उ अग्नि १२४.६ ( मूल ब्रह्म संज्ञक अ इ उ ए ओ तथा कला की व्याख्या : उकार का हृदय में नाद संज्ञक होना ) , ३४८.२ ( शिव के अर्थ में उ का प्रयोग ), नारद १.३३.१५५ ( अ, उ तथा म के क्रमश: ब्रह्मा , विष्णु और रुद्र रूप होने का उल्लेख ), २.५०.३९ ( अकार के विष्णुलोक गति - प्रद होने , उकार के स्थान पर बृहस्पति द्वारा सिद्धि प्राप्त करने और विष्णु संज्ञक मकार लिङ्ग में कपिल ऋषि द्वारा सिद्धि प्राप्त करने का उल्लेख ) , पद्म ६.२२६.२३ ( ॐ नमो नारायणाय मन्त्र के संदर्भ में अकार के विष्णु , उकार के श्री तथा मकार के पञ्चविंश जीव होने का उल्लेख ) , लिङ्ग १.९१.५४ ( अकार, उकार व मकार का क्रमश: भू , भुव: व स्व: लोकों से तादात्म्य ) , वायु २०.८ ( अकार के अक्षर , उकार के स्वरित और मकार के प्लुत होने का उल्लेख : अकार से भूलोक, उकार से भुव: और मकार से स्वर्लोक का निर्देश ) , शिव १.१०.१८ ( ओंकार की अ मात्रा की शिव के उत्तर मुख से , उकार की पश्चिम व मकार की दक्षिण मुख आदि से उत्पत्ति का उल्लेख ) , १.१६.११४ ( लिङ्गों की प्रकृति के संदर्भ में उकार के चर लिङ्ग तथा अकार के गुरु विग्रह से सम्बन्ध आदि का उल्लेख ) , १.२४.९१( त्रिपुण्ड्र की तीन रेखाओं के संदर्भ में अकार के गार्हपत्य अग्नि आदि , उकार के दक्षिणाग्नि , यजुर्वेद , नभस्तत्त्व , माध्यंदिन सवन , इच्छाशक्ति आदि से सम्बन्ध का उल्लेख ) , २.१.८.१९ ( अकार की सर्गकर्ता , उकार की मोहक व मकार की अनुग्रह कारक प्रकृति का उल्लेख ; अकार के बीज , उकार के हरि योनि तथा मकार के बीजी होने का उल्लेख ) , २.१.८.३३ ( वर्णों के न्यास के संदर्भ में उकार का दक्षिण श्रोत्र में न्यास ) , ६.३.२१ ( अकार के महद्बीज , रजोगुण , ब्रह्मा द्वारा सृष्ट , उकार के प्रकृति योनि, सत्त्वगुणात्मक, हरि द्वारा पालित तथा मकार के बीजी , तमोगुणात्मक ,संहारक हर आदि से सम्बन्धित होने आदि का उल्लेख ) , ६.३.२७ (अकार की ८ कलाओं व सद्योजात शिव से सम्बन्ध होने, उकार की १३ कलाओं तथा वामदेव शिव से सम्बन्ध होने आदि का उल्लेख ) , ६.६.६२ ( अकार के बीज , उकार के शक्ति तथा मकार के कीलक होने का उल्लेख ) , ६.६.६६ ( ब्रह्मा रूपी अकार का हृदय में , उकार का विष्णु सहित शिरोदेश में तथा रुद्र सहित मकार का शिखा में न्यास करने का उल्लेख ) , ७.१.७.२८ ( अकार , उकार , मकार आदि की बीज , योनि , बीजी आदि प्रकृतियों का उल्लेख ) , ७.१.२२.२४ ( वर्णमाला न्यास के संदर्भ में उकार का श्रवण में न्यास करने का निर्देश ) , ७.२.६.२८ ( ओंकार में उ के प्रकृति योनि , सत्त्व गुण व पालक हरि होने का कथन ) , स्कन्द १.२.५.६८ ( अकार , उकार व मकार की क्रमश: ब्रह्मा , विष्णु व रुद्र संज्ञा ; अकार से लेकर अ: कार तक १४ स्वरों का स्वायंभुव आदि १४ मनुओं से तादात्म्य ), ३.३.१६.४५ ( त्रिपुण्ड्र की तीन रेखाओं के संदर्भ में प्रत्येक रेखा के ९ देवताओं का कथन ; अ , उ तथा म का तीन रेखाओं के तीन देवताओं के रूप में उल्लेख ) , ४.२.७३.८३ ( शब्द सुनकर समाधि से जागने पर ब्रह्मा द्वारा सत्त्वगुणी अकार , रजोगुणी उकार तथा तमोगुणी मकार का दर्शन करना ) , ५.१.४.३४(उकार अग्नि की उत्पत्ति व देह में कार्य का कथन), ५.१.४.४८(उकार अग्नि को ऊर्ध्व पञ्चम वक्त्र में स्थान प्राप्ति), ५.३.४.३४ ( ब्रह्मा से उत्पन्न उकार अग्नि का गुरु ध्यान में आश्रय लेना , ब्रह्मा द्वारा उकार को चक्षु व वाक् में स्थान देना आदि ) , ५.१.४.४९ ( उकार अग्नि का सूर्य से एकाकार होना ; ब्रह्मा के पंचम शिर का रूप ) U
उक्ति अग्नि ३४२.२७ ( उक्ति शब्द की व्याख्या )
उक्थ अग्नि २७१.७ ( उक्था : वेद , आरण्यक , उक्था व ऊह नामक सामगान के ४ प्रकारों में से एक - गानान्यपि च चत्वारि वेद आरण्यकन्तथा ॥ उक्था ऊहचतुर्थञ्च मन्त्रा नवसहस्रकाः । ) , ब्रह्म १.६.९२ ( उक्थ / उक्य? : शल - पुत्र , वज्रनाभ - पिता, राम वंश ) , ब्रह्माण्ड १.२.८.५१ ( उक्त/उक्थ ? आदि की ब्रह्मा के दक्षिण मुख से उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत १.१५.६ ( उक्थ प्राण से रहित होने पर मृत कहलाने का उल्लेख - उक्थेन रहितो ह्येष मृतकः प्रोच्यते यथा ॥ ) , ३.१२.४० ( उक्थ , षोडशी आदि यागों की ब्रह्मा के पूर्व मुख से उत्पत्ति का उल्लेख ) , ११.२१.२८ ( उक्थ शस्त्रों से असु की तृप्ति कर लेने से ही हृदय में स्थित परमात्म का ज्ञान न होने का उल्लेख ) , वायु ९.४५ (उक्थ आदि की ब्रह्मा के दक्षिण मुख से उत्पत्ति का उल्लेख - छन्दांसि त्रैष्टुभङ्कर्म स्तोमं पञ्चदशन्तथा। बृहत्साममथोक्थञ्च दक्षिणात्सोऽसृजन्मुखात् ।। ) , वा.रामायण १.१४.४१( उक्थ्य : अश्वमेध यज्ञ के तीन सवनीय दिनों में से एक का नाम ) , विष्णु १.५.५४ ( उक्थ आदि की ब्रह्मा के दक्षिण मुख से उत्पत्ति का उल्लेख - यजूंषि त्रैष्टुभं छन्दः स्तोमं पंचदशं तथा । बृहत्साम तथोक्थं च दक्षिणादसृजन्मुखात् ), हरिवंश १.१५.३१( अनल - पुत्र , वज्रनाभ - पिता , राम वंश - उक्थो नाम स धर्मात्मानलपुत्रो बभूव ह । वज्रनाभः सुतस्तस्य उक्थस्य च महात्मनः ।। ) , महाभारत वनपर्व २१९.२५( तीन उक्थों द्वारा अभिष्टुत होने वाली उक्थ्य नामक अग्नि द्वारा महावाक् को उत्पन्न करने का कथन - उक्थो नाम महाभाग त्रिभिरुक्थैरभिष्टुतः। महावाचं त्वजनयत् समाश्वासं हि यं विदुः।। ), अथर्व ५.२६.३(इन्द्र उक्थामदानि अस्मिन् यज्ञे), द्र. बृहदुक्थ Uktha
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उक्षा विष्णु धर्मोत्तर ३.३०६.३३ ( इन्द्रियोपेत उक्षा का द्विजाति हेतु दान का फल कथन ) , स्कन्द ४.१.२९.३० ( गंगा सहस्रनामों में से एक ,शाब्दिक अर्थ फल सेक ) ,७.१.१७.१५२ ( रवि की पूजा में उक्षाणं पृश्निमिति ऋचा के विनियोग का उल्लेख ) , महाभारत वन १९७.१५ ( राजा शिबि द्वारा श्येन को कपोत के बदले उक्षा मांस को ओदन सहित पकाकर प्रस्तुत करने का प्रस्ताव), द्रोण १४.६१ ( अभिमन्यु द्वारा राजा पौरव की पराभव की उपमा सिंह द्वारा उक्षा की पराभव से करना ) Ukshaa
उखल अग्नि ७७.१७( उखल पूजा मन्त्र ) , भागवत १०.९.१४ ( कृष्ण का उलूखल से बंधना , दाम / रस्सी का २ अंगुल ह्रस्व होना ,यमलार्जुन का उद्धार ), द्र.उलूखल, मूसल , यमलार्जुन Ukhala
उखा महाभारत शान्ति ३१५.१५ ( उपमा : उखा के स्पर्श से अग्नि के दूषित न होने का कथन ) Ukhaa
उग्र नारद १.५६.४५० ( गण्डान्त सन्धित्रितय के उग्र होने का उल्लेख ) , १.५८.४१ ( व्यास - पुत्र शुक द्वारा उग्र तप आरम्भ करने का उल्लेख ) , पद्म २.५.१०८ ( अदिति व कश्यप - पुत्र वसुदत्त इन्द्र के उग्र तेज से युक्त होकर उग्र तप करने का उल्लेख ) , ब्रह्म १.११५.२३ ( उग्र अन्न के गर्हित होने का उल्लेख ) , ब्रह्माण्ड १.२.१०.१६, १.२.१०.८३ ( उग्र रुद्र : दीक्षा - पति , सन्तान - पिता ) , २.३.५.९४ ( मरुतों के तृतीय गण में से एक का नाम ) , २.३.७.९२ ( विक्रान्त - पिता ) , ३.४.३४.४१ ( १३ वें आवरण में स्थित रुद्रों में से एक , शतरुद्रिय प्रसंग ) , भागवत ६.६.१७ ( भूत व सरूपा - पुत्र , एकादश रुद्रों में से एक ) , मत्स्य २६५.४१( यजमान नामक देव मूर्ति के रक्षक ), मार्कण्डेय ७६.४७ / ७३.४७ ( चाक्षुष मनु की पत्नी विदर्भा के पिता का नाम ) , लिङ्ग १.२४.५३ ( ११ वें द्वापर में मुनि , लम्बोदर आदि चार पुत्रों के नाम ) , १.९५.३६ ( शिव के सब भूतों में उग्र होने का उल्लेख ) , १.९५.५५ ( शिव के सब दुष्टों में उग्र होने का उल्लेख ) , २.१३.१७ ( उग्र और ईशान शिव में समानता का उल्लेख ; उग्र देव की दीक्षा पत्नी और सन्तान पुत्र का उल्लेख ) , २.१३.२७ ( शिव का नाम, आत्मा / यजमान का रूप ) , २.४५.४२ ( भव , शर्व आदि अष्ट मूर्तियों के तत्त्वों के संदर्भ में उग्र शिव से वायु तथा त्वचा में स्पर्श की रक्षा की प्रार्थना ), वायु २३.१५२ ( ११ वें द्वापर में विष्णु के अवतार की संज्ञा , लम्बोदर आदि ४ पुत्रों के नाम ) , २७.१५ ( ब्रह्मा के चिन्तन से उत्पन्न कुमार नीललोहित द्वारा प्राप्त एक नाम ) , २७.५५ ( उग्र नामक रुद्र की दीक्षा पत्नी व सन्तान पुत्र ) , ६७.१२६ ( मरुतों के सात गणों में से तीसरे गण का एक नाम ) , विष्णु १.८.६ ( ब्रह्मा के मानस पुत्र रुद्र का एक नाम , ब्रह्मा द्वारा उग्र के स्थान, स्त्री व पुत्र का निर्धारण ) , विष्णु धर्मोत्तर ३.९६.९७ ( फलित ज्योतिष के संदर्भ में सूर्य होरा में उग्र कर्म तथा सौम्य होरा में सौम्य कर्म करने का निर्देश ) , शिव ४.३५.१२ ( शिव के सहस्रनामों में से एक ) , ५.३४.८७ ( अनूग्र : १४ वें मन्वन्तर में मनु - पुत्रों में से एक ) , ७.१.१२.४३ ( भव , शर्व आदि मूर्तियों के तत्त्वों के कथन के संदर्भ में ईश के स्पर्शमय होने और उग्र के यजमानात्मक होने का उल्लेख ) , स्कन्द १.२.१३.१७९ ( शतरुद्रिय प्रसंग में दैत्यों द्वारा शिव के राजिक लिंग की उग्र नाम से पूजा का उल्लेख ) , ४.२.६९.९८ ( उग्रेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य :उपसर्ग नाशक ), ४.२.७२.९७ (६४ वेतालों में से एक ), ४.२.९७.११३ ( उग्रेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : जाति स्मरण ) , ७.१.२५५.४२ ( राजा वृषादर्भि द्वारा ऋषियों को हेमपूर्ण उदुम्बर दान करने के प्रयास के संदर्भ में चण्ड व ऋषियों द्वारा उग्र प्रतिग्रह से डरने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३२१.११५( शूद्र द्वारा तृषित उग्रदेव द्विज को संतुष्ट करने पर उग्रदेव द्वारा दारिद्र्य नाश के उपाय का कथन : अधिक मास में दीप दान ) Ugra
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उग्रचण्डा ब्रह्मवैवर्त्त २.१९.४६ ( कार्तिकेय - शंखचूड संग्राम में काली की सहचरी उग्रचण्डा आदि द्वारा मधु पान का उल्लेख ), २.६४.८२ (अष्टदल कमल के आठ दलों /दिशाओं में उग्रचण्डा आदि अष्टनायिका देवियों की पूजा का उल्लेख ) , ४.१२०.१६( कृष्ण - बाणासुर युद्ध प्रसंग में उग्रचण्डा आदि अष्ट नायिकाओं का शिव सहित युद्ध के लिए प्रस्थान ) Ugrachandaa
उग्रजन्मा पद्म ६.७७.४२ ( ऋषि पञ्चमी व्रत माहात्म्य के अन्तर्गत उग्रजन्मा विप्र द्वारा वसिष्ठ ऋषि से माता - पिता के कुयोनि से उद्धार के उपाय की पृच्छा )
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उग्रतपा पद्म ५.७२.६ ( उग्रतपा मुनि का तप से कृष्ण - पत्नी सुनन्दा बनना ), वायु २३.१६४( १४ वें मन्वन्तर में गौतम नामक अवतार के पुत्रों में से एक ), कथासरित् ५.३.५७ ( शशिरेखा आदि विद्याधर - कन्याओं द्वारा उग्रतपा ऋषि को क्रुद्ध करना , उग्रतपा द्वारा कन्याओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप ) Ugratapaa
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उग्रदंष्ट्र देवीभागवत ९.२०.३६( उग्रदंष्ट्रा, उग्रदण्डा आदि देवियों के रत्नेन्द्रसार निर्णाण विमान पर स्थित होने का उल्लेख ) , पद्म ५.३४.२२ ( विद्युन्माली - अनुज, विद्युन्माली द्वारा राम के अश्वमेधीय हय का हरण कर लेने पर शत्रुघ्न - सेनानियों पुष्कल , हनुमान व शत्रुघ्न से युद्ध , शत्रुघ्न द्वारा भ्राता - द्वय का वध ), भागवत ५.२.२३(उग्रदंष्ट्री : मेरु की ९ कन्याओं में से एक, हरिवर्ष - पत्नी ), ६.२.२३ ( उग्रदंष्ट्री : मेरु - कन्या , हरिवर्ष - पत्नी ) , शिव २.५.३३.३६ ( उग्रदंष्ट्र , उग्रदण्ड आदि के रत्नेन्द्रसार विमान पर स्थित होने का उल्लेख ), २.५.३८.३ ( शंखचूड - शिव युद्ध प्रसंग में उग्रदंष्ट्रा व उग्रदण्डा आदि देवियों द्वारा मधुपान का उल्लेख ) , स्कन्द ५.१.६३.९६ ( विष्णु सहस्रनामों में से एक ) Ugradanshtra
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उग्रदर्शन मार्कण्डेय ८२.४२ ( महिषासुर - सेनानी , देवी से युद्ध )
उग्रदृष्टि वायु ३१.७ ( ग्रावजिन? नामक देवगण में से एक )
उग्रभट कथासरित् १२.७.२९ , १२.७.३५ ( राढा नगरी का राजा , मनोरमा - पति, लास्यवती नर्तकी से विवाह , पुत्रेष्टि द्वारा दो पुत्र प्राप्ति , ज्येष्ठ पुत्र का राज्य से निष्कासन )
उग्ररेता भागवत ३.१२.१२ (मन्यु , मनु आदि ११ रुद्रों में से एक ;११ रुद्रों की पत्नियों के नाम )
उग्रवक्त्र मार्कण्डेय ८२.४२ / ८०.१८ ( महिषासुर वध प्रसंग में देवी द्वारा महिषासुर के सेनानियों उग्रास्य , उग्रवीर्य तथा उग्रदर्शन के वध का उल्लेख ), स्कन्द १.३.२.१९.६३ ( दुर्गा द्वारा महिषासुर सेनानी उग्रवक्त्र का कुठार से वध का उल्लेख ) , ४.१.८.७२ ( उग्रास्य : नरक में यातना देने वाले यम के गणों में से एक ) , ४.२.७१.७० ( उग्रास्य : दुर्ग असुर के सेनानियों में से एक ) Ugravaktra
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उग्रश्रवा पद्म १.१.२ ( सूत, लोमहर्षण - पुत्र , पिता द्वारा उग्रश्रवा को नैमिषारण्य में पुराण कथा का आदेश ) , ६.१९८.७९ ( सूत - पुत्र , पिता की मृत्यु पर मुनियों को पुराण कथन ) , भागवत ०.१.३ ( शौनक द्वारा नैमिषारण्य में सूत से भागवत कथा श्रवण ) , ३.२०.७ ( वही) , स्कन्द ३.१.२२.७९ ( पुत्र हत्या पर उग्रश्रवा द्वारा दुष्पण्य को शाप ) Ugrashravaa
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उग्रसेन गर्ग १.५.२५ ( मरुत देवता के अंश ) , ७.१.३५ ( राजा मरुत का जन्मान्तर में उग्रसेन राजा बनना ) , ७.२+ ( उग्रसेन द्वारा राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान , प्रद्युम्न द्वारा दिग्विजय ) , ७.२.१७ ( उग्रसेन द्वारा प्रद्युम्न को खड्ग प्रदान करना ) , ९.१+ ( उग्रसेन द्वारा व्यास से भक्ति विषयक जिज्ञासा ) , १०.७ ( उग्रसेन द्वारा अश्वमेध यज्ञ का उद्योग ), गरुड ३.९.४(१५ अजान देवों में से एक), पद्म २.४८.१ ( पद्मावती - पति , गोभिल दैत्य द्वारा उग्रसेन का रूप धारण करके उग्रसेन की पत्नी से समागम , कंस की उत्पत्ति ) , ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०४.५० ( उग्रसेन का द्वारका में प्रवेश व देवों , मनुष्यों आदि द्वारा उग्रसेन का अभिषेक ) , ब्रह्माण्ड १.२.२३.१० ( उग्रसेन गन्धर्व की सूर्य रथ में स्थिति ) , भविष्य ३.३.२२.२९, ३.३.३२.५१ ( उग्रसेन का कलियुग में बलीठाठ ग्राम - अधिपति वीरसेन के रूप में जन्म ), ३.३.३२.३६ ( द्वापर युग के उग्रसेन नामक कौरव का कलियुग में पुण्ड्र देश के राजा के पुत्र के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ) , भागवत ९.२२.३५ ( परीक्षित के ४ पुत्रों में से एक ) , ९.२४.२४ ( उग्रसेन के कंस आदि ९ पुत्रों तथा कंसा , कंसवती आदि ५ पुत्रियों के नाम ) , १२.११.३८ ( नभस्य / भाद्रपद मास में उग्रसेन गन्धर्व की सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ) , मत्स्य ४४.७० ( आहुक व काश्या - पुत्र , उग्रसेन के पुत्रों के नाम ), वायु ९६.१३१/२.३४.१३१ ( उग्रसेन के कंस आदि ९ पुत्रों तथा कर्म , धर्मवती आदि ५ पुत्रियों के नाम ) , विष्णु ५.२१ ( कंस वध के पश्चात उग्रसेन का राज्याभिषेक , सुधर्मा सभा में विराजमान होना ) , विष्णुधर्मोत्तर १.१३५.१ ( उग्रसेन गन्धर्व का उर्वशी को पृथिवी से वापस लाने के लिए गमन ) , स्कन्द १.२.५४.१८ ( जटायु के पूर्वज ? - राजा उग्रसेन द्वारा श्रीकृष्ण से नारद ऋषि की चपलता का कारण पूछना ), ७.१.१.२९ ( उग्रसेनेश्वर लिंग माहात्म्य : अक्षमाला शूद्रा द्वारा स्थापना , अन्धासुर - पुत्र उग्रसेन द्वारा पुत्रार्थ पूजा ) , हरिवंश १.३७.३० ( आहुक - पुत्र , कंस आदि ९ पुत्रों के नाम ) , २.३२.५५ ( उग्रसेन द्वारा कृष्ण के साथ मिलकर कंस की अन्त्येष्टि क्रिया करना ) , २.३६.२ ( जरासन्ध - सेनानी भीष्मक से युद्ध ) Ugrasena
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उग्रा नारद २.४३.८० ( गंगा स्तोत्र में गंगा की उग्रा नाम से अर्चना ) , ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७३ ( ४८ शक्ति देवियों में से एक ) , स्कन्द ४.१.२७.६९ ( गंगा सहस्रनामों में से एक ) , ४.२.७२.६२ ( उग्रा देवी द्वारा पादाङ्गुलियों की रक्षा ) Ugraa
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उग्रायुध भविष्य ३.३.३२.३१ ( उग्रायुध आदि १० कौरवों का कलियुग में कैकय राजा के पुत्र बनना ) , भागवत ९.२१.२९ ( नीप - पुत्र , क्षेम्य - पिता , भरत / भरद्वाज वंश ) , मत्स्य ४९.५९ ( उग्रायुध द्वारा तप , शरणागत जनमेजय को राज्य दिलाने के लिए नीपवंशियों का शाप द्वारा संहार ) , वायु ९९.१८९ / २.३७.१८८ ( कृति - पुत्र , क्षेम - पिता , वंश वर्णन ) , विष्णु ४.१९.५३ (वही), हरिवंश १.२०.४४ ( कृत - पुत्र , क्षेम्य - पिता , नीपों का संहार , भीष्म - माता सत्यवती पर आसक्ति के कारण भीष्म द्वारा उग्रायुध का वध ) Ugraayudha
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उग्राश्व पद्म ५.६७.४०( कामगमा - पति ), वराह ४३.१५ ( वामन द्वादशी व्रत के चीर्णन से हर्यश्व द्वारा उग्राश्व नामक पुत्र प्राप्त करना )
उच्चाटन अग्नि १३८ ( शत्रु के विरुद्ध उच्चाटन कर्म विधि ), भविष्य ४.५.३७ ( उच्चाटन कर्म की पाप के अन्तर्गत गणना ) , स्कन्द १.२.४१.५२ ( वही)
द्र. अभिचार , शत्रु
उच्चैःश्रवा गर्ग ७.४१.१ ( हिरण्याक्ष - पुत्र शकुनि द्वारा उच्चैःश्रवा पर आरूढ होकर श्रीकृष्ण से युद्ध करने का उल्लेख ) , देवीभागवत ३.१३.२२ ( समुद्र मन्थन से उत्पन्न उच्चैःश्रवा अश्व आदि के इन्द्र को प्राप्त होने का उल्लेख ), ५.२३.२१( उच्चैःश्रवा अश्व के ७ मुख होने का उल्लेख ), ६.१७.५१ ( सूर्य - पुत्र रेवन्त का उच्चैःश्रवा पर आरूढ होकर विष्णु दर्शन हेतु गमन , लक्ष्मी की उच्चैःश्रवा पर आसक्ति के कारण विष्णु द्वारा लक्ष्मी को वडवा होने का शाप ) , पद्म १.४७.१२९ ( कद्रू- विनता आख्यान में सर्पों द्वारा उच्चैःश्रवा अश्व को विष द्वारा कृष्ण बनाने का उल्लेख ), ७.५.७० ( माधव द्वारा समुद्र पार करने के लिए उच्चैःश्रवा अश्व व मन्दुरा अश्वी के अश्व पुत्र की प्राप्ति ) , ब्रह्म १.६२.४० ( श्रीकृष्ण के स्नान / अभिषेक में देवों आदि के सहित उच्चैःश्रवा हय के भाग लेने का उल्लेख ) , ब्रह्मवैवर्त्त १.२०.४९ ( पत्नी कलावती द्वारा गर्भ धारण करने के उपलक्ष्य में द्रुमिल गोप द्वारा पञ्च लक्ष उच्चैःश्रवा आदि का ब्राह्मणों को दान करने का उल्लेख ) , भविष्य १.३२.१० ( एकनयना कद्रू द्वारा श्वेत वर्ण वाले उच्चैःश्रवा अश्व में कृष्ण बालों को देखना तथा कद्रू- विनता आख्यान ) , ४.३६.६ ( वही) , भागवत ८.८.३ ( समुद्र मन्थन से उच्चैःश्रवा की उत्पत्ति , बलि द्वारा उसे ग्रहण करने और इन्द्र द्वारा न करने का उल्लेख ) , मत्स्य २५१.३ ( उच्चैःश्रवा अश्व की समुद्र मन्थन से उत्पत्ति व सूर्य द्वारा प्राप्ति का उल्लेख ), लिङ्ग २.३९.५( हिरण्याश्व दान के संदर्भ में उच्चैःश्रवा अश्व दान विधि का वर्णन ), स्कन्द १.१.१८.७७ ( कितव / बलि द्वारा विश्वामित्र को उच्चैःश्रवा अश्व दान करने आदि का कथन ) , १.१.१८.१०७ ( कितव / बलि द्वारा गालव को उच्चैःश्रवा अश्व दान करने का उल्लेख ) , ४.१.५०.६ ( कद्रू- विनता आख्यान : सर्पों द्वारा श्वेत उच्चैःश्रवा अश्व के बालों में प्रवेश करके उसे कृष्ण बनाना ), ५.१.४४.११ ( समुद्र मन्थन से उच्चैःश्रवा आदि के प्राकट्य का उल्लेख ) , ५.१.४४.२५ ( सूर्य द्वारा समुद्र मन्थन से उत्पन्न सात मुखों वाले उच्चैःश्रवा अश्व की प्राप्ति का उल्लेख ) , ५.२.१६.४ ( तुहुण्ड दानव द्वारा इन्द्र के उच्चैःश्रवा अश्व के हरण का उल्लेख ), ५.३.७२ ( कद्रू- विनता आख्यान ), ५.३.१३१ ( वही), लक्ष्मीनारायण ३.१६.४९( इन्द्र के वाहन उच्चैःश्रवा की विष्णु के हस्त तल से उत्पत्ति का उल्लेख ), कथासरित् ४.२.१८१ (सूर्य के अश्व के वर्ण के विषय में कद्रू- विनता आख्यान ) , ८.३.२२१ ( समुद्र मन्थन से प्रकट उच्चैःश्रवा अश्व की नमुचि असुर द्वारा प्राप्ति , उच्चैःश्रवा अश्व के घ्राण मात्र से असुरों के जीवित हो जाने का उल्लेख, इन्द्र द्वारा नमुचि से उच्चैःश्रवा अश्व की याचना व प्राप्ति ) , १०.३.६६ ( सोमप्रभ द्वारा उच्चैःश्रवा - पुत्र आशुश्रवा की प्राप्ति ) , १८.४.१३ ( सूर्य के रथ के उच्चैःश्रवा अश्व द्वारा विक्रमादित्य राजा की अश्वी से रत्नाकर नामक अश्व उत्पन्न करना ), महाभारत आदि २०.१ ( विनता - कद्रू आख्यान ) , १९४.५३ ( अवीक्षित के ८ पुत्रों में से एक ) , उद्योग १०२.१२ ( समुद्र मन्थन से उच्चैःश्रवा आदि की उत्पत्ति ) , द्रोण १९६.३० ( अश्वत्थामा द्वारा जन्म लेते ही उच्चैःश्रवा की भांति हिनहिनाना ) Uchchaihshravaa
