यइल्लक कथासरित् ३.१.८४(वैश्य - पुत्र, पति - पत्नी की परस्पर अनुरक्तता, विरह से दोनों की मृत्यु )



      यकृत वामन ७२.५८ (ऋतध्वज द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु अस्थि, यकृत आदि का अग्नि में होम, मरुतों की उत्पत्ति - अस्थीनि रोमकेशांश्च स्नायुमज्जायकृद्घनम्। शुक्रं च चित्रगौ राजा सुतार्थी इति नः श्रुतम्।।), महाभारत वन २२२.१४ ( यकृत्कृष्णायसं तस्य त्रिभिरेव बभुः प्रजाः । नखास्तस्याभ्रपटलं शिराजालानि विद्रुमम् ॥), वा.रामायण ६.५८.३० (युद्धभूमि की नदी से तुलना - यकृत्प्लीहमहापङ्कां विनिकीर्णान्त्रशैवलाम्। भिन्नकायशिरोमीनामङ्गावयवशाड्वलाम्), विष्णुधर्मोत्तर १.२३९.७ (विराट् पुरुष के यकृत-क्लोम में सुवर्ण दानों की स्थिति का उल्लेख - सुवर्णस्य च दानानि यकृल्लोमान्तराणि च । ), २२.११५.६१ (हृदयपद्म के परितः यकृत आदि की स्थिति - तस्य वामे तथा प्लीहा दक्षिणे च तथा यकृत् ॥ दक्षिणे च तथा क्लोम पद्मस्यैवं प्रकीर्तितं ।) yakrita


      यक्ष अग्नि ८४.३२(८ देवयोनियों में से तृतीय), ३१३, ३२५.१५(यक्षांश मन्त्र के भूषणप्रिय होने का उल्लेख - रुद्रांशको भवेद्वीर इन्द्रांशश्चेश्वरप्रियः । नागांशो नागस्तब्धाक्षो यक्षांशो भूषणप्रियः ।।), देवीभागवत १२.८.१९(भगवती जगदम्बा द्वारा धारित रूप ; यक्ष द्वारा वायु व इन्द्र के गर्व का खण्डन), १२.१०.८८(उत्तर दिशा में स्थित यक्षलोक का वर्णन), ब्रह्म २.३८(सुमन्यु नामक यक्ष और समा नामक यक्षिणी द्वारा इल राजा का उमावन में प्रवेश कराना, इल राजा के इला होने तथा पुरूरवा की उत्पत्ति की कथा), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६.१३७(पार्वती के व्रत में यक्षों के वस्तुवाहक होने का उल्लेख - वस्तूनां वाहका यक्षास्तदध्यक्षः षडाननः ।।), ४.१७.९(विश्वकर्मा द्वारा वृन्दावन नामक नगर निर्माण का कार्य प्रारम्भ करने पर यक्ष समूहों का विविध मणियों और आभूषणों को लेकर आना), ४.६३, ब्रह्माण्ड १.२.८.३४(क्षपणार्थक क्ष धातु से यक्ष शब्द की उत्पत्ति - य एष क्षीतिधातुर्वै क्षपणे स निरुच्यते । रक्षणाद्रक्ष इत्युक्तं क्षपणाद्यक्ष उच्यत ॥), २.३.७.३७(खशा - पुत्र, स्वरूप का कथन - मातर्भक्षेत्यथोक्तो वै खादने भक्षणे च सः । भक्षावेत्युक्तवानेष तस्माद्यक्षोऽभवत्त्वयम् ॥), २.३.७.१००(यक्ष की क्रतुस्थला अप्सरा पर आसक्ति, यक्ष द्वारा वसुरुचि गन्धर्व के रूप में अप्सरा से रमण, रजतनाभ पुत्र की उत्पत्ति), २.३.७.११७(क्रतुस्थला अप्सरा से यक्षों की उत्पत्ति, वंश वर्णन), २.३.७.१६२(यक्षाः पुण्यजना नामपूर्णभद्राश्च ये स्मृताः । यक्षाणां राक्षसानां च पौलस्त्यागस्तयश्च ये ॥ नैरृतानां च सर्वेषां राजाभूदलकाधिपः ।यक्षादृष्ट्या पिबन्तीह नॄणां मांसमसृग्वसे ॥), २.३.८.७(अपां च वरुणं राज्ये राज्ञां वैश्रवणं तथा ॥ यक्षाणां राक्षसानां च पार्थिवानां धनस्य च ।), भविष्य १.५७.१३(यक्षों हेतु विविध अन्नों की बलि का उल्लेख), १.१८०.५(अरुण द्वारा गरुड हेतु सूर्य आराधक यक्षों - यक्षिणियों से शान्ति की प्रार्थना), ३.३.३१.७३(करभ नामक यक्षकिंकर द्वारा प्रभावती व नृहर नामक दम्पती का पीडन, कृष्णांश द्वारा मोचन), ३.४.२३.९९(यक्षों व राक्षसों की वैश्य वर्ण द्वारा तृप्ति होने का उल्लेख - तृप्तिं यान्ति पितुर्वृन्दा ब्राह्मणैः क्षत्रियैः सुराः । वैश्यैश्च यक्षरक्षांसि क्षुद्रैर्दैत्याश्च दानवाः ।), भागवत २.३.८(रक्षा हेतु पुण्यजनों की उपासना का निर्देश - धर्मार्थ उत्तमश्लोकं तन्तुं तन्वन् पितॄन् यजेत् । रक्षाकामः पुण्यजनान् ओजस्कामो मरुद्‍गणान् ॥), ४.१०(गुह्यकों का ध्रुव से युद्ध व पराजय), ७.१.८(तम से यक्षों व राक्षसों की वृद्धि का उल्लेख), ७.८.५२(यक्षों द्वारा नृसिंह की स्तुति - वयमनुचरमुख्याः कर्मभिस्ते मनोज्ञैस् त इह दितिसुतेन प्रापिता वाहकत्वम्। स तु जनपरितापं तत्कृतं जानता ते नरहर उपनीतः पञ्चतां पञ्चविंश ), मत्स्य १९.८(यक्षों हेतु श्राद्धान्न के पान रूप में रूपांतरित होने का उल्लेख), ४७.११९(कुण्डधार यक्ष द्वारा गिराई जाती हुई कणधूम का शुक्राचार्य द्वारा पान), १४८.८९(यक्ष गण के कृष्णाम्बर होने तथा ध्वजा पर ताम्र उलूक चिह्न होने आदि का उल्लेख - यक्षाः कृष्णाम्बरभृतो भीमबाणधनुर्द्धराः। ताम्रोलूकध्वजा रौद्रा हेमरत्न विभूषणाः ।।), १५७.१८(ब्रह्मा द्वारा कौशिकी देवी को किंकर रूप में पञ्चाल नामक मायावी यक्ष प्रदान), १७१.६१(क्रोधा से यक्ष गणों की उत्पत्ति का उल्लेख), १८०(हरिकेश नामक यक्ष द्वारा तप, शिवाराधन, शिव से वर प्राप्ति), १८९(कुबेर का तप से यक्षाध्यक्ष बनना), मार्कण्डेय ५०.४२(दुःसह नामक यक्ष हेतु भोजन का निर्धारण – अश्रद्धापूर्वक हुत, दत्त, उच्छिष्ट आदि), लिङ्ग १.५३.५५(देवों द्वारा परमशिव के यक्ष रूप में दर्शन, देवों की शक्तिहीनता, यक्ष का अदृश्य होना, अम्बिका का आविर्भाव, अम्बिका द्वारा यक्ष के वास्तविक स्वरूप का कथन), वराह १४४.१७८(यक्ष तीर्थ में स्नान से यक्ष लोक की प्राप्ति, यक्ष तीर्थ में प्राण त्यागने वाले शिव भक्त को यक्ष लोक का अतिक्रमण कर ईश लोक की प्राप्ति, हंस तीर्थ का अपर नाम?), वामन ९.२१(यक्षों के वाहन नर होने का उल्लेख - कुञ्जरस्थाश्च वसवो यक्षाश्च नरवाहनाः।), १७.३(यक्षराज मणिभद्र से वट वृक्ष की उत्पत्ति का उल्लेख - यक्षाणामधिपस्यापि मणिभद्रस्य नारद।
      वटवृक्षः समभवत् तस्मिंस्तस्य रतिः सदा।। ), २२.३९(विष्णु द्वारा राजा कुरु को कुरुजाङ्गल की रक्षा हेतु चन्द्र नामक यक्ष प्रदान), ३४.४४(पुष्कर तीर्थ में कपिल नामक महायक्ष की द्वारपाल के रूप में स्थिति, उदूखल - मेखला नामक यक्ष पत्नी का नित्य भ्रमण), ५७.७४(यक्षों द्वारा स्कन्द को १५ गण प्रदान करना), वायु ९.१७, ९.२८(क्षयार्थक क्ष धातु से निष्पत्ति, ब्रह्मा के रजस्तम प्रधान शरीर से उत्पत्ति), ६९.७५/२.८.९७(यक्षों की खशा से उत्पत्ति, नामकरण), ६९.१३०(यक्ष का क्रतुस्थली नामक अप्सरा से समागम, नाभि की उत्पत्ति, यक्ष वंश का वर्णन), ६९.१३६(यक्ष द्वारा वसुरुचि गन्धर्व का रूप धारण कर क्रतुस्थली अप्सरा से समागम, नाभि पुत्र की उत्पत्ति), वा.रामायण १.२५.६ (सुकेतु यक्ष को तप के फलस्वरूप ताटका नामक पुत्री की प्राप्ति, सुन्द से ताटका का विवाह), ७.४.१३(जल का यक्षण करने के कारण जल - जन्तुओं की यक्ष नाम से विख्याति - रक्षामेति च यैरुक्तं राक्षसास्ते भवन्तु वः । जक्षाम इति यैरुक्तं यक्षा एव भवन्तु वः ।।), ७.१४+ (मन्त्रियों सहित रावण का यक्षों पर आक्रमण, यक्षों की पराजय), विष्णु १.२१.२५(कश्यप पत्नी खसा से यक्ष राक्षसों की उत्पत्ति), विष्णुधर्मोत्तर १.१९७(खशा व कश्यप से यक्षों की उत्पत्ति, कृतस्थला - पति, रजतनाभ - पिता), शिव २.१.१२.३५(यक्षों द्वारा दधिमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख - यक्षा दधिमयं लिंगं छाया पिष्टमयं तथा ।।), ३.५.३५(२४वें द्वापर में व्यास का नाम), ७.२.२.४७(असुरों को जीतने के संदर्भ में देवों के परस्पर विवाद करने पर शिव का यक्ष रूप में प्राकट्य, देवों का यक्ष रूप शिव को न पहचानना, देवी का प्रकट होकर यक्ष की शिव रूप से पहचान कराना), ७.२.४.४५(यज्ञशिरोहर्ता शिव का रूप - यक्षो यज्ञशिरोहर्ता ऋद्धिर्हिमगिरीन्द्रजा ॥), स्कन्द १.२.१३.१८१(शतरुद्रिय के प्रसंग में यक्षों द्वारा राजमाष लिङ्ग की पूजा का उल्लेख - राजमाषमयं यक्षा नाम भूतपतिं स्मृतम्॥ तिलान्नजं च पितरो नाम वृषपतिस्तथा॥), १.२.६६.५९(कृष्ण द्वारा बर्बरीक का शिरोछेदन करने पर श्रीचण्डिका द्वारा बर्बरीक का पूर्व जन्म में सूर्यवर्चा नामक यक्ष होने के वृत्तान्त का कथन), २.८.७.३२(धनयक्ष तीर्थ का माहात्म्य : तीर्थ स्नान से प्रमथ यक्ष के अङ्गों की दुर्गन्ध का सुगन्ध में परिवर्तन), ३.१.३२.३०(कुबेर के सचिव भद्र नामक यक्ष का गौतम शाप से व्याघ्र बनना, शाप मुक्ति पर अलकापुरी गमन), ३.१.४९.७७(यक्षों द्वारा रामेश्वर की स्तुति - रामनाथेंद्रियारातिबाधा नो दुःसहा सदा । तान्विजेतुं सहायस्त्वमस्माकं भव धूर्जटे ।।), ३.२.९.१०२(धर्मारण्य स्थित ब्राह्मणों का जृम्भक यक्ष द्वारा पीडन, यक्ष पीडा से निवृति हेतु धर्मारण्य में गोत्रमाताओं की स्थापना), ४.१.३२.८(पूर्णभद्र नामक यक्ष के पुत्र हरिकेश द्वारा शिवाराधना से दण्डपाणित्व प्राप्ति की कथा), ४.२.५७.१०९(यक्ष विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२०(वटयक्षिणी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.२५२.२१(चातुर्मास में यक्षों की पुन्नाग वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), महाभारत अनुशासन ९८.२९(यक्षों हेतु उपयुक्त पुष्प - जलजानि च माल्यानि पद्मादीनि च यानि वै। गन्धर्वनागयक्षेभ्यस्तानि दद्याद्विचक्षणः।।), आश्वमेधिक ५७.२३(उच्छिष्ट अवस्था में दिव्य कुण्डल धारण करने पर यक्षों द्वारा हरण का उल्लेख - यक्षास्तथोच्छिष्टधृतं सुराश्च निद्रावशाद्वा परिधर्षयेयुः।।), योगवासिष्ठ ५.३५.४४(प्रह्लाद के संदर्भ में शरीर महाद्रुम के निरहंकार यक्ष होने का कथन), ५.३४.८८(मायामयता के याक्षी शक्ति होने का उल्लेख), वा.रामायण १.२५(सुकेतु यक्ष की पुत्री ताटका एवं उसके पुत्रों मारीच आदि का वृत्तान्त), ७.४.१३(यक्ष की निरुक्ति – जक्षाम इति), ७.१४.२१(संयोधकण्टक नामक कुबेर अनुचर यक्ष का रावण - सेनानी मारीच से युद्ध व पलायन), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८३(यक्षों का पुन्नाग वृक्ष रूप में अवतरण), २.१५७.२२(जङ्घाओं में यक्षों? के लिए नमः का निर्देश), २.२२३.४५(मोह का रूप - रागश्च राक्षसो यस्य मोहो यक्षोऽस्ति यस्य च । द्वेषः पिशाचो यस्यास्ति ते त्रयो रौरवात्मकाः ।।), ३.२९.१(याक्ष नामक वत्सर में अंशुक्रमथ राजर्षि की भक्ति से श्रीकृष्ण के साधुनारायण रूप में अवतार लेने की कथा), ३.४५.१९(कौबेरयक्षयाजियों द्वारा यक्षलोक प्राप्त करने का उल्लेख - यक्षलोकाँस्तथा यान्ति कौबेरयक्षयाजिनः । ईश्वराणां च यज्वानो यान्तीश्वरपदानि ते ।। ), ३.७५.८१(फलमूलअनिलाद द्वारा यक्ष लोक प्राप्त करने का उल्लेख - फलमूलाऽनिलाऽदस्तु यक्षलोकं प्रगच्छति ।), ४.४४.६१(द्रव्य के याक्ष बन्धन होने का उल्लेख - पैशाचं बन्धनं कामो राक्षसं बन्धनं स्त्रियः । याक्षं तु बन्धनं द्रव्यं तत्त्यागे तुष्यति प्रभुः ।।), कथासरित् १.१.५९(सुप्रतीक यक्ष का कुबेर के शाप से विन्ध्यारण्य में काणभूति नामक पिशाच बनना), १.६.९७(सात नामक यक्ष का ऋषिकन्या से गान्धर्व विवाह, ऋषि कन्या के बन्धुओं के शापवश दोनों का सिंह बनना, पश्चात् शाप मोचन की कथा), २.२.४२(कुबेर के शाप से एक यक्ष का सिंह बनना, श्रीदत्त द्वारा सिंह वध से शाप मोचन), ३.४.४१(पर्वताकार यक्ष द्वारा वत्सराज के पितामह द्वारा रखे हुए भूमिगत कोष की रक्षा, कोष को वत्सराज को सौंपकर यक्ष का अन्तर्धान होना), ३.६.३७(पीपल वृक्ष से नि:सृत यक्ष - वाणी का श्रवण कर सोमदत्त का श्रीकण्ठ देश में गमन ), ५.३.२१५(रत्नवर्ष यक्ष की कन्या विद्युत्प्रभा की कथा – गर्भ पाटन आदि), ६.३.३८(सोमप्रभा द्वारा मायायन्त्रमय यक्ष का प्रदर्शन, यन्त्र के पञ्चभूतात्मक गुण), ९.६.९४(स्थूलशिरा यक्ष द्वारा राजा के पुत्र के लिए लिङ्ग प्रदान करना, स्वयं नपुंसक बनना), १०.१.२८(यक्षों द्वारा दरिद्र शुभदत्त को भोजन-दायी भद्रघट प्रदान करना, भङ्ग होने पर घट का अदृश्य होना), १०.७.७९(यक्ष द्वारा भ्राता-द्वय को विद्या प्रदान करना, भ्राता-द्वय द्वारा उपोषण व्रत के चीर्णन से यक्ष द्वारा सुरत्व प्राप्ति), १०.१०.२०(यक्ष द्वारा पत्नी का पुष्पमाला से ताडन करने पर पत्नी द्वारा मृत्यु को प्राप्त होने का नाटक), १०.१०.५६(सर्वस्थानगत नामक यक्ष द्वारा प्रव्राजक को वरदान देना), १२.६.३१(पृथूदर यक्ष की कन्या सौदामिनी व अट्टहास यक्षपुत्र का विवाह, पुत्र की उत्पत्ति, अट्टहास को प्राप्त शाप का अन्त), १२.६.२४५(श्रीदत्त द्वारा दिव्यरूपा यक्षिणी से अतिथिभाग की मांग), १४.१.५१(मदनमञ्चुका द्वारा काम्य पति की प्राप्ति होने पर विवाह में यक्षों को बलि प्रदान करने का वचन), १८.२.३(दुन्दुभि यक्ष की पुत्री तथा मणिभद्र यक्ष की पत्नी मदनमञ्जरी की विक्रमादित्य द्वारा दुष्ट कापालिक से रक्षा की कथा), १८.४.२४(चण्डी नामक यक्षी द्वारा तीर्थाटन के लिए पादलेप प्रदान करने की कथा), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२५टीका(यक्षों द्वारा गाथा गान का उल्लेख), अभिधानराजेन्द्र (२४ तीर्थंकरों के वाहनरूप यक्षों का कथन), द्र. देवयक्ष, धनयक्ष, पुरुयक्ष Yaksha


      यक्षकर्दम स्कन्द ४.२.८०.४६(यक्ष कर्दम के घटक द्रव्य - कस्तूरिकाया द्वौ भागौ द्वौ भागौ कुंकुमस्य च । चंदनस्य त्रयो भागाः शशिनस्त्वेक एव हि । यक्षकर्दम इत्येष समस्तसुरवल्लभः ।।), लक्ष्मीनारायण २.१५६.५९(कस्तूर्यंशद्वयं कुंकुमांशत्रयं शश्येककम् ।
      चन्दनांशत्रयं यक्षकर्दमः सोऽयमुच्यते ।।)


      यक्षशर्मा भविष्य ३.४.१५(यक्षशर्मा ब्राह्मण का जन्मान्तर में कर्णाटक देश का नृप व कुबेर बनना )


      यक्षिणी अग्नि ५०.३८(यक्षिणी के स्तब्ध और दीर्घ अक्षि वाले होने का उल्लेख), देवीभागवत १२.६.१३१(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.८५(वाग्देवता अवतारभूत काल्यादि यक्षिणी मन्त्र भेद निरूपण नामक अध्याय), १.८६(महालक्ष्मी अवतारभूत बगलादि यक्षिणी मन्त्र साधन निरूपण नामक अध्याय), ब्रह्म २.६२(पिप्पला द्वारा ऋषियों का उपहास करने से यक्षिणी नदी बनना, गौतमी सङ्गम से मुक्ति), भविष्य ३.२.१७(गुणाकर नामक ब्राह्मण पुत्र व यक्षिणी की कथा), मत्स्य २६१.४७(यक्षिणी की प्रतिमा का रूप – अधस्तात् प्रकृति, नाभि ऊर्ध्व पुरुष), स्कन्द ५.१.२०(वट यक्षिणी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.२२३.४४(तृष्णा का रूप), कथासरित् ८.६.१६५(संन्यासी को मन्त्र प्रभाव से यक्षिणी की प्राप्ति, विद्युन्माली, चन्द्रलेखा तथा सुलोचना नामक तीन यक्षिणियों में सुलोचना की उत्तमता), १४.४.४८(सुमित्रा नामक शापित यक्षिणी की मनुष्य संगम से शाप मुक्ति ) yakshinee/ yakshini



      यक्ष्म स्कन्द ५.२.२६, ६.१९०.६२(यज्ञ समाप्त कर ब्रह्मा का पुष्कर गमन, वहां आए हुए यक्ष्म को ब्रह्मा द्वारा वर प्रदान ) yakshma


      यक्ष्मधनु वराह १५३(पीवरी - पति, पूर्व जन्म में निषाद, मथुरा का माहात्म्य )


      यक्ष्मा अग्नि १०५.७(वास्तुमण्डल में पश्चिम दिशा में पूजनीय ८ देवताओं में से एक), गणेश २.६३.२७(देवान्तक - सेनानी यक्ष्म का महिमा नामक सिद्धि से युद्ध), गरुड १.१५२(यक्ष्मा रोग का निदान), देवीभागवत ६.२४.२९(यक्ष्मा रोग से विचित्रवीर्य की मृत्यु का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.९(दक्ष द्वारा चन्द्रमा को यक्ष्मा ग्रस्त होने का शाप), स्कन्द २.४.४.१६(स्नान - दूषित जल के परिहारार्थ यक्ष्मा का तर्पण), ५.३.८५.१०(क्षयरोग : दक्ष शाप से चन्द्र का क्षयरोगी होना, शिव कृपा से मुक्ति), ६.१३३(यक्ष्मा से मुक्ति हेतु अजापाल द्वारा अजागृहा देवी की आराधना), ६.१९०.६२(ब्रह्मा के यज्ञान्त में यक्ष्मा का आगमन, ब्रह्मा से तृप्ति आदि की प्राप्ति), ७.१.२१.५८(दक्ष शाप से चन्द्रमा का क्षयरोगी होना, शिव कृपा से मुक्ति), ७.३.२०.१२(दक्ष शाप से चन्द्रमा को यक्ष्मा व्याधि की प्राप्ति, चन्द्रमा द्वारा तप, शिव के निर्देशानुसार पत्नियों में सम व्यवहार से यक्ष्मा से निवृत्ति की प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण १.५१२, ३.१८१, ४.२९, yakshmaa


      यजन महाभारत वन १८०.३३(जाति के कर्म आधारित होने के संदर्भ में ये यजामहे श्रुति का प्रमाण )


      यजमान लिङ्ग २.१२.२८(यजमान नामक शिव मूर्ति की महिमा), २.१३.२७ (आत्मा का नाम, उग्र शिव का रूप ), महाभारत शान्ति२६८.२६/२६०.२६( यज्ञ के अंगों में यजमान के १६वां व अग्नि गृहपति के १७वां होने का कथन yajamaana/ yajamana


      यजु ब्रह्माण्ड १.२.३३.३७(यजु के लक्षण), मार्कण्डेय १०२.७/९९.७(ऋचाओं के रजोगुणी, यजुओं के सतोगुणी आदि होने का कथन), स्कन्द ४.१.३१.२५(यजु द्वारा शिव स्तुति का कथन), ४.२.९२(यमुना के यजुर्वेद का रूप होने का उल्लेख), महाभारत वन ३१३.५३(मन के यज्ञिय यजु होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), कथासरित् १२.७.४२(यजु:स्वामी : राजा उग्रभट का पुरोहित, राजा के आदेश से पुत्रेष्टि यज्ञ का सम्पादन ) yaju


      यज्ञ अग्नि ५६(दिक्पाल यज्ञ), ९५.२०(मन्दिर में लिङ्ग स्थापना के अन्तर्गत होम हेतु कुण्ड निर्माण विधि), १४९.१(लक्षहोम, कोटिहोम, अयुतहोम आदि होम प्रकार व विविध फलों का कथन), १६४.५(नवग्रह सम्बन्धी होम विधि), १६६(ग्रह यज्ञ), १६७(तीन प्रकार के ग्रह यज्ञों का वर्णन), २४५.१४(ब्रह्मा के यज्ञ में लौह दैत्य के वध हेतु नन्दक नामक खङ्ग की उत्पत्ति, श्रीहरि द्वारा खङ्ग ग्रहण), ३८३.२६(विभिन्न ऋतुओं में अग्नि पुराण श्रवण से विभिन्न यज्ञों के फलों की प्राप्ति का कथन), कूर्म २.१८.१००(पञ्च यज्ञ प्रकार व अनुष्ठान), गरुड २.४.१५(और्ध्वदेहिक क्रिया हेतु वृषयज्ञ या वृषोत्सर्ग), देवीभागवत ३.१०(देवदत्त के पुत्रेष्टि यज्ञ में उतथ्य पुत्र प्राप्ति की कथा), ३.१२(यज्ञ के सात्विक आदि गुण भेद), ३.१३(विष्णु का देवी यज्ञ वर्णन), ११.२०(ब्रह्म यज्ञ की विधि), ११.२२(वैश्वदेव यज्ञ विधि), नारद १.५१.२६(यज्ञ पात्रों का अङ्गुलि मान), पद्म १.१५.१५(ब्रह्मा द्वारा यज्ञ हेतु स्थान निर्धारण का विचार, पुष्कर का चयन), १.१६(ब्रह्मदेव कृत यज्ञ का वर्णन), १.२७.५६(विभिन्न ऋतुओं में वापी आदि में अवशिष्ट जलों का अग्निष्टोम आदि यज्ञों के फलों से साम्य), १.२८.२५(प्लक्ष वृक्ष के आरोपण के यज्ञप्रद होने का उल्लेख), १.३४(ब्रह्मा के यज्ञ का वर्णन), १.३९.७७(पुरुष द्वारा सृष्टि रूपी यज्ञ हेतु ब्रह्मा, उद्गाता, सामग प्रभृति १६ ऋत्विजों की उत्पत्ति), ५.१०(अश्वमेध यज्ञ के प्रसंग में राम का महर्षियों के साथ यज्ञमण्डप में आगमन और यज्ञदीक्षा स्वीकार), ५.६७(सीता के साथ राम के अश्वमेध यज्ञ का वर्णन), ६.१९९(नारद द्वारा इन्द्र कृत यज्ञ का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.१२५(विष्णु यज्ञ का माहात्म्य), ४.६४(कंस द्वारा धनुर्मख), ब्रह्म १.७.१३(सोम - कृत राजसूय यज्ञ का वर्णन), १.३७(दक्ष यज्ञ का मृग रूप होकर भागना, गणेश द्वारा पीछा, स्वेद से ज्वर की उत्पत्ति), १.७९.२०(विप्रों के मन्त्रयज्ञ शील होने, कृषकों के सीरयज्ञशील होने तथा वनवासियों के गिरिगोयज्ञशील होने का उल्लेख), १.१०४.३५(यज्ञ वराह रूप से पृथ्वी के उद्धार का उल्लेख), २.८(राजा सगर कृत अश्वमेध यज्ञ की कथा), २.९(सिन्धुसेन राक्षस द्वारा यज्ञ को रसातल में लाना, वराह मुख से स्रुव रूप में उद्धार), २.३३(प्रियव्रत के अश्वमेध यज्ञ में हिरण्यक नामक दानव का आगमन, देवों का पलायन, वसिष्ठ नामक पुरोहित द्वारा दैत्य निवारण से पुन: यज्ञ का आरम्भ), २.३४(वरुण के वर स्वरूप हरिश्चन्द्र को रोहित नामक पुत्र की प्राप्ति, वरुण द्वारा हरिश्चन्द्र को पुत्र से यजन करने का आदेश, पुन: पुन: स्मरण की कथा), २.४८.११(अगस्त्य के यज्ञ में कैटभ - पुत्र अश्वत्थ और पिप्पल द्वारा विघ्न, शनि द्वारा अश्वत्थ व पिप्पल का वध), २.६३(भरद्वाज के यज्ञ में सन्ध्यासुत हव्यघ्न द्वारा विघ्न, गौतमी जल सिंचन से मुक्ति की कथा), २.६४(वसिष्ठ प्रभृति ७ ऋषियों के यज्ञ में राक्षसों द्वारा विघ्न, विष्णु चक्र से राक्षसों का नाश),२.९१(ब्रह्मा द्वारा सृष्टि हेतु दण्डकारण्य में यज्ञ का अनुष्ठान), ब्रह्माण्ड १.२.७.५९(कृतयुग में ज्ञान व त्रेता में यज्ञ की प्रधानता का उल्लेख), १.२.८.५०(ब्रह्मा के मुखों से यज्ञों की सृष्टि), १.२.३०.१(त्रेतायुग के आरम्भ में यज्ञ प्रवर्तन का वर्णन), १.२.३०(हिंसात्मक या अहिंसात्मक यज्ञ के संदर्भ में उपरिचर वसु के पतन की कथा), १.२.३२.४७(यज्ञ की परिभाषा : ऋत्विज आदि का संयोग),भविष्य १.१६(पांच महायज्ञों के नाम), १.१७५(सूर्यार्थ यज्ञ), १.१८३(पञ्च महायज्ञ), २११७, २.१.१९+ (यज्ञपात्रों का स्वरूप, पूर्णाहुति विधि), २.२.१०(वास्तु ), २.२.१८(यज्ञ हेतु उपयुक्त ब्राह्मणों का वरण, पूजन), ३.१.४(म्लेच्छ यज्ञ), ३.२.२२(अज यज्ञ), ३.४.२५.२७(अव्यक्त/ब्रह्मा की पश्चिम भुजा से यज्ञ की उत्पत्ति व यज्ञ से मत्स्य कल्प की उत्पत्ति का उल्लेख), ४.२९(अनन्तरी तृतीया व्रत से वाजपेय, राजसूय प्रभृति यज्ञों के फलों की प्राप्ति), ४.४७(सप्तमी व्रताचरण से यज्ञों के फलों की प्राप्ति), ४.१४३(महाशान्ति विधि में होम करने का विधान), भागवत ०.६(भागवत सप्ताह रूपी यज्ञ), ३.१२.३९(ब्रह्मा के चार मुखों से यज्ञों की उत्पत्ति), ३.१३(यज्ञ का वराह रूप), ४.१९(महाराज पृथु के १००वें अश्वमेध यज्ञानुष्ठान में इन्द्र द्वारा पुन: पुन: व्यवधान का वर्णन), ६.८.१८(यज्ञ भगवान् से लोक से रक्षा की प्रार्थना), ८.१५(विश्वजित् यज्ञ में बलि राजा के लिए रथ का प्रकट होना), ८.१६.६०(कश्यप द्वारा अदिति को उपदिष्ट पयोव्रत का सर्वयज्ञ नाम), ९.७.२३(हरिश्चन्द्र द्वारा पुरुषमेध यज्ञ, ऋत्विजों के नाम), १०.२३(गोपों द्वारा ब्राह्मणों से भोजन की अप्राप्ति, ब्राह्मण - पत्नियों से भोजन की प्राप्ति, कृष्ण की ब्राह्मण - पत्नियों पर कृपा), १०.२४(कृष्ण द्वारा इन्द्र याग का निवारण), मत्स्य २३.१९(चन्द्रमा द्वारा राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान), १४३(उपरिचर वसु द्वारा यज्ञ में हिंसा का समर्थन, ऋषियों द्वारा प्रतिवाद), १४५.४४(यज्ञ के लक्षण), १६७.७(जगदीश्वर भगवान् से यज्ञों के प्रवक्ता १६ ऋत्विजों की उत्पत्ति), २५६(वास्तु यज्ञ के प्रकार), मार्कण्डेय ७२(सारस्वती इष्टि), लिङ्ग १.२६(पञ्चयज्ञ विधान), वराह १६(गोमेध यज्ञ), २१(दक्ष यज्ञ के ऋत्विजों के नाम), १३९(पाञ्चरात्र यज्ञ : अविधि के कारण सोमशर्मा का ब्रह्मराक्षस बनना), वामन ५(यज्ञ द्वारा मृग का रूप धारण), वायु १.२.५(पुरूरवा पुत्र के शासन काल में सम्पादित संवत्सर यज्ञ का प्रतिपादन), १०.१९(रुचि व आकूति से यज्ञ तथा दक्षिणा नामक मिथुन की उत्पत्ति), ५७.५०(चार वर्णों के लिए आरम्भ यज्ञ, हविर्यज्ञ, परिचार यज्ञ तथा जप यज्ञ का कथन), ५७.८६(स्वायम्भुव मन्वन्तर में देवों व ऋषियों के बीच यज्ञ - प्रवर्तन विषयक वार्तालाप), १०३.८३, विष्णु १.७.२१(यज्ञ और दक्षिणा से याम नामक १२ देवों की उत्पत्ति), १.८.२०(विष्णु व लक्ष्मी के सर्वव्यापकत्व के अन्तर्गत विष्णु के यज्ञ रूप तथा लक्ष्मी के दक्षिणा रूप होने का उल्लेख), ३.११.२४टीका(पाकयज्ञ, हविर्यज्ञ व सोमयज्ञ का निरूपण), विष्णुधर्मोत्तर १.२३४+ (दक्ष यज्ञ में देवों द्वारा शिव भाग का अकल्पन, शिव का क्रोध, यज्ञ का मृग रूप धारण कर नरनारायण के आश्रम में पलायन, वीरभद्र व भद्रकाली द्वारा दक्ष यज्ञ के विध्वंस का वृत्तान्त), ३.२.६२(यज्ञ की प्रशंसा), ३.११९.१२(यज्ञ कर्म में दानवों की पूजा?), शिव २.२.३६.४१(ऋषियों द्वारा यज्ञ रूप विष्णु से दक्ष यज्ञ की रक्षा हेतु प्रार्थना), ७.२.२१(पञ्चयज्ञ), ७.२.२६.७(शिवार्चन के समक्ष तप, यज्ञ, दक्षिणा आदि की हीनता का उल्लेख), ७.२.२२.४४(कर्मयज्ञ, तपोयज्ञ, जपयज्ञ, ध्यानयज्ञ, तथा ज्ञानयज्ञ नामक ५ यज्ञों में उत्तरोत्तर के वैशिष्ट्य का कथन), स्कन्द १.१.१८(वामन के प्रसंग में बलि का यज्ञ), २.८.७.२(क्षीरोदक तीर्थ में दशरथ द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ, क्षीर प्राप्ति से क्षीरोदक नामकरण), ३.१.१४.४५(ब्रह्मा द्वारा लिङ्ग दर्शन रूप मिथ्या भाषण से अपूज्यत्व रूप शाप प्राप्ति, शाप निवृत्यर्थ शिव आदेशानुसार गन्धमादन पर यज्ञ करके श्रौत स्मार्त्त कर्मों में पूजा प्राप्ति), ३.१.२३(यज्ञ के ऋत्विजों के नाम), ३.१.२३.१७(दैत्य पीडित देवों का ब्रह्मा के निर्देशानुसार गन्धमादन पर माहेश्वर यज्ञ का आयोजन, यज्ञ के प्राशित्र ग्रहण से छिन्नपाणि सविता का चक्रतीर्थ में स्नान से हिरण्यपाणि होना), ३.२.१५(देवों द्वारा यज्ञ का आयोजन करने पर विष्णु की अनुपलब्धता, विष्णु के योगारूढ होने पर देवों की प्रेरणा से वम्री द्वारा विष्णु के धनुष की प्रत्यञ्चा काटने पर वम्री को यज्ञ में भाग प्राप्त करने की पात्रता, प्रत्यञ्चा कटने से विष्णु का शीर्ष भङ्ग, विश्वकर्मा द्वारा शीर्ष संयोजन करने पर विश्वकर्मा की भी यज्ञभागिता का वृत्तान्त), ४.१.२१.३८(यज्ञों में अश्वमेध की श्रेष्ठता), ४.१.२९.१४२(यज्ञेशी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ५.१.२८(ब्रह्मा द्वारा यज्ञार्थ यज्ञ वापी का निर्माण व माहात्म्य), ५.१.४३.१८(प्रजा के मूल ब्राह्मण, ब्राह्मणों के मूल वेद, वेदों के मूल यज्ञ तथा यज्ञों के मूल देवता), ५.१.५२(वराह का रूप), ५.३.२३१.१८ (तीर्थमाला के अन्तर्गत ३ यज्ञतीर्थों का उल्लेख), ६.५(त्रिशङ्कु को सशरीर स्वर्ग प्राप्त कराने के लिए विश्वामित्र द्वारा १२ वर्षीय यज्ञ के आयोजन का वर्णन), ६.१८०(पुष्कर में ब्रह्मा के यज्ञ में ऋत्विज आदि), ७.१.२३(चन्द्रमा द्वारा यज्ञ सम्पादन का वृत्तान्त), ७.१.७५.१०(नारद कृत पौण्डरीक नामक यज्ञ का कथन), ७.१.१५३(ब्रह्मा द्वारा यज्ञ का आरम्भ, द्रव्य प्राप्ति हेतु शिवाराधन, शिव कृपा से प्राप्त द्रव्य से यज्ञ का समापन), ७.१.१६५(ब्रह्मा द्वारा यज्ञ का आरम्भ, सावित्री के अनुपस्थित रहने पर गोपकन्या का पत्नी रूप में वरण, क्रुद्ध सावित्री द्वारा शाप प्रदान का वृत्तान्त), ७.१.१९९(दक्ष के यज्ञ द्वारा मृग रूप धारण करके पलायन, शिव द्वारा पीछा), ७.१.२८२(अश्विनीकुमारों हेतु यज्ञ भाग ग्रहण करने के लिए च्यवन द्वारा यज्ञ का आयोजन, इन्द्र द्वारा निषेध का वृत्तान्त), ७.१.३५३(वराह रूप), हरिवंश २.१६(कृष्ण व गोपों द्वारा गिरि यज्ञ), २.८३(षट्पुर निवासी ब्रह्मदत्त नामक ब्राह्मण के यज्ञ में वसुदेव - देवकी का आगमन, दैत्यों द्वारा विघ्न का वृत्तान्त), ३.२३(ब्रह्मा का महायज्ञ), ३.५४(बलि व इन्द्र का युद्ध रूपी यज्ञ), वा.रामायण १.१४(दशरथ द्वारा अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान), १.१५(ऋष्यशृङ्ग द्वारा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ/इष्टि का आरम्भ), ७.२५.८(मेघनाद द्वारा ७ यज्ञों का अनुष्ठान), महाभारत वन ३१३.५३, ३१३.८३, शान्ति १९६.१२(सत्य, अग्निहोत्र आदि प्रवर्तक यज्ञ तथा जप आदि निवर्तक यज्ञ के लक्षणों का कथन), लक्ष्मीनारायण १.१४२, १.१४५(बलि द्वारा द्वादशाह यज्ञ का आयोजन), १.२३०, १.३०८, १.३१४, १.४४०, १.५०९, १.५१०, १.५१२, १.५२०, १.५६१.३५(, १.५७२, ११‹५७३, १.५७४, २.१०६, २.११२, २.१२३, २.१२४, २.१३०, २.१३१, २.१४४, २.१५२, २.१५७.३०(विभिन्न यज्ञों का न्यास), २.१६६, २.१६९, २.२०१, २.२२४, २.२२८.२४, २.२४४+ (सोम यज्ञ की विधि), २.२४५.४९, २.२४८, २.२६९, ३.४, ३.४.८८, ३.३५.५८, ३.४५.१२, ३.१३४, ३.१४८, ३.१६१, ३.२१३, ३.१७०.१७, ४.७८, ४.८०, कथासरित् १२.६.१०३(यज्ञ नामक ब्राह्मण के पुत्र भूतिवसु द्वारा राजा भूनन्दन को राजा की प्रिया दैत्य कन्या के समीप पाताल में ले चलने का आश्वासन ), द्र. दक्षयज्ञ, भर्तृयज्ञ, महायज्ञ, सुयज्ञ yajna


      यज्ञ(रण) महाभारत उद्योग ५८.१२, ६६.१२, १४१, द्रोण ५५.३७, सौप्तिक १८, शान्ति २९.१२५, ७९, ९८, २६८, २७२, अनुशासन ८५.१११, १०७, १०९(विभिन्न मासों की द्वादशी तिथियों में विष्णु अर्चना से विभिन्न यज्ञों के फलों की प्राप्ति ), १४५दाक्षिणात्य पृष्ठ ५९५१, आश्वमेधिक २१, ८५, ९२, ९२दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३३७ yajna



      यज्ञकेतु गर्ग ७.२०.३४(यज्ञकेतु का प्रद्युम्न - सेनानी अक्रूर से युद्ध )


      यज्ञकोप वा.रामायण ६.४३.११(रावण - सेनानी, राम से युद्ध), ७.५


      यज्ञदत्त पद्म ५.९६.३५(यज्ञदत्त - द्वय के यम से संवाद में नरक/स्वर्ग प्रापक कर्मों का वर्णन ), शिव २.१.१७.५ (ब्राह्मण, गुणनिधि - पिता), स्कन्द ४.१.१३.३७(ब्राह्मण, गुणनिधि - पिता, यज्ञदत्त द्वारा गुणनिधि के घर से निष्कासन का वर्णन ) yajnadatta


      यज्ञदेव स्कन्द ३.१.३४.४५(द्विज, सुमति - पिता, सुमति के ब्रह्महत्या दोष से आवृत्त होने पर यज्ञदेव को दुःख प्राप्ति, दुर्वासा ऋषि से दोष निवृत्ति हेतु प्रार्थना, ऋषि द्वारा उपाय का कथन ) yajnadeva


      यज्ञनारायण वराह ५.४८(राजा अश्वशिरा द्वारा यज्ञनारायण की स्तुति )


      यज्ञपात्र नारद १.५१.२६(यज्ञपात्रों के अंगुलिमानों का कथन)


      यज्ञपुरुष देवीभागवत ८.३(रुचि व आकूति - पुत्र), भागवत ८.१.५(स्वायम्भुव मनु की पुत्री आकूति से यज्ञपुरुष अवतार के जन्म तथा यज्ञपुरुष द्वारा स्वायम्भुव मनु की रक्षा का कथन ) yajnapurusha


      यज्ञबाहु देवीभागवत ८.४(प्रियव्रत व बर्हिष्मती - पुत्र, शाल्मलि द्वीप का स्वामी), ८.१२.२१(यज्ञबाहु के ७ पुत्रों के नाम), भागवत ५.१.२५(प्रियव्रत व बर्हिष्मती - पुत्र), ५.२०.९(प्रियव्रत - पुत्र, प्लक्ष द्वीप अधिपति, सुरोचन, सौमनस्य प्रभृति ७ पुत्रों के पिता), वामन ५७.८३(विशाला नदी द्वारा कार्तिकेय को यज्ञबाहु नामक गण प्रदान करने का उल्लेख), yajnabaahu


      यज्ञमाली नारद १.३५.१४(वेदमालि - पुत्र, सुमालि - भ्राता), १.३६(वेदमाली - पुत्र, दुष्ट प्रकृति के स्वभ्राता सुमाली का पुण्य दान से उद्धार करना, पूर्व जन्म में विश्वम्भर वैश्य ) yajnamaalee/ yajnamali


      यज्ञराध लक्ष्मीनारायण ३.२१०


      यज्ञवराह भागवत ६.८.१५(यज्ञवाराह से अध्वों/मार्गों में रक्षा की प्रार्थना), स्कन्द ४.२.८४.२२(यज्ञवराह तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य),

      यज्ञशर्मा पद्म २.१(शिवशर्मा - पुत्र, पिता द्वारा यज्ञशर्मा की पितृभक्ति की परीक्षा, मृत माता के अङ्गों के टुकडे करना), भविष्य ४.३.१३(श्रीहरि द्वारा यज्ञशर्मा नामक ब्राह्मण का रूप धारण कर नारद को स्वमाया का दर्शन कराना ) yajnasharmaa


      यज्ञशेष भविष्य ४.२५


      यज्ञसीता गर्ग ४.८.१(यज्ञसीता गोपियों द्वारा कृष्ण प्राप्ति हेतु राधा से एकादशी व्रत माहात्म्य का श्रवण), ५.१७.२४(यज्ञसीता रूपी गोपियों द्वारा कृष्ण - विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया ) yajnaseetaa/ yajnasita


      यज्ञसेन कथासरित् २.२.६


      यज्ञसोम कथासरित् २.२.६(मालवदेशीय एक ब्राह्मण, कालनेमि व विगतभय - पिता), १०.५.३००(पाटलिपुत्र निवासी यज्ञसोम और कीर्तिसोम नामक दो भाईयों की कथा), १२.३०.८(यज्ञस्थल निवासी एक ब्राह्मण, देवसोम - पिता), १७.१.८३(यज्ञस्थल - निवासी, हरिसोम व देवसोम - पिता ) yajnasoma


      यज्ञस्थल कथासरित् ६.२.१५६(यज्ञस्थल ग्राम निवासी ब्राह्मण व पिशाच की कथा), १२.३०.७(यज्ञस्थल ग्राम निवासी यज्ञसोम ब्राह्मण की कथा), १७.१.८३(यज्ञस्थल ग्राम निवासी हरिसोम व देवसोम नामक भाइयों की कथा ) yajnasthala


      यज्ञस्वामी कथासरित् १८.४.२३९(पति से वियोग को प्राप्त सुमना की मातुल यज्ञस्वामी द्वारा रक्षा), १८.५.१५१


      यज्ञांश भविष्य ३.४.१९.६(वङ्गदेशीय ईश्वर नामक विप्र द्वारा ५ वर्षीय यज्ञांश कृष्ण चैतन्य का शिष्यत्व स्वीकरण), ३.४.१९.२०(श्रीधर ब्राह्मण का ७ वर्षीय यज्ञांश का शिष्यत्व स्वीकरण और भागवत टीका का निर्माण), ३.४.२०.३(भट्टोजी द्वारा २० वर्षीय यज्ञांश कृष्ण चैतन्य का शिष्यत्व स्वीकार करना और उनकी आज्ञा से सिद्धान्तकौमुदी का निर्माण), ३.४.२२.८१(मुर दैत्य से वशीकृत वार्जिल नाम राजा द्वारा आर्य धर्म - विनाश, देवों द्वारा प्रार्थित यज्ञांश द्वारा गुरुण्डों का नाश), ३.४.२३.९५(यज्ञांश द्वारा स्वांश से सौराष्ट्र नगरीस्थ राजा के घर में जन्म ग्रहण? ) yajnaansha


      यज्ञोपवीत कूर्म २.१२.६(यज्ञोपवीत धारण की विधि), गरुड ३.२९.५३(यज्ञोपवीत धारण में वामन रूप नारायण के स्मरण का निर्देश), वामन ८९.४५(पुलह द्वारा वामन को यज्ञोपवीत देने का उल्लेख), स्कन्द १.१.२२.३(शिव द्वारा वासुकि का यज्ञोपवीत रूप में धारण का उल्लेख), ६.२३९.२८(चातुर्मास में विप्र हेतु यज्ञोपवीत दान के महत्त्व का कथन), हरिवंश २.७९.४८(शुचिव्रता नारी द्वारा यज्ञोपवीत दान का उल्लेख), महाभारत शल्य ३७.५२(मुनियों द्वारा यज्ञोपवीतों से तीर्थ का निर्माण), योगवासिष्ठ १.२५.७(काल पर शेष नाग रूपी चन्द्रमा की कला व संसार वक्ष पर त्रेधा गङ्गा प्रवाह रूपी यज्ञोपवीत होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२६ (यज्ञोपवीत संस्कार में सालेमाल दैत्य के विघ्न का वर्णन ), २.६५, अन्त्येष्टिदीपिका पृ.२०(निशङ्ग का यज्ञोपवीत से साम्य?), द्र. पवित्र yajnopaveeta/ yagyopavita

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      यज्ञोपेत ब्रह्माण्ड १.२.१८.६३(ब्रह्मराक्षस, कुबेर - अनुचर, हिरण्यशृङ्ग पर वास), १.२.२३.२२(यज्ञापेत राक्षस की सूर्य के रथ के साथ स्थिति ), द्र. रथ सूर्य yajnopeta


      यति अग्नि १६१(यति धर्म), कूर्म २.२८(यति का धर्म), पद्म ३.५९(यति का धर्म व नियम), ब्रह्मवैवर्त्त १.१२.४(प्रजा सृष्टि न करने वाले ब्रह्मा के अनेक पुत्रों में से एक), १.२२.१३(ब्रह्मा - पुत्र, सर्व कर्मों में संयत होने से यति नामकरण), भविष्य ३.४.११.७०(यतिदत्त के पुत्र पुरीशर्मा द्वारा शङ्कराचार्य का शिष्यत्व ग्रहण), ३.४.२०.८(यति आश्रमी के रौद्र/शैव मार्गी होने का कथन), भागवत ७.१३(यति धर्म का निरूपण, दत्तात्रेय द्वारा प्रह्लाद को उपदेश), मत्स्य ५१.३८(यतिकृत् : रक्षोहा अग्नि का नाम), वायु १८(यति हेतु पापों का प्रायश्चित्त), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४०(यति धर्म), शिव ३.२८(यतिनाथ नाम से शिवावतार की कथा), ६.२०(यति द्वारा क्षौर, स्नान, ), हरिवंश १.३०.३(नहुष - पुत्र, गौ - पति ), लक्ष्मीनारायण १.३८५.५०(यतिनी पत्नी का कार्य), कथासरित् ६.२.२६, द्र. आयति, नियति, yati


      यतिदत्त भविष्य ३.४.११, कथासरित् १.३.१३


      यद् लक्ष्मीनारायण २.२५२.३६, कथासरित् १०.४.१७९(अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति और यद्भविष्य नामक तीन मत्स्यों की कथा ) yad


      यदु अग्नि २७५.१(यदु वंश का वर्णन), कूर्म १.२४(यदु वंश का अनुकीर्तन), पद्म २.७८(ययाति से जरा ग्रहण की अस्वीकृति पर यदु द्वारा शाप प्राप्ति, ययाति को प्रतिशाप), २.८०.७(ययाति द्वारा यदु को माता वध के आदेश की यदु द्वारा उपेक्षा पर पिता द्वारा यदु को शाप), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९२(याम देवगण में से एक), २.३.६८(यदु द्वारा ययाति पिता से शाप प्राप्ति, दक्षिण का राजा बनना ?), २.३.६९(यदु वंश का वर्णन), भागवत ९.१८(ययाति व देवयानी - पुत्र, पिता के वृद्धत्व को अङ्गीकार करने की अस्वीकृति), ९.१९.२२(ययाति द्वारा विभिन्न दिशाओं में यदु आदि विभिन्न पुत्रों की नियुक्ति), ९.२३.१९(यदु वंश का वर्णन), ११.१(साम्ब द्वारा स्त्री वेश धारण व पुत्र प्राप्ति की कामना प्रसंग में यदु वंश को ऋषियों का शाप), ११.७.३(कृष्ण द्वारा उद्धव से यदुकुल के नष्ट हो जाने का कथन), मत्स्य ३३.५(यदु द्वारा पिता ययाति से जरा ग्रहण की अस्वीकृति, शाप प्राप्ति), ४३(यदु वंश का वर्णन), लिङ्ग १.६८(यदु वंश का वर्णन), वायु ३१.१, ३१.६(स्वायम्भुव मन्वन्तर के १२ याम नामक देवों में से एक), ९३.२८(यदु द्वारा ययाति से शाप प्राप्ति), ९४(यदु वंश का वर्णन), विष्णु ४.११.१(यदु वंश का वर्णन), हरिवंश १.३३(ययाति का ज्येष्ठ पुत्र, वंश वर्णन), २.३७(हर्यश्व व मधुमती - पुत्र, पांच नाग कन्याओं से विवाह, पुत्रों के नाम), वा.रामायण ७.५९.२-२०(ययाति की जरावस्था ग्रहण करने से यदु का इन्कार, ययाति द्वारा यदु को यातुधानों को उत्पन्न करने का शाप, यदु द्वारा यातुधानों को जन्म ), लक्ष्मीनारायण ३.७३.७२, yadu


      यन्त्र अग्नि १२१.१५(विभिन्न कामनाओं की सिद्धि हेतु यन्त्र रचना की विधि), १३३.४०(रक्षा यन्त्र में अक्षर न्यास से रोग शान्ति की संभावना का कथन), २५२.१८(यन्त्र के कर्म), ३१२, ३१४.७(शत्रु निग्रह यन्त्र), देवीभागवत ९.५०(दुर्गा पूजा हेतु यन्त्र), नारद १.६९(रवि, सोम आदि ग्रहों की यन्त्र विधि का कथन), १.७१.८६(त्रैलोक्य मोहन आदि नृसिंह यन्त्र), १.८०.१५६(गोपाल यन्त्र के निर्माण की विधि), १.८८(राधा अवतारभूत १६ देवताओं की मन्त्र यन्त्र पूजा विधि), ब्रह्माण्ड ३.४.२७(भण्डासुर - पुत्र द्वारा ललिता देवी की सेना के समक्ष जय यन्त्र का निर्माण), ३.४.३८(कामराज यन्त्र), भविष्य ३.४.२१(मय द्वारा तीर्थों में यन्त्र की स्थापना, भक्तों द्वारा यन्त्र को विलोम करके वैष्णव चिह्न की स्थापना), ३.४.२४.७(विश्वकर्मा रचित भ्रमि नामक यन्त्र की सप्तसिन्धुओं में स्थिति, मनुष्यों के भ्रमण में अवरोध, इन्द्र की प्रार्थना से विश्वकर्मा द्वारा दिव्य यन्त्र का निर्माण, भ्रमण में अवरोध की समाप्ति), स्कन्द ४.१.५०.१०३(गरुड का स्वर्ग में कर्तरी यन्त्र में प्रवेश कर अमृत का हरण), ५.३.२८.१७(त्रिपुर नाश हेतु शिव की रथ सज्जा के अन्तर्गत यन्त्र में सर्पों की स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ४.३८, कथासरित् ६.३.१७(मयासुर की कन्या सोमप्रभा द्वारा अनेक मायामय यन्त्रों का निर्माण, राजा कलिङ्गदत्त द्वारा पत्नी सहित उन यन्त्रों का दर्शन ) yantra


