यइल्लक कथासरित् ३.१.८४(वैश्य - पुत्र, पति - पत्नी की परस्पर अनुरक्तता, विरह से दोनों की मृत्यु )
यकृत वामन ७२.५८ (ऋतध्वज द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु अस्थि, यकृत आदि का अग्नि में होम, मरुतों की उत्पत्ति - अस्थीनि रोमकेशांश्च स्नायुमज्जायकृद्घनम्। शुक्रं च चित्रगौ राजा सुतार्थी इति नः श्रुतम्।।), महाभारत वन २२२.१४ ( यकृत्कृष्णायसं तस्य त्रिभिरेव बभुः प्रजाः । नखास्तस्याभ्रपटलं शिराजालानि विद्रुमम् ॥), वा.रामायण ६.५८.३० (युद्धभूमि की नदी से तुलना - यकृत्प्लीहमहापङ्कां विनिकीर्णान्त्रशैवलाम्। भिन्नकायशिरोमीनामङ्गावयवशाड्वलाम्), विष्णुधर्मोत्तर १.२३९.७ (विराट् पुरुष के यकृत-क्लोम में सुवर्ण दानों की स्थिति का उल्लेख - सुवर्णस्य च दानानि यकृल्लोमान्तराणि च । ), २२.११५.६१ (हृदयपद्म के परितः यकृत आदि की स्थिति - तस्य वामे तथा प्लीहा दक्षिणे च तथा यकृत् ॥ दक्षिणे च तथा क्लोम पद्मस्यैवं प्रकीर्तितं ।) yakrita
यक्ष अग्नि ८४.३२(८ देवयोनियों में से तृतीय), ३१३, ३२५.१५(यक्षांश मन्त्र के भूषणप्रिय होने का उल्लेख - रुद्रांशको भवेद्वीर इन्द्रांशश्चेश्वरप्रियः । नागांशो नागस्तब्धाक्षो यक्षांशो भूषणप्रियः ।।), देवीभागवत १२.८.१९(भगवती जगदम्बा द्वारा धारित रूप ; यक्ष द्वारा वायु व इन्द्र के गर्व का खण्डन), १२.१०.८८(उत्तर दिशा में स्थित यक्षलोक का वर्णन), ब्रह्म २.३८(सुमन्यु नामक यक्ष और समा नामक यक्षिणी द्वारा इल राजा का उमावन में प्रवेश कराना, इल राजा के इला होने तथा पुरूरवा की उत्पत्ति की कथा), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६.१३७(पार्वती के व्रत में यक्षों के वस्तुवाहक होने का उल्लेख - वस्तूनां वाहका यक्षास्तदध्यक्षः षडाननः ।।), ४.१७.९(विश्वकर्मा द्वारा वृन्दावन नामक नगर निर्माण का कार्य प्रारम्भ करने पर यक्ष समूहों का विविध मणियों और आभूषणों को लेकर आना), ४.६३, ब्रह्माण्ड १.२.८.३४(क्षपणार्थक क्ष धातु से यक्ष शब्द की उत्पत्ति - य एष क्षीतिधातुर्वै क्षपणे स निरुच्यते । रक्षणाद्रक्ष इत्युक्तं क्षपणाद्यक्ष उच्यत ॥), २.३.७.३७(खशा - पुत्र, स्वरूप का कथन - मातर्भक्षेत्यथोक्तो वै खादने भक्षणे च सः । भक्षावेत्युक्तवानेष तस्माद्यक्षोऽभवत्त्वयम् ॥), २.३.७.१००(यक्ष की क्रतुस्थला अप्सरा पर आसक्ति, यक्ष द्वारा वसुरुचि गन्धर्व के रूप में अप्सरा से रमण, रजतनाभ पुत्र की उत्पत्ति), २.३.७.११७(क्रतुस्थला अप्सरा से यक्षों की उत्पत्ति, वंश वर्णन), २.३.७.१६२(यक्षाः पुण्यजना नामपूर्णभद्राश्च ये स्मृताः । यक्षाणां राक्षसानां च पौलस्त्यागस्तयश्च ये ॥ नैरृतानां च सर्वेषां राजाभूदलकाधिपः ।यक्षादृष्ट्या पिबन्तीह नॄणां मांसमसृग्वसे ॥), २.३.८.७(अपां च वरुणं राज्ये राज्ञां वैश्रवणं तथा ॥ यक्षाणां राक्षसानां च पार्थिवानां धनस्य च ।), भविष्य १.५७.१३(यक्षों हेतु विविध अन्नों की बलि का उल्लेख), १.१८०.५(अरुण द्वारा गरुड हेतु सूर्य आराधक यक्षों - यक्षिणियों से शान्ति की प्रार्थना), ३.३.३१.७३(करभ नामक यक्षकिंकर द्वारा प्रभावती व नृहर नामक दम्पती का पीडन, कृष्णांश द्वारा मोचन),