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उच्छिष्ट अग्नि १५७.१७ ( मृतक के अशौच के संदर्भ में उच्छिष्ट के निकट एक पिण्ड देने का विधान ), कूर्म २.१४.७१( उच्छिष्ट व श्राद्ध भोजन का मन से भी चिन्तन न करने का निर्देश ), २.१७.९ ( उच्छिष्ट व उच्छिष्टभोजी के अन्न के ग्रहण का निषेध ), गरुड १.९९.२३ ( श्राद्ध में उच्छिष्ट सन्निधि में पिण्डदान का निर्देश ), देवीभागवत ११.२३.१( साधक द्वारा प्राणाग्निहोत्र के पश्चात् उच्छिष्ट भाग भोगियों को पात्रान्न देने का निर्देश ), ११.२३.५( विप्र का उच्छिष्ट से स्पर्श होने पर शुद्धि विधान कथन ), नारद १.१.७१( पुराणादि का उच्छिष्ट देश में कथन करने पर नरक प्राप्ति का उल्लेख ), १.२५.३१ (शिष्य हेतु उच्छिष्ट भोजन का निषेध ), १.५१.१२६ ( उच्छिष्ट की सन्निधि में पिण्ड देने का निर्देश ), १.६७.५० ( अर्चना में पुनराचमनीयक दान के संदर्भ में ईश्वर के स्मरण मात्र से उच्छिष्ट के शुद्ध होने का उल्लेख ), १.६७.१००( शिव, विष्णु, गणेश आदि देवों के उच्छिष्ट भोजियों चण्डेश, विश्वक्सेन, वक्रतुण्ड आदियों के नाम ), पद्म ३.५३.७१( उच्छिष्ट व श्राद्ध भोजन का मन से भी चिन्तन न करने का निर्देश ), ३.५६.९ ( उच्छिष्ट भोजी का अन्न ग्रहण करने का निषेध ), ७.८.१० ( उच्छिष्ट को गङ्गा में फेंकने का पातक कथन ), ७.१६.१२ (उच्छिष्ट अथवा अनुच्छिष्ट का ज्ञान न रखने वाले हरिभक्त शबर की कथा ), ब्रह्म १.११३.२८ ( उच्छिष्ट के वर्जन करने का निर्देश ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२१.७२( विप्रों के उच्छिष्ट का ग्रहण करने से पाप नष्ट होने आदि का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.१४.१०१( उच्छिष्टों के संस्पर्श , संभाषण अथवा भक्षण पर प्रायश्चित्त कथन ), भागवत १.५.२५( नारद द्वारा पूर्वजन्म में विप्रों के उच्छिष्ट का सेवन करने से पाप नष्ट होने का कथन ), ६.१८.६० ( इन्द्र द्वारा उच्छिष्टा दिति के गर्भ का छेदन ), ९.४.८( नाभाग के दायाद के संदर्भ में यज्ञ में उच्छिष्ट पर रुद्र का अधिकार होने का कथन ), ११.६.४६ ( उद्धव का स्वयं को कृष्ण का उच्छिष्ट भोजी कहना ), मत्स्य १७.५७ ( उच्छेष के दासवर्ग व पितरों का भाग होने का कथन ), मार्कण्डेय ३४.३१/३१.३१ (उच्छिष्ट अवस्था में आलाप, स्वाध्याय आदि आदि न करने का निर्देश ), ५१.३४/४८.३४ ( स्वयंहारिका द्वारा मनुष्यों के उच्छेष आदि का हरण करने का उल्लेख ), वा.रामायण २.११९.२० ( उच्छिष्ट तापस व ब्रह्मचारी का राक्षसों द्वारा भक्षण का उल्लेख ), लिङ्ग १.७९.५ ( उच्छिष्ट भक्त द्वारा शिव की पूजा से पैशाच स्थान प्राप्ति का कथन ), वराह २०२.६९( उच्छिष्ट अन्न प्रदाता की नरक में गति का कथन ), वामन १४.७८ ( उच्छिष्ट को गृह से बाहर फेंकने का विधान ), विष्णु ३.११.१० ( वही), शिव २.१.१३.१५ ( उच्छिष्ट वस्त्र से स्नान न करने का निर्देश ), विष्णु धर्मोत्तर १.२३१.३३ ( असुर ग्रह पीडित व्यक्ति द्वारा उच्छिष्ट भैरव नीरस रव करने का उल्लेख ), २.७३.२१९ ( रजस्वला स्त्री द्वारा उच्छिष्ट का संस्पर्श कर लेने पर शुद्धि न करने तक भोजन न करने का निर्देश ), २.७७.३ ( अशौच समाप्त होने पर उच्छिष्ट की सन्निधि में एक पिण्ड रखने का निर्देश ), ३.२३३.१५ ( उच्छिष्ट होकर शीर्ष का स्पर्श न करने का निर्देश ), स्कन्द १.२.४१.१४९( उच्छिष्ट - दूषित व्यक्ति द्वारा सूर्य दर्शन का निषेध ) , २.२.३८.३ ( भगवद् उच्छिष्ट / प्रसाद माहात्म्य ), ४.१.३५.२२८( भोजन के अन्त में उदक पान करके पीतशेष को भूमि पर गिराने से उच्छिष्टोदक इच्छुकों की तृप्ति होने का कथन ), ६.८८.४५ ( गर्भवती नारी द्वारा उच्छिष्ट अवस्था में प्रसर्पण करने पर उनके गर्भ का कालयवनों का भोजन होने का कथन ), ६.८८.४६ ( सूतिका भवन में उच्छिष्ट उत्पन्न होने पर बालक का कालयवनों का भोजन होने का उल्लेख ), ६.८८.५३ ( उच्छिष्ट स्थिति में बैठे पुरुष का कालयवनों का भोजन होने का उल्लेख ), ६.२१८.९ ( पात्र प्रक्षालन से भूमि पर प्राप्त उच्छिष्ट से प्रेतों आदि की तृप्ति होने का कथन ), ६.२२४.३५( श्राद्ध में उच्छिष्ट सन्निधि में पितृवेदी बनाने का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण १.२९४.५४( उच्छिष्ट आदि से मल मास की उत्पत्ति, मल मास की महिमा आदि ), ४.६६.१२ ( कथा के उच्छिष्ट भोजन से गृध्र की मुक्ति की कथा ), महाभारत आदि ३.१०७(उत्तंक द्वारा उच्छिष्ट अवस्था में पतिव्रता क्षत्राणी के दर्शन न कर पाने का उल्लेख - न्न हि सा क्षत्रिया उच्छिष्टेनाशुचिना शक्या द्रष्टुं ), वन ६५.६८ ( नल से वियोग होने पर दमयन्ती द्वारा उच्छिष्ट आदि भक्षण न करने की शर्त पर चेदिराज के भवन में निवास का उल्लेख), १३६.१४( कृत्या द्वारा कमण्डलु के हरण पर यवक्रीत मुनि के उच्छिष्ट होने और राक्षस द्वारा मारे जाने की कथा ), २६०.१७( दुर्वासा द्वारा महर्षि मुद्गल द्वारा प्रदत्त अन्न का भक्षण करके उच्छिष्ट अन्न को सारे अङ्गों में लपेट लेने का उल्लेख ), भीष्म ४१.१०( उच्छिष्ट भोजन तामस पुरुष को प्रिय होने का उल्लेख ), कर्ण ४१.१२( शल्य द्वारा कर्ण को उच्छिष्ट भोजी काक द्वारा हंस से प्रतिस्पर्धा करने के आख्यान का वर्णन ), शान्ति ११.७( पक्षी रूप धारी इन्द्र द्वारा ऋषियों को उच्छिष्ट भोजन व विघस भोजन /यज्ञशेष में अन्तर समझाना ), २२८.५९ (दैत्यों के आचार के वर्णन के अन्तर्गत दैत्यों द्वारा उच्छिष्ट करों से घृत का स्पर्श करने का उल्लेख ), अनुशासन १०४.६७( उच्छिष्ट होकर शयन करने अथवा शीर्ष का स्पर्श करने का निषेध ), १०४.८२( गृह से दूर उच्छिष्ट उत्सर्जन आदि करने का निर्देश ), आश्वमेधिक ५७.२३(उच्छिष्ट अवस्था में दिव्य कुण्डल धारण करने पर यक्षों द्वारा हरण का उल्लेख ), मौसल ३.३२ ( यादवों के परस्पर संहार के संदर्भ में यादव वीरों द्वारा सात्यकि पर उच्छिष्ट भाजनों द्वारा प्रहार का उल्लेख ), द्र. नैवेद्य , प्रसाद Uchchhishta
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उज्जयन्त स्कन्द ७.२.१०.१२ (उज्जयंतगिरेर्मूर्ध्नि गौरीस्कन्दगणेश्वराः ॥ भावयंतो भवं सर्वे संस्थिता ब्रह्मवासरम् ॥)
उज्जयिनी भागवत ११.२३.६ ( अवन्तिका निवासी कृपण किन्तु तितिक्षु ब्राह्मण का वृत्तान्त ) , स्कन्द ३.३.५.१२ ( उज्जयिनी के राजा चन्द्रसेन द्वारा प्राप्त चिन्तामणि के अन्य राजाओं द्वारा हरण की चेष्टा का वृत्तान्त ) , ५.१.१+++ ( स्कन्द पुराण का अवन्तिका खण्ड ) , ५.१.२६.३३ ( उज्जयिनी के अन्तर्गत पंचेशानी आदि तीर्थों की यात्रा का वर्णन , उज्जयिनी व अवन्तिका देवियों के दर्शन का महत्व कथन ) , ५.१.३६.१ ( विभिन्न कल्पों में उज्जयिनी के ७ नाम व उनके हेतुओं का कथन) ऋ५.१.४३.५३ ( उज्जयिनी नाम हेतु कथन : शिव द्वारा त्रिपुर असुर पर उज्जिति प्राप्ति ), ५.१.४३.५७ ( गिरा प्राप्ति हेतु उज्जयिनी में निवास का निर्देश ) , ५.२.१++ ( अवन्ती /उज्जयिनी के अन्तर्गत ८४ लिङ्गों का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण २.२८३.५५( शुक - पत्नी, बालकृष्ण को मणि, मौक्तिक हार आदि देने का उल्लेख ), कथासरित् २.३.३१( उज्जयिनी के राजा चण्डमहासेन का वृत्तान्त : देवी से खड्ग प्राप्ति , अंगारकासुर का वध, अंगारवती से विवाह , स्व - पुत्री वासवदत्ता को संगीत की शिक्षा देने हेतु वत्सराज उदयन की नियुक्ति , वासवदत्ता व उदयन का विवाह आदि ) , ३.१.९७ ( उज्जयिनी के राजा पुण्यसेन द्वारा छल से शत्रु पर विजय पाने का दृष्टान्त ) , ५.१.८५ ( उज्जयिनी के राजपुरोहित शंकरस्वामी का शिव व माधव नामक धूर्त्तों द्वारा छले जाने का वृत्तान्त ) , ६.१.१३५ ( उज्जयिनी के राजा विक्रम सिंह का युद्ध के अभाव में व्याकुल होना, आखेट कर्म के लिए प्रस्थान, दो ब्राह्मण कुमारों से वार्तालाप व ब्राह्मण कुमारों को प्रश्रय देने का वृत्तान्त ), ६.४.७२ ( उज्जयिनी के राजा विक्रमसेन की कन्या तेजस्वती के दैवयोग से सोमदत्त राजपुत्र से विवाह का वर्णन ) , ७.३.३ ( उज्जयिनी के वणिक् - पुत्र निश्चयदत्त के अनुरागपरा विद्याधरी से विवाह , वानर रूप धारी सोमदत्त ब्राह्मण कुमार से भेंट आदि का वृत्तान्त ) , ८.६.४ ( गुणशर्मा ब्राह्मण द्वारा उज्जयिनी के राजा महासेन की पांच बार प्राण रक्षा करने , रानी अशोकवती की गुणशर्मा में आसक्ति तथा गुणशर्मा के वध की चेष्टा का वृत्तान्त ) , ८.६.१५९ ( उज्जयिनी निवासी गुणशर्मा ब्राह्मण का जीवन - वृत्त : आदित्यशर्मा पिता तथा सुलोचना यक्षिणी से जन्म होना , अग्निदत्त ब्राह्मण की कन्या से विवाह , राजा महासेन को पराजित करना ) , १०.२.४६ ( कुमुदिका वेश्या द्वारा उज्जयिनी में कैद अपने प्रेमी श्रीधर ब्राह्मण - पुत्र को बन्धन - मुक्त कराने के उद्योग का वर्णन ) , १०.९.१५८ ( उज्जयिनी में मूर्ख उपाध्याय द्वारा मूषकों के विनाश के लिए मार्जार के भ्रम में ब्रह्मचारी को पालने का दृष्टान्त ) , १२.२.२९ ( वेताल द्वारा उज्जयिनी के राजा की कन्या शशांकवती के अयोध्या के राजकुमार मृगाङ्कदत्त की पत्नी बनने की भविष्यवाणी ) , १२.२.१६० ( उज्जयिनी निवासी ब्राह्मण - कुमारी लावण्यमञ्जरी की ब्राह्मण कुमार कमलोदय में आसक्ति के कारण अगले जन्म में रूपवती वेश्या बनने का कथन ) , १२.१२.५ ( उज्जयिनी में हरिस्वामी ब्राह्मण की कन्या सोमप्रभा द्वारा वीर , ज्ञानी अथवा विज्ञानी से विवाह की शर्त्त का वृत्तान्त ) , १२.१६.६ ( उज्जयिनी के विभिन्न युगों में नामों का उल्लेख , राजा वीरदेव की पुत्री अनङ्गरति के चार विज्ञानियों से विवाह के प्रश्न का वृत्तान्त ), १२.१८.३ ( उज्जयिनी के राजा धर्मध्वज की इन्दुलेखा , तारावली व मृगाङ्कवती नामक तीन रानियों के सुकुमारत्व का वृत्तान्त ) , १२.२५.९ ( उज्जयिनी में ब्राह्मणकुमार चन्द्रस्वामी द्वारा तपस्वी से विद्या सीखने में असफल होने का वृत्तान्त ) , १२.३५.१४ ( उज्जयिनी नगरी में वेताल आदि द्वारा भी प्रवेश करने में असफलता का कथन ), १२.३५.९५(उज्जयिनी में प्रवेश में कठिनाई), १२.३६.१ (अयोध्या के राजकुमार मृगाङ्कदत्त द्वारा उज्जयिनी के राजा कर्मसेन की पुत्री शशांकवती को प्राप्त करने का विस्तृत वृत्तान्त ), १६.१.१३ ( उज्जयिनी के राजकुमार अवन्तिवर्धन की पत्नी सुरतमञ्जरी के इत्यक द्वारा हरण आदि का वृत्तान्त ), १६.१.६४ ( गोपालक - अनुज पालक का उज्जयिनी में राज्य पर अभिषिक्त होना ) , १६.२.२५ ( उज्जयिनी में जलांजलि दान उत्सव का कारण वर्णन : राजा चण्डमहासेन द्वारा अङ्गारक राक्षस का वध व अङ्गारक द्वारा जलाञ्जलि दान की मांग ) , १८.१.२७ ( माल्यवान नामक शिवगण का उज्जयिनी के राजा महेन्द्रादित्य के पुत्र विक्रमादित्य के रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त ) , १८.२.५ ( उज्जयिनी नगरी में विक्रमादित्य द्वारा मणिभद्र यक्ष - पत्नी मदनमञ्जरी की कापालिक से रक्षा का वृत्तान्त ) , १८.२.३३ ( उज्जयिनी नगरी के डाकिनेय कितव / जुआरी द्वारा श्मशान में महामांस विक्रय के द्वारा रूप और प्रभाव प्राप्त करने तथा कितवों व ब्रह्मराक्षसों से स्वयं की रक्षा करने का वृत्तान्त ), १८.२.७२ ( उज्जयिनी नगरी में ठिण्ठाकराल कितव /जुआरी द्वारा देवताओं से कितव में धन प्राप्त करने , महाकाल की उपासना से कलावती अप्सरा को प्राप्त करने तथा इन्द्र के शाप से कलावती की रक्षा करने का वृत्तान्त ) , १८.५.१६९ ( उज्जयिनी के धूर्त्त मूलदेव द्वारा पाटलिपुत्र नगरी में ब्राह्मण कन्या से विवाह , पत्नी का परित्याग व पत्नी द्वारा पति की पुन: प्राप्ति का वृत्तान्त ), महाभारत वन ८८.२१ ( सुराष्ट्र देश में उज्जयन्त शिखर के क्षिप्र सिद्धिकर होने का उल्लेख ) , ८८.२३ ( सुराष्ट्र में गिरि पर तप्त अङ्ग होकर तप करने से नाक /स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख ), दृ.अवन्तिका , महाकालUjjayinee
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उज्जानक ब्रह्म १.५.६१ ( उत्तंक - कुवलाश्व - धुन्धु प्रसंग में समुद्र का नाम उद्दालक ) , विष्णुधर्मोत्तर १.१६ ( बालुका पूर्ण उज्जानक समुद्र में धुन्धु राक्षस का वास , कुवलाश्व द्वारा धुन्धु का वध ) Ujjaanaka
उज्जीविक विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१ ( २० मध्यम ग्रामिकों में से एक )
उज्ज्वल पद्म २.८५.३२ ( कुञ्जल शुक - पुत्र , पिता से दृष्ट आश्चर्य के रूप में दिव्या देवी के पतियों का मरण कथन ; कुञ्जल द्वारा रहस्योद्घाटन ), ७.१०.४६( दुष्ट राजा सुवर्ण द्वारा उज्ज्वला वेश्या के गृह में नारायण शब्द उच्चारण से स्वर्ग में जाने की कथा ), कथासरित् ८.२.३५० ( उज्ज्वला : हा हा गन्धर्व - कन्या , महल्लिका - सखी , सूर्यप्रभ द्वारा वरण ), द्र. समुज्ज्वल Ujjvala
उञ्छ पद्म ६.८१.१४( उञ्छ वृत्ति द्विज द्वारा राजा शिबि को गङ्गा माहात्म्य का वर्णन ), महाभारत शान्ति ३५२(उञ्छवृत्ति उपाख्यान का आरम्भ ), अनुशासन १४१.९१( उञ्छ वृत्ति से जीवन निर्वाह करने वाले ऋषियों के धर्म का निरूपण ) Unchha
उटज स्कन्द ४.२.६५.८६ ( उटजेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : निर्भयता प्राप्ति )
उडुप भागवत ३.२.८(यादवों द्वारा श्रीहरि को न पहचानने की उडुप/चन्द्रमा के जल में निवास करते समय मीनों द्वारा न पहचानने से उपमा)
उड्डीवी कथासरित् १०.६.८ (काकराज मेघवर्ण का एक मन्त्री , उलूक द्वारा आक्रमण पर राजा से स्व प्रतिक्रिया व्यक्त करना )
उड्डीशडामर गर्ग ७.१५.३ (उड्डीशडामर देश के राजा बृहद्बाहु पर प्रद्युम्न की दिग्विजय )
उतथ्य गर्ग ५.१२.२ ( उतथ्य मुनि द्वारा अपने पांच पुत्रों को चाणूर , मुष्टिक आदि पांच मल्ल बनने का शाप देने का वृत्तान्त ) , देवीभागवत ३.१०.१ ( देवदत्त द्विज द्वारा पुत्रेष्टि से उतथ्य नामक मूर्ख पुत्र प्राप्त करने , उतथ्य द्वारा सत्यव्रत नाम प्राप्ति , सत्यव्रत द्वारा शरविद्ध कोल / शूकर को देखकर ऐ बीज उच्चारण तथा सत्यव्रत के विद्वान बनने का वृत्तान्त ) , ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.२ ( आङ्गिरा के तीन पुत्रों में से एक , बृहस्पति व शम्बर - भ्राता ) , ब्रह्माण्ड १.२.३२.९९ ( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक ) , २.३.७३.९० ( १५ वें त्रेतायुग में मान्धाता नामक अवतार के पुरोहित ), ३.४.१.५९ ( मरीचिगर्भ देवगण में से एक ), भविष्य ४.९३.३० ( उतथ्य का अङ्गिरा से श्रेष्ठता विषयक विवाद : उतथ्य के बुलाने पर सूर्य का न आना , अङ्गिरा के कहने पर सूर्य का आना आदि ) , भागवत ४.१.३५ ( अङ्गिरा - पुत्र , बृहस्पति भ्राता , स्वारोचिष मन्वन्तर में ख्याति का उल्लेख ) , मत्स्य ४७.२४३ ( १५ वें त्रेतायुग में उतथ्य /उत्तङ्क द्वारा पुरोहित पद को सुशोभित करने का उल्लेख ) , १४५.९२ ( उतथ्य द्वारा तप से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख ) , वायु ५९.९० ( ज्ञान से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक ) , ५९.१०१ ( ३३ मन्त्रकर्त्ता अङ्गिरसों में से एक ) , ६५.१०० ( अङ्गिरा व सुरूपा के पुत्रों में से एक ) , विष्णु ४.१९.१६ ( उतथ्य - पत्नी ममता के गर्भ में बृहस्पति द्वारा वीर्य स्थापन , गर्भ में स्थित दीर्घतमा द्वारा बृहस्पति के गर्भ पर पाद प्रहार की कथा ) , शिव ३.५.१९ ( १७ वें द्वापर में गुहावासी अवतार के पुत्र ) , ५.२५.२३ ( उतथ्य नामक तारे का उल्लेख ) , ७.२.९.१६ ( शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक ) , महाभारत आदि ६६.५ ( अङ्गिरा - पुत्र , बृहस्पति व संवर्त - भ्राता ) , शान्ति ९०.१ व ९१.१ ( उतथ्य द्वारा मान्धाता को राजा के कर्तव्य / धर्म तथा पाप नाश के विषय में उपदेश का वर्णन ) , अनुशासन १५४.१२ ( उतथ्य द्वारा सोम - कन्या भद्रा से विवाह , वरुण द्वारा भद्रा का अपहरण , उतथ्य द्वारा सम्पूर्ण जल के पान पर वरुण द्वारा भद्रा को मुक्त करने का वृत्तान्त ), लक्ष्मी नारायण १.४४५.४९ ( बृहस्पति द्वारा उतथ्य - भार्या का हरण करने के कारणस्वरूप चन्द्रमा द्वारा बृहस्पति - भार्या तारा का हरण ) , २.३१.७८ ( बृहस्पति द्वारा उतथ्य - पत्नी ममता में स्व गर्भ स्थापित करने की कथा ), दृ. उशिज Utathya
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उत्कच गर्ग १.१४ ( हिरण्याक्ष - पुत्र , लोमश शाप से शकटासुर बनना ), ७.४२.१९ ( पूर्व जन्म में परावसु गन्धर्व - पुत्र , अपान्तरतमा मुनि से कल्याण का उपाय पूछना ) , ब्रह्माण्ड २.३.७.१३८ ( उत्कचा : खशा - पुत्री , औत्कचेय राक्षस गण - माता ), भागवत ७.२.१८ ( हिरण्याक्ष व रुषाभानु के ९ पुत्रों में से एक) , वायु ४०.१७ (औत्कच राक्षसों का मर्यादा पर्वत पर वास ) , ६९.१७० ( उत्कचा : खशा - पुत्री , उत्कचेय राक्षस गण की माता ), १०४.७१/२.४२.७३( व्यास द्वारा उत्कच में य र ल व वर्णों का दर्शन ) Utkacha
उत्कट द्र. पुष्पोत्कटा
उत्कर लक्ष्मीनारायण ४.७१.१( यज्ञ के उत्कर में प्रसाद मिश्रित उच्छिष्ट के भक्षण से नकुल की मुक्ति, नकुल के पूर्व जन्म का वृत्तान्त - गतोऽस्मि क्षुधया त्वत्रोत्करोच्छिष्टं प्रजग्धिवान् । तेन नष्टानि पापानि ममाऽवशेषकाण्यपि ।। ), तैत्तिरीय ब्राह्मण ३.७६.३, utkara
Vedic contexts on Utkara
उत्कल गर्ग २.५.३० ( हयग्रीव दैत्य - पुत्र , जाजलि ऋषि के शाप से बकासुर बनने का वृत्तान्त - हयग्रीवसुतो दैत्य उत्कलो नाम हे नृप । रणेऽमरान् विनिर्जित्य शक्रछत्रं जहार ह ॥ ) , नारद २.५२.८+ ( उत्कल क्षेत्र माहात्म्य वर्णन : राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त ) , पद्म १.८.१२३ ( सुद्युम्न - पुत्र , उत्कला नगरी का राजा ) , ब्रह्म १.४०.४६+ ( उत्कल / विरज क्षेत्र माहात्म्य : राजा इन्द्रद्युम्न की यात्रा का वृत्तान्त ) , ब्रह्मवैवर्त्त २.४९.६७+ ( राजा उत्कल के जीवन - वृत्त का वर्णन : राजसूय यज्ञों के अनुष्ठान से उत्कल द्वारा सुयज्ञ नाम प्राप्ति , ब्राह्मण अतिथि के तिरस्कार पर शाप प्राप्ति , विभिन्न ऋषियों द्वारा अतिथि महत्व व कृतघ्नता दोष का निरूपण , सुतपा नामक अतिथि ब्राह्मण द्वारा नृप को राधा मन्त्र का दान ) , ब्रह्माण्ड १.२.१६.४२ ( मध्यदेश के जनपदों में से एक ) , २.३.७.३५८ ( उत्कल से लेकर कावेरी के पश्चिम तक वामन वन के स्थान का उल्लेख - अपरेणोत्कलं चैव कावेरीभ्यश्च पश्चिमम् ॥ एकसूकात्मजस्यैतद्वामनस्य वनं स्मृतम् । ) , भागवत ४.१०.२ ( ध्रुव व इला - पुत्र ) , ४.१३.६ ( ध्रुव - पुत्र उत्कल की चरित्र महिमा का कथन - स जन्मनोपशान्तात्मा निःसङ्गः समदर्शनः । ददर्श लोके विततं आत्मानं लोकमात्मनि ॥.. ) , ५.१५.१५ ( उत्कला : सम्राट - पत्नी , मरीचि - माता , गय वंश ), ६.१०.२० ( वृत्रासुर - सेनानी , इन्द्र की सेना से युद्ध - पुलोमा वृषपर्वा च प्रहेतिर्हेतिरुत्कलः । दैतेया दानवा यक्षा रक्षांसि च सहस्रशः ॥ ) , ८.१०.३३ ( बलि - सेनानी ,मातृकाओं से युद्ध ) , ९.१.४१ ( सुद्युम्न के तीन पुत्रों में से एक , गय - भ्राता ) , मत्स्य १२.१७ ( वही) , १४५.१०३ ( मन्त्रकर्त्ता ३३ अङ्गिरस ऋषियों में से एक ) , वायु ६९.२४०/२.८.२३४ ( उत्कला नगरी से पञ्चम वेदी तक वामन वन के विस्तार का उल्लेख - अपरेणोत्कलाच्चैव ह्यावेदिभ्यश्च पञ्चमम्। एकभूतात्मनोस्यैतद्वामनस्य वनं स्मृतम् ॥ ) , स्कन्द २.२.६+ ( उत्कल क्षेत्र माहात्म्य के अन्तर्गत इन्द्रद्युम्न चरित्र वर्णन ) , लक्ष्मीनारायण १.४४२.३( ध्रुव - पुत्र, अपर नाम सुयज्ञ, सुयज्ञ के राजसूय करने का वृत्तान्त - ध्रुवपुत्र उत्कलोऽभून्नारायणपरायणः । सहस्रं राजसूयानां पुष्करे स चकार ह ।। ), २.२३९.६० ( उत्कलराज रोल की सोमनाथ यात्रा - रोलाख्यश्चोत्कलराजस्तीर्थार्थं सोमनाथकम् ।।..श्रीनृसिंहप्रतिमायाः सा तत्रऽदृश्यतां गता । ) Utkala
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उत्कुर वायु ६७.६७ ( हिरण्याक्ष के पांच पुत्रों में से एक )
उत्केश वामन ५७.६४ ( इन्द्र द्वारा स्कन्द को प्रदत्त गण का नाम )
उत्क्रमण लक्ष्मीनारायण २.२५७.१ (देह के विभिन्न अङ्गों से आत्मा के विनिष्क्रमण पर विभिन्न लोकों में गमन का वर्णन )
उत्तङ्क देवीभाग १.३.३१ ( २१ वें द्वापर में व्यास ) , २.११.५२ ( जनमेजय के सर्प सत्र में होता ) , नारद १.३७.२७ ( गुलिक व्याध द्वारा उत्तङ्क ब्राह्मण की हत्या की चेष्टा पर उत्तंक द्वारा व्याध को उपदेश , व्याध को आत्मबोध प्राप्ति व उत्तङ्क की मुक्ति का वृत्तान्त ) , ब्रह्माण्ड २.३.६३.३४ ( बालुका समुद्र में स्थित मधु राक्षस - पुत्र धुन्धु के वध हेतु उत्तंक ऋषि का राजा बृहदश्व से अनुरोध करना , बृहदश्व - पुत्र कुवलयाश्व द्वारा धुन्धु का वध ) , वायु ६८.३१/ २.७.३१ ( उत्तङ्क के अनुरोध पर कुवलाश्व द्वारा अरूरु - पुत्र धुन्धु के वध का उल्लेख ) , ८८.३३/ २.२६.३३ ( उत्तंक के अनुरोध पर कुवलयाश्व द्वारा मनु? - पुत्र धुन्धु के वध का वर्णन ) , वा.रामायण ०.४ ( उत्तङ्क से रामायण श्रवण से कलिक व्याध की मुक्ति का वर्णन ) , विष्णु ४.२.४० ( उदक ऋषि के अनुरोध पर कुवलयाश्व द्वारा दुन्दु असुर के वध का उल्लेख ) , विष्णु धर्मोत्तर १.१६ ( उत्तङ्क द्वारा तप से विष्णु से यथेच्छ जल प्राप्ति का वर प्राप्त करना , मधु व कैटभ - पुत्र धुन्धु के निग्रह का वृत्तान्त - यत्रेच्छसि जलं तत्र भविष्यति तथा तव ।। ) , स्कन्द ३.१.१६.१८+ ( उदंक : कक्षीवान - गुरु उदंक द्वारा कक्षीवान को विवाह हेतु अगस्त्य तीर्थ में जाने का परामर्श आदि - उदंकस्य गुरोर्गेहे वसन्दीर्घतमःसुतः । सोऽध्येष्ट चतुरो वेदान्सांगाञ्छास्त्राणि षट् तथा ।। ) , ७.१.७७ ( उत्तङ्केश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : किल्बिषों से मुक्ति ) , ७.३.२.५५ ( गौतम - शिष्य उत्तङ्क द्वारा मदयन्ती से प्राप्त कुण्डलों का तक्षक द्वारा हरण , तक्षक नाग से कुण्डलों की प्राप्ति के लिए उत्तङ्क द्वारा पाताल में विवर खोदना तथा उसके पश्चात् वसिष्ठ ऋषि की कामदुघा गौ के उस विवर में गिरने व सरस्वती आदि नदियों द्वारा उस विवर को पूरित करने का वृत्तान्त - एवं स विवरो जातस्तक्षकोत्तंककारणात् ॥ यथा मे चिंत्यते नित्यं धेन्वर्थं श्वभ्रपूरणे ॥ ) , हरिवंश १.११.२७ ( उत्तङ्क द्वारा मधु असुर - पुत्र धुन्धु के वध हेतु राजा बृहदश्व से अनुरोध आदि ) , लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८१( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ), १.५५१.६४ ( उत्तङ्क द्वारा मदयन्ती से कुण्डल प्राप्ति की कथा ) , ३.९४.६७ ( धुन्धु असुर के वध हेतु उत्तङ्क द्वारा राजा बृहदश्व से अनुरोध ) , कथासरित् १२.७.३०५ ( राजा भीमभट द्वारा उत्तङ्क के तिरस्कार पर उत्तङ्क द्वारा राजा को हाथी बनने का शाप , शाप मुक्ति उपाय कथन ) Uttanka
