क अग्नि ३४८.४ ( ब्रह्मा? हेतु क का प्रयोग ), वायु ४.४३ ( मन का नाम : क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ विज्ञानी ), शिव २.१.८.२४( दिव्य अण्ड से ककारात्मक चतुर्मुख ब्रह्मा की उत्पत्ति का उल्लेख ), महाभारत शान्ति २०८.७( दक्ष के २ नामों में से एक क का उल्लेख ) । ka


      कं भागवत ६.१.४२( देहधारियों के धर्म - अधर्म के साक्षियों में से एक )


      कंस गरुड ३.१२.८५(कंस का कालनेमि से तादात्म्य), ३.१२.९८(कंस की विकर्ण से तुलना), गर्ग १.६ ( अस्ति व प्राप्ति - पति, कालनेमि का अंश, चरित्र वर्णन ), १.७ ( शम्बर, व्योम, बाण, वत्स, कालयवन आदि असुरों को परास्त करना ), ५.८.२१ ( मल्ल युद्ध में कृष्ण द्वारा कंस का वध ), ५.८.३६ ( आठ कंस - भ्राताओं के नाम ), ५.१२.१३ ( कंस - भ्राता : पूर्वजन्म में देवयक्ष - पुत्र, पूजा के पुष्पों को दूषित करने पर पिता के शाप से कंस - भ्राता बनना ), देवीभागवत ४.२०.६४+ ( कंस द्वारा आकाशवाणी सुनकर देवकी के वध की चेष्टा, देवकी के अष्टम पुत्र को मारने का उद्योग आदि ), ४.२२.४३ ( तालनेमि का अंश ), पद्म १.६ ( सिंहिका - पुत्र ), २.५१ ( गोभिल दैत्य के वीर्य से उत्पन्न उग्रसेन व पद्मावती -पुत्र ), ब्रह्म १.१३.५८ ( कंस के ८ भ्राताओं व ५ भगिनियों के नाम ), १.७२.९+ ( कालनेमि के अवतार कंस द्वारा देवकी के षड~गर्भ संज्ञक ६ पुत्रों व एक कन्या के वध का वर्णन , कृष्ण जन्म व बाललीला का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७ ( कंस द्वारा बालिका को मारने के लिए तत्पर होना ), ४.६३ ( कंस के दु:स्वप्न का वर्णन ), भागवत ७.१.३० ( कंस द्वारा भय रूपी कृष्ण भक्ति से ईश्वर की प्राप्ति ), १०.१ ( आकाशवाणी सुनकर कंस द्वारा देवकी - पुत्रों के वध का उद्योग ), १०.१ ( नारद द्वारा यदुवंशियों के बारे में प्रबोध ), १०.४४ ( कृष्ण द्वारा कंस - भ्राताओं सहित कंस का वध ), मत्स्य ४४.७४ ( उग्रसेन के ९ पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र, भ्राताओं के नाम ), वायु ९६.२१७ ( कंस द्वारा देवकी वध की चेष्टा की कथा ), विष्णु ५.२०.८७ ( कृष्ण द्वारा कंस वध की कथा ), स्कन्द ३.१.२७.३३ ( रामेश्वर कोटि तीर्थ में स्नान से कृष्ण की मातुल वध दोष से मुक्ति ; कंस - देवकी की कथा ), हरिवंश १.३७.३० ( कंस के ८ भ्राताओं व ५ भगिनियों के नाम ), २.२ ( कंस द्वारा देवकी के गर्भ के विनाश का प्रयत्न ), २.२२ (कंस को कृष्ण से भय, वसुदेव की निन्दा ), २.२८.१०३( द्रुमिल व पद्मावती के पुत्र के कंस नाम का कारण - कस्य त्वं इति ), २.३० ( कृष्ण द्वारा कंस का वध, स्त्रियों का विलाप ), २.२८.१०३( कंस के कंस नाम का कारण : कस्त्वं ) । Kamsa/ Kansa

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      कंसारि स्कन्द ६.१७४ ( याज्ञवल्क्य -भगिनी, पिप्पलाद - माता, पिप्पलाद जन्म के पश्चात् मृत्यु ), ६.१७६ ( कंसारि लिङ्ग का माहात्म्य, पिप्पलाद द्वारा माता - शुद्धि हेतु स्थापना, नील रुद्र आदि पठन का महत्व ), लक्ष्मीनारायण ४.४६.१४ ( कंसारि / पात्र मांजने वाली दासी विद्योता द्वारा कथा श्रवण से मुक्ति की प्राप्ति ) ।


      ककुत्स्थ गर्ग ७.४०.३१( हेमकुण्डल विद्याधर द्वारा ग्राह रूप धारण कर ककुत्स्थ मुनि का जल में कर्षण, ककुत्स्थ द्वारा विद्याधर को ग्राह बनने का शाप ), देवीभागवत ७.९.११ ( शशाद - पुत्र, दैत्यों से संग्राम हेतु इन्द्र को वाहन बनाना, इन्द्रवाह व पुरञ्जय नाम प्राप्ति ), भागवत ९.६.१२ ( विकुक्षि - पुत्र, इन्द्र रूपी वृषभ पर आरूढ होकर असुरों को परास्त करना, इन्द्रवाह आदि नाम प्राप्ति ), मत्स्य १२.२८ ( विकुक्षि - पुत्र, सुयोधन - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), वायु ८८.२४ ( शशाद - पुत्र, आडी - बक युद्ध में इन्द्र रूपी वृषभ पर आरूढ होकर युद्ध करना, अनेना - पिता ), विष्णु ४.२.२० ( पुरञ्जय द्वारा ककुत्स्थ नाम प्राप्ति की कथा ), हरिवंश १.११.१९ ( शशाद - पुत्र, अनेना - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) । Kakutstha


      ककुद ब्रह्माण्ड ३.४.१.५८ ( ककुदी : १२ मरीचि नामक देवों में से एक ), वायु ९६.११५ ( सत्यक - पुत्र, वृष्टि - पिता, अनमित्र / वृष्णि वंश ), महाभारत आश्वमेधिक दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३४८( कपिला गौ के ककुद् में नभ की स्थिति का उल्लेख )। kakuda

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      ककुद्मान पद्म ६.१११.२६ ( सावित्री/स्वरा के शाप से ब्रह्मा के ककुद्मिनी गङ्गा होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.४१ ( शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.४५( ककुद्मान पर्वत के सुप्रद वर्ष का उल्लेख ), मत्स्य १२१.१४ ( कैलास के पश्चिमोत्तर में औषधि - गिरि, ककुद्मी नामक रुद्र की उत्पत्ति व त्रैककुद् अञ्जन पर्वत का स्थान ), १२२.६० ( कुश द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, मन्दर उपनाम ), वायु ४९.३७ ( शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, रत्न वर्षा का स्थान ), विष्णु २.४.२७ ( शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक ) । kakudmaan


      ककुद्मी देवीभागवत ४.२२.४३ ( बलि - पुत्र, अरिष्टासुर रूप में अवतरण ), पद्म ६.१११.२६( सावित्री के शाप से ब्रह्मा के ककुद्मिनी गङ्गा बनने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०६.१ ( राजा ककुद्मी द्वारा रेवती कन्या के बलराम से विवाह में वर को प्रदत्त दायाद / दहेज का वर्णन ), भागवत ९.३.२९ ( ककुद्मी का ब्रह्मा के परामर्श पर रेवती पुत्री को बलराम को प्रदान करना ), मत्स्य १२.२३ ( रोचमान - पुत्र रेवत का उपनाम, स्व - पुत्री रेवती को बलराम को प्रदान करना ), १२१.१४ ( एक रुद्र का नाम ), वायु ८६.२५ ( रेव - पुत्र, कुशस्थली - राजा, ब्रह्मलोक से प्रत्यागमन पर रेवती पुत्री का विवाह बलराम से करना ), ८८.१ ( ककुद्मी के ब्रह्मलोक गमन पर राक्षसों द्वारा ककुद्मी की नगरी कुशस्थली को नष्ट करना ), शिव ५.३६.२६ ( रैवत का ज्येष्ठ पुत्र, रेवती - पिता, कन्या के विवाह आदि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.१५७.११९ ( कृतवाक् विप्र का रैवत - पुत्र ककुद्मी रूप में जन्म, रेवती का ककुद्मी - कन्या के रूप में जन्म, रेवती कन्या सहित ब्रह्मलोक गमन की कथा ), १.३९०.९८ ( रेवत - पुत्र, रेवती - पिता, शर्याति वंश, रेवती पुत्री बलराम को प्रदान करने के पश्चात् तप हेतु बदरिकाश्रम में गमन )। Kakudmee

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      ककुभ भागवत ३.१.४० ( चार दिशाओं के लिए ककुभ शब्द का प्रयोग ), ५.१९.१६ ( भारतवर्ष का एक पर्वत ), ६.६.६ ( ककुभ~ : दक्ष - कन्या, धर्म - भार्या, संकट - माता ), लिङ्ग १.४९.६० ( ककुभ वन में कश्यपादि ऋषियों के वास का उल्लेख )। kakubha

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      कक्लस ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२८, ३.४.२५.९५ ( भण्डासुर - सेनानी, वह्निवासा देवी द्वारा वध ) ।


      कक्लिवाहन ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२८, ३.४.२५.९६ ( भण्डासुर - सेनानी , केकिवाहन नाम, महावज्रेश्वरी देवी द्वारा वध ) ।


      कक्षा देवीभागवत १२.६.३६ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), वा.रामायण ४.१७.४४( चरित्र रूप हस्ती कक्षा का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.६५.७० ( रुद्र द्वारा कक्षा यन्त्र पीडन द्वारा दुन्दुभि निर्ह्राद दैत्य का वध ), महाभारत कर्ण ८७.९५( अर्जुन के रथ ध्वज के कपि द्वारा कर्ण के रथ ध्वज की हस्ति कक्षा पर आक्रमण का कथन )। Kakshaa


      कक्षीवान गर्ग ६.१२ ( त्रित - शिष्य, गुरु शाप से शङ्ख बनना, कृष्ण द्वारा उद्धार ), ब्रह्म २.२९ ( कक्षीवान - पुत्र पृथुश्रवा द्वारा गौतमी नदी में स्नान द्वारा ही पितृऋण से मुक्त हो जाने की कथा ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१११ ( ३३ मन्त्रवादी अङ्गिरस ऋषियों में से एक ), २.३.७४.७१ ( दीर्घतमा ऋषि द्वारा बलि की दासी से उत्पन्न पुत्र, नाम प्राप्ति का कारण ), २.३.७४.९५ ( कक्षीवान द्वारा तप से ब्राह्मणत्व प्राप्ति, कूष्माण्ड गौतम आदि सहस्र पुत्रों को जन्म देना ), मत्स्य ४८.६२ ( दीर्घतमा व बलि - दासी से उत्पत्ति, तप से ब्राह्मणत्व प्राप्ति, गौतम उपनाम ), वायु ९९.७० ( दीर्घतमा व बलि - पुत्र, तप से ब्राह्मणत्व प्राप्ति ), स्कन्द ३.१.१६ ( दीर्घतमा - पुत्र, स्वनय - पुत्री मनोरमा से विवाह की कथा ) । kaksheevaan/ kakshivan


      कक्षेयु मत्स्य ४९.५ ( भद्राश्व व घृताची के १० पुत्रों में से एक, पूरु / ययाति वंश ), वायु ९९.१२४ ( रौद्राश्व व घृताची अप्सरा के १० पुत्रों में से एक, पुरु वंश ), विष्णु ४.१९.२ ( कक्षेषु : रौद्राश्व - पुत्र, पुरु वंश ) ।


      कङ्क गर्ग ५.८.३६ ( कंस - भ्राता, बलराम द्वारा वध ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.३९(कङ्क पर्वत के महोदय? वर्ष का उल्लेख ), १.२.१९.४५( कङ्क पर्वत के वैद्युत वर्ष का उल्लेख ),१.२.३३.१० ( कङ्कमुद्ग :९ होता ब्रह्मचारियों / श्रुतर्षियों में से एक ), ३.४.२४.४८ ( फालमुख असुर का वाहन ), भागवत ९.२४.२८ ( शूर व मारिषा के १० पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), १०.४४.४० ( कंस के ८ भ्राताओं में से एक, बलराम द्वारा वध ), १०.८६.२० ( कङ्क देश के निवासियों द्वारा कृष्ण के दर्शन करना ), १२.१.२९ ( १६ पीढी तक राज्य करने वाला एक लोभी राजकुल ), मत्स्य ४४.६१ ( कङ्क की दुहिता का बभ्रु - भार्या बनकर कुकुर आदि ४ पुत्रों को जन्म देना ), १२२.५७ ( कुश द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, कुशेशय उपनाम ), १२२.६७ ( ककुद नामक कङ्क पर्वत का वर्ष ), मार्कण्डेय २.३ ( प्रलोलुप नामक गरुड - पुत्र, कन्धर - अग्रज, कैलास पर्वत पर विद्युद्रूप राक्षस से युद्ध में मृत्यु ), लिङ्ग १.२४.२८ ( पञ्चम द्वापर में मुनि, सनकादि - गुरु ), वायु २३.१२९ ( पञ्चम द्वापर में शिव - अवतार ),४२.५० ( मेरु के परित: एक पर्वत , अम्बर नदी का स्थान ), ४९.३६ ( शाल्मलि द्वीप के सात पर्वतों में से एक ), १०६.३६ ( गया में ब्रह्मा के यज्ञ में एक ऋत्विज ), शिव ३.४.२२ ( पञ्चम द्वापर में शिव - अवतार, सनकादि के पिता ), ७.२.९.२ ( शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.१६.५७ ( कङ्कताल : शत्रुञ्जय पर्वत पर राक्षस, प्रकृति व स्वरूप का कथन, कृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से वध ) ; द्र. विकङ्क । Kanka, kamka


      कङ्कट कथासरित् ८.४.७५ ( सूर्यप्रभ - सेनानी, चक्रवाल द्वारा वध ), ८.५.४९ ( कङ्कटक पर्वत पर ऊर्ध्वरोमा विद्याधर का निवास ) ।


      कङ्कण पद्म १.३६.२६ ( अगस्त्य को श्वेत राजा से दिव्य आभरण प्रतिग्रह की प्राप्ति, अगस्त्य द्वारा राम को भेंट ), ५.९९.१८( त्याग के कङ्कण होने का उल्लेख - विनयो रत्नमुकुटः सत्यधर्मौ च कुंडले । त्यागश्च कंकणो येषां किं तेषां जडमंडनैः ), भविष्य ४.४६.१२ ( हस्त में स्वर्णसूत्रमय तन्तु /दोरक बांधने के माहात्म्य के संदर्भ में चन्द्रमुखी व मानमानिका की कथा ), वामन १.२७( शिव के कङ्कण रूपी नागों अश्वतर व तक्षक का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.५.१३० ( राजकुमार उदयन द्वारा शबर को कङ्कण देकर सर्प को बन्धन से मुक्त कराना, राजा सहस्रानीक द्वारा पत्नी मृगावती के कङ्कण को देखकर विलाप ), ३.३.२०.४४ ( शिव भक्त वेश्या द्वारा वैश्य से रत्न कङ्कण लेकर ३ दिन तक वैश्य की भार्या बनने की कथा ), ७.१.३५ ( अग्नि तीर्थ में कङ्कण क्षेपण का कारण / रहस्य ), ७.१.३७.२१ ( कङ्कण क्षेपण का माहात्म्य : बृहद्रथ व इन्दुमती की कथा, पूर्वजन्म में शूद्री द्वारा कङ्कण क्षेपण से इन्दुमती बनना ), योगवासिष्ठ १.२५.८ ( काल के हाथों में चन्द्रमा व सूर्य रूपी कङ्कण ), १.२५.२५ ( नियति के हाथों में विद्युत व सात समुद्र रूपी कङ्कण ), कथासरित् २.१.७८ ( उदयन द्वारा कङ्कण के बदले सर्प को मुक्त कराने का वृत्तान्त ), १०.१.९ ( राजा उदयन द्वारा खोए हुए कङ्कण को भारवाहक से प्राप्त करना )। kankana


      कङ्कती वराह १२८.६८ ( स्नान उपचार में विष्णु को कङ्कती / कङ्घी अर्पण करना ) ।


      कङ्का भागवत ९.२४.२५ ( कंस की ५ भगिनियों में से एक ), ९.२४.४१ ( आनक - पत्नी, शत्रुजित् व पुरुजित् - माता ) ।


      कङ्काल ब्रह्म २.९७.१४ ( कङ्कालिनी राक्षसी द्वारा आसन्दिव द्विज का हरण, द्विज की रक्षा हेतु नारायण द्वारा चक्र से राक्षसी का वध ), स्कन्द ४.२.८२.४७ ( कङ्कालकेतु :कपालकेतु - पुत्र कङ्काल द्वारा मलयगन्धिनी का हरण, अमितजित् द्वारा त्रिशूल से कङ्कालकेतु का वध ), ५.२.४६.४४ ( कङ्कालकेतु दानव द्वारा मलयगन्धिनी कन्या के हरण आदि का वृत्तान्त ), ७.१.१३७ ( प्रभास क्षेत्र में कङ्काल भैरव का संक्षिप्त माहात्म्य ) । kankaala


      कङ्कोल मत्स्य ९६.७ ( रजतमय १६ फलों में से एक ), स्कन्द ६.२५२.२२( चातुर्मास में सिद्धों की कङ्कोल वृक्ष में स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८४ ( वृक्ष, सिद्धों का रूप ) ।


      कच अग्नि ३४८.१२ ( कच हेतु सं एकाक्षर का प्रयोग ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०४.४५( कच के शिष्यों की संख्या ), मत्स्य २५ ( बृहस्पति- पुत्र, शुक्राचार्य व देवयानी की सेवा, मृत संजीवनी विद्या की प्राप्ति ), २६ ( देवयानी के पाणिग्रहण के अनुरोध को अस्वीकृत करना, शाप - प्रतिशाप ), योगवासिष्ठ ४.५८ ( कच द्वारा सर्वत्र आत्मा के दर्शन सम्बन्धी गाथा का कथन ), ६.१.५६.२० ( चित्त के प्रकचन पर क्षण में ही जगत के निर्माण व संक्षय का उल्लेख ), ६.१.९६.४८ ( आत्मा में केवल चिन्मात्र के कचन का उल्लेख ; अकचित के नाम तथा कचित के सर्ग वेदन होने का कथन ), ६.१.१११ ( कच द्वारा संसार सागर से पार उतरने हेतु तप, बृहस्पति द्वारा अहंकार पर विजय के उपाय का कथन ), ६.२.१६१.३८( अजा द्वारा चित् के कचन का उल्लेख ), द्र. विकच ।Kacha


      कच्छ गर्ग ७.५.७ ( देश, शुभ्र राजा, हालापुरी राजधानी, प्रद्युम्न द्वारा विजय ), पद्म ६.२०१.८( ५ कच्छों का उल्लेख ), भविष्य ३.३.२७.११( कच्छ देश के राजा कमलापति व राजपुत्र जननायक का वृत्तान्त ), भागवत १२.११.३४ ( माधव / वैशाख मास में सूर्य रथ व्यूह में कच्छनीर सर्प की स्थिति ), लक्ष्मीनारायण ४.४५.१४ ( कच्छ देश के राजा माधवराय द्वारा श्री हरि के स्वागत - सत्कार का वर्णन ), कथासरित् १.६.७७ ( भरुकच्छ देश के आलसी ब्राह्मण द्वारा सिद्धि प्राप्ति व उद्यान स्थापना की कथा ), ३.४.२६२ ( कच्छप नृप का दुःखलब्धिका नामक वधू को प्राप्त करना, वधूवास गृह में प्रवेश करने पर मृत्यु का कथन ) ; द्र. भरुकच्छ, भृगुकच्छ । kachchha


      कच्छप गरुड १.५३ ( निधि का नाम, स्वरूप ), १.२१७.१५ (पितरों को पीडा देने पर प्राप्त योनि ), देवीभागवत ८.१०.१ ( हिरण्मय वर्ष में अर्यमा द्वारा कच्छप की आराधना ), भविष्य १.१३८.४०( वरुण की कच्छप ध्वज का उल्लेख ), भागवत ५.१८.२९ ( हिरण्मय वर्ष में अर्यमा देव द्वारा भगवान कूर्म की आराधना का वर्णन ), ८.७.८ ( समुद्र मन्थन कार्य में कच्छप द्वारा मन्दराचल रूपी मथानी को धारण करना ), मार्कण्डेय ६८.२० ( पद्मिनी विद्या के आश्रित एक तामसी निधि, स्वरूप का कथन ), वायु ४१.१० ( कुबेर की ८ निधियों में से एक ), ६९.७३ ( कण्डू / कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), ९१.९७/२.२९.९३( विश्वामित्र के पुत्रों में से एक ),विष्णु ४.७.३८ ( विश्वामित्र के पुत्रों में से एक ), स्कन्द ३.१.३८.५७ ( कश्यप द्वारा गरुड को कच्छप व गज का भक्षण करके क्षुधा निवृत्ति करने का निर्देश, कच्छप के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में सुप्रतीक - भ्राता विभावसु ), ५.३.१५९.२४ ( द्विजातियों को परिवाद करने पर कच्छप योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१८१.६५+ ( भृगु कच्छ तीर्थ की उत्पत्ति : श्री व भृगु के कच्छप पृष्ठ पर विराजमान होने का वर्णन ), महाभारत आदि २९.२७( गरुड द्वारा भक्षित गज व कच्छप के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : सुप्रतीक व विभावसु महर्षियों का परस्पर शाप से क्रमश: हस्ती व कच्छप बनना ), शान्ति ३०१.६५ (प्रज्ञा द्वारा तमः कूर्म व रजो मीन को तरने का निर्देश), योगवासिष्ठ १.१८.४६ ( संसार समुद्र में काया रूपी कच्छप ), लक्ष्मीनारायण १.५१९.८९ ( इन्द्रद्युम्न राजा द्वारा ब्रह्मलोक से प्रत्यागमन पर चिरंजीवियों के दर्शन प्रसंग में मानसरोवर पर कच्छप से भेंट, कच्छप द्वारा पूर्व जन्मों के वृत्तान्त का कथन : पूर्व जन्म में लक्ष्मी के पार्षद वसुहारी का शाप से कूर्म बनना, ब्रह्मा के वरदान से कूर्म पर अनन्त का स्थित होना व अनन्त पर विष्णु का शयन, इन्द्रद्युम्न द्वारा कूर्म पृष्ठ पर यज्ञ करने से कूर्म पृष्ठ का दग्ध होना आदि ), १.५२०.१०(कच्छप द्वारा अनन्त/शेष को पीठ पर धारण करने का कारण ), ३.१६.५९ ( शेष के कच्छप तथा कच्छप के मेघ वाहन का उल्लेख ), कथासरित् २.४.१४० ( गरुड द्वारा कच्छप भक्षण का प्रसंग ) । Kachchhapa


      कज्जल लक्ष्मीनारायण २.२८३.५५( अमृता द्वारा बालकृष्ण को कज्जल देने का उल्लेख ) ।


      कञ्चन लक्ष्मीनारायण १.४०३.४२( भद्रमति की भार्याओं में से एक, पति को दारिद्र्य से मुक्ति के उपाय का कथन ) ।


      कञ्चुक ब्रह्म १.३४.८०( मेघ रूपी कञ्चुक का उल्लेख ), शिव ६.१६.८४ ( जीव को आच्छादित करने वाले ५ कञ्चुकों / आवरणों का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.२२५.९३( सिद्धियों को स्वर्णकञ्चुकी दान का उल्लेख ), २.२२५.९५( भूत, प्रेत, पिशाचों हेतु कञ्चुक दान का उल्लेख ) ; द्र. हेमकञ्चुक । Kanchuka


      कट अग्नि ३४१.१८ ( कटक : संयुत कर के १३ प्रकारों में से एक ), भागवत ११.१७.४९ ( शूद्र के लिए आपत्तिकाल में कट क्रिया वृत्ति द्वारा निर्वाह का निर्देश ), स्कन्द ५.३.१५.१५ ( अमरकण्टक पर्वत में कट की शरीर रूप में निरुक्ति ), ७.३.६२ ( कटेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : गौरी व गङ्गा में शिव दर्शन की स्पर्धा होने पर गौरी द्वारा कटक / अद्रि नितम्ब रूपी शिवलिङ्ग के दर्शन ), योगवासिष्ठ ४.२५+ ( शम्बरासुर द्वारा देवताओं से युद्ध हेतु दाम, व्याल व कट नामक सेनानियों की सृष्टि, सेनानियों द्वारा देवों को त्रास, सेनानियों में अहंकार उत्पन्न होने पर उनका नष्ट होना, विभिन्न योनियों को भोगने के पश्चात् काश्मीर देश में सरसी में मत्स्य होना, अन्त में कट का नृसिंह नामक मन्त्री के गृह में क्रकर / सारिका बनना, पूर्वजन्म के वृत्तान्त को सुनने पर मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.३८५.४९(भूरिशृङ्गा द्वारा भुजकट प्रदान का उल्लेख), ४.३१ ( गङ्गाञ्जनी नामक कटकर्त्री द्वारा श्री हरि की भक्ति से मोक्ष की प्राप्ति ) ; द्र. विकट,कटङ्कट द्र. कामकटङ्कट, शालकटङ्कट, सालकटङ्कट । Kata


      कटञ्ज योगवासिष्ठ ५.४६.११( कटञ्ज नामक श्वपच का मङ्गल हस्ती द्वारा वरण होने पर कीर देश में राजा बनना, प्रजा द्वारा राजा के श्वपच होने के ज्ञान पर राजा का तिरस्कार आदि )


      कटपूतना स्कन्द ४.१.४५.४१ ( ६४ योगिनियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.८३.३२( ६४ योगिनियों में से एक ) ।


      कटाह वामन ९०.३४ ( कटाह में विष्णु का ब्राह्मणप्रिय नाम ), स्कन्द २.१.२८ ( वेङ्काटचल के अन्तर्गत कटाह तीर्थ का माहात्म्य : कटाह तीर्थ के जल का पान करने से केशव द्विज की ब्रह्महत्या से मुक्ति ), कथासरित् २.५.७४ ( देवस्मिता - पति गुहसेन का कटाह द्वीप जाना, गमन से पूर्व पति व पत्नी द्वारा सदाचार की रक्षा के लिए पद्म प्राप्त करना ), ९.६.५९ ( चन्द्रस्वामी ब्राह्मण का अपने बालकों को प्राप्त करने के लिए कटाह द्वीप जाना ), १०.५.३ ( मुग्धबुद्धि वणिक् द्वारा कटाह द्वीप में अगुरु काष्ठ को कोयले के रूप में बेचने की कथा ), १८.४.१०५ ( कटाह द्वीप के राजा गुणसागर द्वारा स्वकन्या गुणवती का विक्रमादित्य से विवाह करने का वृत्तान्त )। Kataaha


      कटि गरुड १.१२७.१५ ( वराह न्यास में कटि में क्रोडाकृति के न्यास का उल्लेख ), पद्म ६.३६.१०( एकादशी को ऊरु में ज्ञानगम्य व कटि में ज्ञानप्रद विष्णु का न्यास ),हरिवंश ३.७१.५३ ( वामन के विराट रूप में लक्ष्मी, मेधा आदि के कटि प्रदेश होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५३ ( अलक्ष्मी की तैलि यन्त्र सम कटि का उल्लेख ) । Kati


      कठ ब्रह्म २.५१ ( भरद्वाज - शिष्य कठ द्वारा गुरु की कुरूप कन्या रेवती से विवाह, रेवती द्वारा सुन्दरता प्राप्त करने का वृत्तान्त ), मत्स्य १९१.६३ ( नर्मदा तटवर्ती कठेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), वराह ३८.४( तपोरत व्याध द्वारा पर्ण भक्षण को उद्धत होने पर आकाशवाणी द्वारा सकठ के भक्षण का निषेध )। Katha


      कणाद ब्रह्मवैवर्त २.४.५६(कणाद द्वारा शिव से सरस्वती मन्त्र प्राप्ति का उल्लेख), भविष्य १.४२.२८ ( उलूकी के गर्भ से उत्पन्न कणाद ऋषि के तप से ब्राह्मण होने का उल्लेख ), वायु २३.२१६ ( २३वें द्वापर में शिव - अवतार सोमशर्मा के एक पुत्र ), शिव ७.२.९.२० ( शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक ), स्कन्द ४.२.९७.१७५( कणादेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) । kanaada


      कण्ट भविष्य ३.४.१०.१४( कण्टकों के स्पर्शमणियों में बदलने का कथन ), स्कन्द ४.१.१.१६टीका ( कण्टक : रोमाञ्च का अर्थ ), ४.१.४१.१८८ ( कलि, काल व कृतकर्म की त्रिकण्टक संज्ञा ), ५.१.३७.२७ ( कण्टेश्वर लिङ्ग की उत्पत्ति व माहात्म्य : शिव द्वारा सिंहनाद से उत्पत्ति ), ५.२.५४ ( कण्टेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : सत्यविक्रम राजा को निष्कण्टक राज्य की प्राप्ति ), ७.१.१०२ ( कण्टक शोधिनी देवी का माहात्म्य ), ७.१.३१७ ( कण्टक शोषिणी देवी का माहात्म्य : यज्ञ में आहुति से उत्पत्ति, कण्टक रूपी दैत्यों का नाश ), ७.४.१७.३३ ( कण्टेश्वरी : द्वारका के उत्तर द्वार पर स्थित देवी का नाम ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.८१ ( नरक में तीक्षण कण्टक कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) ; द्र. त्रिकण्टक । Kantaka


      कण्टकी वामन १७.५ ( वृक्ष, विश्वकर्मा से उत्पत्ति )।


      कण्ठ अग्नि २१४.३१ ( पुरुष के कण्ठ में विष्णु की स्थिति का उल्लेख ), गणेश २.११५.१७ ( सिन्धु असुर द्वारा गणेश - सेनानी लम्बकर्ण के कण्ठ के विभेदन का उल्लेख ), पद्म ६.३४.६७(त्रिस्पृशा एकादशी व्रत में कण्ठ में वैकुण्ठगामी के न्यास का उल्लेख), वायु ९९.१३० ( धुर्य - पुत्र, वृष्णि वंश ), ९९.१६९ ( अजमीढ व केशिनी - पुत्र, मेधातिथि - पिता, पुरु / भरत वंश ), महाभारत शान्ति ३४२.२६ ( सर्पों के दंशन से महादेव का कण्ठ नीला हो जाने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.५८०.२ ( त्रिलोचन - पुत्र, शम्बर - पौत्र, मृग रूप धारी द्विजों की हत्या से ब्रह्महत्या द्वारा पत्नी बनकर कण्ठ का अनुगमन करना, सोमतीर्थ में नर्मदा - नाग संगम पर कण्ठ की ब्रह्महत्या से मुक्ति का वृत्तान्त ), कथासरित् ९.४.१०६ ( समुद्रशूर वैश्य द्वारा शव से कण्ठाभरण की प्राप्ति, राजा द्वारा कण्ठाभरण के कारण वैश्य का बन्धन व मुक्ति, गृध्र द्वारा कण्ठाभरण का हरण, समुद्रशूर द्वारा पुन: प्राप्ति का वर्णन ), १८.४.९६( सूकर के कण्ठ का स्पर्श करने से कृपाण में रूपान्तरित होना ), द्र. नीलकण्ठ, श्रीकण्ठ ।Kantha


      कण्डरीक मत्स्य २०.२४ ( ब्रह्मदत्त - मन्त्री, पूर्व जन्म में कौशिक ऋषि - पुत्र ), हरिवंश १.२३.२१, १.२४.३१ ( ब्रह्मदत्त - मन्त्री, सांख्य योग वेत्ता, सामवेदी ) ।


      कण्डु ब्रह्म १.६९ ( कण्डु मुनि के तप में प्रम्लोचा अप्सरा द्वारा विघ्न का वर्णन, मारिषा कन्या की उत्पत्ति ), भागवत ४.३०.१३ ( कण्डु व प्रम्लोचा - पुत्री मारिषा का वृक्षों द्वारा पालन ), वायु ६१.४३ ( सामवेद शाखा प्रवर्तक लाङ्गलि के ६ शिष्यों में से एक ), विष्णु १.१५.११ ( मुनि, प्रम्लोचा अप्सरा से रमण की कथा ), १.१५.५४ ( कण्डु द्वारा केशव की ब्रह्मपार स्तोत्र द्वारा आराधना ), हरिवंश १.२९.४७ ( कण्डुक : वाराणसी पुरी में कण्डुक नापित / नाई द्वारा स्वप्नादेश के अनुसार निकुम्भ गणेश की प्रतिष्ठा करना, वाराणसी के नष्ट होने का वृत्तान्त ), वा.रामायण ६.१८.२६ ( कण्व - पुत्र कण्डु ऋषि द्वारा शरणागत की रक्षा विषयक गाथा का कथन )। Kandu


      कण्व अग्नि १८.२६ ( कण्व/कण्डु/कण्ठ - पुत्री मारिषा से दक्ष का जन्म ), कूर्म १.२३.१८ ( कण्व द्वारा राजा दुर्जय को उर्वशी रमण पाप के प्रायश्चित्त का कथन ), पद्म ५.१०.३६ ( राम के अश्वमेध यज्ञ में कण्व का द्वारप? बनना ), ६.१५२.३ ( कण्व - पुत्री बालावती द्वारा बदर पाचन की कथा ), ब्रह्म २.१५ ( क्षुधा - पीडित कण्व की गौतम से स्पर्धा, कण्व द्वारा गौतमी गङ्गा की स्तुति व गङ्गा द्वारा क्षुधा तृप्ति का कथन ), २.७८.३ ( कण्व - पुत्र बाह्लीक के यज्ञ में अग्नि के उपशान्त होने की कथा ), भविष्य ३.४.२१ ( कश्यप - पुत्र, आर्यावती - पति, सरस्वती से वर प्राप्ति, पुत्रों व प्रजाओं के नाम, म्लेच्छों को शूद्र बनाना ), भागवत ९.२०.६ ( अप्रतिरथ - पुत्र, मेधातिथि - पिता, प्रस्कण्व आदि के पितामह, पूरु वंश ), ९.२०.१३ ( कण्व की पालिता कन्या शकुन्तला के दुष्यन्त राजा से विवाह की कथा ), मत्स्य ४९.४६ ( अजमीढ व केशिनी - पुत्र, मेधातिथि - पिता ), वायु ५९.१०० ( ३३ मन्त्रकर्त्ता अङ्गिरस ऋषियों में से एक ), ६१.२४ ( याज्ञवल्क्य के १५ वाजी संज्ञक शिष्यों में से एक ), स्कन्द २.७.१९.७३ ( प्राण द्वारा हल से भूमि कर्षण पर समाधिस्थ कण्व को कष्ट की प्राप्ति, कण्व द्वारा प्राण को अप्रतिष्ठा का शाप, प्राण द्वारा कण्व को गुरुघाती होने का शाप ), ५.२.६२.१६ ( राजा पद्म द्वारा कण्व की पालिता कन्या से गान्धर्व विवाह पर कण्व द्वारा कन्या व राजा को कुरूप होने का शाप ), ५.३.८५.२८( त्रिलोचन राजा के पुत्र कण्व द्वारा मृग रूपी विप्र के वध से ब्रह्महत्या की प्राप्ति, सोमनाथ तीर्थ में अग्नि प्रवेश से मुक्ति ), ७.१.३७.७ ( कण्व द्वारा राजा बृहद्रथ व इन्दुमती के पूर्वजन्म के वृत्तान्त का कथन : कङ्कण क्षेपण की कथा ), महाभारत शान्ति २९.४९(हयमेध में भरत द्वारा कण्व को सहस्र पद्म देने का उल्लेख), वा.रामायण ६.१८.२६ ( कण्डु ऋषि के पिता, कण्डु द्वारा विभीषण - शरणागति विषयक गाथा का कथन ), कथासरित् १२.२७.३३ ( कण्व की पालिता कन्या इन्दीवरप्रभा के राजा चन्द्रावलोक से विवाह की कथा ), १२.३४.३६ ( कण्व द्वारा मृगाङ्कदत्त के स्वामी - विरह से पीडित मन्त्री व्याघ्रसेन को सुन्दरसेन व मन्दारवती की कथा सुनाना ), १८.१.५ ( कण्व द्वारा नरवाहनदत्त राजा को प्रेयसी प्राप्त होने का आश्वासन देना व विक्रमादित्य की कथा सुनाना ), १८.४.९३ ( देवकुमारों भद्र व शुभ द्वारा गज व सूकर रूप धारण करके कण्व ऋषि को त्रास देने पर कण्व द्वारा गज व सूकर बनने का शाप )। Kanva

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      कति ब्रह्म १.८.५८( विश्वामित्र के पुत्रों में से एक, कात्यायन गोत्र प्रवर्तक ), १.११.९२( विश्वामित्र - पुत्र कति से कात्यायन नाम की प्रसिद्धि का उल्लेख )


      कथक भविष्य २.१.५.८७ ( सूर्य पूजक विप्रों के ४ प्रकारों में से एक ) ।


      कथा गरुड ३.२९.६४(कथा काल में व्यास के स्मरण का निर्देश), देवीभागवत ०.५ ( देवी भागवत पुराण श्रवण का विधान ), भविष्य १.९४.३४ ( सूर्य की इतिहास - पुराण श्रवण प्रियता का कथन, कथावाचक की पूजा की महिमा, कदम्ब विप्र द्वारा सूर्य का सान्निध्य प्राप्त करना ), विष्णु ३.४.२५ ( कथाजव : बाष्कल - शिष्य, वेद संहिताकार ), स्कन्द २.६.४ ( भागवत पुराण कथा श्रवण का माहात्म्य व विधि ; श्रोताओं के भेद ), ३.३.२२ ( कथा श्रवण विधि व माहात्म्य, अविधिपूर्वक कथा श्रवण के दोष, अधम ब्राह्मण विदुर की पत्नी बिन्दुला का कथा श्रवण से शिव का सान्निध्य प्राप्त करना, पिशाच योनि प्राप्त स्व - पति को कथा श्रवण के लिए बाध्य करके मुक्त करना ), हरिवंश ४.४ ( नवाह कथा श्रवण व्रत हेतु विधि - विधान, कथा में विघ्न उपस्थित करने पर दुर्गति, श्रोताओं के १४ भेद ), लक्ष्मीनारायण २.२४५.८३ ( कथा श्रवण के महत्त्व का कथन ), ४.७८ ( लक्ष्मीनारायण कथा संहिता के समापन पर श्रीकृष्ण व भगवान् व्यास का कथा मण्डप में आगमन, श्रोताओं द्वारा व्यास की पूजा आदि, कथान्त में यज्ञ कार्य का वर्णन ) । Kathaa


      कदम्ब अग्नि ८१.४९ ( कदम्बकलिका - यक्षिणी सिद्धि हेतु होम द्रव्यों में से एक ), गणेश १.२९.११ ( कदम्ब प्रासाद में चिन्तामणि गणेश की मूर्ति की स्थिति आदि ), १.३४.१ ( इन्द्र द्वारा कदम्ब वृक्ष के नीचे विनायक की उपासना ),१.३४.२५ ( इन्द्र द्वारा कदम्ब के तले आराधना स्थल का चिन्तामणि पुर नाम होना ), २.७६.१४ ( विष्णु व सिन्धु के युद्ध में कदम्ब का भौम से युद्ध ), २.७६.३२ ( श्रीहरि द्वारा कदम्ब असुर पर चक्राघात करना ), गर्ग २.२०.३३ ( कृष्ण द्वारा कदम्ब पुष्पों का किरीट धारण करना ), ४.३(कृष्ण द्वारा मैथिली गोपियों के वस्त्रों का हरण, कदम्बमूल में स्थित गोपियों को वस्त्र वापस देना), देवीभागवत ८.५.२० ( कदम्ब वृक्ष की सुपार्श्व पर्वत पर स्थिति ), १२.१०.६६ ( सुवर्ण शाला में कदम्बवाटिका में कदम्बधारा की महिमा का कथन ), नारद १.५६.२०९ ( कदम्ब वृक्ष की शतभिषा नक्षत्र से उत्पत्ति ), पद्म ६.२८.२४( पुराण वाचक द्विज की संज्ञा? ), ६.२००.९३( आन्त्र कदम्ब का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.३२.३७ ( कदम्ब वन वाटिका की रक्षक शिशिर ऋतु ), भविष्य १.९४.३४ ( सूर्य की इतिहास - पुराण श्रवण प्रियता का कथन, कथावाचक की पूजा की महिमा, कदम्ब विप्र द्वारा सूर्य का सान्निध्य प्राप्त करना ), १.१५५.४६ ( सूर्य द्वारा ब्रह्मा को पृष्ठशृङ्ग पर देवकदम्ब में निवास करने का निर्देश ? ), १.१९३.९ ( कदम्ब दन्तकाष्ठ की महिमा ), ४.९४.२६(स्त्री समूह की स्त्रीकदम्ब संज्ञा), भागवत ५.२.१० ( पूर्वचित्ति अप्सरा के नितम्बों की कदम्ब कुसुमों से उपमा ),५.१६.२२ ( सुपार्श्व पर्वत पर स्थित महाकदम्ब वृक्ष से पांच मधु धाराओं की उत्पत्ति ), मत्स्य ११३.४७( गन्धमादन पर्वत पर भद्रकदम्ब वृक्ष की स्थिति का उल्लेख ), लिङ्ग १.४९.२९( मन्दर गिरि के केतु रूप कदम्ब वृक्ष का उल्लेख ), वराह ७७.११ ( मन्दर गिरि पर कदम्ब वृक्ष की स्थिति, महिमा का कथन ), १४९.५३ ( द्वारका में हंस कुण्ड क्षेत्र में कदम्ब क्षेत्र व वृक्ष के माहात्म्य का वर्णन ), १६४.२८ ( अन्नकूट क्षेत्र में कदम्ब खण्ड नामक कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य ), वामन १७.२ ( कदम्ब वृक्ष की कामदेव के कराग्र से उत्पत्ति ), वायु ३५.२४( मन्दर पर्वत पर स्थित केतुरूप रुद्रकदम्ब वृक्ष की महिमा का कथन ), विष्णु ५.२५.४ ( वरुण - पुत्री मदिरा का कदम्ब वृक्ष में लीन होना, बलराम द्वारा मदिरा का पान ), स्कन्द २.२.४४.४ ( आषाढ आदि मासों में कदम्ब आदि पुष्पों से श्रीहरि की अर्चना का निर्देश ), ४.१.२९.४५ ( कदम्ब कुसुम प्रिया : गङ्गा के सहस्रनामों में से एक ), ४.२.८१.५० ( विन्ध्यपाद में दम - पुत्र दुर्दम का कदम्ब शिखर पर राज्य ), ७.१.१७.१० ( कदम्ब दन्त काष्ठ का महत्व ), ७.१.१७.१०(कदम्ब दन्तकाष्ठ से रोगक्षय का उल्लेख), ७.१.१७.११३ ( कदम्ब पुष्प की महिमा : ऐश्वर्य प्राप्ति ), योगवासिष्ठ ४.४९+ ( कदम्ब वृक्ष की शोभा का वर्णन, दाशूर ब्राह्मण का अग्नि के वरदान से वृक्षाग्र पर स्थित होकर तप करना , कदम्ब दाशूर नाम से प्रसिद्ध होना आदि ), ५.५३.२८ ( काया रूपी कदम्ब में दोष रूपी मञ्जरी का विकसित होना ), लक्ष्मीनारायण १.५७२.६४ ( जाबालि - पुत्र कदम्ब द्वारा फल चोरी से वानरत्व प्राप्त करना, सत्यधर्म के यज्ञ में मुख को छोड वानर का शेष शरीर हिरण्मय होना ) । Kadamba