      यम अग्नि ३८२(यम द्वारा नचिकेता को यम गीता का उपदेश), ३८२.३१(अहिंसा आदि ५ यमों व शौच आदि ५ नियमों के नाम), गणेश १.६३.१८(तिलोत्तमा अप्सरा के दर्शन से यम के रेत: का पतन, विकृत मुख पुरुष की उत्पत्ति), २.१०८.१७(गणेश द्वारा यम के गर्व का नाश), गरुड २.६/२.१६(प्रेत द्वारा यम मार्ग की यात्रा का वर्णन), २.२३(यमपुरी की भव्यता का वर्णन), ३.२२.२६(यम के १९ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), देवीभागवत ५.८.६३(यम तेज से देवी के केशों की उत्पत्ति का उल्लेख), ९.२२(यम का शङ्खचूड - सेनानी संहार से युद्ध), नारद १.३१(यमलोक की यातनाओं का वर्णन), १.३३.७५?(यम के अहिंसा आदि ८ अङ्गों का निरूपण), १.११९.५८(यम दशमी पूजा, १४ यमों के नाम), १.१२३.४६(कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को यम चतुर्दशी व्रत विधि), २.३+ (रुक्माङ्गद राजा के एकादशी व्रत के प्रभाव से सभी मृतकों का स्वर्गलोक गमन, परितप्त ह्रदय यम का ब्रह्म लोक गमन, ब्रह्मा के साथ यम का वार्तालाप, यम के आग्रह पर ब्रह्मा द्वारा व्रत भङ्ग हेतु मोहिनी की उत्पत्ति का वृत्तान्त), पद्म १.१९.३०२(आत्मनियन्त्रक व्यक्ति की यम से भय रहितता का कथन), १.७०(यम द्वारा देवान्तक, दुर्धर्ष व दुर्मुख के वध का कथन), ५.९६.३५(यम व ब्राह्मण के संवाद में यम द्वारा नरकवासियों के पाप तथा स्वर्गवासियों के पुण्यों का वर्णन), ५.९७(यम का यज्ञदत्त से संवाद, यज्ञदत्त द्वारा यम की स्तुति), ६.६.८९(यम का जालन्धर - सेनानी दुर्वारण से युद्ध), ६.६६(यम की आराधना), ब्रह्म १.४(श्राद्धदेव यम का संज्ञा व सूर्य से जन्म, छाया द्वारा यम को शाप), १.४३.६०(विष्णु की प्रतिमा दर्शन से मानवों की मुक्ति, यम के व्यापार में विघ्न, यम की प्रार्थना पर विष्णु द्वारा प्रतिमा का आच्छादन), १.१०५.१०७(यमपुरी की ४ दिशाओं में ४ द्वारों से पापियों व पुण्यात्माओं के प्रवेश का वर्णन), १.१०५(यमपुरी का वर्णन), २.१८(पुत्र की मृत्यु से विश्वधर वैश्य का क्रन्दन सुनकर व्यथित यम का स्वकार्य से विरत होना, वृद्धों के भार से पृथिवी का पीडित होना, इन्द्र से प्रार्थना, सूर्य के आग्रह पर यम के स्वकार्य में प्रवृत्त होने की कथा), २.५५(कपोतों द्वारा यम की उपासना, उलूक - कपोत युद्ध में उलूक द्वारा पाशों से मुक्ति के लिए यम की स्तुति), २.६१.५१(यम तीर्थ में यमेश्वर पूजन का संक्षिप्त माहात्म्य), २.९५.३१(विश्वरूप व विष्टि के कनिष्ठ पुत्र हर्षण का अपने मातुल यम के समीप गमन, स्वर्ग व नरक प्रापक कर्म के विषय में प्रश्न, यम द्वारा समाधान), ब्रह्मवैवर्त्त १.१५.३२(मालावती का यम से अपने प्रियतम को ले जाने के विषय में प्रश्न, यम द्वारा उत्तर), १.१६.१८(यमराजा द्वारा ज्ञानार्णव नामक महातन्त्र का निर्माण), ब्रह्माण्ड २.३.१८(शशबिन्दु के प्रति यम द्वारा विविध श्राद्ध कथन), भविष्य १.५७.१४(यम हेतु वैकङ्कत स्रज बलि का उल्लेख), २.१.१७.९(पर्ण दाह में अग्नि के यम नाम का उल्लेख), ३.४.१९.५८(स्पर्श तन्मात्रा के अधिपति के रूप में यम का उल्लेख), ३.४.२०.१७(परा प्रकृति के देवों में से एक), ४.५४.२७(श्यामला - पति, श्यामला का यम से माता की नरक में दारुण स्थिति विषयक पृच्छा, यम द्वारा हेतु कथन), ४.८९(यमदर्शन त्रयोदशी व्रत का वर्णन), भागवत ७.२.२७(उशीनर राजा की मृत्यु पर विलाप करती हुई पत्नियों को यम द्वारा बालक के रूप में मिथ्यात्व का उपदेश), ८.१०.२९(यम का कालनाभ से युद्ध), १०.४५(यम द्वारा सान्दीपनी मुनि के पुत्र को कृष्ण को लौटाना), ११.१९.३३(१२ यमों व १२ नियमों के नाम), मत्स्य ११.४(विवस्वान् व संज्ञा - पुत्र, वैवस्वत मनु - भ्राता, विमाता छाया से शाप प्राप्ति, शिवाराधन से लोकपालत्व, पितरों का आधिपत्य तथा धर्माधर्म के निर्णायक पद की प्राप्ति का वर्णन), ४९.९(यम कन्या इलिना से ऐलिन की उत्पत्ति), १५०.१(यम का तारक - सेनानी ग्रसन से युद्ध), १७१.४७(धर्म व सुदेवी के ८ पुत्रों में से एक), २६१.१२(यम की प्रतिमा का रूप), मार्कण्डेय १५(यमपुरुष व विपश्चित् नरक संवाद), ७७(सूर्य - संज्ञा - छाया आख्यान), १०६(यम - संज्ञा - छाया कथा), १०८(यम के शाप का निवारण), वराह १४०.५६(कोकामुख क्षेत्र में यमव्यसन तीर्थ का माहात्म्य), १९५(नचिकेता द्वारा यम पुरी का वर्णन), १९७.११(यम सभा का वर्णन), १९८.८(नचिकेता – कृत यम स्तोत्र), २०७(यम की सभा में नारद का आगमन, नारद के पूछने पर यम द्वारा नरक निवारक कृत्य, तप व्रत दानादि से उत्पन्न फल का वर्णन), वामन ९.१६(धर्मराज/यम के वाहन रूप में पौण्ड्रक नामक महिष का उल्लेख), ५७.७१(यम द्वारा स्कन्द को ६ अनुचर प्रदान करना), ६०.५२(यम का मुर से संवाद), ७४.१३(बाण का रूपान्तरण), ९०.७(पयोष्णी में विष्णु का यमखण्ड नाम से वास), वायु ३१.७(स्वायम्भुव मन्वन्तर के त्विषिमान गण के देवों में से एक), ४८.१५(यम द्वीप का वर्णन), ८३.८१, विष्णु ३.७(यम गीता), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.४(यम पुरुष, धूमोर्णा प्रकृति), २.३६+ (यम - सावित्री उपाख्यान), २.३८+ (सावित्री यम उपाख्यान में सावित्री को सौ सहोदर भ्राता व सौ औरस पुत्रों की प्राप्ति का वरदान), २.११६(यम मार्ग), ३.५१(यम की मूर्ति का स्वरूप), ३.१८७(यम व्रत), शिव ५.७(यम लोक व यम के दूत), स्कन्द १.१.८.२४(यम द्वारा नीलमय लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख), १.१.१३.२७(यम का नमुचि से युद्ध), १.१.१७.१३९(वृत्र व इन्द्र के संग्राम में व्योम के यम के साथ युद्ध का उल्लेख), १.१.१८(यम द्वारा काक रूप ग्रहण), १.१.३१.२८(शिव द्वारा यम को धर्मोपदेश), १.२.१३.१८४(शतरुद्रिय प्रसंग में यम द्वारा कालायसमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), १.२.१७(यम का ग्रसन से युद्ध), २.२.२+ (यम द्वारा नील पर्वत पर विष्णु की स्तुति, लक्ष्मी से तीर्थ माहात्म्य सम्बन्धी संवाद), २.४.९(यम त्रयोदशी व चतुर्दशी व्रत विधि का कथन), २.४.११(यम द्वितीया कृत्य : यमुना में स्नान, भगिनी का महत्त्व), २.७.११+ (नरक के शून्य होने पर यम को दुःख प्राप्ति, यम द्वारा ब्रह्मा को निवेदन, विष्णु से वर प्राप्ति), ३.१.११(यम द्वारा शवभक्ष का वध), ३.१.४९.५१(यम द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ३.२.४.१७(सूर्य - पुत्र, दुष्टों के लिए यम रूप परन्तु जितात्माओं के लिए धर्म रूप होने का उल्लेख), ३.२.५.१९(१० यमों व १० नियमों के नाम), ३.३.२१.३२(लोक सृष्टि प्रवाहार्थ ब्रह्मा द्वारा धर्म - अधर्म की सृष्टि करने पर अधर्म रूप नरक के आधिपत्य पद पर यम की नियुक्ति, रुद्राध्याय जप प्रभाव से वीरभद्र द्वारा यम का शासन, यम द्वारा वीरभद्र की स्तुति, यम - मोचन वृत्तान्त), ४.१.८(यम पुरी प्रापक कर्म), ४.२.५१.१०५(यम द्वारा आदित्य की उपासना, यमादित्य का माहात्म्य), ४.२.७८(यम द्वारा तप, शिव की स्तुति, धर्मपीठ की स्थापना, माहात्म्य), ५.१.२२(यमेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.३०(यम चतुर्दशी को दीपदान की महिमा), ५.३.२८.१२(त्रिपुर नाश हेतु शिव की रथ सज्जा के अन्तर्गत यम देव की दक्षिण पार्श्व में स्थिति), ५.३.३९.३१(सर्वदेवमयी कपिला गौ के उदर में यम देव की स्थिति का उल्लेख), ५.३.८३.१०६(गौ की सर्वदेवमयता के अन्तर्गत पृष्ठ देश में यम देव की स्थिति), ५.३.९२(यम हास्य तीर्थ का माहात्म्य, यम की नर्मदा में स्नान से निर्मलता), ५.३.१५५.५७(चाणक्य द्वारा वायसों का ताडन कर यमगृह में प्रेषण, यम लोक का वर्णन), ५.३.१५९.८(प्रच्छन्न पापों के शास्ता रूप में वैवस्वत यम का उल्लेख), ५.३.१५९.७७(यम लोक की वैतरणी नदी को पार करने हेतु उपदिष्ट दान विधि में यम को स्वर्ण से निर्मित करने का उल्लेख), ५.३.२३१.१५(तीर्थमाला के अन्तर्गत ४ यमेश्वर तीर्थ होने का उल्लेख), ६.१३६(माण्डव्य द्वारा यम को शूद्र योनि प्राप्ति का शाप, यम द्वारा तप करना), ६.१३९(यम द्वारा ब्राह्मण - पुत्र हरण पर ब्राह्मण द्वारा यम को शाप प्रदान, शाप निवृत्यर्थ यम का हाटकेश्वर गमन, ब्राह्मण को पुत्र प्रदान करने का वृत्तान्त), ६.२५२.२४(चातुर्मास में यम की बिभीतक वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.१२(यम की उत्पत्ति, पङ्गुता प्राप्ति, शिव आराधना व लिङ्ग स्थापना), ७.१.१३९(यम की आज्ञा से यम किंकरों का मित्र - पुत्र चित्र को सदेह यमलोक में लाना, चित्रगुप्त नाम से प्राणी चरित्र लेख - कर्म में नियुक्ति), ७.१.१४६(यमेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, यम द्वारा तप से पाद प्राप्ति), ७.१.१६६(यम द्वारा सत्यवान के शरीर से जीव निकालकर ले जाने से सावित्री द्वारा यम का अनुगमन, यम - सावित्री संवाद, सावित्री का दृढ निश्चय देखकर सावित्री को वर प्रदान, यम प्रसाद से सत्यवान के पुनर्जीवन का वृत्तान्त), ७.१.१९३(यमेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.३.१८(यम तीर्थ का माहात्म्य, दुष्ट चित्राङ्गद द्वारा स्नान से स्वर्ग लोक की प्राप्ति), हरिवंश १.९.८(विवस्वान् व संज्ञा - पुत्र, यमुना - भ्राता), २.३३(यम का सान्दीपनी - पुत्र को लौटाने से इन्कार, कृष्ण द्वारा यम पर विजय), २.८१.३०(यम की भार्या द्वारा यामरथ व्रत का अनुष्ठान), महाभारत सभा ८०.८, ८०.२२(पाण्डवों के वन गमन के समय धौम्य द्वारा याम्य सामों के गायन का कथन तथा कारण), शान्ति ९८दाक्षिणात्य पृष्ठ २, पृ. ४६७४(शतशृङ्ग राक्षस के तीन पुत्रों संयम, वियम व सुयम का सेनापति सुदेव द्वारा निग्रह का वर्णन), १२९, वा.रामायण ७.२२(यम का रावण से युद्ध, ब्रह्मा के आदेश से युद्ध से विरत होना), लक्ष्मीनारायण १.६२, १.६४, १.२७५, १.३५७, १.३५९.१००यमचुल्ली, १.३६६, १.३८२.२५(विष्णु के यम व लक्ष्मी के धूमोर्णा होने का उल्लेख), १.४१०, १.५८१, २.११९, २.१७०.७०, ३.५.५६(यम वासर में देवों में पद/धिष्ण्य प्राप्ति की स्पर्द्धा में देवों का अनुचित धिष्ण्यों पर अधिकार करना, आदित्य - पुत्र विष्णु द्वारा देवों की धिष्ण्यों को यमित करना), ३.५.५६(यम नामक वत्सर में देवों में धिष्ण्य/पद की स्पर्द्धा, अनादि आदित्य नारायण द्वारा निर्णय), ३.२७, ३.५१, ३.६४.११, ३.१११(विभिन्न दानों के महत्त्व का वर्णन : यमराज द्वारा आस्तिक व नास्तिक दीर्घशील नामक विप्रों को दान धर्म का उपदेश), ४.४४.६४, ४.१०६, कथासरित् ८.७.३५(धूमकेतु का यमराज से युद्ध ) yama

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      यमखण्ड वामन ९०.७(पयोष्णी में यमखण्ड की प्रतिष्ठा का उल्लेख )


      यमचुल्ली वराह २००.३७(नरक के अन्तर्गत यमचुल्ली स्थान में यमकिंकरों द्वारा दिन रात प्रेतों के प्रक्षेपण का उल्लेख )


      यमजिह्वा कथासरित् १०.१.५९(यमजिह्वा नामक कुट्टनी द्वारा ईश्वरवर्मा के पुत्र व पुत्री को वेश्या कला की शिक्षा )


      यमदूत भविष्य १.३५.२५(यमदूती : सर्प के ४ विषदंष्ट्रों की देवताओं में से एक, स्वरूप), लक्ष्मीनारायण ४.५०.३८(यमदूत के स्वरूप का कथन ) yamadoota/yamaduuta/ yamaduta


      यमदंष्ट्रा देवीभागवत ३.२६.४(शरत् व वसन्त ऋतुओं का नाम, यमदंष्ट्र ऋतुओं में नवरात्र विधि का कथन), स्कन्द ४.२.७०.७८(यमदंष्ट्रा देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), कथासरित् २.१.१६(असुर, शतानीक का वध), ३.४.३३६(राक्षस, वीर विदूषक की वीरता से प्रसन्नता, मैत्री), ७.८.१२५(राक्षस, इन्दीवरसेन का वध, खड्गदंष्ट्रा - भ्राता), ८.५.२३(यमदंष्ट्र के साथ वज्रपञ्जर का युद्ध), ८.७.३५(यम - पुत्र, धूमकेतु दानव द्वारा वध ) yamadanshtraa


      यमदण्डधरा वराह २७(मातृका, पैशुन्य का रूप),


      यमद्वितीया पद्म ६.१२२.८४(कार्तिक शुक्ल द्वितीया : यम द्वितीया कृत्य), भविष्य ४.१४(यमद्वितीया व्रत का माहात्म्य), वराह ५७.१७ (कार्तिक शुक्ल द्वितीया को अश्विनौ का शेष व विष्णु रूप होना), स्कन्द २.४.११(यमद्वितीया व्रत विधान ) yamadviteeyaa/ yamadvitiyaa

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      यम – नियम पद्म ५.१०९.५३(शिव की सेवा में यम - नियम के प्रस्तुत होने पर इनके विशिष्ट कार्य), भागवत ११.१९.२८(कृष्ण द्वारा उद्धव को यमनियम साधन का वर्णन), ११.१९.३३(१२ यमों व १२ नियमें के नाम), स्कन्द ३.२.५.१९(१० यमों व १० नियमों के नाम), लक्ष्मीनारायण ३.५, ३.११५.८२(ललिता देवी के कर व पाद के नखों के यम - नियम का प्रतीक होने का उल्लेख ) yama - niyama


      यममार्ग नारद १.३१(पापी मनुष्यों को दुःखप्रद यममार्ग का निरूपण )


      यमलार्जुन गर्ग १.१९(कृष्ण द्वारा यमलार्जुन के उद्धार की कथा, यमलार्जुन के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१४(यमलार्जुन वृक्ष भञ्जन की कथा), विष्णु ५.६.१६(बाल कृष्ण द्वारा यमलार्जुन के उद्धार की कथा), हरिवंश २.७(कृष्ण द्वारा यमलार्जुन के उद्धार की कथा ) yamalaarjuna/ yamalarjuna


      यमलोक पद्म ७.२३(एकादशी प्रभाव से वेश्या व जार का यमलोक में जाकर यम से सत्कार प्राप्ति, यमलोक के सुख - दुःख का वर्णन), वराह १९५(यमलोकस्थ पापियों का वर्णन ), द्र. नरक yamaloka


      यमशिख कथासरित् १८.२.२९(वेताल, अग्निशिख नामक वेताल द्वारा यमशिख को राजा विक्रमादित्य के प्रभाव का वर्णन), १८.२.२१३(विक्रमादित्य द्वारा चित्रगत पुरुष के हाथ को तलवार से काटने पर यमशिख के हाथ का कटना, कापालिक के शव को छोडकर यमशिख का पलायन ) yamashikha


      यमसूक्त गरुड २.४.५२(मृत्यु पर यमसूक्त का विनियोग), २.२८.४(मृत्यु पश्चात् यमसूक्त का उल्लेख)(प्र केतुना बृहता यात्यग्निः इति - ऋ. १०.८)


      यमादित्य स्कन्द ४.२.५१.१०५(यम द्वारा स्थापित यमादित्य तीर्थ का माहात्म्य )


      यमी मत्स्य २८६.८(यमी देवी के स्वरूप का कथन ) yamee/ yami


      यमुना अग्नि २९९.३९(यमुना नामक ग्रही द्वारा बालक का सप्तम वर्ष में पीडन, मुक्ति विधि), गर्ग २.३(यमुना द्वारा गोलोक से अवतीर्ण होकर भूमण्डल की यात्रा, पुन: गोलोक को आरोहण), २.२०(यमुना द्वारा राधा को नूपुर भेंट का उल्लेख), ३.९(यमुना का कृष्ण के वाम स्कन्ध से प्राकट्य), ४.१(दुर्वासा को भोजन प्रस्तुति हेतु यमुना द्वारा गोपियों को मार्ग देने की कथा), ४.१६(सौभरि द्वारा मान्धाता को प्रोक्त यमुना कवच), ४.१७(सौभरि द्वारा मान्धाता को वर्णित यमुना स्तोत्र), ४.१८(यमुना जप व पूजन हेतु पटल व पद्धति), ४.१९.४(सौभरि द्वारा मान्धाता को यमुना सहस्रनाम का वर्णन), ५.१७.११(यमुना यूथ वाली गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), देवीभागवत ६.१८(यमुना - तमसा सङ्गम : लक्ष्मी द्वारा वडवा रूप धारण कर सङ्गम स्थल पर तपस्या, हैहय पुत्र की उत्पत्ति), ७.३०(यमुना पीठ में मृगावती देवी के वास का उल्लेख), १२.६.१३०(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म १.८.३९(सूर्य - तनया, यम - भगिनी), ३.२९+ (यमुना तीर्थ का माहात्म्य), ६.२२(यमुना स्तोत्र), ब्रह्म १.४.८(आदित्य व संज्ञा से श्राद्धदेव यम व यमुना की उत्पत्ति), १.९०(बलदेव द्वारा यमुना का कर्षण), भविष्य ४.६९.३३(गौ के मूत्र में गंगा व गोमय में यमुना की स्थिति का उल्लेख), भागवत ९.२.१(वैवस्वत मनु द्वारा पुत्र कामना से यमुना नदी तट पर तप का उल्लेख), १०.६५(बलराम द्वारा यमुना का आह्वान, हलाग्र से कर्षण का भय दिखाना), मत्स्य १३.४०(यमुना तीर्थ में देवी की मृगावती नाम से स्थिति), वराह १५४(यमुना तीर्थ के प्रभाव का वर्णन), वामन ५३(यमुना के कच्छपारूढा होने का उल्लेख), ९०.२६(यमुना तट पर विष्णु का श्रीकण्ठ नाम), विष्णु ५.१८.३४(कृष्ण - बलराम को लेकर अक्रूर का व्रज से यमुना तट पर पहुंचना, अक्रूर का कालिन्दी में स्नान), ५.२५.११(बलराम के आह्वान की उपेक्षा पर बलराम द्वारा हलाग्र से यमुना का कर्षण), विष्णुधर्मोत्तर ३.५२.७(वरुण रूप निर्माण के अन्तर्गत वाम भाग में कूर्म स्थित स-चामरा यमुना की निर्मिति का उल्लेख), ३.१२१.५(यमुना क्षेत्र में बलि की पूजा का निर्देश), स्कन्द २.४.११(यम द्वितीया को यमुना द्वारा यम को भोजन कराना, यमुना का माहात्म्य), २.६.२(यमुना द्वारा कृष्ण की पत्नियों से राधा - कृष्ण की एकात्मता का कथन), ३.१.२६(गङ्गा - यमुना - गया नामक तीर्थ का माहात्म्य, तीर्थ में स्नान से जानश्रुति राजा की चित्तशुद्धि), ३.३.८.४४(सीमन्तिनी - पति चित्राङ्गद का यमुना नदी में मज्जन, पाताल में प्रवेश, शिव भक्ति महिमा से यमुना जल से पुन: बाहर आकर सीमन्तिनी से विवाह आदि का वृत्तान्त), ४.१.२.८४(गोमय में यमुना की स्थिति का उल्लेख), ४.१.७.६४(कलिन्द - कन्या, तमोरूपा), ४.१.२०(ध्रुव द्वारा यमुना तट स्थित मधुवन में हरिध्यान का वृत्तान्त), ४.२.९२.६(यमुना के यजुर्वेद रूप होने का उल्लेख), ५.१.५६.१६(सूर्य - पुत्री, यम - भगिनी), ५.३.१९८.७८(यमुना तीर्थ में देवी का मृगावती नाम से वास), ६.२५८.३(कामाकुलित शिव के यमुना में स्नान से यमुना का काली होना, हर तीर्थ की स्थापना), ७.१.११.८३(सूर्य व संज्ञा - तनया, सूर्य के प्रति संज्ञा की चञ्चल दृष्टि होने से यमुना की नदीरूपता), हरिवंश २.११(यमुना की स्त्री से उपमा), २.४६(बलराम द्वारा हल से यमुना का कर्षण), योगवासिष्ठ ३.४३.३२(युद्ध भूमि में स्त्रियों के जलने से उत्पन्न धूम रूपी यमुना), लक्ष्मीनारायण १.३५७, १.४६९, ४.८०.१६(राजा नागविक्रम के यज्ञ में यामुनेय विप्रों के दिक्पाल होने का उल्लेख ), द्र. प्रयाग yamunaa/yamuna

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      ययाति अग्नि २७४.२०(नहुष के ७ पुत्रों में से एक, देवयानी व शर्मिष्ठा - पति, यदु आदि ५ पुत्रों के पिता), कूर्म १.२२.६(ययाति का संक्षिप्त चरित्र), पद्म १.१२(नहुष के ७ पुत्रों में से एक, शर्मिष्ठा व देवयानी - पति, यदु प्रभृति ५ पुत्र), २.६४+ (मातलि द्वारा स्वर्ग गमन के अनुरोध की ययाति द्वारा अस्वीकृति), २.७७+ (ययाति द्वारा सत्कर्म से पृथिवी को स्वर्ग बनाना, नाटक दर्शन के अशौच से शरीर में जरा का प्रवेश, अश्रुबिन्दुमुखी से रमण के लिए जरा के परित्याग का उद्योग), २.८०.७(पुत्र यदु द्वारा माताओं के वध के आदेश की उपेक्षा पर ययाति द्वारा पुत्र को शाप), २.१०९.५०(ययाति - पुत्रों तुरु, पुरु, उरु, यदु का उल्लेख ) ब्रह्म १.१०(ययाति द्वारा इन्द्र से रथ की प्राप्ति, पुत्रों द्वारा जरा ग्रहण की अस्वीकृति, पुत्रों को शाप, पुरु द्वारा जरा का ग्रहण), २.७६(ययाति चरित्र का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९२(याम देवगण में से एक), २.३.६८(ययाति के पुत्रों द्वारा जरा ग्रहण की अस्वीकृति), भविष्य ३.१.२.४८(ययाति के ५ पुत्रों में तीन को म्लेच्छत्व तथा २ को आर्यत्व की प्राप्ति), भागवत ९.१८(नहुष - पुत्र, शर्मिष्ठा व देवयानी की कलह का प्रसंग), ९.१९(कामी बस्त व अजा के प्रसंग में ययाति की विषयों से अतृप्ति, वैराग्य), मत्स्य २७(ययाति द्वारा देवयानी का कूप से उद्धार), ३०(ययाति का देवयानी से पुन: मिलन व विवाह), ३१(ययाति का शर्मिष्ठा दासी से मिलन व पुत्र प्राप्ति), ३२(ययाति द्वारा शर्मिष्ठा से समागम के कारण शुक्र द्वारा जरा ग्रस्त होने का शाप), ३३(ययाति के पुत्रों द्वारा जरा ग्रहण की अस्वीकृति व शाप प्राप्ति, पुत्र पूरु द्वारा जरा ग्रहण की स्वीकृति), ३४+ (ययाति का विषयों से वैराग्य, वन गमन, तप, स्वर्ग प्राप्ति), ३७+ (ययाति का स्वर्ग से पतन, अष्टक से संवाद), ४१+ (ययाति द्वारा स्वर्ग प्राप्ति के लिए अष्टक, प्रतर्दन, वसुमान् व शिबि के पुण्य दान के प्रस्तावों को अस्वीकार करना), ४३.४(ययाति वंश का वर्णन), लिङ्ग १.६६+ (ययाति के चरित्र का वर्णन), वायु ३१.६(स्वायम्भुव मन्वन्तर के १२ याम नामक देवों में से एक), ७२.८८, ९२, ९३.१८(ययाति द्वारा रुद्र से दिव्य रथ की प्राप्ति, जरा प्राप्ति का वृत्तान्त), विष्णु ४.१०(ययाति का चरित्र : जरा प्राप्ति की कथा), स्कन्द १.१.१५(ययाति द्वारा इन्द्र पद के लिए आमन्त्रण की प्राप्ति, स्व - पुण्य कीर्तन से पतन), ६.३९(ययाति लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश १.३०(ययाति द्वारा इन्द्र से रथ की प्राप्ति, जरा प्राप्ति का वृत्तान्त), वा.रामायण ७.५८(ययाति के चरित्र का वर्णन, जरा प्राप्ति की कथा, पुत्रों को शाप), लक्ष्मीनारायण १.५७४.८(ययाति द्वारा यज्ञ में हरि व हर की कृपा से असुरों का नाश ), ३.७२, yayaati/ yayati

      Esoteric and vedic aspects of Yayaati

      यव भागवत ११.१६.२१(विभूति वर्णन के अन्तर्गत श्रीहरि के ओषधियों में यव होने का उल्लेख), वायु ३१.८(यविष्ठ : स्वायम्भुव मन्वन्तर के त्विषिमान गण के देवों में से एक), स्कन्द ५.३.५९.५(पुष्करिणी तीर्थ में सुवर्ण निर्मित यव दान से उत्तम स्थान प्राप्ति का उल्लेख ?), ५.३.१८२.४४(भृगुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के अवसर पर सुवर्ण निर्मित यव सिर पर देकर स्नान करने से कुरुक्षेत्र स्नान के फल की प्राप्ति का उल्लेख), ६.२५२.१९(चातुर्मास में यव में महेन्द्र की स्थिति का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८२(महेन्द्र का रूप), अथर्वपरिशिष्ट ३१.६.४ (शान्ति कामना के लिए यव से होम का निर्देश), द्र. देवयव yava

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      यव-व्रीहि स्कन्द १.२.१३.१७८ (अगस्त्यो व्रीहिजं वापि सुशांतमिति नाम च॥ यवजं देवलो लिंगं पतिमित्येव नाम च॥)


      यवक्रीत लक्ष्मीनारायण २.१६६.३२, २.१७१.४, २.१७३


      यवन नारद १.५६.७४३(यवन देश के कूर्म के पाद मण्डल होने का उल्लेख), पद्म १.४७.६९(गरुड द्वारा यवनों का वमन, यवनों के लक्षण), शिव ५.१८.६(जम्बूद्वीप? के दक्षिण में यवनों की स्थिति का उल्लेख), ५.३८.३०(राक्षसों के यवन, पारद, काम्बोज, पाह्नव तथा बहूदक नामक पांच गणों का उल्लेख), महाभारत कर्ण ४५.३६(यवनों की सर्वज्ञता विशेषता का उल्लेख ), द्र. कालयवन yavana


      यवसन्ध लक्ष्मीनारायण ४.५८,


      यश अग्नि ८७.५(यशा : शान्ति कला/तुर्यावस्था की २ नाडियों में से एक- अलम्बुषायसानाड्यौ वायू कृकरकूर्म्मकौ ॥), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३.१३(यशोदाताओं में विद्या की श्रेष्ठता का उल्लेख- यशोदानां यथा विद्या कविता च मनोहरा ।।), ब्रह्माण्ड २.३.१२.३३(प्रज्ञा, कीर्ति व यश प्राप्ति के लिए आपः में पिण्डदान का निर्देश - प्रज्ञां चैव यशः कीर्त्तिमप्सु वै संप्रयच्छति ।), ३.४.१.६५(बृहद्यश : प्रथम सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक), भविष्य ३.४.२५.११(विष्णुयशा : विष्णुकीर्ति - पति, कल्कि अवतार - पिता, कश्यप का अंश), मार्कण्डेय ५०.२८(कीर्ति - पुत्र), वायु ९८.१११/२.३६.१०४(कल्कि-विष्णुयशा का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.२६१(यश की प्रशंसा), महाभारत वन ३१३.७०(दान का एकपद वाले यश के रूप में उल्लेख - किंस्विदेकपदं यशः।…..दानमेकपदं यशः।), कथासरित् १२.६.२५७(यशस्वती : वृद्धा, सत्यव्रत - भार्या, श्रीसेन राजा द्वारा पोषित, राजा के यक्ष्मरोग की चिकित्सा कराने का उद्योग ), १२.२४.४ (यशोधन राजा द्वारा उन्मादिनी कन्या को प्राप्त करने का प्रश्न), द्र. पुरुयशा, विष्णुयश, सुयश yasha


      यशोदा गर्ग १.३.४०(यशोदा के द्रोण वसु की पत्नी धरा का अवतार होने का उल्लेख - नंदो द्रोणो वसुः साक्षाद्‌यशोदा सा धरा स्मृता ।), १.१५(यशोदा द्वारा कृष्ण में ब्रह्माण्ड के दर्शन, पूर्व जन्म में वसु - पत्नी धरा), १.१८.१५(कृष्ण द्वारा मृदा भक्षण के प्रसंग में यशोदा द्वारा कृष्ण के मुख में ब्रह्माण्ड के दर्शन), देवीभागवत ४.१९.३४(भूभार हरण हेतु देवों द्वारा देवी की प्रार्थना, देवी द्वारा गोकुल में यशोदा से उत्पन्न होकर देवकार्य का आश्वासन), पद्म १.९.४६(हविष्मान् पितरों की कन्या, अंशुमान् - पत्नी), ब्रह्म १.७३.२५(यशोदा के उदर में माया का प्रवेश, वसुदेव का बालक को लेकर यशोदा के शयनागार में प्रवेश, कन्या को ग्रहण कर पुन: कारागार में लौटने की कथा), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३.१३(यशोदाताओं में विद्या की श्रेष्ठता का उल्लेख), ४.६.१८३(वसु अंश से नन्दगोप की तथा वसुपत्नी से यशोदा की उत्पत्ति का उल्लेख - वस्वंशो नंदगोपश्च यशोदा वसुकामिनी ।), ४.१३(गर्ग मुनि का यशोदा के गृह में आगमन, यशोदा द्वारा सत्कार, मुनि द्वारा कृष्ण का अन्नप्राशन और नामकरण संस्कार), ४.११०+ (यशोदा का राधा से भक्ति विषयक संवाद), ब्रह्माण्ड २.३.१०.९०(उपहूत नामक पितरों की मानसी कन्या, खट्वाङ्ग - जननी), भागवत १०.७.३५(यशोदा द्वारा कृष्ण के मुख में ब्रह्माण्ड के दर्शन), १०.८.४८(यशोदा के जन्मान्तर में द्रोण वसु की पत्नी धरा होने का उल्लेख), मत्स्य १५.१९(हविष्मान् पितर की कन्या, अंशुमान् - पत्नी, दिलीप - माता), वराह ८७(द्रोण पर्वत की नदियों में से एक), वायु ७२.८३, ७३.४१/२.११.८३(उपहूत पितरों की कन्या, महत् - पत्नी, खट्वाङ्ग - माता), हरिवंश १.१८.५९(आङ्गिरस पितरों की कन्या, दिलीप - माता ), द्र. वैराटी yashodaa


      यशोधन कथासरित् १२.२४.४(कनकपुर का एक राजा )


      यशोधर ब्रह्माण्ड १.२.११.३५(यशोधरा : सहिष्णु व कामदेव - माता, ऋषि सर्ग), वामन ९०.३०(नवराष्ट्र में विष्णु का यशोधर नाम), कथासरित् ९.५.२८(वासुकि - तनय प्रियदर्शन - भार्या, कनकवर्ष - माता), १०.७.७(श्रीधर - पुत्र, लक्ष्मीधर - अग्रज ) yashodhara


      यशोलेखा कथासरित् ९.४.२३६(प्रतापसेन की महारानी, चमरवाल द्वारा क्षात्रधर्म से विजित )


      यशोवती देवीभागवत ६.२१+ (रैभ्य - पुत्री एकावली की सखी, एकावली की कालकेतु दानव से रक्षा में सहायता ) yashovatee/ yashovati


      यशोवर्मा कथासरित् ९.४.१५३(कौतुकपुर नगरवासी बहुसुवर्ण राजा का सेवक ) yashovarmaa


      यश:केतु कथासरित् १२.१३.४(शोभावती नगरी का राजा), १२.१९.४(अङ्गदेश का राजा), १२.१९.९०(अङ्गदेशीय राजा यश:केतु द्वारा समुद्र में मृगाङ्कवती के दर्शन, विवाह), १२.२२.३(नेपालस्थ शिवपुर नगर का एक राजा ) yashahketu


      यष्टि गणेश १.५७.२७(मुद्गल द्वारा कैवर्त्त को यष्टि के अङ्कुरित होने तक गणेश नाम जप का निर्देश), स्कन्द २.४.१०(यष्टि प्रतिपदा को शकुन अवलोकन), ३.२.२८(लौह यष्टि लिङ्ग की स्थिति, श्राद्ध की महिमा), ६.२५२.२३(चातुर्मास में कन्दर्प की यष्टिमधु वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.२२.३४(शरीर रूपी यष्टि), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८५ २.१८.२९(धर्मराज - कन्याओं द्वारा कृष्ण को समर्पित यष्टि के स्वरूप का कथन), २.४१, कथासरित् १.३.५०(दिव्य गुण सम्पन्न यष्टि का कथन ), द्र. लोहयष्टि yashti


      याग अग्नि ३४(पवित्रारोपण हेतु याग विधि), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२१(इन्द्रयाग), भविष्य २.१.१७.३(सहस्रयाग में अग्नि का नाम ब्राह्मण व अयुतयाग में हरि), विष्णुधर्मोत्तर २.८७(विवाह अवसर पर शची याग), लक्ष्मीनारायण २.१०६.४७(वैष्णव याग ), द्र. प्रयाग yaaga


      याज - उपयाज स्कन्द २.७.१६(याज - उपयाज द्वारा राजा पुरुयशा के पूर्व जन्म का कथन, वैशाख मास धर्म का उपदेश ), द्र. प्रयाज yaaja - upayaaja


      याजक लक्ष्मीनारायण १.४३२.१७


      याज्ञवल्क्य गरुड १.९३+ (याज्ञवल्क्य द्वारा ऋषियों को धर्म का कथन), गर्ग ४.५(याज्ञवल्क्य द्वारा राजा विमल को स्व - पुत्रियों को कृष्ण को भेंट करने का परामर्श), १०.१७.१८(राजा हेमाङ्गद द्वारा स्वगुरु याज्ञवल्क्य से सुना हुआ चम्पावती नगरी का स्त्री राज्य विषयक वर्णन), देवीभागवत ३.१०.२१(देवदत्त के पुत्रेष्टि यज्ञ में याज्ञवल्क्य के अध्वर्यु होने का उल्लेख), ९.५(स्मरण शक्ति हेतु याज्ञवल्क्य द्वारा सरस्वती की स्तुति), ब्रह्म २.१७.४(विप्रेन्द्र, राजा जनक के पुरोहित, जनक द्वारा याज्ञवल्क्य से भुक्ति - मुक्ति विषयक पृच्छा, याज्ञवल्क्य द्वारा वरुण से एतद्विषयक पृच्छा का निर्देश, वरुण द्वारा जनक व याज्ञवल्क्य को उपदेश), ब्रह्मवैवर्त्त २.५(याज्ञवल्क्य द्वारा पठित सरस्वती स्तोत्र), ब्रह्माण्ड १.२.३४(जनक की सभा में धन संग्रह करने पर याज्ञवल्क्य का शाकल्य सहित ब्राह्मणों से वाद, शाकल्य की मृत्यु), १.२.३५(याज्ञवल्क्य द्वारा गुरु वैशम्पायन को यजुर्वेद लौटाना, सूर्य उपासना से यजुर्वेद प्राप्ति, शिष्यों के नाम), भविष्य १.६६(याज्ञवल्क्य द्वारा ब्रह्मा से सूर्य आराधना सम्बन्धी उपदेश की प्राप्ति), ३.४.२१.१४(कलियुग में याज्ञवल्क्य का कण्व - पौत्रों के रूप में जन्म), भागवत १२.६(याज्ञवल्क्य द्वारा सूर्य की उपासना से वेद की प्राप्ति), मत्स्य ४७.२४८(कल्कि अवतार के समय में याज्ञवल्क्य का यज्ञ के पुरोहित के रूप में उल्लेख), वराह ४४(याज्ञवल्क्य द्वारा वीरसेन को पुत्र प्राप्ति हेतु परशुराम द्वादशी व्रत का कथन), वायु ६०.४१(जनक के यज्ञ में याज्ञवल्क्य द्वारा धन ग्रहण करने पर ब्राह्मणों से विवाद, शाकल्य की मृत्यु), ६१.१७(याज्ञवल्क्य द्वारा गुरु वैशम्पायन से प्राप्त यजुर्वेद का छर्दि रूप में त्याग, सूर्य से यजुर्वेद का ग्रहण), स्कन्द १.२.१३(कटु वचन बोलने के कारण नकुल द्वारा याज्ञवल्क्य को शाप, याज्ञवल्क्य का निम्न कुल में भर्तृयज्ञ के रूप में जन्म), ३.३.८.२८(सीमन्तिनी नामक कन्या द्वारा याज्ञवल्क्य - पत्नी मैत्रेयी से सौभाग्यवर्धक कर्म पृच्छा, मैत्रेयी द्वारा उपाय का कथन), ४.२.९७.३४(याज्ञवल्क्येश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.४२(याज्ञवल्क्य के वीर्य से स्वभगिनी से पिप्पलाद पुत्र की प्राप्ति, पिप्पलाद द्वारा उत्पन्न कृत्या से रक्षा हेतु याज्ञवल्क्य द्वारा शिव के नख - मांस में शरण), ६.५(त्रिशङ्कु के यज्ञ में याज्ञवल्क्य के उद्गाता होने का उल्लेख), ६.१२९(याज्ञवल्क्य आश्रम तीर्थ का माहात्म्य, याज्ञवल्क्य द्वारा गुरु से प्राप्त वेदों का वमन, सूर्य से वेद प्राप्ति, वेश्या कर्म में रत नृप के अभिषेक का प्रसंग, सूर्य रश्मियों से रक्षा हेतु सूर्य के अश्व के कर्ण में प्रवेश, कात्यायन पुत्र की प्राप्ति), ६.१३०(मैत्रेयी व कात्यायनी - पति, कात्यायनी द्वारा पति सौभाग्य प्राप्ति हेतु गौरी पूजा), ६.१७५(पिप्पलाद के जन्म के पाप से मुक्ति हेतु याज्ञवल्क्य द्वारा याज्ञवल्क्येश्वर लिङ्ग की स्थापना व माहात्म्य), ६.२७१.४१४(याज्ञवल्क्य के जन्मान्तरों में भर्तृयज्ञ, कात्यायन, वररुचि, वेश्या - पुत्र होने का उल्लेख), ६.२७८(पितामह का अवतार, चारायण - पुत्र, शाकल्य - शिष्य, विद्या वमन की कथा, आदित्य आराधना), लक्ष्मीनारायण १.५०१, १.५०७, कथासरित् ८.३.११९(मय के कहने पर सूर्यप्रभ द्वारा याज्ञवल्क्य ऋषि से मोहिनी तथा परिवर्त्तिनी विद्याओं की प्राप्ति ) yaajnavalkya/ yagyavalkya


      याज्ञसेनी लक्ष्मीनारायण १.३२०


      यातुधान ब्रह्माण्ड १.२.२३.२७(यातुधान द्वारा सूर्य रथ का अनुगमन - सर्पा वहंति वै सूर्यं यातुधानास्तु यांति च। वालखिल्या नंयत्यस्तं ... ), २.३.७.८९(जन्तुधना व राक्षस - पुत्र, १० नाम, जन्तुभाव धनादाना इत्यजौऽश्रावयद्धनम् ॥ सर्वाङ्गकेशापाशा च कन्या जन्तुधना तु या । यातुधानप्रसूता सा कन्या चैव महारवा ), २.३.७.९०(यातुधान के हेति प्रहेति प्रभृति १० राक्षस पुत्रों का उल्लेख), वराह १९७.४२(धर्मराजपुरी में रहने वाले निवासियों में से एक), वायु ६९.१३०(सूर्य - अनुचर यातुधान के गणों के नाम व उनके पुत्र - हेतिः प्रहेतिरुग्रश्च पौरुषेयो वधस्तथा। विस्फूर्जिश्चैव वातश्च आपो व्याघ्रस्तथैव च ॥
      सर्पश्च राक्षसा ह्येते यातुधानात्मजा दश।), विष्णुधर्मोत्तर १.१९८(यातुधान वंश - हेतिः प्रहेतिरुग्रश्च पौरुषादो वधस्तथा ।। 1.198.१० ।। विद्युत्स्फूर्जश्च वातश्च नसो व्याघ्रस्तथैव च ।। सुसकृच्च करालश्च यातुधानात्मजा दश ।। ११ ।।), महाभारत कर्ण ८७.४०(असुरा यातुधानाश्च गुह्यकाश्च परंतप। ते कर्णं समपद्यन्त हृष्टरूपाः समन्ततः), अनुशासन ९३.७८(सरोवर की आरक्षिणी यातुधानी का बिसप्राप्ति के इच्छुक ऋषियों से संवाद), वा.रामायण ७.५९.२०(यदु से क्रौञ्चवन में यातुधानों की उत्पत्ति का उल्लेख ) yaatudhaana/ yatudhana


      यातना भविष्य १.१९२(यम यातना), ४.६(यम यातना),


      यातुभक्त भविष्य ३.२.१३.५(वेताल - नृप संवाद में यातुभक्त चोर की कथा, वेताल द्वारा नृप से चोर के रुदन और हास्य का कारण पूछना, नृप द्वारा उत्तर प्रदान )


      यात्रा अग्नि १२१.४३(यात्रा हेतु नक्षत्र विचार), १३६(यात्रा आदि में फलदायक फणीश्वर चक्र का वर्णन), २३३(यात्रा हेतु मुहूर्त आदि का विचार), गरुड १.६०(यात्रा में शुभाशुभ लक्षण), १.६१(यात्रा हेतु प्रशस्त नक्षत्र), देवीभागवत १२.६.१३१(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.३१(यमलोक यात्रा में पापियों को यातना व पुण्यात्माओं को सुख का वर्णन), १.५६.६२०(यात्रा हेतु लग्न आदि का विचार, यात्रा में अपशकुन, शकुन, दिशा, वार, नक्षत्र दोहद/भोजन द्रव्य), २.६२(तीर्थयात्रा की विधि व नियमों का वर्णन), पद्म ७.९(गङ्गा यात्रा का वर्णन), ब्रह्म १.२६(मदनभञ्जिका यात्रा), १.६३(इन्द्रद्युम्न द्वारा गुण्डिका नामक यात्रा, माहात्म्य), १.६४(भिन्न - भिन्न मासों में यात्रा के फल का कथन, यात्रा में देवप्रतिष्ठा विधि), भागवत १०.७९(बलराम की तीर्थ यात्रा), मत्स्य २४०(राजा द्वारा विजयार्थ यात्रा का विधान), वामन ८१(प्रह्लाद की तीर्थ यात्रा), विष्णुधर्मोत्तर २.१६३(यात्रा में शकुन), २.१७५(यात्रा काल का ज्योतिष), २.१७६(यात्रा विधि), ३.११७(देव यात्रा), ३.११९.३(यात्राकाल में त्रिविक्रम की पूजा का निर्देश), स्कन्द २.१.२९(अर्जुन द्वारा प्रतिज्ञा भङ्ग के कारण तीर्थ यात्रा), २.२.३०रथयात्रा, २.२.४५(दमनभञ्जिका यात्रा), २.८.१०अयोध्या यात्रा, ३.१.५१(सेतु यात्रा की विधि व क्रम), ५.१.२३.३४(महाकालेश्वर यात्रा विधि व माहात्म्य का वर्णन), ५.१.२६(पञ्चेशानी यात्रा), ५.१.२७(अवन्ती में चार विष्णु क्षेत्रों की यात्रा), ५.१.७०(महाकालवन की यात्रा की विधि), ५.३.२२८.१(परार्थ हेतु तीर्थ यात्रा का माहात्म्य), ६.३६.२२(यात्रा सिद्धि हेतु शाकुन सूक्त जप का निर्देश), ७.१.२८(प्रभास क्षेत्र की यात्रा की विधि व नियम), ७.२.११(वस्त्रापथ क्षेत्र यात्रा का विधान), ७.४.४(द्वारका यात्रा की विधि व माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.१५०, २.१७५.६५(यात्रा में शुक्र के बलशाली होने का उल्लेख ) yaatraa/ yatra


      यादव ब्रह्म १.१०१(प्रभास क्षेत्र में यादवों द्वारा एरका तृण से परस्पर आघात से यादवों का विनाश), भागवत ११.१(यादवों को ऋषियों से शाप प्राप्ति), स्कन्द ७.१.२३७(स्त्री रूप धारी साम्ब तथा यादवों द्वारा ऋषिवंचना, ऋषियों द्वारा शाप, यादवों के नाश का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण ३३.१६.१०याद, yaadava/ yadav


      यादस लक्ष्मीनारायण ३.४५.३२


      यान गरुड २.२.६८(यान हरण से उष्ट्र बनने का उल्लेख), २.१७.१९(अर्थदाता, कामदाता आदि के यानों का कथन), स्कन्द ५.३.५६.१२०(यान व शय्या प्रदाता को भार्या प्राप्ति का उल्लेख), ६.३६.१६(यान हेतु रथन्तर साम जप का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण २.७७.५०, द्र. काष्ठयान, देवयान, वाहन yaana


      याम अग्नि १२६.११(अर्धयामेश से फल विचार), पद्म १.३.१८१(यज्ञ व दक्षिणा - पुत्रों का गण), ब्रह्माण्ड १.२.९.४५(देवगण का नाम, यज्ञ व दक्षिणा के पुत्र), १.२.१३.८९(यज्ञ के यदु आदि १२ पुत्रों की देवगण के रूप में याम संज्ञा), भागवत ३.२२.३५(मनु के याम अयातयाम होने का उल्लेख - अयातयामाः तस्यासन् यामाः स्वान्तरयापनाः । श्रृण्वतो ध्यायतो विष्णोः कुर्वतो ब्रुवतः कथाः ॥ ), ६.६.१६(आतप - पुत्र पञ्चयाम का महत्त्व - पञ्चयामोऽथ भूतानि येन जाग्रति कर्मसु।), ८.१.१८(श्रीहरि द्वारा याम नामक देवों के साथ आकर असुरों का संहार और स्वायम्भुव मनु की रक्षा), मार्कण्डेय ५०.१८(यज्ञ व दक्षिणा के १२ पुत्रों की संज्ञा), वायु ३१.७(देवगण का नाम), विष्णु १.७.२१(स्वायम्भुव मन्वन्तर में यज्ञ व दक्षिणा से २ याम देवों की उत्पत्ति), १.१२.१२(ध्रुव - कृत तप से वसुधा की चञ्चलता के अन्तर्गत याम नामक देवों की परम व्याकुलता का उल्लेख - यामा नाम तदा देवा मैत्रेय परमाकुलाः । इन्द्रेण सह संमन्त्र्य ध्यानभङ्गं प्रचक्रमुः ॥), स्कन्द ४.२.६४.७४(याम नामक शिव के गणों द्वारा पापियों को प्रदत्त यातनाओं का वर्णन ), ३.३.१२.१९(महेश्वरः पातु दिनादियामे मां मध्ययामेऽवतु वामदेवः ।। त्रियंबकः पातु तृतीययामे वृषध्वजः पातु दिनांत्ययामे ।।..) yaama

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      यामिनी नारद १.६६.१३३(द्विरण्ड गणेश की शक्ति यामिनी का उल्लेख), कथासरित् ८.३.२२(प्रह्लाद द्वारा सूर्यप्रभ को यामिनी नामक कन्या प्रदान ) yaaminee/ yaamini


      यास्क लक्ष्मीनारायण ४.४९


      युक्त वायु ३१.८, द्र. मन्वन्तर


      युक्ति अग्नि ३४२.१९(शब्दालङ्कार के ९ भेदों में से एक), ३४२.२९(पद, पदार्थ, वाक्य, वाक्यार्थ, प्रकरण और प्रपञ्च नामक युक्ति के ६ विषयों का उल्लेख), नारद १.६६.१११(शिरोत्तम की शक्ति युक्ति का उल्लेख ) yukti


      युग अग्नि २०९.१४(कार्तिक शुक्ल नवमी में कृतयुग, वैशाख शुक्ल तृतीया में त्रेतायुग, माघ पूर्णिमा में द्वापर तथा भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी में कलियुग की उत्पत्ति का उल्लेख), कूर्म १.२९(चतुर्युगों में धर्म की स्थिति), १.३७.३७(चतुर्युगों में विशिष्ट तीर्थ), गणेश २.१.१८(कृतयुग आदि में गणेश के वाहनों का कथन), गरुड १.२१५(चतुर्युग में धर्म का कथन), २.३४.२(विभिन्न युगों में धर्म की स्थिति), देवीभागवत ६.११(धर्म, अर्थ व काम के अनुसार प्रजा का युगों में विभाजन), नारद १.४१(चतुर्युग में धर्म की स्थिति), पद्म १.३९(युगों में काल का परिमाण, धर्म की स्थिति), ५.११४.३९५(चारों युगों के धर्म तथा कलियुग में दान की प्रशंसा), ६.११७.२१(चारों युगों में वर्णों की स्थिति), ब्रह्म १.१२३(युगान्त में युग का स्वरूप), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९०(चतुर्युगों में धर्म की स्थिति), ब्रह्माण्ड १.२.७.३९(चतुर्युग की स्थिति का वर्णन), १.२.२९+ (चतुर्युग में धर्म की स्थिति), १.२.२७.५१(चतुर्युगों में शिव के नाम), १.२.३१(चतुर्युग में धर्म की स्थिति), १.२.३२(चतुर्युगों में प्रजा का उच्छ्राय/उत्सेध/अङ्गुलि परिमाण), भविष्य १.२(युगों का मान), १.२.११९(४ युगों में क्रमश: तप, ज्ञान, यज्ञ और दान का उल्लेख), ३.४.२४.७४(युग के चरण के अनुसार नरों की तपोलोक आदि में स्थिति), ३.४.२५.५६(प्रत्येक मन्वन्तर के चार - चार युगों में मनुष्यों की आयु का कथन), भागवत १२.३(युगों में धर्म - अधर्म की स्थिति), मत्स्य १४२(त्रेता युग में धर्म की स्थिति, युग अनुसार काल गणना), १४४(चतुर्युग में धर्म की स्थिति), १४४(द्वापर व कलि में धर्म की स्थिति), १४५(युगानुसार शरीर का उच्छ्राय/परिमाण), १६५(युगों में धर्म की स्थिति), लिङ्ग १.३९+ (चतुर्युगों में धर्म की स्थिति), वराह ७०(युगों के गुणधर्म), वायु ८.३७, ३२.१४(युगों के काल के मूर्ति रूप होने का कथन), ५७.२३(चतुर्युगों में कालमान), ५७.३९(त्रेता युग में धर्म की स्थिति), ५८(द्वापर व कलियुग में धर्म की स्थिति), ७८.३६(चतुर्युगों में मुख्य प्रवृत्ति व वर्ण विभाजन), विष्णुधर्मोत्तर १.७४(युगान्त में अवतार), १.८२(खण्डयुगेश्वरों इन्द्राग्नि, नासत्य आदि का कथन), ३.१४४(चतुर्युग व्रत), शिव ३.४(सातवें वाराह कल्प के द्वापर युग में शम्भु के तत्तद्रूप से अवतार का वर्णन), स्कन्द १.२.५.१२१(युगादि तिथियां), १.२.४०.१७३(महाकाल- करन्धम संवाद में चतुर्युग की व्यवस्था), १.२.४१, ५.१.६३.१३४(विष्णु सहस्रनामों में विष्णु का एक नाम), ५.३.२८.१६(त्रिपुर नाश हेतु शिव द्वारा रथ सज्जा के अन्तर्गत युग के मध्य में मेरु तथा युग के नीचे महागिरि की स्थिति), ६.२७(चतुर्युगों के स्वरूप का वर्णन, युगों में धर्म के पाद), ६.५१.६४(चार युगों में तप, ध्यान, यज्ञयोग व दान की श्रेष्ठता का श्लोक), ६.२७२(चतुर्युगों में धर्म की स्थिति), ७.३.१०(चतुर्युगों में काल का परिमाण, धर्म - अधर्म की स्थिति), हरिवंश १.८(चारों युगों का वर्णन), २.७१.३१(४ युगों में भगवान् के श्वेत आदि वर्णों का कथन), ३.८(सत्ययुग आदि का वर्णन), महाभारत शान्ति ९१.६(राजा के ही युग कहलाने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.२.७(युगों के जगत रूपी वृक्ष में घुन का रूप होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४७(चतुर्युगों में धर्म की स्थिति), १.४२०, १.४८९.७१(सत्ययुग में तप, त्रेता में ध्यान, द्वापर में यज्ञ, दान आदि की श्रेष्ठता का कथन), १.५२६.११(कृत आदि चार युगों में धर्म आदि की स्थिति का वर्णन), २.८४, २.१५७.६(४ युगों का न्यास), २.२४५.४९, ३.१४४, ४.१०१.७(चार युगों में क्रमश: संकल्प, दर्शन, स्पर्श व मैथुन से सृष्टि होने का कथन ), ४.१०२, yuga


      युगन्धर पद्म १.३४(युगन्धर के ब्रह्मा के यज्ञ में चमसाध्वर्यु होने का उल्लेख), १.५५.३३(शन्तनु - पत्नी अमोघा द्वारा ब्रह्मा के वीर्य से उत्पन्न गर्भ के युगन्धर में मोचन का उल्लेख, परशुराम का जन्म), स्कन्द ३.१.५(शतानीक - मन्त्री, यौगन्धरायण - पिता), ५.१.६३.१३४(विष्णु सहस्रनाम के अन्तर्गत विष्णु का एक नाम), महाभारत कर्ण ४४.३९, कथासरित् २.१.१४(राजा शतानीक का मुख्यमन्त्री ) yugandhara


      युगादिदेव स्कन्द ५.१.५७(युगादिदेव राजा द्वारा अवन्ती में यज्ञ, तुहुण्ड दानव का उपद्रव),


      युद्ध अग्नि १२५.२९(युद्ध में ग्रहों का प्रभाव), १२८(कोट चक्र से युद्ध के फल का विचार), २२८(युद्ध हेतु यात्रा का विचार), २३६(युद्ध हेतु संग्राम दीक्षा विधि), देवीभागवत ५.२४.२६(देवी द्वारा शुम्भ - निशुम्भ के दूत को युद्ध में जय प्राप्त करने वाले से विवाह करने की प्रतिज्ञा का कथन), ५.२४.४८(धूम्रलोचन द्वारा देवी को युद्ध के रतिज और उत्साह जन्य भेदों का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०७(रुक्मिणी विवाह में युद्ध), ४.११५(बाणासुर व अनिरुद्ध का युद्ध), मार्कण्डेय ९(आडि - बक युद्ध), विष्णुधर्मोत्तर १.२५३(वानरों व गजों का युद्ध), १.२६०+ (भरत व शैलूष गन्धर्व का युद्ध), शिव २.२.३३+ (दक्ष यज्ञ में शिव के गणों व यज्ञ के सदस्यों का युद्ध), ५.२१.२०(युद्ध के फल का निरूपण), ७.१.२२(वीरभद्र व देवगण का युद्ध), स्कन्द १.१.४(दक्ष के यज्ञ में शिवगण व देवों का युद्ध), हरिवंश २.३६(जरासन्ध व बलराम का युद्ध), २.४३(जरासन्ध का कृष्ण व बलराम के साथ युद्ध), २.७३(पारिजात वृक्ष हरण के प्रसंग में इन्द्र - कृष्ण, जयन्त - प्रद्युम्न, प्रवर - सात्यकि, ऐरावत - गरुड का युद्ध), २.११९(अनिरुद्ध व बाणासुर का युद्ध), २.१२४(रुद्र व बाणासुर का कृष्ण के साथ युद्ध), ३.१४(बलि व इन्द्र का यज्ञ रूपी युद्ध), महाभारत शान्ति १६.२२(भीम द्वारा युधिष्ठिर को राज्य स्वीकार करके मन से युद्ध करने का प्रबोधन), योगवासिष्ठ ३.३१(युद्ध में शूर का महत्त्व), ३.३५(राजा सिन्धु व विदूरथ के युद्ध का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.१७५.६४(सङ्ग्राम में मङ्गल के बलशाली होने का उल्लेख),३.१९२, ४.५४, ४.८०, ४.८४.८९(युद्धवज्र : नन्दिभिल्ल - सेनापति, युद्ध में देवियों द्वारा वध का वृत्तान्त ) yuddha


      युध वायु ९९.२१/२.३७.२१


      युधाजित् देवीभागवत ३.१४+ (उज्जयिनी के राजा व लीलावती - पिता युधाजित् द्वारा युद्ध में राजा वीरसेन का वध, सुदर्शन से युद्ध में युधाजित् की मृत्यु की कथा), वा.रामायण १.७७.१७(केकय राजकुमार, भरत के मातुल), ७.१००(अश्वपति - पुत्र, राम को ब्रह्मर्षि गार्ग्य दूत का प्रेषण ) yudhaajit/ yudhajit


      युधिष्ठिर गरुड ३.१७.३९(युधिष्ठिर के यम-पत्नी श्यामला से रमण का कथन), पद्म ३.४९.५(युधिष्ठिर द्वारा मार्कण्डेय को महादान प्रदान), भविष्य ३.३.१(कलियुग में युधिष्ठिर का बलसान रूप में अवतरण), ४.२(कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को ब्रह्माण्डोत्पत्ति का वर्णन), भागवत १.८.४७(महाभारत युद्ध के पश्चात् युधिष्ठिर/धर्मसुत को स्वजन वध से शोक प्राप्ति), १.९(युधिष्ठिर का भीष्म के समीप गमन, भीष्म द्वारा विविध धर्मों का निरूपण), १.१४(युधिष्ठिर का विविध अपशकुनों का दर्शन कर शंकित होना, अर्जुन से द्वारका की कुशल क्षेम पृच्छा), १.१५(धृतराष्ट की मृत्यु की युधिष्ठिर द्वारा अपशकुन के दर्शन), ७.१+ (युधिष्ठिर का नारद से संवाद), मत्स्य १०३+ (युधिष्ठिर द्वारा मार्कण्डेय से पाप प्रशमन हेतु पृच्छा, प्रयाग माहात्म्य का श्रवण), विष्णुधर्मोत्तर १.२४(नहुष द्वारा अगस्त्य का पाद से ताडन, अगस्त्य द्वारा सर्पत्व प्राप्ति का शाप प्रदान, युधिष्ठिर से मिलन होने पर शाप के अन्त का कथन), स्कन्द ३.१.१८(राम खर में स्नान से युधिष्ठिर की असत्य भाषण के पाप से मुक्ति), ३.२.१(युधिष्ठिर द्वारा व्यास से धर्मारण्य की कथा का श्रवण), ६.१४०(धर्मराज - पुत्र, उपाध्याय ब्राह्मण द्वारा यम को उत्शाप से युधिष्ठिर की उत्पत्ति ) yudhishthira