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उत्तम गरुड १.८७.९ ( उत्तम मनु के पुत्रों के नाम ;उत्तम मन्वन्तर के ५ देवगणों , इन्द्र व दानव आदि के नाम ) ,देवीभाग १.३.३१ ( २१ वें द्वापर में व्यास ) , ३.६.३६ ( भारतवर्ष के जनपदों में से एक ) , ५.१७.२३ ( उत्तानपाद - पुत्र व ध्रुव - अनुज उत्तम द्वारा स्वभार्या को वन में त्यागने का उल्लेख ) , ८.४.८( प्रियव्रत व अपास्या के तीन पुत्रों में से एक ) , १०.८.१३ ( प्रियव्रत - पुत्र उत्तम मनु द्वारा गङ्गा तट पर देवी आराधना से सुख प्राप्त करने का कथन ) , पद्म ६.२१६.७ ( उत्तमा : देवदास - पत्नी , अङ्गद व वलया - माता ) , ब्रह्म १.२५.६० ( उत्तमार्ण : विन्ध्य निवासियों के जनपदों में से एक ) , ब्रह्माण्ड १.२.१९.३६ ( शाल्मलि द्वीप के सात पर्वतों में से एक ) , १.२.१९.४४( उत्तम पर्वत के लोहित वर्ष का उल्लेख ), १.२.२४.६२( सूर्य का वायु के उत्तम मार्ग का आश्रय लेकर अपने तेज से सारे जगत का तापन करने का कथन ) , १.२.३५.१२२ ( २१ वें द्वापर में व्यास का नाम ) , १.२.३६.२५ ( तृतीय उत्तम मन्वन्तर में देवों के पांच गणों में से प्रत्येक में देवता के नाम , इन्द्र , सप्तर्षियों व उत्तम मनु के पुत्रों के नामों का कथन ) , १.२.३७.१५ ( उत्तम मनु का पृथिवी दोहन में वत्स बनना ) , २.३.४.२९ ( उत्तम मन्वन्तर में सत्य देवगणों के सत्य नाम प्राप्ति का कारण कथन : उत्तम मनु व सत्या - पुत्र आदि ) , ३.४.१.५९ ( उत्तमक : १२ मरीचि नामक देवगण में से एक ) , भागवत ४.८.९ ( उत्तानपाद व सुरुचि - पुत्र , ध्रुव - भ्राता , माता सुरुचि द्वारा ध्रुव को पिता की गोद से वंचित करने की कथा ) , ४.९.२३ ( मृगया काल में उत्तम के नष्ट होने का पूर्व कथन ) , ४.९.४८ ( तप के पश्चात् ध्रुव के गृह आगमन पर उत्तम द्वारा स्वागत वर्णन ) , ४.१०.३ ( मृगया काल में यक्ष द्वारा उत्तम का वध , ध्रुव द्वारा यक्षों से उत्तम के वध का प्रतीकार ) , ५.१.२८ ( राजा प्रियव्रत के तीन मन्वन्तराधिपति पुत्रों में से एक ) , ८.१.२३ ( तृतीय मनु ) , मार्कण्डेय - -/५४५४ ( उत्तमार्ण : विन्ध्य पृष्ठ के निवासियों के जनपदों में से एक ) , ६९+ / ६६+ ( उत्तानपाद व सुरुचि - पुत्र , बहुला - पति , उत्तम द्वारा पत्नी का राज्य से निष्कासन व ब्राह्मण - पत्नी की बलाक राक्षस से रक्षा की कथा , स्व - पत्नी की रसातल में नागराज से पुन: प्राप्ति , नागराज - सुता के वचन से मन्वन्तराधिपति औत्तम पुत्र का जन्म होना , मन्वन्तर वर्णन ) ,- - - -/६९.३७ ( औत्तम मनु के नाम की निरुक्ति ) , - - - /७०.१ ( औत्तम मन्वन्तर के ५ देवगणों , इन्द्र तथा मनु - पुत्रों के नाम ) , वामन ७२.४२ ( उत्तम मन्वन्तर में सात मरुतों की उत्पत्ति की कथा ) , ९०.२७( सरयू में विष्णु की अनुत्तम नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), वायु ६३.१५/२.२.१५ ( उत्तम मन्वन्तर में पृथिवी दोहन हेतु देवभुज द्वारा उत्तम मनु को वत्स बनाने का कथन ), ६७.३६/२.६.३७ ( उत्तम मन्वन्तर में तुषित देवों का उत्तम व सत्या - पुत्र बनने का कथन ) , विष्णु १.११.१+ ( उत्तानपाद - पुत्रों उत्तम व ध्रुव का वृत्तान्त ) , ३.१.१३ ( उत्तम मन्वन्तर के ५ देवगणों , इन्द्र , सप्तर्षियों तथा मनु - पुत्रों आदि के नामों का कथन ) , ३.१.२८ ( चाक्षुष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), महाभारत द्रोण १०.४० ( पाञ्चालों में उत्तम वीर , उत्तम कर्मा उत्तमौजा का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१५५.४८ ( औत्तम मनु के जन्म का वृत्तान्त ) , ३.१८०.४८ ( धनग्राम वासी उत्तम विप्र की हरि कृपा से जलोदर रोग से मुक्ति ), द्र. : पुरुषोत्तम Uttama
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उत्तम - मध्यम - अधम कूर्म २.११.३१ ( प्राणायाम के उत्तम , मध्यम व अधम प्रकारों का कथन : आनन्द से संयोग होने पर उत्तमोत्तम योग होने का कथन ) , गरुड १.४३.१५ ( सूत्र / पवित्र के अङ्गुष्ठ , अङ्गुलियों आदि के मान से उत्तम - मध्यम - अधम होने का कथन ) , १.१७३.३० ( स्नेह , क्वाथ व ओषधि की उत्तम, मध्यम व जघन्य मात्राओं का कथन ), २.२४.१७ (शूद्र के कार्य अनुसार उत्तम , मध्यम या अधम यम लोक में यातना भोगने का कथन ) , गर्ग ४.८.२०( कूप, वापी व तडाग में स्नान के अधम, मध्यम व उत्तम होने का उल्लेख ), देवीभागवत १.६.१२ ( सात्त्विक , राजसिक व तामसिक गुणों के उत्तम , मध्यम व अधम प्रकारों का वर्णन ) , ५.१६.१७ ( महिषासुर द्वारा देवी को उत्तम , मध्यम व अधम प्रकार के संयोगों का वर्णन ) , ७.३५.२१ ( प्राणायाम के उत्तम , मध्यम व अधम प्रकारों का कथन ) , ११.१६.४ ( प्रात: व सायं सन्ध्याओं के उत्तम , मध्यम व अधम प्रकारों का कथन ) , ११.१६.१२ ( सन्ध्या के गृह आदि स्थान अनुसार साधारण , मध्यम व उत्तम भेदों का कथन ), पद्म १.२१.१४५ (दान हेतु सुवर्णाचल की उत्तम , मध्यम व अधम मात्राओं का कथन ) , १.२१.१५१ ( दान हेतु तिलशैल की उत्तम ,मध्यम व कनिष्ठ मात्रों का कथन ), १.२१.१६२ ( दान हेतु घृताचल की उत्तम ,मध्यम व अधम मात्राओं का कथन ) , ६.१३०.५ ( भक्ति के सात्त्विक, राजसिक व तामसिक प्रकारों का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.३५.९१ ( श्रीनारायण के चरणों में प्रीति उत्तमा , सत्कर्म मध्यमा तथा परस्त्री सेवन का स्मरण अधमा होने का कथन ) , ब्रह्माण्ड २.३.३४.३८ ( उत्तमा व मध्यमा भक्ति के उद्धव - गोपी आदि उदाहरणों का कथन ) , ३.४.४३.७२ ( तत्त्वचिन्ता उत्तमा, जपचिन्ता मध्यमा व शास्त्रचिन्ता अधमा होने का उल्लेख ), भविष्य ४.८४.३२ ( दान हेतु गुडधेनु के उत्तम ,मध्यम व अधम भारों का उल्लेख ) , ४.१९५.१३ ( दान हेतु धान्य पर्वत की उत्तम ,मध्यम व कनिष्ठ द्रोण मात्राओं का उल्लेख ) , ४.१९६.२ ( दान हेतु लवणाचल के उत्तम , मध्यम व अधम द्रोण मानों का उल्लेख ) , ४.१९७.२ ( दान हेतु गुड पर्वत के उत्तम ,मध्यम व कनिष्ठ भारों का उल्लेख ) , ४.१९८.२ ( दान हेतु सुवर्णाचल के उत्तम , मध्यम व अवर पल मानों का उल्लेख ) , ४.१९९.१७ ( तिलाचल के उत्तम , मध्यम व कनिष्ठ द्रोण मानों का उल्लेख ) , ४.२००.४ (कापादसाचल के उत्तम ,मध्यम व जघन्य भारों का उल्लेख ) , ४.२०१.२ ( घृताचल के उत्तम, मध्यम व अवर कुम्भ मानों का उल्लेख ) , ४.२०२.२ ( रत्नाचल की उत्तम ,मध्यम व अवर संख्या मानों का उल्लेख ) , ४.२०३.२ ( रौप्याचल के उत्तम ,मध्यम व अवर पल मानों का उल्लेख ) , ४.२०४.२ ( शर्कराचल के उत्तम, मध्यम व अधम भार मानों का उल्लेख ) , भागवत ९.१८.४४ ( ययाति - पुत्र पूरु द्वारा पिता को उत्तम ,मध्यम व अधम पुत्र के लक्षणों का कथन ) , मत्स्य ८२.५ ( गुड धेनु के उत्तम, मध्यम व कनिष्ठ भारों का उल्लेख ) , ८५.२ ( गुड पर्वत के उत्तम ,मध्यम व कनिष्ठ भारों का उल्लेख ) , ८६.२ ( सुवर्णाचल के उत्तम ,मध्यम व अधम पल मानों का उल्लेख ) , ८७.२ ( तिल शैल के उत्तम, मध्यम व कनिष्ठ द्रोण मानों का उल्लेख ) , ८८.२ ( कार्पासाचल के उत्तम, मध्यम व अधम भारों का उल्लेख ) , ८९.२ ( घृताचल के उत्तम , मध्यम व अधम कुम्भ मानों का उल्लेख ) , ९०.१ ( रत्नाचल के उत्तम, मध्यम व अधम संख्या मानों का उल्लेख ) , ९१.२ ( रौप्याचल के उत्तम ,मध्यम व अधम पल मानों का उल्लेख ) , ९२.२ ( शर्करा शैल के उत्तम, मध्यम व अधम भारों का उल्लेख ), ९३.४२ ( उदुत्तमं वरुण इति मन्त्र के अपां मन्त्र होने का उल्लेख ) , २१५.४४ ( राजा द्वारा कर्मों के उत्तम, मध्यम व अधम प्रकारों को जानकर तदनुसार तद् - योग्य पुरुषों का नियोजन करने का निर्देश ) , २७९.४ ( दान हेतु कांचन - निर्मित कामधेनु के उत्तम , मध्यम व कनीयस पल मानों का उल्लेख ) , वा.रामायण ६.६.६ ( रावण द्वारा उत्तम - मध्यम - अधम प्रकार के पुरुषों व मन्त्रों का वर्णन ) , वराह १०२.७ ( गुड धेनु के उत्तम , मध्यम व अधम भार मानों का उल्लेख ) , १०३.२ ( शर्करा धेनु के उत्तम, मध्यम व कनिष्ठ भार मानों का उल्लेख ) , १०९.५ ( कार्पास धेनु के उत्तम , मध्यम व अधम भार मानों का उल्लेख ) , ११०.५ ( व्रीहि धेनु के उत्तम ,मध्यम व अधम द्रोण मानों का उल्लेख ) , १२८.८० ( मणि संख्या या मणि - द्रव्य के अनुसार गणान्तिका / माला के उत्तम , मध्यम व कनिष्ठ प्रकारों का कथन ), वायु १०.७९ / १.१०.७६ ( प्राणायाम के उत्तम ,मध्यम व मन्द प्रकारों का वर्णन ) , ७६.३२ / २.१४.३२ ( उत्तमा द्युति प्राप्ति हेतु पिण्ड को गायों को देने आदि का कथन ) , विष्णुधर्मोत्तर २.२४.४३ ( कर्मों के उत्तम , मध्यम व अधम प्रकारों के अनुसार उत्तम , मध्यम व अधम पुरुषों के विनियोजन का उल्लेख ) , २.७२.११६ ( जघन्य द्वारा उत्तमा के सेवन पर जघन्य के वध आदि का निर्देश ) , ३.३१.१६ ( उत्तम, मध्यम व अधम स्वभाव के पुरुषों के अभिनय में संकेतों का कथन ) , शिव १.२१.२८ ( उत्तम , मध्यम व अधम लिङ्गों के उच्छ्राय मानों का कथन ), २.३.५४.७२ (उत्तमा , मध्यमा , निकृष्टा व अतिनिकृष्टा पतिव्रताओं के लक्षणों का कथन ) , ५.२०.१५ ( सात्त्विक, राजसिक व तामसिक तपों के कथन के पश्चात् सात्त्विक तप को उत्तम कहना ) , ७.१४.२४ ( उत्तम, मध्यम व अधम प्रकार के जपों का कथन ) , ७.३६.२९ ( प्राणायाम के उत्तम , मध्यम व कनीयस् प्रकारों का कथन ), महाभारत उद्योग ३४.५२ (उत्तम, मध्यम व अन्त्य पुरुषों को भय के कारणों का कथन ) , १२३.१० (ययाति द्वारा उत्तम , ध्रुव , अव्यय आदि स्थान प्राप्त करने का उल्लेख ) , भीष्म ३९.१७ / भगवद्गीता १५.१७ ( क्षर व अक्षर पुरुषों से परे पुरुषोत्तम / परमात्मा कहलाने वाले उत्तम पुरुष का कथन ) , द्रोण ९९.६ ( युद्ध में रथ शिक्षा में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उत्तम , मध्यम व अधम मण्डलों को दिखाने का उल्लेख ) , शान्ति ६२.१० ( मनुष्य द्वारा काल संचोदित होक रउत्तम , मध्यम व अधम प्रकार के कर्म करने का उल्लेख ) Uttama madhyama
उत्तमश्लोक भागवत १.१.१९, १.३.४०, २.१.९, २.३.१७, ४.१२.२७, ५.१.३, ५.१४.४३ , ६.२.१८ , ८.४.४ , ८.२४.३ , ९.४.२४ , ९.११.७ , १०.३८.४ , १०.४७.४८ , १०.५५.३५ , १०.६६.४३, १०.८०.२, ११.३०.३५ ( उत्तमश्लोक शब्द का श्रीकृष्ण , पुरुषोत्तम आदि के लिए प्रयोग )
उत्तमौजा विष्णु ३.२.२८ ( दशम ब्रह्मसावर्णि मनु के १० पुत्रों में से एक ) , शिव ५.३४.४८ ( दशम मन्वन्तर में मनु के १० पुत्रों में से एक ) Uttamaujaa
उत्तर भविष्य ३.३.२६.८७ ( कलियुग में उत्तर का मदन रूप में अवतरण ), भागवत १.१६.२ ( उत्तर - पुत्री इरावती का परीक्षित से विवाह ) , मत्स्य १९९.१७ ( कश्यप वंशीय प्रधान ऋषियों में से एक ), वामन ९०.११( उत्तर तीर्थ में विष्णु का गोपाल नाम से वास ), स्कन्द ५.२.४४.१६ ( ब्रह्मा द्वारा उत्तर दिशा में वर्षा हेतु उत्तर नामक मेघ की नियुक्ति , नवग्रहों द्वारा मेघों को पीडित करने पर अनावृष्टि होना , उत्तर मेघ द्वारा उत्तरेश्वर लिङ्ग की आराधना से वृष्टि होना ) , ५.२.८४ ( उत्तरेश्वर लिङ्ग माहात्म्य : दर्दुर / मेंढक द्वारा उत्तरेश्वर लिङ्ग पूजा से गालव के शाप से निवृत्ति ), ५.३.२३१.२४ ( रेवा - सागर संगम पर २ उत्तरेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ) ,७.१.३०३ ( सर्पों द्वारा आराधित उत्तरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : सर्प भय से मुक्ति ), ७.१.३१३ (उत्तरार्क का संक्षिप्त माहात्म्य : रोग से मुक्ति ) , हरिवंश ३.३५.३९ ( यज्ञवराह द्वारा उत्तर दिशा में निर्मित पर्वतों व नदियों का वर्णन ) , कथासरित् ५.२.२३ ( काम्पिल्य नगरी में उत्तर पर्वत पर दीर्घतपा मुनि का वास ), द्र. महाभारत में उत्तर चरित्र ; दिशा Uttara
उत्तरकुरु गर्ग ७.२८.१ ( उत्तरकुरु देश के राजा गुणाकर द्वारा प्रद्युम्न को भेंट) , देवीभागवत ८.१०.६ ( उत्तरकुरु वर्ष में पृथिवी द्वारा यज्ञवराह की आराधना ), नारद २.६३.१२० (उत्तरकुरु तीर्थ में गोदान माहात्म्य ),ब्रह्माण्ड १.२.१५.७१ ( उत्तरकुरु वर्ष की महिमा का कथन, कुरु वर्ष के वृक्षों की विशेषताएं ) , २.३.५९.४६ ( सूर्य - पत्नी संज्ञा का वडवा होकर उत्तरकुरु वर्ष में विचरण करने का वृत्तान्त ) , भागवत ५.१८.३४ ( उत्तरकुरु वर्ष में पृथिवी द्वारा यज्ञवराह की स्तुति वर्णन ) , मत्स्य १३.५० ( उत्तरकुरु तीर्थ में सती देवी का ओषधि नाम से वास ) , ८३.३४ ( सुपार्श्व पर्वत पर उत्तरकुरु की स्थिति ) , ११३.६९ ( उत्तरकुरु वर्ष वर्णन ) , महाभारत अनुशासन १०२.२५(उत्तरकुरु को प्राप्त करने वाले मनुष्य के लक्षण, इन्द्र – गौतम संवाद), वराह ८४.९ ( त्रिशृङ्ग पर्वत पर औत्तर कुरुओं का वास व महिमा कथन ), वामन ९०.२२( उत्तरकुरु में विष्णु का पद्मनाभ नाम ), वायु ३४.५७ ( मेरु के परित: स्थित वर्षों में से एक ) , ३५.४४ ( उत्तरकुरु वर्ष में केतृ ? वृक्ष की स्थिति , सनत्कुमार आदि ७ ब्रह्मा - पुत्रों द्वारा उत्तरकुरु वर्ष में आराधना से सनातन लोक की प्राप्ति ), ४५.११ ( उत्तरकुरु वर्ष में स्थित वृक्षों व उत्तरकुरु - निवासियों की महिमा ) , स्कन्द ५.३.१९८.८७ (उत्तरकुरु देश में उमा की ओषधि नाम से स्थिति का उल्लेख ) , लक्ष्मीनारायण २.१८१.३७ ( अर्थेष्ट दानव का तुषित देव में रूपान्तरित होकर उत्तरकुरु वर्ष को गमन ) Uttarakuru
उत्तरमन्द्रा नारद १.५०.३७( षडज~ स्वर में मूर्च्छा का नाम )
उत्तरवेदी ब्रह्माण्ड १.२.१५.३३(नील या रम्यक वर्ष के इलावृत वर्ष से परे होने का उल्लेख ; नीलवान् से परे उत्तरवेदी होने का उल्लेख), महाभारत शल्य ५३.२४(समन्तपञ्चक क्षेत्र की उत्तरवेदी नाम से ख्याति), वामन २२.१५(उत्तरेदी के रूप में समन्तपञ्चक क्षेत्र का कथन), कथासरित् ८.१.१०(वज्रप्रभ विद्याधर द्वारा नरवाहनदत्त के उभयवेदी अर्धचक्रवर्ती होने की भविष्यवाणी करना तथा दक्षिण वेदी के चक्रवर्ती सूर्यप्रभ व उत्तरवेदी के चक्रवर्ती श्रुतशर्मा के बीच युद्ध के विस्तृत वृत्तान्त का वर्णन करना), १४.३.६९(उत्तरवेदी में स्थित राजा मन्दरदेव के अजेय न होने का उल्लेख),
उत्तरा नारद १.५०.३९ ( धैवत स्वर में मूर्च्छा का नाम )
उत्तरापाण्डव योगवासिष्ठ ३.१०४.२ (उत्तरापाण्डव जनपद की शोभा वर्णन , उत्तरापाण्डव के राजा लवण द्वारा इन्द्रजाल दर्शन का वर्णन )
उत्तरायण अग्नि १९९.७ ( उत्तरायण में संक्रान्ति पर केशव का आज्य प्रस्थ से स्नान कराने पर पापों से मुक्ति का उल्लेख ) , २१४.१७ ( वाम व दक्षिण नाडी के उत्तरायण व दक्षिणायन होने का कथन ), देवीभागवत ८.१८.१५ ( उत्तरायण के नक्षत्रों की शिशुमार के दक्ष पार्श्व में और दक्षिणायन के नक्षत्रों की वाम पार्श्व में स्थिति का उल्लेख ) , पद्म ६.१२४.४८ ( श्री हरि द्वारा उत्तरायण हीन भीष्म हेतु उदक व अर्घ्य दान का वर्णन ) , भविष्य १.१०७.३ ( श्रीकृष्ण के वाम पद के उत्तरायण तथा दक्षिण पद के दक्षिणायन होने का उल्लेख ), ४.१२१.१७२ ( उत्तरायण आरंभ होने पर श्रीहरि का घृतप्रस्थ से स्नान कराने तथा वडवा दान आदि का माहात्म्य कथन ) , ४.१३०.६ ( संक्रान्ति , सूर्यग्रहण , उत्तरायण व दक्षिणायन आदि पुण्य काल आरंभ होने पर भूमि देवताओं के लिए घृत से पूर्ण दीपक दान का निर्देश ), भागवत ७.१५.५६ ( प्रवृत्तिपरक इष्टापूर्त्त कर्मों के अन्तर्गत आने वाले अग्निहोत्र , दर्शपूर्णमास आदि से दक्षिणायन / पितृयान तथा निवृत्तिपरक कर्मों से उत्तरायण / देवयान प्राप्त होने का वर्णन ) , मत्स्य १९१.६३ ( उत्तरायण आने पर कठेश्वर तीर्थ में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य : इच्छा पूर्ति ) , वायु ५०.२०१ ( उत्तरायण व दक्षिणायन के मासों तथा अजवीथि , नागवीथि आदि का कथन ; प्रवृत्ति व निवृत्ति मार्ग से पितृयान व देवयान मार्ग प्राप्त होने का वर्णन ) , विष्णु २.८.८१ ( उत्तरायण व दक्षिणायन के अन्तर्गत आने वाले तप , तपस्य , मधु , माधव , शुक्र , शुचि आदि मासों का कथन ) , विष्णुधर्मोत्तर ३.९६.१४ ( उत्तरायण में वास्तु प्रतिष्ठा के धन वृद्धि कारक और दक्षिणायन में पाप वृद्धि कारक होने का उल्लेख ), ३.३१७.४ ( उत्तरायण में वस्त्र दान के फलप्रद होने का उल्लेख ) , शिव ६.२१.१५ ( आत्महन्ताकृति , ज्योतिष्पुञ्ज आदि ५ उत्तरायण रूपी व धूम्रा , तमस्विनी आदि ५ दक्षिणायन रूपी योगी देवताओं का कथन ) , स्कन्द १.३.१.९.७२ ( उत्तरायण में शिव द्वारा अपने अरुणाद्रि लिङ्ग की प्रदक्षिणा करने का उल्लेख ) , २.१.३४.२० ( मकर संक्रान्ति को सुवर्णमुखरी नदी में स्नान करके अगस्त्येश शिव के दर्शन का निर्देश ) , २.२.४२ ( उत्तरायण उत्सव विधि का वर्णन ) , २.४.३२.३४ ( श्री हरि द्वारा उत्तरायण हीन भीष्म के लिए उदक व अर्घ्य दान का कथन ) , ६.२७१.६५ ( बालक विश्वरूप / बक द्वारा मकर संक्रान्ति को शिव के जागेश्वर लिङ्ग के घृतकुम्भ में प्रक्षेप का माहात्म्य वर्णन ) , ७.४.१४.२७ ( मकर संक्रान्ति को इन्द्रेश्वर लिङ्ग की विशेष रूप से पूजा करने का निर्देश ), महाभारत वन ३.६(सूर्य द्वारा उत्तरायण में तेज का ग्रहण करके दक्षिणायन में भूमि में निवेश का कथन), भीष्म ३२.२४ (उत्तरायण के अग्नि , ज्योति , अह आदि तथा दक्षिणायन के धूम , रात्रि , कृष्ण आदि विशेषणों का कथन ; उत्तरायण से ब्रह्म की व दक्षिणायन से चन्द्रमा की प्राप्ति का कथन ) , ११९.९७ ( भीष्म द्वारा उत्तरायण काल आने तक स्वप्राणों को धारण करने का निश्चय करना ) , अनुशासन ९८.४७ ( दक्षिणायन के अन्धतामिस्र नरक होने के कारण अन्धकार की निवृत्ति हेतु उत्तरायण ज्योति रूपी दीप दान की महिमा का वर्णन ) Uttaraayana
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उत्तरार्क स्कन्द ४.१.४७.२५ ( प्रियव्रत की कन्या द्वारा पति प्राप्ति हेतु उत्तरार्क के समीप तप , उत्तरार्क कुण्ड में स्नान से बर्करी का काशिराज - कन्या के रूप में जन्म की कथा ) , ७.१.३१३ ( उत्तरार्क क्षेत्र का संक्षिप्त माहात्म्य : रोग से मुक्ति ) Uttaraarka
उत्तान पद्म १.१५.३८२( उत्तान मुख में आहुति देने की महिमा का कथन ), १.४३.१४१, १८२( सामुद्रिक विद्या के संदर्भ में नारद द्वारा हिमवान् व मेना - पुत्री गौरी को उत्तानहस्ता तथा सुच्छाया चरण वाली बताना तथा इन गर्हित लक्षणों की दैवी लक्षणों के रूप में व्याख्या करना ), ५.११७.९०, १०२( श्राद्ध में न्युब्ज नामक पात्र को उत्तान करने का निर्देश ), ब्रह्माण्ड ३.४.२८.७८( शक्ति देवियों द्वारा उत्तान मुख होकर मधु पान करने का उल्लेख ), भविष्य १.४९.२६( आदित्य के लिए व्योम आदि पांच मुद्राओं के प्रदर्शन के आरम्भ में उत्तान हस्त करने का निर्देश ), १.२०६.२५( शक्तियों के लिए मुद्रा प्रदर्शन हेतु उत्तान हस्त करने का निर्देश ), १.२१४.१९( सूर्योदय पर उदया मुद्रा के प्रदर्शन हेतु करों को उत्तान करने का निर्देश ), भागवत ९.३.२७( उत्तानबर्हि : शर्याति राजा के तीन पुत्रों में से एक ), मत्स्य १५४.१४६, १७०, १८८( सामुद्रिक लक्षणों के संदर्भ में नारद द्वारा हिमवान् - पुत्री गौरी को उत्तानहस्ता तथा सुच्छाया चरण वाली बताना तथा इन गर्हित लक्षणों की दैवी लक्षणों के रूप में व्याख्या करना ), वामन ५७.२१( स्कन्द के शर वन में जन्म के समय उत्तानशायी होकर मुख में अङ्गुष्ठ डालकर रोदन करने तथा कृत्तिकाओं से दुग्ध पान करने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३३.१( नृत्य शास्त्र में विभिन्न मुद्राओं के प्रदर्शन हेतु एक या दोनों करों को उत्तान करने के उल्लेख ), ३.३०१.२५( छत्र, कृष्णाजिन, शय्या, रथ, आसन, उपानह, यान तथा अन्य प्राणरहित वस्तुओं की दक्षिणा को उत्तान अङ्गिरस हेतु ग्रहण करने का निर्देश ), शिव २.१.१३.४४( शिव पूजा में उत्तान आसन/पर्यङ्क करने का निर्देश ), स्कन्द ६.२२४.४३( श्राद्ध में अर्घ पात्र को उत्तान करके देवताओं व पितरों के लिए दक्षिणा देने का निर्देश ), हरिवंश ३.८२.२०( उत्तानशायी शिशु कृष्ण द्वारा पूतना के स्तनों का पान करके उसे प्राणरहित करने का उल्लेख ), महाभारत शान्ति २४२.२२( उत्तानहस्त होकर गुरु के चरण स्पर्श करने का निर्देश ) Uttaana
उत्तानपाद ब्रह्मवैवर्त्त ३.५.१७( मनु - पत्नी शतरूपा द्वारा व्रतोपाय द्वारा प्रियव्रत व उत्तानपाद पुत्रों को जन्म देना ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.८४( स्वायम्भुव मनु - पुत्र उत्तानपाद के अत्रि के दत्तक पुत्र बनने का उल्लेख ; उत्तानपाद द्वारा सूनृता पत्नी से ध्रुव आदि ४ पुत्र व स्वरा आदि २ कन्याएं उत्पन्न होने का कथन ), भविष्य ४.६९.६१( रुचि व शुघ्नी - पति, रुचि सपत्ना द्वारा ध्रुव की हत्या पर ध्रुव का पुन: जीवित होना ), भागवत ३.१२.५४( स्वायम्भुव मनु व शतरूपा की सन्तानों में से एक, प्रियव्रत - भ्राता ), ४.८.८( सुनीति व सुरुचि - पति, ध्रुव व उत्तम - पिता उत्तानपाद द्वारा ध्रुव के तिरस्कार पर ध्रुव द्वारा तप का वृत्तान्त ), मत्स्य ४.३४( स्वायम्भुव मनु व अनन्ती - पुत्र, सूनृता -पति, अपस्यति आदि पुत्रों के नाम ), १२७.२२( शिशुमार रूपी ध्रुव शरीर में उत्तर हनु रूप होने का उल्लेख ), मार्कण्डेय ६६.३( उत्तानपाद व सुरुचि - पुत्र उत्तम का वृत्तान्त ), लिङ्ग १.६२.३( सुनीति व सुरुचि - पति, सुनीति - पुत्र ध्रुव की शिशुमार पुच्छ में स्थिति का उल्लेख ), ६२.७५/२.१.७५( सूनृता - पति, ध्रुव आदि ४ पुत्रों व मनस्विनी आदि २ कन्याओं के पिता, पुत्र ध्रुव का वृत्तान्त ), विष्णु १.११.१( सुरुचि व सुनीति - पति, सुरुचि द्वारा बालक ध्रुव का तिरस्कार करने पर ध्रुव के तप करने का विवरण ), २.९.५( उत्तानपाद - पुत्र ध्रुव का आधार शिशुमार व शिशुमार का आधार नारायण होने का कथन ), २.१२.३१( शिशुमार रूपी ज्योति शरीर में उत्तानपाद के उत्तर हनु होने का उल्लेख ), शिव ५.३०.५( स्वायम्भुव मनु व वीरा/शतरूपा - पुत्र, काम्या पत्नी से सम्राट् आदि तीन पुत्र तथा सुनीति पत्नी से ध्रुव पुत्र उत्पन्न करने का कथन ), स्कन्द ५.३.४५+ ( उत्तानपाद द्वारा शिव से शूलभेद तीर्थ का माहात्म्य श्रवण : अन्धकासुर द्वारा तप करके अवध्य होने का वर प्राप्त करना, शिव द्वारा अन्धक का शूल से भेदन, शूल द्वारा भृगु पर्वत का भेदन करने पर शूल का स्वच्छ होना आदि ), ५.३.५०.१( उत्तानपाद द्वारा श्राद्ध, विवाह आदि में पूजनीय द्विजों के विषय में शिव से पृच्छा ), ५.३.५०.३६( उत्तानपाद द्वारा शिव से वित्त के अभाव में भी कन्या दान करने के उपाय की पृच्छा ), ५.३.५१.१( उत्तानपाद द्वारा शिव से श्राद्ध, दान, यात्रा आदि करने हेतु प्रशस्त काल के विषय में पृच्छा ), ५.३.५१.१६+ ( उत्तानपाद द्वारा शिव से गुहामध्य में स्थित मार्कण्डेश लिङ्ग के विषय में पृच्छा ), ५.३.५१.३०( शिव द्वारा उत्तानपाद को ८ आधिभौतिक व आध्यात्मिक पुष्पों का वर्णन करना ), ५.३.५२+ ( शूलभेद तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में शिव द्वारा उत्तानपाद को राजा चित्रसेन द्वारा दीर्घतपा मुनि व उसके परिवार जनों की अस्थियों के शूलभेद तीर्थ में स्थित कुण्ड में क्षेपण द्वारा मुक्ति प्राप्त होने का वर्णन, राजा चित्रसेन द्वारा भृगु पर्वत पर आरोहण करके स्वयं को कुण्ड में गिराने का प्रयत्न करने पर ब्रह्मा आदि त्रिदेवों का शूलभेद तीर्थ में देवशिला पर स्थित होने का वर्णन ), ५.३.५६.१( उत्तानपाद द्वारा शिव से विन्ध्य पर्वत पर शिव की जटाओं से गङ्गा अवतरण के विषय में पृच्छा ), ५.३.५६.१३+ ( उत्तानपाद द्वारा शिव से प्रशस्त दान द्रव्यों और देवशिला के माहात्म्य के विषय में पृच्छा तथा शिव द्वारा शूलभेद तीर्थ में शबर व शबरी तथा राजकन्या भानुमती आदि द्वारा स्वयं को भृगु पर्वत से कुण्ड में गिराकर मुक्ति प्राप्त करने का वर्णन ), हरिवंश १.२.५( वीर व काम्या - पुत्र, मनु व शतरूपा - पौत्र, प्रियव्रत - भ्राता, सूनृता पत्नी से ध्रुव आदि ४ पुत्रों को उत्पन्न करने का कथन ) Uttaanapaada