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      कदली गरुड २.४.१४०(जिह्वा में कदली देने का उल्लेख), २.३०.४९/२.४०.४९( मृतक की जिह्वा में कदली फल देने का निर्देश ), गर्ग ५.१५ ( कदली वन में उद्धव द्वारा राधा को कृष्ण का पत्र अर्पित करना ), नारद १.१२३.१३ ( कदली चर्तुदशी व्रत विधि : रम्भा की पूजा ), भविष्य ४.९२ ( भाद्रपद शुक्ल चर्तुदशी को कदली / रम्भा व्रत विधि व माहात्म्य ), मत्स्य २२.५२ ( नदी, श्राद्ध हेतु प्रशस्तता ), ९६.६ ( कालधौत / सुवर्णमय १६ फलों में से एक ), योगवासिष्ठ ३.९९.१२ ( कदलीवन में भ्रमण करने वाले चित्त की प्रकृति का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.४७५+ ( और्व - कन्या कन्दली का स्वपति दुर्वासा के शाप से भस्म होकर कदली रूप में उत्पन्न होना ), कथासरित् ६.६.१०१ ( कदलीगर्भा : विश्वामित्र ऋषि के वीर्य से उत्पत्ति, मङ्कणक द्वारा पालन, राजा दृढवर्मा की पत्नी बनना, राजा द्वारा परित्याग व पुन: ग्रहण का वृत्तान्त ) । Kadalee/ kadali


      कद्रू गणेश २.९७.५ ( पूर्व वैर का स्मरण कर विनता द्वारा कद्रू का अपमान व कद्रू द्वारा शेषनाग को बदला लेने को प्रेरित करना आदि ), गर्ग २.१३.१७ ( कद्रू का वसुदेव - पत्नी रोहिणी बनना ), देवीभागवत २.१२.१० ( कद्रू- विनता - उच्चैःश्रवा की कथा ), पद्म १.४७.१६५ ( कद्रू द्वारा अमृत के भ्रम में सर्पों के मुख में विष को धारण कराना ), ब्रह्म २.३०.१३ ( अपमार्ग पर स्थित होने से कद्रू का आपगा नदी बनना, पुन: ऋषियों के शाप से काणी होना, गौतमी से सङ्गम पर पूर्ववत् होना ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९.१८+ ( कद्रू द्वारा कश्यप से समागम करने पर अदिति द्वारा कद्रू को शाप, कद्रू का वसुदेव - पत्नी रोहिणी बनना ), ब्रह्माण्ड २.३.७.४६७ ( कद्रू की क्रोधशीला प्रकृति ), भविष्य १.३२.१० ( एकनयना कद्रू द्वारा विनता से उच्चैःश्रवा के वर्ण के सम्बन्ध में पण / शर्त, अवज्ञाकारी नाग पुत्रों को शाप ), ४.३६.६ ( वही), मत्स्य ६.३८ ( सुरसा व कद्रू से सहस्र सर्पों की उत्पत्ति, २६ प्रधान नागों के नाम ), वराह २४.५ ( दक्ष - पुत्री कद्रू द्वारा मारीच कश्यप से नागों को उत्पन्न करना, प्रधान नागों के नाम, सर्पों द्वारा प्रजा के क्षय पर ब्रह्मा द्वारा सर्पों को माता के शाप से नष्ट होने का शाप ), वायु ६९.७३ ( कद्रू का कण्डू नाम ), ६९.९४ ( कद्रू की क्रोधशीला प्रकृति ), स्कन्द ३.१.३८ ( कद्रू द्वारा विनता से छल की कथा, क्षीरसागर में स्नान से मुक्ति ), ४.१.५० ( उच्चैःश्रवा अश्व के सम्बन्ध में कद्रू द्वारा विनता से छल की कथा, सूर्य ताप से पीडित होने पर सूर्य का खखोल्क नामकरण ), ५.३.७२ ( कश्यप - भार्या कद्रू द्वारा सपत्नी विनता से उच्चैःश्रवा अश्व के वर्ण के सम्बन्ध में विवाद, सर्पों को उच्चैःश्रवा के रोमकूपों में प्रवेश का आदेश, आदेश का उल्लङ्घन करने वाले सर्पों को नष्ट होने का शाप ), ५.३.१३१ ( वही), लक्ष्मीनारायण १.४६३.५ ( कद्रू के सर्प पुत्रों के विविध वर्णों का कथन ), २.३२.४१( कद्रू द्वारा गर्भिणी के गर्भ भक्षण आदि का कथन ; कद्रू के गन्धर्वों व अप्सराओं की जननी होने का उल्लेख ), कथासरित् ४.२.१८१ ( कद्रू द्वारा विनता को दासी बनाना, गरुड द्वारा स्वमाता विनता की मुक्ति का उद्योग ), १२.२३.९७ ( गरुड द्वारा सर्पों के भक्षण के संदर्भ में कद्रू द्वारा विनता को दासी बनाने का उल्लेख ) kadruu, kadroo, kadru

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      कनक पद्म १.४६.९ ( अन्धक - पुत्र, देवों द्वारा वध ), ब्रह्माण्ड २.३.६.२० ( विप्रचित्ति व सिंहिका के १४ पुत्रों में से एक ), २.३.६९.७ ( दुर्मद - पुत्र, कृतवीर्य आदि ४ पुत्र, यदु / हैहय वंश ), २.३.७१.१४१( हृदिक के १० पुत्रों में से एक ), २.३.७१.२५६ ( पुरु व बृहती - पुत्र ), २.३.७४.१९९ ( स्त्रीराष्ट्र व भोजकों का राजा ), मत्स्य ४३.१२ ( दुर्दम - पुत्र, कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों के नाम, यदु / हैहय वंश ), वायु २४.७५ ( द्यौ व पृथ्वी रूपी कपालों से निर्मित अण्ड के उल्ब / जरायु से निर्मित पर्वत ), ३५.१० ( पर्वत, मेरु पर्वत का नाम, पर्वत के विस्तार का वर्णन ), ९४.७ ( दुर्मद - पुत्र, कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों के नाम ), १०६.५६/२.४४.५६( कनकेश्वर : प्रपितामह द्वारा गया में शिला को स्थिर करने के लिए धारित ५ रूपों में से एक ), स्कन्द ४.२.९७.१९७ ( कनकेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.३६.१० ( अन्धक - पुत्र, इन्द्र से युद्ध में मृत्यु ), ५.३.१८६.२० ( गरुड द्वारा अजर - अमरता प्राप्ति के लिए चामुण्डा की कनकेश्वरी नाम से स्तुति का वर्णन ) । Kanaka


      कनककलश कथासरित् १२.५.१६५ ( इन्दुकलश राजपुत्र द्वारा राजा विनीतमति से प्राप्त खड्ग व अश्व द्वारा स्वभ्राता कनककलश से राज्य छीनना ), १२.५.३६९ ( इन्दुकलश द्वारा कनककलश से अहिच्छत्रा नगरी का राज्य छीनना ), १२.५.३८९ ( राजा विनीतमति की मृत्यु पर कनककलश द्वारा अग्नि में प्रवेश ) ।


      कनककुण्डला स्कन्द ४.१.३२.१५ ( पूर्णभद्र यक्ष - पत्नी, शिव आराधना से हरिकेश पुत्र की प्राप्ति ) ।


      कनकनन्दा ब्रह्माण्ड २.३.१३.११३ ( कनकनन्दी : गया में स्थित कनकनन्दी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), स्कन्द ७.१.२६५ ( चैत्र शुक्ल तृतीया को कनकनन्दा देवी की पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य ) ।


      कनकपीठ ब्रह्माण्ड १.२.११.३१ ( क्षमा व पुलस्त्य की ५ सन्तानों में से एक ) ।


      कनकपुरी कथासरित् ५.१.४२ ( राजकुमारी कनकरेखा द्वारा कनकपुरी का दर्शन करने वाले व्यक्ति से विवाह का हठ, ब्राह्मण द्वारा कनकपुरी के दर्शन का मिथ्या वार्तालाप ), ५.३.२ ( शक्तिदेव ब्राह्मण द्वारा कनकपुरी के दर्शन हेतु उद्योग का वर्णन, कनकपुरी में चन्द्रप्रभा व मृत कनकरेखा के दर्शन, प्रत्यागमन आदि ), १२.२४.३ ( कनकपुर के राजा यशोधन का उन्मादिनी कन्या के दर्शन से कामपीडित होकर शरीर त्यागना ) । kanakapuri


      कनकप्रभा वराह १५२.२६ ( मथुरा क्षेत्र में वराह की चार मूर्तियों में से एक ), कथासरित् ५.१.२० ( परोपकारी नामक राजा की पत्नी, कनकरेखा - माता, पुत्री के विवाह की कथा ) ।


      कनकबिन्दु ब्रह्माण्ड २.३.७.२३० ( नल वानर के पिता ) ।


      कनकमञ्जरी कथासरित् १२.४.१२७ ( हंसावली राजकुमारी की सखी, हंसावली का वेश धारण कर राजा कमलाकर से विवाह, हंसावली व अशोककरी के वध का यत्न, मृत्यु ) ।


      कनकरेखा कथासरित् ५.१.२२ ( राजा परोपकारी व कनकप्रभा - कन्या, कनकपुरी का दर्शन करने वाले युवक से विवाह का हठ ), ५.३.७९ ( शक्तिदेव द्वारा कनकपुरी में मृत कनकरेखा के दर्शन, विवाह का उद्योग ) ।


      कनकवती कथासरित् १५.२.३३ ( काञ्चनदंष्ट्र विद्याधर की कन्या, मन्दरदेवी - सखी, नरवाहन दत्त से विवाह ) ।


      कनकवर्मा कथासरित् ९.६.५३ ( कनकवर्मा वणिक् द्वारा जंगल से बालक व बालिका की प्राप्ति का वृत्तान्त ) ।


      कनकवर्ष कथासरित् ९.५.२८ ( राजा कनकवर्ष के चरित्र की प्रशंसा, राजा द्वारा मदनसुन्दरी से विवाह का वृत्तान्त, वासुकि - कन्या रत्नप्रभा द्वारा सहायता, कार्तिकेय की आराधना से पुत्र प्राप्ति रूप वरदान व वियोग रूप शाप प्राप्ति, अपमृत्यु पर विजय प्राप्त कर मदनसुन्दरी व पुत्र हिरण्यवर्ष को प्राप्त करना ) ।


      कनकशृङ्गा स्कन्द ५.१.४० ( अवन्तिका नगरी के ४ नामों में से एक, श्री हरि द्वारा कनकशृङ्गा पुरी का निर्माण करके ब्रह्मा व शिव को वास हेतु प्रदान करना ) ।


      कनका स्कन्द १.२.४५.५४ ( नन्दभद्र वणिक् की भार्या, कनका की मृत्यु पर पति का शोक ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२० ( कृष्ण - पत्नी, भूषण व चूडामणि - माता ) ।


      कनकाक्ष वामन ५७.८१ ( काञ्चना नदी द्वारा कुमार कार्त्तिकेय को प्रदत्त गण का नाम ), कथासरित् १०.९.२१५ ( हिरण्यपुर का राजा, रत्नप्रभा - पति, शिव आराधना से हिरण्याक्ष नामक पुत्र की प्राप्ति ) ।


      कनकाङ्गदा लक्ष्मीनारायण ४.३९ ( धूर्त्त स्त्री, हरि भक्ति से कनकाङ्गदा द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ) ।


      कनकोद्भव ब्रह्माण्ड २.३.७१.१४१ ( हृदिक के कृतवर्मा आदि १० पुत्रों में से एक , अन्धक / वृष्णि वंश ) ।


      कनखल देवीभागवत ७.३८.२५ ( कनखल क्षेत्र में उग्रा देवी का वास ), पद्म ३.२०.६७ ( कनखल तीर्थ का माहात्म्य – योगियों से क्रीडा करने वाली योगिनी की स्थिति आदि ), ५.९१ ( कनखल तीर्थ का माहात्म्य : सोमशर्मा - पत्नी सुमना द्वारा कनखल तीर्थ में माधव विष्णु की आराधना द्वारा पुत्रों की प्राप्ति ), मत्स्य १९३.६९ ( कनखल तीर्थ में गरुड द्वारा तप ; कनखल तीर्थ में योगियों से क्रीडा करने वाली योगिनी की स्थिति ), वराह १५२.४१ ( मथुरा मण्डल के अन्तर्गत कनखल तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), वायु ८२.२१ ( गया क्षेत्र में स्थित कनखल तीर्थ में श्राद्ध का महत्त्व ), १११.७ ( वही), स्कन्द ५.३.२१.५ ( गङ्गा के कनखल में पुण्या होने का उल्लेख ), ५.३.१८६ ( कनखलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : गरुड द्वारा विष्णु वाहन बनने के लिए तप, शिव से वर, अजरता - अमरता प्राप्ति के लिए चामुण्डा की आराधना ), ७.१.१०.९(कनखल तीर्थ का वर्गीकरण – वायु), ७.३.२६ ( कनखल तीर्थ का माहात्म्य : सुमति राजा का सुवर्ण दान से धनद बनना ), कथासरित् १.३.४ ( कनखल तीर्थ में ऐरावत द्वारा उशीनर पर्वत को तोडकर गङ्गा का अवतरण कराना )। kanakhala


      कनिष्ठ ब्रह्माण्ड ३.४.१.१०८ ( १४वें भौम मन्वन्तर में देवों का एक गण, बृहत् आदि सात सामों का कनिष्ठ देवगण से तादात्म्य ), वायु १००.११२ ( वही), विष्णु ३.२.४३ ( १४वें भौम मन्वन्तर में देवों का एक गण ), स्कन्द १.२.१३.१६४ ( बुध ग्रह द्वारा शिव के शङ्खलिङ्ग की कनिष्ठ नाम से आराधना ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.१८३(कनीयान् : पुलह व क्षमा-पुत्र)। kanishtha


      कन्थड स्कन्द ५.१.६२.६३ ( कन्थडेश्वर तीर्थ का माहात्म्य ), ५.१.६३ ( कन्थडेश्वर तीर्थ का माहात्म्य ), ५.२.३४ ( कन्थडेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, पाण्डव ब्राह्मण द्वारा कन्या निमित्त स्थापना ) ।


      कन्था वामन ९०.२८ ( कन्था तीर्थ में विष्णु का मधुसूदन नाम से वास ), स्कन्द ५.२.३४( कन्थडेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : ८४ लिङ्गों में ३४वां, पाण्डव ब्राह्मण - पुत्र कन्था को दीर्घायु प्राप्ति का वर्णन ), ५.३.२१४.४ ( तपोरत शिव के कन्था मुक्त हो जाने से कन्थेश्वर शिव की प्रसिद्धि का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.४१+ ( कन्थाधर नृपति द्वारा शिव आराधना से कालदण्ड प्राप्त करना, वसिष्ठ से चिरजीविता की प्राप्ति, विप्र पुत्र को स्व आयु का दान देकर यमलोक से लाना, यम - पुत्री हृङ्डकायिनी से विवाह, पत्नी के परामर्श पर नास्तिक बनना, सिद्धियों का राजा को त्यागना, मृत्यु पश्चात् म्लेच्छ योनि में जन्म, पुत्र रणङ्गम द्वारा पिता के उद्धार का उद्योग ), २.१४०.८०( कन्थाधर प्रासाद के लक्षण )। kanthaa


      कन्द स्कन्द ७.१.३६३ ( कन्देश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) ।


      कन्दर गणेश २.१९.१ ( कूप व कन्दर दैत्यों द्वारा क्रमश: मण्डूक व बालक रूप धारण कर महोत्कट गणेश के वध का प्रयत्न, परस्पर युद्ध से मृत्यु ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३४ ( कन्दरसेन : प्रधान वानरों में से एक ), वामन ६४.५ ( कन्दरमाली दैत्य की कन्या देववती का वानर द्वारा हरण )। kandara


      कन्दरा योगवासिष्ठ ३.८३.६ ( किरात राज्य की प्रजा द्वारा दोष शान्ति हेतु कर्कटी राक्षसी की कन्दरा देवी नाम से पूजा ), लक्ष्मीनारायण २.१०.६६( सिंहिका नामक कन्दरा द्वारा बालकृष्ण के दर्शन का वृत्तान्त )। kandaraa


      कन्दर्प ब्रह्माण्ड ३.४.१९.६७ ( भण्डासुर वधार्थ गेयचक्र रथ के चतुर्थ पर्व में स्थिति पांच कामदेवों में से एक ), मत्स्य २९०.४ ( ८वें कल्प का नाम ), कथासरित् ३.६.६३ ( कन्दर्प की ब्रह्मा के मन से उत्पत्ति, नाम निरुक्ति, शिव द्वारा दग्ध करना ), १०.४.२०४ ( रत्नपुर के ब्राह्मण का नाम, कन्दर्प द्वारा केसट को स्व वृत्तान्त सुनाना : योगिनियों द्वारा रक्षा, सुमना से विवाह, वियोग व पुनर्मिलन, कन्दर्प द्वारा केसट की पत्नी रूपवती की रक्षा, रत्नपुर में अपनी पत्नियों सुमना व अनङ्गवती से मिलन आदि ) ; द्र. अनङ्ग, काम, मन्मथ, मकरध्वज । kandarpa


      कन्दली नारद २.२८.७६ ( और्व - पुत्री, दुर्वासा - पत्नी, पति द्वारा भस्म होने के पश्चात् गोभिल राक्षस की भार्या बनना ), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.१४( रुद्र - पत्नियों में से एक ), ४.२४ ( कन्दली की और्व की ऊरु से उत्पत्ति, दुर्वासा से विवाह, कलहप्रियता के कारण दुर्वासा द्वारा भस्म होना, वसुदेव - पुत्री एकानंशा के रूप में जन्म लेकर पुन: दुर्वासा - भार्या बनना ), लक्ष्मीनारायण १.४७५.८+ ( कन्दली का दुर्वासा से विवाह, नाम निरुक्ति, पति द्वारा भस्म होने पर शीत कदली जाति के रूप में उत्पन्न होना, और्व द्वारा दुर्वासा को पराभव होने का शाप ) । kandali


      कन्दुक गणेश २.९३.३६( गणेश द्वारा कन्दुक क्रीडा में चञ्चल दैत्य का वध), भविष्य ३.४.९.३५(सूर्य के कन्दुकी ब्राह्मण के घर में जयदेव के रूप में अवतरित होने का उल्लेख), भागवत ५.२.१४ ( आग्नीध्र के संदर्भ में कन्दुक का पतङ्ग नाम? ) , ५.९.१८ ( भद्रकाली द्वारा वृषलों / चोरों के कटे हुए सिरों से कन्दुक क्रीडा करना ), शिव २.५.५९ ( पार्वती की कन्दुक क्रीडा में विदल - उत्पल दैत्यों का विघ्न, पार्वती द्वारा कन्दुक से हनन, कन्दुकेश्वर लिङ्ग की स्थापना ), स्कन्द २.४.६५.२३ ( वही) । kanduka


      कन्धर ब्रह्माण्ड ३.४.३३.७८( मणिकन्धर : यक्ष सेनानियों में से एक ), मार्कण्डेय २.३ ( प्रलोलुप - पुत्र, कङ्क - अनुज, अरिष्टनेमि वंश, राक्षस द्वारा स्वभ्राता कङ्क के वध पर कन्धर द्वारा राक्षस का वध, राक्षस की पत्नी से तार्क्षी कन्या को उत्पन्न करना ) ; द्र. कुणिकन्धर, तुरङ्गकन्धर, हयकन्धर ।


      कन्या कूर्म २.४२.२२ ( कन्या तीर्थ का माहात्म्य ), गरुड १.४१.१ ( कन्या पर विश्वावसु गन्धर्व का आधिपत्य ), गर्ग ५.१८.३ ( कृष्ण विरह पर नागेन्द कन्या रूपी गोपियों व समुद्र कन्या रूपी गोपियों की प्रतिक्रिया ), देवीभागवत ३.२६.४० ( आयु अनुसार कन्या नाम व महिमा ), पद्म १.५२.८३ ( कन्या दान के फल का वर्णन ), ३.१२.६ ( कन्या आश्रम का संक्षिप्त माहात्म्य ), ३.२०.७७ ( रुद्र - कन्या सङ्गम तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ३.२१.११ ( दश कन्या तीर्थ का माहात्म्य ), ६.११८.४ ( कन्या विवाह / दान का माहात्म्य : विभिन्न आयु कालों में सोम, गन्धवों आदि द्वारा कन्या के भोग का कथन ), ब्रह्म १.११३.७६ ( अयुग्म रात्रियों में मैथुन से कन्याओं की उत्पत्ति होने का कथन ), भविष्य १.१८२.२३ ( आयु अनुसार कन्या के नाम, विवाह हेतु उपयुक्त कन्या सम्बन्धी नियम, विवाह के ८ प्रकार ), ३.४.३.५४ ( कौमारी मातृका का वेणु व कन्यावती - पुत्री कन्या के रूप में जन्म ), ३.४.१८.२४ ( सत्त्वभूता भगिनी, रजोरूपा पत्नी, तमोभूता कन्या ;तीनों का परस्पर रूपान्तरण ), ४.१४८ ( कन्या दान का माहात्म्य ), भागवत १०.२.१२ ( योगमाया के १४ नामों में से एक ), मत्स्य १९३.८० ( नर्मदा तटवर्ती कन्या तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), १९४.११ ( त्रिदश ज्योति / ऋषिकन्या तीर्थ का माहात्म्य : विकृत रूपधारी शिव द्वारा ऋषि कन्याओं का वरण ), लिङ्ग २.४० ( कन्या दान विधि ), वराह १७.७०(शरीरपात आख्यान में १० कन्याओं के वारुणी काष्ठा बनने का उल्लेख ), २९.३ ( ब्रह्मा के श्रोत्रों से दिशाओं रूपी १० कन्याओं की उत्पत्ति, कन्याओं के देवों से विवाह ), ६९.९ ( इलावृत वर्ष में तापस द्वारा सृष्ट कन्याओं द्वारा अगस्त्य के सत्कार का वर्णन ), वायु ६९.१५४ ( कन्यक : मणिभद्र यक्ष व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक ), १०५.४७ /२.४३.४४( कन्या राशि में सूर्य के स्थित होने पर गया में पिण्ड दान की प्रशंसा ), विष्णु ३.१०.१६ ( कन्या विवाह के सन्दर्भ में शुभाशुभ रूपी लक्षणों का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३०१.२९( कन्या प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि ), ३.३०४ ( कन्या दान का माहात्म्य ), शिव १.१५.५१ ( कन्या दान से भोग प्राप्ति का कथन ), स्कन्द ५.२.५४.१५ ( तापस द्वारा हुङ्कार से पांच कन्याओं की उत्पत्ति आदि का वर्णन ), ५.२.५८.६ ( नारद द्वारा सावित्री कन्या के दर्शन का वृत्तान्त ), ५.३.५०.२६ ( शूलभेद तीर्थ में कन्या दान के फल का उल्लेख : शिव लोक की प्राप्ति ), ५.३.५०.३० ( कन्या दान के महत्व का कथन ; गृह में कन्या न होने पर भी कन्या दान की विधि का कथन ), ५.३.६७.७५ ( श्रीहरि द्वारा कन्या रूप धारण करके कालपृष्ठ दानव के वध का वृत्तान्त ), ५.३.८४.२९ ( शनि के बृहस्पति ग्रह के सहित होने तथा कन्या राशि पर होने पर नर्मदा तट पर कुम्भेश्वर दर्शन के फल का वर्णन ), ५.३.१२७.२ ( अग्नि तीर्थ में कन्या दान से अग्निष्टोम आदि से अधिक फल प्राप्ति का कथन ), ५.३.१४६.१४ ( अस्माहक / अमाहक तीर्थ में एककाल भोजन से कन्यादान फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१५६.३५ ( शुक्ल तीर्थ में कन्या दान के माहात्म्य का कथन ), ५.३.२०६.१ ( दश कन्या तीर्थ की उत्पत्ति तथा माहात्म्य का कथन : महादेव द्वारा १० कन्याओं से विवाह? आदि ), ६.३६.१० ( वाञ्छित कन्या प्राप्ति हेतु कोऽदादिति मन्त्र जपने का निर्देश ), ६.१८५.७१( अतिथि द्वारा कन्या से एकाकी विचरण की शिक्षा ), ६.२०४.२६( सूर्य के कन्या राशि में होने पर गया में श्राद्ध का महत्त्व ), ६.२३१.८६ ( चातुर्मास में श्रीहरि के शयन काल में कन्या दान के निषेध का उल्लेख ), ७.१.२०५.७६ ( कन्या के प्रकार, नाम ), महाभारत उद्योग ११६.११(माधवी कन्या का प्रसूति के अन्त में पुनः कन्या होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१८.२६ ( चिन्ता की कन्या से उपमा ), लक्ष्मीनारायण १.२०५.५४ ( विवाहिता कन्या के मूल प्रकृति का स्वरूप होने का कथन ; मूल प्रकृति के ६ स्वरूपों का कथन ), २.३६.१४( कन्या रूप धारी विद्याओं के नाम ), २.४७.२२( कुमारी शब्द की निरुक्ति : यज्ञोपवीत, गायत्री विद्या का सम्पादन करने वाली ), ३.१८.११ ( कन्या दान के गोदान से श्रेष्ठ व पुत्र दान से अवर होने का उल्लेख ), ३.५३.५६( मासिक धर्म के पश्चात् दिन की संख्या अनुसार मैथुन से कन्या या पुत्र उत्पन्न करने का कथन ), शाङ्खायन श्रौत सूत्र १५.१७( सखा ह जाया कृपणं ह दुहिता ज्योतिर्ह पुत्र: परमे व्योमन् ), द्र. कालकन्या , विषकन्या । kanyaa

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      कन्याकुमारी भागवत १०.७९.१७ ( बलराम द्वारा तीर्थयात्रा संदर्भ में दुर्गा देवी का कन्याकुमारी रूप में दर्शन ) ।


      कन्यावती भविष्य ३.४.३.५३ ( राजा वेणु की पत्नी, सप्त मातृका रूप सात कन्याओं को जन्म देना ) ।


      कपर्द गरुड २.३०.५७/२.४०.५७( मृतक के नेत्रों में कपर्दिका देने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.३३.१७१ ( शिव की शिरोभूषा की कपर्द संज्ञा ), ५.१.२.७६ ( आकाशगङ्गा से द्रवित कपर्द को कपाल में धारण करना ), योगवासिष्ठ ६.१.८३.१६ ( किराट द्वारा जङ्गल में खोयी कपर्दक को ढूंढते हुए चिन्तामणि प्राप्त करने का उपाख्यान ), लक्ष्मीनारायण ३.९३.५२ ( कपर्दक : कपर्दक असुर द्वारा देवशर्मा - पत्नी रुचि का हरण, देवशर्मा - शिष्य विपुल द्वारा कपर्दक का वध ) । kaparda


      कपर्दी कूर्म १.३२.१२, १.३३ ( कपर्दीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शार्दूल द्वारा हत मृगी की मुक्ति, पिशाच की मुक्ति का वर्णन, शङ्कुकर्ण मुनि द्वारा ब्रह्मपार स्तोत्र द्वारा कपर्दीश्वर शिव की आराधना ), नारद १.५०.३६ ( कपर्दिनी : पितरों की सात मूर्च्छाओं में से एक ), १.६६.११६( कपर्दिनी : छगलण्ड की शक्ति कपर्दिनी का उल्लेख ), १.६६.१२७( कपर्दी की शक्ति नटी का उल्लेख ), पद्म १.१७.३२ ( ब्रह्मा के यज्ञ में कपर्दी के आगमन व सदस्यों द्वारा कपाल क्षेपण की कथा ), १.१७.५३ ( कपर्दी शिव का नग्न वेश में ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन, ब्राह्मणों द्वारा ताडन पर शाप देना ), १.४०.८३ ( सुरभि गौ के ब्रह्मा से समागम से उत्पन्न एकादश रुद्रों में से एक ), ३.३५ ( कपर्दीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शार्दूल द्वारा हत मृगी की मुक्ति, पिशाच की मुक्ति का वर्णन, शङ्कुकर्ण मुनि द्वारा ब्रह्मपार स्तोत्र द्वारा कपर्दीश्वर शिव की आराधना ), भविष्य ३.२.१७.८ ( कपर्दी योगी द्वारा गुणाकर को यक्षिणी प्राप्ति हेतु मन्त्र का दान ), वामन ९०.२० ( प्रभास तीर्थ में विष्णु का कपर्दी नाम से वास ), स्कन्द १.२.१३.१६५ ( शतरुद्रिय प्रसंग में विनायक द्वारा पिष्ट से निर्मित लिङ्ग की कपर्दी नाम से आराधना ), ४.१.३३.१७० ( कपर्दीश : शिव शरीर में चरण का रूप ), ४.२.५४ ( शिव के कपर्दी नामक गण द्वारा कपर्दीश लिङ्ग की स्थापना, वाल्मीकि द्वारा कपर्दीश्वर शिव की आराधना, कपर्दीश्वर शिव के प्रभाव से पिशाच की मुक्ति का वर्णन ), ५.१.२६.४७ ( कपर्दी शिव का ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन, ऋत्विजों द्वारा कपर्दी के कपालों का यज्ञशाला से बाहर क्षेपण, ब्रह्मा द्वारा शिव से वर प्राप्ति ), ७.१.३०.३ ( कपर्दी हेतु अर्घ्य प्रदान मन्त्र का कथन ), ७.१.३८.५ ( ब्रह्मा द्वारा सावित्री के कोप के कारण कपर्दी रूप धारण ; युगान्तर में पार्वती की देह के मल से कपर्दी विनायक का जन्म, कपर्दी द्वारा सोमेश्वर शिव के दर्शन में विघ्न उपस्थित करना, कपर्दी स्तोत्र का कथन ), ७.१.१४१ ( कपर्दी क्षेत्र का संक्षिप्त माहात्म्य : चिन्तामणि से उपमा ), अन्त्येष्टि दीपिका पृ. २०(त्र्यम्बक का कपर्दी से साम्य?) । kapardi / kapardee

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      कपाल कूर्म २.३१ ( कालभैरव द्वारा ब्रह्मा के कपाल का कर्तन, रुद्र द्वारा कपाल में विष्णु के रक्त की भिक्षा प्राप्ति, वाराणसी में कपालमोचन की कथा ), देवीभागवत ७.३०.७८ ( कपाल मोचन तीर्थ में शुद्धि देवी का वास - कपालमोचने शुद्धिर्माता कामावरोहणे ।), पद्म १.१४.१२ ( शिव द्वारा कपाल में भिक्षा रूप में प्राप्त विष्णु के रक्त से नर के प्रादुर्भाव का वर्णन ), १.१४.१११ ( रुद्र द्वारा ब्रह्मा के तेज युक्त पञ्चम शिर का छेदन, देवों द्वारा कपाली शिव की स्तुति, वाराणसी में ब्रह्महत्या व कपाल से मुक्ति ), १.१७.३२ ( कपर्दी शिव का ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन, कपाल क्षेपण की कथा ), २.५३.९८ ( कपाल के छिद्रों नाक, कान आदि में स्थित कृमियों के नाम ), ६.१३३.२७ ( मायापुर में कपालमोचन तीर्थ की स्थिति का उल्लेख - कपालमोचनं तीर्थं जातं मायापुरे तथा। ), ६.१३६ ( साभ्रमती नदी तट पर स्थित कपालमोचन तीर्थ का माहात्म्य ), ६.१७९ ( गीता के पञ्चम अध्याय का माहात्म्य : गृध्र व शुकी की कपाल जल में पतन से मुक्ति ), ६.२३५.३ ( कपाल, भस्म, अस्थि आदि अवैदिक चिह्न धारण करने वालों की पाखण्डी संज्ञा ), ब्रह्म १.१२१.६१ ( नारद तीर्थ का महत्त्व : नारद/विष्णु तीर्थ में स्नान से शिव से लग्न ब्रह्मा के कपाल के मोचन का कथन - स्नातस्य तीर्थं त्रिपुरान्तकस्य, पतिष्यते भूमितले कपालम्। ततस्तु तीर्थेति कपालमोचनं, ख्यातं पृथिव्यां च भविष्यते तत्।। ), ब्रह्माण्ड १.२.९.५ ( पुरोडाश की त्रिकपाल संज्ञा का कारण, गायत्री, त्रिष्टुप् व जगती की ३ कपाल संज्ञा? - त्रिसाधनः पुरोडाशस्त्रिकपालस्ततः स्मृतः । त्र्यंबकः स पुरोडाशस्तेनेह त्र्यंबकः स्मृतः ॥ ), १.२.२२.४६ ( अण्डकपाल : मेघ, दिग्गज आदि ४ का रूप - तान्येवांडकपालानि सर्वे मेघाः प्रकीर्त्तिताः ।। तेषामाप्यायनं धूमः सर्वेषामविशेषतः ।। ), भविष्य ३.४.१३.१६ ( ब्रह्मा के कोप से उत्पन्न भैरव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन, रुद्राक्ष वृक्ष के नीचे ब्रह्महत्या से मुक्ति व वाराणसी पुरी में कपाल से मुक्ति - मकरस्थे दिवानाथे शशिनश्चेश्वरं शुभम् ।। कपालिनं महारुद्रं चकार भगवान्विधिः । । ), मत्स्य १८३.८७ ( ब्रह्मा के पञ्चम शिर के छेदन की कथा ), वराह ९७.१३ ( ब्रह्मा के पुत्र नीललोहित रुद्र द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन, कपाल का त्रिविध भेदन करके धारण करना, वाराणसी तीर्थ में कपाल से मुक्त होना, ब्रह्मा द्वारा वरदान -कपालशकलं चैकमसृक्पूर्णं करे स्थितम् ।। अपरं खण्डशः कृत्वा जटाजूटे न्यवेशयत् ।। ), वामन २.३६+ ( शङ्कर द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम गर्वित शिर का छेदन, वाराणसी में स्नान से कपाल से मुक्ति ), ३९.३ ( रहोदर मुनि की जङ्घा में राक्षस के शिर का लगना, औशनस तीर्थ में स्नान से कपाल से मुक्ति, औशनस तीर्थ का कपाल मोचन नाम होना - तत्रापि सुमहत्तीर्थं विश्वामित्रस्य विश्रुतम् । ब्राह्मण्यं लब्धवान् यत्र विश्वामित्रो महामुनिः॥ ), स्कन्द १.३.२.२०.१२ ( महिषासुर के कपाल का दुर्गा के हस्त से संलग्न होना, खङ्ग तीर्थ में कपाल से मुक्ति - तावन्महिषकंठस्थं लिंगं तद्गलितं तले ।। तटे प्रतिष्ठितं जातं पापनाशनसंज्ञया ।।.. ), २.२.४.७ ( पुरुषोत्तम क्षेत्र में कपाल मोचन तीर्थ की स्थिति का कथन - चिच्छेद ब्रह्मणः पूर्वं रुद्रः क्रोधात्तु पञ्चमम् ।। तच्छिरो दुस्त्यजं गृह्णन्ब्रह्मांडं परिबभ्रमे ।। ), २.३.२.९ ( शिव के हस्त से लग्न ब्रह्मा के कपाल का बदरी क्षेत्र में विलग्न होना - तत्क्षणाद्ब्रह्महत्या मे वेपमाना मुहुर्मुहुः ।।
      अंतर्हितं कपालं तत्कराद्विगलितं मम ।। ), २.३.६.१ ( बदरी क्षेत्र में कपाल मोचन तीर्थ का माहात्म्य - पंच तीर्थानि तिष्ठंति कपाले पापमोचने ।। तत्र स्नानं तपो दानं सर्वमक्षयमिष्यते ।। ), ३.१.२४.५३ ( ब्रह्मा व विष्णु के श्रेष्ठता विवाद में ब्रह्मा की गर्वोक्ति पर कालभैरव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन, काल भैरव द्वारा कपाल को भिक्षा हेतु ग्रहण करना, शिव तीर्थ में ब्रह्महत्या से मुक्ति के पश्चात् वाराणसी में कपाल को स्थापित करना - वाराणसीप्रवेशेन ब्रह्महत्या तवाधमा ।। पादशेषा विनष्टा स्याच्चतुर्थांशो न नश्यति ।। ), ४.१.३१.१२२ ( रुद्र द्वारा काशी में प्रवेश करने पर ब्रह्मा के शिर के छेदन से प्राप्त ब्रह्महत्या व ब्रह्मकपाल का रुद्र से विलग्न होना - विधेः कपालं नामुंचत्करमत्यंतदुःसहम्।। हरस्य भ्रमतः क्वापि तत्काश्यां क्षणतोऽपतत् ।।), ५.१.२ ( ब्रह्मा द्वारा शिव को पुत्र रूप में प्राप्त करने की कामना पर शिव द्वारा ब्रह्मा को पुत्र द्वारा वध का शाप, ब्रह्मा के पुत्र नीललोहित रुद्र द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन - छित्त्वा ब्रह्मशिरो यस्मात्कपालं च बिभर्षि च ।। तेन देव कपाली त्वं स्तुतो ह्यसि प्रसीद नः ।।), ५.१.३ ( रुद्र द्वारा कपाल में भिक्षा रूप में विष्णु की भुजा के रक्त को धारण करना, रक्त से अर्जुन नर की उत्पत्ति की कथा - कपालपाणिं संप्रेक्ष्य रुद्रं विष्णुरचिंतयत् ।। कोऽन्यो योग्यो भवेद्भिक्षुर्भिक्षादानस्य सांप्रतम् ।। ), ५.१.५.४९ ( रुद्र द्वारा कुशस्थली में हस्त - लग्न कपाल का भूमि पर क्षेपण, क्षेपण से रसातल सहित भूमि का कम्पित होना - स्थित्वा वर्षसहस्रं तु कपालं चाक्षिपद्भुवि ।। क्षितिं निपतता तेन कंपते स्म रसातलम् ।। ), ५.१.६.६७ ( रसातल वासी द्रोहण नामक असुर के सैनिकों की कपाल क्षेपण से मृत्यु होना, कपाल में भिक्षा धारण की महिमा - कपालपात्रे भुंजानः कपालव्रतभूषणः ।। कपालपाणिः संतुष्टो भिक्षा व्रतसमन्वितः ।। ), ५.१.९.४ ( कपाल की स्थापना पर देवों का हर्ष, महिष रूप धारी हालाहल दैत्य का आगमन, देवों द्वारा हालाहल का वध, कपाल से उत्पन्न मातृकाओं द्वारा दैत्य की देह का भक्षण - एतस्मिन्नंतरे व्यास तत्कपालात्सुभैरवाः ।। दीप्तास्या मातरः सर्वाः प्रचंडास्त्रा महाबलाः ।। ), , ५.१.२६.४९ ( कपर्दी का भिक्षार्थ ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन, याज्ञिकों द्वारा कपर्दी के कपाल का बहि: क्षेपण, कपाल का पुन:- पुन: उत्पन्न होना, याज्ञिकों द्वारा कपर्दी शिव की शरण लेना ), ५.१.४९.१२ ( रुद्र द्वारा कपाल में विष्णु के रक्त की भिक्षा रूप में प्राप्ति, रक्त से शिप्रा नदी का प्रादुर्भाव ), ५.२.८ ( कपालेश्वर का माहात्म्य : कपाल धारी रुद्र का भिक्षा हेतु ब्रह्मा के यज्ञ में गमन, सदस्यों द्वारा कपाल के बहि: क्षेपण पर नए कपालों का उत्पन्न होना, कपालों के क्षेपण के स्थान पर लिङ्ग का आविर्भाव ), ५.२.१८.२९ ( कपाल से निर्घृणत्व की प्राप्ति का उल्लेख - निर्घृणत्वं कपालाच्च दया ते विगता चिरम् ।। ), ५.३.१९८.८५( कपालमोचन तीर्थ में उमा की शुद्धि नाम से स्थिति का उल्लेख - कपालमोचने शुद्धिर्माता कायावरोहणे ॥  ),५.३.२१४ ( श्रीकपाल तीर्थ का माहात्म्य : बलाक लिङ्ग की उत्पत्ति की कथा - देवमार्गे तु यो गत्वा पूजयेद्बलाकेश्वरम् । पञ्चायतनमासाद्य रुद्रलोकं स गच्छति ॥ ), ५.३.२३१.१७ ( रेवा - सागर सङ्गम पर ३ कपालेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख - कपालेश्वरतीर्थानि त्रीणि हंसकृतानि च ॥ ), ६.६५.४१ ( कापालिक द्वारा सुहय राजा के शिर से कपाल का निर्माण करने पर राजा का प्रेत बनना ), ६.१८२.१० ( ब्रह्मा के यज्ञ में कपालपाणि के आगमन की कथा, हवि श्रपण हेतु मृन्मय कपाल के रूप में कपाल का यज्ञ में स्थान पाना - मृन्मयेषु कपालेषु हविः श्राप्यं सुरेश्वर ॥ अद्यप्रभृति यज्ञेषु पुरोडाशात्मिकं द्विजैः ॥ ), ६.२६९ ( कपालेश्वर माहात्म्य : वृत्र हत्या के पश्चात् ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु इन्द्र द्वारा वृत्र का कपाल लेकर ६८ तीर्थों में भ्रमण, हाटकेश्वर क्षेत्र में विश्वामित्र ह्रद में स्नान करने पर वृत्र कपाल का हाथ से पतित होना, इन्द्र द्वारा कपाल की पूजा - तेजः संजायतेगात्रे दुर्गंधश्च प्रणश्यति॥ तस्मिंस्तीर्थे त्वया तच्च स्थाप्यं शक्र कपालकम्॥ ), ७.१.१०३ ( कपालेश्वर का माहात्म्य : विकृत रूप धारी शिव द्वारा दक्ष यज्ञ में वेदी पर कपाल का क्षेपण, सदस्यों द्वारा कपाल के बहि: क्षेपण पर नए कपालों का उत्पन्न होना, ऋषियों द्वारा कपालेश्वर शिव की पूजा, दक्ष द्वारा कपाली सम्बोधन से अपमान करने पर वैवस्वत मन्वन्तर में कपाली द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस ), ७.१.१४८ ( चोर द्वारा वणिक् भार्या के कुण्डलों का हरण करके कपाल में धारण करने का वृत्तान्त - गच्छावस्तत्र यत्रैव कपालं पतितं तव ॥ स्फोटिते च कपाले च हिरण्यं दृश्यते यदि ॥ ), ७.४.१७.२८ ( कपालिनी देवी की द्वारका के पश्चिम द्वार पर स्थिति - देवी कपालिनीनाम अश्वत्थस्तु महाद्रुमः ॥ कपिलः क्षेत्रपालश्च प्रतीचीं पान्ति वै दिशम् ॥ ), महाभारत शान्ति ३२०.३३( कपाल में बीज का तापन करने पर बीज के अङ्कुरित न होने का उल्लेख ), अनुशासन १४.९३(४५.७७)(नष्ट आपः को देवों द्वारा सात कपालों द्वारा प्रकट करने का उल्लेख - महादेवस्य रोषाच्च आपो नष्टाः पुराऽभवन्। ताश्च सप्तकपालेन देवैरन्याः प्रवर्तिताः।।), लक्ष्मीनारायण ३.८.४९( कपालहेतु : सुतल का सहस्रबाहु राजा, विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से बाहुओं का कर्तन - सुदर्शनेन चक्रेण कर्तिताः सर्वबाहवः । -..मया तस्मै प्रदत्तौ वै हस्तौ द्वौ नाधिकौ तदा । ), ३.३४.७४ ( कपाल वत्सर में अपत्यहीना भक्ता पुण्यवती द्वारा ब्रह्मा को शाप से ब्रह्मा की सृष्टि का क्षय, ब्रह्मा की पुण्यवती के शाप से निवृत्ति हेतु पुण्य नारायण का अवतार - एकदा भाग्यकर्तारं वेधसं सा शशाप ह । जडो भव प्रजाहीनो यथा चावां तथा भव ।। ), कथासरित् १.२.१५ (शिव द्वारा हाथ में कपाल रूपी जगत का धारण, अण्डकपाल द्वय रोदसी / द्यावापृथिवी के प्रतीक - किं चैतन्मे कपालात्म जगद्देवि करे स्थितम् । पूर्वोक्ताण्डकपाले द्वे रोदसी कीर्तिते यतः ।।  ), ५.२.१०२ ( गोविन्दस्वामी के पुत्र विजयदत्त का चिता के कपाल से वसा भक्षण कर कपालस्फोट नामक राक्षस बनना - कपालं मानुषस्यैतच्चितायां पुत्र दह्यते ।..कपालं स्फोटयामास काष्ठेनैकेन सोऽर्भकः ।। ) ; द्र. कर्पर । kapaala