      युयुत्सु भविष्य ३.३.२९.२३(कलियुग में युयुत्सु का धान्यपाल रूप में अवतरण), ३.३.३२.५३(कलियुग में युयुत्सु का धान्यपाल रूप में जन्म ), महाभारत आदि ६३.११८(धृताराष्ट्र द्वारा वैश्यजातीय भार्या के गर्भ से उत्पन्न पुत्र। इसकी करण संज्ञा थी), ११४.४३(इसकी उत्पत्ति), १२८.३७(दुर्योधन की प्रेरणा से भीमसेन के भोजन में दिए हुए विष की इसके द्वारा भीमसेन को सूचना), १८५.२(यह द्रौपदी के स्वयंवर में गया था), भीष्म ४३.१००(कुरुक्षेत्र के मैदान में पाण्डवों के पक्ष में आना), द्रोण १०.५८(यह योद्धाओं में श्रेष्ठ, धनुर्धरों में उत्तम, शौर्य-सम्पन्न, सत्यप्रतिज्ञ और महाबली था। वारणावत नगर में बहुत से राजा क्रोध में भरकर युयुत्सु पर चढ आए और उसे मार डालना चाहते थे, किन्तु इसे परास्त न कर सके), २३.३४(इसके घोडों का वर्णन), २५.१३(सुबाहु के साथ युद्ध करके उसकी दोनों भुजाएं काटना), २६.५६(भगदत्त के हाथी द्वारा इसके रथ के घोडों का मारा जाना), ७२.६०(अभिमन्यु-वध से हर्षोन्मत्त हुए कौरवों को इसका उपालम्भ देना), कर्ण २५.११(उलूक के साथ युद्ध में इसका पराजित होना), शल्य २९.८६(कृष्ण और युधिष्ठिर से आज्ञा लेकर इसका राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर लौटना), २९.९१(विदुर जी के पूछने पर उन्हें सब समाचार बताना), शान्ति ४१.१७(युधिष्ठिर द्वारा इसे धृतराष्ट्र की सेवा का भार सौंपा जाना), अनुशासन १६८.११(भीष्म के अन्त्येष्टि संस्कार के लिए चिता निर्माण करने में पाण्डवों के साथ यह भी था), आश्वमेधिक ६३.२४(मरुत्त का धन लाने के लिए पाण्डवों के हिमालय जाने पर यह हस्तिनापुर की रक्षा में नियुक्त था), आश्रमवासिक २३.१५(पाण्डव लोग जब वन में धृतराष्ट्र से मिलने गए थे, उस समय भी नगर-रक्षा का भार इसी पर था), ३९.१२(युयुत्सु को आगे करके पाण्डवों ने धृतराष्ट्र के लिए जलाञ्जलि दी), महाप्रस्थान १.६(महाप्रस्थान के समय बालक परीक्षित् को राज्य पर अभिषिक्त करके जब युधिष्ठिर जाने लगे, उस समय उन्होंने युयुत्सु को ही रा्ज्य की रक्षा का भार सौंपा था)। - गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित महाभारत नामानुक्रमणिका से साभार yuyutsu

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      युयुधान गर्ग १.५.२५(युयुधान के अम्बरीष का अंश होने का उल्लेख), १०.१५.२४(अर्जुन - प्रिय, राजा इन्द्रनील को परास्त करना), १०.४९.१८(अनिरुद्ध - सेनानी, शकुनि से युद्ध), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०६.१३०(युयुधान के आवाहन का मन्त्र ) yuyudhaana/ yuyudhana


      युवनाश्व कूर्म १.२०.१२(आर्द्रक - पुत्र, पुत्र हेतु गौतम से परामर्श, हृषीकेश के अनुग्रह से श्रावस्त पुत्र की प्राप्ति), १.२०.२३(रणाश्व - पुत्र, मान्धाता - पिता), देवीभागवत ७.९.३३(चन्द्र - पुत्र, शावन्त - पिता, पृथु वंश), ब्रह्म १.८.१९(युवनाश्व की पुत्री कावेरी का जह्नु से विवाह, युवनाश्व के शाप से गङ्गा का अर्धभाग से कावेरी से मिलन), भविष्य ४.८३.१४०(धरणीव्रत के फलस्वरूप राजा युवनाश्व को मान्धाता नामक पुत्र की प्राप्ति), मत्स्य १२.२९(इन्दु - पुत्र, श्रावस्त - पिता, इक्ष्वाकु वंश), १२.३४(रणाश्व - पुत्र, मान्धाता - पिता, इक्ष्वाकु वंश), विष्णु ४.२.४८(प्रसेनजित् - पुत्र, यज्ञ के अभिमन्त्रित जल से मान्धाता पुत्र के जन्म की कथा), वायु ९०.५५, विष्णुधर्मोत्तर १.१७०(युवनाश्व से मान्धाता के जन्म का प्रसंग), शिव ३.५.३६(२४वें द्वापर में शूली नामक शिवावतार के ४ शिष्यों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.२४४.७६(युवनाश्व द्वारा विप्रों को नारी व आवास दान का उल्लेख ) yuvanaashva/ yuvanashva


      युवा द्र. यौवन


      यूका कथासरित् १०.४.१२६(मन्दविसर्पिणी नामक यूका/जूं तथा टिट्टिभ नामक खटमल की कथा )


      यूप अग्नि ६४.३४(कूप, वापी तथा तडाग आदि के निर्माण में यूप स्थापना विधि), ब्रह्म २.९१.३८(यज्ञ में काल का रूप, गुण योक्त्र, पुरुष सूक्त वाचन ), २.९१.६७(यूप से अक्षय वट की उत्पत्ति का कथन), भविष्य २.३.१३(यूप की प्रतिष्ठा), वायु ६.१६(यूप का वराह के दंष्ट्र से साम्य), विष्णु १.८.२१(विष्णु यूप, लक्ष्मी चिति), स्कन्द ५.१.५२.४३(विष्णु - धारित वाराह स्वरूप में यूप के दाढ होने का उल्लेख), ५.३.४४.१८(ब्रह्मयूप : एक तीर्थ का नाम), महाभारत शान्ति २६.२७(धनुष, ज्या आदि का यज्ञ में यूप, रशना आदि से साम्य), आश्वमेधिक ८८.२७(युधिष्ठिर के अश्वमेध याग में यूपों की स्थिति का कथन), वा.रामायण १.१४.२२(दशरथ के अश्वमेध में यूप का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२२(विष्णु के यूप व लक्ष्मी के चिति होने का उल्लेख), १.५६४.६३(भरत के यज्ञ में यूप मूल से विशल्या नदी के प्रादुर्भाव का कथन ), २.१५५.१(यूप प्रतिष्ठा विधि), २.२७९.१५(माणिक्य यूप पूजन के लाभ), वास्तुसूत्रोपनिषद २.१८(यूप का शिल्प में रूप से साम्य), yuupa/yoopa/ yupa


      यूपाक्ष वा.रामायण ५.४६.२९(रावण - सेनानी, प्रमदावन में हनुमान से युद्ध व मृत्यु), ६.७६(मैन्द वानर द्वारा रावण - सेनानी यूपाक्ष का वध ) yuupaaksha/ yupaksha


      योग अग्नि १२३(युद्धजय योग), १२६.२४(त्रिपुष्कर योग का कथन), १२७.१(विष्कुम्भ आदि ज्योतिष योगों के फलों का विचार), १४०(वश्यादि योग), १६५(ध्यान योग का वर्णन), ३७२+ (अष्टाङ्ग योग), कूर्म १.२.८५(योगी के तीन प्रकार), १.३(कर्म योग का कथन), १.५३(योगियों के नाम), २.११(अष्टाङ्ग/सांख्य योग), गणेश २.१३८(गणेश गीता के अन्तर्गत योग के तात्पर्य की व्याख्या), २.१४२(योगी द्वारा आचरणीय कृत्यों का वर्णन), गरुड १.१४( ध्यान योग), १.४४(अष्टाङ्ग योग), १.४९(योगी के प्रकार, लक्षण, अष्टाङ्ग योग), १.५९.३५(ज्योतिष में ग्रह - नक्षत्रों के योग के अनुसार उत्पात - व अमृत - योग), १.२१८(अष्टाङ्ग योग का वर्णन), १.२२७(योग में धारणा, ध्यान आदि), देवीभागवत ७.३५(परमेश्वरी द्वारा हिमालय को अष्टाङ्ग योग का वर्णन), ८.२४(विष्कुम्भादि योगों में देवी को अर्पणीय नैवेद्य), नारद १.३३(क्रिया योग/ विष्णु भक्ति का निरूपण), १.४४.८३(ध्यान योग का वर्णन : भरद्वाज व भृगु संवाद का प्रसंग), १.४७(केशिध्वज द्वारा खाण्डिक्य को अष्टाङ्ग योग का वर्णन), १.५६.२१२(ज्योतिष में कार्य हेतु मुहूर्त, योग विचार), १६५, पद्म ३.५१(कर्म योग), ७.०(क्रिया योग संहिता), ब्रह्म १.१२७(योगशास्त्रों का अध्ययन, योगनिषिद्ध स्थल तथा योगाभ्यास के फल का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६७(आध्यात्मिक योग), ४.११०(योग की अपेक्षा ज्ञान की श्रेष्ठता), ब्रह्माण्ड २.३.१३.१३५(योग की महिमा), ३.४.२.२९३(प्रत्याहार योग), भविष्य १.६३(क्रिया योग), १.१४५.७(अष्टाङ्ग योग), भागवत ३.२८(अष्टाङ्ग योग, हरि धारणा योग), ३.३२(भक्ति योग की उत्कृष्टता), ११.२०.६(ज्ञान, कर्म व भक्ति योग का निरूपण), ११.२७(क्रिया योग में पूजा - उपासना का वर्णन), मत्स्य ५१.२७(पावक/अवभृथ अग्नि का नाम), ५२(कर्म योग का महत्त्व), ५३.४५(शरत्कालीन विषुव योग में वामन पुराण के दान का निर्देश), ५३.५१(विषुव योग में मत्स्य पुराण के दान का निर्देश), ५३.५६(व्यतीपात योग में ब्रह्माण्ड पुराण के दान का निर्देश), मार्कण्डेय ३८.२०(राजा अलर्क की दत्तात्रेय से योग उपदेश हेतु प्रार्थना), ३९(दत्तात्रेय द्वारा अलर्क को अष्टाङ्ग योग का अनुशासन), ४०(अलर्क - दत्तात्रेय संवाद में सिद्धियों का प्रवर्तन), ४१(परिचर्या योग), १३३.७/१३०.७(आर्ष्टिषेण से योग की शिक्षा प्राप्ति का उल्लेख), लिङ्ग १.७(योग के आचार्यों व उनके शिष्यों के नाम), १.७५.५(योगी की आनन्दस्वरूपता का उल्लेख), १.८८(पाशुपत योग का वर्णन), २.९(पाशुपत योग), २.५५.७(मन्त्र, भाव आदि योग के प्रकारों का वर्णन), वराह १४.४९(पितरों का आधार सोम तथा सोम का आधार योग होने से श्राद्ध में योग की श्रेष्ठता का उल्लेख), ११४.६०(धरणी देवी का श्रीनारायण से योग व सांख्य के निश्चय के विषय में प्रश्न), वामन ६१.५३(ब्रह्मा व सन्त्कुमार संवाद में द्वादश पत्रक योग), ९०.१४(प्रयाग में विष्णु का योगशायी नाम से वास), ९०.२४(भिल्लीवन में विष्णु का महायोग नाम), ९०.३८(पाताल में विष्णु का योगीश नाम), वायु १०.६८(अष्टाङ्ग योग की महिमा), ११(पाशुपत योग की विधि), १२(योग के उपसर्ग / सिद्धियां), १३(योग द्वारा ऐश्वर्य प्राप्ति), १६(योगी हेतु आहार व्यवस्था), ५९.४२(यज्ञ के संदर्भ में योग के लक्षण), ७१.६६(श्राद्ध में योगी का महत्त्व), १०२.७९(ज्ञान व वैराग्य योग का वर्णन), विष्णु ६.७(ब्रह्म योग), विष्णु ६.७(केशिध्वज - खाण्डिक्य संवाद में ब्रह्म योग का निरूपण), विष्णुधर्मोत्तर १.६१.६(अखण्डकारी बनने के लिए ५ कालों में से एक), १.६५(अष्टाङ्ग योग), १.६५.१(योगकाल में करणीय कृत्यों का वर्णन), ३.२८०+ (अष्टाङ्ग योग), शिव ५.२६-२७(योगियों द्वारा मृत्युकाल वञ्चन का वर्णन), ५.५१(ज्ञान, क्रिया व भक्ति योग), ६.६(अष्टाङ्ग योग), ७.२.९(२८ योगाचार्यों के नाम), ७.२.१०.३३(वृत्यन्तरनिरोध रूप योग की परिभाषा), ७.२.३९(योग मार्ग और उसमें विघ्न), स्कन्द १.२.५५(योग के स्वरूप का लक्षण), ४.१.२१.४०(योगों में व्यतिपात योग की श्रेष्ठता), ४.१.४१.४५(अष्टाङ्ग योग का वर्णन), ४.१.४१.१७१(काशी के स्थलों से योग की उपमा), ६.२६२(ध्यान योग, ज्ञान योग), ७.१.३(शिव - पार्वती संवाद में विभूति योग), ७.१.१४(जैगीषव्य द्वारा शिव से योग प्राप्ति), ७.१.९७(योगेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश १.१९(योग भ्रष्ट पुरुषों की गति), ३.१७.३४(अष्टाङ्ग योग), ३.१८+ (योग की विभूतियां, सिद्धियां व उपसर्ग), महाभारत शान्ति २३६, २४०, २७४.१३(योग के ५ दोषों के नाम), ३००, ३०६, ३१६, योगवासिष्ठ ४.४५(यथार्थभूत योग), ४.४७(जगत्रस योग), ४.५३(संसार नगर योग), ४.५६(कर्तृत्व विचार योग), ५.२१(तृष्णा - विचिकित्सा योग), ५.२५(सिद्धान्त योग), ५.२६(बलि उपदेश योग), ५.६८(संग विचार योग), ५.६९(शान्ति समायात योग), ५.७८(उपशम प्रकरण के ७८वें अध्याय का योगवर्णन नामकरण), ५.८२(योग द्वारा इन्द्रिय अनुशासन), ५.८३(चित्त सत्ता योग), ५.८५(समाधि योग), ५.९०(चित्तोपदेश योग), ५.९१(संसृति बीज योग), ५.९२(संसृति निराकरण योग), ६.१.११(जीवन्मुक्त निश्चय योग), ६.१.१३(ज्ञान योग), ६.१.२०(योग की ७ भूमिकाएं), ६.१.२८(परमार्थ योग), ६.१.४९(संसृति योग), ६.१.५०(अक्ष संवेदन योग), ६.१.६०(विभूति योग), ६.१.८२(योग से अणिमादि लाभ), ६.१.८५(सुख योग), ६.२.१(योग द्वारा इच्छा चिकित्सा), ६.२.२(योग द्वारा कर्म बीज दाह), ६.२.३(दृश्य उपशम योग), ६.२.१०(सर्गापवर्गप्रतिपत्ति योग), ६.२.१७(योग की अहंत्वासत्ता), ६.२.१८(जगत - जाल कोश), ६.२.२०(जीव निर्वाण योग), ६.२.२२(सुख योग), ६.२.२७(मुख्य योग), ६.२.३०(परमार्थोपन्यास योग), ६.२.३४(परमार्थ योग), ६.२.३७(दृश्य उपदेश योग), ६.२.३९(स्वभाव विश्रान्ति योग), ६.२.५१(विश्रान्ति योग), ६.२.१७१(द्वैतैक्य निरामय योग), ६.२.१९५(बोध प्रकाशीकरण योग), लक्ष्मीनारायण २.१५७.१५, २.१७६(ज्योतिष में २८ योगों का वर्णन), २.२४१(पतञ्जलि व चमस के संवाद में अष्टाङ्ग योग की श्रीहरि की भक्ति के रूप में व्याख्या), २.२५५.१, ३.५, ३.४५, ३.४६, ३.४७.६९(अष्टाङ्ग योग का वर्णन), ३.४७.९०(अष्टाङ्ग योग), ३.८१.६४योगायन, ३.१०१.१, ४.१४(परम वैष्णव योग), ४.२४,४.२५, ४.७५, कथासरित् ३.५.८०(ब्रह्मदत्त - मन्त्री, वत्सराज की दिग्विजय यात्रा में बाधा उपस्थित करना ), द्र. विभूतियोग yoga


      योगनन्द कथासरित् १.४.१०३(राजा नन्द की मृत्यु, इन्द्रदत्त का राजा के शरीर में प्रवेश, नन्द का योगानन्द नाम धारण ),१.५.१२२(चाणक्य द्वारा उत्पन्न कृत्या द्वारा योगनन्द की मृत्यु ), द्र. योगानन्द


      योगनाथ ब्रह्माण्ड ३.४.३७.२८(कामेश देव द्वारा मित्री, शोडिश, चर्या आदि ४ योगनाथों की सृष्टि का कथन )


      योगनिद्रा नारद १.८४.४(मधु-कैटभ प्रसंग में विष्णु की अक्षियों में स्थित निद्रा देवी के मन्त्र विधान का कथन), पद्म ६.२२७.५३(योगनिद्रा महामाया के त्रिगुणान्विता होने का कथन), मार्कण्डेय ८१.४१(मधु - कैटभ प्रसंग में योगनिद्रा), विष्णु ४.१५.३१(योगनिद्रा की गोपपत्नी यशोदा के गर्भ में स्थिति), ५.१.७१(योगनिद्रा द्वारा षड्गर्भों को देवकी के गर्भ में क्रमश: स्थापित करना, स्वयं यशोदा - पुत्री बनना, योगनिद्रा की महिमा), ५.२.३( देवकी के गर्भ में हरि का तथा यशोदा के गर्भ में योगनिद्रा का प्रवेश), ५.३.१६(योगनिद्रा के प्रभाव से कंस कारागार के रक्षकों व द्वारपालों का मोहित होना, वसुदेव का कृष्ण को लेकर बहिर्गमन), हरिवंश २.२+ (योगनिद्रा का देवकी के गर्भ में अवतार, कंस द्वारा योगनिद्रा के वध का प्रयत्न, योगनिद्रा का कौशिकी नाम, स्तुति), लक्ष्मीनारायण १.५४३.७८(दक्ष द्वारा विश्वेदेवों को प्रदत्त ८ कन्याओं में से एक ) yoganidraa


      योगमाया देवीभागवत ४.१८.३४(विष्णु द्वारा ब्रह्मा प्रभृति देवों से सम्पूर्ण स्थावर जङ्गम जगत तथा स्वयं के भी योगमाया के आधीन होने का वर्णन), ६.१८(विष्णु द्वारा समस्त विश्व के योगमाया के आधीन होने का कथन), भागवत १०.२(योगमाया द्वारा देवकी के गर्भ को रोहिणी के गर्भ में स्थान्तरित करना, यशोदा के गर्भ से स्वयं जन्म लेना, योगमाया के अन्य नाम), १०.४(कंस द्वारा योगमाया के वध का उद्योग, योगमाया का आकाश में स्थित होना), विष्णु ५.२.३, ५.३, हरिवंश २.४.२(योगमाया द्वारा देवकी के सातवें गर्भ का संकर्षण कर रोहिणी के उदर में स्थापन ) yogamaayaa/ yogamaya


      योगलक्ष्मी भविष्य ४.१०३(गौतम व अहल्या - पुत्री, शाण्डिल्य - पत्नी योगलक्ष्मी के जन्मान्तर का वृत्तान्त, योगलक्ष्मी द्वारा कृत्तिका व्रत का चारण ) yogalakshmee/ yogalakshmi


      योगसिंह भविष्य ३.३.२९.४३(बौद्धसिंह द्वारा योगसिंह का वध )


      योगाचार्य शिव ७.२.९.६(वराह कल्प के सप्तम मन्वन्तर के २८ योगाचार्यों तथा उनके ४-४ शिष्यों का नामोल्लेख ) yogaachaarya/ yogacharya


      योगानन्द कथासरित् १.४.१०३(राजा नन्द की मृत्यु, इन्द्रदत्त का राजा के शरीर में प्रवेश, नन्द का योगानन्द नाम धारण ), द्र. योगनन्द


      योगिनी अग्नि ५२.१(६४ योगिनियों के नाम), ३४८.३(एकाक्षर कोष के अन्तर्गत ऐ अक्षर योगिनी का वाचक), नारद १.६६.११५(अत्रीश की शक्ति योगिनी का उल्लेख), पद्म ६.१८.१२६(शिव की आज्ञा से योगिनियों द्वारा जलन्धर दैत्य के रक्तादि का पान), स्कन्द १.२.१३.१७५(शतरुद्रिय प्रसंग में योगिनियों द्वारा अलक्तक लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), २.८.७.८१(योगिनी कुण्ड का माहात्म्य), ३.२.९.१०५(धर्मारण्य निवासी ब्राह्मणों का जृम्भक यक्ष द्वारा पीडन, ब्राह्मण रक्षार्थ देवों द्वारा धर्मारण्य में योगिनियों की स्थापना), ३.२.२२.१(काजेश विनिर्मित योगिनी देवियों के निवास व शक्ति का निरूपण), ३.३.१०, ४.१.४५.३३(दिवोदास के राज्य में विघ्नार्थ प्रस्थित ६४ योगिनियों के नाम), ४.२.७९.१०६(योगिनी पीठ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.७०.४५(६४ योगिनियों का उल्लेख), ७.१.११९.५४(६४ योगिनियों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.८३(काशी से दिवोदास के निष्कासन हेतु ६४ योगिनियों द्वारा विविध रूप धारण), १.४२४.१९(नग्ना राक्षसी से रक्षा हेतु योगिनी का उल्लेख), १.४४०.८१, १.५३८.१०८(६४ योगिनियों के नाम), २.१४८.२(देवायतन प्रतिष्ठा में वायवीय पीठ पर योगिनी – प्रतिष्ठा मन्त्र), २.१५३.६७, कथासरित् ८.५.१२२(शरभानना योगिनी के पराक्रम की कथा), १४.४.२५(नागस्वामी ब्राह्मण का योगिनी से रक्षा हेतु गौ की शरण में गमन, गौ द्वारा ब्राह्मण की योगिनी से रक्षा), १८.४.२१२(योगिनियों द्वारा कन्दर्प नामक ब्राह्मण की रक्षा, पश्चात् पतन, कन्दर्प द्वारा स्वमित्र से योगिनियों की माया का वर्णन ) yoginee/ yogini


      योगी स्कन्द ३.३.१०(ऋषभ योगी द्वारा परित्यक्ता रानी को ज्ञानोपदेश, पुत्र को जीवनदान का वृत्तान्त),५.३.१३९.११(सोमतीर्थ वर्णन के अन्तर्गत योगी के विशिष्ट भोज्यकाल का उल्लेख), ७.१.८३(योगीश्वरी देवी की पूजा का माहात्म्य, योगीश्वरी द्वारा महिषासुर का वध), महाभारत उद्योग ४६.१(योगिन: तं प्रपश्यन्ति पद वाले श्लोक ) yogee/ yogi


      योगेश्वर भागवत ८.१३.३२(योगेश्वर अवतार : देवहोत्र व बृहती - पुत्र), वराह २७(योगीश्वरी मातृका : काम का रूप), स्कन्द ७.१.८३(योगेश्वरी महादेवी तीर्थ का वर्णन), ७.१.९७(योगेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), कथासरित् २.४.४९(ब्रह्मराक्षस का नाम, यौगन्धरायण से मित्रता), ३.४.२३१(योगेश्वरी : योगेश्वरी द्वारा स्वसखी भद्रा को विद्याधरों के कोप से बचने हेतु उदयपर्वत पर जाने का आदेश), ६.६.२४(वत्सराज के कल्याणार्थ यौगन्धरायण द्वारा योगेश्वर नामक ब्रह्मराक्षस की सहायता लेना), ६.७.९६(कलिङ्गसेना का वृत्तान्त जानने हेतु योगेश्वर नामक ब्रह्मराक्षस की नियुक्ति, यौगन्धरायण द्वारा पशुपक्षियों द्वारा स्वरक्षा के सम्बन्ध में कथा का वर्णन ) yogeshwara


      योगोत्पत्ति ब्रह्माण्ड २.३.१०.८६(देवलोक के काव्य नामक पितरों की मानसी कन्या )


      योजन मत्स्य १११.८(प्रयाग मण्डल के पञ्च योजन विस्तीर्ण होने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.९७.५९(योजनगन्धा : शन्तनु - भार्या सत्यवती का पराशर - प्रदत्त दूसरा नाम), ५.३.१४३(योजनेश्वर तीर्थ का माहात्म्य ), कथासरित् १२.२५.५० yojana


      योद्धा महाभारत शान्ति १०१


      योधन स्कन्द ५.३.१४२.७६(योधनीपुर : केशव के कहने से ब्राह्मणों का योधनपुर में निवास, माहात्म्य), ५.३.१४२.८८, ५.३.१४६.३०(योधनीपुर तीर्थ में किए गए कार्यों के अक्षय होने का उल्लेख), ५.३.१८९.१४(पञ्च वराह रूपों में से द्वितीय वराह के वास का स्थान), ५.३.२३१.२५(तीर्थमाला के अन्तर्गत दो योधनपुर तीर्थों का उल्लेख ) yodhana


      योनि अग्नि ८४.३२(६ मृगयोनियों व ८ देवयोनियों के नाम), ३७१.३०(पाप अनुसार जीव योनियों की प्राप्ति), कूर्म २.३३(विभिन्न योनियों के जीवों की हत्या का प्रायश्चित्त), गरुड १.१०४(दुष्कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां), १.२१७(विभिन्न दुष्कर्मों के कारण प्राप्त योनियां), २.३४(दुष्कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां), देवीभागवत ९.३५.४३(पापों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां), पद्म ६.१७.८८(कृत्या द्वारा स्वयोनि में शुक्र का स्थापन), ब्रह्म १.१०८(पाप - पुण्य कर्मानुसार योनियों की प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.४४(कृतघ्नता दोष के फलस्वरूप प्राप्त योनियों का वर्णन), २.५८(पाप कर्मों से प्राप्त योनियां), ४.८५(पाप कर्मों से प्राप्त योनियां), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१२४(भास्कर के दिवसों के प्रविभागों की योनि होने का कथन), मत्स्य १२२.७१(कुश द्वीप की ७ नदियों में से एक, अपर नाम धूतपापा), मार्कण्डेय १४, १५(दुष्कृत्यों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां), वराह १३४+ (अविधि भगवत्कर्म के फलस्वरूप प्राप्त योनियां), वायु ५३.४४(ग्रहों की योनिभूत सूर्य की रश्मियों के नाम), विष्णु ३.१८.६८(पाषण्ड सम्भाषण दोष से राजा को श्वा, शृगाल प्रभृति विभिन्न कुयोनियों की प्राप्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०(पापकर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां), शिव ५.४.१०(१४ योनियों में से ८ देवयोनि, एक मनुष्ययोनि और ५ तिर्यक् योनि होने का उल्लेख), ७.१.३१.७०(देवयोन्यष्टक, मनुष्य मध्यम व अधम पक्षि आदि योनिपञ्चक का कथन), ७.२.१८.११(१४ योनियों का उल्लेख), स्कन्द ३.१.४९.७९(किम्पुरुषों द्वारा नाना योनियों में जन्म से मुक्ति की कामना), ३.३.१५(यवनराज दुर्जय द्वारा प्राप्त २५ योनियां), ५.२.७७.१०(महादेव का शिवा को गुणसमूहों की योनि तथा तपों की योनि बताना), ५.३.११४(अयोनिसंभव तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१२६(अयोनिप्रभव तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१५९.२२(दुष्कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां, अयोनिग को वृक योनि प्राप्ति), ५.३.२०९.१०८(पापिष्ठ को प्राप्त विभिन्न योनियों का कथन), महाभारत आश्वमेधिक २०.२४(पृथिवी, वायु, आकाश आदि ७ योनियों का कथन), लक्ष्मीनारायण १.५३७.५(अग्नि के समुद्र की योनि होने का उल्लेख ), द्र. अयोनि yoni


      योषा कथासरित् ८.४.१०६(भिन्न - भिन्न देशों की स्त्रियों द्वारा अपनी - अपनी विशेषताओं से पति के मनोरञ्जन का उल्लेख ) yoshaa


      यौगन्धरायण स्कन्द ३.१.५(युगन्धर - पुत्र, माल्यवान् का रूप), कथासरित् २.१.४३(शतानीक के प्रधानमन्त्री युगन्धर का पुत्र), २.४.३८(यौगन्धरायण द्वारा मन्त्रियों को राजाहीन राज्य की रक्षा हेतु तैयार रहने का आदेश), ६.५.६२(यौगन्धरायण की कूटनीति), ६.८.११४(यौगन्धरायण के पुत्र मरुभूति की युवराज नरवाहनदत्त के मुख्यमन्त्री पद पर नियुक्ति ) yaugandharaayana/ yaugandharayana


      यौवन स्कन्द ५.३.७८.२९(धन द्वारा मनुष्यों के और ऋतुओं द्वारा वृक्षों के यौवन के पुनरागमन का कथन), ५.३.१५९.२०(अप्राप्त यौवन का अनुगमन करने से सर्प योनि प्राप्ति का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.२०(युवावस्था के दोषों का वर्णन), १.२०.२३(युवावस्था की रोदन रूपी वृक्षों के वन से तथा चन्द्रमा से उपमा ) yauvana


      यौवनाश्व गर्ग १०.२१(भद्रावती पुरी का राजा, अनिरुद्ध की सेना से युद्ध व पराजय), देवीभागवत ७.९(प्रसेनजित् - पुत्र, पुत्रेष्टि में अभिमन्त्रित जल पान से मान्धाता पुत्र की उत्पत्ति की कथा ),द्र. युवनाश्व yauvanaashva/ yauvanashva


      रक्त अग्नि ११५.५७(प्रेतों में सित के जनक, रक्त के पितामह तथा कृष्ण के प्रपितामह होने का उल्लेख), गणेश २.६३.२८(रक्तकेश : देवान्तक - सेनानी, प्राकाम्य सिद्धि से युद्ध), गरुड २.३०.५१/२.४०.५१(मृतक के शोणित में मधु देने का उल्लेख), नारद १.५०.४४(सङ्गीत में रक्त का शब्दार्थ, वेणु वीणा और स्वरों का एकीभाव रक्त नाम से अभिहित), पद्म १.१४(विष्णु के रक्त से नर की उत्पत्ति का आख्यान), ५.७०.६१(उत्तर द्वार पर रक्त विष्णु की स्थिति का कथन), ब्रह्म १.७०.५२(शोणित के पित्तवर्ग में होने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३७.१७(रक्तदन्तिका देवी से आग्नेयी दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.१.५.२२(यज्ञवराह के सोमशोणित होने का उल्लेख), २.३.१४.२४(वल असुर के रक्त से रस-गन्ध से रहित लशुन, लवण आदि की उत्पत्ति), भविष्य ४.६१.३(रक्तासुर : महिषासुर - पुत्र, देवी द्वारा वध का वृत्तान्त), मत्स्य १९.९(प्रेत का भोजन रुधिर होने का उल्लेख), वायु २२.२१, ३२.२१(३०वें कल्प का नाम व वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर २.९१.११(वृक्षायुर्वेदविद् द्वारा शुक्ल को रक्त में बदलने का उल्लेख), स्कन्द ५.१.३७.३०(रुधिर : शिव द्वारा मातृकाओं को अन्धकासुर का रुधिर पीने का आदेश), ५.१.४४.२१(विष्णु द्वारा चक्र से राहु का शिर - छेदन करने पर राहु काया से रक्त का स्राव, उसी स्थल पर राहु तीर्थ का निर्माण), ६.२५२.२३(चातुर्मास में रक्ताञ्जन वृक्ष में वह्नि की स्थिति का उल्लेख), ७.३.३१(रक्त अनुबन्ध तीर्थ का माहात्म्य : इन्द्रसेन की स्त्री विनाश के पाप से मुक्ति), लक्ष्मीनारायण २.५.८८, २.३२.४४, २.५०.३२, २.११०.६७, ४.१०१.११६(,rakta


      रक्तबीज गणेश २.१०३.८(कमलासुर के रक्त के पतन से असंख्य असुरों की उत्पत्ति, सिद्धि व बुद्धि द्वारा रक्त पान), देवीभागवत ५.१, ५.२.४७(रम्भ दानव का अवतार), ५.२१.३४(शुम्भ - सेनानी रक्तबीज के शरीर से पतित रक्त की एक बूंद से तत्सदृश पुरुषों की उत्पत्ति), ५.२६.२८(शुम्भ - निशुम्भ सेनानी), ५.२७+ (शुम्भ - सेनानी, देवी से युद्ध, चामुण्डा द्वारा रक्तबीज के रक्त का पान, रक्तबीज की मृत्यु), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३७.१५(रक्तबीज - विनाशिनी देवी से हस्त की रक्षा की प्रार्थना), भविष्य ३.३.१(शिव का अंश ), ३.२.३६, ३.३.१५.१०(देवी द्वारा मूलशर्मा को रक्तबीज होने का वर), ३.३.२४.७५(महाबल के सामन्त का पुत्र, महाबल द्वारा बलखानि के विनाश हेतु नियुक्ति), ३.३.२७.५३(रक्तबीज व चामुण्ड आदि द्वारा तालन व आह्लादादि सेना का पराभव), मार्कण्डेय ८८(देवी द्वारा रक्तबीज के वध का आख्यान), वामन १७(रक्तबीज की उत्पत्ति), ५५(रक्तबीज का शुम्भ - निशुम्भ से परिचय), ५६(रक्त बीज का वध), शिव ५.४७.५४(शुम्भ व निशुम्भ - सेनानी, अम्बिका के पास गमन और अम्बिका से स्वामी के संदेश का कथन), लक्ष्मीनारायण १.१६३.२२(महिष रूप धारी रम्भ तथा महिषी से रक्तबीज की उत्पत्ति का वृत्तान्त), १.१६७, २.५५.९२, २.५७.२८, २.५७.१००(रक्तबीज का भविष्य में धुन्धु दैत्य के रूप में जन्म ), २.५८.९, raktabeeja/ raktabija


      रक्तलोचन पद्म ६.१६.२९(जालन्धर के नेत्रों का क्रोध से लाल होना), लक्ष्मीनारायण १.३३७.४२(रक्ताक्ष : शङ्खचूड - सेनानी, शनि से युद्ध ) raktalochana


      रक्तशृङ्ग स्कन्द ६.९(हिमालय - पुत्र, इन्द्र के आदेश से हाटक क्षेत्र के बिल को पूरित करने के लिए जाना),


      रक्ताक्ष देवीभागवत ९.२२(शङ्खचूड - सेनानी, शनि से युद्ध), स्कन्द ७.४.१७.१५(भगवत्परिचारक वर्ग में आग्नेय दिशा के द्वारपालों में से एक), कथासरित् १०.६.१०२(उलूकराज - मन्त्री ) raktaaksha/ raktaksha


      रक्ष अग्नि ३४८.२(रक्षक आदि अर्थों में ऊ एकाक्षर के प्रयोग का उल्लेख), मत्स्य ५१.३८(रक्षोहा अग्नि : कामनापूरक यज्ञों की अग्नि, यतिकृत उपनाम), शिव ३.५.१०(१४वें द्वापर के व्यास का नाम ) raksha


      रक्षा गरुड १.२१.४, ब्रह्माण्ड २.३.७.२९९(ऋक्ष - भगिनी, जाम्बवान - माता), लक्ष्मीनारायण २.२६७.४(म्लेच्छों द्वारा सुराष्ट्र के राजा व राणिका - पति रक्षाङ्गारका की हत्या ), ३.१९.३०रक्षालय, ३.५५.२रक्षाश्व rakshaa


      रक्षाबन्धन नारद १.१२४.२६(रक्षाबन्धन पूर्णिमा व्रत विधि), भविष्य ४.१३७(रक्षाबन्धन पर्व विधि ), लक्ष्मीनारायण १.२८०.६४? rakshaabandhana/ Rakshabandhan

      Preliminary comments on Rakshaabandhana


      रक्षित कथासरित् ११.१.७६(एक ज्ञानी भिक्षु), १६.२.११६(रक्षितिका : सुप्रहार नामक मछुआरे की माता, राजा मलयसिंह की कन्या पर सुप्रहार की आसक्ति होने पर रक्षितिका द्वारा उपाय का अवलम्बन, सुप्रहार तथा मलयसिंह - कन्या के विवाह का वृत्तान्त ) rakshita


      रघु स्कन्द २.८.४(रघु द्वारा कुबेर से प्राप्त धन से कौत्स मुनि को संतुष्ट करना ), द्र. सुरघु raghu


      रङ्कण भविष्य ३.४.१६(लक्ष्मीदत्त - पुत्र, यङ्कणा - पति, पावक/वैश्वानर का अंश), कथासरित् १२.२.८९(रङ्कुमाली : विद्याधर, तारावली - पति, विनयवती नामक कन्या की उत्पत्ति का वृत्तान्त ) rankana


      रङ्ग गर्ग ७.९.१०(शिशुपाल - मन्त्री, प्रद्युम्न - सेनानी, भानु द्वारा वध), ७.२६.२५(रङ्गवल्लीपुर का सुबाहु राजा, तुलसी की रङ्गवल्ली संज्ञा, महिमा), पद्म २.४२, २.४६(रङ्ग विद्याधर द्वारा शूकर रूप धारण कर पुलस्त्य के तप में विघ्न, शाप से शूकर योनि प्राप्ति), ५.७२.१३(रङ्गवेणी : रङ्ग - पुत्री, कृष्ण - पत्नी, पूर्व जन्म में हरिधाम मुनि), स्कन्द २.१.९.१८(भगवद्भक्त शूद्र, तुष्ट श्रीहरि द्वारा नृप होने का वरदान), लक्ष्मीनारायण ३.२१४.२रङ्कमयी ), ३.२२४.१ दीर्घरङ्ग, द्र. श्रीरङ्ग ranga


      रङ्गोजि गर्ग ४.१४(रङ्गपत्तन नगर के गोप रङ्गोजि द्वारा कंस की सहायता से कौरवों को पराजित करना, जालन्धर की स्त्रियों का रङ्गोजि गोप की कन्याएं बनकर कृष्ण को प्राप्त करना ) rangoji


      रचना भागवत ६.६.४४(दैत्यों की छोटी बहिन, त्वष्टा - पत्नी, संनिवेश एवं विश्वरूप - माता )


      रज अग्नि १०७.१७(विरज - पुत्र, सत्यजित् - पिता, स्वायम्भुव वंश), गरुड १.२१.४रजा, गर्ग ५.१८.९(रजोगुण वृत्ति रूपा गोपियों के कृष्ण के प्रति उद्गार), भविष्य ३.४.२५.३१(ब्रह्माण्ड के रजस से वायु रूप स्वारोचिष मनु की उत्पत्ति का उल्लेख), भागवत ७.१.८(रजोगुण से असुरों की वृद्धि का उल्लेख), वायु २८.३६(वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्र, मार्कण्डेयी - पति, केतुमान् - पिता ), शिव ७.१.१७.३४, लक्ष्मीनारायण २.२५५.३५, द्र. विरजा raja


      रजक गर्ग ५.५.३५(कृष्ण द्वारा रजक के उद्धार की कथा), ५.१०.४(पूर्व काल में राम राज्य में रजक द्वारा सीता विषयक अपवाद कथन के कारण कंस के काल में कृष्ण द्वारा रजक का उद्धार), पद्म ५.५५(राम द्वारा सीता को पुन: स्वीकार करने पर रजक द्वारा राम की निन्दा), ५.५७.६४(पूर्व जन्म में वाल्मीकि आश्रम में पक्षी, सीता द्वारा बन्धन पर प्राण त्याग, रजक बनना, राम की निन्दा), ब्रह्म १.८४.७१(कृष्ण - बलराम का मथुरा में भ्रमण करते हुए रजक से वस्त्र मांगना, रजक के न देने पर कृष्ण द्वारा तल प्रहार से रजक का वध), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७२(कृष्ण द्वारा रजक का उद्धार), भविष्य ३.२.६(कलिभोजन नामक रजक द्वारा कामाङ्गी की प्राप्ति की कथा), भागवत १०.४१(मथुरा में रजक द्वारा कृष्ण को वस्त्र न देने पर कृष्ण द्वारा रजक का वध), विष्णु ५.१९.१४(मथुरा में कृष्ण द्वारा रजक का वध), स्कन्द ६.१२३.२(शुद्धक नामक रजक द्वारा मलिन वस्त्रों का जलाशय में प्रक्षालन, शुक्लत्व प्राप्ति, जलाशय की शुक्ल तीर्थ रूप में प्रसिद्धि), ७.३.२३(शमिलाक्ष नामक रजक द्वारा मलिन वस्त्रों का जलाशय में प्रक्षालन, शुक्लत्व प्राप्ति, जलाशय की शुक्ल तीर्थ रूप से प्रसिद्धि), हरिवंश २.२७(कृष्ण द्वारा मथुरा में रजक का वध), महाभारत शान्ति ९१.२, कथासरित् १०.७.१३३(रजक के भार को वहन करने वाले गर्दभ की मूर्खता की कथा), १२.१३.१(रजक कन्या की कथा ) rajaka


      रजत पद्म ६.६.२७(, मत्स्य १७.२१(रजत धातु के पितरों को प्रिय और देवों को अप्रिय होने का उल्लेख), ५८.१८(तडाग आदि निर्माण में रजत - निर्मित मत्स्य व दुन्दुभि दान का निर्देश), ९१(रजताचल दान विधि), स्कन्द १.१.८.२४(नैर्ऋत द्वारा राजत लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३०१.६४(अग्नि के अश्रुओं से रजत की उत्पत्ति का उल्लेख), ३.३३.८६, ३.३४.१, कथासरित् १०.९.७४(रजतदंष्ट्र : वज्रदंष्ट्र नामक विद्याधरराज का पुत्र, शाप से स्वर्णचूड पक्षी बनना), १२.१.६८(वामदत्त विद्याधर द्वारा स्वसिद्धि के प्रभाव से मलय पर्वत के रजतकूट नामक शिखर पर नगर का निर्माण ) rajata


      रजतनाभ ब्रह्माण्ड २.३.७.११०(यक्ष व क्रतुस्थला - पुत्र, गुह्यक गण के पितामह, मणिभद्र - पिता), वायु ६९.१५१(यक्ष व क्रतुस्थली से रजतनाभ की उत्पत्ति, गुह्यक गण के आदि पूर्वज, वंश का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.१९७(रजतनाभ के वंश का वर्णन), हरिवंश १.६.३३(मणिवर - पिता, पृथिवी का दोग्धा, विशेषता ) rajatanaabha/ rajatanabha


      रजनी देवीभागवत ८.१२.२४(शाल्मलि द्वीप की नदियों में से एक), नारद १.५०.३९(निषाद की मूर्च्छना का नाम ) rajanee/ rajani


      रजस वायु ७०.१६(रजस प्रजापति के पुत्रों का दिशाओं के अधिपति बनना),


      रजस्वला ब्रह्मवैवर्त्त ४.५९.११२(शची – प्रोक्त रजस्वला स्त्री के दोष), लक्ष्मीनारायण १.३७४.८४(ऋतुकाल के चार दिनों में नारी की अशुद्धि का कथन), १.५८०.७३(रजस्वला अवस्था में नारी द्वारा भगवत्पूजा का प्रश्न व उत्तर ), २.२०९.६६(कामफल के रजस्वला होने का कथन), rajasvalaa


      रजि पद्म १.१२.७७(आयुष के ५ पुत्रों में से एक, तप से प्रसन्न विष्णु से देव, असुर व मनुष्यों में विजयी होने के वरदान की प्राप्ति, बृहस्पति द्वारा रजि - पुत्रों का मोहन), ब्रह्म १.९(आयु - पुत्र, देवों की ओर से युद्ध, इन्द्र द्वारा रजि - पुत्रों का नाश), ब्रह्माण्ड २.३.६७.८८(देवों के पक्ष में दानवों से युद्ध, इन्द्र पद प्राप्ति में इन्द्र द्वारा रजि की वंचना), भविष्य ४.१९१(भुवन प्रतिष्ठा नामक व्रताचरण से राजा रजि को सात जन्मों तक राजपद प्राप्ति), भागवत ९.१७.१(पुरूरवा - पौत्र, आयु - पुत्र, संक्षिप्त वर्णन), मत्स्य २४.३५(आयु के ५ पुत्रों में से एक, राजेय नाम से विख्यात सौ पुत्रों के पिता), वायु ९२.८३(इन्द्र बनने की शर्त पर रजि द्वारा देवों की ओर से युद्ध की कथा), विष्णु ४.९(रजि वंश का वर्णन, देवासुर युद्ध में दैत्यों और देवों द्वारा रजि से सहायता का आह्वान, रजि द्वारा देवों की सहायता), हरिवंश १.२८(आयु व प्रभा - पुत्र, असुरों से युद्धार्थ इन्द्र द्वारा रजि - पुत्र बनना, रजि - पुत्रों का नाश ) raji


      रजोवती भविष्य ३.२.३०


      रज्जु पद्म २.५४.२५(सती सुकला के संदर्भ में सत्य रूपी रज्जु से चेतना को बांधने का उल्लेख - एवं विचार्यैव तदा महासती सत्याख्यरज्ज्वा दृढबद्धचेतना
      गृहं स्वकीयं प्रविवेश सा तदा तत्तस्यभावं नियमेन वेत्तुम् ), मत्स्य २.१९(मनु की नौका के मत्स्य से बन्धन हेतु सर्प रूपी रज्जु के उपयोग का उल्लेख - भुजङ्गरज्वा मत्स्यस्य श्रृङ्गे नावमयोजयत्।), स्कन्द ५.३.१५५.११४(चाणक्य राजा का ध्यान में कृष्ण रज्जु का अवलम्बन करके प्रकाशयुक्त रज्जु का दर्शन करना - तत्र बद्ध्वोडुपं गाढं कृष्णरज्ज्वावलम्बितम् ॥ प्लवमानो जगामाऽशु ध्यायन्देवं जनार्दनम् ।), योगवासिष्ठ १.१८.२०(आन्त्रों की रज्जु से उपमा - आन्त्ररज्जुभिराबद्धं नेष्टं देहगृहं मम ।।), रशना लक्ष्मीनारायण २.२२५.९२(ईशानियों को शृङ्खला व रशना दान का उल्लेख - ईशानीभ्यश्च स ददौ शृंखला रशनास्तथा ।।), कृष्णोपनिषद २१(अदिति के रज्जु व कश्यप के उलूखल होने का उल्लेख ) rajju


      रञ्जन स्कन्द ५.३.६.४४(नर्मदा के रञ्जना नाम का कारण), लक्ष्मीनारायण ४.४६.७७, ४.१०१.११६


      रण भविष्य ३.२.१३.१(रणधीर : चन्द्रह्रदय नगर का एक राजा), वामन ५७.७५(नर्मदा द्वारा कुमार को रणोत्कट नामक गण प्रदान का उल्लेख), हरिवंश ३.५८.१(रणाजि : एक देव, एकचक्र नामक दैत्य के साथ युद्ध), लक्ष्मीनारायण २.४२+रणङ्गम, ४.३२रणस्तम्ब, ४.८४.८८(रणवज्र : नन्दिभिल्ल राजा का सेनापति, युद्ध में नागविक्रम द्वारा वध का वर्णन ) rana


      रणजित् भविष्य ३.३.२६.९०(परिमल व मलना - पुत्र, सात्यकि का अंश, नृहर, मर्दन व सरदन का वध, तारक द्वारा रणजित् का वध ), लक्ष्मीनारायण २.२०७.८० ranajit


      रण्ड लक्ष्मीनारायण १.४२४.१९(रण्ड के नाश हेतु दुर्गा का उल्लेख )


      रति अग्नि ३४८.२(रति अर्थ में ईं एकाक्षर के प्रयोग का उल्लेख), गणेश १.७७.६(जमदग्नि - पत्नी रेणुका की लोक में रति नाम से प्रसिद्धि), १.८८.३(रति द्वारा शिव से काम को जीवित करने की याचना, काम के मन:स्मरण मात्र से जीवित होने का वरदान आदि), गरुड १.२१.४(वामदेव की १३ कलाओं में से एक), ३.७.११(रति द्वारा हरि स्तुति), ३.२८.४२(रति का लक्षणा रूप में अवतरण), देवीभागवत ७.३८(आषाढ क्षेत्र में देवी की रति नाम से स्थिति का उल्लेख), १२.६.१३३(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.९०(अनिरुद्ध की शक्ति रति का उल्लेख), १.१२२.२८(रति - काम त्रयोदशी व्रत की विधि), पद्म १.४३(काम के दग्ध होने पर रति द्वारा शिव की स्तुति), २.७७(काम से वियोग और संयोग होने पर उत्पन्न रति के अश्रुओं से विभिन्न जन्मों का कथन), ७.२०(रति विदग्धा वेश्या दान से मुक्ति), ब्रह्म १.३६(काम के दग्ध होने पर शिव - पार्वती द्वारा कृष्ण के पुत्र रूप में पुनर्जीवन का वर), ब्रह्मवैवर्त्त १.४(रति की कृष्ण के वामाङ्ग से उत्पत्ति, रति के दर्शन पर ब्रह्मा के रेतस का पतन), ४.४५(शिव विवाह में रति द्वारा हास्य), ४.४६(रति का काम के साथ विहार, पार्वती व शंकर की रति, रति विच्छेद का दुष्परिणाम), ४.१०९(कृष्ण व रुक्मिणी के विवाह में रति द्वारा हास्य), ४.११५.७९(मायावती के रति की छाया होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.३०.४३(काम दग्धता से शोकयुक्त रति को देखकर परमेश्वरी द्वारा काम का पुन: सञ्जीवन, रति की प्रसन्नता, काम द्वारा स्तुत परमेश्वरी द्वारा काम को पुन: स्वकार्य के सम्पादन का निर्देश), भागवत ५.१५(विभु - पत्नी, पृथुषेण - माता), मत्स्य १३.३७(रतिप्रिया : देवी के १०८ नामों में से एक, गङ्गाद्वार तीर्थ में रति नाम से स्थिति), १५४.२६०(काम के दग्ध होने पर रति द्वारा शिव की स्तुति), विष्णु १.८.३३(राग - पत्नी), विष्णुधर्मोत्तर ३.५२(मूर्ति निर्माण में रति के हाथ में सौभाग्य कमल की निर्मिति का उल्लेख), शिव २.२.३, २.२.३.५३(दक्ष के शरीर से पतित क्षमादम्भ से उत्पत्ति), २.२.४(दक्ष - कन्या, काम से विवाह), २.३.१८.१५(रति सहित काम द्वारा शिव के ध्यान भङ्ग के प्रयास का वर्णन), स्कन्द १.१.२१(रति द्वारा काम के सञ्जीवन के लिए तप, नारद से संवाद), १.१.२१.११२(शम्बर द्वारा रति का हरण व मायावती नामकरण), २.८.८.१(रतिकुण्ड तथा कुसुमायुध कुण्ड का माहात्म्य), ५.२.१३.३६(शिव द्वारा काम के दग्ध होने पर रति का शोक, रति की प्रार्थना पर काम को अनङ्गता प्राप्ति), ५.३.१९८.७५, लक्ष्मीनारायण १.१८५, १.१९४, १.१९८.३९(दक्ष के वीर्य पतन से रति की उत्पत्ति का कथन), १.२५४, १.३१४, १.५३३.१२४(शरीर की वासना के दिव्य रूप में रति बनने का उल्लेख), १.५३९, ३.२५.४९, ४.१०१.८७, कथासरित् ६.८.४०(रति द्वारा अङ्ग युक्त काम को प्राप्त करने के लिए शिवाराधन, शिव द्वारा वत्सराज - पुत्र नरवाहनदत्त के रूप में काम रूप पति को प्राप्त करने का रति को आश्वासन ), द्र. गण्डान्तरति, तपोरति, सुरति rati


      रत्न अग्नि २४६(राजा द्वारा धारण योग्य रत्नों के नाम ; रत्न परीक्षा/ रत्नों के लक्षण), गरुड १.६८(बल असुर की काया के अवयवों के रूप, वज्र के गुण-दोषों का वर्णन), पद्म १.२१.१७२(रत्न शैल निर्माण व दान), ५.१७.३८(रत्नग्रीव : काञ्ची के राजा रत्नग्रीव द्वारा नील पर्वत की यात्रा, चतुर्भुजत्व प्राप्ति), ६.६.२४(इन्द्र के वज्र से विशीर्ण हुए बलि के शरीर - अवयवों का भिन्न - भिन्न रत्नों के बीजत्व को प्राप्त होना), ६.२३२(समुद्र मन्थन से दिव्य वस्तुओं की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड १.२.२९.७४(चक्रवर्ती हेतु ७ प्राणहीन व ७ प्राणयुक्त रत्नों का कथन), ३.४.९.६५(समुद्र मन्थन से उत्पन्न वस्तुओं में कौस्तुभ रत्न का नाम), भविष्य ४.१५७(रत्नधेनु दान की विधि), ४.२०२(रत्नाचल दान की विधि, विविध पर्वतों का विविध रत्नों से निर्माण), भागवत ८.८(समुद्र मन्थन से उत्पन्न वस्तुओं में कौस्तुभ रत्न का विष्णु द्वारा ग्रहण), ११.१६.३०(श्रीकृष्ण के रत्नों में पद्मराग होने का उल्लेख), मत्स्य ९०(रत्नाचल दान की विधि ; पर्वतों के लिए रत्न विशेष), २८८(रत्नधेनु दान की विधि), वायु ५७.६९(चक्रवर्ती हेतु ७ प्राणहीन व ७ प्राणयुक्त रत्नों का वर्णन), विष्णु १.९.९२(समुद्र मन्थन का कथन), ४.१२.३टीका(१४ रत्नों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.४०.१९(समुद्रमन्थन से विष, रत्नों आदि की उत्पत्ति), २.१५(रत्नों के नाम व महत्त्व), शिव २.५.३६.१०(रत्नसार : शङ्खचूड - सेनानी, जयन्त से युद्ध), ३.२२.१६(समुद्र मन्थन से उत्पन्न द्रव्यों के नाम), स्कन्द १.१.८.२२(इन्द्र द्वारा रत्नमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), १.१.३१.९९(रत्नों, धातुओं से लिङ्गों का निर्माण), २.८.८.३६(महारत्न तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ३.२.३६.३९(रत्नगङ्गा : आम व यामा - कन्या, कुम्भीपाल - भार्या, इन्द्रसूरि नामक जैनभिक्षु से प्रेरित होकर जैन धर्म ग्रहण व वैष्णव धर्म का त्याग), ४.१.३३.१६४(रत्नेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य, पुरुषार्थ महारत्न निर्वाण का कथन), ४.२.६७.११९(रत्नेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शङ्खचूड/रत्नचूड नाग कुमार द्वारा वसुभूति गन्धर्व की कन्या रत्नावली की सुबाहु दानव से रक्षा व विवाह), ५.१.४४.९(समुद्र मन्थन से प्राप्त १४ रत्नों के नाम), ६.२१०.१४(समुद्र मन्थन ३ कुरूप रत्नों की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा रत्नों का ग्रहण), ७.१.४३(रत्नेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, समुद्र द्वारा पूजित आदित्येश्वर लिङ्ग का नाम), ७.१.१५५(विष्णु द्वारा स्थापित रत्नेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.१५९(रत्न कुण्ड का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.१४०.३३(रत्नकूट प्रासाद के लक्षण), ३.१९.८६रत्ननारायणी, ३.३३.८६रत्नक, ३.१३२रत्नधेनु, ३.१६१+(बल असुर की देह से रत्नों की उत्पत्ति का वृत्तान्त), ३.१६२+(रत्नों/वज्रों के लक्षणों का वर्णन), कथासरित् ५.३.३(कनकपुरी के अन्वेषण हेतु शक्तिदेव का सत्यव्रत के साथ रत्नकूट नामक द्वीप में होने वाले यात्रोत्सव में गमन), ७.२.९(रत्नकूट नामक द्वीप निवासी रत्नाधिपति राजा की कथा), १२.५.९३(रत्नचन्द्रमति : एक भिक्षु, राजा विनीतमति से शास्त्रार्थ, राजा की हार, बौद्ध धर्म ग्रहण), १५.१.२२(नरवाहनदत्त द्वारा सरोवर रत्न, चन्दन रत्न, तलवार रत्न, चन्द्रिका रत्न, कामिनी रत्न तथा विध्वंसिनी रत्न नामक विद्या रत्नों की सिद्धि ) ratna


      रत्नदत्त कथासरित् ६.१.१५(वितस्तादत्त नामक वणिक् का पुत्र, राजा द्वारा मोक्षोपाय का कथन), १०.१.६(रत्नदत्त नामक वैश्य द्वारा राजा से भारवाही के वृत्तान्त का निवेदन), १२.२१.५(एक वणिक्, नन्दयन्ती - पति, रत्नवती - पिता, रत्नवती द्वारा एक चोर से विवाह की कथा), १८.४.१६५(एक ब्राह्मण, रूपवती – पिता, कन्या के विवाह की कथा ) ratnadatta


      रत्नधार लिङ्ग १.५०.६(रत्नधार पर्वत पर सप्तर्षियों का वास), वराह ८१.४(रत्नधार पर्वत के ऊपर सप्तर्षियों की स्थिति का उल्लेख )


      रत्नपुर कथासरित् ५.१.८२(रत्नपुर नगर निवासी शिव और माधव नामक धूर्त्तों की कथा), १८.४.२०४(रत्नपुर नगर निवासी कन्दर्प नामक ब्राह्मण की कथा )


      रत्नप्रभ लक्ष्मीनारायण ३.२२५, कथासरित् ८.३.३१(चन्द्रप्रभ - पुत्र, मय तथा सूर्यप्रभ आदि के द्वारा पृथ्वी के राज्य पर प्रतिष्ठा),


      रत्नप्रभा कथासरित् ७.१.१३७(हेमप्रभ - कन्या, वज्रप्रभ - स्वसा, नरवाहनदत्त से विवाह), ७.२.१(वही), ९.५.१५१(रत्नप्रभा : नागराज वासुकि की कन्या एक नागिन, राजा कनकवर्ष की पितृस्वसा, कनकवर्ष को पुत्र प्राप्ति हेतु कार्ति की आराधना का आदेश), १०.९.२१६(रत्नप्रभा : हिरण्यपुर राज्य के राजा कनकाक्ष की भार्या, हिरण्याक्ष - माता ) ratnaprabhaa