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उत्थान अग्नि ९२.४( वास्तु प्रतिष्ठा में प्रतिष्ठा के स्थापन, उत्थापन, आस्थापन आदि ५ भेदों का कथन ), देवीभागवत २.१०.६६( तक्षक नाग द्वारा राजा परीक्षित के दंशन पर तक्षक के मुख से घोर अग्निशिखाओं के उत्थान का उल्लेख ), २.१२.४५( जरत्कारु मुनि की पत्नी द्वारा सन्ध्याकाल होने पर पति को जगाने पर मुनि के कोपपूर्वक उत्थान का उल्लेख ), ३.१७.५२( स्वप्न में जगदम्बा से वर पाकर शशिकला के मोदयुक्त उत्थान का उल्लेख ), ५.२६.५६( कालिका देवी द्वारा चण्ड असुर के बन्धन पर मुण्ड असुर के उत्थान का उल्लेख ), ९.३७.८८( यमदूतों द्वारा पापियों के कुम्भीपाक नरक कुण्ड में बार - बार निमज्जन व उत्थापन का उल्लेख ), पद्म १.१६.११४( ब्रह्मा के यज्ञ में सारी अग्नियों के उत्थान पर दीक्षाकाल प्राप्त होने तथा सावित्री पत्नी को आहूत करने का उल्लेख ), ५.२.३०( श्रीराम के वन से प्रत्यागमन पर भरत द्वारा दण्डवत् प्रणाम करने तथा राम द्वारा अनुज का बाहुओं द्वारा उत्थापन का कथन ), ५.१०७.२६( वीरभद्र द्वारा अग्नि ज्वाला से भस्म ऋषियों को मृत्युञ्जय मन्त्र से अभिमन्त्रित करने पर ऋषियों के उत्थान का उल्लेख ), ५.१०७.८३( वीरभद्र द्वारा पञ्चमेढ्र राक्षस द्वारा भस्म किए गए देवताओं को जीवित करने पर मुनियों और देवों के उत्थान का कथन ), ५.१०८.३२( गोमय व गोमूत्र आहरण के लिए गौ के उत्थापन का निर्देश ), ६.७.३८( विष्णु व जालन्धर के युद्ध में शुक्राचार्य द्वारा मृत असुरों का जल से स्पर्शन तथा हुंकार से प्रबोधन करने पर मृत असुरों के उत्थापन का कथन ), ६.३०.१०७( मार्जार द्वारा मूषिका को पकडने के लिए उत्थान पर दीप के प्रकाशित होने की कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त १.२७.२४( वाम हस्त से जल का उत्थान करके पीने का निषेध ), १.२९.७( नारद ऋषि द्वारा बदरिकाश्रम में नारायण ऋषि को प्रणाम करने पर नारायण द्वारा नारद का उत्थान करके आलिङ्गन आदि करने का उल्लेख ), ४.१.४७.२( श्रीकृष्ण का सुख संभोग से उत्थान करके राधा के साथ मलयद्रोणी में वास का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.२४.२३( शिव द्वारा भूमि पर नत परशुराम का अपने हाथों से उत्थापन करने का उल्लेख ), २.३.२५.४( परशुराम द्वारा शिव को बार - बार उठकर? / उत्थाय- उत्थाय प्रणाम करने का उल्लेख ), ३.४.९.६७( समुद्र मन्थन क्रिया में वारुणी देवी के उत्थान का उल्लेख ), भविष्य २.२०.७( केवल उत्थित अवस्था में ही पूर्णाहुति देने का निर्देश ), ४.७०.५१( कार्तिक शुक्ल एकादशी को विष्णु के उत्थापन उत्सव का वर्णन ), ४.७४.५( पुलस्त्य ऋषि के आगमन पर राजा भीम द्वारा उत्थान करके ( उत्थाय ) ऋषि को अपना आसन आदि देने का उल्लेख ), ४.१३९.२३( इन्द्रध्वज उत्थापन उत्सव का वर्णन ), भागवत ३.२.३१( कृष्ण द्वारा कालिय नाग के उत्थापन का उल्लेख ), ३.२६.५१( महाभूतों से निर्मित अचेतन अण्ड से पुरुष के उत्थान तथा विराट् के उदतिष्ठन् का कथन ), ३.२६.५३( हिरण्मय अण्डकोश से उत्थान करके महान् देव द्वारा उसमें पुन: प्रवेश करने और उसमें मुख, घ्राण, चक्षु आदि छिद्र उत्पन्न करने का वर्णन ), ३.२६.६२( विभिन्न देवों द्वारा विराट् पुरुष में प्रवेश करके उसके उत्थान की चेष्टा तथा असफलता का वर्णन ), ३.२६.७०( चैत्य क्षेत्रज्ञ पुरुष द्वारा चित्त के माध्यम से हृदय में प्रवेश करने पर ही विराट् पुरुष के उत्थान का कथन ), ४.२१.१४( महासत्र की दीक्षा से राजा पृथु के उत्थान की नक्षत्रमण्डल में चन्द्रमा के उत्थान से उपमा ), १०.१३.२२( वेणु की ध्वनि सुनते ही ग्वालों की माताओं द्वारा उत्थान करके अपने पुत्रों का हाथों द्वारा उत्थापन करके उन्हें स्तनपान कराने का उल्लेख ), १०.१३.६३( ब्रह्मा द्वारा कनक दण्ड की भांति पृथिवी पर गिर कर कृष्ण को प्रणाम करने और फिर पुन: पुन: उठकर( उत्थायोत्थाय) कृष्ण के चरणों में प्रणाम करने का उल्लेख ), मत्स्य २६५.११( मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में रथ यात्रा हेतु उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते इत्यादि मन्त्रों से मूर्ति के उत्थापन का निर्देश ), वायु २५.४९( ब्रह्मा के समक्ष शिर का भेदन करके उत्थित होने के कारण सावित्री नाम होने का उल्लेख ), विष्णु ५.२३.२०( पाद से ताडन पर मुचुकुन्द का उत्थित होकर कालयवन को देखना और कालयवन का भस्म होना ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३.७( मेषों के हरण पर राजा पुरूरवा का नग्न ही उत्थित होकर मेषों का अन्वेषण करना, उर्वशी का तिरोभूत होना ), २.१२३.१०( वीरासन के लिए दिन में उत्थित होकर बैठने और रात्रि में उपविष्ट होने का निर्देश ), २.१३७.१०( उत्पातों के संदर्भ में पतित वृक्षों के उत्थान पर भेदकारी भय होने का उल्लेख ), २.१५५.१८( इन्द्रध्वज उत्सव के संदर्भ में ध्वज का यन्त्र द्वारा उत्थापन करने का निर्देश ), ३.२९५.६( उत्थानवान् पुरुष की प्रशंसा ), शिव २.२.३५.४( विष्णु द्वारा चरणों में पडे दक्ष का उत्थापन करने का उल्लेख ), २.५.५७.१७( ब्रह्मा के पुकारने पर गजासुर द्वारा बार - बार उत्थित होकर/उत्थायोत्थाय ब्रह्मा से अवध्यता का वर मांगना ), ३.७.८( शिव द्वारा चरणों में नत नन्दी का उत्थापन करने का उल्लेख ), ६.१२.६७( नान्दीमुख श्राद्ध के संदर्भ में द्विजों को भूमि पर दण्डवत् प्रणाम करने के पश्चात् उत्थित होकर अमृत वचन कहने का निर्देश ), स्कन्द १.१.२९.२५( तारक का मूर्च्छा के पश्चात् उत्थित होकर पुन: वीरभद्र से युद्ध करने का उल्लेख ), २.१.२५.१८( जाबालि तीर्थ में स्नान से विप्र के वेताल से मुक्त होकर उत्थित होने का उल्लेख ), २.४.३३.३१( कार्तिक शुक्ल एकादशी को विष्णु के उत्थापन की विधि का वर्णन ), ३.१.१२.७५( पराशर मुनि के स्पर्श से मनोजव राजा का मूर्च्छा त्याग कर उत्थित होने का उल्लेख ), ६.२०७.७१( इन्द्र यष्टि के उत्थापन के महत्त्व का कथन ), ६.२०८.४( शतानन्द द्वारा पिता गौतम से शिला में रूपान्तरित माता अहल्या के उत्थापन की प्रार्थना करना ), ६.२३१.८३( कार्तिक शुक्ल एकादशी को विष्णु के उत्थान करने और क्षीर समुद्र में जाने का उल्लेख ), ७.१.३२.९१( दधीचि - पुत्र पिप्पलाद द्वारा पितृ - हन्ता देवों को कृत्या के उत्थापन द्वारा मार डालने का उद्योग ), ७.२.१३.२( पुन: पुन: उत्थान करके/उत्थायोत्थाय स्नान करने का निर्देश ), महाभारत आदि २९.२७( महागज का शब्द सुनकर जल में रहने वाले कूर्म के उत्थित होने का उल्लेख ), ३०.३८( गरुड द्वारा सोम के आहरण हेतु स्वर्ग की ओर अग्रसर होने पर धूलिकणों व उत्पातों के उत्थित होने का उल्लेख ), ४७.१९( सन्ध्याकाल में सुप्त जरत्कारु ऋषि का पत्नी द्वारा उत्थापन तथा जरत्कारु ऋषि का क्रोध आदि ), ७८.१९( देवों द्वारा हत दैत्यों को शुक्र द्वारा विद्या द्वारा उत्थापित करने का उल्लेख ), २१६.२२( वर्गा आदि अप्सराओं का जल से उत्थित होकर अपना पूर्व स्वरूप प्राप्त करने का उल्लेख ), सभा ५.८७( कालज्ञ मन्त्रियों सहित उचित काल में उत्थान का निर्देश? ), ३७.३१( श्रीकृष्ण पर आक्षेपों के पश्चात् शिशुपाल का अपने आसन से उत्थित होकर सभा से बाहर जाने का उद्योग ), वन ३२.६( सब भूतों द्वारा अपने उत्थान को जानने और कर्मों के प्रत्यक्ष फल के उपभोग करने आदि का कथन ), ३२.५७( सतत् उत्थान युक्त होकर शत्रुओं के छिद्र का अन्वेषण करने का निर्देश ), ११५.२८( जल से एक सहस्र वाजियों के उत्थान के स्थान का अश्वतीर्थ नाम होने का उल्लेख ), १७५.१( रात्रि व्यतीत होने पर युधिष्ठिर द्वारा उत्थित होकर आवश्यक कार्य करने का उल्लेख ), १९०.९६( कलियुग के अन्त में कल्की नामक ब्राह्मण के उत्थित होने का कथन ), उद्योग २२.८( दुर्योधन के लिए उत्थानवीर्य विशेषण का प्रयोग ), ३४.९( कर्मों के विपाक, आत्मा/स्वयं के उत्थान आदि का विचार करके कर्म करने का निर्देश ), ३७.५१( क्रोध और हर्ष के उत्थित वेग को नियन्त्रित करने का निर्देश ), भीष्म ५७.२९( रणभूमि में जगत के विनाश के सूचक असंख्य कबन्धों के उत्थित होने का उल्लेख ), द्रोण ९०.२८( वही), ९७.१२( वही), १८७.२९( रणभूमि में रजोमेघ/धूलिमेघ के समुत्थित होने पर अपने और परायों के दृष्टिगोचर न होने का उल्लेख ), कर्ण ५२.३५( रणभूमि में अगणित कबन्धों के उत्थित होने का उल्लेख ), शल्य २२.३९( कृपाचार्य के साथ पांच पाण्डवों के युद्ध की तुलना देहधारियों की बार - बार विषयों की ओर प्रवृत्त होने वाली/उत्थायोत्थाय इन्द्रियों के साथ युद्ध से करना ), ३२.४८( युद्ध के पश्चात् स्तम्भित जल वाले सरोवर में छिपे हुए दुर्योधन के जल से उत्थित होने का उल्लेख ), ५४.३३( वही), सौप्तिक २.६, ११( अदैव उत्थान/पुरुषार्थ तथा दैव अनुत्थान के व्यर्थ होने का कथन ), शान्ति २९.११५( राजा गय द्वारा प्रतिदिन/उत्थायोत्थाय सहस्र गौ आदि दान करने का उल्लेख ), ४१.१८( युधिष्ठिर द्वारा विदुर, सञ्जय आदि को प्रतिदिन/उत्थायोत्थाय बूढे धृतराष्ट्र की सेवा करने का निर्देश ), ५६.१४( भीष्म - युधिष्ठिर संवाद में भीष्म द्वारा उत्थान/पुरुषार्थ के बिना दैव सिद्ध न होने का कथन ), ५८.१३-१५( बृहस्पति द्वारा राजाओं के लिए उत्थान/उद्योग के महत्त्व का कथन ), ७५.३( राजा के लिए धार्मिक पुरुषों की उत्थान आदि द्वारा पूजा करने का निर्देश ), १४०.२२( राजा के लिए प्रतिदिन उठ - उठकर/उत्थायोत्थाय शत्रु के घर जाकर उसका कुशल पूछने का निर्देश ), १६६.३८( ब्रह्मा के यज्ञ में अग्नि से असि रूपी भूत के उत्थित होने का उल्लेख ), १७७.७( उष्ट्र द्वारा २ दम्य गोवत्सों को उठाकर/उत्थाय भागने का उल्लेख ), ३३१.३७( उत्थान/प्रयत्न के फलित हो जाया करने की दशा में मृत्यु, वार्धक्य आदि से मुक्ति होने का उल्लेख ), ३५०.१४( ब्रह्मा द्वारा चरणों में पडे शिव का सव्य पाणि से उत्थापन करने का उल्लेख ), अनुशासन १७.१२९( उत्थान: सर्वकर्मणाम् : शिव के सहस्र नामों में से एक ), ४१.६( कामलोलुप इन्द्र का स्वागत करने के लिए उत्थातुकामा गुरु - पत्नी रुचि की देह का शिष्य विपुल द्वारा स्तम्भन करने का वर्णन ), १०४.१६( ब्राह्म मुहूर्त में धर्म - अर्थ का चिन्तन करने के पश्चात् उत्थित होकर आचमन आदि करने का निर्देश ) द्र. इन्द्रध्वज Utthaana
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Vedic contexts on Utthaana
उत्पत्ति योगवासिष्ठ ३.१२+ ( आत्मा के लय के पश्चात् तन्मात्राओं व जगत की उत्पत्ति का वर्णन ), ३.९३( परमेष्ठी ब्रह्म से मन, मन से हिरण्यगर्भ/ब्रह्मा, उनसे मोह, अहंकार, अहंकार से विश्व की उत्पत्ति का वर्णन ), ४.१२( मोह व अज्ञान से जगत की उत्पत्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२३८.४८( मार्गशीर्ष कृष्ण उत्पत्ति एकादशी व्रत की विधि व माहात्म्य : राजा मरुद्धन्व द्वारा अनावृष्टि में वृष्टि की प्राप्ति ), द्र. सर्ग, सृष्टि Utpatti
उत्पल नारद १.६८.३७ ( उत्पल की समित् से भूप - पत्नी व पद्म - समित् से भूपों को वश में करने का उल्लेख ) , १.८७.१४७ ( होम में उत्पल की आहुति द्वारा विश्व के वश में होने का उल्लेख ), १.९०.७०( उत्पल द्वारा देवी पूजा से उष्ट्र सिद्धि का उल्लेख ), १.९०.७०( रक्त उत्पल से देवी पूजा से अश्व सिद्धि का उल्लेख; उत्पल से उष्ट्र सिद्धि का उल्लेख ), पद्म ६.१३३.२४ ( सुभद्रा - सिन्धु संगम पर तीर्थ का नाम ) , ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३२ ( चक्षुओं में रूप हेतु लक्ष नीलोत्पल दान का उल्लेख ) , भविष्य ३.४.१०.५४ ( वाल्मीकि / मृगव्याध के तप से उत्पलारण्य की उत्पत्ति, वाल्मीकि के मरा-मरा जप से वन का उत्पल वन बनना, ब्रह्मा द्वारा उत्पलारण्य में तप करने का उल्लेख ) , मत्स्य १३.३४ ( कमलाक्ष तीर्थ में सती की महोत्पला नाम से स्थिति ) , १३.४५ ( उत्पलावर्तक तीर्थ में सती देवी का लोला नाम से वास ), ११४.३० ( मलय पर्वत से निकलने वाली उत्पलावती नदी ) , मार्कण्डेय ७४.२१/७१.२१ ( उत्पलावती : दृढधन्वा - पुत्री , राजा स्वराष्ट्र - भार्या , सुतपा ऋषि के शाप से मृगी रूप में जन्म, स्वराष्ट्र द्वारा मृगी की पुच्छ को ग्रहण करके नदी का प्लवन करना , उत्पलावती का लोल / तामस मनु की माता बनना ), लिङ्ग १.८१.२९( उत्पल पर षण्मुख की स्थिति का उल्लेख ), वायु ४५.१०५ ( मलय पर्वत से नि:सृत उत्पलावती नदी ) , विष्णुधर्मोत्तर ३.३७.११ ( निर्विकार स्थिति में उत्पल पत्र समान नेत्राकृति होने का कथन ) , ३.४८.१६ ( उमा देवी के हाथ में उत्पल वैराग्य का प्रतीक होने का उल्लेख ), ३.५२.१४( रति के हाथ में उत्पल सौभाग्य का प्रतीक ), ३.१२५.१९ ( उत्पलावर्तक तीर्थ में शौरि नाम से श्रीकृष्ण का कीर्तन करने का निर्देश ) , शिव २.५.५९ ( विदल व उत्पल दैत्यों की पार्वती पर आसक्ति , पार्वती द्वारा कन्दुक से दोनों दैत्यों का युगपत् नाश ), स्कन्द २.२.४४.५ ( संवत्सर व्रत में कार्तिक पूर्णिमा को उत्पल पुष्प द्वारा श्रीहरि की पूजा का निर्देश , अन्य मासों में अन्य पुष्पों का उल्लेख ),४.१.२१.३१ ( पुष्पों में नीलोत्पल की श्रेष्ठता का उल्लेख ) , ५.३.१९८.८३ ( उत्पलावर्त तीर्थ में उमा की लोला नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१५५.५८( स्वराष्ट्र राजा की योगिनी रानी उत्पलावती का वृत्तान्त : मृगी रूप धारण, तामस मनु को जन्म देना ), कथासरित् ९.६.११५ ( चन्द्रस्वामी द्वारा देवी से विषघ्न उत्पल की प्राप्ति , उत्पल प्रभाव से सर्प - दंशित पुत्र महीपाल का पुन: जीवित होना ) , १६.२.८०, १६.२.१७९ ( उत्पलहस्त : उज्जयिनी में चाण्डाल , पूर्व जन्म में विद्याधर , कन्या सुरतमञ्जरी का राजपुत्र अवन्तिवर्धन से विवाह करना , मुक्ति ), द्र. कमल , कुमुद , पद्म Utpala
Comments on Utpala
Vedic contexts on Utpala
उत्पलाक्ष देवीभागवत ७.३८.२८ ( सुवर्णाक्ष क्षेत्र में उत्पलाक्षी देवी की स्थिति ), पद्म ६.१३३.१४ ( रेवत गिरि पर उत्पलाक्ष / सहस्राक्ष तीर्थ की स्थिति ), मत्स्य १३.३४ ( सहस्राक्ष तीर्थ में सती की उत्पलाक्षी नाम से स्थिति ), स्कन्द ५.३.१९८.७२ ( सहस्राक्ष तीर्थ में उमा की उत्पलाक्षी नाम से स्थिति का उल्लेख ), द्र. कर्णोत्पल Utpalaaksha
उत्पात अग्नि २६३ ( उत्पात प्रकार व शान्तियां वर्णन) ,२६४.१( उत्पात शान्ति हेतु देव पूजा) , ३२१( उत्पात प्रकार अनुसार होम द्रव्य कथन ), देवीभागवत ११.२४( उत्पात शान्ति हेतु गायत्री जप विधि ), नारद १.५१.२( शान्ति कल्प में उत्पात शान्ति का विधान कथन ), १.५६.७४६ (उत्पात प्रकार वर्णन ),भविष्य २.३.२० (दिव्य , भौम , अन्तरिक्ष जन्य उत्पात , शान्ति उपाय ), ४.१३९ ( इन्द्रध्वज उत्सव में उत्पात ), भागवत ३.१७.३ (हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष के जन्म समय में उत्पात ), मत्स्य १६३.३०( हिरण्यकशिपु की सभा में उत्पात ), २२९+( उत्पात/ अद्भुत् भेद , लक्षण व शान्ति उपाय ), २३७( पशु - पक्षी जन्य उत्पात कथन ),महाभारत उद्योग १४३, भीष्म २, वा.रामायण ३.२३.१( खर द्वारा पञ्चवटी की ओर प्रस्थान करते समय उत्पात ), ६.२३.३( राम द्वारा सेतु पार करने पर द्रष्ट उत्पात ), ६.४१.१२ (राम द्वारा वानरी व राक्षसों की मृत्यु सूचक उत्पात दर्शन ), ६.५७.३३ (युद्ध के समय रावण - सेनानी प्रहस्त द्वारा द्रष्ट उत्पात ), ६.६५.४७( कुम्भकर्ण की रण यात्रा के समय उत्पात ), ६.७८.१७( मकराक्ष द्वारा युद्ध को प्रस्थान के समय उत्पात ), ६.९५.४२( रावण की रण यात्रा के समय उत्पात ), ६.१०६.२०( रावण - राम युद्ध के समय उत्पात ), विष्णुधर्मोत्तर १.३७(सिंहिका - पुत्र साल्व के नगर में उत्पात ), २.१३४( नाना विध उत्पात ), २.१३७( वृक्ष विकृति रूपी उत्पात व फल ), २.१३८( वृष्टि विकृति रूपी उत्पात ), २.१३९( जल विकृति रूपी उत्पात ), २.१४०( प्रसव विकृति रूपी उत्पात ), २.१४३( मृग - पक्षी विकृति रूपी उत्पात ), स्कन्द २.२.२५.६०( रथ यात्रा काल में रथ के अङ्गों के भङ्ग होने रूपी उत्पात का वर्णन ), ५.३.२८.३० ( बाण के त्रिपुर नाश हेतु शिव रथ के प्रस्थान के समय उत्पात वर्णन ) , ५.३.९०.४१ ( श्रीकृष्ण द्वारा वध से पूर्व तालमेघ दैत्य के समक्ष प्रकट उत्पातों का कथन ) , हरिवंश ३.४६( दैत्य विनाश सूचक उत्पात ), ३.५३.२७( बलि व इन्द्र के युद्ध में उत्पात ), लक्ष्मीनारायण २.१७६.३३ ( ज्योतिष में उत्पात योग कथन ), ३.१४६+ ( दैव , अन्तरिक्ष ,भौम आदि उत्पात व उनकी शान्ति वर्णन ), कथासरित् ८.५.९६( श्रुतशर्मा विद्याधर - सेनानी , अर्यमा देवता का अंश ) द्र.अद्भुत् , अपशकुन Utpaata
उत्सर्ग भविष्य ४.१२७ (वापी , कूप , तडाग उत्सर्ग विधि व माहात्म्य ), भागवत ६.१८.६( मित्र व रेवती - पुत्र ), स्कन्द ६.२६३.१४( देह उत्सर्ग से नर यज्ञ फल प्राप्ति का उल्लेख ) Utsarga
उत्सव अग्नि ६८ ( देवप्रतिष्ठा उपरान्त उत्सव विधि ) , ६९ ( स्नपनोत्सव विधि , कुम्भ विन्यास ) , २६८ ( शयनोत्थान उत्सव ) , नारद १.१२१.३९ ( नीराजन द्वादशी उत्सव विधि ) , पद्म ६.८३ ( दोलारोहण उत्सव ) , ६.८४ ( दमनक उत्सव ) , ६.८५ ( जलशयन उत्सव ) , भविष्य ३.३.२६ ( वामन उत्सव ) , ४.१३२( फाल्गुन पूर्णिमा उत्सव : राजा रघु व ढुण्ढा राक्षसी का वृत्तान्त ), ४.१३३ (दमनक उत्सव , दोलारोहण उत्सव , रथयात्रा उत्सव ) , ४.१३५ ( मदन उत्सव ) , ४.१३६ ( भूतमात्र उत्सव ) , ४.१३९ ( महेन्द्र ध्वज उत्सव ) , ४.१४० ( दीपमालिका उत्सव ), वामन ९१.५८ ( द्वार प्रतिपदा उत्सव , बलि राजा ) , ९१.६० ( कौमुदी उत्सव , बलि राजा ) , विष्णु ५.१० ( इन्द्र उत्सव ) , विष्णुधर्मोत्तर २.१५५ ( शक्रध्वज उत्सव ), शिव ५.५१.५५ ( चैत्र शुक्ल तृतीया को दोला उत्सव कथन ) , स्कन्द १.२.२२ ( जगदम्वा जन्म उत्सव ), २.२.३३ ( महादेवी उत्सव ) , , २.२.३६ ( चातुर्मास में पुरुषोत्तम शयन उत्सव विधि व माहात्म्य ), २.२.३९ ( कौमुदी उत्थापन उत्सव ), २.२.३९ ( शयन उत्सव , व्रत ) , २.२.४० ( प्रावरण उत्सव : पुरुषोत्तम का वस्त्रों दारा आच्छादन ) , २.२.४१( पुष्य स्नान उत्सव ), २.२.४२ (उत्तरायण उत्सव ) , २.२.४३ ( फाल्गुन में दोलारोहण उत्सव ),, २.४.३३.३८( प्रबोध उत्सव ) , २.४.३५.३३ ( त्रैपुर उत्सव ) , २.५.१४ ( मत्स्य उत्सव विधि व माहात्म्य ) , २.६.२.२५ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को आत्मोत्सव रूप प्रदान करना) , हरिवंश २.१५ ( व्रज में इन्द्र उत्सव ) , लक्ष्मीनारायण १.२८१( दोला उत्सव , मकर संक्रान्ति उत्सव , वसन्त उत्सव , होलिका उत्सव आदि ) , २.६५+ ( यज्ञोपवीत उत्सव वर्णन ) , २.११५.५४ ( फाल्गुन में पुष्प दोला महोत्सव विधि ), २.१७५.६३( उत्सव में गुरु के बलशाली होने का उल्लेख ) Utsava
उत्साह ब्रह्माण्ड १.२.३६.३९( महोत्साह : उत्तम मनु के १३ पुत्रों में से एक )
उत्स्थल कथासरित् ५.२.३३ (उत्स्थल द्वीप निवासी सत्यव्रत निषाद द्वारा शक्तिदेव की कनक द्वीप के अन्वेषण में सहायता करना ) , ५.३.१३७ ( उत्स्थल द्वीप में शक्तिदेव का बन्धन, सत्यव्रत - पुत्री बिन्दुमती से विवाह आदि )
