद को वानर मुख प्राप्ति की कथा ), वायु २८.२६( पुलह व क्षमा - पुत्र ), ५९.९९( ३३ मन्त्रकर्ता अङ्गिरसों में से एक ), ६९.७३/२.८.७०( एक प्रधान काद्रवेय नाग ), शिव ३.१९( दुर्वासा द्वारा अम्बरीष की परीक्षा ), ३.२९.३( नभग - पौत्र ), ५.२२.३( देह रूपी पाक/पचन पात्र अम्बरीष का कथन ), ५.३६.२३( अम्बरीष के बाह्ल - पुत्र होने का उल्लेख ), स्कन्द २.२.८.८५+ ( दुराचारी अम्बरीष की पुरुषोत्तम क्षेत्र में मुक्ति, भगवद् स्तुति ), २.७.१+ ( अम्बरीष का नारद से वैशाख माहात्म्य विषयक संवाद ), ३.२.९.४०( गार्ग्य गोत्र के ऋषियों का एक प्रवर ), ३.२.९.८९( आङ्गिरस गोत्र का एक प्रवर, गुणों का कथन ), ४.२.५८.४९( अम्बरीष तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : कालिमा से मुक्ति ), ४.२.७७.६९( अम्बरीषेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : गर्भवास से मुक्ति ), ४.२.८४.१६( अम्बरीष तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : गर्भवास से मुक्ति ), ६.९३.१९( अम्बरीष द्वारा तप से सुवर्चा पुत्र की प्राप्ति, पुत्र के कुष्ठग्रस्त होने पर पाताल गङ्गा जल में स्नान से व्याधि से मुक्ति ), ७.३.१३(अम्बरीष द्वारा हृषीकेश की आराधना, क्रिया योग उपदेश की प्राप्ति ), वा.रामायण १.६१( यज्ञ पशु की चोरी पर अम्बरीष द्वारा ऋचीक - पुत्र शुन:शेप को यज्ञ पशु बनाना, विश्वामित्र द्वारा शुन:शेप की रक्षा ), लक्ष्मीनारायण १.४११( अम्बरीष - कन्या श्रीमती के स्वयंवर में नारद व पर्वत को वानर मुख प्राप्ति की कथा ), १.४७६( एकादशी व्रत के पारण पर दुर्वासा का कोप, दुर्वासा द्वारा उत्पन्न कृत्या से कृष्ण के चक्र द्वारा रक्षा ), १.५५३.६३( अम्बरीष तीर्थ का माहात्म्य : अम्बरीष द्वारा विष्णु दर्शन हेतु तप, विष्णु द्वारा मुक्ति के उपाय का कथन ), १.५५९( अम्बरीष के यज्ञ में प्रतिग्रह प्राप्त करने से ब्राह्मण का मृत्यु - पश्चात् ब्रह्मराक्षस बनना ), २.२८.२१( अम्बरीष जाति के नागों का सूतकार व वाहन - रक्षक बनना ) Ambareesha/ ambarisha
अम्बष्ठ गरुड १.९६.२( विप्र द्वारा वैश्य स्त्री से उत्पन्न वर्णसंकर सन्तान का नाम ), गर्ग ७.१०.१८( केरल देश के राजा अम्बष्ठ द्वारा प्रद्युम्न को भेंट ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१८( विप्र द्वारा वैश्य स्त्री से उत्पन्न वर्णसंकर संतान का नाम ), भागवत १०.४३.२( कुवलयपीड हाथी का महावत, कृष्ण द्वारा वध ), १०.८३.२३( अम्बष्ठ देश के राजा द्वारा कृष्ण - पत्नी लक्ष्मणा के स्वयंवर में मत्स्य वध में असफलता ), मत्स्य ४८.२१( अम्बष्ठ देश के राजा सुव्रत का उल्लेख ) Ambashtha
अम्बा अग्नि ५०.३२( अम्बाष्टक देवियों की प्रतिमाओं के लक्षण ), देवीभागवत १.२०.४१(काशिराज - कन्या अम्बा की शाल्व पर आसक्ति, भीष्म द्वारा हरण व त्याग ), ७.३८.१०( नील पर्वत पर नीलाम्बा देवी का वास ), १२.१०( अम्बा, दुला, नितत्नि आदि वर्षा ऋतु की १२ शक्तियां ), ब्रह्माण्ड ३.४.८.३३( मैथुन कर्म में २५ तत्त्वों को सुख देने के लिए अम्बा - सदाशिव का ध्यान ), ३.४.३३.१७( गोमेदक शाला में कालसंकर्षिणी अम्बा की भक्ति ), भविष्य ३.१.६.४९( अवन्तिका के प्रमर नृप का अम्बावती पुरी में निवास करके सुखी होना ), स्कन्द १.२.६.१०५( माता की अम्बा संज्ञा का निरूपण : अङ्गों का वर्धन करने वाली ), ६.