      रत्नभानु भविष्य ३.३.१.२६(नकुलांश लक्ष्मण का पिता), ३.३.५.६(चन्द्रकान्ता - पुत्र, जयचन्द्र - अनुज, वीरवती - पति, नकुलांश लक्षण का पिता), ३.३.६.५४(पृथ्वीराज - अग्रज, कृष्णकुमार से युद्ध में मृत्यु), ३.३.६.५६(पृथ्वीराज - सेनानी, उदयसिंह द्वारा वध), ३.४.२२.३८(आचार्य, पूर्व जन्म में वर्तक ) ratnabhaanu/ ratnabhanu


      रत्नमाला गर्ग १.१३.३०(बलि - पुत्री, वामन पर आसक्ति से पूतना बनना), ब्रह्मवैवर्त्त १.२४.१९(लक्ष्मी की कला, मनुवंशीय राजा सृंजय की कन्या, पूर्व जन्म में नारद - पत्नी मालती, पुन: नारद को पति रूप में प्राप्त करने हेतु तप), ४.६.१४५(सूर्य - पत्नी संज्ञा की अपनी कला से भूतल पर रत्नमाला नाम से उत्पत्ति), ४.१०.४२(बलि की कन्या, पूतना रूप में अवतरण), ४.१७.३६(पितरों की मानसी कन्या, पति रूप में जनक का वरण, पश्चात् सीता की उत्पत्ति), ४.३०.६१(राजा सुयज्ञ की कन्या, देवल - भार्या), ४.६९.५८(राधा की सखी रत्नमाला द्वारा वियोग में राधा की अवस्था का वर्णन), ४.९४.५१(रत्नमाला द्वारा राधा को सांत्वना ) ratnamaalaa/ ratnamala


      रत्नरेखा कथासरित् १०.१०.१३७(रत्नाकर नगर निवासी बुद्धिप्रभ राजा की भार्या, हेमप्रभा - माता )


      रत्नवर्मा कथासरित् १०.१.५४(चित्रकूट नगर निवासी एक वणिक्, ईश्वरवर्मा – पिता, पुत्र को कुट्टनी से शिक्षा दिलवाने की कथा )


      रत्नवर्ष कथासरित् ५.३.२१५(यक्ष, विद्युत्प्रभा - पिता, विद्युत्प्रभा की शाप से मुक्ति की कथा )


      रत्नसार देवीभागवत ९.२२.७(शङ्खचूड - सेनानी, जयन्त से युद्ध), लक्ष्मीनारायण १.३३७.४३(शङ्खचूड - सेनानी, जयन्त से युद्ध),


      रत्नाकर कथासरित् १०.३.५९(रत्नाकर नगर निवासी ज्योतिष्प्रभ व हर्षवती - पुत्र सोमप्रभ की कथा), १०.१०.१३६(रत्नाकर नगर निवासी बुद्धिप्रभ व रत्नरेखा - पुत्री हेमप्रभा की कथा), १८.४.११(अश्व, उच्चैःश्रवा - पुत्र), १८.४.२३५(रत्नाकर नगर निवासी जयदत्त ब्राह्मण की कन्या सुमना द्वारा पूर्वघटित स्ववृत्तान्त का वर्णन ) ratnaakara/ ratnakara


      रत्नाक्ष स्कन्द ६.२१२.१९(अयोध्या के अधिपति रत्नाक्ष द्वारा कुष्ठ प्राप्ति, विश्वामित्र तीर्थ में स्नान से कुष्ठ से मुक्ति, रत्नादित्य की स्थापना )


      रत्नादित्य स्कन्द ६.२१२(रत्नाक्ष द्वारा स्थापित रत्नादित्य का माहात्म्य, पशुरक्षक को दिव्य देह की प्राप्ति )


      रत्नावती स्कन्द ६.१९५.११+ (आनर्ताधिपति व मृगावती - पुत्री, ब्राह्मणी - सखी, परावसु को मातृभाव से स्तन पान कराना, तप, ब्राह्मणी - शूद्री तीर्थ का माहात्म्य), कथासरित् १२.२१.६(रत्नदत्त वणिक् की कन्या, एक चोर का पति रूप में वरण करने की कथा ) ratnaavatee/ ratnavati


      रत्नावली नारद २.२७.७७+ (काशिराज सुद्युम्न की पुत्री, गोभिल राक्षस द्वारा हरण, राक्षस की मृत्यु पर पिता से पुनर्मिलन, कौण्डिन्य विप्र से विवाह), स्कन्द ४.२.६७(वसुभूति गन्धर्व की कन्या, शशिलेखा आदि ४ सखियां, सुबाहु दानव द्वारा हरण, शङ्खचूड/रत्नचूड नागकुमार द्वारा रत्नावली की दानव से रक्षा व विवाह), ४.२.७६.८६(रत्नदीप नाग की पुत्री, पूर्व जन्म में कपोती, त्रिलोचन लिङ्ग की पूजा, परिमलालय विद्याधर की पत्नी बनना), लक्ष्मीनारायण १.४६८.१५, १.४७२, कथासरित् १२.१०.२२(वणिक् - कन्या, धनदत्त से विवाह, व्यसनी धनदत्त द्वारा रत्नावली की हत्या की कथा ) ratnaavalee/ ratnavali


      रत्निका लक्ष्मीनारायण ४.४६.४३


      रथ अग्नि १२०.२१(सूर्य के रथ का वर्णन), १२०.३३(ग्रहों के रथों का वर्णन), कूर्म १.४१.२७+ (सूर्य रथ व्यूह का कीर्तन), गणेश १.४७.४०(शिव द्वारा त्रिपुर वध हेतु रथ का वर्णन), गर्ग १.११.५७(योगमाया की अवतार देवी अनंशा का कंस के हाथ से छूटकर आकाशस्थ शतपत्र नामक रथ पर आरूढ होना और कंस को सम्बोधित करना), ७.३३.३(शकुनि असुर के वैजयन्त/जैत्र रथ का वर्णन), देवीभागवत ७.३४.३५(शरीर की रथ से उपमा- आत्मानं रथिनं विद्धि इति), ७.३६.८(रथ के अरों की भांति देह में नाडियों के नाभि से जुडे होने का उल्लेख), ८.१५.१०(उत्तरमार्ग, मध्यममार्ग तथा दक्षिण मार्गों से सूर्य के रथ की गति का वर्णन), १२.११.११(रथरेखा : पद्मरागमय साल की लोकनायिकाओं में से एक), नारद १.११६.६१(माघ शुक्ल सप्तमी को रथ सप्तमी), पद्म १.१७.२२८(कार्तिक पूर्णिमा को ब्रह्मा हेतु रथ यात्रा), १.४०.१५०(विष्णु के दिव्य रथ का वर्णन), १.४०.१६५(विष्णु से युद्ध हेतु मय आदि असुरों के रथों का वर्णन), ३.१५(त्रिपुर विनाशार्थ शिव का रथ), ब्रह्म १.१०.७(इन्द्र द्वारा ययाति को रथ प्रदान करना, अन्य राजाओं द्वारा ययाति से रथ की प्राप्ति, अन्त में वासुदेव द्वारा रथ की प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.५३(कृष्ण द्वारा योगबल से ५ रथों की उत्पत्ति, एक रथ नारायण को तथा एक रथ राधा को प्रदान, तीन अपने पास रखने का उल्लेख), ३.४.५२(नितम्ब सौन्दर्य हेतु एक सहस्र रथचक्र के दान का उल्लेख), ४.६.९९(प्रकृति देवी के रथ का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.२२.६१(सूर्य के चक्र के प्रकार व रथ का वर्णन), १.२.२३.५१(सोम के रथ का वर्णन), ३.४.१९(ललिता देवी का रथ), ३.४.२०.९१(ललिता देवी के गेय चक्र रथ व किरिचक्र रथ का वर्णन, पर्वों की शक्तियां आदि), ३.४.२७.३०(अन्धकार रथ), ३.४.२८.१५(किरिचक्र रथ, गेयचक्र रथ), भविष्य १.१८(ब्रह्मा की रथ यात्रा), १.५०.१६(रथ सप्तमी व्रत में कांचन रथ दान का निर्देश), १.५२+ (सूर्य की रथ यात्रा, रथांग काल अवयव रूप), १.५६(रथ पर्यटन विधि का वर्णन), १.५७.१०(सूर्य रथ व उसके वाहकों के लिए बलि का विधान), २.१.१७.१४(रथाग्नि के जातवेदस नाम का उल्लेख), ३.४.१२.३२(मायी असुर के त्रिपुर का ध्वंस करने के लिए शिव का रथ), ४.१३४(रथ यात्रा), ४.१८०(गज रथ व अश्व रथ दान की विधि), ४.१८७(हिरण्य अश्व रथ दान की विधि), ४.१८९(हेम हस्ति रथ दान की विधि), भागवत ४.२६.१(राजा पुरञ्जन के रथ का वर्णन, भार्याविहीन गृह की चक्र से रहित रथ से तुलना, द्र. ऋ. ३.५३.५), ४.२६.१५(वही), ४.२९.१८( पुरञ्जन के शरीर रूपी रथ के प्रतीकार्थ), ५.१.३१(राजा प्रियव्रत के रथ के पहियों से निर्मित लीकों से सात समुद्रों का निर्माण, तुलनीय – ऋ. १.१८०.१०), ५.१६.२(वही), ५.२१(सूर्य के रथ की गति का वर्णन), ७.१०.६६(त्रिपुर दहनार्थ शिव का रथ), ७.१५.४१(शरीर रूपी रथ), ८.१५.५(विश्वजित् यज्ञ में राजा बलि को दिव्य रथ की प्राप्ति), १०.४६.४७(गोपियों द्वारा नन्दबाबा के द्वार पर उद्धव जी के शातकौम्भमय रथ का दर्शन), १२.११.१६(मन व तन्मात्राओं से निर्मित विष्णु का आकूति रथ), १२.११.३२(सूर्य के रथ का वर्णन), मत्स्य १२५.३७(सूर्य के रथ का विस्तृत वर्णन), १२७(ग्रहों के रथों का वर्णन), १३३(त्रिपुर के विध्वंस हेतु शिव के रथ का वर्णन), १४८.३८(तारकासुर का रथ), १४८.४९(ग्रसन असुर का रथ), १४८.५०(महिषासुर का रथ), १४८.५१(मेघ असुर का रथ), १७३.२(मय के रथ का वर्णन), १७३.९(तारकासुर के रथ का वर्णन), १७३.१८(त्वष्टा का रथ), १७४.४(इन्द्र का रथ), १८८(बाण के त्रिपुर दहनार्थ शिव का रथ), २८१(हिरण्याश्व रथ दान की विधि), २८२(हेम हस्ति रथ दान की विधि), लिङ्ग १.५५(सूर्य के रथव्यूह का वर्णन), १.५७(ग्रहों के रथों का वर्णन), १.७२(त्रिपुर दहनार्थ शिव के रथ का वर्णन), वराह २१.३१(दक्ष के सृष्टियज्ञनाश हेतु रुद्र के वेदविद्यांग रथ का स्वरूप), वायु ५१.५४(सूर्य के रथ का वर्णन, रथ के अङ्गों का काल से तादात्म्य), ५२.५०(ग्रहों के रथों व अश्वों का वर्णन), ९२.१८, ९३.१८(ययाति को रुद्र से दिव्य रथ की प्राप्ति, रथ का वंशजों को स्थांतरण), ९९.१०१(अनपान के पुत्र दिविरथ का वंश), विष्णु २.८(सूर्य का रथ), २.१०(सूर्य रथ व्यूह का वर्णन), २.१२(ग्रहों के रथ), ५.३७.५१(जैत्र रथ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१६८(सूर्य का रथ), ३.३०१.३७(रथ प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि), शिव २.५.८(त्रिपुर वध हेतु शिव के लिए रथ का सृजन, श्रद्धा रथ की गति आदि), २.५.९( शिव के तेज को सहन करने में रथ के वेदरूपी अश्वों की अक्षमता, शिव को पशुपतित्व की प्राप्ति होने पर ही रथ की सक्षमता का वर्णन), ५.५१.६४(आषाढ शुक्ल तृतीया में करणीय रथोत्सव के अन्तर्गत रथ की पृथ्वी से, रथाङ्ग की सूर्य चन्द्रमा से, वेदों की अश्वों से तथा सारथि की ब्रह्मा से प्रतीकात्मता), स्कन्द १.१.१७.२८३(बलि द्वारा यज्ञ से रथ की प्राप्ति ), १.२.५.१२९(माघ रथसप्तमी - सूर्य के रथ के पूर्व में पंहुचने की तिथि, द्र. ऋ. ८.८०.४), १.२.३३.२५(त्रिपुरहंता शिव के क्षोणी रूपी रथ का रूपक), १.२.३८(सूर्य का रथ), १.२.४३.५६(अर्घ्य मन्त्र से सूर्य के रथ का आवाहन), २.२.२५.९(वासुदेव परिवार के रथ, रथ के अवयवों के नष्ट होने के दोष), २.२.३३(भगवद् मूर्ति स्थापना के लिए रथ यात्रा), २.२.३५(भगवद् रथ की रक्षा की विधि), ४.२.५८.१५८(त्रिपुर वधार्थ शिव का रथ), ४.२.८८.५९(दक्ष यज्ञ में सती गमन के लिए रथ का वर्णन), ५.१.२६.२४(पिङ्गलेश्वर शिव को रथ दान का उल्लेख), ५.१.२७.२५(कृष्ण द्वारा वरुण से रथ की प्राप्ति, रथ का यम के पास जाना), ५.१.३६.५६(नरदीप की रथ यात्रा), ५.३.२८(बाणासुर के त्रिपुर हननार्थ शिव का रथ), ६.३६.१६(यान हेतु रथन्तर साम जप का निर्देश ), ७.१.१०७.५८(कार्तिक पूर्णिमा को ब्रह्मा की रथ यात्रा), हरिवंश १.३०(इन्द्र द्वारा ययाति को प्रदत्त रथ का विवरण), १.४३.८(तार दैत्य का रथ), १.४३.२(मयासुर का रथ), २.६३.९२(नरकासुर का रथ), २.८१.३०(यम की भार्या द्वारा यामरथ व्रत का अनुष्ठान), २.१०५(शम्बर का रथ), २.११३(कृष्ण का रथ, अर्जुन सारथि ; समुद्र व पर्वतों द्वारा मार्ग देना), २.११९.१३८(बाण का रथ), ३.४९.३१(बलि का रथ), ३.४९.३२(बल का रथ), ३.४९.३७(नमुचि का रथ), ३.४९.४२(मय का रथ), ३.५०.१(पुलोमा का रथ), ३.५०.८(हयग्रीव का रथ), ३.५०.२३(शम्बर का रथ), ३.५१.१(अनुह्राद का रथ), ३.५१.८(विरोचन का रथ), ३.५१.२६(वृत्र का रथ), ३.५१.४३(राहु का रथ), ३.५१.५८(विप्रचित्ति का त्रैलोक्य विजय नामक रथ), ३.५१.६४(केशी का रथ), ३.५१.७३(बलि का रथ), ३.५२(विभिन्न देवगण के रथ), ३.५२.१०(इन्द्र का रथ), महाभारत वन ९९.१७(इल्वल द्वारा अगस्त्य को प्रदान किए गए हिरण्यरथ का वर्णन), १९८.१३(वसुमना राजा के पुष्परथ सम्बन्धी कथा), उद्योग ३४.५९(शरीर रथ का कथन), ९४.१२६, १७९.३(परशुराम द्वारा मेदिनी रूपी रथ पर आरूढ होकर भीष्म से युद्ध, मातरिश्वा सूत, वेदमाताएं कवच), द्रोण १२८, १४७.४६(सात्यकि का कृष्ण के रथ पर आरूढ होकर कर्ण से युद्ध), १४७.८१(कर्ण के रथ का स्वरूप), १५६.५७, १७६.१४(अलायुध राक्षस के रथ का स्वरूप), २०२.७३(त्रिपुर दहन का प्रसंग), कर्ण ३४.१७(शिव द्वारा त्रिपुरनाश के संदर्भ में रथ का वर्णन), ३८.५, ४६.३८, ८९.२८, ९०.१०२(अर्जुन से युद्ध में कर्ण के रथ के सव्य चक्र का भूमि द्वारा ग्रसन), शल्य १६.२४(शल्य से युद्ध में शैनेय व धृष्टद्युम्न के युधिष्ठिर के रथ के चक्ररक्षक बनने का उल्लेख), ६२.७(अर्जुन के रथ के भस्म होने का वृत्तान्त), शान्ति २३६.११(जीवयुक्त दिव्य रथ का वर्णन), अनुशासन ५३.३२(च्यवन ऋषि द्वारा रथ में कुशिक नृप को हय बनाने का वृत्तान्त), आश्वमेधिक ५१(बुद्धि से संयमित ब्रह्मरथ का कथन), स्त्री ७.१३(शरीर रथ में इन्द्रिय हयों का अनुसरण न करने का निर्देश), योगवासिष्ठ १.१६.११(मोह रूपी रथ), २.१२.२२(शरीर रूपी रथ का कथन), ३.४१.१७(रथ प्रत्यय वाले विदूरथ राजा के पूर्वजों के नाम), ३.४६.४(युद्धोन्मुख राजा विदूरथ के रथ का वर्णन), ६.१.३१.३९(चिति का रथ जीव, जीव का अहंकार, अहंकार का बुद्धि ; मन, प्राण आदि के रथों का कथन), वा.रामायण २.९६.१८(कोविदार वृक्ष के ध्वज से युक्त भरत का रथ), ५.४७.४(रावण - पुत्र अक्षकुमार का रथ), ६.५१.२८(रावण - सेनानी धूम्राक्ष का रथ), ६.१०६(रावण के रथ का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.७२, १.१२२, १.१७०.५१(कृष्ण से ५ रथों की उत्पत्ति व उनके वितरण का कथन), १.२२३(कृष्ण व रुक्मिणी का दुर्वासा के रथ के वाहक बनने का वृत्तान्त), १.२८१, १.५८७, १.५८८, १.५८९, २.१५९, २.२४५.४९(जीवरथ के अंगों का कथन – पुण्य सारथी आदि), २.२५३.३(देह रूपी शकट पर वस्तुओं का बोझ, शकट के अंगों का निरूपण), ३.१२८.७१, ३.१४२.४६, कथासरित् ८.४.८३(मनुष्यों और विद्याधरों के युद्ध में विद्याधरराज कालकम्पन द्वारा मनुष्य सेना को रथ - रथी से विहीन करना), ८.५.७९(प्रभास के साथ विद्याधरों के युद्ध में ४ रथहीन सैनिकों के रथ पर बैठने का उल्लेख ), द्र. अजरथ, अप्रतिरथ, जयद्रथ, चित्ररथ, चैत्ररथ, दशरथ, दृढरथ, धर्मरथ, बृहद्रथ, भद्ररथ, भागीरथी, भीमरथ, मनोरथ, महारथ, महीरथ, रुक्मरथ, विरथ, विदूरथ, विश्वरथ, वेदरथ, सत्यरथ, सुरथ, हेमरथ, वैरथ ratha


      रथकार लक्ष्मीनारायण ३.२१४.१, कथासरित् १०.६.१०४(तक्षा/रथकार तथा उसकी पत्नी की कथा )


      रथध्वज देवीभागवत ९.१५.४७(वृषध्वज - पुत्र, धर्मध्वज व कुशध्वज - पिता), ब्रह्मवैवर्त्त २.१३,


      रथन्तर अग्नि ५८.२६(रथन्तर से विष्णु को भूषा अर्पित करने का निर्देश), पद्म १.२०.४(रथन्तर कल्प में उत्पन्न पुष्पवाहन नामक नृपति का आख्यान), वायु १.२१.७०/२१.८०(२८वें बृहत्कल्प में सूर्य मण्डल के रथन्तर स्वरूप का कथन), स्कन्द ६.३६.१६(यान हेतु रथन्तर साम जप का निर्देश), ७.१.१०५.४५(चतुर्थ कल्प का नाम ), महाभारत वन २२०.१९(- रथन्तरश्चतपसः पुत्रोऽग्निः परिपठ्यते। मित्रविन्दाय वै तस्य हविरध्वर्यवो विदुः ।। (तपसः पुत्रः रथन्तरोऽग्निः अस्ति। तस्मै दीयमाना हविः मित्रविन्ददेवस्य भागः अस्ति, एवं यजुर्विदः गणयन्ति), अनुशासन १४.२८२(ब्रह्मा द्वारा रथन्तर साम से भव की स्तुति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२६९.२७(आषाढ चतुर्थी के रथन्तर कल्प का आद्य दिन होने का उल्लेख ) rathantara


      रथभृत् द्र. रथ सूर्य


      रथस्वन ब्रह्माण्ड १.२.२३.७(रथस्वन की सूर्य के रथ के साथ स्थिति ) rathaswana


      रथी महाभारत उद्योग १६६, कथासरित् ८.४.१२(सुनीथ के पूछने पर मयासुर द्वारा पूर्णरथी, द्विगुण रथी, त्रिगुण रथी, चतुर्गुण रथी, पञ्चगुण रथी, षड्गुण रथी तथा सप्तगुण रथी बतलाना ) rathee/ rathi


      रथीतर भागवत ९.६.१(पृषदश्व - पुत्र, अङ्गिरा से पुत्र की उत्पत्ति ) ratheetara/ rathitara


      रथौजा द्र. रथ सूर्य


      रन्तिदेव भागवत ९.२१(संकृति - पुत्र, रन्तिदेव के आतिथ्य व्रत का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५५९, ३.७४.५६ rantideva


      रन्तिनार मत्स्य ४९.७(औचेयु व ज्वलना - पुत्र, मनस्विनी - पति, अमूर्तरय, त्रिवन व गौरी - पिता, पूरु वंश, अपर नामक मतिनार व रन्तिभार), वायु ९९.१२८(रिवेयु व ज्वलना - पुत्र, सरस्वती - पति, त्रसु आदि पुत्रों के नाम ) rantinaara/ rantinara


      रन्तुक वामन ३४.११(कुरुक्षेत्र तीर्थ यात्रा से पूर्व रन्तुक नामक द्वारपाल के दर्शन तथा यक्ष को प्रणाम का निर्देश ) rantuka


      रमण देवीभागवत ८.१३.३४(वीतिहोत्र - पुत्र, पुष्कर द्वीप का स्वामी), स्कन्द ५.३.१९८.७८(रामतीर्थ में देवी का रमणा नाम से वास ) ramana


      रमणक गरुड २.२२.५८, भविष्य ५.२०?, वायु ४५.२(रमणक वर्ष का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४७०, ramanaka


      रमा गर्ग १.१६.२४(नृसिंह की शक्ति रमा का उल्लेख), २.२०(रमा द्वारा राधा को किंकिणी भेंट), देवीभागवत १२.६.१३४(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.९५(सूर विष्णु की शक्ति रमा का उल्लेख), १.६६.१३६(एकपाद गणेश की शक्ति रमा का उल्लेख), १.१२०.४८(रमा एकादशी व्रत की विधि), पद्म ६.६०(कार्तिक शुक्ल रमा एकादशी के संदर्भ में चन्द्रभागा व शोभन को दिव्य योग की प्राप्ति), स्कन्द ५.१.६५.२८(रमा सर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.८.३४ (हिरण्यकशिपु की पुत्री, त्वष्टा - पत्नी, वृत्र - माता), लक्ष्मीनारायण १.१२५.४६(अयोध्या में लक्ष्मी – नारायण के परितः रमा, रुक्मिणी आदि ८ शक्तियों का कथन), १.२९६, १.३३०.७०(विष्णु की तीन शक्तियों गौरी, लक्ष्मी व रमा का कथन, तीनों का वृक्ष रूप में उत्पन्न होना), १.३३०.७९(रमा का वृन्दा व तुलसी से साम्य), २.२८३.५६(रमा द्वारा बालकृष्ण के करों व पादों में अलक्तक देने का उल्लेख), २.२९७.८४(रमा पत्नी के गृह में दुग्ध पान करते कृष्ण के दर्शन ), ३.१७.९४(अनादिचतुर्मुख नारायण की शक्ति प्रमाक्षिकी रमा का कथन), ३.१००.१४१(रमा के सूर्यांश, नाकजित्सुता होने तथा अम्बादेवी से पद्मिनीदेवी/पद्मावती के रूप में जन्म लेने का कथन, पुरुषोत्तम त्रयोदशी व्रत के प्रभाव से परम धाम प्राप्ति का उल्लेख), ४.३१, ४.१०१.७०, द्र. मनोरमा ramaa


      रम्भ देवीभागवत ५.२(दनु - पुत्र, करम्भ - भ्राता, अग्नि द्वारा रम्भ को इन्द्र - विजयी पुत्र प्राप्ति का वरदान, रम्भ की महिषी पर आसक्ति, महिष द्वारा घात से रम्भ की मृत्यु, रम्भ का रक्तबीज रूप में अवतरण व महिषासुर पुत्र को जन्म), ब्रह्म १.९.२(आयु व प्रभा के ५ पुत्रों में से एक - स्वर्भानुतनयायां च प्रभायां जज्ञिरे नृपाः॥
      नहुषः प्रथमं जज्ञे वृद्धशर्म्मा ततः परम्। रम्भो रजिरनेनाश्च त्रिषु लोकेषु विश्रुताः॥), १.९.२७(रम्भ के अनपत्य होने का उल्लेख - रम्भोऽनपत्यस्त्वासीच्च वंशं वक्ष्याम्यनेनसः।), भागवत ९.१७.१०(आयु - पुत्र रम्भ के वंश का कथन - रम्भस्य रभसः पुत्रो गम्भीरश्चाक्रियस्ततः ॥), वामन १७.४३(रम्भ व करम्भ पर मालवट यक्ष की कृपा, महिष पुत्र की उत्पत्ति), वायु १.२१.३० (पञ्चम कल्प का नाम - भवश्चतुर्थो विज्ञेयः पंचमो रम्भ एव च।), वा.रामायण ६.२६.३१(सारण द्वारा रावण को रम्भ वानर का परिचय देना), लक्ष्मीनारायण १.१६३ (रम्भ द्वारा तप से महिष पुत्र की प्राप्ति, रम्भ से रक्तबीज के प्रादुर्भाव की कथा), कथासरित् ८.१.५६(सूर्यप्रभ द्वारा राजा रम्भ की कन्या तारावली के अपहरण का उल्लेख ) rambha



      रम्भा अग्नि ५०.१४(गौरी का रूप ; रम्भा की प्रतिमा के लक्षण), १८४.१३ (बुधाष्टमी व्रत कथा के अन्तर्गत धीर ब्राह्मण की भार्या, कौशिक व विजया - माता), गरुड १.१२०(रम्भा तृतीया व्रत की विधि, मास अनुसार गौरी के नाम), देवीभागवत १२.६.१३५(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म २.२४.३४(इन्द्र द्वारा वृत्र वध हेतु उपाय चिन्तन, रम्भा को वृत्र के मोहन का आदेश), २.२५(रम्भा द्वारा वृत्र का मोहन, मधुपान कराना, इन्द्र द्वारा वृत्र का वध), २.३५(सुनीथा के पूछने पर रम्भा द्वारा तपोरत अत्रि - पुत्र अङ्ग के वृत्तान्त का कथन), २.३६(रम्भा की सहायता से सुनीथा द्वारा अङ्ग का वशीकरण, गान्धर्व विधि से विवाह), २.११३(तपोरत अशोकसुन्दरी का नहुष के प्रति आकर्षण, रम्भा द्वारा आकर्षण के कारण का कथन, रम्भा के साथ अशोकसुन्दरी का नहुष के समीप गमन), ५.१२.७८+(अहिच्छत्रा नगरी के राजा सुमद के तप भङ्ग हेतु इन्द्र की आज्ञा से काम, वसन्त तथा रम्भा प्रभृति अप्सराओं का तपोवन में गमन, सुमद से वार्तालाप, कामाक्षा देवी द्वारा सुमद की रक्षा आदि), ब्रह्मवैवर्त्त १.१३.८(रम्भा अप्सरा को देखकर उपबर्हण गन्धर्व का वीर्यपात, ब्रह्मा से शाप की प्राप्ति), ३.२०.१२(इन्द्र की रम्भा में आसक्ति और रतिक्रीडा, दुर्वासा द्वारा इन्द्र को पुष्पदान, इन्द्र द्वारा पुष्प का अनादर), ४.१४.३५ (रम्भा का नलकूबर के साथ रमण, देवल द्वारा जनमेजय की महिषी होने का शाप, शक्र द्वारा रम्भा का धर्षण व मोक्ष), ४.३०.६९(रम्भा द्वारा देवल मुनि से रति की याचना, अस्वीकृति पर देवल को शाप), ४.६२.४१(रम्भा के शाप से दक्ष के छागमस्तक होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२३.२२(रम्भा की सूर्य के रथ के साथ स्थिति -- तिलोत्तमा तथा रंभा ब्रह्मापेतश्च राक्षसः ।.....तपस्तपस्ययोः सूर्ये वसंति मुनिसत्तमाः ।।), २.३.६.२९(मय - भार्या, दुन्दुभि आदि की माता - मयस्य जाता रंभायां पुत्राः षट्च महाबलाः ॥ मायावी दुन्दुभिश्चैव पुत्रश्च महिषस्तथा । कालिकश्चाजकर्णश्चकन्या मन्दोदरी तथा ॥), भविष्य ३.४.१२.४६(रम्भा अप्सरा द्वारा मच्छन्द के उपभोग से नाथशर्मा की उत्पत्ति), भविष्य ३.४.१५.२६(नलकूबर - पत्नी सुप्रभा द्वारा रावण को शाप), ४.७(शकट व्रत से मूलजालिक ब्राह्मण को रम्भा की प्राप्ति), ४.१८(रम्भा तृतीया व्रत में पञ्चाग्नि साधन, पार्वती द्वारा व्रत का चीर्णन), ४.२४(रम्भा तृतीया व्रत में पार्वती की मास अनुसार विभिन्न नामों से पूजा), ४.९२(रम्भा व्रत में कदली वृक्ष की पूजा), मत्स्य १३.२९(देवी के १०८ नामों में से एक, मलय पर्वत पर स्थिति), वामन ३८.३(रम्भा प्रभृति अप्सराओं को देखकर मङ्कणक ऋषि का वीर्य स्खलन, कलश में स्थापन, सप्त मरुद्गणों की उत्पत्ति), ४६.३३(रम्भा का चित्राङ्गद गन्धर्व में अनुराग, रम्भा अप्सरा द्वारा स्थापित रम्भेश्वर लिङ्ग के दर्शन से सुरूपता प्राप्ति), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.२४(विष्णु की विभूति वर्णन के अन्तर्गत विष्णु के अप्सराओं में रम्भा होने का उल्लेख - प्रह्रादः सर्वदैत्यानां रम्भा चाप्सरसां तथा ।।), १.१३०.१३(रम्भा द्वारा उर्वशी की व्यथा सुनना), स्कन्द ३.१.३९.३९(रम्भा का विश्वामित्र के शाप से शिला बनने व मुक्त होने की कथा), ४.२.७६.१४३(रम्भाफल चोरी से वानरीयोनि प्राप्ति का कथन), ५.१.४४.११(समुद्र मन्थन से उत्पत्ति), ५.२.३(ढुण्ढ नामक शिवगण द्वारा शक्र लोक में नृत्यरत रम्भा पर मोहित होकर शुक्र से शाप प्राप्ति), ५.२.१७.४(रम्भा के लय - ताल विहीन नृत्य को देखकर इन्द्र द्वारा मनुष्य लोक में जाने का शाप, नारद आदेश से रम्भा द्वारा अप्सरेश्वर लिङ्ग की आराधना व शाप से मुक्ति), ५.३.१९८.६६(अमल पर्वत पर देवी का रम्भा नाम से वास), ६.१४३(रम्भा द्वारा जाबालि के साथ रति व फलवती कन्या की प्राप्ति), ७.४.१७.३५(द्वारका की उत्तर दिशा में पूजनीय जनों में से एक - नारदोनाम गन्धर्वो रंभा चैव वराप्सराः । एते पूज्याः प्रयत्नेन प्लक्षोनाम महाद्रुमः ॥ ), हरिवंश २.९३.२८(मनोवती द्वारा रम्भा रूप का धारण), वा.रामायण १.६३.२६+ (रम्भा द्वारा उत्तर दिशा में तपोरत विश्वामित्र के तप में विघ्न, शाप से शिला बनना), ३.४.१९(रम्भा नामक अप्सरा में आसक्ति के कारण तुम्बुरु गन्धर्व को कुबेर से विराध राक्षस योनि रूप शाप की प्राप्ति), ७.२६.१४ (नलकूबर - भार्या, रावण द्वारा बलात्कार की चेष्टा पर नलकूबर द्वारा रावण को शाप), लक्ष्मीनारायण १.४८८.८२(रंभा के शाप से देवल का अष्टावक्र होना), १.५०३(जाबालि व रम्भा से फलवती कन्या का जन्म), कथासरित् ३.३.१९(इन्द्र के उत्सव में रम्भा का नृत्य, पुरूरवा का हास्य, तुम्बुरु द्वारा पुरूरवा को शाप), ६.२.५५(राजा सुषेण के उद्यान में रम्भा अप्सरा का आगमन, परस्पर आसक्ति, सुषेण व रम्भा से कन्या का जन्म, रम्भा की शाप समाप्ति और स्वर्गलोक गमन, राजा द्वारा कन्या सुलोचना के पालन का वृत्तान्त ), १२.३४.३७४( सुन्दरसेन की प्रिया मन्दारवती की नलकूबर-प्रिया रम्भा से तुलना), द्र. रथ सूर्य rambhaa

      महाभारत आदि ६५.५०(प्राधा के गर्भ से कश्यप द्वारा उत्पन्न अप्सरा), वन २८०.६०(नलकूबर – पत्नी, रावण द्वारा तिरस्कार पर नलकूबर द्वारा रावण को शाप), अनुशासन ३.११(विश्वामित्र के शाप से शिला बनने का उल्लेख), १९.४४(कुबेर की सभा में अष्टावक्र के स्वागत में नृत्य करने वाली अप्सराओं में एक)


      रम्यक गर्ग ७.३०(रम्यक वर्ष में कलङ्क राक्षस पर प्रद्युम्न - सेनानी प्रघोष द्वारा विजय), देवीभागवत ८.९(रम्यक वर्ष में मनु द्वारा मत्स्य रूपी हरि की आराधना), भागवत ५.२.१९(आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, रम्या - पति), ५.१८.२५(रम्यक वर्ष में मत्स्य देव की आराधना), वराह ८४.२(रम्यक वर्ष में उत्पन्न मानवों की स्थिति तथा दीर्घायुष्यता का उल्लेख), स्कन्द ५.१.७०(रम्य सर का माहात्म्य ) ramyaka


      रम्या भागवत ५.२.२३(मेरु की ९ कन्याओं में से एक, रम्यक - पत्नी )


      रय द्र. भूतरय


      रव लक्ष्मीनारायण २.१०६.४९रवासन, २.१६७.४०नाररव, ३.२२४, द्र. दीर्घरव, पुरूरवा


      रवि कूर्म १.४३.२०(आषाढ मास में रवि नामक सूर्य की रश्मियों की संख्या), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२७(रवि से वक्ष:स्थल की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.२१.४ (रवि शब्द की निरुक्ति- अवने), भविष्य १.६१.२५(खडे होते समय रवि सूर्य के स्मरण का निर्देश), १.१३८.३७(रवि की धर्म ध्वज का उल्लेख), २.१.१७.८(अवसानान्त में अग्नि के रवि नाम का उल्लेख), ३.४.२०.१९(अपरा प्रकृति के देवताओं में से एक, विधि/ब्रह्मा के रवि नामक अपरा प्रकृति का स्वामी होने का कथन), मत्स्य १२४.४(रवि की निरुक्ति - अवने), स्कन्द ३.२.१३(सूर्य - संज्ञा आख्यान), ३.२.१३.५८(रवि कुण्ड का माहात्म्य), ५.२.४४.३४(वक्र रवि द्वारा ब्रह्मा को शिरछेदन प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.७०(रवि तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१२५(रवि तीर्थ का माहात्म्य, सूर्य द्वारा तप करके आकाश में स्थित होना), ५.३.१९५.११(सूर्य ग्रहण के अवसर पर स्वर्ण दान से सूर्य के अनन्त फल दाता होने का उल्लेख?), ७.१.१३(सूर्य माहात्म्य, अर्कस्थल की उत्पत्ति ), लक्ष्मीनारायण २.१८४.४८(रविवार को शारीरिक व मानसिक व्याधियों के वर्जन का वर्णन), ३.४१.८८(चन्द्र पिता, रवि पितामह, अग्नि प्रपितामह), ravi


      रविक स्कन्द ३.३.७, ५.३.७०, ५.३.१२५


      रशना लक्ष्मीनारायण २.२२५.९२(ईशानियों को शृङ्खला व रशना दान का उल्लेख - ईशानीभ्यश्च स ददौ शृंखला रशनास्तथा ।।),द्र. रज्जु rashanaa


      रश्मि कूर्म १.४३.२(सूर्य की ७ रश्मियों के नाम व कार्य), ब्रह्माण्ड १.२.२४.३७(सूर्य की रश्मियां - पंचरश्मिसहस्राणि वरुणस्यार्ककर्मणि ।। षड्भिः सहस्रैः पूषा तु देवोंऽशुसप्तभिस्तथा ।।), १.२.२४.६५(ग्रहों को पुष्ट करने वाली सूर्य रश्मियों के नाम), ३.४.१.१३५(सूर्य की रश्मियां), भविष्य १.७८(सूर्य रश्मियों द्वारा ग्रहों का प्रकाशन), १.७८.१७(रश्मि के निघण्टु अनुसार पर्यायवाची नाम - हेतयः किरणा गावो रश्मयोऽथ गभस्तयः । अभीषवो घनं चोस्रा वसवोऽथ मरीचयः ।), मत्स्य १२८.१९(सूर्य की रश्मियों के नाम व विशिष्ट कार्य), लिङ्ग १.५९, १.६०.२०(सूर्य रश्मियों के नाम व उनके द्वारा पोषित ग्रह - सुषुम्नो हरि केशश्च विश्वकर्मा तथैव च।। विश्वव्यचाः पुनश्चाद्यः सन्नद्धश्च ततः परः।।....), २.१२(सूर्य की ग्रह पोषक आदि रश्मियों के नाम - शुक्लाख्या रश्मयस्तस्य शंभोर्मार्तंडरूपिणः।। घर्मं वितन्वते लोके सस्यपाकादिकारणम्।।), वायु १.७.४१/७.४६(प्रलय काल में सूर्य की सहस्र रश्मियों का सप्त - रश्मि होकर प्रत्येक रश्मि के एक - एक सूर्य बनने का कथन), ५३, स्कन्द ५.३.२८.१३(त्रिपुर वधार्थ शिव की रथ सज्जा में रश्मियों को छन्द? बनाने का उल्लेख), ५.३.२८.१७(त्रिपुर वधार्थ शिव की रथ सज्जा में रश्मिबन्धन में गायत्री और सावित्री के स्थित होने का उल्लेख), ५.३.३९.३२(कपिला गौ के पुच्छाग्र में सूर्यरश्मियों की स्थिति), लक्ष्मीनारायण २.२५५.६५, कथासरित् १०.३.९८(रश्मिमान् : लक्ष्मी का मानस पुत्र, दीधितिमान् मुनि द्वारा पालन - पोषण ), द्र. श्वेतरश्मि, सुरश्मि rashmi


      रश्मिकेतु वा.रामायण ६.४३.११(रावण - सेनानी, राम से युद्ध )


      रस अग्नि ८५.१५(प्रतिष्ठा कल में रस विषय तथा रूप, शब्द, स्पर्श व रस गुण होने का उल्लेख), २८१(आयुर्वेदानुसार कटु आदि रसों के लक्षण - रसादिलक्षणं वक्ष्ये भेषजानां गुणं श्रृणु । रसवीर्य्यविपाकज्ञो नृपादीन्रक्षयेन्नरः ।।), ३३९(शृङ्गारादि रसों का निरूपण), ३३९.२(परमात्मा के सहज आनन्द की अभिव्यक्ति का नाम), ३४२(हास्य, करुण आदि रसों का निरूपण), नारद २.१७.१४(सन्ध्यावली को देखने से ही षड्रसों की उत्पत्ति का कथन - वीक्षां चक्रेऽथ भांडानि षड्रसस्य तु हेतवे । तस्या वीक्षणमात्रेण परिपूर्णानि भूपते ।।), २.२२.८१(सब रसों के त्यागी को रजत व सुवर्ण पात्र देने का निर्देश), पद्म १.३४.८२(वरुण के रसों का अधिपति होने का उल्लेख - देवानां च पतिं शक्रं ज्योतिषां च दिवाकरं। नक्षत्राणां तथा सोमं रसानां वरुणं तथा॥), ५.७४.१०५(रस नाम प्रत्यय वाली राधा-सखियों के नाम), ६.६.२९(वल असुर के रुधिर से रसोद्भव की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३१.४२(रसिक शिरोमणि कृष्ण से उत्तर दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९(मधु - माधव मासों की रस संज्ञा), भविष्य ३.४.१९.५५ (रस तन्मात्रा के अधिपति? यक्षराज होने का उल्लेख - रूपमात्रा कुमारो वै रसमात्रा च यक्षराट् । गन्धमात्रा विश्वकर्मा श्रवणं भगवाञ्छनिः ।।), मत्स्य ६३(रस कल्याणिनी व्रत विधि, तृतीया व्रत, ललिता न्यास, भक्ष्याभक्ष्य), ८५.६(रसों में इक्षु रस की श्रेष्ठता का उल्लेख - प्रणवः सर्वमन्त्राणां नारीणां पार्वती यथा। तथा रसानां प्रवरः सदैवेक्षुरसोमतः।।), वराह २०७.४४(रसों के प्रतिसंहार से सौभाग्य प्राप्ति का उल्लेख - रसानां प्रतिसंहारात् सौभाग्यमनुजायते । आमिषस्य प्रतीहाराद्भवत्यायुष्मती प्रजा ।।), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२०(रस हरण से श्वान योनि प्राप्ति का उल्लेख), ३.१८.१(हास्य आदि ९ रसों के साथ मध्यम आदि ७ स्वरों का सामञ्जस्य - वीररौद्राद्भुतेषु षड्जपञ्चमौ । करुणे निषादगान्धारौ । बीभत्सभयानकयोर्धैवतम्। शान्ते मध्यमम् ।), ३.३०(अभिनय में शृङ्गार आदि रसों की अभिव्यक्ति), ३.४३(चित्रसूत्र में शृङ्गारादि रसों के प्रदर्शन का कथन), शिव १.१८.४८(ब्राह्मणों के लिए रस लिङ्ग के सर्वश्रेष्ठ होने का उल्लेख - रसलिंगं ब्राह्मणानां सर्वाभीष्टप्रदं भवेत्। बाणलिंगं क्षत्रियाणां महाराज्यप्रदं शुभम्॥ ), १.१८.५२(निवृत्तों व विधवाओं के लिए रस लिङ्ग के श्रेष्ठ होने का उल्लेख - विधवानां निवृत्तानां रसलिंगं विशिष्यते। बाल्येवायौवनेवापि वार्द्धकेवापि सुव्रताः॥), ७.१.२८.३(, महाभारत शान्ति २३३.७(प्रलय काल में ज्योति द्वारा आप: के गुण रस को आत्मसात् करने का उल्लेख - अपामपि गुणांस्तात ज्योतिराददते यदा। आपस्तदा त्वात्तगुणा ज्योतिःषूपरमन्ति वै।।), अनुशासन ८५.२८(अग्नि द्वारा मण्डूकों को रस न जानने का शाप - अग्निशापादजिह्वाऽपि रसज्ञानबहिष्कृताः। सरस्वतीं बहुविधां यूममुच्चारयिष्यथ।।), लक्ष्मीनारायण १.३०.१८(रसों द्वारा धातु प्राप्ति का उल्लेख), २.१५.५९, ३.२६.४६, ३.३२.१०१, ३.३६.३४, ३.१३८(रस कल्याण ललिता व्रत), ३.३२२.७३(क्षार त्याग व्रत के उद्यापन में रस दान का निर्देश ), ४.१०१.१०६रसिका, वास्तुसूत्रोपनिषद ५.६(८ प्रकार के रसों के व्यक्तीकरण हेतु शिल्प में रेखा विधान - शृङ्गाररूपार्थमब्रेखा ग्राह्याः ॥), द्र. अग्निरस, सुरसा rasa


      रसना अग्नि ८५.१४(प्रतिष्ठा कला/स्वप्न में रसना इन्द्रिय व रस विषय होने का उल्लेख), भविष्य ३.४.२५.३६(ब्रह्माण्ड रसना से मोह/मङ्गल? की उत्पत्ति का उल्लेख ) rasanaa


      रसा मत्स्य १६९.१३(रसा नामक पृथिवी की नाभिकमल में स्थिति ) rasaa


      रसातल वामन ९०.३५(रसातल में विष्णु के सहस्रशिर कालाग्नि, कपिल, कृत्तिवास नाम), स्कन्द ५.१.३०.२७(दैत्यों और पन्नगों का वास स्थान), लक्ष्मीनारायण २.५.३५, २.२२.२१(रसातल में चक्र तीर्थ की श्रेष्ठता का उल्लेख ) rasaatala/ rasatala


      रसायन लक्ष्मीनारायण ४.८०.१५, द्र. ब्रह्मरसायन


      रह लक्ष्मीनारायण ४.४२.८८


      रहस्य भविष्य १.६५(रहस्या नामक सप्तमी व्रत माहात्म्य का वर्णन), दुर्गासप्तशती(गीताप्रेस, गोरखपुर) परिशिष्ट १(प्राधानिक, २(वैकृतिक), ३(मूर्ति), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१३१, rahasya


      रहूगण नारद १.४८(जड भरत द्वारा सौवीरराज की शिबिका का वहन, सौवीरराज को उपदेश), १.४९( जड भरत द्वारा सौवीरराज को ऋभु व राजा निदाघ की कथा के माध्यम से समझाना), भागवत ५.१०+(रहूगण द्वारा जड भरत की शिबिका वाहक के रूप में नियुक्ति, भरत से उपदेश की प्राप्ति ) rahoogana/rahuugana/ rahugana

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      रहोदर वामन ३९(रहोदर की जङ्घा में राक्षस के शिर का चिपकना, उशना तीर्थ में मुक्ति )


      राका गरुड १.५.१२(स्मृति व आङ्गिरस - कन्या), देवीभागवत ८.१२.२४(शाल्मलि द्वीप की नदियों में से एक), ब्रह्माण्ड १.२.११.१८(स्मृति व अङ्गिरस - कन्या), भागवत ६.१८.३(धाता की चार पत्नियों में से एक), मत्स्य १४१.४१(चन्द्रमा का रञ्जन करने से पूर्णिमा का राका नाम?), महाभारत वन २७५.८(राका व विश्रवा से खर व शूर्पणखा की उत्पत्ति का उल्लेख, शूर्पणखा के सिद्धविघ्नकरी होने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१५६.१५(शुक्ल तीर्थ में राका को रेवा जलांजलि अर्पित करने का महत्त्व), वा.रामायण ७.५.४१(सुमाली राक्षस व केतुमती की ४ कन्याओं में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.२३०.१७(राकान्तिकासना – आम्रजानी/उर्वशी के ७ रूपों में द्वितीय) raakaa/ raka


      राक्षस अग्नि ८४.३२(८ देवयोनियों में द्वितीय), गरुड १.२१७.१७(असूया से राक्षस योनि प्राप्त होने का उल्लेख), २.१०.६(राक्षसों का भोजन आमिष होने का उल्लेख), गर्ग ३.१०(गोवर्धन शाला के स्पर्श से राक्षस द्वारा दिव्य रूप की प्राप्ति, पूर्व जन्म में वैश्य का वृत्तान्त), नारद २.२७+(काष्ठीला उपाख्यान के अन्तर्गत राक्षस - राक्षसी वृत्तान्त), २.६३.७७, पद्म ६.१४.६३(दु:स्वप्न दर्शन से अनुतप्त वृन्दा का वन में गमन, राक्षस का दर्शन, राक्षस द्वारा वृन्दा को पति मरण का समाचार देना), ६.१५.४(तापस वेशधारी विष्णु द्वारा राक्षस के चंगुल से वृन्दा का मोचन), ६.१२७.५८(काञ्चनमालिनी अप्सरा का राक्षस को धर्मोपदेश, स्वर्ग प्राप्ति), ६.२०४.६८(निगमोद्बोधक तीर्थ के जल प्राशन से विकट नामक राक्षस को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का स्मरण, मुक्ति), ६.२०६+, ७.४.८२(गङ्गासागर माहात्म्य के अन्तर्गत बृहद्ध्वज नामक राक्षस तथा भीमकेश नामक राजपत्नी की मुक्ति का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड १.२.१७.३३ (हिमवान् पर्वत पर राक्षसों, पिशाचों, यक्षों के वास का उल्लेख), २.३.७.३७(खशा - पुत्र, स्वरूप का वर्णन), २.३.८.५७(पौलस्त्य), भविष्य १.५७.३(राक्षस हेतु मैरेय सहित मांसौदन बलि का उल्लेख), २.२.२०.५५(राक्षस गण के नाम), ३.४.२३.५३(राक्षसारि : सूर्य का अंश, अयोध्या का राजा), भागवत ७.१.८(तम से यक्षों व राक्षसों की वृद्धि का उल्लेख), ११.२५.१९(तमोगुण की वृद्धि से राक्षसबल की वृद्धि), मत्स्य १९.८(राक्षस का भोजन आमिष होने का उल्लेख), १४८, मार्कण्डेय १५(दुष्कृत्य के फलस्वरूप राक्षस योनि प्राप्त होने का उल्लेख), वराह १६७.१०(अनाचार - रत विप्र को राक्षस योनि की प्राप्ति, अन्य विप्र द्वारा एक स्नान के फल दान से राक्षसत्व से मुक्ति की कथा), २०१(राक्षस - किङ्कर युद्ध का वर्णन), वामन ११(सुकेशी नामक राक्षस का ऋषियों से प्रश्न, ऋषियों द्वारा धर्मोपदेश), ६९.४९(राक्षसपुङ्गव : एक राक्षस, बल नामक प्रमथ के साथ युद्ध), वायु ९.१७, ६९.७५(राक्षसों की खशा से उत्पत्ति व नामकरण), ६९.१२७, ६९.१६४(खशा - पुत्र राक्षसों के नाम), ७०.४६, विष्णुधर्मोत्तर ३.४२.१५(राक्षसों के रूप का कथन : उत्कच आदि), स्कन्द ३.१.११(त्रिवक्र नामक राक्षस की पत्नी सुशीला में शुचि मुनि द्वारा बीज प्रदान से कपालाभरण नामक राक्षस की उत्पत्ति, इन्द्र को कपालाभरण के वध से ब्रह्महत्या की प्राप्ति की कथा), महाभारत अनुशासन १२४, योगवासिष्ठ ३.४९.३७(विदूरथ द्वारा सिन्धु राजा पर राक्षस अस्त्र का प्रयोग), वा.रामायण ७.४.११(हेति, प्रहेति प्रभृति राक्षसों की उत्पत्ति), ७.४.१३(राक्षस शब्द की निरुक्ति), लक्ष्मीनारायण १.४२४, १.४८०, १.५११, २.१५७.२२, २.१७६.४९(ज्योतिष में योग), २.२२३.४५(राग का रूप), ३.९.९२(तुङ्गभद्रा योगिनी द्वारा राक्षसों से मुक्ति हेतु सूर्य की गति को अवरुद्ध करने का वर्णन ), ३.३०.९, ३६१, ४.३७.८६(परदेह भक्षक इस देह का नाम), कथासरित् ५.२.१९६(हिमालय शिखर पर त्रिघण्ट नगर वासी स्तम्भजिह्व नामक राक्षसराज की कन्या विद्युत्प्रभा से अशोकदत्त के विवाह की कथा), ६.३.१२८(राक्षसी और बच्चों के वार्तालाप को सुनकर कीर्त्तिसेना द्वारा वसुदत्त नामक राजा के भीषण रोग तथा उसकी रोगमुक्ति के उपाय को जानना), ७.८.१३८(राक्षस द्वारा वीरभुज राजा की हत्या कर राजपत्नी मदनदंष्ट्रा को अपनी पत्नी बनाना, इन्दीवरसेन द्वारा राक्षस का वध, राक्षस की बहिन खड्गदंष्ट्रा से विवाह), १७.३.२८(राक्षसियों द्वारा पद्मावती का बन्धन, मुक्ताफलकेतु द्वारा पद्मावती का मोचन ) raakshasa/ rakshasa


      राक्षसी नारद २.२७+(काष्ठीला उपाख्यान के अन्तर्गत राक्षस - राक्षसी का वृत्तान्त), पद्म ६.२०६+(विप्र के रूप पर मुग्ध पौर स्त्रियों को राक्षसीत्व की प्राप्ति, कमण्डलुगत निगमोद्बोध तीर्थ के जलपान से मुक्ति का वर्णन), स्कन्द २.४.२४(द्विज के पुण्य दान से राक्षसी की मुक्ति, राक्षसी के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), वा.रामायण ५.२२(अशोक वाटिका में सीता की रक्षा में नियुक्त राक्षसियों के नाम), लक्ष्मीनारायण २.२२३.४४(एषणा रूपी राक्षसी ) raakshasee/ rakshasi


      राग अग्नि ३४६.१९(काव्यगुण विवेचन के अन्तर्गत उभयगुण के ६ भेदों में से एक राग की परिभाषा व प्रकारों का कथन), गर्ग ५.२१(राग का वेद नगर में निवास, नारद की स्त्रियों में आसक्ति पर रागों के अङ्ग भङ्ग होना), ७.४३.३५(रागों के वर्ण/रंग), ७.४४(रागिनियों व राग - पुत्रों के नाम), ७.४५(राग परिवार द्वारा कृष्ण की स्तुति), देवीभागवत १.१७.३७(शुक द्वारा राग - विराग का निरूपण), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.६१(प्रिय राग वृद्धि के लिए मणिसार दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड ३.४.३.४६(राग - विराग का निरूपण), लिङ्ग २.९.३२(महामोह की राग संज्ञा का उल्लेख), विष्णु १.८.३३(रति - पति), स्कन्द ६.२५४.२७(रागों की शिव के ताण्डव नृत्य से उत्पत्ति, रागों की भार्याओं के नाम), लक्ष्मीनारायण २.२२३.४५(राग के राक्षस का रूप होने का उल्लेख ) raga/ raaga


      रागिणी गर्ग ७.४५.१०-२०(भैरव, मेघमल्लार, दीपक, मालकोश, श्री तथा हिण्डोल राग की रागिनियों द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति), वामन ५१(मेना - पुत्री, ब्रह्मा के शाप से सन्ध्या होना), ७५.४१(विष्णु द्वारा ४ युवतियों की सृष्टि, उनमें से रक्तवर्णा जयश्री युवती का रागिणी नाम ) raaginee/ ragini


      राज- गर्ग ६.१३(राजमार्गपति : भ्रष्ट वैश्य, गोमती - सिन्धु सागर में वैश्य के मांस के पतन से उद्धार), ७.१३.१(राजपुर : प्रद्युम्न की राजपुर नरेश शाल्व पर विजय), ९.३.३८(राजबन्दिक : एक याचक, कार्पटि को शाटक/साडी देकर बिजौरा नींबू ग्रहण और राजा को भेंट), १०.२४.६(राजपुर : अनिरुद्ध की राजपुर नरेश अनुशाल्व पर विजय), भविष्य ३.४.१५.८(राजराज : यक्षशर्मा ब्राह्मण का शिवपूजन प्रभाव से मृत्यु - पश्चात् कर्णाटक में राजराज नामक राजा बनना, पश्चात् जन्मान्तर में कुबेर बनना), स्कन्द १.२.६२.१९(राजमाष : शिव द्वारा तण्डुल - मिश्रित राजमाष को क्षेत्रपालों हेतु नैवेद्य नियत करने का उल्लेख), कथासरित् ७.२.४८(राजदत्ता : रत्नाधिपति - भार्या, शीलवती - स्वसा), ७.३.२०७(राजभञ्जन : विद्याधर, अनुरागपरा नामक विद्याधरी पर अनुरक्त ) raaja


      राजभट्टारक स्कन्द ७.१.११.२१५(प्रभास में स्थित सूर्य - पुत्र रेवन्त का नाम), ७.१.१६०(राजभट्टारक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ) raajabhattaaraka/ rajabhattaraka


      राजयक्ष्मा द्र. वास्तुमण्डल


      राजर्षि ब्रह्माण्ड १.२.३५.१०२(राजर्षि के लक्षण), २.३.६६.८९(तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले राजर्षियों के नाम), वायु ६१.८७(राजर्षि की निरुक्ति), ९१.११५(तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले राजर्षियों के नाम ), महाभारत अनुशासन, ९४, १६५, raajarshi/ rajarshi


      राजवती विष्णु १.१०.५(राजवान् : प्राण के दो पुत्रों में से एक, भृगु वंश), कथासरित् ७.२.११३(राजवती : देवप्रभ नामक गन्धर्व की पत्नी, सिद्ध के शाप से देवप्रभ का मनुष्य योनि में राजा रत्नाधिपति तथा राजवती का उसकी पत्नी राजदत्ता बनना ), द्र. वंश भृगु raajavatee/ rajavati