उदक गरुड २.८.९/२.१८.९ ( उदकुम्भ प्रदान से किंकरी की तृप्ति होने का उल्लेख ) , २.२७.५/२.३७.५ ( उदकुम्भ प्रदान से प्रेत / मृत पुरुष की अस्थियों के पुष्ट होने का उल्लेख ) , ३.११.१(विष्णु के शयन काल में लक्ष्मी की उदक रूप में स्थिति), ३.११.३(निद्रासीन विष्णु के संदर्भ में उदक के गर्भोदक होने का उल्लेख), देवीभागवत ११.१६.५३ ( सायंकाल उदक प्रक्षेपण से सूर्य भक्षण के इच्छुक मन्देहा राक्षसों के नाश का कथन ) , नारद २.३२.६० ( विरोचन व उसकी पत्नी विशालाक्षी द्वारा द्विज के पादोदक ग्रहण करके उसे सिर पर ग्रहण करने व स्वर्ग जाने का वृत्तान्त ) , पद्म १.१०.२१ ( श्राद्ध में तिलोदक से पूर्ण उदकुम्भ दान का निर्देश ) , ३.२७.३२ ( पृथूदक तीर्थ की महिमा का वर्णन ), ३.३८.२७ ( गया में उदपान तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : वाजिमेध फल की प्राप्ति ) , ३.५३.८ ( गुरु के लिए नित्य प्रति उदकुम्भ आदि आहरण का निर्देश ), ६.१८८.४१ ( महाराष्ट्र में प्रत्युदक नगर में केशव ब्राह्मण द्वारा स्व - पत्नी के ताडन से अगले जन्म में शश बनने आदि की कथा ) , ६.२५२.३४ ( श्रीकृष्ण द्वारा स्वर्ण कलश से जल लेकर सखा सुदामा के पाद प्रक्षालन करने का उल्लेख ) , ७.२१.३४ ( भद्रक्रिय ब्राह्मण के पादोदक के स्पर्श से भषक / श्वान के उद्धार की कथा ) , ब्रह्म १.५७.६० ( पितृ तर्पण कर्म में उदक तर्पण की सम्यक् विधि का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१३७ ( उदधि की निरुक्ति :उदक का अयन ), १.२.३६.१०४ ( अरण्य - पुत्र उदक द्वारा वरुणत्व प्राप्ति और वारुणी - भ्राता होने का उल्लेख ), २.३.६.१०( महोदक : दनु व कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक ), २.३.१२.२१ ( नित्य बलि कर्म में उदकपूर्व तथा उदकान्त में बलि करने का निर्देश ) , २.३.१३.२६ ( ताम्रपर्णी - उदधि संगम से शंख - मौक्तिक युक्त उदक आहरण से व्याधियों आदि से मुक्ति पाने का कथन ), ३.४.२.२७८( जन्म - मृत्यु रूपी उदक वाली नदी का उल्लेख ), भविष्य १.६४.२१ ( सूर्य का उदक से अभ्युक्षण करने से वरुण लोक प्राप्ति का उल्लेख ) , १.१०३.३७ ( क्षय में सूर्य का उदक से अभ्युक्षण करने से कृष्ण / गोपति लोक प्राप्ति का उल्लेख ) , १.१९७.२३ ( उदक प्रसृति पीकर उदक सप्तमी व्रत करने का निर्देश ) , भागवत ९.२१.२६ ( उदक्स्वन : विष्वक्सेन - पुत्र, भल्लाद - पिता , नीप वंश ) , १०.८०.२० ( श्रीकृष्ण द्वारा सुदामा के पाद प्रक्षालन करके पादोदक को शीर्ष पर धारण करने का उल्लेख ), लिङ्ग १.४३.४६ ( मेघों द्वारा नन्दी के अभिषेक से स्वर्णोदक नदी का प्रादुर्भाव ) , वराह ७६.१३ ( पश्चिम दिशा में उदकाधिपति वरुण की शुद्धवती पुरी की स्थिति का उल्लेख ) , ११२.३४ ( कपिला गौ दान के समय ब्राह्मण के हाथ में उदक देकर शुद्ध वाक् द्वारा उच्चारण का निर्देश ) , २१५.६६ ( मृग रूप धारी शिव के शृङ्ग मूल से निःसृत जल से निर्मित मृग शृङ्गोदक तीर्थ का माहात्म्य : पाप नाश ) , २१५.९० ( क्रोशोदक तीर्थ का माहात्म्य कथन ) , वामन २१.२१ ( कुरुक्षेत्र में स्थित पृथूदक तीर्थ में उदक द्वारा पितरों की पूजा का निर्देश ) , २२.४५ ( पृथूदक तीर्थ की महिमा के संदर्भ में कुरुक्षेत्र की उत्पत्ति का वर्णन : राजा कुरु द्वारा स्व - शरीर का कर्षण ) , ३१.८५ ( उदक रहित पूजा का फल बलि असुरराज को प्राप्त होने का उल्लेख ), ५८.११५ ( क्रौञ्च पर्वत के वध के पाप से मुक्ति हेतु स्कन्द को पृथूदक तीर्थ में स्नान , तप आदि करने का निर्देश ) , वायु ४९.८५ ( उदय पर्वत पर उदक वर्ष की स्थिति का उल्लेख ) , ७७.२६/२.१५.२६ ( ताम्रपर्णी - उदधि संगम से शंख - मौक्ति युक्त उदक आहरण से व्याधि नाश का कथन ) , वा. रामायण २.६३.२६ ( सरयू तट पर माता - पिता हेतु उदक हरणार्थ गए मुनिकुमार का दशरथ द्वारा वध का वृत्तान्त ) , विष्णु ४.२.४० ( उदक ऋषि के अनुरोध पर कुवलयाश्व राजा द्वारा दुन्दु असुर के वध का उल्लेख ) , ४.४.५६ ( वसिष्ठ मुनि को शाप देने को उद्धत राजा सौदास द्वारा शाप हेतु पाणि के अम्बु को अपने पादों पर गिराना और पादों का कल्मषता को प्राप्त होना ) , ६.४.३२ ( प्रत्याहार में भूमि के उदक में व उदक के ज्योति में लीन होने आदि का कथन ) , विष्णुधर्मोत्तर २.२९.७ ( वास्तु विद्या के संदर्भ में उदक का शीध्र शोषण न करने वाली भूमि के प्रशस्त होने का उल्लेख ), ३.२३८.३४ ( पुण्यात्माओं द्वारा सूर्य के उदक में प्रवृत्त होने पर मृत्यु प्राप्त करने का उल्लेख ), ३.२९६.२ ( उदक महिमा के अन्तर्गत विभिन्न ऋतुओं में उदक के भण्डारण हेतु कूप , तडाग आदि निर्माण करने पर विभिन्न यज्ञों के फल की प्राप्ति का वर्णन ) , शिव ३.७.१८ ( शिव की जटाओं में आश्रित जल से जटोदक और स्वर्णोदक आदि नदियों के प्रादुर्भाव का कथन ) , स्कन्द १.२.४५.१, १.२.४६.१४७ ( बहूदक तीर्थ का विस्तृत माहात्म्य : नन्दभद्र वैश्य द्वारा कपिलेश्वर लिङ्ग की स्थापना , कुष्ठी बालक से संवाद आदि ), २.३.६.३६( सरस्वती के चारों वेदों का उदक? होने का उल्लेख ), २.४.३२.२५ ( कार्तिक शुक्ल एकादशी को अपत्य रहित भीष्म हेतु उदक दान आदि करने का निर्देश ) , ५.२.६७.१८ ( केदारेश्वर तीर्थ में शिव द्वारा मन्त्रपूर्ण उदक निर्माण करने आदि का कथन ) , ५.२.८४.१६ ( परीक्षित राजा द्वारा उदक का दर्शन न कराने की शर्त पर मण्डूकराज आयु की कन्या को प्राप्त करना , उदक दर्शन पर कन्या अदृश्य होना आदि ), ५.३.२१.६ ( सरस्वती नदी के तोय द्वारा तीन दिन , यमुना द्वारा ७ दिन आदि में पवित्र करने का कथन ) , ७.१.३३४.४३ ( तप्तोदक तीर्थ माहात्म्य : शिव के तृतीय नेत्र की ज्वाला से निर्माण , विष्णु द्वारा श्रम नाश हेतु तप्तोदक कुण्ड में स्नान ) , ७.३.२१.१( पिण्डोदक तीर्थ माहात्म्य : पिण्डोदक ब्राह्मण पर सरस्वती की कृपा से तीर्थ की उत्पत्ति ) , हरिवंश २.७४.४० ( श्रीकृष्ण द्वारा बिल्वोदकेश्वर शिव की स्थापना व स्तुति ), महाभारत आदि १४९.१५ ( लाक्षागृह से सुरक्षित बचे हुए पाण्डवों को मृत समझ कर भीष्म का पाण्डवों के लिए उदक कर्म में प्रवृत्त होना , विदुर द्वारा भीष्म को रोकना ) , सभा ५०.२५ ( मय द्वारा बिन्दु सरोवर के रत्नों से निर्मित पुष्करिणी में दुर्योधन को उदक का भ्रम होना ) , वन १८७.११ ( तपोरत वैवस्वत मनु द्वारा उदक से क्षुद्र मत्स्य की प्राप्ति , मत्स्य द्वारा विशाल रूप धारण और जल प्रलय में मनु की रक्षा का वृत्तान्त ) , १८८.९० ( जल प्रलय की क्रमिक अवस्थाओं के पश्चात् मार्कण्डेय ऋषि द्वारा बाल मुकुन्द के दर्शन का वृत्तान्त ) , १९२.११ ( राजा परीक्षित द्वारा मण्डूकराज आयु की कन्या सुदर्शना को उदक दर्शन न कराने की शर्त पर प्राप्त करना , उदक दर्शन पर कन्या का अदृश्य होने आदि का वृत्तान्त ) , ३१३.४१ ( यक्ष द्वारा युधिष्ठिर को उदक पान से रोकना , युधिष्ठिर द्वारा यक्ष के प्रश्नों का उत्तर देकर उदक पान करना आदि ) , ३१३.८५ ( आकाश के उदक होने का उल्लेख ) , शान्ति २३.४० ( पितरों को उदक प्रदान करने की चेष्टा पर लिखित के कटे हुए हाथों के पुन: प्रकट हो जाने की कथा ), ७४.२२(ब्राह्मण के लिए नित्योदकी होने का निर्देश), ३०१.६४(दुःख के उदक से पूर्ण कुण्ड का वर्णन ), ३४७.३ ( विष्णु द्वारा उदक्पूर्व में हयग्रीव अवतार धारण करने का उल्लेख ) , ३४७.३० (मधु - कैटभ असुरों द्वारा वेदों का हरण करके उदक्पूर्व में समुद्र में प्रवेश करने का उल्लेख ) , ३४७.५९ ( हयग्रीव अवतार द्वारा वेदों के उद्धार के पश्चात् स्वयं को समुद्र के उदक्पूर्व में स्थापित करने का उल्लेख ) , अनुशासन ९१.२६ ( श्राद्ध हेतु उदक आहरण के समय वरुण की स्तुति करने का निर्देश ), १०७.१३३ महाभारत के श्लोक में उदक व उदर्क का पाठ भेद ), द्र. उत्तंक , जल Udaka
Comments on Udaka
Vedic view of Udaka(by Dr. Tomar)
Vedic contexts on Udaka
उदक्या गरुड १.१०५.४१ ( उदक्या से सम्पर्क पर शुद्धि विधान ), भविष्य ४.२०५.४६ ( उदक्या / रजस्वला स्त्री के दर्शन , स्पर्श , संभाषण का निषेध ), मार्कण्डेय ३५.३२ , ३५.३८ ( उदक्या स्त्री से स्पर्श या दर्शन पर स्नान आदि शोधन कर्म का विधान ) , स्कन्द १.२.४१.१५३ ( उदक्या स्त्री के दर्शन आदि का निषेध ) Udakyaa
उदङ्क स्कन्द ३.१.१६.१८( कक्षीवान - गुरु , कक्षीवान को विवाह हेतु उपाय कथन ), महाभारत आरण्यक २०१( उदङ्क के अनुरोध पर कुवलाश्व द्वारा धुन्धु असुर का निग्रह - महर्षिर्विश्रुतस्तात उदङ्क इति भारत। मरुधन्वसु रम्येषु आश्रमस्तस्य कौरव ।।)
द्र. उत्तंक
उदधि ब्रह्माड १.२.१९.१३७ ( निरुक्ति ), द्र. समुद्र , सागर , सिन्धु
उदय अग्नि ११९.२० ( शाक द्वीप के ७ पर्वतों में से एक ) , कूर्म १.४९.३४ ( शाक द्वीप के ७ पर्वतों में से प्रथम ) , गरुड १.६२.१( सूर्य उदय की राशि से आरम्भ करके सूर्य द्वारा दिन व रात में ६ - ६ राशियों पर भ्रमण करने का कथन ) , देवीभागवत ८.१५.१८ ( मेरु के परित: चार दिशाओं में सूर्य के उदयास्त का कथन ),११.१६.९ ( उदय व अस्त के पश्चात् घटिका - त्रय तक सन्ध्या उपासना करने व उसके पश्चात् प्रायश्चित्त करने का निर्देश ), नारद १.५६.१७( उदय व अस्त पर सूर्य के शस्त्रों की भांति मेघों से आच्छादित होने के फल का कथन ) , २.४७.५० ( अगस्त्य द्वारा गया में शिला के वाम हस्त पर उदयाद्रि की स्थापना आदि का कथन ) , ब्रह्म १.२७.४४ ( उदित हुए सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने से सिद्धि प्राप्त होने का कथन ) , १.११३.५८ ( सूर्य के उदय व अस्त काल में शयन वर्जन का निर्देश ) , पद्म १.४५.१६० ( उदय पर्वत की विशिष्ट संरचना का कथन ) , ६.२०१.२५ ( उदयस्थ पुत्र द्वारा पिता के यश में वृद्धि होने का उल्लेख ) , भविष्य १.२१४.२० ( सूर्योदय पर उदया नामक अंगुलि मुद्रा का स्वरूप कथन ) , भागवत २.३.१७ ( उदय व अस्त होते हुए सूर्य द्वारा पुरुषों की आयु हरण का उल्लेख ) , मत्स्य १२२.८ ( मेरु के परित: स्थित पर्वतों में से एक उदय गिरि का स्वरूप कथन ) , १२३.३० ( चन्द्रमा के उदय व अस्त होने के साथ समुद्र के जल की वृद्धि व क्षय होने का कथन ) , १२४.२० ( मेरु के परित: चार दिशाओं में स्थित इन्द्र आदि की पुरियों में सूर्य के उदय व अस्त होने का वर्णन ) , १२८.११( सूर्य उदय होने पर रात्रि की अग्नि की उष्मा व तेज के आंशिक रूप में सूर्य में प्रवेश करने का कथन ) , १६३.६९ ( उदय पर्वत की विशिष्ट संरचना का कथन ; हिरण्यकशिपु के क्रोध से कम्पित होने वाले पर्वतों में से एक ) , मार्कण्डेय ३१.५९ ( भानु के उदय व अस्त पर शयन का निषेध कथन ) , वराह ८१.२ ( चन्द्रोदय पर्वत पर नागों का वास ) , १७७.३८ ( उदयाचल पर सूर्य की आराधना का फल मथुरा में भी मिलने का वर्णन ) , वायु ४९.७७ ( शाक द्वीप में मेरु के परित: स्थित सात पर्वतों में से एक स्वर्णिम उदय पर्वत का उल्लेख ) , ४९.८४ ( उदय पर्वत(? ) पर उदय / उदक वर्ष की स्थिति का उल्लेख ) , ५०.९४( मेरु के परित: चार दिशाओं में स्थित इन्द्र आदि की पुरियों में सूर्य के उदय - अस्त का वर्णन ) , १०८.४३ / २.४६.४६ ( गया में अगस्त्य द्वारा शिला के वाम हस्त पर उदय गिरि को स्थापित करने का कथन ) , वा.रामायण ४.४०.५४ ( सीता अन्वेषण के संदर्भ में सुग्रीव द्वारा वानरों को उदयाचल प्रदेश व उसके परित: स्थित प्रदेशों की महिमा का वर्णन ), ६.२८.१२ ( हनुमान द्वारा उदित होते हुए सूर्य के भक्षण की चेष्टा का कथन ) , ६.८८.५ ( लक्ष्मण का हनुमान के पृष्ठ पर आरूढ होकर उदयाचल पर स्थित सूर्य के समान शोभा पाने का उल्लेख ) , विष्णु २.८.१३ ( विभिन्न दिशाओं में स्थित पुरियों में सूर्य के उदय - अस्त होने का वर्णन ) , विष्णुधर्मोत्तर १.८५.४२ ( उदय व अस्त काल में सूर्य के आयुध सदृश मेघों से आच्छादित होने पर अशुभ होने का कथन ) , १.८६.१४ ( उदय व अस्त होते हुए बृहस्पति, शुक्र व बुध ग्रहों द्वारा पीडा देने का उल्लेख ) , २.१२४.२१( उदित हुए तथा उदित होते हुए आदित्य को सात जलांजलि देने से मन के दुःख विनाश का कथन ) , शिव २.५.८.१० ( त्रिपुर वध हेतु निर्मित शिव के रथ में उदय पर्वत की कूबर रूप में स्थिति ) , ५.१८.७१ ( चन्द्रमा के उदय व अस्त से जल के वर्धन व क्षय का कथन ) , स्कन्द ३.१.५.१२४ ( उदय पर्वत पर राजा उदयन के जन्म की कथा ) , ३.१.३०.११७(अर्द्धोदय - महोदय तीर्थ के माहात्म्य का कथन) ३.१.५२.१०१(अर्द्धोदय काल का महत्त्व), ३.१.५२.११३(अर्द्धोदय में सेतु तीर्थ में स्नान का महत्त्व), ३.२.६.५१ ( उदय - अस्त आदि होते हुए सूर्य के दर्शन का निषेध ) , ४.१.२९.३० ( उदिताम्बर मार्गा : गंगा सहस्रनामों में से एक ) , ४.१.३८.४४ ( उदय आदि होते हुए सूर्य के दर्शन का निषेध ) , ५.१.३२.७४ ( सूर्य की स्तुति के संदर्भ में उदयाद्रि के नितम्ब रूप का उल्लेख ) , ६.१३५.६० ( पतिव्रता द्वारा माण्डव्य ऋषि से शप्त स्वपति के प्राणों की रक्षा के लिए सूर्योदय के निषेध की कथा ) , ७.१.२३७.३६ ( साम्ब द्वारा मुसल को जन्म देने पर उत्पातों के रूप में उदय व अस्त के समय सूर्य के कबन्धों से आवृत्त होने का उल्लेख ) ,७.२.१५.११(रैवतक गिरि पर उदय व अस्त के समय छाया रहित वृक्षों के महत्व का कथन ) , हरिवंश ३.३५.५ ( यज्ञ वराह द्वारा निर्मित उदय पर्वत की बाल सूर्य व वेदी से तुलना ; उदय पर्वत पर स्थित वृक्षों का स्वरूप कथन ) , लक्ष्मीनारायण १.५५६.४७( राजा हिरण्यतेज द्वारा नर्मदा का उदयाचल पर अवतरण कराने का उद्योग ), २.६०+ (उदयपुर के राजा उदय द्वारा आर्यायन ऋषि से कृष्ण नाम दीक्षा प्राप्ति , कृष्ण के विराट रूप के दर्शन , स्तुति , कृष्ण द्वारा अतिवृष्टि में रक्षा, मोक्ष ) , कथासरित् २.१.५५ ( सहस्रानीक - पत्नी मृगावती का पक्षी द्वारा हरण व उदय पर्वत पर त्याग ) , ३.४.२३५ ( उदय पर्वत का विद्याधरों से अनाक्रम्य होने का उल्लेख ) , १२.५.२३ ( उदयतुङ्ग : अहिच्छत्रा नगरी के राजा ; प्रतीहार - पुत्र विनीतमति का वृत्तान्त ) , १२.५.६६ ( उदयतुङ्ग - पुत्री उदयवती के विनीतमति से विवाह का वृत्तान्त ), महाभारत वनपर्व १०४.२ ( उदय व अस्त के समय सूर्य द्वारा कनकमय मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा करने का उल्लेख ) , १०९.७९ ( युगान्त काल में उदय - अस्त के समय भानु के कबन्ध / राहु से ग्रस्त होने का उल्लेख ) , विराट २९.६ ( उपयुक्त काल आने पर पाण्डवों के अज्ञातवास से उदित होने का उल्लेख ) , उद्योग ९९.१० ( पाताल में नित्यप्रति चन्द्रमा के उदय होने तथा प्राणियों को अपने रश्मि रूपी अमृत से जीवित करने का उल्लेख ) , १०८.१६ (सूर्य द्वारा पूर्व दिशा में उदित होने पर कृतघ्नों ,मनुष्यों और असुरों का हनन करने का उल्लेख ) , १४३.२४ ( उदयास्त के समय शिवा /गीदडी द्वारा शब्द के पराभव का लक्षण होने का कथन ) , भीष्म २.२० ( उदयास्त के समय सूर्य का कबन्धों से घिरा होना भय सूचक होने का उल्लेख ) , ७.३ ( कुरुक्षेत्र में कौरव - पाण्डव युद्ध के आरम्भ में उदय के समय सूर्य के द्विधाभूत दिखाई पडने का उल्लेख ) , द्रोण २३.२९(उदयेन्दु – इन्द्रप्रस्थ का अपर नाम), ३४.२१( श्वेत छत्र से सुशोभित दुर्योधन की उदय काल के सूर्य से उपमा ) , १८७.२ ( सूर्योदय होने पर पुन: कौरव - पाण्डव युद्ध आरम्भ होने का उल्लेख ) , कर्ण १२.२२ ( नाग / हस्ती पर बैठे भीमसेन की उदयाद्रि पर उदित भास्कर से उपमा ) , ६०.४० ( रण में श्वेत छत्र से विराजित कर्ण की चन्द्रमा से सुशोभित उदय पर्वत से उपमा ), शान्ति ३२८.३८/३३६.६२ ( सोम आदि ज्योतियों का उदय उदान / उद्वह वायु के कारण होने का उल्लेख ) , अनुशासन २३.२८ ( उदय से अस्त तथा अस्त से उदय होने में समर्थ व्यक्ति के ही केतन / पितृकार्य में उपयुक्त होने का उल्लेख ), द्र. अस्त ,नित्योदित, महोदय , शुभोदय Udaya
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उदयन मत्स्य ५०.८६ ( शतानीक - पुत्र , वहीनर / अहीनर - पिता , अधिसोमकृष्ण - वंश ) , विष्णु ४.२१.१५ ( वही) , ४.२४.१६ ( अर्भक - पुत्र , नन्दिवर्धन - पिता , प्रद्योत - वंश ) , स्कन्द ३.१.५.१२४ ( सहस्रानीक व मृगावती - पुत्र उदयन द्वारा धृतराष्ट्र नाग - पुत्री ललिता से विवाह , ललिता से वीणा आदि ग्रहण ) , कथासरित् २.१.६८ ( सहस्रानीक व मृगावती - पुत्र , वसुनेमि नाग की रक्षा पर नाग से दिव्य वीणा , माला व ताम्बूल लता प्राप्त करना ) , २.३.१ ( उदयन का राज्याभिषेक , चण्डमहासेन राजा द्वारा उदयन से स्वपुत्री वासवदत्ता को संगीत की शिक्षा देने का आग्रह ) , २.४.१ ( यन्त्र हस्ती के लोभ में उदयन का चण्डमहासेन द्वारा बन्धन , उदयन द्वारा वासवदत्ता को शिक्षा , मन्त्रियों द्वारा मुक्ति का उद्योग ) , २.५.१ ( उदयन द्वारा वासवदत्ता के हरण का वृत्तान्त ) , २.६.१ ( उदयन का वासवदत्ता से विधिवत् विवाह ) , ३.१.७ ( उदयन राजा के राज्य के हित हेतु मन्त्रियों द्वारा वासवदत्ता के जल जाने के झूठे संवाद प्रसारण की योजना ) , ३.१.१२९ ( नारद मुनि का आगमन व सत्परामर्श ) , ३.२.१ ( वासवदत्ता के जलने पर उदयन द्वारा मगधराज - पुत्री पद्मावती से विवाह का वर्णन ), ३.४.२८ ( उदयन द्वारा गोपालकों के स्थान से निधान / खजाना व सिंहासन की प्राप्ति ), ३.५.१ (वत्सराज उदयन द्वारा दिग्विजय हेतु शिव की आराधना ) , ३.५.५०( दिग्विजय के लिए प्रयाण ) , ४.१.१७ ( नारद मुनि से वार्तालाप ), ४.१.१४४ ( कामदेव के अंश नरवाहनदत्त नामक पुत्र का भावी जन्म ) , ४.३.६१ ( नरवाहन दत्त पुत्र का जन्म ) , ५.१.९ ( उदयन की सभा में शक्तिवेग विद्याधर का प्राकट्य ), ६.४.१५ ( शिव द्वारा मदनवेग विद्याधर को वत्सराज वेश धारण कर कलिङ्गसेना से विवाह का परामर्श ) , ६.४.३६ ( कलिङ्गसेना द्वारा उदयन राजा की कीर्ति का श्रवण ) , ६.५.८० ( उदयन के मन्त्री द्वारा शुभ मुहूर्त्त के बहाने उदयन का कलिङ्गसेना से विवाह स्थगित करना ) , ६.७.७६ ( मन्त्री के परामर्श पर उदयन का कलिंग सेना से विवाह के विचार का त्याग ) , ६.७.१७० ( मदनवेग विद्याधर द्वारा वत्सराज का रूप धारण कर कलिङ्गसेना से मिलन व विवाह ) , ६.८.१ ( कलिङ्गसेना द्वारा वत्सराज की आसक्ति की उपेक्षा ) , ७.१.१४५ ( उदयन द्वारा पुत्र नरवाहन दत्त की नववधू रत्नप्रभा का अभिनन्दन ) Udayana
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उदयसिंह भविष्य ३.३.१.३३ ( देशराज व देवकी - पुत्र, कृष्ण का अंशावतार ) , ३.३.९.३७ - ( जन्म समय पर सूर्योदय समान दीप्ति से उदयसिंह नाम प्राप्ति ) , ३.३.१०.१७ ( महीपति - पुत्र अभय को मल्ल युद्ध में परास्त करना ) , ३.३.१०.३५ ( महीपति राजा से दिव्य अश्व बिन्दुल की प्राप्ति ) , ३.३.११.६ ( जगदम्बा की आराधना से योगत्व प्राप्ति ) , ३.३.११.२२ ( महीपति का कृष्णांश /उदयसिंह के विरुद्ध पृथिवीराज से सहायता की याचना , कृष्णांश द्वारा पृथिवीराज को सेना सहित परास्त करना ) , ३.३.१२.२ ( रत्नभानु - पुत्र लक्षण की कृष्णांश के दर्शन की उत्कंठा , कृष्णांश द्वारा स्वपिता के वध का समाचार श्रवण ) , ३.३.१२.१७ ( पितृघाती राजा जम्बुक को दण्ड देने के लिए माहिष्मती पुरी गमन , जम्बुक - पुत्री रूपण का पाणिग्रहण ) , ३.३.१२.६९ ( पञ्चशब्द नामक गज के ताडन से मूर्च्छा प्राप्ति , देवकी द्वारा गजराज को तुष्ट करने का उद्योग ) , ३.३.१३.९४ ( राजा नेत्रसिंह द्वारा छल से वध का प्रयास , नेत्रसिंह व पुत्रों का बन्धन ) , ३.३.१३.१२३ ( अनुज आह्लाद को शत्रु के बन्धन से मुक्त करना ) , ३.३.१६.४९ ( गजसेन राजा द्वारा पावकीय हय की सहायता से कृष्णांश को मूर्च्छित करना, वडवामृत हय द्वारा कृष्णांश का पुन: जीवित होना ) , ३.३.१७.४१ ( पृथिवीराज - पुत्र नृहरि से युद्ध) , ३.३.२१.३ ( मयूरनगरी में गमन , स्त्री वेश धारण करके मयूरध्वज - पुत्री पुष्पवती से मिलन, मयूरध्वज - पुत्र मकरन्द की स्त्री वेश धारी कृष्णांश पर आसक्ति ) , ३.३.२१.१०३ ( उदयसिंह का पुष्पवती से विवाह ) , ३.३.२२.५ ( उदयसिंह द्वारा पुष्पवती को पूर्व जन्म का वृत्तान्त कथन :पूर्व जन्म में शालग्राम शिला पूजक चन्द्रदास राजा ) , ३.३.२२.३१( वीरसेन नृप - सुता चन्द्रावली से मिलन , चन्द्रावली द्वारा उदयसिंह की विषयुक्त भोजन से रक्षा , वीरसेन से युद्ध , वीरसेन के सौर अस्त्र से मूर्च्छित होना , ब्रह्मानन्द द्वारा ब्रह्मास्त्र से रक्षा ) , ३.३.२३.११ ( चित्ररेखा द्वारा आह्लाद - पुत्र इन्दुल के हरण पर उदयसिंह द्वारा मिथ्या दोष प्राप्ति , इन्दुल की मुक्ति का उद्योग ) , ३.३.२४.७ ( पृथिवीराज द्वारा दिव्य अश्वों की मांग , परिमल राजा द्वारा राज्य से निष्कासन , जयचन्द्र द्वारा शरण देने की अस्वीकृति पर जयचन्द्र सेना से युद्ध , कुवलयपीड गज का वध , लक्षण सहित दिग्विजय हेतु प्रस्थान , उष्ट्र , पुण्ड्र आदि देशों पर विजय , वीरसिंह पुर पर विजय प्राप्ति हेतु योगी गोरखनाथ को संतुष्ट करना ) , ३.३.२८.३४ ( उदयसिंह की शोभा वेश्या पर कृपा , शोभा द्वारा कृष्णांश को शुक बनाना , स्वर्णवती द्वारा कृष्णांश का हरण व शोभा की माया से रक्षा ) , ३.३.३०.२६ ( उदयसिंह द्वारा पृथिवीराज द्वारा बन्धित लक्षण के अन्वेषण का उद्योग ) , ३.३.३१.१२८ (सूर्यवर्मा - पत्नी कान्तिमती की कर्बुर राक्षस से मुक्ति का उद्योग ) , ३.३.३२.११३ ( युद्ध में अङ्ग राजा का वध ) , ३.३.३२.१९६ ( चामुण्ड से युद्ध में मृत्यु ) Udayasimha