५७( अम्बा द्वारा आत्मघात पर भीष्म द्वारा पाप निवारण के लिए तीर्थ यात्रा ), ६.८८( चमत्कार नृप की कन्या, काशिराज - पत्नी, पति की मृत्यु पर शत्रु वधार्थ देवी की आराधना, देवी द्वारा मातृकाओं की सृष्टि, मातृकाओं के नियन्त्रण के लिए अम्बा देवी द्वारा स्व पादुकाओं की स्थापना ), ६.११६( रेवती द्वारा वंश नाश से मुक्ति हेतु अम्बा देवी की आराधना), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.५१टीका(रुद्र की २ प्रजनन शक्तियों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.२८३.५८( अम्बा द्वारा बालकृष्ण को तेजोमणि देने का उल्लेख ), ४.१०१.१२३( कृष्ण - पत्नी, आम्बलि व बालकेशी युगल की माता ), ३.१००.१३७( मनोजित् शिल्पी की भार्या, दिशांश ककुब् की माता ), द्र. जगदम्बा, त्र्यम्बक, बालाम्बा Ambaa
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अम्बालिका देवीभागवत १.२०.७०( काशिराज - कन्या, विचित्रवीर्य - पत्नी, पति की मृत्यु पर व्यास से पाण्डु पुत्र की उत्पत्ति ), विष्णु ४.२०.३५( वही), स्कन्द ५.१.३१.८०( समाधि नियम से अम्बालिका के दर्शन का माहात्म्य ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(रुद्र की २ प्रजनन शक्तियों में से एक), लक्ष्मीनारायण ४.४६.६४( स्वर्णकार - स्त्री, उपनाम विनोदिनी, कीर्तन में समाधि की उपलब्धि ), कथासरित् ६.४.२५( राजा प्रसेनजित् के अम्बा - अम्बालिका के कुल में जन्म का उल्लेख ) Ambaalikaa
अम्बावृद्धा स्कन्द ६.८८( काशिराज - पत्नियों अम्बा व वृद्धा के तप से अम्बावृद्धा देवी की उत्पत्ति, शत्रुओं के नाश हेतु मातृकाओं की सृष्टि, मातृकाओं को नियन्त्रित करने के लिए स्व पादुकाओं की स्थापना, पादुका पूजन का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.४.९४( वही)
अम्बिका देवीभागवत १.२०.६७( काशिराज - कन्या, विचित्रवीर्य - पत्नी, पति की मृत्यु पर व्यास से धृतराष्ट्र पुत्र की उत्पत्ति ), ३.१९.३४( कवच में अम्बिका से अग्र भाग की रक्षा की प्रार्थना ), ५.२२.४३( शुम्भ - निशुम्भ वध हेतु देवों द्वारा जगदम्बा की स्तुति पर अम्बिका देवी का प्राकट्य ), ५.२३+ ( पार्वती के शरीर से मनोहर अम्बिका रूप के नि:सृत होने पर शेष शरीर का काली देवी में रूपान्तरण, अम्बिका पर शुम्भ - निशुम्भ की आसक्ति की कथा ), ५.२८( अम्बिका द्वारा शुम्भ - सेनानी रक्तबीज से युद्ध व उसका वध ), ५.२९.२२( अम्बिका द्वारा रक्तबीज के रक्त के पान हेतु चामुण्डा को मुख का विस्तार करने का आदेश ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३९.१७( अम्बिका द्वारा अधोदिशा की रक्षा ), ब्रह्माण्ड १.२.९.५( अम्बिका के योनिभूत गायत्री, त्रिष्टुप व जगती छन्द ), १.२.१९.८९( आम्बिकेय : शाक द्वीप का एक पर्वत ), भागवत ३.१२.१३( रुद्र की ११ पत्नियों में से एक ), ६.१७.१७( पार्वती का नाम, अम्बिका द्वारा राजा चित्रकेतु को शाप ), १०.२.१२( देवकी के गर्भ का कर्षण करने वाली योगमाया का एक नाम ), १०.३४( अम्बिका वन में सर्प द्वारा नन्दी के पाद का ग्रहण, कृष्ण के पाद स्पर्श से सर्प का रूपान्तरण होने की कथा ), मत्स्य १२२.१६( आम्बिकेय : शाक द्वीप का एक पर्वत, सुमना उपनाम, वराह द्वारा हिरण्याक्ष के वध का स्थान ), मार्कण्डेय ८५.