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      कपालकेतु स्कन्द ४.२.८२.४८ ( राक्षस, कङ्कालकेतु - पिता, पुत्र द्वारा कन्या हरण का वृत्तान्त ), ५.२.४६.४५ ( कपालकेतु - पुत्र कङ्कालकेतु द्वारा मत्स्यगन्धिनी कन्या के हरण आदि का वृत्तान्त ) ।


      कपालगौतम ब्रह्म १.५६.८ ( कपालगौतम ऋषि के बाल पुत्र का मरण, श्वेत राजा द्वारा पुन: संजीवन का उद्योग ) ।


      कपालमालाभरण स्कन्द ३.१.८.५४ ( कपालमालाभरण यति द्वारा गोविन्दस्वामी को ज्येष्ठ पुत्र से वियोग होने का पूर्वकथन ) ।


      कपालस्फोट पद्म ५.३७.६४ ( राम के अश्वमेध में आरण्यक मुनि की ब्रह्मस्फोट से मृत्यु व सायुज्य मुक्ति की प्राप्ति ), स्कन्द ३.१.८.८२ ( गोविन्दस्वामी के पुत्र विजयदत्त द्वारा कपाल वसा के भक्षण से कपालस्फोट नामक वेताल बनना, पूर्व जन्म में सुदर्शन विद्याधर ), ३.१.९.७६ ( चक्र तीर्थ के समीप वेताल तीर्थ में स्नान से कपालस्फोट की वेतालत्व से मुक्ति ), ७.१.१४८.४०(चोर के कपाल का स्फोटन करने पर हिरण्यप्राप्ति की कथा), कथासरित् ५.२.१०८ ( गोविन्दस्वामी के पुत्र विजयदत्त का कपालस्फोट राक्षस बनना ), ५.२.१९७ ( कपालस्फोट द्वारा विद्युत्शिखा के पति स्तम्भजिह्व राक्षस का वध ), ५.२.२४३ ( अशोकदत्त द्वारा कपालस्फोट राक्षसराज के कमल सरोवर से स्वर्ण कमलों का ग्रहण, कपालस्फोट द्वारा भ्राता अशोकदत्त का अभिज्ञान, शाप से मुक्ति ) ।


      कपालहस्ता स्कन्द ४.१.४५.३७ ( ६४ योगिनियों में से एक ) ।


      कपालाभरण स्कन्द ३.१.११.७ ( राक्षस, त्रिवक्र राक्षस - पत्नी सुशीला व शुचि ब्राह्मण के समागम से उत्पत्ति, इन्द्र की अमरावती पुरी पर आक्रमण, इन्द्र द्वारा कपालाभरण का वध )।


      कपाली गरुड २.२.७४(दीपहारक के कपाली बनने का उल्लेख), पद्म १.४०.८४ ( सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्र नाम ), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.७७ ( गीति रथेन्द्र चक्र के षष्ठम पर्व में स्थित आठ भैरवों में से एक ), ३.४.४०.५९ ( भैरव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम मुख के छेदन पर कपाल का नखलग्न होना, काञ्ची पुरी में श्रीदेवी की कृपा से प्रकट काशी में स्नान से कपाल से मुक्त होना ), मत्स्य १५३.५० ( एकादश रुद्रों में से एक, तारक - सेनानी गज से युद्ध, गज के चर्म का वस्त्र बनाना ), वामन ६.८७( विष्णु द्वारा सृष्ट चार वर्णों में चतुर्थ ; धनद? के कपाली होने का कथन ), स्कन्द ४.२.६६.१३ ( कपाली भैरव का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.६९.११२ ( कपालीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.२ ( ब्रह्मा के पञ्चम शिर छेदन के कारण शिव का नाम ), ६.१०९.१६ ( करवीर तीर्थ में शिवलिङ्ग का नाम ), ६.१८२ ( ब्रह्मा के यज्ञ में कपाली का आगमन, कपाली के कपाल का याज्ञिकों द्वारा बहि: क्षेपण, कपालेश्वर लिङ्ग की स्थापना की कथा ), ७.१.८९ ( कपाली रुद्र का माहात्म्य ) । kapaali


      कपि गर्ग ६.१५.१ ( कपिटङ्क तीर्थ का माहात्म्य : बलराम द्वारा द्विविद वानर के वध का स्थान ), पद्म ५.६७.४१(मोहना - पति ), ६.१४२.९ ( राम द्वारा स्थापित कपीश्वरादित्य तीर्थ का माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०९ ( ३३ मन्त्रकर्त्ता आङ्गिरस ऋषियों में से एक ), २.३.७.७४ ( अज व शण्ड पिशाचद्वय के पिता का नाम ), २.३.६६.८६ ( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले क्षत्रोपेत द्विजों में से एक ), ३.४.१.८८ ( १२वें मन्वन्तर के सुकर्मा नामक देवों के गण में से एक ), मत्स्य ९.१५ ( चतुर्थ तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ९.२१ ( पञ्चम रैवत मनु के १० पुत्रों में से एक ), १९५.३३ ( भार्गव वंशी एक ऋषि ), वामन ६३.७५( विश्वकर्मा द्वारा स्वपुत्री चित्राङ्गदा को उसके पति सुरथ को प्रदान न करने पर ऋषि ऋतुध्वज द्वारा विश्वकर्मा को शाखामृग बनने का शाप ), ६४.२( कपि रूपी विश्वकर्मा द्वारा कन्दर दैत्य की कन्या देववती को आश्रम में छिपाना ), ६४.२६( कपि द्वारा ऋतध्वज - पुत्र को वट वृक्ष से बांधने का वृत्तान्त ), ६५.९७( शकुनि द्वारा कपि के वध को उद्धत होना, कपि द्वारा जाबालि की जटाओं में बद्ध शाखाओं को खोलना, ऋतध्वज की कृपा से कपि योनि से मुक्ति का उपाय जानना, घृताची से पुत्र उत्पन्न करने पर कपि की मुक्ति ), वायु ९१.११५ ( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले क्षत्रोपेत द्विजों में से एक ), ९९.१६३ ( उभक्षय व विशाला - पुत्र, भरत वंश ), विष्णु ४.१९.२५ ( दुरुक्षय - पुत्र, भरत वंश, जन्म के पश्चात् द्विज बनना ), विष्णुधर्मोत्तर १.२५२.१२( प्रसिद्ध वानरों के देवतांशों का कथन ),शिव २.१.३.४१( शीलनिधि - कन्या श्रीमती से विवाह हेतु नारद द्वारा वानर मुख प्राप्ति का वृत्तान्त ), स्कन्द २.४.२१.१५ ( कपिद्वय द्वारा जालन्धर - पत्नी वृन्दा को जालन्धर की मृत्यु का मिथ्या समाचार देना, वृन्दा द्वारा कपियों को राक्षस होकर राम - भार्या सीता के हरण करने का शाप ), ३.१.३९ ( कपि तीर्थ का माहात्म्य : राम द्वारा निर्माण, विश्वामित्र - रम्भा तथा श्वेत - घृताची की कथा ), ५.३.८४.१६ ( कपि तीर्थ का माहात्म्य : हनुमान की राक्षसों की हत्या के पाप से निवृत्ति ), योगवासिष्ठ ६.२.४४.२१( राग द्वेष का क्षोभकारक कपियों के रूप में उल्लेख ), महाभारत कर्ण ८७.९५( अर्जुन के रथ के ध्वज के कपि द्वारा कर्ण के रथ ध्वज पर स्थित हस्ति कक्षा/सांकल पर आक्रमण का कथन ), शान्ति ३४२.८९(२४) ( कपि के वराह, श्रेष्ठ व वृषा के धर्म अर्थों से वृषाकपि नाम की निरुक्ति ), लक्ष्मीनारायण २.१०६.६ ( कपि शब्द की निरुक्ति : कं - सुखं पिबामि ), ३.२११ ( कपिक्षय नामक वानरभक्षी चाण्डाल का वानर रूप धारी देव के उपदेश से मोक्ष प्राप्त करना ), कथासरित् १२.२.१४५ ( हंसी द्वारा कपि की आंख में चोंच मारकर अपने हंस पति को जाल से मुक्त कराना ) ; द्र. कीर, मर्कट,वानर, वृषाकपि । kapi


      कपिञ्जल देवीभागवत ६.२.२४ ( विश्वरूप के वेदपाठी व सोमपायी मुख से कपिञ्जल की उत्पत्ति ), पद्म २.१०१ ( कुञ्जल - पुत्र, पिता से स्त्री के अश्रुओं से कमलों की उत्पत्ति के आश्चर्य का वर्णन ), २.११८+ ( कुञ्जल द्वारा पुत्र कपिञ्जल को कामोदा नामक कन्या के अश्रुओं से उत्पन्न कमलों का रहस्य व विहुण्ड दैत्य द्वारा कमलों की प्राप्ति के उद्योग का वर्णन ), भागवत ६.९.५ ( विश्वरूप के वेदपाठी व सोमपायी मुख से कपिञ्जल की उत्पत्ति ), वराह ८०.१० ( मेरु के पश्चिम में कपिञ्जल व नाग पर्वतों के बीच रमणीक स्थल का वर्णन ), वायु ३९.५२ ( हेमकक्ष पर्वत पर अपत्तन नामक गन्धर्वों के अधिपति कपिञ्जल के वास का उल्लेख ), ७०.८८ ( कपिञ्जली रूप धारी घृताची द्वारा वसिष्ठ से इन्द्रप्रतिम /कुशीति पुत्र प्राप्ति ), स्कन्द १.१.१८.५ ( बलि द्वारा स्वर्ग पर आक्रमण करने पर पाशी/वरुण का कपिञ्जल रूप धारण करके स्वर्ग से पलायन ), ६.१४८.१३ ( व्यास व वटिका / पिङ्गला - पुत्र, शुक के वनगमन के पश्चात् माता द्वारा प्राप्त द्वितीय पुत्र ), लक्ष्मीनारायण १.५०४.७५ ( शुक के वनगमन के पश्चात् व्यास - पत्नी चेटिका द्वारा प्राप्त द्वितीय पुत्र, भरद्वाजी - पति, भारद्वाज - पिता ), कथासरित् ८.७.४८ ( सूर्यप्रभ - सेनानी भास का पूर्व जन्मों में कालनेमि, हिरण्यकशिपु व कपिञ्जल बनना ), १०.६.४७ ( शश व कपिञ्जल की कथा : शश द्वारा कपिञ्जल के नीड पर अधिकार, न्यायाधीश बिडाल द्वारा दोनों का भक्षण ), १८.५.१०८ ( मूर्ख ब्राह्मण अग्निशर्मा द्वारा पत्नी के गृह को प्रस्थान करने पर कपिञ्जल का दक्षिण व वाम होना, ब्राह्मण का कपिञ्जल द्वारा दर्शित अपशकुन को शकुन समझना ) । kapinjala


      कपित्थ अग्नि ३४१.१४ ( नर्तन आदि में असंयुत हस्त के २४ प्रकारों में से एक ? ), ब्रह्माण्ड २.३.७.३६ ( कपित्थक : कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), भविष्य १.५७.१७( मरुतों हेतु कपित्थ बलि का उल्लेख - बिल्वं दद्यात्कुबेराय कपित्थं मरुतां तथा ।। ), भागवत १०.११.४३( गृहीत्वा अपरपादाभ्यां सहलाङ्‌गूलमच्युतः ।  भ्रामयित्वा कपित्थाग्रे प्राहिणोद् गतजीवितम् । मत्स्य ९६.५(सर्वफलत्याग व्रत विधान में कालधौत / सुवर्णमय १६ फलों में से एक )। kapittha


      कपिल अग्नि ३८२.३(कपिल के मत से परम श्रेय – भोगों में असक्ति, आत्मावलोकन - भोगेष्वशक्तिः सततं तथैवात्मावलोकनं । श्रेयः परं मनुष्याणां कपिलोद्गीतमेव हि ।। ), कूर्म १.४०.२३ ( कुश द्वीप के स्वामी ज्योतिष्मान् के सात पुत्रों में से एक ; उसी नाम का एक वर्ष - उद्‌भेदो वेणुमांश्चैवाश्वरथो लम्बनो धृतिः । षष्ठः प्रभाकारश्चापि सप्तमः कपिलः स्मृतः । ), २.११.१२९ ( कपिल द्वारा जैगीषव्य व पञ्चशिख मुनियों को ईश्वरीय ज्ञान दान का उल्लेख - जैगीषव्याय कपिलस्तथा पञ्चशिखाय च । ), गणेश १.९२.१७ ( गन्धर्वों, किन्नरों आदि द्वारा कपिल नाम से गणेश की पूजा ), २.८५.३३ ( कपिल गणेश से अज - अवि की रक्षा की प्रार्थना - कपिलोऽजाविकं पातु गवाश्वं विकटोऽवतु  ), गरुड ३.१९.४९( हव्यवाह - पुत्री द्वारा कपिल तीर्थ में कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति हेतु तप व श्रीनिवास से वर प्राप्ति ), ३.२९.६६(पुष्पादि छेदन काल में कपिल के ध्यान का निर्देश - पुष्पादीनां छेदने चैव काले सम्यक् स्मरेदेत्कपिलाख्यं हरिं च ।), गर्ग ५.१५.२६ ( सिद्धि का कपिल की शक्ति के रूप में उल्लेख - कृष्णस्तु साक्षात्कपिलो महाप्रभुः  सिद्धिस्त्वमेवासि च सिद्धसेविता । ), ५.२५.३ ( कपिल ब्राह्मण द्वारा कृष्ण की वराह रूप मूर्ति की प्राप्ति व इन्द्र को मूर्ति दान करना ), १०.२६.३२ ( उग्रसेन के यज्ञीय अश्व के रक्षक अनिरुद्ध का कपिलाश्रम में गमन का उल्लेख - स्नात्वा च तत्रैव यदुप्रवीरो      भागीरथीसागरसंगमे च ॥ विलोक्य सिद्धं कपिलं मुनीद्रं   ससेनया सोऽपि नमश्चकार ॥ ), १०.३४.४६ ( बल्लव - पुत्र कुनन्दन द्वारा अनिरुद्ध को मूर्च्छित करने पर कपिल द्वारा तपोबल से अनिरुद्ध को चेतना युक्त करना - अथ वै मूर्च्छितं दृष्ट्वानिरुद्धं कपिलो मुनिः ॥…चकार तं तु चैतन्यं हस्तेन तपसा मुनिः ॥ ), देवीभागवत ८.३.१३ ( कर्दम व देवहूति - पुत्र, सांख्याचार्य कपिल की महिमा का कथन ), ९.१.१०४( धृति - पति), नारद १.८.१०३ ( सगर -पुत्रों द्वारा कपिल के ताडन पर सगर - पुत्रों का दग्ध होना ), २.५२.१५ ( सिद्धों में कपिल की श्रेष्ठता का उल्लेख - सेनानीनां यथा स्कंदः सिद्धानां कपिलो यथा ।।), २.६५.४०(कपिल महायक्ष की पत्नी उलूखलमेखला का कथन - विघ्नं करोति पापानां सुकृतं च प्रयच्छति ।। पत्नी तस्य महाभागा नाम्नोलूखलमेखला ।।), पद्म १.४०.५१ ( सांख्याचार्य, नारायण - अवतार कपिल द्वारा ब्रह्मा के तीन पुत्रों भू, भुव: व सुव: को अक्षर ब्रह्म की आराधना का निर्देश - यदेष कपिलो नाम ब्रह्मनारायणस्तथा। वदतो भवतस्त्वं तु तत्कुरुष्व महामते॥), ६.३०.६४ ( कपिल विप्र द्वारा दीप व्रत के प्रभाव से मोक्ष प्राप्ति, मूषक व मार्जार द्वारा दीप प्रबोधन का प्रसंग ), ६.१२०.८( कपिल से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन ), ६.१३३.१२ ( काम्पिल्य क्षेत्र में कापिल तीर्थ की स्थिति - कंपिले कापिलं तीर्थं मुकुटे कर्कोटकं तथा॥ ), ६.२१६.४६ ( बदरिकाश्रम तीर्थ में महिष का कपिल ऋषि से मिलन, महिष द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन व दिव्य देह धारण करके कपिल की स्तुति - भोभो विष्णुकलाभूत सिद्धानां कपिलेश्वर। किं नामेदं महातीर्थं नताय कथयस्व मे ॥ ), ब्रह्म १.६.५५ ( कपिल द्वारा सगर के चार पुत्रों के अतिरिक्त अन्य षष्टि सहस्र पुत्रों को भस्म करना ), २.८.५० ( भगीरथ द्वारा सगर -पुत्रों के कल्याणार्थ कपिल मुनि से परामर्श, कपिल द्वारा गङ्गा अवतारण का परामर्श - स मुनिस्तु चिरं ध्यात्वा तपसाऽऽराध्य शंकरम्। जटाजलेन स्वपितॄनाप्लाव्य नृपसत्तम।।), २.७१.४ ( ऋषियों द्वारा वेन के हनन के पश्चात् भावी कर्त्तव्य के विषय में कपिल से पृच्छा, कपिल द्वारा वेन की ऊरु के मन्थन का परामर्श - ततोऽब्रवीन्मुनिर्ध्यात्वा कपिलस्त्वागतान्मुनीन्।। वेनस्योरुर्विमथ्योऽभूत्ततः कश्चिद्भविष्यति।। ), २.७१.२६ ( पृथु द्वारा कपिल मुनि के समीप गौ रूपा पृथ्वी का दोहन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१०८ ( कपिल - पत्नी धृति की संक्षिप्त महिमा - धृतिः कपिलपत्नी च सर्वैः सर्वत्र पूजिता ।। सर्वे लोका अधीरास्स्युर्जगत्सु च यया विना।। ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.५६(मन्दर पर्वत के कपिल वर्ण का उल्लेख ), २.३.७.१४६ ( कपिल यक्ष द्वारा केशिनी पत्नी से कापिलेय दैत्य राक्षसों को उत्पन्न करना - कपिलेन च यक्षेण केशिन्यां ह्यपरे जनाः । उत्पादिता बलावता उदीर्णा यक्षराक्षसाः ॥  ), २.३.७.२३३ ( प्रधान हरियों / वानरों में से एक ), २.३.७.३३५ ( रथन्तर साम के अन्तर्गत कपिल व पुण्डरीक हस्तियों के सुप्रतीक व प्रमर्दन पुत्रों का उल्लेख - कपिलः पुण्डरीकश्च सुनामानौ रथन्तरात् । जातौ नाम्ना श्रुतौ ताभ्यां सुप्रतीकप्रमर्दनौ ॥ ), २.३.५२.१७ ( देवों का सगर - पुत्रों से त्रस्त होकर कपिल की शरण में जाना ), २.३.५३.१७ ( कपिल द्वारा सगर - पुत्रों को भस्म करने का वृत्तान्त ), २.३.७१.१८६ ( वसुदेव व सुगन्धी - पुत्र, पुण्ड्र - भ्राता, वृष्णि वंश, तप हेतु वन गमन ), भागवत १.९.१९ ( भगवान् कृष्ण का प्रभाव जानने वालों में से एक ), २.७.३ ( देवहूति के गर्भ से ९ बहनों के साथ विष्णु - अवतार कपिल का जन्म लेना ), ३.२४ ( कपिल का कर्दम व देवहूति - पुत्र के रूप में जन्म लेना, कर्दम द्वारा कपिल की स्तुति, कपिल द्वारा कर्दम को तप का निर्देश ), ३.२५ ( कपिल द्वारा माता को भक्ति योग का उपदेश ), ३.२६ ( कपिल द्वारा माता को सांख्य योग का उपदेश ), ३.२७ ( कपिल द्वारा प्रकृति - पुरुष के विवेक से मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ), ३.२८ ( कपिल द्वारा अष्टाङ्ग योग विधि का वर्णन ), ३.२९ ( देवहूति द्वारा कपिल की प्रशंसा, कपिल द्वारा भक्ति का मर्म व काल की महिमा का वर्णन ), ३.३० ( कपिल द्वारा देहगेह में आसक्त पुरुषों की अधोगति का वर्णन ), ३.३१ ( कपिल द्वारा मनुष्य योनि को प्राप्त हुए जीव द्वारा भुक्त गर्भ यातना व परवर्ती कष्टों का वर्णन ), ३.३२ ( कपिल द्वारा धूममार्ग व अर्चिमार्ग से जाने वालों की गति व भक्ति योग की उत्कृष्टता का वर्णन ), ३.३३ ( देवहूति द्वारा कपिल की स्तुति, देवहूति को मोक्षपद की प्राप्ति ), ४.१८.१९ ( सिद्धों द्वारा गौ रूपा पृथिवी के दोहन में कपिल का वत्स बनना ), ५.१६.२६ ( मेरु के परित: स्थित २० पर्वतों में से एक पर्वत का नाम ), ५.२०.१५ ( कुश द्वीप के ७ सीमा पर्वतों में से एक ), ६.३.२१( भागवत धर्म को जानने वाले १२ जनों में से एक), ६.८.१६ ( नारायण कवच में कपिल से कर्मबन्धनों से रक्षा की प्रार्थना - दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद्गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ॥ ), ९.८.१० ( कपिल द्वारा सगर - पुत्रों को भस्म करने का वृत्तान्त ), मत्स्य ३.२९ ( कपिल - प्रोक्त सांख्य का वर्णन - एवं षड्‌विंशकं प्रोक्तं शरीर इह मानवे।। सांख्यं संख्यात्मकत्वाच्च कपिलादिभिरुच्यते। ), ६.४१ ( कद्रू के २६ प्रधान सर्प पुत्रों में से एक ), ४६.२१ ( वसुदेव व सुतनु/रथराजी? - पुत्र ), ५०.३ ( भद्राश्व के पांच पुत्रों में से एक, पाञ्चाल संज्ञा, पूरु वंश ), १२२.६८ ( ककुद्मी पर्वत के वर्ष का नाम ), १६३.८९ ( हिरण्यकशिपु के कारण महीपुत्र कपिल का कम्पित होना ), १७१.१० ( ब्रह्मा द्वारा भू, भुव: व स्व: पुत्रों को भावी कर्त्तव्य के विषय में कपिल मुनि से निर्देश लेने का आदेश ; पुत्रों का मुक्त होना ), वराह ४.१३+ ( कपिल व जैगीषव्य मुनियों का अश्वशिरा राजा के पास आगमन, कपिल द्वारा विष्णु रूप का दर्शन कराना, राजा से हरि आराधना में कर्म या ज्ञान की श्रेष्ठता विषयक संवाद, कपिल द्वारा लुब्धक व विप्र के दृष्टान्त का कथन ), १६३.२५ ( कपिल मुनि द्वारा मन से निर्मित वाराही प्रतिमा का क्रम से इन्द्र, रावण, राम व शत्रुघ्न को हस्तान्तरण, अन्त में मथुरा में कपिलवराह नाम से स्थापित होना ), वामन ३४.४४ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्वर्ती पुष्कर तीर्थ में कपिल नामक महायक्ष का वास, उदूखल मेखला - पति ), ९०.३५ ( रसातल में विष्णु के नामों में से एक ), ९०.३९ ( जन लोक में विष्णु का कपिल नाम - महर्ल्लोके तथाऽगस्त्यं कपिलं च जने स्थितम्।। ), वायु २३.१४१ ( आठवें द्वापर में मुक्ति पाने वाले योगियों में से एक ), ३३.२४ ( कुशद्वीप के ७ पर्वतों में से एक ), ३६.२७ ( मेरु की पश्चिम दिशा में स्थित पर्वतों में से एक ), ३६.३१ ( मेरु की उत्तर दिशा में स्थित पर्वतों में से एक ), ४२.५० ( अम्बर नदी द्वारा सिंचित पर्वतों में से एक ), ४९.५३ ( कुश द्वीप के ७ वर्ष पर्वतों में से एक ), ५०.२९ ( तृतीय अधोतल पाताल में कपिल के मन्दिर की स्थिति ), ६९.७३ ( कण्डू / कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), ६९.२१९ ( रथन्तर साम के अन्तर्गत एक हस्ती - कपिलः पुण्डरीकश्च सुमनाभो रथान्तरः। जातौ नाम्ना सुतौ ताभ्यां सुप्रतिष्ठप्रमर्द्दनौ ॥ ), ८८.१४७ ( कपिल द्वारा सगर - पुत्रों को दग्ध करना ), ९६.१८३ ( वसुदेव व वनराजी - पुत्र, वृष्णि वंश ), विष्णु १.२१.४ ( दनु व कश्यप के पुत्रों में से एक ), १.२२.८ ( ब्रह्मा द्वारा कपिल मुनि को मुनिजनों का स्वामी नियुक्त करना - हिमालयं स्थावराणां मुनीनां कपिलं मुनिम् । ), २.१४.७ ( सौवीरराज का श्रेय जानने के लिए कपिल मुनि के पास गमन, मार्ग में शिबिका वाहक जड भरत से श्रेय व परमार्थ विषयक संवाद ), विष्णुधर्मोत्तर १.१८.१३ ( सगर - पुत्रों को भस्म करने का वृत्तान्त ), १.५६.२२ ( सिद्धों में कपिल मुनि : नारायण की विभूति - गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।। ), ३.११८.८( सांख्य ज्ञान परिज्ञान हेतु कपिल की पूजा का निर्देश - विद्याकामोऽथ वाल्मीकिं व्यासं वाप्यथ पूजयेत्।। सांख्यज्ञानपरिज्ञानहेतवे कपिलं तथा।। ), ३.१२०.८( २७ नक्षत्रों में पूजनीय देवताओं में से एक ), शिव ३.४.३३ ( अष्टम द्वापर में दधिवाहन नामक शिव अवतार के ४ पुत्रों में से एक ), ५.२२.४७ ( देह में कपिल? के प्रमाण / मात्रा का उल्लेख - पित्तस्य कुडवं ज्ञेयं कफस्याथाढकं स्मृतम् । वसायाश्च पलं विंशत्तदर्धं कपिलस्य च ।। ), स्कन्द १.२.६.५५ ( कलाप ग्राम वासी ब्राह्मणों को महीसागर सङ्गम पर स्थापित करते हुए नारद के समक्ष कपिल मुनि का आगमन, कपिल द्वारा महीसागर सङ्गम पर कपिल तीर्थ की स्थापना ), १.२.१३.१६२ ( शतरुद्रिय प्रसंग में कपिल द्वारा बालुका लिङ्ग की वरद नाम से पूजा - कपिलो वालुकालिंगं वरदं च जपन्हरम्॥ ), १.२.४५+ ( बहूदक तीर्थ में स्थिति कपिलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : नन्दभद्र वणिक् द्वारा लिङ्ग की आराधना, कुष्ठी बालक से उपदेश प्राप्ति आदि ), २.४.२टीका ( गौतम - शिष्य कपिल द्वारा गुरु सेवा से अमरता प्राप्ति की कथा ), ४.२.९७.७७ ( कपिलेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - तत्र सिद्धः पाशुपतः कपिलर्षिर्महातपाः । तत्रास्ति हि गुहा रम्या कपिलेश्वर संनिधौ ।।), ५.२.५९ ( कपिल व जैगीषव्य मुनियों का राजा अश्वशिरा से मिलन, कपिल का सिद्धि के प्रभाव से विष्णु आदि रूप धारण करना ), ५.२.८३ ( कपिल द्वारा शिव से अवध्यता वर की प्राप्ति, बिल्व नृप से विवाद, बिल्व नृप द्वारा बिल्वेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य - दानं प्रधानं तीर्थं तु बिल्वेनोक्तं पुनःपुनः । ब्रह्म श्रेष्ठं तपः श्रेष्ठमित्युक्तं कपिलेन तु।। ), ५.३.१३.४२ ( १४ कल्पों में प्रथम कापिल कल्प का उल्लेख - कापिलं प्रथमं विद्धि प्राजापत्यं द्वितीयकम् । ब्राह्मं सौम्यं च सावित्रं बार्हस्पत्यं प्रभासकम् ॥  ), ५.३.८८.१ ( रेवा तट पर स्थित कापिल तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ५.३.१७५ ( कपिलेश्वर तीर्थ का माहात्म्य: कपिल द्वारा सगर - पुत्रों को भस्म करने के पाप से निवृत्ति के लिए तप का स्थान ), ५.३.२३१.११ ( रेवा - सागर सङ्गम पर ९ कपिलेश्वरों की स्थिति का उल्लेख - दशादित्यभवान्यत्र नवैव कपिलेश्वराः ॥  ), ७.१.३३.५० ( तपोरत ४ ऋषियों द्वारा सरस्वती का आह्वान करने पर सरस्वती द्वारा कपिला धारा के रूप में कपिल ऋषि को तृप्त करना - प्रमादान्मदिरापानदोषेणोपहतात्मनाम् ॥ तद्व्यपोहाय कपिला द्विजानां वहते नदी ॥ ), ७.१.५३ ( कपिलेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - सप्तकृत्वो महादेवं सोमेशं कपिलेश्वरम्॥ यः पश्येत्प्रयतो भूत्वा स गोदानफलं लभेत् ॥ ), ७.१.३४३ ( कपिलेश्वर लिङ्ग व धारा का माहात्म्य : कपिला षष्ठी व्रत, सूर्य पूजा का कथन - प्रौष्ठपद्यसिते पक्षे षष्ठ्यामंगारको यदि ॥ व्यतीपातश्च रोहिण्यां सा षष्ठी कपिला स्मृता ॥), ७.४.१७.२९ ( द्वारका के पश्चिम द्वार पर कपिल क्षेत्रपाल की स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश ३.१४.११( ब्रह्मा द्वारा पुत्रों भू आदि को कपिल व नारायण से उपदेश प्राप्त करने का निर्देश, परमेश्वर - द्वय द्वारा १८ पाशों वाले ब्रह्म से परे का स्मरण करने का निर्देश - यत् सत्यमक्षरं ब्रह्म ह्यष्टादशनिधं स्मृतम् । यत् सत्यममृतं चैव परं तत् समनुस्मर ।।  ), महाभारत शान्ति ३४०.७२( निवृत्तिपरक ७ ऋषियों में से एक - सनः सनत्सुजातश्च सनकः ससनन्दनः। सनत्कुमारः कपिलः सप्तमश्च सनातनः।।), ३४२.९५/३५२.३०( कपिल का शब्दार्थ : विद्या सहायक, आदित्य में स्थित - विद्यासहायवन्तं मामादित्यस्थं सनातनम्। कपिलं प्राहुराचार्याः साङ्ख्या निश्चितनिश्चयाः।। ), अनु० १५० । ४१ (धर्मः कामश्च कालश्च वसुर्वासुकिरेव च। अनन्तः कपिलश्चैव सप्तैते धरणीधराः।। ), वा.रामायण १.४० ( कपिल द्वारा सगर - पुत्रों को भस्म करना ), लक्ष्मीनारायण १.३४७.६८ ( कपिल द्वारा मन से निर्मित वराह कृष्ण की मूर्ति के मान्धाता, इन्द्र आदि को प्राप्त होने व अन्त में मथुरा में प्रतिष्ठित होने की कथा ), १.५२५ ( कपिल का अश्वशिरा नृप से कर्म या ज्ञान से मोक्ष विषयक संवाद, विप्र - लुब्धक संवाद के दृष्टान्त का कथन, कपिल व जैगीषव्य द्वारा अश्वशिरा को विभूतियों का प्रदर्शन, कपिल का विष्णु व जैगीषव्य का गरुड बनना आदि ), २.८०.३ ( कपिल -शिष्य राजा बलेशवर्मा का वृत्तान्त ), २.१६२.६६ ( शतोढु विप्र के मूक पुत्र वोढु द्वारा तप करने पर कपिल रूप धारी विष्णु द्वारा वोढु को वाणी प्रदान करना - साधुवेषः पिङ्गजटः स्कन्धे धृतोपवीतकः । करे कमण्डलुं बिभ्रन् कुक्षौ चाधारपावटीम् ।। ), कथासरित् ९.२.२४८ ( चार शिव गणों द्वारा कपिल जट मुनि की कन्या चापलेखा से बलात्कार की चेष्टा पर मुनि द्वारा शाप ), १६.१.९९ ( पाताल में एक कपिल ऋषि, भूतल पर अनेक कपिल वानर - बहुभूधरनागेन्द्रमाश्रितं कपिलोत्करैः । अपूर्वमिव पातालमूर्ध्ववर्ति वितामसम् ।।), १६.२.१०२ ( कपिल शर्मा ब्राह्मण के घर में अग्नि का वास - आस्ते कपिलशर्माख्यो नगरेऽस्मिन्द्विजोत्तमः । तस्याग्न्यगारे प्रत्यक्षः साकारः सन्वसाम्यहम् ।। )। kapila


      कपिला अग्नि ७७.१ ( कपिला गौ पूजा की विधि ), ३८३.१८ ( ज्येष्ठ पुष्कर में १०० कपिला दान के फल का अग्नि पुराण पठन फल के तुल्य होने का उल्लेख ), कूर्म २.४१.९३ ( कपिला तीर्थ का माहात्म्य ), नारद १.४५.८ ( कपिली ब्राह्मणी का दुग्धपान करने से पञ्चशिख मुनि की कापिलेय संज्ञा होना, पञ्चशिख - जनक संवाद में सांख्य योग का प्रतिपादन ), १.६५.२६( अग्नि की १० कलाओं में से एक ), २.२२.७६ ( आमिष त्यागी के लिए कपिला गौ दान का निर्देश - आमिषस्य परित्यागे सवत्सां कपिलां ददेत् ॥ ), पद्म २.१९ ( कपिला - रेवा सङ्गम पर सोमशर्मा द्वारा तप व विष्णु के दर्शन ), ३.१३.३६ ( नर्मदा के दक्षिण में स्थित कपिला नदी का माहात्म्य ), ३.२०.४ ( नर्मदा तटवर्ती कपिला तीर्थ का माहात्म्य ), ३.२६.४३ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत कपिला तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्म २.७१ ( पृथु द्वारा कपिला गौ का दोहन, कपिला का नदी बनकर गौतमी से सङ्गम होना ), २.८५ ( अङ्गिरसों द्वारा आदित्यों से दुष्ट भूमि के बदले कपिला गौ का विनिमय करना ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१३८ ( खशा - पुत्री, कुम्भ - भार्या, कापिलेय राक्षसगण - माता ), भविष्य ४.१६१ ( कपिला गौ दान का माहात्म्य ), मत्स्य १३.३३ ( महालिङ्ग तीर्थ में कपिला नाम से सती का वास ), १९१.७२ ( नर्मदा के तटवर्ती कपिला तीर्थ में कपिला गौ दान का संक्षिप्त माहात्म्य ), वराह १११+ ( कपिला धेनु दान का माहात्म्य व कपिला गौ के प्रकार - सुवर्णकपिला पूर्वं द्वितीया गौरपिङ्गला ।। तृतीया चैव रक्ताक्षी चतुर्थी गुडपिंगला।। ), वायु ६९.१७० ( खशा की ७ कन्याओं में से एक, कुम्भ दैत्य से कापिल दैत्य राक्षसों को उत्पन्न करना ), १०८.५७ ( गया तीर्थ के अन्तर्गत कपिला नदी में स्नान व श्राद्ध का संक्षिप्त माहात्म्य ), विष्णु ६.८.५४ ( विष्णु पुराण के १० अध्यायों का श्रवण करने से कपिला गौ दान के फल की प्राप्ति ), स्कन्द ४.२.६२.४७ ( काशी में गोलोक से अवतरित पांच गायों के दुग्ध से निर्मित कपिला ह्रद का माहात्म्य ), ४.२.९७.१९ ( कपिला ह्रद का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.३५.१ ( स्वर्ण क्षुर तीर्थ में स्नान से १०० कपिलाओं के दान के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.२१.५५ ( नर्मदा के दक्षिण तटवर्ती कपिला नदी का माहात्म्य : कपिल के तप का स्थान ), ५.३.३९ ( ब्रह्मा के अग्निकुण्ड से कपिला का प्राकट्य, ब्रह्मा द्वारा स्तुति, कपिला गौ के शरीर में देवों की स्थिति का वर्णन ), ५.३.२१.५५ ( नर्मदा के दक्षिण तीर पर स्थित कपिला नदी के माहात्म्य का कथन ), ५.३.२१.७१ ( कपिला नदी के उद्भव के कारण का कथन : पार्वती के वस्त्र निष्पडीन आदि से उत्पत्ति ), ५.३.२२.३३ ( कपिला नदी के विशल्या नाम का कारण : कपिला में स्नान से कुमार अग्नि का शल्य रहित होना ), ५.३.८५.८५ ( कपिला दान से सात जन्मों के पापों के नाश का उल्लेख ), ५.३.११९.३ ( नर्मदा तट पर कपिला दान आदि के माहात्म्य का कथन ), ५.३.१९८.७० ( महालिङ्ग तीर्थ में उमा की कपिला नाम से स्थिति का उल्लेख ), ७.१.३५.६५ ( ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न सरस्वती - सखियों में से एक नदी ), ७.१.३४३ ( कपिल द्वारा आहूत नदी, कपिला षष्ठी व्रत विधि व माहात्म्य ), ७.३.२९ ( कपिला तीर्थ का माहात्म्य : व्याघ्र रूपी सुप्रभ राजा की कपिला गौ से संवाद से मुक्ति ), हरिवंश २.७६.१२ ( नारद द्वारा कपिला गौ को पाकर कृष्ण को बन्धन मुक्त करना ), महाभारत आश्वमेधिक ९२ दाक्षिणात्य पृ. ६३४४, लक्ष्मीनारायण १.२४२.५५ ( कपिला ब्राह्मणी द्वारा भूलोक में अन्नदान न करने के कारण वैकुण्ठ में क्षुधाग्रस्त रहना, षट्-तिला एकादशी व्रत के पुण्य की प्राप्ति से शान्ति ), १.५५०.६ ( कपिला तीर्थ व कपिला षष्ठी का माहात्म्य ), १.५६२.१८ ( राजा वसुदान द्वारा यज्ञ के पश्चात् त्रिदेवों के अभिषेक जल व गायों के मूत्र प्रवाह आदि प्रवाह से कपिला नदी का प्राकट्य ), १.५६४.१०५ ( त्रिनेत्रा कपिला नदी द्वारा राजा धुन्धुमार को दर्शन, समस्त कामों की पूर्ति करना ), कथासरित् १४.४.२९ ( देवरक्षित ब्राह्मण की कपिला गौ द्वारा नागस्वामी ब्राह्मण की योगिनी से रक्षा का वृत्तान्त ) । kapilaa


      कपिलाश्व भागवत ९.६.२३ ( धुन्धु की मुखाग्नि से सुरक्षित बचे कुवलाश्व के तीन पुत्रों में से एक ), मत्स्य १२.३२ ( कुवलाश्व / धुन्धुमार के तीन पुत्रों में से एक ), शिव ५.३७.३९ ( कुवलाश्व - पुत्र, धुन्धु राक्षस के कोप से अप्रभावित ३ पुत्रों में से एक ) ।


      कपिश मत्स्य ६.१७ ( कश्यप व दनु के १०० दानव पुत्रों में से एक ), कथासरित् १२.६.३३ ( कपिशभ्रू : सौदामिनी - सखी, सौदामिनी - पति अट्टहास को नडकूबर से प्राप्त शाप का वृत्तान्त सखी से बताना ) ।


      कपिशा ब्रह्माण्ड २.३.७.१७२, २.३.७.३७४ ( कपिशा द्वारा कूष्माण्ड से १६ पिशाच मिथुनों की उत्पत्ति, मिथुनों के नामोल्लेख ), वायु ६९.२०५ ( पुलह व क्रोधा की १२ कन्याओं में से एक ), ६९.२५७ ( कपिशा द्वारा कूष्माण्ड से १६ पिशाच मिथुनों की उत्पत्ति, मिथुनों के नाम ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९८.१ ( कपिशा - पुत्रों अज व षण्ड पिशाचों का वृत्तान्त ) । kapishaa


      कपिष्ठल पद्म ३.२६.७० ( कपिष्ठल के केदार की यात्रा का संक्षिप्त माहात्म्य ) ।


      कपीवान शिव ५.३४.२४ ( चतुर्थ मन्वन्तर में सप्त ऋषियों में कपीतम, कपीवान आदि का उल्लेख ) ।