उदर अग्नि ३४.३७ ( अग्नि के बाह्य स्वरूप में कुण्ड की अग्नि के आत्मिक स्वरूप में उदर से तुलना / साम्य ) , ३४१.२० ( अभिनय कर्म में उदर के दुरतिक्षाम , खण्ड व पूर्ण नामक तीन भेदों का उल्लेख ) , गरुड १.६५.१०८/ १.६५.११७ ( प्रलम्ब उदर वाली स्त्री के श्वसुर हन्ता होने का कथन ) , १.१६१.१ ( उदर रोगों के निदान का वर्णन ) , १.१९४.८ ( वैष्णव कवच वर्णन के अन्तर्गत मुसल से उदर तथा हल से पृष्ठ की रक्षा की प्रार्थना- उदरं मुसलं पातु पृष्ठं मे पातु लाङ्गलम् ), १.२०५.१४८/ १.२१३.१५३ ( मुख में आहवनीय , उदर में गार्हपत्य व पृष्ठ में दक्षिणाग्नि के वास का उल्लेख ) , देवीभागवत २.१.३४ ( मत्सी / मत्स्य के उदर विदारण पर मत्स्य नामक राजा व मत्स्यगन्धा कन्या के उत्पन्न होने का वर्णन ) , ४.३.४२ ( इन्द्र द्वारा दिति के उदर में प्रवेश करके गर्भ को सप्तधा काटने तथा मरुतों के जन्म का वर्णन ) , ६.१२.६५ ( पुत्र रोहित को यज्ञपशु न बनाने पर राजा हरिश्चन्द्र द्वारा जलोदर रोग प्राप्ति व उससे मुक्ति का वृत्तान्त ), ७.१५.६४ (वही), नारद २.१७.२४ ( सन्ध्यावली माता द्वारा तीन संवत्सरों तक पुत्र वृषांगद को उदर में धारण करने का उल्लेख ) , पद्म १.१३.३०० ( जलमध्य में तपोरत शुक्राचार्य को महादेव द्वारा पीकर उदरस्थ करने और शिश्न मार्ग से विसर्जित करने का उल्लेख ) , १.३९.८१( पुरुषोत्तम के उदार से प्रतिहर्त्ता व पोता नामक ऋत्विजों की उत्पत्ति का उल्लेख ; अन्य अंगों से अन्य ऋत्विजों की उत्पत्ति ) , ६.३६.११ ( विष्णु मूर्ति की पूजा में मूर्ति के उदर में विश्वनाथ के ध्यान का उल्लेख ) , ६.४५.५० ( परशुराम की मूर्ति की पूजा में उदर में पद्मनाभ के ध्यान का उल्लेख ) , ब्रह्मवैवर्त ३.३१.३३ ( त्रैलोक्यविजय कवच वर्णन में मुकुन्द कृष्ण से उदर की रक्षा की प्रार्थना ) , भागवत ३.२६.५९ ( विराट पुरुष में उदर प्रकट होने पर क्षुधा - पिपासा का प्रकट होना व इनसे समुद्र का प्रकट होना ) , ९.७.१७ ( पुत्र रोहित को यज्ञपशु न बनाने पर राजा हरिश्चन्द्र के महोदर से पीडित होने का वृत्तान्त ) , मत्स्य १६७.९ ( पुरुषोत्तम के उदर से प्रतिहर्त्ता व पोता नामक ऋत्विजों की उत्पत्ति का उल्लेख ) , १९८.१८ ( परस्पर विवाह्य गोत्रों के वर्णन के संदर्भ में उदरेणु ऋषि का उल्लेख ) , वा. रामायण ३.६९.२७ ( कबन्ध राक्षस का मुख उसके उदर में होने का उल्लेख ) , ६.५९.१७ ( महोदर : रावण - सेनानी , घण्टे की ध्वनि वाले गज पर आरूढ होने का उल्लेख ), लिङ्ग १.२०.२२ ( विष्णु का ब्रह्मा के मुख द्वारा उदर में प्रविष्ट होकर विविध लोकों के दर्शन करना , तत्पश्चात पितामह ब्रह्मा द्वारा विष्णु के शाश्वत उदर में प्रविष्ट होकर उन्हीं लोकों का गर्भस्थ रूप में दर्शन करना व नाभि मार्ग से निर्गमित होना ) , वराह १.१५ ( पृथिवी द्वारा यज्ञ वराह की कुक्षि में ब्रह्माण्ड दर्शन का उल्लेख ) , वामन ३१.६२ ( वामन के अवामन रूप में उदर में गन्धर्वों व मरुतों की स्थिति का उल्लेख ) , विष्णुधर्मोत्तर १.७८.१७ ( मार्कण्डेय द्वारा बालमुकुन्द के विग्रह / उदर में प्रवेश करके जगती के दर्शन करने का कथन ) , १.७९.१९ ( ब्रह्मा द्वारा अनन्तशायी विष्णु के उदर में प्रवेश करके जगती के दर्शन करने तथा सूक्ष्म पद्मनाल के मार्ग से विनिर्गत होने का कथन ) , स्कन्द २.२.३.३१ ( मार्कण्डेय द्वारा बालमुकुन्द के उदर में १४ भुवनों आदि के दर्शन करने का वर्णन ), ४.१.३७.५० ( उदर आकार के अनुसार स्त्री के गुणों का कथन ), ४.२.७२.६१ ( जगदीश्वरी देवी से उदरदरी की रक्षा की प्रार्थना - अव्यात्सदा दरदरीं जगदीश्वरी नो ), ५.२.४८.२६ ( दानवों से भयभीत केशव व ब्रह्मा को अभय नामक शिव लिङ्ग द्वारा जठर में धारण करने व देव-द्वय द्वारा जठर में सर्व जगत के दर्शन का कथन ) , ५.३.३९.३१ ( कपिला गौ के उदर में यम देव की स्थिति का उल्लेख ) , ५.३.१११.१६ ( शिव के वीर्य रूपी तेज से अग्नि के उदर में व्यथा होने पर शिव द्वारा तेज को गङ्गा जल में फेंकने का निर्देश ) , हरिवंश २.८०.३३ ( कृशोदर हेतु अपेक्षित उपाय कथन ) , ३.७१.५२ ( वामन के विराट रूप में उदर में गन्धर्व व सर्प होने का उल्लेख ) , महाभारत आदि ११४.११ ( गान्धारी द्वारा अपने उदर पर आघात करने से मांसपेशी के जनने तथा मांसपेशी से १०० पुत्रों के जन्म का वृत्तान्त ) , शल्य ४५.६३ ( उदाराक्ष : स्कन्द के सैनिकों में से एक ), योगवासिष्ठ ३.७४.१५( सूची द्वारा उदर सौषिर्य के पिण्डीकरण द्वारा अशना निवारण का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२७९.४१ ( गणेश के स्त्री समान उदर के भोज्यप्रद व पुत्रादि दायक होने का उल्लेख ) , ३.३२.४७ ( इलोदर : राहु - पुत्र इलोदर द्वारा अमरता प्राप्ति हेतु तप , रस पान , श्री रस नारायण द्वारा वध की युक्ति ), द्र. कुण्डोदर , घटोदर , चूडोदर , दामोदर , धरोदर , न्यास , मन्दोदरी , महोदर , रहोदर , लम्बोदर , शालोदर Udara
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उदान अग्नि ८५.१४(प्रतिष्ठा कला/स्वप्न के २ प्राणों में से एक, सुषुम्ना नाडी में उदान वायु की स्थिति का कथन ), २१४.११( उदान वायु के विशिष्ट कार्यों का कथन : अधर वक्त्र का स्पन्दन , नेत्र रोग प्रकोपक, मर्मों का उद्वेजन ) , कूर्म १.७.३८ ( ब्रह्मा द्वारा उदान से पुलस्त्य की सृष्टि करने का उल्लेख ) , गरुड १.१५.७५ ( उदानस्य पति: : विष्णु सहस्रनामों में से एक ) , १.१४१.४ ( सुदानक - पुत्र , अह्निनर - पिता , शतानीक वंश ) , १.१५३.४ ( उदान द्वारा सन्धियों में फेंके गये दोषों से उत्पन्न विकारों का वर्णन : क्लेश , अरुचि आदि आदि ) , x/२.२.४७ ( मृत्यु काल में काया में उष्मा का प्रकोप होने के पश्चात् उदान वायु द्वारा ऊर्ध्व दिशा में गमन करके भुक्त अन्न की अधोगति निरोध करने का कथन ) , देवीभागवत ३.१२.५० ( यज्ञ में सभ्य अग्नि के उदान व आवसथ्य के समान वायु से तादात्म्य होने का उल्लेख ), ११.२२.२८ ( प्राणाग्निहोत्र में मध्यमा , अनामिका व अङ्गुष्ठ से उदान की आहुति देने का निर्देश ) , ११.२२.३९ ( उदान मन्त्र के वर्ण , ऋषि , देवता व छन्द का कथन : शक्रगोप - सम वर्ण आदि ) , नारद १.४२.८० ( उदान से उच्छ्वास उत्पन्न होने का उल्लेख ), १.४२.१०३( उदान के प्रयत्न, कर्म व नियम में कारण होने का उल्लेख ), १.६०.१४ ( साध्य - पौत्र , समान - पुत्र , व्यान - पिता आदि ), १.६०.२०( उदान के कर्मों का कथन ), पद्म २.१२०.३६( उदान के कारण तीव्र स्फुरण पर शब्द तथा शब्द से श्वास उत्पन्न होने आदि का कथन ), ब्रह्म १.७०.५८ ( देहधारियों में उदान के अर्ध होने का उल्लेख ), १.१०५.३३ ( मृत्युकाल में उदान का ऊर्ध्व दिशा में प्रवृत्त होकर भुक्त अन्न आदि की अधोगति निरोध करने का कथन ) , ब्रह्मवैवर्त्त २.२.४५ ( कृष्ण व उनकी प्रिया के बीच सुरतान्त में प्रिया की नि:श्वास वायु से प्राण , अपान आदि के उत्पन्न होने का उल्लेख ) , ब्रह्माण्ड १.१.५.७५ ( ब्रह्मा के उदान से पुलस्त्य ऋषि व अन्य वायुओं से अन्य ऋषियों की उत्पत्ति का उल्लेख ) , १.२.९.२४ ( वही) , २.३.३.१९ ( स्वायम्भुव मन्वन्तर के मन , अनुमन्ता , प्राण , नर आदि १२ साध्य देवों का स्वारोचिष मन्वन्तर में प्राण, अपान, उदान आदि १२ तुषित देव बनने का कथन ), २.३.७२.५२ ( परमात्मा के साथ वायु का गर्भ में प्रवेश करके प्राण , अपान आदि वायुओं में विभाजित होने तथा उदान के देहधारियों में अर्ध होने का कथन ) , भविष्य १.१५७.४४ ( गर्भ में वायु के प्रवेश पर उदान का ऊर्ध्व दिशा में प्रवृत्त होना ) , मत्स्य २९०.६ ( १३वें कल्प के रूप में उदान का उल्लेख ) , मार्कण्डेय १०.५० ( मृत्यु काल में देह में उष्मा के प्रकुपित होने पर उदान की ऊर्ध्व प्रवृत्ति होने, भुक्त जलों व अन्नों की अधोगति का निरोध होने और दान किये हुए जल व अन्नों द्वारा आह्लाद प्राप्त होने का कथन ) , लिङ्ग १.७०.१८७ ( ब्रह्मा द्वारा उदान से पुलस्त्य की सृष्टि का उल्लेख ) , २.२७.८२ ( उदाना : श्रीव्यूह के प्रथम आवरण में स्थित शक्तियों में से एक ) , वायु ९.९४ ( ब्रह्मा के उदान से पुलस्त्य की सृष्टि का उल्लेख ) , २१.४३ ( २१वें कल्प में ब्रह्मा के पांच मानस पुत्रों के रूप में प्राण , उदान आदि का उल्लेख ) , ६६.१८ / २.५.१८ ( प्राण, अपान , उदान आदि तुषित देवों के स्वारोचिष मन्वन्तर में नामों का कथन ), ९७.५४ /२.३५.५४ (गर्भ में परमात्मा सहित वायु के प्रवेश पर उदान का शरीर में ऊर्ध्वमुखी होने का उल्लेख ) , शिव २.१.१६.५ ( ब्रह्मा द्वारा उदान से पुलस्त्य की सृष्टि का उल्लेख ) , स्कन्द १.२.५०.२२ ( देह में प्राण आदि के विशिष्ट कार्यों का कथन : उदान द्वारा वाक् प्रवृत्ति , उद्गार , सर्व कर्मों में प्रयत्न में , कण्ठ के सुर में स्थिति ), ७.१.१०५.४८ ( ३० कल्पों में से १३वें कल्प का नाम ), हरिवंश १.४०.५८ ( अपान के पश्चिम काया में तथा उदान की ऊर्ध्व काया में स्थिति का कथन ), महाभारत वन २१३.८ ( प्राण के प्रयत्न, कर्म व बल में प्रवृत्त होने पर प्राण की उदान संज्ञा का उल्लेख ) , शान्ति ३२८.३३ ( समान - पुत्र , व्यान - पिता आदि ) , ३२८.३८ ( आधिभौतिक उद्वह वायु का देह के अन्दर उदान वायु से तादात्म्य तथा उसके विशिष्ट कार्यों का कथन ) , आश्वमेधिक २०.१६ ( अपान व प्राण के मध्य उदान की स्थिति आदि का कथन ) , २३.५ ( व्यान से पुष्ट वायु के उदान तथा उदान से पुष्ट वायु के समान होने आदि का कथन ) , २३.२० ( प्राण, अपान आदि की श्रेष्ठता वर्णन के अन्तर्गत उदान के वश में केवल व्यान होने का कथन ), २४.७ ( शुक्र और रस से उत्पन्न हर्ष के उदान रूप होने का कथन; मिथुन से उदान की उत्पत्ति, उदान के द्वन्द्वातीत होने का कथन ) , २४.१२ प्राणापान रूप अहोरात्र के मध्य हुताशन / अग्नि के उदान रूप होने आदि का कथन ) , २४.१५ ( सत् व असत् के मध्य हुताशन के उदान रूप होने का कथन ) , ३९.२० ( प्राण, अपान व उदान के रूप में गुण - त्रय का कथन ), द्र. प्राण - अपान आदि Udaana
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उदार ब्रह्माण्ड १.२.३६.९९ ( उदारधी : प्राचीनगर्भ व सुवर्चा - पुत्र , भद्रा - पति , दिवंजय - पिता , उत्तानपाद - वंश ), वामन ९०.१८( उदाराङ्ग तीर्थ में विष्णु का श्रीवत्साङ्क नाम से वास? ), वायु ६२.८५ ( वही), लक्ष्मीनारायण १.४१२.४५( समुद्र मन्थन से उत्पन्न प्रथम पुरुष, प्रसन्नता - पति ), कथासरित् ९.१.१७४ ( पत्रपुर के राजा उदारचरित के राज्य में राजा पृथ्वीरूप का आगमन , उदारचरित द्वारा सत्कार ) Udaara
उदासीन पद्म २.१२.२२ ( उदासीन पुत्र के लक्षण )
उदुम्बर
कूर्म २.१७.२१
(
द्विज
के लिए उदुम्बर आदि भक्षण का
निषेध )
,
नारद
१.५६.२०४
(
उदुम्बर
वृक्ष की कृत्तिका नक्षत्र
से उत्पत्ति का उल्लेख -
उडुंबरश्चाग्निधिष्ण्ये
रोहिण्यां जंबुकस्तरुः ॥
)
,
१.६८.३८
(
उदुम्बर
की समिधा की आहुति से नृपतियों
के वश में होने का उल्लेख ),
१.९०.१८०
(
शुक्रवार
को अग्नि में उदुम्बर की आहुति
देने से इष्ट फल प्राप्ति का
कथन -
उदुंबरस्य
भृगुजे शम्या मांदेऽह्नि
गोघृतैः ।
शुभ्रपीतसितश्यामवर्णाद्याः
पूर्ववत्तथा ।।
)
,
१.११९.६०
(
औदुम्बर
:
१४
यमों में से एक ;
फाल्गुन
शुक्ल दशमी को १४ यमों के यजन
का निर्देश )
,
पद्म
१.१६.१९०
(
ब्रह्मा
के यज्ञ में ब्रह्मा का मृगचर्म
से आवृत?
औदुम्बर
दण्ड द्वारा सुशोभित होने का
उल्लेख
-
औदुंबेरण
दंडेन प्रावृतो मृगचर्मणा।
महाध्वरे
तदा ब्रह्मा धाम्ना स्वेनैव
शोभते
)
,
१.१९.२३५
(
दुर्भिक्ष
काल में राजा द्वारा ऋषियों
को हेमपूर्ण उदुम्बर दान करने
का प्रयास ,
ऋषियों
की प्रतिक्रियाओं का वर्णन
-
उदुंबराणि
व्यकिरन्हेमगर्भाणि भूतले।
ततो
ह्यन्नं विचिन्वंतो
गृह्णंश्चोदुंबराण्यपि।।
)
,
३.५६.२२
(
द्विज
के लिए उदुम्बर आदि भक्षण का
निषेध कथन )
,
६.१२२.१३
(
औदुम्बर
:
१४
यमों में से एक ;
कार्तिक
कृष्ण चर्तुदशी को १४ यमों
के लिए दीप दान का निर्देश
-
औदुंबराय
दध्नाय नीलाय परमेष्ठिने।
वृकोदराय
चित्राय चित्रगुप्ताय वै नमः
)
,
भविष्य
४.११३.३२
(
शनि
ग्रह हेतु उदुम्बर की समिधा
होम का निर्देश
-
अर्कः
पलाशखदिरौ ह्यपामार्गोथ
पिप्पलः ।
उदुंबरशमीदूर्वाकुशाश्च
समिधः क्रमात् ।।
)
,
४.१४१.३१
(
वही)
,
भागवत
३.१२.४३(
औदुम्बर
:
ब्रह्मा
से उत्पन्न संन्यासियों के
प्रकारों में से एक,
द्र.
टीका
-
वैखानसा
वालखिल्यौ दुम्बराः फेनपा
वने ।
),
९.११.३२
(
राम
के महल में विद्रुम निर्मित
उदुम्बर देहली होने का उल्लेख
-
विद्रुमोदुम्बरद्वारैः
वैदूर्य स्तंभपङ्क्तिभिः
।
),
मत्स्य
९३.१०१
(
अग्नि
में वसुधारा होम के लिए आर्द्र
औदुम्बरी स्रुचा निर्माण का
निर्देश -
औदुम्बरीं
तथार्द्राञ्च ऋज्वीं
कोटरवर्जिताम्।
बाहुमात्रां
स्रुचं कृत्वा ततस्तम्भद्वयोपरि।
घृतधारान्तया
सम्यगग्नेरुपरि पातयेत्।।
)
,
९६.८
(
फल
त्याग माहात्म्य के अन्तर्गत
रजत से निर्माण किए जाने वाले
१६ फलों में से एक उदुम्बर का
उल्लेख
-
औदुम्बरं
नालिकेरं द्राक्षाथ बृहतीद्वयम्।
रौप्यानिकारयेच्छक्त्या
फलानीमानि षोड़श।।
)
,
योगवासिष्ठ
६.२.१३.६
(
उदुम्बर
फल की जगत से उपमा
-
कस्यांचिद्युगशाखायां
फलं जगदुदुम्बरम् ।
ससुरासुरभूतौघमशकाहितघुंघुमम्
।
),
लिङ्ग
१.४९.६१
(
उदुम्बर
वन में कर्दम तथा अन्य महात्माओं
के निवास का उल्लेख )
,
२.६.५१
(
गृह
में उदुम्बर आदि वृक्ष होने
पर गृह में अशुभा -
पुत्र
दुःसह के प्रवेश का कथन
-
न्यग्रोधं
वा गृहे येषामश्वत्थं चूतमेव
वा।
उदुंबरं
वा पनसं सभार्यास्त्वं समाविश।।
)
,
वराह
८०.१
(
इक्षुक्षेप
पर्वत शिखर पर स्थित उदुम्बर
वन का माहात्म्य :
महाकूर्म
समान फल ,
कर्दम
मुनि का आश्रम आदि
-
इक्षुक्षेपे
च शिखरे पादपैरुपशोभितम् ।
उदुम्बरवनं
रम्यं पक्षिसङ्घनिषेवितम्
।।
फलितं
तद् वनं भाति महाकूर्मोपमैः
फलैः ।।
)
,
१२८.१८(
वैश्य
वर्ण की दीक्षा के अन्तर्गत
उदुम्बर दन्तकाष्ठ दक्षिण
हस्त में लेकर दीक्षा ग्रहण
करने का निर्देश -
उदुम्बरं
दन्तकाष्ठं गृहीत्वा दक्षिणे
करे । शुद्धभागवतानां च कृत्वा
त्रिः परिवर्त्तनम् ।।
)
,
१८९.११
(
प्रेतान्न
भक्षण के पश्चात् देह शोधन व
औदुम्बर पात्र में स्थित
शान्ति उदक द्वारा गृह का
प्रोक्षण करने का विधान कथन
-
औदुम्बरे
च पात्रे च कृत्वा शान्त्युदकानि
च। प्रोक्षयेच्च गृहं सर्वं
यत्रातिष्ठत्स्वयं द्विजः
।।
)
,
वामन
१४.७०
(
औदुम्बर
पात्रों की अम्ल द्वारा शुद्धि
होने का उल्लेख )
,
१७.७
(
रुद्र
से कृष्ण उदुम्बर की उत्पत्ति
का उल्लेख
-
कृष्णोदुम्बरको
रुद्राज्जातः क्षोभकरो वृषः।।
)
,
३६.७
(
ब्रह्मोदुम्बर
तीर्थ का माहात्म्य कथन )
,
वायु
३८.३
(
पृथुक्षेप
शिखर पर स्थित उदुम्बर वन का
माहात्म्य वर्णन )
,
विष्णुधर्मोत्तर
१.१५१.१४(तुम्बुरु
व उदुम्बर शब्दों का एक साथ
उल्लेख -
जात्या
चम्पकजात्या च तुम्बुरैश्चाप्युदुम्बरैः
।।),
शिव
४.२७.४
(
गौतम
ऋषि के स्नान हेतु उदुम्बर
शाखा से गंगा के प्रकट होने
का उल्लेख ),
स्कन्द
२.७.२०.८३
(
वैशाख
मास में उदुम्बर आदि फलों के
वर्जन का निर्देश ),
६.१८८.८
(
ब्रह्मा
के अग्निष्टोम यज्ञ में उद्गाता
के शंकु प्रचार कर्म में
औदुम्बरी कन्या का आगमन ;
औदुम्बरी
कन्या का वृत्तान्त )
,
६.२५२.३६
(
चातुर्मास
में शुक्र ग्रह द्वारा स्वीकृत
वृक्ष )
,
७.१.२३.९१
(
चन्द्रमा
के यज्ञ में चन्द्रमा के मृगचर्म
से आवृत ?औदुम्बर
दण्ड से सुशोभित होने का उल्लेख
-
औदुंबरेण
दंडेन संवृतो मृगचर्मणा ॥
),
योगवासिष्ठ
६.२.५९.५०(
उदुम्बर
वृक्ष में सुर -
असुर
रूपी बहुत से मशक होने का उल्लेख
),लक्ष्मीनारायण
१.४४१.९०
(
उदुम्बर
वृक्ष के शुक्र ग्रह का रूप
होने का उल्लेख
-
बृहस्पतिस्तदाऽश्वत्थः
शुक्रो ह्युदुम्बरोऽभवत्
।।
),
१.५११.७५
(
उदुम्बरी
:
देवशर्मा
व सत्यभामा -
पुत्री
उदुम्बरी का ब्रह्मा के यज्ञ
में आगमन ,
उद्गाता
से वर प्राप्ति ,
मोक्ष
,
पूर्व
जन्म में पर्वत ऋषि की पुत्री
-
छन्दोगस्य
सुता श्रेष्ठा देवशर्माभिधस्य
सा ।
उदुम्बरीतिनाम्ना
सा सामश्रवणलालसा ।
उद्गातारं
च सदसि वचनं व्याजहार वै ।।
)
,
१.५४०.८०
(
राजा
वृषादर्भि द्वारा दुर्भिक्ष
काल में ऋषियों को हेमपूर्ण
उदुम्बर देने के प्रयास की
कथा
श्रुत्वा
राजा ययौ नैजं गृहम पश्चाच्च
गुप्तकम् ।
दानं
दातुं हेमगर्भाण्युदुम्बराण्यकारयत्
।।
)
,
२.२७.१०४(
कृष्ण
उदुम्बर की यम से उत्पत्ति
का उल्लेख
-
यमस्य
दक्षिणोत्तरे जातः कृष्ण
उदुम्बरः ।
)
,
कथासरित्
१०.७.९७
(
वानर
से प्राप्त उदुम्बर फल भक्षण
पर शिशुमार /
मकर
-
पत्नी
द्वारा वानर के हृत्पद्म को
खाने की इच्छा ,
वानर
का बन्धन ,
वानर
द्वारा उदुम्बर वृक्ष में
निहित हृत्पद्म को लाने के
बहाने शिशुमार से मुक्ति पाना
),
महाभारत
कर्ण १०.४६
(
कौरव
सेना के सेनापति पद पर अभिषेक
हेतु कर्ण के औदुम्बर आसन पर
आसीन होने का उल्लेख
-
मणिमुक्तायुतैश्चान्यैः
पुण्यगन्धैस्तथौषधैः। औदुम्बरे
सुखासीनमासने क्षौमसंवृते।
),
अनुशासन
१०४.९२
(
उदुम्बर
आदि न खाने का निर्देश
-
पिप्पलं
च वटं चैव शणशाकं तथैव च।
उदुम्बरं
न खादेश्च भवार्थी पुरुषो
नृप।।
)
Udumbara
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उदूखलमेखला वामन ३४.४५ ( कपिल यक्ष की भार्या उदूखलमेखला यक्षी का कुरुक्षेत्र तीर्थ में वास , उदूखलमेखला द्वारा पाप युक्त स्त्री को रात्रि में भक्षण की पूर्व - चेतावनी ) , ५७.९५ ( उलूखलमेखला : बदरिकाश्रम द्वारा स्कन्द को प्रदत्त गणों में से एक ) Udookhalamekhalaa/ udukhalmekhala
उद्गत विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१ ( ७ षड~ज ग्रामिकों में से एक )
उद्गाता देवीभागवत ३.१०.२२ ( तमसा तीर पर देवदत्त द्विज के पुत्रेष्टि यज्ञ में गोभिल के उद्गाता व पैल के प्रस्तोता होने का उल्लेख , गोभिल द्वारा देवदत्त को शाप का वर्णन ) , ११.२२.३१( प्राणाग्नि होत्र में प्राण के उद्गाता होने का उल्लेख , पद्म १.१६.९८ ( ब्रह्मा के यज्ञ में मरीचि के उद्गाता होने का उल्लेख ) ऋ १.३४.१४ ( पुष्कर में ब्रह्मा के यज्ञ में अंगिरस के उद्गाता, पुलह के प्रत्युद्गाता / प्रस्तोता , नारायण के प्रतिहर्त्ता तथा अत्रि के सुब्रह्मण्य होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.१.५.२२( यज्ञवराह के उद्गातान्त्र होने का उल्लेख ), २.३.४७.४८ ( परशुराम के हयमेध में गौतम के उद्गाता बनने का उल्लेख ), भागवत ५.१५.५ ( प्रतीह / प्रतिहार व सुवर्चला - पुत्र , प्रतिहर्त्ता व प्रस्तोता - भ्राता , भरत वंश ) ,९.१६.२१ ( परशुराम द्वारा उद्गाता को उत्तर दिशा देने का उल्लेख ) , मत्स्य १६७.७ ( यज्ञपुरुष के मुख से उद्गाता , ब्रह्म / सर्व से प्रस्तोता , उदर से प्रतिहर्त्ता व जानु से सुब्रह्मण्य की उत्पत्ति का उल्लेख ) , वराह २१.१६( दक्ष यज्ञ में पुलह के उद्गाता बनने का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.२८.७७ ( चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ में हिरण्यगर्भ ऋषि के उद्गाता बनने का उल्लेख ), ५.१.६३.२४१ ( वामनावतार प्रसंग में बलि के वाजिमेध में नारद के उद्गाता होने का उल्लेख ) , ५.३.१९४.५४ ( नारायण व श्री के विवाह यज्ञ में अत्रि , अंगिरस व मरीचि के उद्गाता होने का उल्लेख ) , ६.५.६ ( विश्वामित्र द्वारा सम्पादित त्रिशंकु के यज्ञ में याज्ञवल्क्य के उद्गाता , जैमिनि प्रतिहर्त्ता व शंकुवर्ण के प्रस्तोता होने का उल्लेख ) , ६.१८०.३५ ( पुष्कर में ब्रह्मा के यज्ञ में गोभिल उद्गाता , कौथुम प्रस्तोता , शांडिल्य प्रतिहर्त्ता व अंगिरा के सुब्रह्मण्य ऋत्विज होने का उल्लेख ) , ७.१.२३.९३ ( प्रभास क्षेत्र में ब्रह्मा के यज्ञ में मरीचि उद्गाता, कश्यप प्रस्तोता , गालव प्रतिहर्त्ता व गर्ग के सुब्रह्मण्य ऋत्विज होने का उल्लेख ) , हरिवंश ३.१०.६ ( श्री हरि की यज्ञ देह से ऋत्विजों की उत्पत्ति का कथन : मुख से उद्गाता , सर्व से प्रस्तोता , उदर से प्रतिहर्त्ता व पाणि से सुब्रह्मण्य की उत्पत्ति ) , लक्ष्मीनारायण १.५११.८६ ( ब्रह्मा के यज्ञ में उद्गाता द्वारा उदुम्बरी कन्या को वरदान ) ऋ २.१०६.४७ (राजा दक्षजवंगर के वैष्णव यज्ञ में बलायन उद्गाता , मषीग्रीव आहर्त्ता व रवासन के प्रतिहर्त्ता होने का उल्लेख ) , २.१२४.११ ( शिबिदेव के वैष्णव मख में वेदों - उपवेदों के गाता तथा शाखामूर्तियों के उद्गाता होने का उल्लेख ) , २.२४८.३६ ( सोमयाग में पंचम दिवस में बहिष्पवमान हेतु ऋत्विजों के प्रसर्पण का क्रम कथन : अध्वर्यु , प्रस्तोता , प्रतिहर्त्ता , उद्गाता , ब्रह्मा ) , ४.८०.१२ ( राजा नागविक्रम के सर्वमेध यज्ञ में फालायन के उद्गाता , सारायण के प्रत्युद्गाता , अजायन के आहर्त्ता , दण्डायन के प्रतिहर्त्ता , भालायन के प्रस्तोता व रसायन के प्रतिप्रस्तोता होने का उल्लेख ), महाभारत उद्योगपर्व १४१.२९ ( कर्ण द्वारा भावी कौरव - पाण्डव युद्ध की यज्ञ से तुलना : अभिमन्यु उद्गाता , भीम प्रस्तोता , युधिष्ठिर ब्रह्मा , युद्ध में सिंहनाद सुब्रह्मण्य आदि ) Udgaataa /udgata
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Vedic contexts on Udgaataa
उद्गीथ अग्नि १०७.१५ ( भुव - पुत्र , प्रस्तार - पिता , भरत वंश ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६७ ( भूमा - पुत्र , प्रस्ताव - पिता , भरत / नाभि वंश ) , भागवत ५.१५.६ ( भूमा व ऋषिकुल्या - पुत्र , देवकुल्या - पति , प्रस्ताव - पिता ) , १०.८५.५१ ( वसुदेव व देवकी के ६ षड~गर्भ संज्ञक पुत्रों में से एक ) , वायु ३३.५६ ( भुव - पुत्र , प्रस्तार -पिता , भरत वंश ), स्कन्द ७.१.१७.१४१ ( साम की सिद्धि के हुंकार आदि ७ लक्षणों में से एक ) Udgeetha
Vedic contexts on Udgeetha
उद्दालक पद्म ४.१०.१३ ( विष्णु द्वारा लक्ष्मी से विवाह हेतु लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी ज्येष्ठा का उद्दालक से विवाह करना ) , ६.११६ ( वेद ध्वनि आदि सुनने पर ज्येष्ठा के व्यथित होने के कारण उद्दालक द्वारा ज्येष्ठा को अश्वत्थ मूल में स्थापित करके ज्येष्ठा के निवास योग्य स्थान के अन्वेषण के लिए जाना ) , ब्रह्म १.५.६१ ( उत्तंक - धुन्धु - कुवलाश्व कथा में समुद्र का उद्दालक नाम , अन्य पुराणों में उज्जानक नाम ) , योगवासिष्ठ ५.५१+ ( उद्दालक ऋषि की चित्त के विकारों से मुक्ति पाकर आत्मबोध की अभीप्सा , प्रणव द्वारा निर्विकल्प समाधि की प्राप्ति , खिंखिनी देवी द्वारा उद्दालक की देह को मुकुट का भूषण बनाने का उल्लेख ) , लिङ्ग २.६ (उद्दालक के स्थान पर दुःसह नाम , मार्कण्डेय ऋषि द्वारा ज्येष्ठा - पति दुःसह को ज्येष्ठा सहित निवास योग्य स्थानों का वर्णन ) , वराह १९३.१२+ ( पिता उद्दालक के वचन से नचिकेता का यम के पास गमन , प्रत्यागमन पर ऋषियों को यमलोक स्थित पापियों व धर्मराजपुरी आदि का विस्तृत वर्णन ) , वामन ३७.३२ (उद्दालक द्वारा उत्तरकोसल तीर्थ में मनोहरा नाम से सरस्वती का आह्वान ) , वायु ४१.४४ ( उद्दालक आदि ऋषियों का कलाप ग्राम में वास कथन) , स्कन्द १.१.७.५४ ( उद्दालक द्वारा काशिराज - पुत्री सुन्दरी से शिव मन्दिर में सम्मार्जन के महत्व के विषय में पृच्छा ) , २.४.३टीका ( उद्दालक - भार्या ज्येष्ठा की अश्वत्थ के नीचे स्थिति की कथा ) , ४.२.७०.७८ ( उद्दालक तीर्थ में यमदंष्ट्रा देवी का वास ) , ४.२.८४.२९ ( उद्दालक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य :अघनाशक व ऋद्धिदायक ), ४.२.९७.८३ ( उद्दालकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य :सिद्धि प्राप्ति ), ७.२.७ ( उद्दालक वीर्य से मृगानना कन्या के जन्म का वृत्तान्त ), ७.३.४२ ( उद्दालकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : रोग व पाप से मुक्ति , गार्हस्थ्य प्राप्ति ) , ७.४.१.१८ ( कलियुग में विष्णु का परम रूप जानने के लिए उद्दालक सहित ऋषियों का ब्रह्मा के निकट गमन , ब्रह्मा के कथनानुसार बलि के निकट गमन ), महाभारत आदि ३.२९( केदारखण्ड विदारण के कारण आरुणि की उद्दालक नामक से ख्याति - यस्माद्भवान्केदारखण्डं विदार्योत्थितस्तस्मादुद्दालक एवनाम्ना भवान्भविष्यति ), शान्ति २२०.२०( जापक ब्राह्मण के तालु देश का उद्दालन करके ज्योति ज्वाला के स्वर्ग की ओर जाने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८१( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ), २.६३.१० ( उद्दालक -पुत्र शतानन्द का वृत्तान्त ) ; दृ. अलक्ष्मी , आरुणि, दुःसह Uddaalaka