      राजसूय गर्ग ७.२+ (राजा उग्रसेन के राजसूय यज्ञ का वर्णन), ७.४९(उग्रसेन के राजसूय यज्ञ का समापन), पद्म १.३७.१५४(राम का भरत के समक्ष राजसूय यज्ञ करने के विषय में अपने विचारों को प्रस्तुत करना, भरत द्वारा युक्तिपूर्वक राम की यज्ञ से निवृत्ति), ६.२२२.८०(युधिष्ठिर - कृत राजसूय यज्ञ का उल्लेख), ब्रह्म १.७.१३(सोम के राजसूय यज्ञ में ऋत्विज आदि का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.६५.२२(सोम का राजसूय यज्ञ), भागवत १०.७४(युधिष्ठिर द्वारा राजसूय में कृष्ण की अग्रपूजा, कृष्ण द्वारा शिशुपाल का वध, पाण्डवों द्वारा यज्ञ में करणीय कार्य), मत्स्य २३(चन्द्रमा का राजसूय यज्ञ), वायु १०४.८४( राजसूय यज्ञ की शिरोदेश में स्थिति), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१(४९ तानों में से एक), ३.३४१.१९२(रत्न व सुवर्ण निर्मित आभूषण दान से राजसूय यज्ञ के फल की प्राप्ति का उल्लेख), शिव ५.१३.२१(शिव कथा श्रवण से राजसूय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द २.७.२.२०(शीतल जल दान से राजसूय यज्ञ के फल की प्राप्ति का उल्लेख), ४.१.१४.३०(चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों का कथन), ५.१.२६.७०(मन्दाकिनी कुण्ड में स्नान आदि से सौ राजसूय यज्ञों के समान फल प्राप्ति का उल्लेख), ५.२.३.३३(ढुण्ढेश्वर देव के पूजन से सौ राजसूय यज्ञों के समान पुण्य प्राप्ति का उल्लेख), ५.२.१४.४०(कुटुम्बेश्वर दर्शन से सहस्र राजसूय यज्ञों के समान फल प्राप्ति), ५.२.६९.५७(खङ्गमेश्वर लिङ्ग दर्शन से सहस्र राजसूय यज्ञों से अधिक फल प्राप्ति), ७.१.२०.७४(सोम - कृत राजसूय यज्ञ के उद्गाता आदि ऋत्विज), वा.रामायण ७.८३(राम द्वारा राजसूय यज्ञ के अनुष्ठान की इच्छा, भरत द्वारा निवारण), हरिवंश ३.२.१४(जनमेजय का व्यास से पाण्डव - कृत राजसूय यज्ञ विषयक प्रश्न, व्यास द्वारा सोम, वरुण व हरिश्चन्द्र - कृत राजसूय यज्ञों का उल्लेख करते हुए युधिष्ठिर - कृत राजसूय यज्ञ को कौरवों के विनाश का हेतु बताना), महाभारत आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३४६, लक्ष्मीनारायण १.४४२.३(उत्कल द्वारा पुष्कर में सहस्र राजसूयों का अनुष्ठान करने का उल्लेख), ३.३५.५७(बृहद्धर्म राजा को राजसूय की दीक्षा हेतु आचार्य नारायण का प्राकट्य ) raajasooya/raajasuuya/ rajsuya


      राजस्थल स्कन्द ५.२.७४.१(राजस्थलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, रिपुञ्जय द्वारा अतिवतष्टि - अनावृष्टि भय निवारण हेतु राजस्थलेश्वर लिङ्ग की पूजा),


      राजस्वामी स्कन्द ६.९८


      राजा अग्नि २२०+ (राजा के अभिषेक की विधि, राजा के सहायकों का विचार, राजा के अनुजीवियों का कर्तव्य), २२३(राजा द्वारा कर योग्य धन का विचार), २२५(राजा द्वारा पालनीय धर्म), २३३(राजा के शत्रुओं के प्रकारों का वर्णन), २३५(राजा की नित्यय चर्या का वर्णन), ३६६(राज्य से सम्बन्धित शब्दों के पर्यायवाची शब्द), गरुड १.१११+ (राजा के कर्तव्य), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३५.७७, भविष्य १.२७(राजा के शुभाशुभ शरीर लक्षण), मत्स्य २१५(राजा के कर्तव्य, राजधर्म का निरूपण), २१६(राजकर्मचारी के धर्म का वर्णन), २२०(राजा का धर्म), २३८(राजा की मृत्यु के सूचक लक्षण व शान्ति), २४०(राजा के विजयार्थ यात्रा विधान), विष्णुधर्मोत्तर २.३(पुष्कर प्रोक्त राजा के कर्तव्य), २.२४(राजा के सहायकों के कृत्य), २.२८(राजा का भोजन, राजा की विष आदि से रक्षा), २.६१(राजधर्म), २.७२(राजा द्वारा अपराध का दण्ड), २.१४५(राज्यकर्म), २.१५१(आह्निक कर्म), ३.३२३(राजा का धर्म), ३.३२४(राजा का प्रजा से व्यवहार), स्कन्द ५.३.१३३.२७(राजा की वृक्ष से, ब्राह्मणों की मूल से, भृत्यों की पत्तों से तथा मन्त्रियों की शाखाओं से उपमा), ५.३.१५९.८(दुरात्माओं का शास्ता), महाभारत शान्ति ५६+, वा.रामायण २.६७(राजा के अभाव में देश की स्थिति), ६.६३(कुम्भकर्म द्वारा रावण को राजा के कर्तव्यों का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१२७, २.१९७.४९, ३.२४, raajaa/ raja


      राजीव लक्ष्मीनारायण ३.१९३.१(विप्रों का धन हरण करने से राजा राजीव को शाप प्राप्ति, अरण्य वास, राजीव - पत्नी कुन्दनदेवी के संकल्प से राजीव की मुक्ति का वृत्तान्त ) raajeeva/ rajiva


      राज्ञ भविष्य १.१२४(सूर्य - अनुचर, कार्तिकेय का अवतार, धर्म रूप )


      राज्ञी अग्नि २७३.२(सूर्य - पत्नी, रैवत - पुत्री, रेवन्त - माता), पद्म ५.६७.३८(विमल - पत्नी), भविष्य १.७९.१८(सूर्य - पत्नी संज्ञा के राज्ञी, द्यौ, त्वाष्ट्री व प्रभा प्रभृति अनेक नामों का उल्लेख), मत्स्य ११(रेवत - पुत्री, सूर्य - पत्नी, रैवत - माता ), स्कन्द ७.१.११, कथासरित् १.६.१२५(विष्णुशक्ति - दुहिता राज्ञी द्वारा राजा को पाण्डित्य में नीचा दिखाने का कथन ) raajnee/ragyi




      राज्यधर कथासरित् ७.९.२३(मय दानव के आविष्कृत यन्त्रों के निर्माण में कुशल तक्षा/बढई )


      राज्यपालि लक्ष्मीनारायण ३.८६


      राज्यवर्धन मार्कण्डेय १०९(दम - पुत्र )


      राज्याभिषेक अग्नि १२६, विष्णु ५.२१(उग्रसेन के राज्याभिषेक का वर्णन), ५.३८(परीक्षित् के राज्याभिषेक का वर्णन), raajyaabhisheka/ rajyabhisheka


      राढ कथासरित् १२.७.३५(नगरी, उग्रभट राजा द्वारा सेवित), १२.७.२५५(वही),


      राणिका लक्ष्मीनारायण २.२६७.४


      राति स्कन्द २.६.३.५२(विष्णुरात : परीक्षित का उपनाम ), ३.१.४९.७७(यक्षों को इन्द्रिय अराति बाधा), द्र. देवरात


      रात्रि कूर्म १.७.४२(ब्रह्मा के त्यक्त शरीर से रात्रि की उत्पत्ति), गरुड १.२१.४, १.१२८.१०(नक्षत्र दर्शन से नक्त होने का उल्लेख), नारद १.६६.१२३(सेनानी गणेश की शक्ति रात्रि का उल्लेख), १.९१.७९(वामदेव शिव की १०वीं कला), पद्म १.४३+ (रात्रि देवी द्वारा पार्वती की देह में प्रवेश से पार्वती का काली बनना, पार्वती द्वारा कृष्णता त्याग पर एकानंशा/कौशिकी बनना), भागवत ६.८.२२(रात्रि के विभिन्न प्रहरों में रक्षक विष्णु के नाम), मत्स्य १५७(पार्वती के शरीर से रात्रि की उत्पत्ति, रात्रि का विन्ध्यवासिनी/कौशिकी देवी बनना), वराह ६७.४(सित असित/श्वेत - श्याम द्विवर्णा नारी के रूप में रात्रि का उल्लेख), वायु ९.१, विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२३(केशपाशों में रात्रि की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द १.२.२२.६४(रात्रि देवी का मेना - पुत्री बनना), योगवासिष्ठ ६.२.८१(कालरात्रि), वा.रामायण ४.३०.४६(रात्रि की नारी से उपमा का कथन), लक्ष्मीनारायण २१२८, ३.९.९२(तुङ्गभद्रा योगिनी द्वारा राक्षसों से मुक्ति हेतु सूर्य की गति को अवरुद्ध करने का वर्णन ), द्र. कालरात्रि, नवरात्र, पञ्चरात्र, शिवरात्रि raatri/ ratri

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      राथ्यासा लक्ष्मीनारायण १.३१२


      राधा गर्ग १.१५.६६(राधा शब्द की गर्ग द्वारा तात्त्विक व्याख्या, राधा का कृष्ण से विवाह), १.१६.२५(महान्/जगदंकुर की शक्ति राधा का उल्लेख, राधा के सगुणा माया होने का उल्लेख), २.१८(राधा द्वारा कृष्ण की महिमा का कथन), २.१९+ (राधा की कृष्ण के साथ रासक्रीडा, गोपियों द्वारा राधा का शृङ्गार व भेंट का वर्णन), ४.९(राधा द्वारा यज्ञसीता रूपी गोपियों को एकादशी व्रत के माहात्म्य का कथन), ६.१६(कृष्ण वियोग से पीडित राधा द्वारा सिद्धाश्रम तीर्थ में स्नान व कृष्ण से मिलन, कृष्ण की अन्य पटरानियों की राधा से ईर्ष्या ?), १०.४२.४८(राधा के स्वरूप का कथन), देवीभागवत ९.१.४४(पञ्चम प्रकृति देवी राधा की महिमा व स्वरूप का कथन), ९.२.५४(राधा का आविर्भाव), ९.११, ९.१२.१८(गङ्गा के कृष्णाङ्ग से समुद्भूत और राधाङ्ग द्रव से संयुक्त होने का कथन), ९.१७.४१ (तुलसी द्वारा ब्रह्मा से राधा के भय से मुक्ति हेतु प्रार्थना, ब्रह्मा द्वारा तुलसी को भयमोचक षोडशाक्षर राधा मन्त्र प्रदान), ९.५०(राधा के मन्त्र, ध्यान व पूजा विधि), नारद १.८२(राधा - कृष्ण युगल सहस्रनाम), १.८३.१३(राधा द्वारा सृष्टि हेतु पञ्चधा रूप धारण), १.८८(राधा की कलाभूत १६ देवियों का वर्णन), १.११७.४१(नभस्य मास की शुक्ल अष्टमी में राधा व्रत का निर्देश), २.५९.४७(स्वयं का राधा - माधव स्वरूप में चिन्तन करना), पद्म ४.७(भाद्रपद शुक्ल अष्टमी में राधाष्टमी व्रत का माहात्म्य : लीलावती की पापों से मुक्ति; वृषभानु की अयोनिज कन्या के रूप में राधा का जन्म), ४.२०(कार्तिक में राधा - दामोदर पूजा का माहात्म्य : कलिप्रिया वेश्या की मुक्ति), ५.७०.२(मूल प्रकृति राधा व गोविन्द के परित: स्थित ललिता आदि प्रकृति अंशों का कथन), ५.७१(राधा व कृष्ण का माहात्म्य), ५.७१.३०(नारद द्वारा भानु गोप की कन्या में दिव्यत्व के दर्शन का वृत्तान्त), ५.७४.१०४(अर्जुन की राधा स्वरूप दर्शन पूर्वक स्त्रीत्व प्राप्ति से कृष्ण संग का वर्णन), ५.७७(राधा का स्वरूप व राधा के नाम), ब्रह्मवैवर्त्त १.५(राधा की प्रकृति से उत्पत्ति), १.१९.३४(राधिकापति कृष्ण से वायव्य दिशा की रक्षा की प्रार्थना), २.१.१(प्रकृति कहलाने वाली ५ देवियों में से एक), २.१०.४९(राधा द्वारा सरस्वती को हारसार देने का उल्लेख), २.११(गङ्गा के रूप पर मोहित कृष्ण को राधा द्वारा उपालम्भ), २.४८(छाया रूप में कलावती व वृषभानु - पुत्री बनना), २.४८.२९(राधा की कृष्ण से उत्पत्ति), २.४८.४०(राधा नाम की निरुक्तियां ), २.४९(सुदामा व राधा द्वारा एक दूसरे को शाप दान), २.४९.४२(राधा का कृष्ण के साथ विवाह का कथन), २.५४.११४(राधा द्वारा रासमण्डल में डिम्भ की प्रसूति करने व महाविराट् रूपी डिम्भ को त्यागने का कथन), २.५५+ (राधा की पूजा व राधा स्तोत्र), २.५५.१०(राधा का स्वरूप), २.५६.१३५(राधा नाम में रा अक्षर के अर्थ), २.५६.१४०(विभिन्न दिशाओं में राधा कवच), ४.२(राधा की श्रीदामा से कलह), ४.६(राधा की कृष्ण से सायुज्यता), ४.१२.१८(राधापति कृष्ण से नासिका की रक्षा की प्रार्थना), ४.१३.१०६(राधा नाम की निरुक्ति), ४.१५(राधा का स्वरूप, कृष्ण से मिलन व विवाह), ४.१७.२१७(राधा के षोडश नामों की निरुक्ति), ४.२७(राधा का कृष्ण से संवाद), ४.२७.९६(वस्त्र चोरी पर जल में निमग्न राधा द्वारा कृष्ण का ध्यान व स्तोत्र), ४.२७.१९३(पार्वती द्वारा राधा को वरदान), ४.५२(राधा का कृष्ण से विरह, रास), ४.६६(राधा को कृष्ण से वियोग का स्वप्न), ४.८४.६०(राधा की कृष्ण के वाम भाग से उत्पत्ति), ४.८६.३५(वृन्दा का वृषभानु - सुता व रापाण - भार्या रूप में राधा की छाया बनना), ४.९२(गोकुल गमन पर उद्धव का राधा से मिलन, उद्धव द्वारा राधा की स्तुति), ४.९७(राधा द्वारा उद्धव को ज्ञान प्रदान करना), ४.१२४(राधा का कृष्ण से पुनर्मिलन), ४.१२६(द्वारका स्थापना के पश्चात् कृष्ण का राधा से व्रज में मिलन), ब्रह्माण्ड २.३.४२(राधा द्वारा गणेश के कपोल का स्पर्श), वराह १६४, शिव २.३.२.३०(सप्तर्षियों के क्रोध से पितरों की ३ कन्याओं मेना, धन्या व कलावती का क्रमश: पार्वती, सीता व राधा रूप में अवतरण?), २.३.२.४०(राधा के कृष्ण से गुप्त प्रेम निबद्ध होने का उल्लेख), स्कन्द २.६.२.११(कालिन्दी द्वारा राधा की महिमा का कथन), ५.३.१९८.७६(वृन्दावन वन में देवी का राधा नाम से वास), ७.४.१२(राधा गोपी द्वारा कृष्ण से विरह पर प्रतिक्रिया), लक्ष्मीनारायण १.१७०, १.१७९, १.३०४, १.३१७, १.४२२, १.४४३.३२(पत्नीव्रत के संदर्भ में पत्नियों के राधांश होने का कथन), १.४४४(सुयज्ञ नृप द्वारा स्वपत्नी को राधा स्वरूप मानकर व्यवहार करने पर राधा का प्रसन्न होना, सुयज्ञ नृप की पत्नीव्रत संज्ञा), १.४४४.१९(राधा शब्द की निरुक्ति : रा - स्मृद्धि, धा - धृति), १.४६७.६९(भाण्डीर वट पर राधा के कृष्ण से विवाह का उल्लेख, राधा द्वारा कृष्ण का गोलोक की गायों के दुग्ध से स्नान कराना), १.५१४.१८(केशग्रन्थि विकीर्ण करने के कारण राधा द्वारा सखी नागलीला को नदी आदि बनने का शाप, नागलीला नदी का महत्त्व), २.३९.२९(छठे वर्ष के आरम्भ में अष्टमी को राधा द्वारा बालकृष्ण की आराधना का वर्णन), २.८१.४९(तुङ्गभद्रा नदी के राधा रूप का उल्लेख), २.१५४.१, २.१६६.३(गोलोक में राधा की विकुण्ठा नामक पुत्री व सप्तसागरों के पुत्र रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख), २.२९७.८४(राधा के गृह में शय्या पर स्थित कृष्ण के दर्शन), ३.१८(पुण्यरात द्विज व उसकी पत्नी राधनिका की तपस्या का वृत्तान्त), ३.२१०(यज्ञराध नामक भक्त पुष्कस का ब्रह्मायनर्षि साधु से समागम, मोक्ष प्राप्ति), ४.२६.५६(राधा कान्त से तृष्णा से रक्षा की प्रार्थना ), ४.१०१.७१(राधा के रायः पुत्र व ऋद्धिरया पुत्री का उल्लेख), द्र. यज्ञराध, विराध raadhaa/radha

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      राध्यासा लक्ष्मीनारायण १.३८५.४९(राध्यासा का कार्य)


      रापाण ब्रह्मवैवर्त्त ४.३.१०४(राधा को रापाण- पत्नी होने का शाप), द्र. रायाण


      राम अग्नि ५.५(रामायण बालकाण्ड कथा के अन्तर्गत कौशल्या से राम के प्रादुर्भाव का उल्लेख), ५.६(रामायण अयोध्याकाण्ड का संक्षिप्त कथन), ५.७(रामायण अरण्यकाण्ड का संक्षिप्त कथन), ५.८(रामायण किष्किन्धा काण्ड का संक्षिप्त कथन), ५.९(रामायण सुन्दरकाण्ड का संक्षिप्त कथन), ५.१०(रामायण युद्धकाण्ड का संक्षिप्त कथन), ५.११(रामायण उत्तरकाण्ड का संक्षिप्त कथन), २३८+ (राम द्वारा लक्ष्मण को राजनीति का उपदेश), कूर्म १.२१(राम का संक्षिप्त चरित्र), गरुड ३.२९.५०(सन्ध्या काल में राम के स्मरण का निर्देश), ३.२९.६५(तुलसी छेदन काल में रामराम के ध्यान का निर्देश), देवीभागवत ३.२७.४९(राम द्वारा किष्किन्धा में नवरात्र चीर्णन का उल्लेख), ३.२८(व्यास द्वारा जनमेजय को राम कथा का वर्णन), ८.९, ८.१०.१३(किम्पुरुष वर्ष में हनुमान द्वारा राम की आराधना), नारद १.७१.११३(रक्षा हेतु राम मन्त्र के पठन का उल्लेख), १.७३(राम व राम - परिवार सम्बन्धी मन्त्रों के अनुष्ठान की विधि), १.११८.३(राम नवमी व्रत की विधि), पद्म १.३३.५०(राम द्वारा पुष्कर में दशरथ का श्राद्ध व अजगन्ध शिव की स्तुति), १.३५.६५(राम का अगस्त्य आश्रम में आगमन, तपोरत शम्बूक शूद्र का वध, मृत ब्राह्मण बालक का पुन: संजीवन), १.३८.१५(राम की लङ्का यात्रा, विभीषण से मिलन, शिव व ब्रह्मा की स्तुति, वामन की स्थापना), ३.२६.२४(राम ह्रद का माहात्म्य, परशुराम द्वारा पितरों का तर्पण), ५.१+(राम चरित्र वर्णन के अन्तर्गत राम का रावण - वध के पश्चात् विमान से लौटना, नन्दिग्राम के दर्शन, राम - भरत समागम, अयोध्या में प्रवेश, मातृदर्शन, माताओं से वार्तालाप, राज्याभिषेक, प्रजा को सुख प्राप्ति, सर्वदेव - कृत राम स्तुति, राम द्वारा देवों को वर प्रदान, राम राज्य की व्यवस्था का वृत्तान्त), ५.३०(राम नाम का माहात्म्य, जनक द्वारा राम नाम के पुण्य दान से नरक वासियों की मुक्ति), ५.३६(राम द्वारा लङ्का पर आक्रमण का तिथि अनुसार वर्णन), ५.१०४.१४०(राम का श्रीरङ्ग नगर में गमन, विभीषण का मोचन), ५.११४(राम के प्रश्न करने पर शम्भु द्वारा गौतम गृह के वृत्तान्त का वर्णन), ५.११७.६३(राम द्वारा कौसल्या के मासिक श्राद्ध का अनुष्ठान), ६.७३(राम रक्षा स्तोत्र), ६.७६(ब्रह्मा द्वारा प्रोक्त और्ध्वदेहिक स्तोत्र), ६.२४२+ (राम अवतार की कथा), ६.२४२.८४(कौसल्या द्वारा राम के विश्वरूप का दर्शन), ६.२५४(राम के १०८ नाम), ब्रह्म २.५३.१४८(राम द्वारा गौतमी गङ्गा में स्नान से पिता दशरथ की नरक से मुक्ति, राम द्वारा शिव की स्तुति), २.८४(रावणादि का वध कर राम का अयोध्या में आगमन, राज्याभिषेक, सीता का परित्याग, अश्वमेध का आयोजन, लव - कुश द्वारा रामायण गायन का वृत्तान्त), २.८७(रावण वध के पश्चात् राम का गौतमी पर आगमन, गौतमी प्रशंसा, स्नान, शिव लिङ्गार्चन, लिङ्ग विसर्जनार्थ लिङ्ग से प्रार्थना), ब्रह्मवैवर्त्त २.१४(सीताहरण विषयक संक्षिप्त राम कथा), ४.६२(संक्षिप्त राम कथा), भविष्य ३.४.१५.५४(शब्द मात्र समूह के स्वामी के रूप में राम का उल्लेख), ३.४.२५.९२(वैवस्वत मन्वन्तर में धनु राशि में राम की उत्पत्ति), भागवत ५.१९(किम्पुरुष वर्ष में आर्ष्टिषेण द्वारा राम की आराधना), ६.८.१५(राम से प्रवास काल में रक्षा की प्रार्थना), ९.१०(राम की लीला का वर्णन), वराह ४५(राम का न्यास व व्रत), वायु १०८.१६(राम तीर्थ का माहात्म्य, गया में राम के स्नान का स्थान), विष्णुधर्मोत्तर ३.११९.८(प्रतिज्ञा पालन में राम की पूजा), स्कन्द १.२.१३.१५६(शतरुद्रिय प्रसंग में राम द्वारा वैदूर्य लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), २.८.६.११७(राम के परलोक धाम गमन की कथा), ३.१.२(राम द्वारा रामेश्वर सेतु का निर्माण), ३.१.१८(राम कुण्ड का माहात्म्य, सुतीक्ष्ण का तप, युधिष्ठिर की असत्य भाषण के पाप से मुक्ति), ३.१.२७(राम द्वारा धनुष की कोटि से कोटि तीर्थ का निर्माण, स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्ति), ३.१.४४.१०५(रावण वध के पश्चात् राम द्वारा सिकता लिङ्ग की स्थापना), ३.१.४७.४५(रावण वध से उत्पन्न ब्रह्महत्या को बिल में रख कर राम द्वारा उसके ऊपर भैरव की स्थापना), ३.१.४९.५(राम द्वारा रामेश्वर शिव की स्तुति), ३.२.३०(राम द्वारा बाललीला, रामायण का वर्णन, लोहासुर द्वारा निर्जनीकृत धर्मारण्य का जीर्णोद्धार), ४.२.६१.२०८(विष्णु के १०१ राम रूपों का उल्लेख), ४.२.८४.६९(राम तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.४४, ५.२.२९(रामेश्वर का माहात्म्य, परशुराम द्वारा शत्रुहत्या दोष से निवृत्ति के लिए स्थापना), ५.३.८४.२१(रामेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, राम की राक्षसी हत्या के पाप से मुक्ति), ५.३.१९८.७८(राम तीर्थ में देवी का रमणा नाम से वास), ५.३.२३१.१७(तीर्थ समूह के अन्तर्गत तीन रामेश्वर तीर्थ होने का उल्लेख), ६.२०(राम द्वारा पितृ कूप पर पितरों का श्राद्ध करना), ६.६६+ (राम ह्रद का माहात्म्य, जमदग्नि व सहस्रार्जुन की कथा), हरिवंश १.४१(राम अवतार का वर्णन), २.१२८.४, योगवासिष्ठ ६.१.१२८(निर्वाण प्रकरण पूर्वार्ध सर्ग १२८ का °रामव्युत्थापन° नामकरण), ६.२.१९०(निर्वाण प्रकरण उत्तरार्ध सर्ग १९० का °राम विश्रान्ति° नामकरण), वा.रामायण १.६७+ (राम द्वारा जनक के धनुष को भङ्ग करना, सीता से विवाह), १.७५(राम द्वारा परशुराम के वैष्णव धनुष का सन्धान), १.७६(राम द्वारा वैष्णव धनुष से परशुराम के तप:प्राप्त पुण्य लोकों का नाश), ३.३१.४६(राम की सागर, सिंह, गजराज उपमाएं), ३.३७.१५(राम की अग्नि व यम से उपमा), ४.११.८४+ (राम द्वारा दुन्दुभि के अस्थि समूह का क्षेपण, साल वृक्षों का भेदन, वाली का वध), ५.३५(हनुमान द्वारा सीता को राम के शरीर के लक्षणों का कथन), ६.२१(समुद्र द्वारा लङ्का के लिए मार्ग न देने पर राम का कोप), ६.६७(राम द्वारा कुम्भकर्ण का वध), ६.७३+ (इन्द्रजित् के ब्रह्मास्त्र से राम को मूर्च्छा, दिव्य ओषधियों से संजीवन), ६.९९+ (राम का रावण से युद्ध), ६.११७(रावण वध के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा राम की स्तुति), ७.५१(भृगु के शाप के कारण राम का सीता से वियोग), लक्ष्मीनारायण १.३७६, १.३८५.४(राम शब्द की निरुक्ति), १.४२२, २.१८२.३रामपुरी, ३.१७०.१७, ४.६९.२२, कथासरित् ९.१.५९(राम - सीता की कथा), १४.३.२०(ऋष्यमूक पर्वत पर ठहरे हुए नरवाहनदत्त को प्रभावती द्वारा सुग्रीव - वाली विषयक राम कथा सुनाना), १६.३.३२(चन्द्रावलोक द्वारा युवराज तारावलोक व माद्री के यमज पुत्रों का राम - लक्ष्मण नामकरण ), द्र. परशुराम, बलराम raama/rama

      Esoteric aspect of ancestors of Rama

      Esoteric aspect of manifestation of Rama


      रामकृष्ण गर्ग ७.१३.१५(मल्लार देश के अधिपति रामकृष्ण पर प्रद्युम्न की विजय), स्कन्द २.१.१५(वल्मीक से आच्छादित मुनि, वल्मीक पर विद्युत पात से विष्णु का प्राकट्य ), लक्ष्मीनारायण १.४०२ raamakrishna/ ramakrishna


      रामगृह वराह १५०.१०(सानन्दूर नामक गुह्य स्थान के अन्तर्गत रामगृह नामक श्रीहरि के गुह्य स्थान का उल्लेख )


      रामशर्मा भविष्य ३.४.१९(अध्यात्म रामायण के रचयिता रामशर्मा के चरित्र का वर्णन )


      रामसुन्दर लक्ष्मीनारायण ४.४६.१००


      रामा हरिवंश २.१२८.४(कुम्भाण्ड - पुत्री, उषा - सखी, उग्रसेन द्वारा रामा का साम्ब से विवाह का प्रस्ताव ) raamaa/ rama


      रामादित्य लक्ष्मीनारायण १३१६


      रामानन्द भविष्य ३.४.७.५३(मित्रशर्मा व चित्रिणी - पुत्र, सूर्य का अंश )


      रामानुज गर्ग १०.६१.२२(शेष नाग का अंश), भविष्य ३.४.१४(भव शिव का अंश), स्कन्द २.१.२१(रामानुज द्विज द्वारा आकाशगङ्गा तीर पर तप ), लक्ष्मीनारायण १.४०३ raamaanuja/ ramanuja


      रामायण अग्नि ५.५+(वाल्मीकि रामायण का संक्षिप्त वर्णन), गरुड १.१४३(संक्षिप्त रामायण का वर्णन), देवीभागवत ३.२८+(नवरात्र महिमा प्रसंग), नारद २.७५(वसु - मोहिनी संवाद में रामायण का संक्षिप्त वर्णन), पद्म ५.११६( जाम्बवान् - प्रोक्त रामायण), ६.२४२(श्रीरामावतार रामायण कथा का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६२(संक्षिप्त राम चरित्र का वर्णन), ४.११६.४(अनिरुद्ध व बाण संवाद- अग्नि द्वारा सीता के ग्रहण आदि की कथा), विष्णु ४.४.४०(संक्षिप्त रामायण का कथन), स्कन्द ३.१.२(संक्षिप्त रामायण का वर्णन), ३.२.३०.२२(रामायण की घटनाओं की तिथियां), वा.रामायण ०.२(रामायण का माहात्म्य, नारद - सनत्कुमार संवाद, सुदास ब्राह्मण की राक्षसत्व से मुक्ति की कथा), ०.५(रामायण श्रवण का माहात्म्य), ६.१२८(रामायण श्रवण का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण ३.२२४.१६, raamaayana/ramayana


      रामायन लक्ष्मीनारायण ३.२२४


      रामेश्वर पद्म १.३८.३३(राम द्वारा रामेश्वर की स्तुति, राम - रुद्र संवाद), ब्रह्म १.२६.५७(रामेश्वर नामक शिव लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), शिव ४.३१(राम द्वारा रामेश्वर की स्थापना), स्कन्द ३.१.१(रामेश्वर सेतु का माहात्म्य), ३.१.४३(रामेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ३.१.४९(रामादि द्वारा रामेश्वर की स्तुति, वर प्राप्ति), ५.१.३१(राम द्वारा उज्जयिनी में रामेश्वर लिङ्ग की स्थापना, लक्ष्मण द्वारा राम की अवज्ञा की कथा), ५.३.८४, ५.३.१३४(रामेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.२३१.१७(नर्मदा तट पर तीन रामेश्वर तीर्थ होने का उल्लेख), ६.१०१(लङ्का को मनुष्यों से सुरक्षित रखने के लिए राम द्वारा रामेश्वर सेतु का भञ्जन), ६.१०४.३५(रामेश्वर - त्रय, त्रिकाल पूजा), ७.१.१११(राम द्वारा प्रभास क्षेत्र में स्थापित रामेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, राम द्वारा पिता का श्राद्ध), ७.१.२०२(सूत हत्या दोष से मुक्ति हेतु बलराम द्वारा स्थापित रामेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ) raameshvara/rameshwara


      राय स्कन्द ४.१.१.५७(रैवत पर्वत के राय से रहित होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१९५, २.२२२, २.२२३, ३.८.५४(अतल के सहस्रपाद राजा सामरायधन का विष्णु से युद्ध, विष्णु द्वारा पादों का कर्तन ), ४.४०, raaya


      रायकिन्नर लक्ष्मीनारायण २.२०३


      रायाण ब्रह्मवैवर्त्त २.४९.३८(रायाण वैश्य के साथ राधा के विवाह का कथन; रायाण के यशोदा - सहोदर होने का उल्लेख ), ४.१, लक्ष्मीनारायण ३.२०१.९४, ३.२११.१, द्र. रापाण raayaana/ rayana


      रावण अग्नि १२३.१६(१५ मुहूर्तों में से एक रावण मुहूर्त में रण कार्य करने का निर्देश), देवीभागवत ९.१६.४२(रावण द्वारा सीता का हरण तथा राम द्वारा रावण के वध का उल्लेख), पद्म १.३५.२६(राम द्वारा रावण वध से अगस्त्य प्रभृति ऋषियों को अभय प्राप्ति का उल्लेख), ५.६(राम के प्रश्न करने पर अगस्त्य द्वारा रावणादि के जन्म वृत्तान्त का वर्णन), ब्रह्म १.११(कार्त्तवीर्य द्वारा रावण का बन्धन, पुलस्त्य की सहायता से रावण की मुक्ति), १.६७(रावण को इन्द्र से वासुदेव की मूर्ति की प्राप्ति), २.२७(माता के वचन सुनकर रावण की तपस्या, कुबेर से लङ्का व पुष्पक विमान आदि का हरण), २.७३(रावण को ब्रह्मा से शिव के १०८ नामों की प्राप्ति, तप, कैलाश को हिलाना, शिव से तलवार प्राप्ति का वर्णन), २.८४(राम द्वारा रावण का वध), ब्रह्माण्ड २.३.७.२४८(बालि द्वारा रावण का बन्धन व मैत्री), भविष्य ३.४.१३.२७(विश्रवा व कैकसी - पुत्र, कुम्भकर्ण - भ्राता), ३.४.१५.२२(रावण द्वारा कुबेर का लङ्का से निष्कासन, कुबेर - पत्नी से शाप प्राप्ति, तप का वर्णन), ४.५८.४९(सहस्रबाहु कार्तिकेयार्जुन द्वारा माहिष्मती में रावण के बन्धन तथा मोचन का उल्लेख), ४.७१.१५(राजा अजपाल द्वारा रावण के समीप ज्वर प्रेषण की कथा), भागवत ४.१.३७(विश्रवा व केशिनी - पुत्र), वराह १४४.७१(सोमेश्वर के दक्षिण में रावण द्वारा बाण से पर्व का भेदन कर जलधारा का प्राकट्य, बाणगङ्गा नाम से प्रसिद्धि, सोमेश्वर के पूर्व में रावण तपोवन की स्थिति, संक्षिप्त माहात्म्य), १६३.२९(देवलोक में विराजित वराह रूप धारी हरिमूर्ति को रावण द्वारा लङ्का में स्थापित करना, पुन: रावण वध के पश्चात् राम द्वारा हरि मूर्त्ति को अयोध्या में लाने की कथा), वामन ४६.१५(रावण द्वारा गोकर्ण नामक महालिङ्ग की स्थापना), वायु ७०.४२(रावण का स्वरूप), विष्णुधर्मोत्तर १.२२०(कैकसी से रावण का जन्म), १.२२२(रावण द्वारा नन्दी का उपहास व शाप प्राप्ति), १.२२२+ (रावण द्वारा कैलास को लङ्का ले जाने का उद्योग तथा पृथ्वी की विजय), १.२२३(रावण द्वारा पाताल पर विजय), १.२३८(बलि द्वारा रावण का दर्प भङ्ग), १.२३९(रावण द्वारा महापुरुष के दर्शन), शिव ४.२७, ४.२८(रावण द्वारा स्वशिर छेदन द्वारा वैद्यनाथ शिव लिङ्ग की स्थापना, कैलास उत्पाटन का प्रयत्न), स्कन्द १.१.८(रावण द्वारा नन्दी को वानरत्व का शाप, स्वयं भी शाप प्राप्ति), १.२.१३.१५९(शतरुद्रिय प्रसंग में रावण द्वारा जातिज लिङ्ग की पूजा), ३.१.४४.८६(रावण वध रूप पाप से निष्कृति हेतु राम की मुनियों से पृच्छा, मुनियों के निर्देशानुसार राम द्वारा शिव लिङ्ग की स्थापना), ३.१.४७(विश्रवा व कैकसी से रावण की उत्पत्ति की कथा), ४.२.९७.१९५(रावणेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.६३.१०३(विष्णु सहस्रनाम में एक नाम), ५.३.१६८.१६ (विश्रवा व कैकसी - पुत्र, कुम्भकर्ण व विभीषण - भ्राता), ७.१.२०.२१(२४वें त्रेतायुग में तप क्षय होने से नाश को प्राप्त, कैकसी - पुत्र, विभीषण व शूर्पणखा - भ्राता), ७.१.५८(अजापाल राजा से कर ग्रहण हेतु रावण द्वारा धूम्राक्ष का प्रेषण, अजापाल द्वारा प्रेषित ज्वर से रावण को भय की प्राप्ति), ७.१.१२३(पुष्पक विमान की गति अवरुद्ध होने पर रावण द्वारा रावणेश्वर लिङ्ग की स्थापना, रावणेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश २.९३.२८(शूर यादव द्वारा रावण रूप धारण का उल्लेख), वा.रामायण ५.१०(हनुमान द्वारा द्रष्ट रावण के शरीर की शोभा का वर्णन), ५.२०+ (सीता द्वारा रावण की भर्त्सना), ५.४९(हनुमान द्वारा द्रष्ट रावण के शरीर की शोभा का वर्णन), ६.१३.११(पुञ्जिकस्थला अप्सरा से बलात्कार पर ब्रह्मा द्वारा रावण को शाप), ६.१०८(राम द्वारा रावण का वध), ७.१५(रावण का कुबेर से युद्ध, कुबेर की पराजय, रावण द्वारा पुष्पक विमान पर अधिकार), ७.१६(नन्दी के उपहास पर नन्दी द्वारा रावण को वानरों से पराजय का शाप), ७.१६.२७(रावण द्वारा पर्वत उत्पाटन की चेष्टा, भुजाओं का पीडन होने पर रावण नाम की प्राप्ति, शिव से चन्द्रहास खड्ग की प्राप्ति), ७.१८(रावण का राजा मरुत्त के यज्ञ में आगमन, मरुत्त की पराजय, देवों का अदृश्य होना), ७.१९(रावण द्वारा राजा अनरण्य को पराजित करना, अनरण्य द्वारा रावण को शाप), ७.२१+ (रावण द्वारा यमलोक पर आक्रमण, यम का युद्ध से विरत होना), ७.२३(रावण द्वारा निवातकवचों से युद्ध व मैत्री), ७.२६(रम्भा से बलात्कार पर नलकूबर द्वारा रावण को शाप), ७.३१+ (रावण का कार्त्तवीर्य अर्जुन से युद्ध का उद्योग, बन्धन ग्रस्त होना), ७.३४(बालि द्वारा रावण का बन्धन व मैत्री ), लक्ष्मीनारायण १.३७६, raavana/ravana

      रावासन लक्ष्मीनारायण २.९७.५३, २.२१६.१६


      राशि अग्नि १२७.१३(मेषादि राशियों की प्रकृति का विचार), २९३.१२(राशि अनुसार अक्षर विभाजन से फल ज्ञान), गरुड १.६२(कन्या विवाह हेतु प्रशस्त - अप्रशस्त राशियां), नारद १.५५.१(राशियों के स्वरूप का ज्ञान), १.५५.३५१(राशि द्रेष्काण स्वरूप), भविष्य ३.४.१०.७७(तुला राशि में स्थित भानु की विशेषताएं), ३.४.११.९(कर्क राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.११.५१(वृष राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.११.६९(कुम्भ राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.१२.१४(मिथुन राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.१२.४३(मीन राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.१२.५८(मेष राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.१३.१७(मकर राशि में स्थित सूर्य की विशेषताएं), ३.४.२५.८०(विभिन्न मन्वन्तरों में राशियों के अनुसार अवतारों के नाम), वामन ५.४४(राशियों का कालपुरुष में न्यास, राशियों की मूर्तियों का स्वरूप), ६१.५४ (राशियों की देह में स्थिति), विष्णु २.८(ज्योति, नक्षत्र, राशियों की व्यवस्था का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.९४(राशियों में ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति), ३.९६(प्रतिमा प्रतिष्ठार्थ राशियां), स्कन्द १.३.२.७.३०(१२ राशियों में १२ प्रकार के पुष्पों से अरुणेश की पूजा), ७.१.११(भारत रूपी कूर्म में राशियों का विन्यास), लक्ष्मीनारायण १.२३१, २.१९.४१, २.२९७.९५(राशीयान कान्ताओं के गृह में रमण करते व हंसते हुए कृष्ण के दर्शन का उल्लेख ), ३.१५३.८६, raashi/ rashi


      राशियान लक्ष्मीनारायण २.१२१, २.२९७.९५,


      राष्ट्र मार्कण्डेय ७४.१(स्वराष्ट्र नामक राजा को तामस मनु नामक पुत्र की प्राप्ति का वृत्तान्त), वामन ३९.३०(अवकीर्ण तीर्थ का माहात्म्य -- धृतराष्ट्र से क्रुद्ध बकदाल्भ्य नामक ऋषि द्वारा यज्ञ में राष्ट्र का हवन, राष्ट्र का क्षय, ऋषि के प्रसन्न होने पर राष्ट्र का पुन: उत्थान), ९०.३०(सुराष्ट्र में विष्णु की महाबाहु व नवराष्ट्र में यशोधर नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.२(पुष्कर प्रोक्त राष्ट्र के कृत्य), महाभारत शल्य ४१.१७(अवाकीर्ण तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में बक दाल्भ्य-धृतराष्ट्र का आख्यान), शान्ति ८७(राष्ट्रगुप्ति व राष्ट्रसंग्रह के उपाय), योगवासिष्ठ ३.१७(लीलोपाख्याने सदेह राष्ट्रवर्णनम् ), द्र. धृतराष्ट्र, सौराष्ट्र, स्वराष्ट्र raashtra/ rashtra


      राष्ट्रवर्धन वा.रामायण १.७


      रास गर्ग २.१९(वैशाख कृष्ण पञ्चमी को कृष्ण व गोपियों की रास क्रीडा), ५.२०(कदली वन में राधा - कृष्ण रास उत्सव), ६.१८(सिद्धाश्रम की अपेक्षा वृन्दावन में राधा - कृष्ण के रास की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), १०.४२(राधा व कृष्ण के रास का वर्णन), ब्रह्म १.८१(गोपियों व कृष्ण का रास), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.१८(रासमण्डल में कृष्ण के वाम पार्श्व से राधा की उत्पत्ति), १.१९.३४(रासेश कृष्ण से उत्तर दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ३.३१.३०(रासेश्वर कृष्ण से तालु की रक्षा की प्रार्थना), ४.१२.२०(रासेश्वर कृष्ण से रसना की रक्षा की प्रार्थना), ४.२८(रास क्रीडा का वर्णन), ४.७३, भागवत १०.२९+ (गोपी - कृष्ण रास), विष्णु ५.१३(कृष्ण व गोपियों की रास क्रीडा का वर्णन), हरिवंश २.२०(कृष्ण व गोपियों का रास), २.८९(पिण्डारक तीर्थ में कृष्ण व यादवों का रास), लक्ष्मीनारायण २.२३३, ४.१०१.६५, कथासरित् १२.७.३६(लासक की लास्यवती कन्या पर राजा की मुग्धता, विवाह ) raasa/ rasa


      रासभ गणेश १.६२.१८(क्षत्रिय - पत्नी सुमुद्रा के शाप से द्विज का चक्रिवान्/रासभ होना), वामन ५५.७०(रासभ/गर्दभ पर सवार चण्डमारी देवी द्वारा चण्ड - मुण्ड का पीछा ), महाभारत अनुशासन २७.१४(रासभी द्वारा मतङ्ग को ब्राह्मण न होकर चाण्डाल कहना, उसके जन्म का बोध कराना), लक्ष्मीनारायण १.५६०.६५(हविर्धान – पत्नी सुतेजा व हरिकेश ब्राह्मण का शाप से गर्दभ – गर्दभी होना, रेवागर्दभी संगम में स्नान से मुक्ति), ३.२२५ raasabha/ rasabha


      राहु अग्नि ३.१४(मोहिनी रूप विष्णु द्वारा देवों को अमृत पिलाने पर राहु का चन्द्र रूप धारण करके अमृतपान, सूर्य - चन्द्र द्वारा राहु की पहचान करने पर चक्र द्वारा मस्तक छेदन, श्रीहरि की कृपा से राहु को अमरता प्राप्ति), १२३.१०(राहु चक्र से फल विचार), १२५.३३(राहु चक्र से युद्ध में फल विचार), १२६.५(राहु चक्र में नक्षत्र न्यास से फल विचार), १४२.८(वार राहु, फणि राहु, तिथि राहु, विष्टि राहु आदि का निर्णय व कर्म में त्याग), देवीभागवत ८.१६, पद्म ४.१०.१९(राहु द्वारा पीयूष का पान, विष्णु द्वारा शिर कर्तन का उल्लेख), ६.१०.९(सिंहिका - पुत्र, जालन्धर - दूत, शिव के समीप प्रेषण, राहु द्वारा जालन्धर के सन्देश का कथन), ६.९९.१७(वही, शिव के भ्रूमध्य से नि:सृत पुरुष द्वारा राहु भक्षण का उद्योग, राहु की शिव से रक्षा हेतु प्रार्थना, पुरुष द्वारा राहु का मोचन, बर्बर देश में पतन), ब्रह्म २.३६.२७(राहु द्वारा सोमपान के लिए मरुत रूप धारण, भद्रकाली द्वारा भूमि पर पतित राहु की देह के नाश का उद्योग, देह रस से प्रवरा नदी की उत्पत्ति), २.७२.३(सिंहिका - पुत्र, राहु - पुत्र मेघहास के चरित्र का वर्णन), भविष्य ३.४.१७(राहु ग्रह : ध्रुव व नभोदेवी - पुत्र), ३.४.२५.४१(ब्रह्माण्ड लिङ्ग से राहु की उत्पत्ति, राहु से भौम मन्वन्तर की उत्पत्ति), ३.४.२३.११०(सिंहिका - पुत्र, कलि का अंश), ३.४.२५.४१(राहु की ब्रह्माण्ड के लिङ्ग से उत्पत्ति, भौम मन्वन्तर की रचना), भागवत ५.२४(राहु की ग्रहों के बीच स्थिति), ८.९.२४(राहु/स्वर्भानु दैत्य द्वारा देव वेश धारण कर अमृत का पान, सूर्य - चन्द्र द्वारा श्री हरि को सूचन, हरि द्वारा चक्र से राहु का शिर छेदन), मत्स्य ९३.१४(राहु ग्रह का अधिदेवता काल होने का उल्लेख), १७१.६०(सिंहिका - पुत्र, एक ग्रह), १७३.२४(एक महान् ग्रह, दैत्यों के पक्ष में युद्धार्थ उपस्थित), वामन ६८(अन्धक - सेनानी, गणेश से युद्ध), विष्णु ४.८.१(राहु की दुहिता से पुरूरवा - पुत्र आयु का विवाह, नहुष आदि ५ पुत्रों को जन्म देना), विष्णुधर्मोत्तर १.३७+, १.४०(साल्व - अग्रज राहु का आगमन, राहु के शिर छेदन का प्रसंग, राहु द्वारा साल्व को युद्ध न करने का परामर्श), १.४०(राहु का साल्व से अनंगत्व और ग्रहत्व प्राप्ति का वृत्तान्त?), १.४२(राहु द्वारा छद्म रूप में अमृत पान की कथा, राहु का पूज्यत्व), १.१०६.९२(राहु के जन्म का कथन), स्कन्द १.१.१२.६२(राहु और केतु नामक दैत्यों का अमृत हेतु देवों की पंक्तियों में बैठना, सूर्य - चन्द्र द्वारा अभिज्ञान पर विष्णु द्वारा राहु का शिर छेदन), १.१.१३(राहु का चन्द्रमा से युद्ध), १.१.१३(शिव द्वारा राहु की मुण्डमाला का आवेष्टन), १.२.१३.१६९(शतरुद्रिय प्रसंग में राहु द्वारा रामठ लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), २.४.१७(राहु का जालन्धर - दूत बनकर शिव के पास गमन), ५.१.४४.२०(विष्णु द्वारा राहु का शिर छेदन करने पर रक्तस्राव के स्थल पर राहु तीर्थ का निर्माण, राहु दर्शन से राहु पीडा की अप्राप्ति), ६.२१०.४०(राहु का देव रूप धारण करके अमृत पान, वासुदेव के आदेश से दैत्यों का परित्याग कर देव सम्मत होकर ग्रह मण्डल में स्थिति), ६.२५२.३७ (चातुर्मास में राहु की दूर्वा में स्थिति का उल्लेख), ७.१.५०(राहु लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश ३.३०.३०(समुद्रमन्थन से निकले अमृत को राहु द्वारा पीने की चेष्टा, श्रीहरि द्वारा शिरश्छेदन का उल्लेख), ३.३७.१६(उत्पातों के प्रभु के रूप में राहु का उल्लेख), ३.५१.४३(बलि - सेनानी राहु के रथ का वर्णन), ३.५३.११(राहु का अजैकपाद रुद्र से युद्ध), ३.५८.५३(अजैकपाद नामक रुद्र का राहु के साथ युद्ध), योगवासिष्ठ १.१५.७(शम रूपी चन्द्रमा के लिए राहु की अहंकार से उपमा), वा.रामायण ६.७१.१७(रावण - सेनानी अतिकाय के ध्वज में राहु का चिह्न), ७.३५.३२(शिशु रूप हनुमान का बाल सूर्य को फल समझकर उसे पाने के लिए सूर्य के समीप गमन, सूर्य के समीपस्थ राहु का हनुमान को देखकर भय से इन्द्र के समीप पलायन, पुन: राहु को फल समझकर खाने के लिए हनुमान के उद्धत होने पर राहु का क्रन्दन), लक्ष्मीनारायण १.९२, १.३२५, ३.३२.४८(रस भक्षक इलोदर असुर का पिता ) raahu/ rahu


      रिङ्गा लक्ष्मीनारायण २.१९५


      रिटि द्र. भृङ्गिरिटि


      रिपु पद्म २.१२.१२(रिपु - पुत्र लक्षण का कथन), ५.६७.३९(रिपुताप : अङ्गसेना - पति), द्र. वंश ध्रुव


      रिपुजित् नारद १.७, वामन ५९.२(रघुकुल के एक राजा, ऋतध्वज - पिता), ७२.६३(रैवत मन्वन्तर के राजा, सूर्याराधन से सुरति नामक कन्या की प्राप्ति )ripujit


      रिपुञ्जय मत्स्य ४.३९(शिष्ट एवं सुच्छाया से रिपुञ्जय की उत्पत्ति, रिपुञ्जय एवं वीरिणी से चाक्षुष मनु की उत्पत्ति), स्कन्द ४.१.३९.३५(रिपुञ्जय द्वारा काशी में तप, नागकन्या अनङ्गमोहिनी से विवाह, दिवोदास नाम प्राप्ति), ५.२.३७(रिपुञ्जय द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु गणेश रूपी शिव लिङ्ग की आराधना), ५.२.७४(ब्रह्मा से राज्य मिलने पर रिपुञ्जय द्वारा वसुधा का पालन, शिव के राज्य में आने परपूजा, राजस्थल लिङ्ग नाम), हरिवंश २.९७.३६(ऐरावत - पुत्र ), द्र. वंश ध्रुव ripunjaya


      रिष्ट हरिवंश १.५४.७३(दिति का पुत्र, कंस के वाहन हाथी के रूप में उत्पन्न ) rishta


      रिष्यन्त द्र. नरिष्यन्त


      रीति अग्नि ३४०(काव्य में रीति भेद का निरूपण )


      रुक्म गरुड २.३०.५६/२.४०.५६(मृतक के ह्रदय में रुक्म देने का उल्लेख), स्कन्द १.१.८.२३(कुबेर द्वारा रौक्म लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख )rukma


      रुक्मकवच मत्स्य ४४.२५(कम्बलबर्हिष् - पुत्र, रुक्मेषु प्रभृति ५ पुत्रों के पिता, क्रोष्टु वंश), वामन ९०.२४(शोण में विष्णु का रुक्मकवच नाम )


      रुक्मरेखा देवीभागवत ६.२१.३७(रैभ्य - भार्या, एकावली - माता )


      रुक्मवती स्कन्द ७.१.२२२(रुक्मवती लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश २.६१(रुक्म - पौत्री, अनिरुद्ध से विवाह ), लक्ष्मीनारायण ३.३५.२१ rukmavatee/ rukmavati


      रुक्माङ्गद गणेश १.२७.२२(भीम - पुत्र), १.२८.१(रुक्माङ्गद का वाचक्नवि ऋषि के आश्रम में प्रवेश, मुकुन्दा की कामासक्ति की उपेक्षा, कुष्ठग्रस्त होना), १.३६.७(इन्द्र द्वारा रुक्माङ्गद का रूप धारण करके काम विह्वल मुकुन्दा के साथ रमण), नारद २.३(एकादशी माहात्म्य के संदर्भ में रुक्माङ्गद की कथा का आरम्भ , २.१०(वैदिश - राजा, सन्ध्यावली - पति, धर्माङ्गद - पिता, मृगया हेतु वन गमन, वामदेव मुनि से पत्नी व पुत्र की प्रशंसा, स्व - उत्कर्ष का कारण पूछना), २.११(पूर्व जन्म में शूद्र, अशून्य शयन व्रत के प्रभाव से राजा बनना, मन्दराचल पर गमन, मोहिनी पर आसक्ति), २.१२.२०(ऋतध्वज - पुत्र, मोहिनी से विवाह), २.३४(एकादशी व्रत निर्वाह के लिए रुक्माङ्गद द्वारा पुत्र धर्माङ्गद के वध की चेष्टा, पत्नी व पुत्र सहित भगवान् के विग्रह में लीन होना), पद्म २.२२.७(ऋतध्वज - पुत्र, सन्ध्यावली - पति, धर्माङ्गद - पिता ), लक्ष्मीनारायण १.२८५+, १.३७८ rukmaangada/ rukmangada


      रुक्मिणी गर्ग १.३.३६(लक्ष्मी का अवतार), ६.४(रुक्मिणी के कृष्ण से विवाह का वर्णन), देवीभागवत १२.६.१३३(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म ६.२४७.२२(रुक्मिणी द्वारा कृष्ण के पास द्विज दूत का प्रेषण आदि), ६.२४८(रुक्मिणी के विवाह का वर्णन), ब्रह्म १.९१(रुक्मिणी के कृष्ण से विवाह का प्रसंग), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१२०(साक्षात् कमला का भीष्मक व वैदर्भी के उदर में जन्म, कृष्ण द्वारा पाणिग्रहण), ४.१०५(भीष्मक - पुत्री, कृष्ण से विवाह), भागवत १०.५२(कृष्ण से विवाह के लिए रुक्मिणी द्वारा ब्राह्मण दूत का प्रेषण, रुक्मिणी हरण की कथा), १०.६०(रुक्मिणी द्वारा कृष्ण का पति रूप में चुनाव करने में तथ्य), १०.८३.८(रुक्मिणी द्वारा द्रौपदी से स्व - विवाह प्रकार का वर्णन), मत्स्य ४७.१५(रुक्मिणी के पुत्रों के नाम), विष्णु ५.२६(कृष्ण द्वारा रुक्मिणी हरण की कथा), विष्णुधर्मोत्तर ३.८५.७४(रुक्मिणी की मूर्ति का रूप), स्कन्द २.८.७.२०(रुक्मिणी कुण्ड का माहात्म्य), ३.१.२२.१९(सीता का अवतार), ५.३.१४२(रुक्मिणी तीर्थ का माहात्म्य, रुक्मिणी के विवाह की कथा), ५.३.१९८.७६(द्वारवती में देवी का रुक्मिणी नाम से वास), ७.१.३३२(गृह भङ्ग से मुक्ति हेतु रुक्मिणी देवी का माहात्म्य), ७.४.२(दुर्वासा के रथ का वाहन बनकर रुक्मिणी द्वारा दुर्वासा का वहन, तृषार्त्त होने पर जलपान पर दुर्वासा का शाप, नारद व कृष्ण द्वारा रुक्मिणी के दुःख का मोचन), ७.४.३(कृष्ण से वियोग पर रुक्मिणी द्वारा आत्महत्या की चेष्टा, कृष्ण द्वारा निवारण), ७.४.९(रुक्मिणी ह्रद का माहात्म्य), ७.४.२२(रुक्मिणी पूजा का माहात्म्य), हरिवंश २.४७, २.४८+ (कैशिक - पुत्री, रुक्मी - स्वसा, कुण्डिनपुर में स्वयंवर का प्रसंग), २.५९(कृष्ण द्वारा रुक्मिणी का हरण), २.६५(रुक्मिणी द्वारा कृष्ण से पारिजात पुष्प का ग्रहण, नारद द्वारा रुक्मिणी की प्रशंसा), २.८१.३९(उमा के वरदान के अनुसार रुक्मिणी द्वारा व्रत का अनुष्ठान), २.१०३(कृष्ण - भार्या, पुत्रों के नाम), ३.७३.१८ (रुक्मिणी की श्रीकृष्ण से पुत्र हेतु प्रार्थना, पुत्र हेतु कृष्ण का कैलास पर जाकर शिव को संतुष्ट करने का विचार ), लक्ष्मीनारायण १.२२३.२५(भूमि से निर्गत गंगाजल के रुक्मिणी रूप होने का कथन), १.२३० rukminee/ rukmini


      रुक्मी गर्ग ६.७(कृष्ण व रुक्मिणी के विवाह में रुक्मी का कृष्ण से युद्ध व पराजय, रुक्मी द्वारा कुण्डिन पुर का त्याग, भोजकट नगर का निर्माण), ब्रह्म १.९२(रुक्मी की बलदेव से द्यूत क्रीडा, बलदेव द्वारा रुक्मी का वध), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०५(भीष्मक - पुत्र, रुक्मिणी - भ्राता, कृष्ण के रुक्मिणी से विवाह पर आपत्ति), भागवत १०.५४(रुक्मी द्वारा कृष्ण व रुक्मिणी के विवाह का विरोध, कृष्ण से युद्ध, घायल होना, भोजकट नगर का निर्माण), १०.६१(रुक्मी की बलराम से द्यूत क्रीडा, छल व मृत्यु), विष्णु ५.२८(द्यूत क्रीडा में बलराम द्वारा रुक्मी का वध), स्कन्द ७.४.१७.४५(रुक्मि : भीष्मक - पुत्र, रुक्मिणी - भ्राता, रुक्मिणी की इच्छानुसार कृष्ण द्वारा रुक्मि को पार्षदों में प्रधान पार्षद बनाना), हरिवंश २.३६.२(रुक्मी का कृष्ण से युद्ध), २.६०(कृष्ण द्वारा रुक्मी को पराजित करना), २.६१(बलराम द्वारा रुक्मी का वध), लक्ष्मीनारायण ३.३५, rukmee/ rukmi


      रुक्मेषु द्र. ब्रह्मेषु(वायु ९५.२९/२.३३.२९)