      कपोत अग्नि ३४१.१७ ( संयुत कर के १३ प्रकारों में से एक ), गरुड १.२१७.२७ ( काष्ठ हरण से कपोत योनि की प्राप्ति का कथन ), नारद १.५६.७५३ ( दिन में कपोतों के कोलाहल की उत्पात के अन्तर्गत गणना ),पद्म ६.१६२ ( कापोती तीर्थ का माहात्म्य : श्येन अतिथि हेतु कपोत द्वारा शरीर का उत्सर्ग ), ब्रह्म २.१०.२२ ( कपोती का लुब्धक के जाल में बन्धन, लुब्धक अतिथि की सेवा हेतु कपोत का अग्नि में प्रवेश ), २.५५ ( अनुह्राद कपोत की पत्नी हेति का अग्नि - उपासक उलूक परिवार से युद्ध, कपोती द्वारा अग्नि की शरण लेने पर युद्ध की शान्ति का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.५४ ( ब्रह्मा द्वारा वेद रूपी शिरों से पुष्प नामक कपोतों की सृष्टि ), भविष्य २.२.२.३१ ( लक्ष्मी का वाहन चित्र कपोत ), ३.३.९.४७ ( हरिणी नामक अश्वी द्वारा उच्चैःश्रवा अश्व के वीर्य से कपोत नामक अश्व पुत्र को जन्म देना ), ३.३.११.५० ( सुखखानि का कपोत हय पर आरूढ होकर नभ मार्ग से पृथ्वीराज पर आक्रमण करना ), ३.३.२५.५१ ( बलखानि द्वारा कपोत हय पर आरूढ होकर पृथ्वीराज द्वारा निर्मित १२ गर्तों को पार करने का प्रयास, १३वें गुप्त गर्त में गिरने से कपोत व बलखानि की मृत्यु ), ४.१३९.२८(इन्द्रयष्टि पर कपोत पात से प्रजानाश का उल्लेख), भागवत १.१४.१४ ( कपोत का मृत्युदूत विशेषण ), ११.७.३३, ११.७.५३ ( दत्तात्रेय योगी द्वारा कपोत परिवार के लुब्धक के जाल में फंसकर नष्ट होने से आसक्तिहीन होने की शिक्षा की प्राप्ति ), मत्स्य ६.३२ ( ताम्रा - पुत्री गृध्री द्वारा कपोतों आदि को जन्म देना ), मार्कण्डेय १५.४ ( भ्रातृ - पत्नी की अवमानना करने पर कपोत योनि की प्राप्ति ), ७१.१७ ( मनोरमा - पति नागराज कपोतक द्वारा उत्तम मनु की पत्नी बहुला का हरण, कपोतक - पुत्री सुनन्दा द्वारा बहुला को छिपा देने पर कपोतक द्वारा सुनन्दा को मूक होने का शाप ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.३२ ( गरुड के पुत्रों में से एक ), स्कन्द १.१.१८.५ ( बलि द्वारा स्वर्ग पर आक्रमण करने पर निर्ऋति देवता का कपोत रूप धारण करके पलायन ), २.२.१३.१० ( शिव द्वारा कपोत सदृश सूक्ष्म रूप धारण करके कुशस्थली में श्री हरि की आराधना, कपोतेश्वर का माहात्म्य ), ३.३.४.२६ ( कपोती की शिव मन्दिर में मृत्यु से कपोती का जन्मान्तर में राजमहिषी बनना ), ४.१.४५.३७ ( कपोतिका : ६४ योगिनियों में से एक ), ४.२.७६ ( पारावत व पारावती द्वारा त्रिलोचन लिङ्ग की प्रदक्षिणा से क्रमश: विद्याधर - पुत्र परिमलालय व नागकन्या रत्नावली के रूप में जन्म ), महाभारत वन १३०.२३( राजा शिबि की परीक्षा हेतु अग्नि द्वारा कपोत व इन्द्र द्वारा श्येन रूप धारण ), १९७, शान्ति १४३, अनुशासन ३२, आश्वमेधिक ९०.२४(उञ्छ वृत्ति वाले द्विज की कापोती संज्ञा), लक्ष्मीनारायण १.६९.१ ( १० कपोतों का कथा उपरान्त उच्छिष्ट भोजन खाकर जाति स्मरण करना, कपोतों के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, कपोत से सुपोत बनना ), १.८३.२८( कपोतिका : ६४ योगिनियों में से एक ), १.५८६.४ ( शिव द्वारा कपोत की भांति सूक्ष्म होकरश्री हरि की आराधना , आराधना स्थल पर इन्द्रद्युम्न द्वारा अश्वमेध यज्ञ स्थल का निर्माण ), कथासरित् १.७.८८ ( राजा शिबि की कथा : श्येन रूप धारी इन्द्र द्वारा कपोत रूपी धर्म का पीछा, शिबि द्वारा कपोत के बदले स्व मांस अर्पित करना ), भरतनाट्य ९.१२७(कपोतहस्त मुद्रा का लक्षण) । kapota

      Comments on Kapota

      Vedic contexts on Kapota


      कपोतरोमा ब्रह्माण्ड २.३.७१.११७ ( वृष्णि - पुत्र, विलोमा - पिता, वृष्णि वंश ), मत्स्य ४४.६२ ( धृति - पुत्र, तैत्तिरि - पिता, वृष्णि / क्रोष्टा वंश ), वायु ९६.११६ ( वृष्टि - पुत्र, रेवत - पिता, वृष्णि वंश ), विष्णु ४.१४.१३ ( धृष्ट - पुत्र, विलोमा -पिता, अन्धक वंश ) ।


      कपोल विष्णुधर्मोत्तर १.४२.९( कपोलों की मधूक पुष्प से उपमा ), १.४२.२२( कपोलों में ज्योत्स्ना देवी की स्थिति का उल्लेख ), शिव ५.३२.२६ ( कश्यप व दनु के पुत्रों में से एक ) ।


      कफल्ल भविष्य ३.२.४.५३ ( पिशाच द्वारा जारासक्त जयलक्ष्मी की नासिका दंशन होने पर जयलक्ष्मी द्वारा पति श्रीदत्त पर दोषारोपण, कफल्ल चोर द्वारा रात्रि में दृष्ट घटना का राजा से वर्णन करके श्रीदत्त की रक्षा करना ) ।


      कबन्ध गरुड ३.९.७(७ आवरणों में प्रथम), ३.१०.७(ब्रह्माण्ड के ७ आवरणों में प्रथम), ब्रह्माण्ड १.२.२०.१६ ( प्रथम अधोतल में कबन्ध असुर के मन्दिर का उल्लेख ), १.२.३५.५६ ( सुमन्तु -शिष्य, पथ्य व देवदर्श - गुरु ), भागवत ९.१०.१२ ( राम द्वारा कबन्ध वध का उल्लेख ), महाभारत उद्योग ११०.११(पश्चिम दिशा में समुद्र में स्वर्भानु का कबन्ध होने का कथन), वायु ५०.१६ ( प्रथम अधोतल / पाताल में कबन्ध असुर के भवन का उल्लेख ), ६१.५० ( सुमन्तु -शिष्य, पथ्य व वेदस्पर्श - गुरु ), विष्णु ४.४.९६ ( राम द्वारा कबन्ध वध का उल्लेख ), वा.रामायण ३.७०+( राक्षस, स्वरूप का वर्णन, राम द्वारा दाह, पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), ३.७१ ( स्थूलशिरा ऋषि के शाप से राक्षस बनना, इन्द्र के वज्र से विकृति की प्राप्ति, दाह के पश्चात् राम का मार्गदर्शन करना ), ४.४.१५ ( दनु नामक राक्षस का रूप ), कथासरित् १२.१३.८(शुद्धपट रजक - पुत्री व धवल - भार्या मदनसुन्दरी द्वारा भ्राता व पति के कटे हुए सिरों को भूल से एक दूसरे के कबन्धों से जोड देने का वृत्तान्त), १४.३.१०४ ( युद्ध में रक्त रूपी नदियों में कबन्ध की ग्राह से उपमा ) । kabandha

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      कबीर भविष्य ३.४.१७.३७ ( धान्यपाल वैश्य - पुत्र, अलिक म्लेच्छ द्वारा पालन, रामानन्द - शिष्य, अनिल नामक द्विज का अवतार ) ।


      कब्र द्र. अवट


      कमठ गणेश २.८७.३६ ( गणेश द्वारा कमठासुर का वध ), नारद १.६६.११२( कूर्मेश की शक्ति कमठी का उल्लेख ), भागवत १.३.१६ ( विष्णु द्वारा समुद्रमन्थन काल में कमठ / कच्छप रूप धारण करके मन्दराचल को धारण करना ), स्कन्द १.२.४९.२५+ ( हारीत के अष्टवर्षीय पुत्र कमठ द्वारा अतिथि सूर्य के प्रश्नों के उत्तर देना, भोजन के तत्त्वों का निरूपण, देह की उत्पत्ति का वर्णन, देह में स्थित लोकों, नाडियों का वर्णन, जीव की पारलौकिक गति, पापकर्म अनुसार फल का वर्णन, जयादित्य की स्थापना ), ४.२.६१.२०७ ( विष्णु के ३० कमठ रूपों का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५१९.८९ ( मानसरोवर स्थित चिरजीवी कमठ / कच्छप से इन्द्रद्युम्न राजा का संवाद )। kamatha


      कमण्डलु गणेश २.१०८.१ ( गणेश के ब्रह्मकमण्डलु नदी में स्नान का उल्लेख ), गरुड xxx /२.४.९, २.४.२२(कमण्डलु दान से निर्जल प्रदेश में सुखी होने का उल्लेख), २.८.१६ / २.१८.१६ ( प्रेत के आठ पदों के रूप में छत्र, उपानह, कमण्डलु आदि का उल्लेख ), ब्रह्म २.३.२६ ( शिव - पार्वती विवाह में शिव द्वारा भूमि को कमण्डलु का रूप देकर ब्रह्मा को प्रदान करना ; कमण्डलु की महिमा ), भविष्य २.२.९.२०( कमण्डल गोत्र के ३ प्रवरों के नाम ), भागवत ८.२१.४ ( ब्रह्मा द्वारा वामन उरुक्रम के पाद प्रक्षालन से कमण्डलु में स्थित जल का गङ्गा में रूपान्तरित होना ), मत्स्य २४५.८६ ( वसिष्ठ द्वारा वामन त्रिविक्रम को कमण्डलु भेंट करना ), वामन ५७.१०३ ( कुटिला द्वारा कार्तिकेय को कमण्डलु भेंट करना ), ८९.४७( बृहस्पति द्वारा वामन को कमण्डलु प्रदान का उल्लेख), वायु १०१.२७३ ( शिव का शतकुम्भमय कमण्डलु ) । kamandalu


      कमल गणेश १.८३.३ ( मयूरेश्वर गणेश द्वारा कमलासुर का वध ), २.७६.१२ ( विष्णु व सिन्धु असुर के युद्ध में कमल का यक्षराज से युद्ध ), २.१०१.१२( शङ्कासुर - भ्राता, अश्वारूढ होकर गणेश से युद्ध, गणेश द्वारा पाश, शूल आदि से वध ), २.१०३.२१ ( गणेश के स्तोत्र में कमल शब्दों द्वारा स्तुति ), गरुड २.३०.५४/२.४०.५४( मृतक की नाभि में कमल देने का उल्लेख ), गर्ग २.२०.३३ ( कृष्ण द्वारा कमल पुष्पों से निर्मित यष्टि धारण ), नारद १.११६.१४ ( वैशाख शुक्ल सप्तमी को कमल व्रत की विधि ), पद्म १.२१.२७८ ( कमल सप्तमी व्रत ), ६.१६.१९ ( जालन्धर के भय से पार्वती का कमल / सरोज में प्रवेश करना, पार्वती - सखियों का कमल में भ्रमरियां बनना ), भविष्य १.१४८.९( कालमय चक्र के कमल नाम से अभिहित होने का कारण ), ३.४९ ( कमल षष्ठी व्रत विधि ), ४.५० ( कमल सप्तमी व्रत विधि ), ४.८५.२०( राजा पुष्पवाहन द्वारा ब्रह्मा से काञ्चन कमल की प्राप्ति के कारण की कथा ), भागवत ११.१४.३६( हृदय कमल के अधोमुखी होने तथा उसमें से ऊर्ध्वमुखी अष्टदल कमल के विकसित होने का उल्लेख ), मत्स्य ७८ ( कमल सप्तमी व्रत की विधि ), विष्णुधर्मोत्तर ३.८२.१६(लक्ष्मी के प्रतिष्ठाकमल के केशव होने का कथन), शिव ३.१७.११( शिव के १० अवतारों में से दशम अवतार का नाम ), ५.५१.४८ ( उमा देवी को पुष्पों में कमल अधिक प्रीतिकर होने का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.९.५३ ( अशोकदत्त द्वारा वेतालों से सुवर्ण कमलों की प्राप्ति की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.३०८.११८( अधिक मास द्वितीय पक्ष की प्रतिपदा को व्रतादि से राजा सहस्राक्ष द्वारा वैराज पद प्राप्ति तथा ब्रह्मा के मूल नाभि कमल बनने का वृत्तान्त ), १.५४१.७ ( नन्द द्वारा अङ्गुष्ठ मात्रपुरुष / ब्रह्म से युक्त पद्म को ग्रहण करने की चेष्टा पर कृष्णता प्राप्ति की कथा ), २.१४०.८१( कमलकन्द प्रासाद के लक्षण ),३.२००.३८ ( भाण्डीरपुर में कमलायन साधु द्वारा कालीन्दर भक्त को वैष्णव भक्तों के सत्संग का उपदेश ), कथासरित् ५.२.२१२ ( अशोकदत्त द्वारा अपनी सास व राक्षसों से सुवर्णकमल प्राप्त करने की कथा ), ७.६.४३ ( कमलप्रभा : राजा विनयशील की भार्या, भार्या से चिरकाल तक रमण करने पर राजा को जरावस्था की प्राप्ति ), ७.६.८४ ( नर कंकाल से पतित जल बिन्दुओं के स्वर्ण कमल बनने की कथा ), ९.२.३६७ ( कमलवती : राजा समरवर्मा की पुत्री, समुद्रवर्मा की पत्नी ), ९.६.४ ( कमलपुर के राजा कमलवर्मा के राज्य में चन्द्रस्वामी ब्राह्मण का वृत्तान्त ), १२.२.१६१ ( कमलोदय नामक तरुण ब्राह्मण पर लावण्यमञ्जरी कन्या की आसक्ति की संक्षिप्त कथा ), १२.४.६७ ( राजा विमलाकर के पुत्र कमलाकर द्वारा हंसावली कन्या को प्राप्त करने का वृत्तान्त ), १२.५.२४ ( प्रतीहार कमलमति के पुत्र विनीतमति का वृत्तान्त ), १२.६.४१७ ( पथ्या व अबला - पति कमलगर्भ ब्राह्मण के जन्मान्तरों का वृत्तान्त ), १२.२८.१९ ( राजपुरोहित - पुत्र कमलाकर व अनङ्गमञ्जरी की परस्पर आसक्ति, मिलन होने पर प्राण त्याग की कथा ), १४.२.२४ ( नागस्वामी ब्राह्मण द्वारा योगिनी से भिक्षा में रक्तकमल की प्राप्ति, कमल का नरहस्त बनना आदि ), १८.४.२५२ ( देवस्वामी ब्राह्मण - कन्या कमललोचना के कुसुमायुध से विवाह का वृत्तान्त ) ; द्र. पद्म, पुण्डरीक । kamala

      टिप्पणी : कमल पुष्प अष्टधा प्रकृति ( पञ्चभौतिक तत्त्व और मन, बुद्धि व अहंकार ) से बने जड चेतना जगत का प्रतीक है और जिस प्रकार कमल सूर्य रश्मियों का स्पर्श पाकर खिल उठता है, वैसे ही ज्ञान ज्योति का स्पर्श पाकर अष्टधा प्रकृति रूप कमल खिल कर पूर्ण चेतना परमात्मा तत्त्व की छटा बिखेरता है । - लक्ष्मीनारायण धूत, दैनिक भास्कर २४ अक्तूबर २०००


      कमला गणेश १.१९.४२ ( भीम - पत्नी , कुरूप पुत्र दक्ष को जन्म देना ), १.२२.३५ ( कल्याण - पत्नी इन्दुमती को भावी जन्म में कल्याण / वल्लभ - जननी कमला होने का वरदान ), पद्म २.५.२३ ( हिरण्यकशिपु- पत्नी, प्रह्लाद - माता कमला द्वारा पुत्र की मृत्यु पर शोक, प्रह्लाद को पुन: जन्म देना ; द्र. कयाधू ), ६.६२ ( पुरुषोत्तम मास कृष्ण पक्ष की कमला एकादशी व्रत की विधि व माहात्म्य : जयशर्मा द्वारा व्रत के चीर्णन से लक्ष्मी से वर प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.६४ ( कमला के अंश से सुबल - सुता, वृषभानु - पत्नी, राधा - माता कलावती का व्रज में जन्म ), ४.६.११७ ( कमला का भीष्मक - पुत्री रुक्मिणी के रूप में जन्म ), ४.६.१७५ ( कमला की कला से कृष्ण की १६ हजार पत्नियों का जन्म ), ४.६.१८० (कमला के अंश से पाण्डव - पत्नी द्रौपदी का जन्म ), ब्रह्माण्ड ३.४.३९.६७ ( कमला नाम की निरुक्ति ), मत्स्य १३.३२ ( कमलालय तीर्थ में सती का कमला नाम से वास ), वायु ६९.७ ( ३४ मौनेया अप्सराओं में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.१६४.१३ ( राजा दधिवाहन की भार्या कमला द्वारा ब्राह्मणी सखी को तिल द्वादशी के फल का दान करना ), शिव ३.१७.११ ( शिव के कमल नामक दशम अवतार की भार्या का नाम ), स्कन्द ४.१.२९.४४ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ४.२.७२.६० ( कमला देवी द्वारा हस्ताङ्गुलियों की रक्षा ), ५.१.१८.२७ ( वैश्यों के लिए कमला देवी मुख्य होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.२०६.४६( मृगशृङ्ग मुनि की ४ पत्नियों में से एक ), १.२६३.६( पुरुषोत्तम मास की कमला नामक कृष्ण पक्ष एकादशी के माहात्म्य का वर्णन : शाकटायन ऋषि द्वारा कमला से धनदायक मणि की प्राप्ति ), १.२६५.१०( वामन की पत्नी कमला का उल्लेख ), १.३८५.४०(कमला का कार्य), ४.१०१.६४ ( वैराजनाभि - पुत्री, कृष्ण - पत्नी, पद्मनाभ व नभोवती की माता ) । kamalaa


      कमलाक्ष मत्स्य १३.३४ ( कमलाक्ष तीर्थ में सती की महोत्पला नाम से स्थिति ), ६१.४ ( वायु व अग्नि द्वारा दैत्यों के पीडन पर कमलाक्ष आदि दैत्यों का समुद्र में छिपना, अगस्त्य द्वारा समुद्र शोषण का प्रसंग ), लिङ्ग १.७१.९ ( तारकासुर के तीन पुत्रों में से एक, रजतपुर का अधिपति, विष्णु द्वारा माया रूप धारण करके पुरवासियों को पथभ्रष्ट करना, शिव द्वारा त्रिपुर दाह ), शिव २.५+ ( वही), स्कन्द ४.१.२९.४२ ( कमलाक्षी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) ।


      कमलालया मत्स्य १३.३२ ( कमलालय तीर्थ में सती की कमला नाम से स्थिति ), स्कन्द ३.१.३४.१८ ( विश्वनाथ - भार्या, वेदनाथ - माता, वानर के पूर्वजन्म का प्रसंग ) ।


      कम्पन देवीभागवत ९.२१.५१( राहु से ग्रस्त होने पर चन्द्रमा के कम्पित होने का उल्लेख ), पद्म २.१०३.९८( हुण्ड दैत्य का अमात्य, हुण्ड को नहुष के अपहरण का परामर्श ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.१८ ( विप्र का दण्ड द्वारा कम्पन कराने पर प्रकम्प नरक प्राप्ति का उल्लेख ), मत्स्य १७९.२४ ( कम्पिनी : अन्धकों के रक्त पान हेतु शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), वामन ६९.१३०( पृथिवी के कम्पन से शमीक - भार्या के एक पुत्र के द्विगुणित हो जाने का कथन ), हरिवंश ३.४६.३५ ( हिरण्यकशिपु के कारण पृथ्वी का कम्पित होना, कम्पित होने वाले गणों के नाम ), वा.रामायण ६.७६.१ ( रावण - सेनानी, अङ्गद द्वारा वध ) ; द्र. निष्प्रकम्प । kampana


      कम्पा ब्रह्माण्ड ३.४.४०.१७ ( पार्वती द्वारा शिव के नेत्रपिधान के पाप से मुक्ति हेतु काञ्ची पुरी में कम्पा नदी तट पर तप ), ३.४.४०.१०२ ( सन्तान प्राप्ति हेतु राजा दशरथ द्वारा कम्पा सरसी में स्नान करके त्रिपुराम्बा देवी की आराधना ), स्कन्द १.३.१.३.६१+ ( शिव के नेत्र पिधान करने के पश्चात् पार्वती का कम्पा नदी तट पर तप, कम्पा नदी में बाढ आने पर पार्वती द्वारा सिकता लिङ्ग का आलिङ्गन करना, शिव का प्रकट होना आदि )। kampaa


      कम्बर विष्णुधर्मोत्तर १.५६.२४ ( कम्बर की किन्नरों में श्रेष्ठता का उल्लेख ) ।


      कम्बल अग्नि १११.५ ( प्रयाग में कम्बल व अश्वतर नागों की स्थिति ), कूर्म १.१२.१८९ ( कम्बलाश्वतरप्रिया : पार्वती सहस्रनामों में से एक ), पद्म ३.४३.२८ ( प्रयाग में यमुना के दक्षिणी तट पर कम्बल व अश्वतर नागों की स्थिति ), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२३ ( सुतल नामक द्वितीय अधोतल में कम्बल आदि नागों का वास ), १.२.२३.२१ ( शिशिर ऋतु में कम्बल व अश्वतर नागों की सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), भविष्य ३.२.१८.१ ( सुदत्त राजा द्वारा पालित कम्बलक पुरी में धनवती कन्या के शूलारोपित चोर से विवाह का वृत्तान्त ), भागवत ५.२४.३१ ( पाताल नामक सप्तम अधोतल में कम्बल आदि नागों का वास ), १२.११.४३ ( आश्विन मास में कम्बल नाग की सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), मत्स्य ६.३९ ( कद्रू के २६ प्रधान पुत्रों में से एक ), मार्कण्डेय २३.४९ ( अश्वतर नाग द्वारा सरस्वती को प्रसन्न करके स्वयं व कम्बल भ्राता के लिए संगीत विद्या की प्राप्ति, तदनन्तर शिव को प्रसन्न करके मदालसा को पुत्री रूप में प्राप्त करना ), वराह २४.६(कम्बल का तक्षक से साम्य?), वायु ४४.४ ( केतुमाल वर्ष के ७ कुलपर्वतों में से एक, केतुमाल वर्ष के एक राष्ट्र का नाम व कम्बला नामक एक नदी ), ५०.२३ ( द्वितीय अधोतल में कम्बल व अश्वतर नागों का वास ), ६९.१२ ( प्रचेता व सुयशा के यक्ष पुत्रों में से एक ), विष्णु १.२१.२१ ( कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), २.१०.१६ ( कम्बल नाग की माघ मास में सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), ६.८.४७ ( कम्बल द्वारा अश्वतर से विष्णु पुराण सुनकर एलापुत्र को सुनाना ), स्कन्द १.१.२२.८१ ( शिव के कर्णों में कम्बल व अश्वतर नागों की स्थिति ), १.२.६२.२८( क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), ४.२.८४.८२ ( कम्बल - अश्वतर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.२.१०.५ ( कद्रू द्वारा शाप के पश्चात् कम्बल सर्प द्वारा पितामह लोक में तप का उल्लेख ), ५.३.३९.३१ ( कपिला गौ के गलकम्बल में पाशधारी वरुण की स्थिति ), ७.४.१७.२३ ( द्वारका के नैर्ऋत द्वार पर कम्बली की स्थिति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ( सर्प कम्बल द्वारा भूमण्डल के आच्छादन का उल्लेख ), कथासरित् ८.२.३५२ ( कम्बल - कन्या मालिनी : महल्लिका की सखी ), ८.५.२६ ( सूर्यप्रभ - सेनानी कम्बल का श्रुतशर्मा - सेनानी कम्बलिक से युद्ध )। kambala

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      Vedic contexts on Kambala


      कम्बलबर्हिष ब्रह्माण्ड २.३.७१.१४२ ( देवबाहु - पुत्र, असमौजा - पिता ), भागवत ९.२४.१९ ( अन्धक के ४ पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), मत्स्य ४४.२५ ( मरुत्त - पुत्र, रुक्मकवच - पिता, क्रोष्टु वंश ), ४४.६१ ( बभ्रु के कङ्क - कन्या से उत्पन्न ४ पुत्रों में से एक ), ४४.८३ ( देवार्ह - पुत्र, असोमजा - पिता ), वायु ९५.२४ ( मरुत्त - पुत्र, रुक्मकवच - पिता ), ९६.११५ ( सत्यक व काशिदुहिता के ४ पुत्रों में से एक ), ९६.१४० ( देवार्ह - पुत्र, असमौजा - पिता, अन्धक वंश ), विष्णु ४.१४.१२ ( अन्धक के ४ पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ) । kambalabarhisha


      कम्बु देवीभागवत ५.१७.११ ( राजा चन्द्रसेन की कन्या मन्दोदरी द्वारा सुधन्वा - पुत्र कम्बुग्रीव से विवाह न करने का निश्चय ), पद्म ६.१४२.१ ( कम्बु तीर्थ का माहात्म्य : विष्णु लोक की प्राप्ति, विश्वामित्र द्वारा प्रजाकाम होना ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.६४ ( पञ्चम मनु रैवत के पुत्रों में से एक ), भागवत ४.९.४ ( श्रीहरि द्वारा तपोरत ध्रुव का ब्रह्ममय कम्बु / शंख से स्पर्श करने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.७२.९९ ( कम्बुशिरा : ६४ वेतालों में से एक ), ५.३.१२० ( कम्बुकेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : शम्बर - पुत्र कम्बु द्वारा काल पर विजय ), लक्ष्मीनारायण १.३००.१२२ ( ब्रह्मा के ९ मानस पुत्रों में से एक, पुरुषोत्तम अष्टमी व्रत के प्रभाव से कृष्ण - पार्षद बनना, पूजा में कम्बु द्वारा तीर्थ जल से भ्रामण का कार्य ), कथासरित् ५.३.१९५ ( कम्बुक नगर वासी देवदत्त ब्राह्मण का वृत्तान्त ), ७.८.१९८ ( मुक्तसेन विद्याधरराज की भार्या कम्बुवती के पुत्र पद्मसेन का वृत्तान्त ), १०.४.१६८ ( हंसों द्वारा यष्टि की सहायता से अन्यत्र ले जाए जा रहे कम्बुग्रीव नामक कूर्म की मुख खोलने से मृत्यु होने का वृत्तान्त ) । kambu


      कम्बुग्रीव अग्नि ३६४.२४(सामुद्रिक लक्षणों में त्रिरेखा कम्बुग्रीव का उल्लेख), देवीभागवत ५.१७.११ ( राजा चन्द्रसेन की कन्या मन्दोदरी द्वारा सुधन्वा - पुत्र कम्बुग्रीव से विवाह न करने का निश्चय ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२१.६५(राम का कम्बुग्रीव विशेषण), महाभारत आदि १००.४(शन्तनु का कम्बुग्रीव विशेषण), आदि १५१.१४(भीमसेन का कम्बुग्रीव विशेषण), वन १६१.३७(भीमसेन के लिए कम्बुग्रीव विशेषण का प्रयोग), ३०७.९(कुन्ती द्वारा सूर्य का आह्वान करने पर सूर्य के कम्बुग्रीव होने का उल्लेख), विराट १४.३१(द्रौपदी के लिए कम्बुग्रीवा विशेषण का प्रयोग), उद्योग १३८.१६(गुडाकेश अर्जुन के लिए कम्बुग्रीव विशेषण), कथासरित् १०.४.१६८ ( हंसों द्वारा यष्टि की सहायता से अन्यत्र ले जाए जा रहे कम्बुग्रीव नामक कूर्म की मुख खोलने से मृत्यु होने का वृत्तान्त )


      कम्बोज गरुड १.५५.१३ ( दक्षिणापथ के देशों में से एक ) ।


      कम्भरा लक्ष्मीनारायण १.१५९.९१ ( रुक्मिणी का कम्भरा रूप में अवतार ), १.३१५.७६ ( कम्भरा की निरुक्ति, लक्ष्मी का प्रेम द्विज की कन्या कम्भरा के रूप में अवतरण ), १.३८५.५२(कम्भरा का कार्य – दर्पण, व्यजन देना), १.४१९.३ ( गोपालकृष्ण द्विज की पत्नी कम्भरा का पति के साथ तप हेतु वन में गमन, कृष्ण से वर प्राप्ति ), ४.२६.५४ ( काम्भरेय कृष्ण द्वारा पाप से रक्षा का उल्लेख ) । kambharaa


      कयाधु पद्म २.५.२३ ( हिरण्यकशिपु- पत्नी व प्रह्लाद - माता कमला का वृत्तान्त ), भागवत ६.१८.१२ ( जम्भ - पुत्री, हिरण्यकशिपु- भार्या, संह्राद आदि ४ पुत्रों की माता ), ७.७.६ ( इन्द्र द्वारा कयाधु का बन्धन, नारद द्वारा कयाधु को बन्धन से मुक्त कराना व ज्ञानोपदेश देना )। kayaadhu


      कर ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.४५ ( कर सौन्दर्य के लिए लक्ष रक्तपद्म दान का निर्देश ), भविष्य ३.४.२५.३९( ब्रह्माण्ड कर से उत्पन्न शुक्र ग्रह द्वारा रुद्र सावर्णि मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख ), मार्कण्डेय ( बलाश्व राजा के कर धमन से सैनिकों की उत्पत्ति ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१( कर में जया की स्थिति का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.२१.३६ ( कर की निर्भयों में श्रेष्ठता का उल्लेख ), ५.१.६६.१० ( एक करतल आघात से हिरण्यकशिपु की मृत्यु होने का उल्लेख ), ५.२.८२.३९ ( भद्रकाली द्वारा दक्ष यज्ञ में दिनकर के कर काटने का उल्लेख ), ५.३.२४ ( विष्णु द्वारा दैत्य हनन के लिए कर मर्दन व चक्र धारण के कारण उत्पन्न स्वेद से करा नदी की उत्पत्ति ), हरिवंश २.८०.३५( सुन्दर हाथों हेतु द्वादशी व्रत का विधान ), लक्ष्मीनारायण १.३१९.१०७( जोष्ट्री - कन्या, श्रीहरि - पत्नी बनने पर करा की निरुक्ति ) ; द्र. श्रीकर, हस्त । kara


      कर- ब्रह्माण्ड १.२.१६.३० ( करमोदा : ऋक्षवान् पर्वत से निःसृत नदियों में से एक ), २.३.७.३७ ( कररोमा : कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), २.३.७.२३४ ( करव वाली के अधीनस्थ प्रधान वानरों में से एक ), भविष्य ४.६१.८( करच्छत्रा : देवों द्वारा करच्छत्रा पुरी में दुर्गा की आराधना ), वायु ४४.१२ ( करवाट : केतुमाल वर्ष का एक जनपद ), लक्ष्मीनारायण ४.३६+ ( करला ग्राम निवासी करालिका सती शूद्री का वृत्तान्त ), ४.५८.१ ( कराञ्चनी पुरी - निवासी मांसभक्षक यवसन्ध की कथा श्रवण से मुक्ति का वर्णन ) ।


      करक नारद १.११३.४३ ( कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को करक चतुर्थी व्रत की विधि - चतुर्थ्यां कार्तिके कृष्णे करकाख्यं व्रतं स्मृतम् ॥ स्त्रीणामेवाधिकारोऽत्र तद्विधानमुदीर्यते ॥ ), १.११७.७८ ( कार्तिक कृष्ण अष्टमी को करक अष्टमी व्रत विधि व संक्षिप्त माहात्म्य - ऊर्ज्जे कृष्णादिकेऽष्टम्यां करकाख्यं व्रतं स्मृतम् ।। तत्रोमासहितः शंभुः पूजनीयः प्रयत्नतः ।। ), स्कन्द ५.३.२६.१४१ ( ललिता देवी हेतु करक दान मन्त्र का कथन - करकं वारिसम्पूर्णं सौभाग्येन तु संयुतम् । दत्तं तु ललिते तुभ्यं सौभाग्यादिविवर्धनम् । ), ५.३.२६.१४७ ( मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया को घृतयुक्त करक दान का उल्लेख - मार्गशीर्षे तु कार्पासं करकं घृतसंयुतम् ॥), ५.३.२६.१४७ ( कार्तिक शुक्ल तृतीया को रस पूर्ण करक दान का उल्लेख - कार्त्तिके शर्करापात्रं करकं रससंभृतम् । ), ५.३.१४८.१४ ( अङ्गारक चतुर्थी पर आग्नेयी आदि दिशाओं में स्थापित किए जाने वाले करकों के प्रकारों का कथन ), हरिवंश २.७९.४२ ( पुत्रेच्छा हेतु करक दान का निर्देश तथा दान विधि/ नारी द्वारा सापुत्र? करक दान के निर्देश - सपुत्रकरकाणां तु विधिरुक्तो विपश्चिता ।। )। karaka


      करङ्क ब्रह्माण्ड ३.४.२३.९२ ( भण्डासुर - सेनानी, नकुलेश्वरी देवी द्वारा वध )


      करञ्ज मत्स्य १९०.११( करञ्ज तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : गोलोक की प्राप्ति ), योगवासिष्ठ ३.९९.१३ ( करञ्ज वन में भ्रमण करने वाले चित्त की प्रकृति का कथन ), ५.३५.५२ ( तृष्णा करञ्ज कुञ्जों का उल्लेख ), लिङ्ग १.५०.५ ( करञ्ज पर्वत पर नीललोहित शिव का वास ), वायु ३९.४२ ( वही), स्कन्द ५.३.४०.१० ( दनु व कश्यप - पुत्र, शिव आराधना से धार्मिक वंश होने के वर की प्राप्ति, करञ्ज तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.१०५ ( करञ्ज तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.२३१.१९ ( रेवा - सागर सङ्गम पर २ करञ्जेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश २.८१.३ ( करञ्ज में दीप दान से पति - प्रिया होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.५७४.४० ( करञ्ज द्वारा स्थापित करञ्जेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), २.३२.३८( करञ्जनिलया नामक पादपों की माता के पुत्र प्रदात्री आदि होने का कथन ) । karanja


      करटक ब्रह्माण्ड ३.४.२४.१० ( कीकसा के ७ पुत्रों में से एक, भण्डासुर - सेनानी ), ३.४.२४.५५ ( करटक का वेताल वाहन पर आरूढ होकर युद्ध करना, तिरस्करिणी देवी द्वारा करटक का वध ), कथासरित् १०.४.१९ ( करटक शृगाल : पिङ्गलक नामक सिंह का मन्त्री, मन्त्रियों के षडयन्त्र के फलस्वरूप सिंह द्वारा शरणागत वृषभ का वध ) ।


      करण विष्णुधर्मोत्तर १.५६.१९ ( करणों में वध की श्रेष्ठता का उल्लेख ), महाभारत आदि ११४.४३ ( धृतराष्ट्र - पुत्र युयुत्सु का नाम ), वन १८१.१९(ज्ञान, बुद्धि व मन का आत्मा के करणों के रूप में कथन) ; द्र. मुहूर्त्त, वध । karana


      करणक स्कन्द ४.२.७४.५७ ( करणक गण की काशी में वरणा तट पर स्थिति का उल्लेख ) ।


      करण्ड कथासरित् ६.३.१० ( नलकूबर - पत्नी सोमप्रभा द्वारा करण्डिका / कण्डी में पिता द्वारा प्रदत्त पुत्तलिकाएं लाना ) ; द्र. योगकरण्डिका ।


      करथ ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.२१ ( करथ द्वारा आयुर्वेद तन्त्र की रचना का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२०२.७ ( १६ चिकित्सकों में से एक ) ।


      करन्धम भागवत ९.२.२५ ( खनिनेत्र - पुत्र, अवीक्षित - पिता, नाभाग वंश ), ९.२३.१७ ( त्रिभानु - पुत्र, मरुत - पिता, ययाति / तुर्वसु वंश ), मत्स्य ४८.२ ( त्रिसारि - पुत्र, मरुत्त - पिता, तुर्वसु वंश ), मार्कण्डेय १२१.२१ ( कर धमन से शत्रु नाशक सैनिकों की उत्पत्ति करने के कारण खनीनेत्र - पुत्र बलाश्व का नाम ), १२२.१ ( करन्धम द्वारा वीर्यचन्द्र राजा की पुत्री वीरा का स्वयंवर में वरण, वीरा से अवीक्षित पुत्र का जन्म, अवीक्षित के चरित्र का वर्णन ), १२८.३ ( करन्धम द्वारा पौत्र मरुत्त के मुख का दर्शन ), १२८.३० ( करन्धम द्वारा मरुत्त पौत्र को राज्य देकर तप हेतु पत्नी सहित वन गमन व शक्र लोक की प्राप्ति ), वायु ९९.२ ( त्रिसानु - पुत्र, मरुत्त - पिता, तुर्वसु वंश ), विष्णु ४.१.२९ ( अतिविभूति - पुत्र, अविक्षित - पिता, दिष्ट / वैवस्वत मनु वंश ), स्कन्द १.२.४०.१२९+ ( राजर्षि करन्धम द्वारा कालभीति / महाकालसे श्राद्ध महिमा, कलियुग में धर्म की स्थिति, सदाचार आदि धर्म स्वरूप का श्रवण ) । karandhama


      करभ भविष्य ३.३.३१.७६ ( करभ नामक यक्ष की मूलवर्मा राजा की कन्या प्रभावती पर आसक्ति, नृहर - प्रभावती दम्पत्ति को पीडित करने पर कृष्णांश / उदयसिंह द्वारा नृहर दम्पत्ति को करभ के पाश से मुक्त करना ), स्कन्द ५.१.२८.७ ( शिव द्वारा धारित रूप, माहात्म्य ), ५.२.७३ ( करभेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य , वीरकेतु राजा द्वारा करभ / उष्ट्र का पीछा, करभ के पूर्वजन्म का वृत्तान्त, महाकालवन में करभेश्वर लिङ्ग से मुक्ति की कथा ), ५.३.४.४७ ( ऋक्ष पाद से प्रसूत करभा आदि नदियों का उल्लेख ), ५.३.६.४३ ( नर्मदा नदी के करभा उपनाम के कारण का कथन ), कथासरित् ६.१.१६३ ( करभक नामक ब्राह्मण के पुत्र का वृत्तान्त ), १२.३५.३३ ( करभग्रीव : विन्ध्य पर्वत के दक्षिण में मातङ्गराज के निवासस्थान का नाम ), १४.४.२८ ( करभक ग्राम निवासी देवरक्षित ब्राह्मण की कपिला गौ द्वारा गोमुख की योगिनी से रक्षा का वृत्तान्त )। karabha


      करभाजन भागवत ५.४.११ ( ऋषभ व जयन्ती - पुत्र ), ११.५ ( करभाजन द्वारा राजा निमि को भगवद् विग्रह का वर्णन ) ।


      करर्मदक मत्स्य ९६.७ ( रजतमय १६ फलों में से एक ) ।


      करम्भ देवीभागवत ५.२.१७ ( दनु - पुत्रों रम्भ व करम्भ द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु तप, ग्राह रूप धारी इन्द्र द्वारा करम्भ का वध, रम्भ से महिषासुर की उत्पत्ति का वृत्तान्त ), भागवत ३.२६.४५( , ९.२४.५ ( करम्भि : शकुनि - पुत्र, देवरात - पिता, विदर्भ / ज्यामघ वंश ), मत्स्य ४४.४२ ( शकुनि - पुत्र, देवरात - पिता, ज्यामघ / क्रोष्टा वंश ), ४४.८२ ( करम्भक : हृदीक के १० पुत्रों में से एक, बभ्रु / अन्धक वंश ), वराह २००.२७ ( करम्भबालुका : नरक की एक नदी, घोर स्वरूप का कथन ), वायु ४४.११ ( केतुमाल वर्ष का एक जनपद ), ५६.७९ ( करम्भबालुका : एक नरक का नाम ), ९५.४३ ( करम्भक : शकुनि - पुत्र, देवरात - पिता ), ४.१२.४१ ( करम्भि : शकुनि - पुत्र, देवरात - पिता, विदर्भ / ज्यामघ वंश ), कथासरित् १.२.४१ ( वेतस नगर में ब्राह्मण भ्राताओं देवस्वामी व करम्भक के पुत्रों इन्द्रदत्त व व्याडि का वृत्तान्त ) । karambha


      करवाल शिव ४.२१.३०( भीम असुर द्वारा राजा पर करवाल द्वारा प्रहार का कथन ) ।


      करवीर नारद १.११०.१५ ( ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को करवीर पूजा का विधान ), पद्म ६.१३३.१९ ( करवीर क्षेत्र में कुरूद्भव तीर्थ की स्थिति ), ब्रह्माण्ड २.३.७.३५ ( कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), भविष्य १.१९३.१० ( करवीर दन्तकाष्ठ का महत्व : परिज्ञान का अचल होना ), ४.१० ( ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को करवीर व्रत विधि व माहात्म्य ), ४.८८.५ ( ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को करवीर लता की पूजा का माहात्म्य ), भागवत ५.१६.२७ ( मेरु के परित: स्थित ८ पर्वतों में से एक ), मत्स्य १३.४१ ( करवीर पीठ में सती का महालक्ष्मी नाम से वास ), २२.७६ ( करवीरपुर : श्राद्ध के लिए प्रशस्त स्थानों में से एक ), लिङ्ग १.८१.३६( करवीर पुष्प पर गणाध्यक्ष की स्थिति का उल्लेख ), वराह १२६.५३ ( करवीर तीर्थ में तर्पण करने का संक्षिप्त माहात्म्य ), स्कन्द २.२.४४.४ ( श्रावण आदि मासों में करवीर आदि पुष्पों द्वारा श्रीहरि की अर्चना का निर्देश ), २.४.२४२ ( सह्य अद्रि पर करवीरपुर -निवासी ब्राह्मण धर्मदत्त द्वारा कलहा राक्षसी के उद्धार की कथा ), ४.२.९७.११५ ( करवीरेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : रोग से मुक्ति ), ५.३.१९८.७८ ( करवीर तीर्थ में उमा की महालक्ष्मी नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), ७.१.१७.११७ ( करवीर पुष्प द्वारा पूजा की महिमा : सूर्य अनुचर बनना ), ७.१.२४.४५ ( करवीर पुष्प की पुष्पों में आपेक्षिक महिमा ), हरिवंश २.३८.२६ ( यदु - पुत्र पद्मवर्ण द्वारा सह्याद्रि पर करवीरपुर का निर्माण ), २.३९.५१ ( कृष्ण व बलराम द्वारा दुष्ट राजा वासुदेव / शृगाल द्वारा पालित करवीरपुर का त्याग ), २.४४ ( करवीर पुर के राजा शृगाल की कृष्ण से युद्ध में मृत्यु, शृगाल - पुत्र शक्रदेव का करवीर पुर का राजा बनना ), karaveera