४०+ /८२.४३+ ( पार्वती के शरीरकोश से निर्गत अम्बिका की कौशिकी नाम से ख्याति, चण्ड - मुण्ड द्वारा सुन्दर अम्बिका के दर्शन आदि ), वामन ५७.६९( अम्बिका द्वारा स्कन्द को २ गण प्रदान करना ), विष्णु ४.२०.३६(अम्बिका द्वारा रक्तबीज के रक्त के पान हेतु चामुण्डा को मुख का विस्तार करने का आदेश ), स्कन्द १.२.३६.२४( मही - सागर संगम पर देवों द्वारा सिद्धाम्बिका की स्तुति ), ४.१.२९.३८( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.२१६.८९( अम्बिक : कायनी नगरी के पारावार पिब राजा के गुरु ), कथासरित् ७.८.५६( पार्वती का नाम, राजा परित्याग सेन द्वारा अम्बिका की आराधना से २ पुत्रों की प्राप्ति ) Ambikaa
अम्बु गरुड १.९६.३८( अम्बु में थूकने, मल - मूत्र त्याग करने का निषेध ), ब्रह्माण्ड २.३.७.९८( अम्बुक : ९ ब्रह्मराक्षसों में से एक, ब्रह्मधान - पुत्र ), भागवत ८.१३.२०( अम्बुधारा : आयुष्मान् - पत्नी, ऋषभ अवतार की माता ), मार्कण्डेय १०.५०( भुक्त अन्न से निर्मित अम्बु का उदान वायु द्वारा अधोगति के निरोध का कथन ), विष्णु ३.१२.२७( अम्बु में थूकने, मल - मूत्र त्याग करने का निषेध ), स्कन्द ६.४६( अम्बुवीचि : बलभद्र नृप - पुत्र, सरस्वती तीर्थ में स्नान से मूकत्व की समाप्ति ), द्र. कुशाम्ब, कौशिकाम्ब Ambu
अम्भः ब्रह्माण्ड १.१.५.१३३( अम्भः की व्युत्पत्ति/निरुक्ति ), १.२.६.५४(अम्भः की निरुक्ति ), १.२.८.३१(अम्भः की रक्षा करने के कारण राक्षस संज्ञा), १.२.८.३२( अम्भः को क्षीण करने से यक्ष संज्ञा), ३.४.१.१७( अम्भ की निरुक्ति ), स्कन्द २.२.७.२६(रोहिण कुण्ड के कारण- अम्भों द्वारा पूर्ण होने का उल्लेख), ३.१.४४.४३(कुबेर द्वारा प्रदत्त अम्भः से अन्तर्हित भूतों के दर्शन का कथन) Ambhah
अम्लिका स्कन्द २.१.१०( अम्लिका/इमली वृक्ष के श्रीनिवास को प्रिय होने का उल्लेख )
अयन ब्रह्माण्ड १.२.२१.८८( सूर्य की २ अयनों में गति का वर्णन ), १.२.२८.१७( अयन : अब्द/संवत्सर के पुत्र ), मत्स्य ५३.४८( अयन काल में कूर्म पुराण के दान का माहात्म्य ), २०३.११( १२ साध्य देवों में से एक ), विष्णु १.३.१०( दक्षिणायन व उत्तरायण का देवों के रात्रि व दिन होना ), २.८.३१( सूर्य की दक्षिण व उत्तर अयनों में गति का वर्णन ), २.८.८१( उत्तरायण व दक्षिणायन के मासों का कथन ), द्र. उत्तरायण, दक्षिणायन Ayana
अयशोलेखा कथासरित् ७.५.२४, ७.५.२०६( राजा वीरभुज की पत्नी, निर्वासभुज - माता, सपत्ना गुणवरा पर मिथ्या दोष के आरोपण की कथा )
अयस अग्नि १६९.३२( अयस् हरण पर प्रायश्चित्त का विधान ), १७३.४३( वही), कूर्म २.३४.६(वही), मत्स्य २२७.४६( वही), मार्कण्डेय १५.२५( अयस् हरण पर वायस योनि की प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.९२.२२( यम के वाहन महिष के आयसी खुरों का उल्लेख ), द्र. लोह, लौह Ayas
अयस्पति हरिवंश १.२.९( उत्तानपाद व सूनृता के ४ पुत्रों में से एक, तुलनीय : अपस्यति - ध्रुवं व कीर्तिमन्तं च शिवं शान्तमयस्पतिम्। उत्तानपादोऽजनयत् सूनृतायां प्रजापतिः ।। )
अयुज लक्ष्मीनारायण ३.३२.२०( आरणेय अग्नि - पुत्र )
अयुत लक्ष्मीनारायण १.३८२.१६५(ऋषियों के शिष्यों की अयुत में गणना)
अयोगन्ध स्कन्द ४.२.६९.२०( अयोगन्धेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : पितरों का उद्धार )