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उद्धव गरुड ३.२८.४८(बृहस्पति का पवनावेश युक्त अवतार, निरुक्ति), गर्ग १.५.२४ ( वसु का अंश ) , ५.१३ ( श्रीकृष्ण के निर्देश पर कृष्ण वेश में व्रज में जाना तथा गोपों को कृष्ण का सन्देश देना ) , ५.१४ ( नन्द व यशोदा के कृष्ण प्रेम को जानकर उद्धव के ज्ञान अभिमान का गलना , उद्धव द्वारा यशोदा को कृष्ण चरित्र का वर्णन ) , ५.१५ ( प्रात: काल व्रज में गोपियों द्वारा उद्धव व उनके रथ के दर्शन , उद्धव का कदली वन में राधा के दर्शन करके उनकी स्तुति करना व उन्हें कृष्ण का सन्देश देना ) , ५.१६ ( राधा द्वारा उद्धव के समक्ष अपनी विरह व्यथा प्रस्तुत करना , उद्धव द्वारा गोपियों से भेंट प्राप्ति तथा गोपियों को कृष्ण का मौखिक सन्देश देना : मन के कषाय का त्याग व वियोग द्वारा भी प्रभु की प्राप्ति ) , ५.१७+ ( कृष्ण का सन्देश सुनकर गोपियों के ४४ प्रकार के गणों द्वारा स्व - उद्गार प्रकट करना तथा उद्धव का मथुरा गमन ), ५.१९ ( उद्धव का कृष्ण को लेकर मथुरा से व्रज में आगमन आदि ) , ५.२४.६८ ( बलराम द्वारा माण्डूकदेव को उद्धव चरित्र की महिमा का वर्णन ) , ७.२.१९ ( उद्धव द्वारा प्रद्युम्न को किंजल्किनी माला भेंट करने का उल्लेख ),पद्म ५.७४.१ ( उद्धव द्वारा सनत्कुमार से गोपी - कृष्ण क्रीडा रहस्य सम्बन्धी पृच्छा , सनत्कुमार द्वारा अर्जुन के अर्जुनी गोपी बनकर रहस्य दर्शन करने की घटना का वर्णन ) , ब्रह्मवैवर्त ४.९२ ( कृष्ण के निर्देश पर उद्धव का गोकुल गमन , रासमण्डल के अन्तर्गत विभिन्न वनों का दर्शन , वृन्दावन वन के अन्तर्गत विभिन्न द्वारों को पार करके षष्ठम द्वार के पश्चात् विरहातुर राधा के दर्शन करना , राधा की स्तुति करना ) , ४.९३.१ ( उद्धव द्वारा राधा को स्वयं का परिचय देना , राधा का कृष्ण विरह में मूर्च्छित होना , उद्धव द्वारा राधा की परिचारक सखियों के दर्शन करना ) , ४.९३.५२ ( राधा द्वारा उद्धव को दिव्य अंगुलीयक , मणिकुण्डलद्वय , हीरक हार आदि प्रदान करना , राधा का कृष्ण के विरह में पुनः मूर्च्छित होना ) , ४.९४.१ ( उद्धव तथा राधा की सखियों द्वारा कृष्ण को उपालम्भ पूर्वक राधा के प्रबोधन की चेष्टा ) , ४.९६.६ ( उद्धव द्वारा राधा से काल की शुद्ध गति का ज्ञान प्रदान करने की प्रार्थना ) , ४.९७.१ ( राधा द्वारा उद्धव को विदा करना ) , भागवत ३.१.२४ ( यमुना तट पर विदुर की उद्धव से भेंट , विदुर द्वारा उद्धव से यादवों व पाण्डवों की कुशल - क्षेम पूछना ), ३.२.२ ( उद्धव की कृष्ण - भक्ति की पराकाष्ठा का कथन , उद्धव द्वारा विदुर को कृष्ण की लीलाओं का वर्णन ) , ३.४.१ ( उद्धव द्वारा प्रभास क्षेत्र में यादवों के नाश का वर्णन ) , ३.४.११ ( उद्धव के पूर्व जन्म में वसु होने का उल्लेख ; कृष्ण द्वारा उद्धव को भागवत ज्ञान प्रदान करना ) , ३.४.२५ ( विदुर का उद्धव से कृष्ण से प्राप्त ज्ञान प्रदान करने का अनुरोध , उद्धव द्वारा विदुर को गङ्गा तट पर मैत्रेय ऋषि से ज्ञान प्राप्ति का निर्देश ) , ३.४.३२ ( कृष्ण के निर्देश पर उद्धव द्वारा मर्त्य लोक में अस्तित्व बनाए रखने व बदरिकाश्रम में जाकर हरि की आराधना करने का उल्लेख ) , १०.४६.१ ( कृष्ण के निर्देश पर उद्धव की व्रज यात्रा , नन्द व उद्धव द्वारा परस्पर कृष्ण लीलाओं का गुणगान करना ) , १०.४७.११ ( गोपियों द्वारा कृष्ण - दूत उद्धव की तुलना षट्पद /भ्रमर से करना , भागवत का प्रसिद्ध भ्रमर गीत वर्णन ), १०.४७.२८ ( उद्धव द्वारा गोपियों को कृष्ण का सन्देश अथवा योगमार्ग का उपदेश देना ) , १०.४७.६१ ( उद्धव की वृन्दावन में गुल्म , लता , ओषधि बनकर गोपियों की चरणधूलि सेवन की इच्छा का उल्लेख ) , ११.६.४० ( उद्धव का कृष्ण के साथ प्रभास क्षेत्र जाने का आग्रह ) , ११.७.१+ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को आत्मा - इन्द्रिय योग का उपदेश , योग ज्ञान के विस्तार के रूप में यदु - दत्तात्रेय उपाख्यान के अन्तर्गत २४ गुरुओं से शिक्षा प्राप्त करने का वृत्तान्त ) , ११.१०.३५ ( देही / आत्मा के देह के गुणों से बद्ध अथवा मुक्त होने के सम्बन्ध में उद्धव द्वारा कृष्ण से पृच्छा , कृष्ण द्वारा द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया इत्यादि द्वारा उत्तर ) , ११.११.२६ ( उद्धव द्वारा कृष्ण से साधु पुरुष के लक्षण तथा कृष्ण भक्ति की विधि की पृच्छा ), ११.१२.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को सत्संग की महिमा का वर्णन ) , ११.१२.१७ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को अव्यक्त ब्रह्म के संसार में व्यक्त रूप की भक्ति / सेवन हंस रूप होकर करने का निर्देश ) , ११.१३.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को सत्त्व गुण की वृद्धि करने का निर्देश ) , ११.१३.८ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में कृष्ण द्वारा मर्त्त्य जीव द्वारा दुःख प्राप्ति के कारण के रूप में अहंकार तथा रजोगुण की वृद्धि को कारण बताना ) , ११.१३.१७ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को त्रिगुणों से पार होने के लिए जाग्रत , स्वप्न आदि से परे तुरीय / समाधि अवस्था को जानने का निर्देश ) , ११.१४.१ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में श्रीकृष्ण द्वारा भक्तियोग को ही सर्वश्रेष्ठ बताना ) ,११.१४.३१ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में श्रीकृष्ण द्वारा हृदय कमल में अपने स्वरूप के ध्यान की विधि का वर्णन ) , ११.१५.२ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में श्रीकृष्ण द्वारा किस धारणा से कौन सी सिद्धि प्राप्त होती है , इसका वर्णन ; कृष्ण की धारणा से सभी सिद्धियों की प्राप्ति का कथन ) , ११.१६.५ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में श्रीकृष्ण द्वारा अपनी विभूतियों का वर्णन ) , ११.१७.१+ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में श्रीकृष्ण द्वारा चार वर्णों और चार आश्रमों की विराट् पुरुष / स्वयं से उत्पत्ति तथा उनके स्वभाव व कर्तव्यों का वर्णन ) , ११.१९.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को तप आदि से भी ऊपर ज्ञान व विज्ञान के महत्व तथा उनकी शुद्ध रूप में प्राप्ति के उपाय का वर्णन ) , ११.१९.१९ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को भक्तियोग के स्वरूप का वर्णन ) , ११.१९.२८ ( उद्धव के प्रश्न के उत्तर में कृष्ण द्वारा यम, नियम, शम , दम आदि को परिभाषित करना ) , ११.२०.५ ( उद्धव द्वारा गुण - दोष में भेद दृष्टि रखने या न रखने का प्रश्न , कृष्ण द्वारा निरपेक्षता की परम स्थिति प्राप्त करने का उपदेश , अनन्य भक्ति में गुण - दोषों के समाप्त होने का कथन ) , ११.२१.१० ( कृष्ण द्वारा उद्धव को द्रव्यों के शोधन की भांति स्नान , दान , तप आदि से आत्मा की शुद्धि करने का वर्णन ; गुणों और दोषों का अतिक्रमण करने का निर्देश ) , ११.२१.३६ ( शब्द ब्रह्म / ओंकार वाक् का वर्णन ) , ११.२२.१ ( उद्धव द्वारा कृष्ण से तत्त्वों की संख्या के विषय में पृच्छा ) , ११.२२.२६ ( उद्धव द्वारा पुरुष और प्रकृति में भेद अथवा अभेद के विषय में पृच्छा ), ११.२२.३४ ( उद्धव द्वारा कृष्ण से भक्ति रहित जीव द्वारा अपने कर्मों के फलस्वरूप देह ग्रहण करने के विषय में पृच्छा , कृष्ण द्वारा निरपेक्ष स्थिति / साक्षी भाव में जाकर जन्म - मृत्यु आदि की सापेक्ष स्थिति को देखने का निर्देश ) , ११.२३.६ ( दुष्ट पुरुषों के मर्मवेधी बाण रूपी वचनों की पीडा से बचने के संदर्भ में कृष्ण द्वारा उद्धव को तितिक्षु ब्राह्मण का वृत्तान्त कथन : दुःख प्राप्ति में मन के ही कारण होने का वर्णन ) , ११.२४.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु सांख्य योग का कथन : भूतों को क्रमश: एक दूसरे में लीन करने तथा उनकी क्रमिक सृष्टि करने का वर्णन ) , ११.२५.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु सत्त्व आदि गुणों के अन्तर्गत वर्गीकृत शम ,दम आदि वृत्तियों का निरूपण और अन्त में निरपेक्ष स्थिति प्राप्त करके ब्रह्म की अनुभूति करने का निर्देश ) ,११.२६.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु पुरूरवा - उर्वशी आख्यान का संक्षेप में कथन ) , ११.२७.१ ( उद्धव के अनुरोध पर कृष्ण द्वारा क्रियायोग / देवार्चन विधि का वर्णन ) , ११.२८.१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को प्रकृति व पुरुष में द्वैत के स्थान पर अद्वैत दृष्टि विकसित करने का निर्देश ) , ११.२८.१० ( उद्धव द्वारा आत्मा को अव्यय , स्वयंज्योति युक्त दृष्टा तथा देह को जड दृश्य कहकर इनसे संसार के उत्पन्न होने / संसृति के पीछे कारण की पृच्छा , कृष्ण द्वारा देह में स्थित आत्मा के अहंकार से युक्त हो जाने पर उसे जीव की संज्ञा देना और स्वयंज्योति ब्रह्म को जानने का निर्देश ) ११.२९.१ ( उद्धव द्वारा कृष्ण से मन का निग्रह करने वाली कठिन योगसाधना के बदले सरल व सुगम साधन बताने का अनुरोध , कृष्ण द्वारा समस्त भूतों में परमेश्वर के दर्शन का निर्देश ) , ११.२९.४१ ( कृष्ण द्वारा उद्धव को अलकनन्दा तट पर बदरिकाश्रम में तप करके शुद्ध होने का निर्देश ) , १३.२.२७(उद्धव का सविता विशेषण), मत्स्य ४६.२३ ( वसुदेव - भ्राता देवभाग के पुत्र ) , विष्णु ५.३७.३१ ( यादवों के विनाश के समय कृष्ण की आज्ञा से बदरिकाश्रम क्षेत्र में जाना ) , स्कन्द २.६.२ ( कृष्ण के परमधाम गमन के पश्चात् साधना हेतु बदरिकाश्रम में निवास , अन्य रूप में व्रज की लताओं के रूप में वास ), २.६.२.२७(उद्धव का सविता से साम्य), २.६.३ ( उद्धव की श्रीकृष्ण से एकात्मता , उद्धव द्वारा कृष्ण - पत्नियों को कृष्ण - व भागवत - माहात्म्य कथन ) , ७.४.१७.२६ ( उद्धवार्क : द्वारका के पश्चिम द्वार पर स्थित सूर्य का नाम ) , हरिवंश १.३४.३१( देवभाग - पुत्र ) , लक्ष्मीनारायण १.२२४.३ ( द्वारका स्थित कृष्ण द्वारा गोकुल में गोपियों की कुशल - क्षेम जानने के लिए उद्धव का प्रेषण ) , १.४२९.४८ ( गोवर्धन की लताओं में व्याप्त उद्धव द्वारा गोपियों का कृष्ण से विरहाभास नष्ट करना ) , कृष्णोपनिषद १६(दम का रूप ) Uddhava
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Vedic contexts on Uddhava
उद्भिद् ब्रह्माण्ड १.२.१४.२७ ( उद्भिज्ज : कुशद्वीप के अधिपति ज्योतिष्मान के सात पुत्रों में से एक व कुशद्वीप का एक वर्ष ), १.२.१९.५७( विद्रुम पर्वत के उद्भिद् वर्ष का उल्लेख ), भागवत २.६.४(विराट पुरुष के रोमों से उद्भिजों की उत्पत्ति का उल्लेख), वायु ३३.२४ ( उद्भिद् : कुशद्वीप के अधिपति ज्योतिष्मान के सात पुत्रों में से एक व कुशद्वीप का एक वर्ष ) , विष्णु २.४.३६ ( वही) , स्कन्द १.२.५.८३(उपध्मानीय वर्णों की उद्भिद् संज्ञा), ७.१.३५.२९(पुनः प्रवृत्ता सा तस्मादुद्भेदात्पश्चिमामुखी ॥), महाभारत वनपर्व १९७.२८ ( शिबि द्वारा कपोतरोमा नामक उद्भिद पुत्र प्राप्त करने का कथा - कपोतरोमाणं शिबिनौद्भिदं पुत्रं प्राप्स्यसि नृपवृषसंहननं यशोदीप्यमानं ) Udbhida
उद्भ्रम मत्स्य १८०.९९( हरिकेश गण को शिव द्वारा प्रदत्त २ परिचारकों में से एक )
उद्यमश्री लक्ष्मीनारायण ३.२२३ ( पशुपालक उद्यमश्री द्वारा कृष्ण भक्तों से कृष्ण नाम ग्रहण , कृष्ण के दर्शन )
उद्यान कूर्म २.१३.४० ( उद्यान में मल - मूत्र त्याग का निषेध ) , मत्स्य १८०.२३( शिव द्वारा पार्वती हेतु उद्यान की शोभा का वर्णन ), शिव ६.६.१३ ( संकल्प का प्रतीक ), स्कन्द ५.३.२०९.८७ ( उद्यान छेदन का पाप कथन ), ७.१.२०७.५१( बिना अनुमति पराये उद्यान का उपयोग करने पर पाप कथन ), लक्ष्मीनारायण २.२३९.६६ ( रोल राजा की सेना द्वारा उद्यान नष्ट करने पर नृसिंह प्रतिमा का अदृश्य होना ) , कथासरित् १.६.७५ ( गोदावरी तट पर देवीकृति नामक उद्यान की निर्माण कथा : ब्राह्मण द्वारा देवी की कृपा से निर्माण ) , ६.३.५८ ( सोमप्रभा - सखी कलिङ्गसेना द्वारा स्वयंप्रभा के दिव्य उद्यान का दर्शन ) , ६.८.१४१ ( सोमप्रभा द्वारा कलिङ्गसेना की कन्या के लिए दिव्य उद्यान का निर्माण ) Udyaana
उद्यापन नारद २.२२.६७ ( चातुर्मास्य व्रत उद्यापन विधि ) , पद्म ६.९५ ( कार्तिक व्रत उद्यापन ) , भविष्य ४.१२८.१६ ( वृक्ष उद्यापन विधि : अपुत्रा पार्वती द्वारा अशोक वृक्ष की पुत्र रूप में कल्पना करके जातकर्म आदि संस्कार करना ) , मत्स्य ९८ ( सङ्क्रान्ति व्रत उद्यापन विधि ) , स्कन्द २.४.३४ ( कार्तिक व्रत उद्यापन विधि व माहात्म्य ) , २.५.१२.३४ ( एकादशी व्रत उद्यापन विधि ) , २.८.३.५५ (चन्द्रहरि व चन्द्रसहस्र व्रत उद्यापन ) , ५.३.२६.१५१ ( शुक्ल तृतीया संवत्सर व्रत की उद्यापन विधि का वर्णन ) , लक्ष्मीनारायण १.२६३.६० , १.२६५ ( एकादशी व्रत उद्यापन विधि ), १.३२२( पुरुषोत्तम मास के उद्यापन का वर्णन ) Udyaapana
उद्वर्तन अग्नि २६५.५ ( उद्वर्तन / उबटन हेतु ओषधियां ) , पद्म १.४३.४३३ ( पार्वती के उद्वर्तन मल से गणेश के प्रादुर्भाव का उल्लेख ), ६.६.२८( बल असुर के अङ्गों के उद्वर्तन से पित्तल की उत्पत्ति का उल्लेख ),स्कन्द १.२.२७.४ , ३.२.१२.१० , ६.२१४.४७ ( वही) Udvartana
उन्नत ब्रह्माण्ड १.२.११.९ ( द्युतिमान - पुत्र , स्वनवात - भ्राता , भृगु वंश ) , मत्स्य १२२.५३ ( कुश द्वीप का एक वर्ष , अन्य नाम श्वेत ) , वायु ४९.३३ ( शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक ) , विष्णु २.४.२६ ( वही), विष्णुधर्मोत्तर २.८.३०( षडुन्नत पुरुष के लक्षण ), स्कन्द ७.१.३१९.८ ( उन्नत शब्द का तात्पर्य निरूपण , उन्नत स्थान पर नगर निर्माण , उन्नत विनायक माहात्म्य आदि ), ७.१.३२५ ( प्रभास क्षेत्र में उन्नत क्षेत्र में स्थित गज रूपी विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य ) , ७.१.३२९ ( उन्नत विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य ), महाभारत द्रोण ११६.२ ( कन्या के श्रोणी, ललाट, ऊरु - द्वय , घ्राण नामक ६ अंगों के उन्नत होने पर प्रशस्त होने का उल्लेख ) द्र.समुन्नत Unnata
उन्नति भागवत ४.१.५१ ( दक्ष - पुत्री , धर्म - पत्नी , दर्प - माता )
उन्नेता पद्म १.३४.१७ ( पुष्कर में ब्रह्मा के यज्ञ में शांशपायन के उन्नेता होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६६ ( प्रतिहर्त्ता - पुत्र , भूमा - पिता , नाभि वंश ) , मत्स्य १६७.१० ( यज्ञ के १६ ऋत्विजों में यजुर्वेदी ऋत्विज, यज्ञपुरुष के चरणों से उत्पत्ति ) , वायु ३३.५६ ( प्रतिहर्त्ता - पुत्र , भूमा - पिता , नाभि वंश ), स्कन्द ६.५.७ ( त्रिशंकु के यज्ञ में गालव के उन्नेता बनने का उल्लेख ), ६.१८०.३४ ( पुष्कर में ब्रह्मा के यज्ञ में सनातन ऋषि के उन्नेता होने का उल्लेख ), ७.१.२३.९९( प्रभास क्षेत्र में चन्द्रमा के यज्ञ में अंगिरा के उन्नेता बनने का उल्लेख ) Unnetaa
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Vedic contexts on Unnetaa
उन्मत्त अग्नि २५६.२७ (उन्मत्त के लिए सम्पत्ति में भाग विषयक निर्देश ), नारद १.२५.३८ ( उन्मत्त को अभिवादन का निषेध ) , ब्रह्माण्ड ३.४.१९.७८ ( गीति चक्र रथ के षष्ठम पर्व में स्थित आठ भैरवों में से एक ), भागवत १.७.३६ ( उन्मत्त के वध का निषेध ), वा.रामायण ७.५.३७ ( माल्यवान राक्षस व सुन्दरी के ७ पुत्रों में से एक ) , स्कन्द ७.४.१७.३२ ( द्वारका के उत्तर दिशा में स्थित द्वारपालों का अधिपति ), कथासरित् ८.४.८३ ( उन्मत्तक : सूर्यप्रभ - सेनानी , कालकम्पन विद्याधरराज द्वारा वध ) Unmatta
उन्माद ब्रह्माण्ड १.२.११.३ ( नारायण व श्री -पुत्र , संशय - पिता ), भागवत ४.२.१६ ( उन्मादननाथ : शिव का नाम ) , १०.६.२८ ( विष्णु नाम ग्रहण से उन्मादों से रक्षा )
उन्मादिनी ब्रह्माण्ड ३.४.१९.६६ ( गीति चक्र रथ के तृतीय पर्व में स्थित कामदेव के बाणों की पांच शक्तियों में से एक ), कथासरित् ३.१.६५ (वणिक् की सुन्दर कन्या उन्मादिनी द्वारा देवसेन राजा के सेनापति से विवाह , राजा द्वारा उन्मादिनी के दर्शन पर कामवियोग से राजा की मृत्यु ), ६.७.६२ (वही), १२.२४.८ ( विस्तार सहित वही कथा ) Unmaadinee
उपकोशा कथासरित् १.४.४ ( उपवर्ष - कन्या उपकोशा के वररुचि से विवाह की कथा )
उपचार ब्रह्मवैवर्त्त ४.८.१० ( कृष्ण जन्माष्टमी प्रसंग में कृष्ण की षोडशोपचार पूजा विधि ) , भविष्य २.१.१६ ( अग्नि पूजार्थ षोडशोपचार पूजा विधि ) , शिव १.१६.१६ ( पूजा में षोडश उपचारों के फल कथन ), द्र. षोडशोपचार , पूजा Upachaara
उपजङ्घनि स्कन्द ४.२.६५.८ ( उपजङ्घनि लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.९४.३ ( सनारु - पुत्र उपजङ्घनि की सर्पदंश से मृत्यु , अमृतेश्वर लिङ्ग प्रभाव से पुनर्जीवन )
उपदानवी पद्म १.६.५४ ( दनु - पुत्र मय की कन्या ) , ब्रह्माण्ड २.३.६.२३ ( यम / मय / सद? - पुत्री , दुष्यन्त - माता ), भागवत ६.६.३३ ( दनु - पुत्र वैश्वानर की ४ कन्याओं में से एक , हिरण्याक्ष से विवाह ) , मत्स्य ६.२१ ( मय की तीन कन्याओं में से एक ) , ४९.१० ( इलिना - पुत्र ऐलिन की भार्या , दुष्यन्त आदि ४ पुत्रों की माता ) , वायु ६८.२३ ( यम / मय / सद? - पुत्री , दुष्यन्त - माता ) , विष्णु १.२१.७ ( दनु - पुत्र वृषपर्वा की तीन कन्याओं में से एक ) , हरिवंश १.३.९१( पुलोमा दानव की तीन कन्याओं में से एक , दनु वंश) , १.३६.१९ ( राजा ज्यामघ द्वारा युद्ध में प्राप्त कन्या , उपदानवी का ज्यामघ की पुत्रवधू व विदर्भ की भार्या बनने का वृत्तान्त , पुत्रों के नाम ) Upadaanavee
उपदेव भागवत ८.१३.२७ ( १२वें ऋतु / रुद्र सावर्णि मनु के १० पुत्रों में से एक ) , ९.२४.१८ ( अक्रूर - पुत्र , देववान - भ्राता , वृष्णि वंश ) , ९.२४.२२ ( देवक के ४ पुत्रों में से एक , सात्वत वंश ) , ९.२४.२३ ( उपदेवा : देवक की सात कन्याओं में से एक ) , मत्स्य ४६.१७ ( उपदेवी :वसुदेव - पत्नियों में से एक , ४ पुत्रों के नाम ) इत्यादि Upadeva
उपनन्द भागवत ९.२४.४८ ( आनकदुन्दुभि / वसुदेव की मदिरा पत्नी से उत्पन्न पुत्रों में से एक ) , १०.११.२२ ( गोकुल में उपद्रवों को देखकर उपनन्द नामक वृद्धगोप द्वारा वृन्दावन में स्थान्तरण का परामर्श ), १०.६३.३ (बाणासुर पर आक्रमण के समय कृष्ण के सहायकों में से एक ), शिव ३.१.१० (उपनन्दन : सद्योजात शिव का ध्यान करते समय ब्रह्मा से प्रकट कुमारों में से एक ) द्र. नन्द Upananda
उपनयन नारद १.५६.३४४ ( उपनयन संस्कार विधि व काल विचार ), भविष्य १.४.५ ( उपनयन संस्कार विधि ) , २.१.१७.१२ ( उपनयन में अग्नि का नाम वीतिहोत्र - षडाननश्च चूडायां व्रतादेशे समुद्भवः ।। वीतिहोत्रश्चोपनये समावर्ते धनंजयः ।। ) , वामन ८८.४२ ( ऋषियों द्वारा अदिति - पुत्र वामन का उपनयन संस्कार वर्णन ) , स्कन्द ४.१.३६.२२ ( उपनयन संस्कार विधि ), द्र. यज्ञोपवीत ,संस्कार Upanayana
उपनिषद देवीभागवत ७.३६.५ (उपनिषद धनुष , उपासना शर ), भागवत ८.१.१७( स्वायम्भुव मनु द्वारा व्याहृत मन्त्रोपनिषद ),स्कन्द ४.१.२१.३४ ( उपनिषद की वेदों में श्रेष्ठता का उल्लेख ), महाभारत शान्ति २५१.११( वेद का उपनिषत् सत्य, सत्य का दम, दम का दान आदि होने का कथन ), हरिवंश ३.३४.४०(यज्ञवराह हेतु गुह्य उपनिषदों के आसन होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२१( उपनिषदों की कुमारी साध्वी रूप में कल्पना , कुमारियों का स्वरूप व महिमा वर्णन ) , २.१५७.१२ ( उपनिषदों का हृदय में न्यास ) , २.२४६.७८ ( ज्ञान का उपनिषत् शान्ति , शान्ति का सुख, सुख का तृप्ति, तृप्ति का त्याग होने का कथन ), २.२४९.४१( ब्रह्म प्राप्ति के मार्ग का उपनिषद नाम कथन व व्याख्या ) , २.२४९.४४ ( उपनिषद का व्यापक अर्थ ), ३.१८६.७८ ( साधु के विवेक में उपनिषद का वास ) Upanishada
उपपुराण गरुड ३.१.५७(उपपुराणों के नाम), स्कन्द ५.३.१.४५ ( उपपुराणों तथा उनसे सम्बद्ध पुराणों के नाम )
उपबर्हण
गर्ग
५.२१.१५
(
नारद
द्वारा
पिता
ब्रह्मा
की
सृष्टि
उत्पन्न
करने
की
आज्ञा
का
उल्लंघन
,
शाप
से
उपबर्हण
गन्धर्व
बनना
,
पुन:
सुंदरियों
में
आसक्ति
के
कारण
शाप
से
शूद्र
बनना,
कालांतर
में
सत्संग
प्रभाव
से
ब्रह्मा
का
पुत्र
बनना
)
, ब्रह्मवैवर्त्त
१.१२.४५
(
ब्रह्मा
के
पुत्र
नारद
द्वारा
गन्धर्वराज
-
पुत्र
उपबर्हण
के
रूप
में
जन्म
लेना
,
नाम
निरुक्ति
:
अधिक
पूज्य
-
उप
शब्दोऽधिकार्थश्च
पूज्ये
च
बर्हणः
पुमान्।
पूज्यानामधिको
बालस्तेनोपबर्हणाभिधः
।।
)
, १.१३+
( चित्ररथ
गन्धर्व
की
५०
कन्याओं
द्वारा
उपबर्हण
का
वरण
,
रम्भा
अप्सरा
के
दर्शन
से
संगीत
में
त्रुटि
पर
ब्रह्मा
द्वारा
शूद्र
योनि
में
जन्म
का
शाप
,
उपबर्हण
द्वारा
शरीर
त्याग
पर
प्रधान
पत्नी
मालावती
द्वारा
देवों
को
शाप
देने
की
चेष्टा
आदि
)
, १.१८.१
(
देवों
द्वारा
मृत
उपबर्हण
के
शरीर
में
प्रवेश
करके
प्राणों
का
संचार
करना
)
, १.२०.७
(
कालांतर
में
मृत्यु
पश्चात्
उपबर्हण
गन्धर्व
का
शूद्र
योनि
में
द्रुमिल
-
भार्या
कलावती
से
जन्म
,
नारद
नाम
प्राप्ति
,कालांतर
में
मृत्यु
पर
शाप
से
विमोचन
)
, भागवत
७.१५.६९
(
संक्षिप्त
रूप
में
वही
कथा
)
, २.२.४
(
बाहुओं
के
होने
पर
उपबर्हण
के
निरर्थक
होने
का
उल्लेख
-
बाहौ
स्वसिद्धे
ह्युपबर्हणैः
किम्
।
),
५.२०.२१
(उपबर्हिण
:
क्रौञ्च
द्वीप
के
७
पर्वतों
में
से
एक
)
, लक्ष्मीनारायण
१.२००+
(ब्रह्मवैवर्त्त
पुराण
जैसी
कथा
),
१.२००.८२(
उपबर्हण
नाम
की
निरुक्ति
:
अधिक
पूज्य
-
उपार्थश्चाधिको
बोध्यः
पूज्यश्च
बर्हणार्थकः
।
अधिकपूज्य
इत्यर्थे
उपबर्हण
नाम
तत्
।।)
Upabarhana
Comments on Upabarhana
उपभृत् गरुड १.१०७.३२ ( मृत पुरुष की देह में वाम हस्त में उपभृत् रखने का विधान ) Upabhrit