      कराल अग्नि ९६.११( कराली : ८ दिशाओं में स्थित क्षेत्रपालों में से षष्ठम क्षेत्रपाल ), ब्रह्म १.१३३+ ( करालजनक का वसिष्ठ से क्षर -अक्षर विषयक वार्तालाप ), ब्रह्माण्ड १.२.२५.६८ ( शिव का एक नाम ), ३.४.२०.८२ ( करालक : दण्डनाथा देवी के किरिचक्र रथ पर स्थित १० भैरवों में से एक ), ३.४.२१.७८, ३.४.२४.१०, ३.४.२४.५२ ( करालाक्ष : भण्डासुर व कीकसा के ७ पुत्रों में से एक, करालायु उपनाम, भण्डासुर का सेनानी, श्मशान मन्त्र की सिद्धि से प्रेत वाहन की प्राप्ति, तिरस्करिणी देवी द्वारा वध ), भविष्य १.३३.२५( सर्प के ४ विष दन्तों के देवताओं में कराली का उल्लेख, स्वरूप ), ३.३.१०.५ ( आह्लाद द्वारा मृगया हेतु महीपति से कराल नामक दिव्य अश्व की प्राप्ति ), मत्स्य १७९.१७ ( करालिनी :अन्धकासुरों के रक्त पान हेतु शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), शिव ५.८.२१ ( कराला : २८ नरक कोटियों में से एक ), स्कन्द ७.४.१७.३७ ( द्वारका के ईशान दिशा के द्वार पर स्थित द्वारपालों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ४.३६+ ( करला ग्राम निवासिनी करालिका शूद्री सती द्वारा कृष्ण नाम दीक्षा ग्रहण व बद्रिकायन ऋषि को मूकता का शाप देने का वृत्तान्त ) । karaala


      करी मत्स्य १९८.४ ( करीष : विश्वामित्र - वंशी एक ऋषि ), १९८.२० ( करीराशी : विश्वामित्र के वंश के एक ऋषि ), स्कन्द ५.१.२८.४४ ( करी कुण्ड में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य : विष्णु लोक की प्राप्ति ), योगवासिष्ठ ६.१.१२६.७८( इच्छा रूपी करिणी का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०८ ( करिणी : कृष्ण - पत्नी, गजानन व स्वर्णदन्ता युगल की माता ), कथासरित् ६.१.१६९ ( उन्मत्त करी / हस्ती का वृत्तान्त ), १२.३.४० ( करिमण्डित वन के निवासी पांच पुरुषों द्वारा मृगाङ्कदत्त व श्रुतधि का स्वागत ) । karee


      करीर पद्म १.२८.३० ( वृक्ष , पारदारिक ), मत्स्य ९६.७ ( रजतमय १६ फलों में से एक ) ।


      करीष वराह २००.४५ ( करीष गर्त नरक की यातनाओं का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.७(धर्म पुरुष, करीषिणी प्रकृति), स्कन्द ५.२.५२.३३ ( ओंकारेश्वर दर्शन से करीष साधन से अधिक पुण्य प्राप्त होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३११.३६ ( करीषिणी : समित्पीयूष की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण को कज्जल आंजन अर्पित करना ) ।


      करुण पद्म ५.१०५.१५३ ( धनञ्जय - पुत्र व शुचिस्मिता - पति करुण का द्विज शाप से मक्षिका बनना, मक्षिका की मृत्यु पर अरुन्धती द्वारा भस्म के प्रभाव से पुन: जीवित करना, पुन: मृत्यु होने पर दधीचि द्वारा भस्म से संजीवन ), मत्स्य १९३.४५ ( भृगु द्वारा करुणाभ्युदय स्तोत्र द्वारा शिव की स्तुति ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१९.१(अवनद्ध वाद्य के क्वणित व करुणान्वित स्वरों का उल्लेख), स्कन्द ४.२.९४.२० ( करुणेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : काशी से निर्गम के भय से मुक्ति ), ५.३.१८१.५५ ( भृगु - प्रोक्त करुणा अभ्युदय स्तोत्र का वर्णन ), योगवासिष्ठ १.१.९ ( अग्निवेश्य द्वारा पुत्र कारुण्य को कर्म से मोक्ष प्राप्ति के उपाय का कथन ) । karuna


      करूष गर्ग ७.१०.३२ ( करूष देश के अधिपति वृद्धशर्मा की प्रद्युम्न सेना से पराजय ), देवीभागवत १०.१३.२ ( वैवस्वत मनु के ६ पुत्रों में से एक, भ्रामरी देवी की आराधना से दक्ष सावर्णि मनु बनना ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.६३ ( भारत में विन्ध्य पर्वत के देशों में से एक ), २.३.६१.२ ( मनु - पुत्र करूष के पुत्रों की कारूष संज्ञा ), २.३.७१.१५६ ( वृद्धशर्मा व श्रुतदेवा से करूष -अधिपति दन्तवक्र का जन्म ), भागवत ८.१३.३, ९.१.१२ ( वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक ), ९.२.१६ ( मनु - पुत्र करूष के कारूष संज्ञक पुत्रों के उत्तरापथ के रक्षक होने का उल्लेख ), १०.६६.१ ( करूष देश के अधिपति पौण्ड्रक द्वारा स्वयं को वासुदेव घोषित करना, कृष्ण द्वारा पौण्ड्रक का वध ), १०.७८.४ ( कृष्ण द्वारा करूष - नरेश दन्तवक्त्र का वध ), मत्स्य ११.४१ ( वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक ), १२.२४ ( मनु - पुत्र करूष के पुत्रों की कारूष संज्ञा ), ४६.२५ ( कृष्ण द्वारा सन्तान रहित करूष को स्वपुत्र सुचन्द्र प्रदान करने का उल्लेख ), ११४.५२ ( भारत में विन्ध्य पर्वत के देशों में से एक ), वायु ४५.१३२ ( भारत में विन्ध्य पर्वत के देशों में से एक ), ६४.३०, ८५.४ ( वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक ), ६९.२३९ ( गङ्गोद्भेद से लेकर विन्ध्य में करूष तक के वन पर सुप्रतीक दिग्गज के अधिकार का उल्लेख ) । karoosha/karuusha/ karusha


      करोड स्कन्द ५.३.६२ ( करोडीश्वर तीर्थ का माहात्म्य : देवों द्वारा कोटि संख्या वाले दानवों का वध ) ; द्र. कोटि


      कर्क ब्रह्म २.६०.३ ( कर्कि : आपस्तम्ब व अक्षसूत्रा - पुत्र ), स्कन्द २.२.३७.१ ( कर्क सङ्क्रान्ति पर करणीय कृत्यों का वर्णन ; पुरुषोत्तम की आराधना से राजा श्वेत की मुक्ति ), ५.१.६९.२ ( चातुर्मास में कर्कराज तीर्थ में स्नान का माहात्म्य ), वायु १०६.३७ ( गया में ब्रह्मा के यज्ञ में ऋत्विजों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.१२२.२( कर्कायन ऋषि का जल में कृकलास स्वरूप में वास करने का उल्लेख ); द्र. कल्कि, दक्षिणायन, राशि karka


      कर्कट अग्नि ३४१.१७ ( संयुत कर के १३ प्रकारों में से एक ), पद्म ६.२२२.२७ ( मर्यादा पर्वत - वासी कर्कट संज्ञक भिल्ल द्वारा जरा नामक दुष्ट पत्नी के वध का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ३.४.२१.७८ ( कर्कटक : भण्डासुर का एक पुत्र व सेनानी ), भविष्य ३.४.१२.९९ ( गज के शीर्ष का गणेश पर आरोपण हो जाने पर ब्रह्मा द्वारा गज को कर्कट के शिर से युक्त करना ), शिव ४.२०.१३ ( पुष्कसी - पति, कर्कटी - पिता, सुतीक्ष्ण मुनि द्वारा कर्कट व पुष्कसी को भस्म करने का उल्लेख ), स्कन्द ५.२.२२.१ ( कर्कटेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : कर्कट की लिङ्ग के सम्मुख मृत्यु होने पर राजा धर्ममूर्ति बनने का वृत्तान्त ), ५.३.१३७ ( कर्कटेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : वालखिल्यों व नारायणी देवी के तप का स्थान ), भरतनाट्य ९.१३०(हस्त की कर्कट मुद्रा का लक्षण) । karkata


      कर्कटी वामन ५७.१०१ ( कर्कटिका : श्वेत तीर्थ द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण का नाम ), शिव ४.२०.७ ( कर्कट व पुष्कसी - पुत्री, विराध राक्षस की भार्या, कुम्भकर्ण से भीम नामक पुत्र की उत्पत्ति, भीम का वृत्तान्त ), योगवासिष्ठ ३.६८++ ( कर्कटी राक्षसी द्वारा प्राणियों के भक्षण हेतु तप करके अनायसी व आयसी शरीर प्राप्त करना, अयस् / लौह निर्मित सूची शरीर धारण करने पर भोगों से अतृप्त रहना, बिस तन्तु में प्रविष्ट विद्युत रेखा सदृश कुण्डलिनी से उपमा ), ३.७५+ ( सूची द्वारा ब्रह्मा के वरदान से सूक्ष्म से स्थूल शरीर प्राप्त करना, राजा विक्रम व मन्त्री से चिदणु सम्बन्धी ७२ प्रश्न पूछना ), ३.८३.६ ( विक्रम राजा द्वारा कर्कटी की राज्य में कन्दरा देवी नाम से प्रतिष्ठा करना ), कथासरित् १८.४.३२ ( कर्कटिका : विक्रमादित्य के राजसेवक देवसेन का कर्कटिका भक्षण से अजगर बनना, भिल्ल - सेनापति के पुत्र द्वारा चिकित्सा से अजगर का पुन: मनुष्य बनना ), द्र. चिर्भटी । karkati


      कर्कश भविष्य ४.९४.१७ ( कर्कशा :अनन्त चर्तुदशी व्रत कथा के अन्तर्गत सुमन्तु द्विज की पत्नी शीला की सौतेली माता ; द्र. - शब्दकल्पद्रुम के अन्तर्गत अनन्त चर्तुदशी व्रत ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.२९ ( कर्कश : गरुड के पुत्रों में से एक ) । karkasha


      कर्केतन गरुड १.७५ ( कर्केतन मणि की बल असुर के नखों से उत्पत्ति व महिमा का कथन ) ।


      कर्कोटक गरुड १.१९७.१५ ( कर्कोटक सर्प की वरुण मण्डल में स्थिति ), पद्म ६.४७.१२ ( नागराज पुण्डरीक की सभा में ललिता अप्सरा व ललित गन्धर्व द्वारा नृत्य में त्रुटि करने पर कर्कोटक / कर्कट द्वारा राजा को सूचित करना ), ६.१३३.१२ ( मुकुट क्षेत्र में कर्कोटक तीर्थ की स्थिति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१७ ( कर्कोटक नाग की हेमन्त ऋतु में सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), २.३.६९.२६ ( कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा कर्कोटक नाग के पुत्रों को जीतकर माहिष्मती पुरी में प्रवेश करना ), भविष्य १.३४.२२( कर्कोटक नाग का बुध ग्रह से तादात्म्य ), ४.५८.४३ ( वही), भागवत १२.११.४२ ( कर्कोटक नाग की पुष्य मास में सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), मत्स्य १२६.१८ ( कर्कोटक नाग की हेमन्त ऋतु में सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), १३३.३३ ( त्रिपुर विध्वंस हेतु निर्मित शिव के रथ में कर्कोटक नाग द्वारा अश्वों के वाल बन्धन का कार्य ), १६३.५६ ( कर्कोटक व धनञ्जय नागों का हिरण्यकशिपु के क्रोध से कम्पित होने का उल्लेख ), १९१.३६ ( नर्मदा तटवर्ती कर्कोटकेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), वामन ५५.७४ ( चण्डमारी देवी द्वारा कर्कोटक की गरुड से रक्षा व कर्कोटक नागपाश की सहायता से चण्ड व मुण्ड दैत्यों का बन्धन करना ), वायु ५२.१७ ( कर्कोटक नाग की हेमन्त ऋतु में सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), ६९.७० ( कर्कोटक व धनञ्जय : कण्डू / कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से दो ), ९४.२६/ २.३२.२६(कार्तवीर्य द्वारा कर्कोटक सभा को जीतकर माहिष्मती पुरी बसाने का उल्लेख), स्कन्द १.१.२२.४(शिव द्वारा कर्कोटक व पुलह नागों को कङ्कण रूप में धारण करने का उल्लेख), १.२.१३.१९२ ( शतरुद्रिय प्रसंग में कर्कोटक नाग द्वारा हालाहल लिङ्ग की एकाक्ष नाम से आराधना ), १.२.६३.६१ ( कर्कोटक द्वारा भूमि पर स्थित शूर्पारक क्षेत्र में गमन के लिए पाताल में स्थित रत्न लिङ्ग के दक्षिण में मार्ग का निर्माण ), ३.१.३८.१७ ( कद्रू- विनता - उच्चैःश्रवा अश्व की कथा में कर्कोटक द्वारा माता कद्रू की आज्ञा का पालन करते हुए अश्व की पुच्छ को काली बनाना ), ४.२.६६.२५ ( कर्कोटक लिङ्ग व कर्कोटक वापी का संक्षिप्त माहात्म्य : विष भय से मुक्ति ), ४.२.९७.११७ ( कर्कोटक वापी का संक्षिप्त माहात्म्य : नागों के आधिपत्य की प्राप्ति ), ५.२.१०.१३ ( कद्रू के शाप से नागों की रक्षार्थ कर्कोटक द्वारा शिव की आराधना, कर्कोटकेश्वर शिव का माहात्म्य, कर्कोटक का एलापत्र नाग से तादात्म्य ), ७.१.३४६.१ ( अग्नि कोण में स्थित कर्कोटक रवि का संक्षिप्त माहात्म्य : देवों की प्रीति प्राप्त होना ), कथासरित् ३.४.२३४ ( पूर्व समुद्र के पार कर्कोटक पुर की स्थिति का उल्लेख ), ९.६.३४९ ( नल - दमयन्ती कथा में नल द्वारा नाग की दावानल से रक्षा करना, कर्कोटक नाग द्वारा नल का दंशन करके कृष्ण वर्ण बनाना ) । karkotaka


      कर्ण गणेश १.५३.२ ( कर्ण नगर में राजा चन्द्राङ्गद की कथा ), गरुड २.३०.५३/२.४०.५३( मृतक के कर्णों में ताडपत्र देने का उल्लेख ), गर्ग १.५.२८ (सविता का अंश ), ७.२०.३० ( प्रद्युम्न - सेनानी मधु से युद्ध ), १०.४९.१७ ( अक्रूर से युद्ध ), १०.५०.३४ ( कर्ण द्वारा कृष्ण की स्तुति ), देवीभागवत २.६.१२ ( कुन्ती से कर्ण के जन्म होने का वृत्तान्त ), पद्म १.१४.५६ ( पञ्चम शिर छेदन पर ब्रह्मा के स्वेद से उत्पन्न स्वेद नर द्वारा द्वापर में कर्ण व त्रेतायुग में सुग्रीव रूप में अवतार लेने का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३९( कर्ण सौन्दर्य हेतु कर्णभूषण दान का निर्देश ), ब्रह्माण्ड २.३.६.३३ ( बलि के पुत्र चक्रवर्मा के पूर्व जन्म में कर्ण होने का उल्लेख ), भविष्य ३.३.१७.४ ( कलियुग में कर्ण का पृथ्वीराज - पुत्र तारक के रूप में जन्म ), भागवत ९.२३.१३ ( अतिरथ द्वारा पृथा के त्यक्त पुत्र की गङ्गा से प्राप्ति, अङ्ग / बलि वंश ), १०.७५.५ ( युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में कर्ण द्वारा दान देने का कार्य करना ), मत्स्य ४८.५ ( आण्डीर के पांच पुत्रों पाण्ड्य, चोल आदि में से एक, तुर्वसु / ययाति वंश ), ४८.१०२ ( अङ्ग - पुत्र, वृषसेन - पिता, अङ्ग / बलि वंश ), वामन २.५५ ( पञ्चम शिर छेदन पर ब्रह्मा के स्वेद से उत्पन्न स्वेद नर का द्वापर में कर्ण व त्रेतायुग में सुग्रीव रूप में जन्म होने का वृत्तान्त - तं शंकरोऽभ्येत्य वचो बभाषे नरं हि नारायणबाहुजातम्। निपातयैनं नर दुष्टवाक्यं ब्रह्मात्मजं सूर्यशतप्रकाशम्।। ), वायु ६८.३२ ( बलि के पुत्र चक्रवर्मा के पूर्व जन्म में कर्ण होने का उल्लेख ), ९९.११२ ( अङ्ग - पुत्र, वृषसेन - पिता, अङ्ग / बलि वंश ), विष्णु ४.१४.३६ ( पृथा का सूर्य अंश से उत्पन्न पुत्र ), ४.१८.२८ ( अतिरथ द्वारा पृथा के त्यक्त पुत्र की गङ्गा से प्राप्ति, अङ्ग / बलि वंश ), विष्णुधर्मोत्तर २.५२.७६( बालक के कर्णवेध संस्कार की विधि ), स्कन्द ५.१.३.४९ ( पञ्चम शिर छेदन पर ब्रह्मा के स्वेद से उत्पन्न स्वेद नर का द्वापर में कर्ण व त्रेतायुग में सुग्रीव रूप में अवतार लेने का वृत्तान्त ), ७.१.१०.११( रुद्रकर्ण, गोकर्ण आदि तीर्थों का वर्गीकरण – आकाश), ७.१.१३९.२० ( मरुस्थल में आदित्य का नाम ), ७.१.१३९.२३ ( कर्णादित्य : चम्पा तीर्थ में आदित्य का नाम ), हरिवंश १.५२.२२( मधु - कैटभ की विष्णु के कर्ण मल से उत्पत्ति का उल्लेख - कर्णस्रोतोद्भवौ तौ हि विष्णोरस्य महात्मनः । महार्णवे प्रस्वपतः काष्ठकुण्ड्यसमौ स्थितौ ।। ), २.८०.१४ ( सुन्दर कर्ण प्राप्ति के उपाय का कथन - आत्मनः शोभनौ कर्णाविच्छती स्त्री सुमध्यमा । नक्षत्रे श्रवणे प्राप्ते ध्रुवं भुञ्जीत यावकम् ।। ततः संवत्सरे पूर्णे कर्णौ दद्याद्धिरण्मयौ । ), महाभारत उद्योग १६०.१२२ ( सैन्य समुद्र में कर्ण व शल्य की झषावर्त्त से उपमा ), शान्ति ३४७.५०(हयग्रीव के कर्णों के रूप में आकाश – पाताल का उल्लेख), आश्वमेधिक दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३४८( कपिला गौ के कर्णों में अश्विनौ की स्थिति का उल्लेख – कर्णयोरश्विनौ देवौ चक्षुषी शशिभास्करौ। दन्तेषु मरुतो देवा जिह्वायां वाक् सरस्वती।। ), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५० ( अलक्ष्मी के कर्ण की कृकलास से उपमा - कृकलाससमा कर्णे नालिकाभा तथा नसि । महिषीसदृशी नेत्रे राक्षसीव तु मस्तके ।। ), २.११.५( कृष्ण के कर्णवेधन करने वाली सूची के दिव्य कन्या बनने का वृत्तान्त ) ; द्र. कुम्भकर्ण , गोकर्ण , घूककर्ण, जातुकर्ण, छिन्नकर्ण, दीपकर्ण, दुष्कर्ण, नीलकर्ण, प्राकारकर्ण, भद्रकर्ण, भासकर्ण, मणिकर्ण, माण्डकर्णि, वसुकर्ण, शङ्कुकर्ण, शशकर्ण, श्वेतकर्ण, सत्यकर्ण, सुकर्ण, स्थूणाकर्ण । karna



      कर्ण-( १ ) कुन्ती के गर्भ और सूर्य के अंश से कवच-कुण्डल धारी महाबली कर्ण की उत्पति (आदि० ६३ ॥ ९८(६४.१४०); आदि० ११० ॥ १८(१२०.३०) ) । पहले इसका वसुषेण नाम था; परंतु जब इसने अपने कवच-कुण्डलों को शरीर से उधेड़कर इन्द्र को दे दिया, तबसे उसका नाम वैकर्तन हो गया ( आदि० ६७ ॥ १४४-१४७ ) । कुन्ती के द्वारा इसका जल में परित्याग ( आदि० ६७ ॥ १३९; आदि० ११० ॥ २२(१२०.३४) ) । इसे ब्राह्मण के लिये कुछ भी अदेय नहीं था ( आदि० ६७ ॥ १४३ ) । ब्राह्मणरूप में याचक होकर आये हुए इन्द्र को इसके द्वारा कवचकुण्डल का दान एवं प्रसन्न हुए इन्द्र से इसको शक्ति नामक अमोघ अस्त्र की प्राप्ति ( आदि०६७॥१४४-१४६; आदि० ११० ॥ २८-२९ ) । यह सूर्यदेव का सर्वोत्तम अंश था ( आदि० ६७ ॥ १५० ) । गङ्गा के प्रवाह में बहते हुए इस बालक कर्ण का अधिरथ के हाथ में पहुँचना ( आदि० १०० ॥ २३ ) । अधिरथ तथा उसकी पत्नी राधा का इसको अपना पुत्र बना लेना ( आदि० ११० ॥ २३ ) । इसका वसुषेण नाम होने का कारण - वसुना सह जातोऽयं वसुषेणो भवत्विति।। ( आदि० ११० ॥ २४ ) । इसकी सूर्य-भक्ति ( आदि० ११० ॥ । २५ ) । इसकी ब्राह्मण-भक्ति (आदि० ११० ॥ २६)। इसका कर्ण और वैकर्तन नाम होनेका कारण - प्राङ्नाम तस्य कथितं वसुषेण इति क्षितौ। कर्णो वैकर्तनश्चैव कर्मणा तेन सोऽभवत्।। ( आदि० ११० ॥ ३१(१२०.५३) ) । द्रोणाचार्य के समीप अध्ययन के लिये इसका आगमन ( आदि० १३१ ॥ ११(१४२.२०) ) । अध्ययनावस्था में अर्जुन से इसकी स्पर्धा ( आदि० १३१ ॥ १२(१४२.२१) ) । रङ्गभूमि में इसकी अर्जुन से स्पर्धा तथा अस्त्र-कुशलता ( आदि० १३५ । ९-१२ ) । रङ्गभूमि में दुर्योधन द्वारा इसका सम्मान ( आदि० १३५ ॥ १३-१४ ) । अर्जुन द्वारा इसे रङ्गभूमि में फटकार (आदि० १३५ ॥ १८ ) । अर्जुन से लड़ने के लिये इसका रङ्गभूमि में उद्यत होना ( आदि० १३५ ॥ २० ) । रङ्गभूमि में कृपाचार्य का इससे परिचय पूछना और इसका लज्जित होना ( आदि० १३५ ॥ ३४ ) । दुर्योधन द्वारा इसका अङ्गदेश के राजपद पर अभिषेक (आदि० १३५ ॥ ३८) । इसके द्वारा दुर्योधन को अटल मित्रता का वरदान (आदि० १३५ ॥ ४१ ) । इसका रङ्गभूमि में अपने पिता अधिरथ का अभिवादन ( आदि० १३६ ॥ २ ) । भीमसेन द्वारा इसका तिरस्कार ( आदि० १३६ ॥ ६ ) । दुपद से पराजित होकर इसका पलायन ( आदि० १३७ ॥ २४ के बाद दाक्षिणात्य पाठ ) । द्रौपदी के स्वयंवर में इसका आगमन ( आदि० १८५ ॥ ४ ) । स्वयंवर में लक्ष्यवेध के लिये उद्यत हुए कर्ण को देखकर सूतपुत्र होने के कारण इसका वरण न करने के सम्बन्ध में द्रौपदी का वचन ( आदि० १८६ ॥ २३) । द्रौपदी के स्वयंवर में अर्जुन द्वारा इसकी पराजय ( आदि० १८९ ॥ २२ ) । पराक्रमपूर्वक द्रुपद को पराजित कर पाण्डवों को कैद करने के लिये इसका दुर्योधन को परामर्श ( आदि० २०१ ॥ १-२१ ) । इसको द्रोण की फटकार ( आदि० २०३ ॥ २६ ) । राजसूय-दिग्विजय के समय भीमसेन द्वारा इसकी पराजय ( सभा ० ३० ॥ २० ) । युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ में रथिश्रेष्ठ कर्ण का आगमन ( सभा० ३४ । ७ ) । यह अङ्ग और वङ्ग देश का राजा था और इसने जरासंध को परास्त किया था (सभा० ४४ ॥ ९-११) । द्यूत के लिये आये हुए राजा युधिष्ठिर कर्ण से भी मिले थे ( सभा ० ५८ । २३(८३.४८))। द्यूतसभा में कर्ण भी उपस्थित था और द्रौपदी को दावपर लगाने से बहुत प्रसन्न हुआ था ( सभा० ६५ ॥ ४४ ) । इसके द्वारा विकर्ण को फटकारते हुए द्रौपदी के हारे जाने की घोषणा और द्रौपदी तथा पाण्डवों के वस्त्र उतार लेने के लिये दु:शासन को आदेश ( सभा० ६८ ॥ २७-३८ ) । इसका द्रौपदी को दूसरा पति चुन लेने के लिये कहना और उसे दासी बताना ( सभा० ७१ ॥ १-४(९२.१९) ) । वन में चलकर पाण्डवों का वध करने के लिये दुर्योधन को इसकी सलाह ( वन ० ७ ॥ १६-२० ) । द्वैतवन में पाण्डवों के पास चलने के लिये इसका दुर्योधन को उभाड़ना ( वन० २३७ अध्याय ) । घोषयात्रा का प्रस्ताव बताना ( वन० २३८ ॥ १९-२०) ॥ धृतराष्ट्र के आगे घोषयात्रा का प्रस्ताव रखना ( वन० २३९ ॥ ३-५) । द्वैतवन में गन्धर्वों द्वारा इसकी पराजय ( वन० २४१ ॥ ३२ ) । मार्ग में इसके द्वारा दुर्योधन का अभिनन्दन ( वन० २४७ ॥ १०-१५) । दुर्योधन को अनशन न करने के लिये इसका समझाना (वन० २५० अध्याय ) । भीष्म द्वारा इसकी निन्दा, इसके क्षोभपूर्ण वचन और इसका दिग्विजय के लिये प्रस्थान (वन० २५३ अध्याय) । इसके द्वारा समूची पृथ्वी पर दिग्विजय और हस्तिनापुर में इसका स्वागत ( वन० २५४ अध्याय ) । कर्ण का दुर्योधन को यज्ञ के लिये सलाह देना ( वन० २५५ अध्याय ) । कर्ण द्वारा अर्जुन के वध की प्रतिज्ञा ( वन० २५७ ॥ १६-१७ ) । सूर्य के समझाने पर भी इसका कवच-कुण्डल देने का ही निश्चय रखना ( वन ० ३०० ॥ २७-३९) । इन्द्र से शक्ति लेकर ही उन्हें कवच-कुण्डल देने का निश्चय ( वन० ३०२ ॥ १७) । कर्ण का कुन्ती के गर्भ से जन्म, कुन्ती का उसे पिटारी में रखकर अश्व नदी में बहा देना तथा अमृत से प्रकट हुए कवच-कुण्डल धारण करने के कारण इसका नदी में जीवित रह सकना ( वन ० ३०८ ॥ ४-७-२७ ) । पिटारी में बंद हुए कर्ण का अधिरथ और राधा के हाथ में आना ( वन० ३०९ । ५-६) । राधा द्वारा कर्ण का विधिपूर्वक पालन ( वन० ३०९ ॥ ११-१२ ) । इसका वसुषेण और वृष नाम पड़ने का कारण - नामकर्म च चक्रुस्ते कुण्डले तस् दृश्यते। कर्ण इत्येव तं बालं दृष्ट्वा कर्णं सकुण्डलम्' ।। वसुवर्मधरं दृष्ट्वा तं बालं हेमकुण्डलम्। नामास्य वसुषेणेति ततश्चक्रुर्द्विजातयः ।। ( वन० ३०९ ॥ १३-१४ ) । हस्तिनापुर में इसकी शिक्षा और दुर्योधन से मित्रता ( वन० ३०९ ॥ १७-१८ ) । इन्द्र से उनकी शक्ति माँगना ( वन ० ३१० ॥ २१ ) । इन्द्र को इसके द्वारा कवच-कुण्डल दान (वन ० ३१० ॥ ३८ ) । पाण्डवों का पता लगाने के लिये इसकी पुन: गुप्तचर भेजने की सलाह ( विराट० २६ ॥ ८-१२ ) । द्रोणाचार्य की बातों पर आक्षेप करते हुए अर्जुन से युद्ध करने का ही इसका निश्चय ( विराट० ४७ ॥ २१-३४ ) । इसकी आत्मप्रशंसापूर्ण अहङ्कारोक्ति (विराट० ४८ अध्याय) । अर्जुन पर इसका आक्रमण ( विराट० ५४ ॥ १९ ) । अर्जुन से पराजित होकर युद्ध के मुहाने से भागना ( विराट० ५४ ॥ ३६/७७ ) । अर्जुन के साथ पुन: युद्ध और पराजित होकर भागना ( विराट० ६० ॥ २७ ) । कर्ण के कपड़ों का उत्तर द्वारा उतारा जाना ( विराट० ६५ ॥ १५ ) । द्रुपद के पुरोहित के कथन का समर्थन करने वाले भीष्म के वाक्यों पर इसका आक्षेप करना ( उद्योग० २१ ॥ ९-१५ ) । इसकी आत्मप्रशंसा ( उद्योग० ४९ ॥ २९-३२; उद्योग० ६२ ॥ २-६ ) । भीष्मजी के आक्षेप करने पर इसका अस्त्र त्यागकर सभा से प्रस्थान ( उद्योग० ६२ ॥ १३ ) । दुर्योधन के पक्ष में रहने का निश्चय बताते हुए श्रीकृष्ण से रणयज्ञ के रूपक का वर्णन करना (उद्योग० १४१.२९ अध्याय ) । इसके द्वारा श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर की विजय और दुर्योधन की पराजय के लक्षणों का वर्णन ( उद्योग० १४३ ॥ २-४५ ) । कुन्ती को उत्तर देते हुए उनके चार पुत्रों को न मारने की प्रतिज्ञा ( उद्योग० १४६ ॥ ४-२३ ) । भीष्मजी के जीते-जी युद्ध न करने की प्रतिज्ञा ( उद्योग ० १५६ ॥ २५ ) । भीष्म की कटु आलोचना ( उद्योग० १६८ ॥ ११-२९ ) । पाँच दिन में ही पाण्डवसेना को नष्ट करने की अपनी शक्ति का कथन ( उद्योग० १९३ ॥ २० ) । श्रीकृष्ण के समझाने पर दुर्योधन का ही पक्ष ग्रहण करने का निश्चय ( भीष्म० ४३ ॥ ९२ ) । भीष्म से शस्त्र डलवा देने के लिये दुर्योधन को सलाह देना ( भीष्म० ९७ ॥ ७-१३ ) । बाणशय्या पर पड़े हुए भीष्म के पास जाकर इसका उन्हें प्रणाम करना ( भीष्म० १२२ ॥ ४-५) | भीष्म के समझाने पर क्षमा-प्रार्थना करते हुए इसका युद्ध का ही निश्चय बताना ( भीष्म० १२२ ॥ २३-३३ ) । कौरवों द्वारा इसका स्मरण ( द्रोण० १ ॥ ३३-४७ ) । भीष्म के लिये शोक प्रकट करते हुए इसका रण के लिये प्रस्थान (द्रोण० २ अध्याय)। भीष्म की प्रशंसा करते हुए युद्ध के लिये उनसे आज्ञा माँगना ( द्रोण० ३ अध्याय ) । भीष्म की आज्ञा पाकर कौरवों की सेना में इसका जाना (द्रोण० ४ ॥ १५) । दुर्योधन के पूछने पर इसका सेनापति के लिये द्रोणाचार्य का नाम बताना ( द्रोण० ५ ॥ १३-२१ ) । दुर्योधन से भीमसेन के स्वभाव का वर्णन करते हुए द्रोणाचार्य की रक्षा के लिये कहना ( द्रोण० २२ ॥ १८-२८ ) । केकय राजकुमारॉ के साथ युद्ध ( द्रोण० २५ ॥ ४२-४४ ) || अर्जुन; भीमसेन; धृष्टद्युम्न और सात्यकि के साथ युद्ध ( द्रोण० ३२ ॥ ५२-७० ) । इसका अभिमन्यु से पराजित होना ( द्रोण० ४० ॥ १७-३६ ) । इसका द्रोणाचार्य से अभिमन्यु के वध का उपाय पूछना (द्रोण० ४८ ॥ १८ ) । इसके द्वारा अभिमन्यु के धनुष और ढाल का काटा जाना ( द्रोण० ४८ ॥ ३२-३९ ) || इसके ध्वज का वर्णन ( द्रोण० १०५ ॥ १२-१४ ) । भीमसेन के साथ युद्ध में इसका पराजित होना ( द्रोण ० १२९ ॥ ३३ ) । भीमसेन के साथ इसका युद्ध और पराजित होना ( द्रोण० १३१ से १३८ अध्याय तक ) । भीमसेन से बचने के लिये इसका रथ में दुबक जाना ( द्रोण० १३९ ॥ ७६ ) । भीमसेन को मूर्च्छित करके इसका धनुष की नोक से उन्हें दबाना ( द्रोण० १३९ ॥ ९१-९२ ) । भीमसेन को कटुवचन सुनाना ( द्रोण० १३९ ॥ ९५-१०९) । अर्जुन के बाणों से आहत होकर इसका दूर हट जाना ( द्रोण० १३९ ॥ ११४ ) । अर्जुन के द्वारा युद्ध में परास्त होना ( द्रोण० १४५ ॥ ८३-८४ ) । दुर्योधन के प्रोत्साहन देने पर उसे उत्तर देना ( द्रोण० १४५ ॥ २५-३३ ) । सात्यकि के साथ युद्ध में इसकी पराजय ( द्रोण० १४७ ॥ ६४-६५(१४५.४८) ) । दुर्योधन द्वारा द्रोणाचार्य पर किये गये दोषारोपण का निराकरण ( द्रोण० १५२ ॥ १५-२२) । दुर्योधन से दैव की प्रधानता का वर्णन ( द्रोण० १५२ ।। २३-३४ ) ।। दुर्योधन को आश्वासन ( द्रोण० १५८ ॥ ५-११ ) । इसके द्वारा कृपाचार्य का अपमान ( द्रोण० १५८ ॥ २५-३२; द्रोण० १५८ ।। ४९-७० ) । अर्जुन के साथ युद्ध में इसका पराजित होना (द्रोण० १५९ ॥ ६२-६४ ) । सहदेव को युद्ध में परास्त करके उनके शरीर में धनुष की नोक चुभोकर उन्हें कटु वचन सुनाना ( द्रोण० १६७ ॥ २-१८) । सात्यकि के साथ इसका युद्ध ( द्रोण० १७० ॥ ३०-४३ ) । दुर्योधन को इसकी सलाह ( द्रोण० १७० ॥ ४६-६० )। इसके द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय (द्रोण० १७३ ॥ ७) । घटोत्कच के साथ इसका घोर युद्ध (द्रोण० १७५ अध्याय) । इसके द्वारा इन्द्र की दी हुई शक्ति से घटोत्कच का वध ( द्रोण० १७९ ॥ ५४-५८) । भीमसेनके साथ युद्ध और उन्हें परास्त करना ( द्रोण० १८८ ॥ १०-२२) । भीमसेन के साथ युद्ध (द्रोण० १८९ । ५०-५५) । द्रोणाचार्य के मारे जाने पर युद्धस्थल से भागना ( द्रोण० १९३ ॥ १० ) || सात्यकि द्वारा इसकी पराजय ( द्रोण० २०० ॥ ५३ ) || संजय द्वारा इसके सेनापतित्व तथा मृत्यु का वर्णन ( कर्ण० ३ ॥ १७-२१ ) । अर्जुन द्वारा इसके पुत्र वृषसेन के वध की चर्चा ( कर्ण० ५ ॥ २३-२४ ) । सेनापति के लिये प्रस्ताव करने पर दुर्योधन को आश्वासन ( कर्ण० १० ॥ ४०-४ १ ) । सेनापति-पद पर अभिषेक ( कर्ण० १० ॥ ४३ ) । इसका कौरव-सेना का मकरव्यूह बनाकर युद्ध के लिये प्रस्थान ( कर्ण० ११ ॥ १४ ) । इसके द्वारा पाण्डवसेना का संहार ( कर्ण० २१ ॥ १८-२४ ) || भागते हुए नकुल के गले में धनुष फँसाकर उन्हें पकड़ना और जीवित छोड़ देना (कर्ण० २४ ॥ ४५-५१ ) । सात्यकि के साथ इसका युद्ध ( कर्ण० ३० अध्याय ) || दुर्योधन से अपनी युद्धसम्बन्धी व्यवस्था के लिये कहना ( कर्ण० ३१ । ३५-६९ ) । शल्य को सारथि बनाकर युद्ध के लिये प्रस्थान ( कर्ण० ३६ ॥ २४-२५ ) । इसकी आत्मप्रशंसा ( कर्ण० ३७ ।। १३-३१ ) । अर्जुन का पता बताने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा (कर्ण० ३८ अध्याय ) । शल्य को फटकारते हुए मद्रनिवासियों की निन्दा करना और उन्हें मारने की धमकी देना (कर्ण० ४० अध्याय ) । शल्य को फटकारते हुए अपने को परशुरामजी तथा एक ब्राह्मण द्वारा प्राप्त शापों की बात बताना ( कर्ण० ४२ अध्याय ) । आत्मप्रशंसापूर्वक शल्य को फटकारना ( कर्ण० ४३ अध्याय ) । इसके द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों की निन्दा करना (कर्ण० ४४ से ४५ अध्याय तक)। इसके द्वारा पाञ्चाल का संहार ( कर्ण० ४६ ॥ २१-२२ ) । पाण्डव-सेना का संहार ( कर्ण० ४८ । ९-१७ ) । कर्णपुत्र सुषेण और चित्रसेन द्वारा पिता के रथ के पहियों की रक्षा, वृषसेन द्वारा उसके पृष्ठभाग की रक्षा (कर्ण० ४८ ॥ १८-१९) । भीमसेन द्वारा कर्णपुत्र भानुसेन का वध (कर्ण० ४८ ॥ २७ ) । कर्ण द्वारा युधिष्ठिर पर आक्रमण (कर्ण० ४८ ॥ ६३ ) । युधिष्ठिर के साथ युद्ध में इसका मूर्च्छित होना (कर्ण० ४९ ॥ २१ ) । इसके द्वारा युधिष्ठिर के चक्ररक्षक चन्द्रदेव और दण्डधार का वध (कर्ण० ४९ ॥ २७ ) । युधिष्ठिर को परास्त करके उनका तिरस्कार करना ( कर्ण० ४९ ॥ ४८-५९(४४.७७) ) । भीमसेन द्वारा इसकी पराजय ( कर्ण० ५० ॥ ४७ ) । भीमसेन के साथ इसका घोर संग्राम (कर्ण० ५१ से अध्याय तक) । इसके द्वारा पाञ्चाल, चेदि और केकय-वीरों का भीषण संहार (कर्ण० ५६ ॥ ३८-६९ ) । धृष्टद्युम्नके साथ युद्ध ( कर्ण० ५९ ॥ ७-१४) । इसके द्वारा शिखण्डी की पराजय (कर्ण० ६१ ॥ २३)। युधिष्ठिर को घायल करके युद्ध से विमुख कर देना ( कर्ण० ६२ ॥ २९-३१ ) । इसके द्वारा नकुल, सहदेव और युधिष्ठिर की भीषण पराजय ( कर्ण० ६३ अध्याय ) । दुर्योधन की प्रेरणा से इसका भार्गवास्त्र प्रकट करना (कर्ण० ६४ ॥ ४७ ) । उत्तमौजा द्वारा कर्णपुत्र सुषेण का वध ( कर्ण० ७५ ॥ ९ ) । इसके द्वारा पाण्डवसेना का भीषण संहार ( कर्ण० ७८ अध्याय ) । अर्जुन के पराक्रम के विषय में शल्य से वार्तालाप ( कर्ण० ७९ ॥ ४९-७० ) । अर्जुन और भीमसेन द्वारा खदेड़े हुए धृतराष्ट्र-पुत्रों को इसका शरण देना ( कर्ण० ८१ ॥ ५१ ) । इसके द्वारा कैकयराजकुमार विशोक का वध ( कर्ण० ८२ ॥ ३ ) || केकय-सेनापति उग्रकर्मा का वध ( कर्ण० ८२ ॥ ५ ) । सात्यकि द्वारा कर्णपुत्र प्रसेन का वध (कर्ण० ८२ ॥ ६ ) || इसके द्वारा धृष्टद्युम्न के पुत्र का वध (कर्ण० ८२ ॥ ९ ) । इसका भीमसेन के भय से भीत होना ( कर्ण० ८४ ॥ ७-८ ) । अर्जुन द्वारा कर्णपुत्र वृषसेन का वध ( कर्ण० ८५ ॥ ३६) । कर्ण व शल्य की ध्वजाओं का युद्ध (कर्ण० ८७।।३ ) । अर्जुन के साथ द्वैरथ युद्ध (कर्ण० ८९ अध्याय ) । कर्ण के सर्पमुख बाण से अर्जुन के किरीट का गिरना ( कर्ण० ९० ॥ ३३ ) । रथ का पहिया धंस जाने से उसे निकालने के लिये इसका रथ से उतरना और बाण न चलाने के लिये अर्जुन से अनुरोध करना ( कर्ण० ९० ॥ १०५-११६ ) ॥ अर्जुन द्वारा इसका वध (कर्ण० ९१ ॥ ५० ) । कर्ण के दाह-संस्कार का उल्लेख( स्त्री० २६ ॥ ३६) । ब्राह्मण द्वारा इसे शाप प्राप्त होने का प्रसंग (शान्ति० २ ॥ २३-२६)। इसे ब्रह्मास्त्र की प्राप्ति और परशुरामजी का शाप (शान्ति० ३ अध्याय) । कलिङ्गराज की कन्या का दुर्योधन द्वारा अपहरण होने पर इसके द्वारा समस्त राजाओं की पराजय (शान्ति० ४ ॥ १७-२० ) । इसके बल-पराक्रम का वर्णन ( शान्ति० ५ अध्याय) । इसके द्वारा जरासंध की पराजय ( शान्ति० ५ । ४ ) । इसके द्वारा मालिनी और चम्पानगरी की प्राप्ति ( शान्ति० ५ । ६-७ ) । इसके कुण्डलदान की चर्चा (अनु० १३७ ॥ ९) । कुन्ती का व्यासजी के सम्मुख कर्ण के जन्मप्रसङ्ग की चर्चा और इसे देखने की इच्छा व्यक्त करना (आश्रम० ३० अध्याय) । कर्ण सूर्य का अंश था ( आश्रम० ३१ | १४ ) । व्यासजी के आवाहन करने पर कर्ण का भी प्रकट होना ( आश्रम० ३२ ॥ ९ ) । स्वर्ग में जाकर इसका सूर्यदेव में मिल जाना ( स्वर्गा० ५ ॥ २० ) ।