      रुचि गरुड १.८७.५४(रौच्य मनु के पुत्रों के नाम), १.८८+ (पितरों द्वारा रुचि प्रजापति को दार संग्रह का परामर्श, रुचि द्वारा कन्या प्राप्ति हेतु तप व पितरों की स्तुति, मानिनी से विवाह, रौच्य मनु की उत्पत्ति का वृत्तान्त), १.८९, १.९०(रुचि का प्रम्लोचा व पुष्कर - कन्या मानिनी से विवाह, रौच्य पुत्र की उत्पत्ति), देवीभागवत ८.३.१२(प्रजापति, स्वायम्भुव मनु की कन्या आकूति से विवाह, यज्ञपुरुष की उत्पत्ति), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२३(एकादश रुद्रों में से एक), १.८.२५(गोलोकनाथ कृष्ण के मुख से रुचि की उत्पत्ति का उल्लेख), १.१०.११( शाण्डिल्य के रुचि-पुत्र होने का उल्लेख), १.२२.१९(तप में चित्त के रोचन के कारण रुचि नाम धारण), ब्रह्माण्ड २.३.७.२४(रुचि नामक अप्सरा गण की विद्युत से उत्पत्ति का उल्लेख - विद्युतोऽत्र रुचो नाम मृत्योः कन्याश्च भीरवः ।), भागवत २.७.२(प्रजापति, आकूति - पति, रुचि व आकूति के गर्भ से श्रीहरि द्वारा सुयज्ञ रूप में अवतार ग्रहण), ४.१.३(प्रजापति, रुचि व आकूति से यज्ञ व दक्षिणा की उत्पत्ति), मार्कण्डेय ९५(रुचि का पितरों से संवाद), ९८(रुचि का मालिनी से विवाह), लिङ्ग १.७०, वायु ९.१००(ब्रह्मा का मानस पुत्र, स्वदेह से ऋषियों की सृष्टि करना- भृगुस्तु हृदयाज्जज्ञे ऋषिः सलिलजन्मनः। शिरसोऽङ्गिरसञ्चैव श्रोत्रादत्रिन्तथैव च ।।), विष्णु १.७.१९(प्रजापति, स्वायम्भुव मनु की कन्या आकूति से विवाह), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२२.२८+ (कुबेर द्वारा अष्टावक्र को रोच मास के ३० रोचों में उपवास व विभिन्न देवों की अर्चना के फल का वर्णन), शिव ७.२.४.४९(भव नामक शिव का रूप - रुचिर्भवो भवानी च बुधैराकूतिरुच्यते ॥), लक्ष्मीनारायण ३.९३.४(देवशर्मा-पत्नी, गुरु की अनुपस्थिति में शिष्य विपुल द्वारा योगबल से रुचि की इन्द्र से रक्षा करने का वृत्तान्त - रुचिं सुरूपां पत्नीं मे महेन्द्रो भोक्तुमिच्छति । नित्यं रक्षस्व चैनं त्वं शीलभंगो न वै भवेत् ।।), ३.१५७(रुचि द्वारा ब्रह्मचर्य का प्रतिपादन, पितरों द्वारा रुचि को गार्हपत्य के लाभों का कथन, रुचि-कृत पितृस्तोत्र ), कथासरित् ११.१.६(रुचिरदेव : वैशाखनगर के राजा के दो सौतेले पुत्रों रुचिरदेव व पोतक की कथा), १५.२.१२३(रुचिदेव : वत्सराज का एक प्रतीहार ), द्र. वररुचि, विरोचन, सुरुचि, वसुरुचि ruchi


      रुचिमती गर्ग ७.५०(पिण्डारक तीर्थ में जाकर उग्रसेन का रुचिमती के साथ यज्ञ हेतु अवभृथ स्नान), १०.१०.१७(उग्रसेन - भार्या, उग्रसेन द्वारा रुचिमती को अश्वमेध यज्ञ करने के विषय में सूचित करने पर रुचिमती की पुत्र हेतु प्रार्थना ) ruchimatee/ ruchimati


      रुचीक शिव ३.५.२२(१८वें द्वापर में शिखण्डी नामक शिवावतारों के पुत्रों में से एक )


      रुजा नारद १.९१.७६(वामदेव शिव की प्रथम कला),


      रुटाण लक्ष्मीनारायण ३.२२९,


      रुण्ड स्कन्द ४.२.७०.८६(महारुण्डा देवी का संक्षिप्त माहात्म्य )


      रुद्र अग्नि ८०(शान्ति कला के अन्तर्गत १४ रुद्रों/भुवनों के नाम), ८४(१०८ रुद्रों का दिशाओं के सापेक्ष विन्यास, रुद्रों का भुवनों से साम्य), ८५(प्रतिष्ठा कला में ५६ रुद्रों/भुवनों के नाम), ८६.७(विद्या कला के अन्तर्गत २५ रुद्रों/भुवनों के नाम), ८७.२(रुद्रों का भुवनों से तादात्म्य), ८७.४(शान्ति शोधन विधान में रुद्रों के नाम), २१४.३१(सकल/साकार परमात्मा के ५ रूप - ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, महेश्वर और सदाशिव ; तालु के मध्य भाग में रुद्र की स्थिति), २९६(पञ्चाङ्ग रुद्र द्वारा दष्ट चिकित्सा के संदर्भ में रुद्राध्यायी के अध्यायों? के ऋषि, देवता आदि का वर्णन), ३४८.१२(°ह° एकाक्षर का धारण तथा रुद्र अर्थ में उल्लेख), कूर्म १.१०.३५(ब्रह्मा के अनुरोध पर रुद्र द्वारा जरा रहित सृष्टि कार्य से विरत होना, ब्रह्मा द्वारा रुद्र की स्तुति), १.१०.२२(ब्रह्मा के क्रोध से प्राण रूप अष्टमूर्ति रुद्र की उत्पत्ति, पत्नियों व पुत्रों के नाम), १.११.२(कालाग्नि रुद्र का स्त्री - पुरुष में विभाजन, पुरुष रूप का ११ रूपों/रुद्रों में विभाजन), गरुड ३.५.३१(रैवन्तेय आदि १० रुद्रों के नाम), ३.६.४८(रुद्र द्वारा हरि-स्तुति), ३.१८.१३(रुद्र के सदाशिव, शुक आदि अवतारों के नाम, सद्योजात, वामदेव आदि नामों का कारण, और्व की रुद्र संज्ञा), देवीभागवत १.१६.८(सगुण परमात्मा के नाभिकमल से ब्रह्मा व भ्रूमध्य से रुद्र की उत्पत्ति, तामसी शक्ति से युक्त होकर कल्पान्त में जगत् का संहर्त्ता होने का उल्लेख), नारद १.१२३.१९(रुद्र चतुर्दशी व्रत की संक्षिप्त विधि), पद्म १.६.३१(अजैकपादादि ११ रुद्रों के नाम), १.२०.४७(रुद्र व्रत की विधि ), १.३१.१४३(रुद्र द्वारा शिवदूती की स्तुति, शिवदूती द्वारा वर प्रदान), १.३३.६८(राम द्वारा शिव की स्तुति, रुद्र/शिव द्वारा राम की प्रशंसा), १.३४.१२८(रुद्र के पूछने पर ब्रह्मा द्वारा स्व निवास स्थान का कथन), १.४०.१४५(अव्यक्तानन्द सलिल वाले समुद्र में ११ रुद्रों की ११ पत्तनों? से उपमा), ३.१३.२५(अमरकण्टक के अन्तर्गत रुद्रजालेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ३.२५.७(काश्मीरस्थ रुद्रास्पद तीर्थ का उल्लेख), ३.२६.९६(मृगधूम में रुद्रपद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.६.९१(रुद्र का जालन्धर - सेनानी निशुम्भ से युद्ध), ६.७६.१०(अष्टम रुद्र के रूप में विष्णु का उल्लेख), ६.१४६(रुद्र महालय तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.१९(कुपित विधाता के ललाट से कालाग्निरुद्र आदि एकादश रुद्रों की उत्पत्ति), १.९.१३(एकादश रुद्र - पत्नियों के नाम), १.२२.२१(ब्रह्मा के कोप से उत्पत्ति, रोदन करने से रुद्र नाम धारण), ब्रह्माण्ड १.२.९.७०(रुद्र गण की रुद्र से सृष्टि व स्वरूप), १.२.१०.७६(कुमार नीललोहित का प्रथम नाम, सुवर्चला - पति, शनि - पिता), २.३.३.७०(एकादश रुद्रों के नाम), २.३.३.१०६कालरुद्र, ३.४.३३.८२(हिरण्यबाहु प्रभृति रुद्रों तथा रुद्राणी गणों द्वारा महारुद्र की उपासना करने का कथन), ३.४.३४(रुद्रों के नाम), भविष्य १.२२.१२( रुद्र व ब्रह्मा की श्रेष्ठता विषयक कलह का वृत्तान्त, कपालद्वय से उत्पन्न पुरुषद्वय की कलह का आख्यान), १.४८.२३(रुद्र प्रभृति समस्त देवों के कारण रूप में दिवाकर का उल्लेख), २.१.१७.७( गोदान में अग्नि का नाम), ३.४.१०.३६(रुद्रों का बृहस्पति से पृथिवीतल पर स्वांश द्वारा जन्म ग्रहण विषयक पृच्छा, मृगव्याध/वाल्मीकि आख्यान), ३.४.१४.१८(ब्रह्मा और विष्णु के वत्स तथा पिता विषयक विवाद में तमोमय रुद्र की उत्पत्ति, ज्योतिर्मय स्तंभ का प्राकट्य, ब्रह्मा व विष्णु द्वारा अन्त का अन्वेषण), भागवत ३.१२.१२(एकादश रुद्रों व उनकी शक्तियों/भार्याओं के नाम, रुद्रों के निवासस्थान), मत्स्य ५.३०(अजैकपाद आदि ११ रुद्रों की गणेश्वर नाम से प्रख्याति, ब्रह्मा के मानस पुत्र, गणेश्वरों से ८४ करोड पुत्रों की उत्पत्ति), १९.३(वैदिकी श्रुति के अनुसार पितरों की वसुगण, पितामहों की रुद्रगण तथा प्रपितामहों की आदित्यगण रूप से प्रसिद्धि), १०१.४(रुद्र व्रत की विधि), १०१.४३(रुद्र व्रत), १०१.७६(रुद्र व्रत), १५३.१६(एकादश रुद्रों के नाम, रुद्रों का तारक - सेनानी गज से युद्ध), १७१.३६(एकादश रुद्रों के नाम, रुद्रों की ब्रह्मा व सुरभि से उत्पत्ति), १७२.३३(नारायण सागर में नगर रूप), लिङ्ग १.७४.७(रुद्र गणों द्वारा भस्ममय लिङ्ग की पूजा), वराह २१(प्रजा सृजन में असमर्थ रुद्र का जल में निमज्जन, दक्ष यज्ञ प्रारम्भ होने पर रुद्र का जल से बहिर्गमन, कोप, श्रोत्र से भूत प्रेतादि की उत्पत्ति, युद्ध, देवों द्वारा रुद्र की स्तुति, दाक्षायणी प्रदान का वृत्तान्त), ३३(दक्ष यज्ञ में रुद्र का जल से निर्गमन, रुद्र द्वारा धनुष का सृजन, देवों द्वारा स्तुति, पशुपतित्व प्रदान, चतुर्दशी का माहात्म्य), ७०(रुद्र द्वारा ब्रह्मा, विष्णु, महेश रूप में नारायण की त्रिरूपता तथा नारायण की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), ९४(रुद्र का ११ महिषासुर - सेनानियों से युद्ध), ९७(रुद्र का माहात्म्य ; रुद्र द्वारा ब्रह्मा के शिर छेदन की कथा, रुद्र के कपाल का मोचन), वामन ९०.२२(महालय में विष्णु का रुद्र नाम), ९०.३२(हिरण्वती में विष्णु का रुद्र नाम), वायु १०.४३(ब्रह्मा के प्रजा सृजन के निर्देश पर रुद्र द्वारा रौद्र गण की सृष्टि, स्वरूप), १०.५३, २७.१(ब्रह्मा द्वारा रुद्रों के भव आदि ८ नाम व वास स्थान का निर्धारण), २७(भव, शर्व आदि रुद्रों की शक्तियों व पुत्रों के नाम), ६६.६८(सुरभि व कश्यप - पुत्र, ११ नाम), ६९.२४२, विष्णु १.८.२(रुद्र की ब्रह्मा से उत्पत्ति, रुद्र द्वारा ८ नाम धारण, रुद्र के स्थानों, स्त्रियों व पुत्रों के नाम), १.१५.१२२(रुद्रों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.११(विष्णु - विभूति वर्णन के अन्तर्गत विष्णु के रुद्रों में अहिर्बुध्न्य होने का उल्लेख), १.१२८.४०(एकादश रुद्रों की विनता से उत्पत्ति), १.२२६(अन्धक रक्त पानार्थ रुद्र द्वारा मातृकाओं की सृष्टि, पुन: प्रजा नाश में प्रवृत्त मातृकाओं की निवृत्ति हेतु रुद्र द्वारा हरि की स्तुति), २.१३२.८ (रौद्री शान्ति के बालार्क सदृश वर्ण का कथन), ३.१७९(रुद्र व्रत), शिव २.१.९.५२(रुद्र द्वारा काली रूप प्रकृति का आश्रय लेकर सृष्टि के प्रलय कर्म का प्रतिपादन), ३.१७.२७(कश्यप व सुरभि से ११ रुद्रों की उत्पत्ति, रुद्र नामों का कथन), ६.९.१४(रुद्र की निरुक्ति), ७.१.७, ७.१.१२.३०(रुद्रों का प्राणों से साम्य, रुद्रों द्वारा ब्रह्मा को पुनर्जीवित करना), ७.१.१४.१४(सृष्टि के निर्देश पर रुद्र द्वारा जरामरणरहित रुद्रों की सृष्टि), ७.१.१९.१३(दक्ष द्वारा एक रुद्र शिव की उपेक्षा, ११ रुद्रों की आराधना का उल्लेख - संति मे बहवो रुद्राः शूलहस्ताः कपर्दिनः ॥ एकादशावस्थिता ये नान्यं वेद्मि महेश्वरम् ॥), स्कन्द १.१.८.१००(हनुमान के ११वें रुद्र होने का उल्लेख - शिलादतनयो नंदी शिवस्यानुचरः प्रियः॥ यो वै चैकादशो रुद्रो हनूमान्स महाकपिः॥), १.२.५.७९(डकार से लेकर बकार तक वर्णों की रुद्र संज्ञा - डकाराद्या बकारांता रुद्राश्चैकादशैव तु॥), २.७.१९.४८(मन से रुद्र के निष्क्रमण पर भी देह पात न होने का कथन; मन में बोधनात्मक रुद्र की स्थिति का कथन), २.७.१९.५५(मन के रुद्र में प्रवेश का उल्लेख), ३.१.३४.४(रुद्रभूमिष्ठ : सृगाल का नाम, सृगाल - वानर संवाद), ४.१.१४.११(अष्टमी व चतुर्दशी में ईशानेश का यजन करने वालों की रुद्र संज्ञा), ४.२.९३.५(रुद्र की ब्रह्मा के पुत्र के रूप में उत्पत्ति, रोदन से रुद्र नाम की प्राप्ति), ४.२.९७.८९(रुद्रावास कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२२(रुद्र सर का माहात्म्य), ५.१.५६.११(रुद्रसर का संक्षिप्त माहात्म्य, अमरावती पुरी में स्थित), ५.१.७०.५०(रुद्रों के ११ अपरम्परागत नाम), ५.३.५५.२२(शूलभेद तीर्थ में विष्णु की पिता रूप से, ब्रह्मा की पितामह रूप से और रुद्र की प्रपितामह रूप से स्थिति), ५.३.१०३.६३(अनसूया द्वारा तप के फलस्वरूप रुद्र, विष्णु व ब्रह्मा के दर्शन, तीनों देवों द्वारा स्व - स्व व्यापार स्वरूप कथन तथा अनसूया को वर प्रदान), ५.३.१४६.४३(ब्रह्मा, विष्णु व महेश्वर का क्रमश: पिता, पितामह तथा प्रपितामह रूप से उल्लेख), ५.३.१५७.१३(जप, होम आदि से रुद्र की प्रसन्नता का उल्लेख ?), ५.३.१८७(कालाग्नि रुद्र तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१९८.७०(रुद्रकोटि में देवी की कल्याणी नाम से स्थिति), ६.५२(रुद्र कोटि का माहात्म्य, रुद्र का कोटि रूपों में प्रकट होना), ६.१४६.२(११ रुद्रों का नामोल्लेख), ६.१५५.१३(हाटकेश्वर में एकादश प्रमाण में शतरुद्रिय जप का फल), ६.१९२.७०(ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री द्वारा रुद्र को पत्नीविरह का शाप ), ६.२५२.२५(चातुर्मास में रुद्रों की बदरी वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ६.२७६(एकादश रुद्रों द्वारा ऋषियों को युगपद् दर्शन देना), ७.१.१०.२(तेज गुण वाले तीर्थों में रुद्र की स्थिति का उल्लेख), ७.१.१०.११(रुद्रकर्ण तीर्थ का वर्गीकरण – आकाश), ७.१.८७+ (एकादश रुद्रों के नाम, रुद्रों का प्राण, अपान आदि १० वायुओं से तादात्म्य), ७.१.८७(भूतेश रुद्र का माहात्म्य), ७.१.८८(नील रुद्र का माहात्म्य), ७.१.१०५.५०(२४वें कल्प का नाम), ७.१.१८८(रुद्रेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.३६२(एकादश रुद्रेश्वर लिङ्गों का माहात्म्य), ७.२.९(एकादश रुद्रों की ब्रह्मा से उत्पत्ति), ७.३.५५(रुद्र ह्रद का माहात्म्य, अन्धक वध के पश्चात् रुद्र द्वारा ह्रद में स्नान), हरिवंश २.७४.२२(रुद्र की निरुक्ति : रोदन से, रावण से, रोरूयमाण से, द्रावण से), ३.१४.३६(ब्रह्मा व सुरभि से रुद्रों की उत्पत्ति, निरुक्ति, निर्ऋति आदि ११ नाम), महाभारत सभा ८०.८(पाण्डवों के वन गमन के समय धौम्य द्वारा रौद्र सामों के गायन का उल्लेख), शान्ति ७३.१९/७३.५७((मनुष्य की देह में आत्मा के रुद्र होने का कथन - आत्मा रुद्रो हृदये मानवानां स्वं स्वं देहं परदेहं च हन्ति।
      वातोत्पातैः सदृशं रुद्रमाहुर्देवं जीमूतैः सदृशं रूपमस्य।।), वा.रामायण ६.११७.८(अष्टम रुद्र के रुद्रों में सर्वश्रेष्ठ होने का उल्लेख - रुद्राणामष्टमो रुद्रः साध्यानामसि पञ्चमः ।।), लक्ष्मीनारायण १.१६(ब्रह्मा से सात्विक रुद्र की सृष्टि, रुद्र के पुर का वर्णन), १.४१०, १.४२४.२०(कृत्या के नाश हेतु रुद्र का उल्लेख), १.४८३.५४(रुद्र के ग्रीष्म होने तथा शोषण करने का उल्लेख), १.५३८, १.५४३.७४(दक्ष द्वारा रुद्र को अर्पित १० कन्याओं के नाम), ३.५, ३.७५.८५( योगिदीक्षा ग्रहण करने से रुद्रलोक की प्राप्ति का उल्लेख), तैत्तिरीय संहिता ४.३.९सायण भाष्य(रुतं शब्दं मन्त्ररूपं द्रावयन्ति प्रवर्तयन्तीति रुद्रा:), कथासरित् ९.४.८६(रुद्र नामक वणिक् द्वारा धन को खोने तथा पुन: प्राप्त करने की कथा ), द्र. महारुद्र, शतरुद्रिय rudra


      रुद्रमाल स्कन्द ६.११४(शेषनाग - पुत्र, क्रथ द्वारा हत्या ) rudramaala


      रुद्रयज्ञ कथासरित् ८.२.१८(मय द्वारा नारद के प्रति रुद्रयज्ञ की सार्थकता का प्रतिपादन )


      रुद्रवर्मा भविष्य ३.३.३२.१८०(रुद्रवर्मा का पृथ्वीराज - सेनानी अङ्गद से युद्ध )


      रुद्रशर्मा कथासरित् २.६.३७(रुद्रशर्मा ब्राह्मण के पुत्र बालविनष्टक की कथा )


      रुद्रशीर्ष स्कन्द ६.७८(रुद्रशीर्ष का माहात्म्य : शिरोगत रुद्र स्थिति में ब्रह्मा का तप, स्त्री की जार कर्म पाप से मुक्ति, विदूरथ राजा द्वारा स्थान के भञ्जन से पत्नी द्वारा वध ) rudrasheersha/ rudrashirsha


      रुद्रसावर्णि भविष्य ३.४.२५.३९(ब्रह्माण्ड कर से उत्पन्न शुक्र द्वारा रुद्रसावर्णि मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.१५६.६६(घृणि शूद्र का जन्मान्तर में रुद्र - पुत्र व रुद्रसावर्णि मनु बनना ), ३.१५६.८५ rudrasaavarni/ rudrasavarni


      रुद्रसेन स्कन्द ६.४७(पद्मावती - पति रुद्रसेन द्वारा महाकाल की पूजा, पूर्व जन्म में वैश्य, कमल द्वारा महाकाल की पूजा से राजा बनना )


      रुद्रसोम कथासरित् १०.८.११०(रुद्रसोम नामक ब्राह्मण की अपनी पत्नी को परपुरुषगामिनी जानकर विरक्ति )


      रुद्राक्ष अग्नि ३२५.१(रुद्राक्ष धारण विधि), देवीभागवत ११.३+ (रुद्राक्ष धारण के प्रकार, माहात्म्य, अधिदेवता, रुद्राक्ष की रुद्र अश्रुओं से उत्पत्ति), ११.७.२३(एकमुखी रुद्राक्ष से लेकर चतुर्दश मुखी रुद्राक्ष धारण का माहात्म्य), नारद १.५६.२०६(रुद्राक्ष की उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र से उत्पत्ति), पद्म १.५९(रुद्राक्ष की महिमा, रुद्र स्वेद से रुद्राक्ष की उत्पत्ति की कथा, विभिन्न मुखी रुद्राक्षों की महिमा), शिव १.२५(रुद्राक्ष की महिमा), स्कन्द ३.३.२०(भद्रसेन व पराशर संवाद में रुद्राक्ष का माहात्म्य ) rudraaksha/ rudraksha


      रुद्राध्याय स्कन्द ३.३.२१.१४(भद्रसेन द्वारा पराशर से रुद्राध्याय माहात्म्य का श्रवण ) rudraadhyaaya/ rudradhyaya


      रुधिर गरुड १.७८(रुधिर रत्न की बल असुर के रूप से उत्पत्ति, रुधिर रत्न की परीक्षा), लिङ्ग १.६४.२(कल्माषपाद राक्षस का उपनाम), वायु ६२.१८५(पृथ्वी दोहन में रुधिर रूपी क्षीर का दोहन), स्कन्द ५.३.११.३०(शूद्रान्न रूप में रुधिर का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१६३.१०० rudhira


      रुमण्वान् स्कन्द ३.१.५(विप्रतीक - पुत्र, पुष्पदन्त का रूप), कथासरित् २.१.४४(राजा सहस्रानीक के सेनापति सुप्रतीक का पुत्र), २.६.१४(उदयन व वासवदत्ता का कौशाम्बी लौटकर प्रथम दिन रुमण्वान् के घर में विश्राम ) rumanvaan/ rumanvan


      रुमा ब्रह्माण्ड २.३.७.२२१(पनस - कन्या, सुग्रीव - पत्नी), स्कन्द ४.१.२८.६१टीका(लवण प्रदेश ), वा.रामायण ४.१८.१९(सुग्रीव - पत्नी, बालि द्वारा भोग ), ४.३४ rumaa


      रुरु देवीभागवत २.८.४४+ (प्रमति व प्रतापी - पुत्र, प्रमद्वरा - पति, पत्नी को आधी आयु देकर जीवित करना), २.११(रुरु द्वारा डुण्डुभ /अजगर को सर्प योनि से मुक्त करने के पश्चात् अहिंसा व्रत धारण), ७.२८.५(दुर्गम दानव का पिता), ८.२२.१२(रौरव नरक में क्रूर जन्तु), पद्म १.१९.२५२(दुष्पूरा तृष्णा की रुरु के शरीर में बढने वाले शृङ्ग से उपमा), १.३१.६३(शिवदूती द्वारा रुरु दैत्य का वध), वराह ९६(रौद्री देवी द्वारा रुरु असुर का वध), १४६(रुरु क्षेत्र का माहात्म्य, रुरु कन्या के जन्म का वृत्तान्त), वामन ५५.६२(चण्ड - मुण्ड सहायक, अम्बिका द्वारा रुरु के कोश का उत्कर्तन), शिव ५.५०.३(दुर्गम नामक महासुर का पिता), ७.१.३२.१५(पाशुपतयोग के ४ आचार्यों में से एक), स्कन्द ४.२.७१.३(महासुर, दुर्ग - पिता), ५.२.४.२(महासुर, वज्र - पिता), ५.३.१०९.५(रुरु दानव द्वारा महासेन/कार्तिकेय के अभिषेक में विघ्न, चक्र द्वारा मृत्यु), ७.१.१०५.४६(पञ्चम कल्प का नाम), ७.१.२४२(रुरु असुर द्वारा देवों को त्रास, देवों के तेज से उत्पन्न कुमारी द्वारा रुरु का वध), ७.४.१७.३०(भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत वायव्य दिशा के रक्षकों में से एक), ७.४.१८.२७(महासुर, गोमती सागर सङ्गम में स्नान के लिए उद्धत दुर्वासा का दैत्यों द्वारा ताडन, रुरु द्वारा दैत्यों का ताडन से निवारण), महाभारत अनुशासन ३०.६४(प्रमिति व घृताची – पुत्र, रुरु व प्रमद्वरा से शौनक-पिता शुनक का जन्म) , कथासरित् २.६.७६(मुनि कुमार, मेनका अप्सरा से उत्पन्न प्रमद्वरा पर आसक्ति, विवाह, पत्नी को आधी आयु प्रदान कर जीवित करना), १२.११.९०(वीरवर द्वारा रुरु दैत्य - संहारक देवी की स्तुति ), द्र. अररु ruru

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      रुषङ्गु वामन ३९.१६(एक ब्रह्मर्षि, पृथूदक नामक तीर्थ में सिद्धि प्राप्ति )


      रुषाभानु भागवत ७.२.१९(हिरण्याक्ष - पत्नी )


      रुह लक्ष्मीनारायण ४.४७रुहारिणी


      रुटाणकी लक्ष्मीनारायण ३.२२९.२


      रूढिका लक्ष्मीनारायण २.१४.६०


      रूप अग्नि ८६.९(विद्या कला के अन्तर्गत रूप विषय के आधीन नाडियों व वायुओं के नाम, शब्द, स्पर्श व रूप गुणों का उल्लेख), ८६.१८(विद्या कला/सुषुप्ति में रूप व गन्ध तन्मात्राएं?), गणेश १.१.२९(राजा सोमकान्त के मन्त्री रूपवान् का उल्लेख), १.१३.२६(गणेश द्वारा विष्णु को स्वच्छन्दरूपता प्रदान करने का उल्लेख), ५.२४.५३(राजा दृढाश्व द्वारा कुरूप लोमश मुनि का उपहास, लोमश द्वारा राजा को क्रोडमुख असुर होने का शाप), नारद १.४२.८८ (ज्योति/रूप के १६ भेद), १.६६.११३(दारुकेश की शक्ति रूपिणी का उल्लेख), १.१२१.६७(रूप द्वादशी व्रत विधि), गरुड १.७८.१(बल असुर के रूप से रुधिर रत्न की उत्पत्ति का कथन), पद्म १.१८.१०४(पुष्कर तीर्थ में स्नान से तपस्वियों को सुरूपता प्राप्ति), २.८५.५७(रूप देश के राजकुमार चित्रसेन से स्वकन्या के विवाह हेतु दिवोदास का विचार, चित्रसेन की मृत्यु), ६.३०.८७(रूपसुन्दरी : सुधर्मा - पत्नी, पूर्व जन्म में मूषिका, दीप प्रबोधन की महिमा), ब्रह्म १.१२०.१४५(सत्यतपा नामक ब्राह्मण को रूपतीर्थ में विष्णु का आराधन कर गन्धर्वलोक, इन्द्र लोक तथा अन्त में मोक्ष प्राप्ति), २.५१(भरद्वाज - भगिनी कुरूप रेवती का कठ से विवाह, अभिषेक जल से रेवती नदी की उत्पत्ति), ब्रह्मवैवर्त्त २.५३.१८(त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप, विश्वरूप के पुत्र विरूप तथा विरूप के पुत्र सुतपा का कथन), ३.४.२८(रूप प्राप्ति हेतु विष्णु को पारिजात पुष्प अर्पित करने का निर्देश), भविष्य १.१९.२६(वैरोचन/बलि? द्वारा रूप देने का उल्लेख, अश्विनौ द्वारा च्यवन को रूपवान् बनाने की कथा), १.४७.३(अण्डस्थ आदित्य द्वारा सप्तमी को रूप प्राप्ति), ३.४.१९.५५(रूप तन्मात्रा के अधिपति के रूप में कुमार का उल्लेख), ४.१०८.१(रूप प्राप्ति हेतु नक्षत्र न्यास का वर्णन), भागवत ११.५.२०(भगवद् रूप के सम्बन्ध में करभाजन द्वारा निमि को उपदेश), वराह ४८.२३(रूपकामी के लिए बुद्ध के यजन का निर्देश), वामन ९०.५(इरावती में विष्णु का रूपधार नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर १.१५४+ (पुरूरवा द्वारा रूप प्राप्ति के लिए उद्योग), ३.४२(ब्रह्माण्ड में विभिन्न योनियों में स्थित प्राणियों के रूप), ३.२०२(रूप प्राप्ति व्रत), शिव ६.१६.५१(ज्ञान, क्रिया व इच्छा रूपी दृष्टि - त्रय द्वारा रूप का निर्धारण), स्कन्द १.२.२९.१५(ब्रह्मा द्वारा आडि दैत्य को स्व रूप परिवर्तन पर ही मृत्यु का वरदान; आडि द्वारा उमा का रूप धारण करने की कथा), ३.३.८.२०(दमयन्ती के रूप की विशिष्टता का उल्लेख), ५.१.२८.४०(रूप कुण्ड का माहात्म्य), ५.२.६२.१(रूपेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : पद्म राजा द्वारा कण्व - कन्या से व्यभिचार, कण्व द्वारा राजा को कुरूपता का शाप, रूपेश्वर लिङ्ग पूजा से रूप प्राप्ति), ५.३.५६.११९(रूप्य दान से रूप प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.१९८.७८(विनायक तीर्थ में देवी का रूपा नाम से वास), ६.१५३(रूप तीर्थ का माहात्म्य, तिलोत्तमा द्वारा शिव की परिक्रमा, शिव की क्षुब्धता, पार्वती का तिलोत्तमा को शाप, रूप तीर्थ में रूप प्राप्ति), ६.१८२.५६(रूप तीर्थ का माहात्म्य : कुरूप ऋषियों द्वारा रूप प्राप्ति), ६.२७१.१०८(कोकिल का रूप स्वर, नारी का पतिव्रता, तपस्वियों का क्षमा होने का उल्लेख), ७.३.१२(रूप तीर्थ का माहात्म्य : वपु अप्सरा द्वारा रूप प्राप्ति), महाभारत विराट ५.२५(नकुल नाम की निरुक्ति – कुल में नहीं है वैसा रूप), शान्ति १८४.३३(रूप के १६ गुणों का कथन), २३३.९(प्रलय काल में वायु द्वारा ज्योति के रूप गुण को आत्मसात् करने का उल्लेख), अनुशासन ५७.११(अहिंसा से रूप प्राप्ति का उल्लेख), आश्वमेधिक ५०.४६(तैजस रूप के १२ गुणों का कथन), महाप्रस्थानिक २.१६(नकुल द्वारा स्वयं को रूपवान् मानने के कारण स्वर्ग से पूर्व पतन), योगवासिष्ठ ५.८०(रूप को साक्षि भाव से भोगने का उपदेश आदि), वा.रामायण ३.७१.३(स्थूलशिरा ऋषि के शाप से कबन्ध का कुरूप बनना ), लक्ष्मीनारायण १.५५३, १.१५५.४९(अलक्ष्मी के रूप की किराती से उपमा), २.२१३.४१रूपर्तु, २.२१८, ३.१६३.१०१, ३.२२९.९४, कथासरित् ७.६.२६(रूप प्राप्ति हेतु तपोरत विरूपशर्मा को इन्द्र द्वारा शिक्षा), ७.८.३९(मायावती नामक रूपिणी विद्या से क्षुधा व तृष्णा शान्त होने का कथन), ९.१.१२०(रूपधर : मुक्तिपुर द्वीप का राजा, हेमलता - पति, रूपलता - पिता), ९.१.१२०(रूपलता : रूपधर व हेमलता - कन्या, राजा पृथ्वीरूप व रानी रूपलता की कथा), ९.४.१७(रूपसिद्धि : नारिकेल द्वीप के अन्तर्गत मैनाक प्रभृति चार पर्वतों पर वास करने वाले चार दिव्य पुरुषों में से एक ), वास्तुसूत्रोपनिषद २.१८(शिल्प में रूप का यूप से साम्य), द्र. केतुरूप, चित्ररूप, वपु, विरूप, विश्वरूप, शतरूपा, सुरूपा roopa/ruupa/ rupa

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      रूपक अग्नि ३३८(रूपक के नाटक आदि २७ भेद), पद्म ५.११७.२११(अन्यायार्जित द्रव्य से शिव अर्चना करने से रूपक राक्षस का चोरगण बनना), विष्णुधर्मोत्तर ३.१७(द्वादश रूपक ) roopaka/ruupaka


      रूपण भविष्य ३.३.९.२१(रूपण : शिखण्डी का अवतार), कथासरित् २.४.७८(रूपणिका : वेश्या, मकरदंष्ट्रा नामक कुट्टनी - कन्या, लोहजङ्घ नामक युवक पर प्रेम ) ruupana/ rupana


      रूपदत्त भविष्य ३.२.१९(चित्रकूट का राजा, मुनि - पुत्री से विवाह, राक्षस की संतुष्टि के लिए ब्राह्मण पुत्र की बलि ) ruupadatta/ rupadatta


      रूपवती पद्म ५.९५(रूपवती वेश्या द्वारा वैशाख मास स्नान से अम्बरीष की पत्नी कान्तिमती बनना), वराह २०८.२८(राजा मिथि की भार्या, पतिव्रता, नारद के पूछने पर यम द्वारा रूपवती को पातिव्रत्य वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.३६२, कथासरित् १२.२.१६३(लावण्यमञ्जरी नामक ब्राह्मण कुमारी का विषय वासना युक्त चित्त से मरने के कारण रूपवती वेश्या के रूप में जन्म), १८.४.१६६(रत्नदत्त ब्राह्मण की कन्या, केसट से कपट विवाह का वृत्तान्त ) roopavatee/ruupavatee/ rupavati


      रूपवर्मा भविष्य ३.२.४(भोगवती - राजा, चूडामणि शुक की सहायता से चन्द्रवती से विवाह )


      रूपशिखा कथासरित् ७.५.१(राजपुत्र शृङ्गभुज व रूपशिखा की कथा), ७.५.८५(अग्निशिख राक्षस - कन्या, शृङ्गभुज पर मोहित )


      रूपसेन पद्म २.८५.६८(दिवोदास द्वारा दिव्यादेवी नामक स्वकन्या रूपसेन को प्रदान, लग्नकाल में ही रूपसेन की मृत्यु), भविष्य ३.२.३(वीरवर द्वारा राजा रूपसेन के प्रति राज्यभक्ति की कथा), कथासरित् ७.८.१९९(विद्याधर - कुमार, पद्मसेन - अनुज, पुनर्जन्म में मर्त्य लोक में अनिच्छासेन नाम से उत्पत्ति ) roopasena/ ruupasena/ rupasena


      रूपा भविष्य १.४७(छाया - सूर्य कथा में संज्ञा का उपनाम )


      रूपिका योगवासिष्ठ ३.४९.२४(रूपिका पूतनाओं का नाम व वर्णन )


      रेखा देवीभागवत १२.११.११(रथरेखा, राशिरेखा; पद्मरागमय साल के चतुर्दिक स्थित लोकनायिकाओं में गणना), वास्तुसूत्रोपनिषद २.२२(शिल्प में ३ प्रकार की रेखाओं का कथन), ५.७(शृङ्गार, रूप हेतु अप् रेखा के ग्रहण का निर्देश), द्र. कनकरेखा, चन्द्ररेखा, चित्ररेखा, बिन्दुरेखा, रुक्मरेखा, विशालरेखा, शशिलेखा, स्वर्णरेखा rekhaa


      रेणु द्र. सुरेणु


      रेणुका गणेश १.७७.५(जमदग्नि - भार्या, लोक में रति नाम से प्रसिद्धि - रतिरित्येव लोकेषु विख्याताऽभूत्ततस्तु सा ।), १.७९.३९(कार्तवीर्य द्वारा रेणुका व जमदग्नि की हत्या, रेणुका द्वारा राजा को शाप), १.८१.३२(रेणुका की और्ध्वदेहिक क्रिया के पश्चात् रेणुका के कामों का पूरण करने वाली बनने का वर्णन - तस्थौ सा रेणुका भूमौ स्थाने स्थाने च तादृशी ॥ पूरयत्यखिलान् कामान् जनानां भक्तिकारिणाम् ।), २.१०.२९(रेणुका द्वारा महोत्कट गणेश को सिंह वाहन भेंट आदि - पुनः संपूज्य सिंहं सा ददौ वाहनमुत्तमम् । सिंहवाहन इत्येवं चक्रे नामातिसुन्दरम् ।।), गरुड ३.२८.८८, ३.२८.१०७(रेणुका का माया देवी से साम्य?), देवीभागवत १२.६.१३३(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म ३.२४.३२(रेणुका तीर्थ का संक्षिप्त महत्त्व – चन्द्रमा की भांति निर्मल - रेणुकायाश्च तत्रैव तीर्थं देवनिषेवितम् । स्नात्वा तत्र भवेद्विप्रो विमलश्चंद्रमा इव), ३.२७.५०(रेणुका तीर्थ का माहात्म्य - ततो गच्छेत राजेंद्र रेणुकातीर्थमुत्तमम् ।तत्राभिषेकं कुर्वीत पितृदेवार्चने रतः ।), ब्रह्म १.८.५१(रेणु - कन्या, अपर नाम कामली, जमदग्नि - भार्या, परशुराम - माता), ब्रह्मवैवर्त्त ३.२७.३७(जमदग्नि की मृत्यु पर रेणुका का विलाप, परशुराम को युद्ध न करने का परामर्श), ब्रह्माण्ड २.३.३०(जमदग्नि - भार्या, पति मृत्यु पर विलाप एवं त्रिसप्त बार उदर ताडन, पति के पुन: उज्जीवन का वृत्तान्त), २.३.६६.६१(जमदग्नि - पत्नी, कमली विशेषण), भागवत ८.५.६(भौमान् रेणून्स विममे यो विष्णोर्वर्णयेद्‍गुणान् ॥), ९.१५.१२(रेणु ऋषि की कन्या, जमदग्नि से विवाह, परशुराम - माता), वामन ४१.५(कुरुक्षेत्र का एक तीर्थ, फल - रेणुकाश्रममासाद्य श्रद्दधानो जितेन्द्रियः।
      मातृभक्त्या च यत्पुण्यं तत्फलं प्राप्नुयान्नरः ), वायु २.२९.८८( सुवेणु – कन्या, जमदग्नि – माता - इक्ष्वाकुवंशे त्वभवत्सुवेणुर्नाम पार्थिवः ॥ तस्य कन्या महाभागा कामली नाम रेणुका ।), विष्णुधर्मोत्तर १.३५.५(प्रसेनजित् - पुत्री, जमदग्नि - भार्या), १.३५(रेणुका द्वारा जमदग्नि के बाण लाने व पैर जलने का प्रसंग - वर्ततश्च स्वभावेन न मे त्वं क्रोद्धुमर्हसि ।। पुत्रस्तेऽहं भविष्यामि त्वस्यामेव द्विजोत्तम ।।), १.३६.३(रेणुका की चित्राङ्गराज से आसक्ति, परशुराम द्वारा रेणुका का वध), शिव ५.१८.५५(शाक द्वीप की सात नदियों में से एक), स्कन्द २.१.९.८७(रेणुका देवी द्वारा तोण्डमान नृप को वर - सुराघटीशतं दत्त्वा जातीकेसरवासितम् ।।
      एवं संपूजिता देवी प्रीता राज्ञे वरं ददौ ।। ), हरिवंश १.२७.३८(रेणु - पुत्री, जमदग्नि - भार्या, कामला उपनाम - इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रेणुर्नाम नराधिपः । तस्य कन्या महाभागा कामली नाम रेणुका ।।), लक्ष्मीनारायण १.४०१.७३(वल्मीकाकार रेणुका देवी की महिमा - सुवर्णमुखरीं तीर्त्वा शुकं नत्वा च रेणुकाम् ।। वल्मीकाकारदेवीं च नत्वा स पश्चिमां ययौ । ), १.४५७.६(जमदग्निं मारयित्वा कामधेनुं जहार सः । ययावनु सती वह्नौ प्रविश्य रेणुका पतिम् ।।), ३.१०३.९७(सूर्यताप से रेणुका के पाद जलने व सूर्य द्वारा रेणुका को तापशान्तिकारक वस्तुएं प्रदान - श्रुत्वा सूर्यो ददावस्मै छत्रोपानहमाशु वै । स्वल्पं यानं कामगं च भूषाम्बराणि वै तथा ।।..), renukaa


      रेत द्र. हिरण्यरेत


      रेतस् गरुड २.३०.५२/२.४०.५२(मृतक के रेत: स्थान में पारद देने का उल्लेख), स्कन्द ४.१.१४.१८(तप से अत्रि के रेतः का सोम में परिवर्तन, चक्षुओं से स्रवण), retah


      रेपलेन्द्र स्कन्द १.२.६३.१९(रेपलेन्द्र द्वारा विजय की साधना में विघ्न, सुह्रदय द्वारा विघ्न का हनन )


      रेभ्य स्कन्द ६.१८०.३४(रैभ्य : मुनि, ब्रह्मा के यज्ञ में नेष्टा ), लक्ष्मीनारायण १.५२७, १.५७१ , द्र. रैभ्य rebhya


      रेमक ब्रह्म १.११.१३७(एक मुनि, मुनि - पत्नी द्वारा अजपार्श्व नामक बालक का पालन )


      रेवत देवीभागवत ७.८(राजा रेवत का ब्रह्मलोक गमन, आगमन पर रेवती कन्या के बलराम से विवाह की कथा), भविष्य १.५७.३(रेवत हेतु पिशितान्न बलि का उल्लेख), १.५७.१४(रेवत हेतु निर्यास बलि का उल्लेख), १.७९.५८( सूर्य-संज्ञा पुत्र रेवत की निरुक्ति), १.१२४.३१(सूर्य व संज्ञा - पुत्र, नाम निरुक्ति), लक्ष्मीनारायण १.५३+ (रैवत द्वारा नारद की प्रेरणा से भू विवर का पूरण, खट्वाङ्गद पुत्र की उत्पत्ति), १.१६१(रेवताचल की महिमा ) revata


      रेवती अग्नि २७३.१६(सूर्यवंशी रैवत - कन्या, बलराम से विवाह), गरुड ३.२८.८(रेवती का वारुणी व सौपर्णी से तादात्म्य), गर्ग ६.३(रैवत - कन्या, बलराम से विवाह), ८.४.२७(चाक्षुष मनु - पुत्री ज्योतिष्मती का रेवती के रूप में अवतरण), देवीभागवत ०.४(ऋतवाक् मुनि के शाप से रेवती नक्षत्र का पतन, कन्या रूप में जन्म), ७.६, ७.७.४६(रेवत - पुत्री, ककुद्मी - भगिनी, वर पृच्छा हेतु रैवत का रेवती को साथ लेकर ब्रह्मलोक गमन), १२.६.१३३(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.११७(भुजङ्ग की शक्ति रेवती का उल्लेख), पद्म १.४६.८१(अन्धक रक्त पानार्थ महादेव - सृष्ट मातृकाओं में से एक), ३.३०, ब्रह्म १.५.३३(रैवत द्वारा रेवती को बलराम को प्रदान करना), १.९०.१९(रैवत - कन्या, बलराम से विवाह, निशठ व उल्मुक - माता), २.५१(भरद्वाज - भगिनी कुरूप रेवती का कठ से विवाह, अभिषेक जल से रेवती नदी की उत्पत्ति), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०६.१(ककुद्मी - पुत्री, बलराम से विवाह), ब्रह्माण्ड ३.५९.१२, ३.६१(बलराम द्वारा रेवती की प्राप्ति), भविष्य ३.३.१३.२३(रेवती का नेत्रसिंह - कन्या स्वर्णवती के रूप में जन्म), भागवत ६.१८.६(मित्र - पत्नी, उत्सर्ग आदि पुत्रों की माता), मत्स्य १७९.१३(अन्धक के रक्तपान हेतु शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक, महारक्ता विशेषण), १७९.३६(विष्णु द्वारा सृष्ट शुष्क रेवती द्वारा अन्धक - पुत्रों के रक्त का पान, रक्त पीने से और अधिक शुष्क होना), १७९.६६(शुष्क रेवती की अनुचरी मातृकाओं के नाम), मार्कण्डेय ७५(रेवती नक्षत्र के अन्तिम चरण में ऋतवाक् के अशील पुत्र की उत्पत्ति, ऋतवाक् द्वारा रेवती नक्षत्र का पातन आदि), वामन ५५.८२ (शुष्क रेवती द्वारा चण्ड - मुण्ड के शिरों से शेखर/अलंकार का निर्माण), वायु ८३.१४, ८५.३१, विष्णु ४.१.६६(रेवती के बलराम से विवाह की कथा, बलराम द्वारा हलाग्र से रेवती को नीची करना), ५.३८.३(रेवती का बलराम के पार्थिव शरीर के साथ अग्नि में प्रवेश), विष्णुधर्मोत्तर १.२२६.३४(अन्धक के रक्तपान से शुष्क रेवती के और अधिक शुष्क होने का उल्लेख), १.२२६.६३(काली का शुष्क रेवती से तादात्म्य?, शुष्करेवती की अनुचरी ३२ मातृकाओं के नाम), स्कन्द ४.१.२९.१४५(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ६.११६(शेषनाग - भार्या, भट्टिका से मनुष्य योनि में जन्म लेकर कुटुम्ब विनाश के शाप की प्राप्ति, रेवती द्वारा भट्टिका का दंशन), ६.११६(जन्मान्तर में रैवत - पुत्री व बलराम भार्या बनना), ७.२.१७.१४५(ऋतवाक् के शाप से रेवती नक्षत्र का कुमुद पर्वत पर पतन, रेवती कन्या का जन्म, प्रमुञ्च मुनि द्वारा पालन, दुर्दम से विवाह, विवाहार्थ रेवती नक्षत्र की चन्द्रपथ में स्थापना, रैवत मनु की उत्पत्ति), हरिवंश २.५८.८४(रेवत - कन्या, बलराम से विवाह का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१४८.५८(रैवती : रैवताचल - पुत्री, अवैधव्य हेतु प्रार्थना), १.१५७(कृतवाक् मुनि द्वारा रेवती नक्षत्र का पातन, कुमुद पर्वत पर रैवती कन्या की उत्पत्ति, प्रमुच द्वारा रेवती कन्या का पालन, रेवती का दुर्दम से विवाह), १.३९०.९८(ककुद्मी- कन्या, वरपृच्छा हेतु ब्रह्मलोकगमन), १.४१६.६(ज्योतिष्मती कन्या द्वारा अनन्त पति प्राप्ति हेतु, रेवती रूप में बलराम की प्राप्ति) , १.४९९, २.३२.३२(अदिति के रेवती ग्रह नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), द्र. शुष्करेवती revatee/ revati

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      रेवन्त अग्नि २७३, देवीभागवत ६.१७.५०(रेवन्त का उच्चैःश्रवा पर आरूढ होकर विष्णु दर्शन को गमन), भविष्य १.७९(सूर्य व संज्ञा - पुत्र, अश्वस्वामित्व की प्राप्ति), मार्कण्डेय ७८ (रेवन्त का गुह्यकाधिपतित्व), १०८(रेवन्त की उत्पत्ति), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६.८९(सूर्य व संज्ञा/वडवा - पुत्र, अश्विनौ को पिता सूर्य द्वारा रेवन्त नाम प्रदान), ३.६७.९(सूर्य रूप निर्माण में सूर्य के पार्श्व में रेवन्त प्रभृति चारों पुत्रों का निर्माण), स्कन्द ५.२.५६(रेवन्तेश्वर का माहात्म्य, सूर्य व बडवा (संज्ञा ) से रेवन्त पुत्र की उत्पत्ति, देवों को शरीर वह्नियों से त्रास, गुह्यकेश्वर पद की प्राप्ति, रेवन्तेश्वर लिङ्ग पूजा), ५.३.६०, ७.१.११.२०७(सूर्य व संज्ञा से रेवन्त की उत्पत्ति, सूर्य के गणों द्वारा रेवन्त का पीछा, रेवन्त की प्रभास में स्थिति, राजभट्टारक नाम), ७.१.१६०(रेवन्त का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.६३, १.१५७.८६(सूर्य व संज्ञा - पुत्र रेवन्त का रेवती व दुर्दम - पुत्र रेवत मनु बनना ) revanta


      रेवा देवीभागवत ४.७, १२.६.१३४(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.२३.६१(राजा धर्मकीर्ति द्वारा अनभिज्ञतापूर्वक रेवा तट पर किए गए उपवास व स्नान से पाप मुक्ति), पद्म २.११.५(रेवा तीरस्थ वामन तीर्थ वासी सोमशर्मा नामक ब्राह्मण को सुव्रत द्वारा उपदेश), २.१९(सोमशर्मा ब्राह्मण का पत्नी सुमना के साथ रेवा - कपिला संगम तीर्थ में तप), २.९२.२०(रेवा - कुब्जा संगम का माहात्म्य : तीर्थों द्वारा शुक्लत्व प्राप्ति की कथा), ५.३५(अश्वमेध के अश्व का रेवा तीरस्थ आरण्यक के आश्रम में आगमन), ५.९३(वैशाख मास में रेवा स्नानोपदेश का वर्णन), वराह १४४.३३(रेवा के तप से तुष्ट होकर शिव द्वारा लिङ्ग रूप में सदा रेवा गर्भ में रहने का वरदान), वामन ५७.८१(रेवा द्वारा स्कन्द को गण प्रदान करने का उल्लेख), शिव १.१२.१३(१० मुखी रेवा का संक्षिप्त माहात्म्य), स्कन्द ४.२.७४.८(भरद्वाज - पुत्र दमन का रेवा तीरस्थ अमरकण्टक क्षेत्र में गमन, गर्ग मुनि के दर्शन, गर्ग द्वारा दमन को ओंकार माहात्म्य का कथन), ४.२.९२.६(गङ्गा के ऋग्वेद मूर्ति रूप, यमुना के यजुर्वेद मूर्ति रूप, नर्मदा के साम मूर्ति रूप तथा सरस्वती के अथर्व मूर्ति रूप होने का उल्लेख), ४.२.९६(रेवा द्वारा काशी में लिङ्ग प्रतिष्ठा, शिव से वर प्राप्ति, लिङ्ग की नर्मदेश्वर नाम से प्रसिद्धि), ५.१.५५(रेवा जल से पृथ्वी के उद्धार के लिए अगस्त्य का उद्योग), ५.३.१+ (रेवा माहात्म्य), ५.३.६.३८(नर्मदा के रेवा नाम का कारण), ५.३.९.४५(गङ्गा के वैष्णवी रूप, रेवा के रुद्रदेहसमुद्भूता रूप तथा सरस्वती के ब्राह्मी रूप होने का उल्लेख), ५.३.८५.१४(दक्ष शाप से दग्ध सोम द्वारा रेवा - औjjर्वि संगम पर स्थित होकर महेश्वर का आराधन, शाप मोचन का वृत्तान्त), ५.३.२२०.११(रेवा के सागर में प्रवेश करते हुए लिङ्ग की उत्पत्ति, लिङ्ग में रेवा का लय, लोटणेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.३४०, १.५५६, १.५५७.१४, १.५६१, १.५६२, ३.५१.३३, ४.१०१.८६, revaa


      रैक्य/ रैक्व पद्म ६.१८०.२९(रैक्य महर्षि द्वारा ज्ञानश्रुति राजा को गीता के ६ठे अध्याय का अभ्यास कराना ), ६.१८०(रैक्य का कश्मीर - नरेश माणिक्येश्वर के मन्दिर में वास, जानश्रुति राजा को गीता के छठे अध्याय का अभ्यास कराना), स्कन्द ३.१.२६(जन्म से पङ्गु रैक्व मुनि द्वारा तप से पामा/कण्डू प्राप्ति, सयुग्वान उपनाम, रैक्व द्वारा गङ्गा आदि तीर्थों का आह्वान, जानश्रुति राजा को ब्रह्मज्ञान का उपदेश ) raikva

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      रैदास भविष्य ३.४.१८.५३(मानदास - पुत्र, पिङ्गलस्पति नामक अश्विनीकुमार के अंश ) raidaasa


      रैभ्य देवीभागवत ६.२१.३७(राजा, रुक्मरेखा - पति, पुत्रेष्टि द्वारा एकावली कन्या की प्राप्ति), वराह ५.८(रैभ्य का बृहस्पति से कर्म या ज्ञान की श्रेष्ठता विषयक संवाद), ७(रैभ्य का गया में आगमन, सनत्कुमार से संवाद, धन्य उपाधि की प्राप्ति), १२६(रैभ्य द्वारा कुब्जाम्र रूपी हरि का दर्शन), वायु ७०.२५(वत्सार - पुत्र), शिव ५.३६.२४(आनर्त - पुत्र, रैभ्य का रैवत नाम से एक्य ?), स्कन्द २.८.७.८६(उर्वशी द्वारा रैभ्य के तप में विघ्न, रैभ्य द्वारा शाप), ३.१.३३.२५(रैभ्य – पुत्र परावसु द्वारा भ्रान्ति में मृग रूप धारी रैभ्य की हत्या), ६.१८०.३४(ब्रह्मा के यज्ञ में नेष्टा ऋत्विज होने का उल्लेख), ७.१.३९.२१(रैभ्य की शशबिन्दु राजा से भेंट, केदारेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का श्रवण), लक्ष्मीनारायण १.५०९.२५(ब्रह्मा के सोमयाग में उन्नेता ), १.५२७(गया में रैभ्य द्वारा सनत्कुमार का दर्शन आदि), १.५७१.१३(रैभ्य के तपोस्थल आम्र वृक्ष का कुब्ज होना, श्री हरि का कुब्जाम्र रूप में प्राकट्य), द्र. रेभ्य raibhya


      रैवत अग्नि २७३.१२(रेव - पुत्र, ककुद्मी नाम से प्रसिद्ध, रेवती - पिता, तप से विष्णु धाम की प्राप्ति), गरुड १.८७.१७(रैवत मनु के पुत्रों के नाम), गर्ग ६.३(रैवत द्वारा स्वकन्या के विवाहार्थ ब्रह्मा से पृच्छा, पुत्री रेवती का बलराम से विवाह), ६.१४(रैवत द्वारा श्रीशैल - पुत्र को द्वारका में स्थापित करना), ६.१४.६(अपान्तरतमा मुनि के शाप से मेधावी ब्राह्मण का रैवत पर्वत होना, रैवत पर्वत का नारद मुनि से अपनी मुक्ति का उपाय बताना, उपाय के अनुसार राजा रैवत का सब पर्वतों को हराकर रैवत पर्वत को लाकर द्वारकापुरी में स्थापित करना, रैवत पर्वत का माहात्म्य), ८.४.३१(ब्रह्मा के आदेशानुसार ज्योतिष्मती का आनर्त देश के राजा रैवत की कन्या रूप में जन्म, रेवती नाम धारण), देवीभागवत ०.४(रैवत मनु : दुर्दम व रेवती - पुत्र रैवत की उत्पत्ति की कथा), ७.७+(रेवती - पिता, रेवती के लिए वर पृच्छा हेतु ब्रह्मलोक गमन, आगमन पर रेवती का बलराम से विवाह करना), ८.३, १०.८(रैवत मनु : प्रियव्रत - पुत्र, कामबीज मन्त्र का जप, देवी की आराधना से राज्य की प्राप्ति), ब्रह्म १.५.२९(रैव - पुत्र, रेवती - पिता, अपर नाम ककुद्मी), ब्रह्माण्ड २.३.६१, १.२.३६.६३(रैवत के पुत्रों के नाम), भविष्य १.१३८.३९(रैवत की हय ध्वज का उल्लेख), ३.४.२५.३३(ब्रह्माण्ड श्रवण से उत्पन्न विश्वकर्मा द्वारा रैवत मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख), भागवत ५.१.२८(प्रियव्रत के ३ मन्वन्तराधिपति पुत्रों में से एक), ८.५.१(पञ्चम मनु तथा मन्वन्तर का नाम, रैवत मन्वन्तर के ऋषि, देवता, अवतार आदि का कथन), मत्स्य ११, १२.२३(रोचमान - पुत्र, रेवती - पिता), मार्कण्डेय ७५.२३(रैवतक : रेवती नक्षत्र के पतन से कुमुद पर्वत की रैवतक नाम से प्रसिद्धि), वराह १४९.६७(रैवतक क्षेत्र का संक्षिप्त माहात्म्य), शिव ५.३६.२४(आनर्त - पुत्र, रैभ्य नाम से एक्य), स्कन्द ४.१.१.५७ (रैवत पर्वत के राय से रहित होने का उल्लेख), ६.११६(सौराष्ट्र - राजा, तक्षक नाग का शापित रूप, रैवत की भार्या क्षेमङ्करी तक्षक - भार्या का रूप), ६.११८(भट्टिका शाप से तक्षक का रैवत नृप रूप में जन्म, क्षेमङ्करी - पति, पुत्र को राज्य देकर रैवत व क्षेमङ्करी का वन में प्रयाण, हाटकेश्वर में शिवलिङ्ग स्थापना), ७.१.९०(रैवतेश्वर लिङ्ग का वृषभेश्वर लिङ्ग से तादात्म्य), ७.१.११८.६ (रैवतक : गिरि, यादवों द्वारा लिङ्ग स्थापना), ७.२.१५.१९, हरिवंश २.६५(रैवतक पर्वत पर रुक्मिणी के व्रतोद्यापन का उत्सव), लक्ष्मीनारायण १.५३, १.१४२.९(रैवत गिरि का माहात्म्य : श्रीहरि की कौस्तुभ मणि के खण्ड का स्थूलता को प्राप्त हो रैवत गिरि बनने का उल्लेख, रैवत गिरि के विभिन्न अङ्गों में विभिन्न प्राणियों के निवास का वर्णन, रैवत गिरि की महिमा, बलि का यज्ञस्थल), १.१५१(रैवताचल तीर्थ यात्रा की विधि), ११५३, १.१५४(रैवत पर्वत पर कुमुद व मन्दर पर्वतों का स्थित होना), १.१५४.४३(रैवताचल की महिमा : कुमुद, मन्दर, अरुण आदि पर्वतों का तैजस रूप में रैवताचल पर स्थित होना आदि, विष्णु, ब्रह्मा, शिव का रैवताचल पर स्थित होना), १.१५७.८४(सूर्य व संज्ञा से उत्पन्न रैवत का दुर्दम व रेवती - पुत्र रूप में जन्म लेकर पञ्चम रैवत मनु बनने का कथन), १.२८६, १.३५०, १.४०६, १.५३६, १.५४८.९०(रैवत पर वामन के बाल रूप का उल्लेख ), १.५५०, २.११६, ३.१५५.६५, द्र. भूगोल raivata