उपमन्यु कूर्म १.२५ ( पुत्र प्राप्ति हेतु श्रीकृष्ण द्वारा उपमन्यु के आश्रम में तप , उपमन्यु द्वारा रुद्र अर्चना विधि का कथन ) , देवीभाग ४.२५.३० ( जाम्बवती द्वारा श्रीकृष्ण से पुत्र की याचना पर कृष्ण द्वारा उपमन्यु ऋषि से पाशुपत दीक्षा ग्रहण करके पुत्रार्थ शिव की आराधना ) , ब्रह्म २.५७ ( आर्ष्टिषेण - पुरोहित , देवापि - पिता , मिथु दानव द्वारा यज्ञ से उपमन्यु के हरण पर पुत्र देवापि द्वारा रक्षा का उद्योग ), ब्रह्माण्ड १.२.३३.३ (८६ श्रुतर्षियों में से एक ) , २.३.८.९८ ( वसु - पुत्र , वसिष्ठ - प्रपौत्र ), लिङ्ग १.१०७ ( क्षीर प्राप्ति हेतु उपमन्यु द्वारा शिव की अर्चना ) , वामन ८२.५ (वीतमन्यु व धर्मशीला - पुत्र उपमन्यु द्वारा दुग्ध प्राप्ति हेतु विरूपाक्ष शिव की आराधना ), वायु ७०.८९/ २.९.८९ ( वसु - पुत्र , वसिष्ठ - प्रपौत्र ) , शिव ३.३२ ( व्याघ्रपाद - पुत्र उपमन्यु का क्षीरार्थ तप ,शक्र रूप धारी शंभु द्वारा परीक्षा व वरदान ) , ५.१ (उपमन्यु ऋषि का श्रीकृष्ण से संवाद, शिव के त्रिशूल आदि का वर्णन, शिव भक्त निरूपण ), ७.१.३२.१५( पाशुपत योग के ४ आचार्यों में से एक ), ७.१.३४ ( धौम्य - अग्रज व व्याघ्रपाद - पुत्र उपमन्यु द्वारा क्षीर प्राप्ति हेतु साम्ब शिव की आराधना ) , ७.१.३५ ( शक्र रूप धारी शिव द्वारा उपमन्यु के समक्ष शिव की निन्दा , उपमन्यु द्वार शक्र के घात की चेष्टा , शिव द्वारा प्रकट होकर उपमन्यु को क्षीर आदि के समुद्र व अमरता प्रदान करना ) , ७.२.१ ( उपमन्यु द्वारा श्रीकृष्ण को पाशुपत व्रत प्रदान करना , कृष्ण द्वारा तप करके साम्ब नामक पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख ) , ७.२.२ ( उपमन्यु द्वारा कृष्ण को शिव के पशुपति होने के कारण का वर्णन ) , ७.२.३ ( उपमन्यु द्वारा शिव की ईशान , तत्पुरुष , अघोर , वामदेव व सद्योजात नामक पांच मूर्तियों व भीम , उग्र , शर्व आदि ८ मूर्तियों के तत्वों का वर्णन ) , ७.२.४ ( उपमन्यु द्वारा शिव के स्त्री - पुरुष अथवा शिव - शक्ति भाव का वर्णन ) , ७.२.५( उपमन्यु द्वारा शिव के व्यक्त - अव्यक्त आदि रूपों का कथन ) , ७.२.६ ( उपमन्यु द्वारा प्रणव की अकार , उकार आदि मात्राओं का रहस्य कथन ) , ७.२.१०.३० ( उपमन्यु द्वारा कृष्ण को पशु के ज्ञान , क्रिया , चर्या व योग नामक चार पादों का वर्णन ) , ७.२.१३.३८ (उपमन्यु द्वारा पंचाक्षरी विद्या नम: शिवाय का माहात्म्य वर्णन , ७.२.१५.४+ ( उपमन्यु द्वारा षडध्वशोधन / दीक्षा विधि वर्णन ), स्कन्द ३.२.९.५८(उपमन्यु गोत्रीय विप्रों के गुण), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८१( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ) Upamanyu
उपमन्यु १) आयोदधौम्य ऋषि के शिष्य ( आदि. ३ । २२-३३) । इनकी गुरुभक्ति ( आदि० ३ । ३५-४९) । इनका आक के पत्ते खाने से अन्धा होकर कुएँ मे गिरना और गुरु की आज्ञा से इनके द्वारा अश्विनी- कुमारो की स्तुति ( आदि० ३ । ५०-६८) । इनको अश्विनीकुमार का वरदान ( आदि० ३ । ७३) । इनको गुरुदेव का आशीर्वाद ( आदि० ३ । ७६-७७) । ( २) सत्ययुग के महायशस्वी ऋषि । व्याघ्रपाद के पुत्र । धौम्य के बडे भाई ( अनु० १४ । ११ - १२; अनु० १४ । ५५) । इनके आश्रम का वर्णन ( अनु० १४ । ४५-६३) । श्रीकृष्ण का इन्हें प्रणाम करना और उपमन्यु का उन्हे पुत्रप्राप्ति का विश्वास दिलते हुए महादेवजी की आराधना के लिये कहना एवं शिवजी की महिमा बताना ( अनु० १४ । ६४-११०) । इन्होंने बाल्यकाल में माता से दूधभात माँगा, माँ ने आटा घोलकर दोनो भाइयों को दूध के नाम- पर दे दिया । फिर इन्होने पिता के साथ किसी यजमान के यहाँ जाकर दूध का स्वाद चखा और घर आकर माँ से कहा, तुमने जो दूध कहकर दिया, वह दूध नही था । माँ ने कहा, भगवान् शिव की कृपा के बिना दूधभात कहाँ ? उन्होने पूछा, महादेवजी कौन हैं ? फिर माता ने उनकी महिमा बतायी; जिससे वे शिवाराधना में प्रवृत्त हुए ( अनु० १४ । ११५-१६७) । इनकी तपस्या, शिव- भक्ति, स्तुतिप्रार्थना, शिवदर्शन और वरप्राति ( अनु० १४ । १६८-३७७) । इनका श्रीकृष्ण से तण्डि द्वारा की गयी शिवस्तुति का वर्णन ( अनु० १६ अध्याय में) । इनके द्वारा श्रीकृष्ण से शिवसहस्रनामस्तोत्र का वर्णन ( अनु० १७ अध्याय में) ।
Comments on Upamanyu
Vedic contexts on Upamanyu
उपमा अग्नि ३४४.६ ( उपमा शब्द की व्याख्या का कथन )
उपयमनी नारद १.५१.२७ ( उपयमनी पात्र के द्वयङ्गुल होने का उल्लेख )
उपयाज द्र. याज - उपयाज
उपरिचर - वसु देवीभागवत २.१ ( गिरिका - पति , श्येन के माध्यम से पत्नी हेतु वीर्य प्रेषण , मत्स्य द्वारा वीर्य ग्रहण करने पर सत्यवती के जन्म की कथा ) , ब्रह्माण्ड ३० ( यज्ञ में हिंसा के समर्थन पर उपरिचर वसु के पतन की कथा ) , २.३.१०.६८ (अमावसु पितर से साम्य ? ) , भविष्य ४.१३९ (उपरिचर वसु द्वारा इन्द्रध्वज उत्सव का आयोजन ), भागवत ९.२२.५ (कृती - पुत्र, बृहद्रथ आदि पुत्रों के नाम , दिवोदास - वंश ) , मत्स्य ५०.२८(चैद्योपरिचर वसु व गिरिका के ७ पुत्र), १४३.१७ ( उपरिचर वसु द्वारा यज्ञ में हिंसा का समर्थन , ऋषियों से शाप प्राप्ति ) , वायु ५७.१०३ ( यज्ञ में हिंसा के समर्थन पर पतन ) , ७३.२० ( अमावसु पितर से साम्य ) , ९९.२२२/२.३७.२१७(विद्योपरिचर वसु व गिरिका के ७ पुत्र), विष्णु ४.१९.८० ( कृतक - पुत्र , दिवोदास - वंश ) , विष्णु धर्मोत्तर ३.३४५ ( ऋषियों के शाप से भू विवर में पतित उपरिचर वसु हेतु बृहस्पति द्वारा वसुधारा व वैष्णवी विद्या प्रदान करना ) , ३.३४६ + ( उपरिचर वसु द्वारा वैष्णवी विद्या की सहायता से असुरों से स्वयं की रक्षा , विष्णु के दर्शन आदि ), लक्ष्मीनारायण १.५२.७५ ( वसु : उत्तानपाद - पुत्र , विश्वभुक् इन्द्र के हिंसापूर्ण यज्ञ में हिंसा का समर्थन करने पर रसातल में पतन ) Uparichara vasu
उपल अग्नि १६९.३२ (उपल हरण पर प्रायश्चित्त विधान ), १७३.४४ (वही), गरुड १.१०६.२४ ( वैश्यवृत्ति धारी द्विज के लिए उपल विक्रय का निषेध कथन ), स्कन्द १.२.४.८१ ( उपल दान का कनीयस् कोटि के दानों में वर्गीकरण ) , ४.१.२१.३१( उपलों में स्फटिक की श्रेष्ठता का उल्लेख ) , लक्ष्मीनारायण १.३७०.१०३( नरक में तप्तोपल कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), १.३७५.११०( इन्द्र द्वारा धर्षण के पश्चात् अहल्या का उपल / शिला बनना ) , १.३८८.७८ ( उपला : मेरु - पुत्री , नन्द राजा की भार्या , नारद के सुझाव पर पति के प्रेम की परीक्षा के लिए धन प्रदान करने वाली दन्तास्थि को नष्ट करना ) , ३.५५.२ ( उपलेष्टि नगरी में रक्षा नामक श्वपची द्वारा मोक्ष प्राप्त करने का वृत्तान्त ) Upala
उपवन अग्नि ३४८.९ ( उपवन हेतु प एकाक्षर का प्रयोग )
उपवर्ष कथासरित् १.४.१७ ( उपकोशा कन्या के पिता , वर्ष उपाध्याय के भ्राता , वेदान्त के आचार्य , स्वकन्या उपकोशा का विवाह वररुचि से करना )
उपवास पद्म ६.११९ ( मास उपवास व्रत माहात्म्य ) , ६.१२३ ( मास उपवास व्रत माहात्म्य ), भविष्य १.१६.४५ + ( विभिन्न तिथियों में उपवास विधि , अर्चनीय देवता व फल ) , १.६४.४( उपवास की निरुक्ति : पाप से उपावृत्त होकर गुणों के साथ वास ), १.६४+ (सप्तमी तिथि को उपवास , सूर्य आराधना विधि व फल ) , ४.९६ ( नक्त उपवास व्रत विधि ), विष्णुधर्मोत्तर १.५९+ ( वार , नक्षत्र व तिथि अनुसार उपवास व हरि पूजा से प्राप्त काम्य फल वर्णन ) , ३.२२२.१२८+ ( कुबेर द्वारा अष्टावक्र को रुचि अनुसार मास के ३० रोचों में अर्चनीय देवता व फल कथन ) , ३.२७४ ( उपवास महिमा कथन) , ३.३२० ( विभिन्न कृच्छ| उपवासों का फल ), स्कन्द ५.३.१६८.४० ( अङ्कूरेश्वर तीर्थ में उपवास के आपेक्षिक फल का कथन ) , महाभारत अनुशासन १०६( उपवास की महिमा, ४ वर्णों के लिए उपवास के नियम ),१०७, लक्ष्मीनारायण ३.७५.७९ ( उपवास से गन्धर्व लोक की प्राप्ति का उल्लेख ) द्र. प्रतिपदा , द्वितीया , तृतीया आदि विभिन्न तिथियां व तिथि , व्रत Upavaasa
उपवीत लक्ष्मीनारायण ३.९१.११९( उपवीत से द्विजन्मा बनने का उल्लेख )
उपसद विष्णुधर्मोत्तर १.१३६.३१( चतुर्व्यूह के अन्तर्गत वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध आदि तीन अग्नियों के उपसद बनने का कथन; पुरूरवा द्वारा त्रेताग्नि यजन प्रसंग ) Upasada
उपसर्ग वायु १२.९( उपसर्गों/दोषों के लक्षण तथा योगी द्वारा उनसे मुक्ति के उपाय )
उपस्कर अग्नि ३७१.३७( उपस्कर हरण पर गृह - काक योनि प्राप्ति कथन ) , मत्स्य २३६ ( उपस्कर / घरेलू वस्तुओं रथ ,वाद्य यन्त्रों आदि में विकृति लक्षण व शान्ति उपाय ) , शिव ५.६.४८ ( उपानह , छत्र आदि गृह उपस्करों के हरण पर नरक प्राप्ति का कथन ) Upaskara
उपस्थ अग्नि १११.४ ( गङ्गा - यमुना के मध्य में पृथिवी की जघन में प्रयाग तीर्थ का उपस्थ रूप ) , गरुड ३.५.२५(उपस्थ-अभिमानी देवों के नाम), पद्म ३.३९.७२ ( वही), वायु २९.१७( शंस्य अग्नि व नदियों से उत्पन्न ह उपस्थेय अग्नियों के नाम ), योगवासिष्ठ ६.१.१२८.१०( उपस्थ में कश्यप का न्यास ) Upastha
उपहार द्र. भेंट
उपहूत ब्रह्माण्ड २.३.१०.८९(अङ्गिरस-पुत्र, क्षत्रियों द्वारा पूजित उपहूत पितरों की कन्या यशोदा का कथन)
उपाकर्म स्कन्द ७.१.३५३.२३( यज्ञ वराह के संदर्भ में उपाकर्म के ओष्ठ रुचक होने का उल्लेख ), हरिवंश ३.३४.४०(यज्ञवराह में उपाकर्म के ओष्ठरुचक होने का उल्लेख), महाभारत ३८ दाक्षिणात्य पृष्ठ ७८४( यज्ञवराह में उपाकर्म ओष्ठरुचक होने का उल्लेख )
उपादान विष्णुधर्मोत्तर १.६१.६( अखण्डकारी बनने हेतु ५ कालों में से एक ), १.६२( उपादान काल में करणीय कृत्यों का वर्णन )
उपाध्याय १.९४.२०(गुरु, आचार्य, उपाध्याय आदि की परिभाषाएं), गरुड १.२१७.१३ ( उपाध्याय का अप्रिय करने पर श्वान योनि प्राप्ति कथन ), मार्कण्डेय १४.७७ ( उपाध्याय को नीचे रख कर अध्ययन करने पर यमलोक यातना वर्णन ) , १५.२ ( उपाध्याय की निन्दा करने पर श्वान योनि प्राप्ति ) , स्कन्द ६.१३९ ( उपाध्याय ब्राह्मण द्वारा पुत्र मरण पर यम को अपूज्यत्व व अपुत्रत्व का शाप , यम द्वारा ब्राह्मण - पुत्र का पुन: संजीवन ) , कथासरित् १.४.४ ( व्याकरण के विद्वान भ्राताद्वय वर्ष व उपवर्ष उपाध्यायों का वृत्तान्त ) Upaadhyaaya/ upadhyaya
उपानह गरुड २.८.१८ / २.४.९ ( आतुर के लिए देय छत्र , उपानह , वस्त्र आदि ८ पदों का उल्लेख ), २.४.२१(उपानह दान से अश्वारूढ होकर जाने का उल्लेख), २.८.१६ / २.१८.१६ ( मृतक के त्रयोदशाह में छत्र , उपानह आदि ७ पदों के दान का निर्देश ; उपानह दान से अश्वारूढ होकर यमलोक की यात्रा करने का उल्लेख ) , पद्म १.१९.५५ ( उपानह द्वारा गूढित पाद की चर्म से आवृत्त भूमि से तुलना : संस्कृत साहित्य का सार्वत्रिक श्लोक ) , १.३४.३०८ (आदित्य की मूर्ति में छत्र , पादुका , उपानह आदि का विधान ) , २.४०.४५ (उपानह दान से विपुल सुख प्राप्ति का उल्लेख ) , २.६७.१०० ( उपानह आदि के हरण पर नरक प्राप्ति का उल्लेख ) , ४.२४.२४ ( ब्राह्मण को उपानह दान से मृत्यु पश्चात् इन्द्रलोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.९६.१०० (एकादशी समं किंचित्पादत्राणं न विद्यते), ६.११८.३३ ( कार्तिक मास में उपानह, छत्र आदि दान का निर्देश ) , ६.१२५.१२ ( आखेट हेतु गमन के समय राजा दिलीप के उपानह द्वारा गूढ पाद होने का उल्लेख ) , ७.९.१५ ( गंगा यात्रा में आतपत्र / छत्र तथा उपानह का निषेध ) , ब्रह्म १.१०७.१२ ( उपानह , छत्र आदि दान से अश्व ,रथ , कुंजर आदि से अलंकृत होकर यमपुरी की यात्रा करने का उल्लेख ) , भविष्य १.१९१.१७ ( उपानह आदि हरण पर नरक प्राप्ति का उल्लेख ), ४.५.७२ ( वही) , ४.१००.७ ( माघ मास में मघा नक्षत्र में उपानह दान से सर्व कामनाओं की प्राप्ति का उल्लेख ) , ४.१२१.१४४ ( माघ मास में एकादशी आदि तिथि पर उपानह आदि दान से अश्वमेध फल प्राप्ति का उल्लेख ) , वराह २०७.४६ (उपानह युगल प्रदान से रथ प्राप्ति का उल्लेख ) , २०८.८० (राजा मिथि व उनकी पत्नी रूपवती द्वारा क्षेत्र का शोधन , सूर्य के ताप से रानी के पतन पर राजा द्वारा कोप से सूर्य का पतन , सूर्य द्वारा राजा को जल पात्र , उपानह - द्वय तथा छत्र आदि प्रदान करना ) , वामन १६.५८( ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी को रुद्र /सूर्य हेतु उपानह , छत्र आदि दान करने का उल्लेख ) , ७९.५२ ( वणिक् - प्रेत संवाद में प्रेतराज द्वारा पूर्वजन्म में एकादशी को उपानह दान करने से प्रेत जन्म में प्रेत वाहन प्राप्त करने का वर्णन ), ८९.४७( भृगु द्वारा वामन को उपानह प्रदान का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.३५.१७ ( धनुर्वेद अभ्यास में रत जमदग्नि ऋषि की पत्नी रेणुका के पद सूर्य के ताप से जलने पर सूर्य द्वारा छत्र और उपानह भेंट करने का वर्णन ), १.२५०.१५ ( सूर्य के अभिषेक के समय विरूपाक्ष द्वारा उपानह देने का उल्लेख ), २.११६.४९ ( उपानह दान से अश्वतरी युक्त यान द्वारा यम मार्ग की यात्रा पूरी करने का उल्लेख ) , ३.१३४.९ ( त्रैविक्रम व्रत के अन्तर्गत उपानह - युगल व छत्र दान का उल्लेख ), ३.२३३.४७ ( अन्य द्वारा धारित उपानह - द्वय व वस्त्र को धारण न करने का निर्देश ) , ३.३४१.१२४ ( उपानह दान से विमान में यात्रा करने का उल्लेख ),शिव ५.११.४ ( उपानह / काष्ठपादुका दान से अश्वारूढ होकरयमलोक जाने का उल्लेख ), ६.२२.४३ ( एकादशाह श्राद्ध कृत्य विधि के अन्तर्गत ब्राह्मणों को उपानह , छत्र आदि देने का निर्देश ) , स्कन्द १.२.४.८० ( दान के उत्तम, मध्यम व कनिष्ठ प्रकारों के अन्तर्गत उपानह , छत्र आदि के कनिष्ठ प्रकार के दान होने का उल्लेख ), १.२.५०.७६ ( उपानह दान से यान द्वारा यमलोक की यात्रा करने का उल्लेख ), २.७.१७.१२ ( व्याध द्वारा शंख ब्राह्मण के उपानह आदि का लुंठन , सूर्य के ताप से पादों के संतप्त होने पर व्याध द्वारा ब्राह्मण को उपानह देने से वैशाख / माधव मास का पुण्य अर्जित करने का वर्णन ), ५.३.२६.१२५ ( चर्तुदशी को धर्म हेतु उपानह दान का माहात्म्य कथन ) , ५.३.५०.१९ ( शूलभेद तीर्थ में उपानह दान के फल का उल्लेख : हयारूढ होकर स्वर्ग प्राप्ति ) , ७.१.२८.२५ ( छत्र व उपानह से हीन भिक्षु द्विज द्वारा तीर्थयात्रा करने से महान फल प्राप्ति का कथन ) , ७.४.४.२६ ( द्वारका की यात्रा को प्रस्थित यात्रियों के लिए उपानह दान पर गजस्कन्ध पर यात्रा करने का उल्लेख ) , ७.४.११.१० ( द्विजों को उपानह आदि दान का निर्देश ) , ७.४.४०.२५ ( कार्तिक में द्वादशी को श्राद्ध में उपानह , छत्र आदि दान से प्राप्त फल का ), महाभारत अनु ६६.२ ( ब्राह्मणों को उपानह दान का फल कथन : कण्टकों का मर्दन , अश्वतरी युक्त यान की प्राप्ति आदि ), लक्ष्मीनारायण २.१८.१६( अप्सरा - कन्याओं द्वारा कृष्ण को समर्पित उपनहों के स्वरूप का कथन ), ३.१११.११ ( उपानह दान से कण्टकों के नाश का उल्लेख ) दृ. पादुका Upaanaha/ upanaha
Comments on Upaanaha
Vedic contexts on Upaanaha
उपासङ्गधर मत्स्य ४६.१६ ( वसुदेव व देवरक्षिता - पुत्र )
उपासना वराह ११५ ( चतुर्वर्ण उपासना विधि ), लक्ष्मीनारायण २.२५७.१६ (
उपासना बल का वर्णन : विभिन्न देवों की उपासना से आत्मा द्वारा देह से निष्क्रमण पर विभिन्न लोकों की प्राप्ति ) द्र. अर्चना , आराधना , पूजा Upaasanaa
उपेन्द्र अग्नि ४८.११( उपेन्द्र मूर्ति के आयुध ), गरुड ३.२९.५२(वस्त्र धारण काल में उपेन्द्र के स्मरण का निर्देश), ३.२२.८०(मही में उपेन्द्र की स्थिति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.२१( उपेन्द्र के वीर्य से मङ्गल ग्रह के जन्म का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.७३.८४ ( बलि यज्ञ प्रसंग में उपेन्द्र के विराट रूप का दर्शन करने पर देव , दानव व मानवों का मोहित होना ) , भागवत २.७.४५ (उपेन्द्रदत्त :शुकदेव का उपनाम ), १०.३.४२ ( अदिति व कश्यप - पुत्र , वामन व उरुक्रम उपनाम ), १०.६.२३ ( बाल कृष्ण पर प्रयुक्त विष्णु कवच में उपेन्द्र द्वारा ऊपर की रक्षा ), मत्स्य २४४.२६ ( वामन के प्राकट्य पर अदिति माता द्वारा वामन की स्तुति में उपेन्द्र से माया जाल भङ्ग करने , अविद्या से पार होने , तम रूप असुर का नाश करने , अज्ञान का नाश करने , शुभाशुभ कर्मों को देखने के लिए चक्षु प्राप्त करना कथन ), वामन ९०.३४( सिंहल द्वीप में विष्णु का उपेन्द्र नाम ), वायु ९८.८४ ( बलि यज्ञ प्रसंग में उपेन्द्र के विराट रूप का दर्शन करने पर देव , दानव व मानवों का मोहित होना ) , स्कन्द ४.२.६१.२३१ ( उपेन्द्र मूर्ति के लक्षण ) , लक्ष्मीनारायण १.२५८.६ ( आश्विन् शुक्ल एकादशी को उपेन्द्र की पूजा ), १.२६५.१४( उपेन्द्र की शक्ति सुभगा का उल्लेख ), कथासरित् २.२.२१ ( उपेन्द्रबल : श्रीदत्त ब्राह्मण का एक मित्र ) , १२.६.३२५ ( उपेन्द्रशक्ति वणिक् द्वारा रत्नविनायक की प्राप्ति व उसे राजपुत्र श्रीदर्शन को देना ) , १२.६.३८० ( उपेन्द्रशक्ति के विक्षिप्त पुत्र महेन्द्रशक्ति का तपस्वी ब्रह्मसोम द्वारा पाणि से ताडन से स्वास्थ्य लाभ ) Upendra
उमा कूर्म २.४१.५७ ( उमाहक तीर्थ : जल मध्य में गज रूपी शिला का स्थान ) , देवीभाग ७.३०.७१( विनायक क्षेत्र में विराजमान देवी का उमा नाम ) , नारद १.६६.११४( मुनीश्वर की शक्ति उमा का उल्लेख ), १.६६.१२८( शूर्पकर्ण की शक्ति उमा का उल्लेख ), १.११८.९ ( ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को उमा व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य ) , पद्म ६.१३३.१९ (विनायक पर्वत पर उमा तीर्थ की स्थिति ) , ब्रह्म १.३२.८५ ( हिमवान व मेना की ज्येष्ठ पुत्री अपर्णा द्वारा उमा नाम प्राप्ति कारण कथन , उमा द्वारा तप से शिव को पति रूप में प्राप्त करना ) , ब्रह्मवैवर्त्त ३.९.१७ ( बाल गणेश रूप धारी कृष्ण द्वारा उमा शब्द करने का उल्लेख ), भविष्य १.१३८.३९( उमा देवी की गोधा ध्वज का उल्लेख ), ३.४.१४.६७(उमा की निरुक्ति : उ-वितर्के, मा-लक्ष्मी बहुरूपा), मत्स्य १३.४१( विनायक तीर्थ में सती देवी की उमा नाम से स्थिति ) , १५४.२९४( पार्वती द्वारा उमा नाम प्राप्ति का कारण ) , लिङ्ग १.८५.४५ ( शिव के प्रणव में अ, उ व म तथा उमा के प्रणव में उ,म व अ ), २.१९.२४(उमा सोम का रूप, शिव सूर्य का रूप ), वराह २५.४( उमा के अव्यक्त होने का उल्लेख, अव्यक्त व पुरुष से अहंकार की उत्पत्ति ), वामन ५१.२१ ( मेना की तृतीय तपोरत कन्या द्वारा उमा नाम प्राप्ति का कारण , वटु रूप धारी शिव का दर्शन और अन्ततः शिव से विवाह ) , वायु ४१.३६ (उमा वन में शिव द्वारा अर्धनारी रूप धारण का उल्लेख ) , १०६.३९/ २.४४.३९ (उमाव्रत : ब्रह्मा के यज्ञ के एक ऋत्विज का नाम ) , विष्णुधर्मोत्तर १.१६४.२३ ( उमा का वितस्ता नदी के रूप में अवतरण ) , शिव २.३.५.९ ( हिमालय - पत्नी मेना द्वारा उमा की आराधना, उमा द्वारा मेना - पुत्री बनने का वरदान ) , २.३.७.१७ ( मेना - पुत्री के तप से निषेध किए जाने पर उमा नाम प्राप्ति , शिव से विवाह प्रसंग वर्णन ) , ५.१+ ( शिव पुराण की उमा संहिता का आरंभ ) , ५.३.३३ (पार्वती द्वारा श्रीकृष्ण को प्रदत्त वरों का कथन ), ५.१९.३६ (ब्रह्मलोक , वैकुण्ठ आदि से ऊपर उमा लोक का उल्लेख ) , ५.४९ ( दानवों पर विजय से गर्वोन्मत्त देवों के समक्ष महातेज का प्रकट होकर देवों के गर्व का खण्डन करना , चैत्र शुक्ल नवमी को उमा देवी का प्रादुर्भाव , उमा द्वारा स्व महिमा कथन ) , ५.५१.२ ( उमा देवी के क्रिया योग का वर्णन : देवी आराधना विधि वर्णन ) , स्कन्द ३.३.६ ( विप्र - पत्नी उमा द्वारा निराश्रित नृप - पुत्र का पालन , शाण्डिल्य से नृप - पुत्र के जन्म का वृत्तांत श्रवण ) , ४.२.८४.८४ ( उमा तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : औमेय लोक प्राप्ति ) , ७.१.५७.५ (सोम की कला अमा से तादात्म्य ; इच्छा शक्ति की प्रतीक ) , ७.१.६१ ( वैष्णवी देवी का रूप, ललिता ,विशालाक्षी उपनाम ) , हरिवंश २.७८+ ( उमा द्वारा अरुन्धती को पतिव्रता स्त्री माहात्म्य, पुण्यक व्रत विधि तथा स्त्री योग्य अन्य कृत्यों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.१९७ ( उमा पुरी में स्तोकहोम राजा द्वारा श्रीकृष्ण का स्वागत , कृष्ण द्वारा उपदेश ) Umaa
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उमा - महेश्वर नारद १.१२४.३३ ( उमा - महेश्वर पूर्णिमा व्रत की विधि ), भविष्य ४.२३ ( उमा - महेश्वर व्रत विधि ), लिङ्ग १.८४ ( वही), स्कन्द ६.४८ ( हरिश्चन्द्र द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु स्थापित उमा - महेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ७.१.२७६.११ ( देविका तट पर स्थित उमापति का माहात्म्य ), ७.३.५८ (धुन्धुमार द्वारा स्थापित उमा - महेश्वर तीर्थ का माहात्म्य ) Umaa maheshwara
उर अग्नि २४२.४२, २४२.४५ ( सप्ताङ्ग युद्ध व्यूह वर्णन के अन्तर्गत उर स्थान में नागों की स्थापना करने का निर्देश - उरसि स्थापयेन्नागान् प्रचण्डान् कक्षयो रथान् ॥ ), २४३.१३ ( पुरुष के अङ्गों की उत्कृष्टता के वर्णन में उर, ललाट व मुख इन तीनों के विस्तीर्ण होने पर प्रशस्त होने का उल्लेख - उरो ललाटं वक्त्रञ्च त्रिवस्तीर्णो विलेखवान् । ), २५२.२० (उरोललाटघात : क्षेपणी नामक अस्त्र के कर्मों में से एक - उरोललाटघाते च भुजाविधमनन्तथा ।। ), २५२.२७ ( उरोललाटघात : गदा अस्त्र के कर्मों में से एक - उरोललाटघातञ्च विस्पष्टकरणन्तथा । ), गरुड १.१०७.३५ ( शव दाह में शव के अङ्गों में यज्ञ पात्रों की स्थापना के वर्णन के अन्तर्गत उर में दृषद रखने का निर्देश ), पद्म १.३४.१२५ ( सावित्री शाप से दग्ध रुद्र द्वारा ब्रह्मा की स्तुति के प्रसंग में विश्वसृक् से उर की रक्षा करने की प्रार्थना - उरस्तु विश्वसृक्पातु हृदयं पातु पद्मजः ), १.४१.२८८ ( गरुड द्वारा उर से ताडन करके कालनेमि के वध का उल्लेख - उरसा ताडयामास गरुडः कालनेमिनं ), ५.१०८.५८ ( उर आदि अङ्गों में अघोर आदि शिव नामों से भस्म लगाने का निर्देश ), भविष्य ४.८३.२२(ऊरुयुग्मं नृसिंहाय उरः श्रीवत्सधारिणे ।। कण्ठं कौस्तुभनाथाय वक्षः श्रीपतये तथा ।।), ४.८३.९२ ( ज्येष्ठ मास की द्वादशी को विष्णु की आराधना में उर में संवर्त, कण्ठ में संवत्सर नाम आदि से विष्णु के न्यास