      महाभारतमें आये हुए कर्ण के नाम-आधिरथि, आदित्यनन्दन आदित्यतनय; अङ्गराज, अङ्गेश्वर, अर्कपुत्र; भरतर्षभ, गोपुत्र, कौन्तेयः, कुन्तीसुत, कुरूद्वहः कुरुपृतनापति, कुरुवीर, कुरुयोध, पार्थ, पूषात्मज, राधासुत; राधात्मज, राधेय, रविसूनु, सौति, सावित्र, सूर्यज, सूर्यपुत्र सूर्यसम्भव, सूत सूतनन्दनः, सूतपुत्र, सूतसूनु, सूतसुत, सूततनयः, सूतात्मज, वैकर्तनः, वैवस्वत, वसुषेण; वृष ।। (२) धृतराष्ट्र का एक पुत्र ( आदि० ६७ ॥ ९५; आदि० ११६ ॥ ३ ) । भीमसेन द्वारा इस पर आक्रमण ( भीष्म० ७७ ॥ १६ ) । भीमसेन द्वारा इसका वध (भीष्म ७७।१६)



      कर्णनिर्वाक–वानप्रस्थधर्म का पालन करके स्वर्ग को प्राप्त हुए एक ब्रह्मर्षि ( शान्ति० २४४ ॥ १८ ) ।

      कर्णप्रावरण-( १) प्राचीन काल के मनुष्यों की एक जाति; जो दक्षिण समुद्र के तट पर रहती थी । सहदेव ने इस जाति के लोगों को परास्त किया था -निषादान्पुरुषादांश्च कर्णप्रावरणानपि। (सभा० ३१ ॥ ६७ )। ( जो अपने कानों से ही अपने शरीर को ढक लें, उन्हें कर्णप्रावरण कहते हैं । प्राचीन काल में ऐसी जाति के लोग थे, जिनके कान पैरों तक लटकते थे । ) इस जाति के लोग युधिष्ठिर को भेंट देने के लिये आये थे - (सभा० ५२।१९)। ( २) दक्षिण भारत का एक जनपद । यहाँ के योद्धा दुर्योधन की सेना में थे ( भीष्म० ५१ ॥ १३ ) ।

      कर्णप्रावरणा-स्कन्द की अनुचरी मातृका ( शल्य ० ४६ ॥ २५ ) ।

      कर्णवेष्ट-एक क्षत्रिय राजा; जो 'क्रोधवश' संज्ञक दैत्य के अंश से उत्पन्न थे (आदि० ६७ ।। ६०-६६ ) । पाण्डर्वो की ओर से इन्हें रणनिमन्त्रण भेजा गया था ( उद्योग० ४ ॥ १५ ) ।

      कर्णश्रवा-अजातशत्रु युधिष्ठिर का आदर करनेवाले एक महर्षि ( वन० २६ ॥ २३ ) ।

      कर्णाटक-एक दक्षिण भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ५९ ) ।।

      कर्णिका-ग्यारह विख्यात अप्सराओं में से एक, जिसने अर्जुन के जन्म-समय में आकर नाच-गान किया था ( आदि० १२२ । ६४-६६ ) ।

      कर्णिकारवन-सुमेरु पर्वत के उत्तर भाग में समस्त ऋतुओं के फूलों से भरा हुआ एक दिव्य एवं रमणीय वन ( भीष्म० ६। २४ ), द्रोण ३६।१२ ।


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      Vedic contexts on Karna


      कर्ण - मत्स्य १४५.१०८ ( कर्णक : ६ आत्रेय मन्त्रकर्त्ता ऋषियों में से एक ), १७९.१५ ( कर्णमोटी : अन्धकों के रक्तपान हेतु शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), १९७.३ ( कर्णजिह्व : अत्रि / शरायण वंश में उत्पन्न ऋषियों में से एक ), वामन ६.९१ ( कर्णोदर : कापालिक सम्प्रदाय के आचार्य धनद / कुबेर के शूद्रजाति के शिष्य का नाम ), ५७.८२ ( कर्णा नदी द्वारा स्कन्द को विद्रुमसन्निभ नामक गण प्रदान करना ), स्कन्द ४.२.८४.४५ ( कर्णादित्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य :भास्करी श्री की प्राप्ति ), ४.२.७२.९९ ( कर्ण प्रावरण : ६४ वेतालों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.६७ ( नरक के कर्णविट् कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), २.११.५( कृष्ण के कर्णवेधन करने वाली सूची के दिव्य कन्या बनने का वृत्तान्त ), ३.१६.५१ ( ब्रह्म कर्ण मल से उत्पन्न जलधि नामक शिशुमार के वरुण का वाहन होने का उल्लेख - ब्रह्मकर्णमलोद्भूतं श्यामं जलधिनामकम् ।। शिशुमारमधिरुह्य वरुणस्तत्र चाययौ । ) ।


      कर्णाटक गणेश २.३६.२७ ( राम द्वारा कर्णाटक में वक्रतुण्ड नाम से गणेश की स्थापना का कथन ), गर्ग ७.१०.३१ ( कर्णाटक के राजा सहस्रजित् द्वारा प्रद्युम्न को भेंट ), देवीभागवत ७.३८.९ ( कर्णाटक क्षेत्र में चन्द्राला देवी का वास ), भागवत ५.६.७ ( परमहंस ऋषभदेव का कर्णाटक के देशों में विचरण व कुटक वन में दावाग्नि में भस्म होना, कर्णाटक देश के राजा अर्हत् का पाखण्ड धर्म का आचरण करना ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.४( कर्णाटक में अश्वशिरा की पूजा का निर्देश ), स्कन्द ३.२.१८ ( कर्णाटक दैत्य का मातङ्गी देवी से युद्ध, मातङ्गी द्वारा चर्वण करने पर कर्णाटक द्वारा मातङ्गी के कर्णों से बाहर निकलना, मातङ्गी - भगिनी श्यामला से युद्ध में मृत्यु ), ४.१.३३.९१ ( कर्णाटक - नृप की पुत्री कलावती की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.४४०.८४ ( योगमालिनी द्वारा कर्णाट राक्षस का वध, देश का कर्णाटक नाम प्रचलित होना ), कथासरित् १०.५.३२३ ( कर्णाटक देश के योद्धा द्वारा अपने नृप से नापित को अभीष्ट रूप में प्राप्त करने की मूर्खता ), १२.५.२८४ ( कर्णाटक देश के निवासी मलयमाली वणिक् की इन्दुयशा नामक राजकन्या पर आसक्ति, पुन: ध्यानपारमिता की प्राप्ति का वर्णन ), १२.११.११९ ( वीरवर व उसके पुत्र सत्त्ववर की राज्यभक्ति पर प्रसन्न होकर राजा शूद्रक द्वारा उन्हें लाट व कर्णाट देश का राज्य प्रदान करना ), १८.३.३ ( कर्णाट देश के राजा जयध्वज द्वारा राजा विक्रमादित्य को प्रणाम करने का उल्लेख ) । karnaataka


      कर्णिका भागवत ९.२४.४४ ( उग्रसेन - पुत्र? कङ्क की पत्नी, ऋतधाम व जय की माता ), वायु ३४.४६ ( पृथ्वी रूपी पद्म की कर्णिका पर मेरु पर्वत की स्थिति ), ३४.६२ ( अत्रि, भृगु, सावर्णि आदि ऋषियों के दृष्टिकोणों में पद्म की कर्णिका के रूपों का कथन - शताश्रिमेनं मेनेऽत्रिः सहस्राश्रिमृषिर्भृगुः। अष्टाश्रिमेनं सावर्णिश्चतुरस्रन्तु भागुरिः ।।)। karnikaa


      कर्णिकार भविष्य १.५७.१५( अश्विनौ हेतु कर्णिकार बलि का उल्लेख ), मत्स्य ६.३६ ( जटायु - पुत्र, शतगामी - भ्राता ), लिङ्ग १.८१.३५( कर्णिकार कुसुम पर मेधा की स्थिति का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.६९.१२८ ( कर्णिकार वृक्ष के पुष्प से धरणि वाराह की अर्चना का संक्षिप्त माहात्म्य : उपसर्गों से मुक्ति ), ६.२६६.५० ( लुब्धक का धन हरण के उद्देश्य से कर्णिकार वृक्ष पर छिपना, वृक्ष के नीचे स्थित लिङ्ग की अर्चना से जन्मान्तर में दशार्णाधिपति बनना ), महाभारत द्रोण ३६.१२ । karnikaara


      कर्णोत्पला स्कन्द ६.१२५+ ( सत्यसन्ध राजा का कर्णोत्पला पुत्री के साथ ब्रह्मलोक गमन, प्रत्यागमन पर कर्णोत्पला द्वारा विवाह हेतु तप, कामदेव की पति रूप में प्राप्ति, रति की सपत्ना प्रीति बनना, कर्णोत्पला तीर्थ का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.५०० ( वही), कथासरित् १२.८.८१ ( कलिङ्ग देश में कर्णोत्पल राजा के दन्तवैद्य की कन्या पद्मावती का राजकुमार वज्रमुकुट से विवाह का वृत्तान्त ) ।


      कर्त्ता भविष्य १.२.१२९( कृत बुद्धियों में कर्त्ता तथा कर्त्ताओं में ब्रह्मवेदी की श्रेष्ठता का कथन ), महाभारत आश्वमेधिक २५.१५( कर्त्ता के होता होने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.१.११५.११( महाकर्त्ता के लक्षण ) kartaa


      कर्तरी स्कन्द ४.१.५०.१०३( गरुड द्वारा अमृतकलश लाने के संदर्भ में कर्तरी मन्त्र का वञ्चन करने का कथन ), kartari


      कर्दम गणेश १.५१.४९ ( राजा कर्दम द्वारा भृगु ऋषि से पूर्व जन्म का वृत्तान्त पूछना ), २.६३.२५ ( देवान्तक असुर - सेनापति, रथव्यूह का निर्माण ), २.६४.९ ( अणिमा सिद्धि द्वारा कर्दम का वध ), २.९२.१९ ( गणेश द्वारा मुनि रूप धारी कर्दम दैत्य के वध का वृत्तान्त ) देवीभागवत ८.३.१२ ( मनु की मध्यम कन्या देवहूति से कर्दम के विवाह का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.११.२३ ( अत्रि व अनसूया - कन्या श्रुति का कर्दम - भार्या बनकर शङ्खपद आदि की माता बनना - कन्यां चैव श्रुतिं नाम माता शंखपदस्य सा ।।
      कर्दमस्य तु पत्नी सा पौलहस्य प्रजापतेः ।। ), १.२.११.३२ ( पुलह व क्षमा की सन्तानों में से एक, श्रुति - पति, शङ्खपद आदि के पिता - कर्दमस्य श्रुतिः पत्नी आत्रेय्यजनयत्स्वयम् ।। पुत्रं शंखपदं नाम कन्यां काम्यां तथैव च ।। ), १.२.१४.७ ( कर्दम - कन्या वीरा का प्रियव्रत की पत्नी बनकर सन्तान उत्पन्न करना ), १.२.२१.१५७ ( लोकालोक पर्वत पर स्थित ४ लोकपालों में से एक ), १.२.३२.९९ ( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक ), १.२.३५.९४ ( पुलह - पुत्र ), २.३.१.५३ ( प्रजापतियों में से एक ), २.३.८.१८ ( कर्दम - पुत्र शङ्खपद का दक्षिण दिशा का अधिपति नियुक्त होना ), २.३.१०.९३ ( कर्दम प्रजापति के लोकों में आज्यप नामक पितरों के वास का वृत्तान्त ), भागवत २.७.३ ( कर्दम प्रजापति व देवहूति से ९ कन्याओं व कपिल के जन्म का उल्लेख ), ३.१२.२७ ( ब्रह्मा की छाया से कर्दम की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.२१+ ( विवाह व सन्तान प्राप्ति के लिए कर्दम का तप, श्रीहरि के दर्शन, स्वायम्भुव मनु - कन्या देवहूति से विवाह ), ३.२३ ( कर्दम द्वारा देवहूति के साथ विहार करने के लिए विमान की रचना व विमान में विहार ), ३.२४ ( देवहूति से कपिल के प्राकट्य पर कर्दम द्वारा कपिल की स्तुति व परमपद की प्राप्ति ), मत्स्य १५.२० ( कर्दम प्रजापति के लोकों में आज्यप नामक पितरों का वास ), २३.२४ ( राजसूय यज्ञ के पश्चात् प्राप्त चन्द्रमा के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर सिनीवाली का कर्दम पति को त्याग कर चन्द्रमा की सेवा में जाना ), १२४.९५ ( लोकालोक पर्वत पर स्थित ४ लोकपालों में से एक ), १४५.९३ ( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक ), १९९.१६ ( कर्दम ऋषि के प्रवर /गोत्र का उल्लेख ), वायु २८.२६ ( पुलह व क्षमा की सन्तानों में से एक, श्रुति - पति, शङ्खपद आदि के पिता ), ३३.७ ( कर्दम - कन्या वीरा का प्रियव्रत की पत्नी बनकर सन्तान उत्पन्न करना ), ५०.२०६ ( लोकालोक पर्वत पर स्थित ४ लोकपालों में से एक ), ५९.९० ( ज्ञान से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक ), ६१.८४ ( पुलह - पुत्र ), ६५.५३ ( प्रजापतियों में से एक ), ७३.४३ ( कर्दम प्रजापति के लोकों में आज्यप नामक पितरों का वास ), शिव ७.१.१७.२७( क्षमा व पुलह के ३ पुत्रों में से एक ), स्कन्द ४.१.१२.६२ ( कर्दम प्रजापति के पुत्र शुचिष्मान का शिशुमार द्वारा हरण व प्रत्यागमन की कथा ), ६.१७७.४२( कर्दम से ५ पिण्ड बनाकर गौरी पूजा का वृत्तान्त ), योगवासिष्ठ ५.८०.४ ( रूप कर्दम का उल्लेख ), ६.२.१६२.२२( कर्दम से शास्त्रों द्वारा सार ग्रहण करने का निर्देश - संसारमिममासाद्य विद्युतसंपातचञ्चलम् । सच्छास्त्रसाधुसंपर्कैः कर्दमात्सारमुद्धरेत् ।। ), लक्ष्मीनारायण १.३१९.१०( जोष्ट्री सेविका द्वारा कर्दमा पुत्री उत्पन्न कर कीटपतङ्गादियों को देने का उल्लेख ), १.३१९.१५( कृष्ण - पत्नी बनने पर कर्दमा की निरुक्ति : क:दमा - श्रीहरि के लिए दमन ), १.३८२.१८३(पुलह व क्षमा-पुत्र), १.४७६.१५ ( दुर्वासा - पत्नी कदली द्वारा दुर्वासा को कदली मूल में कर्दम होने का शाप - इत्युक्तः कर्दमो भूत्वा रूपान्तरेण वै मुनिः ।। दुर्वासः कर्दमो नित्यं कदलीमूलगोऽभवत् । ), ३.२५.४ ( कर्दम आदि ५ विप्रों द्वारा प्रसविष्णु असुर को लक्ष्मी व कामादि प्रदान करने का वर्णन - देवसखश्च कीर्तिश्च चिक्लीत कर्दमस्तथा । जातवेदश्च ते विप्राः सहोदराश्च सात्त्विकाः ।। ), ३.२५.४( भविष्य के ५ इन्द्रों में से एक ), ३.५९.४४ ( ब्राह्मण को दुःख देने से राजा भुवनेश के कर्दमी कीट बनने का वृत्तान्त ), ३.१३६.३७ ( कर्दम - पत्नी सिनीवाली का लक्ष्मी शान्ति व्रत करके कर्दम - पत्नी देवहूति बनना ), ४.७२.५९( देह के स्वेद, दुर्गन्ध आदि के साथ कर्दम शब्द का उल्लेख - यावन्तः कर्दमाः स्वेदा दुर्गन्धा नरका हि ते ।), ४.१०१.११३ ( मूलकर्दम : कृष्ण व पद्मिनी - पुत्र ) ; द्र. कुकर्दम, यक्षकर्दम kardama

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      कर्दमाल स्कन्द ७.१.३५३ ( कर्दमाल तीर्थ का माहात्म्य : कर्दमाल क्षेत्र में प्रवेश पर मृगों का मनुष्य बनना, यज्ञवराह द्वारा पृथ्वी के उद्धार पर कर्दम से लिप्त कर्दमाल क्षेत्र की उत्पत्ति ) ।


      कर्पण स्कन्द २.७.१५.३९( व्याध द्वारा वैशाख मास में घर्म से पीडित कर्पण मुनि की रक्षा से जन्मान्तर में राजा बनने की कथा ) ।


      कर्पर योगवासिष्ठ ३.२९.५३ ( लीला का सरस्वती देवी के साथ ब्रह्माण्ड - कर्पर में प्रवेश करना, ब्रह्माण्ड कर्पर के परित: जल, अग्नि, आकाश के वेष्टनों का वर्णन ), कथासरित् १०.८.४३ ( घट व कर्पर चोरों की कथा : राजकुमारी से प्रेम के कारण कर्पर चोर की शूली पर आरोपण से मृत्यु, कर्पर के साथी घट द्वारा कर्पर के अन्तिम संस्कार का उद्योग, राजकुमारी द्वारा दिए गए विष से घट की मृत्यु आदि )।

      कर्पूर अग्नि १९१.४( कर्पूराशी द्वारा चैत्र में स्वरूप की पूजा का निर्देश ), गर्ग १०.५६.२३ ( उग्रसेन के अश्वमेधीय अश्व का कर्पूर द्रव्य में रूपान्तरण ), पद्म ५.६७.८५ ( राम के अश्वमेध में हय द्वारा दिव्य रूप प्राप्ति पर कर्पूर द्वारा यज्ञ पूर्ति ), भविष्य १.५७.१८( वासवों के लिए कर्पूर बलि का उल्लेख ), कथासरित् ७.८.१०, ७.९.१४३ ( उदयन - पुत्र नरवाहनदत्त द्वारा कर्पूर संभव द्वीप में राजा कर्पूरक की कन्या कर्पूरिका को प्राप्त करने का वृत्तान्त ), ९.६.६१ ( कर्पूर द्वीप का उल्लेख ) । karpuura/karpoora/ karpura


      कर्बुर भविष्य ३.३.३१.१२५ ( विभीषण - पुत्र कर्बुर द्वारा सूर्यवर्मा की पत्नी कान्तिमती का हरण, कृष्णांश उदयसिंह द्वारा कर्बुर पर विजय ) ।




      कर्म अग्नि १२३.१५ ( मुहूर्त अनुसार करणीय कर्म ), १३७+ ( उच्चाटन आदि आभिचारिक कर्मों का विधान ), ३८१.५० ( कर्म के तामस, मोह आदि ५ हेतुओं का कथन ), कूर्म १.३.१७ ( ब्रह्मार्पित कर्म से मुक्ति का कथन ), गरुड १.५९ ( नक्षत्र अनुसार करणीय कर्म ), १.६२ ( ग्रह प्रकृति के अनुसार करणीय कर्म ), २.२.५९(कर्म विपाक का वर्णन), २.३४ ( कर्म विपाक : कर्म अनुसार योनि प्राप्ति ), ३.२९.३६(पुष्कर का कर्मात्मा रूप में कथन), ३.२९.६८(कर्म पूर्ति काल में वासुदेव के ध्यान का निर्देश), गणेश २.१४८.१४ ( सात्त्विक, राजस, तामस कर्मों के चिह्नों का कथन ), गर्ग ९.२ ( सकाम कर्मों की गति, लक्षण, भेद आदि : व्यास - उग्रसेन संवाद ), देवीभागवत ६.१०.८ ( कर्म की त्रिविध गति सञ्चित, वर्तमान व प्रारब्ध का वर्णन ), ८.२२ ( कर्म अनुसार नरक प्राप्ति ), ९.२८ ( सावित्री का यम से कर्म फल विषयक संवाद ), पद्म १.८१ ( कर्म द्वारा कर्त्ता का अनुगमन : सुकर्म - पिप्पल संवाद ), २.६७ ( पुण्यापुण्य कर्म विपाक : मातलि - ययाति संवाद ), २.६८ ( सुकर्म फल : मातलि - ययाति संवाद ), २.८६.६९ ( दीपक के संदर्भ में कायवर्ति द्वारा कर्म तैल के शोषण का उल्लेख ), २.९४ ( शव रूपी कर्मों द्वारा कर्त्ता का अनुगमन ), ३.३८.३१ ( कर्मदा नदी का संक्षिप्त माहात्म्य : पुण्डरीक की प्राप्ति व सोमलोक गमन ), ३.५१ ( व्यास - प्रोक्त कर्म योग का वर्णन ), ४.५ ( ब्रह्मा द्वारा नारद को अपत्यहीनता, वन्ध्यत्व, नपुंसकता, मृतवत्सा आदि फलों के कारणभूत कर्मों व उनसे मुक्ति का वर्णन ), ४.६ ( वैकुण्ठ लोक प्रापक कर्मों का वर्णन ), ४.७ ( गोलोक प्रापक कर्मों का वर्णन : राधा जन्माष्टमी माहात्म्य ), ५.४८ ( कर्म अनुसार नरक यातना प्राप्ति का वर्णन : शत्रुघ्न - शौनक संवाद ), ५.९६ ( स्वर्ग व नरक प्रापक कर्म : यज्ञदत्त - यम संवाद ), ६.२०४.२२( निर्दग्ध बीजों की भांति प्रभु को अर्पित कर्मों के फलीभूत न होने का कथन ), ७.१७.२५९( कर्म भूमि भारत की प्रशंसा ), ७.१९ ( विष्णु - तुष्टि व रोषकारक कर्म : विष्णु - सर्वजनि संवाद ), ब्रह्म १.१०८ ( स्वर्ग व नरक प्रापक कर्म ), १.११७ ( स्वर्ग व नरक प्रापक कर्म ), १.१२९.७( कर्म अथवा विद्या के मार्ग के अनुसरण का प्रश्न व उत्तर ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२६.२५ ( निष्काम व सकाम कर्मों के विपाक का वर्णन : सावित्री - यम संवाद ), २.३०.२ ( दुष्कर्मों के फलस्वरूप नरक में प्राप्त यातना कुण्डों के नाम ), २.३१ ( कर्म विपाक : नरक प्रापक कर्मों का वर्णन ), २.३२ ( यम लोक की यातनाओं से रक्षा करने वाले कर्मों का कथन ), ४.८५.३६ ( कर्म विपाक का वर्णन ), ४.८५.४६ ( दुष्कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त नरक यातनाओं का वर्णन ), ब्रह्माण्ड ३.४.६.३६ ( हनन, स्तेय, हिंसा, पान व परस्त्री गमन रूपी पंचविध दुष्कर्मों का कथन ), भविष्य २.१.९ ( ज्ञानसाध्य रूपी अन्तर्वेदि व देवतास्थापन आदि बहिर्वेदि कर्मों का वर्णन ), २.५.२२( कर्म से महत् तत्त्व के जन्म का कथन ),३.२.१७.१४ ( सिद्धि हेतु मन, वाणी व काया रूपी त्रिविध कर्म की आवश्यकता का वर्णन ), ३.४.२५.२८( प्रचेता द्वारा कर्म कल्प को नमस्कार ), ४.२०५ ( वर्जित कर्म ), भागवत ५.१७.११( वर्षों में केवल भारतवर्ष के ही कर्मक्षेत्र होने का उल्लेख ), ९.१३.२१( खाण्डिक्य के कर्म तत्त्वज्ञ होने का उल्लेख ), १०.७०.२९( जरासन्ध रूप कर्म पाश से मुक्ति की प्रार्थना ), ११.३.१७ ( स्थूल बुद्धि पुरुष के लिए माया को पार करने के लिए कर्म का स्वरूप : निमि - प्रबुद्ध योगीश्वर संवाद ), ११.३.४१ ( योगी आविर्होत्र द्वारा निमि को कर्मयोग का उपदेश ), ११.१२.१७ ( कर्मात्मक संसारतरु का कथन, समस्त कर्मों में ईश्वरीय अभिव्यक्ति के दर्शन करने का उपदेश : उद्धव - कृष्ण संवाद ), ११.२०.६( योगत्रयी के रूप में ज्ञान, कर्म व भक्ति का उल्लेख व उनको सिद्ध करने के उपाय ), ११.२०.७ ( कामना रहने तक कर्मयोग के साधन का निर्देश ), ११.२२.३६ ( पांच इन्द्रियों से युक्त होने पर मन के कर्ममय होने का कथन ; मन के कर्म संस्कारों का पुञ्ज होने का कथन ), ११.२३.४४ ( मन द्वारा सृष्ट गुणों के कारण ही शुक्ल, कृष्ण व लोहित कर्मों के होने का कथन ), मत्स्य ३९ ( उत्तम लोक व फल प्रापक कर्म : ययाति - अष्टक संवाद ), ३९.२५( भय प्रदायक पान, अग्निहोत्र आदि ४ कर्मों के नाम ), ५२ ( कर्म योग की महत्ता ), ९३ ( शान्तिक व पौष्टिक कर्मों का कथन ), मार्कण्डेय ३५ ( मदालसा द्वारा अलर्क पुत्र को वर्ज्य - अवर्ज्य कर्मों का अनुशासन ), ५१.२६ ( दुःसह - कन्या नियोजिका की मनुष्यों को दुष्ट कर्मों में प्रवृत्त करने की प्रवृत्ति व उसके उपाय का कथन ), वराह ५ ( मोक्ष प्राप्ति हेतु कर्म या ज्ञान की श्रेष्ठता का प्रश्न : अश्वशिरा - कपिल संवाद ), २०३ ( कर्म विपाक का निरूपण ), वामन १२ ( नरक प्रापक कर्मों का वर्णन : सुकेशि - ऋषि संवाद ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४९.११ ( व्यवसाय के कर्मों का अधिपति होने का उल्लेख ), २.८९ ( निषिद्ध कर्म / आचार का कथन ), २.११३.३( प्राणियों में केवल मनुष्य द्वारा ही कर्मफल के भोग का कथन ), २.११६+ ( स्वर्ग व नरक प्रापक कर्म ), २.१२२ ( नरक से उद्धार करने वाले कर्म ), २.१३२ ( शान्ति कर्मों का वर्णन ), २.१५२ ( सांवत्सरिक कर्मों का कथन ), ३.२५+ ( अभिनय कर्म का वर्णन ), ३.११९ ( कर्मारम्भ में देवपूजा का विधान ), ३.२३७ ( सत्कर्म फल विवेक का वर्णन ), ३.३२१ ( विभिन्न लोकों की प्राप्ति हेतु कर्म ), शिव १.१७.६८( माहेश्वर लोक से नीचे कर्म भोग व ऊपर ज्ञान भोग आदि का कथन ), ५.५.३ ( मानसिक, वाचिक व कायिक दुष्कर्मों का वर्णन ), ५.२०.३८ ( इस पृथिवी/इयं के कर्म भूमि तथा स्वर्ग/असौ के फल भूमि होने का कथन ), ५.२१.३ ( ब्राह्मण आदि चार वर्णों में जन्म लेने के लिए अपेक्षित कर्मों का कथन ), ७.२.२२.४४ ( कर्म यज्ञ का कथन ), ७.२.३२ ( अभिचार आदि ऐहिक सिद्धि दायक कर्मों का कथन ), ७.२.३३ ( ऐहिक व लिङ्ग पूजा रूपी आमुष्मिक सिद्धि कर्मों का वर्णन ), स्कन्द १.१.३१.१३ ( शङ्कर की तुष्टि तप से, ब्रह्मा की कर्म से व विष्णु की यज्ञ, उपवास, व्रत आदि से होने का कथन ), १.२.४१.२१ ( अधर्म संज्ञक कर्म के १२ भेदों का निरूपण : करन्धम राजर्षि – महाकाल संवाद ), १.२.५१ ( दुष्कर्मों के फल का वर्णन : कमठ - आदित्य संवाद ), १.३.२.५ ( दुष्कर्मों के विपाक का वर्णन ), ४.१.८+ ( कर्म अनुसार लोक प्राप्ति ), ४.१.२२ ( मह, जन, तप आदि लोक प्रापक कर्म ), ५.३.१२३.१ ( कर्मदेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : गणेश की स्थिति, विघ्नों से मुक्ति आदि ), ५.३.१७१.२६ ( पूर्वकृत कर्म द्वारा कर्त्ता का अनुगमन करने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ १.१.५ ( कर्म का मोक्ष प्राप्ति में उपयोग : सुतीक्ष्ण - अगस्त्य संवाद ), २.४+ ( जीवन में पुरुषार्थ की प्रधानता, वर्तमान व पूर्व जन्म के पुरुषार्थों का फलीभूत होने में संघर्ष, दैव के मिथ्यात्व का प्रतिपादन ), ३.६५.१२( देह व कर्म में भेद न होने का कथन ), ३.९५+ ( कर्म के मन से एक्य का निरूपण : कर्म अनुसार मन के रूपों में परिवर्तन ), ६.२.२ ( कर्म वृक्ष का निरूपण :कर्म वृक्ष के बीज /मूल के दाह की आवश्यकता ), ६.२.८०.२२( रुद्र के ५ मुखों के ५ कर्मेन्द्रिय तथा ५ विषयों के १० भुजा होने का उल्लेख ), ६.२.१४२.२४ ( सृष्टि के आदि में कर्म का अभाव, तत्पश्चात् जीव की कर्म के अनुसार संसार में गति ; कर्म व अविद्या की अस्तित्वहीनता का निरूपण, परिज्ञान प्राप्ति पर कर्म बन्धन की शान्ति ), महाभारत शान्ति २४१, २४२.३( कर्म को करने व त्यागने की प्रहेलिका की व्याख्या ), २७०.३८( कर्मों से शरीर के पक्व होने का उल्लेख, कर्मों द्वारा कषायों के पक जाने पर रस ज्ञान के उत्पन्न होने का उल्लेख ), २९१(ज्ञानपूर्वक कर्म करने का निर्देश), २९६.३१( पराशर गीता के अन्तर्गत जाति या कर्म से दूषित होने का प्रश्न ), ३०३, ३२२, ३३१, अनुशासन ६.१९ ( पुरुषार्थ व दैव के संदर्भ में कर्म के महत्त्व का वर्णन ), १३.२ ( त्याज्य १० कर्मों का वर्णन ), १४५दाक्षिणात्य पृष्ठ५९८१ ( मत्यु पर कर्मों के अनुसार यमलोक के तीन मार्गों का कथन ), आश्वमेधिक ५१.३०( कर्म की निन्दा व विद्या की प्रशंसा ), लक्ष्मीनारायण १.७२ ( प्रेत योनि प्रापक कर्मों का कथन ), १.३६९+ ( स्वर्ग आदि ऊर्ध्वलोक प्रापक कर्म : सावित्री - यम संवाद ), १.३७१+ ( यमलोक प्रापक दुष्कर्मों का वर्णन : सावित्री - यम संवाद ), १.४२५.१२( ज्ञान के कर्म से श्रेष्ठ होने का उल्लेख ), १.५३३.६७( धर्माधर्म के शरीर में कर्मात्मक होने का उल्लेख ), २.१५.७१( कर्म फलों से मुक्ति के उपायों का वर्णन ), २.८३.५७ ( ज्ञान से कर्मों के व भक्ति से कर्मफलों के दाह का उल्लेख ), २.१५.७१( कर्म - फलों से मुक्ति के उपायों का वर्णन ), २.२४५.७९ ( कर्म द्वारा मन व वाक् की जय का निर्देश ;कर्म को सर्वार्पण करने का निर्देश ), २.२५०.५७ ( कर्म पाक का फल शरीर होने का कथन ? ), ३.१०९.६( मूर्धन्य कर्म के तप होने का उल्लेख ), ४.२६.५५ ( कुङ्कुमवापी तीर्थ में लोमशाश्रम की शरण से कर्म से मुक्ति का उल्लेख ) ; द्र. धर्मकर्म, श्रुतकर्म, सुकर्म । karma


      कर्ममोटी स्कन्द ७.१.१८९ ( कर्ममोटी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य : सर्व कामनाओं की प्राप्ति ) ।


      कर्मसेन कथासरित् १२.२.२९, १२.३.१, १२.३५.१० ( मृगाङ्कदत्त द्वारा राजा कर्मसेन की कन्या शशाङ्कवती को प्राप्त करने का उद्योग ) ।


      कर्षण ब्रह्माण्ड ३.४.१९.१७( चन्द्रमा की कामाकर्षणिका आदि १६ कलाओं के नाम ), स्कन्द ५.३.१०३.६३ ( रुद्र द्वारा सर्व जगत के कर्षण का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४३२.२९( कर्षण मुनि द्वारा कृष्ण नाम द्वारा दुष्ट व्याध के पापों का क्षालन ) ; द्र. संकर्षण ।karshana


      कल गणेश २.१०७.१० ( कल व विकल दैत्यों का महिष रूप धारण कर इन्द्रयाग में आगमन, गणेश द्वारा वध ),२.११८.६ ( सिन्धु असुर - सेनानियों कल - विकल का पुष्पदन्त व वृष / नन्दी से युद्ध, वीरभद्र द्वारा कल व विकल का वध ), नारद १.६३.१६ ( जीव पशु की तल, पाकल, सकल नामक तीन कलों का निरूपण ) । kala


      कलकल स्कन्द ५.१.८.८ ( कलकलेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : शिव द्वारा पार्वती को काली नाम से पुकारने पर पार्वती की कलह, कलकलेश्वर देव का प्रादुर्भाव आदि ), ५.२.१८ ( कलकलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : काली पुकारने पर उमा - महेश्वर की कलह से उत्पत्ति ), ५.२.४८.५टीका ( कालकेलि दानव का उपनाम, ब्रह्मा के अश्रुओं से उत्पत्ति ), ५.३.१५४ ( कलकलेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : अन्धक वध के पश्चात् प्रमथ गणों की कलकल ध्वनि ), ७.१.७५ ( कलकलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : देवों के हर्ष और ब्राह्मणों के कलह से नाम की सार्थकता, अन्य युगों में कलकलेश्वर के अन्य नामों का उल्लेख ) । kalakala


      कलङ्क गर्ग ७.३०.३ ( कालनेमि - पुत्र, रम्यक वर्ष में वास, प्रद्युम्न - सेनानी प्रघोष द्वारा कलङ्क का वध ) ।


      कलम्ब स्कन्द ७.१.३१० ( कलम्बेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : पातक नाशक ) ।


      कलरवी स्कन्द ५.२.४५ ( श्येन द्वारा कलरवी नामक कपोती का वध, कपोती द्वारा त्रिलोचनेश्वर लिङ्ग की परिक्रमा के प्रभाव से रत्नदीप नागराज की कन्या रत्नावली के रूप में जन्म लेना ) ।


      कलविङ्क भागवत ६.९.५ ( इन्द्र द्वारा विश्वरूप के वध पर विश्वरूप के सुरापायी शिर का कलविङ्क / गौरैया पक्षी बनना ), वायु ६९.३३६ ( कश्यप - पत्नी भासी से उत्पन्न पक्षिगणों में से एक ), योगवासिष्ठ ४.३२.१५( दाम - व्याल व कट के आख्यान में व्याल के कलविङ्क बनने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३३७.४१( शङ्खचूड - सेनानी, वरुण से युद्ध ) । kalavinka


      कलश अग्नि २६५.११ ( दिक्पाल स्नान में प्रयुक्त कलशों के भद्र , सिद्धार्थ, अमोघ आदि नाम ), पद्म ३.२६.७५ ( कलशी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), भविष्य २.२.५ ( कलश का स्वरूप व कलश स्थापना विधान ), ४.८३.२६ ( चार समुद्रों की कलश संज्ञा ), मत्स्य १९६.२७ ( कलशीकण्ठ : अङ्गिरा गोत्रीय एक ऋषि ), वामन ५७.७३ ( कलशोदर : यक्षों द्वारा कुमार को प्रदत्त गण ), ६८.३५ ( गणेश की कलश ध्वजा का उल्लेख ), लिङ्ग १.६५.११९ ( शिव सहस्रनामों में से एक ), स्कन्द ५.२.८१.२७ ( महाकालवन के ४ द्वारों पर चार कलश धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के प्रतीक होने का कथन ), ६.४९+ ( कलश नृप द्वारा दुर्वासा को मांस - दूषित भोजन प्रस्तुत करने से व्याघ्रत्व की प्राप्ति व मुक्ति की कथा ), ६.५१ ( कलशेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : नन्दिनी गौ से संवाद व लिङ्ग दर्शन पर कलश नृप की व्याघ्रत्व से मुक्ति व लिङ्ग के निकट तप से मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.३२१.७४ ( कलश के विभिन्न अङ्गों में ब्रह्मा, विष्णु , रुद्र आदि के वास का कथन ), १.४८९ ( कलश नृप द्वारा दुर्वासा को मांस - दूषित भोजन प्रस्तुत करने से व्याघ्रत्व की प्राप्ति व मुक्ति की कथा ), २.१४९.७३( मण्डप के द्वारों पर कलश पूजा विधि का वर्णन ), २.१५२.१( देवायतन स्थापना के संदर्भ में कलश स्थापना व पूजा विधि का कथन ), २.१६०.१ ( मण्डप पर कलशारोहण की विधि ), २.२२५.९३( ऋषियों को स्वर्णकलश दान का उल्लेख ), २.२७९.२३ ( कलश पूजा का माहात्म्य ), ३.१३२.५१ ( महाभूत रूपी कलश दान की विधि ), कथासरित् ९.४.१०८ ( समुद्रशूर नामक वणिक् का कलशपुर में आगमन व राजकन्या के हार के कारण बन्धन ); द्र. इन्दुकलश kalasha

      टिप्पणी : कलश या घट प्रतीक है चित्त या अवचेतना मन का जिसमें संस्कार संगृहीत होते हैं। - लक्ष्मीनारायण धूत, दैनिक भास्कर २४ अक्तूबर, २०००


      कलसी नारद २.६५.६३(कलशी तीर्थ का माहात्म्य), वामन ३६.१८ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत कलसी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : संसार दुर्ग से निस्तार ), वायु ५०.१८ ( प्रथम अधोतल में कलस नाग? के नगर का उल्लेख ) ।


      कलह पद्म ६.१०६ ( कलहा : भिक्षु ब्राह्मण - पत्नी, मृत्यु पर राक्षसी बनना, धर्मदत्त द्वारा तुलसी जल से उद्धार, जन्मान्तर में कैकेयी ?), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८५.११६ ( कलह युक्त मनुष्य के वायस बनने का उल्लेख ), मार्कण्डेय ५१.५१ ( कलहा : दन्ताकृष्टि व निर्मार्ष्टि - कन्या, कलहा शान्ति विधान का कथन ), स्कन्द २.४.२४ ( भिक्षु - पत्नी कलहा द्वारा दुष्ट चरित्र के कारण राक्षसी आदि योनियों की प्राप्ति, उद्धार, अन्त में कैकेयी? ), ५.१.८.९ ( शिव द्वारा पार्वती को काली पुकारने पर कलह, पार्वती द्वारा कलहनाशन कुण्ड में स्नान से कलह नाश का वर्णन ), ५.२.१८.३० ( काली व शिव के बीच कलह से कलकलेश्वर शिव की उत्पत्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४१२.८ ( दुःसह - भार्या ), १.४२४ ( कलहा : भिक्षु ब्राह्मण - पत्नी, मृत्यु पर राक्षसी बनना, धर्मदत्त द्वारा तुलसी जल से उद्धार, जन्मान्तर में कैकेयी? ), ३.९२.८८ ( चक्रवाकी के कलह धर्म का उल्लेख ), कथासरित् ४.३.३३ ( सिंहविक्रम राजसेवक की दुष्ट पत्नी कलहकारिणी का पति द्वारा त्याग ) । kalaha


      कला अग्नि ८३+ ( निर्वाण दीक्षा के अन्तर्गत विद्या, शान्ति आदि कलाएं ), ८४ ( दीक्षा में निवृत्ति कला का शोधन ), ८५ ( दीक्षा में प्रतिष्ठा कला का शोधन ), ८६ ( दीक्षा में विद्या कला का शोधन ), ८७ ( दीक्षा के अन्तर्गत शान्ति कला का वर्णन ), गरुड १.२१ ( शिव के पांच वक्त्रों से सम्बद्ध कलाएं ), गणेश २.१०.२७ ( चन्द्रमा द्वारा महोत्कट गणेश का चन्द्रकला नामकरण ), देवीभागवत ७.३०.७९ ( चन्द्रभागा तट पर देवी का कला नाम ), ७.३०.८३ ( चित्त में देवी का ब्रह्मकला नाम ), १२.११.३ ( पद्मरागमय शाला में स्थित ६४ कलाओं के नाम व स्वरूप ), नारद १.६५.२६ ( अग्नि, सूर्य व चन्द्रमा की कलाओं के नाम ), १.६६.१४० ( कला मातृका न्यास ), १.८८( षोडशी रूप राधा की १६ कलाओं तथा उनकी ३२ कलाओं के मन्त्र सहित ध्यान का वर्णन ), १.९१.८६ ( शिव की ३८ कलाएं ), पद्म ५.११२.२ ( देवरात - पुत्री, विश्वामित्र - पौत्री, शोण - भार्या कला के साथ मारीच राक्षस द्वारा पति का रूप धारण करके बलात्कार की चेष्टा व कला का वध, कला का मृत्यु के पश्चात् पार्वती की दासी बनना आदि ), ६.२२०.५१+ ( हेमाङ्गी - सखी, सखी को भूगोल का अद्भुत दर्शन कराना, हेमाङ्गी का पूर्व जन्म का स्मरण करना ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१७.४० ( शङ्कर के कृष्ण की कलाओं का ऋषभ होने का उल्लेख ), ४.५.३( १६ कलाओं के संदर्भ में १६ द्वारपालों का वर्णन ), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९४ ( ब्रह्मा, हरि, रुद्र, ईश्वर व शंकर की कलाओं के नाम ), ३.४.४४.५७ ( १६ स्वर शक्तियों में से १५ वीं कला नामक शक्ति ), भविष्य १.१४४.१२ ( सूर्य की तैजस कला प्राप्ति के लिए अपेक्षित कर्म का कथन : सकल व निष्कल सूर्य का निरूपण, क्षर - अक्षर सूर्य का सकल - निष्कल सूर्य से सम्बन्ध ), भागवत १.३.१( भगवान् द्वारा लोक सृष्टि हेतु १६ कलाओं से युक्त पुरुष रूप धारण करने का उल्लेख ), ३.२४.२२ ( कर्दम कन्या, मरीचि - पत्नी ), ४.१.१३ ( कश्यप व पूर्णिमा का पुत्र ), १०.४५.३६टीका ( ६४ कलाओं का नामोल्लेख ), विष्णु १.८.२९ ( विष्णु मुहूर्त्त रूप, लक्ष्मी कला रूप ), शिव २.५.८.११( कला का शिव के रथ में शम्या रूप होना ), ६.१५.९ ( शान्ति, विद्या, प्रतिष्ठा आदि कलाओं का तिरोभाव, संहार, स्थिति आदि चक्रों से सम्बन्ध का वर्णन ), ६.१६.५४ ( प्रणव की पांच कलाओं का शिव के ईशान आदि रूपों से सम्बन्ध ), ६.१६.८० ( विद्या, राग, काल आदि जीव की पांच कलाओं का कथन ), ७.१.२९.१२ ( मन्त्राध्वा आदि ६ अध्वों में से एक का नाम ; कलाओं से तत्त्वों की व्याप्ति ), ७.२.२०.३( ५ कलाओं का ५ दिशाओं में स्थित घटों में न्यास), ७.२.२२.३२ ( ईशान आदि शिव की कलाओं के न्यास का वर्णन ), ७.२.२९.२९( निवृत्ति आदि ५ कलाओं का ईशान तनु में न्यास ), स्कन्द ४.१.४१.११०( शरीर को नित्य सोम कला से पूर्ण करने पर तक्षक आदि के विष का भी प्रभाव न होने का उल्लेख ), ५.३.१९८.९१ ( चित्र तीर्थ में उमा की ब्रह्मकला नाम से स्थिति का उल्लेख ), ७.१.१९.६ ( त्रुटि, लव, निमेष आदि काल के १६ अवयवों में से चौथे अवयव का कला नाम ), ७.१.१९.३ ( चन्द्रमा की १६ कलाएं १६ तिथियों का रूप ), ७.१.११८.१३ ( चन्द्रमा रूपी श्रीकृष्ण की १६ कलाओं /१६ सहस्र भार्याओं के नाम ), ७.१.३४२.२ ( कला / अमृत कुण्ड में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य : तप फल की प्राप्ति ), वा.रामायण ५.३७.११ ( विभीषण - पुत्री, अशोक वाटिका में सीता से वार्तालाप ), महाभारत आदि १००.६८( अग्निहोत्र, त्रयी विद्या आदि के अपत्य की षोडशी कला के बराबर भी न होने का उल्लेख ), वन ११३.१८( एकादश विकारात्मा के कला सम्भार से सम्भृत होने का कथन ), शान्ति २६७.३४( कलियुग में धर्म की षोडशी कला ही शेष रहने का उल्लेख ), ३०४.४( सोम की षोडशी कला के महत्त्व का कथन ), ३१८.४१ ( तप के प्रकृति व अतपा के निष्कल होने आदि का कथन ), ३२०.१०७( पृथक् कला समूह के सामग्र्य से १६वें गुण के निर्माण का कथन ), ३२०.११६( अव्यक्त प्रकृति के कला द्वारा व्यक्तता को प्राप्त होने का कथन ), ३२०.१२२( सब भूतों में पृथक् अर्थ की कलाओं में क्षण - क्षण भेद होते रहने का कथन ),३३४.४०( १७ गुणों तथा १५ कलाओं से हीन होने पर ही मुक्त होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक ८९.३( द्रौपदी की तीन कलाओं का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२४८.५१ ( मरीचि - पत्नी कला का वरूथ शिष्य से समागम व मृत्यु, मरीचि ऋषि द्वारा एकादशी व्रत के पुण्य दान से पुन: जीवित करने का उद्योग ), १.३८२.२७( विष्णु के मुहूर्त व लक्ष्मी के कला होने का उल्लेख ), १.५०४.१( पूर्णकला ); द्र. चन्द्रकला, पूर्णकला, शतकला, शशिकला, सुकला । kalaa