      रैवतक गर्ग ६.९.३३(श्रीशैल - पुत्र, राजा रैवत द्वारा द्वारका में स्थापना), ६.१४(रैवतक पर्वत का माहात्म्य : गौतम - पुत्र मेधावी का ऋषि शाप से श्रीशैल - पुत्र बनना, राजा रैवत द्वारा उत्पाटन के कारण रैवतक नाम प्राप्ति), स्कन्द ७.२.९.२२३(रैवतक गिरि पर नारायण की स्थिति), ७.२.१५(रैवतक पर्वत की शोभा का वर्णन), ७.२.१७.१४२(रैवतक पर्वत : कुमुद पर्वत पर रेवती नक्षत्र के पतन से कुमुद का नाम ), महाभारत आश्वमेधिक ५९ raivataka


      रोकीश्वर लक्ष्मीनारायण २.२०३.७३रायरोकीश्वर


      रोग अग्नि १२१.१०(रोग मुक्ति के लिए स्नान हेतु नक्षत्र विचार), २७९+ (रोग निवारण हेतु ओषधियों का वर्णन), २८०(सर्व रोगहर ओषधियों का वर्णन), २८३(रोग नाश हेतु ओषधि योग), गरुड १.१४६(रोग निदान, गजों, अश्वों, मेघों, ओषधि आदि में ज्वरों के नाम), १.१४८(रक्त - पित्त निदान), १.१४९(कास निदान), १.१५०(श्वास निदान), १.१५१(हिक्का निदान), १.१५२(यक्ष्मा निदान), १.१५३(अरोचक निदान), १.१५४(हृद् रोग निदान), १.१५५(मदात्यय निदान), १.१५६(अर्श निदान), १.१५७(अतिसार व ग्रहणी निदान), १.१५८(मूत्रघात, मूत्र कृच्छ्र निदान), १.१५९(प्रमेह निदान), १.१६०(विद्रधि, गुल्म निदान), १.१६१(उदर रोग निदान), १.१६२(पाण्डु, शोथ निदान), १.१६३(विसर्प निदान), १.१६४(कुष्ठ रोग निदान), १.१६५(क्रिमि रोग निदान), १.१६६(वात रोग निदान), १.१६७(वात रक्त निदान), १.१६८(रोग चिकित्सा), १.१७०+ (रोग चिकित्सा वर्णन), २.२३.२९(यमपुरी में चित्रगुप्त के गृह के सापेक्ष रोगों के गृहों की स्थिति), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६(रोगों की उत्पत्ति व चिकित्सा), विष्णुधर्मोत्तर ३.३२१.१०(रोगी की परिचारणा से वायु लोक की प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द ५.३.५६.११९(चक्र तीर्थ में गृह दान से रोग रहितता प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.६४.१३(रोगों की चित्रगुप्त गृह के सापेक्ष दिशाओं में स्थिति), १.२५२, १.४९६, १.५७७, २.७४.८५, २.२३७, कथासरित् १०.८.१४(वायु रोग से पीडित मूर्ख तथा वैद्य की कथा ), द्र. वास्तुमण्डल roga


      रोचन गरुड ३.१६.९१(रोचन इन्द्र की भार्या श्रद्धा का उल्लेख), भविष्य ३.४.२२(कवि, पूर्व जन्म में रुचि), भागवत ८.१.२०(द्वितीय स्वारोचिष मन्वन्तर के इन्द्र का नाम), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२२+ (रोचन के विभिन्न प्रकार व फल), स्कन्द २.७.२१(दुष्ट चरित्र वाले कुशीद - पुत्र रोचन द्वारा कथा में विघ्न से सर्पादि योनियों की प्राप्ति ) rochana


      रोचना भागवत ८.१, १०.६१.२५(रुक्मी - पौत्री, अनिरुद्ध - भार्या ) rochanaa


      रोचमान मत्स्य १२.२३(आनर्त - पुत्र, रेव - पिता, अपर नामक रैवत, ककुद्मी?), ४६.१७(उपदेवी - पुत्र, वृष्णि वंश), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.१२(विभूति वर्णन के अन्तर्गत विष्णु का नाम?) rochamaan


      रोदन कथासरित् १८.५.१३७(रुदन करते हुए बालक द्वारा रोदन में मूर्खता को नहीं, अपितु लाभ को हेतु बताना ) rodana


      रोदसी कथासरित् १.२.१५(अण्ड तथा शिव धारित कपाल की रोदसी संज्ञा ) rodasee/ rodasi


      रोधक पद्म १.३२(रोधक/रोहक प्रेत का पृथु ब्राह्मण से संवाद व मुक्ति), लक्ष्मीनारायण १.५५१रोधन


      रोपण भविष्य ३.४.१९.२(गुरुदत्त - पुत्र, बृहस्पति का अंश )


      रोम ब्रह्म १.११०.४१(, भागवत ३.२२.२९(शरीर को कंपाने से वराह भगवान् के रोमों का गिरना, कुश और कास बनना, उनकी सहायता से ऋषियों द्वारा यज्ञविध्वंसक दैत्यों का तिरस्कार), ९.१३.१७(विदेह वंश में महारोमा, स्वर्णरोमा, ह्रस्वरोमा वंशजों का उल्लेख), वायु १०४.८५/२.४२.८५(रोमों में मन्त्रभेदों का न्यास), स्कन्द ५.३.८३.१०६(गौ के रोमकूपों में ऋषियों, तपस्वियों की स्थिति), ५.३.९०.९९(तिलधेनु निर्माण में रोमों के प्रतीक रूप में सर्षप स्थापना), हरिवंश ३.७१.४६(वामन के विराट स्वरूप धारण करने पर विष्णुदेव के रोमकूपों में तारों तथा रोमों में महर्षियों की स्थिति), लक्ष्मीनारायण १.३७०.७३(नरक में रोमकुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), २.२४, २.१७७.५७रोमायन, कथासरित् ८.५.२५(सूर्यप्रभ - सेनानी प्रहृष्टरोमा का रोषावरोह के साथ द्वन्द्व युद्ध ) द्र. कपोतरोमा, महारोमा, हिरण्यरोमा roma


      रोमक स्कन्द ६.६३(रोमक ऋषि द्वारा दक्ष शाप से मुक्ति हेतु सोम को परामर्श ) romaka


      रोमकण्टक पद्म ६.१२.५(जालन्धर - सेनानी, भृङ्गीश से युद्ध )


      रोमपाद ब्रह्माण्ड २.३.७.३४९(विनीता? - वंशोद्भव हस्तियों को देवों द्वारा लोमपाद को प्रदान), वा.रामायण १.९+ (अङ्ग देश के राजा रोमपाद द्वारा पुत्री शान्ता के मुनि ऋष्यशृङ्ग से विवाह का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण ३.११४ romapaada


      रोमश वायु ३९.३८(रोमश विद्याधर का वेणुमान् पर्वत पर वास )


      रोमहर्षण पद्म ६.१९८.७९(लोमहर्षण : सूत, बलराम द्वारा वध), भागवत १०.७८(बलराम द्वारा सूत रोमहर्षण का कुशाग्र से वध ) romaharshana


      रोल लक्ष्मीनारायण २.२३९.६०, कथासरित् ९.५.७८(रोलदेव नामक चित्रकार द्वारा मदनसुन्दरी का चित्र राजा कनकवर्ष को अर्पित ) rola


      रोषण भविष्य ३.४.२२(तिमिरलिङ्ग - पुत्र रोषण दैत्य का सरुष रूप में अवतरण )


      रोषावरोह कथासरित् ८.५.२५(सूर्यप्रभ - सेनानी प्रहृष्टरोमा का रोषावरोह के साथ द्वन्द्व युद्ध )


      रोहिण ब्रह्माण्ड २.३.७.११८(यक्षों का निवास स्थान), मत्स्य १२२.९७(शाल्मलि द्वीप वर्णन के अन्तर्गत तीसरे रोहित पर्वत के प्रदेश की रोहिण नाम से ख्याति, प्रदेश का वर्णन), स्कन्द २.२.४.१८(रोहिण कुण्ड का माहात्म्य तथा नाम हेतु, कारुण्य जल से पूर्ण), २.२.७.२५(कुण्ड, कारण जल से पूर्ण, महत्त्व), २.२.८.१५(जगन्नाथ क्षेत्र में रौहिण कुण्ड का महत्त्व – कारणरूप), ३.१.३८.६३(वृक्ष, गज व कच्छप के भक्षण हेतु रोहिण द्वारा गरुड को स्वशाख पर बैठने का आमन्त्रण, शाख का भग्न होना ), लक्ष्मीनारायण १.५८१, २.२४५.१६, ३.३, rohina


      रोहिणी गरुड १.१३१(मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को रोहिणी अष्टमी व्रत विधि : चन्द्रमा रूपी विष्णु की पूजा), गर्ग २.१३.१७(वसुदेव - पत्नी, पूर्व जन्म में कद्रू), देवीभागवत ३.१०.५४(देवदत्त नामक ब्राह्मण की पत्नी, गोभिल के शाप से मूर्ख पुत्र की प्राप्ति), ३.२६.४२(पांच वर्षीया कन्या का नाम), ३.२६.५६(पूर्वजन्मों में संचित बीजों का रोहण करने वाली रोहिणी देवी का उल्लेख), ४.१, ४.२२.२४(देवकी के सातवें गर्भ का रोहिणी के गर्भ में संकर्षण), ७.३५, ९.१९.२४(रोहिणी से आहृत कुण्डल की तुलसी को प्राप्ति), १२.६.१३४(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म १.२६(रोहिणी - चन्द्र शयन व्रत में चन्द्र रूप नारायण का न्यास/पूजा), ६.३१(रोहिणी की प्रतिमा का आकार चार अङ्गुल होने का उल्लेख), ६.३३.६(रोहिणी का भेदन कर शनि के गमन पर दुर्भिक्ष का कथन), ब्रह्म १.१२.३६(वसुदेव की १४ पत्नियों में से एक, बलराम - माता), १.७३.२(माया द्वारा देवकी के सप्तम गर्भ का आकर्षण कर रोहिणी के गर्भ में स्थापन), ब्रह्मवैवर्त्त २.१६.१३५(रोहिणी के कुण्डल हरण का उल्लेख), ४.६.१४१(अनन्त की देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में जाकर संकर्षण नाम से उत्पत्ति), ४.९.२५(रोहिणी चरित्र के अन्तर्गत रोहिणी का पूर्व जन्म में सर्पमाता कद्रू होने का उल्लेख - अदितिर्देवकी चैव सर्पमाता च रोहिणी ।।), ४.४५.३७(शिव विवाह में रोहिणी द्वारा हास्य - कामं पूरय पार्वत्याः कामशास्त्रविशारद ।। कुरु पारं स्वयं कामी कामिनां कामसागरम् ।। ), ४.१०९.१८(कृष्ण व रुक्मिणी विवाह में रोहिणी द्वारा हास्य - सत्यं ब्रूहि जगन्नाथ कामिनीनां च संसदि । कीदृशी राधिका रम्या रुक्मिणी चापि कीदृशी ।।), ब्रह्माण्ड २.३.३.७३(कश्यप - भार्या, पशुओं की सृष्टि करने वाली चार कन्याओं की माता), भविष्य ४.६७(रोहिणी - चन्द्र व्रत), ४.२०६(रोहिणी चन्द्र शयन व्रत विधि का वर्णन), भागवत १०.२(वसुदेव - भार्या, देवकी के गर्भ में स्थित संकर्षण का रोहिणी के गर्भ में स्थान्तरण), मत्स्य ४६(आनकदुन्दुभि/वसुदेव - भार्या, पुत्रों के नाम), ५७(रोहिणी - चन्द्र शयन व्रत की विधि व माहात्म्य, चन्द्रमा का न्यास), लिङ्ग २.१३.१६(सोम रूपी शिव की पत्नी, बुध - माता), वायु १.२.८(चन्द्रमा व रोहिणी - पुत्र सौम्य? का उल्लेख), १.२.५, २७.५०, विष्णुधर्मोत्तर २.४४.२२(दिग्धेनु), २.५३(पुत्रीय रोहिणी स्नान का वर्णन), शिव ४.८, स्कन्द ४.१.१५.६२(रोहिणी का तारा से साम्य ?), ५.२.२६.४(दक्ष प्रजापति की चन्द्रमा को प्रदत्त २७ कन्याओं में से एक, रोहिणी पर चन्द्रमा की विशेष प्रीति के कारण दक्ष द्वारा चन्द्रमा को शाप प्रदान), ५.३.८५.९(दक्ष प्रजापति की चन्द्रमा को प्रदत्त २७ कन्याओं में से एक, रोहिणी पर चन्द्रमा की विशेष प्रीति के कारण दक्ष द्वारा चन्द्रमा को शाप प्रदान), ५.३.१०८(रोहिणी तीर्थ का माहात्म्य, रोहिणी का शशिप्रिया बनना - रोहिणीनाम या तासां मध्ये तस्य नराधिप । अनिष्टा सर्वनारीणां भर्तुश्चैव विशेषतः ॥), ५.३.२३१.२५(तीर्थ संख्या के अन्तर्गत २ रोहिणी तीर्थों का उल्लेख - द्वे योधनपुरे चैव रोहिणीतीर्थकद्वयम् ।), ६.९६.२ (ज्योतिषवेत्ताओं द्वारा दशरथ के समक्ष शनि द्वारा रोहिणी भेदन से दुर्भिक्ष होने की भविष्यवाणी, दशरथ द्वारा शनि से रोहिणी मार्ग के त्याग हेतु प्रार्थना - शनैश्चरो जितो येन रोहिणीं परिभेदयन् ॥ गृहे यस्य स्वयं विष्णुर्भूत्वा चैव चतुर्विधः ॥), ७.१.२४.२(रोहिणीनाथ : चन्द्रमा का नाम, शिवाराधन, शिवलिङ्ग स्थापना, लिङ्ग की सोमनाथ संज्ञा), ७.१.४९(शनि द्वारा रोहिणी शकट के भेदन की चेष्टा, दशरथ द्वारा शनि के वर्जन का उद्योग), ७.१.२०५(रजस भाव को प्राप्त कन्या के रोहिणी नाम का उल्लेख), हरिवंश १.३५.१(वसुदेव - पत्नी, पौरव वंशीय बाह्लिक की पुत्री, बलराम प्रभृति १० सन्तानों की माता), महाभारत अनुशासन ७७.२४, वा.रामायण ३.४६.५(सीता पर रावण की दृष्टि की रोहिणी पर क्रूर ग्रह की दृष्टि से तुलना), ६.१०२.३२(चन्द्र की प्रिया), लक्ष्मीनारायण १.४३, १.४४.३३(चन्द्र - पत्नी रोहिणी की सापत्नों द्वारा रोहिणी को रोगिणी होने का शाप - अतिभोगकरी चेयं रोहिणी रोगिणी भवेत् । रक्तस्रावा प्रदरार्ता रोहिणि ! भव रोगिणी ॥), १.३११.४८(विद्युल्लेखा ददौ चास्मै चूम्बनं परमात्मने ॥ सा सर्वाभ्यो बभूवाऽतिप्रेमपात्रं परात्मनः ।), १.४८४, १.४९६, कथासरित् १०.३.३७(रोहिणी वृक्ष पर रहने वाले शुक द्वारा स्व वृत्तान्त का वर्णन), कृष्णोपनिषद १५(दया का रूप ) rohinee/ rohini


      रोहित गर्ग ५.२०.३७(रोहित पर्वत पर ऋभु ऋषि का तप व प्राण त्याग), देवीभागवत ७.२५(हरिश्चन्द्र व शैब्या - पुत्र, सर्पदंश से मृत्यु), ब्रह्म २.३४(हरिश्चन्द्र - पुत्र, वरुणार्थ यज्ञ पशु के लिए स्वयं के बदले शुन:शेप को प्रस्तुत करना), ब्रह्माण्ड ३.४.१.८६(रोहित गण के १० देवों के नाम), भागवत ९.७(हरिश्चन्द्र - पुत्र, इन्द्र द्वारा रोहित को पिता से न मिलने का परामर्श, वरुण द्वारा रोहित के बलिदान की मांग), मत्स्य १२.३८(हरिश्चन्द्र - पुत्र, वृक - पिता, इक्ष्वाकु वंश), १२२.९६(शाल्मलि द्वीप के तीन पर्वतों में से एक), वायु १००.९१(रोहित देवगण के १० देवों के नाम), हरिवंश १.१३.२६(हरिश्चन्द्र - पुत्र, हरित - पिता), वा.रामायण ४.४१.४२(ऋषभ पर्वत पर रोहित नामक गन्धर्वों द्वारा चन्दनवन की रक्षा का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.३.२९, द्र. भूगोल, मन्वन्तर , लोहित rohita


      रोहिताश्व स्कन्द ६.१६२(रोहिताश्व द्वारा मार्कण्डेय से पातक नाश का उपाय पूछना, पुरश्चरण सप्तमी व्रत का कथन), ६.२१४+ (मार्कण्डेय द्वारा रोहिताश्व को विश्वामित्र - कृत गणपति पूजा का कथन, श्राद्ध माहात्म्य व विधि का कथन ) rohitaashva


      रौद्र गणेश २.१.२२(शारदा - पति, देवान्तक व नरान्तक - पिता), २.६२.१(रौद्रकेतु : शारदा - पति, नरान्तक व देवान्तक - पिता, नरान्तक का कटा शिर देखकर विलाप), २.६८.४७(देवान्तक द्वारा प्रयुक्त रौद्रास्त्र से गणेश के वज्रास्त्र का निवारण), २.६९.२२(देवान्तक व गणेश के युद्ध में रौद्रकेतु द्वारा माया से अदिति को देवान्तक के हाथ में देना ) raudra


      रौद्री स्कन्द ७.१.६२(रौद्री देवी द्वारा रुरु असुर का वध, रुद्र द्वारा रौद्री की स्तुति), ७.१.६२(रौद्री देवी का माहात्म्य, चत्वरा उपनाम ) raudree/ raudri


      रौप्य भविष्य ४.२०३(रौप्याचल दान विधि), मत्स्य १०.२३(पृथिवी दोहन प्रसंग में प्रेतों द्वारा पृथिवी का दोहन, रौप्यनाभ नामक प्रेत के दोग्धा तथा सुमाली प्रेत के वत्स बनने का उल्लेख), शिव १.१५.४९(रौप्य दान से रेत वृद्धि का कथन ) raupya


      रौरव शिव ५.८.२५(अनेक नरकों में से एक), स्कन्द १.२.६२.३२(क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), द्र. महारौरव raurava


      लकुच नारद १.९०.७१(लकुच द्वारा देवी पूजा से अज सिद्धि का उल्लेख), मत्स्य ११३.६७(हिरण्यवत् वर्ष में वृक्ष का नाम ) lakucha


      लकुली नारद १.६६.११९(लकुलीश की शक्ति लक्ष्मी का उल्लेख), लिङ्ग १.२४.१२९(२८वें द्वापर में मुनि), शिव ३.५.४७(लकुली : २८वें द्वापर में शिव द्वारा लकुली नाम से अवतार ग्रहण), स्कन्द ५.२.१४.३१(विष लिङ्ग के दर्शन मात्र से मृत्यु प्राप्ति, शिवाज्ञत्रा? से लकुलीश देव का विषलिङ्ग पर आरोहण होने से लिङ्ग की शुभता, कुटुम्बेश्वर नाम धारण), ७.१.१७(लकुलीश का माहात्म्य), ७.१.७६(लकुलीश लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.७९(लकुलीश लिङ्ग का माहात्म्य ) lakulee/ lakuli


      लक्ष गणेश १.८७.४२(गणेश के लक्ष विनायक नाम का कारण : अलक्षित से लक्षित होना, लक्ष विनायक द्वारा स्कन्द को मयूर प्रदान करना आदि), लक्ष्मीनारायण १.३८२.१६४(ऋषियों के शिष्यों की लक्ष में गणना), कथासरित् ९.३.९(लक्षपुर निवासी लक्षदत्त नामक राजा व लब्धदत्त भिखारी की कथा ) laksha


      लक्षण गरुड ३.१०.२९(देव, ऋषियों, चक्रवर्तियों की लक्षण संख्या), ३.२२.५(विष्णु के ३२ लक्षण, अन्य देवों में लक्षण संख्या), गर्ग १.१६.२६(अन्तरात्मा की शक्ति लक्षण रूप वृत्ति का उल्लेख), भविष्य ३.३.१(नकुल का अवतार), ३.३.५.९(रत्नभानु व वीरवती - पुत्र, नकुलांश), ३.३.२५.१२(स्वयंवर में कामपाल - कन्या पद्मिनी द्वारा लक्षण का वरण), ३.३.२७.७५(रत्नभानु - पुत्र, कच्छदेशीय युद्ध का वृत्तान्त), ३.३.३०.११ (पृथ्वीराज द्वारा लक्षण का बन्धन, पद्मिनी द्वारा लक्षण के मोचन का उद्योग), ३.३.३२.१५६(लक्षण द्वारा पृथ्वीराज - सेनानी धुन्धुकार का वध), ३.३.३२.१७६(लक्षण द्वारा युद्ध में पृथ्वीराज - सेनानी जगन्नायक/भगदत्त का वध), ३.३.३२.२१४(पृथ्वीराज द्वारा युद्ध में लक्षण का वध), स्कन्द २.१.४.९(पद्मावती की देह के लक्षण), २.१.६.३(भगवद् लक्षण), महाभारत वन ५७.२४/५४.२४(दमयन्ती द्वारा देव व पुरुष के लक्षणों का अभिज्ञान), शान्ति ३१७/३२२(प्राणों के विभिन्न अंगों से उत्क्रमण पर प्राप्त देवों का कथन), वा.रामायण ६.४८(सीता के शरीर के लक्षणों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.१७१.२०(नारद द्वारा दक्ष - कन्या सती के सामुद्रिक लक्षणों का वर्णन ), १.४५९.५८(बालक वैश्वानर की देह के ३२ लक्षणों का कथन), २.१००.३२(चक्रवाकी की देह में श्री के लक्षणों का दर्शन), lakshana


      लक्षणा गरुड ३.२८.४२(दुर्योधन-पुत्री, रति का अंश)


      लक्षावर्ति भविष्य ३.३.१२.४६(वेश्या, आह्लाद - माता), ३.३.१३.१३(लक्षावर्ति द्वारा बदरिकाश्रम में प्राण त्याग, अप्सरा बनना ) lakshaavarti


      लक्ष्म लक्ष्मीनारायण २.१००.३२


      लक्ष्मण गर्ग ७.२०.३२(दुर्योधन - पुत्र, प्रद्युम्न - सेनानी पुष्कर से युद्ध), नारद १.७३.१४८(राम मन्त्र जप विधि के अन्तर्गत राम मन्त्र जप के पश्चात् लक्ष्मण मन्त्र जप का निर्देश), २.७५(लक्ष्मण माहात्म्य, लक्ष्मण द्वारा योगधारणा से पर्वत पर देह त्याग, पर्वत का लक्ष्मणाचल नाम, माहात्म्य), पद्म १.३३.१२३(राम का सीता व लक्ष्मण सहित ज्येष्ठ पुष्कर में गमन, लक्ष्मण की मति विपरीतता, पुन: लक्ष्मण द्वारा पश्चात्ताप करने पर राम द्वारा कारण का कथन), ५.६७.४७(ऊर्मिला - पति), ६.४४.१३(समुद्र पार करने के लिए राम द्वारा लक्ष्मण से परामर्श करने पर लक्ष्मण द्वारा समीपवर्ती बकदाल्भ्य मुनि से उपाय पृच्छा का परामर्श), भविष्य ३.२.३६, ३.३.२४.३७(लक्ष्मण द्वारा दिग्विजय का उद्योग), ३.४.१५.५४(शब्द मात्र समूह के स्वामी के रूप में राम तथा अर्थ मात्र समूह के स्वामी के रूप में लक्ष्मण का उल्लेख आदि), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.५(दण्डक क्षेत्र में लक्ष्मण की पूजा का निर्देश), स्कन्द २.८.२(दुर्वासा के भय से लक्ष्मण द्वारा रामाज्ञा का उल्लंघन, पृथ्वी में समाधि), ३.१.१९(लक्ष्मण तीर्थ का माहात्म्य, बलभद्र की सूत की ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति), ३.१.४९.१३(लक्ष्मण द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ३.१.५२.१०६(लक्ष्मण तीर्थ में वपन का कथन), ५.३.८४.२४(रेवा तीर पर राम व लक्ष्मण द्वारा लिङ्ग की स्थापना, निष्पापता प्राप्ति), ६.१००(एकान्त में देवदूत से मन्त्रणा कर रहे राम के निकट दुर्वासा को भेजकर लक्ष्मण द्वारा प्रतिज्ञा भङ्ग करना, सरयू में प्राण त्याग), ७.१.११२(लक्ष्मणेश्वर पूजा का माहात्म्य), वा.रामायण ६.२८.२३(सारण द्वारा रावण को लक्ष्मण का परिचय देना), ६.३७.३१(लङ्का के उत्तर द्वार पर लक्ष्मण का रावण से युद्ध), ६.४३.१०(रावण सेनानी विरूपाक्ष से युद्ध), ६.७३+ (इन्द्रजित् के ब्रह्मास्त्र से लक्ष्मण को मूर्च्छा, दिव्य ओषधि से पुन: सञ्जीवन), ६.८८+ (लक्ष्मण द्वारा इन्द्रजित् के होम को भङ्ग करना, युद्ध व इन्द्रजित् का वध), वा.रामायण ६.१०८+ (रावण की शक्ति से लक्ष्मण को मूर्च्छा की प्राप्ति, सुषेण द्वारा पुन: सञ्जीवन), ७.१०५+ (दुर्वासा के भय से लक्ष्मण द्वारा नियम भङ्ग करना, राम द्वारा लक्ष्मण का त्याग, लक्ष्मण का स्वर्ग गमन), लक्ष्मीनारायण १.३७६.८९(शूर्पणखा के संदर्भ में लक्ष्मण का नरादित्य नाम), १.४८०(अवन्तिका नगरी में पहुंचने पर लक्ष्मण का मन: परिवर्तन, अवन्तिका भूमि के दोषयुक्त होने का कारण), २.४४.४४(अन्तर्कि वर्तुल देश में राजा लक्ष्मण द्वारा राजा रणंगम का स्वागत व स्वकन्या प्रदान करना), कथासरित् ९.१.१०१(राम के नरमेध हेतु सुलक्षण पुरुष की खोज करते हुए लक्ष्मण द्वारा श्रान्त होकर विश्राम करते हुए लव का बन्धन और अयोध्या में गमन, लव के मोचन हेतु कुश का अयोध्या गमन), १६.३.३२(चन्द्रावलोक द्वारा स्वपुत्र तारावलोक के जुडवां पुत्रों का राम व लक्ष्मण नामकरण ) lakshmana

      Comments on Lakshmana


      लक्ष्मणा गरुड ३.२२(लक्ष्मणा विवाह के संदर्भ में विष्णु के ३२ लक्षणों का कथन), ३.२२.८३(लक्ष्मणा द्वारा कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति का वृत्तान्त), गर्ग १.३.३६(दक्षिणा देवी का अवतार), ६.८.१९(बृहत्सेन - कन्या, कृष्ण द्वारा मत्स्य भेदन करके लक्ष्मणा को प्राप्त करना), ७.३०.७(कृष्ण - पत्नी, प्रघोष, गात्रवान् आदि १० पुत्रों की माता), ७.३१.३१(अखिलभद्र - कन्या, कृष्ण द्वारा हरण), ब्रह्म १.९८, ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१४३(तुलसी का अंशावतार), भागवत १०.५८.५७(कृष्ण द्वारा मद्रराज - कन्या लक्ष्मणा का हरण), १०.८३ (लक्ष्मणा द्वारा द्रौपदी से कृष्ण द्वारा पाणिग्रहण का वर्णन, स्वयंवर में मत्स्यवेध की कथा), स्कन्द ७.४.१४.४७(अत्रि के लिए लक्ष्मणा नदी), हरिवंश २.१०३.१३(कृष्ण - भार्या, पुत्रों के नाम ) lakshmanaa


      लक्ष्मी अग्नि ३४.३४(यज्ञकुण्ड रूपी लक्ष्मी का ध्यान), ४५.७(लक्ष्मी की प्रतिमा के लक्षण), ५०.१५(लक्ष्मी की प्रतिमा के लक्षण), ६२(लक्ष्मी प्रतिष्ठा की विधि), १४६.२७(महालक्ष्मी के कुल की आठ शक्तियों के नाम), २३७(सङ्ग्राम में जय हेतु लक्ष्मी स्तोत्र), ३४८.२(एकाक्षर कोश के अन्तर्गत °ई° अक्षर का लक्ष्मी के अर्थ में प्रयोग), ३४८.१२(°सा° अक्षर का लक्ष्मी के अर्थ में प्रयोग), गरुड १.१०(लक्ष्मी की बीज मन्त्रों सहित पूजा विधि), १.२१.३(सद्योजात शिव की ८ कलाओं में से एक), ३.२.२८(बिम्ब स्थित रूपों का लक्ष्मी से अभेद होने का उल्लेख), ३.११.१(विष्णु के शयनकाल में उदक व शय्या के लक्ष्मी रूप होने का कथन), देवीभागवत ६.१७.५१(उच्चैःश्रवा अश्व पर आसक्ति के कारण विष्णु द्वारा लक्ष्मी को वडवा होने का शाप), ६.१८+ (विष्णु शाप से लक्ष्मी द्वारा यमुना - तमसा तट पर वडवा रूप में तप, हय रूपी विष्णु से हैहय पुत्र प्राप्ति), ८.९.१०(केतुमाल वर्ष में लक्ष्मी द्वारा कामदेव रूपी श्रीहरि की आराधना), ९.१.२२(लक्ष्मी की महिमा), ९.६(सरस्वती के शाप से लक्ष्मी का धर्मध्वज - कन्या के रूप में उत्पन्न होकर शङ्खचूड - पत्नी तुलसी बनना), ९.४१(लक्ष्मी के निवास व त्याग के स्थान), १२.६.१३९(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.८९(वासुदेव की शक्ति लक्ष्मी का उल्लेख), १.६६.११९(लकुलीश की शक्ति लक्ष्मी का उल्लेख), १.९१.८४(सद्योजात शिव की चतुर्थ कला), १.१२४.४७(कोजागर पूर्णिमा व्रत में लक्ष्मी की पूजा), १.१२४.६७(लक्ष्मी की पुन: प्राप्ति हेतु मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत की विधि), पद्म १.४.५९(श्री : समुद्र मन्थन से उत्पत्ति, ब्रह्माज्ञा से श्रीहरि द्वारा ग्रहण), १.२०.६३(लक्ष्मी व्रत का माहात्म्य व विधि), १.२१(लक्ष्मी के गुडधेनु, क्षीरधेनु आदि १० धेनु रूप), ४.१०.२(द्वादशी में समुद्र से लक्ष्मी की उत्पत्ति, देवों द्वारा स्तुति, लक्ष्मी के निर्देशानुसार पहले ज्येष्ठा अलक्ष्मी उद्दालक को प्रदान, अनन्तर श्रीहरि द्वारा कनिष्ठा लक्ष्मी का ग्रहण), ५.१०५.४५(राम का लक्ष्मी के साथ संवाद), ६.९८.२२(रमा : जलंधर को प्रदत्त वर की पूर्त्ति के लिए विष्णु का रमा/लक्ष्मी के साथ जलंधर गृह में निवास), ६.१२२.२४-२८(दीपावली में लक्ष्मी पूजन और अलक्ष्मी के निष्कासन का उल्लेख), ६.१७५(विष्णु - लक्ष्मी संवाद के अन्तर्गत गीता के प्रथम अध्याय के माहात्म्य का वर्णन), ६.१८६(महालक्ष्मी का कोह्लापुर में वास, महिमा), ६.२२७(लक्ष्मी सूक्त, महिमा), ब्रह्म २.६७(दरिद्रा से ज्येष्ठता का विवाद, गङ्गा द्वारा लक्ष्मी के पक्ष में निर्णय), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१(पञ्चधा प्रकृति की पांच देवियों में से एक), २.६(लक्ष्मी की सरस्वती व गङ्गा से कलह), २.७.११० (लक्ष्मी के विशिष्ट तपोस्थान पुष्कर का उल्लेख), २.१०.१५०(लक्ष्मी द्वारा सरस्वती को मकरकुण्डल देने का उल्लेख), २.३५(लक्ष्मी की उत्पत्ति, नाना रूप), २.३८(लक्ष्मी के निवास योग्य स्थान), ३.७.१०६(पार्वती के पुण्यक व्रत के पश्चात् महान् तेज का प्राकट्य, लक्ष्मी प्रभृति कलाओं और देवों द्वारा स्तुति), ३.२२.९(लक्ष्मी से नासिका की रक्षा की प्रार्थना), ३.२३( लक्ष्मी के निवास योग्य स्थान), ४.६.१२०(लक्ष्मी/कमला की भीष्मक - कन्या रुक्मिणी के रूप में उत्पत्ति), ४.४५(शिव विवाह में लक्ष्मी द्वारा हास्योक्ति), ४.५६.७५ (लक्ष्मी स्तोत्र), ब्रह्माण्ड १.२.३६.८८(धर्म - पत्नी), भविष्य २.२.२.३१(लक्ष्मी के चित्र कपोत वाहन का उल्लेख), ४.५८(लक्ष्मी का नदी नाम से दत्तात्रेय भार्या होना), भागवत ५.१८(केतुमाल वर्ष में लक्ष्मी द्वारा काम रूपी श्रीहरि की उपासना), ८.८(लक्ष्मी की समुद्र मन्थन से उत्पत्ति व अभिषेक), ११.१६.३१(श्रीहरि के व्यवसायियों में लक्ष्मी होने का उल्लेख), मार्कण्डेय १६.१६१/१८.१६१(शरीर में लक्ष्मी के ९ निवास स्थान), लिङ्ग २.३६(लक्ष्मी दान की विधि), वामन ७५(लक्ष्मी का इन्द्र को त्याग बलि के पास आना), ७५(लक्ष्मी की ब्रह्माण्ड में व्याप्ति व प्रकार), विष्णु १.८.१७(लक्ष्मी की महिमा), १.८.२०(विष्णु के यज्ञ रूप तथा लक्ष्मी के दक्षिणा रूप होने का उल्लेख), १.८.२१(विष्णु यूप, लक्ष्मी चिति), विष्णुधर्मोत्तर १.४०+(लक्ष्मी का समुद्र से उद्भव, सर्वव्यापकता), १.४१.३३(स्वायम्भुव आदि मन्वन्तरों में लक्ष्मी के विभिन्न प्रकार से प्राकट्य का कथन), १.४२(लक्ष्मी का विराट रूप), ३.८२.५(विनायकवत् लक्ष्मी की मूर्ति का रूप), ३.१०६.२९(लक्ष्मी आवाहन मन्त्र), ३.१५४(लक्ष्मी व्रत), शिव १.१७.६९(लक्ष्मी के ज्ञान भोग व कर्म भोग रूपी २ रूपों का कथन), २.१.१२.३३(लक्ष्मी द्वारा स्फटिक लिङ्ग की पूजा), स्कन्द १.१.११(लक्ष्मी का समुद्र मन्थन से प्राकट्य, विष्णु का वरण), १.२.१३.१६९(शतरुद्रिय प्रसंग में लक्ष्मी द्वारा लेप्य लिङ्ग की पूजा), २.२.२+ (लक्ष्मी द्वारा यम को पुरुषोत्तम क्षेत्र की महिमा का कथन), ३.१.२१(लक्ष्मी तीर्थ का माहात्म्य, युधिष्ठिर द्वारा सम्पदा प्राप्ति), ३.१.५०(पुण्यनिधि राजा को कन्या रूप में लक्ष्मी की प्राप्ति), ४.२.८४.२५(लक्ष्मीनृसिंह तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.८३.१०९(गौ के गोबर में लक्ष्मी का वास), ५.३.१८२(लक्ष्मी का भृगु से विवाद, ब्राह्मणों द्वारा अस्पष्ट वादन से ब्राह्मणों को शाप), ५.३.१९४.४(भृगु व ख्याति से उत्पत्ति, नारायण से विवाह हेतु तप, विवाह), ५.३.१९८.८३(सिद्धवट तीर्थ में देवी का लक्ष्मी नाम से वास), ६.८१(लक्ष्मी द्वारा माधवी को अश्वमुखी होने का शाप, मित्र ब्राह्मण द्वारा लक्ष्मी को गजमुखी होने का शाप), ६.८५(मित्र ब्राह्मण द्वारा शापित गज वक्त्रा लक्ष्मी का महालक्ष्मी बनना, माहात्म्य), ६.१७७.१८(पञ्चपिण्डात्मिका गौरी की अर्चना से पद्मा-कला रानी द्वारा सौभाग्य प्राप्ति), ६.१७७.३६(पंचपिण्डात्मिका गौरी पूजन से कन्या का लक्ष्मी बनना), ६.१७७.६५(लक्ष्मी द्वारा विष्णु से पञ्चपिण्डिका गौरी मन्त्र का कथन), ६.१७८(लक्ष्मी द्वारा दुर्वासा ऋषि से अपत्य प्राप्ति हेतु उपाय की पृच्छा, दुर्वासा द्वारा अनपत्यता हेतु का कथन, अपत्य प्राप्ति हेतु स्वर्ण - निर्मित गौरी पूजा का निर्देश, लक्ष्मी द्वारा पुन: दुर्वासा से देवत्व प्राप्ति उपाय की पृच्छा, ऋषि द्वारा उपाय का वर्णन), ७.१.६४(लक्ष्मीश्वर का माहात्म्य), ७.१.१०५.५०(२५वें कल्प का नाम), ७.१.१३२(सिद्ध लक्ष्मी पीठ का माहात्म्य), ७.४.१६.२३(लक्ष्मी नदी तीर्थ का माहात्म्य), हरिवंश ३.६५(लक्ष्मी द्वारा बलि का वरण), लक्ष्मीनारायण १.२८.४३+(कन्या जन्म पर लक्ष्मी सदृश चिह्नों का कथन), १.६९(लक्ष्मी की देह के चिह्नों का वर्णन), १.१५६.४६(लक्ष्मी का द्वादशी को प्राकट्य, लक्ष्मी के शृङ्गार की विधि, वास स्थान का निर्धारण), १.३०६, १.३१७.९३(विभिन्न वैकुण्ठों में लक्ष्मी के रूपों का कथन), १.३३०.८२(लक्ष्मी द्वारा ईर्ष्यापूर्वक बीज समर्पित करने के कारण बर्बरी रूप में उत्पत्ति का कथन), १.३३२, १.३८२, १.४३८(लक्ष्मी का कन्या बनकर राजा पुण्यनिधि की पालिता कन्या बनने की कथा), १.४४१.९४(वृक्ष रूपी कृष्ण के दर्शन हेतु लक्ष्मी के मालती बनने का उल्लेख), १.४९२.३७(महालक्ष्मी द्वारा गर्व के कारण विष्णु द्वारा उपेक्षा, महालक्ष्मी का शाण्डिल्य-कन्या माधवी बनना), १.४९३.२(विष्णु के दक्ष व वाम पाद सेवा पर लक्ष्मी व माधवी का विवाद, क्रमशः गजमुखी व अश्वमुखी बनना), १.५०८.१(पञ्चपिण्डिका गौरी पूजन से अमा के लक्ष्मी बनने का वृत्तान्त), १.५६५, २.५४.४३(लक्ष्मी के ४ रूपों का वर्णन), २.८१.४८(कृष्णा नदी के लक्ष्मी रूप का उल्लेख), २.१००.३२(चक्रवाकी द्वारा श्री के शरीर में दिव्य चिह्नों का दर्शन), २.१०२.७१(लक्ष्मी द्वारा भक्तों की अवमानना करने से श्रीहरि द्वारा लक्ष्मी का त्याग, लक्ष्मी का वैकुण्ठ से पतन आदि), २.१४२.२६(महालक्ष्मी व लक्ष्मी की मूर्तियों के स्वरूप), २.१६१.२०(धनमेद धीवर द्वारा गजपृष्ठ-स्थित तुरी स्वरूपा लक्ष्मी के दर्शन व दास्य वर प्राप्ति), २.२७४.२०(लक्ष्मी की देह के कुछेक लक्षणों का कथन), २.२७४.३९(लक्ष्मी की देह के चिह्नों का कथन), २.२८३.५७(लक्ष्मी द्वारा बालकृष्ण को कमलहार व स्वर्णहार देने का उल्लेख), २.२९७.८२(लक्ष्मी के गृह में दोलायमान कृष्ण के दर्शन का उल्लेख), ३.७.८४(लक्ष्मी का ज्योत्स्नाकुमारिका के रूप में प्राकट्य), ३.२५.४(देवसख, कीर्ति, चिक्लीत, कर्दम, जातवेदा नामक ५ विप्र भक्तों द्वारा प्रसविष्णु असुर को लक्ष्मी का दान, लक्ष्मी द्वारा असुर आदि को भस्म करना), ३.२८.६२(लक्ष्मी के १०८ नाम), ३.३८(युगल सहस्रनाम), ३.६४.३(द्वितीया तिथि को लक्ष्मी की पूजा होने का उल्लेख), ३.६८.४७(लक्ष्मी शब्द की निरुक्तियों का कथन), ३.९९(लक्ष्मी के निवास योग्य स्थान), ३.१३५(ललिता/महालक्ष्मी के विभिन्न तीर्थों में २०२ नाम), ४.२६.६१(लक्ष्मीनाथ कृष्ण की शरण से वासना से मुक्ति का उल्लेख), ४.१०१.६४(कृष्ण की श्री व लक्ष्मी नामक पत्नियों के पुत्र व पुत्रियों के नाम), कथासरित् ४.१.५६(राज्यश्री के चञ्चला/वेश्या तथा वणिकों की लक्ष्मी के स्थिरा होने का कथन), १०.७.७(श्रीधर नामक ब्राह्मण के यशोधर और लक्ष्मीधर बालकों की कथा), १०.१०.१७३(लक्ष्मीसेन : प्रतापसेन नामक राजा का ज्येष्ठ पुत्र, विद्याधर का अवतार), १२.१९.७५(राजा यश:केतु के कामदग्ध होकर समुद्र में कूद जाने पर लक्ष्मीदत्त वणिक् का भी दुःख से देहत्याग को उन्मुख होना, आकाशवाणी द्वारा लक्ष्मीदत्त को देहत्याग से निवृत्त करना ), द्र. अलक्ष्मी, जयलक्ष्मी, दक्ष - कन्याएं, नागलक्ष्मी, महालक्ष्मी, योगलक्ष्मी lakshmee/lakshmi


      लक्ष्मी नाम वामन ७५.१४(बलि के शासन काल में तीनों लोकों के धर्मपरायण होने पर त्रैलोक्य लक्ष्मी का बलि के समीप आगमन, बलि के पूछने पर लक्ष्मी द्वारा स्व स्वरूप तथा आगमन के उद्देश्य का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.१३५


      लक्ष्मी-नारायण स्कन्द ५.१.६०.४६(मल मास में लक्ष्मी और नारायण का स्मरण करते हुए प्रार्थना मन्त्र), लक्ष्मीनारायण ३.४९(लक्ष्मीनारायण व्रत), ३.६८.४७,


      लक्ष्मीनाथ लक्ष्मीनारायण ४.२६.६१(लक्ष्मीनाथ द्वारा वासना से रक्षा),


      लक्ष्मीनिधि पद्म ५.११.५९(जानकी - भ्राता, जनक - पुत्र, राम से हास्य विनोद), ५.२६(शत्रुघ्न - सेनानी, सुबाहु के क्रौञ्च व्यूह का भेदन ), ५.६७.४७(कोमला - पति ) lakshmeenidhi/ lakshminidhi


      लगुड अग्नि २५१.१०(लगुड द्वारा शत्रु नाश की विधि), २५२.१५(लगुड के कर्म ) laguda


      लग्न अग्नि ९५.१२(लिङ्ग प्रतिष्ठा हेतु शुभाशुभ लग्न विचार), १३३.१(लग्न अनुसार जातक फल विचार), नारद १.५६.२९०(लग्न अनुसार कार्य का विचार), विष्णुधर्मोत्तर १.८४(द्वादश लग्न ) lagna


      लङ्का गर्ग १०.१८.१६(उपलङ्का में भीषण राक्षस का निवास), पद्म १.३८.६५(भरत का लङ्का दर्शन तथा राम के साथ रावण वध सम्बन्धी वार्तालाप), वायु ४८.२८(त्रिकूट पर्वत/मलय द्वीप में लङ्का की स्थिति का उल्लेख), ६९.१२९(लङ्क : हेतृ - पुत्र, माल्यवान् व सुमाली - पिता), स्कन्द ६.१०१(रामसेतु पर रामेश्वर - त्रय की स्थापना हेतु राम का वानरों के साथ लङ्का में गमन, विभीषण द्वारा सत्कार, रामेश्वर - दर्शनार्थियों की रक्षा हेतु विभीषण को शिक्षा), वा.रामायण ५.२(हनुमान का लङ्का में प्रवेश, लङ्का की शोभा का वर्णन), ५.३(हनुमान द्वारा लङ्का नगरी की रक्षक निशाचरी लङ्का का निग्रह), ५.३+ (हनुमान द्वारा लङ्का का दर्शन, लङ्का की शोभा का वर्णन), ६.३(लङ्का की बाह्य रक्षा व्यवस्था का वर्णन), ७.३.२७(लङ्का की त्रिकूट पर स्थिति, विश्रवा द्वारा कुबेर के लिए निर्दिष्ट वास स्थान ) lankaa

      Remarks on Lankaa


      लज्जा गर्ग १.३.३८ (ह्री का भद्रा रूप में अवतरण), देवीभागवत १२.६.१३९(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.८९(दामोदर की शक्ति), १.६६.१३२(वरद गणेश की शक्ति लज्जा का उल्लेख), पद्म २.८.३७ (वीतराग द्वारा देह के सुख - दुःख से उद्विग्न आत्मा को लज्जा की परिभाषा : पश्चात्ताप में संलीनता ही लज्जा), ब्रह्मवैवर्त्त २.११.७५(क्षमा गोपी की देह से उत्पन्न लज्जा का विश्व में विभाजन, कृष्ण का लज्जा से कृष्ण वर्ण होने का उल्लेख), भविष्य ३.२.६.२(धर्मशील राजा की पत्नी), स्कन्द २.१.८.५ (ह्री देवी द्वारा श्रीनिवास को यक्षकर्दम प्रस्तुत करना ), द्र. दक्ष – कन्याएं lajjaa


      लड्डू गणेश २.२१.४३(अदिति रूप धारी भ्रमरी राक्षसी द्वारा विनायक को विषयुक्त लड्डू ), ब्रह्मवैवर्त ४.११३.५५(स्वस्तिकों के लड्डू का उल्लेख), स्कन्द ५.१.२८.२१(देवों द्वारा विघ्ननाथ की लड्डू से समर्चना, विघ्नेश की लड्डूप्रियता का कथन ) ladduu/laddoo ‹


      लता गर्ग ५.१८.२(लता रूपी गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), भागवत ५.२.२३(मेरु की ९ कन्याओं में से एक, इलावृत - पत्नी), योगवासिष्ठ १.१८.४८(देह की लता से उपमा ), ६.२.४४.२३(स्फुटता, सत्यता आदि लताओंके नाम) वायु ६९.३३२/२.८.३३२(लता से अपुष्प व पुष्प - फल युक्त वनस्पतियों की उत्पत्ति का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.४६.३५(मन्दिर की देहली में कल्पवृक्ष व स्तम्भों में लता बनाने का निर्देश), द्र. वसन्तलतिका, स्वर्लतिका lataa


      लबादन लक्ष्मीनारायण ३.२३३,


      लब्धि कथासरित् ९.२.२६५(लब्धवर : नाट्याचार्य, राजा हरिवर की भार्या अनङ्गप्रभा को नृत्य का प्रशिक्षण, परस्पर कामासक्ति), द्र. दुःखलब्धिका


      लम्पा स्कन्द ५.१.३१.८४(लम्पेश्वर का माहात्म्य), कथासरित् ११.१.३६(लम्पा नगरी निवासी कुसुमसार वैश्य के पुत्र चन्द्रसार की कथा )


      लम्ब कूर्म १.४०.२२(ज्योतिष्मान् - पुत्र), गरुड १.५६(लम्बक : ज्योतिष्मान् - पुत्र तथा वर्ष का नाम), मत्स्य १७३.२२(एक दानव), शिव ३.५.४(लम्बाक्ष : ११वें द्वापर में तप नामक शिवावतार के ४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ४.२.७२.९९(लम्बकर्ण : ६४ वेतालों में से एक), हरिवंश १.४३.२१(तारकामय संग्राम में देवों से युद्ध के लिए उद्धत दैत्यों में से एक), १.५४.७४(लम्ब नामक दैत्य का प्रलम्ब नाम से उत्पन्न होकर भाण्डीर वट पर निवास), लक्ष्मीनारायण २.१७६.३१(लम्बुक : ज्योतिष के योगों में से एक ), २.२१३.४१(रायलम्बार : द्र. आलम्ब, केशलम्ब, प्रलम्ब, भूगोल, विलम्ब lamba


      लम्बा गरुड १.६.२७(दक्ष - पुत्री, कश्यप - भार्या, घोष - माता), भागवत ६.६.४(धर्म की १० पत्नियों में से एक, विद्योत - माता, स्तनयित्नुओं की मातामही), मत्स्य ५.१८(दक्ष - कन्या, धर्म की १० पत्नियों में से एक, घोष - माता), हरिवंश २.१२६.१०९(कोटवी देवी का उपनाम, कृष्ण के चक्र से बाणासुर की रक्षा हेतु शिव द्वारा लम्बा देवी का युद्ध क्षेत्र में प्रेषण ) lambaa


      लम्बोदर गणेश १.९२.२०(मानवों द्वारा लम्बोदर नाम से गणेश की पूजा), नारद १.६६.११२(चतुर्वक्त्र की शक्ति लम्बोदरी का उल्लेख), १.६६.१२९(लम्बोदर की शक्ति सत्या का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.६.९४(गणेश का एक नाम), ब्रह्माण्ड २.३.४२.३४(लम्बोदर शब्द का निर्वचन - भूत, भविष्य, वर्तमान को आत्मसात् करने वाले), शिव ३.५.४(११वें द्वापर में तप नामक शिवावतार के ४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ४.२.५७.६९(लम्बोदर गण का संक्षिप्त माहात्म्य - विघ्नकर्दमक्षालन), ७.१.३८.६(ब्रह्मा का द्वापर में रूप), लक्ष्मीनारायण १.३२८.६(लम्बोदर के शुम्भ से युद्ध का उल्लेख), कथासरित् १२.३.१०२(दस हाथों वाले एक सिंह शावक के भयानक आंधी द्वारा सब हाथ टूट जाने पर लम्बोदर द्वारा मनुष्य के हाथ जोडने का उल्लेख ) lambodara


      लय पद्म ६.१४६(रुद्र महालय तीर्थ का माहात्म्य), स्कन्द ३.१.४९.४३(लय की उरग से उपमा), लक्ष्मीनारायण २.१६७.४२ ३.१५.१, द्र. प्रलय


      ललना अग्नि २९९.२६(पांचवें मास में बालक को पीडित करने वाली ग्रही का नाम )


      ललाट अग्नि २१४.३१(ललाट में महेश्वर की स्थिति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२३(ललाट में भद्रकाली की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ५.१.३७.३६(दैत्य शरीर से नि:सृत रक्त के पान से ललाट से उत्पन्न मातृकाओं की अतृप्ति का उल्लेख), ५.३.३९.३०(सर्वदेवमयी कपिला गौ के ललाट में महादेव की स्थिति), ५.३.८३.१०५(सर्वदेवमय गायों के ललाट में वृषभध्वज की स्थिति), ५.३.१०३.९०(वर स्वरूप अत्रि के ईक्षण मात्र से अनसूया के ललाट पर शुभ मण्डल का निर्माण, प्रथम पुत्र चन्द्रमा की उत्पत्ति), ५.३.१९४.५७(देवों द्वारा ब्रह्मा के ललाट को देखने से देश की ललाट संज्ञा?), हरिवंश २.८०.९(उत्तम ललाट की प्राप्ति हेतु उमा द्वारा अरुन्धती को व्रत विधान का निर्देश), ३.७१.५३(वामन द्वारा विराट स्वरूप धारण करने पर ललाट में परमधाम की स्थिति), महाभारत शान्ति ३१७.६( ललाट से प्राणों के उत्क्रमण पर पितरों के लोक की प्राप्ति का उल्लेख), ३४७.५०(हयग्रीव के ललाट के रूप में भूतधारिणी/पृथिवी का उल्लेख), आश्वमेधिक दाक्षिणात्य पृ. ६३४८(कपिला गौ के ललाट में गोवृषध्वज शिव की स्थिति का उल्लेख ) lalaata


      ललित पद्म ३.२८.३४(ललित तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), वामन ७०.३७(ललितराज : आठ भैरवों में से एक, पृथिवी पर गिरे हुए रक्त से उत्पत्ति), स्कन्द १.१.७.३१(प्रयाग में ललितेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), कथासरित् १२.१.७१(ललितलोचना : विद्याधरेन्द्र - कन्या, जन्म होते ही कन्या के विद्याधरों के चक्रवर्ती राजा की भार्या होने की आकाशवाणी ) lalita


      ललिता अग्नि ५०.१४(ललिता की प्रतिमा के लक्षण - सैव स्म्भा वने सिद्धाऽग्निहीना ललिता तथा। स्कन्धमूर्द्धकरा वामे द्वितीये धृतदर्प्पणा ॥), ५२.१५(ललिता देवी के अब्जस्था/कमलासीना और चतुर्भुजा होने का उल्लेख - अब्जस्था ललिता स्कन्दगणादर्शशलाकया ।।), २००(चारुधर्म राजा की पत्नी ललिता के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : मूषिका द्वारा दीप प्रबोधन से राजकुमारी बनना), गर्ग २.१५(राधा - सखी, कृष्ण से राधा की भाव विह्वलता का वर्णन), २.१७.७/२.२०(ललिता द्वारा राधा को कञ्चुकी भेंट करने का उल्लेख), ३.९.२४(ललिता का राधा की भुजाओं से प्राकट्य), ५.१७.१५(ललिता यूथ की गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया- रामाभिषेकं विनिवार्य मंथरा चकार विघ्नं किल कोसले पुरे । कुब्जैव सेयं मथुरापुरे गता     कुब्जैव किं किं न करोति गोपिकाः ॥ ), देवीभागवत ७.३८(ललिता का नैमिषारण्य में वास), १२.६.१३८(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.८८.९(राधा की दो सखियों चन्द्रावली व ललिता में से ललिता के कलावती आदि ८ सखियों की ईश्वरी होने का कथन), १.८८.२३(राधा की नित्य कला), १.८९(ललिता कवच व ललिता सहस्रनाम), १.११४.४९(आश्विन् शुक्ल पञ्चमी में ललिता व्रत का विधान), १.११५.८(भाद्रपद कृष्ण षष्ठी को ललिता पूजा विधि), १.११६.८, पद्म १.२९.११(सौभाग्यशयन व्रत के अन्तर्गत ललिता आराधन विधान का वर्णन, ललिता शब्द की निरुक्ति - लोकानतीत्य लालित्याल्ललिता तेन चोच्यते।), ५.७०.५(ललिता गोपी की पश्चिम दिशा में स्थिति - संमुखे ललिता देवी श्यामला वायुकोणके।उत्तरे श्रीमती धन्या ऐशान्यां श्रीहरिप्रिया॥ ), ५.७५.४७(ललिता का राधा व कृष्ण से सारूप्य), ६.४७(ललित गन्धर्व की वीरधन्वा - पुत्री ललिता पर आसक्ति, एकादशी से उद्धार), ६.२०१+ (शरभ - पत्नी, पार्वती को प्रसन्न करने पर शिवशर्मा पुत्र की प्राप्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.१०, ३.४.१२.७०(भण्डासुर वधार्थ इन्द्र के होम से ललिता की उत्पत्ति, स्वरूप, देवों द्वारा स्तुति), ३.४.१५(ललिता का मदनकामेश्वर शिव से विवाह, देवों द्वारा भेंट), ३.४.१७.१८(ललिता के ११ नाम), ३.४.१८(ललिता के २५ नाम), ३.४.१९(ललिता के रथ चक्र पर्वों में स्थित शक्तियों के नाम), ३.४.२९(ललिता द्वारा युद्ध में भण्डासुर का वध), भविष्य ३.४.२५.१६८(ललिता गोपी : सात्विक अंश - ललिताद्याः सात्त्विकाश्च कुब्जाद्या राजसास्तथा । तामसाः पूतनाद्याश्च नानाहेलाचरित्रकाः । ।), ४.२१(ललिता तृतीया व्रत), ४.२५+ (ललिता का अङ्गन्यास), ४.४१(ललिता षष्ठी व्रत), ४.१३०(चित्ररथ - पुत्री, चारुधर्म - पत्नी, दीपदान महिमा प्रसंग में पूर्वजन्म में मूषिका), मत्स्य १३.२६(प्रयाग में देवी का ललिता नाम से स्तवन), ६२(अनन्त तृतीया व्रत के संदर्भ में ललिता न्यास), ६३.४(ललितायै नम: कहकर देवी के दोनों चरणों तथा गुल्फों की अर्चना, रस कल्याणिनी व्रत विधि प्रसंग), विष्णुधर्मोत्तर १.१६७(चित्ररथ - पुत्री, काशिराज - भार्या, दीपदान, पूर्व जन्म में मूषिका), स्कन्द १.२.४३.६०(ललिता का संज्ञा से एक्य?- राज्ञी च निक्षुभा देवी ललिता चैव संज्ञिका॥), ३.१.५.१३३(धृतराष्ट्र नाग-पुत्री,किन्नर नाग भगिनी, उदयन से विवाह, उदयन को घोषवती वीणा आदि भेंट, सुकर्णी विद्याधरी का अवतार, पुत्र उत्पत्ति के पश्चात् स्वर्ग गमन - धृतराष्ट्रस्य तनयां भगिनीं किन्नरस्य च ।। ललिताख्यां गुणोपेतां प्रियां भेजे नृपात्मजः ।।), ३.१.५.१३६(ललिता द्वारा उदयन को ताम्बूली स्रज देने का उल्लेख - अहं विद्या धरी पूर्वं सुकर्णी नाम नामतः ।। शापात्सर्पत्वमाप्तास्मि शापांतो गर्भ एष मे ।।), ४.२.७०.१८(ललिता देवी का माहात्म्य), ४.२.७२.६२ (ललिता देवी द्वारा जानु की रक्षा), ४.२.८३.१०४(ललिता तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१९८.६४(प्रयाग में देवी का ललिता नाम से वास), ५.३.१९८.७१(सन्तान तीर्थ में देवी का ललिता नाम से वास), ७.१.६१(वैष्णवी देवी का रूप, माहात्म्य ; उमा, विशालाक्षी उपनाम), ७.४.१२(कृष्ण विरह पर ललिता गोपी की प्रतिक्रिया), लक्ष्मीनारायण १.२४७, १.३०५.८(ब्रह्मा द्वारा सनन्दन - पत्नी हेतु ललिता की सृष्टि, सनन्दन द्वारा अस्वीकृति - सनन्दन गृहाणैनां ललितां ते प्रकल्पिताम् । सनातन गृहाणैनां दत्ता पारवतीं च ते ॥ ), १.३८५.३४(ललिता का कार्य – स्तनयुग्म को कठिन बनाना - स्तनयुग्मे सुकठिने चकार ललिता प्रिया ।।), ३.११५.४३(ललिता का महालक्ष्मी से तादात्म्य, भण्डासुर वध का वृत्तान्त), ३.१२२.१०७(ब्रह्मा द्वारा व्रत चीर्णन से ललिता पुत्री प्राप्ति का उल्लेख), ४.१०१.६६(कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, लाल व लीलेश्वरी-माता), lalitaa