अयोध्या गर्ग ५.१७.३३( अयोध्या पुर वासिनी गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया ), पद्म ५.३+ ( राम के वन से प्रत्यागमन पर अयोध्या वासियों की स्थिति ), ६.२२८.११( अयोध्या की वैकुण्ठ में स्थिति ), ब्रह्माण्ड २.३.४७.७५+ ( तालजङ्घ आदि हैहय राजाओं द्वारा अयोध्या से राजा बाहु का निष्कासन, सगर द्वारा अयोध्या से तालजङ्घ आदि शत्रुओं का निष्कासन ), ३.४.४०.९२( अयोध्या में मनुष्यों द्वारा अधिदेवता ललिता देवी की अर्चना ), भविष्य २.२.८.१२९( अयोध्या में महापौषी? पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख ), वायु ९९.२८२/२.३७.२७६( अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशी राजाओं के नाम ), १०४.८१/२.४२.८१( अयोध्या पीठ की नासिका पुट में स्थिति ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३( अयोध्या का वर्णन ), १.२४+ ( अयोध्या में वसन्त, ग्रीष्म का वर्णन ), स्कन्द २.८.१+ ( अयोध्या का माहात्म्य), २.८.१.६०(अयोध्या शब्द की निरुक्ति ), २.८.२( अयोध्या के अन्तर्गत तीर्थ ), २.८.१०, ३.१.५.७७( अलम्बुसा अप्सरा का अयोध्यापति कृतवर्मा की कन्या मृगावती के रूप में जन्म ), ५.२.७३.२( अयोध्या के राजा वीरकेतु द्वारा करभ/उष्ट्र का पीछा करने और महाकालवन में गमन से चक्रवर्तित्व प्राप्त करने का वृत्तान्त ), ५.२.८४( अयोध्या के राजा परीक्षित द्वारा मण्डूक - कन्या की प्राप्ति व विहार की कथा ), ६.१०९( अयोध्या तीर्थ में रोहण लिङ्ग ), वा.रामायण १.५( दशरथ - पालित अयोध्या का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.१२५.३२( महावैकुण्ठ के अन्तर्गत व्यूह में अयोध्या की शोभा का वर्णन ), कथासरित् १२.२.१५( अयोध्या के राजा मृगाङ्कदत्त द्वारा शशाङ्कवती को प्राप्त करने की कथा ), १२.३.३०( अयोध्या के ब्राह्मण दमधि के पुत्र श्रुतधि के शुष्क वृक्ष बनने व उद्धार होने की कथा ), १२.२१.३( अयोध्या में शूल पर आरोपित चोर पर वणिक् - पुत्री के आसक्त होने की कथा ), १६.२.१४७( वही) Ayodhyaa
अयोनिज पद्म १.४०( सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक ), स्कन्द ५.३.११४( अयोनिज तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.१२६( अयोध्या तीर्थ का माहात्म्य ),
अयोमुख पद्म १.६.५०( दनु - पुत्र ), भविष्य ३.४.२३.१८( बाह्लीक राजा का रूप?, राजा पुष्यमित्र द्वारा अयोमुख पर विजय ), भागवत ६.६.३०( दनु व कश्यप के ६१ पुत्रों में से एक ), ६.१०.१९(वृत्रासुर - सेनानी ), ८.१०.१९( बलि - सेनानी ), मत्स्य ६.१७( दनु व कश्यप के १०० पुत्रों में से एक ) Ayomukha
अयोमुखी ब्रह्माण्ड २.३.५९.१३( कलि - पुत्र विघ्न की पत्नी ), मत्स्य १७९.२९( अन्धकासुर का रक्त पान करने के लिए शिव द्वारा सृष्ट एक मातृका ), वायु ८४.१३/२.२२.१३( कलि - पुत्र विघ्न की पत्नी ), वा.रामायण ३.६९( लक्ष्मण द्वारा अयोमुखी राक्षसी का निग्रह ) Ayomukhee
Esoteric aspect of Ayomukhi
अय: शिव ५.३१.२४( ८ वसुओं में से एक, वैतण्ड आदि ४ पुत्रों के नाम )
अय:शङ्कु वामन ९.२९( अन्धक - सेनानी, सिंह वाहन ), विष्णुधर्मोत्तर १.७०( परशुराम द्वारा अय:शङ्कु दैत्य का वध )
अय:शिरा वामन ६८.६०( अन्धक - सेनानी, पाशधारी, विशाख आदि से युद्ध ), ६९.१८( अय:शिरा द्वारा नन्दी का पीछा करना )