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      कलाधर गणेश १.४१.६ ( गणेश का कलाधर / कलाधार विप्र का रूप धारण कर त्रिपुर के पास जाना ), स्कन्द १.३.२.२३.१ ( कलाधर विद्याधर का दुर्वासा शाप से गन्धमृग बनना, शोणाद्रि की प्रदक्षिणा से मुक्ति ) ।


      कलाप पद्म ३.२८.३ ( कलाप वन तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), भागवत ९.१२.६ ( कुश वंशीय मरु के कलाप ग्राम में वास का उल्लेख ), ९.२२.१७ ( शन्तनु - अग्रज देवापि द्वारा कलाप ग्राम में रहकर योगसाधना का उल्लेख ), १२.२.३७ ( वही), वराह १६२ ( कल्पग्राम वासी द्विज का जामाता से चरणों में शूद्रान्न जानकर आत्महत्या करना, जामाता का ब्रह्महत्या से मुक्ति पाने के लिए मथुरा में चक्रतीर्थ में जाना ), वायु ४१.४३ ( मन्दाकिनी नदी के पूर्व तट पर स्थित कलाप ग्राम में ऋषियों के आश्रमों का उल्लेख ), ४७.४७ ( गङ्गा द्वारा प्लावित आर्य जनपदों में से एक ), ६८.३८ ( १० देवगन्धर्वों में से एक ), विष्णु ३.१६.१७ ( पितरों द्वारा इक्ष्वाकु को कलाप ग्राम में प्रोक्त गाथा का कथन ), ४.२४.११८ ( देवापि व पुरु राजा के कलाप ग्राम में स्थित होकर योगसाधना का उल्लेख ), स्कन्द १.२.५.३२ ( नारद द्वारा उपयुक्त ब्राह्मण की खोज में कलाप ग्राम में गमन, कलाप ग्राम वासी सुतनु ब्राह्मण द्वारा नारद की प्रहेलिकाओं का उत्तर देना ), १.२.६.३२ ( बिल से होकर कलाप ग्राम जाने के मार्ग का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.३४७.४ ( कलाप ग्राम वासी द्विज द्वारा ब्रह्महत्या से मुक्ति पाने के लिए मथुरा में चक्र तीर्थ में जाने का वृत्तान्त ), कथासरित् १.७.१३ ( स्कन्द निर्मित कातन्त्र व्याकरण के कलाप उपनाम का कारण ), ८.३.४६ ( मय आदि सूर्यप्रभ - सेनानियों का कलाप ग्राम में स्थित होकर शत्रु की सेना का अवलोकन ), ८.४.३७ ( कलाप ग्राम की युद्ध के लिए उपयुक्त भूमि पर सूर्यप्रभ व श्रुतशर्मा की सेनाओं में युद्ध का वर्णन ) । kalaapa


      कलावती गर्ग १.३.३६ ( सुचन्द्र - पत्नी कलावती का कीर्ति रूप में अवतरण का उल्लेख ), १.८ ( पितरों की कन्या व सुचन्द्र - पत्नी कलावती का जन्मान्तर में वृषभानु - पत्नी कीर्ति बनना ), ब्रह्मवैवर्त्त १.२०.१२ ( द्रुमिल राजा की वन्ध्या पत्नी कलावती द्वारा कश्यप - पुत्र नारद के वीर्य से गर्भ धारण करके नारद पुत्र को जन्म देना ), ४.१७.१११ ( कान्यकुब्ज - अधिपति भनन्दन द्वारा यज्ञ कुण्ड से कलावती कन्या की प्राप्ति, मालावती द्वारा पालन, व्रजवासी वृषभानु की पत्नी बनकर राधा को जन्म देना ; पूर्व जन्मों का वृत्तान्त : पितरों की मानसी कन्या कलावती का हरि के अंश राजा सुचन्द्र की पत्नी बनना, पुन: ब्रह्मा के वरदान से जन्मान्तर में वृषभानु - पत्नी बनना ), भविष्य ३.२.२८ ( साधु व लीलावती - पुत्री, शङ्खपति - पत्नी ), ३.२.२९ ( सत्यनारायण व्रत कथा द्वारा पति की रक्षा ), मार्कण्डेय ६३.१४, ६४.५ ( पार मुनि व पुञ्जिकस्थला अप्सरा के समागम से उत्पन्न कन्या, मनोरमा - सखी, सोम की कलाओं से पालन, स्वरोचिष राजा का पति रूप में वरण करना ), शिव २.३.२.३० ( पितरों की कन्याओं मेना, धन्या व कलावती द्वारा सनकादि मुनियों का अनादर करने पर सनत्कुमार द्वारा कलावती को वृषभानु वैश्य - पत्नी कलावती बनने का शाप ), स्कन्द ३.३.१.३२ ( काशिराज - पुत्री, मथुराधिपति दाशार्ह की भार्या, पति द्वारा बलात् समागम की चेष्टा पर कलावती द्वारा प्राप्त शैव पञ्चाक्षरी विद्या के प्रभाव से पति के गात्र में दाह उत्पन्न होना ), ४.१.२९.४३ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ४.१.३३.९५ ( अनङ्गश्री - कन्या कलावती का राजा माल्यकेतु से विवाह, चित्रपटी दर्शन से कलावती को काशी में ज्ञानवापी में पूर्वजन्म का स्मरण होने का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में काशी में हरिस्वामी की सुन्दर कन्या सुशीला व विद्याधर कुमार की पत्नी ), ४.२.७६.८८, ४.२.७६.१३७ ( त्रिशिख नागराज की कन्या, रत्नावली की सखी, परिमलालय विद्याधर से विवाह, पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में चारायण - कन्या व नारायण - पत्नी, पुन: वानरों रूप में जन्म ), लक्ष्मीनारायण १.१७९.१७ ( पितरों की कन्याओं मेना, धन्या व कलावती द्वारा सनकादि मुनियों का अनादर करने पर सनत्कुमार द्वारा कलावती को वृषभानु वैश्य - पत्नी कलावती बनने का शाप ), १.२०२.८० ( द्रुमिल - पत्नी कलावती का नारद के तेज से गर्भ धारण करके नारद पुत्र को जन्म देने का वृत्तान्त ), १.२९८.६४ ( पितरों की कन्या कलावती का अधिक मास में षष्ठी व्रत के पालन से राधा को पुत्री रूप में प्राप्त करना ), १.३८५.४४(कलावती का कार्य : नासा विभूषण), १.४४७.५( काशिराज - कन्या कलावती का दाशार्हराज की पत्नी बनना, पति द्वारा कृष्ण - भक्ता कलावती का कामभाव से स्पर्श करने पर दाशार्हराज का दाहयुक्त होना ), १.४६०.३७ ( अनङ्गश्री - कन्या कलावती का राजा माल्यकेतु से विवाह, चित्रपटी दर्शन से कलावती को काशी में ज्ञानवापी में पूर्व जन्म का स्मरण होने का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में काशी में हरिस्वामी की सुन्दर कन्या सुशीला व विद्याधर कुमार की पत्नी ), १.४६७ ( कान्यकुब्ज - अधिपति भनन्दन द्वारा यज्ञ कुण्ड से कलावती कन्या की प्राप्ति, मालावती द्वारा पालन, व्रजवासी वृषभानु की पत्नी बनकर राधा को जन्म देना ; पूर्व जन्मों का वृत्तान्त : पितरों की मानसी कन्या कलावती का हरि के अंश राजा सुचन्द्र की पत्नी बनना, पुन: ब्रह्मा के वरदान से जन्मान्तर में वृषभानु - पत्नी बनना ), १.४६८ ( कलावती नर्तकी का शिव भक्ति से वसुभूति गन्धर्व की कन्या रत्नावली रूप में जन्म लेकर कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करना ), १.४७२ ( त्रिशिख नागराज की कन्या, रत्नावली की सखी, परिमलालय विद्याधर से विवाह, पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में चारायण - कन्या व नारायण - पत्नी, पुन: वानरों रूप में जन्म ), ४.१०१.९६ ( कृष्ण की ११२ मुख्य भार्याओं में से एक, कारुनाथ व चमत्कृति युगल की माता ), कथासरित २.१.३८ ( अयोध्या के राजा कृतवर्मा की रानी, सहस्रानीक की पत्नी मृगावती की माता, मृगावती के विवाह का प्रसंग ), ८.२.१८५ ( हिरण्याक्ष - पुत्र अमील की कन्या कलावती का सूर्यप्रभ - पत्नी बनना ), १५.२.३४ ( करालजिह्व - कन्या व मन्दरदेवी - सखी कलावती का सम्राट नरवाहनदत्त की पत्नी बनना ), १८.२.१११( ठिण्ठाकराल कितव / जुआरी द्वारा अलम्बुसा - कन्या कलावती अप्सरा को पत्नी रूप में प्राप्त करना, कलावती द्वारा पति को गोपनीय रूप से इन्द्र सभा में ले जाना, भेद खुलने पर इन्द्र द्वारा कलावती को देवमन्दिर में सालभञ्जिका / स्तम्भमूर्ति होने का शाप, पति ठिण्ठाकराल द्वारा कलावती की मुक्ति का उद्योग ) । kalaavati/ kalavati


      कलि / कलियुग कूर्म १.३० ( कलियुग में धर्म की स्थिति ), गणेश २.१४१.१५ ( कलियुग में आचार - विचार की स्थिति का वर्णन ), गरुड ३.१२.८३(कलि का दुर्योधन से तादात्म्य, कलि-भार्या अलक्ष्मी का कथन), ३.१६.६३(कलि की वायु से विपरीतता का कथन), ३.२९.१६(कलि – भार्या रूप में यम – भार्या श्यामला का वर्णन), गर्ग १.५०.३० ( कलि का दुर्योधन रूप में अवतरण ), ८.२.१७ ( निवातकवचों के राजा ), १०.६१ ( कलियुग में कृष्ण नाम कीर्तन की महिमा ), देवीभागवत ४.२२.३७ ( कलि का दुर्योधन रूप में अवतरण ), नारद १.४१ ( कलियुग में धर्म की स्थिति ), पद्म ७.१.१० ( कलिकाल में धर्म की दुरावस्था होने पर कर्मों को विष्णु को अर्पित करना एकमात्र मुक्ति का उपाय ), ब्रह्म १.१२२ ( कलियुग में धर्म की दुरावस्था का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२६.११ ( कलियुग में धर्म की स्थिति का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.५९.६ ( वरुण - पुत्र, वैद्य - भ्राता, सुरा, हिंसा व निकृति - पति, मद, नाक, विघ्नादि का पिता, सन्तति का वर्णन ), भविष्य ३.१.४.११ ( राजा प्रद्योत द्वारा म्लेच्छ यज्ञ में म्लेच्छों को नष्ट करने के पश्चात् कलि म्लेच्छ द्वारा विष्णु की आराधना, विष्णु द्वारा आदम व हव्यवती युगल द्वारा म्लेच्छ वंश वृद्धि होने का आश्वासन ), ३.१.५++ ( कलियुगीय इतिहास का आरम्भ ), ३.३.३२.२२२ ( पृथ्वीराज - आह्लाद व उदयसिंह के युद्ध के पश्चात् कलि द्वारा पृथ्वी का भार हरण करने वाले बलराम के अंश आह्लाद की स्तुति व आह्लाद को वर देना ), ३.४.८.३३ ( पांशुशर्मा द्विज द्वारा कलि के द्वारा प्रस्तुत फलों का तिरस्कार करने पर बन्धनग्रस्त होना, सूर्य की आराधना से बन्धन मुक्त होकर कलिञ्जर नगर में तप करके सूर्य से सायुज्य प्राप्त करना ), ३.४.९.४८ ( कलि चोर द्वारा जयदेव के धन का हरण व हस्त - पाद कर्तन करना, पुन: जयदेव को राज्याश्रय मिलने पर कलि द्वारा राजा के पास वैष्णव द्विज रूप धारी चोरों का प्रेषण, जयदेव की चोरों पर कृपा ), ३.४.२३.३२ ( कलि गन्धर्व द्वारा ब्राह्मण वेश धारण करके राजा पुष्यमित्र को श्राद्ध आदि के विषय में पथभ्रष्ट करने का प्रयत्न, राजा के दृढ रहने पर कलि का राजा पुष्यमित्र का मित्र बनना ), ३.४.२३.१०९ ( कलि का आधा भाग वज्रमय व आधा कोमल होने का उल्लेख, गुर्जर देश में सिंहिका आभीरी के गर्भ से राहु पुत्र के रूप में जन्म लेना ), ३.४.२४.३२ ( कलि की प्रार्थना पर वामन अवतार का भोगसिंह व केलिसिंह के रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर कलियुगी मनुष्यों का विस्तार करना , कलियुग के ४ चरणों में धर्म आचार की स्थिति का वर्णन ), ३.४.२५.१४ ( कलियुग के चतुर्थ चरणान्त में विष्णुयशा व विष्णुकीर्ति से विष्णु अवतार के जन्म का वृत्तान्त ), ४.१२२.१ ( कलियुग के शूद्र होने का उल्लेख ), भागवत १.१७ ( शूद्र रूप धारी कलि द्वारा गौ - वृषभ का ताडन, परीक्षित द्वारा दमन, कलि द्वारा वास स्थानों की प्राप्ति ), १२.१ ( कलियुग में राजवंशों का वर्णन ), १२.२ ( कलियुग में धर्म की स्थिति, कल्कि अवतार का वर्णन ), मत्स्य ५०.७२ ( कलियुग में राजाओं के नाम ), २७१ ( कलियुग में राजाओं के वंश ), मार्कण्डेय ५१.१ ( कलि की भार्या से उत्पन्न निर्माष्टि कन्या का दुःसह की भार्या बनकर सन्तान उत्पत्ति करना ), ६२.१९ ( वरूथिनी अप्सरा द्वारा कलि गन्धर्व के समागम के अनुरोध का तिरस्कार करने पर कलि द्वारा वरूथिनी के प्रिय मनुष्य ब्राह्मण का रूप धारण करके समागम, समागम से स्वारोचिष मनु के पिता स्वरोचि का जन्म ), वराह ७१.४० ( गौतम ऋषि द्वारा छल से मायामयी गौ प्रस्तुत करने वाले ब्राह्मणों को कलियुग में आचार - भ्रष्ट होने का शाप ), वामन ७५.२ ( बलि के राज्य में धर्म का वर्चस्व देखकर कलि / तिष्य का बिभीतक वन में पलायन ), वायु ६९.३ ( १६ मौनेय देवगन्धर्वों में से एक ), वा.रामायण ०.१ ( कलियुग में रामायण पाठ का महत्व ), विष्णु ४.२४ ( कलियुगी राजाओं के वंशों का वर्णन ), ४.२४.१०६ ( कलियुग आरम्भ समय में सप्तर्षि तारागणों की स्थिति ), ६.१ ( कलियुग में धर्म का निरूपण ), ६.२.१५ ( कलियुग में नाम कीर्तन का महत्व ), स्कन्द १.१.७.३२( कलि में भद्रेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ), १.२.४०.२४८ ( कलियुग के राजाओं का वर्णन ), २.२.३८.२६ ( कलियुग में धर्म की स्थिति का वर्णन ), २.७.२२.१६ ( कलियुग के दोषों का दर्शन कर धर्मवर्ण द्विज का विवाह न करने का निश्चय, पितरों द्वारा कलियुग की बाधा से मुक्ति के विकल्प का कथन, पितरों के प्रबोधन पर धर्मवर्ण का विवाह करना ), ३.२.३६.१६ ( कलियुग में धर्म की स्थिति, कान्यकुब्ज - अधिपति आम का कलियुग के आगमन पर बौद्ध धर्म ग्रहण करना व आम - पुत्री रत्नगङ्गा का जैन बनना, ब्राह्मणों की वृत्ति का लोप होना आदि ), ४.२.५७.९९ ( कलि प्रिय विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य : तीर्थ - द्रोहियों में कलह उत्पन्न करना ), ४.२.८४.७५ ( कलि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : कलि काल से निर्भयता ), ५.३.१५५.६० ( कलि : चित्रगुप्त का विशेषण ? ), ७.१.१३.१० ( कलियुग में अवतीर्ण सूर्य का अर्कस्थल नाम ), ७.४.१.१६ ( द्वापर के पश्चात् कलियुग से भयभीत असित - देवल आदि ऋषियों द्वारा प्रह्लाद से कलियुग में विष्णु का पृथ्वी पर निवास स्थान पूछना, प्रह्लाद द्वारा द्वारका में केशव के वास का कथन ), ७.१.४.१३ ( दुर्वासा को दिए गए वचन/ वर के कारण कृष्ण का कलियुग में द्वारका में वास ), हरिवंश १.४१.१६९ ( कलियुग में कल्कि अवतार के पश्चात् कृतयुग की प्रवृत्ति ), ३.३+ ( व्यास द्वारा जनमेजय को कलियुग में धर्म / आचार की दुरावस्था का वर्णन ), महाभारत शान्ति २६७.३४( कलियुग में धर्म की षोडशी कला ही शेष रहने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२१५+ ( कलियुग में धर्म की स्थिति का वर्णन ), १.२१८.१०३ ( कलियुग में पापी मनुष्यों के उद्धार के लिए द्वारका का महत्त्व ), ४.१०४ ( कलि के दोषों व मोक्ष साधनों का वर्णन ), ४.१०७ ( वही) ; द्र. युग kali/kaliyuga

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      कलिक वा.रामायण ०.४ ( कलिक व्याध की उत्तङ्क ऋषि से रामायण कथा श्रवण से मुक्ति ) ।


      कलिका भविष्य ३.४.४.१३ ( राजा कालिवर्मा द्वारा कालिका देवी - प्रदत्त पुष्प कलिकाओं से नगर को सजाना, नगर का कलिकाता नाम होना ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२२ ( कृष्ण - पत्नी, विकासास्य व प्रफुल्लिका युगल की माता ), कथासरित् १४.४.१७८ ( कालकूट के स्वामी विद्याधर की कन्या, वायुवेगयशा की सखी, नरवाहनदत्त से विवाह ) । kalikaa


      कलिङ्ग गर्ग ७.५.१३ ( कलिङ्ग देश पर प्रद्युम्न की विजय का वर्णन ), नारद १.९.११३ ( कलिङ्ग देश वासी गर्ग ऋषि द्वारा हरिनाम कीर्तन व गङ्गा जल से राक्षस योनि प्राप्त राजा कल्माषपाद / मित्रसह का उद्धार करना ), १.५६.७४१( कलिङ्ग देश के कूर्म के बाहु रूप होने का उल्लेख ), पद्म ६.२१६ ( कलिङ्ग राजा का दुष्ट वृत्ति के कारण शाप से महिष बनना, बदरी तीर्थ में मुक्ति ), ६.२१७ ( कालिङ्ग चाण्डाल की हरिद्वार में मृत्यु पर मुक्ति की कथा ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४२ ( मध्य देश के जनपदों में से एक ), १.२.१६.५७ (दक्षिणपथ के देशों में से एक ), २.३.१३.१३ ( कलिङ्ग देश की पश्चिम सीमा पर स्थित माल्यवान पर्वत का माहात्म्य ), २.३.१४.३३ ( श्राद्ध हेतु वर्जित स्थानों में से एक ), २.३.७४.१९८ ( कलियुग में कलिङ्ग पर गुह के शासन का उल्लेख ), भविष्य ३.३.३२.१८१ ( पृथ्वीराज - सेनानी कलिङ्ग का कालीवर्मा से युद्ध ), मत्स्य ४८.७७ ( दीर्घतमा ऋषि के वीर्य से बलि - पत्नी सुदेष्णा द्वारा उत्पन्न पांच क्षेत्रज पुत्रों में से एक, पुत्रों के उत्पन्न होने का वृत्तान्त ), ९६.५ ( कालधौत / सुवर्णमय १६ फलों में से एक ), ११४.३६ ( मध्य देश के जनपदों में से एक ), ११४.४७ ( दक्षिणपथ के देशों में से एक ), १८६.१२ ( कलिङ्ग देश की पश्चिम सीमा पर अमरकण्टक पर्वत की स्थिति का उल्लेख ), लिङ्ग २.१.२३ ( कलिङ्ग राजा द्वारा कौशिक व कौशिक - शिष्यों को गान के लिए बाध्य करना ), वराह १३७.७८, १३७.२२५ ( गृध्र का वटमूल में मृत्यु को प्राप्त करके कलिङ्ग का राजा बनना ), वायु ३६.२२ ( मानसरोवर व मेरु के दक्षिण में स्थित पर्वतों में से एक ), ४२.२८ ( अलकनन्दा नदी द्वारा प्लावित पर्वत शिखरी में से एक ),४५.१२५ ( दक्षिण पथ के देशों में से एक ), ५८.११० ( कृतयुग के प्रथम पुरुष का कलिङ्ग में उत्पन्न होने का उल्लेख ), ७७.१३ (कलिङ्ग देश की पश्चिम सीमा पर अमरकण्टक पर्वत की स्थिति का उल्लेख ), ७८.२३ ( श्राद्ध हेतु वर्जित स्थानों में से एक ), ९९.८५( दीर्घतमा ऋषि के वीर्य से बलि - पत्नी सुदेष्णा द्वारा उत्पन्न पांच क्षेत्रज पुत्रों में से एक, पुत्रों के उत्पन्न होने का वृत्तान्त ), ९९.३२४ ( कलियुग में ३२ कलिङ्ग राजाओं का उल्लेख ), ९९.३८६ ( कलियुग में कलिङ्ग पर गुह के शासन का उल्लेख ), विष्णु ३.७.९ ( कलिङ्गदेशीय ब्राह्मण द्वारा भीष्म को यम गीता का कथन ), ५.२८.२४ ( रुक्मी वध प्रसंग में बलराम द्वारा कलिङ्गराज का दन्त भञ्जन ), शिव २.१.१८.३९ ( शिव मन्दिर में दीपदान के पुण्य से गुणनिधि विप्र चोर का कलिङ्ग -अधिपति अरिन्दम का पुत्र दम बनना ), स्कन्द ३.३.४.३५ ( राजा विमर्दन की पत्नी कुमुद्वती का जन्मान्तर में कलिङ्ग राजा की पुत्री बनकर सौराष्ट्र राजा की पत्नी बनना ), ४.१.१३.१२० ( शिव मन्दिर में दीपदान के पुण्य से गुणनिधि विप्र चोर का कलिङ्ग - अधिपति अरिन्दम का पुत्र दम बनना ), ४.१.२८.३९ ( कलिङ्ग देश के वाहीक नामक दुराचारी द्विज का मृत्यु पश्चात् गङ्गा में अस्थि पतन से नरक से मुक्त होकर स्वर्ग को जाना ), ५.२.६९.२ ( कलिङ्ग राज्य में राजा सुबाहु के शिर दर्द व पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), ७.३.२२ ( बाष्कलि उपनाम वाले जरा - मरण रहित कलिङ्ग दानव पर देवों द्वारा श्रीमाता देवी की आराधना से विजय प्राप्त करना ), लक्ष्मीनारायण ३.५८.२१ ( कौशिक आदि वैष्णव भक्तों द्वारा कलिङ्ग राजा के राज्याश्रय के प्रस्ताव को अस्वीकार करना ), कथासरित् ६.१.१२ ( तक्षशिला नगरी के बौद्ध राजा कलिङ्गदत्त द्वारा वैश्य - पुत्र के प्रतिबोधन का वृत्तान्त ), ७.२.१३ ( मुनि के शाप से गन्धर्व का कलिङ्ग देश में श्वेतरश्मि नामक गज के रूप में जन्म लेकर राजा रत्नाधिपति का वाहन बनना ), १२.८.८४ ( कलिङ्ग देश के राजा कर्णोत्पल के दन्तवैद्य की कन्या पद्मावती के विवाह का वृत्तान्त ), १३.१.१७( कलिङ्ग का शब्दार्थ : कलि से रहित? ), १८.४.१, १८.४.१४.१, १८.५.२७ ( कलिङ्ग राजा की पुत्री कलिङ्गसेना के राजा विक्रमादित्य से विवाह का वृत्तान्त ) । kalinga


      कलिङ्गसेना कथासरित् ६.२.१, ६.२.९७ ( राजा कलिङ्गदत्त की रानी तारादत्ता से कलिङ्गसेना कन्या का जन्म, कन्या जन्म से राजा का विषादग्रस्त होना व बौद्ध आचार्य से कथाओं के रूप में उपदेश श्रवण ), ६.२.९७+ ( कलिङ्गसेना का मयासुर - कन्या सोमप्रभा की सखी बनकर यन्त्रमय पुत्तलिकाओं से क्रीडा करना ), ६.४.१ ( मदनवेग विद्याधर का कलिङ्गसेना पर आसक्त होकर उसे प्राप्त करने के लिए तप करना, शिव से वर प्राप्ति ), ६.५.१ ( कलिङ्गसेना द्वारा वृद्ध राजा प्रसेनजित् से विवाह को अस्वीकार करना, वत्सराज उदयन पर आसक्ति ), ६.६.१ ( वत्सराज उदयन के मन्त्री की युक्तियों से उदयन का कलिङ्गसेना से विवाह न करने का निश्चय ), ६.७.१६७ (मदनवेग विद्याधर द्वारा वत्सराज उदयन का रूप धारण करके कलिङ्गसेना से समागम, कालान्तर में पति - पत्नी बनना ), ६.८.१ ( मदनवेग - भार्या कलिङ्गसेना द्वारा वत्सराज उदयन की कामासक्ति का तिरस्कार ), ६.८.४५ ( कलिङ्गसेना द्वारा प्रसूत पुत्र का प्रजापति द्वारा हरण व पुत्र के स्थान पर अयोनिजा कन्या रति को रखना, मदनमञ्चुका नामक कन्या का कालांतर में नरवाहनदत्त से विवाह ), १८.४.१, १८.४.१४१, १८.५.२७ ( कलिङ्ग राजा की पुत्री कलिङ्गसेना के राजा विक्रमादित्य से विवाह का वृत्तान्त ) । kalingasenaa


      कलिङ्गभद्रा भविष्य ४.१०३ ( दिलीप - पत्नी कलिङ्गभद्रा द्वारा कृत्तिका व्रत के पारण से मृत्यु के पश्चात् जाति स्मरण रखने वाली अजा व अहल्या - पुत्री के रूपों में जन्म, कृत्तिका व्रत से मुक्ति की प्राप्ति ) ।


      कलिञ्जर भविष्य ३.४.४.४ ( शक्ति द्वारा राजा परिहर के लिए चित्रकूट पर कलिञ्जर नगर का निर्माण ) ; द्र. कालञ्जर kalinjara


      कलिन्द पद्म ४.२१.२६ ( कलिन्दक : कार्तिक व्रत में कलिन्दक भोजन के गोवध तुल्य होने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.८.३७ ( प्रांशुशर्मा द्विज द्वारा कलि द्वारा प्रस्तुत कलिन्द / बिभीतक वृक्ष के फलों को अस्वीकार करने का वृत्तान्त ) । kalinda


      कलिप्रिया पद्म ४.२०.११ ( शङ्कर वृषल विप्र की जारासक्त भार्या कलिप्रिया द्वारा पति की हत्या, कार्तिक में राधा - दामोदर की आराधना से विष्णु लोक की प्राप्ति ) ।


      कलिभोजन भविष्य ३.२.६.१४ ( कलिभोजन नामक रजक द्वारा चण्डिका की आराधना से कामाङ्गी कन्या को पत्नी रूप में प्राप्त करके चण्डी को स्वशिर अर्पित करने व पुनर्जीवित होने का वृत्तान्त ) ।


      कलुषा पद्म ६.१२२.७४ ( श्रावण शुक्ल द्वितीया की कलुषा संज्ञा के कारण का वर्णन )


      कल्कि अग्नि १६.८ ( विष्णुयशा - पुत्र कल्की द्वारा याज्ञवल्क्य के पौरोहित्य के अन्तर्गत म्लेच्छों का नाश ), गर्ग ५.१५.३३ ( कल्कि अवतार की शक्ति कृति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७३.१०४ ( प्रमिति नामक विष्णु के अंश से उत्पन्न दशम कल्कि अवतार द्वारा म्लेच्छों का वध आदि ), ३.४.२९.१३३ ( ललितादेवी के वाम हस्त पद्म के कनिष्ठिका के नख से कल्कि की उत्पत्ति, कल्कि द्वारा म्लेच्छों का संहार ), भविष्य ३.४.२५.१४ ( संभल ग्राम में विष्णु - भक्त दम्पत्ति विष्णुयशा व विष्णुकीर्ति से कल्कि का प्राकट्य, देवों द्वारा स्तुति, देवों के अनुरोध पर कल्कि द्वारा १४ कल्पों के विस्तार का वर्णन ), ३.४.२५.८९ ( कल्कि की वैवस्वत मन्वन्तर में तुला राशि में उत्पत्ति ), ३.४.२६.२ ( कल्की भगवान् का दिव्य अश्व पर आरूढ होकर म्लेच्छों आदि का संहार करना, कल्कि के शरीर से चार वर्णों की उत्पत्ति, वैवस्वत मनु का कल्कि को नमस्कार करके अयोध्या का राज्य संभालना ), ३.४.२६.२१ ( कल्की भगवान् के अदृश्य होने पर दैत्यों का देवों से युद्ध ), भागवत १.३.२५ ( कल्कि का विष्णुयश के पुत्र रूप में २२वां अवतार ), १२.२.१८ ( कल्कि का देवदत्त नामक अश्व पर आरूढ होकर दस्युओं का संहार, कल्कि के अवतार के साथ ही सत्ययुग का आरम्भ ), मत्स्य ४७.२४८ ( दशम अवतार कल्की द्वारा व्यास व याज्ञवल्क्य के पौरोहित्य के आधीन पाखण्डियों आदि का नाश ), लिङ्ग १.४०.५१ ( कलि के अन्तिम चरण में प्रमिति नामक अवतार का चन्द्र गोत्र में जन्म लेकर म्लेच्छों का संहार करना ), वराह ४८ ( कल्कि द्वादशी व्रत विधि व माहात्म्य : राजा विशाल का कल्कि द्वादशी व्रत के प्रभाव से चक्रवर्ती बनना ), ४८.२२ ( शत्रुघात के लिए कल्कि के यजन का उल्लेख ), वायु ९८.१०४ ( प्रमिति नामक विष्णु के अंश से उत्पन्न दशम कल्कि अवतार द्वारा म्लेच्छों का वध आदि ), स्कन्द ५.३.१५१.२७ ( कल्कि अवतार के जन्म के समय की परिस्थितियों का कथन ), हरिवंश १.४१.१६४ ( कल्कि का १२वें अवतार के रूप में शम्भल ग्राम में याज्ञवल्क्य सहित प्राकट्य ) । kalki

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      कल्प अग्नि ३२१+ ( अघोर अस्त्र आदि शान्ति कल्प का वर्णन ), नारद १.५१.२ ( नक्षत्र, वेद, संहिता, आङ्गिरस व शान्ति नामक पांच कल्पों के अन्तर्गत कर्म विधान का वर्णन ), १.५१.९ ( गृह्य कल्प विधान का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.१३ ( ब्राह्म कल्प में मधु - कैटभ के मेद से मेदिनी का निर्माण, वाराह कल्प में वाराह द्वारा पृथ्वी का रसातल से उद्धार, पाद्म कल्प में नाभि पद्म से ब्रह्मा के आविर्भाव का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.१.४ ( पुरुष द्वारा सत्, रज, तम के माध्यम से लोक कल्पन का वर्णन ), १.२.६.५ ( पूर्व व अपर कल्प की प्रतिसन्धि की प्रत्याहार संज्ञा, कल्पवासी वैमानिक देवों का कल्प - कल्प में ऊर्ध्वगमन करके आनन्द ब्रह्म को प्राप्त करना, कल्पादि में सृष्टि व कल्पान्त में संहार का वर्णन ), १.२.३३.५३( पुराकल्प की परिभाषा ), ३.४.३२.१८ ( कल्पा : महाकाल के चार द्वारपालों में से एक ), भविष्य १.१७+ ( प्रतिपदा कल्प का वर्णन : कृष्ण व शुक्ल प्रतिपदा तिथियों में ब्रह्मा की अर्चना का विधान ), १.१९+ ( द्वितीया , तृतीया आदि तिथियों के कल्पों का वर्णन ), ३.३.९.३१ ( देशराज - भार्या देवकी द्वारा मूल गण्डान्त में उत्पन्न पुत्र चामुण्ड का कल्प क्षेत्र में कालिन्दी में त्याग ), ३.४.६.४३ ( कल्प आख्यान के अन्तर्गत १२ मासों के १२ आदित्यों, ११ रुद्रों , ८ वसुओं व अश्विनी द्वय के कलियुग में अंशावतारों का वर्णन ), ३.४.९.२० ( कलियुग में कल्पदत्त के पुत्र धन्वन्तरि द्वारा कल्पवेद / आयुर्वेद की सृष्टि का वृत्तान्त ), ३.४.९.२१(रोग से क्षयित देह का काल्प नाम), ३.४.२५.२४( अजा की बाहुओं से उत्पत्ति के संदर्भ में कल्पों का कथन ), ३.४.२५.५० ( कल्कि अवतार - प्रोक्त कूर्म, मत्स्य, वाराह आदि १८ कल्पों के नाम ), ३.४.२५.७८ ( युगान्त में कर्म भूमि का लय होने पर कल्प संज्ञा, मनु के अन्त में सर्वभूमि का प्रलय होने पर कल्पक संज्ञा, पुराण पुरुष के दिनान्त पर प्रलय होने पर मुख्य कल्प संज्ञा ), ३.४.२५.९७ ( १० अतीत व एक वर्तमान महाकल्पों का वर्णन ), भागवत ४.१०.१ ( ध्रुव व भ्रमि के कल्प व वत्सर पुत्रों का उल्लेख ), मत्स्य ६.२६ ( विप्रचित्ति व सिंहिका के १३ पुत्रों में से एक ), ५३.१६( विभिन्न पुराणों के विभिन्न कल्पों से सम्बन्धों का कथन ), ९७ ( आदित्यवार कल्प व्रत विधान का वर्णन ), १०१.५० ( कल्प व्रत विधि : कल्पवृक्ष का दान ), २९०.३ ( श्वेत आदि ३० कल्पों के नाम, कल्पों के संकीर्ण, तामस आदि ५ भेदों का कथन, कल्पानुसार पुराण की रचना व श्रवण का माहात्म्य ), लिङ्ग १.२३.२ ( श्वेत आदि कल्पों में शिव के स्वरूप का वर्णन ), वायु २१.२६+ ( भव आदि ३३ कल्पों के स्वरूपों का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.७६+ ( कल्पान्त में प्रलय व सृष्टि का वर्णन ), १.७८+ ( कल्पान्त प्रलय काल में मार्कण्डेय व ब्रह्मा द्वारा शिशु के उदर में ब्रह्माण्ड के दर्शन ), २.५.४(नक्षत्र आदि ५ कल्पों के नाम), ३.७३.४४ ( कल्प नामक वेदाङ्ग के ब्रह्मा अधिदेवता का उल्लेख ), ३.२१६ ( सुगति पूर्णिमा /व्रत विधि व माहात्म्य का वर्णन ), ३.३०७ ( घृतधेनु कल्प / व्रत विधि व माहात्म्य का वर्णन ), स्कन्द २.१.३६.३४ ( श्वेत वाराह कल्प में १४ मन्वन्तरों के पश्चात् कल्पान्त प्रलय व सृष्टि का वर्णन ), ५.२.५ ( अनादिकल्पेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : ब्रह्मा व विष्णु द्वारा लिङ्गान्त दर्शन की स्पर्धा की कथा ), ५.२.७०.१० ( कल्प ऋषि द्वारा राजा दुर्धर्ष को स्वकन्या प्रदान करना, राक्षस द्वारा कन्या हरण पर राजा को महाकाल वन में लिङ्ग पूजा का निर्देश ), ५.३.५+ ( ब्राह्म कल्प में शिव - पार्वती के स्वेद से उत्पन्न नर्मदा कन्या का परवर्ती सात कल्पों में अमरत्व का वर्णन ), ५.३.१३.४१ ( कपिल आदि १४ पूर्व कल्पों व मयूर आदि ७ अपर कल्पों में नर्मदा की अमरता का वर्णन ), ७.१.७.१३ ( कल्प - कल्प में ब्रह्मा, शिव व पार्वती के नाम ), ७.१.१०५.४५ ( श्वेत आदि ३० कल्पों के नाम ), हरिवंश १.८.२१ ( ब्रह्मा के दिवस के काल की कल्प संज्ञा ), महाभारत शान्ति १६०.२९( गृह त्याग कर मोक्ष मार्ग का आश्रय लेने पर तेजोमय लोकों द्वारा कल्पन करने का उल्लेख ), १६७.२६( धर्मयुक्त मनुष्य पर सभी का विश्वास होने पर सर्व का कल्पन हो जाने का उल्लेख ), २८०.६२( कल्पान्त में भगवान् के जल में शयन करने का उल्लेख ), ३०२.१४( १२ हजार युगों का एक चतुर्युग/कल्प होने का उल्लेख ), ३४०.६२( देवों द्वारा यज्ञ में नारायण के लिए भागों का कल्पन करने पर नारायण द्वारा देवताओं को वही- वही भाग प्राप्त होने का वरदान ), ३४२.९९( अथर्ववेद के पञ्च कल्पात्मक होने का उल्लेख ),योगवासिष्ठ ६.२.१४०+ ( योग में दृष्ट कल्पान्त प्रलय व सृष्टि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२१४.४ ( वाराह, भव आदि ३४ कल्पों के नाम ; तु. : वायु पुराण ), १.३४८.८७( कल्प ग्राम में वराह विष्णु के वास का उल्लेख ), ३.२.४० ( ब्राह्म आदि कल्पों के नाम ) । kalpa

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      कल्पना स्कन्द ६.२६३.१३ ( योगी द्वारा कल्पना पर विजय से सौत्रामणी यज्ञ के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.२.१.३ ( अहंभावना, पदार्थ रस आदि का नाम ) । kalpanaa