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      लल्लसिंह भविष्य ३.३.२९.२४(कुन्तिभोज का अंश, आर्यों का बौद्धों के साथ युद्ध का वृत्तान्त), ३.३.३१.७३(लल्लराज के सेवक करभ नामक यक्ष द्वारा दम्पत्ति का पीडन, कृष्णांश द्वारा मोचन), ३.३.३२.१५३(कुन्तिभोज का अंश), ३.३.३२.१८४(पृथ्वीराज - सेनानी, गुहिल से युद्ध),



      लव पद्म १.८, ३.२६, ५.५४(लव द्वारा राम के अश्व का बन्धन, शत्रुघ्न - सैनिकों से युद्ध), ५.६०(लव द्वारा शत्रुघ्न - सेनानी कालजित् का वध, पुष्कल से युद्ध, हनुमान की लव से पराजय, शत्रुघ्न से युद्ध में लव का मूर्च्छित होना), ब्रह्म २.८४.१६(राम - पुत्र, कुश - भ्राता, राम के अश्वमेध यज्ञ में दीक्षित होने पर लव व कुश द्वारा रामायण का सस्वर गायन, राम द्वारा पुत्रों का आलिङ्गन), ब्रह्माण्ड २.२८.३८? (काल के एक अवयव के रूप में लव का उल्लेख), भविष्य ४.१९९.५(विष्णु के स्वेद के धरापृष्ठ पर कणशः व लवशः पतन का उल्लेख - तत्र स्वेदो महानासीत्क्रुद्धस्याथ गदाभृतः । पतितश्च धरापृष्ठे कणशो लवशस्तथा ।।), स्कन्द ६.१०४.१२५ (लव व कुश द्वारा लवेश्वर व कुशेश्वर लिङ्ग की स्थापना का उल्लेख - ततः कुशेश्वरं देवं विधाय च लवेश्वरम् ॥ स्वां तनुं च महाभागौ भ्रातरौ तौ रघूत्तमौ ॥), योगवासिष्ठ ६.२.४.४३(तैल के लव बिन्दु का उल्लेख - अहमित्यर्थदुस्तैललवो ब्रह्मणि वारिणि । प्रसृतो यत्तदाश्वेतत्त्रिजगच्चक्रकं स्थितम् ।।), वा.रामायण १.४(लव व कुश द्वारा वाल्मीकि से रामायण काव्य का ग्रहण, राम की सभा में गायन), ७.६६.७(लव व कुश नाम प्राप्ति का कारण), ७.९३+ (लव द्वारा राम के अश्वमेध में रामायण का गायन), ७.१०७.७(लव द्वारा उत्तर कोशल के राज्य की प्राप्ति- इमौ कुशलवौ राजन्नभिषिञ्च नराधिप ।
      कोसलेषु कुशं वीरमुत्तरेषु तथा लवम् ।।), ७.१०७.२०(परमधाम गमन से पूर्व राम द्वारा लव व कुश का उनकी राजधानियों में प्रेषण), ७.१०८.५(लव की श्रावस्ती नगरी का उल्लेख - श्रावस्तीति पुरी रम्या श्राविता च लवस्य ह ।), लक्ष्मीनारायण ३.२३३.३६, ६०(राजा मानवेश्वर द्वारा राजगुरु लवादन का तिरस्कार, लवादन द्वारा गरयुक्त पुष्पमाला से राजा का वध आदि), कथासरित् ९.१.९०(वाल्मीकि द्वारा कुशों से कृत्रिम लव का निर्माण करने के कारण कुश की उत्पत्ति का वृत्तान्त - इति ध्यात्वा कुशैः कृत्वा पवित्रं निर्ममेऽर्भकम्। लवस्य सदृशं तं च स तथास्थापयन्मुनिः ।), द्र. एकलव्य lava

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      लवङ्ग अग्नि १९१.५(लवङ्गाशी द्वारा ज्येष्ठ में प्रद्युम्न की पूजा का निर्देश), पद्म ५.७२.१५२(लवङ्गा : कृष्ण - पत्नी, पूर्व जन्म में पुण्यश्रवा मुनि ) lavanga


      लवण गरुड २.२.३१(लवण रस की प्रशंसा), २.४.१५(लवण दान की प्रशंसा), २.१९.२९(लवण की महिमा), २.२९.३१(मृत्युकाल में लवण दान की प्रशंसा), २.३०.१४(लवण दान से यम से भय न होने का उल्लेख), देवीभागवत ४.२०.५४(मधु - पुत्र, शत्रुघ्न द्वारा वध), नारद २.२२.७६(लवण त्यागी के लिए सुरभि दान का निर्देश), २.२३.७०(तृतीया व सप्तमी तिथि में वर्जित द्रव्य), पद्म १.२१(लवण पर्वत निर्माण व दान), ब्रह्माण्ड १.२.१९.५५(पुष्पवान् पर्वत के लवण वर्ष का कथन), २.३.७.९१(मधु - पुत्र), भविष्य ४.१५५(लवण धेनु दान विधि), ४.१९६(लवणाचल दान विधि), ४.२०४(लवणाचल दान की महिमा के संदर्भ में धर्ममूर्ति राजा व वसिष्ठ का संवाद), मत्स्य ८४(लवणाचल दान विधि), ९२(लवणाचल दान का माहात्म्य, शौण्ड स्वर्णकार का राजा धर्ममूर्ति बनना, लीलावती वेश्या की मुक्ति), वराह १०८(लवण धेनु दान, विधान और फल का वर्णन), १६३.५२(शत्रुघ्न द्वारा लवणासुर का वध), विष्णुधर्मोत्तर १.१७१.१ (माहेश्वर शूल लवण? के द्वारा मान्धाता वध का उल्लेख), १.२००(शत्रुघ्न - पुत्र, मान्धाता का वध), १.२४२(शत्रुघ्न द्वारा लवण का वध), १.२४७(शत्रुघ्न द्वारा लवण का वध), २.१२०.२१(लवण हरण से चीरीवाक? योनि प्राप्ति का उल्लेख), ३.२०३(लावण्य व्रत), शिव १.१५.४९(लवण से षड्रस प्राप्ति का कथन), स्कन्द ५.१.८.६८(लवण दान से स्वरूप प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.२६.१०५(मधूक तृतीया व्रत के अन्तर्गत तृतीया तिथि में लवण दान से सौभाग्य तथा यश प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.२६.१४५(वैशाख मास में लवण दान का उल्लेख), ५.३.९२.२२ (महिषी दान के अन्तर्गत पूर्व दिशा में लवणाचल की स्थापना कर यमराज को प्रदान), ६.२७१.४४१(गृध्र द्वारा लवण निर्मित शृङ्गी पर्वत के दान से गृध्रत्व से मुक्ति का कथन), हरिवंश १.५४(मधु - पुत्र, राम को दूत प्रेषण, शत्रुघ्न द्वारा वध), २.८०.३८(विशाल नितम्ब की प्राप्ति हेतु लवण दान का उल्लेख), २.८०.४१(वाणी के माधुर्य हेतु लवण ग्रहण त्याग तथा ब्राह्मण को लवण दान का निर्देश), २.८०.५०(मनोहर शरीर की प्राप्ति हेतु ब्राह्मण को लवण व घृत दान का उल्लेख), ३.११३.२२(हंस का कृष्ण के पास दूत प्रेषण, बहुत सा लवण और धन प्रदान करने की आज्ञा), योगवासिष्ठ ३.१०४.१२(हरिश्चन्द्र कुलोत्पन्न एक राजा), ३.११५.२७(हरिश्चन्द्र कुलोत्पन्न एक राजा), वा.रामायण ७.६१(कुम्भीनसी - पुत्र, शूलधारी), ७.६७(लवण द्वारा शूल से राजा मान्धाता का वध), ७.६८+ (शत्रुघ्न से युद्ध में लवण की मृत्यु), लक्ष्मीनारायण १.७३.३७(मृतक के प्रेत हेतु लवण दान का महत्त्व ; लवण के विष्णु देह से उत्पन्न होने का उल्लेख), कथासरित् १०.५.३९(लवण भक्षक मूर्ख की कथा ) lavana


      लशुन ब्रह्माण्ड २.३.१४.२२(लशुन आदि की वल असुर के रक्त से उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण २.३७.५७


      लहर भविष्य ३.३.२०.३(बलवर्धन व जलदेवी - पुत्र, वरुण की आराधना से कृपा प्राप्ति, रावी से विवाह, धृतराष्ट्र - पुत्रों के अंशों से १६ पुत्रों की प्राप्ति, कन्या मदनमञ्जरी का सुखखानि से विवाह, बलखानि की सेना से युद्ध), ३.३.३२.७४(पृथ्वीराज - सेनानी, मयूरध्वज से युद्ध ) lahara


      लाक्षा कथासरित् ६.४.४६


      लाङ्गल नारद १.६६.११३(लाङ्गलीश की शक्ति मर्यादा का उल्लेख), पद्म ३.१८.५३(लाङ्गल तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.५२(लाङ्गलि : लिपि न्यास प्रसंग में एक व्यञ्जन के देवता), मत्स्य २७४.९(पञ्चलाङ्गलक : १६ महत्त्वपूर्ण दानों में से एक), २८३.१(पञ्चलाङ्गल दान विधि व महत्त्व), लिङ्ग १.२४.१०४(लाङ्गली : २२वें द्वापर में मुनि), वायु २३.१९९(लाङ्गली : २२वें द्वापर में शिव के अवतार), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.६(लाङ्गली से पृष्ठ की रक्षा की प्रार्थना), ३.१०६.६८(लाङ्गल आवाहन मन्त्र), शिव ३.५.३१(लाङ्गली : २२वें द्वापर में शिवावतार के लाङ्गली भीम नाम का उल्लेख), स्कन्द ४.२.५५.२०(लाङ्गलीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.२१४ (लाङ्गलीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.११.६६(लाङ्गल मन्त्र से जप ), ७.१.१०.८(लाङ्गल तीर्थ का वर्गीकरण – तेज), लक्ष्मीनारायण ३.१२९.३९, laangala/ langala


      लाङ्गूल स्कन्द ५.३.१९.९(एकार्णव से मार्कण्डेय की रक्षा हेतु महेश्वरी का गौ रूप धारण, गौ लाङ्गूल पकडकर मार्कण्डेय का एकार्णव तरण), ५.३.६७.२३(कालपृष्ठ दैत्य से रक्षा हेतु शिव द्वारा वृष का स्मरण, वृष द्वारा लाङ्गूल से दैत्य का ताडन), ५.३.९०.१०१(तिल धेनु दान के अन्तर्गत धेनु की लाङ्गूल का रुक्म से निर्माण ), लक्ष्मीनारायण २.१५.२९, द्र. गोलाङ्गूल laangoola/languula/ langula


      लाजा भविष्य १.५७.१२(स्वाहा तनय हेतु लाजा बलि का उल्लेख - स्वाहातनये वै लाजा दातव्यास्त्रिपुरान्तक ।), लक्ष्मीनारायण २.७.१००(प्रेङ्खा/दोला रूपी तलाजा राक्षसी के शुभ लाजा बनने का वृत्तान्त - एवं तलाजा प्रेंखा सा लाजारूपाऽभवत्तथा ।। ), २.२४८.६(परिवापश्च वै लाजाः पयस्याऽऽमिक्षिका मता ।), कथासरित् ८.७.१३५(विवाह में ३ लाजा विसर्गों पर देय वस्तुएं - ददौ लाजविसर्गे च प्रथमे तत्क्षणागता ।
      जया भवानीप्रहिता दिव्यां मालामनश्वरीम् ।।.. ) laajaa/ laja


      लाट कथासरित् १२.७.२६०(चन्द्रादित्य द्वारा लाट का राज्य अपने जामाता भीमभट को सौंपकर वन गमन), १२.११.११९(राजा शूद्रक द्वारा वीरवर तथा उसके पुत्र को लाट व कर्णाट का राज्य प्रदान), १८.३.४(विक्रमादित्य द्वारा सभा भवन में आए हुए लाट देश के राजा विजयवर्मा का सम्मान) laata


      लाभ पद्म २.१२.१६(लाभप्रद पुत्र के लक्षण), भागवत ११.१९.४०(उद्धव के पूछने पर कृष्ण द्वारा उत्तम भक्ति का °लाभ° रूप में कथन), शिव २.४.२०.८(गणेश को बुद्धि नामक पत्नी से लाभ नामक पुत्र की प्राप्ति), महाभारत वन ३१३.७३(आरोग्य के लाभों में श्रेष्ठ होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१०८.२१(गणेश के विवाह प्रसंग में बुद्धि से लाभ पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख), १.२८३.३७(ज्ञान के लाभों में अनन्यतम होने का उल्लेख ) laabha


      लालन लक्ष्मीनारायण २.५.३३


      लाला लक्ष्मीनारायण १.३७०.१०६(नरक में लाला कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख),


      लालायन लक्ष्मीनारायण २.१३३.४२, २.१९९.७१, २.१९९.८५


      लावण्यमञ्जरी कथासरित् १२.२.१६०(उज्जयिनी नगरी स्थित ब्राह्मण कुमारी, देहत्याग के समय चित्त में विषयवासना होने से वेश्या रूप में जन्म),


      लावण्यवती पद्म १.२०(पुष्पवाहन राज - पत्नी), भविष्य ४.८५.२५(पुष्पवाहन - पत्नी, विभूति द्वादशी व्रत प्रसंग), मत्स्य १००.६(पुष्पवाहन राजा की पत्नी, विभूति द्वादशी व्रत प्रसंग), लक्ष्मीनारायण १.४३०, कथासरित् १२.२०.४ (हरिस्वामी नामक ब्राह्मण की भार्या, विद्याधर कुमार मदनवेग द्वारा अपहरण), १२.३१.७(धर्म व चन्द्रवती - कन्या, धर्म की मृत्यु पर चन्द्रसिंह नामक पिता तथा सिंहपराक्रम नामक पुत्र का क्रमश: लावण्यवती तथा चन्द्रवती से विपरीत विवाह ) laavanyavatee/ lavanyavati


      लावाणक कथासरित् ३.१.१२३(मन्त्रियों के निवेदन करने पर वत्सराज आदि का लावाणक ग्राम में गमन), ८.१.४५(लावाणक के राजा पौरव की कन्या सुलोचना द्वारा सूर्यप्रभ का वरण )


      लाशहा लक्ष्मीनारायण २.११०.२, २.११०.८४, २.१११.४८, २.११२


      लासक कथासरित् १२.७.३६(लासक नामक नर्त्तक द्वारा राजा उग्रभट के समक्ष नाटक का प्रदर्शन ), १२.७.३८(लासक नामक नर्त्तक की लास्यवती नामक कन्या पर राजा उग्रभट की मुग्धता, विवाह ), द्र. रास


      लिखित वायु ७२.१९, स्कन्द ६.११(शाण्डिल्य - पुत्र, दण्ड स्वरूप अनुज शङ्ख के हस्त कर्तन का वृत्तान्त), ६.२०९(अनुज शङ्ख द्वारा आश्रम में चोरी पर लिखित द्वारा शङ्ख के हाथ काटना ), लक्ष्मीनारायण २.१८५ likhita


      लिङ्ग अग्नि ५३+ (लिङ्ग का मान, लक्षण व निर्माण द्रव्य), ९५(लिङ्ग प्रतिष्ठा हेतु तिथि, नक्षत्र, ग्रह, लग्न विचार), ९७(शिव लिङ्ग प्रतिष्ठा विधि), १०३(शिव लिङ्ग जीर्णोद्धार विधि), २१७(वसिष्ठ द्वारा शिव की विभिन्न लिङ्ग नामों से स्तुति), ३६७ (सामान्यनामलिङ्गानि), कूर्म १.२६.७२ (विष्णु व ब्रह्मा द्वारा लिङ्गान्त की खोज), १.३४(व्यास - प्रोक्त मध्यमेश लिङ्ग का माहात्म्य), २.११.९६(लिङ्गों के प्रकार), गरुड २.३०.५४/२.४०.५४(मृतक के लिङ्ग में गृञ्जन देने का उल्लेख), ३.१२.७३(अ-स्वयंव्यक्त लिङ्ग को नमन का निषेध), नारद १.१२३.१६(लिङ्ग चतुर्दशी व्रत), २.४८.१९(काशी की महिमा व लिङ्ग), २.४९.१(अविमुक्त पीठ की वायव्य दिशा में सगर द्वारा स्थापित चतुर्मुख लिङ्ग की स्थापना, विभिन्न मासों में शिव की विभिन्न नामों से अर्चना), २.७०(प्रभास क्षेत्र के लिङ्ग), २.७०.७(प्रभास क्षेत्र में सिद्धेश्वरादि लिङ्गों की पूजा से रुद्र सलोकता प्राप्ति का उल्लेख), पद्म ३.३४(वाराणसीस्थ विमल, ओङ्कार, पञ्चायतन, मत्स्योदरी तटस्थ ओङ्कारेश्वर, कृत्तिवासेश्वर, मध्यमेश्वर, विश्वेश्वर, कन्दर्पेश्वर लिङ्गों का माहात्म्य), ५.१०५.११५(शिवलिङ्ग स्थापना, चल – अचल पूजन विधि, माहात्म्य कथन), ५.१०९.७२(शिवलिङ्गार्चन नियम), ६.१२०.२९(विष्णु के शालग्राम शिला रूपी लिङ्ग का वर्णन), ६.२५५.३२(भृगु के शाप से महादेव को योनि लिङ्ग स्वरूप प्राप्ति का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.२६(ब्रह्मा व विष्णु की लिङ्गान्त दर्शन की स्पर्द्धा), १.२.२७(ऋषियों के शाप से शिवलिङ्ग के पतन व प्रतिष्ठा की कथा), भविष्य ३.४.२५.२६(धर्म द्वारा लिङ्ग कल्प को नमस्कार/रचना), ३.४.२५.४१ (ब्रह्माण्ड लिङ्ग से उत्पन्न राहु द्वारा भौम मन्वन्तर? की सृष्टि का उल्लेख), मत्स्य २६३(लिङ्ग निर्माण विधि, लिङ्ग का परिमाण), लिङ्ग १.१७(ब्रह्मा द्वारा लिङ्गान्त का अन्वेषण), १.१९.१६(लिङ्ग की निरुक्ति : लयन), १.२७(लिङ्ग अर्चन की विधि), १.७३ (लिङ्गमूर्ति महादेव की अर्चना का निर्देश), १.७४(लिङ्गों के प्रकार व लिङ्ग पूजकों के नाम), १.८१(लिङ्गों के प्रकार व मासानुसार लिङ्ग पूजा), २.४६.१३+ (लिङ्ग प्रतिष्ठा का माहात्म्य व विधि), वराह १४४(सोम द्वारा स्थापित सोमेश्वर लिङ्ग), १८६.४०(घर में लिङ्ग - द्वय के अर्चन का निषेध), वामन ६.६५ (ऋषियों के शाप से शिवलिङ्ग का पात, लिङ्ग की अनन्तता), ४६(विभिन्न लिङ्ग), ९०.३(लिङ्गभेद तीर्थ में विष्णु का भव विभु नाम से वास), वायु ६.१९(वराह लिङ्ग का होम से साम्य), ५५.२३(ब्रह्मा व विष्णु में लिङ्ग अन्त के दर्शन की स्पर्द्धा की कथा), विष्णुधर्मोत्तर ३.७४(लिङ्ग का मूर्त रूप), शिव १.५ (लिङ्ग पूजा से मुक्ति, लिङ्गबेर का महत्त्व), १.१०.३७(शिव द्वारा लिङ्ग तथा बेर? की तुल्यता होते हुए भी लिङ्ग यजन की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), १.११ (लिङ्ग स्थापना, पूजन, दान, लिङ्गबेर आदि), १.१८+ (लिङ्ग का माहात्म्य), १.१८.४३(लिङ्गों के पौरुष व प्राकृत भेदों का कथन ; विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के लिए उपयुक्त लिङ्गों के नाम), २.१.१०(शिव द्वारा लिङ्ग के स्वरूप का कथन), २.१.१०.३८(लिङ्ग की निरुक्ति : जगत के लयन के कारण लिङ्ग), २.१.१२(देवों को विभिन्न लिङ्गों की प्राप्ति), २.१.१२.३०(विष्णु की आज्ञा से विश्वकर्मा द्वारा विविध प्रकार के लिङ्गों का निर्माण तथा अधिकारानुसार विभिन्न देवों को प्रदान), २.१.१३(लिङ्ग पूजा विधि), २.१.१४(पत्र, पुष्पादि द्वारा लिङ्ग पूजा का फल), ३.४२(द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग), ४.१.२०(द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग), ४.२(काशी में स्थित लिङ्गों के नाम), ४.८(गोकर्ण स्थित महाबल नामक लिङ्ग), ४.१२(ऋषियों के शाप से शिवलिङ्ग का पतन, लिङ्ग पतन से भुवन का दहन, पार्वती द्वारा लिङ्ग को योनि में धारण से शान्ति), ७.१.३३.७३(भिन्न - भिन्न मासों में भिन्न - भिन्न रत्नादि से निर्मित लिङ्गों की पूजा का विधान), ७.२.३६(लिङ्ग प्रतिष्ठा विधि), स्कन्द १.१.६(ऋषियों के शाप से शिवलिङ्ग का पतन, ब्रह्मा व विष्णु द्वारा लिङ्ग के अन्त की खोज), १.१.७(नाना नामों से लिङ्गों की स्थापना), १.१.२०.१०(लिङ्ग की निरुक्ति : त्रिगुणों का लिङ्ग में लीन होना), १.१.३१.९६(गिरियों, रत्नों, धातुओं आदि की लिङ्ग पूजा), १.१.३१.१००(लिङ्गों में काश्मीर लिङ्ग की श्रेष्ठता का कथन), १.२.१३.१४४(शतरुद्रिय के अन्तर्गत विभिन्न लिङ्गों की विभिन्न नामों से अर्चना का वृत्तान्त), १.२.३५(स्तम्भेश्वर लिङ्ग), १.२.३९.७०(बर्करेश लिङ्ग), १.२.५६.१(ब्रह्मेश लिङ्ग का माहात्म्य), १.२.५६.११(मोक्षनाथ लिङ्ग), १.२.५९.२(सिद्धेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), १.२.६२.३३(सब लिङ्गों में हुंकार क्षेत्रपाल की स्थिति का उल्लेख), १.३.१.११.४७ (महिषासुर के कपाल पर स्थित लिङ्ग का दुर्गा के हाथ पर चिपकना, अरुणाचल स्नान से मुक्ति), २.४.३.४१टीका(ब्रह्मा व विष्णु की लिङ्गान्त दर्शन की कथा, केतकी व कामधेनु द्वारा मिथ्या साक्ष्य), ३.२.२७(गोवत्स लिङ्ग की उत्पत्ति व माहात्म्य), ४.१.१०.८६(काशी में लिङ्गों के नाम), ४.२.७, ४.२.६९(६८ तीर्थों के लिङ्गों का काशी में आगमन), ४.२.७३.३२(काशी में स्थित १४ -१४-१४ सिद्ध लिङ्गों के नाम), ४.२.७३.६३(तिथि अनुसार पूजनीय १४ लिङ्गों के नाम), ४.२.९०.२१(पार्वती द्वारा स्थापित पार्वतीश लिङ्ग का माहात्म्य), ४.२.९१(गङ्गा द्वारा स्थापित गङ्गेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ४.२.९२(नर्मदा द्वारा स्थापित नर्मदेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ४.२.९३(सती द्वारा स्थापित सतीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ४.२.९४(अमृतेश्वर, करुणेश्वर, ज्योतीरूपेश्वर लिङ्गों का माहात्म्य), ५.२.१+ (अवन्ती में ८४ लिङ्ग व उनका माहात्म्य), ५.३.८.४४(लिङ्ग की निरुक्ति), ५.३.१४.२३(लिङ्ग की निरुक्ति, सम्पूर्ण जगत का लय), ५.३.१४९.८(लिङ्ग वराह तीर्थ का माहात्म्य, मास अनुसार केशव पूजा), ५.३.१४९.१(लिङ्गेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ६.१(ब्राह्मण - पत्नियों में कामुकता उत्पन्न करने से शिव के लिङ्ग का पतन, देवों द्वारा पूजा के आश्वासन पर शिव द्वारा पुन: लिङ्ग धारण), ६.१०६(पृथ्वी से लुप्त हुए लिङ्ग), ६.१०९(६८ तीर्थों में लिङ्गों के नाम), ६.२५८(ऋषियों के शाप से शिव लिङ्ग का पतन), ७.१.२३(चन्द्रमा द्वारा यज्ञ विधि से लिङ्ग की स्थापना), ७.१.१८७.२१ (ऋषियों के शाप से लिङ्ग के पतन व प्रतिष्ठा की कथा), ७.१.१९५(वृद्धावस्था प्राप्त होने पर प्रभास में ऋषियों को लिङ्ग दर्शन होने से वृद्धप्रभास नाम धारण), ७.१.३२०(विश्वकर्मा द्वारा प्रतिष्ठित लिङ्ग - द्वय का माहात्म्य), ७.३.३४(ब्रह्मा व विष्णु की लिङ्गान्त दर्शन की कथा), हरिवंश २.७२.६०(देह में भग लिङ्ग के उमा के प्रतीक होने तथा पुरुष लिङ्ग के शिव के प्रतीक होने का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३०५.२५/३१०.३७(लिङ्गों से युक्त प्रकृति व पुरुष से ऊपर उठकर अलिङ्गी परम पुरुष के साक्षात्कार का निर्देश), अनुशासन १४.२३४( ऐरावत का वृषभ तथा इन्द्र का शिव में रूपान्तरण), लक्ष्मीनारायण १.१०, १.१९६ (शिव के लिंग का खण्डशः पतन होकर विभिन्न स्थानों पर स्थित होना), १.५१६.५९(लिङ्ग से प्राप्त नैवेद्य के अग्राह्य होने व प्रतिमा से प्राप्त नैवेद्य के ग्राह्य होने का वर्णन), १.५६४, १.५८५, २.३८, २.११५.१७(शिवलिङ्ग : आसाम देश का राजा), ३.२१. (कालविशेष में शिव के मूर्तिमान् व विष्णु के लिंगरूप होने का कथन), कथासरित् १८.४.१३१(राजा विक्रमादित्य द्वारा देवालय में नर्त्तक - नर्त्तकियों द्वारा शिवलिङ्ग पूजा का दर्शन, नर्त्तक - नर्त्तकियों की भित्ति चित्र में अंकित पुरुष - स्त्रियों में लीनता ), द्र. महालिङ्ग linga


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      लिपि ब्रह्माण्ड ३.४.४४.२२(साक्षात् लिपिमयी भैरवी के ध्यान का उल्लेख ) lipi


      लियारी लक्ष्मीनारायण ४.४८


      लीनोर्ण लक्ष्मीनारायण २.१६७.३३, २.१९२


      लीला स्कन्द २.६.१(लीला का भगवत् स्वरूप), योगवासिष्ठ ३.१५.२५+ (पद्मराज - पत्नी, चरित्र की महिमा, पति की दीर्घायु हेतु सरस्वती की आराधना, मृत पति से मिलन हेतु चिदाकाश में स्थित होना), ३.१७(लीला उपाख्यान), ३.२०.१(लीला के पूर्व जन्म में वसिष्ठ ब्राह्मण - पत्नी अरुन्धती होने का उल्लेख), ३.२०+ (लीला का श्रीदेवी से संवाद ), ३.२३(लीला का आकाश गमन), ३.२७.३४(लीला द्वारा पूर्व जन्मान्तरों का स्मरण), ६.१.१०६(लीला का विवाह), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.६६, कथासरित् ८.५.५१(विद्याधरराज इन्दुमाली का लीला पर्वत पर वास ), द्र. नागलीला leelaa/ lila


      लीलाधर भविष्य ३.२.२२.३(शम्भुदत्त - पुत्र लीलाधर द्वारा यज्ञ में हिंसा का विरोध ) leelaadhara/ liladhara


      लीलावती गर्ग ७.४३.२४(हिरण्यकशिपु की तप:स्थली में स्थित एक स्वर्णमयी नगरी, वीतिहोत्र नामक अग्नि से अधिष्ठित), ७.४८.२३(लीलावती पुरी में राजा सुकृति की पुत्री सुन्दरी की कथा), देवीभागवत ३.१४+ (युधाजित् - पुत्री, ध्रुवसन्धि - भार्या, शत्रुजित् - माता), ३.१४.९(सूर्यवंशोत्पन्न ध्रुवसंधि राजा की दो पत्नियों में से एक), १.२१(लीलावती वेश्या द्वारा स्वर्णमयी देवप्रतिमा निर्माण), ४.७(लीलावती वेश्या को राधाष्टमी व्रत से वैकुण्ठ प्राप्ति), ६.१७४(हारीत - पत्नी), पद्म १.२०, भविष्य ३.२.२९.१७(कलावती - कन्या, सत्यनारायण व्रत कथा), स्कन्द २.४.९.४२टीका(वेश्या, वसिष्ठ ऋषि से चतुर्दशी माहात्म्य की पृच्छा), ४.१.२९.१५१(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), योगवासिष्ठ ३.१७+, लक्ष्मीनारायण १.४६५(विष्णु द्वारा दिवोदास - पत्नी लीलावती को अन्न, प्राण, मन, आनन्द आदि पतियों की व्याख्या करना), ३.५४.१५, ४.१७.११, कथासरित् ८.२.१३७(मयासुर - पत्नी ) leelaavatee/ lilavati


      लीला वीज लक्ष्मीनारायण २.५७.६६, २.५७.७६


      लीश लक्ष्मीनारायण २.१९०, २.१९१,


      लुङ्क स्कन्द ५.३.६७(लुङ्केश्वर तीर्थ का माहात्म्य : कालपृष्ठ दानव द्वारा हस्त स्पर्श से मृत्यु के वर की प्राप्ति, कन्या रूप धारी विष्णु द्वारा कालपृष्ठ का वञ्चन, कालपृष्ठ द्वारा स्वशिर पर हस्त रखने से मृत्यु), ५.३.२३१.२५(लुङ्केश्वर नाम से दो तीर्थों के होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.११५.१५लुक lunka


      लुञ्च लक्ष्मीनारायण ४.६२


      लुब्धक पद्म २.३०.२४(लोभ नामक लुब्धक की रेवा के पवित्र जल में गिरने से मुक्ति), २.४३(इक्ष्वाकु राजा के लुब्धक सैनिकों का वराहों के साथ युद्ध, लुब्धकों और वराहों का नाश), ब्रह्म २.१०(लुब्धक द्वारा कपोत का जाल में बन्धन, अतिथि सेवार्थ कपोत का अग्नि प्रवेश, गङ्गा स्नान से मुक्ति), भागवत ४.२५.५३(पुरञ्जन उपाख्यान के अन्तर्गत पुरञ्जन का निर्ऋति नामक पश्चिम द्वार से लुब्धक के साथ वैशस नामक देश में गमन), वराह ५.२०(निष्ठुरक नामक लुब्धक तथा संयमन नामक विप्र का संवाद, कर्म से मोक्ष प्राप्ति की कथा), लक्ष्मीनारायण १.१५३(लुब्धक द्वारा हरिहर दर्शन की कथा), १.५२५(लुब्धक का संयमन विप्र से संवाद, अग्नि का रूप धारण करना), ३.२१९, कथासरित् २.२.१६०(लुब्धक से सोई हुई मृगाङ्कवती का समाचार जानकर श्रीदत्त द्वारा उसे प्राप्त करने की चेष्टा), ६.७.११२(लुब्धक के फैलाए हुए जाल में मार्जार का फंसना, चूहे द्वारा जाल काटकर मार्जार को मुक्त करना ) lubdhaka


      लुम्प पद्म ६.४०(माहिष्मत - पुत्र, दुष्ट चरित्र, एकादशी व्रत से उद्धार), स्कन्द ५.२.४१(लुम्पेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : लुम्प राजा द्वारा सामग ब्राह्मण का वध, पुत्र शाप से कुष्ठ की प्राप्ति, लिङ्ग की स्थापना ) lumpa


      लुम्भक पद्म ६.४०, लक्ष्मीनारायण १.२४०


      लूता लक्ष्मीनारायण ३.१२५.६७(लूता रूपी माया व तुला में सम्बन्ध का कथन )


      लूनी लक्ष्मीनारायण ४.८


      लूणा लक्ष्मीनारायण ३.२२५.२


      लेख ब्रह्माण्ड १.२.३६.६७(चाक्षुष मन्वन्तर में लेख गण के ८ देवों के नाम), मार्कण्डेय ७६.५३(चाक्षुष मन्वन्तर के देवगणों में से कतिपय का नाम), वायु ७५.२०/२.१३.२०(उल्लेखन : पितरों व देवों के लिए आवश्यक ३ कृत्यों में से एक ), द्र. चित्रलेखा, मदनलेखा lekha


      लेखक गणेश २.७९.४१(लेखनाद्रि : गौरी द्वारा गुणेश/गणेश की आराधना का स्थान), गरुड २.१२.४२(लेखक प्रेत के लेखक नाम का कारण), विष्णुधर्मोत्तर ३.३२६(लेखक के लक्षण), लक्ष्मीनारायण ४.६५, द्र मन्वन्तर


      लेप ब्रह्म १.११२.१८(सपिण्डीकरण के संदर्भ में पिता, पितामह व प्रपितामह के साथ पिण्ड सम्बन्ध तथा अन्य पितामह आदि के साथ लेप सम्बन्ध का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.९२(वज्र लेप), स्कन्द ६.२३९.३४(चातुर्मास में लेप दान के महत्त्व का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१६७४१लेपनाद, २.१९९.१, lepa


      लोक अग्नि १२०(अधोलोकों में भूमि के वर्ण, ऊर्ध्व लोकों में निवासियों का वर्णन), कूर्म १.४१(ऊर्ध्व लोकों की स्थिति), १.४४(ऊर्ध्व व अधोलोकों का वर्णन), गणेश २.४९.२७(गणेश की भक्ति से किस लोक की प्राप्ति होगी ? प्रश्न, गणेश द्वारा निज लोक का निर्माण), २.५२(काशिराज द्वारा विनायक लोक जाते समय विभिन्न लोकों के दर्शन का वृत्तान्त), गरुड १.५७(अधोलोकों के नाम), २.२२.५२(१४ लोकों का शरीर में न्यास), २.३२.१०९(देह में लोकों की स्थिति), ३.२३.३५(श्रीनिवास के अङ्गों में जन, तपो आदि लोकों की स्थिति), गर्ग ५.१७.२९(लोकाचल वासिनी गोपियों के कृष्ण के प्रति उद्गार), देवीभागवत ८.१६, ८.१८+ (अधोलोकों तल, अतल आदि की महिमा का वर्णन), नारद १.४३.८४(लोक में सत्यानृत, धर्माधर्म, प्रकाश - तम, सुख - दुःख रूप दो प्रकार की वृत्तियां होने का उल्लेख), पद्म १.२२.५९(अगस्त्य के प्रति अर्घ्य प्रदान से भू भुव: प्रभृति सप्त लोकों पर आधिपत्य का कथन), २.७१(देवलोक संस्थान वर्णन), ३.७(भारतवर्ष में चारों युगों में लोकों/लोगों की आयु, बल आदि का कथन), ३.२६.४२(लोकोद्धार तीर्थ में स्नान से स्व लोगों के उद्धार का कथन), ब्रह्म १.१९( अधोलोक), १.२१(ऊर्ध्व लोकों की स्थिति), ब्रह्मवैवर्त्त १.२(गोलोक, शिव लोक, वैकुण्ठ लोक), २.३, ब्रह्माण्ड १.२.२०(अधोलोक व उनके निवासियों का वर्णन), ३.४.२.८(कृत व अकृत लोक का वर्णन ; जन, तप, सत्य आदि लोकों की विशेषता ; भू, भुव:, स्व: आदि लोकों की विशेषता), ३.४.२.१३०(ऊर्ध्व लोकों में परस्पर दूरी), ३.४.२.१४५(पापों के फलस्वरूप अधोलोक/नरक की प्राप्ति), ३.४.३३(यक्ष लोक), ३.४.३३(रुद्र लोक), भविष्य २.१.३(ऊर्ध्व व अधोलोक), २.१.४(भू लोक), ३.४.२४.७४(युग चरण के अनुसार मनुष्यों की लोकों में स्थिति), भागवत ५.२४(अधोलोक वर्णन), लिङ्ग १.४५(पाताल आदि अधोलोक व उनके निवासियों का वर्णन), १.५३, वामन ७८.८२(त्रिलोकी को मापने के लिए विष्णु द्वारा त्रिविक्रम रूप धारण), वायु ७.२७, ४९.१४९, ५०.९(रसातल आदि अधोलोक व उनके निवासियों का वर्णन), १०१.१६(भू, भुव:, स्व: आदि १४ लोकों का वर्णन), विष्णु २.५(सात अधोलोकों का वर्णन), २.७.१२(भू, भुव: आदि सात ऊर्ध्व लोकों की स्थिति), विष्णुधर्मोत्तर १.५(ऊर्ध्व लोक व उनके अधिपति), ३.४६.१३(परमेष्ठी ब्रह्म के रथ में सात लोक हंसों के रूप में जुते होने का उल्लेख), ३.१६२(लोक व्रत), ३.३२१(कर्मानुसार लोकों की प्राप्ति), शिव ५.१५(पाताल लोक), ५.१९.७(ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत जनादि लोकों की स्थिति का वर्णन), स्कन्द ४.१.२२(मह, जन, तपो आदि लोक प्राप्ति हेतु अपेक्षित कर्म), ४.१.२३(लोकों में परस्पर दूरी), हरिवंश ३.१२(नारायण के नाभिकमल के दलों में समस्त लोकों की कल्पना), योगवासिष्ठ ३.२५(भू लोक ), लक्ष्मीनारायण १.३८+, २.२४६.२८, २.२५२.३०, ३.४५.८, ३.१०१.६४, ३.१०९.३६, ४.९५+, द्र. गोलोक loka


      लोकपाल अग्नि ५९.४७(देवाधिवासन विधि के अन्तर्गत सुदर्शन चक्र के १२ अरों से युक्त मण्डल में लोकापालादि की अर्चना का उल्लेख), नारद १.११४.१०(आषाढ शुक्ल पञ्चमी को लोकपाल पूजा), ब्रह्माण्ड १.२.२१.१५८(लोकालोक पर्वत पर लोकपालों की स्थिति), भविष्य १.१२६(लोक व लोकपालों का वर्णन), मत्स्य १२४.२४(धर्म व्यवस्था तथा लोक संरक्षण हेतु लोकपालों की चारों दिशाओं में स्थिति), लिङ्ग १.४८, २.४३(लोकपाल दान विधि), वराह २९.१०(ब्रह्मा के श्रोत्र से उत्पन्न १० कन्याओं के वरों हेतु ब्रह्मा द्वारा इन्द्र, अग्नि, यम, निर्ऋति, वरुण, वायु, धनदेश, ईशान, शेष तथा स्वयंरूप नामक १० लोकपालों की सृष्टि), १४१.२८(बदरिकाश्रम क्षेत्र के अन्तर्गत लोकपाल तीर्थ की स्थिति का उल्लेख), वायु ५०.२०८(लोकपालों के नाम), विष्णु २.८.८२(लोकालोक पर्वत की चारों दिशाओं में सुधामा, शंखपात्, हिरण्यरोमा और केतुमान् नामक चार लोकपालों की स्थिति), शिव ३.५.२४(लोकाक्षि : १९वें द्वापर में जटीमाली नाम से शिवावतारी के ४ पुत्रों में से एक), स्कन्द १.३.१.७, २.३.८(बदरी क्षेत्र में लोकपाल तीर्थ), ४.१.१२, ४.१.१३, ४.१.१५, ५.२.१२(लोकपालेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, हिरण्यकशिपु से पराजित लोकपालों द्वारा स्थापना), ५.२.३८.२२ (पार्वती द्वारा शिव से वीरक नामक पुत्र को लोकपालत्व प्रदान करने की प्रार्थना), ५.३.२६.१२०(दशमी तिथि में लोकपालों को इक्षुदण्ड - रस दान से लोक प्रीति प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.१३३.३४(लोकपाल तीर्थ चतुष्ट्य का माहात्म्य : क्षुधा - पीडित लोकपालों द्वारा ब्राह्मणों को दरिद्र और मूर्ख होने का शाप), ५.३.१९३.२५(जनार्दन की बाहुओं में समस्त लोकपालों की स्थिति), योगवासिष्ठ १.२३.३७(जगत रूपी जीर्ण वन में काल द्वारा भक्ष्य फलों का रूप ), लक्ष्मीनारायण २.१५२, २.१५७, lokapaala/ lokapala


      लोकालोक देवीभागवत ८.१४(लोकालोक पर्वत की महिमा), नारद १.३.४१, ब्रह्माण्ड १.२.२१.१५५(लोकालोक पर्वत की महिमा का वर्णन), भविष्य ३.४.१६.२१(लोकालोक पर्वत के नीचे राक्षस का वास, राम से युद्ध, देवी माहात्म्य प्रसंग), मत्स्य १२४.८३(लोकालोक पर्वत का शब्दार्थ, सूर्य परिभ्रमण में सन्ध्या काल), लिङ्ग १.५३.३२(लोकालोक पर्वत का वर्णन), वायु ४९.१४४(लोकालोक पर्वत की महिमा), ५०.१५६(लोकालोक पर्वत पर सूर्य की गति का वर्णन), विष्णु २.८.८२(लोकालोक पर्वत पर ४ लोकपालों का दिशाओं के सापेक्ष विन्यास), शिव २.५.९, योगवासिष्ठ ६.२.५.७(पर्वत का नाम), लक्ष्मीनारायण १.३०१.९(क्षुधापीडित अग्नि द्वारा लोकालोक पर्वत के शिखर का भक्षण करके हिरण्य को जन्म देना, लोकालोक पर्वत का स्वर्णमय होना ), ३.३३.८४ lokaaloka/ lokaloka


      लोगाक्षि लिङ्ग १.२४.३२(षष्ठम् द्वापर में मुनि), स्कन्द ३.२.९.५२(लौगाक्षि गोत्र के ऋषियों के ३ प्रवर व गुण ) logaakshi/ logakshi


      लोचन स्कन्द ७.४.१७.२५(एकलोचन : भगवत्परिचारक वर्ग में पश्चिम दिशा के रक्षकों में से एक ), द्र. त्रिलोचन, धूम्रलोचन, रक्तलोचन, सुलोचन lochana


      लोटण स्कन्द ५.३.१८९.३२(लोटणेश्वर : वाराह तीर्थ के अन्तर्गत एक तीर्थ), ५.३.२२०.१(लोटणेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), कथासरित् ६.१.१८८(लोट : एक नगर का नाम ) lotana


      लोपामुद्रा देवीभागवत १०.७.२१(लोपामुद्रा का विन्ध्यवासिनी देवी बनने का उल्लेख?), ब्रह्म २.४०.६(गभस्तिनी - स्वसा), ब्रह्माण्ड १.२.३३.१९(लोपामुद्रा के कोशीतिका उपनाम का उल्लेख), ३.४.३८.९(ललिता मन्त्र के दस भेदों में से एक), भविष्य ४.११८.५०(अगस्त्य - भार्या, लोपामुद्रा की इच्छा पर कुबेर द्वारा ऐश्वर्य प्रदान की कथा), स्कन्द ४.१.३.१०२(अगस्त्य - भार्या, देवों द्वारा प्रणाम), ४.१.४.६(लोपामुद्रा के पातिव्रत्य की प्रशंसा), ६.३३.४४(अगस्त्य - भार्या), ७.१.७८.५(लोपामुद्रा और अगस्त्य का पूर्व जन्म में शुकी - शुक होने का उल्लेख), हरिवंश १.२९.७६(लोपामुद्रा की कृपा से काशिराज अलर्क को उत्तम आयु की प्राप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४५५, lopaamudraa / lopamudra

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      लोभ अग्नि ३८१.३६, देवीभागवत ९.१.११९(क्षुधा व पिपासा - पति), पद्म १.५३(शूद्र की निर्लोभता का वृत्तान्त), मत्स्य ३.१०(ब्रह्मा के ओष्ठ से लोभ की उत्पत्ति), मार्कण्डेय ५०.२६(पुष्टि - पुत्र), वराह २७( वैष्णवी मातृका का रूप), विष्णु १.७.२८(धर्म की १३ पत्नियों में से एक पुष्टि द्वारा लोभ नामक पुत्र का जनन), १.८.३३(लक्ष्मी - विष्णु के सर्वव्यापकत्व के अन्तर्गत तृष्णा में लक्ष्मी तथा लोभ में विष्णु की व्यापकता), विष्णुधर्मोत्तर ३.२४५(लोभ के दोष), स्कन्द १.२.५.९९(लोभ की ग्राह से उपमा, दोष), महाभारत वन ३१३.९२, शान्ति १५८, आश्वमेधिक ३१.९(लोभ की निन्दा), योगवासिष्ठ १.३१.४(लोभ की मयूर से उपमा), लक्ष्मीनारायण ४.४४.६५, कथासरित् ७.४.३९(भिक्षुकों के लोभ की वेश्याओं द्वारा प्राप्ति का उल्लेख ), द्र. विलोभना, सुलोभ lobha


      लोम पद्म ३.२६.५९(कुरुक्षेत्र में स्वर्णलोमापनयन तीर्थ में प्राणायाम द्वारा लोम निर्हरण का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.८.१४(लोम की कूप से उपमा), मत्स्य २४८.६८(यज्ञवराह के दर्भलोमा होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२४(लोम में वनस्पति की स्थिति का उल्लेख), ३.३८.६(अक्षि, पक्ष्म व भ्रू के अतिरिक्त देवताओं के शरीर के लोम रहित होने का उल्लेख ) loma


      लोमपाद वायु ९९.१०३(चित्ररथ - पुत्र, शान्ता - पिता), द्र रोमपाद


      लोमहर्षण लक्ष्मीनारायण ३.९३.४७लोममर्षण


      लोमश गरुड २.६.५४(विश्वम्भर वैश्य का लोमश ऋषि से संवाद), गर्ग १.१४(लोमश द्वारा उत्कच असुर को शाप देकर देहरहित करना), ५.२४.५३(राजा दृढाश्व द्वारा कुरूप लोमश मुनि का उपहास, लोमश द्वारा राजा को क्रोडमुख असुर होने का शाप), देवीभागवत ३.१०(लोमश द्वारा जमदग्नि को उतथ्य ब्राह्मण के मूर्ख से विद्वान् बनने की कथा का वाचन), पद्म ३.२२(लोमश द्वारा गन्धर्व - कन्याओं की पिशाचत्व से मुक्ति कराना), ५.३६(लोमश द्वारा आरण्यक ऋषि को राम चरित्र का उपदेश), ६.४६(मान्धाता के पूछने पर लोमश ऋषि द्वारा चैत्र कृष्ण पापमचिनी एकादशी माहात्म्य का वर्णन), ६.५५(लोमश द्वारा महीजित् राजा को पुत्र प्राप्ति हेतु एकादशी व्रत का कथन), ६.१२८(लोमश द्वारा अप्सराओं व मुनि - पुत्र अग्निप की पिशाचत्व से मुक्ति का उद्योग, माघ स्नान का माहात्म्य), ६.१२९.२६२(लोमश द्वारा प्रयाग माहात्म्य का कथन, पिशाचता को प्राप्त गन्धर्व कन्याओं तथा मुनिपुत्र की पिशाच भाव से मुक्ति की कथा), ७.२५(लोमश द्वारा पवित्र ब्राह्मण को सर्वत्र विष्णु दर्शन का उपदेश, मृत मूषक का तुलसी जल से उद्धार), ब्रह्मवैवर्त्त ४.४७.१४१(लोमश का इन्द्र के पास आना, स्वयं की चिरञ्जीविता का वर्णन), भविष्य ४.४६(एक विप्रर्षि, देवकी को कुक्कुटी - मर्कटी व्रत का वर्णन), स्कन्द २.८.२.२४(मुनि, ऋणमोचन तीर्थ में ऋण से मुक्ति, तीर्थ माहात्म्य का कथन), ५.१.४५.१(लोमश द्वारा सनत्कुमार को कुमुद्वती पुरी के प्रभाव का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.४८६, १.५२०, १.५३१, २.३, २.९, २.१२, २.२३२, ४.४४ lomasha


      लोमहर्षण पद्म १.१(व्यास - शिष्य, उग्रश्रवा - पिता, पुत्र को नैमिषारण्य में जाकर पुराण कथा का आदेश), वामन ४३(ऋषियों द्वारा लोमहर्षण महामुनि से अनेक प्रश्नों की पृच्छा, लोमहर्षण द्वारा उत्तर ), वायु १.१.१६, लक्ष्मीनारायण ३.९३.४७लोममर्षण lomaharshana


      लोल नारद १.६६.१३४(लोलनेत्रा : विमत्त गणेश की शक्ति लोलनेत्रा का उल्लेख), मार्कण्डेय ७४(मृगी - पुत्र, तामस मन्वन्तर के मनु ) lola


      लोलजिह्वा ब्रह्मवैवर्त्त ३.३७.१९(लोलजिह्वा देवी से ऊर्ध्व दिशा की रक्षा की प्रार्थना), स्कन्द ३.२.११.२(धर्मारण्य में लोलजिह्व राक्षस का मातृकाओं से युद्ध, विष्णु द्वारा चक्र से वध), लक्ष्मीनारायण १.४४०.७५(वही)


      लोला देवीभागवत १२.६.१३९(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.१०७(त्रिमातृक की शक्ति लोलाक्षी का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१९८.८३(उत्पलावर्तक तीर्थ में देवी का लोला नाम से वास), वा.रामायण ७.६१.३(सत्ययुग के एक महान् असुर मधु का पिता ) lolaa


      लोलार्क वामन १५.५९(आदित्य को शिव द्वारा प्रदत्त नाम, नाम हेतु का कथन), स्कन्द ४.१.४६.४८(लोलार्क आदित्य के लोलार्क नाम का कारण तथा माहात्म्य ) lolaarka/ lolarka


      लोह अग्नि २४५.१४(ब्रह्मा के यज्ञ में लोह का प्राकट्य, विष्णु द्वारा खड्ग से लोहासुर का वध व वरदान), गरुड २.२०.२१(आतुर हेतु लौह दान की महिमा), २.३०.१४(लौह दान से यम की तुष्टि का उल्लेख), २.३०.२५(लौह दान का उद्देश्य), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.४५(नरक में लौह कुण्ड प्रापक दुष्कर्म), २.३०.८८(ताम्र व लौह चोरी पर वज्र कुण्ड प्राप्ति का उल्लेख), ४.८५.११८(लौह चोर के निर्वंश होने का उल्लेख), भविष्य ४.१३८(देवों द्वारा लोह दैत्य का वध, लौह की उत्पत्ति), भागवत २.६.५(केश, श्मश्रु, नखों से शिला, लोह, अभ्र, विद्युत की उत्पत्ति का उल्लेख), वायु १०१.७९/२.३९.१७९(भूमि के नीचे ७ नरकों में षष्ठम नरक लौहपृष्ठ के कर्मों के क्षयकारक होने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर २.१७(ब्रह्मा के यज्ञ में लोहासुर/लोह दानव द्वारा विघ्न, श्रीहरि द्वारा नन्दक नामक खङ्ग से लोह दानव का वध, केशव के वरदान स्वरूप लोह दानव के पतित अङ्गों का पृथिवी पर लोह धातु रूप होकर आयुध निर्माण में प्रयोग), स्कन्द ३.२.२३(ब्रह्मा वेश धारी लोहासुर के भय से धर्मारण्य से नगरवासियों का पलायन), ३.२.२९(लोहासुर का तप, लोहासुर के शरीर में त्रिदेवों की स्थिति, लोहासुर द्वारा वर प्राप्ति), ७.१.२०२.३७(बलराम द्वारा सूत के वध पर शरीर से लोह गन्ध आना), हरिवंश १.२७.५८(लौहि : अष्टक - पुत्र ), महाभारत उद्योग १५.३४(अश्मा से लोह की उत्पत्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.७३.३९, ३.२१२.२लोहकार, द्र. लौह loha


      लोहजङ्घ गर्ग २.२३(लोहजङ्घ वन में शतचन्द्रानना गोपी की रक्षा के लिए कृष्ण द्वारा शङ्खचूड का वध), वराह १५३.४४(मथुरा तीर्थ के अन्तर्गत लोहजङ्घ से रक्षित लोहजङ्घ वन का उल्लेख), वामन ५७.८७(ऋषियों द्वारा स्कन्द को लोहजङ्घ गण प्रदान का उल्लेख), स्कन्द ६.१२४(वाल्मीकि का पूर्व नाम, चौर्य वृत्ति का परित्याग कर वाल्मीकि बनने की कथा), कथासरित् २.४.८४(लोहजङ्घ नामक ब्राह्मण तथा रूपणिका वेश्या की कथा ) lohajangha


      लोहयष्टि वामन ९०.२९(लोहदण्ड में विष्णु का हृषीकेश नाम), स्कन्द ३.२.२८.३(लोहयष्टि तीर्थ का माहात्म्य), ६.९४(परशुराम के कुठार से निर्मित लोहयष्टि तीर्थ का माहात्म्य ) lohayashti


      लोहाण स्कन्द १.२.६५.९५(अन्धक द्वारा निर्मित लोहाण पुर में केलीश्वरी देवी का वास? )


      लोहार्गल वराह १५१(लोहार्गल क्षेत्र का माहात्म्य),


      लोहाङ्गार लक्ष्मीनारायण ३.१३४


      लोहित नारद १.६६.११६(लोहित की शक्ति कालरात्रि का उल्लेख), पद्म १.५५(लौहित्य तीर्थ का माहात्म्य, लौहित्य तीर्थ की ब्रह्मा के वीर्य से उत्पत्ति, अमोघा व शन्तनु की कथा), ब्रह्माण्ड १.२.१९.४४(उत्तम पर्वत के लोहित वर्ष का उल्लेख), भविष्य २.१.१७.५(अन्न यज्ञ में अग्नि का नाम), लिङ्ग १.२३(लोहित कल्प का वर्णन), वायु २३.६८, स्कन्द ४.१.२५.६(लोहित श्री नामक गिरि पर अगस्त्य द्वारा स्कन्द के दर्शन), वा.रामायण ६.७६.९२(लोहिताङ्ग : मङ्गल का नाम, कुम्भ दैत्य की लोहिताङ्ग से उपमा ), द्र. नीललोहित, रोहित lohita


      लोहिताक्ष वामन ५७.६१(शिव द्वारा स्कन्द को प्रदत्त ४ प्रमथों में से एक), स्कन्द ६.१२२.१२(इन्द्र द्वारा शिव से लोहिताक्ष दैत्य को मारने की प्रार्थना )


      लोहिताङ्ग स्कन्द ४.१.१७(शिव के स्वेदबिन्दु से लोहिताङ्ग की उत्पत्ति, लोकपाल पद प्राप्ति),


      लोहिती विष्णुधर्मोत्तर १.२१५(लौहित्या नदी के शशक वाहन का उल्लेख), हरिवंश १.३.७८(बाणासुर - पत्नी, इन्द्रदमन - माता ), लक्ष्मीनारायण २.३२.४४ लोहितायनी lohitee/ lohiti


      लौगाक्षि द्र. लोगाक्षि


      लौह अग्नि १६७.२६(ग्रह यज्ञ के अन्तर्गत यजमान द्वारा लौह की शान्ति प्रदान हेतु प्रार्थना), २११.२२(लौहदान का माहात्म्य), २४५.४(धनुष निर्माण हेतु लौह, शृङ्ग अथवा काष्ठ द्रव्यों के प्रयोग का उल्लेख), भविष्य ४.१४१(राहु के लिए दान द्रव्य के रूप में लौह का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.७३.४०(मृतक हेतु लौह दान का महत्त्व ), कथासरित् ६.१.१८८, द्र. लोह lauha