      कल्पवृक्ष नारद २.५५.२३ ( कुरुक्षेत्र में कल्पवृक्ष रूपी न्यग्रोध वृक्ष की पूजा विधि व माहात्म्य ), पद्म २.१०२.३४ ( पार्वती द्वारा नन्दनवन में कल्पवृक्ष के परीक्षण हेतु अशोकसुन्दरी नामक सर्वाङ्गसुन्दर स्त्री को उत्पन्न करना, कालान्तर में अशोकसुन्दरी का नहुष की पत्नी बनने का वृत्तान्त ), ६.८८.१ ( कृष्ण द्वारा सत्यभामा रानी हेतु स्वर्ग से कल्पवृक्ष के हरण का वृत्तान्त, जन्म - जन्म में कल्पवृक्ष प्राप्ति हेतु सत्यभामा द्वारा कृष्ण सहित कल्पवृक्ष का तुला दान करना ), ब्रह्म १.५७.१६ ( विभिन्न युगों में कल्प वृक्ष के प्रमाणों का कथन ),भविष्य ४.१७८.१२ ( पुत्रहीन व्यक्ति के लिए स्वर्ण निर्मित कल्पवृक्ष दान विधि व माहात्म्य : पार्वती - शिव संवाद ), मत्स्य २७७ ( कल्पवृक्ष दान विधि व माहात्म्य ), मार्कण्डेय ४९.२७,४९.५४ (सत्ययुग में गृह संज्ञक कल्पवृक्षों द्वारा मनुष्य की कामनाओं की पूर्ति, कालान्तर में कल्पवृक्षों के नष्ट होने पर मनुष्य द्वारा कल्पवृक्षों की शाखाओं की अनुकृति के अनुसार शालाओं का निर्माण ), लिङ्ग १.३९.२२ ( कृतयुग में सर्व कामना दायक गृह संज्ञक कल्पवृक्षों का कालान्तर में मनुष्यों द्वारा बलात् सेवन के कारण नष्ट होना, क्षुधा पीडित मनुष्यों का वृष्टि से उत्पन्न औषधियों के सेवन से जीवन यापन करना ), २.३३ ( रत्ननिर्मित कल्पपादप दान की विधि ), स्कन्द ४.२.५८.१६१ ( कल्प वृक्ष का शिव के रथ में ध्वज रूप होना ), ४.२.८२.६१ ( मित्रजित् राजा द्वारा पोत पर स्थित कल्पवृक्ष के दर्शन का वृत्तान्त ), ४.२.८७.६३ ( कल्पवृक्ष द्वारा दक्ष के यज्ञ में समित् व कुशाओं का भरण ), ५.२.८३.२ ( ब्रह्मा के ध्यान से बिल्व सहित कल्पवृक्षों की उत्पत्ति, बिल्व वृक्ष के नीचे स्थित बिल्व राजा का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.३०१.२० ( सृष्टि आरम्भ में कल्पवृक्ष की विद्यमानता के कारण अग्नि व अग्नि - पुत्र सुवर्ण की उपेक्षा होना, कालन्तर में कल्पवृक्ष के लीन होने पर सुवर्ण की कल्पद्रुम के रूप में प्रतिष्ठा होना ), १.३०६.३१( पुरुषोत्तम मास की चर्तुदशी माहात्म्य प्रसंग में कल्पद्रुम की कन्या श्री द्वारा कल्पपादपों से फल संगृहीत कर कृष्ण को अर्पित करना व कृष्ण - पत्नी बनना ), १.४४१.९३ ( वृक्ष रूपी कृष्ण के दर्शन हेतु श्रीवत्स का कल्पवृक्ष बनना ), ३.२७.२ ( कल्पद्रुम वत्सर में यम द्वारा मारित कुबेर के उज्जीवनार्थ स्वर्ण नारायण का प्राकट्य ), ३.१२७.१ ( कल्प वृक्ष दान विधि व माहात्म्य ), कथासरित् ४.२.१९ ( जीमूतकेतु विद्याधर द्वारा कल्पवृक्ष की कृपा से जीमूतवाहन नामक पुत्र प्राप्त करना, जीमूतवाहन द्वारा कल्पवृक्ष को याचकों के लिए दान करना, कल्पवृक्ष का निष्प्रभावी होना ), १२.५.२१८ ( दान पारमिता की कथा : मलयप्रभ राजा के पुत्र का प्रजा के हित के लिए तप द्वारा कल्पवृक्ष बनना ), १२.१९.४१, १२.१९.१०८ ( राजा यशकेतु द्वारा यान्त्रिक कल्पवृक्ष पर आरूढ होकर दर्शन देने वाली मृगाङ्कवती कन्या को प्राप्त करने की कथा ), १२.२३.७ (जीमूतवाहन द्वारा कल्पवृक्ष को याचकों के लिए दान करने पर कल्प वृक्ष का अदृश्य होकर स्वर्ग जाना ) । kalpavriksha


      कल्पलता भविष्य ४.१७९.६ ( महाकल्पलता दान विधि व माहात्म्य ), मत्स्य २८६ ( वही), लक्ष्मीनारायण ३.१३१.१ ( महाकल्प लता दान विधि व माहात्म्य ), ३.१३१.२६ ( कल्पप्रिया / पत्नी दान विधि व माहात्म्य ) ।


      कल्माष भविष्य १.७६.१८, १.१२४.२५ ( सूर्य के द्वारपाल व पक्षी प्रेतों के अधिपति २ पक्षियों की संज्ञा ), हरिवंश २.१२२.३० ( स्वाहाकार नामक ५ अग्नियों में से एक ) । kalmaasha


      कल्माषपाद पद्म १.८.१५२ ( ऋतुपर्ण - पुत्र, सर्वकर्मा - पिता ), ब्रह्माण्ड १.१.२.११ ( शक्ति मुनि द्वारा नैमिष नामक स्थान पर कल्माषपाद को शाप, नैमिष क्षेत्र की महिमा का प्रसंग ), २.३.६३.१७६ ( सुदास या हंसमुख - पुत्र सौदास की कल्माषपाद व मित्रसह संज्ञा, ऋतुपर्ण - प्रपौत्र, वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद के क्षेत्र में अश्मक पुत्र उत्पन्न करने का उल्लेख ), भागवत ९.९.१८ ( सुदास - पुत्र, ऋतुपर्ण - प्रपौत्र, सौदास राजा द्वारा कल्माषपाद नाम प्राप्ति का कारण, वसिष्ठ के शाप से राक्षस बनने के पश्चात् वसिष्ठ - पुत्र शक्ति के भक्षण आदि का वर्णन, अश्मक पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त ), मत्स्य१२.४६ ( ऋतुपर्ण - पुत्र, सर्वकर्मा - पिता , इक्ष्वाकु / सगर वंश ), लिङ्ग १.६४.१ ( रुधिर / कल्माषपाद राक्षस द्वारा विश्वामित्र की प्रेरणा से वसिष्ठ - पुत्र शक्ति का भक्षण करने पर वसिष्ठ व अदृश्यन्ती का विलाप ), वायु २.११ ( शक्ति मुनि द्वारा नैमिष नामक स्थान पर कल्माषपाद को शाप, नैमिष क्षेत्र की महिमा का प्रसंग ), ८८.१७६ ( सुदास या हंसमुख - पुत्र सौदास की कल्माषपाद व मित्रसह संज्ञा, ऋतुपर्ण - प्रपौत्र, वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद के क्षेत्र में अश्मक पुत्र उत्पन्न करने का उल्लेख ), वा.रामायण १.७०.४० ( रघु - पुत्र, शङ्खण - पिता, प्रवृद्ध नाम, इक्ष्वाकु / सगर वंश ), विष्णु ४.४.५७ ( वसिष्ठ को शाप देने को उद्धत राजा सौदास का स्व संकल्पित जल से कल्माषपाद बनने का वृत्तान्त, वन में शक्ति का भक्षण करने पर शक्ति - पत्नी से शाप प्राप्ति ), स्कन्द ३.३.२.३७ ( राजा मित्रसह / सौदास द्वारा कल्माषपाद नाम प्राप्ति का वृत्तान्त, राजा का वसिष्ठ ऋषि के शाप से प्राप्त राक्षस योनि से मुक्त होकर गौतम ऋषि से गोकर्ण क्षेत्र का माहात्म्य श्रवण ), ५.२.८०.२ ( राजा सौदास का शक्ति मुनि के शाप से कल्माषपाद राक्षस बनकर शक्ति मुनि का भक्षण करना, रात्रि में दु:स्वप्न देखने पर वसिष्ठ के परामर्श से स्वप्नेश्वर लिङ्ग पूजा से निष्कल्मषता प्राप्त करना ), लक्ष्मीनारायण १.३८७ ( सौदास राजा का गुरु वसिष्ठ के शाप व स्व - अभिमन्त्रित जल के चरणों पर गिरने से कल्माषपाद राक्षस बनने का वृत्तान्त, कल्माषपाद राक्षस द्वारा वसिष्ठ - पुत्र वेदश्रवा के भक्षण पर वेदश्रवा - पत्नी सुश्रुता द्वारा कल्माषपाद को शाप ), १.४१० ( कल्माषपाद द्वारा शक्ति का भक्षण करने पर अदृश्यन्ती पत्नी द्वारा विश्वामित्र, रुद्र, यम आदि को जड करने का वृत्तान्त ) । kalmaashapaada/ kalmashpada


      कल्या स्कन्द २.१.३५.१ ( वृषभाचल से निःसृत कल्या नदी के सुवर्णमुखरी नदी से सङ्गम का माहात्म्य ) ।


      कल्याण गणेश १.२२.८ ( पल्ली पुरी में कल्याण वैश्य के पुत्र बल्लाल की गणेश भक्ति का वृत्तान्त ), १.२२.३५ ( भावी जन्म में कल्याण वैश्य के वल्लभ क्षत्रिय होने आदि का कथन ),मत्स्य ७४ ( कल्याण सप्तमी व्रत विधि : अष्ट दल कमल पर आदित्य पूजा ), स्कन्द ५.३.१९८.७० ( रुद्रकोटि तीर्थ में उमा देवी की कल्याणी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ५.३.१९८.७४ ( मलयाचल पर उमा की कल्याणी नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१०७ ( कीशादन नगरी के राजा कल्याणदेवानीक द्वारा पत्नी सहजाश्री सहित श्रीचिह्न नामक मुनि की सेवा से वर प्राप्ति का वृत्तान्त ), कथासरित् ९.१.१९४ ( कल्याणगिरि : राजा पृथ्वीरूप द्वारा रूपलता से विवाह के पश्चात् रूपलता को जयमङ्गल हाथी पर बैठाकर व स्वयं कल्याणगिरि नामक हाथी पर आरूढ होकर प्रतिष्ठानपुर में प्रत्यागमन ), १०.२.१०९ ( शूरवीर राजा सिंहबल की रानी कल्याणवती की कायर परपुरुष पर आसक्ति का वृत्तान्त ), १०.५.२२३ ( धवलमुख नामक राजसेवक द्वारा स्वमित्रों कल्याणवर्मा व वीरबाहु की आपेक्षिक मित्रता की परीक्षा का वृत्तान्त ) । kalyaana


      कल्याणमित्र ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१३१,१.११.६ ( सुतपा विप्र की पत्नी व अश्विनौ के समागम से उत्पन्न पुत्र, पिता सुतपा द्वारा त्याग व अश्विनौ द्वारा पुत्र को चिकित्सा, शिल्प, गणना आदि की शिक्षा देना ) ।


      कल्याणी देवीभागवत ३.२६.४१ ( चार वर्षीया कन्या का नाम, विद्यार्थी व सुखार्थी आदि द्वारा पूजा ), पद्म १.२३.६४ (कल्याणिनी संज्ञक भीम द्वादशी व्रत की विधि व माहात्म्य ), ६.२३८.९( उत्तानपाद - सुता, हिरण्यकशिपु- भार्या, प्रह्लाद - माता ), मत्स्य ५.२४ ( धर वसु की भार्या, द्रविण व हव्यवाह की माता ), १३.३६ ( मलयाचल पर पार्वती का कल्याणी नाम से निवास ), ६९.५७ ( कल्याणिनी संज्ञक भीम द्वादशी व्रत की विधि व माहात्म्य ), १७९.७० ( अन्धकासुर वध हेतु शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक, माया की अनुचरी ), लक्ष्मीनारायण ३.३४.१०७ ( अग्निहोत्र द्विज की कल्याणिका नामक पुत्री का श्री पुण्यनारायण नामक कृष्ण अवतार से विवाह का उल्लेख ) । kalyaani


      कल्लोल लक्ष्मीनारायण २.२५९.१ ( ब्रह्मकल्लोल भक्त विप्र के पुत्र त्रिविक्रम का वृत्तान्त ) ।


      कल्होडी स्कन्द ५.३.९३ ( कल्होडी तीर्थ का माहात्म्य : जाह्नवी गङ्गा का पशु रूप में स्नानार्थ आगमन ), ५.३.११९ ( कल्होडी तीर्थ में कपिला दान का माहात्म्य ) ।


      कवच अग्नि ८४.४६( भोग की कवच मन्त्र से प्राप्ति?), ३२३.३६ ( १०५ अक्षरों के कवच मन्त्र का कथन ), गणेश २.८५.१८ ( मरीचि - पठित गणेश कवच का वर्णन ), गरुड १.१९४.१ ( श्री हरि द्वारा शिव को प्रोक्त वैष्णव कवच ), १.१९६.१ ( श्री हरि द्वारा शिव को २४ विष्णु अवतारों से निर्मित कवच का वर्णन ), गर्ग १.१३.१५ ( पूतना वध पर कृष्ण की रक्षा हेतु गोपियों द्वारा पठित कृष्ण रक्षा कवच ), १.१४.५३ ( ब्राह्मणों द्वारा कृष्ण की रक्षा के लिए पठित कवच ), ४.१६ ( सौभरि ऋषि द्वारा मान्धाता को यमुना कवच का उपदेश ), ८.१२.३ ( गर्ग ऋषि द्वारा गोपियों को प्रदत्त बलराम कवच ), देवीभागवत ३.१९.३४ ( मनोरमा द्वारा सुदर्शन पुत्र की रक्षा हेतु पठित मातृका कवच ), ९.४.७१ ( कृष्ण द्वारा ब्रह्मा को वर्णित सरस्वती कवच ), १२.३.४ ( नारायण द्वारा नारद को वर्णित गायत्री कवच ), नारद १.७१.११४ ( केशवादि रक्षा कवच का कथन ), १.७७+ ( कार्त्तवीर्य व हनुमत्कवच का निरूपण ), १.८९.२२ ( ललिता कवच का वर्णन ), पद्म ६.७१.१२०( विष्णु सहस्रनाम के कवच सूर्यवंशध्वज का उल्लेख ), ६.७३.१ ( शिव द्वारा नारद को प्रदत्त राम रक्षा स्तोत्र कवच ), ब्रह्म १.५७.४० ( विष्णु कवच ), १.७५.१३ ( पूतना वध पर नन्द द्वारा पठित कृष्ण रक्षा कवच ), २.९३.२९ ( शाकल्य द्वारा परशु राक्षस से स्व - रक्षा हेतु पठित कवच ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.३३ ( कृष्ण द्वारा ब्रह्मा को प्रदत्त कृष्ण कवच ), १.१९.४९ ( शिव द्वारा बाणासुर को प्रदत्त शिव कवच ), २.४.७१ ( ब्रह्मा द्वारा भृगु को प्रदत्त सरस्वती कवच ), २.५६.१ ( शिव द्वारा कृष्ण से प्राप्त राधा कवच का माहात्म्य व विधि ), २.६७.१ ( कृष्ण द्वारा ब्रह्मा को प्रदत्त ब्रह्माण्डमोहन नामक प्रकृति / दुर्गा कवच ), ३.१९.१९ ( बृहस्पति द्वारा इन्द्र को प्रदत्त सूर्य कवच ), ३.२२.५ ( श्रीहरि द्वारा नारद को प्रदत्त लक्ष्मी कवच ), ३.३१.२४ ( परशुराम द्वारा त्रैलोक्य विजय हेतु शिव से प्राप्त कृष्ण कवच ), ३.३७.६ ( नारायण द्वारा नारद को प्रदत्त काली कवच ), ३.३८.४१ ( सनत्कुमार द्वारा पुष्कराक्ष को प्रदत्त महालक्ष्मी कवच ), ३.३९.३ ( कृष्ण द्वारा ब्रह्मा को प्रदत्त दुर्गा कवच ), ४.१२.१७ ( शकट भञ्जन के पश्चात् योगनिद्रा द्वारा कृष्ण हेतु पठित कृष्ण कवच ), ब्रह्माण्ड २.३.३३.१ ( परशुराम द्वारा क्षत्रिय वध हेतु शिव से प्राप्त त्रैलोक्य विजय कवच का वर्णन ), भविष्य १.२००.१२ ( सूर्य पूजा में कवच न्यास का कथन ), १.२१२.१४ ( सूर्य पूजा में यकार आदि से निर्मित कवच ), भागवत ६.८.३ ( विश्वरूप पुरोहित द्वारा इन्द्र को प्रदत्त नारायण कवच ), १०.६.२२ ( पूतना वध के पश्चात् गोपियों द्वारा पठित कृष्ण रक्षा कवच ), वामन ८६.९( विष्णु कवच का वर्णन ), विष्णु ५.५.१४ ( गोपों द्वारा कृष्ण रक्षा हेतु पठित श्रीहरि कवच ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९५ ( मार्कण्डेय द्वारा वज्र को प्रदत्त विष्णु पञ्जर कवच ), १.२३७ ( शिव द्वारा रक्षा हेतु प्रयुक्त विष्णु कवच ), स्कन्द २.२.३०.७८( विष्णु के विभिन्न नामों द्वारा कवच ), ३.३.१२.१ ( ऋषभ योगी द्वारा भद्रायु राजकुमार को प्रदत्त शिव कवच ), ४.२.७२.५५ ( विन्ध्यवासिनी देवी द्वारा दुर्ग दैत्य के वध के पश्चात् देवों द्वारा पठित दुर्गा कवच ), ६.२१३.८९ (जाम्बवती द्वारा साम्ब पुत्र की रक्षा हेतु पठित कृष्ण कवच ), महाभारत द्रोण ९४.६२, १०३.२०, लक्ष्मीनारायण १.९.४९ ( विष्णु से युद्ध के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा पठित विष्णु भक्ति कवच ), १.१०५.५२ ( गणेश कवच ), १.१०६.१४ ( माली - सुमाली द्वारा व्याधि नाश हेतु पठित सूर्य कवच ), १.३३५.१२४ ( विष्णु द्वारा ब्राह्मण रूप धारण करके शङ्खचूड से कवच प्राप्त करने का उद्योग ), १.४५७.१२ ( परशुराम द्वारा शिव से प्राप्त त्रैलोक्यविजय नामक विष्णु कवच ), १.४५८.६१ ( विष्णु द्वारा परशुराम को प्रदत्त लक्ष्मी कवच ), २.६१.३६( लोमश - प्रोक्त कृष्ण कवच ) ; द्र. नारीकवच, निवातकवच, न्यास, रुक्मकवच kavacha

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      कवष ब्रह्म २.६९.११ ( कवष द्वारा पैलूष पुत्र को ज्ञान प्राप्ति के लिए ईशान शिव की आराधना का आदेश ; द्र. ऋग्वेद १०.३० के ऋषि कवष ऐलूष ), भागवत ९.२२.३७ ( तुर: कावषेय का जनमेजय के अश्वमेध यज्ञ का पुरोहित बनने का उल्लेख ), वा.रामायण ७.१.४( पश्चिम दिशा में निवास करने वाले ऋषियों में से एक ) । kavasha

      कवष कबन्ध का उलटा है कवष, जो ब्रह्म के वश में हो गया, ब्रह्म से एकाकार हो गया । ऋग्वेद के कुछ सूक्तों (१०.३०) का ऋषि कवष ऐलूष है । इलूष का अर्थ है जिसने इल, तर्कशक्ति को भी जला दिया । - फतहसिंह


      कवि ब्रह्माण्ड ३.४.१.५१ ( कवि व भूति के पुत्र भौत्य मनु का उल्लेख ), ३.४.१.८९ ( सुतार संज्ञक देवगण में से एक ), भागवत ४.१.७ ( यज्ञ व दक्षिणा के १२ पुत्रों में से एक, स्वायम्भुव मन्वन्तर में तुषित देव बनना ), ४.१.४५ ( भृगु - पुत्र, उशना / शुक्राचार्य - पिता ), ५.१.२५ ( प्रियव्रत व बर्हिष्मती के अग्नि संज्ञक १० पुत्रों में से एक, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन ), ५.४.११ ( ऋषभ व जयन्ती के १०० पुत्रों में से एक ), ७.९.३४ ( विष्णु के नाभिकमल से प्रकट ब्रह्मा की संज्ञा ), ९.१.१२ ( श्राद्धदेव मनु व श्रद्धा के १० पुत्रों में से एक ), ९.२.१५ ( मनु के कनिष्ठ पुत्र कवि द्वारा किशोर अवस्था में परम गति की प्राप्ति का उल्लेख -  कविः कनीयान् विषयेषु निःस्पृहो     विसृज्य राज्यं सह बन्धुभिर्वनम् ।  निवेश्य चित्ते पुरुषं स्वरोचिषं     विवेश कैशोरवयाः परं गतः ॥  ), ९.२१.१९ ( दुरितक्षय के तीन पुत्रों में से एक, मन्यु / भरद्वाज वंश - गर्गाच्छिनिस्ततो गार्ग्यः क्षत्राद् ब्रह्म ह्यवर्तत ।  दुरितक्षयो महावीर्यात् तस्य त्रय्यारुणिः कविः ॥ ), ९.२२.४० ( कविरथ : चित्ररथ - पुत्र, वृष्टिमान् - पिता, जनमेजय वंश ), १०.६१.१४ ( कृष्ण व कालिन्दी के १० पुत्रों में से एक ), १०.९०.३४ ( कृष्ण के १८ महारथी पुत्रों में से एक ), ११.२.२१(कविर्हरिरन्तरिक्षः प्रबुद्धः पिप्पलायनः ।
       आविहोत्रोऽथ द्रुमिलश्चमसः करभाजनः ॥), ११.२.३३ ( ऋषभ मुनि - पुत्र कवि द्वारा राजा निमि को भागवत धर्म का उपदेश - मन्येऽकुतश्चिद्भयमच्युतस्य
           पादाम्बुजोपासनमत्र नित्यम् ।… ), मत्स्य ९.१५ ( तामस मन्वन्तर के ७ मुनियों में से एक ), ९.२१(रैवत मनु के १० पुत्रों में से एक), २०.३ ( कौशिक ऋषि के ७ पुत्रों में से एक, गर्ग ऋषि की कपिला गौ के भक्षण व ५ जन्मान्तरों का वृत्तान्त ), ४९.३९ ( उरुक्षव व विशाला के ३ पुत्रों में से एक, भरद्वाज / भरत वंश ), १४५.१०३ ( ३३ मन्त्रकर्ता अङ्गिरस ऋषियों में से एक ), वामन ९.२२ ( कवियों के शुक वाहन का उल्लेख - शुकारूढाश्च कवयो गन्धर्वाश्च पदातिनः।। ), वायु २३.२०५/१.२३.१९३ ( २३ वें द्वापर में शिव - अवतार श्वेत के ४ पुत्रों में से एक ), शिव ३.५.३४ ( २३ वें द्वापर में शिव - अवतार श्वेत के ४ पुत्रों में से एक ), हरिवंश १.२१.५ ( कौशिक ऋषि के ७ पुत्रों में से एक, गर्ग ऋषि की कपिला गौ के भक्षण व ५ जन्मान्तरों का वृत्तान्त - वाग्दुष्टः क्रोधनो हिंस्रः पिशुनः कविरेव च । खसृमः पितृवर्ती च नामभिः कर्मभिस्तथा ।। ) । kavi

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      कव्य गरुड १.८९.२१(राजन्यों द्वारा कव्यों द्वारा पितरों को तृप्त करने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७२.२६ ( कव्य भक्षण करने वाले पितरों का उल्लेख ), वायु ५२.६८ ( संवत्सर रूपी पितर गण की संज्ञा ), ५६.४ ( अग्नि का एक रूप ) महाभारत आश्वमेधिक दाक्षिणात्य पृ. ६३४९ । kavya


      कव्यवाहन गरुड २.२.१९.७२( राजा नग्नजित् के पूर्व जन्म में कव्यवाह होने का उल्लेख ), २.२.१९.३०( कृष्ण - पत्नी नाग्नजिती / नीला द्वारा पूर्व जन्म में कव्यवाह - पुत्री होकर तप करने का वृत्तान्त ), ३.१९.२८(नीला कन्या का पितृव्य), ३.१९.३०(कव्यवाह-पुत्री द्वारा कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति का वृत्तान्त), ३.१९.७२(कव्यवाह का नाग्निजित् रूप में जन्म लेकर नीला – पिता बनना), ब्रह्माण्ड १.२.१२.५ ( पितरों के कव्यवाहन अग्नि विशेष का उल्लेख ), मत्स्य ५१.४ ( पवमान अग्नि के पुत्र का नाम ), ५१.५ ( पितरों के कव्यवाहन अग्नि विशेष का उल्लेख ), वायु २९.४ ( पवमान अग्नि के पुत्र का नाम ), ७५.५६ ( कव्यवाहन अग्नि के लिए स्वधा इति होम मन्त्र का उल्लेख ), ११०.१० ( पिण्डदान काल में कव्यवाहन अग्नि का आवाहन ), शिव ७.१.१७.३९( पवमान - पुत्र?, पितृ प्रकृति ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.७ ( पवमान अग्नि - पुत्र ) । kavyavaahana


      कषाय ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.३१ ( स्ववर्ण की पर - दारा से भोग करने पर कषाय तप्तोदक नरक में जाने का उल्लेख )


      कशा स्कन्द ५.२.८०.४ ( राजा कल्माषपाद द्वारा वसिष्ठ - पुत्र शक्ति का कशा से ताडन व शाप प्राप्ति का वृत्तान्त ), कालिका ८४.१८(आत्मा के रथी, ज्ञान के कशा, मन के सारथी होने का कथन), महाभारत अनुशासन १४२.२९टिप्पणी(कश्यप की नाम की निरुक्ति के संदर्भ में कश्य की निरुक्ति)।


      कशिपु भागवत २.२.४ ( क्षिति के होने पर कशिपु के निरर्थक होने का उल्लेख ) ; द्र. हिरण्यकशिपु।


      कशेरु नारद १.४६.४२ ( राजा केशिध्वज द्वारा कशेरु से व्याघ्र द्वारा गौ की हत्या का प्रायश्चित्त पूछने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.९ ( कशेरुमान् : भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक ), मत्स्य ११४.८ ( वही), वामन ९०.१२ ( कशेरु देश में विष्णु का देवेश / विश्वरूप नाम से वास ), वायु ४५.७९ ( वही), विष्णु २.३.६ ( वही), हरिवंश २.६३.७ ( भौमासुर / नरकासुर द्वारा त्वष्टा - पुत्री कशेरु का हरण ) । kasheru


      कश्यप अग्नि १९.१ ( अरिष्टनेमि कश्यप की अदिति, दिति, ताम्रा, कद्रू, विनता आदि भार्याओं से उत्पन्न सन्तानों का कथन ), कूर्म १.१८.८ ( कश्यप - भार्याओं से उत्पन्न सन्तानों का कथन ), १.२०.४३ ( कश्यप द्वारा राजा वसुमना को मुक्ति उपाय के विषय में स्वमत का कथन ), गणेश २.९.४ ( कश्यप आश्रम में हा हा, हू हू गन्धर्वों का आगमन, महोत्कट गणेश द्वारा अतिथियों की पंच मूर्तियों को नष्ट करने का वृत्तान्त ), गर्ग १.५.२३ ( कश्यप का वसुदेव रूप में अवतरण ), देवीभागवत २.९.४८ ( तक्षक द्वारा दंशन से राजा परीक्षित की भावी मृत्यु पर परीक्षित को पुन: जीवित करने के लिए कश्यप ब्राह्मण का गमन, तक्षक द्वारा दष्ट वृक्ष को जीवित करना व तक्षक से धन प्राप्ति पर वापस लौटने का वृत्तान्त ), ४.२.४२, ४.३.३ ( कश्यप द्वारा वरुण की गौ न लौटाने पर वरुण व ब्रह्मा के शाप से कश्यप का कृष्ण - पिता वसुदेव के रूप में जन्म तथा कश्यप - भार्याओं अदिति व सुरसा का देवकी व रोहिणी रूप में जन्म ), नारद १.११.७२ ( वामन अवतार के प्राकट्य पर कश्यप द्वारा वामन की स्तुति ), पद्म १.१९.२४३ ( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व मृणाल चोरी पर कश्यप की प्रतिक्रिया ), २.६.२३+ ( श्रीहरि द्वारा कालनेमि आदि दनु - पुत्रों के वध पर कश्यप द्वारा शोक संतप्त दनु व दिति भार्याओं को सान्त्वना देना तथा पञ्च तत्त्वों से मैत्री करने के कारण आत्मा के दुःख सागर में पडने के दृष्टान्त का वर्णन करना ), ५.१०.३८ ( राम के अश्वमेध में कश्यप की दक्षिण द्वार पर स्थिति का उल्लेख ), ५.९९.५+ ( विषयों में आसक्त राजा महीरथ के पुरोहित कश्यप द्वारा राजा को प्रतिबोधन, विषयों के प्रति अनुराग उत्पन्न करने वाली कपाल में स्थित कृमियों का वर्णन, पाप से मुक्ति के लिए राजा को वैशाख मास में स्नान, दान आदि का परामर्श ), ६.१३५.१ ( कश्यप द्वारा तप से शिव से साभ्रमती गङ्गा की प्राप्ति ), ६.१६४.१ ( कश्यप ह्रद का माहात्म्य : कश्यप ह्रद में कुशेश्वर शिव की स्थिति, कश्यप द्वारा तप से काश्यपी गङ्गा का अवतारण ), ब्रह्म २.१३.३ ( कश्यप द्वारा प्रमति - पुत्र भौवन नामक यजमान द्वारा एक साथ दस अश्वमेधों के अनुष्ठान योग्य भूमि के अन्वेषण का वृत्तान्त ), २.३०.४ ( बालखिल्यों द्वारा प्रेरित करने पर कश्यप प्रजापति द्वारा कद्रू व सुपर्णा भार्याओं से इन्द्र दर्पहर पुत्रों को जन्म देने का उद्योग, गर्भवती भार्याओं के संकटग्रस्त होने पर गौतमी नदी के सेवन से भार्याओं की मुक्ति कराने का उद्योग ), २.५४.१२ ( कश्यप द्वारा दिति भार्या को लोक विजेता पुत्र हेतु गर्भ धारण कराना व दिति को पालनीय व्रत का उपदेश ), २.५४.८२ ( इन्द्र द्वारा दिति के गर्भ छेदन पर कश्यप द्वारा दिति के गर्भ की शान्ति व इन्द्र पुत्र के दोष की निवृत्ति के लिए गौतमी तट पर शिव की आराधना ), ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.१८ ( सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि के तिरस्कार पर कश्यप द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया ), ३.१८.८ ( शिव द्वारा कश्यप - पुत्र सूर्य का शूल से ताडन व वध करने पर कश्यप द्वारा शिव को पुत्र के शिर छेदन का शाप ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.९८ ( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक ),१.२.३२.११२ ( ६ ब्रह्मवादी काश्यप ऋषियों का उल्लेख ), १.२.३५.९५ ( देवर्षिगण में कश्यप - पुत्रों नारद व पर्वत का उल्लेख ), २.३.१.५३ ( प्रजापतियों में से एक ), २.३.१.१२१ ( कश्यप नाम प्राप्ति का कारण व निरुक्ति : मद्यपान व हास ), २.३.३.५५ ( कश्यप की १४ भार्याओं के नाम - अदितिर्दितिर्दनुः काष्ठारिष्टानायुः खशा तथा । सुरभिर्विनता ताम्रा मुनिः क्रोधवशा तथा ॥  ), २.३.३.८४, २.३.३.१०५ ( ब्रह्मा के राजसी तनु से मारीच कश्यप का जन्म ), २.३.४.३४ ( कश्यप - भार्या अदिति से साध्यों के अंशरूप १२ आदित्यों के जन्म का उल्लेख ), २.३.५.४ ( कश्यप के अश्वमेध यज्ञ में सौत्य दिन में अतिरात्र में दिति से हिरण्यकशिपु का जन्म ), २.३.७१.२३८ ( कश्यप के ब्रह्मा का अंश व अदिति के पृथ्वी का अंश होने का उल्लेख ), २.३.७.४६५ ( कश्यप की अदिति आदि भार्याओं की प्रकृतियों का कथन - अदितिर्धर्मशीला तु बलशीला दितिस्तथा ॥ तपःशीला तु सुरभिर्मायाशीला दनुस्तथा । ), २.३.८.२७ ( पुत्र उत्पत्ति के पश्चात् कश्यप द्वारा गोत्रकार पुत्रों की उत्पत्ति के लिए तप, वत्सार व असित पुत्रों को जन्म देना, वंश वर्णन ), २.३.४७.५४ ( परशुराम द्वारा यज्ञ के पश्चात् काश्यप को भूमि दान करने के कारण भूमि की काश्यपी संज्ञा होना ), ३.४.१.२० ( सुखा संज्ञक गण के २० देवों का मारीच कश्यप के पुत्र बनने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१०.६३ ( सूर्य का क्रमश: कश्यप व मरीचि बनने का उल्लेख, कश्यप की निरुक्ति ), ३.४.२१.१३ ( कलियुग में कश्यप के कण्व व आर्यावती के पौत्रों के रूप में जन्म का उल्लेख ), ३.४.२५ ( कलियुग में कश्यप का कल्कि अवतार के पिता विष्णुयशा रूप में अवतरण ), भागवत ३.१४.७ ( कामातुर दिति का कश्यप पति से कुसमय में गर्भ धारण करने व हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष पुत्रों को जन्म देने का वृत्तान्त ), ४.१.१३ ( मरीचि ऋषि व कर्दम - कन्या कला से कश्यप का जन्म ), ८.१६.२४ ( कश्यप द्वारा अदिति भार्या को पुत्र प्राप्ति हेतु पयोव्रत का उपदेश ), ९.१६.२२ ( कश्यप द्वारा परशुराम से दक्षिणा में मध्य भूमि प्राप्त करने का उल्लेख ), १०.७४.९ ( युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों में से एक ), १२.६.११ ( परीक्षित - तक्षक प्रसंग में कश्यप ब्राह्मण की भूमिका का उल्लेख ), १२.७.५ ( पुराणों के ६ आचार्यों में से एक ), १२.११.४१ ( मार्गशीर्ष मास में सूर्य रथ व्यूह में स्थित ऋषि ), मत्स्य ६.१ ( कश्यप की १३ भार्याओं की सन्तानों का वर्णन - अदितिर्दितिर्दनुश्चैव अरिष्टा सुरसा तथा।। सुरभिर्विनता तद्वत्ताम्रा क्रोधवशा इरा। ), ४७.९ ( कश्यप के ब्रह्मा का अंश व अदिति के पृथ्वी का अंश होने का उल्लेख ), १४५.९२ ( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक ), १४६.१६ ( कश्यप द्वारा भार्याओं के रूप में प्राप्त दक्ष की १३ कन्याओं के नाम - अदितिर्दितिर्दनुर्विश्वा ह्यरिष्टा सुरसा तथा।। सुरभिर्विनता चैव ताम्रा क्रोधवशा इरा।), १४६.३८ ( इन्द्र द्वारा दिति के गर्भ छेदन के पश्चात् दिति द्वारा कश्यप से वज्राङ्ग पुत्र को जन्म देना, वज्राङ्ग द्वारा इन्द्र के बन्धन पर कश्यप द्वारा इन्द्र को मुक्त कराना ), १७१.३० ( कश्यप द्वारा भार्याओं के रूप में प्राप्त दक्ष की १२ कन्याओं के नाम ), १९९.१ ( कश्यप कुल के गोत्र प्रवर्तक ऋषियों का वर्णन ), वायु ६५.५३ ( प्रजापतियों में से एक ), ६५.११४ ( कश्यप नाम प्राप्ति का कारण व निरुक्ति : मद्यपान व हास ), ८४.२६ ( त्वष्ट्रा द्वारा अण्ड के द्वैधा विदारण पर कश्यप का दुखी होना व मार्तण्ड नाम देने का उल्लेख ), १११.५०/२.४९.५९( कश्यप पद पर श्राद्ध से पितरों को ब्रह्मलोक प्राप्ति का उल्लेख ), १११.५७/२.४९.६८( भारद्वाज द्वारा कश्यप पद पर श्राद्ध करने पर दो हस्तों के प्रकट होने का वृत्तान्त ), विष्णु १.१५.१२६ ( तुषित संज्ञक देवगण का कश्यप व अदिति के १२ आदित्य पुत्र बनना ), १.२१ ( कश्यप की दनु आदि पत्नियों की सन्तानों का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.११५ ( मरीचि - पुत्र कश्यप के कुल के गोत्रकार ऋषियों का वर्णन ), ३.७३.२ ( भार्याओं सहित कश्यप की मूर्ति के स्वरूप का कथन - अदितिश्च दितिश्चैव विनता सुरभिस्तथा ।।
      दृष्टिरासां तु कर्तव्या सौम्या यादवनन्दन ।।.. ), ३.३४४.२ ( बलि द्वारा इन्द्र के राज्य के हरण पर कश्यप द्वारा विष्णु की स्तुति, विष्णु का कश्यप - पुत्र वामन रूप में अवतार, कश्यप - कृत स्तुति का वर्णन ), शिव ३.१८.३ ( दैत्यों से पीडित देवों की रक्षा हेतु कश्यप द्वारा काशी में तप व शिव की स्तुति, शिव का कश्यप व सुरभि के एकादश रुद्र पुत्रों के रूप में जन्म लेना ), ५.४.२९ ( शिव माया से प्रेरित कश्यप द्वारा धन्व नृपति की कन्या मांगने का उल्लेख ),५.३२ ( कश्यप - भार्याओं से उत्पन्न पुत्रों का वर्णन ), ५.३४.४० ( दशम मन्वन्तर के ऋषियों में से एक ? ), ५.३४.५१ ( ११वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ७.२.४.५३ ( कश्यप : कालहा शिव का रूप ), स्कन्द १.२.४५.१०९ ( गरुड व कश्यप द्वारा सह्य पर्वत पर लिङ्ग स्थापित करने का उल्लेख ), ३.२.२३.१० ( कश्यप का धर्मारण्य में ब्रह्मा के सत्र में होता बनना ), ४.१.१७.६९( मारीच कश्यप से सूर्य/विवस्वान्/मार्तण्ड के जन्म का कथन ), ५.१.४६.१२ ( मरीचि से कश्यप की उत्पत्ति का उल्लेख ; मारीच कश्यप द्वारा अदिति भार्या सहित तप व वरदान प्राप्ति का वर्णन ), ५.३.४०.६ ( मरीचि - पुत्र कश्यप द्वारा दक्ष - पुत्री अदिति की पत्नी रूप में प्राप्ति व प्रजापति आदि बनने का कथन ), ६.३२.४० ( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर कश्यप द्वारा अर्थ परिग्रह की निन्दा ), ७.१.२१.३ ( कश्यप की १३ भार्याओं में अदिति व दिति के पुत्रों का वृत्तान्त ), ७.१.२३.९६ ( चन्द्रमा के यज्ञ में कश्यप का प्रस्तोता ऋत्विज बनना ), ७.१.२१३.१ ( कश्यपेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : पातक नाशक ), ७.१.२५५.२५ ( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर कश्यप द्वारा अर्थ संचय की निन्दा ), ७.१.२५५.५१ ( बिस चोरी पर कश्यप द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया ), ७.४.१७.२८ ( कश्यप की द्वारका के पश्चिम द्वार पर स्थिति ), हरिवंश १.५५.२१ ( कश्यप द्वारा वरुण पुत्र की गायों पर अधिकार कर लेने पर ब्रह्मा द्वारा कश्यप को वसुदेव रूप में पृथ्वी पर जन्म लेने का शाप ), २.७२.२१ ( पारिजात हरण प्रसंग में कृष्ण व इन्द्र के युद्ध की शान्ति हेतु कश्यप द्वारा शिव की स्तुति ), २.९१.१८, २.९६.१ ( कश्यप द्वारा असुरराज वज्रनाभ को इन्द्र से शत्रुता न करने का परामर्श, वज्रनाभ द्वारा परामर्श की उपेक्षा करने पर मृत्यु को प्राप्त होना ), ३.७१.५० ( वामन के विराट रूप में कश्यप के पुंस्त्व होने का उल्लेख ), ३.१०६.१७+ ( हंस व डिम्भक वीर भ्राताओं द्वारा कश्यप ऋषि के वैष्णव सत्र का दर्शन ), योगवासिष्ठ ६.१.१२८.१०( उपस्थ में कश्यप का न्यास ), लक्ष्मीनारायण १.३३६.६७ ( कश्यप की १३ भार्याओं से उत्पन्न पुत्रों के नाम व भार्याओं की प्रकृति - अदितिर्दितिर्दनुः कालाऽरिष्टा सुरसा तथा ।
      सुरभिर्विनता चापि ताम्रा क्रोधवशा इरा ।। ), १.३८२.१६४(कश्यप का लक्ष भृत्यों सहित पद्मा के विवाह में आगमन का उल्लेख), १.४६३ ( कश्यप की कद्रू व विनता भार्याओं की सन्तति का वर्णन, कश्यप द्वारा गरुड पुत्र को क्षुधा निवृत्ति के लिए निषादों व मत्स्यों के भक्षण तथा विप्रों के अभक्षण का निर्देश ), १.५४३.७० ( दक्ष द्वारा कश्यप को अर्पित १३ कन्याओं के नाम - अदितिश्च दितिश्चापि दनुः काष्ठा इरावती ।
      विनता चापि कद्रूश्च सिंहिका सुप्रभा तथा ।। ), २.१०४.२५ ( काश्मीर में काश्यपी प्रजा होने का उल्लेख ), ३.९५.७९ ( कश्यप व अदिति द्वारा प्रणद्ब्रह्म मुनि की सेवा करने पर प्रणद्ब्रह्म मुनि द्वारा कश्यप को प्रजापति होने आदि का वरदान ), कथासरित् ६.२.७४ ( कश्यप - पुत्र वत्स के सुलोचना से विवाह का वृत्तान्त ), ८.२.३६२ ( मय का सूर्यप्रभ व सुनीथ पुत्रद्वय सहित पिता कश्यप के दर्शन को जाना, कश्यप द्वारा इन्द्र कोप से मय की रक्षा व मय को वरदान देना आदि ), ८.३.२१९ ( कश्यप द्वारा नमुचि असुर व देवों के बीच सन्धि कराना ), १६.३.२ ( कश्यप द्वारा राजा नरवाहनदत्त को तारावलोक नामक राजपुत्र द्वारा दानपारमिता के प्रभाव से विद्याओं का साम्राज्य प्राप्त करने का वृत्तान्त सुनाना ), १७.१.३ ( असित पर्वत पर कश्यप के आश्रम में विद्याधरों के चक्रवर्ती राजा नरवाहनदत्त का निवास ), १८.१.३ ( वही), कृष्णोपनिषद २१( कश्यप उलूखल का रूप ) । kashyapa

      कश्यप कश्यं पाति इति कश्यप । कश धातु प्रकाश के अर्थ में है । प्रकाश में लाने योग्य वस्तु - ब्रह्मवीर्य, ब्रह्मबल, उसका पालन करने वाला कश्यप कहलाता है । इन्द्रियों को भीतर ले जाकर देखने वाला, समाधि में, पश्यक कहलाता है । समाधि की ओर आरोहण करता हुआ जीवात्मा कश्यप कहलाता है । समाधि से व्युत्थान की अवस्था में वह मारीच कश्यप कहलाता है, मरीचियों, किरणों से युक्त । कश्यप दैवी और आसुरी, दोनों वृत्तियों का पालक है । - फतहसिंह


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      Vedic contexts on Kashyapa


      कसेरु शिव ५.१८.४ ( भारत के ९ खण्डों में से एक ? ) ; द्र. कशेरु


      कहोड नारद १.९१.१०९ ( कहोल : मृत्युञ्जय मन्त्र के ऋषि ), पद्म ६.१३९.२७ ( साभ्रमती तट पर अग्निपाल तीर्थ में कहोड द्वारा कुकर्दम राजा के प्रेत की मुक्ति का उद्योग ), ६.१५७.१० ( दधीचि - पुत्र पिप्पलाद का उपनाम, कहोड द्वारा कोल असुर के वधार्थ कृत्या को उत्पन्न करना ), ब्रह्माण्ड १.२.३३.१६ ( मध्यमाध्वर्युओं में से एक ) । kahoda

      टिप्पणी : कहिक: टोपी से कहोड शब्द की व्युत्पत्ति - लक्षु सिद्धान्त कौमुदी ।


      कह्लार गर्ग ५.१६.४ ९ (गोपियों के विरह अश्रुओं से कह्लार पुष्पों से सुशोभित लीला सरोवर प्रकट होने का उल्लेख ), नारद १.९०.७२( कह्लार द्वारा देवी पूजा से पुत्र सिद्धि का उल्लेख ) ।